ओलिंपिक खेलों में शिरकत करना इज्जत और गौरव की बात है. ऐसे में अगर वंदना कटारिया और दूसरी महिला खिलाड़ी हौकी के सैमीफाइनल मुकाबले में अच्छा खेल नहीं दिखा पाईं, तो क्या किसी एक खिलाड़ी को उस की जाति को ले कर उसे या उस के परिवार वालों को गाली दी जानी चाहिए या फिर खिलाड़ी का जोश बढ़ाना चाहिए?

दरअसल, खिलाड़ी हमारे देश के गौरव हैं और खेल में हारजीत तो होती ही रहती है. इस के अलावा खेल को खेल भावना के साथ अंजाम देने की नसीहत भी दी जाती है. ऐसे में अगर 2-4 लोग बेकाबू हो कर किसी खिलाड़ी के घर के सामने ऊलजुलूल नारेबाजी करने लगें, तो यह बात पूरे देश के लिए शर्मनाक है. ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जाना चाहिए.

इस से यह भी साबित होता है कि अभी भी हमारे देश के बहुत से इलाकों में जातपांत की छोटी सोच रखते हुए लोग अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं.

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मामला कुछ यूं है कि जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल और घर के सामने पटाके जला कर बेइज्जती करने के सिलसिले में पुलिस ने 5 अगस्त, 2021 को हरिद्वार जिले के रोशनाबाद इलाके में एक आदमी को गिरफ्तार कर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जो एक सबक हो सकता है कि अब हमें जातपांत के भेदभाव से ऊपर उठना चाहिए.

हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के मुताबिक, हौकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के भाई चंद्रशेखर कटारिया की शिकायत पर कार्यवाही करते हुए पुलिस ने मामले में 3 नामजद समेत दूसरे अज्ञात आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर एक शख्स को गिरफ्तार किया. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया.

जातिगत गालियां हैं शर्मनाक

सच तो यह है कि आप किसी की न तो बेइज्जती कर सकते हैं और न ही गाली दे सकते हैं. भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत यह संज्ञेय अपराध है. ऐसे में जातिगत गालीगलौज तो और भी गंभीर अपराध के रूप में गिना जाएगा. अब भारतीय हौकी टीम की एक खास खिलाड़ी, जिस ने बहुत ही अच्छे तरीके से अपना खेल दिखाया और एक बड़ा प्रशंसक वर्ग देश में हासिल किया, उस के घर के सामने सैमीफाइनल मुकाबले में हार जाने के चलते पटाके जलाना और परिवार वालों के साथ गालीगलौज करना यह दिखाता है कि आज भी हमारे समाज में कितनी छोटी सोच के लोग सीना तान कर और कानून को आंखें दिखा कर रोब गांठ रहे हैं.

ऐसा मालूम होता है कि हमारे देश में कानून और पुलिस प्रशासन का डर तो मानो खत्म होता चला जा रहा है. यही वजह है कि ओलिंपिक खेलों में शिरकत कर रही एक खिलाड़ी के परिवार वालों को बेइज्जत होना पड़ा.

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दरअसल, हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है. हमें यह समझना चाहिए कि अगर ओलिंपिक खेलों के ऐतिहासिक मंच पर भारत की कोई बेटी अपना प्रदर्शन दिखा रही है तो यकीनन वह अपनी पूरी ताकत और निष्ठा के साथ देश के लिए खेल रही है और हमें उस की हौसलाअफजाई करनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो इस से जहां एक तरफ खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ेगा, वही इंटरनैशनल मीडिया में भी भारत की इमेज किस तरह पेश होगी, इस की कल्पना आसानी से की जा सकती है.

ऊंची जाति, नीची जाति

देश के सामाजिक हालात की सचाई यह है कि वर्तमान में जातियों का दबदबा खत्म होता चला जा रहा है. अब जातियां आज से 25 साल पहले के कट्टर और कठोर हालात में नहीं दिखती हैं. इस सब के बावजूद अगर ऐसी वारदातें सामने आ रही हैं, तो यह चिंता का सबब है.

यह भी सच है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलों के सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय महिला हौकी टीम भले ही हार गई थी, लेकिन उस के बाद कांस्य पदक जीतने के लिए उसने जो जोर लगाया था और ग्रेट ब्रिटेन को पसीना ला दिया था, उस का जवाब नहीं था. पदक चूकने के बाद भी पूरा देश उन की हौसलाअफजाई कर रहा था और उन की खेल भावना के उत्सव से सराबोर था.

ऐसे शानदार माहौल में महिला हौकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिवार का आरोप‌ देशवासियों के लिए एक गंभीर मुद्दा बन कर सामने आया है. जो लोग यह सोचते हैं कि भारतीय टीम की इसलिए हार हुई, क्योंकि टीम में जरूरत से ज्यादा दलित खिलाड़ी हैं, तो ऐसी छोटी सोच रखने वाले लोगों से यह सवाल पूछना चाहिए कि जब वे खुद ओलिंपिक खेलों में भाग नहीं ले पा रहे हैं, तो क्या इस का ठीकरा उन की ऊंची जाति के सिर पर फोड़ा जाना चाहिए?

ऊंची या नीची जाति कुछ नहीं होती. यह सब हमारी छोटी सोच का नतीजा है और यही बात हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट भी है.

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