चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी खूबसूरती की एक मिसाल थीं. तभी तो उस समय दिल्ली की गद्दी पर विराजमान अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को पाने की ठान ली. इस के लिए खिलजी और रावल रत्न सिंह की सेना के बीच 6 महीने से ज्यादा युद्ध चला. युद्ध जीतने के बाद भी उसे रानी पद्मिनी नहीं हासिल हो सकीं, क्योंकि...

इतिहास के पन्नों में बलिदान के अनगिनत किस्सेकहानियां दर्ज हैं. उन में कई कहानियां वैसी स्त्रियों के बलिदान की हैं, जिन्होंने राष्ट्र, मातृभूमि या फिर स्त्री जाति की अस्मिता की रक्षा के लिए अपनी जान तक की कुरबानी दे दी. वैसी ही एक दास्तान चित्तौड़गढ़ की इस ऐतिहासिक कहानी में है. मुसलिम शासन के दौर में रानी पद्मिनी ने जो कुछ किया, वह अविस्मरणीय मिसाल बन गया.

बला की खूबसूरत रानी पद्मिनी की सुंदरता के किस्से दूरदूर तक फैल चुके थे. वह कितनी सुंदर थी? कैसी दिखती थी? चेहरा कितना चमकतादमकता था? नाकनक्श कैसे थे? होंठों, आंखों, गालों या बालों की सुंदरता में कितना अंतर था? कैसा तालमेल था? कैसे इतनी सुंदर दिखती थी? सुंदर काया की देखभाल के लिए कैसा सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल करती थी? आदिआदि....

इन सवालों के जवाब लोगों ने तरहतरह के सुन रखे थे. उस समय भी कोई कहता कि रानी दिखने में बहुत ही गोरी हैं. उन का चेहरा दूधिया रोशनी की तरह चमकता रहता है... वह दूध और गुलाब जल से नहाती हैं... दुर्लभ जड़ीबूटियों का उबटन लगाती हैं... बेशकीमती सौंदर्य प्रसाधन के सामान, काजल, इत्र आदि सुदूर देशों से मंगवाए जाते हैं. काले बालों को संवारने के लिए अलग से दासियां रखी गई हैं... उन्हें सजनेसंवरने में काफी वक्त लगता है... महंगा पारंपरिक परिधान पहनती हैं... उन में सोने के महीन तारों की नक्काशी की होती है.

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