करें खुद को मोटिवेट

Writer- वंदना बाजपेयी

जीवन में कुछ हासिल करना है या आगे बढ़ना है तो खुद पर भरोसा होना जरूरी है. आज प्रतियोगिता इतनी बढ़ गई है कि कई बार व्यक्ति को हताशा का सामना करना पड़ जाता है. कई बार खुद की हार से आत्महत्या करने जैसा खयाल भी आ जाता है. ऐसे में जब तक खुद को मोटिवेट न किया जाए तो चीजें सामान्य नहीं हो पातीं.

मेरे नाना अकसर एक कहानी सुनाया करते थे. कहानी इस प्रकार थी, ‘एक गांव में एक गरीब लड़का रहता था. उस का नाम मोहन था. मोहन बहुत मेहनती था. काम की तलाश में वह एक लकड़ी के व्यापारी के पास पहुंचा. उस व्यापारी ने उसे जंगल से पेड़ काटने का काम दिया. नई नौकरी से मोहन बहुत उत्साहित था. वह जंगल गया और पहले ही दिन 18 पेड़ काट डाले. व्यापारी ने मोहन को शाबाशी दी. शाबाशी सुन कर मोहन गद्गद हो गया. अगले दिन वह और ज्यादा मेहनत से काम करने लगा. इस तरह 3 सप्ताह बीत गए. वह बहुत मेहनत से काम करता, लेकिन यह क्या, अब वह केवल 15 पेड़ ही काट पाता था.

व्यापारी ने कहा, ‘कोई बात नहीं, मेहनत करते रहो.’

2-3 सप्ताह और बीत गए. ज्यादा अच्छे परिणाम पाने के लिए उस ने और ज्यादा जोर लगाया. लेकिन केवल 10 पेड़ ही ला सका. अब मोहन बड़ा दुखी हुआ. वह खुद नहीं सम झ पा रहा था क्योंकि वह रोज पहले से ज्यादा काम करता लेकिन पेड़ कम काट पाता.

हार कर उस ने व्यापारी से ही पूछा, ‘मैं सारे दिन मेहनत से काम करता हूं, लेकिन फिर भी क्यों पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है?’

व्यापारी ने कहा, ‘तुम ने अपनी कुल्हाड़ी को धार कब लगाई थी.’

मोहन बोला, ‘धार… मेरे पास तो धार लगाने का समय ही नहीं बचता. मैं तो सारे दिन पेड़ काटने में ही व्यस्त रहता हूं.’

व्यापारी ने कहा, ‘बस, इसीलिए तुम्हारी पेड़ों की संख्या दिनप्रतिदिन घटती जा रही है.’

यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है, हम रोज सुबह नौकरी, व्यापार व कोई अन्य काम करने जाते हैं या कई बार हम कोई काम बहुत जोश से शुरू करते हैं. धीरेधीरे वह काम हमें रूटीन लगने लगता है और हम उस काम को केवल ‘करने के लिए’ करने लगते हैं. पर उस को करने का पहले जैसा जोश और जनून खोने लगता है. जब ज्यादा मेहनत करने के बाद भी हम उतने अच्छे परिणाम नहीं दे पाते हैं तब हमें जरूरत होती है मन की कुल्हाड़ी को धार देने की, यानी खुद को मोटिवेट करने की, ताकि हम उतने ही समय में उत्साह के साथ ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें.

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प्रेरणा के अभाव में धीरेधीरे बड़े उत्साह के साथ पढ़ने के लिए स्टडी टेबल के पास चिपकाए गए टाइम टेबल मात्र शोपीस बन कर रह जाते हैं. औफिस से नोटिस मिल जाता है व व्यवसाय घाटे के साथ डूबने लगता है. ऐसे समय में जरूरी है कि हम खुद को मोटिवेट करें और उत्साहहीनता व निराशा से बाहर निकलें.

जब काम बो िझल लगने लगे तो अपनेआप से 2 प्रश्न करने चाहिए- पहला, क्या आप जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं उस को पाने के लिए कोई प्रेरणा उत्प्रेरक की तरह काम कर रहे हैं? और दूसरा, आप खुद को उस लक्ष्य को पाने के लिए काम में अपनी ऊर्जा  झोंक पाते हैं?

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी काम को करने की इच्छा रखना या उस काम को करने के लिए खुद को इतना मोटिवेट करना कि काम हो जाए, ये  2 अलग बातें हैं. यही वह अंतर भी है जिस से एक लक्ष्य ले कर काम करते 2 व्यक्तियों में से एक को सफल व दूसरे को असफल घोषित किया जाता है. दरअसल, सैल्फ मोटिवेशन वह जादू है जो हमें जिंदगी में सफल करता है. सैल्फ मोटिवेशन वह आंतरिक बल है जो हमें लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ाता है. जब हम ऐसी मनोदशा में होते हैं कि ‘काम छोड़ दें’, ‘अब नहीं हो पा रहा’ या ‘काम कैसे शुरू करें’ तब सैल्फ मोटिवेशन ही हम को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. सैल्फ मोटिवेशन वह हथियार है जो आप को अपने सपनों को पाने, अपने लक्ष्य को हासिल करने व सफलता के मंच को तैयार करने में मदद करता है.

अगर आप को रहरह कर यह लगता है कि आप जो काम कर रहे हैं उस को करने में आप को मजा नहीं आ रहा है या किस दिशा में आगे बढ़ें, यह सू झ नहीं रहा, तो आप निश्चितरूप से उत्साहहीनता के शिकार हैं. अगर ऐसा है भी, तो सब से पहले तो आप यह सम झ लें कि उत्साहहीनता या निराशा का शिकार होने वाले आप अकेले नहीं. हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी इस का अनुभव करता है चाहे वह मोटिवेशनल गुरु ही क्यों न हो. निराशा में सदा घिरे रहने के स्थान पर इस में सुरंग बना कर बाहर निकलना आना चाहिए.

सम िझए स्वप्रेरणा के आंतरिक व बाह्य कारणों को सैल्फ मोटिवेशन के लिए आप को यह सम झना बहुत जरूरी है कि आप को प्रेरणा कहां से मिलती है या वे कौन से कारण हैं जिन से प्रेरित हो कर आप ने वह काम करना शुरू किया है. ये कारण 2 प्रकार के हो सकते हैं- आंतरिक व  बाह्य. आंतरिक कारणों में यह आता है कि आप वास्तव में उस काम से प्यार करते हैं, उसे करे बिना आप को अपना जीवन अधूरा लगता है. जब आप निराश हों तो अपने उसी प्यार को जगाइए, जिस के ऊपर हलका सा कुहरा छा गया है. फिर देखिएगा,  झूम कर बरसेंगे सफलता के बादल.

बाह्य कारणों में पैसा या पावर आते हैं. ज्यादातर वे लोग जिन्होंने बचपन में बहुत गरीबी देखी होती है या शोषण  झेला होता है वे ऐसे ही कामों के प्रति आकर्षित होते हैं जहां ज्यादा पैसा या पावर मिले. कुछ लोग नाम कमाना चाहते हैं, यह भी बाह्य कारण है. आंतरिक कारण जहां खुद ही आसानी से प्रेरित करते हैं वहीं बाह्य कारणों के लिए हमें उन परिस्थितियों को बारबार याद करना पड़ता है जिस कारण हम ने वह काम करना शुरू किया था.

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हिम्मत न हारिए

जीवन सत्य है कि दिन और रात की तरह परिस्थितियां भी सदा एकसमान नहीं रहतीं. कभी कम कभी ज्यादा, प्रकृति का नियम है. उत्साह भी कोई ऐसी चीज नहीं है जो हमेशा आप के साथ रहे. यह आताजाता रहता है. जब जाता है तो दुखी न हों. इस बात को सम िझए कि भले ही इस समय आप निरुत्साहित महसूस कर रहे हैं, पर यह स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली.

घबराने व निराश होने की जगह कुछ समय के लिए दिमाग को उस काम में लगाइए जिस में आप का मन रमता हो, जैसे संगीत, चित्रकारी, बागबानी आदि. ताकि, आप पूरी तरह रिलैक्स हो सकें. अब बस, अपने लक्ष्य से जुड़े रहिए और पहले जैसे उत्साहजनित प्रेरणा के वापस आने का इंतजार कीजिए. इस दौरान अपने लक्ष्य के बारे में पढि़ए, चिंतन करिए, कुछ सार्थक योजनाएं बनाने का प्रयास करिए.

आशावादी रहिए

नकारात्मक विचार आप की पूरी ऊर्जा चुरा लेते हैं. पस्त हौसलों से किले नहीं ध्वस्त किए जाते हैं. मु झे अकसर याद आती है, ‘चिकन सूप फौर सोल’ की एक सत्यकथा जिस में एक क्षतिग्रस्त स्पाइन वाली लड़की से हर डाक्टर ने कह दिया था कि अब तुम कभी चल नहीं पाओगी. निराशहताश लड़की के मित्र ने उसे सम झाया कि ‘इन डाक्टर्स ने तुम्हारी बीमारी का इलाज तो किया नहीं अलबत्ता एक चीज तुम से चुरा ली.

‘‘क्या?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘होप,’ लड़के ने उत्तर दिया.

तब, उस लड़की ने अपनी आशा को फिर से जाग्रत किया और अपने पैरों पर चल कर मैडिकल साइंस को फेल कर दिया. अगर आप सदैव अपने लक्ष्य के प्रति आशावादी रहते हैं तो यह आशा ही आप की प्रेरणा बन जाएगी. अगर कभी नकारात्मक विचार आए भी, तो उस पर ज्यादा मत सोचिए.

एक ही साधे सब सधे

जब आप एकसाथ कई कामों को हाथ में ले लेते हैं तो आप का किसी खास काम के प्रति ध्यान का विकेंद्रीकरण हो जाता है. इस से आप कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते और आसानी से उत्साहहीनता के शिकार हो जाते हैं. ‘जैक औफ औल ट्रेड्स मास्टर औफ नन’ बनने से अच्छा है, हम अपने कामों की प्राथमिकताएं तय करें. अगर आप को लग रहा है कि आप का काम के प्रति उत्साह कम हो गया है तो अपने दिमाग को चारों तरफ दौड़ाने की जगह एक समय में केवल एक लक्ष्य पर लगा लीजिए. इस से आप का ध्यान व उर्जा एक ही स्थान पर खर्च होगी जिस से आप आसानी से उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. सफलता की खुशी में आप दूसरे लक्ष्यों पर भी खुशमन से अपनी ऊर्जा खर्च कर सकते हैं.

हौसले बढ़ते हैं आप की परवाज देख कर

निराशा के दौर में ज्यादा से ज्यादा उन लोगों के बारे में पढ़ें, सोचें और बात करें जो सफल हैं. जिन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया है. अच्छीअच्छी प्रेरणादायी किताबें पढि़ए, उन की जीवनी व संघर्ष पर ध्यान दीजिए. आप देखेंगे कि हर सफल व्यक्ति असफल हुआ है. पर उस ने असफलता पर रोते हुए आगे चलना बंद नहीं किया और धीरेधीरे मंजिल को प्राप्त किया. उन की जीवनी आप के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी. मन में हौसला उत्पन्न होगा कि ‘जब वे पा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं.’ रोजरोज इस प्रक्रिया को दोहराने से आप के मन में भी अपने लक्ष्य को पाने का उत्साह जागेगा.

नन्हेनन्हे कदम नापते हैं जहां

ज्यादातर उत्साहहीनता तब उत्पन्न होती है जब आप बहुत बड़ेबड़े लक्ष्य बनाते हैं और उन्हें नहीं पा पाते. आप निराश हो कर सोचने लगते हैं, ‘अरे लक्ष्य तो हासिल हो नहीं पाएगा, तो प्रयास ही क्यों किया जाए.’ कभी अपने बचपन को याद करिए जब आप चलना सीख रहे थे. मां आप से थोड़ी दूर खड़ी हो जाती थी और आजा, आजा कहती थी. आप हिम्मत करते हुए छोटेछोटे डग भरते हुए मां के पास पहुंच जाते थे और अपनी इस उपलब्धि पर खुश होते थे. अभी भी यही करना है. अपने लक्ष्य को छोटेछोटे हिस्सों में बांट लें. जैसे कैसे आप इन्हें पूरा करते जाएं, तो खुद को शाबाशी दें. धीरेधीरे आप का उत्साह वापस आता जाएगा.

अपनों की खुशी में ढूंढि़ए प्रेरणा

आप के अंदर प्रेरणा की चिनगारी नहीं जल पा रही है, तो अपनी योजना को किसी अपने को बताइए जिस के साथ आप अपनी सफलता बांटना चाहते हों. वह व्यक्ति आप का मित्र, पत्नी, बच्चे या हितैषी कोई भी हो सकता है. आप की सफलता की योजना से जरूर उस व्यक्ति की आंखों में चमक आ जाएगी. वह भी आप की सफलता को आप के साथ मनाना चाहेगा. जिस तरह से एक जुगनू क्षणभर में अंधकार को चुनौती दे देता है वैसे ही अपनों के स्नेह व उन को खुश देखने की इच्छा आप को अपने काम को अच्छे तरीके से करने की प्रेरणा देगी.

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कल्पनाशील बनिए

खुद को प्रेरित करने का यह सब से आसान व कारगर तरीका है. आप जो लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं उस को प्राप्त करने की कल्पना करिए. कल्पना में देखिए (विजुअलाइज करिए) कि आप ने सफलता हासिल कर ली है. सोचिए, अब आप को कैसा महसूस हो रहा है. अब आप प्रकृति को धन्यवाद दे रहे हैं या परिवार और बच्चों के साथ पार्टी कर रहे हैं. जो लोग आप के करीब हैं वे कितने खुश हैं. निश्चित मानिए कि यह क्रिया आप के लिए प्रेरणा का काम करेगी और आप उत्साह से भर जाएंगे.

अपने लक्ष्य की घोषणा सार्वजानिक रूप से करिए

जब आप अपना लक्ष्य समाज के सामने बता देते हैं तो आप के ऊपर यह दबाव रहता है कि इस काम को पूरा करना ही है अन्यथा आप सार्वजनिक निंदा के पात्र बनेंगे. कौन चाहता है कि लोग उस की खिल्ली उड़ाएं, पीठ पीछे कहें कि ‘बड़े चले थे यह काम करने, अब देखो.’ आप भी ऐसी बातें सुनना नहीं चाहते होंगे, न यह चाहते होंगे कि आप की वजह से आप को या आप के परिवार को नीचा देखना पड़े. पर यह सामाजिक दबाव एक उत्प्रेरक का काम करता है. अपने को समाज की नजरों में ऊंचा उठाने के लिए आप खुद को पूरी तरह से  झोंक देते हैं. सफलता का इस से बड़ा कोई मूल मंत्र नहीं है. यहां यह बात ध्यान देने की है कि एक बार बता कर छोड़ मत दीजिए बल्कि हफ्तेपंद्रह दिनों में अपडेट भी करते रहिए.

समान जीवन वाले लोगों का रूप बनाइए

‘संगति ही गुण उपजे संगति ही गुण जाए.’ मान लीजिए, आप ने कोई लक्ष्य बना लिया और मेहनत भी शुरू कर दी है, पर आप का जिन लोगों के बीच उठनाबैठना है वे कामचोर हैं या दिनरात गपबाजी में दिन व्यतीत करते हैं तब आप अपना उत्साह ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रख पाएंगे. वहीं, अगर आप ऐसे लोगों के साथ हैं जो धुन के पक्के हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिनरात नहीं देखते, कठोर परिश्रम करते हैं तो आप का मन भी उत्साह से भर जाएगा और एक कर्मठ शूरवीर की तरह आप कार्यक्षेत्र में जुट जाएंगे.

अपने समान लक्ष्य वाले लोगों से मिलतेजुलते रहिए

जो लोग आप के समान ही लक्ष्य रखते हैं उन से महीनेपंद्रह दिनों में मिलते रहिए. इस से आप उन की सफलता से अपडेट होते रहेंगे या उन्होंने कैसे प्रयास किया, इस बात की जानकारी आप को होती रहेगी. असफल लोग क्या गलती कर रहे हैं, यह देख कर आप का स्वयं द्वारा की जाने वाली गलतियों पर ध्यान जाएगा. इस के अतिरिक्त, इस विचारविमर्श से नए तथ्य उभर कर सामने आएंगे. उदाहरण के तौर पर, अगर आप गाना सीख रहे हैं तो साधारण श्रोता आप के गायन की वाहवाही करेंगे. पर गायकों की महफिल में आप को एकएक सुर पर चर्चा करने से सही आरोहअवरोह पकड़ने में मदद मिलेगी. साथ ही, समकालीन अच्छे गायकों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना जाग्रत होगी, जिस से आप को और बेहतर गाने की प्रेरणा मिलेगी.

खुद को इनाम दीजिए

‘इनाम, वह भी खुद को?’ अजीब लगता है पर सैल्फ मोटिवेशन का बहुत कारगर तरीका है. अपने लक्ष्य को कई छोटे हिस्सों में बांटिए. और हर हिस्से के पूरा होने पर एक इनाम रखिए. वह इनाम महज इतना भी हो सकता है कि काम का इतना हिस्सा पूरा होने के बाद एक कप कौफी पिएंगे. देखिएगा वह कौफी रोज की कौफी से अलग ही स्वाद देगी. उस में जीत का नशा जो मिला होगा. आप यह भी इनाम दे सकते हैं कि इतना काम पूरा होने के बाद नई खरीदी किताब पढ़ेंगे, या कोई पसंदीदा काम करेंगे. कुछ भी हो, अपनी छोटीछोटी जीत को सैलिब्रेट करिए. इस से आप को आगे काम पूरा करने की जबरदस्त प्रेरणा मिलेगी.

अपनी योजनाओं की तिथिवार डायरी बनाइए

आप कौन सा काम कब करना चाहते हैं, इस की तिथिवार डायरी बनाइए, जैसे आप लेखक हैं तो आप की डायरी कुछ यों बनेगी-

नया काव्य संग्रह— (….) मार्च तक.

कथा संग्रह— (….) पुस्तक मेले तक.

प्रकाशित लेख आदि का संग्रह—(….)दिसंबर तक.

इस डायरी को बारबार पलटिए और अपने निश्चय को पक्का करते रहिए. यह आप को अदृश्य प्रेरणा से नवाजता रहेगा.

अगर आप वास्तव में किसी काम को करना चाहते हैं तो एक खूबसूरत वाक्य याद रखिए जो वाल्ट डिज्नी कहा करते थे, ‘मु झे नहीं लगता कि कोई भी पढ़ाई उस व्यक्ति के लिए असंभव होती है जिसे अपने सपनों को सच बनाने का हुनर आता है.’ सपनों को सच बनाने का हुनर निर्भर करता है सैल्फ मोटिवेशन पर. इसलिए जब लगे कुछ मनमुताबिक नहीं हो रहा है, तो कुछ पल ठहरिए. अपने आप को मोटिवेट करिए. फिर देखिए चमत्कार. एकएक कर के सफलता के दरवाजे आप के लिए खुलते चले जाएंगे.

धर्म का धंधा: कुंडली मिलान, समाज को बांटे रखने का बड़ा हथियार!

लेखक- शाहनवाज

लड़केलड़की की कुंडलियों में यदि 36 गुणों में सभी गुणों का मिलान हो जाए तो क्या इस की कोई गारंटी है कि वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा? यदि ऐसा न हुआ तो इस में किस का दोष माना जाएगा? क्या शादी से पहले कुंडली मिलान करना आवश्यक है या फिर कुंडली मिलान की प्रक्रिया के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है? क्या यह सिर्फ एक धर्म में ही है या इस जैसी कोई प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी पाई जाती है?

साल था जनवरी 2018, जब राजीव की शादी के लिए जगहजगह लड़की तलाशने के लिए लोगों के घर जाया जा रहा था. उन के घर वाले ऐसी बहू की तलाश में थे जो सुंदर हो, सुशील हो, घरबार का काम करना आता हो, पढ़ीलिखी हो इत्यादि. खानदान के पंडित बड़ी मेहनत से कुंआरी लड़कियों के रिश्ते का पता करते और एक के बाद एक लड़के की कुंडली के अनुसार लड़कियों को छांटते रहे. घर वालों ने तो पंडितजी से साफ कह दिया था कि लड़केलड़की की कुंडली में कम से कम 24 गुण तो मिलने ही चाहिए.

राजीव की कुंडली के अनुसार घर के पंडित का लड़की ढूंढ़ना थोड़ा मुश्किल होने लगा तो घर वालों ने अपने गांव के कुछ और पंडितों को भी लड़की ढूंढ़ने के इस काम में शामिल कर लिया. अंत में पंडितों के काफी तलाशने के बाद ऐसी लड़की मिल ही गई जिस से राजीव की कुंडली के 36 में से 32 गुणों का मिलान हो गया. राजीव के घर वाले बहुत खुश हुए और जल्द ही लड़की वालों से मिल कर रिश्ते की बात भी पक्की कर आए. अप्रैल तक आतेआते राजीव की शादी हो गई और नया जोड़ा हनीमून के वास्ते कुछ दिनों के लिए शिमला चला गया.

राजीव और कल्पना की शादी के कुछ महीने अभी हुए भी नहीं थे कि उन के बीच छोटीमोटी बातों को ले कर अनबन होनी शुरू हो गई. पहले बात केवल एकदूसरे के प्रति नाराजगी तक थी, लेकिन कुछ समय बाद यह छोटीमोटी अनबन छोटेमोटे  झगड़ों का रूप धारण करने लगी.

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घर वाले उन के बीच इन छोटे  झगड़ों को इग्नोर किया करते थे और कहते थे, ‘‘जिन पतिपत्नी के बीच  झगड़ा होता है उन के बीच प्यार भी उतना ही होता है.’’ अब यह बात कितनी सही कितनी गलत थी, यह तो बाद में ही सम झ आया जब छोटेमोटे  झगड़े इतने बढ़ने लगे कि सभी को चिंता होने लगी.

जैसेतैसे राजीवकल्पना की शादी को 7-8 महीने गुजर गए. उन का कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता था जब वे  झगड़ा न करते हों. साल 2019 की शुरुआत में ही वे दोनों एकदूसरे से इतने परेशान हो गए कि उन दोनों ने ही अपने परिवार की न मानते हुए एकदूसरे को तलाक देने का फैसला कर लिया. और अप्रैल 2019 के आतेआते वे दोनों कानूनी तरीके से एकदूसरे से अलग हो गए.

जिस जोड़े की कुंडली में 36 में से 32 गुणों का मिलान हो जाए, उस के बाद भी यदि शादी के बाद इतनी समस्याएं हों तो इस में किस का दोष है? क्या कुंडली मिलान करने वाले पंडित से गलती हुई? या फिर यह कुंडली वाला पूरा सिस्टम ही इस के पीछे का दोषी है? क्या शादीब्याह से पहले कुंडली देखना और गुणों का मिलान करना मात्र ढकोसला है या फिर इस के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है?

एक पल के लिए यदि हम मान भी लें कि कुंडली मिलाने वाले पंडित की गलती के कारण ये सभी समस्याएं नवविवाहित जोड़े को सहनी पड़ीं, लेकिन हम ने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरण देखे हैं जिन में सर्वगुण संपन्न कुंडली मेल के बाद भी विवाहित जोड़ा अपना वैवाहिक जीवन सफल नहीं बना पाता. और हम ने यह भी देखा है कि कुंडली मेल बिलकुल भी न होने पर कई जोड़े बेहद सुखद वैवाहिक जीवन गुजारते हैं. ऐसे में कुंडली मिलान की परंपरा पर सवाल उठना उचित हो जाता है कि जब इस के मिलने या न मिलने से विवाहित जोड़े के जीवन में कोई असर नहीं पड़ता तो अभी भी बहुसंख्य शादीब्याहों में इस परंपरा को इतना अधिक मोल क्यों दिया जाता है?

क्या है कुंडली मिलान

दावा किया जाता है कि कुंडली आप की ऊर्जा प्रणाली और उस पर ग्रहों की प्रणाली के प्रभावों का वर्णन करती है.

विवाह के समय लड़के और लड़की की जन्म कुंडलियों को मिला कर देखा जाता है. कुंडली मिलान की इस विधि में 36 गुण होते हैं. विवाह की मान्यता के लिए 36 में से कम से कम 18 गुणों का मिलान होना चाहिए. इन 18 गुणों में नाड़ी, माकुट, गण, मैकी, योनि, तारा वासिफ वर्ण जैसे 8 कूटों में बंटे अंक होते हैं.

कुंडली मिलान अपनेआप में वैज्ञानिक नहीं है. सब से पहले तो एस्ट्रोलौजी को ही वैज्ञानिक नहीं माना गया है.

क्यों बन गया जरूरी

यदि हम कुंडली मिलान प्रथा को और इस की प्रक्रिया को ध्यान से अध्ययन करें तो पाएंगे कि इस मिलान के 36 गुणों में सब से महत्त्वपूर्ण गुण (जिसे गुण नहीं माना जाना चाहिए) वर्ण कूट है. वर्ण कूट से अभिप्राय वर्ण व्यवस्था से है. यानी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. इन्हीं वर्णों से ही जातियों का उत्थान होता है. और तो और, वर्ण कूट को कुंडली मिलान की प्रक्रिया में सब से पहला स्थान दिया गया है.

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कुंडली मिलान की यह प्रक्रिया समाज में तब से ही चलती आ रही है जब से भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का उत्थान हुआ. पुराने समय में कुंडली मिलान की उपयोगिता केवल बेहतर साथी की तलाश के लिए (जिस की कोई गारंटी अभी भी नहीं है) ही नहीं, बल्कि जाति व्यवस्था कायम रखने के लिए भी थी.

वर्ण व्यवस्था समाज में एक तरह की छतरी के समान होती है, जिस के अंदर अलगअलग जातियों का समावेश होता है. हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था को बेहद अहम स्थान दिया गया है. ब्राह्मण का विवाह ब्राह्मण से, क्षत्रिय का विवाह क्षत्रिय से, वैश्य का विवाह वैश्य से और शूद्र का विवाह शूद्र से ही हो, इस चीज का क्रियान्वयन कुंडली मिलान की प्रक्रिया से ही संभव था.

भारत में जाति व्यवस्था ने समाज को हमेशा बांट कर रखा. उस के पीछे सब से बड़ा कारण समाज में कुछ लोगों के पास ही सब से अधिक संसाधन और सब से अधिक अधिकारों को अपने हाथों में बनाए रखना था. और यह सब समाज में बिना धर्म के लागू करना संभव ही नहीं था. मुट्ठीभर लोग, जिन के हाथों में संसाधन और अधिकारों का केंद्रीयकरण हो गया, समाज को अपने आने वाली पीढि़यों में हस्तांतरित करना चाहते थे.

इसी कारण उन्होंने समाज में लोगों के पेशे के अनुसार उन्हें विभाजित कर दिया. किसी दूसरी जाति का व्यक्ति किसी अन्य जाति के साथ संबंध न बना ले, इसीलिए तरहतरह की पाबंदियां लगा दी गईं. यह केवल संबंध बनाने की बात नहीं थी, बल्कि एक जाति का खून दूसरी जाति में मिश्रित न हो जाए, इस के ऊपर कंट्रोल करने के लिए कुंडली मिलान की प्रथा सब से अहम थी.

आज के समय में भी शादी से पहले कुंडली मिलान की यह प्रथा आम घरों में बेहद आम है. चाहे लड़के के लिए लड़की तलाशनी हो या फिर लड़की के लिए लड़का, कुंडली में जब तक 18 गुण नहीं मिल जाते तब तक शादी के लिए मंजूरी नहीं मिलती. और कुंडली मिलान की यह प्रथा, पढ़ाईलिखाई से वंचित लोगों के साथसाथ खूब पढ़ेलिखे लोग भी अपनी शादी के लिए योग्य  वर या वधू की तलाश के लिए प्रयोग करते हैं.

सफल होने की नहीं है गारंटी

चूंकि ज्योतिष विद्या या एस्ट्रोलौजी किसी तरह का कोई विज्ञान नहीं है, इसलिए इस का एक हिस्सा यानी कि कुंडली मिलान का भी किसी तरह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. कुंडली प्रथा में जिस तरह ग्रहों और नक्षत्रों के मेल या अमेल से किसी व्यक्ति के लिए कौन योग्य है और कौन नहीं, इस का आकलन करने की नाटकनौटंकी की जाती है, उस से यह कहीं से भी न तो वैज्ञानिक लगती है और न ही यह कोई विज्ञान है.

मामला केवल जाति व्यवस्था को बनाए रखना है, बाकी सब तो मदारी के खेल जैसा है. जिस से लोगों को लगता है कि ज्योतिषी जो भी राहू, केतु, शनि, मंगल कर रहा है वह सब ठीक ही होगा. जबकि, कुंडली मिलान से बनाए जाने वाले संबंध अपने वैवाहिक जीवन में सफल हों, इस की कोई गारंटी नहीं है.

मसलन, राजीव का ही उदाहरण ले लीजिए. 36 में से 32 गुणों के मिलान के बावजूद शादी का एक साल भी नहीं हुआ और दोनों का तलाक हो गया.

उसी प्रकार रवि की शादी का किस्सा है. कालेज के दिनों में रवि का कालेज में एक लड़की से प्रेम हो गया. लड़की का नाम बुशरा हसन था. बुशरा और रवि ने अपने घर पर एकदूसरे के बारे में बताया. लेकिन कोई बात नहीं बनी. अंत में रवि और बुशरा ने कानूनी तरीके से कोर्ट में जा कर शादी कर ली. हाल में उन से मुलाकात हुई तो वे एकदूसरे के साथ बेहद खुश नजर आए.

आजकल इन शादियों को रोकने के लिए लव जिहाद का नारा दिया जा रहा है ताकि धार्मिक भेदभाव की लकीरों को ऊंची दीवारों में बदला जा सके.

यदि हम पौराणिक कथाओं की बात करें तो भगवान राम और सीता की जोड़ी के समय जब उन की कुंडली का मिलान महर्षि गुरु वशिष्ठ द्वारा किया गया, तो कहा जाता है कि उन की जोड़ी में 36 में से 36 गुणों का ही मिलान हो गया था. परंतु जब 36 गुणों का मेल हो ही गया था तो अंत में सीता को क्यों धरती में समाना पड़ा?

कुंडली प्रथा कितनी व्यावहारिक

कुंडली मिलान की प्रथा केवल समाज में पहले से मौजूद जाति व्यवस्था को मजबूती देती है. इस से यह सवाल बनता है कि आज के आधुनिक समाज में कुंडली मिलान अपनी कितनी व्यावहारिकता रखता है?

उदाहरण के लिए रवि और बुशरा की जोड़ी को ही ले लीजिए. यदि हम नाम से दोनों के धर्म का अंदाजा लगाएं तो रवि हिंदू धर्म से और बुशरा मुसलिम धर्म से ताल्लुक रखती है. इस हिसाब से तो रवि का मेल किसी भी तरीके से बुशरा के साथ होना ही नहीं चाहिए. लेकिन सचाई कुछ और ही बयां करती नजर आ रही है कि दोनों एकदूसरे के साथ बेहद खुश हैं.

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में कई ऐसे हैं जिन्होंने विधर्मी से विवाह किया और उन के विवाह भी सफल रहे, कैरियर भी. उसी प्रकार एक सवाल यह भी बनता है कि जिन धर्मों में कुंडली मिलान जैसी प्रथाओं को प्रैक्टिस नहीं किया जाता, क्या उन के यहां रिश्ते होते ही नहीं? या फिर क्या उन में शादियां होती ही नहीं? और अगर होती हैं तो क्या उन के रिश्ते टूट जाते हैं?

आज के आधुनिक समाज में एस्ट्रोलौजी, हौरोस्कोप इत्यादि पर भरोसा करना खुद को वक्त में पीछे धकेलने जैसा है. एक तरह दुनिया में विज्ञान तेजी से प्रगति के रास्ते पर है तो कुछ लोग दूसरी तरफ धर्म का चश्मा लगा कर दुनिया को पीछे धकेलने का काम कर रहे हैं.

बाकी धर्म वाले भी पीछे नहीं

यदि यह लगता है कि केवल हिंदू धर्म में ही कुंडली मिलान की प्रथा विद्यमान है तो आप गफलत में हैं. कुंडली मिलान की प्रक्रिया एक ही समाज में एक वर्ग को दूसरे वर्ग से रिश्ते जोड़ने से रोकती है, एक तरह से यह बैरिकेड की तरह काम करती है.

भारत के मुसलिम समुदाय के लोग अपना आंगन बड़ा साफसुथरा दिखाने की कोशिश करते हैं. कहते हैं कि मुसलमानों में किसी तरह की कोई जाति नहीं होती, सब बराबर होते हैं इत्यादि. मुसलिम समुदाय में जाति होती है कि नहीं, यह जानने के लिए सब से सीधा और आसान तरीका इंटरनैट पर सर्च करना है. इंटरनैट खोलिए. गूगल पर मुसलिम मैट्रिमोनी टाइप कीजिए. किसी भी एक वैबसाइट पर विजिट कीजिए और थोड़ा सा सर्फिंग कीजिए. शेख, सिद्दीकी, अनवर, आरिफ, मलिक, अली इत्यादि कर के आप को मुसलमानों में जातियों की एक लंबी लिस्ट देखने को मिल जाएगी.

बेशक, मुसलिम में कुंडली मिलान जैसी प्रक्रिया नहीं फौलो की जाती लेकिन जाति का ध्यान तो रखा जाता है. मुसलिम समुदाय में अगड़े माने जाने वाले (मुगल, पठान, सैयद, शेख आदि) नहीं चाहते कि उन की शादी पिछड़े माने जाने वाले (अंसारी, नाई, सिद्दीकी, जोलाहा आदि) के घर में हो चाहे आर्थिक व शैक्षिक स्थिति एकजैसी हो. किसी ऊंची जाति के मुसलिम से यदि आप पूछ लेंगे कि क्या वे अपने बच्चों की शादी भंगी (अछूत मुसलिम) के घर में करेंगे, तो उन का जवाब न में ही होगा. वैसे, बता दें कि मुसलिम समुदाय में यह दावा किया जाता है कि वे छुआछूत प्रैक्टिस नहीं करते. दरअसल, कह देने भर से किस का क्या जाता है.

भारत में वैसे तो मुसलिम समुदाय अल्पसंख्यक है लेकिन इसी समुदाय की बहुसंख्य आबादी गरीब है, पिछड़ी है. जाहिर सी बात है कि भारत के मुसलिम समुदाय का बहुसंख्य हिस्सा पिछड़ा है या दलित है, जो कि अलगअलग पेशों में लगा हुआ है. जब शादीब्याह की बात होती है तो मुसलिम समुदाय में जाति व्यवस्था क्लीयर कट नजर नहीं आती.

कुछ ऐसा ही सिख समुदाय का भी हाल है. कुंडली मिलान यहां भी प्रैक्टिस नहीं की जाती, लेकिन जाति व्यवस्था तो कायम है. इंटरनैट पर ही सिख मैट्रिमोनी टाइप करने और किसी ंवैबसाइट पर विजिट करने भर से मालूम हो जाएगा कि यहां भी जाति के अनुसार ही लोग अपने घर के लड़केलड़कियों की शादी तय करते हैं. जाट, राजपूत, सैनी, अरोड़ा, भाटिया, बत्रा इत्यादि अपने या अपने से ऊपर की जातियों में अपने बच्चों की शादी करवाना चाहते हैं, अपने से निचली जाति में नहीं.

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क्या करना चाहिए

बात सिर्फ कुंडली मिलान तक ही सीमित नहीं है. कुंडली मिलान समाज में एक धर्म में ही मुख्यरूप से प्रैक्टिस की जाती है, लेकिन वैसी ही प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी तो विद्यमान है.

एक तरफ तो पहले ही ज्योतिष ज्ञान (एस्ट्रोलौजी) को वैज्ञानिक नहीं माना गया है, वहीं दूसरी ओर इन को मानने वाले लोगों की संख्या समाज में बहुत बड़ी है. अर्थात, वे सभी अवैज्ञानिक चीजों पर भरोसा करते हैं. इस की वजह से आधुनिक समाज की यह ट्रेन आज भी कहीं न कहीं उन्हीं पुरानी अवैज्ञानिक, रूढि़वादी, अंधविश्वास की पटरी पर सवार है जो कि अकसर जातिवाद जैसे स्टेशन पर ही प्रस्थान करती है.

भारत को आजाद हुए 73 साल हो चुके हैं परंतु आज भी हमारे समाज से जातिवाद खत्म नहीं हुआ. इस की वजह केवल एक है कि हमारे दादादादी, नानानानी, मांबाप ने इस जाति व्यवस्था को कायम किया हुआ है.

अपनी जाति में बच्चों की शादियां करवा के अगर हम भी अपने पूर्वजों के किए हुए काम को करेंगे तो हमें कोई हक नहीं यह सवाल करने का कि, ‘भारत से जाति कभी क्यों नहीं जाती?’ इस जाति व्यवस्था के खात्मे के लिए यह जरूरी है कि हम इस कुंडली मिलान की सब से पहली सीढ़ी को ही न चढ़ें.

समय विज्ञान का है, न कि धार्मिक अंधविश्वास और पोंगेपन का. खुद को तैयार कर लें और अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य प्रदान करें. ज्योतिष ने कोविड जैसी महामारी की कोई भविष्यवाणी नहीं की थी. किसी पूजापाठ ने कोविड को खत्म नहीं किया.

पांच साल बाद- भाग 5: क्या निशांत को स्निग्धा भूल पाई?

स्निग्धा दिल की बुरी नहीं थी. अत्यधिक प्यारदुलार और अनुचित छूट से वह उद्दंड और उच्छृंखल हो गई थी. वह हर उस काम को करती थी जिसे करने के लिए उसे मना किया जाता था. इस से उसे मानसिक संतुष्टि मिलती. जब लोग उसे भलाबुरा कहते और उस की तरफ नफरतभरी नजर से देखते तो उसे लगता कि उस ने इस संसार को हरा दिया है, यहां के लोगों को पराजित कर दिया है. वह इन सब से अलग ही नहीं, इन सब से महान है. दूसरे लोगों के बारे में उस की सोच थी कि ये लोग परंपराओं और मर्यादाओं में बंधे हुए गुलामों की तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं.

शादी को वह एक बंधन समझती थी. इसे स्त्री की पुरुष के प्रति गुलामी समझती थी. उस की सोच थी कि शादी करने के बाद पुरुष केवल स्त्री पर अत्याचार करता है. इसलिए उस ने ठान लिया था कि वह शादी कभी नहीं करेगी.

परंतु बिना शादी किए किसी पुरुष के साथ रहना उसे अनुचित न लगा.

उसे इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं जब राघवेंद्र के साथ रहते हुए पीठ पीछे उसे लोग न जाने किनकिन विशेषणों से संबोधित करते थे, जैसे- ‘चालू लड़की’, ‘चंट’, ‘छिछोरी’, ‘रखैल’ आदिआदि. तब उसे इन संबोधनों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह किसी की बात पर कान नहीं धरती थी. वह बेफिक्री का आलम था और राघवेंद्र जैसे राजनीतिक नेता से उस का संपर्क था. वह सातवें आसमान पर थी और जमीन पर चल रहे कीड़ेमकोड़ों से वह कोई वास्ता नहीं रखना चाहती थी. उन दिनों उसे अच्छी बात अच्छी नहीं लगती थी और बुरी बात को वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी. लोग उस के बारे में क्या सोचते थे, इस से उस को कोई लेनादेना नहीं था.

स्निग्धा के जीवन के साथ खिलवाड़ करने के लिए केवल राघवेंद्र ही जिम्मेदार नहीं था, इस के लिए स्निग्धा स्वयं जिम्मेदार और दोषी थी. अपनी गलती से उस ने सबक लिया था कि परंपराओं का उल्लंघन हमेशा उचित नहीं होता. राघवेंद्र ने भी स्निग्धा के शरीर से खेलने के बाद उसे छोड़ कर अच्छा नहीं किया था. इस प्रकार के चरित्र से उस का राजनीतिक जीवन तहसनहस हो गया था. इलाहाबाद बहुत आधुनिक शहर नहीं था कि बिना ब्याह के स्त्रीपुरुषों के संबंधों को आसानी से स्वीकार कर लेता. अगले आम चुनाव में उसे पार्टी की तरफ से टिकट नहीं दिया गया. उस ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, परंतु बुरी तरह हार गया.

स्निग्धा को आज एहसास हो रहा था कि अपने अति आत्मविश्वास के कारण मांबाप द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का उस ने नाजायज फायदा उठाया था और अपने पांवों को गंदे दलदल में फंसा दिया था. वह अपने परिवार, संबंधियों और परिचितों से दूर हो गई. दोस्त उस का साथ छोड़ गए और आज वह इतनी बड़ी दुनिया में अकेली है. कोई उसे अपना कहने वाला नहीं है. थोड़ी देर के लिए अगर कोई सुखदुख बांटने वाला है तो वह है रश्मि, जो सच्चे मन से उस की बात सुनती है और सलाह देती है.

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दिल्ली आ कर वह अपने इलाहाबाद के दिनों की कड़वी यादों को भुलाने में काफी हद तक सफल हो गई थी. वहां रहती तो शहर के रास्तों, गलीकूचों और बागबगीचों से गुजरते हुए अपने कटु अनुभवों को भुला पाना उस के लिए आसान न था. अब निशांत से मिलने के बाद क्या वह अपना पिछला जीवन भूल सकेगी? उस के मन में कोई फांस तो नहीं रह जाएगी कि वह निशांत को धोखा दे रही है. परंतु वह ऐसा क्यों सोच रही है? क्या वह समझती है कि निशांत उसे अपना बना लेगा? उस के दिल में एक टीस सी उठी. अगर निशांत ने उसे ठुकरा दिया तो. इस तो के आगे उस के पास कोई जवाब नहीं था. हो भी नहीं सकता था, परंतु संसार में क्या अच्छे पुरुषों की कमी है? अगर वह चाहती है कि शादी कर के अपना घर बसा ले और एक आम गृहिणी की तरह जीवन व्यतीत करे तो उसे कौन रोक सकता था. निशांत न सही, कोई भी पुरुष उस का हाथ थामने के लिए तैयार हो जाएगा. उस में कमी क्या है?

सच तो यह है कि आज पहली बार उस का दिल सच्चे मन से किसी के लिए धड़का है और वह है निशांत.

स्निग्धा को बाराखंभा वाली जौब मिल गई, उस के जीवन में खुशियों के पलों में इजाफा हो गया, लेकिन जीवन में एक ठहराव सा था. पुरुष हो या स्त्री, एकाकी जीवन दोनों के लिए कष्टमय होता है. यह बात निशांत भी जानता था और स्निग्धा भी, परंतु अभी तक उन्होंने अपने मन की पर्तों को नहीं खोला था. ताश के खिलाडि़यों की तरह दोनों ही अपनेअपने पत्ते छिपा कर चालें चल रहे थे.

प्रतिदिन शाम को वे दोनों मिलते थे. मिलने की एक निश्चित अवधि थी और निश्चित स्थान. इंडिया गेट के लंबेचौड़े, खुले मैदान. कभी बैठ कर, कभी घास पर चलते हुए और कभी फूलों के पौधों के किनारे चलते हुए वे दुनियाजहान की बातें करते, वहां घूम रहे लोगों के बारे में बातें करते, चांदतारों की बातें करते और लैंपपोस्ट की हलकी रोशनी में एकदूसरे की आंखों में चांद ढूंढ़ने की कोशिश करते.

उन को मिलते हुए कई महीने बीत गए. चांद अभी भी उन की पकड़ से दूर था. स्निग्धा पहले जितनी वाचाल और चंचल थी, अब उतनी ही अंतर्मुखी हो गई थी या शायद निशांत के संसर्ग में आ कर उस के जैसी हो गई थी. यह उस के स्वभाव के विपरीत था, परंतु मानव मन परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है. स्निग्धा उस के सामने अपने मन को बहुत ज्यादा नहीं खोल सकती थी, क्योंकि निशांत उस के बारे में सबकुछ जानता था. परंतु वह न तो उस के भूतकाल की कोई बात करता, न भविष्य के बारे में कोई बात. दोनों के बीच अनिश्चितता का एक लंबा ऊसर पसरा हुआ था. क्या इस ऊसर में प्यार का कोई अंकुर पनपेगा?

वोट क्लब के छोटेछोटे कृत्रिम तालाबों के किनारे चलते हुए निशांत ने पूछा, ‘जीवनभर अकेले ही रहने का इरादा है या कुछ सोचा है?’

‘क्या मतलब…?’ उस ने आंखों को चौड़ा कर के पूछा.

निशांत गंभीर था.

‘मांबाप के पास जाने का इरादा है?’ निशांत ने घुमा कर पूछा.

स्निग्धा के हृदय में कुछ चटक गया. फिर भी अपने को संभाल कर कहा, ‘उस तरफ के सारे रास्ते मेरे लिए बंद हो चुके हैं. न मुझ में इतना साहस है, न कोई इच्छा. उन के पास जा कर मुझे क्या मिलेगा? मुझे ही इस संसार सागर को पार करना है, अकेले या किसी के साथ?’ उस का स्वर भीगा हुआ था.

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‘किस के साथ?’ निशांत ने उस का हाथ पकड़ लिया.

स्निग्धा के शरीर में एक मीठी सिहरन दौड़ गई. वह सिमटते हुए बोली, ‘जो भी मेरे मन को समझ लेगा.’

‘तो कोई ऐसा मिला है?’ वह जैसे उस के मन को परखने का प्रयास कर रहा था. स्निग्धा मन ही मन हंसी, ‘तो मुझ से बनने की कोशिश की जा रही है.’

वह आसमान की तरफ देखती हुई बोली, ‘देख तो रही हूं, सूरज के रथ पर सवार हो कर कोई औरों से बिलकुल अलग एक पुरुष मेरे जीवन में प्रवेश कर रहा है,’ आसमान में तारों का साम्राज्य था. चांद कहीं नहीं दिख रहा था, परंतु तारों की झिलमिलाहट आंखों को बहुत भली लग रही थी.’

‘परंतु आसमान में तो कहीं सूरज नहीं है, फिर उस का रथ कहां से आएगा?’ उस ने चुटकी ली.

‘अभी रात्रि है. रथ में जुते घोड़े थक गए हैं, वे विश्राम कर रहे हैं. कल फिर यात्रा मार्ग पर निकलेंगे,’ वह हंसी.

‘अच्छा, तो कल शाम तक यहां पहुंच जाएंगे?’

‘कह नहीं सकती. मार्ग लंबा है, समय लग सकता है,’ वह जमीन पर देखने लगी.

निशांत ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. वह उस से सट गई.

‘जब सूरज का रथ तुम्हारे पास आ जाए तो उस पुरुष को ले कर मेरे पास आना, मेरे घर.’

‘अवश्य.’

एक दिन स्निग्धा ने मिलते ही एटम बम फोड़ा.

‘मैं तुम्हारे घर आना चाहती हूं.’

‘क्या सूरज का रथ और वह पुरुष आ चुका है?’ उस ने मुसकराती आंखों से स्निग्धा को देखते हुए पूछा.

‘हां,’ उस ने शरमाते हुए कहा.

‘कहां है?’

‘तुम्हारे घर पर ही उस से मिलवाऊंगी.’

‘तो फिर मुझे 2 दिन का समय दो. आने वाले इतवार को मैं घर पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. ढूंढ़ लोगी न, भटक तो नहीं जाओगी?’

‘अब कभी नहीं,’ स्निग्धा ने आत्मविश्वास से कहा.

अगले इतवार को स्निग्धा उस के घर पर थी और कुछ ही महीनों बाद उस की बांहों में. कुछ साल में वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. यह तो बताने की जरूरत नहीं पर दोनों बच्चे मां से ज्यादा दादादादी से चिपटे रहते और दादादादी बहू के बिना न कहीं जाते न उस से पूछे बिना कुछ करते. निशांत कई बार कहता, ‘‘तुम भी अजीब हो, मैं ने तुम्हें पाया, बदले में मेरे मातापिता को छीन कर तुम ने अपनी तरफ कर लिया.’’

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुने जाने के बाद नरेंद्र गिरि का कद तेजी से बढ़ने लगा. उन से मिलने वालों में नेताओं और अधिकारियों की लाइन लगने लगी. जिस निरंजनी अखाडे़ में वह हाशिए पर रहते थे, वहां भी उन का महत्त्व बढ़ गया था.

अखाड़े के तमाम प्रभावशाली लोग किनारे हो गए थे. ऐसे लोगों को नरेंद्र गिरि का बढ़ता कद अखरने लगा था. नरेंद्र गिरि ने तमाम ऐसे फैसले करने शुरू कर दिए, जो लोगों को नागवार गुजरने लगे थे. अखाड़ा परिषद का प्रमुख कार्य संतों के अलगअलग अखाड़ों को मान्यता देने का होता है. ऐसे में नरेंद्र गिरि ने 2017 में किन्नर और परी अखाडे़ को मान्यता देने से इंकार कर दिया था.

अखाड़ा परिषद में नरेंद्र गिरि की छवि कड़े फैसले लेने वाले अध्यक्ष की बन गई थी. महंत नरेंद्र गिरि ने फरजी संतों की एक लिस्ट जारी कर दी थी. इस में 19 संतों के नाम शामिल थे, जिस की वजह से वह काफी चर्चा में रहे थे.

मीडिया में यह सूची जारी करने के बाद उन पर दबाव पड़ रहा था कि वह इस सूची को वापस ले लें, लेकिन नरेंद्र गिरि सूची वापस लेने को तैयार नहीं थे. ऐसे में उन के खिलाफ विरोधियों की साजिश शुरू हो गई.

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नरेंद्र गिरि का एक वीडियो वायरल किया गया, जिस में वह एक शादी समारोह में डांस करने वाली लड़कियों पर नोट लुटा रहे थे.

नरेंद्र गिरि की तरफ से सफाई देते यह कहा गया था कि वह शादी रिश्तेदारी में थी, जिस में वह खुशीखुशी डांस करने वाली लड़कियों को नोट दे रहे थे. इस वीडियो के वायरल होने के बाद से नरेंद्र गिरि की छवि को काफी धक्का लगा था.

जायदाद और जमीन से जुडे़ विवाद

बाघंबरी गद्दी मठ और निरजंनी अखाड़े के पास अकूत धन और संपदा है. इसे ले कर साजिशों का दौर चल रहा था. प्रभावशाली लोग संतों के साथ मिल कर इस की जायदाद पर कब्जा करने का काम कर रहे थे. संतमहंत ही नहीं सेवादार भी अपने परिजनों के नाम जमीनें खरीद रहे थे.

इस तरह की बातों को ले कर ही नरेंद्र गिरि का अपने ही शिष्य आंनद गिरि के साथ विवाद शुरू हो गया. मठ मंदिर से जुडे़ लोग किसी न किसी तरह से ऐसे मसले तलाश करने लगे, जिस से वह नरेंद्र गिरि से अपनी बात मनवा सकें.

आनंद गिरि मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले थे. किशोरावस्था में ही वह हरिद्वार के आश्रम में नरेंद्र गिरि को मिले थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि उन को प्रयागराज ले आए थे. 2007 में आनंद गिरि निरजंनी अखाड़े से जुड़े और महंत भी बने. गुरु के करीबी होने के कारण लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महंत के नाम से भी उन्हें जाना जाता था.

यह मंदिर भी बाघंबरी ट्रस्ट के द्वारा ही संचालित होता था. आनंद गिरि को योग गुरु के नाम से भी जाना जाता था. वह देशविदेश में योग सिखाने के लिए भी जाता था.

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महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि ने खुद को नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी भी घोषित कर लिया था. बाद में विवाद होने के बाद नरेंद्र गिरि ने इस का खंडन किया था.

आनंद गिरि ने गंगा सफाई के लिए गंगा सेना भी बनाई थी. वह हरिद्वार में एक आश्रम भी बना रहा था. इस के बाद नरेंद्र गिरि के साथ उन का विवाद बढ़ गया था.

दूसरे शिष्य भी खफा रहते थे आनंद गिरि से

महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि दूसरे शिष्यों की आंखों में खटकता था. ऐसे में उस को ले कर सभी इस कोशिश में रहते थे कि वह नरेंद्र गिरि से दूर हो जाए.

आनंद गिरि के विरोधियों को तब मौका मिल गया, जब आनंद गिरि 2016 और 2018 के पुराने मामलों में अपनी ही 2 शिष्याआें के साथ मारपीट और अभद्रता को ले कर 2019 में सुर्खियों में आया था.

मई, 2019 में उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस के बाद सितंबर माह में सिडनी कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था. इस के बाद उस का पासपोर्ट भी रिलीज कर दिया गया था. तब आनंद गिरि भारत आ गया.

आनंद गिरि का हवाई जहाज में शराब पीते हुए एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. आंनद गिरि ने इसे शराब नहीं जूस बताया था. आनंद गिरि शौकीन किस्म का था. महंगी कार, बाइक और ऐशोआराम का उसे शौक था.

नरेंद्र गिरि से पहले भी ऐसे ही विवादों के बीच ही मठ के 2 महंतों की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है. नरेंद्र गिरि का अपने ही षिष्य आनंद गिरि के साथ विवाद की वजह 80 फीट चौड़ी और 120 फीट लंबी गौशाला की जमीन का टुकड़ा बना. आनंद गिरि के नाम यह जमीन लीज पर थी. यहां पर पेट्रोल पंप बनना था.

कुछ दिनों के बाद महंत नरेंद्र गिरि ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि यहां पर पेट्रोल पंप नहीं चल सकता. उन का कहना था कि यहां पर मार्केट बना दी जाए, जिस से मठ की आमदनी बढ़ेगी.

आनंद गिरि का कहना था कि नरेंद्र गिरि उस जमीन को बेचना चाहते हैं. इस कारण लीज कैंसिल कराई गई थी.

मठ की इस करोड़ों रुपए की जमीन को ले कर नरेंद्र गिरि और उन के शिष्य आनंद गिरि के बीच घमासान इस कदर बढ़ गया कि नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़े और मठ से निकाल दिया था. इस के बाद आंनद गिरि भाग कर हरिद्वार पहुंच गया था.

आनंद गिरि ने इस के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के ऐसे वीडियो वायरल किए, जिन में नरेंद्र गिरि के शिष्यों के पास करोड़ों की संपत्ति होने का दावा किया गया था.

नरेंद्र गिरि ने इन मुद्दों पर सफाई देते कहा था कि ये आरोप बेबुनियाद हैं. उन की छवि को धूमिल करने के लिए यह काम किया गया है. कुछ समय के बाद आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि से माफी मांग ली थी. माफी मांगने के वीडियो भी खूब वायरल हुए थे.

नरेंद्र गिरि का एक और विवाद लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उस के बेटे संदीप तिवारी के साथ बताया जाता है. लेनेदेन के इस विवाद की वजह से दोनों के बीच बातचीत बंद थी.

जायदाद के ऐसे विवादों के अलावा भी नरेंद्र गिरि कई तरह के दूसरे विवादों में भी घिरे थे. नरेंद्र गिरि के करीबी रहे शिष्य और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि ने 17 नवंबर, 2019 को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. आशीष गिरि ने जमीन बेचने का विरोध किया था.

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दारागंज स्थित अखाड़े के आश्रम में आशीष गिरि ने गोली मार कर आत्महत्या की थी. इस की वजह यह बताई जा रही थी कि 2011 और 2012 में बाघंबरी गद्दी की जमीन समाजवादी पार्टी के नेता को बेची जा रही थी. पुलिस ने आशीष गिरि की आत्महत्या का कारण डिप्रेशन बताया था.

वीडियो में छिपे राज

जानकार लोगों का मानना है कि नरेंद्र गिरि का कोई ऐसा वीडियो था, जिस के वायरल होने से उन को अपने मानसम्मान के धूमिल होने का डर लग रहा था. एक ऐसा ही वीडियो पहले भी वायरल हो चुका था, जिस में वह डांस करने वाली लड़कियों पर रुपए लुटा रहे थे.

यह माना जा रहा है कि उस की तरह का या उस से अधिक घातक वीडियो और भी हो सकता है. जिस की आड़ में उन को ब्लैकमेल किया जा रहा था. ऐसे में अपना मानसम्मान खोने के डर से नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या जैसा फैसला कर लिया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने नरेंद्र गिरि की मौत की जांच कराने के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. 18 सदस्यों वाली इस जांच टीम की निगरानी 4 अफसरों को सौंपी.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए आरोपी आनंद गिरि, आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी को भादंवि की धारा 306 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर नैनी जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.

नरेंद्र गिरि ने सुसाइड नोट लिखने के अलावा अपना बयान रिकौर्ड कर के भी मोबाइल में रखा है. मौत की वजह जायदाद और मठ के महंत पद का लालच है.

महंत नरेंद्र गिरि की मौत से पता चलता है कि मंदिर और मठ कितनी भी धर्म की बातें कर लें पर वहां भी लालच और एक दूसरे के खिलाफ षडयंत्र हावी रहता है, जिस की वजह से ऐसी घटनाएं घटती रहती है.

Crime Story: प्यार बना जहर

उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंह नगर का एक उपनगर है जसपुर. 12 फरवरी, 2020 की शाम साढ़े 6 बजे किसी व्यक्ति ने जसपुर कोतवाली में फोन कर के बताया कि महुआ डाबरा, हरिपुर स्थित कालेज की ओर जाने वाली कच्ची सड़क किनारे गन्ने के खेत में एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह पौपुलर के जंगल के पास है.  फोन करने वाले ने सूचना दे कर फोन काट दिया. फोन लैंडलाइन पर आया था, इसलिए फोन करने वाले को कालबैक कर के कोई जानकारी नहीं ली जा सकती थी.

खबर मिलते ही कोतवाली प्रभारी उमेद सिंह दानू पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जब तक पुलिस टीम मौके पर पहुंची, तब तक अंधेरा हो चुका था. इस के बावजूद पुलिस ने जीप की रोशनी और टौर्च के सहारे लाश को खोज लिया. मृतका की लाश अर्द्धनग्न स्थिति में थी.

घटनास्थल का निरीक्षण करने पर पहली बार में ही यह बात समझ में आ गई कि मृतक की हत्या कहीं और कर के लाश को उस जगह ला कर फेंका गया है. लाश के पास ही एक लेडीज हैंड पर्स भी पड़ा था, जिस में कुछ दवाइयों के अलावा मेकअप का सामान, मोबाइल फोन, कुछ कंडोम्स वगैरह थे. लाश से कुछ दूरी पर लेडीज सैंडलनुमा जूती भी पड़ी मिली.

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घटनास्थल से सब चीजें और जानकारी जुटाने के बाद कोतवाल उमेद सिंह दानू ने महिला की लाश मिलने की सूचना काशीपुर के सीओ मनोज कुमार ठाकुर, एडीशनल एसपी राजेश भट्ट, एसएसपी बरिंदरजीत सिंह को दे दी. खबर पा कर उच्चाधिकारी घटनास्थल पर आ गए. घटनास्थल पर पुलिस का जमावड़ा लगते देख आसपास के गांवों के कुछ लोग भी एकत्र हो गए थे. पुलिस ने उन से मृतका की शिनाख्त कराई तो उस की पहचान हो गई. पता चला मृतका गांव सुआवाला, जिला बिजनौर की रहने वाली जसवीर कौर उर्फ सिमरनजीत थी. उस के पति का नाम हरविंदर सिंह है.

मृतका की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस अफसरों ने उस के घर वालों तक घटना की जानकारी पहुंचाने के लिए 2 सिपाहियों को भेज दिया. हरविंदर की हत्या की बात सुन कर उस के घर वाले तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए.

मौकाएवारदात पर पहुंचते ही मृतका के भाई राजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि जसवीर कौर की हत्या उस के ससुराल वालों ने की है. उन्होंने ही लाश यहां ला कर डाली होगी. राजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस की बहन मामा के लड़के की शादी में आई थी, लेकिन 5 फरवरी को उस का ममेरा भाई सोनी उसे उस की ससुराल सुआवाला छोड़ आया था. उस के बाद उस की जसवीर से कोई बात नहीं हो पाई थी.

राजेंद्र ने पुलिस को बताया कि उस का बहनोई हैप्पी ड्रग्स का सेवन करता है, जिस की वजह से वह घर का कामकाज भी नहीं करता था. नशे की लत के चलते वह जसवीर को बिना किसी बात के मारतापीटता था. साथ ही वह दोनों बच्चों को भी उस से दूर रखता था. इसी कलह की वजह से जसवीर कौर ममेरे भाई की शादी में भी अकेली ही आई थी.

पुलिस पूछताछ में राजेंद्र ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि जसवीर और हरविंदर ने प्रेम विवाह किया था. लेकिन शादी के कुछ दिन बाद दोनों के बीच खटास पैदा हो गई थी. जिस की वजह से हरविंदर उसे बिना बात के प्रताडि़त करने लगा था.

25 सितंबर, 2019 को हरविंदर सिंह ने उस के साथ मारपीट की थी, जिस के बाद मामला थाने तक जा पहुंचा था. इस बारे में जसवीर ने थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर में मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई थी. बाद में पुलिस ने हरविंदर सिंह को थाने बुलाया और समझाबुझा कर आपस में समझौता करा दिया था. इस के बाद वह जसवीर कौर को उस की ससुराल छोड़ आया था.

लेकिन पुलिस पूछताछ में जसविंदर कौर के ससुराल वालों का कहना था कि जब से वह अपने भाई की शादी में गई थी, घर वापस नहीं लौटी थी. उस की हत्या की सच्चाई जानने के लिए पुलिस को उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था.

मृतका के भाई राजेंद्र ने थाना कोतवाली में जसवीर के पति हरमिंदर सिंह उर्फ हैप्पी, ससुर चरणजीत सिंह, सास रानू व देवर हरजीत सिंह उर्फ भारू निवासी ग्राम बहादरपुर सुआवाला, थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर के विरुद्ध हत्या का मामला दर्ज करा दिया. लेकिन उन के विरुद्ध कोई सबूत न मिलने के कारण पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकी.

इस केस के खुलासे के लिए पुलिस ने मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स भी चैक कीं, जिस में 4 ऐसे लोगों के नंबर मिले, जिन पर मृतका ने काफी देर तक बात की थी. लेकिन उन नंबर धारकों से पूछताछ करने पर भी पुलिस इस केस से संबंधित कोई खास जानकारी नहीं जुटा पाई.

सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

छानबीन में पुलिस ने उस क्षेत्र के अलगअलग स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. साथ ही मृतका के मोबाइल को भी सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन इस सब से पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. उसी दौरान पुलिस को ठाकुरद्वारा-भूतपुरी बस अड्डे पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में 8 फरवरी, 2020 को सुबह के 11 बजे मृतका बस स्टौप पर खड़ी नजर आई.

इस से यह बात साफ हो गई कि ससुराल जाने के लिए मृतका वहां से बस में सवार हुई थी. कहा जा सकता था कि वह 8 फरवरी को अपनी ससुराल जरूर गई थी, जबकि उस के ससुराल वालों का कहना था कि अपने भाई की शादी में जाने के बाद वह घर वापस नहीं आई. ससुराल पक्ष के लोगों के बयान पुलिस के लिए छानबीन का अहम हिस्सा बनते जा रहे थे.

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इस केस की जांच में जुटी पुलिस टीमें मृतका के पति हरविंदर, उस के पिता चरनजीत सिंह और एक रिश्तेदार तरनवीर सिंह निवासी सुआवाला, जिला बिजनौर को पूछताछ के लिए जसपुर कोतवाली ले आई. कोतवाली में पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की.

उन तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास था. इस से ससुराल पक्ष शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने मृतका के पति हरविंदर को एकांत में ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो वह पुलिस के सामने टूट गया.

उस ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि 8 फरवरी को जसवीर कौर घर आई तो किसी बात को ले कर उस से नोंकझोंक हो गई. दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि गुस्से के आवेग में उस ने चादर से उस का मुंह बंद कर उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने मृतका के पर्स से मेकअप का कुछ सामान व कंडोम बरामद किए थे, जिन को ले कर पुलिस संशय में थी. घटनास्थल पर मृतका का शव अर्द्धनग्न हालत में मिला था, जिसे देख कर लग रहा था कि उस के साथ पहले रेप हुआ होगा, बाद में दरिंदों ने उस की हत्या कर दी होगी.

इसी वजह से पुलिस प्रथमदृष्टया इस केस को रेप से जोड़ कर देख रही थी, लेकिन जब केस का खुलासा हुआ तो पुलिस भी हैरत में रह गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई. दरअसल, यह करतूत जसवीर कौर के ससुराल वालों की थी. उस से छुटकारा पाने के लिए उन लोगों ने इस हत्याकांड को बड़े ही शातिराना ढंग से अंजाम दिया था.

गांव मलपुरी जसपुर से कोई 6 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है. 32 वर्षीया जसवीर कौर इसी गांव के स्व. अमरजीत सिंह की बेटी थी. 15 साल पहले जसवीर कौर की शादी हरविंदर सिंह से हुई थी. हरविंदर सिंह जसपुर से लभग 7 किलोमीटर दूर भूतपुरी रोड पर गांव सुआवाला में रहता था.

शादी के समय हरविंदर प्राइवेट बस का ड्राइवर था. उस के पास जुतासे की भी कुछ जमीन थी. तहकीकात के दौरान पुलिस के सामने यह बात भी खुल कर सामने आई कि 15 साल पहले जसवीर कौर का हरविंदर से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस के चलते दोनों ने स्वेच्छा से विवाह कर लिया था.

शादी के कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन फिर दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं और गृहस्थी में खटास आनी शुरू हो गई. दोनों के बीच मनमुटाव का कारण बनी हरविंदर सिंह की मां राणो कौर. हालांकि हरविंदर सिंह ने जसविंदर के साथ अपनी मरजी से कोर्टमैरिज की थी, लेकिन उस की मां राणो कौर को जसविंदर मन नहीं भाई थी.

इसी के चलते उस ने दोनों के संबंधों में विष घोलना शुरू कर दिया था. हालांकि हरविंदर जसवीर कौर से उम्र में काफी बड़ा था, लेकिन फिर भी जसवीर कौर उसे बहुत प्यार करती थी.

समय के साथ जसवीर कौर 2 बच्चों की मां बन गई. लेकिन इस के बाद भी न तो उसे पति हरविंदर सिंह ने मानसम्मान दिया और न ही उस के परिवार के अन्य लोगों ने. 2 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी जसवीर कौर को उस के बच्चों से अलग रखा जाता था.

हरविंदर सिंह खुद भी दोनों बच्चों के साथ अपनी मां राणो के कमरे में सोता था. इसी मनमुटाव के चलते जब दोनों के बीच विवाद ज्यादा बढ़ा तो रिश्तेदारों के सहयोग से हरविंदर सिंह को परिवार से अलग कर दिया गया.

उस के बाद उस का छोटा भाई हरजीत सिंह अपनी मां के साथ खानेपीने लगा. जबकि हरविंदर अपनी पत्नी जसवीर कौर के साथ गुजरबसर कर रहा था. लेकिन यह सब भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सका. कुछ ही दिनों बाद हरविंदर अपनी मां के गुणगान करने लगा और जसवीर कौर की ओर से लापरवाह हो गया.

नशे का गुलाम था हरविंदर

हरविंदर राशन वगैरह जरूरी सामान भी नहीं ला कर देता था. वह खुद तो अपनी मां के साथ खाना खा लेता था, लेकिन जसवीर कौर को खाने के लाले पड़ने लगे थे. उस के पास 2 बच्चे थे, जिन की गुजरबसर करना उस के लिए मुश्किल हो गया था. ऊपर से पति आए दिन उस के साथ मारपीट करता था.

हरविंदर पहले तो केवल शराब का ही नशा करता था, लेकिन बाद में अपना कामधंधा सब छोड़ कर भांग, अफीम आदि का भी सेवन करने लगा था. जसवीर कौर जब कभी उसे समझाने वाली बात करती तो वह उसे बुरी तरह मारतापीटता था. वह उसे घर पर चैन से नहीं रहने देता था.

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अगर वह किसी काम से बाहर जाती तो हरविंदर उस पर चरित्रहीनता का लांछन लगाता था. इस सब से जसवीर कौर की जिंदगी नरक बन गई थी. जसवीर कौर के पास अपना मोबाइल था. जब कभी उस के फोन पर किसी की काल आती तो वह उसे शक की निगाहों से देखता. हरविंदर सिंह उसे किसी से भी फोन पर बात नहीं करने देता था. इस सब के चलते दोनों के संबंधों में कड़वाहट भरती गई.

25 सितंबर, 2019 को हरविंदर सिंह ने जसवीर कौर के साथ मारपीट की, जिस के बाद मामला थाने तक पहुंच गया. नतीजतन जसवीर कौर ने थाना अफजलगढ़, जिला बिजनौर में मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई. लेकिन पुलिस ने दोनों को समझाबुझा कर घर भेज दिया था.

थाने में हुए समझौते के बाद भी हरविंदर अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. वह फिर से उसे प्रताडि़त करने लगा. 3 फरवरी, 2020 को जसवीर कौर अपने मामा के लड़के की शादी में गई थी. वहां से वह 6 फरवरी को वापस लौट आई. फिर 7 फरवरी को वह दिन में 12 बजे घर से निकल गई. उस दिन वह घर न आ कर अगले दिन लौटी. उसी रात झगड़े के बाद हरविंदर ने उस का मोबाइल छीन कर रख लिया.

इसी को ले कर दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि हरविंदर सिंह ने गुस्से के आवेग में चादर से जसवीर का मुंह दबा दिया. जिस से उस की सांस अवरुद्ध हो गई और वह बेहोश हो कर गिर गई. फिर कुछ ही पलों में उस की सांस रुक गई.

जसवीर कौर को मरा देख हरविंदर सिंह बुरी तरह घबरा गया. उस ने यह जानकारी अपने पिता चरनजीत सिंह, मां राणो कौर को दी. इस से परिवार में दहशत फैल गई.

किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि उस की लाश का क्या किया जाए. हरविंदर ने अपने दोस्त तरनवीर सिंह को फोन कर अपने घर बुला लिया. चारों ने मिल कर रायमशविरा कर के उस की लाश को कहीं दूर फेंकने की योजना बनाई.

हत्या के बाद घिनौना षडयंत्र

तरनवीर अपनी बाइक बजाज पल्सर यूपी20पी 7585 ले कर आया था. चारों ने योजना बनाई कि जसवीर की लाश को ऐसी हालत में फेंका जाए ताकि लोग उसे देख कर रेप केस समझें और उस की हत्या का शक घर वालों पर न आने पाए.

इस योजना को अमलीजामा पहनाने हेतु चारों आरोपी जसवीर की लाश को पल्सर बाइक पर रख कर महुआडाबरा की ओर चल दिए. बाइक को तरनवीर चला रहा था. पीछे हरविंदर का छोटा भाई हरजीत सिंह जसवीर कौर की लाश को पकड़ कर बैठा था, जबकि दूसरी बाइक टीवीएस स्टार सिटी यूपी20क्यू 6491 को हरविंदर चला रहा था और उस के पीछे उस के पिता चरनजीत सिंह बैठे थे.

महुआडाबरा आते ही दोनों बाइक एक कच्चे रास्ते की तरफ बढ़ गईं. वहीं एक सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश गन्ने के खेत में फेंक दी. इस मामले को एक नया रूप देने के लिए पूर्व नियोजित योजनानुसार जसवीर के पर्स में मेकअप के सामान के साथ कंडोम के पैकेट भी रख दिए गए.

जसवीर कौर की लाश को गन्ने के खेत में डालने के बाद इन लोगों ने उस की सलवार को घुटनों तक खिसका दिया, ताकि देखने वाले यही समझें कि किसी ने उस के साथ रेप कर उस की हत्या की है.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद चारों अपने गांव सुआवाला लौट आए. लाश की स्थिति देख कर पुलिस भी यही अंदाजा लगा रही थी कि किसी ने बलात्कार कर उस की हत्या कर डाली. लेकिन जब पुलिस ने इस केस की गहराई से छानबीन की तो जांच के दौरान मिले साक्ष्यों के आधार पर केस की कड़ी से कड़ी जुड़ती गई.

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पुलिस ने इस मामले में मृतका जसवीर कौर के पति हरविंदर सिंह, उस के पिता चरनजीत सिंह, दोस्त तरनवीर सिंह व हरविंदर के छोटे भाई हरजीत सिंह को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. मृतका जसवीर कौर के बच्चों 10 वर्षीय किरन व 13 वर्षीय प्रीत को उस का मामा राजू अपने साथ ले गया था.

धुंधली सी इक याद- भाग 2: राज अपनी पत्नी से क्यों दूर रहना चाहता था?

Writer- Rochika Sharma

आज ईशा बहुत खुश थी. शादी के 2 साल बाद उस ने राज से अपने मन की बात कही और राज ने उसे स्वीकार भी किया. वह रात को गुलाबी रंग की नाइटी पहन और पूरे कमरे को खुशबू से तैयार कर स्वयं भी तैयार हो गई. राज भी उसे देख कर बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम इस गुलाबी नाइटी में खिले कमल सी लग रही हो,’’ और फिर वह उस के गालों, माथे, होंठों को चूमने लगा. फिर न जाने उसे क्या हुआ वह ईशा से दूर होते हुए बोला, ‘‘ईशा, चलो सो जाते हैं, फिर कभी.’’  राज के इस व्यवहार से ईशा तो उस मोर समान हो गई जो बादल देख कर अपने  पंखों को पूरा गोल फैला कर खुश हो कर नाच रहा हो और तभी आंधी बादलों को उड़ा ले जाए. बादल बिन बरसे ही चले गए और मोर ने दुखी हो कर अपने पंख समेट लिए हों.  ईशा रोज किसी न किसी तरह कोशिश करती कि राज उस से शारीरिक संबंध स्थापित करे, लेकिन हर बार असफल हो जाती.

आज जब राज दफ्तर से आया तो ईशा ने जल्दी से रात का खाना निबटाया और सोने के पहले राज से बोली, ‘‘चलो न राज कहीं हिल स्टेशन घूम आते हैं… काफी समय हुआ हम कहीं नहीं गए हैं.’’  राज उस की कोई बात नहीं टालता था. अत: उस ने झट से हवाईजहाज के टिकट बुक किए और दोनों काठमांडु के लिए रवाना हो गए. ईशा काठमांडु में नेपाली ड्रैस पहन कर फोटो खिंचवा रही थी. उस की खूबसूरती देखने लायक थी. शादी के 4 साल बाद भी वह नवविवाहिता जैसी लगती थी. 7 दिन राज और ईशा नेपाल की सारी प्रसिद्ध जगहों पर घूमेफिरे.  राज ने उसे आसमान पर बैठा रखा था. जीजान से चाहता था वह ईशा को. ईशा भी उस के प्यार को दिल की गहराई से महसूस करती थी. राज उस की कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं छोड़ता था. लेकिन रात के समय न जाने क्यों वह ईशा को वह नहीं दे पाता जिस का उसे पहली रात से इंतजार था और इस के लिए कई बार तो वह ईशा से माफी भी मांगता. कहता, ‘‘ईशा, तुम मुझ से तलाक ले लो और दूसरी शादी कर लो. न जाने क्यों मैं चाह कर भी…’’ इतना कह एक रात राज की आंखों में आंसू आ गए.

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ईशा कहने लगी, ‘‘ऐसा न कहो राज. हम दोनों ने 7 फेरे लिए हैं… एकदूसरे का हर हाल में साथ निभाने का वादा किया है. मैं हर हाल में तुम्हारा साथ निभाऊंगी. मैं तुम से प्यार करती हूं राज. फिर भी हमें 1 बच्चा तो चाहिए. उस के लिए हमें प्रयास तो करना होगा न?’’  शादी के 5 साल बीत चुके थे. अब तो ईशा से उस के मातापिता, सहेलियां, रिश्तेदार सभी पूछने लगे थे, ‘‘ईशा, तुम 1 बच्चा क्यों पैदा नहीं कर लेतीं? कब तक ऐसे ही रहोगी? परिवार में बच्चा आने से खुशियां दोगुनी हो जाती हैं.’’

हर बार ईशा मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘आप ने कहा न… अब मैं इस बारे में सोचती हूं.’’  मगर यह सिर्फ सोचने मात्र से तो नहीं हो जाता न. बच्चे के लिए पतिपत्नी में  शारीरिक संबंध भी तो जरूरी हैं. शादी को 6 वर्ष बीत गए थे. कई बार ईशा सोचती कि एक बच्चा गोद ले ले ताकि कोई उसे बारबार टोके नहीं. लेकिन फिर सोच में पड़ जाती कि राज को ऐसा क्या हो जाता है कि वह संबंध बनाने से कतराता है? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है. वह उस के साथ खुश भी रहता है, उसे सहलाता है, चूमता है, लेकिन सिर्फ उस वक्त वह क्यों उस से दूर हो जाता है. वह इंटरनैट पर ढूंढ़ने लगी और डाक्टर से भी मिली.

डाक्टर ने कहा, ‘‘ईशा मैं तुम्हारे पति से मिलना चाहूंगी. पुरुषों के शारीरिक संबंध स्थापित करने में असफल होने के कई कारण होते हैं.’’

जब राज घर आया तो ईशा ने उसे बताया, ‘‘मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. डाक्टर आप से मिलना चाहती हैं. कल 11 बजे का समय लिया है. आप को मेरे साथ चलना है.’’

राज ने कहा, ‘‘ठीक है चलेंगे.’’  अगले दिन दोनों तैयार हो कर डाक्टर से मिलने पहुंच गए.  डाक्टर ने राज व ईशा से उन की शादी की पहली रात से ले कर अब तक की  सारी बातें पूछीं. एक बार को तो डाक्टर को भी कुछ समझ न आया. डाक्टर ने बताया, ‘‘पुरुषों में शारीरिक संबंध स्थापित न कर पाने के कई कारण होते हैं जैसे धूम्रपान, जिस के कारण पुरुषों के जननांग तक रक्तसंचार नहीं हो पाता है और उन में नपुंसकता आ जाती है. जिस से इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या आ जाती है और शुक्राणुओं में कमी आ जाती है. इस से सैक्स करने की कामना में कमी आ जाती है.  ‘‘इस का दूसरा कारण होता है डिप्रैशन. जिस तरह यह आम जीवन को प्रभावित करता है उसी तरह यह सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है. इनसान का दिमाग उस के सैक्स जीवन की इच्छाओं को संचित करने में मदद करता है. इसलिए सैक्स के समय किसी भी तरह का टैंशन या स्ट्रैस संबंध में बाधा पैदा करता है. डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है, जिस के कारण दिमाग का कैमिकल कंपोजिशन बिगड़ जाता है और उस का सीधा प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है. कामवासना में कमी आ जाती है.

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‘‘इस के कुछ उपाय होते हैं जैसे धूम्रपान कम करें, संतुलित आहार लें, व्यायाम करें. कई बार मोटापे के कारण भी शरीर में रक्तसंचार नहीं होता और काम उत्तेजना कम हो जाती है. कई बार मधुमेह रोग होने से भी समस्या होती है, क्योंकि मधुमेह इनसान के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है, जिस के कारण इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की शिकायत हो जाती है.  ‘‘कई बार पुरुषों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन की कमी से भी सैक्स लाइफ प्रभावित होती है. इस के लिए सुबह के समय टेस्टोस्टेरौन लैवल का टैस्ट करवाना होता है, क्योंकि सुबह के समय इस का लैवल सब से ज्यादा होता है. शीघ्र पतन भी एक समस्या होती है, जिस में पुरुष महिला के सामने आते ही घबरा जाता है और स्खलित हो जाता है. इस कारण भी पुरुष महिला से दूर भागने लगता है.

भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा ने Rashmi Rocket के गाने ‘घनी कूल छोरी’ पर लागाया ठुमके, Vidoe हुआ वायरल

भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा (Monalisa) इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. वह आए दिन अपनी फोटोज और वीडियो फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. हाल ही में एक्ट्रेस ने तापसी पन्नू की फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ (Rashmi Rocket) के गाने ‘घनी कूल छोरी’ (Ghani Cool Chori) पर अपना डांस वीडियो शेयर किया है. यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

इस वीडियो में वह अपनी को-एक्ट्रेस के साथ जमकर ठुमके लगा रही हैं. एक्ट्रेस तापसी के डांस मूव्स को कॉपी करते हुए दिखाई दी. इस पोस्ट पर यूजर्स खूब कमेंट कर रहे हैं. एक्ट्रेस इस वीडियो में लहंगा पहनी हुई नजर आ रही है.

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मोनालिसा ने वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि ‘आप सभी को हैप्पी नवरात्रि . ये है हमारा डांस नंबर, जिसे हमें हमेशा शूट करना है… इस पर कई फैंस के साथ सेलिब्रीटी ने भी कमेंट किया है.

 

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‘उतरन’ (Uttran) फेम एक्ट्रेस रश्मि देसाई (Rashmi Desai) ने क्लैप और हार्ट वाली इमोजी शेयर की. इस पर मोनालिसा ने जवाब दिया और लिखा कि ‘हम साथ में कब डांस कर रहे हैं.’ बता दें कि रश्मि और मोनालिसा अच्छे दोस्त हैं और वो दोनों ही स्ट्रॉन्ग बॉन्ड शेयर करते हैं.

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वर्क फ्रंट की बात करे तो मोनालिसा टीवी सीरियल ‘नजर’ में नजर आ रही हैं. इसके अलावा वह वेब सीरीज ‘धप्पा’ (Dhappa) और ‘रात्रि के यात्रि 2’ (Ratri ke Yatri 2) में काम कर रही हैं.

मालिनी ने सुनी आदित्य-इमली की बातें, फिर चलेगी नई चाल

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ (Imlie) की कहानी में नया मोड़ देखने को मिल रहा है. मालिनी (Malini)  इमली और आदित्य (Aditya) को अलग करने के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार है. अब वह अपने होने वाले बच्चे की दुहाई देकर दोनों को दूर करना चाहती है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि आदित्य इन दिनों काफी उलझा हुआ दिखाई दे रहा है. वह मालिनी के बच्चे का पिता बनने वाला है लेकिन वह सोच रहा है कि वह अपनी दोनों पत्नियों में से किसी के साथ भी न्याय नहीं कर पा रहा है.

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आदित्य इसी कशमकश में उलझा हुआ है. आदित्य सोच रहा है कि किस तरह उसने पहले इमली को धोखा दिया है और अब मालिनी को धोखा दे रहा है. तो वहीं इमली आदित्य की मदद करती दिखाई देगी. इमली कहेगी कि वह दोनों एक घर में साथ रहते हुए भी एक साथ नहीं है.

 

तो दूसरी तरफ मालिनी छिपकर दोनों की बात सुन लेगी. वह नहीं चाहती है कि आदित्य और इमली किसी भी तरह करीब आए. वह फिर से एक नया प्लान बनाने के बारे में सोचेगी ताकि आदित्य-इमली के बीच दूरी बनी रहे.

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शो में आपने ये भी देखा इमली मालिनी का काफी ख्याल रख रही है. वह मालिनी को जूस पीने के लिए देती है लेकिन मालिनी मना कर देती है. ऐसे में आदित्य की मां उसे फोर्स करती है तो वह इमली के हाथों जूस लेती है. बता दें कि यह शो ‘जलशा’ की बंगाली सीरीज ‘इष्टी कुटुम’ से प्रेरित होकर बनाया गया है.

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पाखी लाएगी अनुपमा-वनराज को करीब तो काव्या उठाएगी ये कदम

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama)  टीआरपी लिस्ट में धमाल मचा रही है. शो की कहानी में बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. अब तक आपने देखा कि काव्या ने अनुज का जॉब प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया है तो वहीं अनुपमा ने भी काव्या के जॉब को लेकर अपना फैसला सुना दिया है. लेकिन अनुज नहीं चाहता कि अनुपमा को किसी भी तरह की परेशानी हो इसलिए उसने काव्या के सामने शर्त रखी है. उसने कहा है कि वह जॉब कर सकती है पर वनराज ऑफिस में आकर कोई तमाशा नहीं करेगा. इसे रोकने की  जिम्मेदारी काव्या की होगी. शो के आने वाले एपिसोड में दिलचस्प मोड़ आने वाला है. आइए बताते हैं कहानी के नए ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि अनुपमा (Anupama) अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रही है. उसने समाज और परिवारवालों का ताना सुनते हुए भी खुद को संभाला. और वह कभी भी गलत फैसले की ओर नहीं बढ़ीं. अनुपमा ने हमेशा सही रास्ता ही चुना है. शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि काव्या वनराज को बताएगी कि उसने अनुज का जॉब एक्सेप्ट कर लिया है.

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ऐसे में वनराज अपना आपा खो देगा. और वह काव्या से भिड़ जाएगा.  काव्या भी चुप नहीं बैठेगी. वह उसे मेंटल कहेगी. और ये भी कहेगी कि फिलहाल उसे डॉक्टर की जरूरत है. वनराज गुस्से में अपना हाथ मारेगा और उसका हाथ कट जाएगा.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि वनराज को इस हालत में देखकर अनुपमा उसकी ओर जाएगी लेकिन वह उसे धक्का मार देगा. तो वहीं काव्या अनुपमा को संभालेगी. ये सब पाखी देख लेगी. ऐसे में वह परेशान हो जाएगी और सीढ़ियां चढ़ते हुए गिर जाएगी.

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तो वहीं वनराज-अनुपमा उसे संभालेंगे. पाखी कहेगी कि पेरेट्स परेशान होकर डाइवोर्स ले लेते हैं, लेकिन जब बच्चे पेरेट्स से परेशान हो जाए तो ऐसे में वे क्या करें. इस बात को सुनकर अनुपमा-वनराज की आंख में आंसू आ जाएगा.

तो वहीं इस हादसे के बाद अनुपमा वनराज से बात करेगी. वह कहेगी कि हमारे लड़ाई के कारण ही पारितोष ने घर छोड़ दिया. पारितोष के बाद अब पाखी भी परेशान है. एक बार हम पहले भी वो पाखी को खो चुके हैं. अब वह उसे दोबारा नहीं खोना चाहती है. ऐसे में पाखी के कारण अनुपमा और वनराज झगड़े को खत्म करने की कोशिश करेंगे. शो में अब ये देखना होगा कि काव्या अनुपमा के साथ कैसा बिहेव करती है.

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