Satyakatha: खूंखार प्यार- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

‘‘अच्छा, ऐसी अंतिम धमकियां तो तुम जाने कितनी बार दे चुके हो. तुम मेरा मुंह बंद कर के गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो. मेरी जिंदगी, मेरी बच्ची की जिंदगी बरबाद करना चाहते हो. मैं तुम से डरने वाली नहीं. देखो, एक मैं ही हूं जो तुम्हें बारबार माफ करती हूं. कोई दूसरी औरत होती तो अभी तक तुम जेल में होते.’’ वह गुस्से में बोली.

‘‘दीपू, तुम बारबार मुझे जेल की धमकी मत दिया करो, मैं भी कोई आम आदमी नहीं, मेरी भी ऊंची पहुंच है. चाहूं तो तुम्हें गायब करवा दूं, कोई ढूंढ भी नहीं पाएगा. बहुत ऊंची पहुंच है मेरी.’’

वे दोनों इसी तरह आपस में नोकझोंक करते हुए गृहनगर बिलासपुर की ओर बढ़ रहे थे. अचानक देवेंद्र ने कार रोकी और दीप्ति की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं एक मिनट में आता हूं.’’

दीप्ति ने उस की तरफ प्रश्नसूचक भाव से  देखा तो देवेंद्र ने छोटी अंगुली दिखाते हुए कहा, ‘‘लघुशंका.’’

देवेंद्र ने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया था. रात के लगभग 10 बज रहे थे, दीप्ति पीछे सीट पर बैठी हुई थी. दीप्ति ने गौर किया देवेंद्र देखतेदेखते कहीं दूर चला गया, दिखाई नहीं दे रहा था.

वह चिंतित हो उठी और इधरउधर देखने लगी. तभी उस ने देखा सामने से 2 लोग उस की ओर तेजी से आ रहे हैं. दोनों के चेहरे पर नकाब था, यह देख दीप्ति घबराई मगर देखते ही देखते दोनों उस पर टूट पड़े.

उन में एक पुरुष था और एक महिला, पुरुष ने जल्दी से एक नायलोन की रस्सी उस के गले में डाल दी और उस का गला रस्सी से दबाने लगा. इस में उस की साथी महिला भी उस की मदद करने लगी और दीप्ति का दम घुटने लगा. थोड़ी देर वह छटपटाती रही फिर आखिर में उस का दम टूट गया.

पुरुष और महिला ने मिल कर के उस का पर्स और मोबाइल अपने कब्जे में लिया. रुपए ले लिए, मोबाइल का सिम निकाला और जल्दीजल्दी उसे अपने कब्जे में ले कर के जेब में रखा. और एक झोले में लाए पत्थर से कार का शीशा तोड़ कर चले गए.

मगर उन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि इस आपाधापी में मोबाइल में लगा एक दूसरा सिम वहीं नीचे जमीन पर गिर गया है.

देवेंद्र सोनी और दीप्ति का विवाह 2003 में हुआ था. देवेंद्र के पिता रामस्नेही सोनी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उन का संयुक्त परिवार बिलासपुर के सरकंडा बंगाली पारा में रहता था.

देवेंद्र बीकौम की पढ़ाई कर ही रहा था कि पिता ने जिला कोरबा के उपनगर बालको कंपनी में कार्यरत कृष्ण कुमार सोनी की दूसरी बेटी दीप्ति से उस के विवाह की बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.

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विवाह के बाद मानो देवेंद्र सोनी का असली रूप धीरेधीरे सामने आता चला गया. देवेंद्र चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की तैयारी कर रहा था, मगर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था. इधर उस की आकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. अपनी ऊंची उड़ान के कारण ऐसीऐसी बातें कहता और नित्य नईनई लड़कियों से दोस्ती की बातें दीप्ति को बताता.

शुरू में तो वह नजरअंदाज करती रही, परंतु पैसों की कमी होने के बावजूद वह हमेशा अच्छेअच्छे कपड़े पहनता और नईनई लड़कियों से संबंध बनाता रहता था.

यह बात जब दीप्ति को पता चलने लगी तो दोनों में अकसर विवाद गहराने लगा. इस बीच दोनों की एक बेटी सोनिया का जन्म हुआ, जो लगभग 7 साल की हो गई थी. और बिलासपुर के एक अच्छे कौन्वेंट स्कूल में पढ़ रही थी.

रात के लगभग साढ़े 11 बज रहे थे. जिला चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के अपने कक्ष में थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास बैठे अपने स्टाफ से कुछ चर्चा कर रहे थे कि उसी समय घबराए हुए 2 लोग भीतर आए.

एक के चेहरे पर मानो हवाइयां उड़ रही थीं. उन्हें इस हालत में देख अविनाश कुमार को यह समझते देर नहीं लगी कि कोई बड़ी घटना घटित हो गई है. उन्होंने कहा, ‘‘हांहां बताओ, क्या बात है, क्यों इतना घबराए हुए हो?’’

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दोनों व्यक्तियों, जिन की उम्र लगभग 30-35 वर्ष के लपेटे में थी, में से एक ने खड़ेखड़े ही लगभग कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘सर, मैं देवेंद्र सोनी 2-3 जिलों में कई प्रतिष्ठित लोगों के लिए अकाउंटेंट का काम करता हूं. मैं अपनी पत्नी दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर जा रहा था कि कुछ लोगों ने हम से लूटपाट की और मेरी पत्नी को…’’ ऐसा कह कर वह इधरउधर देखने लगा.

‘‘क्यों, क्या हो गया आप की पत्नी को… विस्तार से बताओ. आओ, पहले आराम से कुरसी पर बैठ जाओ.’’ अविनाश कुमार श्रीवास ने  उठ कर दोनों को अपने सामने कुरसी पर बैठाया और पानी मंगा कर के पिलाते हुए कहा.

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अब और नहीं- भाग 4: आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

Writer- ममता रैना

उस की फजूलखर्ची से भूपेश अब परेशान रहने लगा था. कभी उस पर झुंझला उठता तो उपासना उस का जीना हराम कर देती, तलाक और पुलिस की धमकी देती.

जो शारीरिक सुख उपासना से प्रेमिका के रूप में मिल रहा था वह उस के पत्नी बनते ही नीरस लगने लगा. इश्क का भूत जल्दी ही सिर से उतर गया.

दीपमाला के साथ शादी के शुरुआती दिनों की कल्पना कर के भूपेश के मन में बहुत से विचार आने लगे. वह एक बार फिर दीपमाला के संग के लिए उत्सुक होने लगा. खाने की थाली की तरह जिस्म की भूख भी स्वाद बदलना चाहती थी.

किसी तरह दीपमाला के घर और सैलून का पता लगा कर एक दिन वह दीपमाला के फ्लैट पर आ धमका. एक अरसे बाद अचानक उसे सामने देख दीपमाला चौंक उठी कि भूपेश को आखिर उस का पता कैसे मिला और अब यहां क्या करने आया है?

‘‘कैसी हो दीपमाला? बिलकुल बदल गई हो… पहचान में ही नहीं आ रही,’’ भूपेश ने उसे भरपूर नजरों से घूरा.

दीपमाला संजसंवर कर रहती थी ताकि उस के सैलून में ग्राहकों का आना बना रहे. अब वह आधुनिक फैशन के कपड़े भी पहनने लगी थी. सलीके से कटे बाल और आत्मनिर्भरता के भाव उस के चेहरे की रौनक बढ़ा रहे थे. उस का रंगरूप भी पहले की तुलना में निखर आया था.

कांच के मानिंद टूटे दिल के टुकड़े बटोरते उस के हाथ लहूलुहान भी हुए थे, मगर उस ने अपनी हिम्मत कभी नहीं टूटने दी. वह अब जीवन की हर मुश्किल का सामना कर सकती थी तो फिर भूपेश क्या चीज थी.

‘‘किस काम से आए हो?’’ उस ने बेहद उपेक्षा भरे लहजे में पूछा. उस की बेखौफी देख भूपेश जलभुन गया, लेकिन फौरन उस ने पलटवार किया, ‘‘मैं अपने बेटे से मिलने आया हूं. तुम ने मुझे मेरे ही बेटे से अलग कर दिया है.’’

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‘‘आज अचानक तुम्हें बेटे पर प्यार कैसे आ गया? इतने दिनों में तो एक बार भी खबर नहीं ली उस की,’’ एक व्यंग्य भरी मुसकराहट दीपमाला के अधरों पर आ गई.

‘‘तुम्हें क्या लगता है मैं अंशुल से प्यार नहीं करता? बाप हूं उस का, जितना हक तुम्हारा है उतना मेरा भी है.’’

‘‘तो तुम अब हक जताने आए हो? कानून ने तुम्हें बेशक हक दिया है, मगर वह मेरा बेटा है,’’ दीपमाला ने कहा.

बेटे से मिलना बस एक बहाना था भूपेश के लिए. उसे तो दीपमाला के साथ की प्यास थी. बोला, ‘‘सुनो दीपमाला, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई… हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

भूपेश के तेवर अचानक नर्म पड़ गए. उस ने दीपमाला का हाथ पकड़ लिया.

तभी एक झन्नाटेदार तमाचा भूपेश के गाल पर पड़ा. दीपमाला ने बिजली की फुरती से फौरन अपना हाथ छुड़ा लिया.

भूपेश का चेहरा तमतमा गया. इस खातिरदारी की तो उसे उम्मीद ही नहीं थी. वह कुछ बोलता उस से पहले ही दीपमाला गुर्राई, ‘‘आज के बाद दोबारा मुझे छूने की हिम्मत की तो अंजाम इस से भी बुरा होगा. यह मत भूलो कि तुम अब मेरे पति नहीं हो और एक गैरमर्द मेरा हाथ इस तरह नहीं पकड़ सकता, समझे तुम? अब दफा हो जाओ यहां से.’’

उसे एक भद्दी सी गाली दे कर भूपेश बोला, ‘‘सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही हो. किसकिस के साथ ऐयाशी करती हो सब जानता हूं, अगर उन के साथ तुम खुश रह सकती हो तो मुझ में क्या कमी है? मैं अगर चाहूं तो तुम्हारी इज्जत सारे शहर में उछाल सकता हूं… इस थप्पड़ का बदला तो मैं ले कर रहूंगा और फिर दीपमाला को बदनाम करने की धमकी दे कर भूपेश वहां से चला गया.

कितना नीच और कू्रर हो चुका है भूपेश… दीपमाला की सहनशक्ति जवाब दे गई. वह तकिए पर सिर रख कर खुद पर रोती रही, जुल्म उस पर हुआ था, लेकिन कुसूरवार उसे ठहराया जा रहा था.

इस मुश्किल की घड़ी में उसे अमित की जरूरत होने लगी. उस के प्यार का मरहम उस के दिल को सुकून दे सकता था. उस ने अपने फोन पर अमित का नंबर मिलाया. कई बार कोशिश करने पर भी जब उस ने फोन नहीं उठाया तो वह अपना पर्स उठा कर उस से मिलने चल पड़ी.

भूपेश किसी भी हद तक जा सकता है, यह दीपमाला को यकीन था. वह चुप नहीं बैठेगा. अगर उस की बदनामी हई तो उस के सैलून के बिजनैस पर असर पड़ सकता है. वह अमित से मिल कर इस मुश्किल का कोई हल ढूंढ़ना चाहती थी. क्या पता उसे पुलिस की भी मदद लेनी पड़े.

अमित के औफिस में ताला लगा देख कर वह निराश हो गई. अमित उस के एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आता था, फिर आज उस का फोन क्यों नहीं उठा रहा? उसे याद आया जब वह पहली बार अमित से मिली थी तो उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया था. उस ने पर्स टटोला, कार्ड मिल गया. औफिस और घर का पता उस में मौजूद था. उस ने पास से गुजरते औटो को हाथ दे कर रोका और पता बताया. धड़कते दिल से दीपमाला ने फ्लैट की घंटी बजाई. एक आदमी ने दरवाजा खोला. दीपमाला ने उस से अमित के बारे में पूछा तो वह अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद एक औरत बाहर आई. बोली, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है? लगभग उस की ही उम्र की दिखने वाली उस औरत ने दीपमाला से पूछा.’’

‘‘मैं अमित से मिलने आई हूं. क्या यह उन का घर है?’’ पूछते हुए उसे थोड़ा अटपटा लगा कि पता नहीं यह सही पता है भी या नहीं.

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‘‘मैं अमित की पत्नी हूं. क्या काम है आप को? आप अंदर आ जाइए,’’ अमित की पत्नी विनम्रता से बोली.

दीपमाला ने उस औरत को करीब से देखा. वह सुंदर और मासूम थी, मांग में सिंदूर दमक रहा था और चेहरे पर एक पत्नी का विश्वास.

कुछ रुक कर अपनी लड़खड़ाती जबान पर काबू पा कर दीपमाला बोली, ‘‘कोई खास बात नहीं थी. मुझे एक मकान किराए पर चाहिए था. उसी सिलसिले में बात करनी थी.’’

‘‘मगर आप ने अपना नाम तो बताया नहीं… मैं अपने पति को कैसे आप का संदेश दूंगी.’’

‘‘वे खुद समझ जाएंगे,’’ और दीपमाला पलट कर तेज कदमों से मकान की सीढि़यां उतर सड़क पर आ गई.

अजीब मजाक किया था कुदरत ने उस के साथ. उस ने शुक्र मनाया कि उस की आंखें समय रहते खुल गईं.

अमित ने भी वही दोहराया था जो भूपेश ने उस के साथ किया था. एक बार फिर से वह ठगी गई थी. मगर इस बार वह मजबूती से अपने पैरों पर खड़ी थी. जिस जगह पर कभी उपासना खड़ी थी, उसी जगह उस ने आज खुद को पाया. क्या फर्क था भला उस में और उपासना में? दीपमाला ने सोचा.

नहीं, बहुत फर्क है, उस का जमीर अभी मरा नहीं, वह इतनी खुदगर्ज नहीं हो सकती कि किसी का बसेरा उजाड़े. जो गलती उस से हो गई है उसे अब वह दोहराएगी नहीं. उस ने तय कर लिया अब वह किसी को अपने दिल से खेलने नहीं देगी. बस अब और नहीं.

Satyakatha: डॉक्टर की बीवी- रसूखदार के प्यार का वार- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

खुशबू विक्रम के प्यार में ऐसी पड़ी कि हमेशा के लिए उस के साथ रहने के बारे में सोचने लगी. उस ने विक्रम से बात की, ‘‘विक्रम, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. हमें अब हमेशा के लिए एक हो जाना चाहिए. साथ रहेंगे तो और भी प्यार बढ़ेगा.’’

विक्रम यह सुन कर सन्न रह गया, ‘‘बोलने से पहले आप एक बार सोच लेती कि क्या कहने जा रही हो. तुम शादीशुदा हो और 2 बच्चों की मां हो और एक प्रतिष्ठित परिवार से हो. ऐसा करने पर तुम्हारा परिवार तो बरबाद होगा ही, मैं भी कहीं का नहीं रहूंगा. राजीव सर भी मुझे नहीं छोड़ेगे, जान से मार देंगे.’’

‘‘मैं ने सब सोच लिया है, अब मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी. चाहे कुछ हो जाए. तुम को मेरी बात माननी ही पड़ेगी. एक बात ध्यान रखो कि मैं जो चाहती हूं, वह पा कर रहती हूं, नहीं तो मैं सामने वाले को बरबाद कर देती हूं. अब तुम सोच लो, क्या करना है.’’ कह कर खुशबू वहां से चली गई.

खुशबू हमेशा के लिए अपना बनाना चाहती थी जिम ट्रेनर को

विक्रम तो सिर्फ खुशबू से संबंध बनाने के लिए जुड़ा था, लेकिन अब वह उस के लिए गले की हड्डी बन रही थी. ऐसे में विक्रम ने उस से दूरी बनानी शुरू कर दी. खुशबू को यह बात समझते देर नहीं लगी.

वह विक्रम के जिम जाने लगी, वहां रोज वह घंटों बैठी रहती. वह विक्रम का पीछा छोड़ने को बिलकुल तैयार ही नहीं थी. दोनों में अब प्यार के बजाय झगड़े होने लगे.

खुशबू अपनी जिद पूरी न होती देख कर बौखला सी गई. उस ने विक्रम के साथ रहने के लिए विक्रम को हर तरह से मना कर देख लिया था, लेकिन विक्रम मानने को तैयार ही नहीं था. खुशबू का दीवानापन या कहें पागलपन अपनी सीमाएं लांघने लगा था.

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विक्रम के न मानने पर वह उसे सबक सिखाने पर आमादा हो गई. वह विक्रम के घर जा कर विक्रम और उस के परिवार को धमकाने लगी कि विक्रम अगर उस की बात नहीं मानता तो वह उसे जान से मार देगी. एक बार तो उस ने विक्रम पर सर्जिकल ब्लेड से हमला भी कर दिया, जिस में विक्रम को 14 टांके लगे थे.

खुशबू गुस्से में बिफरी नागिन की तरह विक्रम को डंसने को आतुर थी. विक्रम को जान से मारने के लिए उस ने अपने पूर्व प्रेमी मिहिर सिंह से संपर्क किया. मिहिर दानापुर के नासरीगंज के यदुवंशी नगर में रहता

था. पिछले 5 सालों से उस के खुशबू से प्रेम संबंध थे.

घटना से डेढ़दो साल पहले ही उन का बे्रकअप हुआ था. अब खुशबू ने उस से प्रेम संबंध बनाए रखने के लिए अपने दूसरे प्रेमी विक्रम की जान का सौदा करवाने के लिए कहा. मिहिर उस का काम करवाने के लिए तैयार हो गया.

मिहिर 2 लोगों की मदद से शूटर अमन तक पहुंचा. अमन समस्तीपुर के किशनपुर बैकुंठ में रहता था. वह पत्राचार से एमबीए कर रहा था, साथ ही डिलीवरी बौय का भी काम करता था. अमन विक्रम की सुपारी लेने को तैयार हो गया. अमन ने अपने साथ आर्यन और शमशाद को मिला लिया.

आर्यन उर्फ रोहित सिंह सारण के सोनपुर के जहांगीरपुर का रहने वाला था. जबकि शमशाद बेगूसराय के चेरिया बरियापुर का रहने वाला था. वह गोवा में रह कर राजमिस्त्री का काम करता था. 5 महीने पहले ही वह वापस आया था.

मिहिर ने तीनों से बात कर के पूरा प्लान बनाया. सुपारी की रकम ढाई लाख रुपए तय हुई, जिस में एक लाख 85 हजार रुपए खुशबू ने 2-3 बार में दिए.

2 महीने पहले ही योजना बन गई थी. तीनों शूटर भागवतनगर इलाके में 14 हजार रुपए महीने के किराए के मकान में आ कर रहने लगे थे. 2 महीने पहले ही रुपए दिए जाने के बावजूद भी शूटर्स ने अपना काम नहीं किया तो मिहिर रुपए वापस ले कर खुशबू को दे कर इस झंझट से बाहर निकलना चाहता था.

मगर ऐसा हुआ नहीं, दबाव बढ़ा तो शूटर जल्द ही काम को अंजाम तक पहुंचाने को तैयार हो गए. शूटर्स ने कुछ दिन विक्रम की रेकी की, फिर 18 सितंबर, 2021 की सुबह एक चोरी की बाइक से कदमकुआं थाना क्षेत्र के लोहा मंडी इलाके में पहुंच गए. अमन

और आर्यन रास्ते में निश्चित स्थान पर खड़े हो गए. शमशाद कुछ दूरी पर बाइक ले कर खड़ा हो गया.

जैसे ही विक्रम स्कूटी से उस रास्ते से उन के पास से गुजरने लगा तो अमन और आर्यन ने उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग करनी शुरू कर दी. गोलियां मारने के बाद तीनों शूटर भागवतनगर के किराए के मकान पर वापस आ गए. अंतत: पकड़े गए.

पुलिस ने उन के पास से 2 पिस्टल, मैगजीन और गोलियां बरामद कीं. पुलिस ने डाक्टर दंपति, मिहिर सिंह और तीनों शूटर्स को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखने तक 2 आरोपी गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

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खुशबू अपनी जिद और प्यार के पागलपन में इतनी अंधी हो गई कि उस ने अपना बसाबसाया घर तक बरबाद कर लिया. अच्छीखासी घरगृहस्थी और जिंदगी को छोड़ कर अब खुशबू बेउर जेल की बैरक में तन्हा जिंदगी गुजार रही है.

साजिश का पता होते हुए भी पति राजीव ने साथ दिया, वह भी अलग बैरक में बड़ी मुश्किलों में रह रहा है.

यह कहानी उन लोगों के लिए सबक है जो अपनी जिद, चाहत और पागलपन में सब कुछ बरबाद कर देते हैं. समय रहते अपने को संभाल लें तो उन की और उन के अपनों की जिंदगी बरबाद होने से बच सकती है.

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया रिपोर्टों पर आधारित

Film Review- शुभो बिजया: गुरमीत चौधरी व देबिना बनर्जी का बेहतरीन अभिनय

रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता:एसोर्टेड मोशन पिक्चर्स, जीडी

प्रोडक्शन और वहाइट एप्पल

निर्देशक: राम कमल मुखर्जी

कलाकार: गुरमीत चैधरी, देबिना बनर्जी, खुशबू कारवा व अन्य

अवधि: 52 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: बिग बैंग

पत्रकार से निर्देशक बने राम कमल मुखर्जी ने पहले रितुपर्णो घो-ुनवजय  को श्रृद्धांजली देेते हुए फिल्म ‘‘सिटिजंस ग्रीटिंग्स’’ बनायी थी और अब ओ हेनरी की सबसे चर्चित लघु कहानी ‘गिफ्ट ऑफ मैगी’ को एक काव्यात्मक श्रद्धांजलि देनेके लिए फिल्म ‘‘षुभो बिजया’’ लेकर आए हैं. जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘बिग बैंग’’ पर स्ट्रीम हो रही है.

कहानी:

यह कहानी मशहूर फैशन फोटोग्राफर शुभो(गुरमीत चैधरी) और मशहूर फैशन मॉडल विजया (देबिना बनर्जी ) के इर्द गिर्द घूमती है. कहानी शुरू होती है कलकत्ता में अंधे शुभो के आरती(खुश्बू कारवा )के कैफे हाउस में पहुंचने से. जहां कैफे हाउस में आरती, शुभो को काफी पिलाते हुए उससे बिजया को लेकर सवाल करती है, तब शुभो को अपना अतीत याद आता है.

फैशन फोटोग्राफर के रूप में शुभो की तूती बोलती है.तमाम मॉडल, लड़कियां उसकी दीवानी हैं.मगर शुभो तो मशहूर फैशन मॉडल बिजया का दीवाना है. धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं और फिर शादी कर लेते हैं. जीवन खुशहाल जा रहा था कि अचानक पता चलता है कि बिजया को चौथे स्टेज का त्वचा कैंसर/स्क्रीन कैंसर है. विजय डॉ. रश्मी गुप्ता से कहती है कि यह सच शुभो को नहीं पता चलना चाहिए. पर एक दिन जब शुभो कार चला रहा था, तब डा. रश्मी गुप्ता फोन करके शुभो को सच बताती है, इस सच को सुनकर शुभो की कार का एक्सीडेंट हो जाता है.

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और शुभो की आंखो की रोशनी चली जाती है. उसके बाद वह अंधा बनकर चलने वगैरह की ट्रेनिंग लेता है. पर एक दिन बिजय, शुभो को छोड़कर चली जाती है. कुछ समय बाद शुभो वह घर और उस शहर को छोड़ने का फैसला कर लेता, जिस घर व शहर से बिजया की यादें जुड़ी हुई हैं. इस बीच शुभो की काफी खत्म हो चुकी है. आरती उससे कहती है कि कुछ लोग उसे मिस करेंगं.

शुभों काफी हाउस से निकलकर अपने घर पहुंचता है, जहां उसका सारा सामान पैक हो चुका है. फिर एक ऐसा सच सामने आता है,जो प्यार के नए चरमोत्क-नवजर्या को दिखाता है.

लेखन व निर्देशनः

ई-रु39या देओल के साथ ‘केकवॉक’,सेलिना जेटली के साथ ‘सीजन्स ग्रीटिंग्स’ और अविना-रु39या द्विवेदी के साथ ‘‘रिक्-रु39याावाला’की अपार सफलता व कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके राम कमल मुखर्जी ने फिल्म ‘‘शुभो बिजया’’ भी अपनी निर्देशकीय प्रतिभा को उजागर किया है.

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वह बहुत स्प-नवजयटता के साथ युगल के बीच के रि-रु39यते में कड़वे मधुर क्षणों को उजागर करते हैं. मगर बीच में पटकथा शिथिल पड़ जाती है. निर्देशक राम कमल मुखर्जी मूलतः बंगाली हैं, तो उम्मीद थी कि वह इस फिल्म में बंगाली विवाह को विस्तार से दिखाएंगे,मगर उन्होंने बहुत ही लघु रास्ता अपनाया.

अभिनयः

मशहूर युवा फै-रु39यान फोटोग्राफर की भूमिका में गुरमीत चैधरी ने उत्कृनवजयट अभिनय किया है. अंधे इंसान की भूमिका में वह अपनी अभिनय प्रतिभा से द-रु39र्याकों को आ-रु39यचर्य चकित करते हैं. वहीं मशहूर फैशन मॉडल बिजया के जटिल किरदार को देबिना बनर्जी ने जीवंतता प्रदान की है. खुश्बू कारवा के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नही.

‘अनुपमा’ के वनराज ने इस एक्ट्रेस संग किया था बोल्ड सीन, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) के लीड एक्टर सुधांशु पांडे (वनराज) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. वह अक्सर अपनी फोटोज और वीडियो फैंस के साथ शेयर करते रहते हैं. शो में वनराज अपने किरदार के कारण दर्शकों के बीच काफी पॉपुलर हैं. आज आपको इस खबर में वनराज से जुड़े दिलचस्प बात बताएंगे.

क्या आप जानते हैं, वनराज यानी सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey)  ‘अनुपमा’ से पहले कई फिल्म में काम कर चुके हैं. जी हां, सुधांशु ने कई फेमस एक्ट्रेस के साथ काम किया है. उन्होंने फेमस एक्ट्रेस मंदिरा बेदी के साथ बोल्ड सीन भी किया है.

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दरअसल 2007 में दोनों की एक शॉर्ट फिल्म आई थी, जिसका नाम था मैट्रीमॉनी. इस फिल्म में सुधांशु का अफेयर शादीशुदा मंदिरा बेदी के साथ होता है. इस फिल्म में अरबाज खान ने भी काम किया था. और मंदिरा ने अरबाज की पत्नी का किरदार निभाया था.

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आपको बता दें कि वनराज एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में 20 साल से काम कर रहे हैं. वनराज ने अक्षय कुमार की ‘खिलाड़ी 420’ में भी काम किया था. इस फिल्म से सुधांशु पांडे ने फिल्मी दुनिया में एंट्री मारी थी. सुधांशु पांडे की पत्नी का नाम मोना पांडे है. सुधांशु पांडे के दो बेटे हैं. इंडस्ट्री में उन्हें फैमिली मैन के नाम से भी जाना जाता है.

 

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अनुपमा सीरियल में इन दिनों महाट्विस्ट दिखाया जा रहा है. अनुज अनुपमा को लहंगा गिफ्ट करेगा लेकिन अनुपमा को ये बात पता नहीं होती है. अनुपमा समझती है कि देविका ने उसे गिफ्ट किया है. इस लहंगे के साथ अनुज कपाड़िया की एक नोट भी रहेगी.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि देविका जब लहंगा लेकर जाएगी तो नोट उसमें से गिरकर उड़ते हुए वनराज के पास पहुंच जाएगी. वनराज इस नोट को पढ़ लेगा. तो वहीं अनुज पर वनराज बहुत गुस्सा होगा. इसी बीच अनुज की मुलाकात अनुपमा से होगी. वह अनुज को गरबा के लिए रोकेगी और कहेगी कि वो भी उनके साथ गरबा खेले. इसी बीच रोहन पंडाल में घुस आएगा और अनुपमा पर डंडे से वार करेगा. तभी अनुज वहां पहुंच जाएगा. अब देखना ये होगा कि अनुपमा को अनुज कैसे बचाता है.

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: सई फिर होगी हादसे की शिकार? आएगा ये ट्विस्ट

नील भट्ट (Neil Bhatt) और आयशा सिंह (Ayesha Singh) स्टारर सीरियल ‘गुम है किसी के प्‍यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) टीआरपी की लिस्‍ट में टॉप 5 में बना हुआ है. शो में इन दिनों एक्सिडेंट का सिक्वेंस दिखाया जा रहा है. सई अपनी जिंदगी बचाने के लिए जंग लड़ रही है. शो के आने वाले एपिसोड में कई ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में अब तक आपने देखा कि डॉक्‍टर ने सई को घर ले जाने के लिए कह दिया है और इस बात से चौहान परिवार काफी खुश है. सब चाहते हैं कि सई जल्द से जल्द घर वापस आ जाए. लेकिन सई चौहन निवास जाने को लेकर कन्फ्यूज है. इसलिए वह अपने गांव जाना चाहती है.

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तो वहीं विराट की मां अश्विनी सई से इमोशनल बातें करती है वह समझाती है कि उसका और विराट एक साथ रहना बहुत जरूरी है. जब वो दोनों अलग होने की कोशिश करते हैं तब किसी एक पर मुसीबत आती है. इस बात से सई भी सहमत होती है और अपना इरादा बदल देती है.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि जैसे ही सई विराट के साथ चौहान हाउस जाने के लिए निकलेगी.  रास्‍ते में भिड़ दिखाई देगी और और सई एक बच्‍चे को देखकर उसके पीछे चल देगी. और पार्क की वॉल पर खड़ी हो जाएगी और उसे चक्‍कर आएगा.  शो में अब ये देखना होगा कि क्‍या सई फिर से हादसे की शिकार होगी या विराट उसे बचा लेगा?

 

गहरी पैठ

सरकार अब वही कर रही है जो आमतौर पर अकाल या बाढ़ का शिकार किसान करता है या नौकरी छूट जाने पर उस की पत्नी करती है. जमीन और जेवर बेच कर काम चलाना. सरकारी खर्च तो आज भी बेतहाशा बढ़ रहे हैं क्योंकि इस सरकार को किफायत करने की आदत है ही नहीं. चूंकि देश की माली हालत नोटबंदी के बाद से खराब होती जा रही है जिस को जीएसटी और कोरोना ने और खराब कर दिया, खर्च के हिसाब से सरकार की आमदनी नहीं हो रही.

पैट्रोल और डीजल के दाम अगर बढ़ रहे हैं तो इसीलिए कि सरकार के पास इन को महंगा कर के वसूली करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. कहने को तो सरकार ने उज्ज्वला गैस प्रोग्राम में 9 करोड़ घरों को गैस कनैक्शन दिए पर जब गैस सिलैंडर 850 रुपए से 1,100 रुपए तक का हो यह उज्ज्वला योजना केवल दिखावा है. लोग तो फिर बटोर कर लकड़ी जलाएंगे या उपलों पर ही खाना बनाएंगे.

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सरकार अब 6,000,000,000,000 रुपए (6,000 अरब रुपए) जमा करने को लग गई है : सरकारी कारखाने, जमीनें,  कंपनियां बेच कर. मजेदार बात यह है कि बिक्री उसी धूमधाम से की जा रही है जिस धूमधाम से हमारे यहां घर के कमाऊ सदस्य के मरने के बाद 13 या 17 दिन बाद पंडेपुजारियों और समाज को खाना खिलाया जाता है. मरने वालोंका अफसोस किसी को होता हो, बाकियों की तो बन ही आती है.

इस ब्रिकी से जनता का हक बहुत सी सेवाओं में से छीन लिया जाएगा. सस्ती रेलें, खुलेआम बाग, ऐतिहासिक धरोहरें, सड़कें, बसें, अस्पताल, सरकारी कारखाने बिक जाएंगे. जो खरीदेगा वह सब से पहले छंटनी करेगा. इन सरकारी सेवाओं और कंपनियों में बहुत से तो नेताओं के ही सगे चाचाभतीजे, साले लगे थे जो काम कुछ नहीं करते थे और उन के बेकार हो जाने का अफसोस नहीं है, पर उसी चक्कर में वे भी नप जाएंगे जिन्होंने मेहनत से नौकरी पाई और जिन्होंने नौकरी में 15-20 या ज्यादा साल गुजार दिए हैं और अब किसी नई जगह नौकरी करने लायक नहीं बचे.

देश में सरकारी और गैर सरकारी नियमित वेतन वाली नौकरियां भी बस 8 करोड़ हैं. इन 8 करोड़ में से भी कितनों का सफाया हो जाएगा, पता नहीं. बहुत सी निजी नौकरियां सरकारी मशीनरी पर ही टिकी हैं और जब वह सरकारी मशीनरी दूसरे हाथ में जाएगी तो उन के सप्लायर तो बदले ही जाएंगे. इन सप्लायरों के यहां काम करने वालोंकी नौकरियां भी समझ लें कि गईं.

नए मालिकों को तो मुनाफा कमाना है. उन के लिए जनता को सेवा देते रहना या काम चालू रखना कोई शर्त सरकार नहीं रख रही. जो लोग अच्छे दिनों के ढोल बजाबजा कर स्वागत कर रहे थे उन्हें अब एक और झटका अपनी ही सरकार का दिया लगेगा.

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पर इस से फर्क नहीं पड़ता इस देश की जनता को. वह तो सदियों से इस तरह राजाओं की मनमानी सहती रही है. उसे आदत है कि हर आफत के लिए वह पिछले जन्म के कर्मों को दोष दे, सरकार को नहीं जिस की गलत नीतियों से नुकसान हुआ.

Satyakatha- अय्याशी में गई जान: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- प्रमोद गौडि़या

वह फ्लैट सत्यम और विशाल के लिए मौजमस्ती का अड्डा बन कर रह गया था. कई बार वहां सरवन के साथ भी बैठकें होती थीं और पार्टी का दौर चलता था.

उस फ्लैट पर एक और लड़की राधा का भी अकसर आनाजाना लगा रहता था. वह वहां बेधड़क आती थी और अधिकार के साथ कुछ समय वहां गुजार कर चली जाती थी.

हालांकि वह दूसरे मोहल्ल्ले मनीराम बगिया में रहती थी. वास्तव में वह सत्यम की मौसेरी बहन थी. सत्यम ने एक चाबी राधा को भी दे रखी थी. वहीं करीब 2 साल पहले एक बार उस की विशाल से मुलाकात हो गई थी. पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए थे.

विशाल राधा की खिलती किशोरावस्था को देख कर हतप्रभ रह गया था, जबकि राधा उस की बातें और माचो बदन की दीवानी बन गई थी. उस के बाद से विशाल और राधा अकसर साथसाथ घूमनेफिरने लगे थे, लेकिन दोनों सत्यम की नजरों से बच कर भी रहते थे.

वे नहीं चाहते थे कि उन के प्रेम संबंध के बारे में सत्यम को कोई जानकारी हो. जल्द ही विशाल ने मौका पा कर राधा से शारीरिक संबंध भी बना लिए. राधा की भी उस में स्वीकृति मिल गई थी. सत्यम की गैरमौजूदगी में राधा विशाल को उसी फ्लैट पर बुला लेती थी.

7 सितंबर, 2021 को सत्यम ओमर ने राधा को फोन पर बताया था कि वह आज वहां नहीं आएगा. बाहर बालकनी में उस के कपड़े सूख गए होंगे, उन्हें अलमारी में रख दे. किचन और दूसरे कमरे के बिखरे सामान आ कर ठीक कर दे.

अपने भाई की बातों पर अमल करते हुए राधा ने अपने प्रेमी विशाल के साथ मौज करने की भी योजना बना ली. उस ने तुरंत फोन कर इस की सूचना विशाल को दी और शाम को खानेपीने का सामान ले कर फ्लैट पर आने को कहा.

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शाम होने से पहले वह फ्लैट पर चली गई, किचन और कमरे को दुरुस्त किया. तब तक शाम के साढ़े 8 बज चुके थे. अब तक विशाल को आ जाना चाहिए था, क्योंकि उस ने 8 बजे तक आने को कहा था. देर होने पर राधा ने विशाल को फोन किया, जिसे विशाल ने रिसीव नहीं किया.

करीब 20 मिनट बाद विशाल ने फोन कर राधा को बताया कि वह पहुंचने वाला है. और फिर वह ठीक 9 बजे फ्लैट पर पहुंच गया. वहीं अपार्टमेंट की पार्किंग में उस ने अपनी स्कूटी भी लगा दी.

राधा उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही वह उस के गले लग गई. दोनों अकेले में कई हफ्तों बाद मिले थे. इस मौके को किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहते थे. राधा के लिए पूरी रात थी. विशाल भी खानेपीने के सामान के साथ आया था.

दोनों बेफिक्र थे. मौजमस्ती के लिए पूरी तरह से तैयार और तत्पर भी थे. इसी तत्परता में उन से एक भूल हो गई. मुख्य दरवाजे की अंदर से कुंडी लगाना भूल गए. वे बैडरूम में थे. ड्राइंगरूम की ओर उन का जरा भी ध्यान नहीं था.

दोनों एकदूसरे पर प्यार की बौछार करते हुए कब यौनाचार में लीन हो गए, पता ही नहीं चला. दूसरी ओर वाटर प्लांट में काम समाप्त हो जाने पर सत्यम फ्लैट पर अचानक आ गया. फ्लैट का दरवाजा खुला होने पर वह सीधे ड्राइंगरूम में दाखिल हुआ. बैडरूम में रोशनी देख कर चौंक गया और वहां जा कर दरवाजे पर लगे परदे को हटाया.

बैड पर अपनी बहन राधा के साथ विशाल को लिपटा देख सन्न रह गया. वे दोनों आंखें मूंदे इतने बेफिक्र थे कि सत्यम के दरवाजे पर आने की जरा भी आहट नहीं हुई. गुस्से की ज्वाला को दबाए सत्यम चुपचाप फ्लैट के नीचे आया.

नीचे से लोहे की रौड निकाली और ऊपर पहुंच कर राधा के आलिंगन में बंधे विशाल के सिर पर दे मारी. एक ही वार में सिर से खून बहने लगा. राधा अपनी जान बचाते हुए दूसरे कमरे में भागी. गुस्से में सत्यम ने विशाल के सिर पर दनादन 3-4 और वार कर दिए.

सिर पर ताबड़तोड़ वार से विशाल की वहीं मौत हो गई. राधा के सामने ही विशाल की मौत हो गई थी, लेकिन वह डर गई थी कि कहीं सत्यम उसे भी न मार डाले.

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सत्यम ने डपटते हुए इस बारे में किसी को बताने की उसे सख्त हिदायत दे दी. उसे जल्दी से दीवार पर लगे खून के दाग मिटाने को कहा. उस के बाद तुरंत अपने दोस्त सरवन को बुलाया.

सरवन भागाभागा आया. लाश देख कर उस के होश उड़ गए, लेकिन जल्द ही सामान्य होने पर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. तब तक रात के साढ़े 11 बज गए थे.

इसलिए सरवन योजना के अनुसार अगले रोज 8 सितंबर को प्लास्टिक का एक ड्रम खरीद लाया. उस में विशाल की लाश ठूंस कर पैक कर दी. ड्रम को उस पर लगी स्टील की स्ट्रिप से पैक कर दिया.

उस के बाद ड्रम को विशाल की स्कूटी पर लादकर कैंट होते हुए जाजमऊ गंगापुल से दही थाने की खेड़ा चौकी क्षेत्र जा पहुंचे. उन्होंने ड्रम को नहर के पास झाडि़यों में फेंक दिया. साथ ही विशाल का मोबाइल फोन भी नहर में फेंक दिया. उस की स्कूटी से वापस कानपुर आ गए.

सत्यम ने विशाल की स्कूटी अपने यशोदा नगर स्थित प्लौट के पास पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. जबकि उस के खून से सने कपड़ों को कूड़ाघर में फेंक आया.

आरोपियों द्वारा अपना जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने आईपीसी की धारा 302/201/120बी के तहत हत्यारोपी सत्यम ओमर, सरवन किशोरी राधा को न्यायालय में पेश किया.

वहां से सत्यम और सरवन को कानपुर के जिला कारागार भेज दिया गया, जबकि साक्ष्य छिपाने के आरोप में राधा को नारी निकेतन के सुरक्षा गृह में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है तथा किशोरी राधा का नाम कल्पनिक है

मैं पढ़ाई करना चाहती हूं लेकिन मेरे पिताजी शादी कराना चाहते हैं, क्या करूं?

सवाल

मैं 21 साल की हूं और पढ़ाई में बहुत अच्छी हूं. मुझे सरकारी इम्तिहान पास कर के अफसर बनना है. मैं उस के लिए खूब मेहनत भी कर रही हूं, पर मेरे पिता मेरी शादी करा कर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा लेना चाहते हैं. वे समझते ही नहीं हैं कि कैरियर बनने के बाद भी मेरी शादी हो सकती है. मैं क्या करूं?

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जवाब

आप के पिता की चिंता अपनी जगह उतनी ही ठीक है, जितनी कि खुद के कैरियर के लिए आप की अपनी दलीलें हैं.

आप उन से एक तयशुदा समय मांग लें कि इतने साल बाद नौकरी नहीं लगी तो शादी कर लूंगी. साथ ही, उन्हें यह एहसास कराती रहें कि लड़कियों की पढ़ाईलिखाई अच्छी हो तो घरवर अच्छा मिल जाता है और बुरे समय में नौकरी ही सहारा होती है.

अगर सरकारी नौकरी मिल जाए तो बुरा समय भी आने से डरता है. वे न मानें, तो आप भी अपनी जिद पर अड़ी रहें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

तुम सही थी निशा: वैभव क्यों इतना निशा के प्रति आकर्षित था

‘अभी तुम 10-15 मिनट हो न यहां?’’ वैभव ने गार्डन में निशा के करीब जा कर पूछा.

‘‘कुछ काम है?’’ निशा ने पलट कर सवाल किया.

निशा का यह औपचारिक व्यवहार वैभव को अजीब लगा. वह झेंपता हुआ बोला, ‘‘कोई काम नहीं है. बस, तुम्हें न्यू ईयर का गिफ्ट देना है. तुम्हारे लिए एक डायरी खरीद कर रखी है. तुम पहली जनवरी को तो आई नहीं, 10 को आई हो. मैं कई दिन डायरी ले कर गार्डन आया, लेकिन आज नहीं ले कर आया. रुकना, मैं डायरी ले कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम डायरी लेने घर जाओगे? रहने दो, मुझे नहीं चाहिए. कई डायरियां हैं घर में,’’ निशा बोली.

‘‘यह मैं ने कब कहा कि तुम्हारे पास डायरी नहीं है. तुम्हारे पास सबकुछ है. बस, मेरी खुशी के लिए ले लो. मैं ने बड़े प्रेम से उसे तुम्हारे लिए रखा है. मैं लेने जा रहा हूं,’’ निशा के जवाब को सुने बिना वैभव वहां से चला गया.

कुछ देर बाद वह बतौर गिफ्ट डायरी ले कर गार्डन में वापस आया. तब तक निशा के आसपास काफी लोग आ गए थे. वहां उस ने गिफ्ट देना उचित नहीं समझा, लेकिन जब निशा गार्डन से जाने लगी तो वैभव रास्ते में उस से मिला.

‘‘लो,’’ वैभव ने डायरी आगे बढ़ाते हुए बड़े प्रेम से कहा.

लेकिन निशा ने डायरी लेने के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया. वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘लो,’’ वैभव ने दोबारा कहा.

‘‘नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती,’’ निशा ने सीधे शब्दों में इनकार कर दिया.

‘‘आखिर क्यों?’’ वैभव ने खुद को अपमानित महसूस करते हुए जानना चाहा.

‘‘मैं घरपरिवार वाली हूं, मैं इसे किसी भी हालत में नहीं ले सकती,’’ निशा यह कह कर आगे बढ़ गई.

इस बार वैभव ने भी कुछ नहीं कहा. उस के दिल को जबरदस्त धक्का लगा. वह डायरी को अपनी कमीज के नीचे छिपाते हुए विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा. उस की आंखों में आंसू उमड़ आए थे. कुछ दूर चलने के बाद वह एकांत में बैठ गया और सोचने लगा कि वह उस डायरी का क्या करे?

तभी उस के मन में आया कि डायरी को वह योग सिखाने वाले गुरुजी को दे देगा. तत्काल उस ने उस पृष्ठ को फाड़ा, जिस पर बड़े प्यार से निशा को संबोधित करते हुए नववर्ष की शुभकामना लिखी थी. उस ने जा कर गुरुजी को डायरी दे दी. गुरुजी ने गिफ्ट सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसे आशीर्वाद दिया, लेकिन उसे वह खुशी नहीं मिली, जो निशा से मिलती. अभी भी उस का मन अशांत था और वह यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि एक छोटी सी डायरी स्वीकार करने में निशा ने इतनी हठ क्यों दिखाई.

वह तरहतरह की बातें सोच रहा था, ‘चलो, इस गिफ्ट के बहाने हकीकत पता लग गई. जिस निशा को मैं जीजान से चाहता हूं, उस के मन में मेरे प्रति इतनी भी भावना नहीं है कि वह मेरा गिफ्ट तक ले सके. मैं भ्रम में जी रहा था.

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‘अब उस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. आज से सारा रिश्ता खत्म…नहीं…नहीं, लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊंगा? क्या मैं उस से दूर रह कर जी पाऊंगा…शायद नहीं…क्यों नहीं जी पाऊंगा? उस से दूरी तो बना ही सकता हूं. दूर से देख लिया करूंगा, लेकिन मिलूंगा नहीं और न ही बात करूंगा. वह यही तो चाहती है. कब उस ने मुझ से मन से बात की? मैं ही तो उस से बात करता था. 10 शब्द बोलता था तो ‘हांहूं’ वह भी कर देती थी. कोई लगाव थोड़े ही था. लगाव तो मेरा था कि उस के बिना रातदिन बेचैन रहा करता था. उस के लिए तड़पता रहा, जिस ने आज मेरा इतना बड़ा अपमान कर दिया.

‘अगर ऐसा मालूम होता तो मैं उसे गिफ्ट देने का विचार ही मन में न लाता. ऐसी बेइज्जती मेरी इस से पहले कभी नहीं हुई. अब मैं उस से नजरें मिलाने लायक भी नहीं रहा. क्या मुंह ले कर उस के सामने जाऊंगा? अब तो दूरी ही ठीक है.’

लेकिन क्या ऐसा सोचने से मन बदल सकता था वैभव का? उस का प्यार बारबार उस पर हावी हो जाता और वह निशा से दूर रहने का निर्णय ले पाने में असफल हो जाता.

दिनभर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह बेचैन रहा. उसे रात को ठीक से नींद भी नहीं आई. तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे.

वह उस बात को अपनी पत्नी सरिता से भी शेयर नहीं कर सकता था. हालांकि निशा के बारे में वह सरिता को बताया करता था, लेकिन यह बताने की उस की हिम्मत न थी. उसे डर था कि सरिता उस का मजाक उड़ाएगी. अंदर ही अंदर वह घुट रहा था.

अगले दिन सुबह 5 बजे वह जागा. रात को उस ने निश्चय किया था कि कुछ दिन तक वह गार्डन नहीं जाएगा, लेकिन सुबह खुद को रोक नहीं सका. निशा की एक झलक पाने के लिए वह बेचैन हो उठा और घर से चल पड़ा.

रास्ते में तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे, ‘आज निशा मिलेगी तो उस से बात नहीं करूंगा. अभिवादन भी नहीं. वह अपनेआप को समझती क्या है? उसे खुद पर घमंड है, तो मैं भी किसी मामले में उस से कम नहीं हूं. उस से मेरा कोई स्वार्थ नहीं है. बस, एक लगाव है, अपनापन है, जिसे वह गलत समझती है.’

लेकिन जब गार्डन आती हुई निशा अचानक दिखी, तो वैभव खुद को रोक नहीं पाया. वह उसे देखने लगा. निशा भी उसी की ओर देख रही थी. वैभव के मन में आया कि वह रास्ता बदल ले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.

निशा वैभव के करीब आ गई, लेकिन वह उस की ओर न देख कर सामने देख रही थी. वैभव की निगाहें उसी पर थीं. वह सोच रहा था, ‘देखो न, आज इस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. जाओजाओ, मैं ही कौन सा मरा जा रहा हूं, तुम से बात करने के लिए. मैं आज निशा की तरफ बिलकुल नहीं देखूंगा आखिर वह अपनेआप को समझती क्या है और ऐसे ही कब तक अपनी मनमरजी चलाती है.‘

तभी निशा उस की ओर पलटी. वैभव के हाथ तत्काल अभिवादन की मुद्रा में जुड़ गए. निशा ने भी अभिवादन का जवाब दिया, लेकिन आगे उन दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

इस के बाद गार्डन में दोनों अपनेअपने क्रियाकलाप में लग गए, लेकिन वैभव का मन बारबार निशा की ओर भाग रहा था.

ऐसे ही कई दिन गुजर गए. वैभव को निशा के बिना चैन नहीं था, लेकिन वह ऊपर से खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश करता कि जैसे उस का निशा से कोई सरोकार ही नहीं है.

निशा सबकुछ समझ रही थी. एक दिन उस ने वैभव को रोका और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘नाराज हो क्या?’’

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‘‘नहीं. नाराज उन से हुआ जाता है, जो अपने हों. आप से मैं क्यों नाराज होने लगा?’’

निशा मुसकराते हुए बोली, ‘‘कुछ भी कहो, लेकिन नाराज तो हो. तुम्हारा चेहरा, दिल का हाल बयान कर रहा है, लेकिन तुम ने मेरी मजबूरी नहीं समझी.’’

‘‘एक छोटा सा गिफ्ट लेने में क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने तल्खी के साथ पूछा.

‘‘मजबूरी थी, वैभव. तुम ने समझने की कोशिश नहीं की,’’ निशा ने कहा.

‘‘मैं भी जानूं कि क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने जानना चाहा.

‘‘वैभव, सिर्फ भावनाओं से ही काम नहीं चलता. आगेपीछे भी सोचना पड़ता है. मैं ने कहा था न कि मैं घरपरिवार वाली हूं. तुम ने इस पर तो विचार नहीं किया और नाराज हो कर बैठ गए,’’ निशा ने कहा, ‘‘मैं अगर तुम्हारा गिफ्ट ले कर घर जाती तो घर के लोगपूछते कि किस ने दिया? सोचो, मैं क्या जवाब देती?

‘‘डायरी में तुम ने अपना नाम तो जरूर लिखा होगा. तुम्हारा नाम देख कर घर वाले क्या सोचते? इस बारे में तो तुम ने कुछ सोचा नहीं. बस, मुंह फुला लिया. बेवजह शक पैदा होता और मेरे लिए परेशानी खड़ी हो जाती. ऐसा भी हो सकता था कि मेरा गार्डन में आना हमेशा के लिए बंद हो जाता. तब हम दोनों मिल भी न पाते.’’

यह सुन कर वैभव को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और वह बोला, ‘‘तुम अपनी जगह सही थी, निशा.

‘‘तुम ने तो बड़ी समझदारी का काम किया. मुझे माफ कर दो. तुम्हारा फैसला ठीक था.

‘‘अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. एक छोटा सा गिफ्ट तुम्हें वाकई परेशानी में डाल सकता था.’’

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