‘‘मान्यवर, महंगाई के बारे में आप से कुछ बात करनी थी.’’
वह गुस्से से थर्रा उठे थे. कुरसी उन से टकराई थी या वह कुरसी से, मैं नहीं बता सकता.
‘‘इस के लिए आप ने कितनी बार लिख डाला? गिनती में आप बता सकते हैं?’’
‘‘जी, जितनी बार वामपंथियों ने समर्थन वापस लेने की धमकियां दे डालीं,’’ मैं ने विनम्रता से कहा.
‘‘इस मुद्दे पर आप हमारा कितना कीमती समय बरबाद कर चुके हैं, कुछ मालूम है. आप को तो मुल्क की कोई दूसरी समस्या ही नजर नहीं आती... पाकिस्तानी सीमा पर आएदिन गोलीबारी होती रहती है. चीनी सीमा अभी तक विवादित पड़ी है. हम देश की अस्मिता बचाने में परेशान हैं. हमारी आधी सेना उन से लोहा लेने में लगी हुई है...’’
उन के इस धाराप्रवाह उपदेश के दौरान ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘और बाकी आधी...’’
उन्होंने गुर्रा कर कहा, ‘‘मुल्क के तमाम हिस्सों में बोरवेलों में गिरने वाले बच्चों को निकालने में...कभी आप ने यह जानना नहीं चाहा कि अंदरूनी हालात भी कम खराब नहीं चल रहे हैं. मुंबई, बनारस, अक्षरधाम, हैदराबाद, बंगलौर, जयपुर के बाद अभी हाल में दिल्ली में आतंकवादी हमलों से देश कांप उठा है. हमारे आधे सुरक्षाबल तो उन्हीं से जूझ रहे हैं.’’
मैं ने प्रश्नवाचक मुंह बनाया, ‘‘बाकी आधे...’’
उन्होंने खट्टी डकार लेते हुए बताया, ‘‘वी.आई.पी. सुरक्षा में मालूम नहीं क्यों लोग अधिकारियों और मंत्रियों का घेराव करते रहते हैं. हमारे पास जादुई चिराग तो है नहीं. किसान कहते हैं अनाज की कीमतें बढ़ाइए, आप कहते हैं घटाइए. आप ही बताइए हम इसे कैसे संतुलित करें? हम तो बीच में कुछ अनाज धर्मकर्म पर या व्यवस्था के नाम पर ही तो लेते हैं. शेष का आधा आप लोगों की सेवा में ही लगाया जाता है.’’