भोजपुरी एक्ट्रेस निधि झा को बर्थडे पर बॉयफ्रेंड से मिला फेवरेट गिफ्ट, पढ़ें खबर

भोजपुरी एक्ट्रेस निधि झा (Nidhi jha) का 18 अक्टुबर यानी आज बर्थडे है. सोशल मीडिया पर एक्ट्रेस को फैंस से लगातार बधाईयां और शुभकामनाएं मिल रही है. इस खास मौके पर निधि झा के बॉयफ्रेंड ने एक प्यारा सा नोट के साथ एक्ट्रेस का फेवरेट गिफ्ट देकर बर्थडे विश किया है.

बता दें कि भोजपुरी एक्ट्रेस अंजना सिंह (Anjana Singh) के एक्स हसबैंड यश कुमार निधि झा (Nidhi Jha) के साथ अपने रिश्ते को लेकर सुर्खियों में छाये रहते हैं. इस मौके पर यश ने उन्हें खास तोहफा देकर बर्थडे विश किया है और उनके लिए सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Yash Kumarr (@yashkumarr12)

 

ये भी पढ़ें- Manoj Tiwari की एक्स वाइफ इस शख्स को कर रही हैं डेट, देखें फोटोज

यश कुमार ने निधि झा को बर्थडे पर उनकी फेवरेट कार गिफ्ट की है. जिसकी कुछ तस्वीरें उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. इसमें वो दोनों ही कार के सामने पोज देते नजर आ रहे हैं. इस दौरान निधि को हल्के पिंक कलर के शरारे में देखा जा सकता है और यश जींस के साथ ही व्हाइट शर्ट में नजर आ रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Nidhi Jha (@nidhijha05)

 

यश ने इस फोटो को शेयर करते हुए लिखा है  ‘प्यारी निक्कू आपके जन्मदिन पर एक छोटा सा तोहफ़ा आपके लिए आपकी फ़ेवरेट गाड़ी था.  महादेव आपको दुनियां की हर खुशी दें बेटू. दिल की गहराइयों से आपके लिए बहुत सारा प्यार. Love U Bachha.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Nidhi Jha (@nidhijha05)

 

ये भी पढ़ें- भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा ने Rashmi Rocket के गाने ‘घनी कूल छोरी’ पर लागाया ठुमके, Vidoe हुआ वायरल

आपको बता दें यश कुमार और निधि झा एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं और खबर ये भी है कि दोनों लिव इन में रहते हैं. यश की शादी अंजना सिंह (Anjana Singh) के साथ हुई थी और इनकी इस शादी से एक बेटी भी है. अब खबर आ रही है कि निधि और यश इस साल के अंत तक सात फेरे ले सकते हैं.

Crime: नशे पत्ते की दुनिया में महिलाएं 

एक समय था जब लड़कियां या महिलाएं नशे से दूर रहती थी. अब हालात इतने बदल चुके हैं कि महिलाएं नशे की व्यापार में खुलकर सामने आ रही हैं और पुलिस की दबिश में पकड़ी जा कर जेल  जा रही हैं.

महिलाओं को इस नशे के व्यापार में आखिर कौन और कैसे घसीट लाता है और महिलाओं के नशे की व्यापार में आने से जहां समाज को विकृति पैदा हो रही है वहीं यह चिंता का सबब बनता जा रहा है कि आखिर महिलाओं को इस कृत्य से कैसे रोका जा सकता है.

हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई है जिनके परिपेक्ष्य में कहा जा सकता है कि युवतियां और महिलाएं नशे के व्यापार में बहुत आगे निकल चुकी हैं. जिसका खामियाजा उनके परिवार को भी भुगतना रहा है. जहां एक तरफ परिवार इससे टूट रहे हैं, वही देश के जागरूक नागरिकों के लिए भी एक सोचनीय विषय है कि समाज में ऐसा क्या परिवर्तन आया हुआ है कि महिलाएं जिन्हें यह माना जाता था कि किसी भी नशे और अन्य अपराधिक भूमिकाओं से दूर रहती हैं आज वे उसके आसपास पहुंच चुकी हैं. हम  इस रिपोर्ट में इस सच्चाई को सामने लाते हुए आपको कुछ महत्वपूर्ण चौंकाने वाली जानकारियां दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Crime- रोहतक चौहरा हत्याकांड: बदनामी, भय और भड़ास का नतीजा

प्रथम घटना- महाराष्ट्र के नागपुर में एक महिला को नशीली इंजेक्शन के साथ पुलिस ने धर दबोचा महिला ने स्वीकार किया कि वह लंबे समय से नशे के व्यापार में है.

दूसरी घटना- दक्षिण  हैदराबाद में लड़कियां और महिलाओं का एक रैकेट नशीली ड्रग्स के व्यवसाय के केंद्र में था जिसका पुलिस ने खुलासा किया है.
तीसरी घटना – नोएडा के एक संभ्रांत परिवार की महिला को प्रतिबंधित नशीली सामाग्री के साथ पुलिस ने पकड़ा महिला ने बताया रूपए के लिए वह ऐसा कर रही है.

यह कुछ चुनिंदा घटनाएं हैं जो यह इंगित करती है कि महिलाएं अब खुलकर के नशे के व्यापार में अपनी भूमिका निभा रही है जो समाज के लिए एक चिंता का सबब है.

बड़े शहरों से छोटे शहर

यह भी  तथ्य सामने आ रहा है मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे महानगरों के बाद अब छोटे शहर कस्बों में भी महिलाएं नशे के व्यापार में केंद्र में आ चुकी है और अपने पति अथवा भाइयों के संरक्षण में निर्भीक होकर के नशे का धंधा कर रही हैं.

छत्तीसगढ़ के जिला कोरिया के पटना थाना अंतर्गत नशीली दवाओं का व्यापार करने वाली महिला को जो लंबे समय से इस व्यवसाय में संलग्न थी आखिरकार पुलिस ने काफी मात्रा में नशीली इंजेक्शन के साथ रंगे हाथ पकड़ा और गिरफ्तार कर लिया है. छत्तीसगढ़ के इस जिले में पुलिस द्वारा महिलाओं को नशे के चंगुल से बाहर निकालने के लिए लगातार अभिनव प्रयास किया जा रहा है.

यहां ऑपरेशन निजात के तहत पुलिस अधीक्षक कोरिया संतोष कुमार सिंह के आदेशानुसार पुलिस सक्रिय हुई तो 9 अक्टूबर 2021 को मुखबिर से सूचना मिली की ग्राम चिरगूड़ा दरीदाड में नशीली दवा इंजेक्शन का अवैध कारोबार चल रहा है. सूचना के आधार पर मीना सोनवानी नामक महिला को पकड़ा गया  उससे नशे के संबंध में पूछताछ की गई और उसके पास से अवैध रूप से बिक्री करने के लिये रखा हुआ नशीला दवा इंजेक्शन जप्त किया गया.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: बच्चा चोर गैंग- भाग 1

आरोपी का कृत्य गंभीर अपराध घटित करना सबूत पाये जाने  आरोपी महिला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. हमारे संवाददाता ने जब इस  मसले पर खोजबीन की तो यह तथ्य सामने आया कि आरोपी का पति ओम प्रकाश पूर्व में नशीली दवाओं का व्यापार करते हुए पकड़े जाने पर जेल में है फिर भी महिला द्वारा अवैध नशीली दवाओं का व्यापार किया जा रहा था.

सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक डॉक्टर टी महादेव राव के मुताबिक  समाज में आज जिस तरीके से पैसों की होड़ मची हुई है किसी भी स्थिति में लोग रूपया अजित करने के लिए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं. उसी का परिणाम है कि महिलाएं भी नसे पत्ते जैसे व्यवसाय को अपना रही हैं जो चिंता का कारण है.

Top 10 Best Friendship Story In Hindi : दोस्ती की टॉप 10 बेस्ट कहानियां हिन्दी में

Top 10 Best Friendship Story In Hindi : दोस्ती जीवन का सबसे कीमती रिश्ता है. इस रिश्ते में हम एक-दूसरे के साथ सुख-दुख, अकेलापन, हंसी-ठिठोली, सबकुछ साझा करते हैं. एक सच्चा दोस्त जीवन के मुश्किल समय में भी हमारा ढाल बनकर खड़ा रहता है. दोस्ती के रिश्ते को हमेशा सहेज कर रखना चाहिए. तो इस आर्टिकल में आपके लिए लेकर आए हैं सरस सलिल की 10 Best Friendship Story In Hindi. इन कहानियां को पढ़ कर दोस्ती के अनमोल रिश्ते के बारे में आप जान पायेंगे. तो अगर आपको भी हैं कहानियां पढ़ने का शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Best Friendship Story In Hindi.

  1. दोस्ती: क्या एक हो पाए आकांक्षा और अनिकेत ?

friendship-story-in-hindi

आकांक्षा खुद में सिमटी हुई दुलहन बनी सेज पर पिया के इंतजार में घडि़यां गिन रही थी. अचानक दरवाजा खुला, तो उस की धड़कनें और बढ़ गईं. मगर यह क्या? अनिकेत अंदर आया.

दूल्हे के भारीभरकम कपड़े बदल नाइटसूट पहन कर बोला, ‘‘आप भी थक गई होंगी. प्लीज, कपड़े बदल कर सो जाएं. मुझे भी सुबह औफिस जाना है.’’

आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, यह सुन कर और झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली. अपने सूटकेस से खूबसूरत नाइटी निकाल कर पहनी और फिर वह भी बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

2. पंचायती राज: कैसी थी उनकी दोस्ती

friendship-story-in-hindi

उस दिन मुनिया अपने मकान में अकेली थी कि शोभित को अपने पास आया देख कर उस का मन खुशी से झूम उठा. उस ने इज्जत के साथ शोभित को पास बैठाया. पास के मकानों में रहते हुए शोभित और मुनिया में अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के घर आनेजाने लगे थे. कब उन के बीच प्यार का बीज पनपने लगा, उन्हें पता भी नहीं चला. अगर उन दोनों में मुलाकातें न हो जातीं, तो उन के दिल तड़पने लगते थे.

कुछ देर की खामोशी को तोड़ते हुए शोभित बोला, ‘‘मुनिया, मैं कई दिनों से तुम से अपने मन की बात कहना चाहता था, लेकिन सोचा कि कहीं तुम्हें या तुम्हारे परिवार वालों को बुरा न लगे.’’ ‘‘तो आज कह डालो न. यहां कोई नहीं है. तुम्हारी बात मेरे तक ही रहेगी,’’ कह कर वह हंसी थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

3. दिये से रंगों तक: दोस्ती और प्रेम की कहानी

best-friendship-story-in-hindi

हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति साहिल का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर दीवाली के दूसरे दिन घर में ही पार्टी रख ली. अपने और साहिल के औफिस के कुछ दोस्तों को घर पर बुलाया था. दीवाली के अगले दिन जब मैं शाम को दिये और फूलों से घर सजा रही थी तो साहिल बोले, ‘‘शैली, कितने दिये लगाओगी? घर सुंदर लग रहा है. तुम सुबह से काम कर रही हो, थक जाओगी. अभी तुम्हें तैयार भी तो होना है.’’

मैं ने साहिल की तरफ  प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों, तुम भी तो मेरे साथ बराबरी से काम कर रहे हो. बस, 10 मिनट और, फिर तैयार होते हैं.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

4. भीगी पलकों में गुलाबी ख्वाब: क्या ईशान अपनी भाभी को पसंद करता था?

friendship-story-in-hindi

मालविका की गजल की डायरी के पन्ने फड़फड़ाने लगे. वह डायरी छोड़ दौड़ी गई. पति के औफिस जाने के बाद वह अपनी गजलों की डायरी ले कर बैठी ही थी कि ड्राइंगरूम के चार्ज पौइंट में लगा उस का सैलफोन बज उठा.

फोन उठाया तो उधर से कहा गया, ‘‘मैं ईशान बोल रहा हूं भाभी, हम लोग मुंबई से शाम तक आप के पास पहुंचेंगे.’’

42 साल की मालविका सुबह 5 बजे उठ कर 10वीं में पढ़ रहे अपने 14 वर्षीय बेटे मानस को स्कूल बस के लिए  रवाना कर के 49 वर्षीय पति पराशर की औफिस जाने की तैयारी में मदद करती है. नाश्तेटिफिन के साथ जब पराशर औफिस के लिए निकल जाता और वह खाली घर में पंख फड़फड़ाने के लिए अकेली छूट जाती तब वह भरपूर जी लेने का उपक्रम करती. सुबह 9 बजे तक उस की बाई भी आ जाती जिस की मदद से वह घर का बाकी काम निबटा कर 11 बजे तक पूरी तरह निश्ंिचत हो जाती.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

5. पोलपट्टी: क्यों मिताली और गौरी की दोस्ती टूट गई?

friendship-story-in-hindi

आज अस्पताल में भरती नमन से मिलने जब भैयाभाभी आए तो अश्रुधारा ने तीनों की आंखों में चुपके से रास्ता बना लिया. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. बस, सभी धीरे से अपनी आंखों के पोर पोंछते जा रहे थे. तभी नमन की पत्नी गौरी आ गई. सामने जेठजेठानी को अचानक खड़ा देख वह हैरान रह गई. झुक कर नमस्ते किया और बैठने का इशारा किया. फिर खुद को संभालते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए? किस ने बताया कि ये…’’

‘‘तुम नहीं बताओगे तो क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाएंगे?’’ जेठानी मिताली ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘कब से तबीयत खराब है नमन भैया की?’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

6. बहुरुपिया- दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

best-friendship-story-in-hindi

हर्ष से मेरी मुलाकात एक आर्ट गैलरी में हुई थी. 5 मिनट की उस मुलाकात में बिजनैस कार्ड्स का आदानप्रदान भी हो गया.

‘‘मेरी खुद की वैबसाइट भी है, जिस में मैं ने अपनी सारी पेंटिंग्स की तसवीरें डाल रखी हैं, उन के विक्रय मूल्य के साथ,’’ मैं ने अपने बिजनैस कार्ड पर अपनी वैबसाइट के लिंक पर उंगली रखते हुए हर्ष से कहा.

‘‘जी, बिलकुल, मैं जरूर आप की पेंटिंग देखूंगा. फिर आप को टैक्स मैसेज भेज कर फीडबैक भी दे दूंगा. आर्ट गैलरी तो मैं अपनी जिंदगी में बहुत बार गया हूं पर आप के जैसी कलाकार से कभी नहीं मिला. योर ऐवरी पेंटिंग इज सेइंग थाउजैंड वर्ड्स,’’ हर्ष ने मेरी पेंटिंग पर गहरी नजर डालते हुए कहा.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

7. नेवीब्लू सूट : दोस्ती की अनमोल कहानी

friendship-story-in-hindi

मैं हैदराबाद बैंक ट्रेनिंग सैंटर आई थी. आज ट्रेनिंग का आखिरी दिन है. कल मुझे लौट कर पटना जाना है, लेकिन मेरा बचपन का प्यारा मित्र आदर्श भी यहीं पर है. उस से मिले बिना मेरा जाना संभव नहीं है, बल्कि वह तो मित्र से भी बढ़ कर था. यह अलग बात है कि हम दोनों में से किसी ने भी मित्रता से आगे बढ़ने की पहल नहीं की. मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे थे. उन दिनों मैं दक्षिणी पटना की कंकरबाग कालोनी में रहती थी. यह एक विशाल कालोनी है. पिताजी ने काफी पहले ही एक एमआईजी फ्लैट बुक कर रखा था. मेरे पिताजी राज्य सरकार में अधिकारी थे. यह कालोनी अभी विकसित हो रही थी. यहां से थोड़ी ही दूरी पर चिरैयाटांड महल्ला था. उस समय उत्तरी और दक्षिणी पटना को जोड़ने वाला एकमात्र पुल चिरैयाटांड में था. वहीं एक तंग गली में एक छोटे से घर में आदर्श रहता था. वहीं पास के ही सैंट्रल स्कूल में हम दोनों पढ़ते थे.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

8. एक रिश्ता प्यारा सा: माया और रमन के बीच क्या रिश्ता था?

friendship-story-in-hindi

“अरे रमन जी सुनिए, जरा पिछले साल की रिपोर्ट मुझे फॉरवर्ड कर देंगे, कुछ काम था” . मैं ने कहा तो रमन ने अपने चिरपरिचित अंदाज में जवाब दिया “क्यों नहीं मिस माया, आप फरमाइश तो करें. हमारी जान भी हाजिर है.

“देखिए जान तो मुझे चाहिए नहीं. जो मांगा है वही दे दीजिए. मेहरबानी होगी.” मैं मुस्कुराई.

इस ऑफिस और इस शहर में आए हुए मुझे अधिक समय नहीं हुआ है. पिछले महीने ही ज्वाइन किया है. धीरेधीरे सब को जानने लगी हूं. ऑफिस में साथ काम करने वालों के साथ मैं ने अच्छा रिश्ता बना लिया है.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

9. एक अच्छा दोस्त: सतीश से क्या चाहती थी राधा

friendship-story-in-hindi

सतीश लंबा, गोरा और छरहरे बदन का नौजवान था. जब वह सीनियर क्लर्क बन कर टैलीफोन महकमे में पहुंचा, तो राधा उसे देखती ही रह गई. शायद वह उस के सपनों के राजकुमार सरीखा था.

कुछ देर बाद बड़े बाबू ने पूरे स्टाफ को अपने केबिन में बुला कर सतीश से मिलवाया.

राधा को सतीश से मिलवाते हुए बड़े बाबू ने कहा, ‘‘सतीश, ये हैं हमारी स्टैनो राधा. और राधा ये हैं हमारे औफिस के नए क्लर्क सतीश.’’

राधा ने एक बार फिर सतीश को ऊपर से नीचे तक देखा और मुसकरा दी.

औफिस में सतीश का आना राधा की जिंदगी में भूचाल लाने जैसा था. वह घर जा कर सतीश के सपनों में खो गई. दिन में हुई मुलाकात को भूलना उस के बस में नहीं था.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

10. यह दोस्ती हम नहीं झेलेंगे

best-friendship-story-in-hind
i

रात को 8 से ऊपर का समय था. मेरे खास दोस्त रामहर्षजी की ड्यूटी समाप्त हो रही थी. रामहर्षजी पुलिस विभाग के अधिकारी हैं. डीवाईएसपी हैं. वे 4 सिपाहियों के साथ अपनी पुलिस जीप में बैठने को ही थे कि बगल से मैं निकला. मैं ने उन्हें देख लिया. उन्होंने भी मुझे देखा.

उन के नमस्कार के उत्तर में मैं ने उन्हें मुसकरा कर नमस्कार किया और बोला, ‘‘मैं रोज शाम को 7 साढ़े 7 बजे घूमने निकलता हूं. घूम भी लेता हूं और बाजार का कोई काम होता है तो उसे भी कर लेता हूं.’’

‘‘क्या घर चल रहे हैं?’’ रामहर्षजी ने पूछा.

मैं घर ही चल रहा था. सोचा कि गुदौलिया से आटोरिकशा से घर चला जाऊंगा पर जब रामहर्षजी ने कहा तो उन के कहने का यही तात्पर्य था कि जीप से चले चलिए. मैं आप को छोड़ते हुए चला जाऊंगा. उन के घर का रास्ता मेरे घर के सामने से ही जाता था.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

ये भी पढ़ें- 

Top 10 Best Husband-Wife Story In Hindi: पति-पत्नी की टॉप 10 बेस्ट कहानियां हिन्दी में

Top 10 Dating Tips in Hindi : टॉप 10 डेटिंग टिप्स

Top 10 Crime Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट क्राइम कहानियां हिंदी में

Top 10 Social Story in Hindi: टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

वनराज के हाथ लगेगा अनुज का लव लेटर, अब क्या करेगी अनुपमा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) की कहानी एक दिलचस्प मोड़ ले रही है. शो में अब तक आपने देखा कि समर और अनुज (Anuj Kapadia) नंदिनी को ढूढने के लिए निकल जाते हैं तो वहीं अनुपमा वनराज (Vanraj) को नंदिनी के बारे में बताना चाहती है लेकिन वनराज जल्दी में होता है और उसकी बात सुनने से मना कर देता है. तो दूसरी तरफ जब समर, अनुज और नंदिनी पहुंचते हैं तो वनराज का गुस्सा फूटता है. वह अनुपमा पर चिल्लाता है कि इस बारे में उसने क्यों नहीं बताया. तभी समर कहता है कि उसने मना किया था, मिस्टर शाह को बताने से. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नये एपिसोड के बारे में.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि अनुपमा वनराज को समझाती है, वह कहती है कि गुस्सा करने के बजाय उसे समर और नंदिनी का सपोर्ट करना चाहिए. तो वहीं रोहन के खिलाफ अनुपमा और वनराज एफआईआर दर्ज कराने का फैसला करते हैं.

 

ये भी पढ़ें- ‘कॉलेज रोमांस’ के ‘बग्गा’ यानी गगन अरोड़ा से जानिए नेपोटिज्म की सच्चाई

शाह परिवार में फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा. और उसी दिन वनराज रोहन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने पुलिस स्टेशन जाएगा, जिससे बा नाराज होगी. बा नंदिनी को दोषी ठहराएंगी और उसे ताना मारेंगी.

 

शो के अपकमिंग एपिसोड में अनुज-अनुपमा की लव स्टोरी की शुरूआत होगी. अनुज अनुपमा के लिए लहंगा खरीदेगा. और वह देविका को बताएगा. देविका डिसाइड करेगी कि वो ये लहंगा ले जाकर अनुपमा को देगी. खबरों के अनुसा अनुज इस गिफ्ट में चुपके से एक लेटर रख देगा और इस लेटर में अनुज अपनी दिल की बात लिखेगा.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि देविका ये बात अनुपमा को नहीं बताएगी कि ये लहंगा अनुज ने दिया है. ऐसे में अनुपमा, देविका का गिफ्ट समझकर पहन लेगी. और वह लेटर वनराज के हाथ लग जाएगी.

ये भी पढ़ें- अनुज के जॉब ऑफर को एक्सेप्ट करेगी काव्या, अब क्या करेगा वनराज

तो वहीं इस लेटर के बारे में देविका और अनुपमा को कोई जानकारी नहीं होगी. दरअसल लहंगा निकालते वक्त ये लेटर घर में गिर जाएगा और वनराज को मिलेगा. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस लेटर को लेकर वनराज क्या तमाशा करता है और ऐसे में अनुपमा क्या करती है.

Satyakatha: पुलिसवाली ने लिया जिस्म से इंतकाम- भाग 4

सौजन्य- सत्यकथा

इन दोनों ही शिकायतों पर शिवाजी सानप के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई. शीतल के साथ संबंधों की जानकारी शिवाजी के परिवार तक पहुंच गई थी.

चूंकि शिवाजी सानप तेजतर्रार हैड कांस्टेबल था. मुंबई पुलिस में कई सीनियर अफसरों के साथ रहते हुए उस ने कई गुडवर्क किए थे, इसलिए वे तमाम अधिकारी उसे पसंद करते थे. सभी को ये भी पता था कि शिवाजी के शीतल के साथ संबंध थे, लेकिन उस ने कभी शीतल से जबरदस्ती नहीं की थी.

यही कारण रहा कि ऐसे तमाम अधिकारियों के दबाव में शिवाजी के खिलाफ की गई शीतल की शिकायत ठंडे बस्ते में डाल दी गई.

जब काफी वक्त गुजर गया और शीतल को लगने लगा कि शिवाजी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ कर वह उसे सजा नहीं दिलवा पाएगी तो उस ने खुद ही उसे सजा देने का निर्णय कर लिया.

शीतल पहले ही नेहरू नगर थाने से आर्म्स यूनिट में अपना तबादला करा चुकी थी. मन ही मन वह किसी ऐसी तरकीब पर विचार करने लगी, जिस से वह शिवाजी से अपने अपमान का इंतकाम भी ले सके और उस पर आंच भी ना आए.

इसी सोचविचार में काफी वक्त गुजर गया. अचानक उसे खयाल आया कि क्यों न शिवाजी को सड़क हादसे में मरवा दिया जाए. एक बार इस खयाल ने मन में जगह बनाई तो रातदिन वह इसी रास्ते से शिवाजी से बदला लेने की साजिश रचने लगी.

इसी साजिश के तहत उस ने ट्रक ड्राइवर का पेशा करने वाले धनराज यादव की इंस्टाग्राम पर प्रोफाइल देखी तो साजिश का खाका उस के दिमाग में फिट बैठ गया.

शीतल ने शिवाजी को रास्ते से हटाने के लिए हथियार के रूप में धनराज को मोहरा बनाने के लिए पहले इंस्टाग्राम पर रिक्वेस्ट भेज कर धनराज से दोस्ती की और 5 दिन बाद ही उस ने धनराज को शादी के लिए प्रपोज भी कर दिया. चंद रोज के भीतर दोनों ने शादी कर ली.

एक हफ्ते बाद ही शीतल ने धनराज को शिवाजी की कहानी सुनाई और कहा कि वह उस से बदला लेना चाहती है. तुम ड्राइवर हो, तुम से सड़क हादसा हो जाए तो तुम पर कोई शक भी नहीं करेगा. लेकिन धनराज तैयार नहीं हुआ और डर कर अपने गांव भाग गया.

शीतल का पहला दांव ही खाली चला गया. जिस मकसद से उस ने धनराज से शादी की थी, वह अधूरा रह गया. पर वह किसी भी कीमत पर शिवाजी से बदला लेना चाहती थी. इसी उधेड़बुन में काफी वक्त गुजर गया. इसी बीच मुंबई में 2020 की शुरुआत से कोविड महामारी का प्रकोप फैलने लगा.

कोविड का पहला दौर ठीक से खत्म भी नहीं हुआ था कि महामारी की दूसरी लहर भी शुरू हो गई. जून महीने के बाद जब हालत कुछ सुधरने लगे तो शीतल के दिमाग में फिर से शिवाजी से बदला लेने की धुन सवार हो गई.

शीतल खुद इस काम को अंजाम नहीं देना चाहती थी, इसलिए अबकी बार उस ने दूसरा मोहरा चुना अपनी सोसाइटी के सिक्योरिटी गार्ड बबनराव के बेटे विशाल जाधव को.

दरअसल, सोसाइटी में आतेजाते शीतल ने एक बात नोटिस की थी कि गार्ड बबनराव का 18 साल का बेटा विशाल जाधव उसे चोरीछिपी नजरों से देखता है.

शीतल एक खूबसूरत और जवान युवती थी. किसी मर्द की नजर को वह भलीभांति जानती थी कि उन नजरों में उस के लिए कौन सा भाव छिपा है.

अचानक विशाल के रूप में शीतल को शिवाजी से बदला लेने का दूसरा हथियार नजर आने लगा. उस ने मन ही मन प्लान कर लिया कि अब विशाल को कैसे अपने काबू में करना है. एक जवान और जिस पर कोई लड़का पहले से ही निगाह लगाए हो, उसे काबू में करना तो बेहद आसान होता है.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: पैसे का गुमान- भाग 2

कुछ रोज में ही विशाल पूरी तरह शीतल के काबू में आ कर उस के आगेपीछे मंडराने लगा. शीतल ने विशाल की आंखों में अपने लिए छिपी जिस्मानी भूख को पढ़ लिया था. थोड़ा तड़पाने के बाद उस ने जब विशाल की इस जिस्मानी भूख की ख्वाहिश पूरी कर दी तो इस के बाद विशाल पूरी तरह उस के इशारे पर नाचने लगा.

विशाल के पूरी तरह मोहपाश में फंसते ही एक दिन शीतल ने उसे भी भावुक कर के हैडकांस्टेबल शिवाजी द्वारा अपनी इज्जत लूटने की एक झूठी कहानी सुना कर अपना बदला लेने के लिए उकसाना शुरू कर दिया.

शीतल के प्यार में विशाल पागल था, लिहाजा लोहा गर्म देख कर जब कई बार विशाल से प्यार की खातिर शिवाजी से बदला लेने के लिए कहा तो एक दिन विशाल ने उस का काम करने के लिए हामी भर दी, लेकिन साथ ही कहा कि इस काम के लिए उसे एक और साथी की जरूरत पड़ेगी और इस में कुछ पैसा भी खर्च होगा.

शीतल ने तुरंत हां कर दी. बस इस के बाद शीतल ने शिवाजी को खत्म करने की साजिश को अमली जामा पहनाने का काम शुरू कर दिया.

विशाल ने इस काम के लिए अपने एक दोस्त गणेश चौहान से बात की. गणेश तेलंगाना से रोजीरोटी की तलाश में मुंबई आया था. संयोग से कोरोना महामारी के कारण उन दिनों उस के पास कोई कामकाज नहीं था और पैसों की बड़ी तंगी थी.

जब विशाल ने उसे बताया कि उन्हें किसी का ऐक्सीडेंट करना है इस के बदले अच्छीखासी रकम मिलेगी तो मजबूरी में दबा गणेश भी तैयार हो गया.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya- राम रहीम: डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को फिर मिली सजा

दोनों से शीतल ने मुलाकात की. शिवाजी को ठिकाने लगाने के लिए शीतल ने विशाल को 50 हजार और गणेश को 70 हजार रुपए एडवांस दे दिए. जिस के बाद विशाल और गणेश ने सब से पहले शिवाजी का पीछा करना शुरू किया. उस के आनेजाने के समय को नोट किया.

इस के बाद उन्होंने तय किया कि वो कुर्ला से पनवेल के बीच ही शिवाजी को मार डालेंगे. इस काम के लिए शीतल ने उन्हें एक सेकेंडहैंड नैनो कार खरीदवा दी. और 15 अगस्त की रात को इस खौफनाक वारदात को अंजाम दे दिया गया.

प्लान के मुताबिक 15 अगस्त, 2021 की रात साढ़े 10 बजे पनवेल रेलवे स्टेशन से मालधक्का जाने वाली सड़क पर शिवाजी को उन की नैनो कार से जोरदार टक्कर मार दी.

संयोग से राष्ट्रीय अवकाश के कारण व कम रोशनी के कारण कोई न तो यह देख सका कि टक्कर किस नंबर की कार से लगी है.

शिवाजी को टक्कर मारने के वक्त शीतल एक दूसरी कार से पीछा करते हुए पूरा नजारा देख रही थी. उस ने सड़क पर घायल शिवाजी को देख कर ही समझ लिया था कि वह जिंदा नहीं बचेगा.

योजना के मुताबिक ऐक्सीडेंट करने के बाद करीब 2 किलोमीटर आगे जा कर विशाल व गणेश ने नैनो कार पर पैट्रोल डाल कर पूरी तरह जला दी ताकि कोई सबूत पीछे न छूटे.

वारदात के बाद दोनों का पीछा कर रही शीतल उन्हें कार जलाने के बाद अपनी कार में बैठा कर साथ ले गई और उन्हें उन के घर छोड़ दिया.

बाद में पुलिस ने जब शीतल, विशाल व गणेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उन के मोबाइल की लोकेशन देखी तो उन की मौजूदगी उसी जगह के आसपास दिखी, जहां शिवाजी सानप का ऐक्सीडेंट हुआ था.

पुलिस ने रिमांड अवधि में पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित

Satyakatha- इश्क का जुनून: प्यार को खत्म कर गई नफरत की आग- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक-  दिनेश बैजल ‘राज’/संजीव दुबे

वहां पहुंच कर फ्लाईओवर से नीचे उतर कर लिंक रोड पर आ गए. यहीं पर उन लोगों ने बोलेरो में ही उत्तम के गले में रस्सी का फंदा कस कर उस की हत्या कर शव फेंक दिया. इस के साथ ही उस का प्राइवेट पार्ट काट दिया. इस के बाद नेहा को ले कर मुरैना रोड होते हुए राजस्थान के धौलपुर आ गए.

अलगअलग राज्यों में मिले शव

राजा खेड़ा रोड पर थाना दिहौली से करीब एक किलोमीटर दूर सुनसान जगह पर गाड़ी रोक ली. यहां नेहा की भी गले में रस्सी का फंदा लगा हत्या कर दी. उस की लाश भी वहीं फेंक दी.

हत्यारों ने लाश के चेहरे को मिट्टी से ढंक दिया. दोनों की हत्या कर शव ठिकाने लगा कर सभी हत्यारे पिनाहट वापस आ गए. फिर सभी अपनेअपने घर चले गए. देवीराम भी गांव अपने घर आ गया.

4 अगस्त, 2021 को राजस्थान के जिला धौलपुर जिले के थाना दिहौली क्षेत्र में कस्बा मरैना-दिहौली के बीच सड़क के किनारे खेत से सुबह 10 बजे नेहा का शव पुलिस ने बरामद किया था.

उस के गले में नाइलोन की पीले रंग की रस्सी से फंदा लगा था, जिस में 8-10 गांठे लगी थीं तथा चेहरा मिट्टी में दबा हुआ था.

इस पर एसपी धौलपुर केसर सिंह शेखावत ने शव की शिनाख्त नहीं होने पर 7 अगस्त को मैडिकल बोर्ड से उस का पोस्टमार्टम कराया. इस के बाद अंतिम संस्कार करा दिया गया. थाना दिहौली में हत्या का मुकदमा अज्ञात के नाम दर्ज कर लिया गया.

यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के थाना आंतरी क्षेत्र में ग्वालियर झांसी हाईवे के पास भरतरी रोड पर सड़क के किनारे एक युवक की लाश उसी तरह की रस्सी से गला घोंट कर फेंकी हुई पुलिस को मिली.

पीले रंग की रस्सी में 8-10 गांठें लगी थीं. युवक का प्राइवेट पार्ट कटा हुआ था. यह शव उत्तम का था. लेकिन यह बात पुलिस को पता नहीं थी कि मृतक उत्तम है.

शिनाख्त न होने पर पोस्टमार्टम कराने के बाद धर्म का पता न चलने पर उसे दफना दिया गया. इस संबंध में थाना आंतरी पर हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

एसपी (ग्वालियर) अमित सांगी के अनुसार, जांच के दौरान पुलिस के सामने एक महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि राजस्थान के धौलपुर में एक युवती की इसी तरह लाश मिली थी. इस पर धौलपुर पुलिस से जानकारी साझा की गई.

ये भी पढ़ें- बलिदान: खिलजी और रावल रत्न सिंह के बीच क्यों लड़ाई हुई?

दोनों हत्याओं में समानता मिली. क्योंकि दोनों हत्याओं में जिस रस्सी का प्रयोग किया गया था, वह एक ही रस्सी के 2 टुकड़े थे. इस बात की पुष्टि उन के फोरैंसिक एक्सपर्ट ने भी की. दोनों लोग कपड़े भी पर्टिक्युलर कीमोफ्लाई के पहने हुए थे.

इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्या के इन दोनों मामलों में कुछ न कुछ संबंध जरूर है. प्रथमदृष्टया ही लग रहा था कि प्रेमप्रसंग का या परिजनों द्वारा की गई हत्या है. इस के बाद  पुलिस ने किशोरी व युवक के शवों की शिनाख्त के लिए उन के फोटो समाचारपत्रों में भी प्रकाशित कराए.

ऐसे हुआ खुलासा

उधर जब फिरोजाबाद पुलिस को यमुना में प्रेमी युगल की लाशें नहीं मिलीं, तब पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल फोन की लोकेशन को खंगाला. इस से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि घटना के समय कहांकहां ये लोग गए थे.

पुलिस ने उस रूट पर पड़ने वाले सभी थानों से अज्ञात लाशों की जानकारी जुटाई. फोटो, कपड़ों व मृतकों के हुलिए के आधार पर नेहा और उत्तम की शिनाख्त हुई. फिर पुलिस आरोपियों को ले कर ग्वालियर पुलिस से मिली.

पुलिस आरोपी शिवराज व सुनील के साथ ही उत्तम के पिता सुघर सिंह व अन्य परिजनों को साथ ले गई थी. आरोपियों से शवों के फेंके गए स्थानों की तसदीक कराई. संबंधित दोनों थानों पर संपर्क किया. नेहा व उत्तम के फोटो व कपड़ों को देख कर पहचान लिया गया.

सक्षम अधिकारी के आदेश पर उत्तम के दफनाए गए शव को जमीन से निकलवा कर परिजनों के सुपुर्द किया गया. थानाप्रभारी प्रवेंद्र कुमार सिंह व इस मामले के आईओ मोहम्मद खालिद दोनों थानों से सारे सबूत एकत्र कर फिरोजाबाद लौट आए.

उत्तम का शव जैसे ही गांव जहांगीरपुर पहुंचा, परिवार में कोहराम मच गया. बड़ी संख्या में भीड़ जुट गई. दोनों के भागने के बाद घरवाले समझ रहे थे कि वे लोग दोनों की तलाश कर रहे हैं. लेकिन नेहा के पिता व चाचा द्वारा हत्या करने की बात कुबूलने के बाद दोनों परिवारों में चीखपुकार मच गई.

जांच में पुलिस को पता चला कि प्रेमी युगल की हत्या में प्रयुक्त नाइलोन की लगभग 15 मीटर रस्सी पिनाहट से खरीदी गई थी. इसी रस्सी के 2 टुकड़े कर दोनों का गला घोंट कर हत्या की गई थी.

थाना सिरसागंज पुलिस ने पिनाहट से इस रस्सी विक्रेता की दुकान से वह बंडल भी बरामद कर लिया है, जिस से आरोपियों ने रस्सी खरीदी थी. इस के साथ ही बोलेरो भी बरामद कर ली. इसी गाड़ी में प्रेमी युगल की हत्या की गई थी.

हत्यारे इतने शातिर थे कि उन्होंने प्रेमी युगल की अलगअलग स्थानों पर हत्या कर शव अलगअलग राज्यों के दूरदराज इलाकों में इसलिए फेंके, ताकि सुनियोजित ढंग से की गई इन हत्याओं का कभी खुलासा न हो सके.

साथ ही देवीराम सिरसागंज पुलिस को गुमराह करता रहा कि हत्या कर दोनों के शव यमुना नदी में फेंक दिए थे, ताकि शव न मिलने पर वे लोग हत्या जैसे अपराध से बच जाएं.

ये भी पढ़ें- सुहागन की साजिश: सिंदूर की आड़ में इश्क की उड़ान

लेकिन तीनों राज्यों की पुलिस की सूझबूझ से औनर किलिंग का परदाफाश हो गया. आंतरी और दिहौली थाना पुलिस ने दोनों मृतकों के डीएनए सैंपल सुरक्षित रख लिए थे, जो फिरोजाबाद पुलिस को सौंप दिए.

इस के बाद दोनों थानों में दर्ज मुकदमे थाना सिरसागंज में दर्ज मुकदमे में समाहित हो गए.

पुलिस इस अपहरण और हत्याकांड में शामिल 12 आरोपियों में से देवीराम व सुनील को गिरफ्तार कर चुकी है, जबकि शिवराज ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया था.

अन्य फरार चल रहे आरोपियों बालकराम, जैकी, जितेंद्र, श्याम बिहारी, रोहित, राहुल, अमन उर्फ मोनू, गुंजन व दगाबाज दोस्त वीनेश की तलाश की जा रही थी.

नेहा और उत्तम एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे. दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन नेहा के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. इस के बाद नेहा के घर वालों की झूठी शान की नफरत का शोला प्रेमी युगल के प्यार पर ऐसा गिरा कि प्रेमी युगल की जान ले ली.

Manohar Kahaniya- गोरखपुर: मोहब्बत के दुश्मन- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज

काल रिसीव करते हुए अनीश चाचा को इशारे से हिसाब देखने को कहते हुए दुकान से बाहर निकल गया और सड़क के एक किनारे बात करने में मशगूल हो गया. तभी साए की तरह उस के पीछे पीछे चाचा देवी दयाल भी बाहर निकल आए और कुछ दूरी पर खड़े भतीजे की निगरानी करने लगे.

उसी समय दूसरी तरफ से तेजी से 2 बाइक आ कर अनीश के पीछे रुकीं. दोनों बाइक पर 2-2 नकाबपोश युवक सवार थे. एक बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश ने अपने कमर में पीछे खोंस रखा धारदार दतिया निकाला और फिल्मी स्टाइल में अचानक अनीश के सिर, गले और सीने पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए.

भतीजे अनीश पर हमला होते देख चाचा देवी दयाल हमलावरों से भिड़ गए. अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने भतीजे पर हमला करने वाले एक नकाबपोश को धर दबोचा.

यह देख कर नकाबपोश हड़बड़ा गया और उन से छूटने के लिए देवी दयाल के सीने पर प्रहार कर दिया. अचानक हुए हमले से देवी दयाल पल भर के लिए गश खा कर जमीन पर गिर गए. कुछ पलों बाद जब उठे तो नकाबपोश ने उन पर फिर से पलटवार किया. तब तक चीखपुकार तेज हो गई थी.

देवी दयाल की चीख सुन कर पासपड़ोस के दुकानदार शोर मचाते हुए बाहर निकले. पब्लिक को बदमाशों ने अपनी ओर आते हुए देखा तो चौंकन्ने हो गए और जिधर से आए थे, मौके पर हथियार फेंक कर उसी दिशा में फरार हो गए.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: खूंखार प्यार

दीप्ति ने अपने ही घर वालों के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

इधर अचानक हुए हमले से अनीश डर गया था. गंभीर रूप से घायल वह हवा में लहराते हुए किसी कटे पेड़ की तरह जमीन पर धड़ाम से गिरा.

आननफानन में लोगों ने अनीश और देवी दयाल को टैंपो में लाद कर गोला स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने अनीश को देखते ही मृत घोषित कर दिया.

भतीजे की मौत की खबर सुनते ही देवी दयाल की हालत और बिगड़ गई. घबराहट के मारे उन की सांसों की रफ्तार और तेज हो गई. यह देख डाक्टर भी घबरा गए और उन्हें बाबा राघवदास (बीआरडी) मैडिकल कालेज, गुलरिहा रेफर कर दिया.

अनीश की हत्या की खबर मिलते ही इलाके में सनसनी फैल गई थी. जैसेजैसे उस के शुभचिंतकों को जानकारी हुई, वैसेवैसे कुछ घटनास्थल तो कुछ अस्पताल पर जुटते गए. उधर दिल दहला देने वाली घटना की सूचना गोला थाने के थानेदार सुबोध कुमार को मिल चुकी थी. घटना की सूचना मिलते ही वह फोर्स सहित अस्पताल पहुंच गए और अस्पताल को पुलिस छावनी में बदल दिया ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके.

सूचना पा कर थोड़ी ही देर में वहां तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु, एसपी (दक्षिणी) अरुण कुमार सिंह और सीओ गोला अंजनि कुमार पांडेय भी पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया. सिर, गले और सीने पर किसी धारदार हथियार से ताबड़तोड़ हमला किया गया था. ज्यादा खून बहने से अनीश की मौत हुई थी.

पुलिस ने शव को अपने कब्जे में ले लिया और उसे पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दिया. उस के बाद इंसपेक्टर सुबोध कुमार को कागजी काररवाई पूरी करतेकरते दोपहर के 2 बज गए थे.

अस्पताल से फारिग होते ही पुलिस गोपलापुर चौराहा पर उस जगह पहुंची, जहां घटना घटी थी. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मौके पर फैला खून जम चुका था, जिस पर ढेर सारी मक्खियां भिनभिना रही थीं.

मौके से कुछ दूरी पर खून से सना एक धारदार हथियार गिरा पड़ा था, पुलिस ने उसे बतौर सबूत अपने कब्जे में लिया. मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम अपनी जांच में जुट गई.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: फौजी की सनक का कहर

पुलिस ने अनीश की पत्नी दीप्ति चौधरी की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302, 307, 506, 120बी एवं एससी/एसटी की धारा 3(2)(वी) के तहत मायके के 17 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

जिन में नलिन मिश्र (पिता), मणिकांत मिश्र (बड़े पापा यानी ताऊ), अभिनव मिश्र (भाई), अनुपम मिश्र (भाई), विनय, उपेंद्र, अजय, प्रियंकर, अतुल्य, प्रियांशु, राजेश, राकेश, त्रियोगी, नारायण, संजीव, विवेक तिवारी और सन्नी सिंह सहित 4 अज्ञात शामिल थे. घटना की जांच की जिम्मेदारी गोला के सीओ अंजनि कुमार पांडेय को सौंपी गई थी.

इस मामले में पुलिस ने 4 आरोपियों मणिकांत मिश्र, विवेक तिवारी, अभिषेक तिवारी और सन्नी सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें गोला के दीडीहा क्षेत्र से गिरफ्तार किया था. इन चारों से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपराध स्वीकार करते हुए अन्य आरोपियों के नाम भी बता दिए. पुलिस ने इन्हें अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

28 जुलाई, 2021 को एएसपी (साउथ) अरुण कुमार सिंह ने एक प्रैसवार्ता आयोजित कर 4 आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी दी और कहा कि जल्द ही बाकी के आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा. कथा लिखने तक अन्य आरोपी गिरफ्तार नहीं हो सके थे. पुलिस उन्हें तलाश रही थी.

वेटिंग रूम- भाग 4: सिद्धार्थ और जानकी की छोटी सी मुलाकात के बाद क्या नया मोड़ आया?

Writer- जागृति भागवत 

पिछले अंक में आप ने पढ़ा : जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. मेहनत और प्रतिभा के बल पर पढ़ाई कर पुणे के एक कालेज में लैक्चरर के इंटरव्यू के लिए जा रही थी. ट्रेन के इंतजार में रेलवे प्रतीक्षालय में उस की मुलाकात सिद्धार्थ से होती है जो एक संपन्न व्यवसायी का बिगड़ैल बेटा था. समय काटने के लिए दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. सबकुछ होते हुए भी जिंदगी से नाराज सिद्धार्थ को जानकी की बातें एक नया नजरिया देती हैं. सिद्धार्थ स्वयं को शांत और सुलझा हुआ महसूस करने लगता है. उस के मातापिता उस में हुए बदलाव से हैरान थे. अब आगे…

सिद्धार्थ की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब तक नींद ने उसे अपनी आगोश में नहीं ले लिया तब तक वह सिर्फ जानकी के बारे में ही सोचता रहा. उसे अफसोस हो रहा था कि काश, वह थोड़ी हिम्मत कर के जानकी का फोन नंबर ही पूछ लेता. न जाने अब वह जानकी को देख पाएगा भी या नहीं? अचानक उसे याद आया कि 15 दिन बाद वह पुणे ही तो आ रही है नौकरी जौइन करने. उसी समय उस ने निश्चय किया कि 15 दिन बाद वह कालेज में जा कर जानकी को खोजेगा.

सुबह 11 बजे से पहले कभी न जागने वाला सिद्धार्थ आज सुबह 8 बजे उठ गया. नहा कर नाश्ते की मेज पर ठीक 9 बजे पापा के साथ आ बैठा और बोला, ‘‘पापा, आज मैं भी आप के साथ औफिस चलूंगा.’’ पापा का चेहरा विस्मय से भर गया. मां, जो सिद्धार्थ की रगरग पहचानती थीं, नहीं समझ पाईं कि सिद्धार्थ को क्या हो गया है. बस, दोनों इसी बात से खुश हो रहे थे कि उन के बेटे में बदलाव आ रहा है. हालांकि वे आश्वस्त थे कि यह बदलाव ज्यादा दिन नहीं रहेगा. जल्द ही सिद्धार्थ काम से ऊब जाएगा. फिर उस की संगत भी तो ऐसी थी कि अगर सिद्धार्थ कोशिश करे भी, तो उस के दोस्त उसे वापस गर्त में ले जाएंगे. जानकी अनाथालय पहुंच चुकी थी. सब लोग उस के इंतजार में बैठे थे. जैसे ही जानकी पहुंची, सब उस पर टूट पड़े. जानकी, मानसी चाची को उस की कामयाबी के बारे में पहले ही फोन पर बता चुकी थी, इसलिए सब उस के स्वागत के लिए खड़े थे. आज वात्सल्य से पहली लड़की को नौकरी मिली थी. अनाथालय में उत्सव का माहौल था.

रात को जानकी ने मानसी चाची को साक्षात्कार से ले कर सारी यात्रा का वृत्तांत काफी विस्तार से सुनाया, सिवा प्रतीक्षालय में सिद्धार् से हुई मुलाकात के. यह बात छिपाने के पीछे कोई उद्देश्य नहीं था फिर भी जानकी को यह गैरजरूरी लगा. पिछली रात नींद न आने से जानकी काफी थक गई थी, इस कारण लेटते ही नींद लग गई. सुबह भी काफी देर से जागी. पिछले 8-10 दिनों से लगातार बारिश के कारण मौसम बहुत सुहाना हो गया था. सुबह ठंडक और बढ़ गई थी. नींद खुलने के बाद भी उस का उठने का मन नहीं हो रहा था. जानकी उठी और बाहर आंगन में आ कर बैठ गई. बारिश रुक चुकी थी और हलकी धूप खिली थी लेकिन गमलों की मिट्टी अभी भी गीली थी. ठंडी हवाएं अब भी चल रही थीं. लगा कि कोई शौल ओढ़ ली जाए. ऐसे में अचानक ही उसे सिद्धार्थ का खयाल आया, ‘अब तक तो वह भी अपने घर पहुंच गया होगा. क्या लड़का था, थोड़ा अजीब लेकिन काफी उलझा सा था. काफी नकारात्मक सोच थी, यदि सोच को सही दिशा दे देगा तो बहुत कुछ पा सकता है.’ जानकी की यादों की लड़ी तब टूटी जब मानसी चाची ने आ कर पूछा, ‘‘अरे जानकी बेटा, तू कब उठी?’’

ये भी पढ़ें- छोटे शहर की लड़की- भाग 4: जब पूजा ने दी दस्तक

‘‘बस, अभी उठी हूं, चाची,’’ थोड़ी हड़बड़ाहट में जानकी ने जवाब दिया, लगा जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो और उठ कर रोजमर्रा के कामों में जुट गई. धीरेधीरे दिन बीतते गए और जानकी के पुणे जाने के दिन करीब आते गए. जानकी को काफी तैयारियां करनी थीं. पुणे जा कर सब से बड़ी दिक्कत उस के रहने की व्यवस्था थी. पुणे में वह किसी को नहीं जानती थी. इस बीच उसे कई बार ऐसा लगा कि उस ने सिद्धार्थ से उस का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया. शायद, उस अनजान शहर में वह कुछ मदद करता उस की. अनाथालय को छोड़ कर मानसी चाची भी उस के साथ नहीं जा सकती थीं. इसी चिंता में वे आधी हुई जा रही थीं कि जानकी का क्या होगा वहां, अनजान शहर में बिलकुल अकेली, कैसे रहेगी. सिद्धार्थ में आया बदलाव बरकरार था. पहले वह काफी गुस्सैल था और अब काफी शांत हो चुका था, बोलता भी काफी कम था, लगभग गुमसुम सा रहने लगा था. कोई दोस्तीयारी नहीं, कोई नाइट पार्टीज और बाइक राइडिंग नहीं. मां ने कई बार पूछा इस बदलाव का कारण लेकिन सिद्धार्थ ने मां से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मौम, जब जागो तभी सवेरा होता है और मुझे भी एक न एक दिन तो जागना ही था, अब मान लो कि वह दिन आ चुका है. बस, आप लोग जैसा सिद्धार्थ चाहते थे वैसा बनने की कोशिश कर रहा हूं.’’

सिद्धार्थ को अब उस दिन का इंतजार था जब जानकी पुणे आने वाली थी. निश्चित तारीख तो उसे पता नहीं थी लेकिन वह उस रात के बाद से हिसाब लगा रहा था. अब उसे एहसास हो रहा था कि जानकी उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी है. वही लड़की है जो उस के लिए बनी है, अगर वह उस की जिंदगी में आ जाए तो सिद्धार्थ के लिए किसी से कुछ मांगने के लिए बचेगा ही नहीं. इस बीच, वह जा कर पुणे आर्ट्स कालेज का पता लगा कर आ चुका था और यह भी पता कर चुका था कि जानकी कब आने वाली है. 15 सितंबर वह तारीख थी जिस का अब सिद्धार्थ को बेसब्री से इंतजार था. आखिर वह दिन आ गया. 14 सितंबर को जानकी पुणे के लिए रवाना होने वाली थी. यहां अनाथालय में खुशी और दुख साथसाथ बिखर रहे थे. मानसी चाची की तो एक आंख रो रही थी तो दूसरी आंख हंस रही थी. एक ओर तो उन की बेटी आज नौकरी करने जा रही है लेकिन उसी बेटी से बिछड़ने का गम भी खुशी से कम नहीं था. आखिर जानकी पुणे के लिए रवाना हो गई.

ये भी पढ़ें- रेप के बाद: अखिल ने मानसी के साथ क्या किया

सुबहसुबह पुणे पहुंच कर उस ने स्टेशन के पास ही एक ठीकठाक होटल खोज लिया. तैयार हो कर नियत समय पर कालेज पहुंच गई. सारी जरूरी कार्यवाही पूरी करने के बाद कालेज की एक प्रोफैसर ने उसे पूरा कालेज दिखाया और सारे स्टाफ व विद्यार्थियों से परिचय भी करवाया. इस बीच, उस ने उस प्रोफैसर से रहने की व्यवस्था के बारे में पूछा. उस प्रोफैसर ने कुछ एक जगह बताईं लेकिन पुणे बहुत महंगा शहर है, जानकी के लिए ज्यादा खर्चा करना मुमकिन नहीं था. इधर सिद्धार्थ ने पापा से एक दिन की छुट्टी ले ली थी. सुबह से काफी उत्साहपूर्ण लग रहा था. उस के तैयार होने का ढंग भी कुछ अलग ही था. मां सबकुछ देख रही थीं और समझने की कोशिश कर रही थीं. बेटा चाहे जितना भी बदल जाए, मां उस का मन फिर भी पढ़ लेती है. लेकिन मां खामोशी से सब देखती भर रहीं, कुछ बोली नहीं.

‘कॉलेज रोमांस’ के ‘बग्गा’ यानी गगन अरोड़ा से जानिए नेपोटिज्म की सच्चाई

कंगना रानौट सहित कई कलाकार आए दिन नेपोटिज्म का मुद्दा उठाते रहते हैं. इन सभी का आरोप है कि बौलीवुड में नेपोटिजम इस कदर हावी है कि गैर फिल्मी परिवार से जुड़ी संतानों को बौलीवुड में प्रवेश नहीं मिलता. मगर फिल्म ‘‘स्त्री’’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद गगन अरोड़ा ने वेब सीरीज ‘‘कालेज रोमांस’’ में किशोर वय बग्गा का किरदार निभाकर अभिनय के संसार में कदम रखा और महज तीन वर्ष के अंदर ‘गर्ल्स होस्टल’ व अन्य वेब सीरीज के अलावा फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ में अभिनय किया.

अब गगन अरोड़ा ने अजीत पाल सिंह निर्देशित वेब सीरीज ‘‘तब्बर’’ में पंजाबी युवक हैप्पी का अति संजीदा किरदार निभाया है ,जो कि 15 अक्टूबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘सोनी लिव’’ पर स्ट्रीम हो रही है.

प्रस्तुत है गगन अरोड़ा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

 सवाल : अभिनय से आपका जुड़ना कैसे हुआ?

जवाब यूं तो मैंने कॉलेज में अभिनय करना शुरू किया था. हम नुक्कड़ नाटक और मंचीय नाटक किया करते थे. पूरे तीन वर्ष तक मैं यही करता रहा. तीसरे वर्ष के अंत तक मेरा रुझान निर्देशन की ओर अधिक हो गया और मैं फिल्म निर्माण का अध्ययन करने के लिए मुंबई चला आया. मैने मुंबई के सेंट झेवियर कालेज से फिल्म मेकिंग सीखी. उसके बाद कुछ विज्ञापन फिल्मों और फिल्म ‘‘स्त्री’’ में बतार सहायक निर्देशक काम किया. अचानक एक दिन मेरे एक साथी के कहने पर मैने ऑडीशन दिया और मुझे वेब सीरीज ‘‘कालेज रोमांस’’ में अभिनय करने का अवसर मिल गया. इसमें मैने बग्गा का किरदार निभाया और रातों रात मुझे सफलता मिल गयी. फिर मैने ‘गर्ल्स होस्टल’, ‘बेसमेंट कंपनी’ भी किया. फिल्म ‘उजड़ा चमन’ में अभिनय किया.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gagan Arora (@whogaganarora)

सवाल : क्या फिल्म मेकिंग सीखते सीखते आपके दिमाग में आया कि अभिनय की बनिस्बत निर्देशन का क्षेत्र ज्यादा बेहतर है?

जवाब नहीं सर..मैने देखा कि कलाकार के पीठ पीछे निर्देशक कलाकार को बुरा कहता है और निर्देशक के पीठ पीछे कलाकार उसे बुरा कहता है.मेरे मन में सवाल उठता था कि ऐसा क्यों होता है? तो मेरी समझ में आया कि सेट पर कलाकार नखरे और स्टारपना दिखाता है, इसलिए निर्देशक उसे बुरा कहता है. जबकि निर्देशक बार बार रीटेक लेता है या कलाकार से कहता है कि उसे क्या चाहिए, इसलिए कलाकार उसे बुरा कहता है. पर फिल्म मेकिंग सीखने के पीछे निर्देशन के प्रति प्यार या अभिनय के प्रति मेरे मन में प्यार नहीं उमड़ा था. मैं तो दोनों के बीच की थिन लाइन पर चला जा रहा था. हम गैर फिल्मी परिवार से आए थे, इसलिए आंख खुली रहती थी कि हमें अभिनय में जल्दी अवसर मिलने से रहा. हमारे लिए बैकअप लेकर चलना जरुरी था. सभी कहते है कि हर दिन हजारों लोग मुंबई फिल्म नगरी में अभिनेता बनने आते हैं, सभी को सफलता नहीं मिल पाती. मेरे निर्देशन की तरफ मुड़ने की भी यही वजह थी.

सवाल : सहायक निर्देशक के रूप में काम करने के दौरान आपने ऐसा क्या अनुभव लिया, जिससे अभिनय में आपको सहूलियत हो रही है?

जवाब मेरा अनुभव यह रहा कि कई लोगों को सेट पर कलाकार को लोगों का दुःख समझ में नहीं आता कि किसी चीज में इतना समय क्यों लग रहा है? अब अपने अनुभवो की वजह से निर्देशक मुझे जो कुछ समझाने का प्रयास करता है, वह मैं ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकता हूं. क्योकि मैं सहायक निर्देशक रहा हूं, तो मेरी समझ में आता है कि निर्देशक क्या समझाना चाहता है. इसी वजह से मैं दूसरे कलाकारों की बनिस्बत चीजों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकता हूं. हर कलाकार में कुछ विषेशता होती है.

मसलन मुझे याद है कि जब मैं फिल्म ‘‘स्त्री’’ में बतौर सहायक निर्देशक काम कर रहा था, तब पंकज त्रिपाठी सर ने मुझसे कहा था- ‘‘तुम काम करने आए हो, काम करो. यह जो आस पास का शोशा है न, जब तुम्हारा काम अच्छा होगा तो लोग अपने आप आकर तुम्हें देंगें. ’’मुझे उनकी बात अच्छे से समझ में आ गयी. मुझे समझ में आया कि मेरा काम अपने आप बोलेगा. मुझे मांगने की जरुरत नहीं पड़ेगी. मैने तय किया कि ऐसा काम करना है, जिसकी लोग तारीफ करें. यही बात मुझे फायदा दे रही है.

सवाल : पहली वेब सीरीज कॉलेज रोमांसकरने के बाद किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थीं?

जवाब बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली थी. यह तो रातों रात स्टार बन जाने का मसला था. रातों रात सफलता मिली थी. मैने क्या किसी ने भी इस बात की उम्मीद नहीं की थी. मजेदार बात यह थी कि इसका प्रिव्यू देखकर लोगो ने इसे सिरे से नकार दिया था. सभी का मानना था कि यह नहीं चलेगा. यह तो पैसे की बर्बादी कर दी है. लेकिन इसे जबरदस्त सफलता मिली और अब इसे एशिया का सर्वाधिक सफल वेब सीरीज माना जाता है. मुझे तो ऐसी सफलता की उम्मीद नहीं थी.

लोगों के संदेश से मेरा इंस्टाग्राम एकाउंट भर गया था. सड़क पर लोग मुझे पहचानने लगे थे. लोगों ने मेरे मम्मी पापा को बधाई संदेश भेजे. पर मेरे पिता जी ने मुझे समझाया था कि इस तरह की प्रशंसा से पागल मत बनना. यह सब क्षणिक है. यह पहला काम है. अभी लोग तुम्हारा सिर जितना चढ़ा रहे हैं, अगला काम खराब होते ही उतनी ही तेजी से नीचे भी उतार देंगें.

फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में भी तमाम लोगों ने मेरा स्वागत किया. यह सब देखकर मेरा यह भ्रम दूर हो गया कि यहां गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के लोगों को घुसने नहीं देते. क्योंकि मुझे तो कांस्टिंग डायरेक्टर, फिल्म निर्देशक, निर्माता और कई कलाकारों ने बधाई दी. लोगों ने मुझे बुलाकर काम दिया. यही वजह है कि मैं पिछले तीन वर्ष से लगातार काम कर रहा हूं. अब मैने वेब सीरीज ‘‘तब्बर की है, जो कि 15 अक्टूबर से सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gagan Arora (@whogaganarora)

सवाल : वेब सीरीज ‘‘तब्बर’’को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

जवाब यह एक पारिवारिक मगर क्राइम थिलर वेब सीरीज है, जिसमें मैनें अपनी चाकलेटी ब्वॉय की इमेज को तोड़ने के लिए अभिनय किया है. वेब सीरीज ‘तब्बर’ में मैनें परिवार के बड़े बेटे हैप्पी का अति संजीदा किरदार निभाया है. एक तरफ घर का बड़ा बेटा होने के नाते अब घर यानी कि परिवार को आगे ले जाने की उसकी जिम्मेदारी बनती है, तो दूसरी तरफ युवा होने के नाते प्यार को लेकर भी उसकी कुछ समस्याएं हैं.

सवाल : इस किरदार को निभाते समय किस तरह की दिक्कतें पेश आयीं?

जवाब किरदार की गहराई को ढूढ़ने में तकलीफ हुई. यह अति संजीदा किरदार है. लंबे समय से ऐसा किरदार निभाया नहीं था. तो थिएटर के समय किरदार को लेकर जो तलाश करने, खोदने की आदत थी, वह ठप्प हो चुकी थी. उसे नए सिरे से जगाना पड़ा. इसमें लेखक हरमन वडाला व निर्देशक अजीत पाल सिंह ने मेरी काफी मदद की. कलाकारों ने भी मेरी मदद की. इसमें मुझे सुप्रिया पाठक और पवन मल्होत्रा ने काफी मदद की. उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा.

सवाल : सुप्रिया पाठक व पवन मल्होत्रा से आपने क्या सीखा?

जवाब इन दोनों कलाकारों से मेरी पहली मुलाकात ‘तब्बर’ के सेट पर ही हुई थी.उस दिन मैं बहुत डरा व घबराया हुआ था. मैं तो इन्हे फिल्म व टीवी में देखते हुए बड़ा हुआ हूं. पर दोनों ने पहले ही दिन मुझे अपने व्यवहार से एकदम सहज कर दिया. दूसरे दिन तो मैं पवन सर के गले में हाथ डालकर संवाद बोल रहा था. यह दोनो कलाकार मुझे हर दिन एक ऐसी नई सीख सिखाते थे, जो कि जिंदगी भर चलेगी.

पवन सर ने सिखाया कि ‘कुछ भी हो जाए, मगर डेडीकेशन/समर्पण भाव मत छोड़ना.’ समय की पाबंदी जरुरी है. अगर तुम समय की इज्जत नही करोगे, तो समय तुम्हारा सम्मान नहीं करेगा. ’सुप्रिया मैम ने सिखाया-‘‘ इफर्टलेस होना चाहिए. परदे पर तुम्हारा अभिनय नहीं दिखना चाहिए.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gagan Arora (@whogaganarora)

सवाल : आपने वेब सीरीज करने के बाद फिल्म की. वेब सीरीज और फिल्म दोनो के अपने अलग अनुभव रहे होंगे. पर एक कलाकार के तौर पर एक फिल्म के रिलीज होने पर पहले ही दिन जो शोहरत या दर्शकों की जो प्रतिक्रिया मिलती है, क्या वैसी शोहरत वेब सीरीज से मिल पाती है?

जवाब जी मिलती है. मुझे फिल्म व वेब सीरीज दोनों का अच्छा रिस्पांस मिला. अब सोशल मीडिया का जमाना है. लोग आपके हाथ में लाकर प्रतिक्रियाएं देते हैं. आज की तारीख में माध्यम मायने नहीं रखता. अगर आप अच्छा काम करते हैं, तो लोग आपको व आपके काम को ढूंढ ही लेते हैं.आपका काम देखते हैं और फिर काम पसंद आने पर आपको बधाई भी देते हैं. जब से मैं अभिनेता बना हूं, तब से सोशल मीडिया है. उससे पहले की स्थिति के बारे में मैं कुछ नहीं जानता.

सवाल : पर आपको नहीं लगता कि अब आपको बतौर कलाकार काम भी सोशल मीडिया पर आपके फालोअर्स की संख्या बल पर मिलता है. इससे प्रतिभाषाली कलाकार को नुकसान उठाना पड़ता है?

जवाब मैं आपकी इस बात से सहमत हूं. मैने खुद इसी वजह से कई अच्छे प्रोजेक्ट खोए हैं. मैने चार राउंड के ऑडिशन दिए, फिर अंत में कहा गया कि आपके फालोवअर्स की संख्या कम है. फलां कलाकार के इतने मिलियन फालोअवर्स है, तो इस किरदार के लिए उन्हें ही चुना जा रहा है. तब बुरा लगता था. आज मैं उस मुकाम पर आ गया हूं, जहां मुझे पता है कि मेरी वजह से किसी न किसी प्रतिभाशाली कलाकार को नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन मेरी राय में इस तरह कलाकार का चयन न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता.

मैं यह भी समझता हूं कि निर्माता या निर्देशक की यह सोच रहती है कि फालोवअर्स अधिक होंगे, तो वह कलाकार उतने अधिक दर्शक खींचकर ले आएगा. मगर मेरी राय में किसी भी कलाकार को उसकी क्राफ्ट के अलावा किसी अन्य वजह से जज किया जाना सही नहीं है.

सवाल : इस बात की गारंटी कैसे ली जा सकती है कि सोशल मीडिया का फालोवर्स आपका काम देखना चाहता है?

जवाब यह बहुत मुश्किल काम है. फिल्मकार कैसे यह सोच रहे हैं, मुझे भी नहीं पता. मैं देखता हूं कि कई कलाकारों ने तो सोशल मीडिया को ही अपना जीवन बना लिया है. उनकी अपनी कोई निजिता नहीं है. यदि वह चाय पीने जा रहे हैं,  तो लोगो को पता है कि वह चाय पीने जा रहे हैं.

मैं वैसा इंसान नहीं हूं. मुझे कुछ दूरी बनाकर रखना अच्छा लगता है. मेरी कुछ चीजें लोगों को न पता हो तो ही अच्छा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gagan Arora (@whogaganarora)

सवाल : तो फिर आप सोशल मीडिया पर अपने फालोवअर्स कैसे बढ़ाते हैं?

जवाब सर मैं काम करता हूं. मेरा काम अच्छा है, तो मेरे सोशल मीडिया के फालोवर्स की संख्या बढ़ेगी. काम के अलावा किसी अन्य वजह से कोई मुझे फॉलो कर रहा है, तो मुझे वह जायज वजह नहीं लगती है. अगर आप सिर्फ मेरा चेहरा देखने आ रहे हैं, तो मुझसे ज्यादा सुंदर मॉडल हैं.

सवाल : इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

जवाब माधुरी दीक्षित के साथ वेब सीरीज ‘फाइंडिंग अनामिका’ की है, जो कि दीवाली के समय नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम होगी. इसमें संजय कपूर भी हैं. इसका निर्माण धर्मा प्रोड्क्शन कर रहा है. वेब सीरीज ‘फाइंडिंग अनामिका’ की कहानी एक वैश्विक सुपरस्टार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अचानक गायब हो जाती है.

जैसे ही पुलिस और उसके चाहने वाले उसके लापता होने की खबर मिलती है, तो जांच शुरू होती है और फिर प्रतिष्ठित अभिनेत्री के जीवन में छिपी सच्चाई और दर्दनाक झूठ का खुलासा होता है. इससे अधिक अभी बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है. इसमें माधुरी दीक्षित के अलावा संजय कपूर और मानव कौल जैसे संजीदा एक्टर भी हैं.

वर्जिनिटी: टूट रही हैं बेडि़यां

लेखिका- आशा शर्मा

आदिकाल से ही औरतों के लिए शुचिता यानी वर्जिनिटी एक आवश्यक अलंकार के रूप में निर्धारित कर दी गई है. यकीन न हो, तो कोई भी पौराणिक ग्रंथ उठा कर देख लीजिए.

अहल्या की कहानी कौन नहीं जानता. शुचिता के मापदंड पर खरा नहीं उतरने के कारण जीतीजागती, सांस लेती औरत को पत्थर की शिला में परिवर्तित हो जाने का श्राप मिला था. पुराणों के अनुसार, उस का दोष सिर्फ इतना ही था कि वह अपने पति का रूप धारण कर छद्मवेश में आए छलिए इंद्र को उस के स्पर्श से पहचान न सकी.

शुचिता के सत्यापन का कितना दबाव  औरतों पर हुआ करता था, इस का उदाहरण भला कुंती से बेहतर कौन हो सकता है. कुंती, जिसे अपनी शुचिता का प्रमाण विवाह के बाद अपने पति को देना था, ने विवाहपूर्व सूर्यपुत्र कर्ण को जन्म देने के बाद उसे नदी में प्रवाहित कर दिया ताकि उस की शुचिता पर आंच न आए.

क्या है शुचिता

शुचिता यानी यौनिक शुद्धता का पैमाना. स्त्री योनि के भीतर एक पतली गुलाबी  िझल्ली होती है जिसे हाइमन कहा जाता है. माना जाता है कि प्रथम समागम के दौरान इस के फटने से रक्तस्राव होता है. जिन स्त्रियों को यह स्राव नहीं होता उन का कौमार्य शक के घेरे में आ जाता है. यह जानते हुए भी कि इस  िझल्ली के फटने के कई अन्य कारण भी होते हैं.

सामाजिक तानाबाना कुछ इस कदर बुना गया है कि स्त्री का शरीर सिर्फ उस के पति के भोग के लिए है और उस का कौमार्य उस के पति की अमानत. अकसर यही पाठ हर स्त्री को पढ़ाया जाता है. यह पाठ स्त्रियों को रटारटा कर इतना कंठस्थ करा दिया जाता है कि इस लकीर से बाहर निकले कदम अपराध की श्रेणी में रख दिए जाते हैं और इस अपराध की सजा स्त्री को ताउम्र भुगतनी पड़ती है.

ये भी पढ़ें- जानकारी: जब होटल रेड में पकड़े जाएं

राजस्थान के सांसी समुदाय में स्त्रियों की वर्जिनिटी जांचने के लिए एक अत्यंत घिनौनी प्रथा प्रचलित है, जिसे कूकड़ी प्रथा कहा जाता है. इस प्रथा के अनुसार, शादी की पहली रात को स्त्री के बिस्तर पर सफेद धागों का गुच्छा रख दिया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में कूकड़ी कहते हैं. शारीरिक संबंध बनाने के बाद बिस्तर की सफेद चादर और उस कूकड़ी की जांच होती है. यदि वह रंगदार नहीं है यानी उस में खून के धब्बे नहीं हैं तो यह माना जाता है कि स्त्री के शारीरिक संबंध शादी से पहले कहीं और स्थापित हो चुके हैं. सो, स्त्री को चरित्रहीन करार दे दिया जाता है. इसी आधार पर परिवार और समाज को उसे लांछित और प्रताडि़त करने का अधिकार भी मिल जाता है.

अमानवीयता की पराकाष्ठा यह होती है कि सुहागरात से पहले यह निश्चित किया जाता है कि कमरे में किसी तरह की कोई नुकीली या धारदार वस्तु न हो ताकि किसी तरह की चोट लगने के कारण रक्तस्राव की संभावना भी न हो. यहां तक कि लड़की के बालों से पिन तक हटा ली जाती है और उस की चूडि़यों को कपड़े से बांध दिया जाता है. इसी तरह का शुचिता परीक्षण महाराष्ट्र के कंजरभाट समाज और गुजरात के छारा समाज में भी प्रचलित है.

स्त्री साथी या संपत्ति

सदियों से यह कहावत प्रचलन में है कि संसार में लड़ाई झगड़े और युद्ध के सिर्फ 3 ही कारण होते हैं- जर, जोरू और जमीन यानी धन, स्त्री और जमीन. पति का शाब्दिक अर्थ मालिक ही होता है. इस रिश्ते से पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता है. शायद इसी तर्क के आधार पर और महाभारत की कथानुसार युधिष्ठिर ने द्रौपदी को अपनी संपत्ति मानते हुए जुए में दांव पर लगा दिया था.

समय बेशक बदलता हुआ प्रतीत हो रहा है लेकिन परिस्थितियां आज भी कमोबेश वही हैं. आज भी स्त्री पुरुष की संपत्ति ही सम झी जाती है जिस की अपनी कोई स्वतंत्र विचारधारा नहीं हो सकती. जिस के हर व्यक्तिगत फैसले पर पुरुष की सहमति की मुहर आवश्यक सम झी जाती है. ऐसा न करने वाली स्त्रियां चरित्रहीन की श्रेणी में गिनी जाती हैं. आज भी स्त्रियों की यौनिक शुचिता को उन पर शासन करने या उन्हें नियंत्रित करने का हथियार सम झा जाता है.

अकसर 2 दलों के आपसी  झगड़े का शिकार महिलाएं बन जाती हैं. लोग अपना बदला चुकता करने के लिए एकदूसरे की बहनबेटियों से बलात्कार तक कर डालते हैं.

दंगों के दंश भी महिलाएं ही  झेलती हैं. पुरुष अपनी खी झ उतारने के लिए भी बलात्कार करते हैं मानो इस तरह वे उस स्त्री के शरीर पर नहीं बल्कि उस के पूरे वजूद पर अपना अधिकार जमा लेंगे. मुखर या हावी होती दिखती महिलाओं के साथ भी यही कुकर्म किया जाता है. मांबहन की गालियां भी तो इसी का उदाहरण हैं.

ये भी पढ़ें- तलाक के लिए गुनाह और फसाद क्यों

पर कतरने की साजिश

कई कार्यालयों में जहां महिलाएं अधिक प्रतिभाशाली होती हैं, अकसर वे चारित्रिक उत्पीड़न का शिकार पाई जाती हैं. उन के सहकर्मी जब उन के द्वारा कुशलता से संपादित होने वाले कार्यों की अनदेखी कर उन का चारित्रिक मूल्यांकन करने लगते हैं तो कहीं न कहीं वे मानसिक रूप से टूटती ही हैं.

यही तो पुरुष को चाहिए. स्त्री को तोड़ कर उसे अपने अंकुश में रखना ही तो उस का ध्येय है.

इस बात में दोराय नहीं कि हर क्षेत्र में स्त्रियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. प्रतिभा यदि पुरुष से कमतर है तब तक पुरुष को उस की तारीफ से गुरेज नहीं लेकिन जहां कहीं वह पुरुष से 21 हुई, सारा बवाल शुरू हो जाता है. ऐसे अनेक उदाहरण हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं.

सीमा मेरी कालोनी में ही रहती है. पतिपत्नी दोनों सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं. सीमा अपने पति से जूनियर है, इस नाते स्कूल से संबंधित मामलों में उस की सलाह लेती रहती थी. पति का अहं संतुष्ट होता रहता था. अपनी मित्रमंडली में वह सीमा की तारीफ करते नहीं अघाता था.

पिछले साल सीमा प्रतियोगी परीक्षा पास कर के प्रधानाध्यापक क्या बन गई, एक ही  झटके में उस की सारी प्रतिभा धूल में मिल गई. सीमा को दूसरे शहर में पोस्ंिटग मिली, जो उन के घर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर था.

पहले तो उस पर रोजाना आनेजाने के लिए दबाव बनाया गया. फिर, उस के दृढ़ता से मना करने पर, उस पर जौइन न करने का दबाव बनाया गया. विरोध करने पर पति ने सीधा उस के चरित्र पर निशाना साध लिया.

‘‘होगा कोई, जिस के लिए घर छोड़ने को तैयार है ताकि जम कर मस्ती की जा सके,’’ कह कर पति ने तुरुप का पत्ता फेंक कर उस का मनोबल तोड़ने की कोशिश की.

यह तो सीमा हिम्मत वाली निकली जिस ने पति की परवा न कर अपना नया पदभार ग्रहण कर लिया वरना अधिकतर महिलाओं को तो अपने कैरियर से अधिक अपनी शुचिता ही प्यारी लगती है.

हावी है पुरातन सोच

अतिआधुनिक कहे जाने वाले आज के कितने ही युवा हैं जो अपनी पत्नियों के विवाहपूर्व प्रेम प्रसंग को सहजता से स्वीकार कर सकें? शायद, एक भी नहीं. भले ही वे स्वयं अपने प्रेम के किस्से कितना ही रस ले कर पहली रात अपनी नवविवाहिता को सुनासुना कर उस पर अपनी मर्दानगी का रोब  झाड़ें लेकिन पत्नी का किसी के प्रति एकतरफा लगाव उन्हें कतई गवारा नहीं.

ये भी पढ़ें- शिक्षा: ऑनलाइन क्लासेज शिक्षा का मजाक

बेशक स्त्रियों को पढ़नेलिखने, घूमनेफिरने या फिर अपना मनचाहा कैरियर चुनने की आजादी मिली है लेकिन आज भी उन की कमाई पर उन्हें भी पूरा अधिकार नहीं है. अपने पर किए गए खर्च को भी उन के चरित्र से जोड़ दिया जाता है. यही कारण है कि विधवा या तलाकशुदा स्त्री का हलका सा शृंगार भी समाज की आंखों में खटकने लगता है.

एक जाल है यह

बचपन में मैं ने दादी को गाय दुहते हुए देखा है. वे गाय को दुहने से पहले एक पतली सी रस्सी से उस के दोनों पांव बांध देती थीं.

मैं कहती, ‘दादी, इतनी बड़ी गाय को इतनी पतली सी रस्सी से कैसे बांध लिया आप ने?’

तब दादी कहतीं, ‘बेटा, इसे रस्सी की आदत हो गई है. पतलीमोटी से कोई फर्क नहीं पड़ता.’

ठीक ऐसी ही आदत महिलाओं को भी हो चुकी है. अपनी शुचिता को अपनी उपलब्धि सम झने की, अपनेआप को पुरुष के संरक्षण में रखने की, पहले पिता, फिर भाई, उस के बाद पति और अंत में बेटे की. स्त्रियों के संरक्षक समाज ने तय कर दिए, वही लकीर वे आज भी पीटे जा रही हैं या यों कहें कि उन्हें इस की आदत हो गई है.

बहुत सी महिलाओं को इस में कोई बुराई भी नहीं दिखती, बल्कि उन्हें अच्छा लगता है कि कोई उन का खयाल रख रहा है. इस के पीछे छिपी गुलामी की मानसिकता उन्हें दिखाई नहीं दे रही.

आज भी कुछ खेल, कुछ प्रोफैशन महिलाओं के लिए उचित नहीं सम झे जाते, जैसे सेना, पर्वतारोहण, साइकिल चलाना आदि. वहीं, कुछ खेल और व्यवसाय महिलाओं के लिए उत्तम सम झे जाते हैं, जैसे टीचिंग, बैंक आदि.

मौजूदा दौर में हालांकि वर्जनाएं टूट रही हैं लेकिन उन का प्रतिशत उंगलियों पर गिननेभर जितना ही है.

बदलाव की बयार

फिल्में समाज का आईना सम झी जाती हैं. कुछ फिल्में वही दिखाती हैं जो समाज में घटित हो रहा है, तो कुछ फिल्मों को देख कर समाज उन का अनुसरण करता है. पुरानी फिल्में देखें तो नायिका को शुचिता की मूर्ति दिखाया जाता था. यौनिक शुद्धता इतना हावी रहता था कि नायिका के मुंह से कहलाया जाता था कि मैं ने फलां पुरुष को अपना सर्वस्व सौंप दिया है. किसी अन्य पुरुष के साथ शादी के बारे में सोचना भी अब मेरे लिए पाप है.

इसी तरह यदि किसी फिल्म में नायिका से यह कथित पाप यानी विवाहपूर्व गर्भ ठहर गया हो तो स्त्री को ही उम्रभर इस पाप को ढोते हुए दिखाया जाता था.

दूसरी तरफ, आज की फिल्में या वैब सीरीज की बात करें तो इन में विवाहपूर्व के शारीरिक संबंध बहुत ही सहज दर्शाए जा रहे हैं. इस तरह के समागम के पश्चात नायिका को किसी गिल्ट, अपराधबोध या शर्मिंदगी का एहसास नहीं होता, बल्कि वह अगली सुबह न तो शरमाती हुई उठती है और न ही लाज से उस के गाल गुलाबी होते हैं. वह आम दिनों की ही भांति सहजता से अपना दिनभर का काम निबटाती है.

यह बदलाव की ठंडी बयार सुकून देने वाली है. यदि पुरुष को इस तरह के संबंध के बाद गिल्ट नहीं है तो स्त्री ही क्यों इस गठरी को ढोए?

स्त्री अपनी ऊर्जा शुचिता को सलामत रखने में जाया नहीं करती, बल्कि ‘जो हो गया वह मेरी मरजी’ कह कर हवा में उड़ा देती है. वह अब ब्रेकअप के बाद आंसू भी नहीं बहाती. लिवइन रिलेशन के रिश्ते इसी श्रेणी में गिने जा सकते हैं.

आजकल शादियां देर से होती हैं और शरीर की अपनी मांग होती है. ऐसे में सिर्फ शादी के बाद पति के सामने शुचिता के सत्यापन के लिए आज की लड़कियां अपने आज के रोमांच को खत्म नहीं करना चाहतीं.

लड़कियों का बढ़ता आत्मविश्वास उन्हें हर अपराधबोध से बाहर ला रहा है. उन्हें खुल कर जीने का न्यौता दे रहा है और वे इसे स्वीकार भी कर रही हैं.

सरकार भी उन के पक्ष में कानून बना कर उन के पंखों को मजबूती दे रही है. आज महिलाएं अकेली यात्राएं कर रही हैं, अपनी संपत्ति बना रही हैं, पहाड़ों पर चढ़ रही हैं, आसमान में उड़ रही हैं, सागर की गहराई नाप रही हैं आदिआदि.

सब से बड़ी और सकारात्मक बात यह है कि बलात्कार और एसिड अटैक जैसे हादसों के बाद भी महिलाएं आज मुसकरा कर जी रही हैं, यानी, शुचिता के सत्यापन को नकार रही हैं और शुचिता की आड़ में अपने ऊपर जबरन शासन किए जाने को अस्वीकार कर रही हैं. यही बदलाव तो चाहिए था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें