Best Of Manohar Kahaniya: आधी रात के बाद हुस्न और हवस का खेल

सौजन्य- मनोहर कहानियां

18 नवंबर, 2016 की रात के यही कोई डेढ़ बजे मुंबई से सटे जनपद थाणे के उल्लासनगर के थाना विट्ठलवाड़ी के एआई वाई.आर. खैरनार को सूचना मिली कि आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेक्स की तीसरी मंजिल स्थित एक फ्लैट में काले रंग के बैग में लाश रखी है. सूचना देने वाले ने बताया था कि उस का नाम शफीउल्ला खान है और उस फ्लैट की चाबी उस के पास है. 35 साल का शफीउल्ला पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. रोजीरोटी की तलाश में वह करीब 8 साल पहले थाणे आया था, जहां वह उल्लासनगर के आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेकस के तीसरी मंजिल स्थित फ्लैट नंबर 308 में अपने परिवार के साथ रहता था. वह राजमिस्त्री का काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

उस के फ्लैट से 2 फ्लैट छोड़ कर उस का मामा राजेश खान अपनी प्रेमिकापत्नी खुशबू उर्फ जमीला शेख के साथ रहता था. 10-11 महीने पहले ही खुशबू राजेश खान के साथ इस फ्लैट में रहने आई थी. वह अपना कमातीखाती थी, इसलिए वह राजेश खान पर निर्भर नहीं थी. राजेश खान कभीकभार ही उस के यहां आता था. ज्यादातर वह पश्चिम बंगाल स्थित गांव में ही रहता था.

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18 नवंबर की दोपहर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर जा रहा था, तभी इमारत की सीढि़यों पर उस की मुलाकात राजेश खान से हो गई. उस समय काफी घबराया होने के साथसाथ वह जल्दबाजी में भी था. लेकिन शफीउल्ला सामने पड़ गया तो उस ने रुक कर कहा, ‘‘शफी, अगर तुम मेरे साथ नीचे चलते तो मैं तुम्हें एक जरूरी बात बताता.’’

‘‘इस समय तो मैं कहीं नहीं जा सकता, क्योंकि मुझे बहुत तेज भूख लगी है. जो भी बात है, बाद में कर लेंगे.’’ कह कर शफीउल्ला जैसे ही आगे बढ़ा, राजेश खान ने पीछे से कहा, ‘‘यह रही मेरे फ्लैट की चाबी, रख लो. तुम्हारी मामी मुझ से लड़झगड़ कर कहीं चली गई है. मैं उसे खोजने जा रहा हूं. मेरी अनुपस्थिति में अगर वह आ जाए तो यह चाबी उसे दे देना. बाकी बातें मैं फोन से कर लूंगा.’’

राजेश खान से फ्लैट की चाबी ले कर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर चला गया तो राजेश खान नीचे उतर गया.  करीब 12 घंटे बीत गए. इस बीच न राजेश खान आया और न ही उस की पत्नी खुशबू आई. शफीउल्ला को चिंता हुई तो उस ने दोनों को फोन कर के संपर्क करना चाहा. लेकिन दोनों के ही नंबर बंद मिले.

शफीउल्ला सोचने लगा कि अब उसे क्या करना चाहिए. वह कुछ करता, उस के पहले ही रात के करीब एक बजे उस के फोन पर राजेश खान का फोन आया. उस के फोन रिसीव करते ही उस ने पूछा, ‘‘तेरी मामी आई या नहीं?’’

‘‘नहीं मामी तो अभी तक नहीं आई. यह बताओ कि इस समय तुम कहां हो?’’ शफीउल्ला ने पूछा.

‘‘तुम्हें राज की एक बात बताता हूं. अब तुम्हारी मामी कभी नहीं आएगी, क्योंकि मैं ने उसे मार दिया है. इस में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए. मेरे फ्लैट के बैडरूम में बैड के नीचे काले रंग का एक बैग पड़ा है, उसी में तुम्हारी मामी की लाश रखी है. तुम उसे ले जा कर कहीं फेंक दो. जल्दबाजी में मैं उसे फेंक नहीं पाया. इस समय मैं ट्रेन में हूं और गांव जा रहा हूं.’’

खुशबू की हत्या की बात सुन कर शफीउल्ला के होश उड़ गए. उस ने उस बैग के बारे में आसपड़ोस वालों को बताया तो सभी इकट्ठा हो गए. उन्हीं के सुझाव पर इस बात की सूचना शफीउल्ला ने थाना विट्ठलवाड़ी पुलिस को दे दी थी.

एआई वाई.आर. खैरनार ने तुरंत इस सूचना की डायरी बनवाई और थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट तथा पुलिस कंट्रोल रूम एवं पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर वह कुछ सिपाहियों के साथ राजाराम कौंपलेक्स पहुंच गए. रात का समय था, फिर भी उस फ्लैट के बाहर इमारत के काफी लोग जमा थे. उन के पहुंचते ही शफीउल्ला ने आगे बढ़ कर उन्हें फ्लैट की चाबी थमा दी.

फ्लैट का ताला खोल कर वाई.आर. खैरनार सहायकों के साथ अंदर दाखिल हुए तो बैडरूम में रखा वह काले रंग का बैग मिल गया. उन्होंने उसे हौल में मंगा कर खुलवाया तो उस में उन्हें एक महिला की लाश मिली.

बैग से बरामद लाश की शिनाख्त की कोई परेशानी नहीं हुई. शफीउल्ला ने उस के बारे में सब कुछ बता दिया. लाश बैग से निकाल कर वाई.आर. खैरनार जांच में जुट गए. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट, एसीपी अतितोष डुंबरे, एडिशनल सीपी शरद शेलार, डीसीपी सुनील भारद्वाज, अंबरनाथ घोरपड़े के साथ आ पहुंचे.

फोरैंसिक टीम के साथ पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण किया. अपना काम निपटा कर थोड़ी ही देर में सारे अधिकारी चले गए.

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लाश के निरीक्षण में स्पष्ट नजर आ रहा था कि मृतका की बेल्ट से जम कर पिटाई की गई थी. उस के शरीर पर तमाम लालकाले निशान उभरे हुए थे. कुछ घावों से अभी भी खून रिस रहा था. उस के गले पर दबाने का निशान था. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के सुरेंद्र शिरसाट ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए उल्लासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की पूरी काररवाई निपटा कर सुरेंद्र शिरसाट थाने लौट आए और सहयोगियों से सलाहमशविरा कर के इस हत्याकांड की जांच एआई वाई.आर. खैरनार को सौंप दी.

वाई.आर. खैरनार ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एआई प्रमोद चौधरी, ए. शेख के अलावा हैडकांस्टेबल दादाभाऊ पाटिल, दिनेश चित्ते, अजित सांलुके तथा महिला सिपाही ज्योति शिंदे को शामिल किया.

पुलिस को शफीउल्ला से पूछताछ में पता चल गया था कि राजेश खान ने कत्ल कर के गांव जाने के लिए कल्याण रेलवे स्टेशन से ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ ली है. अब पुलिस के लिए यह चुनौती थी कि वह गांव पहुंचे, उस के पहले ही उसे पकड़ ले. अगर वह गांव पहुंच गया और उसे पुलिस के बारे में पता चल गया तो वह भाग सकता था.

इस बात का अंदाजा लगते ही पुलिस टीम ने जांच में तेजी लाते हुए राजेश खान के मोबाइल की लोकेशन पता की तो वह जिस ट्रेन से गांव जा रहा था, वहां से उसे गांव पहुंचने में करीब 10 घंटे का समय लगता.

पुलिस टीम किसी भी तरह उसे हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी, इसलिए वाई.आर. खैरनार ने सीनियर अधिकारियों से बात कर के राजेश खान की गिरफ्तारी के लिए एआई ए. शेख और हैडकांस्टेबल माने को हवाई जहाज से कोलकाता भेज दिया. दोनों राजेश के पहुंचने से पहले ही हावड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए और उसे गिरफ्तार कर लिया.

26 साल के राजेश खान को मुंबई ला कर पूछताछ की गई तो उस ने खुशबू से प्रेम होने से ले कर उस की हत्या तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

राजेश खान पश्चिम बंगाल के जनपद मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. गांव में वह मातापिता एवं भाईबहनों के साथ रहता था. गांव में उस के पास खेती की जमीन तो थी ही, बाजार में कपड़ों की दुकान भी थी, जो ठीकठाक चलती थी. उसी दुकान के लिए वह कपड़ा लेने थाणे के उल्लासनगर आता था. वह जब भी कपड़े लेने उल्लासनगर आता था, अपने भांजे शफीउल्ला से मिलने जरूर आता था.

24 साल की खुशबू उर्फ जमीला से राजेश खान की मुलाकात उस की कपड़ों की दुकान पर हुई थी. वह उसी के गांव के पास की ही रहने वाली थी. उस की शादी ऐसे परिवार में हुई थी, जिस की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. वह जिन सपनों और उम्मीदों के साथ ससुराल आई थी, वे उसे पूरे होते नजर नहीं आ रहे थे. खुली हवा में सांस लेना घूमनाफिरना, मनमाफिक पहननाओढ़ना उस परिवार में कभी संभव नहीं था.

इसलिए जल्दी ही वहां खुशबू का दम घुटने लगा. खुली हवा में सांस लेने के लिए उस का मन मचल उठा. दुकान पर आनेजाने में जब उस ने राजेश खान की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी.

चाहत दोनों ओर थी, इसलिए कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. जल्दी ही उन की हालत यह हो गई कि दिन में जब तक दोनों एक बार एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता. उन के प्यार की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन के प्यार को ले कर हंगामा होता, उस के पहले ही वह खुशबू को ले कर मुंबई आ गया और किराए का फ्लैट ले कर उसी में उस के साथ रहने लगा. मुंबई में उस ने उस से निकाह भी कर लिया.

मुंबई पहुंच कर खुशबू ने आत्मनिर्भर होने के लिए एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली. इस से राजेश खान चिंता मुक्त हो गया. वह महीने में 10-15 दिन मुंबई में खुशबू के साथ रहता था तो बाकी दिन गांव में रहता था.

मुंबई आ कर खुशबू में काफी बदलाव आ गया था. ब्यूटीपार्लर में काम करने के बाद उस के पास जो समय बचता था, उस समय का सदुपयोग करते हुए अधिक कमाई के लिए वह बीयर बार में काम करने चली जाती थी. पैसा आया तो उस ने रहने का ठिकाना बदल दिया. अब वह उसी इमारत में आ कर रहने लगी, जहां शफीउल्ला अपने परिवार के साथ रहता था. वहां उस ने सुखसुविधा के सारे साधन भी जुटा लिए थे.

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खुशबू के रहनसहन को देख कर राजेश खान के मन संदेह हुआ. उस ने उस के बारे में पता किया. जब उसे पता चला कि खुशबू ब्यूटीपार्लर में काम करने के अलावा बीयर बार में भी काम करती है तो उस ने उसे बीयर बार में काम करने से मना किया. लेकिन उस के मना करने के बावजूद खुशबू बीयर बार में काम करती रही. इस से राजेश खान का संदेह बढ़ता गया.

18 नवंबर की सुबह खुशबू बीयर बार की ड्यूटी खत्म कर के फ्लैट पर आई तो राजेश खान को अपना इंतजार करते पाया. उस समय वह काफी गुस्से में था. उस के पूछने पर खुशबू ने जब सीधा उत्तर नहीं दिया तो वह उस पर भड़क उठा. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो खुशबू ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वहीं करूंगी.’’

‘‘खुशबू, तुम मेरी पत्नी ही नहीं, प्रेमिका भी हो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. तुम अपनी ब्यूटीपार्लर वाली नौकरी करो, मैं उस के लिए मना नहीं करता. लेकिन बीयर बार में काम करना मुझे पसंद नहीं है. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हें गंदी नजरों से ताकें.’’

‘‘मैं जो कर रही हूं, सोचसमझ कर कर रही हूं. अभी मेरी कमानेखाने की उम्र है, इसलिए मैं जो करना चाहती हूं, वह मुझे करने दो.’’ कह कर खुशबू बैडरूम में जा कर कपड़े बदलने लगी.

राजेश खान को खुशबू से ऐसी बातों की जरा भी उम्मीद नहीं थी. वह भी खुशबू के पीछेपीछे बैडरूम में चला गया और उसे समझाने की गरज से बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझे प्यार नहीं करती. लगता है, तुम्हारी जिंदगी में कोई और आ गया है?’’

‘‘तुम्हें जो समझना है, समझो. लेकिन इस समय मैं थकी हुई हूं और मुझे नींद आ रही है. अब मैं सोने जा रही हूं. अच्छा होगा कि तुम अभी मुझे परेशान मत करो.’’

खुशबू की इन बातों से राजेश खान का गुस्सा बढ़ गया. उस की आंखों में नफरत उतर आई. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मेरी नींद को हराम कर के तुम सोने जा रही हो. लेकिन अब मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगा.’’

यह कह कर राजेश खान खुशबू की बुरी तरह से पिटाई करने लगा. हाथपैर से ही नहीं, उस ने उसे बेल्ट से भी मारा. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो फर्श पर पड़ी दर्द से कराह रही खुशबू के सीने पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

खुशबू के मर जाने के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे जेल जाने का डर सताने लगा. वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने लाश को फ्लैट में ही छिपा कर गांव भाग जाने में अपनी भलाई समझी. उस का सोचना था कि अगर वह गांव पहुंच गया तो पुलिस उसे कभी पकड़ नहीं पाएगी.

उस ने बैडरूम मे रखे खुशबू के बैग को खाली किया और उस में उस की लाश को मोड़ कर रख कर उसे बैड के नीचे खिसका दिया. वह दरवाजे पर ताला लगा कर बाहर निकल रहा था, तभी उस का भांजा शफीउल्ला उसे सीढि़यों पर मिल गया, जिस की वजह से खुशबू की हत्या का रहस्य उजागर हो गया.

घर की चाबी शफीउल्ला को दे कर वह सीधे कल्याण रेलवे स्टेशन पहुंचा और वहां से कोलकाता जाने वाली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ कर गांव के लिए चल पड़ा.

राजेश खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ अपराध संख्या 324/2016 पर खुशबू की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एआई वाई.आर. खैरनार कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है हमने सेक्स भी किया हुआ है, मैं क्या करूं?

सवाल

मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है. उस की नानी का घर मेरे पड़ोस में है. काफी पहले मौका पा कर मैं ने उस के साथ सेक्स भी किया था. मुझे यह नहीं पता कि वह भी मुझ से प्यार करती है या नहीं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप ने उस के साथ हमबिस्तरी करने की हिम्मत तो कर ली, पर यह पूछने में शर्म आ रही है कि वह आप से प्यार करती है या नहीं. अब जब भी मौका मिले, तो उस से पूछ लें. अगर वह प्यार का इकरार करे तो ठीक है, वरना उस का पीछा करना छोड़ दें.

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क्या आप भी अनचाहे सेक्स की शिकार हैं

दिन ब दिन बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी होती जा रही है. इस के कई कारण हैं, जिन में एक है मानसिक हिंसा की प्रवृत्ति का बढ़ना. बलात्कार शब्द से एक लड़की या युवती पर जबरदस्ती झपटने वाले लोगों के लिए हिंसात्मक छवि उभर कर सामने आती है. इस घृणित कार्य के लिए कड़े दंड का भी प्रावधान है. मगर बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि वैवाहिक जिंदगी में भी बलात्कार वर्जित है और इस के लिए भी दंड दिया जाता है. मगर इसे बलात्कार की जगह एक नए शब्द से संबोधित किया जाता है और वह शब्द है अनचाहा सेक्स संबंध.

आज अनचाहे सेक्स संबंधों की संख्या बढ़ गई है. समाज जाग्रत हो चुका है और अपने शरीर या आत्मसम्मान पर किसी भी तरह का दबाव कोई बरदाश्त नहीं करना चाहता है. इस विषय पर हम ने समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों से बातचीत भी की और जानने की कोशिश की कि आखिर क्या है यह अनचाहा सेक्स संबंध?

डा. अनुराधा परब, जो एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री हैं, बताती हैं, ‘‘बलात्कार और अनचाहे सेक्स में बहुत महीन सा फर्क है. बलात्कार अनजाने लोगों के बीच हुआ करता है और एक पक्ष इस का सशरीर पूर्ण विरोध करता है. अनचाहा सेक्स परिचितों के बीच होता है और इस में एक पक्ष मानसिक रूप से न चाह कर भी शारीरिक रूप से पूर्णत: विरोध नहीं करता है. सामान्यत: यही फर्क होता है. मगर गहराई से जाना जाए तो बहुत ही सघन भेद होता है. ‘‘अनचाहा सेक्स ज्यादातर पतिपत्नी के बीच हुआ करता है और आजकल प्रेमीप्रेमिका भी इस संबंध की चपेट में आ गए हैं. आधुनिक युग में शारीरिक संबंध बनाना एक आम बात भले ही हो गई हो, फिर भी महिलाएं इस से अभी भी परहेज करती हैं. कारण चाहे गर्भवती हो जाने का डर हो या मानसिक रूप से समर्पण न कर पाने का स्वभाव, मगर अनचाहे सेक्स संबंध की प्रताड़नाएं सब से ज्यादा महिलाओं को ही झेलनी पड़ती हैं.’’

वजह वर्कलोड

एक एडवरटाइजिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्यरत पारुल श्रीनिवासन, जिन का विवाह 6 साल पहले हुआ था, एक चौंका देने वाला सत्य सामने लाती हैं. वह बताती हैं, ‘‘मैं अपने पति को बेहद प्यार करती हूं. उन के साथ आउटिंग पर भी अकसर जाती रहती हूं, मगर सेक्स संबंधों में बहुत रेगुलर नहीं हूं. इस का कारण जो भी हो, मगर मुझे ऐसा लगता है कि इस का मुख्य कारण है, हम दोनों का वर्किंग  होना. शुरूशुरू में 1 महीना हम दोनों छुट्टियां ले कर हनीमून के लिए हांगकांग और मलयेशिया गए थे. वहां से आने के बाद अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए. रात को बेड पर जाने के बाद सेक्स संबंध बनाने की इच्छा न तो मुझे रहती है, न मेरे पति को. पति कभी आगे बढ़ते भी हैं तो मैं टालने की पूरी कोशिश करती हूं.’’

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कारण की तह तक पहुंचने पर पता चला कि शुरूशुरू के दिनों में पति सेक्स संबंध बनाना चाहता था. मगर पारुल को अपनी मार्केटिंग का वर्कलोड इतना रहता था कि वह उसी में खोई रहती थी. पति के समक्ष अपना शरीर तो समर्पित कर देती थी, मगर मन कहीं और भटकता रहता था. पति को यह प्रक्रिया बलात्कार सी लगती. कई बार समझाने, मनाने की कोशिश भी उस ने की. मगर पारुल हमेशा यही कहती कि आज मूड नहीं बन रहा है. और एक दिन पारुल ने खुल कर कह ही दिया कि वह यदि सेक्स संबंधों में रत होती भी है तो बिना मन और इच्छा के. वह अनचाहा सेक्स संबंध जी रही है. पति को यह बुरा लगा और धीरेधीरे सेक्स के प्रति उसे भी अरुचि होती चली गई.

भयमुक्त करना जरूरी

ऐसी कई पत्नियां हैं, जो अनचाहा सेक्स संबंध बनाने पर विवश हो जाती हैं. मगर तबस्सुम खानम की कहानी कुछ और ही है.  26 वर्षीय तबस्सुम एक टीचर हैं, उन के पति उन से 12 साल बड़े हैं. उन की एक दुकान है. वह बताती हैं, ‘‘जब मैं किशोरी थी, तभी से मुझे सेक्स संबंधों के प्रति भय बना हुआ था. सहेलियों से इस को ले कर सेक्स अनुभव की बातें करती थीं और मुझे सुन कर डर सा लगता था. मैं सहेलियों से कहती थी कि मैं तो अपने शौहर से कहूंगी कि बस मेरे गले लग कर मेरे पहलू में सोए रहें. इस से आगे मैं उन्हें बढ़ने ही नहीं दूंगी. सभी सहेलियां खूब हंसती थीं. जब मेरी शादी हुई तो शौहर हालांकि बड़े समझदार हैं, मगर शारीरिक उत्तेजना की बात करें तो खुद पर संयम नहीं रख पाते हैं.’’

थोड़ा झिझकती हुई, थोड़ा शरमाती हुई तबस्सुम बताती हैं, ‘‘मेरे पति ने मेरे लाख समझाने पर भी सुहागरात के दिन ही मुझे अपनी मीठीमीठी बातों में बहला लिया. उन का यह सिलसिला महीनों चलता रहा, मुझे आनंद का अनुभव तो होता, मगर भय ज्यादा लगता था. मेरा भय बढ़ता गया. जब भी रात होती, मेरे पति बेडरूम में प्रवेश करते, मैं डर से कांप उठती थी. हालांकि मेरे पति के द्वारा कोई भी अमानवीय हरकत कभी नहीं होती. काफी प्यार और भावुकता से वे फोरप्ले करते हुए, आगे बढ़ते थे. मगर मेरे मन में जो डर समाया था, वह निकलता ही न था. 3 महीनों के बाद जब मैं गर्भवती हो गई तो डाक्टर ने हम दोनों के अगले 2 महीनों तक शारीरिक संबंध बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. मुझे तो ऐसा लगाजैसे एक नया जीवन मिल गया. मेरा बेटा हुआ. इस बीच मैं ने धीरेधीरे पति को अपने डर की बात बता दी और वे भी समझ गए. मेरे पति ने भी परिपक्वता दिखाई और मुझ से दूर रह कर मुझे धीरेधीरे समझाने लगे. वे सेक्स संबंधों को स्वाभाविक और जीवन का एक अंश बताते. अंतत: उन्होंने मेरे मन से भय निकाल ही दिया.’’

इच्छा अनिच्छा का खयाल

विनोद कामलानी, जो एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं, अपना क्लीनिक चलाते हैं, बताते हैं, ‘‘तबस्सुम के मन में बैठा हुआ सेक्स का डर था. बहुत सी लड़कियां इस भय से भयातुर हुआ करती हैं. मगर बहुत कम पति ऐसे होते हैं, जो धीरेधीरे इस भय को निकालते हैं. ऐसे कई केस मेरे पास आते हैं. पुरुषों के भी होते हैं, मगर अनचाहे सेक्स की शिकार ज्यादातर महिलाएं ही हुआ करती हैं.’’ डा. कामलानी के ही एक मरीज तरुण पटवर्धन ने बताया कि उन की शादी को 3 साल हो गए हैं, मगर आज तक उन्होंने अनचाहा सेक्स संबंध ही जीया है.

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तरुण के अनुसार, विवाहपूर्व उन का प्रेम अपने पड़ोस की एक लड़की से था. किसी कारणवश शादी नहीं हो पाई, मगर प्रेम अभी भी बरकरार है. उस लड़की ने तरुण की याद में आजीवन कुंआरी रहने की शपथ भी ले रखी है. यही कारण है कि जब भी तरुण अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने की पहल करते हैं, उन की प्रेमिका का चेहरा सामने आ जाता है. उन्हें एक ‘गिल्ट’ महसूस होता है और वे शांत हो कर लेट जाते हैं. वे अपनी पत्नी से यह सब कहना भी नहीं चाहते हैं वरना उस के आत्मसम्मान को चोट पहुंचेगी. चूंकि उन की पत्नी तरुण को सेक्स प्रक्रिया बनाने में अयोग्य न समझे, उन्हें अपनी पत्नी के साथ सेक्स संबंध बनाना पड़ता है. वे सेक्स संबंध बिना मन, बिना रुचि के बनाते हैं और इस तरह वे अनचाहा सेक्स संबंध ही जी रहे हैं.

एक सर्वे के अनुसार, आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में काम की होड़ और आगे निकलने की चाह ने इनसान को मशीन बना दिया है. पैसा कमाना ही एक मात्र ध्येय बन चुका है. ऐसी भागदौड़ में इनसान सेक्स संबंधों के प्रति इंसाफ नहीं कर पाता है और बिना मन और बिना प्रोपर फोरप्ले के बने हुए सेक्स संबंध, मन में सेक्स के प्रति अरुचि पैदा कर देते हैं. यहीं से शुरुआत होती है अनचाहे सेक्स संबंधों की. अपने पार्टनर की खुशी के लिए संबंध बनाना कभीकभी विवशता भी होती है. अंतत: यही संबंध ऊब का रूप धारण कर लेते हैं या पार्टनर बदलने की चाह मन में उठती है. यद्यपि यह अनचाहा सेक्स पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रहा है, भारत भी इस से अछूता नहीं है, परंतु यहां का अनुपात अन्य देशों के मुकाबले नगण्य है.

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Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 3

इस दौरान कर्मचारी ने मोबाइल नंबर पूछा. तब एक हत्यारोपी ने हड़बड़ी में अपने जीजा का मोबाइल नंबर बता दिया. तभी उसे लगा कि यह गलती हो गई. फिर उस ने वह नंबर कटवा दिया, बाद में परची पर फरजी मोबाइल नंबर लिखवा दिया.

हर्ष ने बताया कि मृतक कोरोना पौजिटिव था, इस के चलते उस की मौत हो गई. शव को जलाने के बाद रात साढ़े 10 बजे सभी अपनेअपने घर चले गए.

लाश ठिकाने लगाने के बाद हर्ष ने मनोज बंसल को सचिन का मोबाइल दे कर उसी शाम साढ़े 7 बजे ही खंदारी से इटावा की बस में बैठा दिया. उस से कहा गया कि इटावा पहुंच कर वह मोबाइल औन कर ले, जिस से लोकेशन इटावा की मिले. फिर इटावा से वह सचिन के घर वालों को फोन कर 2 करोड़ की फिरौती मांगे. फिरौती की काल करने के बाद वह मोबाइल औफ कर ले.

इस के बाद वह वहां से कानपुर चला जाए. वहां मोबाइल चालू करे. ताकि पुलिस भ्रमित रहे और हम लोग पकड़ में न आएं.

रात 12 बजे इटावा पहुंच कर मनोज ने जैसे ही मोबाइल औन किया तो देखा मोबाइल पर सचिन की मां अनीता के लगातार फोन आ रहे थे. मनोज ने डर से फोन नहीं उठाया और न फिरौती मांगी. उस ने उसी समय फोन स्विच्ड औफ कर दिया.

सुबह 4 बजे मनोज दूसरी बस पकड़ कर कानपुर पहुंचा. वहां पहुंच कर फिर से मोबाइल औन किया और बाद में उसे कानपुर के झकरकटी स्टैंड पर फेंक दिया. ऐसा इसलिए किया ताकि पुलिस सचिन की तलाश करे तो उस के मोबाइल की लोकेशन इटावा व कानपुर की मिले.

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पुलिस समझे कि अपहर्त्ता उसे कानपुर की तरफ से ले गए हैं. वह पुलिस को भ्रमित करना चाहते थे. पूरे घटनाक्रम के दौरान किसी ने एकदूसरे से फोन पर बात तक नहीं की, ताकि पुलिस उन्हें पकड़ न सके.

दूसरे दिन 22 जून की सुबह 8 बजे जा कर हैप्पी और रिंकू ने सचिन की अस्थियां यमुना में विसर्जित कर दीं. वे लोग दोपहर 12 बजे पानी के प्लांट से सचिन की चप्पलें उठा कर जंगल में फेंक आए. बताते चलें आरोपी मनोज एक पैर से विकलांग है. उस के 2 बच्चे हैं. पिता की दुकान थी, लेकिन बंद हो गई. लौकडाउन में उस पर ढाई लाख का कर्ज हो गया था.

हैप्पी सुमित का ममेरा भाई था. उस की शादी नहीं हुई है. वह सुमित के साथ ही काम करता है. पिता की मौत हो चुकी है. उसे रुपयों की जरूरत थी. रिंकू एक स्कूल की वैन चलाता था. लौकडाउन के कारण स्कूल बंद होने से वह भी बेरोजगार था. इसलिए वे सभी पैसों के लालच में आ गए थे.

सचिन ने बीबीए की पढ़ाई की थी.  वह पिता के साथ उन के कारोबार में हाथ बंटाता था. जबकि उन के पार्टनर लेखराज चौहान का बेटा हर्ष सचिन से 2 साल छोटा था और बीबीए की पढ़ाई कर रहा था. वह भी पिता के साथ कारोबार में हाथ बंटाता था.

2 करोड़ की फिरौती के लालच में दोस्तों ने भरोसे को तारतार कर दिया. शातिरों ने अपहरण और हत्या की पूरी साजिश इस तरह रची कि पुलिस उलझ कर रह जाए.

सामान्य काल की जगह वाट्सऐप काल की. फोन भी दूसरे शहर में ले जा कर फेंक दिया. सबूत मिटाने के लिए अंतिम संस्कार भी पीपीई किट में कर दिया ताकि किसी को शक न हो. यहां तक कि अस्थियां यमुना में विसर्जित कर दीं, जिस से डीएनए टेस्ट भी न कराया जा सके.

यह सब करने के बाद भी आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बच न सके. अपहरण व हत्या के बाद फिरौती वसूलने का सारा तानाबाना सुमित व हर्ष ने ही बुना था.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए हत्यारोपियों से 7 मोबाइल, 1200 रुपए नकदी के साथ 2 कारें भी बरामद कीं. इस के चलते पुलिस को न तो लाश मिली न ही अस्थियां मिलीं.

ऐसे में केस में मजबूत साक्ष्य ही आरोपियों को सजा दिला पाएंगे. इस के लिए पुलिस ने फोरैंसिक एक्सपर्ट की टीम की मदद से 28 जून के बाद 29 जून को भी अन्य साक्ष्य जुटाए.

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जिस पानी के प्लांट में हत्याकांड को अंजाम दिया गया, वहां से फोरैंसिक एक्सपर्ट की टीम को सचिन का एटीएम कार्ड मिला. यह सचिन की हत्या के दौरान संघर्ष में गिर गया होगा.

इस के अलावा टीम को वहां फिंगर और फुटप्रिंट भी मिले हैं, ये आरोपियों के अलावा सचिन के हो सकते हैं. वहीं कुछ बाल भी मिले. यह आरोपियों के हो सकते हैं. इन्हें फोरैंसिक साइंस लैब भेजा गया.

यहां से पुलिस ने जली हुई सिगरेट, खाली गिलास और पानी की बोतल बरामद की थी.  इन पर फिंगरप्रिंट थे. वहीं पुलिस ने श्मशान घाट पर रवि वर्मा के नाम से जो रसीद कटवाई गई थी, उस की कौपी भी बरामद कर ली.

पुलिस ने घाट के कर्मचारी के बयान दर्ज किए. कमला नगर में जिस मैडिकल स्टोर से पीपीई किट खरीदी थी, उस के मालिक के बयान के साथ ही दुकान में लगे कैमरों के फुटेज भी पुलिस ने ले लिए.

इस के साथ ही पुलिस को कमला नगर व बल्केश्वर क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी मिल गई, जिस में आरोपी साफ नजर आ रहे थे. ये सारे सबूत केस में आरोपियों को सजा दिलाने के लिए साक्ष्य बनेंगे.

आरोपियों की कार और वैन पुलिस ने बरामद कर ली. कार में वे सचिन को ले गए थे, जबकि वैन में शव को ले कर गए थे.

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इस साल सचिन की शादी की तैयारी थी. उस के लिए कई रिश्ते आए थे. बात भी चल रही थी. सोचा था कि नवंबर में उस की शादी कर देंगे. बेटे की शादी कर बहू घर लाने की ख्वाहिश अब चौहान दंपति का सपना ही बन कर रह गई.

29 जून, 2021 को पुलिस ने गिरफ्तार किए गए पांचों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

योगी काशी के मूल स्वरुप के साथ खींच रहे विकास का ख़ाका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब जापान के शहर क्योटो की यात्रा पर गए थे, तभी से वह चाहते थे कि काशी के मूल स्वरूप को बरकार रखते हुए इस प्राचीन शहर को क्योटो के तर्ज पर विकसित किया जाए . यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने काशी के हेरिटेज़ को ध्यान में रखते हुए तेजी से वाराणसी में चौतरफ़ा विकास का ख़ाका खींचा है. जिसका परिणाम अब सामने आने लगा है. इसकी बानगी है , गोदोलिया से शीतला घाट तक पिंक कॉरिडोर. वाराणसी का गौदोलिया क्षेत्र अब ग़ुलाबी गलियारा सा दिखने लगा है. सड़क के दोनों तरफ़ की प्राचीन इमारतों को उनके मूल स्वरुप के साथ ख़ूबसूरत बनाया गया है . काशी के हेरिटेज़ को ध्यान में रखते हुए दुकानों व भवनों को सजाया सवारा गया है. चित्रकारी की थीम वाराणसी के प्राचीन पौराणिक भवनों के संरचना पर आधारित है. वाराणसी नगर के ऐतिहासिक भवनों एवं किलों में प्रयोग किये गये पत्थर की नक्काशी तथा भवनों की संरचना, डिजाईनों का ,चित्रकारी के कार्य में समावेश किया गया है.

काशी के गोदोलिया क्षेत्र में आप आये तो शायद चौंक जाएंगे. इस क्षेत्र का रंग -रूप संवर गया है. गोदोलिया से शीतला घाट तक जाने वाला रास्ता अब आपको बदला-बदला सा नज़र आएगा. इस बाज़ार से गुजरने पर आप को ग़ुलाबी एहसास होगा. इस मार्ग के दोनों तरफ के भवनों और दुकानों में एक रूपता दिखे इसका ध्यान रखते हुए सुंदरीकरण का काम किया गया है. काशी के हेरिटेज को ध्यान में रखते हुए भवनों व दुकानों की समरूपता को बनाए रखते हुए गोदौलिया चौराहे से शीतला घाट तक जाने वाले मार्ग के दोनो तरफ स्थित 58 भवनों एवं 350 दुकानों के शटर पर पेंटिंग,फसाड डिजाइनिंग का काम किया गया है. इस बाज़ार में पड़ने वाली सभी दुकानों के साइनेज बोर्ड में भी एक रूपता रखी गई है. जो देखने में सुन्दर लग रहे है. पेंटिंग की थीम वाराणसी के धार्मिक ,आध्यात्मिक व ऐतिहासिक भवनों के बनावट पर आधारित है. बनारस के ऐतिहासिक भवनों एवं किलों में प्रयोग किये गए पत्थर की नक्काशी तथा भवनों की संरचना, गुम्बद, खिड़की, दरवाजों, झज्जों के डिजाईनों की चित्रकारी के कार्य में इसका समावेश किया गया है.

वाराणसी विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष ईशा दुहन ने बताया की काशी बहुत प्राचीन शहर है. इसका मूलस्वरूप बदले बिना यहाँ के धरोहरों को सहेजने का काम किया जा रहा है. ऐतिहासिक धरोहरों के पेंटिंग में इस्तमाल रंगों का ख़ास ख़्याल रखा गया है. इसका चयन चुनार के लाल पत्थर से लिया गया है क्योकि चुनार के लाल पत्थर ही वाराणसी के अधिकतर प्राचीन भवनों, महलों, किलों में उपयोग किया गया है. दुकानों के शटर का डिजाईन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की डिजाईन पर आधारित है. वाराणसी स्मार्ट सिटी के अन्तर्गत वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा ग़ुलाबी गलियारे का काम कराया जा रहा है. जिसकी लागत करीब 94 लाख रुपये आयी है.

मेजर ध्यानचन्द्र के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को असंख्यच खेलप्रेमियों के चेहरों पर मुस्का न बिखेर दी है. उन्हों्ने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदल दिया है. अब खेल रत्न हॉकी के ‘जादूगर’ कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के नाम पर दिया जाएगा. प्रधानमंत्री ने इस बात की जानकारी ट्वीट करके दी. ज‍िसके बाद खेलप्रेमियों ने मोदी सरकार के इस फैसले का खुले दिल से स्वागत किया. मोदी सरकार के इस बड़े फैसले का स्वादगत उत्त र प्रदेश के मुख्येमंत्री योगी आदित्यिनाथ ने भी अभिनन्दन किया है. योगी ने ट्विटर पर लिखा “उत्तर प्रदेश में जन्मे देश के हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद जी के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार का नामकरण असंख्य खेल प्रेमियों व सम्पूर्ण खेल जगत का सम्मान है.” सीएम योगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार भी जताया है.

बता दें कि इस अवार्ड को 1991-92 में शुरू किया गया था. इसका नाम देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर रखा गया था. पीएम मोदी ने कहा कि मेजर ध्यानचंद भारत के उन अग्रणी खिलाड़ियों में से थे जिन्होंने भारत के लिए सम्मान और गौरव अर्जित किया. उन्होंने कहा कि हमारे देश का सर्वोच्च खेल सम्मान उन्हीं के नाम पर रखा जाना बिल्कुल सही है.देश लम्बे समय से हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग कर रहा था. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार का नाम देकर भारत की खेलप्रेमी जनता को सबसे शानदार उपहार दिया है.
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का हॉकी में अविश्वसनीय योगदान रहा है. उन्होंने अपने आखिरी ओलंपिक (बर्लिन 1936) में कुल 13 गोल दागे थे. इस तरह एम्स्टर्डम, लॉस एंजेलिस और बर्लिन ओलंपिक को मिलाकर ध्यानचंद ने कुल 39 गोल किए, जिससे उनके बेहतरीन प्रदर्शन का पता चलता है.

Web Series Review-DIAL 100: निराश करती है मनोज बाजपेयी की ये फिल्म

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः सोनी पिक्चर्स

निर्देशकः रेंसिल डिसिल्वा

कलाकारः मनोज बाजपेयी, साक्षी तंवर, नीना गुप्ता व अन्य

अवधि: 1 घंटा 44 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5

पुलिस अफसर हर दिन आम इंसान की तकलीफो की चाहे जितनी शिकायतें दर्ज कर लें, पर उनकी भयावता का अहसास उसे तब तक नहीं होता, जब तक वह स्वयं उसके चंगुल में न फंस जाएं. इसी के इर्द गिर्द बुनी गयी रेंसिल डिसिल्वा की रहस्य व रोमांच प्रणान फिल्म ‘‘डायल 100’’ जी 5’ पर स्ट्रीम हो रही है.

कहानी:

फिल्म की कहानी शुरू होती है पुलिस के आपातकाल विभाग डायल 100 में कार्यरत पुलिस अधिकारी निखिल सूद (मनोज बाजपेयी) के आफिस पहुंचने से. डायल 100 में एक महिला फोन करके निखिल सूद से बात करना चाहती है. निखिल सूद से वह बात करती है कि वह आत्महत्या करने जा रही है. क्योंकि उसका बेटा अमर मारा गया और अमर को अपनी गाड़ी से मौत के घाट उतारने वाले यश को पुलिस सजा नहीं दिला पायी. क्योंकि यश करोड़पति बाप का बेटा है.

निखिल सूद को वह औरत बताती है कि उसने दो गन खरीद ली है और अब वह कुछ भी कर सकती है. फोन कट जाता है.इधर पुलिस विभाग का कंट्रोल रूम का कनेक्शन भी कट जाता है. उधर निखिल की पत्नी प्रेरणा सूद (साक्षी तंवर) परेशान है कि अठारह वर्षीय बेटा फिर दोस्तो के साथ पार्टी में चला गया. निखिल अपने बेटे ध्रुव (स्वर कांबले) को फोन करके तुरंत घर पहुंचने के लिए कहता है. इधर एक औरत (नीना गुप्ता) निखिल सूद के घर पहुंचती है और पता चलता है कि वह मर चुके अमर की मां है. वह प्रेरणा सूद को बंदू की नोक पर अपने साथ कार में ले जाती है.

इधर निखिल सूद को पता चलता है कि वह औरत अमर की मां सीमा पालव (नीना गुप्ता) है. तभी सीमा पालव फोन कर निखिल से कहती है कि ध्रुव, तांडव बार में यश मेहरा (अमन गंडोत्रा) को ड्रग्स देने जा रहा है.

ध्रुव ड्रग्स व्यापारी मुश्ताक के लिए काम करना है. सीमा चाहती है कि निखिल, ध्रुव से कहकर कि वह यश को पार्किंग स्थल पर बुलाए. चालाकी करने पर ध्रुव के साथ साथ प्रेरणा भी मारी जाएगी. इधर पुलिस अधिकारी मूर्ति के माध्यम से निखिल को पत चलता है कि सीमा पालव उसके अलावा जिस नंबर पर बार बार फोन कर रही है, उस नंबर वाला फोन निखिल के आफिस में ही है.पता चलता है कि वह सीमा पालव का पति चंद्रकांत है,जो कि चाय वाले मंगेष का चाचा बनकर चाय पिला रहा है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः चंद्रकांत पालव, सीमा पालव व ध्रुव मारे जाते हैं. यश घायल होता है, पर जीवित बच जाता है. अब पुलिस कमिश्नर चाहते है कि निखिल, सीमा के साथ हुई बातचीत सहित सारे सबूत मिटा दे. यश के पिता निखिल की हर तरह से मदद करने को तैयार हैं. पर निखिल सोचने के बाद सारे सबूतों को एक पेन ड्राइव मे लेने के बाद एक टीवी न्यूज चैनल के क्राइम रिपोर्टर को फोन करता है.

लेखन व निर्देशनः

पुलिस विभाग के आपात विभाग ‘डायल 100’’में बैठे पुलिस अफसरों की कार्यशैली, डर और बदले ही इस रहस्य व रोमांच प्रधान फिल्म का रहस्य दस मिनट के अंदर ही खत्म हो जाता है और रोमांच तो कहीं है ही नहीं. वास्तव में पौने दो घंटे की कहानी में रेंसिल डिसिल्वा के पास कहने को कुछ है ही नहीं. सब कुछ अति सतही अंदाज में धीरे धीरे घटित होता रहता है. कहानी में उतार चढ़ाव का भी अभाव है.

अभिनयः

एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफसर और एकलौटे बेटे को बचाने के अंर्तद्वंद व दोहरे व्यक्तित्व को मनोज बाजपेयी ने अपने अभिनय से बाखूबी उकेरा है. बेटे के लिए चिंतित मां व असहाय पत्नी के किरदार में सांझी तंवर ठीक हैं. नीना गुप्ता का अभिनय सहज है.

ओलंपिक: खिलाड़ी गालियां नहीं सम्मान के पात्र हैं

निसंदेह ऐतिहासिक ओलंपिक खेल में शिरकत करना ही सम्मान की बात है गौरव की बात है. ऐसे में अगर वंदना कटारिया और अन्य खिलाड़ी हाकी के सेमीफाइनल में अच्छा परफारमेंस नहीं दिखा पाए तो क्या किसी एक खिलाड़ी को उसके जाते पात को लेकर, उसे या उसके परिजनों को गाली दी जानी चाहिए या फिर अथवा उत्साहवर्धन करना चाहिए.

दरअसल,खिलाड़ी हमारे देश के गौरव हैं खेल में हार जीत तो होती ही है. और खेल को खेल भावना के साथ खेलने की नसीहत दी जाती है. ऐसे में अगर दो चार लोग उत्तेजित होकर के किसी खिलाड़ी के घर के सामने नारेबाजी करने लगे तो यह देश के लिए शर्मनाक है. ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जाना चाहिए.

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ऐतिहासिक तोक्यो ओलंपिक के एक सौ पच्चीस साल का आगाज और खेलों का आनंद लोग उठा रहे हैं.ऐसे में सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से हारने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिजनों के साथ कथित तौर पर गाली-गलौच तथा जातिसूचक टिप्पणी घटना घटित हो गई जो यह बता रही है कि अभी भी हमारे देश के कुछ अंचल में कैसी क्षुद्र भावना रखते हुए लोग जिंदगी बसर कर रहे हैं.

वस्तुत: जातिसूचक शब्दों के प्रयोग और घर के सामने पटाखे जलाकर अपमानित करने के संदर्भ में पुलिस ने बृहस्पतिवार को हरिद्वार जिले के रोशनाबाद क्षेत्र में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध किया है जो एक सबक हो सकता है कि हमें जाती पाती भेदभाव से ऊपर उठना चाहिए.

हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के मुताबिक वंदना के भाई चंद्रशेखर कटारिया की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने मामले में तीन नामजद सहित अन्य अज्ञात आरोपियों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कर अभी एक शख्स को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहित की धारा 504 और अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है.

जातिगत गालियां! शर्मनाक स्थिति!!

सच तो यह है कि आप किसी को न तो अपमानित कर सकते हैं और नहीं गाली गलौज. भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत यह संज्ञेय अपराध है.

ऐसे में जातिगत गाली गलौज तो और भी गंभीर अपराध के रूप में गिना जाएगा. अब भारतीय हाकी की एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी जिसने बहुत ही अच्छी तरीके से अपना खेल दिखाया है और एक बड़ा प्रशंसक वर्ग देश में हासिल किया है तो उसके घर के सामने सेमीफाइनल में हार जाने के कारण पटाखे जलाना और परिजनों के साथ गाली गलौज करना यह दर्शाता है कि आज भी हमारे समाज में कितनी छोटी सोच के लोग सीना तान कर , कानून को आंखें दिखा करके रौब गांठते हुए लाठी भांज रहे हैं.

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कानून और पुलिस प्रशासन का भय ऐसा मालूम होता है मानो हमारे देश में खत्म होता चला जा रहा है. यही कारण है कि ओलंपिक में शिरकत कर रही एक खिलाड़ी के परिजनों को अपमानित होना पड़ा है.
दरअसल, हमें अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है हमें यह समझना चाहिए कि अगर ओलंपिक के ऐतिहासिक मंच पर अगरचे कोई भारत का खिलाड़ी बेटी अपना प्रदर्शन दिखा रही है तो निसंदेह अपनी पूरी ताकत के साथ निष्ठा के साथ देश के लिए खेल रही है. और हमें उसकी हौसला अफजाई करनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो जहां खिलाड़ियों के परफॉर्मेंस पर इसका असर दिखाई देगा वही अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी भारत की छवि किस तरह प्रस्तुत होगी इसकी कल्पना सहज की जा सकती है.

ऊंची जाति नीची जाति

देश की सामाजिक स्थिति की सच्चाई यह है कि वर्तमान में जातियों का वर्चस्व खत्म होता चला जा रहा है. अब जातियां आज से 25 वर्ष पूर्व की कट्टर कठोर स्थितियों में नहीं है. इस सब के बावजूद अगर ऐसी घटनाएं सामने आ रही है तो यह चिंता का सबब है.

यह भी सच है कि टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही पराजित हो गई लेकिन भारतीय महिला टीम के पास अभी कांस्य मेडल जीतने का मौका हैं और पूरा देश उनकी हौसलाफजाई और खेल भावना के साथ उत्सव से सराबोर है.

ऐसे में महिला हॉकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिवार का आरोप‌ देशवासियों के लिए एक गंभीर चिंतन का विषय बन कर सामने आ गया है.

वंदना कटारिया के भाईयों का आरोप है कि हार के बाद कथित तौर पर ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाले कुछ लोगों ने उन्हें गालियां दी और जातिसूचक नाम लेकर कोसा.दरअसल अर्जेंटीना के खिलाफ सेमीफाइनल में हार के बाद ही हरिद्वार जिले के रोशनाबाद गांव की रहने वालीं वंदना के घर के निकट ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाले दो शख्स पहुंचे वे पटाखे फोड़ने लगे और वंदना के परिवार को भद्दी गालियां देनी शुरू कर दी.

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वह लोग कह रहे थे – भारतीय टीम की इसलिए हार हुई क्योंकि टीम में जरूरत से ज्यादा दलित खिलाड़ी हैं.

ऐसी छोटी सोच रखने वाले लोगों से यह पूछना चाहिए कि क्या अगर वह स्वयं ओलंपिक में भाग नहीं ले पा रहे हैं तो क्या इसका दोष उनके ऊंची जात को दिया जा सकता है?

ऊंची जाति, नीची जाति कुछ नहीं होती.यह सब हमारे छोटी सोच का नतीजा है और यही बात हमारे विकास में बाधक भी है.

Crime Story in Hindi- अधूरी मौत: भाग 2- क्यों शीतल ने अनल के साथ खतरनाक खेल खेला?

‘‘वहां पर आप टेंट लगा कर कैंपिंग भी कर सकते है. यहां टेंट में रात को रुकने का अपना ही रोमांच है. वहां आप को डिस्टर्ब करने के लिए कोई नहीं होगा.’’ ड्राइवर ने उस जगह के बारे में बताया.

‘‘और लोग भी तो होते होंगे वहां पर?’’ अनल ने पूछा.

‘‘सामान्यत: भीड़ वाले समय में 2 टेंटों के बीच लगभग 100 मीटर की दूरी रखी जाती है. आप की इच्छानुसार आप का टेंट नो डिस्टर्ब वाले जोन में लगा देंगे.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो ना अनल. ऐसी जगह पर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘चलो भैया आज उसी टेंट में रुकते हैं.’’ अनल खुश होते हुए बोला.

लगभग एक घंटे के बाद वह लोग उस जगह पर पहुंच गए.

‘‘साहब, यहां से लगभग एक किलोमीटर आप को संकरे रास्ते से चढ़ाई करनी है.’’ ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए बोला.

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

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‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए.

तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

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‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल ने कहा.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दे कर इंसपेक्टरको वीर का नंबर दे दिया.

इंसपेक्टर ने वीर को फोन कर थाने आने को कहा.

‘‘सर, लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर थाने पहुंच गया. इंसपेक्टर ने पूरी जानकारी उसे देते हुए पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए,’’ वीर बोला.

एक दिन वीर ने शीतल से कहा, ‘‘करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी, जिस में अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’

‘‘वीर भाई साहब, आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे.

इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी.

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

मर कर भी न होंगे जुदा

उत्तर प्रदेश का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है फिरोजाबाद. यह शहर कांच की चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के थाना बसई मोहम्मदपुर के गांव आलमपुर कनैटा में राजवीर सिंह लोधी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की पत्नी की करीब 3 साल पहले मौत हो गई थी.

राजवीर की गांव में आटा चक्की थी. उस के 2 बेटे बलजीत व जितेंद्र के अलावा 2 बेटियां राधा, ललिता उर्फ लता थीं. वह एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुका था. छोटा बेटा जितेंद्र पिता के साथ चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि ललिता उर्फ लता गांव के ही स्कूल में पढ़ रही थी.

इसी गांव में रामवीर सिंह लोधी भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह निजी तौर पर पशुओं का इलाज करने का काम करता था. उस के 4 बेटों में अनिल कुमार सब से छोटा था. वह बीएससी कर चुका था और नौकरी की तलाश में था. अनिल का बड़ा भाई जितेंद्र दिल्ली के एक होटल में नौकरी करता था.

ललिता 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. जब वह स्कूल जाती, तो रास्ते में अकसर उसे गांव का युवक अनिल मिल जाता था. वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता था. उस की उम्र करीब 20 साल थी. लता ने भी उन्हीं दिनों जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. अनिल लता की जाति का ही था. लता को भी अनिल अच्छा लगता था. उस का झुकाव भी अनिल की तरफ होने लगा. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे.

दोनों के बीच यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करने में सकुचा रहे थे, क्योंकि उन का यह पहलापहला प्यार था. आखिर एक दिन अनिल ने हिम्मत कर के लता से पूछ ही लिया, ‘‘लता, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

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लता को तो जैसे इसी पल का ही इंतजार था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है, पर तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं,’’ अनिल ने जवाब दिया.

इस औपचारिक बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे, जिस से उन के बीच फोन पर भी बातचीत होने लगी. रही बात मिलने की तो लता के स्कूल जातेआते समय अनिल पहुंच जाता था, जिस से वे एकदूसरे से मिल लेते थे.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभीकभी लता सहेली के पास जाने की बात कह कर घर से निकल जाती और अनिल से एक निश्चित जगह पर मिल लेती थी. उन के प्रेम संबंध यहां तक पहुंच गए थे कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.

उस समय अनिल बेरोजगार था. उस ने लता से वादा किया कि शादी के लिए हम तब तक इंतजार करेेंगे, जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता. नौकरी लगने के बाद वह उसे अपने साथ ले जाएगा. यह बात सुन कर ललिता बहुत खुश हुई.

दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि दोनों के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं होगा. पिछले डेढ़ साल से दोनों का प्रेम प्रसंग बिना किसी बाधा के चल रहा था.

मिलने और मोबाइल पर बात करने में दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. किसी तरह लता के परिजनों को उन के प्रेम संबंधों की भनक लग गई.

लिहाजा उन्होंने लता को समझाया कि वह अनिल से मिलना बंद कर दे. इस से परिवार की बदनामी ही हो रही है. लता ने उस समय तो उन से वादा कर दिया कि वह घर की मानमर्यादा का ध्यान रखेगी. उस के वादे से घर वाले निश्चिंत हो गए.

2-4 दिनों तक तो लता ने अनिल से बात नहीं की. लेकिन इस के बाद प्रेमी की यादें उसे विचलित करने लगीं. उधर अनिल भी परेशान रहने लगा. दोनों की यह बेचैनी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

दिल की लगी नहीं छूटी

घर वालों की बातों को दरकिनार कर के लता ने अनिल से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह सावधानी बरतने लगी ताकि घर वालों को पता न चले.

लेकिन एक बार लता की मां ने रात में उसे मोबाइल पर बात करते देख लिया. उस ने यह बात पति राजवीर को बताई. उस ने जब लता का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह अनिल से ही बात कर रही थी.

यह जान कर राजवीर का खून खौल उठा. उस ने लता को बहुत लताड़ा और उस पर पहरा लगा दिया. इतना ही नहीं, राजवीर ने इसकी शिकायत अनिल के पिता रामवीर सिंह से भी कर दी. रामवीर ने भी अनिल को बहुत डांटा.

अब दोनों पर ही पाबंदियां लग गई थीं, जिस से वे बेचैन रहने लगे. लता का फोन भी उस के घर वालों ने अपने पास रख लिया था. लता किसी भी तरह अनिल से बात करना चाहती थी. एक दिन लता को यह मौका मिल गया. घर पर उस की सहेली मिलने आई थी. लता ने उस के मोबाइल फोन से अनिल से बात की और कहा कि यह दूरियां अब उस से सही नहीं जा रही हैं.

तब अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लता, कुछ दिनों के लिए मैं भाई के पास दिल्ली जा रहा हूं. जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तो मैं गांव आ जाऊंगा.’’

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लता को भी अनिल की बात सही लगी और उस ने न चाहते हुए भी दिल पर पत्थर रख कर उसे दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. अनिल अपने भाई जितेंद्र के पास दिल्ली पहुंच गया. जितेंद्र ने अनिल की नौकरी एक निजी अस्पताल में लगवा दी.

दिल्ली जा कर अनिल के नौकरी करने की जानकारी लता के पिता राजवीर को हुई तो उस ने राहत की सांस ली. उस ने निर्णय लिया कि मौका अच्छा है, क्यों न लता के हाथ पीले कर दिए जाएं. लिहाजा आननफानन में उस ने लता के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया गया.

यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. एटा जिले के जलेसर नगर में सुनील नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. शादी की बात भी पक्की कर दी गई. दोनों पक्षों ने इसी साल नवंबर महीने में देवउठान के पर्व पर शादी करने की बात तय कर ली.

लता को जब अपनी शादी तय होने की बात पता चली, तो उस की नींद उड़ गई. क्योंकि वह तो अनिल की दुलहन बनने का सपना संजोए बैठी थी. लता ने अपनी शादी का विरोध किया लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली.

अनिल भी उस समय दिल्ली में था. लता ने उसे फोन कर के अपनी शादी तय होने की बात बता दी. यह बात सुन कर वह भी परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करे.

जुलाई के पहले सप्ताह में गोदभराई की रस्म संपन्न हो गई. लता गोदभराई के दिन चाह कर भी किसी से कुछ नहीं कह सकी. वह उदास थी. उस का दिल रो रहा था. वह अनिल से मिलने के लिए तड़प रही थी.

15 अगस्त को रक्षाबंधन था. लता को पता था कि रक्षाबंधन पर अनिल गांव जरूर आएगा. उस ने सोचा तभी अनिल से मिल कर अपने मन की बात कहेगी. इतना ही नहीं, लता ने निर्णय ले लिया था कि अनिल के गांव आने पर वह अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ अनिल के साथ शादी कर लेगी, चाहे इस के लिए उसे अपना घर छोड़ कर भागना ही क्यों न पड़े.

प्रेमी के लिए तड़प रही थी लता

लेकिन लता के अरमानों पर उस समय बिजली गिर गई, जब रक्षाबंधन के दिन भी अनिल गांव नहीं आया, इस से वह बहुत निराश हुई. घर वालों ने लता को उस का मोबाइल फोन लौटा दिया था. लता ने अनिल को फोन किया तो उस ने बताया कि छुट्टी नहीं मिलने की वजह से वह इस बार घर नहीं आ सका. लेकिन अगले महीने गांव जरूर आएगा.

लता को अब तसल्ली नहीं हो रही थी. उस के घर वालों ने शादी की खरीदारी शुरू कर दी थी. उसे अपने ही घर में एकएक दिन काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था. सारीसारी रात वह बिस्तर पर करवटें बदलती रहती. उस ने एक दिन रात में ही निर्णय लिया, जिस की भनक उस ने अपने परिजनों को नहीं लगने दी.

16-17 अगस्त, 2019 की रात को जब लता के घर वाले सोए हुए थे, सुबह 4 बजे वह घर से गायब हो गई. परिजन जब सो कर उठे तो ललिता घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा कि वह मंदिर गई होगी. जब काफी देर तक वह वापस नहीं आई तो उस की तलाश की गई. उस का मोबाइल भी बंद था.

बदनामी के डर से इस की सूचना पुलिस को भी नहीं दी गई. सुबह के समय गांव के कुछ लोगों ने ललिता को बाइक पर किसी युवक के साथ जाते देखा था. यह जानकारी राजवीर सिंह को मिली तो उस ने बदनामी की वजह से यह बात भी पुलिस तक को बताना ठीक नहीं समझा.

राजवीर व उस के परिवार वालों को शक था कि ललिता अनिल के पास दिल्ली चली गई होगी. राजवीर ने रामवीर से दिल्ली में रह रहे उस के बेटे अनिल का मोबाइल नंबर ले कर उस से बात की. अनिल ने बताया कि लता उस के पास नहीं आई है. इस के बाद घर वाले लगातार लता के मोबाइल पर फोन करते रहे, लेकिन उस का फोन बंद मिला. 17 अगस्त की दोपहर में राजवीर ने जब लता को फोन मिलाया तो उस से बात हो गई.

19 अगस्त, 2019 की सुबह थाना मटसेना के आकलपुर गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर बेर की बगिया में एक पेड़ से फंदों पर 2 शव लटके देखे. इन में एक शव युवक का था और दूसरा युवती का.

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यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो आकलपुर गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही बगिया की ओर दौड़ पड़ा.

सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. गांव के लोगों ने पेड़ पर शव लटके देख पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानप्रभारी मोहम्मद उमर फारुक पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने फोटो खींचने के बाद दोनों शव नीचे उतरवाए. उन की तलाशी ली तो दोनों के पास आधार कार्ड मिले. पुलिस को पता चला कि मृतक युवक आलमपुर कनैटा निवासी रामवीर का 20 वर्षीय बेटा अनिल कुमार था, जबकि मृतका उसी गांव के रहने वाले राजवीर की बेटी ललिता उर्फ लता थी.

थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी अपने आला अधिकारियों के साथ ही युवकयुवती के घर वालों को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों परिवारों में कोहराम मच गया. आकलपुर गांव आलमपुर गांव की सीमा से सटा हुआ था, इसलिए घर वाले रोतेबिलखते वहां पहुंच गए. इसी दौरान सीओ (सदर) बलदेव सिंह खनेड़ा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अपने बच्चों की लाशें देख कर दोनों के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस को दोनों के पास से सुसाइड नोट भी मिले. अनिल का सुसाइड नोट उस की पैंट की जेब से जबकि ललिता ने सुसाइड नोट अपनी कलाई में बंधे कलावे से बांध रखा था. आधार कार्ड, सुसाइड नोट के अलावा दोनों के मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए. जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

पुलिस ने जब केस की जांच शुरू की तो पता चला कि अनिल और ललिता ने गांव लौटने का फैसला कर लिया था और यह बात घर वालों को बता दी थी. ऐसे में दोनों के शव पेड़ से लटके मिलने पर सवाल उठने लगे.

मिलन नहीं तो मौत ही सही

इस प्रेमी युगल की प्रेम कहानी की इबारत सुसाइड नोट में लिखी मिली. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम खाई और सुसाइड नोट लिखे. ललिता ने अपने सुसाइड नोट में अनिल के अलावा किसी और से शादी न करने की बात लिखी थी. एक पेज के सुसाइड नोट में उस ने लिखा था कि मैं अनिल के पास दिल्ली चली गई थी.

मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी थी, जबकि मैं किसी दूसरे से शादी नहीं कर सकती थी. अनिल मुझ से घर वापस जाने के लिए कह रहा था, लेकिन मैं घर नहीं जाना चाहती थी. मैं अनिल के बिना नहीं रह सकती. इसलिए अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

वहीं अनिल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि ललिता मेरे पास दिल्ली आ गई थी. 18 अगस्त को वह उसे गांव छोड़ने आया था, लेकिन लता ने अपने घर जाने से इनकार कर दिया. उस ने लिखा कि मम्मीपापा मुझे माफ कर देना. मैं लता के बिना नहीं रह सकता. मैं अपनी मरजी से आत्महत्या कर रहा हूं.

पुलिस ने अनिल के घर मिले एक रजिस्टर से उस के सुसाइड नोट की राइटिंग का मिलान भी किया.

प्रेम विवाह को ले कर परिवार के लोगों ने दोनों के बीच में दीवारें खड़ी कर दीं तो प्रेमी युगल ने मरने का फैसला ले लिया. प्रेमी जोड़े ने इतना बड़ा कदम उठा लिया कि एक पेड़ पर एक ही दुपट्टे से एक ही फंदे पर लटक कर मौत को गले लगा लिया.

इस प्रेम कहानी का अंत लता के घर वालों की जिद के कारण हुआ. 16 अगस्त को जब लता अचानक गांव से गायब हो गई थी, तब वह सीधे दिल्ली में रह रहे अपने प्रेमी अनिल के पास पहुंची थी. 17 अगस्त को लता के पिता की उस से मोबाइल पर बात भी हुई.

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लता ने परिजनों को सारी बात बताई और कहा कि उस ने अनिल के साथ शादी करने का फैसला कर लिया है. घर वालों ने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया और उसे ऊंचनीच समझाते हुए घर लौटने को कहा. इस के बाद प्रेमी युगल ने घर वालों से 18 अगस्त को गांव आने की बात कही थी. लेकिन 19 अगस्त को दोनों ने आत्महत्या कर ली.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कानूनी काररवाई करने की कोई तहरीर नहीं दी, इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि अनिल और लता ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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