आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा- भाग 3

पत्र पूरा होते ही सब सिर झुका कर बैठ गए. ‘‘मैं अभी आया,’’ कह कर प्रशांत सर लंबेलंबे डग भरते हुए दूसरे कमरे की ओर चल दिए.

कुछ देर बाद वे एक व्हीलचेयर को पीछे से सहारा देते हुए चला कर ला रहे थे. व्हीलचेयर पर एक महिला गाउन पहने बैठी थी. शांत, सौम्य चेहरा, स्नेह से भरी बड़ीबड़ी आंखें, बालों से झांकती हलकी चांदी और कंधे पर आगे की ओर लटकती हुई लंबी सी चोटी.

प्रशांत सर नम आंखों से सब की ओर देख कर व्हीलचेयर पर बैठी महिला से परिचय करवाते हुए बोले, ‘‘मिलिए इन से, मेरे सुखदुख की साथी, मेरे जीवन की खुशी, मेरी अर्धांगिनी, जसप्रीत.’’

सब आश्चर्यचकित रह गए. कुछ देर तक उन दोनों को अपलक निहारने के बाद दीपेश उठ कर खड़ा हो गया और उस को देख सभी जसप्रीत के सम्मान में खड़े हो गए.

जसप्रीत ने अपना टेढ़ा हाथ उठा कर सब को बैठने का इशारा किया और अपने होंठों को धीरे से फैलाते हुए मुसकरा दी.

प्रशांत सर बोलने लगे, ‘‘अपनी पीएचडी के दौरान ही जब मुझे जसप्रीत के विषय में पता लगा तो मैं ने झट से विवाह का निर्णय ले लिया. दबी जबान में मम्मीपापा ने विरोध जरूर किया पर वे समझ गए थे कि अब मैं नहीं रुकने वाला. मैं नहीं छोड़ सकता था जसप्रीत को उस हाल में.’’

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‘‘इन्होंने बहुत इ…इ…इलाज करवाया मेरा. उस के बा…बाद ही थो…थोड़े हाथपैर चल…चलने लगे मेरे.’’ जसप्रीत अपनी बात रुकरुक कर कह पा रही थी.

‘‘आज जसप्रीत ने मुझ से कहा कि मैं अपनी डायरी आप सब को पढ़ने को दे दूं, इन का कहना था कि तभी बच्चे जान सकेंगे कि हम इमरान और स्वाति की भावनाएं क्यों बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं,’’ प्रशांत सर ने बताया.

‘‘ओह, आप से मिलना कितना अच्छा लग रहा है,’’ कह कर चहकती हुई साक्षी जसप्रीत से लिपट गई. सब लोग उठ कर जसप्रीत को घेर कर खड़े हो गए.

प्रशांत सर ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘आप लोग जानना चाहते थे कि मैं ने क्या कहा स्वाति और इमरान के पेरैंट्स से? सुनो, मैं ने पहले उन से पूछा कि धर्म के नाम पर बंटवारा आखिर है क्या? कहां से आईं ये बातें? क्या यह जन्मजात गुण है व्यक्ति का? जन्म लेते ही बच्चे के चेहरे पर क्या उस का धर्म अंकित होता है? हम ही बनाते हैं ये दीवारें और कैद हो जाते हैं उन में खुद ही. इतना ही नहीं, जब कोई प्रेम के वशीभूत हो इन दीवारों को तोड़ना चाहता है तो हम उसे नासमझ ठहरा कर या डराधमका कर चुप करा देते हैं. कब तक अपनी बनाई हुई दीवारों में खुद को कैद करते रहेंगे हम? कब तक अपनी बनाई हुई बेडि़यों में जकड़े रखेंगे खुद को हम? आखिर कब तक.’’

जसप्रीत ने अपनी दोनों हथेलियां मिलाईं और धीरे से ताली बजाने लगी. वहां खड़े छात्र भी मुसकराते हुए जसप्रीत का अनुसरण करने लगे. कमरा तालियों की आवाज से गूंज उठा.

‘‘सर, हम किन शब्दों में आप को धन्यवाद कहें,’’ दीपेश ने कहा.

प्रशांत सर मुसकराते हुए बोले, ‘‘एक बात मैं जरूर कहूंगा. स्वाति और इमरान के पेरैंट्स समझदार हैं. फिलहाल दोनों के मिलने पर रोकटोक न लगाने को तैयार हैं वे. कह रहे थे कि रिश्ता जोड़ने के विषय में कुछ दिन विचार करेंगे. चलो, आशा की किरण तो दिखाई दी न? पर दुख की बात है कि सब लोग ऐसे नहीं होते.’’

‘‘क्यों न हम सब मि…मिल…मिल कर एक ऐसा संग…संगठन बनाएं जो लोगों को जा…जा…जाग…जागरूक करे,’’ जसप्रीत ने सुझाव दिया.

‘‘हां, हां,’’ की सम्मिलित आवाज कमरे में सुनाई देने लगी.

‘‘मैं भी स…सह… सहयोग करूंगी उस…उस में.’’ कह कर जसप्रीत का चेहरा नई आभा से दैदीप्यमान हो झिलमिलाने लगा.

‘‘वाह जसप्रीत, खूब. हम जल्द ही ऐसा करेंगे,’’ प्रशांत सर बोले.

‘‘उस संगठन के माध्यम से हम सब को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि जाति और धर्म का लबादा जो हम ने सिर तक पहन रखा है, बहुत जरूरी है अब उसे उतार फेंकना. दम घुट जाएगा वरना हमारा,’’ हर्षित अपनी बुलंद आवाज में बोला.

‘‘और यह भी कि बच्चों की बात सुना करें पेरैंट्स. उन पर भरोसा रखें, उन्हें दोस्त समझें,’’ साक्षी ने कहा.

‘‘औ…औ…और यह भी…यह भी… कि कोई औरत अपने को कम….कम…. कमजोर समझ कर आ…आ….आ… आत्महत्या की कोशिश न करे…क… कभी,’’ जसप्रीत अटकअटक कर बोली.

‘‘बिलकुल, नारी अबला नहीं वह तो संबल है सब का,’’ साक्षी ने कहा.

कुछ देर बाद प्रशांत ने सब का धन्यवाद किया और वे चारों लौट गए.

रात के 10 बज गए थे. प्रशांत सर ने कमला को खाना लगाने को कहा और जसप्रीत को सहारा दे कर डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठा दिया.

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अगले दिन सुबह 6 बजे नींद खुली उन की. खिड़की का परदा हटा कर वे बाहर देखते हुए सोच रहे थे, ‘कितना सुंदर है यह आकाश में गुलाबी रंग बिखेरता हुआ सूरज और उस के उदय होते ही गगन में स्वच्छंदता से उड़ान भरते हुए ये पंछियों के झुंड…

‘जसप्रीत, तुम्हारा यह नया रूप शायद आने वाले समय को अपने गुलाबी रंग में रंग लेगा और फिर नई पीढ़ी भर सकेगी एक स्वच्छंद, ऊंची उड़ान…आज का दिन तो सचमुच तुम्हारे रंग में रंग कर निकला है प्रीत.’

प्रशांत सर गुनगुना उठे – ‘‘आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा.’’

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

3 मार्च, 2020 को दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने गुरुग्राम से उसे गिरफ्तार किया था. इस से पहले साल 2015 में जब जितेंद्र गोगी को गिरफ्तार किया गया था तो 30 जुलाई, 2016 को गोगी पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया था.

उस वक्त उसे हरियाणा रोडवेज की बस से नरवाना कोर्ट में पेशी पर ले जाया जा रहा था. तब 10 हथियारबंद बदमाश बस को रुकवा कर जितेंद्र गोगी को अपने साथ ले कर भाग गए थे.

इस के बाद से लगातार बड़ी वारदात में जितेंद्र गोगी का नाम सामने आता रहा. 17 अक्तूबर, 2017 को हरियाणा के पानीपत में चर्चित सिंगर हर्षिता दहिया की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हर्षिता को 4 गोलियां मारी गई थीं. इस केस में जितेंद्र गोगी का नाम सामने आया था और कहा गया था कि हर्षिता के जीजा ने जितेंद्र गोगी को सुपारी दे कर हत्या करवाई थी.

इस के अगले ही महीने स्वरूप नगर में एक टीचर दीपक बालियान की हत्या कर दी गई, जिस में जितेंद्र गोगी का ही नाम सामने आया. जनवरी, 2018 में अलीपुर के रवि भारद्वाज की 25 गोलियां मार कर हत्या की गई थी. इस में भी जितेंद्र गोगी ही शामिल था.

अभी इसी साल 19 फरवरी को रोहिणी के कंझावला में आंचल उर्फ पवन की भी हत्या जितेंद्र गोगी गैंग ने की थी, जिस में कम से कम 50 राउंड फायरिंग हुई थी.

8 सितंबर, 2019 को दिल्ली के नरेला इलाके में विधानसभा का चुनाव लड़ चुके वीरेंद्र मान की 26 गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी. इस केस का भी मुख्य आरोपी जितेंद्र गोगी ही था. तब पुलिस ने जितेंद्र गोगी के शार्पशूटर कपिल को गिरफ्तार किया था.

इस दुश्मनी में अब तक ये दोनों गैंग 8 बार सड़क पर टकरा चुके हैं. कम से कम 30 लोगों की जान गई है और जितेंद्र गोगी की मौत के बाद एक बार फिर से इस गैंगवार के बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है.

राजधानी दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में जज के सामने ही टौप मोस्ट गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी हत्याकांड की पटकथा 10 दिन पहले ही मंडोली जेल में लिख ली गई थी.

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15 सितंबर को टिल्लू ताजपुरिया से मिलने उस के गैंग के लोग मंडोली जेल में पहुंचे थे. वहां टिल्लू ने अपने साथियों को गोगी की हत्या का प्लान बताया था. टिल्लू के कहने पर ही प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगातार 4 दिन कोर्ट की रैकी कर पांचवें दिन वारदात को अंजाम दे दिया गया.

अदालत के सभी गेट पर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया गया. इस के बाद फैसला हुआ कि गेट नंबर 4 से अंदर दाखिल हो कर वकील के कपड़ों में कोर्टरूम में पहुंचा जाएगा. बदमाशों ने ऐसा ही किया. वे अपने मकसद में कामयाब हुए और इन्होंने योजना के तहत गोगी की हत्या कर दी.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि गोगी की हत्या के बाद विरोधी टिल्लू खेमे में खुशी का माहौल है. पिछले कई सालों से टिल्लू लगातार गोगी की हत्या की योजना बना रहा था.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि 15 सितंबर को मंडोली जेल में टिल्लू से मिलने के लिए उमंग और विनय के अलावा कुछ और भी लोग थे. वहां मुलाकात के दौरान टिल्लू ने इन को अपना प्लान समझाया था.

योजना के तहत शूटरों के रुकने की व्यवस्था उमंग ने हैदरपुर में स्थित अपने घर में की. यहां से रोहिणी कोर्ट ढाई से तीन किलोमीटर के बीच है. ऐसे में यहां से आनाजाना आसान था.॒

पुलिस के अनुसार, 20 सितंबर के बाद उमंग, विनय, राहुल और जगदीप लगातार 3 से 4 घंटे कोर्ट की रैकी कर रहे थे. इन सभी को इस बात का पहले से ही अंदाजा था कि गोगी की सुनवाई कोर्टरूम नंबर 207 में ही होगी.

गोगी किसी भी सूरत में जिंदा न रहे, इसलिए शूटरों को आदेश था कि वे दोनों ओर से गोगी पर फायर करें.

सब कुछ साजिश के तहत हुआ. घटना वाले दिन उमंग शूटर राहुल व जगदीप को ले कर कोर्ट के गेट नंबर 4 से ही दाखिल हुआ. काफी देर वह पार्किंग में ही मौजूद रहा. जब कोर्ट रूम में गोलियां चलने की आवाज आई तो उमंग वहां से भाग निकला और सीधा अपने घर पहुंचा.

पुलिस सूत्रों का दावा है कि तिहाड़ और मंडोली जेल से इस साजिश को अंजाम दिया गया है. इस साजिश में टिल्लू ताजपुरिया, पश्चिमी यूपी का गैंगस्टर सुनील राठी, नीरज बवानिया गैंग का नवीन बाली और उस का भाई राहुल काला, टिल्लू का गुर्गा सुनील मान के शामिल होने की आशंका है.

इन में अधिकतर गैंगस्टर तिहाड़ की जेल नंबर 15 में हैं. आशंका है कि गैंगस्टरों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने से पहले फोन के जरिए आपस में संपर्क किया होगा.

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वहीं दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मामले में काररवाई करते हुए 2 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. स्पैशल सेल की गिरफ्त में आए दोनों लोगों की पहचान उमंग और विनय के रूप में हुई. स्पैशल सेल ने दोनों को कोर्ट के गेट नंबर 4 के सीसीटीवी फुटेज के आधार पर गिरफ्तार किया था. ये दोनों आरोपी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के हैदरपुर के रहने वाले हैं.

गैंगस्टर सुनील उर्फ टिल्लू ताजपुरिया एक पुराने मामले में रोहिणी कोर्ट में पेश हुआ. दिल्ली पुलिस स्पैशल सेल और थर्ड बटालियन के हथियारों से लैस जवान उसे सुबह ही कोर्ट में लाए थे.

रोहिणी जिला पुलिस ने भी भारी बंदोबस्त कर रखा था. रोहिणी कोर्ट पूरी तरह से छावनी में तब्दील दिखी. पुलिस को आशंका थी कि गोगी गैंग पलटवार करते हुए टिल्लू पर हमला कर सकता है, इसलिए एजेंसियां कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थीं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि टिल्लू ताजपुरिया को शनिवार सुबह मंडोली जेल से लेने के लिए स्पैशल सेल की टीम को भेजा गया.

थर्ड बटालियन के जवान और स्पैशल सेल की टीम उसे अपनी सुरक्षा के घेरे में सुबह करीब सवा 10 बजे ले कर रोहिणी कोर्ट परिसर में पहुंच गई. एक पुराने मामले में उस की पेशी कोर्ट नंबर 202 में अडिशनल सेशन जज राकेश कुमार की कोर्ट में थी.

इस से पहले ही पुलिस ने पूरी तरह से रोहिणी कोर्ट परिसर को अपने घेरे में ले लिया था. पुलिस सूत्रों ने बताया कि जज के सामने टिल्लू को पेश किया गया तो उन्होंने अगली तारीख लगा दी.

सुरक्षा टीम करीब 12 बजे टिल्लू को कड़े सुरक्षा घेरे के बीच मंडोली जेल के लिए ले कर रवाना हो गई. करीब एक घंटे बाद जब पुलिस अफसरों को टिल्लू के सुरक्षित मंडोली जेल पहुंचने का मैसेज किया गया तो सब ने राहत की सांस ली.

क्राइम ब्रांच की टीम शूटआउट के अगले दिन 25 सितंबर को दोपहर बाद रोहिणी कोर्ट में पहुंची और 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक पड़ताल की.

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इस दौरान कोर्ट रूम में क्राइम सीन रीक्रिएट किया गया. लोकल पुलिस से जल्द ही सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज हासिल की, जिन का एनलिसिस कर पता लगाया जाएगा कि वकील की ड्रेस में कोर्ट के भीतर आए बदमाश किसकिस रूट से आए थे और दोनों हमलावरों के साथ क्या कुछ और बदमाश भी अदालत में आए थे?

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

उन दिनों भारी बारिश की वजह से कच्चे घरों में अकसर बिजली से जुड़ी समस्या पैदा हो ही जाया करती थी. साजिता के साथसाथ रहमान का भी उन दिनों कच्चा ही घर था.

दरअसल, रहमान और साजिता एक लंबे समय से एकदूसरे से नजर से नजर मिलाया करते थे, लेकिन दोनों की एकदूसरे के साथ बातचीत करने की हिम्मत पैदा नहीं हो रही थी.

बिजली ठीक करने के बाद जब रहमान, साजिता के घर से वापस जाने लगा तो उस ने अपना फोन नंबर साजिता के पिता को यह कहते हुए दे दिया कि अगर कुछ दिक्कत महसूस हो तो फोन कर के उसे बुला लें. उस समय तो नहीं, लेकिन कुछ दिनों बाद साजिता ने हिम्मत कर के रहमान को फोन कर ही लिया.

पहली बार की बातचीत तो सिर्फ हायहैलो में ही निकल गई, लेकिन उस के बाद जब कभी साजिता को मौका मिलता तो वह रहमान के साथ फोन पर बातें किया करती.

धीरेधीरे समय के साथसाथ दोनों के बीच दोस्ती हुई. साजिता काम का बहाना कर के घर से निकलती और वे दोनों अकसर अपने गांव से दूर कहीं और मिलने जाया करते थे. कभी साथ में शहर घूमने निकलते तो कभी दूर के खेतों में वक्त गुजारा करते.

उन की ये दोस्ती समय के साथ गहराती चली गई और वे दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. रहमान और साजिता दोनों के जीवन का वह पहला प्यार था, इसलिए उन के बीच एकदूसरे से लगाव कुछ ज्यादा ही हो गया था.

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इस के साथसाथ रहमान और साजिता ने एक बात का खासा ध्यान रखा था, वह यह कि वे दोनों अपना रिश्ता लोगों के सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे. अपने गांव वालों के सामने तो बिलकुल भी नहीं.

ऐसा इसलिए कि रहमान और साजिता दोनों बखूबी जानते थे कि वे दोनों अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे. रहमान मुसलमान था तो साजिता हिंदू.

वे जानते थे कि उन के इस प्यार को, इस रिश्ते को उन के घर वाले और समाज मंजूरी नहीं देगा. इसलिए अपने प्यार को जगजाहिर होने से बचाने के लिए वे हरसंभव तरीके अपनाते थे. यहां तक कि जब दोनों फोन पर बातें करते तो बात करने के बाद काल डिटेल्स डिलीट कर देते थे.

उन के बीच यह पहले से ही तय हुआ था कि उन्हें अपने रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखना है, नहीं तो किसी की भी बुरी नजर लग सकती है.

समय बीता तो उन के बीच नजदीकियां और बढ़ती चली गईं. दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करने लगे थे. एकदूसरे के साथ पूरी जिंदगी गुजारना चाहते थे. ऐसे में साजिता ने एक शाम को प्लान बनाया और उस ने रहमान को इस के लिए तैयार भी कर लिया.

सजिता ने रहमान से कहा, ‘‘रहमान, मैं तुम्हारे साथ अपनी बाकी की जिंदगी गुजारना चाहती हूं. हम दोनों को अगर साथ में रहना है तो हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर जाना पड़ेगा. उन्हें छोड़ना पड़ेगा. नहीं तो ये लोग हमें जुदा कर देंगे. मैं जानती हूं कि तुम्हारे लिए यह मुश्किल फैसला होगा. मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही तुम से यह बात कही है.’’

रहमान ने भी पहले से ही इस विषय में सोचविचार कर रखा था. उस ने साजिता की बातों का जवाब देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी इस बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूं. अगर हम ने अपने घर वालों को अपने इस रिश्ते के बारे में बताया तो वे इस रिश्ते को मंजूरी कभी नहीं देंगे. बेहतर यही है कि हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर चले जाना चाहिए.’’

दोनों के बीच इस बातचीत के बाद दोनों ने दिन तय कर लिया कि उन्हें किस दिन अपने घर छोड़ देना है. ठीक 11 साल पहले, 2 फरवरी 2010 की रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे. ठंड के दिन थे तो उस समय तक गांव वाले सब सो चुके थे. साजिता और रहमान के घर वाले भी गहरी नींद में थे सिवाय उन दोनों के.

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साजिता ने पहले से ही अपने कपड़ेलत्ते और जरूरी सामान एक छोटे से बैग में भर लिया था. बिना आवाज किए साजिता ने घर से निकल कर पहले इधरउधर नजरें घुमाईं और यह सुनिश्चित किया कि बाहर कोई है तो नहीं. जब उसे सभी रास्ते साफ और सुनसान दिखाई दिए तो वह घर से निकल गई और पगडंडियों के सहारे रहमान से मिलने तय जगह पर चली गई.

वहां रहमान पहले से ही मौजूद था. वह वहां पहुंच तो गया था लेकिन उस के चेहरे पर काफी उदासी छाई हुई थी. साजिता ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी तो उस ने बताया कि उस के पास इतने पैसे नहीं थे, जिस से वह उस के साथ कहीं शहर में जा कर किराए के कमरे पर गुजरबसर कर सके.

अगले भाग में पढ़ें- रहमान ने जानबूझ कर अपने मिजाज में बदलाव कर लिया था

छोटी छोटी खुशियां- भाग 4: शादी के बाद प्रताप की स्थिति क्यों बदल गई?

Writer- वीरेंद्र सिंह

उस ने जैसे ही चौराहा पार किया, सीटी बजाते हुए एक ट्रैफिक पुलिस वाला स्कूटर रोकने का इशारा करते हुए आगे आ गया. प्रताप को स्कूटर रोकना पड़ा. सिपाही ने कहा, ‘‘लाइसैंस?’’

प्रताप ने बिना कुछ कहे, जेब से लाइसैंस निकाल कर सिपाही की ओर बढ़ाया तो उस ने फुरती से लाइसैंस कब्जे में करते हुए कहा, ‘‘200 रुपए निकालो.’’

‘‘क्यों?’’ प्रताप ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘लाल बत्ती होने पर भी तुम ने स्कूटर नहीं रोका. इसलिए चालान तो कटवाना ही पड़ेगा,’’ सिपाही ने दांत निपोरते हुए कहा.

गुटखे से पीले हुए उस के दांत देख

कर प्रताप को चिढ़ हो गई. प्रताप की आंखों के सामने मैनेजर साहब का गुस्से से लालपीला होता चेहरा नाच रहा था. प्रताप ने आंखें फैला कर कहा, ‘‘भले आदमी, आधा चौराहा पार करने के बाद तो पीली लाइट जली. इस में मेरा क्या दोष, जो चालान कटवाऊं. फिर मेरे पीछे से जो बस गई, उसे तो तुम ने नहीं रोका?’’

‘‘तुम अपना चालान कटवाओ, दूसरे की चिंता मत करो,’’ सिपाही रसीद बुक निकाल कर बोला, ‘‘नाम?’’

प्रताप अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता था. सुधा की किचकिच की वजह से गए 200 रुपए. प्रताप ने 200 रुपए दिए और रसीद ले कर जेब में रखी. किक मार कर स्कूटर स्टार्ट किया. पानी के रेले की तरह चल रहे वाहनों के बीच से रास्ता बनाते हुए उस ने स्कूटर की गति बढ़ा दी.

आगे ट्रैफिक ढीला था. प्रताप के दिमाग की नसें और तन गईं. इस सिपाही का भी कुछ करना होगा. कैसेकैसे लोग ट्रैफिक में भरती हो गए हैं. एकएक को सीधा करना पड़ेगा. मैं इन सब की शिकायत गृहमंत्री से करूंगा. जल्दी पहुंचने के चक्कर में उस ने स्कूटर की गति भयानक रूप से तेज कर दी. जब से उस ने स्कूटर चलाना शुरू किया था, इतनी तेज गति से पहली बार चलाया था. उसी वक्त एक घटना घट गई.

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अचानक एक लड़की उस के सामने आ गई. विचारों में खोया प्रताप एकदम से हकबका गया. उस लड़की को बचाने के लिए प्रताप स्कूटर की सीट पर लगभग आधा खड़ा हो गया. पूरी ताकत से उस ने ब्रेक दबाए. लेकिन तड़ाक से बे्रक वायर टूट गया. उस ने एकदम से स्कूटर को फर्स्ट गेयर में डाला. स्कूटर जोरदार झटके के साथ पलटा और आगे घिसट गया. दाहिने पैर का घुटना सड़क पर इस तरह रगड़ा कि पैंट तो फट ही गई, चमड़ी छिल कर अंदर का मांस भी दिखाई देने लगा. सिर डिवाइडर से टकरा गया, जिस की वजह से प्रताप की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

फिर कितनी देर तक प्रताप बेहोश रहा, उसे पता नहीं चला. होश में आया तो दिमाग की नसें अभी भी तनी हुई थीं. बड़ी मुश्किल से उस ने आंखें खोल कर अगलबगल देखा. बीच सड़क पर वह पड़ा हुआ था. उसे लोग घेरे हुए थे. जहां की त्वचा छिली थी, असहनीय जलन हो रही थी. भीड़ में से एक युवक ने आगे बढ़ कर पानी की बोतल प्रताप को पकड़ाई. ठंडा पानी पीने के बाद प्रताप को थोड़ी राहत महसूस हुई. उस युवक ने इशारे से एक युवक को बुलाया और प्रताप की बांह पकड़ कर बैठाया. प्रताप के घुटने में बहुत तेज जलन हो रही थी. फिर उन युवकों ने प्रताप को उठा कर खड़ा किया. पीड़ा होते हुए भी प्रताप को धीरेधीरे चलने में दिक्कत नहीं हो रही थी. भीड़ में से किसी ने आटो बुला दिया था. आभारी नजरों से सब की ओर ताकते हुए प्रताप आटो में बैठ गया. औफिस करीब ही था, फिर आटो वाला भी भला आदमी था, इसलिए उस ने प्रताप से पैसे नहीं लिए थे. चोट में जलन अभी भी वैसी ही थी. औफिस में फर्स्ट ऐड बौक्स है, प्रताप यह जानता था.

आटो से उतर कर लिफ्ट तक जाने में प्रताप को काफी तकलीफ हुई थी.

बैंक में पहुंच कर उस ने राहत की सांस ली. आज की एक छुट्टी तो बची. एक बार मैनेजर साहब को मुंह दिखा कर वह डाक्टर के पास जा कर पट्टी बंधवा लेगा. टिटनैस का इंजैक्शन भी लगवाना जरूरी है.

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प्रताप ने बैंक में प्रवेश किया. उपस्थिति रजिस्टर मैनेजर साहब की मेज पर रखा था. मैनेजर साहब कंप्यूटर पर काम कर रहे थे. उन के सामने पड़ी कुरसी पर प्रताप आराम से बैठ गया. इतना चलने के बाद उस के घुटने का दर्द और बढ़ गया था. उस ने हस्ताक्षर करने के लिए जैसे ही रजिस्टर उठाया, मैनेजर साहब का ध्यान उस की ओर गया. उन की भौंहें तन गईं. उन्होंने कहा, ‘‘मिस्टर प्रताप, यह भी कोई टाइम है आने का?’’

मैनेजर साहब यही कहेंगे, प्रताप पहले से ही जानता था. आज बाजी प्रताप के हाथ में थी, इसलिए वह आज मैनेजर साहब से पूरा का पूरा पुराना बदला ले लेना चाहता था. वह तल्ख लहजे में बोला, ‘‘इधर देखो, यह मेरा घुटना छिल गया है और आप मुझे समय बता रहे हैं. मैं किस तरह बैंक पहुंचा हूं, यह मैं ही जानता हूं.’’

प्रताप ने यह बात इतने जोर से कही थी कि बैंक का पूरा स्टाफ चौंक कर प्रताप और मैनेजर साहब को ताकने लगा था. मैनेजर साहब प्रताप के इस व्यवहार से हक्काबक्का रह गए थे. फिर तो प्रताप आक्रामक हो उठा, ‘‘आप आदमी हैं या शैतान? पूरा घुटना छिल गया है, खून भी बह रहा है. फिर भी मैं बैंक आया हूं,’’ सभी लोगों को दिखाई पड़े, इस तरह प्रताप ने अपना पैर उठाया. प्रताप की हालत देख कर मैनेजर साहब खिसिया गए. इस मुद्दे पर मैनेजर साहब को आज अच्छी तरह खींचा जा सकता है, यह सोच कर प्रताप थोड़ी तेज आवाज में बोला, ‘‘आप अफसर हैं तो खुद को महान मानने लगे हैं. अरे इंसान हैं, थोड़ी तो इंसानियत रखो. किसी को शौक नहीं है लेट आने का. कोई समस्या हो जाती है, तभी आदमी लेट होता है.’’

पूरा स्टाफ आश्चर्य से प्रताप को ताक रहा था. उस ने अपना पैर उठा कर सब को चोट दिखाई. फिर दांत भींच कर मैनेजर साहब को घूरा. अब मैनेजर साहब की हिम्मत उस से नजर मिलाने की नहीं हो रही थी. सिंह साहब को चुप देख कर प्रताप बोला, ‘‘इतनी तकलीफ सह कर भी मैं बैंक आया हूं. इस की कद्र करने के बजाय आप साहबगीरी दिखा रहे हैं. साहब, आप को शर्म आनी चाहिए.’’

मैनेजर साहब को काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई थी. उन्होंने धीमे से कहा, ‘‘सौरी.’’

‘‘यू हैव टू…’’ इतना कह कर प्रताप धीरेधीरे अपनी मेज की ओर बढ़ने लगा. एक नजर उस ने सहकर्मियों पर डाली. उसी एक नजर में उस ने भांप लिया था कि मैनेजर साहब के साथ आज उस ने जो बरताव किया है उस से सभी खुश हैं. वह अपनी सीट पर जा कर बैठा तो एकएक, दोदो कर के लोग उस के पास आ कर हालचाल पूछने लगे. मिश्राजी फर्स्ट ऐड बौक्स ले कर आए. रेखा ने घुटने पर डिटौल लगाई तो काफी तेज जलन हुई. होंठ भींच लिए प्रताप ने. फिर बीटाडीन लगा कर ऊपर से रुई रख कर पट्टी बांध दी. रेखा की ओर देखते हुए प्रताप ने कहा, ‘‘थैंक्यू, थैंक्यू वेरी मच, रेखाजी.’’

पट्टी बंधने के बाद प्रताप ने काफी राहत महसूस की.

Satyakatha: मियां-बीवी और वो- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

देवेंद्र ने थानाप्रभारी को जो बयान दिया था, उस में कहा था कि घटना के समय 2 लोगों ने अचानक हमला किया था, वह लघुशंका के लिए कुछ कदम आगे चला गया था. इसी दरमियान गाड़ी में लूटपाट की घटना हुई और उन लोगों ने दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के हत्या कर दी.

जब वह पास आया था तो उस के भी हाथ बांध दिए गए थे, मगर उस ने एक लात मार कर भाग कर अपनी जान बचाई थी.

देवेंद्र ने यह भी बताया था कि किसी एक ने उस की कनपटी पर पिस्टल रख कर के धमकी भी दी थी. इन सारी

बातों की विवेचना जब पुलिस ने की तो देवेंद्र सोनी की बातों में विरोधाभास दिखा. सब से बड़ा सवाल यह था कि जब लूटपाट करने वालों के पास पिस्टल थी तो उन्होंने दीप्ति को नायलोन की रस्सी से क्यों मारा? और मोबाइल के सिम को क्यों निकाला था?

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पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि देवेंद्र अपने बयान में कहीं झूठ बोल रहा है और उस की बातों की सत्यता जानने के लिए अब पुलिस को देवेंद्र से पूछताछ करनी थी. पुलिस ने पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए उसे रात को घर भेज दिया गया था, साथ ही यह निर्देश भी दिए कि जरूरत पड़ने पर बयान के लिए फिर से थाने आना होगा.

दीप्ति के अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन 16 जून को जब देवेंद्र को जांच अधिकारी अविनाश कुमार श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला. देवेंद्र का फोन बंद हो जाने से पुलिस का शक और भी गहरा  गया.

अंतत: बिलासपुर जिला पुलिस के सहयोग से थाना पंतोरा और बलौदा की पुलिस टीम ने देर शाम को देवेंद्र सोनी का मोबाइल ट्रैक कर के उसे बिलासपुर से हिरासत में ले लिया.

जांजगीर ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो पहले तो वह कुछ भी कहने से गुरेज करता रहा. पुलिस ने जब उस के मोबाइल की जांच की तो पता चला कि घटना के कुछ समय पहले वह लगातार शालू सोनी नाम की एक महिला से बात करता रहा था.

पुलिस ने उस से शालू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रदीप सोनी उस के रिश्तेदार के यहां नौकर है और शालू प्रदीप की पत्नी है.

पुलिस ने दूसरे दिन प्रदीप सोनी और उस की पत्नी शालू सोनी, जो अपने घर से गायब थे, को जिला मुंगेली के एक मकान से हिरासत में लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

प्रदीप ने पुलिस के समक्ष घबरा कर अपना  अपराध स्वीकार कर लिया और दोनों पतिपत्नी ने जो कहानी बताई, उस से दीप्ति हत्याकांड से परदा उठता चला गया.

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अपनेअपने इकबालिया बयान में दोनों ने बताया कि वे सरकंडा बंगाली पारा में झोपड़ी में रहते हैं और देवेंद्र सोनी ने उन्हें डेढ़ लाख रुपए देने की बात कह कर के इस हत्याकांड में शामिल किया था.

शालू ने बताया देवेंद्र अकसर उस के साथ हंसीमजाक किया करता था और एक दिन बातोंबातों में कहने लगा, ‘‘तुम लोग आखिर कब तक इस तरह नौकरी करते रहोगे. कुछ अपना भविष्य भी बनाओगे कि नहीं.’’

इस पर शालू सोनी ने कहा, ‘‘भैया, इन की तबीयत तो हमेशा खराब रहती है. आखिर हमारा क्या होगा यह पता नहीं.’’

इस पर देवेंद्र ने मासूमियत से कहा, ‘‘देखो, तुम चाहो तो अपनी तकदीर खुद बना सकती हो. कहो तो मैं तुम्हें एक तरकीब बताऊं, तुम्हें एकडेढ़ लाख रुपए तो यूं ही मिल जाएगा.’’

देवेंद्र ने उन से कहा, ‘‘बस, तुम्हें किसी भी तरीके से मेरी पत्नी दीप्ति को मेरे रास्ते से हटाना है.’’

पहले तो शालू और प्रदीप ने इंकार कर दिया, मगर जब डेढ़ लाख रुपए की एक बड़ी रकम उन की आंखों के आगे झूलने लगी तो वे लालच के फंदे में फंस गए और दीप्ति हत्याकांड की पटकथा बुनी जाने लगी.

एक दिन देवेंद्र ने ही कहा कि सोमवार, 14 जून की रात को दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर की तरफ आऊंगा. इस रास्ते में जिला जांजगीर चांपा का घनघोर छाता जंगल पड़ता है. जहां हम दीप्ति का काम तमाम कर  सकते हैं.

इस तरह देवेंद्र ने पूरी हत्याकांड की पटकथा बनाई. 3 दिन पहले ही पंतोरा के वन बैरियर के पास रैकी कर के घटना को अंजाम देने की प्लानिंग कर ली गई थी. जिसे उन्होंने 14 जून की रात को अंजाम दे दिया था.

जब प्रदीप और शालू सोनी से पुलिस ने देवेंद्र का सामना कराया तो देवेंद्र टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि हत्या उसी ने करवाई है क्योंकि अकसर उन का झगड़ा होता रहता था.

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उस ने पुलिस को बताया कि दीप्ति हमेशा उस पर शक किया करती थी. दूसरी तरफ उसे दीप्ति पर शक था और एक बार उस ने दीप्ति को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. मगर इस का कोई सबूत देवेंद्र पुलिस को नहीं दे सका.

पुलिस ने जांच के बाद दोनों मोबाइल फोन, जो प्रदीप सोनी ने फेंक दिए थे, बरामद कर लिए. लैपटौप देवेंद्र सोनी के घर से ही बरामद कर लिया गया. आरोपी प्रदीप सोनी और शालू ने जिस स्कूटी को घटना के लिए इस्तेमाल किया था, उसे भी पुलिस ने जब्त कर लिया गया.

घटना के खुलासे के बाद जिला चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने देर शाम एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने थाना पंतोरा में भादंवि की धारा 397, 302 के  तहत मुख्य आरोपी देवेंद्र सोनी, प्रदीप सोनी तथा शालू सोनी को 17 जून, 2021 को गिरफ्तार कर चांपा जांजगीर के प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: खोखले निकले मोहब्बत के वादे- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कुल मिला कर गीता निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी. परिवार उन दिनों गीता की शादी को ले कर चिंतित था. गीता तीखे नाकनक्श वाली बेहद खूबसूरत थी.

परिवार चाहता था कि गीता की शादी बिरादरी में ही किसी अच्छे परिवार के ठीकठाक कमाई करने वाले लड़के से हो. लेकिन जहां भी पसंद का लड़का मिलता तो दहेज की ऐसी मांग होती कि गीता के परिवार के लिए दहेज की मांग पूरी करना मुश्किल हो जाता. इसीलिए गीता की उम्र तेजी से बढ़ रही थी और गीता के परिवार की चिंताएं भी.

पहली मुलाकात में हो गया था दीवाना

लेकिन जब मनोरंजन ने गीता को देखा तो उसे पहली ही नजर में उस से प्यार हो गया. कुछ समय पहले तक वह नहीं मानता था कि किसी लड़की को देख कर उस के मन में ऐसा मीठामीठा अहसास जगेगा.

जब उस ने गीता को देखा था, तब उस से कुछ पल की मुलाकात हुई थी. लेकिन तभी से न जाने कब उस का दिल खो सा गया. हालांकि मनोरंजन ने गीता से भी ज्यादा हसीन लड़कियां देखी थीं. लेकिन गीता की हसीन मुसकराहट और खिलखिलाहट भरी खनखनाती मीठी आवाज ने उस पर अजीब सा जादू कर दिया था.

पहली बार किसी लड़की की याद में उस ने एक शेर लिख डाला ‘न तीर न तलवार से, उन की नजर के वार से, हम तो घायल हो गए, उन की भोली सी मुसकान पे.’

उस दिन रात भर नींद की तलाश में मनोरजन करवटें बदलता रहा. लेकिन आंखें बंद करते ही कानों में उस की मीठी आवाज गूंजने लगती थी. इस अहसास के बाद उसे लगने लगा कि सालों बाद हो रहा ये अहसास प्यार है.

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अगला पूरा दिन मनोरंजन ने गीता के इंतजार में बिता दिया. क्योंकि उसे अपने फोटो लेने के लिए आना था. आंखें उस का इंतजार करते हुए थक गईं लेकिन वह नहीं आई.

फिर उस रात वही बेकरारी, रात भर उस का खयाल और यही सोचना… आखिर ये प्यार क्या चीज है. 3 दिन हो गए लेकिन गीता फोटो लेने नहीं आई. इंतजार जैसेजैसे बढ़ता जा रहा था, बेकरारी भी उसी तरह बढ़ती जा रही थी.

आखिर चौथे दिन जब गीता अपना फोटो लेने के लिए उस के स्टूडियो पर आई तो दिल को वैसे ही सुकून मिला, जैसे तपती रेत पर पानी गिरने से ठंडक का अहसास होता है.

संयोग ये भी था कि पहले दिन जब गीता फोटो खिंचाने आई थी तो उस के साथ पड़ोस में रहने वाली कोई महिला थी. लेकिन उस दिन वह अकेली पहुंची.

‘‘आप की फोटो उतनी खूबसूरत नहीं आई, जितनी खूबसूरत आप हो.’’ फोटो का लिफाफा गीता के हाथ में थमाते हुए मनोरंजन ने कहा.

‘‘फिर तो मैं फोटो का कोई पैसा नहीं दूंगी.’’ गीता बोली.

‘‘आप की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने की गुस्ताखी तो हम कर चुके हैं, इसलिए आप का पैसा नहीं देना हमें मंजूर है.’’ मनोरंजन ने हिम्मत जुटा कर थोड़ा सा खुलना शुरू किया.

‘‘वैसे अगर आप मांग में सिंदूर और माथे पर बिंदी लगातीं तो आप की फोटो और भी खूबसूरत आती.’’ कुछ जानकारी की जिज्ञासा लिए मनोरंजन ने कहा.

मनोरंजन के इतना कहते ही गीता ने नाक सिकोड़ते हुए कह, ‘‘छि: हम क्यों मांग में सिंदूर लगाएं, वो तो शादीशुदा औरतें लगाती हैं. हमारी तो अभी शादी भी नहीं हुई.’’

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गीता ने नाराजगी का इजहार किया तो मनोरंजन का दिल खुशियों से उछलता हुआ सीने से बाहर आने को हो गया. क्योंकि घुमाफिरा कर वह यही तो पूछना चाहता था कि गीता शादीशुदा है या नहीं.

उस का काम हो गया क्योंकि जो लड़की उसे पसंद आई थी वो सिंगल है या शादीशुदा, यह जानना उस के लिए जरूरी था.

बस, उस के बाद मनोरंजन के लिए गीता से दोस्ती करना आसान हो गया. गीता की तरह वह भी भोलाभाला था. उस ने गीता का नामपता पूछा, उस के परिवार के बारे में जानकारी ली और उस का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे भी अपना मोबाइल नंबर दे दिया.

गीता भी चाहने लगी मनोरंजन को

गीता को उस ने यह बात इशारेइशारे में बता दी कि वह उस को पसंद करता है और फोन पर उस से बात करेगा. इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

कुछ दिनों बाद दोनों एकदूसरे से मुलाकात भी करने लगे. साथ में सिनेमा देखने, रेस्टोरेंट में साथ जा कर खाना खाने का सिलसिला भी शुरू हो गया.

एकदो महीने के बाद मनोरंजन की तरह गीता भी उसे पूरे दिल से प्यार करने लगी. एक दिन मनोरंजन ने अपने दिल का इजहार करते हुए गीता से कह दिया. गीता क्या तुम मेरी सूनी जिंदगी में आ कर उसे रोशन कर सकती हो. गीता खुद भी मनोरंजन से कुछ ऐसा ही कहना चाहती थी. दोनों ने उस दिन साथ जीनेमरने की सौगंध खा ली.

बस, एक ही अड़चन थी. मनोरंजन जाति से ब्राह्मण था, जबकि गीता यादव बिरादरी से थी. मनोरंजन को तो कोई ऐतराज नहीं था. लेकिन गीता के परिवार को ऐतराज न हो, इसलिए उस ने गीता से अपने परिवार की राय जानने के लिए कहा.

गीता ने जब अपनी मां शांति व भाई राजेश यादव को मनोरंजन के बारे में बताया तो पहले उन्होंने नाराजगी दिखाई कि एक गैरबिरादरी के लड़के से हम कैसे उस की शादी कर दें. लेकिन फिर यही सवाल उठा कि बिरादरी में अच्छे लड़के तो मोटा दहेज मांग रहे हैं.

जबकि मनोरंजन अच्छा लड़का भी है और कमाता भी अच्छा है. ऊपर से वह गीता को बेहद प्यार भी करता है. अगर वह मनोरंजन से गीता की शादी करते हैं तो अच्छा लड़का भी मिल जाएगा और दहेज भी नहीं देना पड़ेगा.

ना ना करतेकरते गीता की मां और भाई दोनों मान गए और उन्होंने शादी के लिए हां कर दी. फरवरी, 2007 में दोनों परिवार वालों की रजामंदी से मंदिर में जा कर मनोरंजन और गीता ने शादी कर ली.

शादी के बाद मनोरंजन को मानो जीने का मकसद मिल गया. उस की चाहत गीता उस की जिंदगी की रोशनी बन चुकी थी. 6 महीने कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. मनोरंजन पूरी तरह गीता के प्यार के आगोश में डूब चुका था.

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वक्त का पहिया तेजी से घूमने लगा. महीने गुजरे फिर साल गुजरने लगे. दोनों के प्यार की तपिश के वक्त के साथ तेजी से बढ़ती गई. लेकिन 2 साल गुजर गए तो एक कमी दोनों को खलने लगी. उन की चाहत थी कि घरआंगन में एक बच्चे की किलकारी गूंजे. लेकिन वो चाहत पूरी नहीं हो रही थी.

3 साल हो गए, लेकिन गीता मां नहीं बन सकी. जब मनोरंजन अपनी इस चाहत का जिक्र कर गीता से इस कमी को पूरा करने की फरमाइश करता तो वह कहती, ‘‘इस में मेरा क्या दोष है. तुम्हारी मर्दानगी में कमी होगी, जो बच्चा पैदा नहीं हो रहा.’’

अगले भाग में पढ़ें- पति मनोरंजन के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: कार्तिक की होगी मौत, अब क्या करेगी सीरत

शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) और मोहसिन खान (Mohsin Khan) स्टारर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) की कहानी एक नया मोड़ ले रही है. शो में जल्द ही लीप आने वाला है. जिससे कहानी में नई एंट्रीज होगी. शो के आने वाले एपिसोड में धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिलेगा. आइए बताते हैं कहानी के नए एपिसोड के बारे में…

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शो में दिखाया जा रहा है कि कार्तिक बीमार है. ऐसे में सीरत हर वक्त कार्तिक के साथ रहना चाहती है और उसकी देखभाल करना चाहती है. सीरत अपना मैच छोड़कर कार्तिक से मिलने चली जाती है. कार्तिक सीरत को समझाता है.

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सीरत एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेती है और वह मैच जीत जाती है. सीरत की जीत का जश्न गोयनका परिवार सेलिब्रेट करता है. तो वहीं सुरेखा सीरत को खूब खरखोटी सुनाती है. दूसरी तरफ सीरत मीडिया को इंटरव्यू देती है.

 

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मीडिया सीरत से लव और कुश को लेकर सवाल करती है. सीरत इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएगी. जिसके बाद लव और कुश से काफी नाराज हो जाएंगे. शो में जल्द ही कार्तिक की मौत हो जाएगी. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि कार्तिक की मौत की खबर सुनकर सीरत की क्या हालत होगी.

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अनुज करेगा अपने प्यार का इजहार? अनुपमा को लगेगा शॉक

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में अनुपमा-वनराज के बीच पैचअप हो चुका है. इतना ही नहीं, वनराज को अब काव्या के जॉब से कोई ऐतराज नहीं है. अनुपमा ने वनराज को समझा दिया है. तो उधर समर की जान खतरे में है और नंदिनी उसे बचाने के लिए रोहन के पास वापस जाना चाहती है. अनुपमा उसे रोक लेती है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं कहानी के नए ट्रैक के बारे में.

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज और गोपी काका को आपस में खेलते देख अनुपमा (Anupama) हंसने लगेगी. इसी बीच अनुज अपनी फीलिंग्स छिपाएगा और अनुपमा को चोरी-चोरी देखेगा. तो वहीं दूसरी ओर देविका अनुपमा कुकिंग कॉम्पिटिशन की एंट्रीज पर लिस्ट बनाएगी.

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अनुज (Anuj Kapadia) अनुपमा को घर जाने में लेट हो जाएगा, ऐसे में अनुज उसे घर छोड़ने की बात कहेगा. इसी बीच वहां पाखी, वनराज के साथ पहुंच जाएगी. अनुज, अनुपमा से कहेगा कि वह अपने परिवार के साथ चली जाए. ये देखकर देविका गुस्सा हो जाएगी.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि अनुपमा वनराज के साथ कार में बैठेगी. तो वहीं देविका अनुज से कहेगी कि उसे अपनी फीलिंग्स छिपानी नहीं चाहिए. उसे अनुपमा से अपने प्यार का इजहार करना चाहिए. देविका ये भी कहेगी कि अनुपमा के पास परिवार है लेकिन प्यार नहीं. उसे प्यार की जरूरत है. वह अनुज को फोर्स करेगी कि उसे अनुपमा से सबकुछ बता देना चाहिए. ऐसा करने से वो दोनों बहुत खुश रहेंगे.

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तो दूसरी ओर समर भी सही-सलामत घर पहुंच जाएगा. अनुपमा, वनराज को रोहन के बारे में बताना चाहती है. इसी बीच वनराज को भनक लग जाएगी कि  कुछ परेशानी है. तो वहीं आप ये भी देखेंगे कि अनुपमा, अनुज, किंजल, और देविका कुकिंग कॉम्पिटिशन में जमकर डांस करेंगे. इसी बीच अनुपमा की नजर किसी पर पड़ेगी और वो परेशान हो जाएगी. शो में अब ये देखना होगा कि आखिर अनुपमा किसे देखकर शॉक्ड हो जाएगी.

समस्या का हल पूजापाठ और मंदिरमठ नहीं है!

नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को ही बेरोजगार दिवस जोरशोर से मना कर भारतीय जनता पार्टी के सामने खड़ी पार्टियों ने यह जता दिया है कि केवल नारों और वादों से देश की मुसीबतों का हल नहीं किया जा सकता. भारतीय जनता पार्टी जिस हिंदूहिंदू और मंदिरमठ के नाम पर राज कर रही है उस की पोल खुल रही है क्योंकि देश की क्या किसी भी आम जने की समस्या का हल पूजापाठ और मंदिर नहीं हैं, समस्या का हल तो नए कारखाने, नए व्यापार और उन को बल देने वाली उच्च तकनीकी शिक्षा है.

कोविड के कहर से दुनियाभर की सरकारों को अपने काम समेटने पड़े हैं और जनता की जान बचाने के लिए लौकडाउन करने पड़े थे पर उन देशों ने इस मौके का इस्तेमाल अपने नेता के गुणगान में नहीं किया. हमारे यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार कोविड की मार से कराह रहे देश को नए कानूनों, नए टैक्सों और जन्मदिनों की दवा दे रही है, कोई सहायता नहीं. यह नई बात नहीं है.

हमारे किसी भी पौराणिक ग्रंथ को पढ़ लें. उस में वही सोच मिलती है जो आज भाजपा सरकार की है. शिव पुराण की पहली पंक्तियों में ही एक ऋ षि का दूसरे से मिलने पर अपने जन्म को तर जाना कहता है. भाजपा भी जनता से यही कह रही है कि हम पूजने के लिए आप को मिल रहे हैं, यह काफी नहीं है क्या. प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 3 सप्ताह तक अखंड जागरण सा माहौल करना जताता है कि पार्टी और उस की सरकार के पास न कोईर् ठोस सोच है, न रास्ता. वह खोदखोद कर पूजापाठी स्टंटों को ढूंढ़ रही है और यह जनता की मूर्खता है कि इस भुलावे में है कि इस से उस का कल्याण हो जाएगा.

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इस देश की माटी में बहुत दम है. यहां की बारिश और गरमी भी सही जा सकती है और सर्दी भी. यहां आराम से उत्पादन भी हो रहा है और खेती भी. और इसीलिए सदियों से यहां के राजाओं और मंदिरों की शानबान की चर्र्चा दूसरे देशों में होती रही और पहाड़ों या पानी के रास्ते विदेशी इस देश में आते रहे, कुछ बसने के लिए, कुछ राज करने के लिए तो कुछ लूटने के लिए. आज बाहरी लूट से तो हम आजाद हैं पर सरकारी नीतियों और सत्ता ने जनता को अपना गुलाम बना कर लूटना शुरू कर रखा है.

नरेंद्र मोदी ने ऋ षि का रूप धारण कर के यह बताना चाहा है कि वे तो मोहमाया के झंझटों से दूर हैं, फकीर हैं और झोले वाले हैं. तो फिर उन को अपने जन्मदिन को गाजेबाजे से मनवाने की क्या जरूरत थी कि विपक्ष को उसे बेरोजगार दिवस कहने का मौका मिल गया.

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इस देश की दिक्कत यही रही है कि यहां की आम जनता मेहनती और कम में संतोष करने वाली रही है वहीं पर अपने हकों को दूसरों के हवाले करने वाली भी रही है. गांव का पुजारी हो, ठाकुर हो, इलाके का हाकिम हो या देश का राजा, उसे सिर्फपूजना आता है. जो राजा बनता है वह पुजवाने का आदी हो जाता है. नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपनी जो छवि सीधे, शरीफ व्यक्ति की बनाई थी उस पर सूटबूट तो जड़ ही गए, अब 21 दिनों के जन्मदिनों के धागे भी बंधने लगे हैं.

यह व्यक्ति पूजा ही की आदत है जो जनता को महंगी पड़ती है. पूजापाठी जनता को सिखाया ही यही जाता है. या तो उस का उद्धार कोई ऊपर वाला करेगा या राजा.

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