भोजपुरी एक्ट्रेस Akshara Singh ने एक्स बॉयफ्रेंड पवन सिंह को लेकर किया बड़ा खुलासा, पढ़ें खबर

भोजपुरी इंडस्ट्री फेमस एक्ट्रेस अक्षरा सिंह सुर्खियों में छायी हुई है. एक्ट्रेस इन दिनों बिग बौस OTT में नजर आ रही हैं. हर सीजन की तरह इस बार भी बिग बॉस हाउस में कंटेस्टेंट के बीच लड़ाई शुरू हो गई है. अक्षरा सिंह ने Bigg Boss OTT में जाने से पहले अपने एक्स-बॉयफ्रेंड और भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह को लेकर बड़ा बयान दिया था. आइए बताते हैं एक्ट्रेस ने क्या कहा है.

एक इंटरव्यू के अनुसार अक्षरा सिंह ने अपने एक्स-बॉयफ्रेंड पवन सिंह के साथ अएपने रिलेशनशिप को लेकर बड़ा खुलासा किया है. रिपोर्ट के अनुसार एक्ट्रेस ने कहा कि पता नहीं क्यों, लोग अक्सर मेरा नाम को-स्टार्स के साथ जोड़ देते हैं.

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अक्षरा सिंह ने कहा, लोग अक्सर मेरा नाम को-स्टार्स के साथ जोड़ देते हैं

अक्षरा सिंह ने आगे कहा कि मैं किसी के साथ फिल्म या गाना करती हूं तो वे सोचते हैं कि मेरा उस व्यक्ति के साथ अफेयर चल रहा है. बताया जा रहा है कि एक्ट्रेस ने ये भी कहा कि हैरानी की बात यह है कि कोई भी मुझसे नहीं पूछता है कि क्या मैं उस व्यक्ति के साथ रिलेशनशिप में हूं?

 

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अक्षरा सिंह ने एक्स बॉयफ्रेंड पवन कुमार सिंह को लेकर किया खुलासा

खबरों के अनुसार अक्षरा सिंह ने एक्स बॉयफ्रेंड पवन कुमार सिंह को लेकर भी बड़ा खुलासा किया. उन्होंने कहा कि उनके साथ मेरा एक्सपीरियंस ऐसा था जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती. कंट्रोवर्सी के बाद हम दोनो अलग हो गए और हमारे बीच सब कुछ खत्म हो गया है. मैं काफी समय पहले ही इन चीजों से बाहर निकाल चुकी हूं.

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मेरी खातिर- भाग 1: माता-पिता के झगड़े से अनिका की जिंदगी पर असर

राइटर- मेहर गुप्ता

‘‘निक्की तुम जानती हो कि कंपनी के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं. मैं छोटेछोटे कामों के लिए बारबार बौस के सामने छुट्टी के लिए मिन्नतें नहीं कर सकता हूं. जरूरी नहीं कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ चलूं. तुम अकेली भी जा सकती हो न. तुम्हें गाड़ी और ड्राइवर दे रखा है… और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

‘‘चाहती? मैं तुम्हारी व्यस्त जिंदगी में से थोड़ा सा समय और तुम्हारे दिल के कोने में अपने लिए थोड़ी सी जगह चाहती हूं.’’

‘‘बस शुरू हो गया तुम्हारा दर्शनशास्त्र… निकिता तुम बात को कहां से कहां ले जाती हो.’’

‘‘अनिकेत, जब तुम्हारे परिवार में कोई प्रसंग होता है तो तुम्हारे पास आसानी से समय निकल जाता है पर जब भी बात मेरे मायके

जाने की होती है तो तुम्हारे पास बहाना हाजिर होता है.’’

‘‘मैं बहाना नहीं बना रहा हूं… मैं किसी भी तरह समय निकाल कर भी तेरे घर वालों के हर सुखदुख में शामिल होता हूं. फिर भी तेरी शिकायतें कभी खत्म नहीं होती हैं.’’

‘‘बहुत बड़ा एहसान किया है तुम ने इस नाचीज पर,’’ मम्मी के व्यंग्य पापा के क्रोध की अग्निज्वाला को भड़काने का काम करते थे.

‘‘तुम से बात करना ही बेकार है, इडियट.’’

‘‘उफ… फिर शुरू हो गए ये दोनों.’’

‘‘मम्मा व्हाट द हैल इज दिस? आप लोग सुबहशाम कुछ देखते नहीं… बस शुरू हो जाते हैं,’’ आंखें मलते हुए अनिका ने मम्मी से कहा.

‘‘हां, तू भी मुझे ही बोल… सब की बस मुझ पर ही चलती है.’’

पापा अंदर से दरवाजा बंद कर चुके थे, इसलिए मुझे मम्मी पर ही अपना रोष डालना पड़ा था.

अनिका अपना मूड अच्छा करने के लिए कौफी बना, अपने कमरे की खिड़की के पास जा खड़ी हो गई. उस के कमरे की खिड़की सामने सड़क की ओर खुलती थी, सड़क के दोनों तरफ  वृक्षों की कतारें थीं, जिन पर रात में हुई बारिश की बूंदें अटकी थीं मानो ये रात में हुई बारिश की चुगली कर रही हों. अनिका उन वृक्षों के हिलते पत्तों को, उन पर बसेरा करते पंछियों को, उन पत्तियों और शाखाओं से छन कर आती धूप की उन किरणों को छोटी आंखें कर देखने पर बनते इंद्रधनुष के छल्लों को घंटों निहारती रहती. उसे वक्त का पता ही नहीं चलता था. उस ने घड़ी की तरफ देखा 7 बज गए थे. वह फटाफटा नहाधो कर स्कूल के लिए तैयार हो गई. कमरे से बाहर निकलते ही सोफे पर बैठे चाय पीते पापा ने ‘‘गुड मौर्निंग’’ कहा.

‘‘गुड मौर्निंग… गुड तो आप लोग मेरी मौर्निंग कर ही चुके हैं. सब के घर में सुबह की शुरुआत शांति से होती पर हमारे घर में टशन और टैंशन से…’’ उस ने व्यंग्यात्मक लहजे में अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘चलिए बाय मम्मी, बाय पापा. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’

‘‘पर बेटे नाश्ता तो करती जाओ,’’ मम्मी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाते हुए बोली.

‘‘सुबह की इतनी सुहानी शुरुआत से मेरा पेट भर गया है,’’ और वह चली गई.

अनिका जानती थी अब उन लोगों के बीच इस बात को ले कर फिर से बहस छिड़ गई होगी कि सुबह की झड़प का कुसूरवार कौन है. दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने पर तुल गए होंगे. शाम को अनिका देर से घर लौटी. घर जाने से बेहतर उसे लाइब्रेरी में बैठ कर

पढ़ना अच्छा लगा. वैसे भी वह उम्र के साथ बहुत एकांतप्रिय और अंतर्मुखी बनती जा रही थी. घर में तो अकेली थी ही बाहर भी वह ज्यादा मित्र बनाना नहीं सीख पाई.

‘‘मम्मी मेरा कोई छोटा भाईबहन क्यों नहीं है? मेरे सिवा मेरे सब फ्रैंड्स के भाईबहन हैं और वे लोग कितनी मस्ती करती हैं… एक मैं ही हूं… बिलकुल अकेली,’’ अनगिनत बार वह मम्मी से शिकायत कर अपने मन की बात कह चुकी थी.

‘‘मैं हूं न तेरी बैस्ट फ्रैंड,’’ हर बार मम्मी यह कह कर अनिका को चुप करा देतीं. अनिका अपने तनाव को कम करने और बहते आंसुओं को छिपाने के लिए घंटों खिड़की के पास खड़ी हो कर शून्य को निहारती रहती.

घर में मम्मीपापा उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. दरवाजे की घंटी बजते ही दोनों उस के पास आ गए.

‘‘आज आने में बहुत देर कर दी… फोन भी नहीं उठा रही थी… कितनी टैंशन हो गई थी हमें,’’ कह मम्मी उस का बैग कंधे से उतार कर उस के लिए पानी लेने चली गई.

‘‘हमारी इन छोटीमोटी लड़ाइयों की सजा तुम स्वयं को क्यों देती हो,’’ ?पापा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘किस के मम्मीपापा ऐसे होंगे, जिन के बीच अनबन न रहती हो.’’

‘‘पापा, इसे हम साधारण अनबन का नाम तो नहीं दे सकते. ऐसा लगता है जैसे आप दोनों रिश्तों का बोझ ढो रहे हो. मैं ने भी दादू, दादी, मां, चाची, चाचू, बूआ, फूफाजी को देखा है पर ऐसा अनोखा प्रेम तो किसी के बीच नहीं देखा है,’’ अनिका के कटाक्ष ने पापा को निरुत्तर कर दिया था.

‘‘बेटे ऐसा भी तो हो सकता है कि तुम अतिसंवेदनशील हो?’’

पापा के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय उस ने पापा से पूछा, ‘‘पापा, मम्मी से शादी आप ने दादू के दबाव में आ कर की थी क्या?’’

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शिवानी वर्मा आगरा के सब से पुराने और मशहूर आगरा कालेज से बीएससी कर रही थी. पिता रविंद्र वर्मा फार्मासिस्ट थे और मां ऊषा घर संभालती थीं. उस के 2 भाई थे सचिन और शिवम. रविंद्र वर्मा का थाना सदर की ओम एन्क्लेव कालोनी में काफी अच्छा मकान था.

कुल मिला कर उन का छोटा और खुशहाल परिवार था. रविंद्र वर्मा शिवानी को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, ताकि उसे अच्छी नौकरी मिल सके. शिवानी भी मन लगा कर पढ़ रही थी. अचानक उस के साथ कुछ ऐसा घटा कि रविंद्र के सारे सपने धरे के धरे रह गए.

आगरा कालेज से ही शाहगंज के शंकरगढ़ का रहने वाला गौरव बीए कर रहा था. कालेज में कभी मुलाकात होने से शिवानी की गौरव से दोस्ती हो गई. कालेज में दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती थीं.

गौरव गरीब घर का जरूर था, लेकिन पढ़ने में ठीकठाक था. उस के पिता रामस्नेही घर के बाहर फल का ठेला लगाते थे. उस के घर एक भैंस भी थी, जिस की देखभाल उस की मां करती थीं. भैंस के दूध से भी कुछ कमाई हो जाती थी. गौरव का एक भाई और 2 बहनें थीं.

शिवानी और गौरव जब भी मिलते, देर तक बातचीत करते थे. गौरव अपना कैरियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था. लेकिन लगातार मिलने से उन के बीच प्यार की कोपलें फूटने लगीं. उन्हें महसूस होने लगा कि वे एकदूसरे को चाहने लगे हैं, वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

लेकिन गौरव के दिल में एक बात खटकती थी कि वह दूसरी जाति का है. जब शिवानी को उस की हकीकत पता चलेगी तो कहीं वह मुंह न मोड़ ले. इस की एक वजह यह थी कि उस की जाति शिवानी की जाति से निम्न थी.

आगे कुछ गड़बड़ न हो, यह जानने के लिए एक दिन गौरव ने शिवानी से कहा, ‘‘शिवानी, हम दोनों एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं, यह सिर्फ हम ही जानते हैं. पर आज मैं तुम्हें अपनी हकीकत बताना चाहता हूं. शिवानी मेरी जाति तुम से अलग है. कहीं तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी?’’

गौरव की बात सुन कर शिवानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘गौरव, तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं ने तुम से प्यार किया है न कि तुम्हारी जाति से. तुम किस जाति के हो, किस धर्म के हो, मुझे कोई मतलब नहीं है. मैं सिर्फ तुम से प्यार करती हूं.’’

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शिवानी की बात सुन कर गौरव ने उसे सीने से लगा कर कहा, ‘‘शिवानी अब हमारे प्यार में कितनी भी बाधाएं आएं, मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूंगा. मैं मरते दम तक तुम्हारा साथ दूंगा.’’

जवाब में शिवानी ने भी कहा, ‘‘हमारे प्यार की राह में समाज, परिवार या कोई भी आए, मैं इस प्यार की खातिर सब को छोड़ दूंगी, पर तुम्हें नहीं छोड़ूंगी.’’

शिवानी के इरादे भले ही मजबूत थे, पर गौरव निश्चिंत नहीं था. कालेज के साथियों को गौरव के प्यार की खबर लगी तो किसी ने यह खबर शिवानी के पिता को दे दी. रविंद्र वर्मा को बेटी के प्यार का पता चला तो वह परेशान हो उठे. उस दिन शिवानी कालेज से लौटी तो उन्होंने पूछा, ‘‘शिवानी, आजकल तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं, कहीं और ही भटक रहा है?’’

‘‘क्या मतलब पापा?’’ शिवानी ने बेचैनी से पूछा.

‘‘मतलब कि तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. बेटा, मैं ने तो सोचा था कि तुम मन लगा कर पढ़ाई करोगी, जिस से कोई ढंग की नौकरी मिल जाएगी, उस के बाद हम तुम्हारी शादी कर देंगे.’’

‘‘पापा, पहले पढ़ाई तो पूरी हो जाए, शादी की बात बाद में सोचेंगे.’’ शिवानी ने कहा.

अचानक रविंद्र ने गुस्से में पत्नी से कहा, ‘‘ऊषा, इस लड़की को संभालो. आजकल इस की दोस्ती कालेज के लड़कों से कुछ ज्यादा ही हो गई है. कहीं ऐसा न हो हम धोखा खा जाएं.’’

शिवानी समझ गई कि पापा को गौरव के बारे में पता चल गया है, इसलिए बिना कुछ कहे वह अपने कमरे में चली गई. इस के बाद ऊषा और रविंद्र काफी देर तक बातें करते रहे. ऊषा ने पति को आश्वासन दिया कि वह शिवानी को समझाएंगी कि फालतू के चक्करों में न पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे.

शिवानी कमरे से ही मम्मीपापा की बातें सुन रही थी. उन की बातों से वह समझ गई कि अब मम्मीपापा उस पर बंदिशें लगाएंगे. उस ने गौरव को फोन कर के कह दिया कि अब वह थोड़ा सतर्क रहे, क्योंकि घर वालों को उन के संबंधों की जानकारी हो गई है.

अगले दिन शिवानी कालेज जाने के लिए तैयार हो रही थी तो ऊषा ने कहा, ‘‘अब तुम्हें कालेज जाने की क्या जरूरत है, जब तुम्हारा पढ़ाई में मन ही नहीं लग रहा तो घर बैठो.’’

‘‘मम्मी, आप लोग गलत सोच रहे हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं अपनी पढ़ाई को ले कर पूरी तरह गंभीर हूं.’’ शिवानी ने कहा.

‘‘बेटा, मैं जो कह रही हूं, तुम्हारे भले के लिए कह रही हूं. समझो या न समझो, तुम्हारी मरजी.’’ ऊषा ने कहा.

‘‘ठीक है मम्मी, अब मैं कालेज जाऊं?’’ कह कर शिवानी कालेज चली गई.

कालेज पहुंच कर शिवानी ने गौरव को सारी बात बता कर कहा, ‘‘गौरव, मम्मीपापा के तेवरों से लगता है कि वे बहुत जल्दी मेरी शादी कहीं कर देंगे. मेरी शादी कहीं और हो, उस के पहले ही हमें कुछ करना होगा.’’

‘‘लेकिन शिवानी अभी तो हमारी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है.’’ गौरव ने चिंता जताई तो शिवानी ने कहा, ‘‘इतना भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. दुनिया की कोई भी ताकत हमें एकदूसरे से अलग नहीं कर सकती.’’

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इस के बाद रविंद्र को लगातार लोग बताने लगे कि उन्होंने उन की बेटी को एक लड़के के साथ घूमतेफिरते और हंसहंस कर बातें करते देखा है. लगातार शिकायतें मिलने की वजह से एक दिन रविंद्र ने शिवानी से साफ कह दिया कि अगर वह नहीं मानी तो उस की पढ़ाई बंद करा दी जाएगी. शिवानी को लगा कि घर वाले उस के प्यार में रोड़ा डाल रहे हैं तो उस ने गौरव से बात कर के भाग जाने का फैसला कर लिया.

इस के बाद योजना बना कर एक दिन शिवानी गौरव के साथ भाग गई. आगरा के कैंट स्टेशन के पास दोनों को किसी ने देख लिया तो उस ने यह बात रविंद्र को बता दी. खबर मिलते ही रविंद्र कैंट स्टेशन पहुंचे और वहां दोनों को पकड़ लिया. गौरव को उन्होंने डांटफटकार कर भगा दिया और शिवानी को घर ले आए. इस के बाद उन्होंने शिवानी को घर में ही कैद कर दिया.

रविंद्र ने उस व्यक्ति का आभार व्यक्त किया, जिस की सूचना पर उन की इज्जत बच गई थी, वरना अच्छीखासी बदनामी हो जाती. इस के बाद रविंद्र ने शिवानी के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया.

जबकि शिवानी पिंजरे में कैद चिडि़या की तरह उड़ने के लिए व्याकुल थी. वह चोरीछिपे गौरव से फोन पर बातें कर लेती थी. शिवानी उस कैद से मुक्त होना चाहती थी. वह घर से भाग निकलने का मौका तलाश रही थी.

रविंद्र वर्मा बेटी के लिए बेहद चिंतित थे, क्योंकि एक दिन शिवानी ने मां से साफ कह दिया था कि वह बालिग है और अपना अच्छाबुरा सोच सकती है. इसलिए वह अपनी पसंद के लड़के से ही शादी करेगी.

बेटी का यह कदम उन की समाज में बनी इज्जत को धूल में मिला सकता था, इसलिए उन्होंने तय कर लिया कि कुछ भी हो, वह जल्दी ही कहीं शिवानी की शादी कर देंगे. लेकिन वह शादी कर पाते, उस के पहले ही 18 फरवरी, 2016 को शिवानी गौरव के साथ भाग कर दिल्ली चली गई, जहां उत्तमनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. उन्होंने कोर्ट में शादी भी कर ली.

बेटी के इस तरह घर से गायब होने से रविंद्र समझ गए कि उसे गौरव ही बहलाफुसला कर भगा ले गया है, उन्होंने गौरव के खिलाफ भादंवि की धारा 366 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद गौरव के परिवार वालों पर पुलिस ने लड़की को बरामद कराने का दबाव डाला.

गौरव के पिता रामस्नेही सीधेसादे आदमी थे. वह अपनी रिश्तेदारियों में उसे तलाश करने लगे. गौरव कहीं नहीं मिला. काफी भागदौड़ के बाद उन्हें गौरव और शिवानी के दिल्ली में होने की जानकारी मिली. इस के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली पहुंच गई और दिल्ली पुलिस की मदद से गौरव और शिवानी को उत्तमनगर से बरामद कर लिया. इस तरह 45 दिनों बाद वे पुलिस की पकड़ में आ गए.

पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां शिवानी ने अपने बयान में कहा कि वह बालिग है और अपनी मरजी से गौरव के साथ गई थी. वह गौरव से प्यार करती है और उस ने उस से कोर्ट में शादी भी कर ली है. शिवानी के इसी बयान के आधार पर अदालत से गौरव को जमानत मिल गई.

रविंद्र ने बेटी को अपने संरक्षण में लेने के लिए अदालत में अरजी लगाई तो शिवानी ने विरोध किया कि मांबाप उसे घर ले जा कर मार डालेंगे. लेकिन रविंद्र ने अदालत से कहा कि वह बेटी को घर ले जा कर सामाजिक रीतिरिवाज से उस की शादी कर देंगे. लड़की को पढ़ने के लिए भी भेजेंगे. रविंद्र के इस बयान पर मजिस्ट्रैट ने शिवानी को उस के पिता को सौंप दिया.

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रविंद्र ने अदालत में जो कुछ कहा था, घर आने पर पलट गए. उन्होंने शिवानी पर बंदिशें लगा दीं. इस के अलावा वह उस के लिए लड़का भी ढूंढने लगे. आखिर मुरैना में उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. शिवानी को जब पता चला तो उस ने विरोध किया. उस के विरोध के बावजूद उन्होंने उस का रिश्ता पक्का कर दिया.

6 फरवरी, 2018 को शिवानी की शादी का दिन भी तय कर दिया गया. दिन तय होने के बाद शिवानी परेशान रहने लगी. वह किसी भी तरह घर से निकलना चाहती थी, लेकिन बाहर जाने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. उधर गौरव भी काफी परेशान था. उन्हें 6 फरवरी से पहले ही घर से भाग जाने का कोई रास्ता निकालना था.

रविंद्र ने कई बार गौरव को अपने घर के आसपास घूमते देखा था. आखिर एक दिन उस ने गौरव को धमकाया कि अब वह इधर कतई दिखाई न दे. फिर एक दिन हिम्मत कर के शिवानी ने पिता से कह दिया, ‘‘पापा, जब मेरी शादी गौरव से हो चुकी है तो आप मेरी शादी दूसरी जगह क्यों कर रहे हैं?’’

बेटी की बात को अनसुना कर रविंद्र बाहर चले गए. अब शिवानी ऐसा कुछ करना चाहती थी, जिस से उस का रिश्ता टूट जाए. इस बारे में उस ने गौरव से बात की तो उस ने कहा कि वह उस की हर तरह से मदद करेगा. एक दिन शिवानी का ममेरा भाई मनीष पत्नी के साथ उन के घर आया और रविंद्र से गोवर्धन परिक्रमा के लिए चलने को कहा.

रविंद्र पत्नी के साथ गोवर्धन परिक्रमा के लिए जाना तो चाहते थे, लेकिन वह शिवानी को घर में अकेली नहीं छोड़ना चाहते थे. इसलिए उन्होंने शिवानी को भी चलने को कहा. उस ने कपड़े वगैरह बैग में रख कर तैयारी तो कर ली, लेकिन मौका मिलते ही गौरव को फोन कर के कह दिया कि शाम 6 बजे घर के सभी लोग गोवर्धन परिक्रमा के लिए जा रहे हैं. उन्हें लौटने में 4 घंटे तो लग ही जाएंगे.

रविंद्र वर्मा के घर के निचले हिस्से में पंकज सिंह भदौरिया पत्नी और 2बच्चों के साथ किराए पर रहते थे. वह अध्यापक थे. उन की पत्नी भी अध्यापक थीं. शाम को जब सभी गोवर्धन परिक्रमा के लिए घर से निकलने लगे तो योजना के अनुसार शिवानी ने तबीयत ठीक न होने का बहाना कर के कहा कि अब वह नहीं जा सकती. घर वालों ने भी उस से ज्यादा जिद नहीं की.

घर से निकलते समय रविंद्र ने किराएदार पंकज सिंह और उन की पत्नी से शिवानी का ध्यान रखने के लिए कह दिया. घर वालों के जाने के बाद शिवानी गौरव का इंतजार करने लगी. उस ने दरवाजा खुला ही छोड़ दिया था. जैसे ही गौरव आया, उस ने उस से छत पर बैठ कर इंतजार करने को कहा.

रात 10-11 बजे सभी लोग लौटे तो घर के मेनगेट में ताला लगा कर रविंद्र वर्मा निश्चिंत हो गए. थके होने की वजह से सभी को जल्दी ही नींद आ गई. लेकिन शिवम मोबाइल पर गेम खेल रहा था.

शिवानी उस के सोने के इंतजार में करवटें बदलती रही. ऊपर पड़ोसी की छत पर बैठा गौरव शिवानी का इंतजार कर रहा था. काफी देर बाद शिवम सो गया तो शिवानी उठी और छत पर पहुंच गई. दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उस समय दोनों दुनियाजहान से बेखबर थे.

रविंद्र सुबह सैर के लिए जाते थे, इसलिए उन्होंने मोबाइल फोन में अलार्म लगा रखा था. जैसे ही अलार्म बजा, शिवानी गौरव से यह कह कर नीचे आ गई कि पापा घूमने चले जाएंगे तो वह उसे यहां से निकाल देगी.

नीचे आ कर शिवानी अपने बैड पर लेट गई. तभी गौरव का शिवानी के फोन पर मैसेज आया कि उसे प्यास लगी है. शिवानी ने पिता के कमरे में नजर डाली तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया. वह पानी की बोतल ले कर छत पर चली गई. रविंद्र उस समय घर में ही थे. उन्होंने शिवानी को छत पर जाते देख लिया था. वह भी उस के पीछेपीछे छत पर पहुंच गए.

रविंद्र ने शिवानी और गौरव को एक साथ देखा तो उन का खून खौल उठा. पिता को देख कर शिवानी डर से कांपने लगी. गौरव भी घबरा गया. बेटी की इस करतूत से उन के सिर पर खून सवार हो गया, फिर उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वहां मौत का तांडव मच गया. शिवानी अचानक सीढि़यों पर गिरी और वहां खून ही खून फैल गया.

सुबह कोई सवा 5 बजे पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना मिली कि ओम एन्क्लेव कालोनी में एक लड़की ने आत्महत्या कर ली है. यह इलाका थाना सदर के अंतर्गत आता था. पुलिस कंट्रोलरूम ने यह सूचना थाना सदर पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी नौरत्न गौतम उस दिन छुट्टी पर थे. थाने का चार्ज एसएसआई अखिलेश सिंह के पास था. वह किसी मामले की तफ्तीश में कहीं गए हुए थे.

एसएसपी की सूचना पर चौकीप्रभारी अरुण कुमार पुलिस बल के साथ ओम एन्क्लेव कालोनी स्थित घटनास्थल पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड, फोरैंसिक टीम को भी सूचित कर दिया गया.

सूचना पा कर एसएसआई अखिलेश सिंह भी रविंद्र वर्मा के घर पहुंच गए. पुलिस ने निरीक्षण किया तो सीढि़यों पर रविंद्र की 20 साल की बेटी शिवानी की गरदन कटी लाश मिली.

लाश के आसपास काफी खून फैला था. वहीं पर एक पेपर कटर पड़ा था. वहां संघर्ष के निशान भी दिखाई दिए. पूछताछ में रविंद्र ने बताया कि उन की बेटी शिवानी ने आत्महत्या कर ली है.

अखिलेश सिंह ने पेपर कटर को कब्जे में ले लिया. फोरैंसिक टीम आई तो पेपर कटर उस के हवाले कर दिया गया. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) कुमारी अनुपमा सिंह और महिला थाने का स्टाफ भी आ गया. पुलिस ने ध्यान से देखा तो शिवानी की लाश के पास खून से गौरव लिखा था.

पुलिस ने रविंद्र वर्मा से गौरव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह किसी गौरव को नहीं जानते. सूचना पा कर इंसपेक्टर रकाबगंज संजीव भी वहां आ गए. फोरैंसिक टीम ने बताया कि खून सने पैरों के जो निशान हैं, ये अलगअलग आदमी के हैं. लेकिन छत तक पैरों के जो निशान गए हैं, वे एक ही आदमी के हैं.

पेपर कटर की मूठ पर एक हाथ का निशान था, लेकिन लोहे वाले हिस्से पर 2 हाथों के निशान थे. इस से साफ हो गया कि वहां शिवानी के अलावा 2 लोग थे. घर के सिंक की जांच की गई तो वहां खून के निशान पाए गए. इस का मतलब कत्ल कर के कातिल ने वहां हाथ धोए थे. किराएदार पंकज भदौरिया ने बताया कि उन्हें तो रविंद्र वर्मा ने जगा कर बताया था कि उन की बेटी ने आत्महत्या कर ली है. इस के अलावा उन्हें घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

रविंद्र वर्मा ने बताया कि गैस की दुर्गंध आने पर वह रसोई में गए और लाइट जलाने के बजाय पंखा औन कर दिया. इस के बाद ऊपर जाने लगे तो देखा कि बेटी की लाश पड़ी है. वह घबरा कर नीचे आ गए और किराएदार को जगा कर सारी बात बताई. इस के बाद पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना दे दी.

रविंद्र की इस कहानी पर पुलिस को विश्वास नहीं हो रहा था. उन के कपड़े उतरवा कर देखा गया तो बनियान पर खून के निशान नजर आए. उन के पैरों पर भी खून लगा था. वह शक के दायरे में आ गए. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस रविंद्र को पूछताछ के लिए थाने ले आई. अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने रविंद्र से पूछताछ शुरू की तो वह यही कहते रहे कि बेटी ने आत्महत्या की है. जबकि पुलिस की नजरों में यह सीधे हत्या का मामला था, क्योंकि कोई भी व्यक्ति खुद अपना गला नहीं रेत सकता.

बारबार पूछने के बाद भी रविंद्र ने गौरव के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि पुलिस के लिए फर्श पर लिखा गौरव एक महत्त्वपूर्ण सुराग था. पुलिस को इसी से आगे बढ़ने का रास्ता मिल सकता था.

पोस्टमार्टम के बाद शिवानी का शव रविंद्र वर्मा को सौंप दिया गया था. उन्होंने उस का दाहसंस्कार भी कर दिया. इस बीच पुलिस के सामने काफी कुछ साफ हो गया था. पुलिस को गौरव के बारे में पता चल गया था कि वह शिवानी का दोस्त था और उस के साथ पढ़ता था. वह आगरा के शाहगंज में रहता है.

अगले दिन इंसपेक्टर संजीव सिंह और चौकीप्रभारी अरुण कुमार को एसपी सिटी ने गौरव से पूछताछ करने के निर्देश दिए. पुलिस गौरव के घर पहुंची तो उस के पिता रामस्नेही ने बताया कि कुछ देर पहले ही वह घर से निकला है. पिता ने फोन कर के उसे घर बुला लिया. पुलिस पूछताछ के लिए उसे थाने ले आई.

गौरव ने अपना सिर मुंडवा रखा था. वह काफी डरा हुआ था. थाने आते ही उस ने कहा, ‘‘साहब, आप मुझे मारिएगा मत, मैं आप को सब कुछ सचसच बता दूंगा. मैं ने शिवानी को नहीं मारा है. मैं तो उस से प्यार करता था. हम ने कोर्टमैरिज भी कर ली थी. उसी के बुलाने पर 28 अक्तूबर, 2017 को मैं उस के घर गया था. दुर्भाग्य से उस के पिता ने दोनों को एक साथ देख लिया.’’

गौरव ने आगे जो बताया, उस के अनुसार, रविंद्र उसे मारना चाहते थे, लेकिन शिवानी उसे बचाने के लिए बीच में आ गई. रविंद्र वर्मा के हाथ से उस ने पेपर कटर छीनने की कोशिश की, जिस से उस की 2 अंगुलियां कट गईं. इस के बाद गुस्से में रविंद्र ने पेपर कटर चलाया तो शिवानी फिर सामने आ गई, जिस से पेपर कटर उस के गले में लगा और उस का गला कट गया.

रविंद्र वर्मा पर खून सवार था. शिवानी घायल हो कर सीढि़यों पर गिर गई, इस के बावजूद वह उस की ओर झपटा. तब शिवानी ने अपना गला पकड़े हुए कहा, ‘‘गौरव, भाग जाओ, वरना यह तुम्हें भी मार देंगे.’’

उस हालत में गौरव को कुछ नहीं सूझा. वह भाग कर छत पर गया और किसी तरह वहां से कूद कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन शिवानी के बारे में सोचसोच कर वह परेशान होता रहा. अगले दिन गौरव ने पुलिस के डर से अपना सिर मुंडवा लिया. गौरव ने जो बताया था, वह पुलिस को सही लगा. गौरव से पूछताछ के बाद पुलिस ने रविंद्र वर्मा को थाने बुला लिया. थाने में गौरव को देख कर रविंद्र के पसीने छूट गए.

अब कहनेसुनने को कुछ नहीं था. पूछताछ में रविंद्र ने कहा कि शिवानी की हत्या करने का उस का इरादा नहीं था, पर गुस्से में पेपर कटर चल गया. उस ने यह भी स्वीकार किया कि बेटी के दूसरी जाति के लड़के के साथ संबंध उसे स्वीकार नहीं थे. वह अपनी बेटी की शादी अपनी ही जाति के लड़के के साथ करना चाहता था. लेकिन शिवानी बहुत जिद्दी थी, जिस का अंजाम अच्छा नहीं हुआ और डोली उठने से पहले उस की अर्थी उठ गई.

रविंद्र ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो पुलिस ने उसे जेल भेजने की तैयारी कर ली. पुलिस उसे ले जा रही थी, तभी उस के घर की महिलाओं ने थाने के बाहर हंगामा शुरू कर दिया. पुलिस के उच्चाधिकारियों ने उन्हें समझाबुझा कर शांत किया और रविंद्र वर्मा को 30 अक्तूबर को न्यायालय में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तुम्हारे हिस्से में- भाग 3: पत्नी के प्यार में क्या मां को भूल गया हर्ष?

लेखक- महावीर राजी 

शोरूम में आधे घंटे का वक्त और लगा. जींसटौप के साथ सीक्वेंस वर्क की खूबसूरत साड़ी भी खरीद ली. क्रैडिट कार्ड पर एक और गहरी खरोंच. हाथों में झूलते चमगादड़ों के गुच्छों में एक चमगादड़ और जुड़ गया. लिफ्ट से नीचे उतर कर दोनों शाही अंदाज से चलते हुए मुख्यद्वार तक आए ही थे कि हर्ष एकाएक चौंक पड़ा.

‘‘मम्मी को तो भूल ही गए. उन के लिए साड़ी,’’ हर्ष मिमियाया.

‘‘ओह,’’ संजना भी थम गई.

‘‘एक बार फिर वापस अप्सरा,’’ हर्ष हंसा और हड़बड़ा कर वापस भीतर जाने को मुड़ा तो संजना ने उसे बांह से पकड़ कर रोक लिया, ‘‘अब उतर ही आए हैं तो चलो न, बाहर के किसी स्टोर से ले लेंगे.’’

‘‘बाहर के स्टोर से?’’ हर्ष सकपका गया.

‘‘ऐनी प्रौब्लम?’’ संजना ने आंखें मटकाईं, ‘‘मां ही तो हैं, मैडम मिशेल ओबामा जैसी बड़ी तोप तो नहीं कि साउथ मौल की साड़ी न हुई तो शान में गुस्ताखी हो जाएगी. हुंह…वैसे भी उन जैसी कसबाई महिला को क्या फर्क पड़ेगा कि साड़ी कहां से खरीदी गई है. बाहर के स्टोर से खरीदने पर सस्ती भी तो मिलेगी, आखिर बचत ही तो होगी.’’

‘‘सचमुच, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं. यू आर रियली जीनियस, जेन,’’ हर्ष संजना के तर्क पर मुग्ध हो उठा, ‘‘पर लेनी तो प्योर सिल्क ही है यार.’’

‘‘प्योर सिल्क?’’ संजना चौंक पड़ी, ‘‘प्योर सिल्क के माने जानते भी हो?’’

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‘‘पिछली बार वहां गया था तो दीवाली पर प्योर सिल्क देने का वादा कर के आया था,’’ हर्ष अपराधबोध से भर गया.

‘‘उफ, तुम भी न…’’ संजना बड़बड़ाई, ‘‘इस तरह के उलटेसीधे वादे करने से पहले थोड़ा तो सोचना चाहिए था न.’’

‘‘अब कुछ नहीं हो सकता, जेन. वादा कर आया हूं न. नहीं दी तो मम्मी क्या सोचेंगी?’’

‘‘ठीक है. कोई उपाय करते हैं,’’ संजना सोच में पड़ गई.

बाइक अलीपुर की ओर दौड़ने लगी. पीछे बैठी संजना ने बायां हाथ आगे ले जा कर हर्ष की कमर को लपेट लिया. संजना की सांसों की मखमली खुशबू हर्ष को सनसनी से भर दे रही थी.

रासबिहारी मैट्रो स्टेशन के पास एक ठीकठाक शोरूम के आगे बाइक रुकी. दोनों भीतर चले आए. उन के हाथों में भारीभरकम भड़कीले पैकेट्स देख कर काउंटर के पीछे बैठे मुखर्जी बाबू मन ही मन चौंके. ऐसे हाईफाई ग्राहक का उन के साधारण से शोरूम में क्या काम?

‘‘वैलकम मैडम, क्या सेवा करें?’’ हड़बड़ा कर खड़े हो गए मुखर्जी बाबू.

‘‘प्योर सिल्क की एक साड़ी लेनी है हमें. कुछ बढि़या डिजाइनें दिखाइए.’’

मुखर्जी बाबू ने सहायक को संकेत दिया. देखते ही देखते काउंटर पर दसियों साडि़यां आ गिरीं. मुखर्जी बाबू उत्साहपूर्वक एकएक साड़ी खोल कर डिजाइन व रंगों की प्रशंसा करने लगे. संजना ने साड़ी पर चिपके प्राइस टैग पर नजर डाली, 3 से 4 हजार की थीं साडि़यां. उस ने हर्ष की ओर देखा.

‘‘तनिक कम रेंज की दिखाइए दादा,’’ संजना धीमे से बोली.

‘‘मैडम, इस से कम प्राइस में अच्छी क्वालिटी की प्योर सिल्क नहीं आएगी. सिंथेटिक दिखा दें?’’ मुखर्जी बाबू सोच रहे थे, ‘इतना मालदार आसामी प्राइस देख कर हड़क क्यों रहा है?’

‘‘प्योर सिल्क ही लेनी है,’’ संजना रुखाई से बोली. फिर तमतमाई आंखों से हर्ष की ओर देखा. दोनों अंगरेजी में बातें करने लगे.

‘‘तुम्हारी मम्मी का दिमाग सनक गया है. माना 40-45 की ही हैं अभी, पर हमारे समाज में विधवा स्त्री को ज्यादा कीमती और फैशनेबल साड़ी पहनना वर्जित है. यह बात उन्हें सोचनी चाहिए. मुंह उठाया और प्योर सिल्क मांग लिया, हुंह. प्योर सिल्क का दाम भी पता है? प्योर सिल्क पहनने का चाव चढ़ा है.’’

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‘‘आय एम सौरी, जेन. वायदा कर चुका हूं न. अब कोई उपाय नहीं,’’

हर्ष ने भूल स्वीकारते हुए अफसोस जाहिर किया.

उसे अच्छी तरह याद है. उस दिन दोस्तों के संग घूमफिर कर घर लौटा तो रात के 10 बज रहे थे. मम्मी बिना खाए उस का इंतजार कर रही थीं. दोनों ने साथ भोजन किया. फिर वह मम्मी की गोद में सिर रख कर लेट गया. नीचे मम्मी की गोद की अलौकिक ऊष्मा. ऊपर चेहरे पर उस के ममता भरे हाथों का शीतल स्पर्श. न जाने कैसा सम्मोहन घुला था इन में कि झपकी आ गई. काफी दिनों के बाद एक सुकून भरी नींद. 3 घंटे बाद अचानक नींद टूटी तो देखा, मम्मी ज्यों की त्यों बैठी बालों में उंगलियां फिरा रही हैं.

उन्हीं क्षणों के दौरान उस के मुंह से निकल गया, ‘इस बार दीवाली पर अच्छी सी प्योर सिल्क की साड़ी दूंगा तुम्हें.’ यह सुन कर मम्मी सिर्फ मुसकरा भर दी थीं.

हर्ष और जेन के बीच बातचीत भले ही अंगरेजी में हो रही थी और मुखर्जी बाबू को अंगरेजी की समझ कम थी, फिर भी उन्हें ताड़ते देर नहीं लगी.

‘‘मैडम,’’ मुखर्जी बाबू ने सिर खुजलाते हुए अत्यंत विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘यदि बुरा न मानें तो क्या हम पूछ सकते हैं कि साड़ी किस के लिए ले रही हैं?’’

इस के पहले कि इस अटपटे प्रश्न पर दोनों हत्थे से उखड़ जाते, मुखर्जी बाबू ने झट से स्पष्टीकरण भी पेश कर दिया, ‘‘न, न, मैडम, अन्यथा न लें, सिर्फ इसलिए पूछा कि हम उस के अनुकूल दूसरा किफायती औप्शन बता सकें.’’

संजना ने हिचकिचाते हुए मन की गांठ खोल दी, ‘‘साहब की विडो (विधवा) मदर के लिए.’’

पलक झपकते मुखर्जी बाबू के जेहन में पूरा माजरा बेपरदा हो गया. मैडम ने साहब की मां को ‘मम्मी’ नहीं कहा, ‘सासूमां’ भी नहीं कहा, बल्कि ‘साहब की विडो मदर’ कहा और साहब कार्टून की तरह खड़ा दुम हिलाता ‘खीखी’ करता रहा.

‘‘आप का काम हो गया,’’ उन्होंने सहायक को कुछ अबूझ से संकेत दिए. थोड़ी देर में ही काउंटर पर प्योर सिल्क का नया बंडल दस्ती बम की तरह आ गिरा. एक से एक खूबसूरत प्रिंट. एक से एक लुभावने कलर.

‘‘वैसे तो ये साडि़यां भी 4 हजार से ऊपर की ही हैं मैडम, पर हम इन्हें सिर्फ 800 रुपए में सेल कर रहे हैं. लोडिंगअनलोडिंग के समय हुक लग जाने से या चूहे के काट देने से माल में छोटामोटा छेद हो जाता है. हमारा ट्रैंड कारीगर प्लास्टिक सर्जरी कर के उस नुक्स को इस माफिक ठीक करता है कि साड़ी एकदम नई हो जाती है. सरसरी नजर से देखने पर नुक्स बिलकुल भी पता नहीं चलेगा.’’

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‘‘यानी कि रफू की हुई,’’ संजना हकला उठी.

‘‘रफू नहीं मैडम, प्लास्टिक सर्जरी बोलिए. रफू तो देहाती शब्द है. आप खुद देखिए न.’’

सचमुच, बिलकुल नई और बेदाग साडि़यां. जहांतहां छोटेछोटे डिजाइनर तारे नजर आ रहे थे जो साड़ी की खूबसूरती को बढ़ा ही रहे थे. सरसरी तौर पर कोई भी नुक्स नहीं दिख रहा था साडि़यों में, दोनों की बाछें खिल उठीं. आंखों में ‘यूरेकायूरेका’ के भाव उभर आए, मन तनावमुक्त हो गया जैसे जेन का.

आननफानन ढेर में से एक साड़ी चुनी गई और पैक हो कर आ गई. यह नया पैकेट मौल के पैकेटों के बीच ऐसा लग रहा था जैसे प्राइवेट स्कूल के बच्चों के बीच किसी सरकारी स्कूल का बच्चा आ घुसा हो.

‘‘मैं ने कहा था न, सही मौका आते ही क्रैडिट कार्ड की खरोंचों पर रफू लगा दूंगी. देख लो, तुम्हारा वादा भी पूरा हो गया और चिराग पर पूरे 3 हजार का रफू भी लग गया.’’

‘‘यू आर जीनियस, जेन,’’ हर्ष की प्रशंसा सुन कर संजना खिलखिलाई तो बालों की कई महीन लटें पहले की ही तरह आंखों के सामने से होती हुई होंठों तक चली आईं. बाइक की ओर बढ़ते हुए दोनों के चेहरे खिले हुए थे.

Bigg Boss OTT: पहले दिन ही हुई लड़ाई, ये कंटेस्टेंट हुआ नॉमिनेट

छोटे पर्दे का विवादित शो बिग बॉस ओटीटी का आगाज हो चुका है. यह टीवी पर 6 हफ्ते बाद टेलिकास्ट किया जाएगा. फिलहाल इस शो के OTT प्लेटफॉर्म पर टेलिकास्ट किया जा रहा है. करण जौहर इस शो को  होस्ट कर रहे हैं. टीवी पर 6 हफ्ते बाद  सलमान खान इस शो को होस्ट करेंगे. आइए आपको बताते हैं, बिग बॉस ओटीटी के लेटेस्ट अपडेट के बारे में.

शो में टीवी एक्ट्रेस रिधिमा पंडित (Ridhima Pandit)  ने एंट्री की है. शो के थीम के अनुसार लड़कियों को ‘स्टे कनेक्टेड’ थीम के अनुसार ही एक लड़के को चुनना था.

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इस प्रक्रिया में अंत में दो कंटेस्टेंट दिव्या अग्रवालऔर रिधिमा पंडित बचीं. तो वहीं चुने जाने के लिए सिर्फ एक मेल कंटेस्टेंट बचा था. ऐसे में करण जौहर ने पार्टनर चुनने की कमान मेल कंटेस्टेंट के हाथ में सौंप दी.

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मेल कंटेस्टेंट करण नाथ ने रिधिमा पंडित को चुना. दिव्या अग्रवाल अकेली रह गईं. तो वहीं शो के करेंट होस्ट करण जौहर ने कहा कि दिव्या को पूरी टीम के लिए एविक्शन के लिए नॉमिनेट किया जाएगा.

 

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इसी बीच दिव्या अग्रवाल और Pratik Sehajpal में बहस हो गई. दिव्या ने कहा कि उन्हें इस शो की जरूरत नहीं है बल्कि प्रतीक को है. दिव्या गुस्से से आगबबूला हो गई और प्रतीक को भी दे दी. प्रतिक भी वह नाराज हो गये और उन्होंने कहा कि इस गलती का अंजाम क्या होगा ये जल्द ही पता चलेगा.

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: एनिवर्सिरी सरप्राइज देख भड़केगी सई तो क्या करेगा विराट

नील भट्ट, आयशा सिंह, ऐश्वर्या शर्मा स्टारर सीरियल ‘गुम है किसी के प्‍यार में’  में अब तक आपने देखा कि विराट सबसे झूठ बोलकर सई को ट्रिप पर ले गया है ताकि वह वहां उसे एनिवर्सिरी की सरप्राइज दे सके. विराट सई को अपने दिल की बात बताना चाहता है कि वह सई से प्यार करता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के आगे की कहानी.

शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब हंगामा होने वाला है. विराट को लगेगा कि सई जब ये सरप्राइज देखेगी तो बहुत खुश होगी.  लेकिन जब सई को पता चलेगा तो वह विराट से गुस्सा होगी.

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तो उधर विराट सई के करीब आने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अपने प्यार का इजहार कर सके. लेकिन सई उसे याद दिलाएगी कि उनकी शादी एक समझौता है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि जब सई को पता चलेगा कि विराट ने एनिवर्सिरी सरप्राइज का प्लान किया है, वह भड़क जाएगी.

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सई विराट से कहेगी कि इस डील की शादी का क्‍या जश्‍न मनाना. वह ये भी कहेगी कि  एक दिन विराट की जिंदगी से उसे दूर हो ही जाना है. इतना ही नहीं, सई ये भी कहेगी कि विराट ने उसे धोखा दिया है. सई के इस बर्ताव से विराट टूट जाएगा.

 

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तो दूसरी तरफ विराट और सई ट्रिप पर गए हैं, इस वजह से पाखी ने चौहान हाउस निवास में ड्रामा खड़ा किया है. है. वह कहती है कि उसे पता नहीं कि एक साल से इस घर में क्‍यों रुकी है जबकि शादी के अगले ही दिन उसका पति सम्राट घर से चला गया था.

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Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 1: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

जौन एक सफल बैंक अधिकारी रहा था. संस्कारी परिवार के सद्गुणों ने उसे धर्मभीरु व कर्तव्यनिष्ठ बना रखा था. उस के पिता पादरी थे व माता अध्यापिका. शुरू से अंत तक उस का जीवन एक सुरक्षित वातावरण में कटा. नैतिक मूल्यों की शिक्षा, पिता के संग चर्च की तमाम गतिविधियों व बैंक की नौकरी के दौरान जौन ने कोई बड़ा हादसा नहीं देखा. जब तक नौकरी की, वह लंदन में रहा अपने छोटे से परिवार के साथ. फिर इकलौती बेटी का विवाह किया फिर समयानुसार उस ने रिटायरमैंट ले लिया. पत्नी को भी समय से पूर्व रिटायरमैंट दिला दिया था. फिर वह लंदन से 30 मील दूर रौक्सवुड में जा कर बस गया.

रौक्सवुड एक छोटा सा गांव था. हर तरह की चहलपहल से दूर, सुंदरसुंदर मकानों वाला. ज्यादा नहीं, बस, 100 से 150 मकान, दूरदूर छितरे हुए, बड़ेबड़े बगीचों वाले. वातावरण एकदम शांत. घर से आधा मील पर अगर कोई गाड़ी रुकती, तो यों लगता कि अपने ही दरवाजे पर कोई आया है. छोटा सा एक बाजार था,

2-3 छोटेबड़े स्कूल थे और एक चर्च था. हर कोई एकदूसरे को जानता था.

10 वर्षों से जौन यहां रह रहा था. चर्च की सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की उस की पुरानी हौबी थी. दोनों पतिपत्नी सब के चहेते थे. शादी हो या बच्चे की क्रिसनिंग सब में वे आगे बढ़ कर मदद देते थे.

जौन सुबह अंधेरे ही उठ जाता. डोरा यानी उस की पत्नी सो ही रही होती. वह कुत्ते को ले कर टहलने चला जाता. अकसर टहलतेटहलते उसे अपने जानने वाले मिल जाते. अखबार की सुर्खियों पर चर्चा कर के वह 1-2 घंटों में वापस आ जाता.

ऐसी ही अक्तूबर की एक सुबह थी. दिन छोटे हो चले थे. 7 बजे से पहले सूरज नहीं उगता था. 4 दिन की लगातार झड़ी के बाद पहली बार आसमान नीला नजर आया. पेड़ों के पत्ते झड़ चुके थे. जहांतहां गीले पत्तों के ढेर जमा थे. घरों के मालिक जबतब उन्हें बुहार कर जला देते थे.

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जौन की आंख सुबह 5 बजे ही खुल गई. उस का छोटा सा कुत्ता रोवर उस का कंबल खींचते हुए लगातार कूंकूं  किए जा रहा था.

‘‘चलता हूं भई, जरा तैयार तो हो लेने दे,’’ जौन ने उसे पुचकारा.

उस की पत्नी दूसरे कमरे में सोती थी. जौन को उस का देर रात तक टीवी पर डरावनी फिल्में देखना खलता था.

जौन ने जूते पहने, कोट और गुलूबंद पहना, हैट पहन कर कुत्ते को जंजीरपट्टा पहना कर वह चुपचाप निकल गया.

घर से करीब 1 मील पर जंगल था. करीब 3 वर्गमील के क्षेत्र में फैला यह जंगल इस कसबे की खूबसूरती का कारण था. इसी से गांव का नाम रौक्सवुड पड़ा था. जंगल में चीड़ और बल्ली के पेड़ों के अलावा करीने से उगे रोडोडेंड्रन के पेड़ भी थे, जो वसंत ऋतु में खिलते थे. इन के बीच अनेक ऊंचीनीची ढलानों वाली पगडंडियां थीं, जिन पर लोग साइकिल चलाने का अभ्यास करते थे. कभीकभी कोई छोटी गाड़ी भी दिख जाती थी. चूंकि लोग खाद के लिए सड़ी पत्तियां खोद कर ले जाते थे, इसलिए ढलानों पर बड़ेबड़े गड्ढे भी थे.

जंगल की पगडंडियों पर दूरदूर तक चलना जौन का खास शौक था. 2-4 मिलने वालों को दुआसलाम कर वह अपने रास्ते चलता गया.

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सूरज अभी उगा नहीं था, मगर दिन का उजाला फैलने लगा था. जौन जंगल में काफी दूर तक आ गया था. इस हिस्से में कई गड्ढे थे. पत्तियों ने उन गड्ढों को भर दिया था. घने पेड़ों की जड़ों के पास छाया होने के कारण वहां सड़न और काई जमा थी, जिस में कुकुरमुत्तों के छत्ते उगे हुए थे. एक अजीब दुर्गंध हवा में थी, जो सुबह की ताजगी से मेल नहीं खा रही थी.

रोवर दूर निकल गया था. जौन ने सीटी बजाई, मगर उस ने अनसुना कर दिया. जौन उसे पुकारता वहां तक पहुंच गया. सामने कीचड़ व सड़े पत्तों से भरे एक गड्ढे में रोवर अपने अगले पंजे मारमार कर कूंकूं कर रहा था. जौन कहता रहा, ‘‘छोड़ यार, घर चल, वापस जाने में भी घंटा लगेगा अब तो.’’

मगर रोवर वहीं अड़ा रहा. जौन पास चला गया, ‘‘अच्छा बोल, क्या मिल गया तुझे?’’

तभी जौन ने देखा गड्ढे में कीचड़ से सना एक कपड़ा था, जिसे रोवर दांतों से खींचे जा रहा था. कपड़ा मोटे परदे का था, जिस का रंग नीला था. तभी जौन पूरी ताकत से वापस भागा. रोवर को भी वापस आना पड़ा. जौन तब तक भागता रहा, जब तक उसे दूसरा व्यक्ति नजर नहीं आ गया. जौन रुक गया, मगर उस के बोल नहीं फूटे.

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