DCP किरण बेदी! के समय भी यही हाल था जो आज दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच है

नई दिल्ली: तीस हजारी कोर्ट का तमाशा पूरी दुनिया ने देखा. लोगों ने देखा कि कैसे कानून के रखवाले और संविधान के रक्षक दोनों कैसे जूझ रहे हैं. हालांकि आम आदमी को लूटने में दोनों ही माहिर होते हैं. हमने तो एक कहावत भी सुनी थी कि काले, सफेद, और खाकी वालों के दर्शन न हीं हो तो बेहतर है.

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भी दिल्ली में वकील और पुलिस आमने-सामने आ चुके हैं लेकिन तब दिल्ली में डीसीपी थीं किरण बेदी. वही किरण बेदी जिन्हें ‘क्रेन बेदी’ भी कहा जाता है. दिल्ली के अलावा चेन्नई में भी वकील और पुलिस आमने-सामने आई थी.

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तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों की बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अब पुलिसकर्मी विरोध प्रदर्शन पर उतर आए हैं. कमिश्नर की अपील के बाद भी मंगलवार को पुलिसकर्मियों ने पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की.

दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के जवानों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक (Amulya Patnaik IPS) के सामने ‘हमारा सीपी(कमिश्नर) कैसा हो, किरण बेदी (Kiran Bedi) जैसा हो’ के नारे लगे. किरण बेदी ने ऐसा क्या किया जिसके कारण आज पुलिस कमिश्नर के सामने उनके जैसा कमिश्नर के नारे लगने लगे.

यह घटना 17 फरवरी 1988 की है. इस दिन डीसीपी किरण बेदी के दफ्तर में वकील पहुंचे हुए थे. इस बीच किसी बात पर बहस हो गई जो झड़प में बदल गई, इस दौरान बेकाबू भीड़ के कारण हालात ऐसे हो गए कि किरण बेदी को लाठीचार्ज कराना पड़ा. इस असर यह हुआ कि वकीलों ने दिल्ली की सभी अदालतों को बंद करा दिया. हालांकि इसके बाद भी एक न्यायाधीश ऐसे थे, जिन्होंने अपनी अदालत को खोले रखा और फैसले सुनाए.

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बवाल वाले दिन 17 फरवरी 1988 को याद करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस.एन. ढींगरा ने  बताया था कि उस दिन डीसीपी दफ्तर में वकीलों की वजह से हालात बेकाबू हो गए थे, ऐसे में नौबत लाठीचार्ज तक आ पहुंची थी. उन्होंने कहा कि जब तक हालात बेकाबू न हो कोई पुलिस अधिकारी लाठीचार्ज नहीं कराता. आखिर वह बैठे-बिठाए मुसीबत क्यों मोल लेना चाहेगा.

अब इस लड़ाई में दिल्ली पुलिस रिटायर्ड गजटेड औफिसर एसोसियेशन ने भी बुधवार को छलांग लगा दी. इसकी पुष्टि तब हुई जब एसोसियेशन के अध्यक्ष पूर्व आईपीएस और प्रवर्तन निदेशालय सेवा-निवृत्त निदेशक करनल सिंह ने दिल्ली के उप-राज्यपाल और पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा. पत्र में जिम्मेदारी वाले पदों पर मौजूद दोनो ही शख्शियतों से आग्रह किया गया है कि अब तक हाईकोर्ट में जो कुछ हुआ है दिल्ली पुलिस उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने का विचार गंभीरता से करे.

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दहेज में जाने वाले दैय्यत बाबा

लेखक- रामकिशोर पंवार

इन सब के अलावा वर पक्ष को दहेज के रूप में बिना मांगे उस गांव का दैय्यत बाबा भी मिल जाता है, जो उस लड़की के साथ उस की ससुराल में तब तक रहता है, जब तक उस के पहले बेटे या बेटी की चोटी उस के स्थान पर न उतारी जाए.

कहनेसुनने में आप को भले ही यह बात अजीबोगरीब लगे, पर मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के सैकड़ों गांवों में आज भी दर्जनों दैय्यत बाबा अपने क्षेत्र की लड़कियों के

साथ दहेज में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह जाते हैं. ऐसा आज से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से हो रहा है.

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अंधविश्वास से भरे इस रिवाज का पालन करने वालों में इस मुलताई तहसील के गरीब मजदूर तबके से ले कर धन्नासेठ भी शामिल हैं. कुछ लोग तो विदेशों से अपने गांव के दैय्यत बाबा के पास अपने बच्चे की चोटी उतारने आ चुके हैं.

पैर पसार चुकी प्रथा

हमारे समाज में प्राचीन काल से ही कई रूढि़यां जारी हैं. पंवारों की रियासत धारा नगरी पर मुगलों के लगातार हमलों से लड़ती, थकीहारी व धर्म परिवर्तन के डर से घबराई पंवार राजपूतों की फौज ने जानमाल की सुरक्षा के लिए धारा नगरी को छोड़ना उचित समझा था.

धारा नगरी छोड़ कर गोंडवाना क्षेत्र में आ कर बसे पंवार राजपूतों के वंशजों ने इस क्षेत्र में खुद की पहचान को छुपा कर अपनी पहचान भोयर जाति के रूप में कराई और वे यहीं पर बस गए.

आदिवासियों के बीच रह कर उन का रहनसहन सीख कर वे भी आदिवासी क्षेत्र में मौजूद बाबा भगतों के चक्कर में आ कर उन्हीं की तरह दैय्यत बाबाओं के पास जा कर मन्नतें मांगने लगे.

जब उन की तथाकथित मन्नतें पूरी होने लगीं तो वे दैय्यत बाबाओं को खुश करने के लिए उन के स्थान पर मुरगे या बकरे की बलि देने लगे.

ये हैं दैय्यत बाबा

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बसा बैतूल जिला अपने प्राचीन समय से ही गोंड राजाओं के अधीन रहा था. आदिवासी समाज के बारे में कहा जाता है कि ये लोग शिव के उपासक होते हैं. खुद को दैत्य गुरु शुक्राचार्य के अनुयायी के रूप मानने वाले इन लोगों ने अपने परिवार के कर्मकांडों में स्वयंभू ग्राम देवता के रूप में पहचान बना चुके दैय्यत (पत्थर से बनी घोड़े पर सवार सफेद कुरताधोती पहने बाबा की आकृति) बाबाओं के मंदिर बना कर उन्हें स्थापित कर दिया है. गांव के बाहर स्थापित ऐसे दैय्यत बाबाओं के स्थान पर चैत्र महीने में मुरगेबकरे की बलि दी जाती है.

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बैतूल जिले की मूल आदिवासी आबादी के बाद दूसरे नंबर पर गांवों में रहने वाली बहुसंख्यक पंवार जाति के लोगों ने आदिवासी के साथसाथ इन देवीदेवताओं को स्वीकार कर उन की तरह बलि प्रथा को भी अपना लिया है.

पंवार जाति की बेटियों की शादियों में दहेज के रूप में गांव के दैय्यत बाबा भी जाने लगे और इस बहाने गांव की बेटियां अपनी पहली औलाद होने के बाद दैय्यत बाबा को खुश करने के लिए मुरगे या बकरे की बलि देने लगीं.

बाबा जाते हैं दहेज में

बैतूल जिले की मुलताई तहसील में पंवार समाज की तादाद ज्यादा है. पंवार (भोयर) समाज में वर्तमान समय में चुट्टी (चोटी) नामक परंपरा जारी है, जो एक मन्नत का रूप होती है. इस में अपने पहले बच्चे की चोटी उतारी जाती है जो हिंदू महीने माघ से वैशाख महीने तक चलती रहती है. इन महीनों में चोटी उतरवाने का कार्यक्रम ज्यादातर बुधवार और रविवार के दिन होता है.

एक दिन में अलगअलग अपनेअपने दैय्यत बाबा, जिन के अलगअलग नाम होते हैं, जैसे खंडरा देव बाबा, एलीजपठार वाले दैय्यत बाबा, देव बाबा के पास सैकड़ों की तादाद में चोटी उतारने का कार्यक्रम होता है.

एक जानकारी के मुताबिक, एक ही दैय्यत बाबा के पास दिनभर में 10-10 चोटी उतारने के कार्यक्रम होते हैं. हर गांव में अलगअलग नामों से देव यानी दैय्यत बाबा के सामने उस गांव की विवाहिता बेटी अपने पहले बच्चे के नाम से मन्नतें मानती हैं.

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मुरगा या बकरा पार्टी

5 साल से 11 साल तक के बच्चों (चाहे वह लड़का हो या लड़की) के नाम से दैय्यत बाबा के सामने मुरगे या बकरे की बलि दी जाती है. बच्चों को नए कपड़े, मिठाई वगैरह दी जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में वहां मौजूद सभी लोगों को बांटा जाता है.

ग्राम चौथिया, चिल्हाटी, करपा, बरई, एनस, तुमड़ीडोल, मुलताई, पारबिरोली सहित सैकड़ों गांवों में कोई न कोई चोटी उतारने का कार्यक्रम आएदिन होता रहता है.

गांव चिल्हाटी के दुर्गेश बुआडे कहते हैं कि हिंदू धर्म में चोटी उतारने का रिवाज है, भले ही इन के नाम बदल दिए हों. चोटी बच्चों की सलामती के लिए एक मन्नत का नाम है जिस के पूरा होने पर मन्नत मांगने वाला आदमी अपनी पहली संतान से इसे शुरू करता है.

अकसर विवाहिता बेटी के बेटे या बेटी की ही चोटी उतारी जाती है. अगर पतिपत्नी दोनों एक ही गांव के हों तो फिर उसी गांव के दैय्यत बाबा के पास चोटी उतारने का कार्यक्रम होता है.

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अगर किसी लड़की की ससुराल किसी दूसरे गांव की होती है तो उसे अपनी ससुराल जा कर ही उस दैय्यत बाबा के पास अपने पहले बेटे या बेटी की चोटी 5 साल से 11 साल की उम्र में उतरवाई जाती है.

चोटी कार्यक्रम में दैय्यत बाबा के दरबार में उस गांव के भगत बाबा द्वारा पूजा कर के बकरे की बलि दी जाती है. चोटी के संबंध में मान्यता है कि जब तक पहले बच्चे की चोटी नहीं उतारी जाती, तब तक दैय्यत बाबा उसे सताता रहता है.

यह परंपरा समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. हालांकि इस तरह के कार्यक्रम में काफी रुपयापैसा खर्च होता है, लेकिन लोगों को समझाना भी आसान नहीं है. कुछ लोग तो अपनी ससुराल के दैय्यत बाबा के पास चोटी उतारने के बाद अपने गांव के दैय्यत बाबा के पास भी बकरे की बलि देते हैं.

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रह चुकी मेनका गांधी भले ही टीवी पर ‘जीने की राह’ प्रोग्राम दिखा कर जीव हत्या से लोगों को सचेत करें, लेकिन बैतूल जिले में आज भी लोगों के बीच फैले अंधविश्वास के चलते हजारों मुरगेबकरे काटे जा रहे हैं.

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कांग्रेस में खींचतान

कांग्रेस के कई जिलाध्यक्ष शनिवार, 12 अक्तूबर को खुल कर दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको के समर्थन में आ गए. इन जिलाध्यक्षों ने उन नेताओं के खिलाफ ऐक्शन की मांग की है, जिन्होंने पीसी चाको को पद से हटाने की मांग की थी.

इस से पहले शुक्रवार, 11 अक्तूबर को शीला दीक्षित की कैबिनेट में रहे मंगतराम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी, किरण वालिया, पूर्व पार्षद जितेंद्र कोचर और रोहित मनचंदा ने पीसी चाको को हटाने की मांग की थी. यह खबर भी आई थी कि शीला दीक्षित के बेटे और सांसद रह चुके संदीप दीक्षित ने शीला दीक्षित की मौत के लिए पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हीं को चिट्ठी लिखी थी.

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अखिलेश दिखे रंग में

लखनऊ. काफी दिनों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहे और अपनों में उलझे अखिलेश यादव ने हाल  में सरकारी बंगले में तथाकथित तोड़फोड़ को ले कर चल रही खबरों को उन्हें बदनाम करने की सरकारी साजिश करार देते हुए 13 अक्तूबर को कहा कि हाल के उपचुनावों में मिली हार और विपक्षी दलों के गठबंधन से परेशान भाजपा ने यह हरकत की है.

अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘सरकार मुझे बताए कि मैं कौन सी सरकारी चीज अपने साथ ले गया. मैं ने जो चीजें अपने पैसे से लगवाई थीं, वे मैं ले गया… भाजपा यह इसलिए कर रही है क्योंकि वह गोरखपुर और फूलपुर की हार स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह यह समझ ले कि इस बेइज्जती के लिए जनता उसे सबक सिखाएगी.’’

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मोदी को घेरा

चेन्नई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समुद्र किनारे कचरा साफ करने वाले एक वीडियो पर रविवार, 13 अक्तूबर को कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यहां उन के दौरे से पहले पूरे इलाके को साफ कर दिया था, तो क्या यह ‘नाटक’ था?

दरअसल, नरेंद्र मोदी 11 और 12 अक्तूबर को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अपनी दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्त्ता के लिए चेन्नई से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर तटीय शहर मामल्लापुरम आए थे. 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन की सुबह की सैर के दौरान समुद्र तट से प्लास्टिक और दूसरी तरह का कूड़ा बीनते देखा गया था. इस शूट में बहुत से कैमरामैन थे और शायद पहले सुरक्षा वालों ने जांचा था कि कहीं कोई बम तो नहीं है. उन सब ने सफाई की थी, ऐसा समाचार सरकार ने जारी नहीं किया.

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मंत्री पर फेंकी स्याही

पटना. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे 15 अक्तूबर को पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल में डेंगू पीडि़तों का हाल जानने के लिए पहुंचे थे. इसी दौरान एक शख्स ने अचानक उन के ऊपर स्याही फेंक दी और मौके से फरार हो गया.

इस बारे में अश्विनी चौबे ने कहा, ‘‘सारे मीडिया पर स्याही फेंकी गई, उस के छींटे मुझे लगे. यह स्याही जनता पर, लोकतंत्र पर और लोकतंत्र के स्तंभ पर फेंकी गई है. ऐसे लोग निंदनीय हैं, उन की कड़ी बुराई होनी चाहिए.’’

बता दें कि अश्विनी चौबे कई विवादित बयानों को ले कर चर्चा में रहे हैं. पटना में भारी बारिश को उन्होंने हथिया नक्षत्र से जोड़ा था. इस के साथ ही एक पुलिस वाले को भी उन्होंने वरदी उतरवाने की धमकी दी थी.

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राहुल का बयान

सूरत. कांग्रेस नेता राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में 10 अक्तूबर को सूरत की मजिस्ट्रेट अदालत में पेश हुए और उन्होंने कहा कि आपराधिक मानहानि के इस मामले में वे कुसूरवार नहीं हैं. यह मामला राहुल गांधी की तथाकथित टिप्पणी ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है’ से जुड़ा है.

सूरत (पश्चिम) से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला दर्ज करवाया था. अदालत ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे इन आरोपों को स्वीकार करते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे बेकुसूर हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 अप्रैल को कोलार में अपनी एक प्रचार रैली के दौरान राहुल ने कथित तौर पर कहा था, ‘‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी… आखिर इन सभी का उपनाम मोदी क्यों है? सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’’

यह मुकदमा किसी आरोपित मोदी ने दायर नहीं किया और पहली नजर में मामला बनता ही नहीं है.

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उबल गए कमलनाथ

झाबुआ. मध्य प्रदेश? के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 9 अक्तूबर को राज्य की झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के समर्थन में हुए एक रोड शो में हिस्सा लिया था और उस के बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया था.

तब कमलनाथ ने कहा था, ‘‘भाजपा ने जो काम 15 सालों में नहीं किए, वे काम कांग्रेस की सरकार 15 महीने में कर दिखाएगी… भाजपा का काम सिर्फ झूठ बोलना है. इन का तो मुंह बहुत चलता है. सिर्फ बोलते जाएंगे, गुमराह करते जाएंगे… कहेंगे कि हिंदू धर्म खतरे में है और आगे कुछ नहीं बताएंगे. यह इन की ध्यान मोड़ने की राजनीति है. वे सचाई से आप का ध्यान मोड़ना चाहते हैं.’’

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पूनिया का प्रलाप

जयपुर. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने ‘भाजपा अल्पसंख्यक मोरचा’ की तरफ से देश के राष्ट्रपति रह चुके डा. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कांग्रेस को कोसते हुए कहा कि मुसलिमों को ले कर कांग्रेस का नजरिया हमेशा सिर्फ वोट बैंक ही रहा है, जबकि भाजपा ‘सब का साथ, सब का विकास’ पर यकीन करती है.

सतीश पूनिया यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने 55 सालों तक लूट और झूठ की ही राजनीति की है, जबकि भाजपा ने अटल बिहारी वापजेयी के काल से ले कर मोदी सरकार-2 तक अल्पसंख्यकों की तरक्की के लिए अनेक काम कर उन का भरोसा मजबूत किया है.

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नड्डा का नया शिगूफा

शिमला. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद जगत प्रकाश नड्डा 9 अक्तूबर को पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के गृह जिले मंडी में गए थे. वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यह प्यार और अपनापन उन्हें ताकत देता है. अमित शाह की अगुआई में भाजपा भारत की सब से बड़ी पार्टी बनी है और अब वे यह तय करेंगे कि भाजपा दुनिया की सब से बेहतरीन पार्टी बने. पार्टी के पास नए भारत का नजरिया है और वह हिम्मत भरे फैसले लेने से नहीं डरती.

दामोदर राउत का इस्तीफा

भुवनेश्वर. भाजपा के एक बड़े कद के नेता दामोदर राउत ने पार्टी में अपनी अनदेखी के चलते 16 अक्तूबर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वे इसी साल मार्च महीने में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) से निकाले जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे. बीजापुर उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों में उन का नाम शामिल नहीं किया गया था, इस बात से वे बड़े दुखी थे.

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बीजापुर उपचुनाव से पहले विधायक रह चुके अशोक कुमार पाणिग्रही भी भाजपा छोड़ चुके थे.

पानी पानी नीतीश, आग लगाती भाजपा

इस वजह से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में काफी अजीबोगरीब हालत पैदा हो गई है. अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव है और नीतीश कुमार पर हमला कर भाजपाई नए राजनीतिक समीकरण गढ़ने की ओर इशारा कर रहे हैं.

भाजपा के अंदरखाने की मानें तो भाजपा आलाकमान इस बार नीतीश कुमार की बैसाखी के बगैर अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का माहौल बना रहा है और इस काम के लिए गिरिराज सिंह जैसे मुंहफट नेताओं को आगे कर रखा है.

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ऐसे में नीतीश कुमार के सामने बड़े अजीब हालात पैदा हो गए हैं. अगर भाजपा उन से दामन छुड़ा लेती है, तो उन के सामने दूसरा सियासी विकल्प क्या होगा? क्या वे दोबारा लालू प्रसाद यादव की लालटेन थामेंगे? कांग्रेस की हालत ऐसी नहीं है कि उस से हाथ मिला कर जद (यू) को कोई फायदा हो सकेगा. हमेशा किसी न किसी के कंधे का सहारा ले कर 15 साल तक सरकार में बने रहने वाले नीतीश कुमार क्या अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

नीतीश कुमार की इसी मजबूरी का फायदा भारतीय जनता पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में उठाना चाहती है. कई मौकों पर कई भाजपा नेता कह चुके

हैं कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग के मुखिया को बदलने की जरूरत है. इस बार भाजपा के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए. इस से जद (यू) के अंदर उबाल पैदा हो गया था.

हालांकि भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह कह कर मामले को ठंडा कर दिया था कि जब कैप्टन ही अच्छी तरह से कप्तानी कर रहा हो और चौकेछक्के लगा रहा हो तो कैप्टन बदलने की जरूरत नहीं होती है.

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6 अक्तूबर, 2019 को भाजपा की राजनीति कुछ दिलचस्प अंदाज में नजर आई. कुलमिला कर हालत ‘नीतीश से मुहब्बत, नीतीश से ही लड़ाई’ वाली रही. बारिश के पानी में पटना के डूबने के मसले पर भाजपा और जद (यू) के कई नेताओं के बीच जबानी जंग तेज होती गई थी.

एक ओर जहां भाजपा के नेता पटना को डूबने से बचाने के मामले में नीतीश कुमार को पूरी तरह से नाकाम बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसे में एक बार फिर सुशील कुमार मोदी ढाल ले कर नीतीश कुमार के बचाव में उतर पड़े.

उन्होंने आपदा से निबटने के लिए नीतीश कुमार की जम कर तारीफ की और उन के दोबारा जद (यू) अध्यक्ष बनने पर बधाई भी दी.

वहीं भाजपा के कुछ नेता दबी जबान में कहते हैं कि सुशील कुमार मोदी 3 दिनों तक खुद ही राजेंद्र नगर वाले अपने घर में 7-8 फुट से ज्यादा पानी में फंसे रहे. नीतीश कुमार ने उन की कोई खोजखबर तक नहीं ली.

जब भाजपा के कुछ नेताओं ने सुशील कुमार मोदी को ले कर हल्ला मचाया, तब पटना के जिलाधीश लावलश्कर के साथ ट्रैक्टर और जेसीबी ले कर मोदी के घर पहुंचे और डिप्टी सीएम का रैस्क्यू आपरेशन किया.

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि भाजपा के कुछ नेता मुख्यमंत्री पर राष्ट्रीय जनता दल से ज्यादा तीखा हमला कर रहे हैं. हमारे घटक दल ही विरोधी दल की तरह काम कर रहे हैं. इस से सरकार और गठबंधन दोनों की फजीहत हो रही है.

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मुंबई महानगरपालिका का बजट 70,000 करोड़ रुपए का है और हर साल बारिश के मौसम में पानी जमा होता है. चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरु और मध्य प्रदेश में भी भारी पानी जमा हुआ. आपदा के इस माहौल में साथ मिल कर काम करने के बजाय कुछ भाजपा नेता बयानबाजी करने में लगे रहे.

गौरतलब है कि पटना नगरनिगम का इलाका 109 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस की आबादी 17 लाख है. नगरनिगम का सालाना बजट 792 करोड़ रुपए का है और 75 वार्ड हैं.

बारिश का पानी जमा होने को ले कर सत्ताधारी दलों के नेता आपस में उलझे रहे और सचाई यह सामने आई कि पटना के सारे नाले जाम पड़े थे और पटना नगरनिगम नालों के नक्शे की खोज में लगा हुआ था. नालों का नक्शा ही निगम को नहीं मिला, जिस से सफाई को ले कर अफरातफरी का माहौल बना रहा और जनता गले तक पानी में डूबती रही.

दरअसल, पटना नगरनिगम के नालों को बनाने का जिम्मा किसी एक एजेंसी के पास नहीं है. शहरी विकास विभाग, बुडको, नगरनिगम, राज्य जल पर्षद और सांसदविधायक फंड से यह काम कराया जाता रहा है. जिसे जितने का ठेका मिला, उसे बना कर चलता बना. नगरनिगम ने भी उस से नालों की पूरी जानकारी ले कर रिकौर्ड में नहीं रखा.

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भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के नीतीश कुमार पर हमलावर होते ही जद (यू) के कई नेता उन पर तीर दर तीर चलाने लगे. जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि गिरिराज सिंह डीरेल हो गए हैं. वे नीतीश कुमार के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं. अगर जद (यू) नेताओं का मुंह खुल गया, तो गिरिराज सिंह पानीपानी हो जाएंगे.

भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी कहते हैं कि गिरिराज सिंह का राजनीतिक आचरण कभी ठीक नहीं रहा है और वे अंटशंट बयान देने के आदी हैं. उन्हें कोई सीरियसली लेता भी नहीं है.

गिरिराज सिंह कहते हैं कि पटना एक हफ्ते तक पानी में डूबा रहा और नीतीश कुमार के अफसर भाजपा नेताओं का फोन नहीं उठाते थे. पटना के जिलाधीश तक ने फोन रिसीव नहीं किया और न ही कौल बैक किया. इस से यह साफ है कि अफसरों को मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि किस का फोन उठाना?है, किस का नहीं. ताली सरदार को मिली है तो गाली भी सरदार को ही मिलेगी, इस बात को नीतीश कुमार को नहीं भूलना चाहिए.

शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि गिरिराज सिंह के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. उन की चिंता है कि जद (यू) के साथ भाजपा भी सरकार में है. ऐसे में भाजपा को भी जनता के सवालों का जवाब देना होगा.

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गिरिराज सिंह से पूछा गया था कि नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से सत्ता में हैं, तो क्या जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? तो उन का जवाब था कि बिलकुल लेनी चाहिए. इसी बात का बतंगड़ बना दिया गया है और कहा जा रहा है कि राजग टूटने के कगार पर है.

सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार राजग में खींचतान की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि बिहार में कुदरती आपदा आई है, ऐसे में राजनीतिक आपदा का कयास लगाना बेमानी है. राजग में टूट की बात करने वाले दिन में सपना देख रहे हैं. राजग अटूट है. वैसे भी गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की बयानबाजी का कोई सियासी असर नहीं होता है.

पटना की जनता एक हफ्ते तक पानी में फंसी परेशान रही और नीतीश सरकार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा अपनी जवाबदेही से बचने की कवायद में लगे रहे. उन की बात सुनेंगे तो हंसी भी आएगी और गुस्सा भी.

मंत्री महोदय बड़ी ही मासूमियत से कहते हैं कि पटना में जलजमाव के लिए पटना नगरनिगम के पहले के कमिश्नर अनुपम कुमार सुमन जबावदेह हैं. वे किसी की बात ही नहीं सुनते थे. मुख्यमंत्री से भी इस की शिकायत कई दफा की गई थी. अनुपम कुमार सुमन की लापरवाही और मनमानी की वजह से ही पटना की बुरी हालत हुई है. विभाग की ओर से अनुपम कुमार सुमन पर कार्यवाही की सिफारिश की जाएगी.

सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि नीतीश कुमार ने जानबूझ कर पटना को पानी में डूबने दिया. वे भाजपा नेताओं को उन की औकात बताना चाहते थे और जनता के सामने उन्हें नीचा दिखाने की साजिश रची गई.

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पटना की 2 लोकसभा सीट और 14 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा का कब्जा है. पटना शहरी इलाकों में भाजपा का दबदबा होने की वजह से  ही नीतीश कुमार ने इन इलाकों पर ध्यान नहीं दिया. नीतीश कुमार के मन में हमेशा यह चिढ़ रहती है कि पटना की जनता उन की पार्टी को तवज्जुह नहीं देती है. कई भाजपाई नेता दबी जबान में यह कह रहे हैं कि पटना को जानबूझ कर डुबोया गया. मेन नालों को जहांतहां जाम कर के रख दिया गया था. पंप हाउसों की मोटर खराब थी. जब मौसम विभाग ने बारिश को ले कर रेड अलर्ट जारी किया था तो पंप हाउस की मोटर को ठीक क्यों नहीं कराया गया?

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि पटना के ड्रेनेज सिस्टम, पंप हाउस जैसे बुनियादी मसलों पर पहले से पूरी तैयारी होती और मौनीटरिंग का इंतजाम होता तो इतनी बुरी हालत नहीं होती. सांसद अश्विनी चौबे कहते हैं कि पटना की तबाही के लिए लालफीताशाही जिम्मेदार है.

पटना के एक हफ्ते तक बारिश के पानी में डूबने का मामला शांत होता नहीं दिख रहा है. इस मसले को जिंदा रख कर भाजपा मजबूत सियासी फायदा उठाने की कवायद में लगी हुई है. इस साल के आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद से ही भाजपा बिहार में भी ‘एकला चलो रे’ का माहौल बनाने में लगी हुई है.

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पटना में भारी जल जमाव के बाद भाजपा ने खुल कर इस कोशिश को तेज कर दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पटना के डूबने के बाद अब नीतीश कुमार की राजनीति के भी डूबने के आसार हैं?

रावण वध में हुआ राजग की एकता का वध? 

भाजपा और जद (यू)  के बीच तनातनी पूरी तरह से खुल कर तब सामने आ गई, जब 8 अक्तूबर को दशहरे के मौके पर पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम में भाजपा का एक भी नेता नहीं पहुंचा.

14 सालों के राजग के शासन में पहली बार ऐसा हुआ. इस मसले को ले कर जद (यू) खासा नाराज है कि भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के प्रोटोकौल का उल्लंघन किया है.

जद (यू) के विधान पार्षद रणवीर नंदन कहते हैं कि अगर भाजपा नेताओं के मन कोई छलकपट है, तो वह किसी गलतफहमी में न रहें. विधानसभा चुनाव में जनता उन्हें करारा जवाब देगी.

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भाजपा आपदा के मौके पर भी सियासी फायदा उठाने की जुगत में है, वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि रावण वध कार्यक्रम से ज्यादा जरूरी जलजमाव में फंसी जनता को राहत पहुंचाना था और भाजपा उसी में मसरूफ रही.

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि इस साल जनता की परेशानियों को देखते हुए उन्होंने दशहरा नहीं मनाया और न ही किसी आयोजन में हिस्सा लिया. पटना के सातों शहरी विधानसभा क्षेत्र का विधायक जनता की सेवा का हवाला दे कर कन्नी कटाता रहा.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मामले में किसी तरह की राजनीति से इनकार करते हुए कहा है कि भाजपा और जद (यू) के बीच किसी भी तरह का मतभेद नहीं है. राजग अटूट है.

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कैसे कैसे बेतुके वर्ल्ड रिकौर्ड

लेखक- रामकिशोर पंवार

इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ दुकानजीमकानजी की ही हरकतों को ले लीजिए. उन्होंने अपनी मूंछों पर जलती हुई मोमबत्तियों को नचा कर एक नया वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है.

हरियाणा के चंडीगढ़ शहर के रहने वाले गुप्ता बंधुओं ने किसी सामान के साथ मिलने वाली मुफ्त की चीजों को जमा करने का नया और अनोखा वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है.

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गुप्ता बंधुओं के पास मौजूदा समय में एक लाख रुपए से ज्यादा के गिफ्ट आइटम भरे पड़े हैं. इन गिफ्ट आइटमों को इकट्ठा करने में विश्व गुप्ता व विजय गुप्ता नामक इन दोनों भाइयों ने अपनी नौकरी की ज्यादातर तनख्वाह अपने इस शौक में फूंक डाली है.

नवां शहर, पंजाब के महल्ला सेरिया के बाशिंदे द्रविंद्र भिंडी ने अपने मुंह में सूई रखने का एक नया रिकौर्ड बनाने का दावा किया है. उन का कहना है कि वे 50 से भी ज्यादा सूइयों को हमेशा अपने मुंह में रखते हैं. खाना खाते, नहाते व सोते समय भी उन के मुंह में सूइयां रहती हैं.

अहमदाबाद, गुजरात के एक रैस्टोरैंट के मालिक ने 25 फुट लंबा डोसा बनाने का रिकौर्ड बनाया है. 15 रसोइयों की मदद से 25 फुट डोसा बनाने वाले कैलाश गोयल का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड में दर्ज है.

कुरुक्षेत्र, हरियाणा की मल्लिका सेठ ने अपने शरीर को मधुमक्खियों के हवाले कर के एक नया रिकौर्ड बनाया है.

संजय कुलकर्णी को ही ले लीजिए. पूना, महाराष्ट्र के संजय कुलकर्णी ने 2.6 किलोग्राम कांच खा कर वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है. यह नौजवान मजे के साथ बल्ब और कांच की बोतलों को ऐसे चबा जाता है, जैसे पापड़ खा रहा हो.

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मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पढ़ेलिखे नौजवान वकील महेंद्र सिंह चौहान ने लगातार 18 घंटे तक सिक्का घुमाने का एक नया रिकौर्ड बनाया है.

मध्य प्रदेश के सागर जिले के रहने वाले गिरीश शर्मा ने 55 घंटे, 35 मिनट खड़े रह कर एक नया वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है. इस नौजवान को बाद में पता चला कि लगातार 55 घंटे खड़े होने की वजह से उस के पैर की नस फट गई और खून बहने लगा.

इसी तरह का एक रिकौर्ड मंदसौर, मध्य प्रदेश के राधेश्याम प्रजापति ने बनाया है. यह नौजवान लगातार एक मुद्रा में 18 घंटे तक खड़ा रहा, जिस के चलते उस का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड में दर्ज किया गया.

इस वर्ल्ड रिकौर्ड में राधेश्याम प्रजापति को जितना समय खड़े रहने में लगा, अगर उतना समय वह अपनी नौकरी को ढूंढ़ने में लगाता, तो शायद उस के परिवार की दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता.

वर्ल्ड रिकौर्ड बनाने के चक्कर में महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के एक बालक ने अपने दोनों हाथों में हथकड़ी लगा कर तैरने का वर्ल्ड रिकौर्ड बना डाला.

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पंजाब के फरीदकोट के तेलिया महल्ले के एक बाशिंदे पीके सेठी के पास भारत सरकार के ऐसे दुर्लभ नोट हैं जिन्हें नियमानुसार बैंकों में जमा कर देना चाहिए, पर इन सज्जन ने अपना रिकौर्ड बनाने के चक्कर में भारत के उन नोटों को जमा कर के रखा हुआ है, जो गलत छपे हुए हैं.

दुनिया में सब से लंबा और वजनी कलैंडर बनाने का रिकौर्ड वीरेंद्र सिंह बिरदी के नाम दर्ज है. उन्होंने इतना लंबा कलैंडर बनाया है कि 40,000 लोग उस पर एकसाथ खड़े हो सकते हैं.

तकरीबन 10,475 मीटर लंबे इस कलैंडर को उठाने में 3 लोगों की जरूरत पड़ती है.

गायत्री मंत्र सहित 23 भाषाओं में लिखा गया वीरेंद्र सिंह बिरदी का यह कलैंडर दुनिया का सब से लंबा कलैंडर भारत को क्या फायदा पहुंचा सकता है, इस बात से तो वीरेंद्र सिंह बिरदी भी अनजान हैं.

इन वर्ल्ड रिकौर्ड धारकों से अच्छे तो भोपाल के वे 2 साइकिल चालक हैं, जो अपंग होने के बावजूद बैंगलुरु से दिल्ली और दिल्ली से कन्याकुमारी तक देश में सांप्रदायिक एकता, भाईचारे को कायम करने के मकसद से 3,000 किलोमीटर की यात्रा पर निकले थे.

ऐसे वर्ल्ड रिकौर्ड धारकों में डाक्टर एमसी मोदी का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने काम ही ऐसा किया था. उन्होंने मोतियाबिंद के 833  आपरेशन कर के सैकड़ों लोगों को आंखों की रोशनी दी.

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अब इंदौर, मध्य प्रदेश के ही अरविंद कुमार आगार को ले लीजिए. इन्होंने रक्तदान कर के वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है. दुनिया में सब से ज्यादा बार लोगों को खून दे कर उन की जान बचाने वाले अरविंद कुमार पर भारत को गर्व है.

केजी हनुमंत रेड्डी ने आज तक भारत सरकार के खिलाफ सब से ज्यादा मुकदमे दर्ज करने का एक अजीबोगरीब वर्ल्ड रिकौर्ड बना डाला है.

सरकार के खिलाफ जनहित के मामले दर्ज करना तो अच्छी बात है, पर सरकार को परेशान करने के लिए या फिर अपना नाम रिकौर्ड बुक में दर्ज कराने के लिए ऐसे मुकदमे दर्ज करने से क्या हनुमंत रेड्डी ने कोई नया तीर मारा है?

मिलिंद देशमुख की चर्चा करते हैं तो हमें पता चलता है कि उन्होंने 65 किलोमीटर की दूरी अपने सिर पर दूध की भरी बालटी रख कर तय कर के रिकौर्ड बुक में अपने नाम दर्ज कराया है.

मिलिंद देशमुख की तरह एक सज्जन अरविंद पंड्या भी हैं, जिन्होंने लौस एंजिल्स से न्यूयौर्क तक की दूरी पीछे की ओर दौड़ कर पूरी की है.

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यहां पर बाबा महेंद्र पाल की तारीफ करना बहुत जरूरी है, क्योंकि उन्होंने शारीरिक रूप से अपंग होने के बावजूद 7,360 मीटर ऊंची माउंट आबू की गामिन चोटी पर चढ़ाई कर के लोगों को प्रेरित किया है कि अपंगता किसी भी काम में बाधक साबित नहीं हो सकती.

जगदीश चंद्र नामक आदमी द्वारा 15 महीने तक रेंगते हुए 1,400 किलोमीटर की दूरी तय कर के बनाया गया रिकौर्ड समय की बरबादी ही कहा जा सकता है.

इसी तरह 9 साल के बालक चिराग शाह ने 72 घंटे तक 2 सीट वाले विमान को चला कर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवा लिया.

नागौर, राजस्थान के महेश प्रसाद ने एक साधारण साइकिल पर 21 छात्रों को 381 किलोमीटर का सफर करा कर वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है.

महेश प्रसाद का यह रिकौर्ड उन के दोस्तों के लिए प्रेरणादायी हो सकता है, पर इन रिकौर्डों से देश की जनता को क्या मिला, यह नहीं पता है.

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पश्चिम बंगाल के सुकुमार दास ने रिकौर्ड बनाने के लिए एक दिन में 50 किलो भोजन करने के 2 दिन बाद 62 किलो सब्जियां खा कर अपना

नाम शामिल कराने का दावा किया है.

सुकुमार दास ईंट, ट्यूबलाइट, नाई की दुकान से इकट्ठे किए गए बाल, फटेपुराने कपड़े तक खा जाते हैं.

जिंदा इंसान पर भारी मरा जानवर

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के तेली तबके से है, इस बात से खफा हो गया था कि राजकुमार वाल्मीकि मरी गाय को घसीट क्यों रहा था? वह अपने सिर पर उठा कर क्यों नहीं ले जा रहा था? सड़क पर घसीटे जाने से गौमाता की बेइज्जती हो गई और जिस की सजा राजकुमार वाल्मिकी को भीड़ के सामने दे दी गई.

कोटा की सांगोद नगरपालिका में मरे जानवरों को उठाने का जिम्मा राजकुमार वाल्मीकि के पास है. वह एक मरी हुई गाय को घसीट कर ले जा रहा था, तभी कुछ नवहिंदुत्ववादी लोगों की नजर उस पर पड़ती है. ये लोग खुद सदियों तक ब्राह्मणों के अत्याचार सहते रहे, पर आज उन से ज्यादा धार्मिक हैं और हिंदुत्व की माता के प्रति एकदम सम्मान उमड़ पड़ता है.

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वे राजकुमार वाल्मीकि को रोक देते हैं और नगरपालिका के चेयरमैन देवकीनंदन राठौड़ को बुलाया जाता है. उस ने जैसे ही मामला देखा तो तो वह राजकुमार को मांबहन की गालियां देते हुए उस पर टूट पड़ा.

थप्पड़ों व रस्सियों से पीटते हुए राजकुमार को सम झाया जाता है कि हम ने हमारी मृत मां को ठिकाने लगाने के लिए तु झे जिम्मा दिया था. उस को कंधों पर उठा कर ले जाना चाहिए.

नगरपालिका चेरयमैन ने ठेका देते हुए शायद अर्थियों, फूलमालाओं की व्यवस्था भी टैंडर में की होगी. अपनी माता के अंतिम संस्कार के लिए महल्ले वालों को भी कंधा देने की बात लिखी होगी, क्योंकि अकेला इनसान तो अर्थी उठा कर नहीं ले जा सकता.

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है. जब वह दलित वाल्मीकि नौजवान की मृत गाय के लिए गालियां देते हुए पिटाई कर रहा था, तब उस के सैकड़ों समर्थक वीडियो बना कर उसे वायरल कर रहे थे और भाजपा नेता को उकसाने का काम कर रहे थे.

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इस घटना की एफआईआर दर्ज हो चुकी है. हर जगह इस काम की निंदा हो रही है. प्रदेश के सफाई वाले, वाल्मीकि समाज और दलित बहुजन संगठन भयंकर गुस्से में हैं. इस घटना के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं. चेतावनी दी गई है कि आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही नहीं की गई तो राज्यभर की सफाई व्यवस्था ठप कर दी जाएगी.

आखिर एक मरे हुए जानवर की इज्जत के लिए जिंदा दलित की इज्जत को क्यों बारबार तारतार किया जा रहा है? पुराने समय से ही गांवों में मरे पशु घसीट कर ही फेंक जाते रहे हैं. शहरों में ट्रैक्टरट्रौली में ले जाए जाते हैं, पर सांगोद के इस ठेकेदार को ट्रौली के पैसे नहीं मिलते थे. इस के चलते वह मरी गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था.

झज्जर में भी मरे पशु की चमड़ी निकालते समय 5 दलित जिंदा जला दिए गए थे. उन की हत्या पर अफसोस जताने के बजाय विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन नेता गिरिराज किशोर ने कहा था, ‘हमारे लिए मरी हुई गाय जिंदा दलितों से ज्यादा पवित्र है.’

पिछले 20-25 सालों में वाल्मीकि समाज का बहुत हिंदुत्वकरण किया गया है. इन की बस्तियों में खूब शाखाएं लगाई जाती हैं. सेवा भारती के प्रकल्प चलते हैं. वंचित बस्ती भाजपाई गौभक्तों की सब से बड़ी प्रयोगशाला बन जाती है.

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सांगोद जैसी घटनाओं से दलित वाल्मीकियों को अपनी औकात सम झ आ जानी चाहिए कि उन की जगह एक मरे जानवर से भी कमतर है.

जिस तरह का लिंचिंग वाला समाज बनाया गया और दलित चुप रहे कि गाय के नाम पर मुसलिम मारा जा रहा है, हमारा क्या? आज हालात ये हैं कि मुसलिम जिंदा गायों के नाम पर लिंच किए जा रहे हैं और दलित मरी गायों के लिए, पर हर जगह चुप्पी है. मोहन भागवत तो कहते हैं कि इस तरह के कामों को लिंचिंग का नाम दे कर बदनाम किया जा रहा है.

इस घटना पर दलित चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सांगोद की घटना का सभी जगह विरोध होना चाहिए, एट्रोसिटी ऐक्ट में जो मुकदमा दर्ज हुआ है, उस पर तुरंत कार्यवाही हो. भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ की तुरंत गिरफ्तारी हो. भाजपा उसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करे और पीडि़त नौजवान को इंसाफ मिले.

‘‘जब तक यह न हो, हमें संवैधानिक तरीके से आंदोलन चलाना होगा. गंदगी करने वाले समाज को सफाई करने वाले समाज का मजबूत जवाब जानना चाहिए. जिन की माता गाय है, उन को ही उसे संभालना चाहिए, हम क्यों उठाएं किसी की मरी हुई मांओं को?’’

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नोटबंदी, GST और 370 हटानाः दिखने में अच्छे, असल में बेहद नुकसानदेह

शुरू में तो गरीबों को लगा कि जो मंच पर कहा गया है वही सच है कि अमीर लोगों के घरों से कमरे भरभर कर नोट निकलेंगे, काले धन का सफाया हो जाएगा, अमीरों का पैसा सरकारी खजाने से हो कर गरीबों तक आ जाएगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और गरीबों को न सिर्फ लाइनों में खड़ा होना पड़ा, अपनी दिहाडि़यों का नुकसान करना पड़ा और उसी वजह से आज सारे उद्योगधंधे बंद होने के कगार पर आ गए हैं.

चतुर नेता वही होता है जो अपनी एक गलती को छिपाने के लिए दूसरी बड़ी गलती करे और फिर तीसरी. हर गलती का सुहावना रूप भी हो जो दिखे, नीचे चाहे भयंकर सड़न और बदबू हो. जीएसटी भी ऐसा ही था, नए टैक्स भी ऐसे ही थे और कश्मीर में की गई आधीअधूरी कार्यवाही भी ऐसी रही.

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तीनों एक से बढ़ कर एक. दिखने में अच्छे, पर असल में बेहद नुकसानदेय.

नोटबंदी के बाद नोटों की कुल गिनती बाजार में कम होने के बजाय बढ़ गई है. 3 साल बाद भी भारतीय रिजर्व बैंक से छपे नोटों की गिनती बढ़ रही है जबकि सरकार हर भुगतान औनलाइन करने को कह रही है. लोग अब अपना पैसा नकदी में रखने लगे हैं. उन्हें तो अब बैंकों पर भी भरोसा नहीं है. जिस काले धन को निकालने के कसीदे पढ़े गए थे और भगवा सोशल मीडिया ने झूठे, बनावटी किस्से और वीडियो रातदिन डाले थे, वे सब अब दीवाली के फुस पटाखे साबित हुए हैं.

अब पैसा धन्ना सेठ नहीं रख रहे, क्योंकि 2000 रुपए के नोटों को नहीं रखा जा रहा है. यह आम आदमी रख रहा है, गरीब रख रहा है, 2000 रुपए के नोट जो पहले 38 फीसदी थे अब घट कर 31 फीसदी रह गए हैं. साफ है कि लोग 500 और 100-200 रुपए के नोट रख रहे हैं. ये गरीब हैं. ये जोखिम ले रहे हैं कि उन के नोट चोरी हो जाएं, गल जाएं, जल जाएं, पर ये बैंक अकाउंट में नहीं रख रहे.

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जीएसटी का भी यही हुआ है. ‘एक देश एक टैक्स’ के नाम पर लोगों को जी भर के बहलाया गया. पूजापाठी जनता जो सोचती है कि उस के सारे दुखों को दूर करने का मंत्र मंदिर या उस के पंडों के पास है, इस पर खूब खुश हुई. अब एकएक कर के सख्त जीएसटी कानून में ढीलें देनी पड़ रही हैं.

इस साल निर्मला सीतारमन ने अमीरों पर 7 फीसदी का टैक्स बढ़ाया था. 3 महीने में उन की हेकड़ी निकल गई और टैक्स वापस ही नहीं लिया गया कुछ छूट और दे दी गई.

‘एक देश एक संविधान एक कानून’ के नाम पर कश्मीर के बारे में अनुच्छेद 370 और 35ए को संविधान से लगभग हटाया गया, पर क्या हुआ? न कश्मीरी लड़कियां देश के बाकी हिस्से के तैयार बैठे भगवाई सोशल मीडिया रणबांकुरों को मिलीं, न ही कश्मीर में जमीन के प्लाट. उलटे देश अरबों रुपए खर्च कर के एक विशाल जेल चला रहा है जहां खाना भी कैदियों को नहीं दिया जा रहा. जो किया गया और जैसे किया गया, उस से साफ है कि 2 पीढ़ी तक तो कश्मीरी भारत को अपना नहीं समझेगा, दूसरे दर्जे का नागरिक बन कर रहना पड़ेगा. आखिर इसी देश का हिंदू सवर्ण भी तो 2000 साल गुलाम बन कर रहा है, कभी शकों का, कभी हूणों का, कभी लोधियों का, कभी मुगलों का और आखिर में अंगरेजों का.

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आज भी देश का पिछड़ा और दलित वर्ग दूसरे दर्जे का नागरिक है. इन में अब कश्मीरी भी शामिल हो गए हैं.

आतंकवादी सीमा के बाहर से नहीं आ रहे. वे छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी नहीं हैं. वे नक्सलबाड़ी में भी नहीं हैं और न ही दिल्ली की जानीमानी संस्था जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हैं. वे हमारे देश के सैकड़ों थानों में हैं, पुलिस की वरदी में. उत्तर प्रदेश के पिलखुआ के इलाके के एक थाने में एक सिक्योरिटी गार्ड की घंटों की पिटाई के बाद हुई मौत का समाचार तो यही कहता है कि घरघर, महल्लेमहल्ले में यदि किसी आतंकवादी से डर लगना चाहिए तो वह खाकी वरदी में आने वाले से लगना चाहिए.

इस गार्ड प्रदीप तोमर को पुलिस चौकी में बुलाया गया था पूछताछ के लिए. प्रदीप तोमर अपने 10 साल के बेटे को साथ ले गया था. बेटे को बाहर बैठा कर अंदर चौकी में 8-10 पुलिस वालों ने घंटों उसे मारापीटा और उस पर पेचकशों से हमला किया. दर्द से कराहते प्रदीप तोमर को पानी तक नहीं दिया गया और तब तक मारा गया जब तक वह मर नहीं गया. उस की लाश पर पिटाई और पेचकशों के निशान मौजूद थे.

इन आतंकवादियों को पूरे शासन के सिस्टम का बचाव मिलता है. कोई किसी को 4 थप्पड़ मार दो तो पुलिस वाले पिटने वाले और पीटने वाले दोनों के लिए 10 दिन की रिमांड ले लेते हैं, पर यहां एक आदमी को वहशियाना तरीके से मारने के बाद सिर्फ सस्पैंड किया गया है. 10-20 दिन में जब लोग इस मामले को भूल जाएंगे, ये पुलिसकर्मी नए शिकार की तलाश में लग जाएंगे पूरी वरदी में.

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हिंदी फिल्म ‘दृश्यम’ में इसी तरह की एक महिला आईजी और उस के पुलिसकर्मियों की क्रूरता को अच्छीखासी तरह दिखाया गया था और फिल्म बनाने वाले ने सिर्फ नौकरी से निकलने की सजा दिखाई थी. जेल में पुलिस वाले जाएं, यह तो हम क्या, दुनिया के किसी देश में नहीं दिखाया जा सकता. यही तो पुलिस वालों को आतंकवादी बनाता है.

आतंकवादियों और पुलिस वालों के आतंक के पीछे सोच एक ही है. आतंकवादी भी तो यही कहते हैं कि वे जुल्म ढहाने वाली सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैं. वे लुटेरे नहीं, डाकू नहीं, जनता को बचाने के लिए हत्याएं कर रहे हैं. पुलिस वाले भी यही कहते हैं कि वे जनता को बचाने के लिए चोरउचक्कों से जबरदस्ती उगलवाते हैं और कभीकभी कस्टोडियल डैथ हो जाए तो क्या हो गया?

जैसे आजकल नाथूराम गोडसे को पूजा जाने लगा है, वैसे ही आतंकवादियों को हो सकता है कभी पूजा जाने लगे. पुलिस वालों को तो वहशीपन के बावजूद इज्जत और पैसा दोनों एकदम मिल जाते हैं न.

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धार्मिक झांसों जैसा सरकारी नौकरियों का लौलीपौप

देश में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और हर तरह की मारामारी कम होने के बजाय बढ़ रही है तो इस की एक बड़ी वजह चालाक पंडेपुजारी भी हैं जो लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए कहते रहते हैं कि आज नहीं तो कल काम तो होगा. ऊपर वाले के यहां देर है अंधेर नहीं. एक दिन वह सब की सुनता है और मनचाहा फल देता है.

हैरानपरेशान लोग इन चालाकों की बातों और  झांसे में आ कर फिर से  झूठी उम्मीद लिए दोगुने जोश से पूजापाठ, भजनकीर्तन, आरती और तंत्रमंत्र तक शुरू कर देते हैं. काम हो न हो, बिगड़ी बात बने न बने, लेकिन इन की उम्मीद जिंदा रहती है.

सरकार चली धर्म की राह

14 जून, 2019 को मध्य प्रदेश के अखबारों में मोटेमोटे अक्षरों में एक खबर छपी थी कि हाईकोर्ट के एक अहम फैसले के बाद राज्य में 15 लाख उम्मीदवारों को नौकरी मिलने का रास्ता खुल गया है, क्योंकि अदालत ने पीएससी के इम्तिहान में उम्र का मसला सुल झा लिया है. इस खबर में यह भी बताया गया था कि किन महकमों में कितने पदों पर जल्द ही कितनी भरतियां होंगी.

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इस खबर को पढ़ कर राज्य के नौजवानों में वही जोश आ गया जो हनुमान, शंकर और राम की पूजा करने के बाद आता है कि आखिरकार ऊपर वाले ने हमारी सुन ली. इस बात पर इन नौजवानों ने गौर नहीं किया कि पदों की तादाद 3,000 भी नहीं है.

3 जुलाई, 2019 को यह खबर छपी थी कि अब सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू हो गई है. इस के तहत सामान्य श्रेणी के गरीब उम्मीदवारों को भी कुछ शर्तों के साथ ही सही नौकरियां मिलेंगी. इस खबर पर फिर बेरोजगार नौजवानों ने मंदिरों में जा कर प्रसाद चढ़ाया कि हे ऊपर वाले, तू बड़ा दयालु है जो हमारी गुहार सुन ली.

इस के बाद एक खबर यह भी आई कि सरकार ने इस बाबत मंजूरी दे दी है कि जल्द ही राज्य में स्पोर्ट्स अफसर के पद भरे जाएंगे. इस पद पर उन खिलाडि़यों को नौकरी का मौका मिलेगा जो खेलों में नैशनल या इंटरनैशनल लैवल पर अपना हुनर दिखा चुके हैं.

दूसरे खेलों में जलवा दिखा चुके खिलाडि़यों को भी आस बंधी कि अब उन की सुन ली गई है और ऊपर वाले ने चाहा तो वे भी जल्द ही सरकारी नौकरी पा कर अच्छीखासी तनख्वाह ले रहे होंगे.

इस के पहले यह खबर भी बेरोजगारों को उम्मीद बंधा गई थी कि अब सरकार जल्द ही हजारों पद भरने जा रही है जिन में पुलिस महकमे में कांस्टेबल, ड्राइवर समेत दूसरे कई छोटेमोटे पदों पर भरतियां की जाएंगी, इसलिए लोगों को नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है. जल्द ही उन्हें नौकरियां मिलेंगी, बस थोड़ा इंतजार करें, अभी सरकारी कागजी खानापूरी चल रही है.

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इसी तरह 23 जुलाई, 2019 को ओबीसी तबकों को 27 फीसदी आरक्षण के बिल को विधानसभा द्वारा मंजूरी दे दी गई. इस से खुश हो रहे पिछड़े तबके के नौजवानों ने यह नहीं सोचा कि जब सरकार के पास नौकरियां ही नहीं हैं तो ऐसे आरक्षण से क्या फायदा.

साफ दिख रहा है कि सरकार भी धर्म की राह चल रही है कि लोगों को उम्मीद बंधाते रहो, जिस से वे बगावत न करें और उम्मीद पर जीते रहें. इस खेल में सरकार पंडेपुजारियों की तरह पेश आ रही है जिस के पास देने को कुछ नहीं है, लेकिन उम्मीद बंधाने के लिए खबरों का खजाना है.

हकीकत है उलट

अकेले मध्य प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के हालात उलट हैं. तमाम राज्यों की सरकारें भी तरहतरह की लुभावनी बातों का लौलीपौप नौजवानों को दिखाती रहती हैं कि बस, कुछ ही दिनों में नौकरी मिलने वाली है.

बात मध्य प्रदेश की करें तो यह जान कर हैरत होती है कि सरकार औसतन हर साल 500 नौकरियां भी नहीं दे पा रही है, जबकि हर साल 5,000 मुलाजिम रिटायर हो रहे हैं.

सरकार के आर्थिक एवं सांख्यिकी महकमे के एक अफसर की मानें तो साल 2014 में अलगअलग महकमों में कुल 4 लाख, 45 हजार, 849 रैगूलर पद थे, लेकिन साल 2017 तक आतेआते तकरीबन डेढ़ लाख मुलाजिम रिटायर हो गए और सरकार ने नई भरतियां न के बराबर कीं, शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने अपने कार्यकाल में रिटायरमैंट की उम्र 60 साल से बढ़ा कर 62 साल कर दी थी. इस से भी नौकरियां घटी हैं.

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यह है वजह

सरकार खबरों और प्रचार के जरीए पंडेपुजारियों की तरह सरकारी नौकरियों का लौलीपौप इसलिए दिखा रही है कि उस की नाकामी और खर्च बचाने की मंशा ढकी रहे.

जैसे पंडेपुजारी कहते हैं कि मंदिरों में जा कर ऊपर वाले के दर्शन करो, प्रसाद और पैसा चढ़ाओ तो मनोकामना पूरी होगी, वैसे ही सरकार कह रही है कि पढ़ते रहो, स्कूलकालेज जाओ, एक दिन जरूर नौकरी मिलेगी. लेकिन वह एक दिन कब आएगा, ऐसा वह भी पंडेपुजारियों की तरह नहीं बताती.

जैसे ऊपर वाला पूजापाठ का फल देता है, वैसे ही इम्तिहान का फल भी मिलेगा. तुम लोग बस लगे रहो यानी ‘कर्म करो और फल की चिंता मत करो’ वाले उसूल पर चलो, क्योंकि ‘गीता’ में गलत कुछ भी नहीं लिखा है.

इधर पूजापाठ के लिए मंदिर हैं तो दूसरी तरफ पढ़ाईलिखाई के लिए स्कूल व कालेज और कोचिंग इंस्टीट्यूट हैं. इन दोनों में ही भारीभरकम दक्षिणा चढ़ाने पर फल मिलेगा, फिर इस दौरान भले ही जेब खाली हो जाए, मांबाप के जेवर बिक जाएं, जमापूंजी खत्म हो जाए, इस की चिंता मत करो, क्योंकि ऊपर वाले ने जिस दिन सुन ली उस दिन सारी गरीबी दूर हो जाएगी और पाप धुल जाएंगे.

मंदिरों में ब्राह्मण तुम्हारी बात ऊपर वाले तक पहुंचाते हैं तो स्कूलकालेजों में यही काम शिक्षक करते हैं. जरूरत सच्चे मन से पढ़ने और पूजा करने की है, बाकी सरकार तो आएदिन खबरों के जरीए बताती ही रहती है कि वह नौकरियों के बाबत वैसे ही पदों की बात कर रही है, जैसे पंडेपुजारी टैंट लगा कर अनुष्ठान, भागवत कथा, यज्ञहवन वगैरह किया करते हैं.

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नौकरी से ताल्लुक रखती खबरों और इश्तिहारों से होता यह है कि आज नहीं तो कल नौकरी मिलने की आस में बेरोजगार ऊपर वाले की माला जपते रहते हैं. पर कल किसी ने नहीं देखा, यह बात खुद धर्म के दुकानदार कहते रहते हैं, जिस से कोई उन का गरीबान न पकड़े. सरकार को फायदा यह होता है कि इश्तिहारों और खबरों की अफीम को चाट कर लोग मदहोश पड़े रहते हैं और उन नौकरियों का इंतजार करते रहते हैं जो सालोंसाल नहीं मिलतीं.

इस दौरान जो नौजवान नौकरी की उम्र पार कर चुके होते हैं, वे चायपकौड़े की दुकान खोल कर या छोटेमोटे काम कर तकदीर को कोस कर भड़ास

निकाल लेते हैं, लेकिन न तो वे पंडों का कुछ बिगाड़ पाते हैं और न ही सरकार का.

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क्या बैंक में रखा पैसा डूब सकता है!

जगदीश (बदला नाम) व्यवसायी हैं और आजकल काफी परेशान रह रहे हैं. बैंक अधिकारियों से ले कर रिश्तेदारों व परिचितों तक से पूछते रहते हैं कि बैंक में जमा पैसा कितना सुरक्षित है?

दरअसल, कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर उन्होंने एक पोस्ट देखा था जिस में दावा किया गया था कि अगर आप ने बैंक में अधिक रकम जमा कराया हुआ है, तो उसे निकाल लें क्योंकि देश में बैंक की हालत अच्छी नहीं है और कई बैंक दिवालिया हो सकते हैं. ऐसे में आप का पैसा डूब सकता है.

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दूसरा एक पोस्ट था, जो यह दावा करता नजर आ रहा था कि बैंक में आप के भले ही लाखों रूपए जमा हैं, लेकिन यदि वह बैंक दिवालिया हो गया अथवा डूब गया तो आप को सिर्फ 1 लाख रूपए ही मिलेंगे.

तो फिर सचाई क्या है

यह अकेले जगदीश की चिंता नहीं, कई लोगों की है. सोशल मीडिया में आए इस तरह की खबर पर हालांकि आरबीआई ने सफाई दी और आगे आ कर खबरों को मनगढंत बताया.

मगर हद तो तब हो गई जब ओडिशा के एक सरकारी मुलाजिम ने सरकारी बैंकों में पैसा रखने के लिए आगाह किया है.

ओडिशा सरकार में प्रधान सचिव एकेके मीणा ने दरअसल कई विभागों को पत्र लिखा था. मुंबई के पीएमसी बैंक घोटाले व कुछ वित्तीय संस्थानों की खस्ता होती वित्तीय हालात के बाद मीणा के इस खत को ले कर सनसनी भी फैल गई, जिस में उन्होंने कहा था कि अगर कोई विभाग किसी बैंक में पैसा जमा करता है तो यह उस की खुद की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी.

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आरबीआई ने जताया कड़ा ऐतराज

मीणा के इस पत्र पर आरबीआई ने कङा ऐतराज जताया और एक अधिकारी ने बयान जारी करते हुए कहा,”आप को यह जानना चाहिए कि किसी जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति अगर इस तरह की बात करता है तो आम जनता में भय का माहौल पैदा हो सकता है. इस का असर बैंकों को वित्तीय लेनदेन पर भी उठाना पङ सकता है.”

आननफानन में तब मीणा को भी सफाई देने के लिए आगे आना पङा. मीणा ने कहा,”राज्य सरकार प्रदेश में किसी भी बैंक की वित्तीय सेहत पर कोई विचार नहीं रखती.”

मीणा के पत्र पर हालांकि खूब बवाल भी मचा था पर उस वक्त उन्होंने कुछ अखबारों की खबरों की ओर भी ध्यान दिलाया था, जिन में बैंकों की वित्तीय सेहत खस्ता होने के बारे में बताया गया था.

वायरल सच क्या है

यह सही है कि बैंक अगर किसी मुसीबत में है अथवा किसी वित्तीय परेशानी में, तो वह आप के जमा किए गए रुपयों का इस्तेमाल कर सकता है.

लेकिन सच यह भी है कि अभी तक ऐसी कोई नौबत नहीं आई है कि बैंक जमाकर्ता को पैसा वापस न कर पाया हो.

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आमतौर पर जब भी किसी बैंक की वित्तीय सेहत बिगङने लगती है तो आरबीआई यानी भारतीय रिजर्व बैंक कई समाधान कर उसे संभाल लेता है.

जानिए आरबीआई के नियमों को

आप का पैसा बैंक में कितना सुरक्षित है, इस बात की पुष्टि आरबीआई के आधिकारिक वेबसाइट पर भी किया गया है. आप चाहें तो rbi.org.in पर लौगऔन कर वेबसाइट पर दिए गए नियम को देख सकते हैं.

इसलिए कह सकते हैं कि घर की तिजोरी से अधिक बैंक में जमा आप का पैसा अधिक सुरक्षित है.

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दंतैल हाथी से ग्रामीण भयजदा: त्राहिमाम त्राहिमाम!

छत्तीसगढ़  के महासमुंद जिले के सिरपुर अंचल  में विगत कुछ सालों में  दंतैल हाथी 16 ग्रामीणों को मौत के घाट उतार चुका है. यही नहीं  किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन में खड़ी फसल को भी बुरी तरह  नुकसान पहुंचाता रहा  है.

इस हाथी से अंचल के ग्रामीण त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं. दुखी और आक्रोशित ग्रामीण सिरपुर क्षेत्र के लगभग 55 गांव के हजारों ग्रामीणों ने शहर में रैली निकालकर जिलाधीश कार्यालय  का घेराव कर दिया और वन मंत्री  मुर्दाबाद के नारे भी लगाये.

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दरअसल, छत्तीसगढ़ के जंगलों में इन दिनों हाथियों के झुंड विचरण कर रहे हैं लगभग ढाई सौ हाथी छत्तीसगढ़ में विभिन्न वन मंडल क्षेत्रों में आतंक का पर्याय बने हुए हैं आए दिन लोग हाथी के द्वारा मारे जा रहे हैं और फसल आदि का नुकसान भी जारी है ग्रामीण असहाय हैं तो शासन भी असहाय हो चुका है.प्रस्तुत है हाथी एवं मानव के संघर्ष को रेखांकित करती एक रिपोर्ट –

हाथी के उन्माद से हलाकान

छत्तीसगढ़ के सिरपुर के 50 से अधिक गांव के लोग हाथियों के आतंक से बेहद भयभीत हैं ग्रामीणों ने  महासमुंद की सड़कों पर उतर कर हाथी के खिलाफ अपने गुस्से का प्रदर्शन करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार और विभाग से मांग की कि हाथी किए भयंकर आतंक से मुक्ति दिलाई जाए

कलेक्टर सुनील जैन से मिलकर ग्रामीणों ने 10 बिन्दु्ओं पर मांग पत्र प्रस्तुत कर हाथी के इस भय के  तत्काल निराकरण की मांग की .

निरंतर  ग्रामीणों और किसानों की मौत से गुस्साये 55 गांव के किसानो ने कलेक्टर सुनील जैन से मिलकर दंतैल हाथी को विक्षिप्त  घोषित करने व हाथियों को सिरपुर क्षेत्र से बाहर करने की मांग की है.आक्रोशित ग्रामीणों ने कलेक्टर व वन विभाग से कहा है पिछले पांच  बरस  में किसानों की हालत बद से बदतर सिर्फ हाथियों  के वजह से हो गई है.

सैकड़ों एकड़ खेत के फसल नष्ट हो गये है जिसका मुआवजा भी किसानों को नहीं मिला है. वन विभाग पर ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि वन विभाग हाथी प्रभावित क्षेत्र में आज तक विद्युत  की व्यवस्था नहीं कर पाई है. ग्रामीण जन अंधेरे में जीवन बिताने मजबूर हैं इस कारण भी अनेक दो घटनाएं हो चुकी हैं. किसानों और ग्रामीणों के लगातार निवेदन के बाद भी किसानों के जान बचाने और उनके फसल को नष्ट होने से बचाने के लिए कोई कारगार फैसला छत्तीसगढ़ सरकार नहीं ले सका है.

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आक्रोशित ग्रामीणों ने वन विभाग के वन मंडल अधिकारी और जिलाधीश से कहा कि महोदय, लगातार ग्रामीण शासन प्रशासन से अपनी जान माल की रक्षा के लिए निवेदन पर निवेदन  कर रहे है लेकिन  पिछले 5 सालों से ग्रामीणों के मांग को अनसुना किया गया  है.

सिरपुर के हाथी प्रभावित क्षेत्र में  मंत्री-अधिकारी  एक रात बिताएं तो उन्हें जानकारी होगी कि रात में हाथी जब गांव की गलियों में  तांडव करते है तो उन्हें कैसा महसूस होता है. किसानों ने दंतैल हाथी को मारने के साथ-साथ फसल मुआवजा की राशि में बढ़ोत्तरी, मृतक के परिवारों को 10 लाख मुआवजा व उनके परिवार को वन विभाग में नौकरी देने की भी मांग की है.

ग्रामीणों की इस पीड़ा को गंभीरता से लेते हुए जनपद अध्यक्ष धरमदास महिलांग  ने कलेक्टर से कहा की समस्या का निराकरण शीघ्र किया जाये अन्यथा जेल भरो आंदोलन एवं चक्काजाम करने के लिए क्षेत्र के कृषक एवं ग्रामीण बाध्य होंगे.

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हाथियों से भयाक्रांत छत्तीसगढ़

वन्य संरक्षण प्राणी हाथी झुंड छत्तीसगढ़ के जंगलों में स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं हाथियों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है परिणाम स्वरूप मानव एवं हाथी के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार हाथी एवं ग्रामीणों के बीच संघर्ष का कारण जंगलों की लगातार कटाई एवं जंगल में खेतीकिसानी एवं सहवास प्रमुख कारण है धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे हैं परिणाम स्वरूप हाथी एवं अन्य वन्य प्राणी जब ग्रामीणों के रहवास क्षेत्र में आ जाते हैं तो संघर्ष बढ़ जाता है.

छत्तीसगढ़ की रायगढ़ अंबिकापुर कोरबा महासमुंद सहित लगभग 12 जिले हाथी के आतंक से भया क्रांत हैं मगर शासन प्रशासन मौन है. छत्तीसगढ़ के महासमुंद में निकली ग्रामीणों की रैली यह संदेश देती है कि सरकार को जल्द से जल्द इस दिशा में परियोजना बनाकर लोगों को एवं हाथियों को राहत देने के महती काम को अमलीजामा पहनाना  होगा.

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