जल्द ही शादी के बंधन में बंधने जा रही हैं ये बोल्ड भोजपुरी एक्ट्रेस, पढ़ें खबर

भोजपुरी इंडस्ट्री की एक्ट्रेसस का जलवा अपने आप में सबसे अलग हैं, फिर चाहे उनके गाने हो या एक्टिंग स्टाइल, भोजपुरी स्टार्स ने सब के दिलों में अपनी अलग पहचान बनाई हैं. भोजपुरी इंडस्ट्री की बोल्ड एक्ट्रेस रानी चटर्जी इन दिनों काफी चर्चाओं का विषय बनी हुई हैं. रानी चटर्जी के इन दिनों चर्चा में बने रहने के दो कारण हैं. सबसे पहला कारण तो ये है कि रानी चटर्जी बौलीवुड इंडस्ट्री के मशहूर डायरेक्टर रोहित शेट्टी के पौपुलर शो खतरों के खिलाड़ी के सीजन 10 का हिस्सा बनी हैं जो कि बहुत ही जल्द कलर्स टीवी पर औन एयर होने वाला है.

ये भी पढ़ें- भोजपुरी क्वीन मोनालिसा ने शेयर की ऐसी बोल्ड फोटो, देखकर फैन्स भी हो गए दंग

शादी करने जा रही हैं रानी चटर्जी…

 

View this post on Instagram

 

दुल्हन #♥♥♥

A post shared by Rani Chatterjee Official (@ranichatterjeeofficial) on

रानी चटर्जी के चर्चा में बने रहने का दूसरा कारण ये है कि वे बहुत ही जल्द शादी के बंधन में बंधने जा रही हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार भोजपुरी एक्ट्रेस रानी चटर्जी ने इस बात का खुद खुलासा किया है कि वे साल 2020 में दुल्हन बनने वाली हैं. खबरों के अनुसार उन्होनें इस साल के अंत में यानी दिसम्बर महीने में शादी करने का फैसला किया है.

ये भी पढ़ें- सचमुच डर गई थी – रितु सिंह

बिग बौस सीजन 13 का हिस्सा बनने से किया था तौबा…

 

View this post on Instagram

 

Off to Manali #traveling #timetravel

A post shared by Rani Chatterjee Official (@ranichatterjeeofficial) on

हालांकि रानी चटर्जी किससे शादी करने वाली इस बात का खुलासा अभी तक उन्होनें नहीं किया है पर इतना जरूर बताया है कि वे जिससे शादी करने वाली हैं वो एक टेलिवीजन स्टार है और वे दोनों काफी समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. पहले खबरें कुछ ऐसी भी आई थीं कि रानी बिग बौस सीजन 13 का हिस्सा बनने वाली हैं पर इस बात को लेकर रानी ने खुद बयान दिया था कि वे इस शो में हिस्सा नहीं लेना चाहतीं.

ये भी पढ़ें- इस बड़े भोजपुरी अभिनेता ने किया आर्यन पांडे को पर्सनल पीआरओ के तौर पर साइन, पढ़ें खबर

खतरों के खिलाड़ी सीजन 13 में आएंगी नजर…

रानी चटर्जी की प्रोशेशनल लाइफ की बात की जाए तो उन्होनें अभी तक कई भोजपुरी फिल्मों में अपनी कमाल अदाकारी से लोगों का दिल जीता है और अब वे रोहित शेट्टी के रिएलिटी शो खतरों के खिलाड़ी के 10वें सीजन का हिस्सा बनी हैं जिसकी शूटिंग उन्होनें खत्म कर ली है. बिग बौस सीजन 13 के खत्म होने के बाद ही ये रिएलिटी शो कलर्स टीवी पर औन एयर होगा.

ये भी पढ़ें- निरहुआ और आम्रपाली की नई भोजपुरी फिल्म का ट्रेलर लौंच, खतरनाक लुक में दिखेंगे ये विलेन

रानी चटर्जी के फैंस के लिए अब ये देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि आखिर वे किसके साथ शादी के बंधन में बंधने जा रही हैं.

Bigg Boss 13: Weekend Ke Vaar में फूटा सलमान का गुस्सा, सिद्धार्थ-असीम को दिखाया बाहर का रास्ता

बिग बौस सीजन 13 के हर एपिसोड में कुछ ना कुछ नया दर्शकों को देखने को मिलता रहता है फिर चाहे वो कंटेस्टेंटस् के बीच का प्यार हो या टकरार. लेकिन जैसे जैसे सीजन 13 का फिनाले नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे सभी कंटेस्टेंट ने अपनी गेम और ज्यादा स्ट्रोंग कर ली है और सभी ने खुद के लिए खेलना शुरू कर दिया है और यही वजह है कि बीते कुछ एपिसोड्स में दर्शकों को घर के सदस्यों के बीच सिर्फ और सिर्फ लड़ाई झगड़े होते ही दिखाई दिए हैं फिर चाहे वे सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज का झगड़ा हो या माहिरा शर्मा और रश्मि देसाई का.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: फिर से हुई सिद्धार्थ-असीम की लड़ाई, गुस्से में कह डाली ऐसी बात

असीम-सिद्धार्थ की लड़ाई से तंग आए सलमान…

घर में लड़ाई झगड़े हमेशा से ही होते दिखाई दिए हैं लेकिन जिस तरह सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज के झगड़े दर्शकों को इस सीजन में देखने को मिले हैं वो शायद बिग बौस के इतिहास में कभी नही हुए. इन दोनो कंटेस्टेंटस के झगड़े इतने बढ़ गए कि बिग बौस के नियमों को तोड़ते हुए दोनों एक दूसरे को धक्के मारते और एक दूसरे के घरवालों तक को गलत बोलते नजर आए. लगभग हर वीकेंड के वौर में शो के होस्ट सलमान खान खुद सिद्धार्थ और असीम की लड़ाइयों को देख उनकी क्लास भी लगाते हैं और दोनों को समझाते भी हैं.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: सिद्धार्थ के मुंह से हिमांशी का नाम सुन तिलमिलाई शहनाज, ऐसे मारा धक्का

सलमान ने गुस्स में दिखाया दोनो को बाहर का रास्ता…

लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि सलमान खान इन दोनो की लड़ाइयों से तंग आ चुके हैं. बिग बौस के मेकर्स ने आज के एपिसोड का एक प्रोमो रिलीज किया है जिसमें सलमान खान सिद्धार्थ और असीम से ये कहते दिखाई दे रहे हैं कि, “कितना जहर उगल रहे हो दोनो, 17 हफ्तो से तुम दोनो का ये चल रहा है कि बाहर मिल बाहर मिल… इस घर में तो एक दूसरे तो मारने की अनुमति है नहीं लेकिन घर के बाहर जा कर तुम ये सब कर सकते हो तो मैं अभी तुम को बाहर भेजता हूं जो लड़ाई करनी है करो और अगर वापस आने की हालत में हुए तो आ जाना.”

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: हिना खान के सामने असीम ने की बद्तमीजी, सिद्धार्थ ने लिया ये बड़ा फैसला

सलमान के सामने ही एक दूसरे से करने लगे बहस…

सलमान की ये बात सुन कर ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि वे सचमुच सिद्धार्थ और असीम की लड़ाई से तंग आ चुके हैं. सलमान का गुस्सा तब सांतवे आसमान पर पहुंचा जब वे इन दोनो से बात कर रहे थे और बात के बीच में ही दोनो ने एक दूसरे से बहस करनी शुरू कर दी और सलमान की एक ना सुनी. जैसा कि हम सब इस प्रोमो में देख सकते हैं कि सलमान खान की ये बात सुनकर सिद्धार्थ झट से खड़े हो जाते हैं और असीम को भी बाहर चलने के लिए कहते हैं.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: पारस पर बरसा सलमान का गुस्सा तो एक बार फिर भिड़े सिद्धार्थ-असीम

प्रोमो से तो ऐसा लग रहा है कि आज का एपिसोड कुछ ज्यादा ही हंगामो भरा रहने वाला है. अब देखने वाली बात ये होगी कि सिद्धार्थ और असीम घर से बाहर जाएंगे या नहीं और अगर नहीं जाएंगे तो सलमान किस तरह इन दोनों की लड़ाई खत्म कराने की कोशिश करेंगे.

संभल कर खाओ ओ दिल्ली वालो

बचपन में जब कभी मैं अपने गांव जाता था तो वहां के मेरे दोस्त मुझे अकसर ही छेड़ते रहते थे कि ‘दिल्ली के दलाली, मुंह चिकना पेट खाली’. तब मुझे बड़ी चिढ़ मचती थी कि मैं इन से बेहतर जिंदगी जीता हूं, फिर भी ये ऐसा क्यों कहते हैं?

यह बात याद आने के पीछे आज की एक बड़ी वजह है और वह यह कि दिल्ली और केंद्र सरकार में दिल्ली की कच्ची कालोनियों को पक्का करने की होड़ सी मची है. वे उन लोगों को सब्जबाग दिखा रहे हैं, जो देश की ज्यादातर उस पिछड़ी आबादी की नुमाइंदगी करते हैं जो यहां अपनी गरीबी से जू झ रहे हैं, क्योंकि उन के गांव में तो रोटी मिले न मिले, अगड़ों की लात जरूर मिलती है.

पर, अब तो दिल्ली शहर भी सब से छल करने लगा है. यहां के लोगों को रोजीरोटी तो मिल रही है पर जानलेवा, फिर चाहे वे पैसे वाले हों या फटेहाल. बाजार में खाने का घटिया सामान बिक रहा है.

दिल्ली के खाद्य संरक्षा विभाग ने इस मिलावट के बारे में बताते हुए कहा कि साल 2019 की 15 नवंबर की तारीख तक 1,303 नमूने लिए गए थे. उन में से 8.8 फीसदी नमूने मिस ब्रांड, 5.4 फीसदी नमूने घटिया और 5.4 फीसदी ही नमूने असुरक्षित पाए गए. ये नमूने साल 2013 से अभी तक सब से ज्यादा हैं.

ये भी पढ़ें- बढ़ते धार्मिक स्थल कितने जरूरी?

यहां एक बात और गौर करने वाली है कि जिन व्यापारियों के खाद्य सामान के नमूने फेल हुए हैं, उन के खिलाफ अलगअलग अदालतों में मुकदमे दर्ज मिले हैं. पर यह तो वह लिस्ट है, जहां के नमूने लिए गए, लेकिन दिल्ली की ज्यादातर आबादी ऐसी कच्ची कालोनियों में रहती है, जहां ऐसे मानकों के बारे में कभी सोचा भी नहीं जाता होगा.

साफ पानी के हालात तो और भी बुरे हैं. साफ पानी की लाइन में सीवर के गंदे पानी की लाइन मिलने की खबरें आती रहती हैं.

ऐसी बस्तियों में ब्रांड नाम की कोई चीज नहीं होती है. हां, किसी बड़े ब्रांड के नकली नाम से बने सामान यहां धड़ल्ले से बिकते हैं. पंसारी की खुली बोरियों में क्याक्या भरा है, किसे पता?

पिछले साल के आखिर में दिल्ली की बवाना पुलिस ने जीरा बनाने की एक ऐसी फैक्टरी पकड़ी थी, जहां फूल  झाड़ू बनाने वाली जंगली घास, गुड़ का शीरा और स्टोन पाउडर से जीरा बनाया जा रहा था. इस जीरे को दिल्ली के अलावा गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व दूसरी कई जगह बड़ी मात्रा में सप्लाई किया जाता था. इस नकली जीरे को असली जीरे में 80:20 के अनुपात में मिला कर लाखों रुपए में बेच दिया जाता था.

यह तो वह मिलावट है जो पकड़ी गई है, बाकी का तो कोई हिसाबकिताब ही नहीं है. दिल्ली के असली दलाल तो ये मिलावटखोर हैं, जो एक बड़ी आबादी को शरीर और मन से इस कदर बीमार कर रहे हैं कि उस का मुंह भी चिकना नहीं रहा है. कच्ची कालोनियों को पक्का करने से पहले ऐसे मिलावटखोरों का पक्का इंतजाम करना जरूरी है.

ये भी पढ़ें- अमीर परिवारों की बहूबेटियों को सौगात

महाराष्ट्र राजनीति में हो सकता है गठबंधन का नया ‘सूर्योदय’, राज ठाकरे ने बदला झंडा और चिन्ह

महाराष्ट्र में महा अघाडी गठबंधन के बाद जिस बात के कयास लगाए जा रहे थे वो अब हकीकत बनने के नजदीक पहुंच गया. राजनीति में 13 सालों के अतीत के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने नए झंडे, चिन्ह और नई विचारधारा के साथ नई शुरुआत की. मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने पार्टी के नए झंडे का अनावरण किया, जो गहरे भगवा रंग का है. इसके साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन की मुद्रा (रौयल सील) को चिन्ह के तौर पर जारी किया गया. पार्टी का भव्य सम्मेलन गोरेगांव में एनएसई ग्राउंड में अयोजित किया गया.

पिछले दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में कैसी उठा पटक रही पूरे देश ने देखी और समझी. सीएम उद्धव ठाकरे के पिता बाला साहेब ठाकरे की कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीति के विपरीत जाकर फैसला किया कि वो स्टेट में सरकार बनाए. हुआ भी कुछ ऐसा ही. काफी ड्रामेबाजी के बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद से एक बात का अंदेशा लग रहा था. कई राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि अब हो सकता है कि बीजेपी और मनसे चीफ राज ठाकरे की कुछ न कुछ नजदीकियां हो जाएं. और अब कुछ वैसा ही हो रहा है.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2019: सरकार में हेमंत, रघुवर बेघर

राज ठाकरे ने मुंबई में कहा कि भगवा झंडा साल 2006 से मेरे दिल में था. हमारे डीएनए में भगवा है. मैं मराठी हूं और एक हिंदू हूं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान भी अपने हैं. उन्होंने इस दौरान नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया. मनसे प्रमुख ने कहा कि मैं हमेशा कहता रहा हूं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के घुसपैठियों को देश से बाहर फेंक देना चाहिए.

शिवसेना पर निशाना साधते हुए राज ठाकरे ने बोला कि मैं रंग बदलने वाली सरकारों के साथ नहीं जाता. राज ठाकरे का निशाना शिवसेना की तरफ था जिसने कुछ माह पहले कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाई है. राज ठाकरे ने यह भी कहा कि जिन दलों ने सीएए के खिलाफ मोर्चा खोला है, उनकी पार्टी मनसे उनके खिलाफ मोर्चा खोलेगी. सीएए के बारे में उन्होंने कहा कि जो लोग बाहर से अवैध ढंग से आए हैं, उन्हें क्यों शरण दी जानी चाहिए?

नया झंडा पेश किए जाने के साथ हालांकि विरोध भी शुरू हो गया. संभाजी ब्रिगेड, मराठा क्रांति मोर्चा व अन्य ने राज ठाकरे से राजनीतिक उद्देश्यों के लिए शिवाजी के ‘रॉयल सील’ का उपयोग न करने और संयम बरतने का आह्वान किया. संभाजी ब्रिगेड ने पुणे पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जबकि मराठा क्रांति मोर्चा ने मनसे को कोर्ट में खींचने की धमकी दी.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : सरकारी सर्कुलर पर विवाद

इस मौके पर राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल किया और अपनी अगली पीढ़ी के लिए राजनीति में रास्ता बनाया. मनसे के एक वरिष्ठ नेता ने राज ठाकरे के नया ‘हिंदू हृदय सम्राट’ होने का दावा किया. इस पर भी विवाद छिड़ गया. शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बालासाहेब ठाकरे को आमतौर पर ‘हिंदू हृदयसम्राट’ के रूप में जाना जाता था.

शिवसेना के वरिष्ठ नेता अनिल परब ने कहा कि केवल दिवंगत बाला साहेब ठाकरे ही ‘हिंदू हृदय सम्राट’ हैं और उनकी जगह लेने का कोई और दावा नहीं कर सकता. मनसे अब विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के साथ तालमेल बिठा रही है और भाजपा से शिवसेना के अलग होने के बाद ‘हिंदुत्व’ की रिक्तता को भरने का प्रयास कर रही है. राज ठाकरे ने लोकसभा चुनाव के समय हालांकि ‘मोदी-शाह’ के खिलाफ जनसभाएं की थीं और अपने भाषणों का वीडियो जारी किया था.

‘‘स्ट्रीट डांसर 3D: अति घटिया फिल्म’’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः टीसीरीज और लेजली डिसूजा

निर्देशकः रेमो डिसूजा

कलाकारः वरूण धवन, श्रृद्धा कपूर, राघव जुआल, नोरा फतेही, प्रभूदेवा, मुरली शर्मा, अपराशक्ति खुराना व अन्य. 

अवधिः दो घंटे तीस मिनट

नृत्य पर आधारित सफल फिल्म ‘‘एबीसीडी’’की तीसरी फ्रेंंचाइजी ‘‘स्ट्रीट डांसर थ्री डी’’ में नृत्य जरुर है, मगर फिल्म से रूह गायब है. फिल्म में न कहानी है और न ही ऐेसे नृत्य जिन पर आप थिरकना चाहे. यह तो नृत्य के नाम उलजलूल उछलकूद और कुछ जिम के कदम हैं. इस फिल्म से दूर रहने में ही भलाई है.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: फिर से हुई सिद्धार्थ-असीम की लड़ाई, गुस्से में कह डाली ऐसी बात

कहानीः

फिल्म की कहानी लंदन की है, जहां पर सहज अपने माता पिता व बड़े भाई के साथ रहता है. सहज का बड़ा भाई (राघव जुआल) मशहूर डांसर है, मगर एक नृत्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेते समय ऐसा चोटिल हुए कि अभी भी इलाज चल रहा है. सहज लंदन से पंजाब एक शादी में आता है. अपनी दादी से मिलता है. छाबड़ा (मनोज पाहवा) से भी मुलाकात होती है, छाबड़ा के कहने पर सहज पंजाब से वापस लंदन वापस जाते समय उनसे बहुत बड़ी रकम लेकर चार पंजाबी ढोलक बजाने वालों को भी ले जाता है और उन्हें लंदन एअरपोर्ट पर छोड़ देता है, जो कि बाद में रिफ्यूजी की तरह लंदन पुलिस से भागते हुए नारकीय जिंदगी जीते हैंं.

मगर इन ढोलक बजाने वालों से मिली रकम से सहज लंदन में जमीन खरीदकर एक आलीशान डांस स्टूडियो बनाता है, जहां वह और उसके बड़े भाई लड़को को नृत्य  की शिक्षा देते हैं. अब सहज का सपना अपने बड़े भाई के सपने को पूरा करना है. इसके लिए वह पुनः अपने भाई के नृत्य ग्रुप ‘स्ट्रीट डांसर’ के सभी लड़कों को इकट्ठा करके डांस की प्रैक्टिस शुरू करता है. इसमें एक लड़की नोरा फतेही भी है. उधर ‘स्ट्रीट डांसर’ ग्रुप का विरोधी ग्रुप है- ‘‘रूल्स ब्रेकर’’. जिसकी मुखिया पाकिस्तानी परिवार की लड़की इनायत (श्रृद्धा कपूर) है, जो कि अपने माता पिता को बिना बताए सड़कों पर नृत्य करती रहती है.

ये भी पढ़ें- Ex Bigg Boss कंटेस्टेंट ने टौयलेट में कराया ऐसा फोटोशूट, फैंस हुए दीवाने

यह दोनो ग्रुप एक क्लब में भारत व पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच देखने जाते हैं और आपस में वहां भिड़ते रहते हैं. यह सब क्लब का मालिक रामप्रसाद (प्रभू देवा) देखता रहता है, कभी वह पुलिस अफसर (मुरली शर्मा) को बुला लेता है और कभी बीच बचाव करता है. एक दिन इनायत को पता चल जाता है कि राम प्रसाद ने तीन हजार रिफ्यूजियों को शरण दे रखी है और उन्हे दो वक्त का भोजन भी दे रहा है.

तथा वह चाहते हैं कि किसी तरह यह सभी अपने अपने वतन लौट जाएं. इनायत यह जानकर राम प्रसाद के साथ हो जाती है और चाहती है कि वह ‘जीरो गांउंड’ प्रतियोगिता का हिस्सा बनकर हजार पौंड की रकम जीतकर रिफ्यूजियो को उनके वतन जाने में मदद करे. अब पता चलता है कि राम प्रसाद भी बहुत बड़े डांंसर हैं. रामप्रसाद चाहते है कि सहज उनके साथ मिल जाए, पर पहले वह तैयार नहीं होता. पर अंततः इंटरवल के बाद सहज, रामप्रसाद व इनायत एक हो जाते हैं और फिल्म का अंत सुखद होता है.

लेखन व निर्देशनः

अति घटिया पटकथा व अति घटिया संवादों के चलते फिल्म कहीं से भी दर्शनीय नहीं है. 15 मिनट की कहानी को पटकथा लेखक तुशार हीरानंदानी ने बेतरीब तरीके से ढाई घंटे की फिल्म में खींचा है. इसे एडीटिंग टेबल पर कस कर डेढ़ घंटे के अंदर समेटना चाहिए था. कम से कम तुशार हीरानंदानी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. फिल्म में ग्यारह बड़े नृत्य है, जिनका कहानी से कोई जुड़ाव नहीं है और एक भी नृत्य ऐसा नही है, जिस पर आम इंसान थिरकना चाहे.

निर्देशक के तौर पर रेमो डिसूजा बुरी तरह से विफल रहे हैंं.फिल्म देखकर ऐसा लगता है कि उन्होेने अपने सभी चेलों को इस फिल्म का हिस्सा बनाकर उनकी जेबें गरम करवाने का प्रयास किया है. पूरे विश्व में रह रहे रिफ्यूजियो का मुद्दा अतिसंवेदनशील और अति संजीदा मुद्दा है. मगर अफसोस की बात यह है कि तुशार हीरानंदानी औैर रेमो डिसूजा ने रिफ्यूजियों के मुद्दे को बहुत ही सतही व हास्यास्पद बना दिया है. कहीं भी इनका दुःख, दर्द ,बेबसी नहीं उभरती. कहींं इनके आंसू नजर नहीं आते. महज मेलोड्रामा पैदा करने के लिए इनके वतन वापसी की लालसा का एक सीन है. रिफ्यूजी का यह मुद्दा फिल्म में गैर जरूरी पैबंद सा है. इसी तरह बेवजह भारत व पाक के बीच क्रिकेट मैच का भी सीन दिया गया है. इन सभी दृश्यों से फिल्म की लंबाई तो बढी़, साथ ही साथ निर्देशक ने दर्शंकों के सब्र की परीक्षा लेने का काम किया है. फिल्म में इमोशंस का भी घो अभाव है.

ये भी पढ़ें- शाहरुख की बेटी सुहाना की इस फोटो ने सोशल मीडिया पर मचाया धमाल, फैन्स ने किए ये कमेंट्स

इतना ही नही अंत में देशभक्ति का मुद्दा डालने के लिए फिल्म के क्लायमेक्स में ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ गाने पर एक डांस रखा गया है, इस गाने पर भारतीय व पाकिस्तानी दोनो नृत्य कर रहे है, नृत्य करते समय यह जो रंग विखेरते हैं, उससे भारतीय तिरंगा बनता हुआ नजर आता है, अब इसे क्या कहा जाए?

अभिनयः

जहां तक अभिनय की बात है तो यह फिल्म देखकर लगता है कि वरूण धवन और श्रृद्धा कपूर भी अभिनय भूल चुके हैं. इसमें काफी गलती पटकथा लेखक व निर्देशक की भी है. पर अभिनय में श्रृद्धा कपूर के मुकाबले नोरा फतेही ने बाजी मार ली है. अपराशक्ति खुराना भी असफल रहे.

Bigg Boss 13: फिर से हुई सिद्धार्थ-असीम की लड़ाई, गुस्से में कह डाली ऐसी बात

बिग बौस का सीजन 13 अब फिनाले से ज्यादा दूर नहीं है और जो कि फिनाले नजदीक आ चुका है तो घर के हर सदस्य ने अपनी गेम स्ट्रौंग कर ली है और सभी कंटेस्टेंट जीतने के लिए सर से एड़ी तक का जोर लगा रहे हैं. बीते एपिसोड के कैप्टेंसी टास्क में घर में खूब हंगामे देखने को मिले जो कि आज के एपिसोड में भी बरकरार रहने वाले हैं. पिछले एपिसोड में हमने देखा कि कैप्टेंसी टास्क में घर के 2 सदस्यो को बिग बौस ने हिस्सा लेने से मना कर दिया था जिसमें से असीम रियाज और सिद्धार्थ शुक्ला का नाम शामिल था.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: सिद्धार्थ के मुंह से हिमांशी का नाम सुन तिलमिलाई शहनाज, ऐसे मारा धक्का

विशाल आदित्य सिंह से नाराज बिग बौस…

बिग बौस को कंटेस्टेंट विशाल आदित्य सिंह का कंफ्यूज्ड फैसला लेना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और इस बात को लेकर खुद बिग बौस ने उन्हें काफी कुछ कहा. दरअसल सबसे पहले विशाल ने ये फैसला लिया कि पहले राउंड की वीजेता शहनाज गिल हैं जिसे सभी कंटेस्टेंट ने मानने से साफ इंकार कर दिया. इसके बाद जब बिग बौस ने विशाल ने पूछा कि उनका आखिरी फैसला क्या है तो इसका जवाब देते हुए विशाल ने कहा कि इस टास्क में किसी ने भी ठीक से नहीं खेला है तो ये उनकी तरफ से रद्द माना जाएगा.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: हिना खान के सामने असीम ने की बद्तमीजी, सिद्धार्थ ने लिया ये बड़ा फैसला

असीम ने दिखाया सिद्धार्थ को जूता…

विशाल आदित्य सिंह के ऐसे फैसले से बिग बौस भी नाराज होते दिखाई दिए. इस दौरान बिग बौस ने सभी कंटेस्टेंट से कोई 2 नाम लेने को कहा जिनकी वजह से टास्क हर बार रद्द किया जाता है. इसके चलते असीम रियाज और सिद्धार्थ शुक्ला एक दूसरे के साथ बहस करते दिखाई दिए जिसके बाद असीम ने अपना जूता निकाल कर सिद्धार्थ की ओर इशारा किया और कहा कि, ‘ले चाट ले इसको.’

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: पारस पर बरसा सलमान का गुस्सा तो एक बार फिर भिड़े सिद्धार्थ-असीम

असीम की बात सुन हंस पड़े सभी घरवाले…

असीम की ये बात सुन सिद्धार्थ गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं और उनसे कहते हैं कि ‘मेरे जैसे बंदे से मुंह मत लगना.’ जिसे सुन असीम सिद्धार्थ को गटर बुलाते हैं. इस बहस के चलते असीम सिद्धार्थ से कहते हैं कि ‘तू जब तक मेरे साथ था तब तक ठीक था’ और असीम की ये बात सुन सिद्धार्थ शुक्ला, पारस छाबड़ा, शेफाली जरीवाला और माहिरा शर्मा जोर जोर से हंसने लगते हैं.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: गौतम गुलाटी को देखते ही बेकाबू हो जाएगी शहनाज, सिद्धार्थ के सामने ही करेगी Kiss

अब देखने वाली बात ये होगी कि बिग बौस द्वारा बार बार चेतावनी देने के बाद भी असीम रियाज और सिद्धार्थ शुक्ला का झगड़ा कहा तक जा कर रुकेगा.

Ex Bigg Boss कंटेस्टेंट ने टौयलेट में कराया ऐसा फोटोशूट, फैंस हुए दीवाने

बौलीवुड एक्ट्रेस एली अवराम सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और वो अपनी कई ग्लैमरस फोटोज शेयर करती रहती हैं. अब हाल ही में एली ने अपनी लेटेस्ट फोटोज शेयर की हैं जो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. दरअसल, हाल ही में एली ने टौयलेट सीट पर बैठकर फोटोशूट कराया है जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है.

फैंस कर रहे हैं ऐसे कमेंट्स…

टौयलेट सीठ पर बैठकर एली टेलीफोन पर बात कर रही हैं. हालांकि फिर भी एली इस दौरान ग्लैमरस लग रही हैं. लेकिन एली को इन तस्वीरों की वजह से उन्हें काफी ट्रोल किया जा रहा है. कोई कमेंट कर रहा है कि ऐसा फोटोशूट कौन कराता है तो कोई कह रहा है कि टौयलेट में फोटोग्राफर कौन लेकर जाता है. एली ने इसके बाद पिंक आउटफिट में भी अपनी फोटो शेयर की है जिसमें वो काफी हौट लग रही हैं.

टैटू फोटो से फैन्स को किया कन्फ्यूज…

एली ने एक फोटो ऐसी भी शेयर की है जिसमें उनका एक हाथ पूरा टैटू से भरा हुआ है. लेकिन फैन्स कन्फ्यूज हो रहे हैं कि क्या उन्होंने ये टैटू सच में बनाया है या ये फेक है. यहां तक की किसी ने कमेंट भी किया है कि क्या ये असली टैटू है तो एली ने कहा, शायद.

फिल्म मलंग में आने वाली हैं नजर…

एली की प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो जल्द ही वो फिल्म मलंग में नजर आने वाली हैं. इस फिल्म में दिशा पटानी, आदित्य रॉय कपूर और अनिल कपूर लीड रोल में हैं. इसके साथ ही एली कई वेब सीरीज में भी नजर आ चुकी हैं.

बढ़ते धार्मिक स्थल कितने जरूरी?

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

जब अंगरेज पहली बार भारत आए थे, तब वे यहां का गौरव देख कर दंग रह गए थे. चालाक अंगरेजों ने यह भी देखा था कि भारत के लोगों की धर्म में अटूट आस्था है. हर गांव में एक मंदिर और वह भी एकदम भव्य. उसी गांव के एक छोर पर उन्होंने मसजिद देखी और तब अंगरेजों को सम झते देर न लगी कि भारत में कई धर्मों के मानने वाले लोग रहते हैं.

अब हम आजाद हैं और बहुत तेजी से तरक्की भी कर रहे हैं, पर सवाल यह है कि क्या एक शहर में इतने ज्यादा मंदिर या मसजिद, गुरुद्वारा या चर्च की जरूरत है या हम महज एक दिखावे के लिए या सिर्फ अपने अहंकार को पालने के लिए इन्हें बनाए जा रहे हैं?

सिर्फ एक धर्म के लोग ही ऐसा कर रहे हों, ऐसा नहीं है, बल्कि यह होड़ हर धर्म के लोगों में मची हुई है. शहर के किसी हिस्से में जब एक धर्मस्थल बन कर तैयार हो जाता है तो तुरंत ही उसी शहर के किसी दूसरे हिस्से में दूसरे धर्म का धर्मस्थल बनना शुरू हो जाता है और दूसरा वाला पहले से भी बेहतर और भव्य होता है.

धर्मस्थल बनने के बाद कुछ दिन तो उस में बहुत सारी भीड़ आती है, फिर कुछ कम, फिर और कम और फिर बिलकुल सामान्य ढंग से लोग आतेजाते हैं.

मैं अगर अपने एक छोटे से कसबे ‘पलिया कला’ की बात करूं तो यहां पर ही 17 मंदिर, 12 मसजिद और एक गुरुद्वारा है. अभी तक यहां किसी चर्च को नहीं बनाया गया है.

ये भी पढ़ें- अमीर परिवारों की बहूबेटियों को सौगात

इन मंदिरों की देखरेख पुजारियों के हाथ में है. ऐसा भी नहीं कि सारे के सारे पुजारी मजे करते हैं, बल्कि कुछ मंदिरों के पुजारी तो गरीब हैं.

हिंदू धर्म कई भागों में बंटा हुआ है. मसलन, वैश्य खाटू श्याम मंदिर में जाते हैं तो कुछ नई पीढ़ी के लोग सांईं बाबा पर मेहरबान हो रहे हैं, इसलिए खाटू श्याम मंदिर और सांईं बाबा मंदिर के पंडों की जेब और तोंद रोज फूलती जा रही हैं.

चूंकि सांईं बाबा का मंदिर शहर से अलग जंगल की तरफ पड़ता है, इसलिए वहां पर जाने वाले लड़केलड़कियों के एक पंथ दो काज भी हो जाते हैं. वे सांईं के दर्शन तो करते ही हैं, साथ ही इश्क की पेंगें भी बढ़ा लेते हैं.

यहां पर दरगाहमंदिर नाम से एक हिंदू मंदिर भी है, जो एक सिंधी फकीर शाह बाबा के चेलों ने बनवाया है. यहां की मान्यता है कि जो भी आदमी या औरत कोई भी मन्नत मांगता है तो उसे लगातार 40 दिन आ कर मंदिर में  झाड़ूपोंछा करना पड़ता है, जिसे ‘चलिया’ करना’ कहते हैं.

लोगों की लाइन तो ‘चलिया करने’ के लिए लगी ही रहती है. अब भक्तों की मुराद पूरी हो या न हो, पर बाबाजी का उल्लू तो सीधा हो ही रहा है न.

पंचमुखी हनुमानजी के मंदिर में एक बाबा हैं, जो मुख्य पुजारी हैं. वे बड़ी सी लंबी दाढ़ी बढ़ा कर, गेरुए कपड़े पहन कर बड़े आकर्षक तो नजर आते हैं, पर असलियत में उन पर एक हत्या का केस चल रहा है. पर वे बजरंग बली की सेवा में आ गए तो सफेदपोश बन गए हैं.

शहर के हर कोने में बहुत सारे धर्मस्थल बनाने से अच्छा है कि हर छोटेबड़े शहर में हर धर्म का एक ही धर्मस्थल हो और उस शहर के सारे लोग एक ही जगह पूजापाठ, प्रार्थना, नमाज वगैरह कर सकें. हां, इस में उमड़ी हुई भीड़ को संभालना एक बड़ी बाधा हो सकती है, पर उस के लिए प्रशासन की मदद ली जा सकती है.

किस शहर में कितने धर्मों के कितनेकितने धर्मस्थल हों, यह वहां की आबादी के मुताबिक भी तय किया जा सकता है. जो धर्मस्थल बन चुके हैं, उन को वैसे ही रहने दिया जाए. पर नए बनाने या न बनाने के बारे में सरकार को एक बार जरूर सोचना चाहिए.

अर्थशास्त्र का एक नियम यह भी है कि ‘इस दुनिया में आबादी तो बढ़ेगी, पर जमीन उतनी ही रहेगी’. अब वे धर्मस्थल तो जहां बन गए वहां बन गए, चूंकि धर्मस्थलों से हर एक की आस्था जुड़ी होती है, इसलिए उन को किसी भी तरह से छेड़ना सिर्फ  झगड़े को ही जन्म देगा.

ये भी पढ़ें- रिलेशनशिप्स पर टिक-टोक का इंफ्लुएंस

आज हमारे देश की सब से बड़ी जरूरत है चिकित्सा और भूखे को भरपेट भोजन. हमारे देश में बहुत गरीबी है, पर भव्य धर्मस्थलों को बनाने के लिए बहुत सा पैसा इकट्ठा हो जाता है, शायद किसी गरीब की लड़की की शादी के लिए कोई भी पैसा न दे, पर धर्मस्थल बनाने के लिए हर कोई बढ़चढ़ कर सहयोग करता है.

नेता ऊंचीऊंची मूर्तियां बनवा कर जनता के एक बड़े तबके को आकर्षित करने में तो कामयाब हो जाते हैं और अपना वोट बैंक पक्का कर लेते हैं, पर आम जनता को इस से कोई फायदा नहीं होता है.

हां, धर्मस्थलों के बनने से एक फायदा तो जरूर होता है और वह यह कि मुल्ला, पुजारियों और पादरी को नौकरी का सहारा जरूर मिल जाता है. सब से ज्यादा चंदा देने वाले सेठ की तख्ती भी लगा दी जाती है. सेठ का पैसा भी काम आ जाता है और उस की पब्लिसिटी भी हो जाती है.

आज समाज में बहुत सी ऐसी भयावह समस्याएं हैं, जिन के लिए गंभीरता से कोशिश करनी होगी, जैसे कैंसर की बीमारी तेजी से फैल रही है. हमें कैंसर की रोकथाम के लिए बेहतर से बेहतर अस्पताल चाहिए, ज्यादा से ज्यादा डाक्टर चाहिए.

इसी तरह अच्छे और सस्ते स्कूलों की कमी है. ऐसे अनाथालयों की भी बेहद कमी है, जो बिना किसी फायदे के अनाथों की सेवा कर सकें. ज्यादा धार्मिक स्थल अपने साथ ज्यादा पाखंड लाते हैं. इन पाखंडों और अंधविश्वासों से बचने का तरीका है कि इन की तादाद सीमित की जाए.

देश में उद्योगों को लगाने के लिए जमीन नहीं मिलती. लोग अपने घरों में कारखाने लगाते हैं और उन पर छापामारी होती रहती है. खुदरा बिक्री करने वालों को दुकानें नहीं मिलतीं और वे पटरियों, सड़कों, खुले मैदानों, बागों, यहां तक कि नालों पर दुकानें लगाते हैं, जहां सरकारी आदमी वसूली करने आते हैं, पर मंदिरों को हर थोड़ी दूर पर जगह मिल रही है.

ये भी पढ़ें- उन्नाव कांड: पिछड़ी जाति की लड़की की प्रेम कहानी का दुखद अंत

मंदिरों में नौकरियां पंडों को मिलती हैं या फूलप्रसाद वगैरह बेचने वालों को. कारखानों और दुकानों में सैकड़ों को नौकरियां मिल सकती हैं, पर उन के लिए पैसों की कमी है.

भारत में जिस तरह से आज धार्मिक नफरत फैल रही है, उस पर लगाम लगाने का भी यह एक अच्छा तरीका है, क्योंकि धार्मिक स्थल जितने कम होंगे, आपसी  झगड़े उतने ही कम होंगे.

ऐसे मुद्दे पर निदा फाजली का एक शेर याद आता है:

घर से मसजिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए.

फेल हुए मोदी

मोदी सरकार के फैसले धीरेधीरे घुन की तरह समाज, अर्थव्यवस्था, कानून, संविधान में सभी को खोखला करते नजर आ रहे हैं. जिन उम्मीदों के साथ 2014 में नए बदलावों और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की आशा जगी थी, अब धूमिल ही नहीं हो गई, जो पिछले 6 सालों में हुआ है, वह दशकों तक तंग करता रहेगा.

नोटबंदी का फैसला तो बेमतलब का साबित हो चुका है. बजाय धन्ना सेठों के घरों से कमरों के कमरे वाले धन के मिलने के महज 50 दिन में जो नोट बदलने की बंदिश लगाई गई थी उस से आज भी महिलाएं तब दर्द की टीस सहती हैं जब उन के कपड़ों, किताबों, अलमारियों के नीचे से, गद्दों के बीच से 500 या 1000 के पुराने नोट निकलते हैं. यह रकम सरकार के लिए बड़ी नहीं क्योंकि 15.41 लाख करोड़ नोटों में से 99.3 फीसदी वापस आ ही गए हैं पर जिस घर में पूंजी हजारों की हो, वहां 2000-4000 की भी बहुत कीमत होती है.

ये भी पढ़ें- नागरिकता कानून पर बवाल

अब दूसरी आजादी, जीएसटी, की मार सरकार और जनता को सहनी पड़ रही है. अरुण जेटली ने अपने कागज के पैड पर अंदाजा लगा लिया था कि कर संग्रह 14 फीसदी बढ़ेगा हर साल, क्योंकि कर चोरी बंद हो जाएगी. पर जीएसटी कर तो बचा ले गई, लेकिन धंधे चौपट कर गई. न धंधे बढ़े, न कर संग्रह. केंद्र सरकार ने राज्यों को जो एक कर का खमियाजा देने का वादा किया था, उस में 1,56,000 करोड़ से ज्यादा की भरपाई का पैसा ही नहीं है.

लोगों को आज रिटर्न भरने में ज्यादा समय लगाना पड़ता है, व्यापार करने में कम. सरकार पंडों की तरह हर समस्या का उपाय एक और हवन, एक और तीर्थयात्रा, एक और धागे बांधने की तरह एक और रिटर्न का सुझाव दे डालती है. इस सरकार के दिमाग में भरा है कि ज्यादा प्रपंच, ज्यादा लाभ. मेहनत तो सरकार के मंत्रियों और संतरियों ने कभी न खुद की, न करने वालों की उन्होंने कदर की.

अब संविधान से एक के बाद एक खिलवाड़ करे जा रहे हैं कि कट्टरपंथियों को खुश रखा जा सके. ऊंचे पौराणिकपंथी चाहे उस से खुश हो जाएं, पर मेहनतकशों को क्षणिक गुस्से या खुशी के अलावा कोई फर्क नहीं पड़ता. जिन मुसलमानों को निशाना बना कर सरकार पूरा कार्यक्रम चला रही है, वे हर तरह का जोखिम सहने के आदी हैं. वे उन पिछड़ों व दलितों से ही मुसलमान बने हैं जो सदियों से सामाजिक अत्याचार सहते रहे हैं.

हां, ये सब फैसले उन्हें सरकार से नाराज कर देंगे. अगर भाजपा नहीं भी रहती, जैसा राज्यों में हो रहा है, इन बदलावों का असर रहेगा. घुन खाई लकड़ी पर दवा छिड़क दो तो घुन चाहे मर जाए पर जो लकड़ी खोखली हो चुकी है, वह तो खोखली ही रहेगी.

ये भी पढ़ें- शिव सेना का बड़ा कदम

हकों को कुचला

सरकार अब हक की जगह फर्ज का पाठ पढ़ाने में लग गई है. संविधान व कानूनों में बदलाव के बाद जो गुस्सा फूटा है उस से मुकाबला करने के लिए सरकार को लग रहा है कि पाठ पढ़ाया जाए कि नागरिकों के कोई हक नहीं हैं, सिर्फ फर्ज हैं. यह शासन करने का पुराना तरीका है. हर पुलिस थाने में, हर पंचायत में, हर घर में यही होता है.

यह हमारे समाज की देन है कि हम बात ही फर्ज की करते हैं, मान जाने की करते हैं, चुप रहने की करते हैं, जिस के पास ताकत है उस की आंख मूंद कर सुनने की करते हैं. यही फर्ज है और उस के आगे सारे हक खत्म हो जाएं.

सदियों से औरतों को, पिछड़े कामगारों को, किसानों को, मजदूरों को, समाज से बाहर रह रहे अछूत दलितों को अपने फर्जों की लिस्ट पकड़ाई गई है, हकों की नहीं. आज संविधान है पर बात बारबार उस में दिए गए हकों को कुचलने की की जाती है. ऐसे कानून बनाए जाते हैं जो एक के या दूसरे के हक छीन लें, ऐसे भाषण दिए जाते हैं, जिन में इस संविधान के हकों की जगह फर्जों की बात की जाती है.

यह जानबू झ कर करा जाता है ताकि हैसियत वाले नेता, अफसर, मंत्री, सेठ, घर में आदमी अपनी मनमानी कर सके. अब जब जनता ने नोटबंदी, जीएसटी और नागरिकता कानूनों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं तो उन्हें फर्ज का पाठ पढ़ाया जा रहा है, जबकि फर्ज का पाठ तो सरकार को पढ़ना था.

सरकारों का फर्ज था कि लोग खुश रहे. 6 साल कम नहीं होते खुशी लाने में. अगर 1947 से 2014 तक कुछ भी अच्छा नहीं हुआ तो सरकार ने जनता के बारे में 2014 से कौन से फर्ज पूरे किए.

सरकार ने रेलों की भीड़ नहीं कम की, हां, एयरकंडीशंड महंगी ट्रेनें चालू रखीं. सरकार ने गंदी  झोंपड़पट्टी खत्म नहीं की, हां, ऊंचेऊंचे मौल जरूर बन गए. दिल्ली जैसे शहर में 750 बस्तियों में सीवर नहीं हैं, पर हां, सरकार ने आरओ की बोतल वाले पानी को हर अमीर घर में पहुंचा दिया. सरकार ने नदियों की सफाई नहीं की जहां से मछुआरे मछली पकड़ सकते थे, हां, नदियों के किनारे घाट पक्के बनवा दिए जहां पौराणिक पाखंडबाजी का बाजार चालू है.

ये भी पढ़ें- गहरी पैठ

सरकार ने अपने फर्ज में पढ़ेलिखे नौजवानों को रोजगार नहीं दिया, हां, जिस ने भगवा दुपट्टा ओढ़ लिया उसे धौंस जमाने का हक दे दिया. सरकार ने कारखानों के बारे में नई तकनीक का फर्ज पूरा नहीं किया, हां, पटेल की चीन से बनवा कर ऊंची मूर्ति लगवा दी, जहां अब अमीर लोग सैरसपाटे के लिए शेरों की सफारी देखने जा रहे हैं.

सरकार किस मुंह से कहती है कि जनता को हकों की नहीं फर्जों की सोचनी चाहिए. सरकारें लोकतंत्र में जनता के हकों को बचाने के लिए बनती हैं और जनता के बारे में अपने फर्ज पूरे करने के लिए बनती हैं. अपनी जिम्मेदारी जनता के सिर मढ़ने की कोशिश गलत है.

विधानसभा चुनाव 2019: सरकार में हेमंत, रघुवर बेघर

रघुवर दास ने नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे ‘घरघर मोदी’ की नकल कर के  झारखंड विधानसभा चुनाव में ‘घरघर रघुवर’ का नारा दिया था, लेकिन  झारखंड की जनता ने उन्हें पूरी तरह से बेघर कर दिया. एक तरफ उन की मुख्यमंत्री की कुरसी गई तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने विधायकी भी गंवा दी. भाजपा के ही बागी नेता सरयू राय ने उन्हें जमशेदपुर पूर्व सीट पर पटकनी दे दी. उस सीट से रघुवर दास पिछले 24 सालों से लगातार जीत रहे थे.

रघुवर दास ने ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ शुरू कर जनता से 64 से ज्यादा सीटें जीतने का आशीर्वाद भी मांगा था, पर जनता ने उन पर अपना गुस्सा ही निकाला और उन्हें 25 सीटों पर ही समेट दिया.

वहीं विपक्ष किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति में कामयाब रहा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के सभी नेताओं ने किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की पुरजोर वकालत की थी. गौरतलब है कि रघुवर दास  झारखंड के पहले गैरआदिवासी मुख्यमंत्री बने थे.

झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की ‘बदलाव यात्रा’ कामयाब रही और राज्य की जनता ने उन पर भरोसा करते हुए बदलाव की इबारत लिख डाली.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : सरकारी सर्कुलर पर विवाद

हेमंत सोरेन रघुवर दास के ‘घरघर रघुवर’ के नारे का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि घरघर में चूहा होता है, चूहे को चूहेदानी में डाल कर वे छत्तीसगढ़ में छोड़ आएंगे.

गौरतलब है कि रघुवर दास मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं. हेमंत सोरेन की इन बातों को जनता ने हकीकत में बदल दिया.

झारखंड का हाथ से फिसलना भाजपा के लिए बड़ा  झटका है. महाराष्ट्र को खोने और हरियाणा में हार के दर्द से भाजपा अभी उबर भी नहीं पाई थी कि  झारखंड भी उसे बड़ा जख्म दे गया.

भाजपा के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले अमित शाह को अपनी रणनीति पर नए सिरे से सोचने की दरकार है. केंद्र में तो उन की रणनीति कामयाब रही, लेकिन राज्यों में उन की रणनीति फेल हो रही है या फिर वे जनता की नब्ज पकड़ने और लोकल मुद्दों को सम झने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं.

राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून जैसे नैशनल मुद्दों को राज्यों में भी भुनाने की सोच ने ही भाजपा को जोर का  झटका जोर से दिया है. वहीं दूसरी ओर  झामुमो, कांग्रेस और राजद ने  झारखंड के आदिवासियों की तरक्की और रघुवर सरकार की नाकामियों को उजागर कर जनता का दिल जीत लिया.

81 सीटों वाली  झारखंड विधानसभा में  झामुमो को 30, कांग्रेस को 16 और राजद को एक सीट मिली.  झामुमो को पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 11 सीटें और कांग्रेस को 10 सीटों की बढ़त मिली. राजद ने एक सीट खोई.

भाजपा को 25 सीटें हासिल हुईं और उसे 12 सीटों का नुकसान हुआ. बाबूलाल मरांडी को 3, आजसू को 2 और निर्दलीय को 4 सीटें मिली हैं. पिछले चुनाव के मुकाबले बाबूलाल मरांडी ने 5 और आजसू ने 3 सीटें गंवाईं.

काफी खींचतान के बाद बने  झामुमो, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन को जनता का साथ मिला. इस गठबंधन ने समय रहते सीटों का बंटवारा कर लिया था, जबकि भाजपा अपनों में ही उल झी रही. बड़े नेता सरयू राय और राधाकृष्ण किशोर का टिकट काट कर पार्टी के अंदर ही बखेड़ा खड़ा कर लिया था.

पार्टी के कई बड़े नेता मानते हैं कि अमित शाह और रघुवर दास की अहंकारी सोच ने ही राज्य में भाजपा की लुटिया डुबो दी. कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों के दम पर चुनाव जीतने की सोच ही भाजपा का बेड़ा गर्क कर रही है.

ये भी पढ़ें- जेल से बाहर आने के बाद एस आर दारापुरी का बयान, “मुझे शारीरिक नहीं मानसिक प्रताड़ना मिली”

प्रदेश भाजपा द्वारा सरयू राय और संसदीय मामलों के बड़े जानकार राधाकृष्ण किशोर को दरकिनार कर भानुप्रताप शाही और ढुल्लू महतो जैसे विवादास्पद नेताओं को आगे करना बड़ी भूल रही. 11 सीटिंग विधायकों के टिकट काट कर भाजपा आलाकमान ने खुद ही अपनी कब्र खोद ली थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि 33.37 फीसदी वोट हासिल करने के बाद भी भाजपा 25 सीटें ही जीत सकी, जबकि  झामुमो के खाते में 18.74 फीसदी ही वोट पड़े और उस ने 30 सीटें जीत लीं. पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा का वोट फीसदी तो बढ़ा, पर सीटें घट गईं. वहीं पिछले चुनाव में  झामुमो को 20.78 फीसदी वोट मिले थे, उस हिसाब से इस बार  झामुमो के वोट शेयर में गिरावट आई.

साल 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर रघुवर दास को 1,101 वोटों से जीत मिली थी. उस के बाद से वे लगातार इस सीट से जीतते रहे थे. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने विरोधी को 70 हजार वोटों से हराया था. इस बार उन के ही साथी और रणनीतिकार रहे सरयू राय ने उन के विजय रथ को रोक डाला.

यह चोला उतारे भाजपा

भाजपा को अपनी रणनीति के साथ ही प्रदेश अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों के रवैए पर सोचने की जरूरत है. धर्म, पाखंड, मंदिर जैसी काठ की हांड़ी से अब उसे किनारा कर जनता के मसलों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है. 2 साल पहले 20 राज्यों में राजग की सरकार थी, जो अब सिमट कर 11 पर रह गई है. राजग ने पिछले 2 सालों में 7 राज्य गंवा दिए. सब से पहले 2017 में पंजाब उस के हाथ से निकल गया. उस के बाद 2018 में 3 राज्य से उस की सत्ता चली गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजग को सत्ता खोनी पड़ी. साल 2019 में महाराष्ट्र और  झारखंड से भी उस का दखल खत्म हो गया.

फिलहाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, असम, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा या राजग की सरकारें हैं.

जनता का भरोसा नहीं टूटने दूंगा : हेमंत सोरेन

रघुवर दास के अहंकारी रवैए पर हेमंत सोरेन की सादगी भारी पड़ी. रघुवर दास और भाजपा आलाकमान केवल नैशनल मसलों के भरोसे चुनाव जीतने की बात करते रहे, वहीं हेमंत सोरेन जनता और आदिवासियों की सरकार बनने का ऐलान करते रहे.

हेमंत सोरेन दावा करते हैं कि उन की सरकार गरीबों, आदिवासियों और वंचित तबके के लिए खास काम करेगी. आदिवासियों को उन का हक दिलाना और राज्य की खनिज संपदा को दोहन से बचाना उन की प्राथमिकता है.  झारखंड की जनता ने उन के ऊपर जो भरोसा जताया है, उसे वे टूटने नहीं देंगे.

ये भी पढ़ें- दीपिका की “छपाक”… भूपेश बघेल वाया भाजपा-कांग्रेस!

40 साल के हेमंत सोरेन अपने पिता की अक्खड़ और उग्र सियासत के उलट शांत, हंसमुख और हमेशा मुसकराने वाले नेता हैं. वे हर किसी की बात को गौर से सुनते हैं और उस के बाद ही अपनी बात कहते हैं.

बीआईटी (मेसरा) से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले इस युवा नेता ने साल 2003 में सियासत के अखाड़े में कदम रखा था और  झामुमो के  झारखंड छात्र मोरचा के अध्यक्ष के तौर पर राजनीति की एबीसीडी सीखना शुरू किया था. साल 2005 में अपने पिता की सीट दुमका से चुनावी राजनीति की शुरुआत की, पर मुंह की खानी पड़ी. साल 2009 में दुमका विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे. उस के बाद अर्जुन मुंडा की सरकार में 11 सितंबर, 2010 को उपमुख्यमंत्री बने. 13 जुलाई को मुख्यमंत्री बने और 14 दिसंबर, 2014 तक उस कुरसी पर रहे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें