दलित समाज  

बाबा साहब अंबेडकर और कांशीराम ने दलित समाज को कर्मकांडों से बाहर निकालने के लिए बहुतेरे उपाय किए थे. बहुजन समाज पार्टी के लोग ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा’ नारा लगाते थे.

बहुजन समाज पार्टी और बामसेफ के कार्यक्रमों में दलित समाज की चेतना को जगाने के लिए तमाम उदाहरण दिए जाते थे कि मूर्तिपूजा और मंदिर जाने से कोई फायदा नहीं होने वाला.

मायावती के भाषण की एक सीडी वायरल हुई थी, जिस में वे कहती हैं कि ‘जो देवीदेवता कुत्तों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते, वे आप की रक्षा कैसे करेंगे?’

बाद में सत्ता के लिए जब मायावती ने अगड़ी जातियों के साथ समझौते किए, तो बसपा का यह मिशन गायब हो गया. तब बसपा का नारा ‘हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’ हो गया. इस का असर दलितों की सोच पर भी पड़ा.

जो दलित समाज 80 के दशक में जिन कर्मकांडों से दूर हो रहा था, अब वही अगड़ी जातियों से बढ़चढ़ कर कर्मकांडी बनने लगा है. अपनी जिस मेहनत की कमाई को उसे अपनी पढ़ाईलिखाई और रहनसहन पर खर्च करना था, उसे वह मंदिरों, कर्मकांडों और पुजारियों पर चढ़ाने लगा.

उस के पास घर बनवाने और अच्छे कपड़े पहनने का समय भले ही न हो, पर वह पूजापाठ और मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाने के लिए पैसे और समय दोनों निकाल ले रहा है.

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अमेठी जिले के गांव खुटहना में 40 साल बिना शादी किए साथसाथ रहने वाले मोतीलाल और मोहिनी देवी को कर्मकांडों के लिए धार्मिक रीतिरिवाज से अपनी शादी करनी पड़ी, जिस में पंडित भी था और पूजा की वेदी भी थी. शादी के मंत्र भी पढ़े गए.

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