लेखक- सौमित्र कानूनगो
शिक्षा का व्यापारीकरण होते तो हम सभी ने बीते कई सालों में देखा है लेकिन अब जो हो रहा है वह केवल व्यापारीकरण भर नहीं है. महामारी में बच्चों को औनलाइन शिक्षा देना अच्छा सुनाई पड़ता है, परंतु असमृद्ध परिवारों के लिए यह एक नई महामारी के जन्म जैसा है.
लौकडाउन और कोरोना महामारी के खतरे से जहां एक ओर पूरा मानव जीवन प्रभावित हो रहा है वहीं बच्चों की पढ़ाई भी सब से ज्यादा प्रभावित होती नजर आ रही है. मार्च में लौकडाउन लागू किए जाने के बाद से ही देश के शिक्षण संस्थान बंद हैं और पढ़ाई के लिए बच्चे अब औनलाइन एजुकेशन पर निर्भर हैं.
महामारी के खतरे को देखते हुए हमारे देश के विद्यार्थियों के लिए औनलाइन एजुकेशन एक अच्छा रास्ता है. लेकिन जहां हमारे देश में लगभग 70 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं और उन के पास लैपटौप या मोबाइल जैसी सुविधा भी नहीं होती है, वहां रहने वाले विद्यार्थी औनलाइन शिक्षा कैसे ले पाएंगे?
उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर के सरकारी विद्यालय में पढ़ाने वाली शिक्षिका शुभ्रा बनर्जी बताती हैं, ‘‘हमारे यहां 99 प्रतिशत बच्चे इतने समर्थ नहीं हैं कि उन के पास लैपटौप या उन के घर पर वाईफाई की सुविधा हो. कई बच्चों के घरों में फोन भी एक ही है, उस में भी कुछ ही बच्चों के पास स्मार्टफोन है, बाकी बच्चों के पास स्मार्टफोन भी नहीं है.’’
ये भी पढ़ें- आधुनिकता उम्र की मुहताज नहीं
स्क्रौल की वैबसाइट पर प्रकाशित एक आर्टिकल के मुताबिक, सिर्फ 24 प्रतिशत भारतीयों के पास स्मार्टफोन हैं और सिर्फ 11 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहां किसी प्रकार का कंप्यूटर है, मतलब डैस्कटौप, लैपटौप, टेबलेट आदि है.