Crime: माशुका के खातिर!

अपराध का एक कारण प्रेम और प्रेमिका भी होता है. आमतौर पर देखा जाता है कि समाज में घटित होने वाले अनेक छोटे या फिर गंभीर अपराध तक आलम सिर्फ और सिर्फ माशुका ही होती है. इसके खातिर जाने कितने तरह के छोटे बड़े अपराध समाज में घटित होते रहते हैं, आज हम इस आलेख में आपको कुछ ऐसे अपराधों के संबंध में बताएंगे जो समाज को सचेत करते हैं ताकि ऐसे अपराधिक धुरी से बच सकें.
पहला मामला- माशुका ने बातों बातों में ज्वेलरी की भूमिका बांधी तो श्याम ने दूसरी रात को एक ज्वेलरी दुकान में घुसकर चोरी की और सोने के के बाद माशूका को ला कर दिए मगर दूसरे ही दिन पुलिस ने उसे धर दबोचा.
दूसरा मामला-प्रेमिका ने प्रेमी से रुपयों की मांग की तू प्रेमी अपने एक दोस्त के साथ एटीएम मशीन को तोड़ने पहुंच गया और रंगे हाथ पुलिस के द्वारा पकड़ लिया गया.
तीसरा मामला-फिल्मी गाने जब तेरी से दवाई स्कीम की क्या तुम्हारे पास कभी कोई चार पहिया वाहन होगा जिसमें हम घूमेंगे तो फिर मिलने चार पहिया वाहन पार कर दिया और पकड़ा गया.
ऐसे जाने कितने मामले हमारे आसपास घटित हो रहे हैं जो यह बताते हैं कि प्रेमी प्रेमिका के लिए या फिर प्रेमिका प्रेमी के लिए क्या कुछ कर  जाते हैं मगर अपराध तो अपराध होता है जिसका परिणाम होता है सजा ही होती है.
भूमिका के लिए कार पार कर दी!

इसे आप कोई फिल्मी कहानी समझें मगर यह सच है कि माशूका को लुभाने के लिए आशिक ने दुस्साहसिक कदम उठा लिया और यही कदम उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल बन गया. दरअसल, माशुका‌ ने बातों बातों  में  प्रेमी से लांग ड्राइव पर चलने के लिए कहा तो फटे हाल प्रेमी ने एक अदद कार ही चुरा ली. और जब वह प्रेमिका को लेकर लांग ड्राइव पर निकला तो प्रेमी-प्रेमिका पुलिस द्वारा धर दबोचे गए . पुलिस ने प्रेमी के साथ उसके एक मददगार दोस्त को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है.
एक सच्ची कहानी है इसका नायक है राहुल नामक युवक जिसने अपनी माशूका को घुमाने के लिए फतेहपुर से कार चुराई थी. लेकिन उसने एक बेवकूफी कर दी की कार का नंबर नहीं बदला. उधर, फतेहपुर में कार मालिक ने पुलिस में शिकायत कर दी. इधर पुलिस सक्रिय हो गई. जब कार चुराने का आरोपी राहुल अपनी प्रेमिका और एक दोस्त के साथ चकेरी की तरफ घुमने जा रहा था‌ उन्हें हाईवे पर पुलिस ने कार का नंबर देखकर  रोका. चेकिंग के दौरान युवक पकड़ लिया गया. गिरफ्तारी के वक्त कार में प्रेमिका और उसका एक दोस्त भी मौजूद था.

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समझदारी के साथ सावधानी भी जरूरी

यह कहा जा सकता है कि आज पुलिस और न्यायालय में इस तरह के अनेक मुआमलें आ रहे हैं जो समाचार पत्रों में सुर्खियां भी बटोरते हैं  मगर इसका हल क्या हो इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जाता.
इस रिपोर्ट के माध्यम से हम युवा पीढ़ी को यह संदेश दे रहे हैं की प्रेम में आप इतना मत डूब जाइए कि कानून को अपने हाथ में ले लें और अपने भविष्य को बर्बाद कर लें. क्योंकि यह उम्र कुछ ऐसी होती है जब आदमी को जीवन की सच्चाई का आभास नहीं होता कानून का ज्ञान नहीं होता और वह अपराध कर बैठता है.

मगर जब पुलिस द्वारा धर दबोचा जाता है तो आरोपी युवक की आंखें खुलती है और प्रेमिका भी पछताती है कि मैंने क्यों ऐसी चीज मांग ली जो उसके प्रिय के बस में नहीं थी. कुल मिलाकर  समझदारी दोनों पक्षों के लिए आवश्यक है.

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विधि विद्वान अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के मुताबिक हाल ही में एक प्रकरण मेरे पास भी ऐसा ही आया था जिसमें प्रेमी के लिए प्रेमिका ने अपने घर के जेवरात और रुपए चुरा लिए थे और मामला पुलिस से होते हुए न्यायालय पहुंचा था. दरअसल, ऐसे मामले युवावस्था में प्रेम की झोंके में घटित हो जाते हैं जो स्वयं को सिर्फ अपमानित कराते हैं. समझदारी का तकाजा यही है कि युवा प्रेम के भंवर में फंस करके कभी भी कानून को अपने हाथों में ना लें.

200 हल्ला हो: दलित समाज का धधकता लावा

हम सब ने बचपन में एक कहानी जरूर सुनी होगी, शेर और खरगोश की. एक शेर का जंगल में आतंक था. चूंकि वह उस जंगल का राजा था, तो बिना वजह दूसरे जानवरों को मार देता था. इस से उस की प्रजा बहुत दुखी थी. सब ने मिल कर शेर के सामने प्रस्ताव रखा कि रोजाना कोई एक जानवर उस के पास भेज दिया जाएगा, ताकि उस की भूख मिट जाए और जंगल में शांति भी  बनी रहे.

शेर ने वह प्रस्ताव मान लिया और उस दिन के बाद से जंगल में खूनखराबा बंद हो गया. पर क्या जो अब सही लग रहा था, वह सच भी था? नहीं. लिहाजा, यह बात छोटे से खरगोश के दिमाग में बैठ गई कि वह बिना प्रतिरोध किए शेर का निवाला नहीं बनेगा और हो सके तो शेर को ही निबटा कर जंगल को उस के खौफ से आजाद कराएगा.

ऐसा हुआ भी. उस खरगोश ने अपनी चालाकी से शेर को यह जता दिया कि उस जंगल में दूसरा शेर आ चुका है और एक कुएं में छिपा है.

अपने दंभ में भरा शेर खरगोश की चाल में फंस गया और अपनी परछाईं को दूसरा शेर समझ कर कुएं में कूद गया और डूब कर मर गया.

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हिंदी फिल्म ‘200 हल्ला हो’ देख कर मुझे अचानक यह शेर और खरगोश की कहानी याद आई. इस फिल्म का जालिम शेर कोई बल्ली चौधरी है, जो एक दलित बस्ती पर एकछत्र राज करता है. वह किसी का भी दिनदहाड़े मर्डर करने से नहीं चूकता है.

एक दलित औरत उस के खिलाफ कुछ बोल देती है, तो वह बीच बस्ती में पहले उस का रेप करता है, फिर चाकुओं से गोद देता है. इस के बाद तो उस का खौफ हद पर होता है. इतना ज्यादा कि वह जिस जवान लड़की या औरत पर अपना हाथ रख देता, वह निरीह जानवर की तरह खुद उस की मांद में जा कर खुद को सौंप देती है.

इस सब जुल्म के बावजूद बस्ती वालों को उम्मीद होती है कि एक दिन सबकुछ सही होगा और उन की जिंदगी खुशियों से भर जाएगी या फिर शायद वे इसे अपनी नियति मान लेते हैं कि चलो, कोई नहीं, इज्जत ही तो गई है, जिंदगी तो बची है. जी लो किसी तरह.

पर अचानक एक दिन 200 औरतें कोर्ट में घुस कर दिनदहाड़े 70 से भी ज्यादा बार उस बल्ली चौधरी को चाकू वगैरह से बड़े ही बेरहम तरीके से जान से मार देती हैं.

ऐसा करने से पहले वे परदा की हुई औरतें पूरे कोर्ट रूम में लाल मिर्च पाउडर फेंकती हैं, ताकि बाकी सब की आंखें बंद हो जाएं और कोई भी उन्हें देख न सके.

वे सब बल्ली चौधरी से इतनी ज्यादा नफरत करती हैं कि उस की मर्दानगी की निशानी को भी काट डालती हैं.

वह कौन सा खरगोश था, जिस ने उन दलित औरतों में इतना ज्यादा जुनून और जज्बा भर दिया था कि अभी नहीं तो कभी नहीं? इस फिल्म में यह किरदार हीरोइन ने निभाया है, जो कई साल से इस बस्ती से बाहर थी, पढ़ीलिखी और होनहार थी, तभी तो उस के परिवार और बस्ती वाले नहीं चाहते थे कि वह दोबारा इस दलदल में धंसे.

पर ऐसा हो नहीं पाता है. वह बस्ती में लौटती है, अपनी एक सहेली पर बल्ली चौधरी का जुल्म देखती है और पुलिस में चली जाती है.

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इस के बाद बल्ली चौधरी उस को सबक सिखाने घर आता है, पर आतंकी शेर भूल जाता है कि अदना से खरगोश को भी अपनी जान प्यारी है और वह अकेली लड़की उस के गैंग पर भारी पड़ती है. इस से बस्ती वाले भी जोश में आ जाते हैं और बल्ली चौधरी व उस के गुरगों की खूब मरम्मत करते हैं.

इतना ही नहीं, बल्ली चौधरी के खिलाफ एकसाथ 40 एफआईआर दर्ज होती हैं. पर वह तो ताकत के नशे में चूर था, इसलिए पुलिस कस्टडी में होने के बावजूद वह सब बस्ती वालों को कोर्ट परिसर में देख लेने की धमकी देता है. बस, यहीं वे सब औरतें समझ जाती हैं कि इस जानवर को हलाल करना ही पड़ेगा. ऐसा होता भी है और बाद में उन औरतों को सुबूतों की कमी में छोड़ भी दिया जाता है.

इस फिल्म की कहानी को एक सच्ची घटना पर आधारित बताया गया है. नागपुर शहर की बैकग्राउंड पर बनी इस फिल्म में अमोल पालेकर ने एक रिटायर्ड दलित जज का किरदार अदा किया है. हीरोइन रिंकू राजगुरु हैं, जो अपनी दलित बस्ती में बदले की चिनगारी भरती हैं.

पर इस फिल्म की सब से बड़ी खासीयत यह है कि इस में दलित औरतों की आज की हालत को बड़ी ही बारीकी से दिखाया गया है. वे सामाजिक ढांचे में सब से निचले पायदान पर खड़ी हैं. उन की समस्याओं के जरीए दलित समाज की बदहाली का बेबाक बखान किया गया है.

वे ही नहीं, बल्कि अमोल पालेकर, जो एक रिटायर्ड जज हैं और संविधान को सर्वोच्च स्थान देते हैं, खुद ‘सैलिब्रेटी दलित जज’ के टैग से जूझ रहे होते हैं. रिटायर होने के बाद भी समाज उन्हें इज्जत देता है, पर उन की जाति न जाने क्यों उन का पीछा नहीं छोड़ पाती है.

वे मौब लिंचिंग को गलत मानते हैं, पर साथ ही सवाल भी उठाते हैं कि ऐसी क्या मजबूरी रही होगी कि उन औरतों ने कोर्ट परिसर में ही एक आदमी का कोल्ड ब्लडेड मर्डर कर दिया? वे उसे मर्डर नहीं, बल्कि ‘मृत्युदंड’ की संज्ञा देते हैं.

इतना ही नहीं, जब उन की इस केस से संबंधित कमेटी को भंग करने की बात आती है, तो वे कोई सवालजवाब नहीं करते हैं, बल्कि जिस डायरी में अपने फाउंटेन पैन से नोट लिख रहे होते हैं, उस की निब को डायरी पर ही तोड़ देते हैं. ठीक वैसे ही जैसे किसी जज ने किसी आरोपी को मृत्युदंड देने के बाद अपनी कलम तोड़ दी हो.

इस पूरी फिल्म में बल्ली चौधरी के जरीए भारतीय पुरुषवादी और जातिवादी सोच का घिनौना रूप भी दिखाया है. यह किरदार नफरत के लायक है और अपने अहंकार में इतना ज्यादा डूबा हुआ है कि पूरी बस्ती उस के लिए कीड़ेमकोड़े से ज्यादा कुछ नहीं है. वह औरतों को अपने बाप का माल समझता है और कोई राजामहाराजा न होते हुए भी बर्बर है.

बल्ली चौधरी जातिवाद का ऐसा आईना है, जहां भरे शहर में दलित समाज को उस की औकात दिखाई जाती है. अगर उस बस्ती से बाहर कहीं चले गए तो आप की जान बच गई, वरना आप कहीं के नहीं रहेंगे. गरीब दलित ही क्यों, खुद जज बने अमोल पालेकर एक जगह बाबा साहब अंबेडकर के फोटो के सामने कहते हैं कि दलित का कहीं घर नहीं है.

इस के अलावा फिल्म में पुलिस का भी दोहरा चरित्र दिखाया गया है कि कैसे भी केस निबटा कर मामला खत्म करो और अपनी गरदन बचाओ. देश की हकीकत भी ऐसी ही है. पुलिस गरीब की हिमायती कभी नहीं दिखती है.

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यही वजह है कि अच्छे पढ़ेलिखे लोग भी थाने जा कर एफआईआर दर्ज कराने से पहले कई बार सोचते हैं. जब शहरों, महानगरों का यह हाल है, तो गांवदेहात और कसबाई इलाकों में क्या होता होगा, इस का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

यही वजह है कि अखबारों में रोज रेप, छेड़छाड़, एसिड अटैक की खबरें भरी पड़ी रहती हैं, पर हम उन्हें ऐसे नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे जिन पर यह जुल्म हुआ है, वे इनसान ही नहीं हैं.

नतीजतन, आज भी दलितों को अगड़ों के साथ कुरसी पर बैठने नहीं दिया जाता है. सरकारी दफ्तरों तक में ऊंची जाति के चपरासी निचली जाति के बड़े अफसरों को पानी तक नहीं पूछते हैं. निचलों को मंदिर में घुसने तक नहीं दिया जाता है. उन्हें उन के देवीदेवता थमा दिए गए हैं. शादी में घोड़ी पर नहीं बैठने नहीं दिया जाता है.

दलित औरतों और लड़कियों पर होने वाले जोरजुल्म के मामले तो रोजाना बढ़ रहे हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में बीते 10 सालों के दौरान हुए अपराध के आंकड़ों से पता चलता है कि हर 4 दिन में अनुसूचित जाति की एक औरत के साथ रेप होता है.

साल 2019 में पूरे देश में दलित महिलाओं के बलात्कार के 2,369 अपराध घटित हुए, जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में रेप के 466 मामले दर्ज हुए, जो राष्ट्रीय स्तर

पर कुल अपराध का 19.6 फीसदी है.

एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में बिहार में दलित अत्याचार के मामलों में 7 फीसदी का इजाफा हुआ. साल 2018 में 42,792 मामले दलित अत्याचार से जुड़े सामने आए, तो साल 2019 में इन की संख्या बढ़ कर 45,935 हो गई. यही नहीं, साल 2019 में 3,486 रेप के ऐसे मामले आए, जिन में पीडि़ता दलित समाज से थीं.

पूरे देश में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं और शासनप्रशासन लीपापोती में लगा रहता है. 200 औरतों द्वारा किसी वहशी को यों मौत के घाट उतारना भी समस्या का हल नहीं है, पर अगर पानी सिर से ऊपर चला जाए तो ऐसा हल्ला हो ही जाता है, जो बेहद दुखद है और समाज की कड़वी सचाई भी.

दूसरा विवाह- भाग 2: क्या सोनाक्षी से विशाल प्यार करता था?

अकसर औरतों को कपड़ेगहनों का शौक होता है. अलमारी अटी पड़ी होती है कपड़ों से उन की, लेकिन लीना की अलमारी किताबों से अटी पड़ी है. एक भूख है उसे पढ़ने की. एक दिन भी न पढे़, तो खालीखाली सा लगता है उसे, और विशाल के साथ भी ऐसा ही है. कितना भी बिजी क्यों न हो अपनी लाइफ में, रोज थोड़ाबहुत पढ़ना नहीं भूलता वह. रहा ही नहीं जाता बिना पढ़े उसे. जिंदगी सार्थक लगती है उसे पढ़ने से, वरना तो इंसान के जीवन में भागमभाग लगी ही रहती है.

लेकिन लीना दोनों के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती थी. इसलिए ‘घर में बहुत काम है,’ का बहाना कर जाने से मना कर दिया. लेकिन विशाल तो जिद पर अड़ गया कि उसे भी उन के साथ बुकफेयर चलना ही पड़ेगा. हार कर लीना को उन के साथ जाना पड़ा.

बुकफेयर में जहां लीना और विशाल किताबें देखने में व्यस्त थे, वहीं सोनाक्षी बस आतेजाते लोगों को निहारने और मोबाइल में व्यस्त दिख रही थी. उस के चेहरे से लग रहा था उसे यहां आ कर जरा भी अच्छा नहीं लगा. वह तो कहीं घूमने या फिल्म देखने की सोच रही थी, मगर विशाल उसे यहां खींच लाया.  इशारों से कहा भी उस ने कि चलो अब यहां से, बोर हो रही हूं, तो विशाल ने भी इशारों से कहा कि ‘अभी रुकेगा वह यहां, चाहे तो वह जा सकती है घर.

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क्या करती वह, एक तरफ बैठ गई और अपना मोबाइल चलाने लगी. गुस्सा भी आ रहा था उसे कि यहां आई ही क्यों? घर में ही रहती इस से अच्छा. भले ही सोनाक्षी और विशाल एकदूसरे को 2 सालों से जानते थे, पर उन की एक भी आदत ऐसी नहीं थी जो आपस में मेल खाती हो. इसलिए अकसर दोनों में अपनेअपने मत को ले कर टकराव होता. और फिर हारने को दोनों में से कोई तैयार नहीं होता.

वहीं, विशाल को लीना का साथ इसलिए भी अच्छा लगता था क्योंकि दोनों की बहुत सी आदतें मिलतीजुलती थीं. बातविचारों में भी वह बहुत शालीन थी. उस से बातें कर विशाल को मानसिक स्फूर्ति मिलती थी. जिस तरह से वह बोलती थी न, लगता जैसे उस की बातों से शहद टपक रहा हो. उस के रूप, रस और गंध में विशाल ऐसे खो जाता कि उसे कुछ होश ही नहीं रहता था. जब सोनाक्षी टोकती, उसे तब होश आता कि कहां है वह और किसी सोच मे डूबा था.

लीना को भी विशाल से बातें करना अच्छा लगता था. पता नहीं क्यों, पर उसे देखते ही लीना के चेहरे पर मुसकान तैर जाती. उन की दोस्ती तो किताबों से शुरू हुई थी. अकसर दोनों एकदूसरे को अपनीअपनी किताबें लेतेदेते रहते थे. पढ़ना दोनों को बहुत अच्छा लगता था. लेकिन वहीं सोनाक्षी किताबों से कोसों दूर भागती. जब विशाल कहता कि किताबें पढ़ कर देखो कभी, ज्ञान का खजाना छिपा है उन में. तब मुंह बनाती सोनाक्षी कहती कि नहीं, उसे इन किताबोंउताबों में कोई दिलचस्पी नहीं है.  उसे तो, बस, विशाल में दिलचस्पी है. और उस की बात पर विशाल मुसकरा पड़ता था.

सोनाक्षी का किताबों से दूरदूर तक कोई नातारिश्ता नहीं था. आश्चर्य होता उसे कि कैसे कोई इतनी मोटीमोटी किताबें हफ्तेदस  दिन में खत्म कर सकता है? वह तो सालों तक भी एक किताब खत्म नहीं कर पाएगी.

उसे तो फिल्में देखना, घूमना, होटलों में भोजन करना पसंद है. जिंदगी में मौजमस्ती होती रहे, बस, और कुछ नहीं चाहिए उसे. इसलिए तो कभीकभी विशाल के साथ भी वह बोर होने लगती थी क्योंकि उस के साथ होते हुए भी वह किताबों में खोया रहता था. गुस्से में कह भी देती, ‘किताबों से ही क्यों नहीं बातें करते? उसे ही अपना दोस्त बना लो न.’ तो हंसते हुए विशाल कहता कि वह तो अभी कुछ साल पहले उस की दोस्त बनी है. लेकिन ये किताबें तो बचपन से उस की साथी हैं, जो आजीवन उस की दोस्त रहेंगी.’

लेकिन, अब एक और दोस्त मिल गई है उसे लीना के रूप में. बिलकुल उस की तरह ही सोच रखने वाली. जब भी दोनों बातें करने लगते, सोनाक्षी तुनक कर वहां से उठ कर चल देती और कहती कि उन की बातों का मुद्दा सिर्फ किताबें और पढ़ाई ही क्यों होता है, कुछ और क्यों नहीं होता? और उस की बात पर दोनों हंस पड़ते.

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‘‘हंसो मत यार, सही कह रही हूं. और कोई बात नहीं सू झती क्या तुम दोनों को? जब देखो किताबें, देशदुनिया और राजनीति पर बातें करते रहते हो. अरे भई, कुछ इंट्रैस्ंिटग बातें भी कर लिया करो कभी. मैं तो स्कूलकालेज की ही किताबें पढ़पढ़ कर इतनी ऊब चुकी थी कि सोचती कब पीछा छूटे इन से और मैं चैन की सांस लूं,’’ हंसती हुई सोनाक्षी अपने बचपन की बातें याद कर कहती, ‘‘तुम्हें पता है विशाल, बचपन में मेरा स्कूल से भागने का रिकौर्ड था.

‘‘घर से मेरा स्कूल कुछ दूरी पर ही था. पापा मु झे स्कूल छोड़ कर जैसे ही जाते, मैं पीछेपीछे घर पहुंच जाती. यह रोज का किस्सा बन गया था. परेशान थे मांपापा मु झे ले कर. डर लगता उन्हें कि कहीं रास्ते में कोई गाड़ी ठोकर न मार दे मु झे या कोई उठा कर ही ले भागा, तो फिर क्या करेंगे वे. और स्कूल से भागना क्या अच्छी बात है? इसलिए एक बार पापा ने टीचर को ही डांट पिला दी कि बच्चा उन के स्कूल से भाग जाता है, क्या उन्हें पता नहीं चलता? अगर बच्चे को कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा फिर?

‘‘फिर क्या था, टीचर ने उस रोज मु झे रस्सी से बांध दिया ताकि मैं स्कूल से भाग न सकूं. लेकिन मैं ने रोनाचिल्लाना इतना मचाया कि उन्हें मु झे खोलना ही पड़ा. लेकिन प्रिंसिपल ने भी कह दिया कि स्कूल में अब मेरे लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे बच्चे को वह अपने स्कूल में नहीं पढ़ा सकते. बहुत खुश थी मैं कि स्कूल और किताबों से मेरा पाला छूटा. लेकिन पापा ने जो मार मारी न उस रोज, आह, आज भी कांप उठती हूं याद कर के.

‘‘उस दिन के बाद से मैं स्कूल से कभी नहीं भागी, लेकिन किताबों के प्रति मेरी नफरत बरकरार रही. वह तो पापा के डर के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी पड़ी, वरना तो पढ़ाई मु झे सजा से कोई कम नहीं लगती है आज भी,’’ सोनाक्षी बोली.

‘‘कैसी बातें कहती हो तुम सोनाक्षी?’’ पढ़ना क्या सजा होता है? अरे, किताबों में तो ज्ञान का भंडार छिपा है. मैं तो किताब पढ़ने के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकता. सोने से पहले रोज जब तक थोड़ा पढ़ न लूं, नींद नहीं आती’’ विशाल की बात पर लीना ने भी सहमति जताई और कहा कि उसे भी बिना पढे़ नींद नहीं आती. काम से फुरसत मिलते ही वह किताब ले कर बैठ जाती है. मजा आता है उसे पढ़ने में.

ए क सुर में दोनों को बोलते देख सोनाक्षी हंस पड़ी और एक लंबी

सांस छोड़ती हुई बोली, ‘‘हूं, मु झे लगता है तुम दोनों की जोड़ी खूब जमेगी, क्योंकि एकजैसे जो हो तुम दोनों.’’

उस की बातों पर दोनों एकदूसरे को देखने लगे और आंखों ही आंखों में जो बातें हुईं, ये तो उन्हें ही पता था. कहते हैं, आंखें दिल के  झरोखे सी होती हैं.  झरोखे बंद भी हो सकते हैं, पर होंठों की कोर एक ऐसा सूचक है जो कभी चुकता नहीं.

विशाल अपलक अब भी लीना को वैसे ही निहार रहा था. कुछ क्षणों की वह तंद्रा लीना को मानो उस कमरे से दूर अलग कहीं ले गई थी जहां होंठों के कोरों का कसाव, बिना तनिक कांपे भी, जैसे अनजाने कुछ नरम पड़ गया था. मुंह के आसपास की असंख्य शिराओं का अदृश्य तनाव कुछ ढीला हो गया था और जीवन का अदम्य लचीलापन जैसे फिर उभर कर एक स्निग्ध लहर बन गया था. ऐसा पहले भी कई बार हुआ जब किताबें लेतेदेते दोनों का हाथ आपस में स्पर्श कर जाता तो उन की आंखें बातें करने लगती थीं.

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सोनाक्षी ने उसे  झक झोरा तो पाया कि वह कहीं खो गया था. लेकिन लक्ष्य किया उस ने कि उस के चेहरे के हावभाव को कोई पढ़ नहीं पाया. नास्तिकों की भीड़ में जैसे कोई भक्त अनदेखे क्षणभर आंख बंद कर अपने आराध्य का ध्यान कर लेता है, वैसे ही विशाल कहीं पर भी हो या किसी के साथ हो, अपनी लीना को मन की आंखों से देख ही लेता था.

लेकिन फिर भी लीना विशाल को सिर्फ एक अच्छा दोस्त सम झती थी. उस के दिल में कुछ भी नहीं था उसे ले कर. वह तो आज भी अपने दिल में सूरज को बसाए हुए थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है. 4 वर्षों पहले लीना और सूरज विवाह बंधन में बंधे थे. हंसतेमुसकराते शादी के 2 साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. लेकिन एक दिन सूरज की मौत की खबर ने लीना को तोड़ कर रख दिया. एक तसल्ली थी कि उस का सूरज देश के लिए शहीद हुआ है. गर्व था उसे अपने पति पर.

सूरज फौज में था. अपनी बेटी को विधवा के रूप में देख कर लीना की मां ने तो खटिया ही पकड़ ली और उस के पापा गुमसुम से हो गए. लेकिन वे चाहते थे कि उन के जीतेजी बेटी का घर फिर से बस जाए क्योंकि जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती कि बगैर किसी सहारे के जिया जा सके और वे कब तक बेटी के साथ रह पाएंगे. आज न कल, वे भी अपनी आंखें मूंद ही लेंगे, फिर क्या होगा लीना का?

सूरज के मांपापा भी बहू को बंधन में बांध कर नहीं रखना चाहते थे और अब जब बेटा ही नहीं रहा उन का, फिर बहू को वे किस अधिकार से अपने पास रख सकते थे? लेकिन लीना दूसरे विवाह को हरगिज तैयार न थी क्योंकि सूरज अब भी उस का प्यार था, उस का पति था. लीना वह स्थान किसी और को नहीं देना चाहती थी. उस के लिए तो अब यही घर उस का अपना घर था और सूरज के मांपापा उस की जिम्मेदारी.

याद है उसे, जब भी सूरज का खत या फोन आता, एक बात तो वह जरूरत कहता था, ‘लीना, मेरे मांपापा अब तुम्हारी जिम्मेदारी हैं, उन का ध्यान रखना’ और लीना कहती, ‘हां, वह इस जिम्मेदारी को अच्छे से निभाएगी, चिंता न करें.’ ऐसे में कैसे वह अपने वचन से पलट सकती थी? इसलिए उस ने कभी फिर दूसरा विवाह न करने का फैसला कर लिया.

सूरज के जाने के बाद वह बखूबी  अपनी जिम्मेदारी निभा रही है.  लेकिन सूरज की कमी उसे खलती रहती है. इसलिए तो उस ने अपनेआप को किताबों में  झोंक दिया था. वैसे, सूरज के मांपापा भी यही चाहते थे कि लीना दूसरा विवाह कर ले अब. कई बार कहा भी उन्होंने. कई रिश्ते भी आए.  पर लीना का एक ही जवाब था कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी.

उस दिन सोनाक्षी को अच्छे से तैयार होते देख लीना कहने लगी, ‘‘कब तक यों ही सजसंवर कर विशाल को रि झाती रहोगी ननद रानी? क्यों नहीं कह देतीं उस से अपने मन की बात? एकदूसरे को अच्छी तरह सम झने लगे हो तुम दोनों, तो अब क्या सोचविचार करना? कहीं ऐसा न हो, मांपापा तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दें और फिर तुम कुछ न कर पाओ.’’

भाभी की बात सोनाक्षी को भी सही लगी कि अगर विशाल आगे नहीं बढ़ रहा है, तो क्यों नहीं वही आगे बढ़ कर अपने प्यार का इजहार कर देती है. लेकिन कैसे वह अपने प्यार का इजहार करे, सम झ नहीं आ रहा था.

‘‘अब इस में सोचनासम झना क्या है सोनू? देखो, अगले हफ्ते ही विशाल का जन्मदिन है, तो इस से अच्छा मौका और क्या होगा.’’ लीना की यह बात सोनाक्षी को जंच गई और मन ही मन उस ने इजहारे प्यार का फैसला कर लिया. सोच लिया उस ने कि कैसे वह विशाल के सामने अपने प्यार कर इजहार करेगी.

सोनाक्षी ने तो पहली ही नजर में विशाल को अपना दिल दे दिया था. लेकिन विशाल ने आज तक नहीं जताया उसे कि वह उस से प्यार करता है. लेकिन उस की बातों, हावभाव और सोनाक्षी को ले कर उस की बेचैनी को देख, उसे यही लगता है कि वह भी उस से प्यार करता है. वैसे भी, जरूरी तो नहीं कि हर बात कह कर ही जताई जाए. मेरे लिए तो इतना ही काफी है कि मु झ से मिले बिना वह एक दिन भी नहीं रह पाता है. तभी तो कोई न कोई बहाना बना कर सीधे मेरे घर आ पहुंचता है. अपने मन में यह सोच सोनाक्षी मुसकरा पड़ी थी.

सोनाक्षी को यह नहीं पता कि विशाल उस से नहीं, बल्कि उस की विधवा भाभी लीना से प्यार करता है और उस की खातिर ही वह उस के घर बहाने बना कर आता रहता है. यह कब, कैसे और कहां हुआ. नहीं पता उसे. लेकिन जैसेजैसे उस ने लीना को जाना, उस के प्रति वह आकर्षित होता चला गया. इसलिए सोनाक्षी से मिलने के बहाने ही वह उस के घर चला आता था. भले ही वह सोनाक्षी से बातें करता था पर उस का दिल और दिमाग तो लीना के पास ही होता था.

लॉकडाउन: आखिर अर्जुन की बुआ अपनी बनावटी बातों से क्यों दिल दुखाती थी

‘‘दिनेश, तुम बिलकुल चिंता मत करो, अर्जुन मेरा भी तो बेटा है. पिंकी, बबलू तो उस के पीछे ही लगे रहते हैं. घर में ही तो रह रहा है. यह मत सोचो कि लौकडाउन में उस का यहां रहना मेरे लिए कोई परेशानी की बात होगी. मेरे लिए तो जैसे पिंकी, बबलू हैं वैसा अर्जुन. उस से बात करवाऊं?’’

किचन में बरतन धोते हुए अर्जुन के कानों में बुआ अंजू के शब्द पड़े तो उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. अब बुआ पापा से बात कराने के लिए उसे फोन न दे दें. नहीं करनी है उसे अपने पापा से बात.

पर बुआ ने फोन होल्ड पर रखा था. उसे पकड़ाते हुए बोलीं, ‘‘लो बेटा, अपने पापा से बात कर लो. उस के बाद थोड़ा आराम कर लेना.’’

अर्जुन समझ गया कि यह सब पापा को सुनाने के लिए कहा गया है. उस ने हाथ पोंछ कर फोन बहुत बेदिली से पकड़ा. पापा उस का हालचाल ले रहे थे, उस ने बस हांहूं में जवाब दे कर फोन रख दिया. वह बरतन धो कर चुपचाप बालकनी में रखी कुरसी पर बैठ गया.

आज मुंबई में लौकडाउन की वजह से फंसे हुए उसे 2 महीने हो रहे थे. वह यहां वाशी में होस्टल में रह कर इंजीनियरिंग के बाद एक कोर्स कर रहा था. अचानक कोरोना के प्रकोप के चलते होस्टल बंद हो गया और सारे स्टूडैंट्स अपनेअपने घर जाने लगे.

वह सहारनपुर से आया हुआ था. उस ने अपने पिता दिनेश को कहा कि वह भी घर आ रहा है. ट्रेन या कोई भी फ्लाइट मिलने पर वह फौरन आना चाहता है.

दिनेश ने कहा, ‘नहींनहीं… आने की कोई जरूरत नहीं है. यह तो कुछ दिनों की ही बात है. क्यों आओगे फिर जाओगे? वहीं अंजू बुआ के यहां चले जाओ.’

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उस ने कहा था, ‘नहीं पापा, कुछ दिनों की बात नहीं है, मेरे सभी साथी फ्लाइट पकड़ कर घर चले गए हैं. मैं भी मुंबई से फौरन निकलना चाहता हूं.’

‘नहीं, बुआ के पास चले जाओ. क्यों आनेजाने में फालतू खर्च करना. वह भी तो अपना घर है.’

उस ने अपनी मम्मी रीना से बात की, ‘मम्मी, पापा मेरी बात क्यों नहीं समझ रहे? लौकडाउन लंबा चलेगा. यह 2 दिनों की बात नहीं है, मुझे घर आना है.’

‘हां, बेटा, मैं भी यही चाहती हूं कि तुम अपने घर ही आ जाओ. ऐसे समय मेरी आंखों के आगे रहो. पर तुम्हारे पापा बिलकुल सुन ही नहीं रहे.’

‘और आप भी जानती हैं बुआ को. बस मीठी बोली बोल कर सामने वाले को बेवकूफ बनाती हैं. जब भी उन से मिलने गया, इतना दिखावटी है उन के यहां सब. मुझे नहीं रहना उन के यहां. मम्मी, कुछ करो न.’

जिद्दी पति के सामने रीना की एक न चली. सब बंद होता गया और अर्जुन को अंजू के घर ही आना पड़ा. बात 1-2 दिनों की थी नहीं. यह किसी को भी नहीं पता था कि कब हालात सामान्य होंगे.

अंजू, उस के पति विनय और दोनों बच्चों ने उस का स्वागत दिल खोल कर किया. अर्जुन स्वभाव से सरल था इसलिए शांत सा रहता. कुछ दिन तो उसे कोई दिक्कत नहीं हुई, पर जब अंजू की कामवाली भी छुट्टी पर चली गई तो अब घर के कामधाम कौन संभाले, इस का बंटवारा होने लगा.

अंजू ने पूछा, ‘पहले यह बताओ कि बरतन कौन धोएगा?’

20 साल की पिंकी ने कहा, ‘मैं तो बिलकुल भी नहीं. मेरे हाथ खराब हो जाएंगे.’

15 साल के बबलू ने कहा, ‘मेरी तो औनलाइन क्लासेज हो सकती हैं और आप के सिंक भरभर के बरतन धोने में तो आप की कामवाली ही रो देती है. सौरी मम्मी, यह तो अपने बस का नहीं.’

विनय ने सफाई दी, ‘बरतन धोने में तो मेरी कमर भी चली जाएगी.’

अंजू ने सब को घूरते हुए कहा, ‘तुम सब रहने दो, बस बहाने बना रहे हो. मैं तुम लोगों से कहूंगी ही नहीं. मेरा अर्जुन धो लेगा. यही मेरा बेटा है. क्यों अर्जुन?’

अर्जुन ने इतना ही कहा, ‘ठीक है बुआ, धो लूंगा.’

अंजू ने फिर पूछा, ‘कुकिंग में हैल्प कौन करेगा?’

सब चुप रहे. तब अंजू ने कहा, ‘मुझे तो तुम लोगों से उम्मीद ही नहीं. तुम लोगों पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है. ठीक है, मैं देख लूंगी. पिंकी तुम्हें साफसफाई करनी पड़ेगी और बबलू, सूखे कपड़े तुम ही तह करोगे. मेरा अर्जुन मेरी हैल्प करेगा. बस, मुझे तुम लोगों को कुछ कहना ही नहीं.’

लौकडाउन बढ़ता जा रहा था और इस के साथ ही अर्जुन मन ही मन टूटता भी जा रहा था. बुआ कहने को तो बहुत प्यार से पेश आतीं, पर वह उन की चालाकियों को समझ रहा था. पिंकी, बबलू उस के आगेपीछे घूमते. विनय उस के साथ बातें करते रहते. देखने में सब सामान्य लगता पर अर्जुन भी कोई बच्चा तो था नहीं, बुआ की मीठीमीठी बातों का मतलब इतने लंबे समय में अच्छी तरह समझ चुका था. उसे अपने पापा के लिए मन में बहुत नाराजगी थी. बेटे के आगे पिता ने पैसे को ज्यादा महत्त्व दिया था, बजाय इस के कि वह घर पहुंच जाए. उन्हें अपनी इस बहन का स्वभाव भी अच्छी तरह पता था.

पिता आर्थिक रूप से समृद्ध थे. ऐसा नहीं कि उस का इस समय जाने का खर्च वे सहन न कर पाते, पर बेकार की उन की सनक के कारण आज वह बुआ का एक ऐसा नौकर बन कर रह गया है, जो उन के किसी भी काम को मना नहीं कर पाता है. अब तो न कहीं जा ही सकता है.

घर से निकले लगभग 2 महीने हो गए थे. बाहर से आया सामान वही सैनिटाइज करता है. कोई उस सामान को तभी हाथ लगाता है जब वह साफ कर देता है. उस की लाइफ की ही कोई वैल्यू नहीं है.

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बुआ का कहना है कि वही अच्छी तरह से सैनिटाइज करता है बाकी सब तो लापरवाह हैं. बुआ के उस से काम करवाने के स्टाइल पर अब अर्जुन को मन ही मन हंसी भी आ जाती है.

अर्जुन को अपनी मम्मी पर भी बहुत गुस्सा आता है कि क्यों उन्होंने अपने मन की बात पापा के सामने नहीं रखी? क्यों वे अपनी बात पापा से मनवा नहीं पातीं?

मम्मी जब भी उस से फोन पर बात करती हैं,  बुआ आसपास ही रहती हैं, फिर वह व्हाट्सऐप पर उन्हें अपनी हालत बताता है और फिर बाद में चैट डिलीट कर देता है, क्योंकि पिंकी, बबलू, कभी भी उस का फोन छेड़ते रहते हैं.

कभीकभी उसे लगता है कि पिंकी, बबलू को भी कहीं उस का फोन चैक करते रहने की ट्रेनिंग तो नहीं दे डाली बुआ ने?

उस ने एक बार मना भी किया था कि मेरा फोन मत छेड़ो, पर उस के इतना कहते ही बच्चों ने शोर मचा दिया था कि भैया ने डांटा. उसे फौरन बात संभालनी पड़ी थी.

अर्जुन अपने से 3 साल छोटी बहन अंजलि के टच में लगातार रहता. वह एक बार मुंबई घूमने आई थी. उसे बुआ के घर 4-5 दिन रहना पड़ा था. वापस घर लौट कर उस ने सब के सामने कान पकड़े थे. कहा था, ‘मैं तो कभी बुआ के घर नहीं जाऊंगी. मीठा बोल कर काम में ही जोत कर रखती हैं. क्या बताऊं, बैठने ही नहीं देतीं. ‘‘मेरी बेटी, मेरी बेटी’’ कह कर कितना काम करवा लिया. पापा, आप की बहन है या कोई मीठी छुरी?’

इस नाम पर वह खूब हंसा था. जब से अर्जुन यहां फंसा है अंजलि उस से बुआ के हाल मीठी छुरी कह कर ही लेती है. वह उसे सब बताता है.

अंजलि भी भाई के लिए दुखी है. कहां उसे आदत है घर के काम करने की? कामचोर नहीं है अर्जुन, पर इतना भी समझ रहा है कि पिता और बुआ के बीच पिस गया है वह. पिता से तो वह अब कोई बात ही नहीं कर रहा है.

कभी वह भी देर से उठता है और इस बीच दिनेश का फोन आ जाए तो बुआ उन से ऐसे बात करती हैं कि जैसे वह इतना आराम कर रहा है और वे यही चाहती हैं कि बस वह यों ही उन के घर रहे. वह तो बाद में उसे अंजलि से पता चलता है जब पापा बताते हैं कि ‘देखो, क्या ठाठ से रख रही है मेरी बहन उसे. आजकल के बच्चे तो यों ही उस के पीछे पड़े रहते हैं,’ और वह यह सुन कर कुढ़ कर रह जाता है.

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एक दिन तो उसे शरारत सूझी. उस ने बबलू से कहा, ‘‘मेरा वीडियो बनाओगे जब मैं बरतन धोऊंगा?’’

बबलू ने पूछा, ‘‘क्यों भैया?’’

‘‘अपने दोस्तों को दिखाऊंगा. वे भी भेजते हैं मुझे ऐसे वीडियो.’’

बबलू ने यह बात मम्मी यानी उस की बुआ को बता दी, और फिर वीडियो तो बनना ही नहीं था.

यह लौकडाउन उसे बहुत भारी पड़ा है. उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि उस के पिता ने उस की बात नहीं मानी. उस की जमा हुई फीस खतरे में थी, इसलिए पापा ने उसे न बुला कर अपने कुछ पैसे बचा लिए. क्यों वे किसी की बात नहीं सुनते? कितना दर्द दिया है उन्होंने उसे. शरीर से भी थक चुका है वह और मन से भी. पता नहीं कितने दिन और ऐसे… अर्जुन की आंखों से आंसू बह कर गालों तक आ गए, मगर उस ने झट से आंसू पोंछ लिए क्योंकि बुआ आवाज जो लगा रही थीं.

कोरोना लव: शादी के बाद अमन और रचना के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

लेकिन क्या कोरोना के दौर में भी कोई भटका किसी अनजान भटके से मिल सकता है भला, कभी न अलग होने के लिए?

कोरोना लव- भाग 1: शादी के बाद अमन और रचना के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

अमन घर में पैर रखने ही जा रहा था कि रचना चीख पड़ी, ‘‘बाहर…बाहर जूता खोलो. अभी मैं ने पूरे घर में झाड़ूपोंछा लगाया है और तुम हो कि जूता पहन कर अंदर घुसे आ रहे हो.’’

‘‘अरे, तो क्या हो गया? रोज तो आता हूं,’’ झल्लाते हुए अमन जूता बाहर ही खोल कर जैसे ही अंदर आने लगा रचना ने फिर उसे टोका, ‘‘नहीं, बैठना नहीं, जाओ पहले बाथरूम और अच्छे से हाथमुंहपैर सब धो कर आओ. और हां, अपना मोबाइल भी सैनिटाइज करना मत भूलना. वरना यहांवहां कहीं भी रख दोगे और फिर पूरे घर में इन्फैक्शन फैलाओगे.’’

रचना की बात पर अमन ने उसे घूर कर देखा. ‘क्या है, घूर तो ऐसे रहे हैं जैसे खा ही जाएंगे. एक तो इस कोरोना की वजह से बाई नहीं आ रही है. सोसाइटी वालों की तरफ से सख्त मनाही है और ऊपर से इन की नवाबी देखो. जैसे मैं इन के बाप की नौकर हूं. यह नहीं होता जरा कि काम में मेरी थोड़ी हैल्प कर दें. नहीं, उलटे काम को और बड़ा कर रख देते हैं. कहीं जूता खोल कर रख देंगे, कहीं भीगा तौलिया फेंक आएंगे. कितनी बार कहा, हाथ धो कर फ्रिज या किचन का कोई सामान छुआ करो. लेकिन नहीं, समझ ही नहीं आता इन्हें. बेवकूफ कहीं के,’ अपने मन में ही भुनभुनाई रचना.

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‘‘हूं, बड़ी आई साफसफाई पर  लैक्चर देने वाली. समझती क्या है अपनेआप को? जैसे इस घर की मालकिन यही हो. हां, करूंगा, जैसा मेरा मन होगा करूंगा,’’ अमन भन्नाता हुआ अपने कमरे में घुस गया और दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘वैसे, गलती इन मर्दों की भी नहीं है. गलती है उन मांओं की जो बेटियों को तो सारी शिक्षा, संस्कार दे डालती हैं, पर अपने बेटों को कुछ नहीं सिखातीं, क्योंकि उन्हें तो कोई जरूरत ही नहीं है न सीखने की. बीवी तो मिल ही जाएगी बना कर खिलाने वाली,’’ अमन को भुनभुनाते देख वह चुप नहीं रह पाई और बोल दिया जो मन में आया.

बहुत गुस्सा आ रहा था उसे आज. कहा था अमन से, लौकडाउन की वजह से बाई कुछ दिन काम पर नहीं आएगी, तो वह उस की मदद कर दिया करे काम में, क्योंकि उसे और भी काम होते हैं. ऊपर से अभी औफिस का काम भी उसे घर से करना पड़ रहा है, तो समय नहीं मिल पाता है. लेकिन अमन ने ‘तुम्हारा काम है तुम जानो, मुझ से नहीं होगा’ कह कर बात वहीं खत्म कर दी. तो गुस्सा तो आएगा ही न? क्या वह अकेली रहती है इस घर में जो सारे कामों की जिम्मेदारी उस की ही है? आखिर वह भी तो नौकरी करती है बाहर जा कर. यह बात अमन क्यों नहीं समझता.

खाना खाते समय भी दोनों में घर के काम को ले कर बहस शुरू हो गई. रचना ने सिर्फ इतना कहा कि घर के कुछ सामान लाने थे. अगर वह ले आता तो अच्छा होता. वह गई थी दुकान राशन का सामान लाने, पर वहां बड़ी लंबी लाइन लगी थी इसलिए वापस चली आई.

‘‘तो वापस क्यों आ गईं? क्या जरा देर खड़ी रह कर सामान खरीद नहीं सकती थीं जो बारबार मुझे फोन कर के परेशान कर रही थीं? एक तो मुझे इस लौकडाउन में भी बैंक जाना पड़ रहा है, ऊपर से तुम चाहती हो कि मैं घर के कामों में भी तुम्हारी मदद कर दूं? नहीं हो सकता है,’’ चिढ़ते हुए अमन बोला.

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‘‘हां, पता है मुझे, तुम से तो कोई उम्मीद लगाना ही बेकार है. क्या करती मैं, धूप में खड़ीखड़ी पकती रहती? फोन इसलिए कर रही थी कि तुम औफिस से आते हुए घर के सामान लेते आना? लेकिन नहीं, तुम तो फोन भी नहीं उठा रहे थे मेरा. वैसे, एक बात बताओ, अभी तो बैंक में पब्लिक डीलिंग हो नहीं रही है, फिर करते क्या हो जो मेरा एक फोन नहीं उठा सकते या घर का कोई सामान खरीद कर नहीं ला सकते? बोलो न? घरबाहर के सारे कामों की जिम्मेदारी मेरी ही है क्या? तुम्हें कोई मतलब नहीं?’’

‘‘पब्लिक डीलिंग नहीं होती है तो क्या बैंक में काम नहीं होते हैं? और ज्यादा सवाल मत करो मुझ से. जो करना है, जैसे करना है, समझो खुद, समझी? खुद तो आराम से ‘वर्क फ्रौम होम’ कर रही हो. जब मरजी होती है, आराम कर लेती हो, दोस्तों से बातें कर लेती हो और दिखा रही हो कि कितना काम करती हो.’’

मेरी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है, मैं बच्चों की सारी जरूरतें कैसे पूरा करूं?

सवाल

मैं 43 वर्षीय पुरुष हूं. जिंदगी में मैं ने जो चाहा, कभी नहीं मिला. कालेज टाइम में चाहता था कोई गर्लफ्रैंड बने, लेकिन नहीं बनी. एक लड़की को बहुत पसंद करता था लेकिन कभी उस से बोल नहीं पाया. शादी हुई तो सोचा सिंपल सी प्यार भरी लाइफ होगी लेकिन पत्नी ऐसी मिली जिसे सैक्स में रुचि न थी. डिप्रैशन में रहती थी. एक साल के अंदर ही तलाक हो गया. दूसरी शादी की, पत्नी झगड़ालू निकली. मेरे मातापिता से लड़ती. मुझ से ज्यादा पढ़ीलिखी थी, सो इस बात का मुझ पर रोब झाड़ती. खैर, उस ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, लेकिन डिलीवरी के दौरान कुछ कौंप्लिकेशंस के कारण उस की मौत हो गई.

अब बच्चों को पालने की जिम्मेदारी पूरी तरह से मेरे ऊपर है. पिताजी का देहांत हो चुका है और मम्मी बीमार रहती हैं. सोचता हूं, उन्हें कुछ हो गया तो मैं तो बिलकुल अकेला हो जाऊंगा. रिश्तेदार शादी करने की सलाह देते हैं तो कोई कहता है एक बच्चा मैं गोद दे दूं, 2-2 बच्चे संभालना मुश्किल है.

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आर्थिक प्रौब्लम भी है. प्राइवेट जौब करता हूं. कब छूट जाए, कुछ कह नहीं सकता क्योंकि कंपनी घाटे में चल रही है. मम्मी का कहना है कि शादी के बारे में सोचना छोड़, बच्चों की परवरिश के बारे में सोचूं. लेकिन पुरुष हूं, मेरी शारीरिक जरूरत भी है. मैं बहुत उलझन में हूं. कुछ सोच नहीं पा रहा कि लाइफ में मेरे लिए क्या अच्छा और क्या बुरा?

जवाब

वाकई आप की जिंदगी में मिठास कम, कड़वाहट ज्यादा रही है. खैर, जो हो गया सो गया. अब आगे की ओर देखिए. फिलहाल, अभी आप की पहली समस्या है जुड़वां छोटे बच्चों को पालना. आप की मम्मी ठीक कह रही हैं कि आप का फोकस अभी बच्चों की परवरिश पर होना चाहिए. अभी तो सिर्फ बच्चों की जिम्मेदारी है. दोबारा शादी कर लेंगे तो पत्नी की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ेगी और उसे भी अपना वक्त देना पड़ेगा.

दूसरे, इस बात की क्या गारंटी कि वह गाय की तरह इतनी सीधी होगी कि छोटेछोटे बच्चों को भी संभाल लेगी, घर के कामकाज भी करेगी. आप को शारीरिक सुख देगी तो बदले में क्या कुछ नहीं चाहेगी. क्या आप उस की जरूरतें पूरी करने की हालत में हैं. घर में रुपएपैसे की दिक्कत ही झगड़े पैदा करती है. जिस जने की 2 शादियां हो चुकी हों, उसे नई लड़की मिलेगी भी नहीं. इसलिए हमारी राय में इस वक्त आप का शादी करना एक और मुसीबत अपने सिर ले लेने जैसा है.

अभी आप अपने हिसाब से घर चला रहे हैं. मम्मी का साथ अभी बना हुआ है. उन की हैल्प के लिए डेटाइम एक मेड रख लें. घर के काम और बच्चों को संभालने में मम्मी की मदद हो जाएगी.

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जहां तक शारीरिक सुख की बात है, तो आजकल कई वैबसाइट्स हैं जहां आप की तरह ही कई लेडीज भी हैं जो रिलेशनशिप में विश्वास रखती हैं. फिजिकल रिलेशन के लिए शादी जरूरी तो नहीं. दोदो शादी कर के आप देख भी चुके हैं. और अब तो हालत ऐसी है कि शादी करना किसी भी एंगल से ठीक नहीं लग रहा. बस, पूरी तरह से देखपरख कर रिलेशनशिप का सलैक्शन कीजिएगा. कहीं फिर किसी मुसीबत में न पड़ जाना.

आप हर कदम फूंकफूंक कर रखना. खुद खुश रहना है और बच्चों की खुशीखुशी परवरिश करनी है. ज्यादा आगे की मत सोचिए. भविष्य किसी ने नहीं देखा. बस, वक्त को जितना आसान बना सकते हैं, बनाइए और अपने को फाइनैंशियली स्ट्रौंग बनाने की कोशिश कीजिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ये घर बहुत हसीन है- भाग 3: उस फोन कॉल ने आन्या के मन को क्यों अशांत कर दिया

लेखक- मधु शर्मा कटिहा

‘‘देखो वह सामने सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर जगह कम होने के कारण बनाए जाते हैं ऐसे खेत… और दूर वहां रंगीन सा गलीचा दिख रहा है? फूलों की खेती होती है उधर.’’

कुछ देर बाद हलका कोहरा छाने लगा. आर्यन ने बताया कि ये सांवली घटाएं हैं जो अकसर शाम को आकाश के एक छोर से दूसरे तक कपड़े के थान सी तन जाती है. कभी बरसती हैं तो कभी सुबह सूरज के आते ही अपने को लपेट अगले दिन आने के लिए वापस चली जाती हैं.

सूरज ढलने के साथ अंधेरा होने लगा तो दोनों नीचे आ गए. घर सुंदर बल्बों और झूमरों से जगमग कर रहा था. वान्या का अंगअंग भी आर्यन के प्रेम की रोशनी से झिलमिला रहा था. सुबह वाली बात मन में अंधेरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

प्रेमा के खाना बना कर जाने के बाद आर्यन वान्या को डायनिंग रूम के पास बने एक कमरे में ले गया. कमरे की अलमारी से महंगी क्रौकरी, चांदी के चम्मच, नाइफ और फोर्क आदि वान्या को बेहद आकर्षित कर रहे थे, लेकिन थकान से शरीर अधमरा हो रहा था. कमरे में बिछे गद्देदार सिल्वर ग्रे काउच पर वह गोलाकार मुलायम कुशन के सहारे कमर टिका कर बैठ गई. आर्यन ने कांच के 2 गिलास लिए और पास रखे रैफ्रीजरेटर से ऐप्पल जूस निकाल कर गिलासों में उड़ेल दिया. वान्या ने गिलास थामा तो पैंदे पर बाहर की ओर क्रिस्टल से बने गुलाबी कमल के फूल की सुंदरता में खो गई.

‘‘फूल तो ये हैं… कितने खूबसूरत,’’ कहते हुए आर्यन ने अपने ठंडे जूस में डूबे अधरों से वान्या के होंठों को छू लिया. वान्या मदहोश हो खिलखिला उठी.

‘‘जूस में भी नशा होता क्या? मैं अपने बस में कैसे रहूं?’’ वान्या के कान में फुसफुसाया.

‘‘नशा तो तुम्हारी आंखों में है.’’ कांपते लबों से इतना ही कह पाई वान्या और आंखें मूंद लीं.

सहसा आर्यन का फोन बज उठा. आर्यन सब भूल जूस का गिलास टेबल पर रख बच्चे से बातें करने लगा.

रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति से गुजर रही थी.

‘कभी लगता है आर्यन जैसा प्यार करने वाला न जाने कैसे मिल गया? लेकिन अगले ही पल स्वयं को छला हुआ महसूस करती हूं. सिर से पांव तक प्रेम में डूबा आर्यन एक फोन के आते ही सबकुछ बिसरा देता है? क्या है यह सब?’ आर्यन की पदचाप सुन वान्या आंखें मूंद कर सोने का अभिनय करते हुए चुपचाप लेटी रही. आर्यन ने लाइट औफ की और वान्या से लिपट कर सो गया.

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अगले दिन भी वान्या अनमनी सी थी. तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी उसे अपनी. सारा दिन बिस्तर पर लेटी रही. आर्यन बिजनैस का काम निबटाते हुए बीचबीच में हाल पूछता रहा. वान्या के घर से फोन आया. अपने मम्मीपापा को उस ने अपने विषय में कुछ नहीं बताया, लेकिन उन की स्नेह भरी आवाज सुन वह और भी बेचैन हो उठी.

रात को आर्यन खाने की 2 प्लेटें लगा कर उस के पास बैठ गया. टीवी औन किया तो पता लगा कि अगले दिन ‘जनता कर्फ्यू’ की घोषणा हो गई है.

‘‘अब क्या होगा? लगता है पापा का कहा सच होने वाला है. वे आज ही फोन पर कह रहे थे कि लौकडाउन कभी भी हो सकता है.’’ वान्या उसांस लेते हुए बोली.

आर्यन ने उस के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, ‘‘घबराओ मत तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा. प्रेमा कहीं दूर थोड़ी ही रहती है कि लौकडाउन में आएगी नहीं. तुम क्यों उदास हो रही हो? लौकडाउन हो भी गया तो हम दोनों साथसाथ रहेंगे सारा दिन… मस्ती होगी हमारी तो.’’

वान्या को अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. पानी पी कर सोने चली गई. मन की उलझन बढ़ती ही जा रही थी. ‘पहले क्या मैं कम परेशान थी कि यह जनता कर्फ्यू, लौकडाउन हुआ तो अपने घर भी नहीं जा सकूंगी मैं. आर्यन से फोन के बारे में कुछ पूछूंगी और उस ने कह दिया कि हां, मेरी पहले भी शादी हो चुकी है. तुम्हें रहना है तो रहो, नहीं तो जाओ. जो जी में आए करो तो क्या करूंगी? यहां इतने बड़े घर में कैसी पराई सी हो गई हूं. आर्यन का प्रेम सच है या ढोंग? अजीब से सवाल बिजली से कौंध रहे थे वान्या के मनमस्तिष्क में.’

अपने आप में डूबी वान्या सोच रही थी कि इस विषय में कहीं से कुछ पता लगे तो उसे चैन मिल आए. ‘कल प्रेमा से सफाई करवाने के बहाने पूरे घर की छानबीन करूंगी, शायद कोई सुराग हाथ लग जाए,’ सोच उसे थोड़ा चैन मिला तो नींद आ गई.

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नेहा कक्कड़ के ‘कांटा लगा’ पर भोजपुरी क्वीन आम्रपाली दुबे का शानदार एक्सप्रेशन, फैंस ने दिया ये रिएक्शन

भोजपुरी एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वो अपनी कई तस्वीरें और वीडियोज शेयर करती हैं. एक्ट्रेस का फोटो या वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही तेजी से वायरल होने लगता है. आम्रपाली दुबे की सोशल मीडिया पर खास फैन फॉलोइंग है.

आम्रपाली दुबे का एक नया वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में वे नेहा कक्कड़, टोनी कक्कड़ और हनी सिंह के पॉपुलर गाने ‘कांटा लगा’ पर शानदार एक्सप्रेशन देती दिखाई दे रही हैं. फैंस इस वीडियो को खूब पसंद कर रहे हैं. इसके पहले उनका शेरशाह फिल्म के गाने ‘राता लंबियां’ पर एक वीडियो वायरल हुआ था.

एक्ट्रेस के इस पोस्ट पर एक यूजर ने कमेंट किया, ‘उई मां उई मां’ तो दूसरे यूजर ने लिखा ‘क्या बात है’. आपको बता दें कि आम्रपाली दुबे ने टीवी सीरियल में भी खूब नाम कमाया है. उन्होंने ‘सात फेरे’, रहना है तेरी पलकों की छाव में’ जैसे हिट सीरियल में काम किया है.

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