‘भाभीजी’ ड्रग्स बेचती हैं

जीहां, ये ‘भाभीजी’ ड्रग्स, ब्राउन शुगर और अफीम बेचती हैं. पटना के जक्कनपुर इलाके की रहने वाली राधा देवी ड्रग्स के धंधेबाजों के बीच ‘भाभीजी’ के नाम से मशहूर हैं. पटना, मुजफ्फरपुर, बोधगया से ले कर रांची तक में ‘भाभीजी’ का धंधा फैला हुआ है. पटना के स्कूलकालेजों, कोचिंग सैंटरों और होस्टल वाले इलाकों के चप्पेचप्पे पर ‘भाभीजी’ के एजेंट फैले हुए हैं.

बच्चों और नौजवानों को नशे का आदी बनाने में लगी ‘भाभीजी’ और उन के गुरगे पिछले 6 सालों से इस गैरकानूनी और खतरनाक धंधे को चला रहे थे. 16 अक्तूबर, 2019 को पुलिस ने ‘भाभीजी’, उन के शौहर और 6 गुरगों को दबोच लिया.

जक्कनपुर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2019 को राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और उन के शौहर गुड्डू कुमार को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे आईसीआईसीआई बैंक से रुपए निकाल रहे थे. दोनों के पास से 9 लाख, 67 हजार, 790 रुपए और 20 ग्राम ब्राउन शुगर और 6 स्मार्ट फोन बरामद किए गए. उस 20 ग्राम ब्राउन शुगर की कीमत 5 लाख रुपए आंकी गई.

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पटना के सिटी एसपी जितेंद्र कुमार ने बताया कि राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार ब्राउन शुगर के स्टौकिस्ट हैं. पुलिस पिछले कई सालों से इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने की कोशिश में लगी हुई थी, पर वे हर बार पुलिस को चकमा दे कर भाग निकलते थे.

गुड्डू कुमार ने पुलिस को बताया कि ब्राउन शुगर के सप्लायर को 12 लाख रुपए देने के लिए वह बैंक से पैसे निकाल रहा था. उसी दिन सप्लायर ब्राउन शुगर की खेप ले कर आने वाला था. सप्लायर नेपाल और खाड़ी देशों से आता था.

‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार को आईसीआईसीआई बैंक के जिस खाते से रुपए निकालते पकड़ा गया था, उस खाते में अभी 17 लाख, 46 हजार रुपए और हैं. कंकड़बाग के आंध्रा बैंक के खाते में भी उन दोनों के 9 लाख, 94 हजार रुपए जमा हैं. इन दोनों ने ब्राउन शुगर के धंधे से करोड़ों रुपए की कमाई की है और कई मकान और फ्लैट भी खरीद रखे हैं.

राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार को दबोचने में लगी पुलिस की टीम 16 अक्तूबर को जक्कनपुर इलाके में ब्राउन शुगर की खरीदार बन कर पहुंची.

जक्कनपुर के इंदिरानगर इलाके के रोड नंबर-4 में शिवपार्वती कम्यूनिटी हाल से सटे किराए के मकान में जब पुलिस पहुंची, तो वहां 5 लोग ब्राउन शुगर की पुडि़या बनाने में लगे हुए थे.

पुलिस ने उन पांचों को ब्राउन शुगर के साथ गिरफ्तार कर लिया. करीमन उर्फ राजेश यादव, सोनू, गणेश कुमार, संतोष कुमार और पप्पू को पुलिस ने पकड़ा. सभी की उम्र 22 से 30 साल के बीच है.

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पिछले चंद महीनों के दौरान ड्रग्स का धंधा करने वाले 14 लोगों को पुलिस जक्कनपुर, मालसलामी, गर्दनीबाग, कंकड़बाग, रामकृष्णानगर वगैरह इलाकों से गिरफ्तार कर चुकी है. 14 सितंबर, 2019 को भी जक्कनपुर इलाके में पुलिस ने 65 लाख रुपए की ब्राउन शुगर के साथ 5 लोगों को पकड़ा था.

गिरफ्तार किए गए सभी लोग ‘भाभीजी’ के ही गुरगे थे. तब ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार पुलिस की आंखों में धूल  झोंक कर भाग निकलने में कामयाब हो गए थे.

‘भाभीजी’ की देखरेख में ही ब्राउन शुगर खरीदने, उस की पुडि़या बनाने और बेचने का धंधा चलता था. एक पुडि़या 500 रुपए में बेची जाती थी. नारकोटिक ड्रग्स ऐंड साइकोट्रौपिक सब्सटैंस ऐक्ट की धारा 22 सी के तहत केस दर्ज किया गया है.

करोड़ों की दौलत होने के बाद भी ये मियांबीवी खानाबदोश की जिंदगी जीते थे. वे किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते थे. पुलिस को चकमा देने के लिए अपना ठिकाना और मोबाइल नंबर बदलते रहते थे. पुलिस साल 2012 से ही दोनों शातिरों को पकड़ने में लगी हुई थी, पर कामयाबी नहीं मिल रही थी. साल 2012 में ही दोनों के खिलाफ गर्दनीबाग थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी.

‘भाभीजी’ ने पुलिस को बताया कि पश्चिम बंगाल और  झारखंड से ब्राउन शुगर पटना लाई जाती है. एक किलो ब्राउन शुगर की कीमत 3 करोड़ रुपए होती है. घटिया क्वालिटी की ब्राउन शुगर एक करोड़ रुपए में एक किलो मिलती है.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल और  झारखंड में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है. अफीम से ही ब्राउन शुगर बनाई जाती है.

ड्रग करंसी का इस्तेमाल, खतरनाक: डीजीपी

बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे मानते हैं कि ड्रग को करंसी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. जिस्म के कारोबार में भी ड्रग करंसी खूब चल रही है. ड्रग्स के खिलाफ समाज को जहां जागरूक होने की जरूरत है, वहीं नशा मुक्ति मुहिम को मजबूत बनाना होगा.

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नशा दिल और दिमाग दोनों पर खतरनाक असर डालता है और उस के बाद बलात्कार, हिंसा जैसे कई अपराध करने के लिए उकसाता है.

पुलिस ड्रग्स के खिलाफ आएदिन धड़पकड़ करती रहती है, लेकिन समाज के सहयोग के बगैर ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है.

अफीम की खेती छोड़ी, गेंदा लगाया

झारखंड राज्य के नक्सली एरिया खूंटी के लोगों ने अफीम की खेती से तोबा कर गेंदा के फूल उपजाने शुरू किए हैं. तकरीबन 200 परिवार गेंदे की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं.

आजकल धर्म का व्यापार अफीम के व्यापार की तरह रातदिन बढ़ रहा है और वहां गेंदे के फूलों की खपत बहुत होती है.

कुछ साल पहले तक इस इलाके में पोस्त की गैरकानूनी खेती होती थी और पोस्त से ही अफीम बनाई जाती है. नक्सली बंदूक का डर दिखा कर गांव वालों से जबरन अफीम की गैरकानूनी खेती कराते थे. पिछले साल अगस्त महीने में खूंटी में 14 लाख गेंदे के पौधे लगाए गए थे. आज उन से तकरीबन सवा करोड़ रुपए मुनाफा होने का अंदाजा है. सुनीता नाम की महिला किसान ने 2,000 रुपए में गेंदे के 5,000 पौधे खरीदे थे. एक पौधे से 35 से 40 फूल निकलते हैं.

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Bigg Boss 13: वाइल्डकार्ड एंट्री ले अरहान ने किया प्यार का इजहार, रश्मि ने किया इंग्नोर

जैसा कि आप सब जानते हैं कि बिग बौस का सीजन 13 बाकी सीजन के मुकाबले काफी सफल रहा है और इस बात की घोषणां किसी और ने नहीं बल्कि खुद बिग बौस ने कुछ दिन पहले ही की थी. बिग बौस शो के फैंस के लिए एक और खुशखबरी है कि बिग बौस सीजन 13 को 5 हफ्तों का एक्सटेंशन मिल गया है. हाल ही में आ रही खबरों के अनुसार विशाल आदित्य सिंह की गर्लफ्रेंड मधुरिमा तुली, शेफाली बग्गा और अरहान खान शो में वाइल्डकार्ड एंट्री लेने वाले थे. लेकिन बिग बौस ने खुद इस खबर को हकीकत में बदल दिया है.

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बिग बौस के घर में होगी धमाकेदार वाइल्डकार्ड एंट्री…

जी हां, बिग बौस शो के मेकर्स ने आज के एपिसोड का एक प्रोमो रिलीज किया है जिसमें मधुरिमा तुली, शेफाली बग्गा और अरहान खान बिग बौस के घर में धमाकेदार एंट्री लेंगे. इस दौरान घरवालों को भी एक टास्क दिया गया है कि घर में रह रहे सदस्यों को इन तीनों को इग्नोर करना है. इसी के चलते विशाल आदित्य सिंह मधुरिमा तुली को और शहनाज गिल शेफाली बग्गा को इग्नोर नहीं कर पाएंगे पर रश्मि देसाई अहरान खान को इग्नोर करने में कामयाब रहेंगी.

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अरहान खान करेंगे रश्मि देसाई को प्रोपोज…

इन सब के चलते सबसे खास बात जो सामने आई है वो ये है कि अरहान खान घर के अंदर एंट्री मारते ही रश्मि देसाई को प्रोपोज करने वाले हैं और वे खुद रश्मि देसाई को बताते दिखाई दे रहे हैं कि वे उनके लिए एक रिंग लेकर आए हैं. ये सब देखने के बाद इतना को तय है कि आने वाले एपिसोड्स में घर के अंदर खूद हंगामे नजर आने वाले हैं.

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कैसे करेंगे दर्शकों को एंटरटेन…

अब देखने वाली बात ये होगी कि ये तीन वाइल्ड कार्ड एंट्रीज यानी मधुरिमा तुली, शेफाली बग्गा और अरहान खान कैसे दर्शकों को एंटरटेन करेंगे और घर के अंदर क्या क्या बदलाव लाएंगे. एक और बात जो गौर करने वाली है वो ये है कि क्या रश्मि देसाई अरहान खान के प्यार को अपना पाएंगी और इस पर सिद्धार्थ शुक्ला क्या रिएक्ट करेंगे.

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Bigg Boss 13: सिद्धार्थ और असीम ने किया शहनाज का मुंह काला, देखें वीडियो

बिग बौस के घर में आए दिन कुछ ना कुछ नया होता दर्शकों को दिखाई दे रहा है और यही वजह है कि बिग बौस के इतिहास में बिग बौस का सीजन 13 बाकी सीजन के मुकाबले काफी आगे पहुंच गया है और इसका खुलासा खुद बिग बौस ने शो के चलते किया था. बीते वीकेंड के वौर में जहां एक तरफ शो के होस्ट सलमान खान ने सभी कंटेस्टेंट की क्लास लगाई तो वहीं दूसरी तरफ उन्होनें सभी घरवालों के साथ खूब मस्ती मजाक भी किया. इसी के चलते बिग बौस के घर में फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ की स्टार कास्ट यानी कार्तिक आर्यन, भूमी पेडनेकर और अनन्या पांडे ने भी घर के अंदर एंट्री मारी और खूब मस्ती की.

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सिद्धार्थ और असीम ने किया शहनाज का मुंह काला…

इस दौरान घर के अंदर खूब हंगामा होता दर्शकों को देखने को मिला और वे इसलिए क्योंकि सभी कंटेंस्टेंट को बिग बौस द्वारा एक टास्क दिया गया था जिसमें कार्तिक आर्यन घरवालों से कुछ सवाल करेंगे और इसमें से दो लोगों को आपसी सहमति से फैसला लेते हुए किसी एक सदस्य का मुंह काला करना था. इस टास्क में सबसे चौंका देने वाला सीन ये था कि सिद्धार्थ शुकला और असीम रियाज दोनो ने मिलकर आपसी सहमती से पंजाब की कैटरीना कैफ यानी शहनाज गिल को गद्दार कहकर उनका मुंह काला कर दिया.

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सिद्धार्थ ने क्यों मानी असीम की बात…

किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि सिद्धार्थ शुक्ला असीम रियाज की बात मानते हुए अपनी इतनी अच्छी दोस्त शहनाज गिल का मुंह काला कर देंगे. सिद्धार्थ और शहनाज की खट्टी-मीठी नोंक झोंक दर्शकों को खूब एंटरटेन कर रही थीं पर ऐसे में सिद्धार्थ का असीम की बात मान शहनाज को गद्दार कह उनका मुंह काला करना किसी को भी पसंद नहीं आया. शहनाज खुद इस बात से हैरान थीं कि सिद्धार्थ ऐसा कैसे कर सकते हैं.

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शहनाज कैसे देंगी सिद्धार्थ को जवाब…

दरअसल, जैसे ही कार्तिक आर्यन ने घर के अंदर एंट्री मारी तो शहनाज गिल तो जैसे सांतवे आसमान पर थीं और ऐसे में कार्तिक आर्यन के सामने ही सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज ने शहनाज गिल का मुंह काला कर दिया. अब देखने वाली बात ये होगी कि शहनाज कैसे सिद्धार्थ और असीम के इस हरकत का जवाब देंगी.

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शादी: भाग 3

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उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.

मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’

‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.

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सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’

‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.

‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’

मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.

नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’

सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’

खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’

‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’

‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’

पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’

सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’

‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.

चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.

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‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.

‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’

‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’

तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’

सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’

‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’

तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’

यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’

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‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’

‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’

‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.

सुरक्षित चलें और सुरक्षित रहें

हमारे देश में यातायात के साधनों में नित्य प्रगति आ रही है, जीवन में  शहरों से गाँव की दूरियां निरंतर घाट रही है ,लेकिन इसके साथ यातायात में होने वाले दुर्घटनाओं की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हो रहा है.  हमें समाज में जागरूपता लेकर तय समय के अंदर इस दुर्घटनाओं को रोकना होगा.  ताकि हम सुरक्षित चले और  सुरक्षित रहे. सड़क सुरक्षा के लिए यातायात पुलिस तो अपना काम कर रही रही है , हमें भी जगरूप रहना होगा. यातायात नियमों और कानूनों का पालन करें और सड़क दुर्घटनाओं से खुद को और अपने परिवारों को बचाएं. अन्य लोगों को भी सड़क सुरक्षा नियमों से अवगत कराना हमारी सड़कों को सुरक्षित बना सकता है.

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यातायात नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि हर मनुष्य की जान अपने परिवार के लिए बहुत जरूरी है देश के लिए जरूरी है कई सारी सड़क दुर्घटनाओं में हमारे देश के ऐसे महान व्यक्तित्व भगवान को प्यारे हो गए हैं. जिनकी क्षतिपूर्ति आज तक कोई नहीं कर पाया है . इसलिए सड़क दुर्घटनाओं में प्रत्येक महा कई हजार की संख्या में इंसानों की जान जा रही है .

तेज गति से वाहन चलाना शराब पीकर वाहन चलाना सीट बेल्ट ना लगाना दो पहिया वाहन पर हेलमेट ना लगाना यातायात नियमों का पालन करना इन सब कारणों से कई घरों के दिए बुझ गए हैं . जो मनुष्य के लिए पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं छोड़ जाते इसलिए मेरा अपना मानना है. यातायात नियमों का पालन कानून से डर के नहीं बल्कि स्वयं की जिम्मेदारी समझकर अपना फर्ज समझते हुए ,ठीक उसी प्रकार करना चाहिए जैसे मनुष्य भगवान की भक्ति अपना फर्ज समझकर करता है.

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ड्रिंक और  ड्राइव

हमारे देश में शराब पी कर गाड़ी चलना आम बात लगता है. लेकिन इससे होने वाले दुर्घटनाओं का आकंड़ा चौकाने वाला  हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि‍ एक्‍सि‍डेंट का सबसे प्रमुख कारण शराब पीकर ड्राइविंग करना है. भारत में इसका आंकड़ा दुनि‍या में सबसे ज्‍यादा है, जहां हर साल करीबन डेढ़ लाख लोग रोड एक्‍सि‍डेंट में मारे जाते हैं. इसमें से 70 फीसदी  मामलों में इसकी वजह शराब पीकर गाड़ी चलाना रहता है.

ड्रिंक करने के उपरांत मनुष्य का मस्तिष्क एवं उसका शरीर ड्राइव करने के लायक नहीं रहता हैं , डिसबैलेंस रहता है ,इसलिए दुर्घटना के प्रबल चांस रहते हैं.  मुख्य कारण यही है, कि  इंसान को जब अपनी जान प्यारी है ,तो उसे सामने वाले की जान की भी उतनी ही वैल्यू समझनी चाहिए. इसलिए कभी भी ड्रिंक करने के उपरांत ड्राइवर नहीं करनी चाहिए.  मनुष्य की जान अनमोल हैं.

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सीट बेल्ट और सुरक्षित ड्राइव

सीट बेल्ट लगाना वाहन चलाते समय नितांत आवश्यक है, जिससे वाहन में बैठे चालक एवं सवारियों की जान सुरक्षित है यदि सड़क दुर्घटना होती है तो मनुष्य अर्थात उसमे बैठा व्यक्ति सीट बेल्ट के कारण सीट से ही चिपका रहता है अचानक से झटका लगने के कारण वह व्यक्ति आगे डेस्क बोर्ड अथवा सीसे में नहीं लगता उसके सीने एवं सिर में चोट आने से बस जाती है जिससे मनुष्य की जान सड़क दुर्घटना में बचने के प्रबल चांस रहते हैं

ओवर स्पीड से बचे

ओवर स्पीड से बचना कोई लापरवाही नहीं बल्कि समझदारी का परिचायक हैं.  समझदार इंसानों ने कहा है ,दुर्घटना से देर भली अर्थात हम अपने मंजिल पर कुछ समय विलंब से पहुंच जाएं,  परंतु सुरक्षित पहुंच जाएं.  यह जरूरी है ,सुरक्षित पहुंचना बहुत आवश्यक हैं.  दुर्घटना ओवर स्पीड के कारण अक्सर होती हैं.  जिनसे वाहन में बैठे व्यक्तियों की जान तक चली जाती है.

अपना वाहन क्षतिग्रस्त हो जाता है , सामने वाले व्यक्ति की जान को भी खतरा रहता है. उनकी भी जान चली जाती है,  हर  इंसान के जान की वैल्यू है.   इसलिए ओवर स्पीड चलना, स्वयं की जान को खतरे में डालना एवं दूसरों की जान से खेलना बिल्कुल अनुचित है.

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वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग न करे

वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग करना अपनी और  सामने वाले की जान से खेलना है. किसी भी सूरत में वाहन चलाते समय मोबाइल फोन पर बातें न करे और नहीं  ईयर फोन लगाकर सॉन्ग सुनने.  इससे मनुष्य अथवा वाहन चालक अपनी सामने वाले की जान से खेलता है, क्योंकि ईयर फोन लगाने से मनुष्य का ध्यान उस सॉन्ग के वर्णन एवं ख्यालों में रहता है, पीछे वह सामने से आने वाले वाहन के होरन पर ध्यान नहीं रहता है . जिससे सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती है.  जान तक चली जाती हैं.

वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने से भी मनुष्य का ध्यान वाहन चलाने से हट जाता है एवं मोबाइल पर चल रही बातों एवं सामने से जो दूसरा व्यक्ति दूसरी तरफ से मोबाइल पर बात कर रहा होता है. उस पर चला जाता है,उसकी बातों पर ध्यान चला जाता है चालक वाहन तो चला रहा होता है, परंतु हमारा मस्तिष्क पूर्णरूपेण हमारे शरीर के साथ नहीं रहता है, इसलिए सड़क दुर्घटना होने के प्रबल चांस रहते हैं और ऐसी घटनाएं बहुत सारी हुई है. जिनका उदाहरण भारतीय इतिहास में लिखा जा चुका है.

अभी हाल में ही  उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में बस ड्राइवर द्वारा मोबाइल पर बात करते समय, बस को खाई में गिरा देना.  जिससे कई व्यक्तियों की मृत्यु हुई.  ऐसी कई सारी उत्तर प्रदेश में अन्य राज्यों में दुर्घटनाएं हुई है मात्र एक व्यक्ति चालक की लापरवाही से कई सारे जाने चली गई है प्रत्येक जान अनमोल है इसलिए कभी भी स्वयं की व अन्य व्यक्ति की जान से ना खेले. वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग बिलकुल न करें.

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(हर एक जीवन का महत्व हैं. सड़क सुरक्षा उपायों का अभ्यास करना पूरे जीवन में सभी लोगों के लिए बहुत अच्छा और सुरक्षित है. सड़क पर चलते या चलते समय सभी को दूसरों का सम्मान करना चाहिए और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए. -उत्तर प्रदेश पुलिस  के सब इंस्पेक्टर वरुण पँवार )

फांसी से बचाने के लिए सालाना खर्च करते हैं 36 करोड़ रुपए

हर देश का अपना अलगअलग कानून होता है. कहींकहीं, खासतौर पर अरब देशों में कानून बहुत सख्त है. पाकिस्तान को ही ले लीजिए, वहां एक बच्ची से रेप और हत्या के दोषी को 2 महीने में फांसी की सजा सुना दी गई, लेकिन हमारे यहां देश के सब से चर्चित मामले निर्भया रेप और हत्या के मामले में दोषी साबित हो जाने के बाद भी मुजरिमों को जेल में पाला जा रहा है.

अगर ऐसा अरब देशों में हुआ होता तो मुजरिमों को अब से 6 साल पहले फांसी हो चुकी होती. सख्त कानून के चलते अरब देशों में यह भी कानून है कि अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या कर देता है और शरिया कानून के अंतर्गत उसे फांसी की सजा हो जाती है तो फांसी से बचने के लिए उस के पास एक ही उपाय होता है, पीडि़त परिवार से सौदेबाजी.

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अगर पीडि़त परिवार उस से इच्छित रकम ले कर उसे माफ कर देता है तो अदालत फांसी की सजा को रद्द कर देती है. लेकिन सौदेबाजी की यह रकम इतनी बड़ी होती है, जिसे चुकाना आसान नहीं होता. इस रकम को वहां ब्लड मनी कहा जाता है.

दुबई में रहने वाले भारतीय मूल के बड़े बिजनैसमैन एस.पी.एस. ओबराय ऐसे व्यक्ति हैं, जो लोगों को फांसी से बचाने के लिए प्रतिवर्ष 36 करोड़ रुपए खर्च करते हैं. यानी फांसी पाए लोगों को बचाने के लिए ब्लड मनी खुद देते हैं. अब तक वह 80 से ज्यादा युवाओं को फांसी से बचा चुके हैं, जिन में से 50 से ज्यादा भारतीय थे. ये ऐसे लोग थे, जो काम की तलाश में सऊदी अरब गए थे और हत्या या अन्य अपराधों में फंसा दिए गए.

2015 में भारत के पंजाब से अबूधाबी जा कर काम करने वाले 10 युवकों से झड़प के दौरान पाकिस्तानी युवक की हत्या हो गई. अबूधाबी की अल अइन अदालत में केस चला, जहां 2016 में दसों युवकों को फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में जब इस सिलसिले में याचिका दायर की गई तो अदालत ब्लड मनी चुका कर सजा को माफी में बदलने के लिए तैयार हो गई.

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सौदेबाजी में मृतक का परिवार 6 करोड़ 50 लाख रुपए ले कर माफी देने को तैयार हुआ. यह ब्लड मनी चुकाई एस.पी.एस. ओबराय ने.

इस तरह दसों युवक फांसी से बच गए. ओबराय साहब यह काम सालों से करते आ रहे हैं और उन के अनुसार जीवन भर करते रहेंगे.

हर ओकेजन के लिए परफेक्ट हैं सूरज पंचोली के ये लुक्स

साल 2015 में फिल्म हीरो से अपना फिल्मी करियर की शुरूआत करने वाले एक्टर सूरज पंचोली बहुत ही तेजी से कामयाबी की सीढियां चढते दिखाई दे रहे हैं. अपनी पहली फिल्म के लिए सूरज ने “फिल्मफेयर अवार्ड बेस्ट न्यूकमर” भी हासिल किया. सूरज ना सिर्फ अपनी एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं बल्कि उनके लुक्स भी आजकल के यूवाओं में काफी पौपुलर हैं. तो चलिए हम आपको दिखाते हैं सूरज पंचोली के कुछ ऐसे चुनिंदा लुक्स जिसे आप जरूर ट्राय करने पर मजबूर हो जाएंगे.

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प्रिंटिड शर्ट…

 

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आजकल प्रिंटिड शर्टस् का फैशन काफी ट्रेंड में है तो वही फैशन फौलो करते हुए सूरज पंचोली ने अपना एक लुक फैंस के साथ शेयर किया है जिसमे उन्होनें ग्रीन कलर की प्रिंटिड शर्ट के साथ व्हाइट कलर की जींस पहनी हुई है. आप सूरज का ये कैसुअल लुक अपनी डेली रूटीन और कौलेज में ट्राय कर सकते हैं.

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फंकी लुक…

 

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@jaywalking.in 🌋

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इस फंकी लुक में सूरज ने व्हाइट कलर की प्लेन टी शर्ट के ऊपर ब्लैक कलर की शर्ट कैरी की हुई है और साथ ही उन्होनें औरेंज कलर का ट्राउसर पहना हुआ है जो कि काफी फंकी लग रहा है. आप भी ये लुक अपने दोस्तों के साथ हैंगआउट करते समय ट्राय कर सकते हैं.

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ट्रेडिशनल वियर…

 

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The festive season cannot be complete without my favorite! @manishmalhotra05 ❤️✨🌟 Thank u soo much , love u always!!

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अपने इस ट्रेडिशनल वियर में सूरज ने व्हाउट कलर का कुर्ते पयजामा कैरी किया हुआ है. व्हाइट कलर के कुर्ते के ऊपर उन्होनें डार्क ब्लू कलर का लाइट प्रिंटिड बेस कोट पहना हुआ है कि काफी जच रहा है. आप भी ये लुक अपने किसी भी ट्रेडिशनल फैमिली फंक्शन में ट्राय कर सकते हैं.

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फोर्मल सूट…

 

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@filmfare #ButtonUP 💙

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इस फोर्मल वियर में सूरज पंचोली ने व्हाइट कलर की शर्ट और ब्लैक कलर का ट्राउसर पहना हुआ है और साथ ही उन्होनें व्हाइट शर्ट के ऊपर ब्लू कलर का वेलवेट कोट पहना हुआ है. आप ये आउटफिट अपने किसी भी फंक्शन में ट्राय कर सकको इम्प्रेस कर सकते हैं.

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Bigg Boss 13: कैप्टन बनते ही सिद्धार्थ करने लगे रश्मि से flirting, देखें वीडियो

जैसे जैसे बिग बौस सीजन 13 के दिन बीतते जा रहे हैं वैसे वैसे ही दर्शकों को कुछ ना कुछ नया देखने को मिस रहा है. हर बार की तरह इस बार भी बिग बौस का ये सीजन काफी रोमांचक होता जा रहा है और दर्शकों को खूब पसंद आ रहा है. बीते दिनों कैप्टेंसी टास्क के दौरान घर में खूब हंगामा होता नजर आया लेकिन आखिरकार कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला बन गए घर के नए कैप्टन. इसके तुरंत बाद सिद्धार्थ पारस छाबड़ा से कुछ डिस्कशन करते दिखाई दिए और उसके बाद उन्होनें घर के लोगों को काम बांटना शुरू किया.

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माहिरा शर्मा और पारस के बीच भी हुई कहासुनी…

इसी के चलते कई लोगो ने सिद्धार्थ को पारस के हाथों की कठपुतली तक कह दिया. बीते एपिसोड में राशनिंग टास्क में भी घरवालों के बीच काफी लड़ाई झगड़े हुए. इसी के चलते जहां एक तरफ असीम रियाज और पारस छाबड़ा के बीच काफी तू-तू-मैं-मैं हुई वहीं दूसरी तरफ माहिरा शर्मा और पारस के बीच कहासुनी होती दिखाई दी. लेकिन आज के एपिसोड में दर्शकों को कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिसकी शायद उन्हें बिल्कुल भी उम्मीद नही होगी.

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रश्मि देसाई संग फ्लर्ट करेंगे सिद्धार्थ शुक्ला…

बीते दिनों आपने देखा कि बिग बौस द्वारा दिए गए टास्क के चलते सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई ने सबके सामने जमकर रोमांस किया. आज के एपिसोड में भी सिद्धार्थ और रश्मि के बीच का प्यार उभर कर आने वाला है. सिद्धार्थ आज रश्मि से फ्लर्ट करते दिखाई देने वाले हैं. देखा जाए तो रश्मि देसाई जबसे घर में आई है, तबसे उन्होंने सिद्धार्थ से लड़ाई के अलावा कुछ भी नहीं किया और ना ही रश्मि ने कभी किसी मुद्दे पर कोई स्टैंड लिया.

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कहीं ये सब फुटेज पाने के लिए तो नहीं…

ऐसे में ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि रश्मि देसाई ये सब सिर्फ और सिर्फ फुटेज पाने के लिए कर रही हैं या ये भी हो सकता है कि सिद्धार्थ और रश्मि दोनो मिलकर अपने पुराने गिले शिकवे भुला कर एक नई शुरूआत करना चाहते हों. हालांकि शुरूआत के दिनों में जब रश्मि सिद्धार्थ को टारगेट करती थी तो खुद शो के होस्ट सलमान खान ने भी माना था कि वह फुटेज के लिए ऐसा कर रही हैं.

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जेनेरेशन गैप

नई दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से स्पेशल राजधानी एक्सपे्रेस चली तो नीता अपने जीजाजी को नमस्कार कर अपनी सीट पर आ कर बैठ गई. एक हफ्ता पहले वह अपनी बीमार मां को देखने आई थी. मुंबई तक का सफर लंबा तो था ही, उस ने बैग से शरतचंद्र का उपन्यास ‘दत्ता’ निकाल लिया. सफर में किसी से ज्यादा बात करने की उस की आदत नहीं थी, सफर में उसे कोई अच्छा उपन्यास पढ़ना ही अच्छा लगता था.

नीता अपनी सीट पर बैठी सोच ही रही थी कि पता नहीं आसपास की खाली सीटों पर कौन लोग आएंगे, इतने में 7 युवा लड़के आ गए और सीट के नीचे अपना सामान रखने लगे.

उन लड़कों को देख कर नीता का दिमाग घूम गया, ऐसा नहीं कि लड़कों को देख कर उसे घबराहट हुई थी. वह 40 साल की आत्मविश्वास से भरी महिला थी. 18 साल की उस की एक बेटी और 15 साल का एक बेटा भी था. उसे यह घबराहट युवा पीढ़ी के तौरतरीकों से होती थी. उस ने सोचा कि अब मुंबई तक के सफर में उसे चैन नहीं आएगा. लड़के हल्लागुल्ला करते रहेंगे, न खुद आराम करेंगे न उसे करने देंगे.

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उन लड़कों ने अपना सामान रख कर आपस में बातें करनी शुरू कर दीं. नीता ने अपना चेहरा भावहीन बनाए रखा और अपने उपन्यास पर नजरें जमा लीं, लेकिन कानों में उन की बातें पड़ रही थीं. लड़के मुंबई कोई इंटरव्यू देने जा रहे थे. अब तक नीता खिड़की पर बैठी थी, पैर फैलाने की इच्छा हुई तो जैसे ही पैर आगे बढ़ाए उस की बर्थ पर बैठे लड़के तुरंत खड़े हो गए और बोले, ‘‘मैडम, आप आराम से बैठ जाइए.’’

नीता ने उन पर नजर डाले बिना गरदन हिला दी. पैर फै ला कर अपना दुपट्टा हलके से ओढ़ कर वह आंख बंद कर के लेट गई. आज की युवा पीढ़ी के लिए उस के मन में बहुत दिन से आक्रोश जमा होता जा रहा था. घर पर अकसर बच्चों से उस की बहस हो जाती है. उसे लगता है, बच्चे उस की बात नहीं समझ रहे हैं और बच्चों को लगता है मम्मी को समझाना मुश्किल है. बच्चों से वह हमेशा यही कहती, ‘मैं इतनी बूढ़ी नहीं हूं कि जवान बच्चों की बात न समझ सकूं लेकिन तुम लोग बात ही ऐसी करते हो.’

लेटेलेटे नीता को याद आया कि पिछले महीने वह पार्लर में फेशियल करवा रही थी तो वहां पर 2 लड़कियां भी आई हुई थीं. उन के रंगढंग देख कर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था. वे लगातार अपने मांबाप की सख्ती, शक्की स्वभाव और कम जेबखर्च का रोना रो रही थीं. फिर धीरेधीरे उन्होंने अपने दोस्त लड़कों की आशिकी, बेवफाई और प्यारमनुहार की चर्चा शुरू कर दी थी. घर आ कर भी काफी देर तक उस के दिमाग में उन लड़कियों के विचार घूमते रहे थे.

मुंबई में नीता अकसर संडे को अपने पति अमित के साथ घर से कुछ ही दूरी पर स्थित उपवन लेक पर शाम को टहलने जाती है. लेक के चारों तरफ घने पेड़ों की हरियाली देख कर उस का प्रकृतिप्रेमी मन खुश हो जाता है. वहां शाम होतेहोते सैकड़ों युवा जोड़े हाथों में हाथ डाले आते और करीब से करीबतर होते जाते. हर पेड़ के नीचे एक जोड़ा अपने में ही मस्त नजर आता. शाम गहराते ही उन की उन्मुक्तता बढ़ने लगती किंतु वाचमैन की बेसुरी सीटी चेतावनी की घंटी होती जो उन्हें सपने से यथार्थ में ले आती. कुछ बहुत ही कम उम्र के बच्चे होते, बराबर में स्कूल बैग रखे बहुत ही आपत्तिजनक स्थिति में आपस में खोए रहते. नैतिकता, संस्कार किस चिडि़या का नाम है आज का युवावर्ग नहीं जानता. कायदेकानून न मानने में ही उन्हें मजा आता है.

इसी प्रकार का मंथन करते हुए नीता भयभीत हो कर हाई ब्लडप्रेशर की शिकार हो जाती. उसे अपने युवा बच्चों की चिंता शुरू हो जाती. उस लेक पर जाना उसे बहुत अच्छा लगता था लेकिन वहां के माहौल से उस के मन में उथलपुथल मच जाती और उस की चिड़चिड़ाहट शुरू हो जाती. अमित माहौल को हलके ढंग से लेते, उसे समझाते भी लेकिन नीता का मूड मुश्किल से ठीक होता.

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अटेंडेंट ने आ कर कंबल आदि रखे तो नीता वर्तमान में लौटी. खाना टे्रन में ही सर्व होना था, वह घर से अपने खाने के लिए कुछ ले कर नहीं चली थी. हां, उस की मम्मी ने बच्चों की पसंद की बहुत सी चीजें साथ बांध दी थीं. खाना खा कर नीता लेट गई तो लड़के कुछ देर तो आपस में धीरेधीरे बातें करते रहे फिर नीता को सोता हुआ समझ कर धीरे से बोले, ‘‘चलो, हम लोग भी लेट जाते हैं, बातें करते रहेंगे तो मैडम डिस्टर्ब होंगी.’’

नीता की आंखें बंद थीं लेकिन वह सुन तो रही थी. वह थोड़ी हैरान हुई. लड़के चुपचाप अपनीअपनी बर्थ पर लेट गए, नीता भी सो गई. सुबह उठने पर पता चला कि टे्रन बहुत लेट है.  फे्रश हो कर वह आई तब तक चाय और नाश्ते की ट्रे आ गई. लड़के भी नाश्ता कर रहे थे. नाश्ता कर के नीता उपन्यास में लीन हो गई. बीचबीच में उन लड़कों की बातें सुनाई दे रही थीं. लड़के कभी फिल्मों की बातें कर रहे थे तो कभी अपने सीनियर्स की, कभी अपने घर वालों की. आपस में उन का हंसीमजाक चल रहा था. उपन्यास पढ़तेपढ़ते नीता थोड़ी असहज सी हो गई. उसे सिरदर्द शुरू हो गया था.

नीता को इसी बात का डर रहता था कि वह बाहर निकले और कहीं यह दर्द शुरू न हो जाए और अब दर्द बढ़ता जा रहा था. काफी समय से वह शारीरिक रूप से अस्वस्थ चल रही थी. आधे सिर का दर्द, हाई ब्लडप्रेशर और अब कुछ महीने से अल्सर की वजह से उस की तबीयत बारबार खराब हो जाती थी. नीता ने तुरंत उपन्यास बंद किया और उठ कर बैग में से अपनी दवा की किट निकालने की कोशिश की तो उसे चक्कर आ गया और वह ए.सी. में भी पसीनेपसीने हो गई. लड़के तुरंत सजग हुए, एक बोला, ‘‘मैडम, क्या आप की तबीयत खराब है?’’

नीता बोली, ‘‘हां, माइग्रेन का तेज दर्द है.’’

लड़के ने कहा, ‘‘आप के पास दवा है?’’

‘‘हां, ले रही हूं.’’

‘‘आप को और कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं, थैंक्यू,’’ कहतेकहते नीता ने दवा ली और लेट गई. सुबह के 9 बज रहे थे. एक लड़का बोला, ‘‘मैडम, हम सब ऊपर की बर्थ पर चले जाते हैं, आप आराम कर लीजिए,’’ और लाइट बंद कर के परदे खींच कर सब लड़के चुपचाप ऊपर चले गए. दवा के असर से नीता की भी आंख लग गई.

वह करीब 1 घंटा सोई रही, उठी तो लड़के ऊपर ही लैपटाप में अपना काम कर रहे थे. कोई चुपचाप पढ़ रहा था, उसे जागा हुआ देख कर लड़कों में से एक ने पूछा, ‘‘मैडम, अब आप कैसी हैं?’’

नीता ने पहली बार हलके से मुसकरा कर कहा, ‘‘थोड़ी ठीक हूं.’’

‘‘मैडम, चाय पीनी हो तो मंगा दें?’’

‘‘नहीं, अभी नहीं, थैंक्यू.’’

‘‘मैडम, सूरत आ रहा है, आप को कुछ चाहिए?’’

नीता ने फिर कहा, ‘‘नहीं.’’

सूरत स्टेशन आया, लड़के कुछ खानेपीने के लिए उतर गए. फिर एक लड़का वापस आया, ‘‘आप को फ्रूट्स चाहिए?’’

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‘‘हां,’’ नीता ने कहा और पर्स से पैसे निकालने लगी.

‘‘नहीं, नहीं, मैडम, रहने दीजिए, मैं ले आता हूं.’’

‘‘नहीं, नहीं, पैसे लोगे तभी मंगवाऊंगी,’’ नीता ने मुसकरा कर कहा.

लड़के ने पैसे ले लिए और हंस कर बोला, ‘‘अभी लाता हूं.’’

थोड़ी देर में सब वापस आ गए. लड़के ने नीता को पोलिथीन और बाकी पैसे पकड़ाए. नीता ने एक केला ले कर बाकी के उसी लड़के को दे कर कहा, ‘‘आप लोग भी खा लो.’’

‘‘नहीं, मैडम, हम ने तो स्टेशन पर पकौड़े खाए थे.’’

‘‘खा लो, फ्रूट्स ही तो हैं,’’ नीता ने फिर उपन्यास खोल लिया. उस का मन अचानक बहुत हलका हो चला था. तबीयत भी संभल गई थी. साढ़े 11 बजे मुंबई पहुंचने वाली टे्रन अब 5 बजे पहुंचने वाली थी.

आज पहली बार नीता को लग रहा था कि उस ने अपनी बेटी मिनी की बात मान कर मोबाइल रख लिया होता तो अच्छा होता. वह अमित को टे्रन लेट होने की खबर दे सकती थी. कहीं बेचारे स्टेशन पर आ कर न बैठ गए हों. ठाणे से मुंबई सेंट्रल आना- जाना आसान भी नहीं था. वह मोबाइल से दूर रहती थी, हाउसवाइफ थी, घर में लैंडलाइन तो था ही, बच्चे कई बार कहते कि मम्मी, आप भी मोबाइल ले लो तो वह यही कहती, ‘‘मुझे इस बीमारी का कोई शौक नहीं है, तुम लोगों की तरह हर समय कान में लगा कर रखने के अलावा भी मुझे कई काम हैं.’’

मिनी ने मुंबई से चलते समय कितना कहा था, ‘मम्मी, मेरा मोबाइल ले जाओ, आप सफर में होंगी तो हम आप से बात तो कर पाएंगे, आप का भी समय कट जाएगा, हमें भी आप के हालचाल मिल जाएंगे,’ लेकिन नीता नहीं मानी थी और आज पहली बार उसे लग रहा था कि मिनी ठीक कह रही थी.

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लड़कों ने शायद नोट कर लिया था कि उस के पास मोबाइल नहीं है. एक लड़का बोला, ‘‘मैडम, आप चाहें तो हमारे फोन से अपने घर टे्रन लेट होने की खबर दे सकती हैं.’’

नीता ने संकोचपूर्ण स्वर में कहा, ‘‘नहीं, नहीं, ठीक है.’’

‘‘मैडम, आप को जो लेने आएगा उसे परेशानी हो सकती है, स्टेशन पर जल्दी ठीक से बताता नहीं है कोई.’’

बात तर्कसंगत थी, नीता को यही उचित लगा. उस ने एक लड़के का फोन ले कर अमित को टे्रन के लेट होने के बारे में बताया. बहुत बड़ा बोझ सा हट गया नीता के दिल से. अब अमित समय से घर से निकलेंगे, नहीं तो स्टेशन पर आ कर बैठे रहते.

नीता के मन में इस सफर में टे्रन के इतना लेट होने पर भी चिड़चिड़ाहट नहीं थी. वह चुपचाप मन ही मन आज के युवावर्ग के बारे में सोचती रही. हैरान थी अपनी सोच पर कि जमाना कितना बदल गया है, कितनी समझदार है आज की पीढ़ी. 2 पीढि़यों का यह अंतर क्या आज का है? यह तो सैकड़ों वर्ष बल्कि उस से भी पहले का है. अंतर बस यह है कि आज के बच्चे मुखर हैं. अपने हक के प्रति सचेत हैं, लेकिन इस के साथ ही वे बुद्धिमान भी हैं, अपने लक्ष्य पर निगाह रखते हैं और सफल भी होते हैं फिर चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो.

उस ने चुपचाप एक नजर सब लड़कों पर डाली, सब इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थे, बीचबीच में हलका हंसीमजाक.

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नीता सोच रही थी यह एक्सपोजर का समय है जिस में बच्चे दुस्साहसी हैं तो जहीन भी हैं. बच्चों की जिन गतिविधियों से वह असंतुष्ट थी उन से अपने समय में वह भी दोचार हो चुकी थी. बचपन, जवानी, प्रौढ़ा और वृद्धावस्था की आदतें, स्वभाव, सपने, विचार हमेशा एक जैसे ही रहते हैं और इन के बीच जेनेरेशन गैप की दूरी भी सदैव बनी रहती है. समाज में तरहतरह के लोग तो पहले भी थे, आगे भी रहेंगे. नकारात्मक नजरिया रख कर तनाव में रहना कहां तक ठीक है?

नीता का मन पंख सा हलका हो गया. कई दिनों से मन पर रखा बोझ उतरने पर बड़ी शांति मिल रही थी. मुंबई सेंट्रल आ रहा था, वह अपना सामान बर्थ के नीचे से निकालने लगी तब उन्हीं लड़कों ने उस का सामान गेट तक पहुंचाने में उस की मदद करनी शुरू कर दी, टे्रन के रुकने पर वह उन्हें थैंक्यू और औल द बेस्ट कह कर उतर गई.

किसान का जीवन एक हवनशाला

भारत के गांवों में ज्यादातर लोग खेती पर ही निर्भर रहते हैं. हमारे देश के किसान कर्ज में ही जन्म लेते हैं और जिंदगीभर कर्जदार ही बने रहते हैं. किसान अपना खूनपसीना बहा कर अनाज पैदा करते हैं. पुराने समय में गांव के जमींदार लोग छोटेछोटे किसानों का खून चूस कर अपना पेट फुलाए बैठे रहते थे. तब सारा काम करने वाले किसानों को कपड़ा व भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाता था. मीठू का पिता धनो किसान था. वह अपनी जिंदगी को किसी तरह चला रहा था. वह दिनभर हल चलाता रहता और शाम को घर आने पर उस की बीवी चुनियां उसे कुछ खाने को देती. खाने के बाद वह अपने बैलों को खिलानेपिलाने में लग जाता. शाम को उस की हुक्का पीने की आदत थी. चुनियां हुक्का भर कर देती थी. एक दिन शाम को गांव का सेठ उस के दरवाजे पर आ गया और उस से बोला, ‘‘क्यों रे धनो, मेरा हिसाब कब करेगा?’’

उस बेचारे का हुक्का पीना बंद हो गया. वह बोला, ‘‘मालिक, अभी तो खाने के लिए भी पैसा नहीं है, हिसाब कैसे चुकता करूं? पैसा होने पर सब चुका दूंगा.’’ सेठ धनो को उसी समय अपने आदमियों से बंधवा कर साथ ले गया और उसे मारपीट कर वापस भेज दिया. मार खा कर धनो अधमरा हो गया. मीठू अपने पिता की हालत देख कर बहुत परेशान हो गया. वह डाक्टर को बुलाने गया, लेकिन डाक्टर के आने तक धनो मर गया. पिता की मौत के बाद मीठू गांव छोड़ कर शहर चला गया. उसे वहां नौकरी मिल गई. पैसा कमा कर उस ने वहीं अपना घर बसा लिया. यह किसानों के जीवन की एक आम झलक है.

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सरकार द्वारा दिए गए अनुदान भी किसानों को नहीं मिल पाते हैं. सरकारी मुलाजिम सब खापी जाते हैं. ज्यादातर किसानों की सेहत दिनोंदिन गिरती जाती है. आखिर में वे भुखमरी या किसी बीमारी का शिकार हो कर  दुनिया से चले जाते हैं. वे खेत रूपी हवनशाला में अपनी जिंदगी को चढ़ा देते हैं. ज्यादातर किसान मवेशी भी पालते हैं. सुबह से ले कर शाम होने तक वे उन की देखभाल करते हैं और रात को जो कुछ रूखासूखा मिलता है, उसे खा कर सो जाते हैं. हमारे देश में कम जोत वाले किसानों को ज्यादा खराब समय बिताना पड़ता है. उन की सेहत तो ठीक रहती नहीं, उन्हें पेट भरने के लिए अलग से मजदूरी करनी पड़ती है.

किसानों के 3 तबके हैं. पहले तबके के किसानों के पास थोड़ी सी जमीन होती है. वे किसी तरह खेती कर के काम चलाने की कोशिश करते हैं. उन के पास काफी मात्रा में पूंजी व साधन नहीं होते हैं. वे खेती के अलावा मजदूरी भी कर लेते हैं. इस तबके के किसान जब बीमार पड़ते हैं, तो उन्हें गांव के महाजन से सूद पर पैसा लेना पड़ता है, जो जल्दी ही बढ़ कर बहुत ज्यादा हो जाता है. महाजन का कर्ज चुकाने के लिए ऐसे किसानों को अपनी जमीन तक बेचनी पड़ती है, लेकिन उस से भी वे पूरा कर्ज नहीं चुका पाते. उन का न तो ढंग से इलाज हो पाता है, न ही समय पर कर्ज दे पाते हैं. नतीजतन, सही इलाज न हो पाने के चलते किसान मर जाते हैं और उन के बच्चे कर्जदार बने रहते हैं.

दूसरे तबके के किसानों के पास कुछ जमीन और पूंजी होती है. पूंजी से वे मवेशी पालते हैं. वे लोग खेती करने के लिए एक जोड़ी बैल रखते हैं, जिस से हल चला कर समय पर खेती कर लेते हैं. इन की जिंदगी कुछ हद तक ठीक रहती है. इस तरह के किसान दूध भी बेचते हैं, जिस से नकद आमदनी भी होती है. ऐसे किसान पैसे कमाने के चक्कर में खुद दूध का इस्तेमाल नहीं करते. अच्छा भोजन न मिल पाने के चलते ये बीमारी से पीडि़त हो जाते हैं. ऐसी हालत में ये जमीन बेच कर अपना इलाज कराते हैं. मजबूरी में इन्हें काफी कम दामों पर जमीन बेचनी पड़ती है. तीसरे तबके के किसान ज्यादा पैसे वाले होते हैं. ये मजदूरों से जम कर काम लेते हैं और समय पर पैसा भी नहीं देते. ये इन किसानों को दुत्कारते और ताने देते रहते हैं. इन की हालत पहले और दूसरे तबके के किसानों से काफीबेहतर होती है.

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लेकिन कुलमिला कर सभी तबकों के किसानों की हालत खराब है. चूंकि तीसरे तबके के किसान खुद खेतों में काम नहीं करते हैं, इसलिए उन की फसल अच्छी नहीं हो पाती, जिस के चलते उन की घरगृहस्थी डूबने लगती है. आज किसानों को नएनए तरीके से खेती करनी पड़ रही है. इस के लिए उन्हें काफी पैसों की जरूरत होती है. जब समय पर पैसा नहीं जुट पाता है, तो किसान अपनी जमीन बेच कर पैसों का इंतजाम करते हैं. खेती के लिए हर किसान के पास अपने साधन होने बेहद जरूरी हैं, लेकिन सभी तबकों के किसानों के सामने पैसों की कमी की समस्या बनी रहती है. माली तंगी के चलते किसानों की हालत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है, जिस की वजह से हमारे देश के किसान मेहनती होते हुए भी कामयाब नहीं हो पाते हैं. सरकार किसानों को अनुदान के रूप में जो खादबीज देती है, वह भी उन्हें समय पर नहीं मिल पाता है और खेत खाली पडे़ रहते हैं.

आमतौर पर अनुदान की चीजों को बेच कर सरकारी मुलाजिम अपनी जेबें भर लेते हैं. बेचारे किसान दिनभर चिलचिलाती धूप, बरसात और ठंड सहने को मजबूर होते हैं. आमतौर पर भारतीय किसान बहुत ही मेहनती होते हैं. वे अपनी मेहनत के बल पर हम लोगों को अनाज मुहैया कराते हैं. वे खुद मामूली जिंदगी बिताते हैं, जिस के जरीए दूसरों का पेट भरते हैं. इस तरह यह सच ही कहा गया है कि भारत के किसान दूसरों की भलाई करतेकरते खुद को हवनशाला में झोंक देते हैं.

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