Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 2

जितेंद्र सिंह रसूख वाले इंसान थे. उन्होंने खुद पर काबू पाया और समझदारी के साथ सिर पर आ पड़ी इस मुसीबत से निकलने का फैसला किया.

अगली सुबह वह दिल्ली पुलिस में तैनात एक अधिकारी दोस्त के पास जा पहुंचे और उन्हें अपने साथ हुई घटना अक्षरश: बयान कर दी. ऐसे मामलों में जैसा होता है वैसा ही जितेंद्र सिंह के साथ भी हुआ.

पुलिस अफसर दोस्त ने उन्हें उम्र का हवाला देते हुए उन की ठरकबाजी के लिए पहले तो खूब खरीखोटी सुनाई. जितेंद्र सिंह जानते थे कि ऐसा ही होगा. लेकिन बाद में पुलिस अफसर दोस्त ने क्राइम ब्रांच में अपने एक मातहत अधिकारी को फोन किया और जितेंद्र  सिंह को उन के पास भेज दिया. साथ ही यह भी ताकीद कर दी कि जितेंद्र का नाम उन की पहचान सामने लाए बिना उन की मदद करें.

क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर बन कर हड़काया

जितेंद्र उसी दिन जब क्राइम ब्रांच के अधिकारी से मिल कर वापस लौटे तो उन के फोन पर एक अंजान नंबर से काल आई. ट्रूकालर में विक्रम सिंह राठौर साइबर सेल लिख कर आ रहा था. जितेंद्र सिंह ने सोचा कि शायद क्राइम ब्रांच में वह जिस बडे़ अधिकारी से मिल कर आ रहे हैं, उन के मातहत किसी अधिकारी ने कोई जानकारी लेने के लिए उन्हें  फोन किया होगा.

जितेंद्र सिंह ने फोन रिसीव कर लिया.

सामने वाले ने अपना परिचय इंसपेक्टर विक्रम सिंह राठौर के रूप में दिया. जितेंद्र सिंह समझ गए कि उन की शिकायत पर क्राइम ब्राच वाले अधिकारी ने काफी तेजी से जांच का काम शुरू करा दिया है.

‘‘मिस्टर जितेंद्र सिंह, आप को शर्म आनी चाहिए एक लड़की से फोन पर इस तरह की अश्लील बातें करते हुए और उस के सामने अपने कपड़े उतारते हुए. जानते हैं इस मामले में आप को कितनी सजा हो सकती है. और जब आप के परिवार को यह बात पता चलेगी तो उन पर क्या गुजरेगी… समाज में आप की कितनी बदनामी होगी. जब आप इस मामले में अरेस्ट किए जाएंगे.’’

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खुद को साइबर क्राइम का इंसपेक्टर राठौर बताने वाले ने जब यह बात कहीं तो अचानक जितेंद्र सिंह का माथा ठनका. क्योंकि उन के अधिकारी दोस्त व क्राइम ब्रांच के अधिकारी ने तो वायदा किया था कि उन की पहचान उजागर किए बिना उन की मदद की जाएगी और ब्लैकमेल करने वाली महिला को पकड़ा जाएगा. लेकिन यहां तो सब उलटा ही हो रहा था.

लिहाजा उन्होंने खुद को राठौर बताने वाले इंसपेक्टर से कहा, ‘‘मिस्टर राठौर, आप के बौस ने भी मुझ से ऐसी बात नहीं की थी, जिस तरह आप बात कर रहे हैं. उन्होंने मेरे बारे में आप से ठीक से नहीं बताया क्या?’’

‘‘कौन से बौस की बात कर रहे हो मिस्टर और तुम्हारे जैसे ठरकी लोगों से कैसे बात की जाती है, मैं खूब अच्छी तरह से जानता हूं. देखो, तुम्हारे खिलाफ शिकायत मिली है… अभी मैं ने मामला दर्ज नहीं किया है… ये मामले बड़े नाजुक होते हैं… उस लड़की से जैसे भी हो, आपस में बातचीत कर के सैटल कर लो, नहीं तो मुझे केस रजिस्टर कर के तुम्हें अरेस्ट करना होगा… इस में तुम्हारी इज्जत भी जाएगी और कोर्टकचहरी में पैसा खर्च होगा सो अलग.’’ उस ने हड़काया.

कथित राठौर की ये धमकी सुन कर जितेंद्र सिंह समझ गए कि उन्हें फोन करने वाला कम से कम क्राइम ब्रांच के उस अधिकारी का तो मातहत नहीं हो सकता, जिसे वह अपनी पीड़ा सुना कर आए थे.

जितेंद्र सिंह ने भी बदले तेवर

लिहाजा उन्होंने पलट कर फिर से क्राइम ब्रांच के अधिकारी को फोन कर के पूछा कि क्या उन्होंने किसी अधिकारी को उन के मामले की जांच के काम पर लगाया है तो उन्होंने कहा, ‘‘अभी मीटिंग की व्यस्तता के कारण वह ऐसा नहीं कर सके थे, लेकिन कल तक मामले की जांच शुरू करा देंगे.’’

तब जितेंद्र सिंह समझ गए कि उन्हें ब्लैकमेल करने वाली लड़की के किसी साथी ने ही खुद को साइबर क्राइम का इंसपेक्टर बता कर फोन किया था.

तब जितेंद्र सिंह ने उस फोन काल के बारे में क्राइम ब्रांच के अपने परिचित अफसर को बताया तो उन्होेंने पहले जितेंद्र से वह नंबर लिया, जिस नंबर से उन्हें फोन आया था.

उस के बाद उन्होंने जितेंद्र को सलाह दी कि अब की बार फोन आने पर वह पैसे मांगने वाले लोगों से साफ कह दें कि वह एक पाई भी नहीं देंगे, जो करना है कर लो…चाहे तो यह भी कह दें कि उलटा उन्होंने ही उस की शिकायत क्राइम ब्रांच में कर दी है.

ऐसा ही हुआ… अगली सुबह पहले रुचिका का वाट्सऐप काल उन के फोन पर आया और उस ने पूछा कि पैसे का इंतजाम हुआ या नहीं?

जितेंद्र सिंह ने उसे डांट दिया और बोले, ‘‘मैं जानता हूं तुम जैसे लोग लोगों को कैसे ठगते हो…’’

जितेंद्र सिंह ने उसे धमकी दी, ‘‘मैं ने पहले ही तुम लोगों की शिकायत पुलिस में कर दी है.’’

उसी दोपहर को जितेंद्र के पास इंसपेक्टर राठौर बताने वाले शख्स का भी फोन आया. उस ने जब पूछा, ‘‘लड़की से आप का कोई सैटलमैंट हुआ या नहीं?’’

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जितेंद्र सिंह ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों से हम पुलिस की हवालात में बात करेंगे, क्योेंकि मैं ने पहले ही तुम लोगों की शिकायत पुलिस में कर दी है. साथ ही तुम्हारे फोन काल्स को पुलिस रिकौर्ड कर रही है.’’

इतना सुनते ही खुद को इंसपेक्टर विक्रम सिंह राठौर बताने वाले शख्स ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया.

जनवरी 2021 में दिल्ली पुलिस ने पहली बार यह खुलासा किया था कि भरतपुर के मेवाती इलाके खोह के कुछ गांवों से सैक्सटौर्शन का रैकेट एक सिंडीकेट के रूप में चलाया जा रहा है.

साइबर क्राइम की टीम ने 6 लोगों को पकड़ा था. जिन्होंने दरजनों लोगों से करीब 25 लाख रुपए ऐंठ लिए थे. उन के पास से 17 मोबाइल फोन बरामद हुए थे, जिन में 40 लोगों की अश्लील वीडियो पुलिस टीम को मिली थी.

पुलिस को यह भी पता चला था कि इस गैंग में कोई युवती नहीं थी, वह केवल किसी शख्स को फंसाने के लिए पहले से बने महिलाओं के वीडियो चलाते थे.

दिल्ली पुलिस की काररवाई के बाद ही जून 2021 में अलवर की गोविंदगढ़ पुलिस ने ब्लैकमेलिंग का कालसैंटर पकड़ कर उस से जुड़े 11 लोगों को गिरफ्तार किया था. ये सभी लोग भरतपुर के मेवाती इलाकों के रहने वाले थे. ये गिरोह कई राज्यों के लोगों से 80 लाख रुपए ठग चुका था.

गिरफ्तार हुए लोग काल सैंटर की तरह अलगअलग शिफ्ट में काम करते थे. सैक्सटौर्शन के काल सैंटर में काम करने वाले ये लोग लड़कियों के नाम से फरजी फेसबुक आईडी बनाते थे.

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उस के बाद अश्लील वीडियो के जरिए न्यूड चैट कर के लोगों को फंसाते थे. फिर इस अश्लील वीडियो कालिंग की रिकौर्डिंग को भेज कर ब्लैकमेल करते थे.

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बलात्कारी की हार: भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘सिंगल…’’ मकान के अधेड़ मालिक ने प्रीति के पेट पर उड़ती नजर डाल कर कहा और कुछ सोचते हुए अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद वह आया और बोला, ‘‘जी बात कुछ ऐसी है कि अभी हमारा कमरा खाली नहीं है और हम उसे किराए पर देने वाले भी नहीं हैं. अजी, हमारे भी बच्चे हैं, आप जैसी लड़कियों को देख कर उन पर गलत असर पड़ेगा,’’ मकान मालिक कहता जा रहा था.

यह सब सुनने से पहले वह बहरी क्यों नहीं हो गई थी. प्रीति उस के मकान से बाहर निकल आई थी.

यह किन लोगों के बीच रही है वह, क्या इन लोगों के मन में कोई संवेदना बाकी नहीं रह गई है या ये सिर्फ स्त्री जाति का मजाक बनाना जानते हैं, परेशान हो उठी थी प्रीति.

पर अजनबी शहर में रात गुजारने के लिए उसे कोई छत तो चाहिए ही थी. सो, उस ने हार कर एक होटल की शरण ली.

नई जगह, नए लोग और मानसिक प्रताड़ना से गुजरते हुए प्रीति से बैंक के कामों में भी गलतियां होने लगीं. उसे परेशान देख उस की एक सहकर्मी ने उस की परेशानी का कारण पूछा.

‘‘वो… अरे कुछ नहीं मालती, वो… जरा मकान नहीं मिल पा रहा है. फिलहाल एक होटल में रह रही हूं. होटल काफी महंगा तो पड़ता है ही, साथ ही साथ एक अलग माहौल भी रहता है होटलों का,’’ प्रीति ने बात बनाई.

‘‘अरे बस, इतनी सी बात. चल मेरे एक जानने वाले का यहीं पास में मकान है, मैं आज ही शाम को तेरी बात और मुलाकात करा देती हूं,’’ मालती ने कहा.

मालती की बातों ने प्रीति के लिए मलहम का काम किया और वे दोनों शाम को औफिस के बाद औटो कर के मालती के जानपहचान वाले के यहां चल दीं.

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‘‘प्रीति, तू बुरा न मान तो एक बात पूंछू?’’ औटो में बैठते हुए मालती ने कहा.

‘‘हां, हां, पूछ न,’’ प्रीति बोली.

‘‘तू ने आज अपने परिचय में बताया था कि तू अविवाहित है. पर यह तेरा उभरा हुआ पेट तो कुछ और ही कह रहा है,’’ मालती ने पूछा.

‘‘हां, वह किसी के धोखे की निशानी है,’’ प्रीति ने खिन्न हो कर उत्तर दिया.

‘‘ओह… सम?ा, पर तब तू इस को गिरा क्यों नहीं देती. सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा,’’ मालती ने अपनी राय बताई.

‘‘क्यों… क्यों खत्म करूं मैं अपने इस बच्चे को? आखिर इस का क्या कुसूर है जो मैं इसे दुनिया में आने से पहले ही खत्म कर दूं? मैं ने कोई पाप तो नहीं किया, प्रेम किया था. पर अफसोस वह शख्स ही मेरे प्रेम के लायक नहीं था,’’ कराह उठी थी प्रीति.

अभी दोनों के बीच बातें आगे बढ़तीं, इस से पहले ही वह मकान आ गया जहां मालती को प्रीति को ले जाना था.

वह एक गंजा अधेड़ था, जिस के कंधे चौड़े थे और जिस तरह से चाटुकार उस के चारों ओर थे, उस से वह किसी पार्टी का नेता लग रहा था.

ददाजी से मिलने के बाद तो प्रीति ने काफी हलका महसूस किया और अगले ही दिन सामान ले कर ददाजी के घर पहुंच गई और अपना सामान भी सैट कर लिया.

दरवाजे पर खटखट की आवाज सुन कर प्रीति ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक चंदनधारी सफेद साड़ी पहने एक स्त्री खड़ी थी, शायद वे ददाजी की मां थीं.

आदरवश प्रीति ने उन के पैर छुए और उन्हें अंदर आने को कहा, पर वे दरवाजे पर ही खड़ी रहीं और वहीं से उन्होंने एक सवाल दागा.

‘‘ब्याह हो गयो तेरो के नहीं?’’

‘‘अ… अभी नहीं,’’ प्रीति किसी आशंका से ग्रसित हो गई.

‘‘घोर कलजुग आ गयो है, खैर, हमें का करने, ‘‘कहती हुई वे बूढ़ी माता नीचे चली गईं.

आंसुओं में टूट चुकी थी प्रीति, निराश मन ने कई बार आत्महत्या के लिए उकसाया पर हर बार मन को यही सम?ाती रही कि वह सही रास्ते पर चल रही है और उसे कायरतापूर्ण कार्य करने की जरूरत नहीं है.

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रात में फिर से प्रीति के दरवाजे पर दस्तक हुई. अंदर तक सहम गई थी वह. भला इस समय कौन आ सकता है?

‘‘अरे प्रीति, जरा दरवाजा तो खोलो. अरे हमें भी तो इस ताजमहल का दीदार कर लेने दो भई.’’ यह आवाज ददाजी की थी जो शराब के नशे में प्रीति के कमरे के बाहर खड़ा दरवाजा पीट रहा था, ‘‘अरे खोल भी दो प्रीति, तुम तो बिन ब्याहे मां बन सकती हो तो मु?ा में कौन से कांटे लगे हैं? खोल दो प्रीति,’’ ददाजी नशे में चूर थे. नशे की अधिकता के कारण वहीं दरवाजे पर ही बेहोश हो गए थे दादाजी. प्रीति रातभर अपने कंबल को लपेट कर टौयलेट में बैठी रही. जब सुबह पेपर वाले ने पेपर की आवाज लगाई तब जा कर उस की जान में जान आई.

उस ने फौरन अपना सामान फिर से पैक किया और दबे पैर ही उस ने ददाजी का घर छोड़ दिया और फिर से दूसरे होटल में जा कर रहने लगी और उस दिन के कड़वे अनुभव के बाद उस ने मालती से भी दूरी बना ली.

प्रीति ने अमित के खिलाफ जो केस दायर कर रखा था उस की तारीख जब भी आती, प्रीति को छुट्टी लेगा कर आगरा जाना पड़ता. कभीकभी तो अमित पेशी पर पहुंचता ही नहीं, जिस के कारण प्रीति का पूरा दिन और पैसा बरबाद हो जाता.

अभी प्रीति को लखनऊ में आए कुछ ही दिन हुए थे कि उस का तबादला फिर से करा दिया गया. प्रीति को यह सम?ाते हुए देर न लगी कि इस में अमित का ही हाथ है.

लगातार हो रहे अपने तबादलों के कारण प्रीति ने सरकारी नौकरी से मजबूरी में त्यागपत्र दे दिया.

त्यागपत्र देने के बाद जीविका का प्रश्न प्रीति के सामने मुंह फाड़े खड़ा था. सोशल मीडिया पर ‘मी टू’ नामक आंदोलन से कुछ एनजीओ चलाने वाली महिलाओं से प्रीति का संपर्क बन गया था. संकट में होने पर प्रीति ने उन्हीं महिलाओं का सहारा लिया और बनारस के एक एनजीओ से जुड़ गई, जो विधवाओं, परित्यक्ताओं और बलात्कार पीडि़तों के लिए काम करती थी. इस काम में उसे साहस और आत्मिक संतोष दोनों मिलने लगा था. यहां उस से कोई सवाल नहीं किया गया और उसे यही लगा कि दुनिया में उस से भी ज्यादा दुखी लोग हैं और उन पहाड़ जैसे दुखों के आगे उस का दुख कुछ भी नहीं है.

पूरी दुनिया में अकेली थी प्रीति. दुनिया से भर कर उस के मांबाप ने उसे त्याग दिया था. प्रेमी ने धोखा दिया, जहां भी गई उसे तिरस्कार ही मिला, फिर भी कुछ ऐसा था जो उसे जीने पर मजबूर किए हुए था और वह था गर्भ में पल रहा उस का बच्चा. जमाने से लड़ते हुए, नदिया की धारा के खिलाफ चलते हुए वह दिन भी आ गया जब प्रीति ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया.

प्रीति के साथ जबरन बलात्कार तो नहीं हुआ पर उस को धोखा दे कर जो संबंध बनाया गया वह भी एक प्रकार से बलात्कार ही था. प्रीति साहसी थी, उस ने अदालत में अपील की कि उस के गर्भ में पल रहे बच्चे और अमित का डीएनए टैस्ट कराया जाए और अमित बाकायदा उसे हर्जाना दे और अपनी जायदाद में उस के बच्चे का भी हिस्सा हो.

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प्रीति, हमारे समाज में भी ऐसी औरतें बड़ी आसानी से मिल जाती हैं, जिन की मजबूरी का फायदा उठाया जाता है.

जरूरी नहीं कि बलात्कारी कुछ अलग सी दिखने वाली शक्ल का हो, वह तो समाज में किसी भी शक्ल में हो सकता है- आसपास, घर में, औफिस में.

‘‘बच्चे के माता और पिता का नाम बताइए,’’ नर्स ने फौर्म भरते हुए पूछा.

‘‘जी, दोनों ही कौलम में आप प्रीति ही भरिए. मैं ही इस की मां और मैं ही इस का पिता हूं,’’ प्रीति के चेहरे पर जीत की आभा थी.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 3: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

रम्या को औफिस आ कर ही पता चला कि आज की लंच पार्टी रम्या की स्वागतपार्टी और राघव की विदाई पार्टी है. दोनों ही सोच में डूबे हुए अपनेअपने कंप्यूटर की स्क्रीन से जूझने लगे.

राघव सोच रहा था कि रम्या की जिंदगी के इस दिन का उसे कितना इंतजार था कि स्वस्थ हो दोबारा औफिस जौइन कर ले. मगर वही दिन उसे रम्या की जिंदगी से दूर भी ले कर जा रहा था.

रम्या सोच रही थी कि जब मैं अस्पताल में थी तो राघव नियम से मुझ से मिलने आता था और कितनी बातें करता था. शुरूशुरू में तो मां को उसी पर शक हो गया था कि यह रोज क्यों आता है? कहीं इसी ने तो हमला नहीं करवाया और अब हीरो बन सेवा करने आता है? और अप्पा को तो मामा पर शक हो गया था, क्योंकि मैं ने मामा से शादी करने को मना कर दिया था और छोेटा मामा तो वैसे भी निकम्मा और बुरी संगत का था. अप्पा को लगा मामा ने ही मुझ से नाराज हो कर हमला करवाया है. जब राघव को मैं ने मामा की शादी के प्रोपोजल के बारे में बताया तो वह हैरान रह गया. उस का कहना था कि उन के यहां मामाभानजी का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है. अगर गलती से भी पैर छू जाए तो भानजी के पैर छू कर माफी मांगते हैं. पर हमारी तरफ तो शादी होना आम बात है. मामा की उम्र अधिक होने पर उन के बेटे से भी शादी कर सकते हैं.

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उन दिनों कितनी प्रौब्ल्म्स हो गई थीं घर में… हर किसी को शक की निगाह से देखने लगे थे हम. राघव, मामा, हमारे पड़ोसियों सभी को… अम्मां को भी अस्पताल के पास ही घर किराए पर ले कर रहना पड़ा. आखिर कब तक अस्पताल में रहतीं. 1 महीने बाद अस्पताल छोड़ना पड़ा. मगर लकवाग्रस्त हालत में गांव कैसे जाती? फिजियोथेरैपिस्ट कहां मिलते? राघव ने भी मुझ से ही पूछा था कि अगर वह शनिवार, रविवार को मुझ से मिलने घर आए तो मेरे मातापिता को कोई आपत्ति तो नहीं होगी. अम्मांअप्पा ने अनुमति दे दी. वे भी देखते थे कि दिन भर की मुरझाई मैं शाम को उस की बातों से कैसे खिल जाती हूं, हमारा अंगरेजी का वार्त्तालाप अम्मां की समझ से दूर रहता. मगर मेरे चेहरे की चमक उन्हें समझ आती थी.

मामा ने गुस्से में आना कम कर दिया तो अप्पा का शक और बढ़ गया. वह तो

2 महीने पहले ही पुलिस ने केस सुलझा लिया और हमलावर पकड़ा गया वरना राघव का भी अपने घर जाना मुश्किल हो गया था. मैं ने आखिरी कौल राघव को ही की थी कि मैं स्टेशन पहुंच गई हूं, तुम भी आ जाओ. उस के बाद उस अनजान कौल को रिसीव करने के बीच ही वह हमला हो गया.

राघव ने जब बताया था कि वह बाराबंकी के कुंभकार परिवार से है और उस का बचपन मूर्ति में रंग भरने में ही बीता है, तो मैं ने कहा था कि वह मूर्ति बना कर दिखाए. तब उस ने रंगीन क्ले ला कर बहुत सुंदर मूर्ति बनाई जो संभाल कर रख ली.

‘रम्या भी तो एक बेजान मूर्ति में परिवर्तित हो गई थी उन दिनों,’ राघव ने सोचा. वह हर शनिवाररविवार जब मिलने जाता तब उसे रम्या में वही स्वरूप दिखाई देता जैसा उस के बाबा दीवाली में लक्ष्मी का रूप बनाते थे. काली मिट्टी से बनी सौम्य मूर्ति. उस मूर्ति में जब वह लाल, गुलाबी, पीले और चमकीले रंगों में ब्रश डुबोडुबो कर रंग भरता, तो उस मूर्ति से बातें भी करता.

यही स्थिति अभी भी हो गई है. रम्या के बेजान मूर्तिवत स्वरूप से तो वह कितनी बातें करता था. लकवाग्रस्त होने के कारण शुरूशुरू में वह कुछ बोल भी नहीं पाती थी, केवल अपने होंठ फड़फड़ा कर या पलकें झपका कर रह जाती. बाद में तो वह भी कितनी बातें करने लगी थी. उस की जिंदगी में भी रंग भरने लगे थे. वह समझ ही नहीं पाया कि रंग भर कौन रहा है? वह रम्या की जिंदगी में या रम्या उस की जिंदगी में? अब रम्या जीवन के रंगों से भरपूर है. अपने अम्मांअप्पा के संरक्षण में गांव लौट गई है, उस की पहुंच से दूर. अब उस की सेवा की रम्या को क्या आवश्यकता? अब वह भी यहां से चला जाएगा. रम्या से फेसबुक और व्हाट्सऐप के माध्यम से जुड़ा रहेगा वैसे ही जैसे पंडाल में सजी मूर्तियों से मन ही मन जुड़ा रहता था.

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‘‘चलो, सब आज सब का लंच साथ हैं याद है न?’’ रमन ने मेज थपथपाई.

सभी एकसाथ लंच करने बैठ गए तो रम्या ने कहा, ‘‘धन्यवाद तो मुझे तुम सब का देना चाहिए जो रक्तदान कर मेरे प्राण बचाए…’’

‘‘सौरी, मैं तुम्हें रोक रहा हूं. मगर सब से पहले तुम्हें राघव को धन्यवाद करना चाहिए. इस ने सर्वप्रथम खून दे कर तुम्हें जीवनदान दिया है,’’ मुरली मोहन बोला.

‘‘ठीक है, उसे मैं अलग से धन्यवाद दे दूंगी,’’ कह रम्या हंस रही थी. राघव ने देखा आज उस ने काले की जगह लाल रंग की बिंदी लगाई थी.

‘‘वैसे वह तेरा वनसाइड लवर भी बड़ा खतरनाक था… तुझे अपने इस पड़ोसी पर पहले कभी शक नहीं हुआ?’’ सुभ्रा ने पूछा.

‘‘अरे वह तो उम्र में भी 2 साल छोटा है मुझ से. कई बार कुछ न कुछ पूछने को किसी न किसी विषय की किताब ले कर घर आ धमकता था. मगर मैं नहीं जानती थी कि वह क्या सोचता है मेरे बारे में,’’ रम्या अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

लगभग सभी खापी कर उठ चुके थे. राघव अपने कौफी के कप को घूरने में लगा था मानो उस में उस का भविष्य दिख रहा हो.

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है उस लड़के के बारे में?’’ रम्या ने पास आ कर उस से पूछा.

‘‘प्यार मेरी नजर में कुछ पाने का नहीं, बल्कि दूसरे को खुशियां देने का नाम है. अगर हम प्रतिदान चाहते हैं, तो वह प्यार नहीं स्वार्थ है और मेरी नजर में प्यार स्वार्थ से बहुत ऊपर की भावना है.’’

‘‘इस के अलावा भी कुछ और कहना है तुम्हें?’’ रम्या ने शरारत से राघव से पूछा.

‘‘हां, तुम हमेशा इसी तरह हंसतीमुसकराती रहना और अपनी फ्रैंड लिस्ट में मुझे भी ऐड कर लेना. अब वही एक माध्यम रह जाएगा एकदूसरे की जानकारी लेने का.’’

‘‘ठीक है, मगर तुम ने मुझ से नहीं पूछा?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मुझे कुछ कहना है कि नहीं?’’ रम्या ने कहा तो राघव सोच में पड़ गया.

‘‘क्या सोचते रहते हो मन ही मन? राघव, अब मेरे मन की सुनो. अगले महीने अप्पा बाराबंकी जाएंगे तुम्हारे घर मेरे रिश्ते की बात करने.’’

‘‘उन्हें मेरी जाति के बारे में नहीं पता शायद,’’ राघव को अप्पा का कौफी पीना याद आ गया.

‘‘यह देखो इन रगों में तुम्हारे खून की लाली ही तो दौड़ रही है और जो जिंदगी के पढ़ाए पाठ से भी सबक न सीख सके वह इनसान ही क्या… मेरे अप्पा इनसानियत का पाठ पढ़ चुके हैं. अब उन्हें किसी बाह्य आडंबर की जरूरत नहीं है,’’ रम्या ने अपना हाथ उस की हथेलियों में रख कर कहा, ‘‘अब अप्पा भी चाह कर मेरे और तुम्हारे खून को अलगअलग नहीं कर सकते.’’

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‘‘तुम ने आज लाल बिंदी लगई है,’’ राघव अपने को कहने से न रोक सका.

‘‘नोटिस कर लिया तुम ने? यह तुम्हारा ही दिया रंग है, जो मेरी बिंदी में झलक आया है और जल्द ही सिंदूर बन मेरे वजूद में छा जाएगा,’’ रम्या बोली और फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामें जिंदगी के कैनवास में नए रंग भरने निकल पड़े.

मिसफिट पर्सन- भाग 3: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

नरोत्तम ने अपना सिर धुन लिया. वह बारबार कहता रहा कि हवाई अड्डे पर उस का अघोषित सामान पकड़ा था उसी से वह उस को जानती है. और अब जानबूझ कर मजे लेने के लिए ड्रामा कर रही थी. मगर पत्नी को कहां विश्वास करना था.

‘‘सर, नरोत्तम की वजह से कोई भी सहजता से काम नहीं कर पाता,’’ डिप्टी डायरैक्टर, कस्टम ने अपने बौस से कहा.

नरोत्तम को कोई भी विभाग अपने यहां लेने को तैयार नहीं था. एक तो उस का स्वभाव ही ऐसा था, दूसरे, उस के कर्म खोटे थे. वह जहां जाता वहां कोई न कोई पंगा हो जाता था.

कार्गो कौम्प्लैक्स, कस्टम विभाग में सुरक्षा महकमा समझा जाता था. इस विभाग में ऊपर की कमाई के अवसर काफी कम थे. नरोत्तम को इस विभाग में भेज दिया गया.

नरोत्तम कर्तव्यनिष्ठ अफसर था. उस को कहीं भी ड्यूटी करने में संकोच नहीं था.

एक रोज एक शिपमैंट की चैकिंग के दौरान एक पेटी मजदूर के हाथों से गिर कर टूट गई. पेटी में फ्रूट जूस की बोतलें भरी थीं. कुछ बोतलें टूट गईं. उन में से छोटीछोटी पाउचें निकल कर बिखर गईं. सब चौंक पड़े. नरोत्तम ने पाउचें उठा लीं और एक को फाड़ कर सूंघा. उन में सफेद पाउडर भरा था, जो हेरोइन थी.

मामला पहले पुलिस, फिर मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो के हवाले हो गया. शिपमैंट भेजने वाले निर्यातक की शामत आ गई. उस के बाद हर कंटेनर को खोलखोल कर देखा जाने लगा. निर्यात में देरी होने लगी. कई अन्य घपले भी सामने आ गए. कार्गो कौम्प्लैक्स भी अब निगाहों में आ गया.

जिस निर्यातक की शिपमैंट में नशीला पदार्थ पकड़ा गया था उस ने नरोत्तम को मारने के लिए गुंडेबदमाशों को ठेका दे दिया. नरोत्तम नया रंगरूट था. उस को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी मिला था और साथ ही सुरक्षा हेतु रिवौल्वर भी. एनसीसी कैडेट भी रह चुका था. वह दक्ष निशानेबाज था.

एक दिन वह ड्यूटी समाप्त कर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ. मेन रोड पर आते ही उस के पीछे एक काली कार लग गई. बैक व्यू मिरर से उस की निगाहों में वह पीछा करती कार आ गई.

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वह चौकस हो गया. उस ने कमर से बंधे होलेस्टर का बटन खोल दिया. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल रहा था. सड़क पर ट्रैफिक बढ़ रहा था. दफ्तरों से, दुकानों से घर लौटते लोग अपनेअपने वाहन तेजी से चलाते जा रहे थे.

कार लगातार पीछे चलती बिलकुल समीप आ गई. फिर साथसाथ चलने लगी. नरोत्तम ने देखा, कार में 4 आदमी सवार थे.

एक ने हाथ उठाया, उस के हाथ में रिवौल्वर थी. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल को एक झोल दिया. एक फायर हुआ, झोल देने से निशाना चूक गया. कार आगे निकल गई. उस ने फुरती से अपनी रिवौल्वर निकाली. निशाना साध कर फायर किया.

कार का पिछला एक पहिया बर्स्ट हो गया. कार डगमगाती हुई रुक गई. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल रोक कर सड़क के किनारे खड़ी कर दी. सड़क के किनारे थोड़ीथोड़ी दूरी पर बिजली के खंभे थे. उन के साथ कूड़ा डालने के ड्रम थे. वह लपक कर डम के पीछे बैठ गया. कार रुक गई. 4 साए अंधेरे में आगे बढ़ते उस की तरफ आए. रेंज में आते ही उस ने एक के बाद एक 3 फायर किए. 2 साए लहरा कर नीचे गिर पड़े. नरोत्तम फुरती से उठा और दौड़ कर पीछे वाले खंभे की ओट में जा छिपा.

जैसी उम्मीद थी वैसा हुआ. 2 रिवौल्वरों से ड्रम पर गोलियां बरसने लगीं. मगर नरोत्तम पहले से जगह छोड़ कर पीछे पहुंच गया था. उस ने निशाना साध गोली चलाई. एक साया हाथ पकड़ कर चीखा, फिर दोनों भाग कर कार की तरफ जाने लगे.

नरोत्तम मुकाबला खत्म समझ छिपने के स्थान से बाहर निकल आया. तभी भागते दोनों सायों में से एक मुड़ा और नरोत्तम पर फायर कर दिया. गोली नरोत्तम के कंधे पर लगी. वह कंधा पकड़ कर बैठ गया.

सड़क पर चलता ट्रैफिक लगातार होती गोलीबारी से रुक गया. टायर बर्स्ट हुई कार में बैठ कर चारों बदमाश भाग निकले. नरोत्तम पर बेहोशी छाने लगी. तभी 2 जनाना हाथों ने उसे थाम लिया. पुलिस की गाडि़यों के सायरन गूंजने लगे. नरोत्तम बेहोश हो गया.

नरोत्तम की आंख खुली तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के कंधे और छाती पर पट्टियां बंधी थीं. उस के साथ स्टूल पर उस की पत्नी बैठी थी. दूसरी तरफ उस के मातापिता और संबंधी थे.

होश में आने पर पुलिस उस का औपचारिक बयान लेने आई. नरोत्तम फिर सो गया. शाम को उस की आंख खुली तो उस ने अपने सामने ज्योत्सना को हाथ में छोटा फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा पाया.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’ मुसकराते हुए उस ने पूछा.

उस ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. वह यहां कैसे?

‘‘उस शाम संयोग से मैं आप के पीछेपीछे ही अपनी कार पर आ रही थी. मैं ने ही पुलिस को फोन किया था.’’

तब नरोत्तम को याद आया, बेहोश होते समय 2 जनाना हाथों ने उसे थामा था. ज्योत्सना चली गई.

नरोत्तम 3-4 दिन बाद घर आ गया. उस का कुशलक्षेम पूछने बड़ेछोटे अधिकारी भी आए. ज्योत्सना भी हर शाम आने लगी. उस के यों रोज आने से उस की पत्नी का चिढ़ना स्वाभाविक था.

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पतिपत्नी में बनती पहले से ही नहीं थी. नरोत्तम के ठीक होते पत्नी मायके जा बैठी. उस के मातापिता, दामाद के मिसफिट नेचर की वजह से पहले ही क्षोभ में थे और अब उस की इस खामखां की प्रेयसी के आगमन ने आग में घी का काम किया. पतिपत्नी में संबंधविच्छेद यानी तलाक की प्रक्रिया शुरू हो गई.

बौयफ्रैंड को कमीज के समान बदलने वाली ज्योत्सना को कड़क जवान नरोत्तम जांबाजी के कारण भा गया था. वह अब उस के यहां नियमित आने लगी.

असमंजस में पड़ा नरोत्तम इस सोचविचार में था कि त्रियाचरित्र को क्या कोई समझ सकता था? रिश्वतखोर न होने के कारण उस की पत्नी उस को छोड़ कर चली गई थी. और अब एक तेजतर्रार नवयौवना उस के पीछे पड़ गई थी. एक तरफ जबरदस्ती के प्यार का चक्कर था तो दूसरी तरफ उस की नियति. दोनों पता नहीं भविष्य में क्या गुल खिलाएंगे?

Bigg Boss के घर जाने से पहले Akshara Singh ने शेयर किया ये Video

भोजपुरी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह (Akshara Singh) इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं.  एक्ट्रेस ‘बिग बॉस 15′ में एंट्री को लेकर सुर्खियां बटोर रही हैं.

अक्षरा सिंह के फैंस भी उनकी एंट्री को लेकर काफी एक्साइटेड हैं. हाल ही में बिग बॉस15 का एक वीडियो वायरल हो रहा था. इस वीडियो में एक्ट्रेस परफॉर्म करते हुए नजर आ रही थीं.

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अब अक्षरा सिंह ने इंस्टाग्राम पर एक रील वीडियो शेयर किया है. इसमें एक्ट्रेस ‘प्यार किया तो निभाना-वादा रहा’ पर लिपसिंग कर रही हैं. इस वीडियो को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

 

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अक्षरा सिंह ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि अब जिंदगी का मकसद है, बस आपका साथ और मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोग हमेशा मेरे साथ हैं. अपना सहयोग बनाए रखें. मुझे इसकी जरूरत है.

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अक्षरा के वीडियो को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. एक्ट्रेस काफी खूबसूरत नजर आ रही हैं. इस वीडियो को 21 हजार से भी ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं. तो वहीं  यूजर्स  जमकर कमेंट भी कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, सब साथ हैं आपके. आप बेस्ट करना तो दूसरे यूजर ने लिखा कि हम आपके साथ हैं दीदु.

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Ghum Hai KisiKey Pyaar Meiin: सई लेगी बड़ा फैसला, करेगी विराट-पाखी को एक करने का वादा

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ में कहानी एक दिलचस्प मोड़ ले रही है. कहानी का ट्रैक पाखी, सई, विराट और सम्राट के इर्द-गिर्द घुम रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा बदलाव आने वाला है. तो आइए बताते हैं कहानी के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि सई और विराट ट्रिप पर गये हुए है. विराट सई को अपने दिल की बात बताने वाला है. ऐसे में वह इस सई से हाल-ए-दिल बयां करने वाला है. लेकिन शो के अपकमिंग एपिसोड में कुछ सा होने वाला है जिससे सई और विराट दूरियां बढ़ जाएंगी.

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शो के अफकमिंग एपिसोड में यह दिखाया जाएगा कि विराट की दोस्त सई के सामने पाखी से उसकी पुरानी रोमांटिक केमेस्ट्री के बारे में बात करेगी. लेकिन जब उसे पता चलता है कि विराट की शादी सई से हुई है तो वह टॉपिक चेंज कर देती है और वहां से चली जाती है.

तो मोहित और शिवानी बात करते हैं कि विराट सई को सरप्राइज देने गया है. उनकी शादी की सालगिरह आने वाला है. पाखी ये बात सुन लेती है और उसका दिल टूट जाता है. वह सोचती है कि विराट ने पूरे परिवार से झूठ बोला और सई को अपनी पहली शादी की सालगिरह मनाने के लिए ले गया है.

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तो वहीं जब विराट और सई, सम्राट से मिलने जाते हैं तो इसी बीच पता चलता है कि सम्राट कुछ अनाथ बच्चों की सेवा करता है. और उसने एक छोटे बच्चे का नाम विराट रखा है.

 

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सई छोटे बच्चों से मिलकर बहुत खुश होती है. छोटा विराट  सई को अपने बड़े भाई सैम के बारे में बताता है, सई उससे मिलने के लिए उत्सुक हो जाती है. इस तरह  सम्राट और सई की मुलाकात होती है. सम्राट सई को पाखी और विराट का सच बताता है.  शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि सई पाखी और विराट को मिलवाने का फैसला करेगी.

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65 साल की उम्र में की शादी, कर्मकांडों में फंसा

दलित समाज  

बाबा साहब अंबेडकर और कांशीराम ने दलित समाज को कर्मकांडों से बाहर निकालने के लिए बहुतेरे उपाय किए थे. बहुजन समाज पार्टी के लोग ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा’ नारा लगाते थे.

बहुजन समाज पार्टी और बामसेफ के कार्यक्रमों में दलित समाज की चेतना को जगाने के लिए तमाम उदाहरण दिए जाते थे कि मूर्तिपूजा और मंदिर जाने से कोई फायदा नहीं होने वाला.

मायावती के भाषण की एक सीडी वायरल हुई थी, जिस में वे कहती हैं कि ‘जो देवीदेवता कुत्तों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते, वे आप की रक्षा कैसे करेंगे?’

बाद में सत्ता के लिए जब मायावती ने अगड़ी जातियों के साथ समझौते किए, तो बसपा का यह मिशन गायब हो गया. तब बसपा का नारा ‘हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’ हो गया. इस का असर दलितों की सोच पर भी पड़ा.

जो दलित समाज 80 के दशक में जिन कर्मकांडों से दूर हो रहा था, अब वही अगड़ी जातियों से बढ़चढ़ कर कर्मकांडी बनने लगा है. अपनी जिस मेहनत की कमाई को उसे अपनी पढ़ाईलिखाई और रहनसहन पर खर्च करना था, उसे वह मंदिरों, कर्मकांडों और पुजारियों पर चढ़ाने लगा.

उस के पास घर बनवाने और अच्छे कपड़े पहनने का समय भले ही न हो, पर वह पूजापाठ और मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाने के लिए पैसे और समय दोनों निकाल ले रहा है.

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अमेठी जिले के गांव खुटहना में 40 साल बिना शादी किए साथसाथ रहने वाले मोतीलाल और मोहिनी देवी को कर्मकांडों के लिए धार्मिक रीतिरिवाज से अपनी शादी करनी पड़ी, जिस में पंडित भी था और पूजा की वेदी भी थी. शादी के मंत्र भी पढ़े गए.

डरासहमा मोतीलाल

इस अनोखी की शादी की जानकारी मिलने के बाद जब यह संवाददाता लखनऊ से तकरीबन 130 किलोमीटर दूर गांव खुटहना में मोतीलाल और मोहिनी देवी से मिलने के लिए पहुंचा तो पता चला कि दुलहन मोहिनी देवी अपने बच्चों के साथ मंदिर  गई हैं. उन के घर में मौजूद लड़की कुछ भी बोलने से मना कर के दरवाजा बंद कर घर के अंदर चली गई.

मोहिनी देवी और मोतीलाल के घर के लोग इस बात से डर रहे थे कि किसी बाहरी और अनजान आदमी से बात करने से उन को कोई नुकसान हो सकता है. परिवार वालों को डर लग रहा था कि बुढ़ापे में शादी कर के उन्होंने कोई गुनाह तो नहीं कर दिया है. कहीं किसी तरह से पुलिस या कानून की कोई दिक्कत पैदा न हो जाए, इस वजह से वे बातचीत करने से मना करने लगे.

जानकारी लेने पर गांव के लोगों  ने बताया कि मोतीलाल गांव से  3 किलोमीटर दूर गोदाम पर काम करने के लिए गए हुए हैं. हम ने वहां जा कर उन से बात करने की योजना बनाई.

यह मालगोदाम जामो ब्लौक के पास था. वहीं मोतीलाल माल ढुलाई का काम करते थे. मोतीलाल को जैसे ही हमारे पहुंचने की सूचना मिली, वे छिप गए.

हम ने लोकल नेताओं और कुछ दबदबे वाले लोगों को अपने साथ लिया, तब मोतीलाल का डर कुछ कम हुआ. हमारे ऊपर उन्हें थोड़ा सा भरोसा हुआ और वे बातचीत के लिए तैयार हुए.

हमारे सामने आते ही मोतीलाल हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘साहब, शादी कर के कोई गलती कर दी क्या, जिस से आप लोग हमें तलाश कर रहे हैं?’’

जब सभी लोगों ने यह कहा कि ‘गलती की कोई बात नहीं है. ‘सरस सलिल’ देश की बड़ी पत्रिका है, उस में तुम्हारी शादी के बारे में छापा जाएगा…’ तब कहीं जा कर वे धीरेधीरे बात करने लगे.

असल में गांव में रहने वाला गरीब, कमजोर और कम पढ़ालिखा आदमी हर किसी से डरता है. उस को लगता है कि कोई उस का गलत फायदा न उठा ले. उसे कानून और अपने हकों की जानकारी नहीं होती. चार लोग जैसा कहने लगते हैं, वह वैसा करने लगता है.

मोतीलाल को जब हमारे ऊपर भरोसा हो गया, तब उन्होंने बुढ़ापे में शादी करने की पूरी वजह बताई.

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65 साल का दूल्हा और 60 साल की दुलहन

गौरीगंज विधानसभा की जामो ग्राम पंचायत के गांव खुटहना में ही मोतीलाल रहते हैं. सुलतानपुरलखनऊ हाईवे से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर जामो ब्लौक और थाना बना है.

जामो में रहने वालों की दिक्कत यह है कि यहां से न तो अमेठी जिला हैडक्वार्टर जाने के लिए कोई सीधी सरकारी बस चलती है और न ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ जाने के लिए बस जाती है.

जामो से जब गौरीगंज जाने वाली सड़क पर चलते हैं, तो 3 किलोमीटर के बाद खुटहना गांव आता है. यहां सभी घर दलितों के पासी जाति से हैं. वहीं के मोतीलाल अचानक सुर्खियों में आ गए.

सुर्खियों की वजह यह थी कि  65 साल के मोतीलाल ने 40 साल एकसाथ रहने के बाद 60 साल की मोहिनी देवी से धार्मिक रीतिरिवाज, ढोलबाजे और बरात ले कर शादी की.

मोहिनी देवी ने रंगबिरंगी साड़ी पहनी थी. मोतीलाल ने भी पाजामा और कमीज पहनी थी. बरात में दूल्हा बने मोतीलाल ने दूसरे बरातियों के साथ डांस भी किया.

बरात मोतीलाल के घर से निकल कर उन के ही घर जानी थी, जो गांव  की संकरी गलियों से होते हुए वापस मोतीलाल के घर पहुंच गई, जहां पूजापाठ कर के और एकदूसरे को फूलों की माला पहना कर बुढ़ापे में शादी की रस्म निभाई.

मोतीलाल और मोहिनी देवी की कहानी रोचक है. तकरीबन 45 साल पहले मोतीलाल की शादी अपनी ही जाति की श्यामा से हुई थी.

शादी के 2 साल के बाद ही श्यामा की मौत हो गई. दोनों के कोई बच्चा नहीं था. मोतीलाल अकेले पड़ गए थे.

मोतीलाल का पड़ोस के गांव मकदूमपुर आनाजाना होता था. वहां  की रहने वाली मोहिनी देवी के साथ उन की जानपहचान हुई. मोहिनी भी गरीब परिवार की थीं. उन के मातापिता से बात कर के मोतीलाल मोहिनी देवी को अपने साथ ले कर गांव आ गए.

उन दोनों के घरपरिवार को कोई दिक्कत नहीं थी. लिहाजा, वे बिना किसी शादी के कर्मकांड के साथ रहने लगे. उन्हें कभी इस बात की जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि वे रीतिरिवाज वाली शादी करें. वे दोनों ही मेहनत करते हुए अपनी जिंदगी गुजारने लगे.

यहां दोनों के पास रहने के लिए झोंपड़ीनुमा घर था. समय के साथसाथ दोनों के 4 बच्चे हो गए. उन में 2 लड़के सुनील कुमार और संदीप कुमार और  2 लड़कियां सीमा और मीरा हैं.

मोतीलाल ने पूरी कोशिश की कि बच्चे पढ़लिख जाएं. पर बच्चे केवल  8वीं जमात से 10वीं जमात तक ही पढ़ सके. मोतीलाल ने सब से पहले अपनी दोनों बेटियों की शादी कर दी. दोनों लड़के भी मेहनतमजदूरी करने लगे.

इस के बाद भी मोतीलाल और उन की पत्नी मोहिनी देवी मेहनतमजदूरी करते हैं, जिस में उन का समय भी कटता है और पैसे भी मिलते हैं.

40 साल एकसाथ रहने के बाद भी मोहिनी देवी और मोतीलाल के संबंधों को धार्मिक मंजूरी नहीं मिली थी. मोहिनी देवी और मोतीलाल दोनों ही अनपढ़ थे. मोतीलाल तो बोझा ढोने की मजदूरी करते थे और मोहिनी देवी खेतीकिसानी के काम में मजदूरी कर के जो समय बचता था, उस में मंदिर जा कर देवी भवानी के दर्शन करतीं और वहां कथाप्रवचन सुनतीं. धर्म के इन प्रवचनों में शादी की अहमियत को बताया जाता था.

मोहिनी देवी को बताया गया कि ‘बिना शादी किए घर के बेटेबेटियों की शादी में होने वाली पूजापाठ का फल नहीं मिलता है. मरने के बाद घरपरिवार का दिया पानी भी नहीं मिलता, इसलिए शादी करना जरूरी हो गया. बिना शादी के हमारे संबंध पवित्र नहीं माने जा रहे थे.’

बिना शादी के किसी को अपनी पत्नी बना कर रखने में औरत को ‘उढरी’ कहा जाता है. मोहिनी देवी को अब लग रहा था कि ‘उढरी’ कहलाना अच्छा नहीं होता है.

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शादीशुदा बनी मोहिनी देवी

40 साल पहले जब मोतीलाल मोहिनी देवी को अपने गांव ले कर आए थे, तो उन के पास शादी में खर्च करने लायक पैसा नहीं था. अपनी बिरादरी को खिलाने के लिए भी पैसे नहीं थे. ऐसे में वे बिना शादी किए ही मोहिनी देवी के साथ रहने लगे थे.

दलित जाति में बिना शादी के साथ रहने वाली औरत को ‘उढरी’ कहा जाता है. दलित जातियों की पंचायतों में नियम था कि अगर बिना शादी के कोई किसी औरत के साथ रह रहा है, तो पंचायत के चौधरी और पंचों को ‘भात’ खिलाना जरूरी होता था.

‘भात’ एक तरह की दावत होती है. जब तक ‘भात’ नहीं खिलाया जाता था, तब तक ‘उढरी’ औरत को शादीशुदा  नहीं माना जाता था. उस के बच्चों को  भी सामाजिक और धार्मिक मंजूरी नहीं मिलती थी. सामाजिक और धार्मिक मंजूरी के अलगअलग मतलब होते हैं. सामाजिक मंजूरी न मिलने के चलते उन के बच्चों के शादीब्याह नहीं हो सकते थे. बिरादरी के लोग उन को दावत में नहीं बुलाते थे.

धार्मिक मंजूरी में यह माना जाता है कि बच्चों के द्वारा किए गए क्रियाकर्म का पुण्य मातापिता को नहीं मिलता था. बहुत सारी दलित चेतना के बाद भी दलितों की रूढि़वादी सोच में अंतर नहीं आया है. आज भी वे धर्म के प्रभाव में हैं. ऐसी ही बातों के प्रभाव में आ  कर मोहिनी देवी ने मोतीलाल से कहा, ‘‘हमें भी शादी कर लेनी चाहिए, तभी हमें कर्मकांडों का हक मिल सकेगा और हमें ‘उढरी’ भी कोई नहीं कह सकेगा.’’

‘श्राद्ध’ और ‘पिंडदान’ का डर

मोहिनी देवी की बात का समर्थन उन के बच्चों ने भी दिया. इस के बाद घरपरिवार के लोगों ने मिल कर शादी का आयोजन किया.

यह शादी कराने वाले तेजराम पांडेय बताते हैं, ‘‘मोतीलाल ने मोहिनी देवी से धार्मिक रीतिरिवाज से शादी नहीं की  थी. धर्म कहता है कि ‘उढरी’ के लड़के मातापिता के मरने के बाद जब उन का श्राद्ध करते हैं, पिंडदान करते हैं, तो वह उन को नहीं मिलता है, जिस से उन को मोक्ष नहीं मिलता. इस बात की जानकारी होने पर अब यह शादी की जा रही है.’’

मरने के बाद होने वाले कर्मकांडों  में श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. समाज में कर्मकांडों को इस तरह से महिमामंडित किया जा रहा है कि  40 साल एकसाथ रहने के बाद मोतीलाल और मोहिनी देवी को शादी का कर्मकांड करना पड़ा. इस से पूरे समाज को यह संदेश देने का काम किया गया कि बिना शादी के साथ रहने को धार्मिक मंजूरी नहीं है. शादी के सहारे धार्मिक कर्मकांडों को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है.

मोहिनी देवी के मन में इस बात को ठूंसठूंस कर भर दिया गया कि जब तक कर्मकांड वाली शादी नहीं होगी, तब तक शादी मानी नहीं जाएगी. शादी करने के बाद ही मोहिनी देवी को पत्नी का दर्जा मिल सका. इस के पहले उन्हें ‘उढरी’ ही माना जा रहा था.

मोतीलाल और मोहिनी देवी पर कर्मकांड का इतना दबाव पड़ा कि उन्हें धार्मिक हिसाब से शादी करनी पड़ी. यह शादी तमाम तरह की रूढि़वादी सोच को उजागर करती है.

अमेठी जिले में तमाम धार्मिक स्थान हैं. पीपरपुर गांव में महर्षि पिप्पलाद का पौराणिक आश्रम है. सिंहपुर ब्लौक में मां अहरवा भवानी, मुसाफिरखाना में मां हिंगलाज देवी धाम, गौरीगंज में मां दुर्गाभवानी देवी, अमेठी में मां कालिकन देवी धाम सती महारानी मंदिर भी हैं.

इन जगहों पर मेले भी लगते हैं. तमाम तरह की मान्यताएं भी हैं. अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दलित औरतें यहां बड़ी तादाद में आती हैं. धार्मिक कहानियों के प्रभाव में वे कर्मकांडों के कहे अनुसार चलने लगती हैं.

यहां के दलित बहुत सारी कोशिशों के बाद भी आगे नहीं बढ़ सके हैं. वे अगड़ी जातियों के पीछे ही चलते रहे हैं. चुनाव लड़ने वाली पार्टी कोई भी रही हो, यहां से जीतने वाले नेता हमेशा ही अगड़ी जातियों के रहते हैं.

अनुपमा-पाखी करेंगे शानदार डांस परफॉर्मेंस तो क्या करेगी काव्या

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly), मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) और सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों  महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. अब तक आपने देखा कि पाखी काव्या के साथ डांस कम्पटीशन में परफार्म करने जा रही है लेकिन ऐन मौके पर काव्या पाखी का साथ छोड़ देती है और वह खुद तैयार होने लगती है. ऐसे में अनुपमा किसी और को भेजकर पाखी की मदद करती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि काव्या अनुपमा (Anupama) को काव्या (Madalsa Sharma) चैलेंज करती है कि वह उसे हरा देगी. इधर अनुपमा की टीम स्टेज पर परफॉर्म करने जाती है और धमाकेदार डांस करती है. दर्शक अनुपमा की टीम का डांस देखकर हैरान रह जाते हैं. तो वहीं पाखी भी शॉक्ड हो जाती है.

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इसी बीच काव्या पाखी को धोखा दे देती है और वहां से भाग जाती है. लेकिन अनुपमा पाखी का मजाक बनने से रोक लेती है. वह दूसरे तरीके से उसका साथ देती है.

 

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या के जाने के बाद पाखी पूरी तरह टूट जाती है.  अनुपमा नहीं चाहती है कि पाखी कम्पटीशन में हारे इसलिए वह उसके पास जाएगी. अनुपमा उसे संभालेगी. इतना ही नहीं, दोनों मां-बेटी स्टेज पर धमाकेदार डांस परफॉर्म करेंगे.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा आखिर काव्या परफॉर्मेंस से पहले कहां गायब हो गई थी?

ओलंपिक: नीरज भारत का “गोल्डन सन”

टोक्यो ओलंपिक 2021 में जिस चीज पर संपूर्ण देश की निगाह थी उसे नीरज चोपड़ा ने देखते ही देखते हासिल कर लिया और संपूर्ण देश की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक दिलाकर भारतीय खेलों के लिए एक नये अध्याय को खोल दिया है.

“ट्रैक एंड फील्ड” मे भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाकर देशवासियों को गौरव करने का अवसर दिया है.मिल्खा सिंह,अंजू बॉबी जॉर्ज,पी टी उषा के सपनों को आगे बढ़ाने और एक नए क्षितिज देने का काम नीरज चोपड़ा के मजबूत देखते ही देखते कर दिखाया है.

सच तो यह है कि जिसका देश को लंबे समय से इंतजार था उसे सच कर दिखाया है.
टोक्यो ओलिंपिक 2021 मे जेवलिन थ्रो मे 87.58 मीटर भाला फेंक कर नीरज चोपड़ा ने भारत का गौरव बढ़ाया है और एक इतिहास रच दिया है.

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दरअसल, अभिनव बिंद्रा के बाद व्यक्तिगत प्रतियोगिताओं मे स्वर्ण पदक लाने वाले दूसरे भारतीय बन गये हैं.नीरज ने क्वालीफाइंग राउंड मे जो बढ़त बनाई वह अद्भुत अकल्पनीय थी. उनका प्रदर्शन सतत रूप से बेहतर उत्कृष्ट था. स्वर्ण मिलने के बाद राष्ट्रगान ने नीरज चोपड़ा के साथ ही सभी भारतीय की आंखे भी नम हो गई.

वस्तुत: पदकों की दृष्टि से टोक्यो ओलिंपिक 2021 का 7 अगस्त यानी 16वां दिन हमारे देश के लिए सबसे ज्यादा खुशी लेकर आया था. भारत के स्टार पहलवान बजरंग पूनिया ने कुश्ती का ब्रॉन्ज मेडल मैच कजाखस्तान के पहलवान को चारों खाने चित कर भारत की झोली मे डाल दिया. साथ ही भारत ने ओलंपिक खेलों में सबसे ज्यादा पदक जीतने के अपने रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है. और फिर आया स्वर्णिम क्षण जब नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक के साथ भारत ने लंदन ओलंपिक खेलों में सर्वाधिक 6 पदक के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए सात पदक का नया रिकार्ड बनाया.

भारत की बेटी अदिति ने भी गोल्फ कोर्स मे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया.

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“गोल्डन सन” पर रुपयों की बरसात

जैसा कि हमारे यहां पुरानी परंपरा है खिलाड़ी जब कमाल दिखाता है तो हम रूपए पैसों से उसे निहाल कर देते हैं. यहां भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. जहां देश के गणमान्य लोगों ने नीरज को बधाई दी बातचीत की, वहीं करोड़ों रुपए की बरसात नीरज चोपड़ा पर होने लगी है.

जो हमें, हमारी खेल दृष्टिकोण पर सोचने पर मजबूर करती है. उस पर हम आगे बात करेंगे. यहां हम आपको बताते चलें कि किस-किस ने कितने करोड रुपए नीरज पर न्योछावर कर दिए हैं.

गोल्ड मेडल जीतने के बाद धन वर्षा का सिलसिला हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुरू किया. नीरज की जीत के बाद मुख्यमंत्री खट्टार ने कहा- इस स्टार खिलाड़ी को राज्य सरकार की तरफ से 6 करोड़ रुपये मिलेंगे. यही नहीं हरियाणा ने चोपड़ा को क्लास-1 की नौकरी भी देने का ऐलान किया है.
हरियाणा के बाद पंजाब पीछे नहीं था मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2 करोड़ रुपए देने का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा कि नीरज चोपड़ा का पंजाब से एक गहरा नाता है, ऐसे में उनका गोल्ड जीतना सभी पंजाबियों के लिए गर्व की बात है.

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मणिपुर की सरकार भी पीछे नहीं रही उसने भी नीरज चोपड़ा को 1 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है. रुपयों की बरसात का यह तो पहला ही दिन था आने वाले समय में हम देखेंगे कि किस तरह नीरज चोपड़ा पर करोड़ों रुपए की और भी बारिश हो रही है. जो उनके लिए जहां देश के प्रेम को दर्शाता है वहीं यह भी प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि अगर खेलों को लेकर के हमारे नियम कायदे और दृष्टि बदल जाए तो हम भी चीन से पीछे नहीं रहेंगे.

गरीबों के लिए कौन अच्छा: मायावती, अखिलेश या प्रियंका?

कांग्रेस हमेशा से राजनीति में सभी जाति, धर्म और गरीब व कमजोर तबके को साथ ले कर चलती रही है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने बीसी, एससी  और कमजोर तबके की राजनीति की है.

भारतीय जनता पार्टी के हिंदू राष्ट्र में गरीब, बीसी तबके और औरतों के लिए जगह नहीं है. राजा के आदेश का  पालन कराने के लिए पुलिस जोरजुल्म करेगी. ‘रामायण’ व ‘महाभारत’ की कहानियां इस की मिसाल हैं, जहां एससी और बीसी को कोई हक नहीं थे.

हिंदू राष्ट्र के सहारे पुलिस राज चलाने का काम किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश इस का मौडल बनता जा रहा है. भाजपा हमेशा से अगड़ी जातियों की पार्टी रही है. वहां जातीय आधार पर एकदूसरे का विरोध होता रहा है.

परेशानी की बात यह है कि कांग्रेस हो या सपा और बसपा, सभी दल अपनी विचारधारा को छोड़ चुके हैं. इन दलों के बड़े नेताओं को सलाह देने वाले लोग भाजपाई सोच के हैं, जिस वजह से वे सही सलाह नहीं दे रहे हैं. नतीजतन, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे दल अब हाशिए पर जा रहे हैं और इन के मुद्दे बेमकसद के लगने लगे हैं.

अमूमन राजनीतिक दलों की अपनी विचारधारा होती है. उस विचारधारा के आधार पर ही उन के नेता चुनावों में जनता के बीच जा कर वोट मांगते हैं, जिस के बाद उस दल की सरकार बनती है और फिर वह दल अपनी विचारधारा के कामों को पूरा करता है.

कांग्रेस की विचारधारा आजादी के पहले से ही सब को साथ ले कर चलने की थी. इसी वजह से जब देश हिंदूमुसलिम के बीच बंट कर भारत और पाकिस्तान बन रहा था, तब कांग्रेस इस पक्ष में थी कि भारत सभी जाति और धर्म के लोगों का देश रहेगा.

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देश में जब पहली सरकार बनी थी, उस समय कांग्रेस के घोर विरोधी दलों में से एक जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गई थी.

भाजपा अब अपने राज में जवाहरलाल नेहरू को ले कर गंदेगंदे आरोप लगा रही है. ऐसी राजनीति कभी भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जवाहरलाल नेहरू ने सोची तक नहीं होगी.

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की तरक्की को अहमियत देने के साथसाथ गरीब और पिछड़ों की  तरक्की को भी अहमियत देने का काम किया था. उस समय ही ऐसे तमाम कमीशन बनाए गए थे, जिन को अपनी रिपोर्ट देनी थी.

जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था. राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे, तो देश में रोजगार को बढ़ाने और नई टैक्नोलौजी को लाने का काम किया गया था. राजीव गांधी के जमाने में ही कंप्यूटर युग की शुरुआत हुई थी.

इस के बाद कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में आर्थिक सुधारों के लिए काफी काम किया था, जिस के बाद निजी सैक्टर में काफी तरक्की हुई थी.

10 साल की डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार ने मनरेगा योजना के तहत लोगों को ‘रोजगार की गारंटी’ दी. गरीबों की मदद के लिए ‘मिड डे मील’ योजना शुरू की. जब पूरी दुनिया में आर्थिक तंगी थी, उस समय भारत बेहतर हालत में था.

कांग्रेस सरकार में गरीबों को मदद करने की तमाम योजनाएं चली थीं, पर उस का बो झ टैक्स देने वाले पर इतना नहीं पड़ा था कि वह टूट जाए.

भ्रष्टाचार और काले धन के खात्मे के नाम पर सत्ता में आई मोदी सरकार नोटबंदी, जीएसटी और तालाबंदी की ऐसी योजनाएं ले कर आई कि गरीब की मदद तो दूर उन की रोजीरोटी तक चली गई. मोदी सरकार के ऐसे फैसलों से महंगाई और बेरोजगारी सब से ज्यादा बढ़ गई. देश का विकास सब से नीचे स्तर पर पहुंच गया.

सरकारी कंपनियों को विनिवेश के नाम पर बेचने का काम सब से ज्यादा किया जा रहा है. सरकार की पौलिसी में गरीब कहीं नजर नहीं आते हैं. केंद्र के स्तर पर देखें, तो कांग्रेस ने ही गरीबों और मध्यम तबके के लिए सब से ज्यादा काम किया. यही वजह थी कि उस दौर में महंगाई और बेरोजगारी सब से कम थी.

कांग्रेस में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की नीतियां गरीब और पिछड़ों की मदद करने वाली लग रही हैं. जिस तरह से राहुल गांधी ने एससी और गरीबों का आत्मबल बढ़ाने के लिए उन के घरों में साथ बैठ कर खाना खाने की शुरुआत की, उस से भाजपा के बड़े नेता भी उसी राह पर चलने को मजबूर हुए.

लाभकारी रही समाजवादी योजनाएं

अखिलेश सरकार ने अपने कार्यकाल  में समाजवादी विचारधारा की कई ऐसी योजनाएं शुरू की, जिन से गरीबों को लाभ हुआ. गांव के गरीब बच्चों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन को पढ़ने के लिए लैपटौप मिल सकेंगे. 12वीं जमात पास करने वाले बच्चों के हाथों में लैपटौप पहुंचना किसी चमत्कार से कम नहीं था.

इस के साथसाथ बेरोजगारी भत्ता सब से ज्यादा मिला, जिस की शुरुआत समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल में की थी. उस समय जिस ने भी रोजगार दफ्तर में अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया था, उसे 500 रुपए प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता मिलने लगा था.

मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के दौर में रोजगार दफ्तरों के सामने रजिस्ट्रेशन कराने के लिए लगी लंबीलंबी लाइनें बताती थीं कि योजना का लाभ किस तरह लोगों तक पहुंच  रहा है.

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अखिलेश सरकार ने गांवगांव एंबुलैंस सेवा और आशा बहुओं के जरीए गरीबों की मदद करने का काम किया. गांवगांव विधवा पैंशन पहुंचाने का काम किया गया. इस से गरीब और कमजोर लोगों की मदद होती रही. समाजवादी पार्टी ने प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर भी एससी तबके का साथ दिया.

युवा सलाहकारों की टीम

अखिलेश यादव के पास 5 युवा नेताओं की सलाहकार टीम है. इन में सुनील साजन, राजपाल कश्यप, सोनू यादव, अभिषेक मिश्रा और अनुराग भदौरिया प्रमुख हैं.

ये सभी मुलायम सिंह यादव की पुरानी समाजवादी विचारधारा के नहीं हैं. इन की खासीयत यह है कि ये सभी अखिलेश यादव के बेहद भरोसेमंद और हमउम्र हैं.

अखिलेश यादव सरकार में ये खास ओहदों पर रहे हैं. इस वजह से अखिलेश यादव इन पर पूरा भरोसा करते हैं. इन की सलाह पर वे काम भी करते हैं.

इन नेताओं की सलाह विचाराधारा से ज्यादा इस बात पर होती है कि चुनाव कैसे लड़ा जाए. किस तरह के लोगों को पार्टी में जोड़ा जाए. लोगों तक पहुंचने की रणनीति क्या हो.

इन सलाहकारों में से ज्यादातर लोग मायावती के साथ चुनावी गठबंधन नहीं करना चाहते थे. दरअसल, अखिलेश यादव के तमाम सलाहकार भाजपाई सोच के हैं, जहां समाजवादी विचारधारा का कोई मतलब नहीं रह गया है. यह बात केवल चुनावी भाषण बन कर रह गई है.

समाजवादी पार्टी में चाचाभतीजे की लड़ाई में भी सलाहकारों का अहम रोल था. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की पार्टी के साथ भी चुनावी तालमेल को ये लोग पसंद नहीं कर रहे हैं. पंचायत चुनावों में जिस तरह का काम समाजवादी पार्टी ने किया है, उस में इन युवा सलाहकारों का अहम रोल रहा है.

समाजवादी पार्टी की नेता विभा शुक्ला कहती हैं, ‘‘समाजवादी पार्टी ने हमेशा ही गरीब और कमजोर लोगों की मदद की है. तमाम सरकारी योजनाएं छोटे कारोबारियों को ले कर बनाई गई थीं. भाजपा सरकार ने जीएसटी, नोटबंदी और तालाबंदी के जरीए कारोबारियों को अलगअलग तरह से परेशान किया. लोग अपना कारोबार बंद कर घरों में बैठ गए. ऐसे लोग अब यह कहते हैं कि समाजवादी सरकार हर किसी का खयाल रखती थी.

‘‘भाजपा के बारे में कहा जाता था कि वह कारोबारियों की सरकार है, पर भाजपा के समय में ही कोराबारी सब से ज्यादा परेशान हैं. यही नहीं, समाजवादी सरकार ने गरीब और कमजोर तबके के लिए जो भी योजनाएं चलाई थीं, उन को बंद कर दिया गया, जिस में बेरोजगारी भत्ता सब से बड़ा उदाहरण है.

‘‘समाजवादी सरकार के समय चलाई गई तमाम योजनाओं के नाम बदल दिए गए. गरीब और कमजोर लोगों की मदद करने का जो सपना समाजवादी पार्टी ने देखा, वह किसी और ने नहीं देखा.’’

महिला नेता रजिया नवाज कहती हैं, ‘‘समाजवादी पार्टी केवल दिखावे के लिए नहीं कहती है कि वह गरीब और कमजोर लोगों के लिए काम करती है. वह जमीनी लैवल पर कर के दिखाती है.

‘‘पिछले 7 साल में मोदी सरकार की हर बात केवल सफेद  झूठ ही रही है. चाहे बात किसानों की कमाई दोगुनी करने की हो, खेती में लागत मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात हो, फसल बीमा योजना की बात हो, सूखे और आपदा में किसानों और गरीबों की मदद की बात हो, खाद, बीज, डीजल, पैट्रोल के कीमत की बात हो, हर बात केवल दिखाने के लिए रही है. जिस बात का वादा नहीं किया था, वे कृषि बिल किसानों को बरबाद करने के लिए जरूर ला दिए गए.’’

मायावती ने दिलाया गरीबों और कमजोरों को सम्मान

बहुजन समाज पार्टी ने दलित चेतना जगाने और उन को एकजुट कर के राजनीतिक ताकत बनाने का काम शुरू किया था, जिस में पार्टी कामयाब भी रही. गरीब, कमजोर और मजलूम तबके की लड़ाई में उस के साथ खड़े होने के लिए राजनीतिक ताकत बनने के लिए बसपा ने सत्ता में भागीदारी की.

बसपा नेता मायावती साल 1995 से ले कर साल 2007 के बीच 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. मायावती ने दलित ऐक्ट को ले कर असरदार ढंग से काम किया, जिस से इस तबके की सुनवाई थाने और तहसील में होने लगी. एससी और कमजोर तबके के साथ भेदभाव कम हो गया और उसे इंसाफ भी मिलने लगा.

मायावती साल 1995 से ले कर साल 2003 तक जब भी मुख्यमंत्री रहीं, कभी पार्टी के सिद्धांतों ने कोई किनारा नहीं किया था. कांशीराम के बाद मायावती ने बसपा को अपने हिसाब से चलाया. उन्होंने साल 2007 के विधानसभा चुनाव के समय ही दलितब्राह्मण गठजोड़ को आगे किया.

अचानक बसपा में ब्राह्मणों का दबदबा ऐसे बढ़ गया कि बसपा का नाम लोगों ने ‘ब्राह्मण समाज पार्टी’ कहना शुरू कर दिया.

ब्राह्मणों के दबाव में बसपा के मूल नेता पार्टी से बाहर किए जाने लगे. बसपा के मूल कैडर के कार्यकर्ता अनदेखी का शिकार होने लगे. खुद मायावती ने बसपा मूल के नेताओं को पार्टी से बाहर करना शुरू कर दिया. इस के बाद उन को खुद अपनी ताकत पर भरोसा नहीं रह गया. नतीजतन, पहले मायावती ने अखिलेश यादव से सम झौता किया और अब बसपा भाजपा की ‘बी टीम’ कही जाने लगी है.

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पार्टी से ज्यादा अहम हो गया परिवार

मायावती की दिक्कत यह रही कि पार्टी में कांशीराम के समय से जुटे नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया. मायावती का अपने परिवार पर भरोसा बढ़ गया. वे अपने भाई आनंद कुमार के साथसाथ भतीजे आकाश आनंद की सलाह पर चलने लगीं.

परिवार से बाहर अभी भी मायावती का सब से ज्यादा भरोसा सतीश चंद्र मिश्रा पर है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि सतीश चंद्र मिश्रा पार्टी के नेता और पदाधिकारी से ज्यादा जिम्मेदारी मायावती के तमाम मुकदमों की उठा रहे हैं.

मायावती को पता है कि यह जिम्मेदारी दूसरा कोई नहीं उठा सकता है. ऐसे में वे सतीश चंद्र मिश्रा को अपने साथ रखने के लिए मजबूर हैं. वे उन की सलाह पर ही काम करती हैं. दलितों को ले कर बसपा की नीतियों में जो बदलाव दिख रहा है, उस के लिए सतीश चंद्र मिश्रा की सलाह बेहद अहम रही है.

भाजपा को यह पता था कि अगर एससी और बीसी एकसाथ खड़े होंगे तो उस का नुकसान होगा. ऐसे में भाजपा ने मायावती में महत्त्वाकांक्षा को पैदा कर इन तबकों में दूरी पैदा कर दी. ऐसे में भाजपा अपनी ताकत खत्म होने से बचा ले गई.

मायावती भाजपा के पक्ष में खड़ी दिखने भले ही लगी हों, पर जो चेतना उन्होंने एससी तबके में जगाई, वह अब भाजपा के लिए मुसीबत की वजह बन रही है. भाजपा इस का मुकाबला करने के लिए एससी और बीसी जातियों में दूरी पैदा करने के बाद इन की उपजातियों मे दरार डाल कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है.

विश्व शूद्र महासभा के अध्यक्ष चौधरी जगदीश पटेल कहते हैं, ‘‘मायावती ने अपने कार्यकाल में जिस तरह से भ्रष्टाचार किया, उस की वजह से वे भाजपा से दबने लगी हैं. इस के बाद भी दलित बिरादरी स्वाभिमान के लिए कांशीराम और मायावती ने बाबा साहब की नीतियों को जिस तरह से आगे बढ़ाने का काम किया था, वह बहुत अच्छा था.

‘‘आज दलित भेदभाव का पहले जैसा शिकार नहीं रह गया है. वह अपने रीतिरिवाज से सम झौते नहीं कर रहा. ग्राउंड लैवल पर भले ही एकदम बदलाव न आया हो, पर अब पहले जैसी छुआछूत की भावना नहीं रह गई है. ऐसे मे दलित और गरीबों की आवाज उठाने में बसपा का प्रमुख रोल है.

‘‘मायावती के काम आज कैसे भी हों, पर पहले जैसा सुलूक करना अब मुमकिन नहीं है. दलितों के तमाम तबकों में अपनी आवाज उठाने वाले लोग उठ खड़े हुए हैं, जिस का श्रेय बसपा को ही जाता है.’’

हिंदू राष्ट्र बन जाएगा पुलिस राष्ट्र

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा इस काम में कामयाब रही है. उस ने अपने हिंदुत्व के कार्ड को आगे कर दिया, जिस की वजह से उसे भारी वोटों से जीत मिली. 7 सालों में देश के लोग यह सम झ रहे हैं कि गरीबों के लिए कौन अच्छा काम कर रहा था?

जनता के सामने हिंदुत्व का कार्ड और विकास का गुजरात मौडल फेल होता दिख रहा है. ऐसे में जनता विचार कर रही है कि गरीबों के लिए कौन सब से ज्यादा अच्छा है?

साल 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने कई राज्यों का चुनाव जीता और साल 2019 में दोबारा लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा मोदीमय हो गई. अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने हिंदू राष्ट्र के सपने को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. उत्तर प्रदेश इस के मौडल के रूप में विकसित होता जा रहा है.

साल 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के मुकाबले हार का मुंह देखने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भाजपा पर हावी होने का मौका मिल गया.

भाजपा में अंदरूनी कलह के बहाने संघ ने अपने तमाम पदाधिकारियों को भाजपा में स्थापित कर दिया. अब संघ के लोग भाजपा में सलाहकार की भूमिका निभाने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश में भाजपा में मोदी और योगी के गुट को सलाह देने के नाम पर संघ ने एक अपनी पूरी टीम यहां लगा दी है. संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रय होसबले को लखनऊ में बैठने के लिए कह दिया गया. संघ में ऐसे लोगों को जिम्मेदारी वाले पद दिए गए, जो उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले हैं. इन में आलोक कुमार, महेंद्र कुमार, धनीराम, धर्मेंद्र और विनोद प्रमुख हैं.

संघ का यह दावा पूरी तरह से  झूठ है कि वह राजनीति नहीं करता है. संघ अभी तक भाजपा की आड़ में राजनीति करता था, पर पश्चिम बंगाल चुनाव में हार के बाद वह खुल कर भाजपा के सहारे राजनीति करने लगा है. संघ को लगता है कि अगर इस समय भाजपा पर कब्जा नहीं किया गया, तो मोदीशाह की जोड़ी के कब्जे से भाजपा को मुक्त कराना आसान नहीं होगा.

आने वाले विधानसभा चुनाव और साल 2024 के लोकसभा चुनाव तक संघ अपना प्रभाव भाजपा में इस तरह बढ़ा लेना चाहता है कि फिर भाजपा संघ के किसी आदेश को मानने से इनकार न कर सके. संघ यह सोच रहा है कि जब तक भाजपा संघ के पूरी तरह कब्जे में नहीं आएगी, तब तक देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता है.

संघ के हिंदू राष्ट्र में गरीबों और महिलाओं की हालत कैसी होगी, यह सभी को सम झ आ रहा है. महिलाओं को ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के सिद्धांतों पर चलने को मजबूर किया जाएगा. लव जिहाद के नाम पर ऐसा किया जा रहा है. एक तरह से यह कहा जा रहा है कि अपने मनपसंद जीवनसाथी का चुनाव महिलाएं नहीं कर पाएंगी.

इस के अलावा जनसंख्या कानून, नागरिकता कानून बनाने से जनता के अधिकार सीमित किए जा रहे हैं. सरकारी नीतियों का विरोध करने वालों की जबान को पुलिस के सहारे बंद करने की कोशिश की जा रही है. हिंदू राष्ट्र एक तरह से पुलिस राष्ट्र की तरह बनता जा रहा है, जहां राजा का आदेश ही लोकतंत्र माना जाएगा.

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