राइटर- कुसुम गोस्वामी ‘किम’
जी हां, यह था इंडिया का मशहूर फैशन वीक… यहीं एक लोकप्रिय फिल्मी जोड़ा, एक बेहद ही खास लिबास में बड़ी नजाकत और अनोखे अंदाज के साथ शो स्टौपर बना, मेरी फ्रैंड श्रेया के वैडिंग कलैक्शन का.
एकाएक तालियों की गड़गड़ाहट कुछ ज्यादा ही तेज गूंज उठी… जब श्रेया अपने सैलिब्रिटी शो स्टौपर्स के साथ मंच पर आई.
मैं श्रेया को इस बुलंदी तक पहुंचते हुए पहली बार नहीं देख रही थी. देशविदेश में उस के फैशन शो होते ही रहते हैं. जब से उस के सपनों को पंख मिले हैं, वह आसमान में ऊपर और ऊपर उड़ती ही जा रही है.
आज मैं कानपुर से मुंबई एक सैमिनार अटैंड करने आई थी. वहीं श्रेया का शो भी देखने को मिल गया. भव्य समारोह खत्म हुआ और मैं श्रेया के साथ उस के घर के लिए रवाना हो ली.
मुंबई एक मायानगरी… यहां की चकाचौंध में अपनी ही चमक फीकी पड़ जाए और अगर आप में हौसला है, जुनून है, तो आप के लिए खुली हैं इस की बांहें… लेकिन यहां राहें बनाना आसान नहीं होता… यहां अपना एक मुकाम कायम कर के इस नामुमकिन काम को मुमकिन किया है श्रेया ने. आज उस के पास फेम भी है और नेम भी.
‘‘अभी और कितनी उड़ान बाकी है? अब तो अंबर भी छू लिया तू ने?’’ मैं ने उस की कामयाबी की बड़े अनोखे अंदाज में तारीफ की.
‘‘तू ने ही पंख लगाए थे एक रोज, अब तू ही पूछ रही है…’’ मेरे हाथों पर अपना हाथ रख कर श्रेया जोश में बोली.
मैं आत्मविश्वास से भरा उस का चेहरा देखती ही रह गई. अचानक मेरी यादों के घने बादलों के बीच से श्रेया का सालों पुराना उदास चेहरा झांकने लगा…
‘‘देख आकांक्षा, तू जानती है न, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती. कितना बुरा लगता है, जब लड़के वाले शादी से मना कर देते हैं. ये कौन होते हैं, हमें पसंद या नापसंद करने वाले?
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‘‘ऐसा नहीं है कि सारे लड़के जो मुझे देखने आए, मुझे पसंद थे. लेकिन नापसंद करने का हक तो लड़कों के पास ही है, इसलिए मैं खामोश रही. अगर लड़कियां भी इन्हें रिजैक्ट कर दें, इन की अक्ल भी ठिकाने लग जाए. हम भी पढ़लिख कर काबिल बन सकती हैं, अगर मौका मिले…’ वह अपने अंदर का गुस्सा एक ही सांस में निकाल गई.
‘‘पर, हम कर भी क्या सकते हैं, जब तक हमारे घर वाले हमारा साथ नहीं देंगे?’’ मैं ने उसे दिलासा देने की कोशिश की.
वह कुछ न बोल पाई… बस उस की नम आंखें बेबसी का दर्द बयां कर गईं.
मैं ने पूछा, ‘‘कब आ रहे हैं वे लोग?’’
‘‘होली के बाद… उन का लड़का किसी शहर में प्राइवेट जौब करता है. होली पर वह घर आएगा… उसी समय आएंगे वे लोग,’’ श्रेया की लड़खड़ाती आवाज में दर्द छिपा था.
मैं जानती थी कि श्रेया को यह सब पसंद नहीं था. उस का सांवला रंग हमेशा शादी में बाधा बन जाता था, जबकि उस का ड्रैसिंग सेंस काफी अच्छा था. वह अपनी मां के साथ कपड़ों में कुछ न कुछ क्रिएटिव करती रहती थी.
दरअसल, श्रेया फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना चाहती थी, लेकिन हमारे छोटे से शहर में फैशन डिजाइनिंग का कोई संस्थान न होने की वजह से यह मुमकिन नहीं हुआ.
मुझे डाक्टर बनना था, इसलिए मैं ने 12वीं के बाद एक बड़े शहर में मैडिकल की कोचिंग जौइन की. वह भी मेरे साथ आना चाहती थी, पर उस के घर वाले राजी न थे. फिर उस ने हमारे शहर के ही डिगरी कालेज से आगे ग्रेजुएशन की पढ़ाई जारी रखी.
मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करती रही. फाइनली मेरा चयन एक नामचीन मैडिकल कालेज में हो गया.
मैं अभी सैकंड ईयर की स्टूडैंट थी और श्रेया ग्रेजुएशन पूरी करने वाली थी. उस ने कई बार बताया था कि उस के रिश्ते को ले कर उस की मां बहुत चिंतित रहती हैं.
श्रेया 3 बहनों में सब से बड़ी थी. उस की मां को बेटियों की शादी की बहुत फिक्र थी, इसीलिए वे चाहती थीं कि श्रेया की शादी जल्दी निबट जाए.
श्रेया का सांवला रंगरूप शादी में रुकावट बन रहा था, वहीं आंटी को छोटी बहनों का रंग उजला होने की वजह से उन की शादी में कोई खास रुकावट नजर नहीं आ रही थी.
होली पर मैं बड़ी खुश हो कर उस के घर गई… उस ने यह कह कर रंग खेलने से मना कर दिया कि मां ने रंगों से दूर रहने की हिदायत दी है.
खैर, होली के तीसरे दिन श्रेया का फोन आया, ‘‘वे लोग आज आने वाले हैं. मेरा दिल घबरा रहा है. क्या तू अभी आ सकती है?’’ वह बेहद परेशान लग रही थी.
मैं बिना समय गंवाए उस के घर पहुंच गई. मुझे देखते ही आंटी बोलीं, ‘‘तू ही इसे समझा. लड़की जात को यह सब सहना ही पड़ता है.
‘‘और हां आकांक्षा, अपनी फ्रैंड को अच्छी तरह तैयार भी करा देना. मुझे रसोई में बहुत काम है. मैं जा रही हूं.’’
आंटी को लड़की की मां होने के नाते सांस लेने भर की भी फुरसत नहीं थी.
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मैं ने श्रेया को संभाला. दोपहर तक लड़के वाले आ गए. मैं श्रेया के मिलने से पहले ही उन लोगों से मिल ली.
आंटी की आवभगत देख कर ऐसा लग रहा था, मानो कोई खास रिश्तेदार आया हो. मैं मन ही मन सोचती रही कि इतनी मेहमाननवाजी के बाद भी ये रिश्ता जुड़े यह जरूरी तो नहीं. सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा. फिर दूसरे लड़के वाले आएंगे, फिर आंटी आवभगत में जुट जाएंगी… बिना किसी दुख और दबाव के. हां, मन में तनाव चाहे जितना हो, पर लड़की वाले ऊपर से जाहिर नहीं कर सकते.
श्रेया सही थी, यह लड़का भी कुछ खास नहीं लगा. बस, शायद लड़का होने और नौकरी करने का रुतबा था, अकड़ थी. अगर श्रेया को मौका मिलता, इस से बेहतर करती.
खैर, इसी बीच श्रेया अपनी छोटी बहन के साथ आई. लड़के वालों ने तरहतरह के सवाल पूछे. मसलन, खाना बनाना आता है कि नहीं? सिलाईकढ़ाई जानती है कि नहीं? उस की रुचियां क्याक्या हैं? शायद उस के बारे में पूरा जान लेना चाहते थे. या यों भी कह सकते हैं कि इस तरह उसे ठोंकबजा कर देख रहे थे. आंटी श्रेया की क्रिएटिविटी बड़े चाव से दौड़दौड़ कर दिखा रही थीं, लेकिन शायद गलत जगह पर…
बहरहाल, शाम तक वे लोग विदा ले कर चले गए. जातेजाते कह गए कि 1-2 दिन में फोन करेंगे.
मेरी छुट्टियां खत्म होने वाली थीं. मैं जाने की तैयारी कर रही थी, तभी श्रेया का फोन आया, ‘‘आकांक्षा, घर आ सकती हो?’’
‘‘क्या हुआ, बताएगी? मुझे डर लग रहा है.’’
‘‘डरने की बात नहीं है. तू आ जा.’’
मैं उस के घर पहुंची. वहां माहौल बड़ा ही तनाव से भरा लगा. आंटीअंकल परेशान दिख रहे थे. श्रेया ने बोलना शुरू किया, ‘‘लड़के वाले बहुत दहेज मांग रहे हैं, जो पापा के बस के बाहर है. अभी और 2 बहनों की शादी बाकी है. सिर्फ मेरी शादी में सबकुछ लगा देना, क्या तुझे सही लगता है आकांक्षा?’’
मैं ने आंटीअंकल को समझाया, ‘‘अपनी सारी जमापूंजी श्रेया की शादी में लगा देना कोई बुद्धिमानी नहीं है. ऐसे लालची लोगों का क्या भरोसा?’’
‘‘पर बेटी, यह तो रीतिरिवाज है,’’ सामाजिक कुरीतियों से अंदर तक जकड़े हुए अंकल बोले.
‘‘रीतिरिवाज के नाम पर अपना सबकुछ लड़के वालों को सौंप देना, हमारी सब से बड़ी भूल है.’’
आंटीअंकल को मेरी बात थोड़ी समझ में आने लगी. मैं ने बात जारी रखी, ‘‘आप अपनी बेटियों को थोड़ी आजादी दें. साथ ही, इन के कैरियर पर भी जरूरत के मुताबिक पैसे लगाएं तो ये भी बहुत ऊंचाई तक पहुंच सकती हैं.’’
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‘‘हां, हम भी तो अपनी बेटियों का भला चाहते हैं,’’ अंकल बोले.
‘‘आज ये आप की बेटियां हैं, कल किसी की बहू. किसी की पत्नी बन जाएंगी. फिर इन के मामले में कितना बोल पाएंगे आप? जो कर सकते हैं, अभी करें… इन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएं.
‘‘आप लोग श्रेया को बड़े शहर भेज कर, कुछ बनने में उस की मदद क्यों नहीं करते? इतना टैलेंट होते हुए भी यह पूरी जिंदगी किसी पर निर्भर रहेगी. अगर यह काबिल होगी तो कोई काम कर के अपने घर की माली हालत को भी और मजबूत बना सकेगी.’’
मैं ने उन्हें चुप देख समाज में दीमक की तरह फैल रही एक कड़वी सचाई से रूबरू कराया, ‘‘आप लोग जानते हैं न. आजकल क्याक्या नहीं हो रहा? दहेज के लालच में कई लड़के शादी तो कर लेते हैं, पर इन का अफेयर बाहर ही चलता रहता है. कई बार तो शादी टूटने तक की नौबत आ जाती है. अगर ऐसे कोई भी हालात आएं, फिर यह कैसे जिएगी अपनी जिंदगी?
‘‘आप ने इसे अपने पैरों पर खड़े होने का मौका ही नहीं दिया. अगर मेरे मांबाप यही सोचते, तो मैं भी डाक्टर बनने का सपना पूरा न कर पाती.’’
‘‘लेकिन बेटी, बड़े शहर में अकेली लड़की के लिए डर भी ज्यादा रहता?है,’’ आंटी ने लड़की की मां होने के नाते दूसरी चिंता जाहिर की.
‘‘डर तो हर जगह रहता है. क्या छोटा शहर, क्या बड़ा शहर? क्या शादी के पहले, क्या शादी के बाद? बस, इसे ही इतना समझदार बनाइए कि अपनी हिफाजत खुद कर सके.
‘‘न जाने कितनी लड़कियां छोटे शहरों से आ कर बड़े शहरों में बने होस्टल में रह कर अपना सपना पूरा कर रही हैं.’’
आंटीअंकल और श्रेया की आंखें नम हो आईं. बहुत सोचविचार करने के बाद वे श्रेया को मेरे साथ भेजने के लिए तैयार हो गए. श्रेया को ले कर यह उन की ओर से किया गया अब तक का सब से सही फैसला था.
मैं ने एक गर्ल्स होस्टल में श्रेया के रहने का बंदोबस्त करा दिया. फिर उस ने फैशन इंस्टीट्यूट में सैलेक्शन के लिए कोचिंग लेनी शुरू कर दी. वह पार्टटाइम जौब भी करती रही, जिस से उस के मांबाप के ऊपर ज्यादा दबाव न बने.
आखिरकार श्रेया की कड़ी मेहनत के बल पर उस का एडमिशन एक नामी फैशन इंस्टीट्यूट में हो गया. उस ने फैशन डिजाइनिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिगरी हासिल की. अपनी क्रिएटिविटी के दम पर उस ने बहुत जल्द एक अलग पहचान बना ली.
कोर्स पूरा होते ही रिटेल सैक्टर की एक मल्टीनैशनल कंपनी में बतौर कौस्टयूम डिजाइनर उस की नौकरी लग गई. फिर उस ने पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा… अपनी दोनों बहनों को भी अच्छी तालीम दिलाने के बाद उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया.
इधर मैडिकल की डिगरी पूरी करने के बाद मैं शहर के नामचीन नर्सिंगहोम में गाइनोकोलौजिस्ट बन गई. मैं ने अपने एक साथी डाक्टर से शादी की, जो कानपुर शहर में एक लैप्रोस्कोपिक सर्जन थे. आगे चल कर हम ने अपना एक फर्टिलिटी सैंटर खोला, जहां आज तक हम ने न जाने कितने पतिपत्नी की गोद भरी थी.
कुछ महीने पहले जब मैं अपने फर्टिलिटी सैंटर पर थी, एक जोड़ा आया. ‘नमस्ते’ के बाद जब वह आदमी बोलना शुरू हुआ, तो रुकने का नाम लेना ही भूल गया.
‘‘आप का बहुत नाम सुना है मैडम. आप के पास बहुत आस ले कर आए हैं… शादी को बहुत साल गुजर चुके हैं. मांपिताजी बड़े निराश रहते हैं, अभी तक उन्हें दादादादी बनने का सुख नहीं दे पाया हूं.
‘‘मैं उन की एकलौती औलाद हूं, ऊपर से अभी तक बेऔलाद हूं. मुझे ले कर तरहतरह की बातें होती हैं. छोटे शहर का रहने वाला हूं न इसलिए…’’ उस की नौनस्टौप बातें सुन कर गुस्सा आने की जगह मुझे थोड़ी हमदर्दी हुई. मैं ने एक सरसरी निगाह उस की पुरानी रिपोर्ट पर दौड़ाई, ऊपर नाम लिखा था ‘राकेश सिंह’.
‘‘कहां के रहने वाले हैं आप?’’
‘‘इटावा जिले का मैडम,’’ वह मुंह लटका कर बोला.
‘‘इटावा… राकेश सिंह…?’’
उस आदमी का चेहरा मुझे अब कुछ जानापहचाना सा लगा… अचानक मुझे श्रेया का मायूस चेहरा याद आया… उसे मायूस करने वाले इनसान का भी, जो सामने बैठे शख्स से मेल खा रहा था.
गौर से देखा तो यकीन हो चला, चेहरे पर उम्र से पहले ही झुर्रियां पड़ गई थीं. पर यह शख्स था वही लालची बंदा, जिस ने कभी श्रेया को पैसों के तराजू पर तोला था. आज कहां यह… और कहां श्रेया… लड़कियों को मौका मिले, तो सच में वे क्या नहीं कर सकतीं?
मैं ने उस की रिपोर्ट देखी, ‘‘आप का केस काफी पेचीदा है. कामयाब होने के कम ही चांस हैं, फिर भी पूरी कोशिश करूंगी,’’ मैं ने एक डाक्टर की हैसियत से अपने मन के गुस्से को वहीं दफना कर कहा.
‘‘ऐसा न कहें. आप के पास बड़ी उम्मीद ले कर आए हैं, जितने पैसे लगेंगे, हम लगाएंगे, बस हमें निराश न करें,’’ आज भी पैसों की अकड़ बाकी थी उस में.
मैं ने कड़क लहजे में कहा, ‘‘पैसों से हर चीज नहीं खरीदी जा सकती… आप से कहा न, मैं कोशिश करूंगी.’’
वह हैरान हो कर मेरा चेहरा देखता रह गया.
‘‘आप को कुछ टैस्ट कराने होंगे. उस के बाद ही आप का इलाज शुरू हो सकता है. मैं ने टैस्ट लिख दिए हैं. आप बाहर रिसैप्शन पर जा कर इन के बारे में पता कर सकते हैं.’’
मैं उसे जाते हुए देखती और सोचती रही कि पैसा ही सबकुछ नहीं होता, यह बात अभी तक इन नादानों को समझ नहीं आई. आज श्रेया के पास बेशुमार दौलत ही नहीं, बल्कि गजब का आत्मविश्वास और सुकून भी है.
बस यही तो है असली खुशियों का राज. सच में मेहनत और समझबूझ के बल पर इनसान अपना भविष्य सुनहरा बना सकता है. इसी सोचविचार के साथसाथ न जाने कब मेरे माथे पर तनाव की अनगिनत टेढ़ीमेढ़ी लकीरें बनतीबिगड़ती रहीं…
अचानक श्रेया की कार के हौर्न ने मुझे पिछले समय के गलियारे से निकाल कर वर्तमान में पहुंचा दिया.
श्रेया के पति का इंपोर्टऐक्सपोर्ट का बिजनैस है. आज मुंबई के साथसाथ कई बड़े शहरों में श्रेया के फैशन हाउस हैं.
वह फोन पर अपने पति से बात कर रही थी, ‘‘आप आ गए पैरिस से…? मैं भी बस घर पहुंचने वाली हूं, अपनी सब से पक्की सहेली और मुझे राह दिखाने वाली आकांक्षा के साथ…’’
मैं ने कनखियों से उस की ओर देखा, तो वह मुसकरा उठी.