Pooja Gaur के नए शो ‘प्रतिज्ञा 2’ के लिए एक्स बॉयफ्रेंड राज अरोड़ा ने दी बधाई, शेयर किया पोस्ट

टीवी का मशहूर सीरियल ‘प्रतिज्ञा 2’ 15 मार्च को ऑनएयर हो चुका है. और इस सीरियल को लेकर फैंस काफी उत्साहित है. ‘प्रतिज्ञा 2’ की लिड एक्ट्रेस पूजा गौर घर- घर में प्रतिज्ञा नाम से मशहूर है.

तो अब पूजा गौर के एक्स बॉयफ्रेंड राज सिंह अरोड़ा उनके शो प्रतिज्ञा 2 के लिए बधाई दी है. राज ने इसके लिए सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी शेयर किया है. जी हां, राज ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट की स्टोरी पर एक पूजा के लिए एक वीडियो शेयर किया इस वीडियो में राज ने यूपी की भाषा में कहा कि, ऑल द बेस्ट पूजा गोर और बाकी टीम. फैन्स को भी राज का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

 

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तो वहीं पूजा गौर ने राज के इस वीडियो को रिपोस्ट भी किया और उन्हें थैंक्यू बोला है. बता दें कि राज और पूजा ने 2020 दिसंबर में अलग हुए. यह खबर सोशल मीडिया से मिली.

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दरअसल पूजा गौर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की.जिसमें उन्होंने लिखा कि, साल 2020 में बहुत सारे बदलावों हुए है.कुछ अच्छे और कुछ बुरे. पिछले कुछ महीनों में राज के साथ मेरे रिश्ते को लेकर कई अटकलें लगाई गई हैं. मुश्किल फैसलों में वक्त लगता है. और मैं इसके लिए बात करने से पहले कुछ वक्त लेना चाहती थी. राज और मैंने अलग होने का फैसला किया है.

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गौहर खान ने तोड़ी कोरोना गाइडलाइंस, दर्ज हुआ FIR

बिग बॉस फेम  ऐक्ट्रेस गौहर खान के खिलाफ कोरोना की गाइडलाइंस का उल्लंघन करने पर बीएमसी ने एफआईआर दर्ज की है. बीएमसी ने ट्विट कर बताया कि  गौहर की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, और उन्होंने लापरवाही दिखाई.

दरअसल एक्ट्रेस पर कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद नियमों का उल्लंघन करते हुए बाहर घूमने और शूटिंग करने का आरोप है.

खबर यह आ रही है कि गौहर खान के पास कोरोना की दो रिपोर्ट थी जिसमें एक रिपोर्ट मुंबई की है जिसमें उनका कोविड टेस्ट पॉजिटिव है तो वहीं दूसरी रिपोर्ट दिल्ली की है, जो नेगेटिव आई है.

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मिली जानकारी के अनुसार एक्ट्रेस पर आरोप है कि कोरोना पॉजिटिव आने के बावजूद भी गौहर बाहर घूम रही हैं. इस बारे में कुछ लोगों ने शिकायत भी की थी.

 

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रिपोर्ट्स के अनुसार जब बीएमसी वाले गौहर के घर पहुंचे तो उन्होंने दरवाजा नहीं खोला और ना ही उनका फोन पिक किया. इसके बाद बीएमसी ने अपने ट्विटर अकाउंट से पर गौहर के खिलाफ एक ट्वीट कर जानकारी दी कि कोरोना गाइडलाइन्स का उल्लंघन करने के लिए गौहर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. बीएमसी एफआईआर की एक कॉपी भी ट्वीट की.

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले ही गौहर खान के पिता का निधन हो गया था. उनके पिता जफर अहमद खान लंबे समय से बीमार चल रहे थे और अस्‍पताल में एडमिट थे.

समझौता: क्या देवर की शादी में गई शिखा

Serial Story- समझौता: भाग 2

भाईभाई में, भाईबहनों में कहासुनी कहां नहीं होती. लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं होता कि संबंध समाप्त कर लिए जाएं. मेरे साथ यही हुआ, जानेअनजाने मैं पंकज से ही नहीं, अपने  परिवार के अन्य सदस्यों से भी दूर होता चला गया.

सही माने में देखा जाए तो संपन्नता व कामयाबी के जिस शिखर पर बैठ कर मैं व मेरी पत्नी गर्व महसूस कर रहे थे, उस की जमीन मेरे लिए पंकज ने ही तैयार की थी. उस के पूर्ण सहयोग व प्रोत्साहन के बिना अपनी पत्नी के साथ मैं इस अजनबी शहर में आने व अल्प पूंजी से नए सिरे से व्यवसाय शुरू करने की बात सोच भी नहीं सकता था. उस का आभार मानने के बदले मैं ने उस रिश्ते को दफन कर दिया. मेरी उन्नति में मेरी ससुराल वालों का 1 प्रतिशत भी योगदान नहीं था, किंतु धीरेधीरे वही मेरे नजदीक होते गए. दोष शिखा का नहीं, मेरा था. मैं ही अपने निकटतम रिश्तों के प्रति ईमानदार नहीं रहा. जब मैं ने ही उन के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाया तो मेरी पत्नी शिखा भला उन रिश्तों की कद्र क्यों करती?

समाज में साथ रहने वाले मित्र, पड़ोसी, परिचित सब हमारे हिसाब से नहीं चलते. हम में मतभेद भी होते हैं. एकदूसरे से नाखुश भी होते हैं, आगेपीछे एकदूसरे की आलोचना भी करते हैं, लेकिन फिर भी संबंधों का निर्वाह करते हैं. उन के दुखसुख में शामिल होते हैं. फिर अपनों के प्रति हम इतने कठोर क्यों हो जाते हैं? उन की जराजरा सी त्रुटियों को बढ़ाचढ़ा कर क्यों देखते हैं? कुछ बातों को नजरअंदाज क्यों नहीं कर पाते? तिल का ताड़ क्यों बना देते हैं?

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मैं सोचने लगा, पंकज मेरा सगा भाई है. यदि जानेअनजाने उस ने कुछ गलत किया या कहा भी है तो आपस में मिलबैठ कर मतभेद मिटाने का प्रयास भी तो कर सकते थे. गलतफहमियों को दूर करने के बदले हम रिश्तों को समाप्त करने के लिए कमर कस लें, यह तो समझदारी नहीं है. असलियत तो यह है कि कुछ शातिर लोगों ने दोस्ती का ढोंग रचाते हुए हमें एकदूसरे के विरुद्ध भड़काया, हमारे बीच की खाई को गहरा किया. हमारी नासमझी की वजह से वे अपनी कोशिश में कामयाब भी रहे, क्योंकि हम ने अपनों की तुलना में गैरों पर विश्वास किया.

मैं ने निर्णय कर लिया कि अपने फैसले मैं खुद लूंगा. पंकज की शादी में शिखा जाए या न जाए, किंतु मैं समय पर पहुंच कर भाई का फर्ज निभाऊंगा. उस की सगाई में भी शिखा की वजह से ही मैं तब पहुंचा, जब प्रोग्राम समाप्त हो चुका था.

सगाई वाले दिन मैं जल्दी ही दुकान बंद कर के घर आ गया था, लेकिन शिखा ने कलह शुरू कर दिया था. वह पंकज के प्रति शिकायतों का पुराना पुलिंदा खोल कर बैठ गई थी. उस ने मेरा मूड इतना खराब कर दिया था कि जाने का उत्साह ही ठंडा पड़ गया. मैं बिस्तर पर पड़ापड़ा सो गया था. जब नींद खुली तो रात के 10 बज रहे थे. मन अंदर से कहीं कचोट रहा था कि तेरे सगे भाई की सगाई है और तू यहां घर में पड़ा है. फिर मैं बिना कुछ विचार किए, देर से ही सही, पंकज के घर चला गया था.

मानव का स्वभाव है कि अपनी गलती न मान कर दोष दूसरे के सिर पर मढ़ देता है, जैसे कि वह दोष मैं ने शिखा के सिर पर मढ़ दिया. ठीक है, शिखा ने मुझे रोकने का प्रयास अवश्य किया था किंतु मेरे पैरों में बेड़ी तो नहीं डाली थी. दोषी मैं ही था. वह तो दूसरे घर से आई थी. नए रिश्तों में एकदम से लगाव नहीं होता. मुझे ही कड़ी बन कर उस को अपने परिवार से जोड़ना चाहिए था, जैसे उस ने मुझे अपने परिवार से जोड़ लिया था.

शिखा की सिसकियों की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ. वह  बाहर वाले कमरे में थी. उसे मालूम नहीं था कि मैं नहा कर बाहर आ चुका हूं और फोन की पैरलेल लाइन पर मां व उस की पूरी बातें सुन चुका हूं. मैं सहजता से बाहर गया और उस से पूछा, ‘‘शिखा, रो क्यों रही हो?’’

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‘‘मुझे रुलाने का ठेका तो तुम्हारे घर वालों ने ले रखा है. अभी आप की मां का फोन आया था. आप को तो पता है न, मेरी भाभी ने आत्महत्या की थी. आप की मां ने आरोप लगाया है कि भाभी की हत्या की साजिश में मैं भी शामिल थी,’’ कह कर वह जोर से रोने लगी.

‘‘बस, यही आरोप लगाने के लिए उन्होंने फोन किया था?’’

‘‘उन के हिसाब से मैं ने रिश्तों को तोड़ा है. फिर भी वे चाहती हैं कि मैं पंकज की शादी में जाऊं. मैं इस शादी में हरगिज नहीं जाऊंगी, यह मेरा अंतिम फैसला है. तुम्हें भी वहां नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘सुनो, हम दोनों अपनाअपना फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं चाहते हुए भी तुम्हें पंकज के यहां चलने के लिए बाध्य नहीं करना चाहता. किंतु अपना निर्णय लेने के लिए मैं स्वतंत्र हूं. मुझे तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए.’’

‘‘तो तुम जाओगे? पंकज तुम्हारे व मेरे लिए जगहजगह इतना जहर उगलता फिरता है, फिर भी जाओगे?’’

Serial Story- समझौता: भाग 3

‘‘उस ने कभी मुझ से या मेरे सामने ऐसा नहीं कहा. लोगों के कहने पर हमें पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए. लोगों के कहने की परवा मैं ने की होती तो तुम को कभी भी वह प्यार न दे पाता, जो मैं ने तुम्हें दिया है. अभी तुम मांजी द्वारा आरोप लगाए जाने की बात कर रही थीं. पर वह उन्होंने नहीं लगाया. लोगों ने उन्हें ऐसा बताया होगा. आज तक मैं ने भी इस बारे में तुम से कुछ पूछा या कहा नहीं. आज कह रहा हूं… तुम्हारे ही कुछ परिचितों व रिश्तेदारों ने मुझ से भी कहा कि शिखा बहुत तेजमिजाज लड़की है. अपनी भाभी को इस ने कभी चैन से नहीं जीने दिया. इस के जुल्मों से परेशान हो कर भाभी की मौत हुई थी. पता नहीं वह हत्या थी या आत्महत्या…लेकिन मैं ने उन लोगों की परवा नहीं की…’’

‘‘पर तुम ने उन की बातों पर विश्वास कर लिया? क्या तुम भी मुझे अपराधी समझते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें अपराधी नहीं समझता. न ही मैं ने उन लोगों की बातों पर विश्वास किया था. अगर विश्वास किया होता तो तुम से शादी न करता. तुम से बस एक सवाल करना चाहता हूं, लोग जब किसी के बारे में कुछ कहते हैं तो क्या हमें उस बात पर विश्वास कर लेना चाहिए.’’

‘‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह सब झूठ है. हम से जलने वालों ने यह अफवाह फैलाई थी. इसी वजह से मेरी शादी में कई बार रुकावटें आईं.’’

‘‘मैं ने भी उसे सच नहीं माना, बस तुम्हें यह एहसास कराना चाहता हूं कि जैसे ये सब बातें झूठी हैं, वैसे ही पंकज के खिलाफ हमें भड़काने वालों की बातें भी झूठी हो सकती हैं. उन्हें हम सत्य क्यों मान रहे हैं?’’

‘‘लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बातें झूठी हैं. खैर, लोगों ने सच कहा हो या झूठ, मैं तो नहीं जाऊंगी. एक बार भी उन्होंने मुझ से शादी में आने को नहीं कहा.’’

‘‘कैसे कहता, सगाई पर आने के लिए तुम से कितना आग्रह कर के गया था. यहां तक कि उस ने तुम से माफी भी मांगी थी. फिर भी तुम नहीं गईं. इतना घमंड अच्छा नहीं. उस की जगह मैं होता तो दोबारा बुलाने न आता.’’

‘‘सब नाटक था, लेकिन आज अचानक तुम्हें हो क्या गया है? आज तो पंकज की बड़ी तरफदारी की जा रही है?’’

तभी द्वार की घंटी बजी. पंकज आया था. उस ने शिखा से कहा, ‘‘भाभी, भैया से तो आप को साथ लाने को कह ही चुका हूं, आप से भी कह रहा हूं. आप आएंगी तो मुझे खुशी होगी. अब मैं चलता हूं, बहुत काम करने हैं.’’

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पंकज प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लौट गया. मैं ने पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारी यह शिकायत भी दूर हो गई कि तुम से उस ने आने को नहीं कहा? अब क्या इरादा है?’’

‘‘इरादा क्या होना है, हमारे पड़ोसियों से तो एक सप्ताह पहले ही आने को कह गया था. मुझे एक दिन पहले न्योता देने आया है. असली बात तो यह है कि मेरा मन उन से इतना खट्टा हो गया है कि मैं जाना नहीं चाहती. मैं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारी मरजी,’’ कह कर मैं दुकान चला गया.

थोड़ी देर बाद ही शिखा का फोन आया, ‘‘सुनो, एक खुशखबरी है. मेरे भाई हिमांशु की शादी तय हो गई है.

10 दिन बाद ही शादी है. उस के बाद कई महीने तक शादियां नहीं होंगी. इसीलिए जल्दी शादी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘बधाई हो, कब जा रही हो?’’

‘‘पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे मैं अकेली ही जाऊंगी. तुम नहीं जाओगे?’’

‘‘तुम ने सही सोचा, तुम्हारे भाई की शादी है, तुम जाओ, मैं नहीं जाऊंगा.’’

‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें, कैसी बातें कर रहे हो? मेरे मांबाप की जगहंसाई कराने का इरादा है क्या? सब पूछेंगे, दामाद क्यों नहीं आया तो

क्या जवाब देंगे? लोग कई तरह की बातें बनाएंगे…’’

‘‘बातें तो लोगों ने तब भी बनाई होंगी, जब एक ही शहर में रहते हुए, सगी भाभी हो कर भी तुम देवर की सगाई में नहीं गईं…और अब शादी में भी नहीं जाओगी. जगहंसाई क्या यहां नहीं होगी या फिर इज्जत का ठेका तुम्हारे खानदान ने ही ले रखा है, हमारे खानदान की तो कोई इज्जत ही नहीं है?’’

‘‘मत करो तुलना दोनों खानदानों की. मेरे घर वाले तुम्हें बहुत प्यार करते हैं. क्या तुम्हारे घर वाले मुझे वह इज्जत व प्यार दे पाए?’’

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‘‘हरेक को इज्जत व प्यार अपने व्यवहार से मिलता है.’’

‘‘तो क्या तुम्हारा अंतिम फैसला है कि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगे?’’

‘‘अंतिम ही समझो. यदि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी तो मैं भला तुम्हारे भाई की शादी में क्यों जाऊंगा?’’

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया. दूसरे दिन पंकज की शादी में शिखा को आया देख कर मांजी का चेहरा खुशी से खिल उठा था. पंकज भी बहुत खुश था.

मांजी ने स्नेह से शिखा की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम आ गई, मैं बहुत खुश हूं. मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’

‘‘आती कैसे नहीं, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप के आग्रह को कैसे टाल सकती थी?’’

मैं मन ही मन मुसकराया. शिखा किन परिस्थितियों के कारण यहां आई, यह तो बस मैं ही जानता था. उस के ये संवाद भले ही झूठे थे, पर अपने सफल अभिनय द्वारा उस ने मां को प्रसन्न कर दिया था. यह हमारे बीच हुए समझौते की एक सुखद सफलता थी.

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सुपरकॉप स्पेशल: जांबाज आशुतोष पांडेय

अगर पुलिस फोर्स में आशुतोष पांडेय जैसे दिलेर, ईमानदार और होश में रह कर काम करने वाले अधिकारी हों तो अपराधियों को सबक सिखाना मुश्किल नहीं है. अपने दम पर ही आशुतोष सुपरकौप बने. उन्होंने ऐसेऐसे कारनामे किए कि…

आशुतोष पांडेय साल 2012 में जब लखनऊ के डीआईजी, एसएसपी बने थे तब उन्होंने पुलिसकर्मियों को मुखबिर तंत्र इस्तेमाल करने का सब से अच्छा तरीका सिखाया था. मोबाइल नंबर पर शिकायत दर्ज कराने का हाइटेक सिस्टम भी उन्होंने ही लौंच किया था.

आशुतोष सादी वर्दी में घूमते थे और शहर में खोखा लगा कर पानबीड़ी बेचने वाले पनवाड़ी से ले कर रेहड़ी पटरी लगाने वालों, फल व चाय वालों से मिल कर इस निर्देश के साथ उन्हें अपना मोबाइल नंबर लिखा विजिटिंग कार्ड थमा देते थे कि कहीं कोई गड़बड़ दिखे तो उन्हें सीधे फोन करें.

बस कुछ ही दिनों में आशुतोष पांडेय के ऐसे हजारों मुखबिरों का नेटवर्क तैयार हो गया. परिणाम यह हुआ कि थानेदार की लोकेशन पता करने के लिए वह संबंधित थाना क्षेत्र के किसी भी पानवाले को फोन कर लेते थे. इस से कई सचझूठ सामने आ जाते थे.

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2016 में जब आशुतोष पांडेय कानपुर जोन के आईजी थे तो उन्होंने कानपुर पुलिस की छवि सुधारने के लिए भी सोशल मीडिया को माध्यम बना कर जनता के लिए एक फोन नंबर जारी किया, जिसे एक नंबर भरोसे का नाम दिया गया. यह नंबर खूब चर्चित हुआ और लोग आईजी आशुतोष पांडेय से सीधे जुड़ने लगे.

कानपुर आईजी के पद पर रहते हुए पांडेय ने हर वारदात को हर पहलू से समझने के लिए कानपुर के एक थाने में तैनात एसओ सहित वहां के सभी दरोगाओं की कार्यशैली देखने के लिए उन की बैठक ली. वहां पीडि़तों को भी बुलाया गया था. थानेदारों और पीडि़तों से आमनेसामने बात की गई तो पता चला कई थानेदारों ने जांच के नाम पर लीपापोती की थी. कई ने तो पीडि़तों को भटकाने की कोशिश की थी. कई ऐसे भी थे जिन की जांच सही दिशा में जा रही थी.

यह सब देख कर उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से ले कर विवेचना तक में दरोगा और थानेदारों के खेल पर शिकंजा कसने के आदेश दिए. दरअसल पुलिस विभाग में किसी अधिकारी की संवेदनशीलता उस की कार्यशैली को दर्शाती है. फिलहाल आशुतोष पांडेय उत्तर प्रदेश पुलिस के अपर महानिदेशक अभियोजन महानिदेशालय हैं.

हर कार्य दिवस की सुबह ठीक 10 बजे से अपने कक्ष में लगे कंप्यूटर के एक खास आइसीजेएस पोर्टल पर विभाग के प्रौसीक्यूटर्स की निगरानी में जुट जाते हैं. इस से गुमनामी में रहने वाला यूपी पुलिस का अभियोजन विभाग यूपी को देश में ई प्रौसीक्यूशन पोर्टल का उपयोग करने के लिए पहले नंबर पर आ खड़ा हुआ है.

बिहार के भोजपुर जिले में आरा के रहने वाले शिवानंद पांडेय के बड़े बेटे आशुतोष को बतौर सुपर कौप के रूप में पहचान दिलाई मुजफ्फरनगर जिले ने, जहां वे ढाई साल तक एसएसपी के पद पर तैनात रहे.

1998 में आशुतोष पांडेय की मुजफ्फरनगर जिले में एसएसपी के रूप में पहली नियुक्ति हुई. इस से पहले यहां केवल एसपी का पद था. दरअसल, प्रदेश सरकार ने आशुतोष पांडेय की मेहनत, लगन, ईमानदारी और कुछ नया करने की ललक को देखते हुए उन्हें एक खास मकसद से मुजफ्फरनगर में एसएसपी का पद सृजित कर भेजा था. साथ ही अपराधग्रस्त मुजफ्फरनगर से अपराध खत्म करने के लिए कुछ विशेष अधिकार भी दिए थे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला मुजफ्फरनगर किसान बहुल और जाट बहुल है. यहां की शहरी और ग्रामीण जितनी आबादी जाटों की है, कमोबेश उतनी ही आबादी मुसलिमों की भी है.

1990 से 2000 के दशक की बात करें तो मुजफ्फरनगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में अपराध में अव्वल था. अपहरण, फिरौती और हत्याओं में सब से आगे. ज्यादातर पुलिस वाले बड़े अपराधियों और रसूखदार लोगों की जीहुजूरी करते थे. कोई भी पुलिस कप्तान जिले में 6 महीने से ज्यादा नहीं टिक पाता था.

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12 दिसंबर, 1998 को जब आशुतोष ने बतौर एसएसपी मुजफ्फरनगर में जौइंन किया उसी दिन बदमाशों ने पैट्रोल पंप की एक बड़ी लूट, एक राहजनी और एक व्यक्ति का अपहरण किया.

अभी 2-3 दिन ही बीते थे कि मुजफ्फरनगर के थाना गंगोह के रहने वाले कुख्यात बदमाश बलकार सिंह ने सहारनपुर के एक बड़े उद्योगपति के 8 वर्षीय बेटे का अपहरण कर लिया और उस की धरपकड़ और बच्चे की बरामदगी की जिम्मेदारी आशुतोष पांडेय पर आई.

आशुतोष खुद अपराधी बलकार सिंह के गांव पहुंचे. उन्होंने उस के करीबी लोगों को पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला.

इसी दौरान अपहृत बच्चे के परिजनों ने बिचौलियों के माध्यम से अपहर्त्ताओं से बातचीत की और फिरौती की रकम ले कर एक व्यक्ति को बच्चे को छुड़ाने के लिए बलकार गिरोह के पास भेज दिया.

बलकार गिरोह ने फिरौती की रकम भी ले ली और बच्चे को भी नहीं छोड़ा. साथ ही फिरौती ले कर गए बच्चे के रिश्तेदार को भी बंधक बना लिया. अब उन्होंने बच्चे के साथ रिश्तेदार को छोड़ने के लिए भी फिरौती की रकम मांगनी शुरू कर दी.

इस वारदात के बाद मुजफ्फरनगर और सहारनपुर की पुलिस ने गन्ने के खेतों, जंगलों, गांवों की खूब कौंबिंग की, लेकिन सब बेनतीजा. अपहृत के परिजनों ने इस बार ठोस माध्यम तलाश कर बच्चे और अपने रिश्तेदार को फिरौती की रकम दे कर छुड़ा लिया. इस से पूरे प्रदेश में दोनों जिलों की पुलिस की बहुत किरकिरी हुई.

काफी माथापच्ची के बाद आशुतोष पांडेय की समझ में आया कि गन्ना इस इलाके में सिर्फ किसानों की ही नहीं, अपराध और अपराधियों के लिए भी रीढ़ का काम करता है.

मुजफ्फरनगर में 90 फीसदी से ज्यादा जमीन पर गन्ने की खेती होती है. इसी खेती से यहां का किसान, आढ़ती और व्यापारी सब समृद्ध हैं. हर गांव में 100-50 ट्रैक्टर और ट्यूबवैल हैं.

समृद्धि हमेशा अपराध को जन्म देती है. मुजफ्फरनगर इलाके में अपराधी पैदा होते हैं मूछों की लड़ाई और इलाके में अपनी हनक पैदा करने के कारण. लेकिन बाद में अपराध के जरिए पैसा कमा कर खुद को जिंदा रखना उन की मजबूरी बन जाता है.

इसी के चलते मुजफ्फरनगर में हर अपराधी और उस के गैंग ने बड़े किसानों, आढ़तियों और उद्योगपतियों को निशाना बना कर उन का अपहरण करने और बदले में फिरौती वसूलने का धंधा शुरू किया.

अपहर्त्ता कईकई दिन तक अपने शिकार को गन्ने के खेतों में छिपा कर रखते और इन खेतों व ट्यूबवैलों के मालिक किसान परिवार उन्हें खाने से ले कर दूसरी तरह का प्रश्रय देते.

उन दिनों मोबाइल फोन न के बराबर प्रचलन में थे. दूसरे इलेक्ट्रौनिक माध्यम भी नहीं थे, जिन के जरिए अपराधी अपहृत के परिजनों से संपर्क करते.

अपराधियों का एकमात्र माध्यम या तो लैंडलाइन फोन थे या फिर हाथ से लिखे पत्र, जिन्हें अपने शिकार के परिजनों तक पहुंचा कर वह फिरौती की मांग करते थे.

मुजफ्फरनगर के सामाजिक तानेबाने का अध्ययन करने के बाद आशुतोष पांडेय की समझ में यह बात भी आ गई कि इस इलाके में पंचायत व्यवस्था काफी मजबूत है. पंचायतों का असर इतना गहरा है कि जो मामले अदालतों तक जाने चाहिए, उन्हें पंचायत की मोहर लगा कर सुलझा दिया जाता था.

आशुतोष पांडेय ने ठान लिया कि वे मुजफ्फरनगर से असफल कप्तान का ठप्पा लगवा कर नहीं जाएंगे, बल्कि पंचायत और प्रभावशाली लोगों में पैठ बना कर बैठे अपराधियों का नेटवर्क तोड़ कर जाएंगे.

अपराध और अपराधियों की मनोवृत्ति तथा सामाजिक तानेबाने का विश्लेषण कर के आशुतोष पांडेय ने नए सिरे से जिला पुलिस के पुनर्गठन की शुरुआत की.

उन्होंने ऐसे पुलिसकर्मियों का पता लगाया, जिन का आचरण संदिग्ध था, मूलरूप से इसी इलाके के रहने वाले थे और जिन की अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से घनिष्ठता थी. जो गोपनीय सूचनाओं को लीक करते थे.

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उन्होंने सब से पहले सिपाही से ले कर दरोगा स्तर के ऐसे ही पुलिस वालों की सूची तैयार की. इस के बाद उन्होंने ऐसे पुलिस वालों को या तो जिले से बाहर ट्रांसफर कर दिया या फिर उन की नियुक्ति गैरजरूरी पदों पर कर दी.

फिर आशुतोष पांडेय ने ऐसे पुलिसकर्मियों को चिह्नित करना शुरू किया जो न सिर्फ ड्यूटी के प्रति समर्पित थे बल्कि उन में बहादुरी का जज्बा और कुछ कर गुजरने की ललक थी.

सभी थाना स्तरों पर ऐसे पुलिसकर्मियों का एक स्पैशल स्क्वायड तैयार कराया. सभी थाना प्रभारियों से कहा गया कि वे इस स्क्वायड के पुलिसकर्मियों से नियमित काम न करवा कर उन्हें अपराधियों की सुरागरसी और स्पैशल टास्क पर लगाएं.  आशुतोष पांडेय ने राज्य सरकार से संपर्क कर उन्हें जिला पुलिस की जरूरतों से अवगत कराया.

राज्य सरकार ने जिला पुलिस को 26 मोटरसाइकिल, मोटोरोला के शक्तिशाली वायरलैस सैट और कुछ मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिए. संसाधन मिलने के बाद आशुतोष ने अलगअलग कई और दस्तों का गठन किया. इन दस्तों को लेपर्ड दस्तों का नाम दिया गया.

अपराध के खिलाफ अपनी व्यूह रचना को अंजाम देने से पहले आशुतोष पांडेय मुजफ्फरनगर की जनता, कारोबारियों और उस तबके को विश्वास में लेना चाहते थे, जिन का मकसद शहर में अमनचैन कायम रखना था. उन्होंने समाज के इन सभी तबकों के जिम्मेदार लोगों से मिलनाजुलना शुरू किया.

उन्होंने इन सब लोगों को भरोसा दिलाया कि वह मुजफ्फरनगर में कानूनव्यवस्था कायम करने आए हैं. लेकिन यह काम उन के सहयोग के बिना नहीं हो सकता. उन्होंने तमाम लोगों को अपना मोबाइल फोन नंबर दे कर कहा कि कोई आपराधिक सूचना हो या कोई भी निजी परेशानी हो तो वे 24 घंटे में कभी भी निस्संकोच उन्हें फोन कर सकते हैं. वह सूचना मिलते ही काररवाई करेंगे.

अचानक पुलिस कप्तान के इस वादे पर भरोसा करना लोगों के लिए मुश्किल तो था. लेकिन आशुतोष पांडेय ने हार नहीं मानी, वह लगातार प्रयास करते रहे. आखिरकार उन के प्रयास रंग लाने लगे.

समाज और कानून व्यवस्था से सरोकार रखने वाले लोग आशुतोष पांडेय को फोन करने लगे. अपराधियों के बारे में सूचना देने लगे. यह जो नया सूचना तंत्र विकसित हो रहा था, उस में शहर के अमन पसंद लोग जिम्मेदारी उठा रहे थे.

आशुतोष पांडेय ने अपने सिटिजन सूचना तंत्र से मिली जानकारी लेपर्ड दस्तों को दे कर उन्हें दौड़ानाभगाना शुरू किया तो जल्द ही नतीजे भी सामने आने लगे. रंगदारी, अपहरण, लूट और डकैती करने वाले गिरोह पुलिस के चंगुल में फंसने शुरू हो गए.

मुजफ्फरनगर में जनवरी, 1999 से शुरू हुए पुलिस के औपरेशन क्लीन की सब से बड़ी खूबी यह थी कि आशुतोष पांडेय के हर मिशन की व्यूह रचना भी उन्हीं की होती थी और संचार तंत्र भी उन्हीं का होता था. पांडेय ने जो लेपर्ड दस्ते तैयार किए थे, बस उस सूचना के आधार पर उन का काम अपराधियों को दबोचने भर का होता था.

शक्तिशाली वायरलैस सैट और मोबाइल फोन से लैस 26 मोटरसाइकिलों पर सवार इन हथियारबंद लेपर्ड दस्तों ने मुजफ्फरनगर के चप्पेचप्पे तक अपनी पहुंच बना ली थी.

इन दस्तों में ज्यादातर लोग सादी वर्दी में होते थे, जो खामोशी के साथ किसी नुक्कड़ पर व्यस्त बाजार में, बस अड्डे पर, स्टेशन पर या चाय पान की दुकान पर साधारण वेशभूषा में आम आदमी की तरह मौजूद रहते थे.

साल 1999 की शुरुआत होतेहोते आशुतोष पांडेय का सूचना तंत्र इतना विकसित हो गया कि अचानक कोई वारदात होती, तत्काल उस की सूचना कप्तान आशुतोष के पास आ जाती. वह इलाके के लेपर्ड दस्ते और स्थानीय पुलिस को सूचना दे कर औपरेशन क्लीन के लिए भेजते. इस के बाद या तो मुठभेड़ होती, जिस में बदमाश मारे जाते या फिर बदमाश पुलिस की गिरफ्त में आ जाते.

पांडेय ने जिस मिशन की शुरुआत की थी, उस की सफलताओं का आगाज हो चुका था. एक के बाद एक गैंगस्टर और गैंग पकड़े जाने लगे. लगातार मुठभेड़ होने लगीं, जिन में कुख्यात अपराधी मारे जाने लगे.

अपराध और अपराधियों से त्रस्त आ चुकी मुजफ्फरनगर की जनता का पुलिस पर भरोसा कायम होने लगा सूचना का जो तंत्र विकसित हुआ था, वह और तेजी से काम करने लगा.

नतीजा यह निकला कि 16 फरवरी, 1999 को जब आशुतोष पांडेय का मुजफ्फरनगर प्रभार संभाले हुए 66वां दिन था तो अचानक उन्हें भौंरा कला के एक किसान ने फोन पर सूचना दी कि कुख्यात अंतरराजीय अपराधी रविंदर उर्फ चीता भौंरा कलां में अमरपाल किसान के ट्यूबवैल में छिपा है.

आशुतोष पांडेय ने पीएसी और स्थानीय पुलिस के साथ मिल कर खुद उस इलाके की घेराबंदी की. दोनों तरफ से मुठभेड़ शुरू हो गई. मुठभेड़ करीब 5 घंटे तक चली. आसपास के हजारों लोगों ने दिनदहाड़े हुई वह मुठभेड़ देखी और आखिरकार जिले का टौप 10 बदमाश रविंदर मारा गया.

बैंक डकैती से ले कर अपहरण की वारदातों में वांछित इस बदमाश के मारे जाते ही इलाके में आशुतोष पांडेय जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे.

आशुतोष पांडेय ऐसे नहीं थे, जिन पर अपनी जयकार का नशा चढ़ता. मुजफ्फरनगर जिले को अपराधमुक्त करना चाहते थे. रविंदर उर्फ चीता को ठिकाने लगाते ही वह इलाके से निकल लिए, क्योंकि एक और खबर उन का इंतजार कर रही थी.

पांडेय को उन के सिटिजन सूचना तंत्र से जानकारी मिली थी कि बाबू नाम का एक बदमाश जिस पर करीब 1 लाख  का ईनाम है, सिविल लाइन में किसी व्यापारी से रंगदारी वसूलने के लिए आने वाला है.

आशुतोष पांडेय सीधे सिविल लाइन पहुंचे, यहां नई टीम को बुलाया गया. फिर पुलिस टीम को एकत्र कर के बताया कि सूचना क्या है और उस पर क्या ऐक्शन लेना है.

सूचना सही थी. बताए गए समय और जगह पर कुख्यात अपराधी बाबू पहुंचा. पुलिस ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और आत्मसमर्पण की चेतावनी दी. लिहाजा क्रौस फायरिंग शुरू हो गई. करीब 1 घंटे तक गोलीबारी हुई. घेरा तोड़ कर भागे बाबू को भी आखिरकार पुलिस ने धराशाई कर दिया.

मुजफ्फरनगर के इतिहास में शायद यह पहला दिन था जब एक ही दिन में पुलिस ने एक साथ 2 बड़े अपराधियों का एनकाउंटर कर उन्हें धराशाई कर दिया था.

इस एनकाउंटर के बाद मुजफ्फरनगर की जनता का पुलिस पर भरोसा वापस लौट आया. लोगों को लगने लगा कि आशुतोष पांडेय के रहते या तो बदमाश दिखाई नहीं देंगे. अगर दिखे तो उन के सिर्फ दो अंजाम होंगे या तो वे श्मशान में होंगे या सलाखों के पीछे.

आशुतोष पांडेय पर जिम्मेदारियां बहुत बड़ी थीं. क्योंकि यह सिर्फ शुरुआत थी इसे अंजाम तक पहुंचाना बेहद मुश्किल काम था. पांडेय सुबह 10 बजे तक अपने दफ्तर पहुंच जाते थे, जहां जनता से मुलाकात करते, शिकायतें सुनते.

उस के बाद कोई सूचना मिलने पर उन का काफिला अनजान मंजिल की तरफ निकल पड़ता. वे किसी गांव में किसानों के बीच बैठक लगाते या व्यापारियों के बीच भरोसा पैदा करने के लिए बैठक करते.

आशुतोष पांडेय कईकई दिन तक अपनी पत्नी और दोनों बच्चों से नहीं मिल पाते थे. घर जाने की फुरसत नहीं होती थी इसलिए गाड़ी में ही हर वक्त 1-2 जोड़ी कपड़े रखते थे.

गाड़ी में हमेशा पानी की बोतलें, भुने हुए चने और गुड़ मौजूद रहता था. जरूरत पड़ने पर गुड़ और चने खा कर ऊपर से पानी पी लेते थे. थकान हो जाती थी तो गाड़ी में बैठ कर ही कुछ देर झपकी मार लेते थे.

आशुतोष पांडेय अकेले ऐसा नहीं करते थे. जिले के हर पुलिस कर्मचारी के लिए उन्होंने शहर के अपराधमुक्त होने तक ऐसी ही दिनचर्या अपनाने का वादा ले रखा था.

रविंदर उर्फ चीता और बाबू के एनकाउंटर के बाद आशुतोष पांडेय ही नहीं, पूरे जिले की पुलिस के हौसले बुलंदी पर थे. आईजी जोन से ले कर लखनऊ में उच्चस्तरीय अधिकारियों में भी आशुतोष पांडेय के काम की सराहना हो रही थी.

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लेकिन आशुतोष इतने भर से संतुष्ट नहीं थे. इस के बाद उन्होंने अगस्त, 1999 में मंसूरपुर इलाके में ईनामी बदमाश नरेंद्र औफ गंजा को मुठभेड़ में मार गिराया. चंद रोज बाद ही बड़ी रकम के इनामी बदमाश इतवारी को सिविल लाइन इलाके में ढेर कर दिया गया. 8 नवंबर, 1999 को उन्होंने खतौली के कुख्यात अपराधी सुरेंद्र को मुठभेड़ में धराशाई कर दिया.

मुजफ्फरनगर में जिस तरह से एक के बाद एक ताबड़तोड़ एनकाउंटर हो रहे थे, सक्रिय अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जा रहा था. उस ने अपराधियों के बीच आशुतोष पांडेय के नाम का खौफ भर दिया था. उन्हें बड़ी कामयाबी तब मिली जब 27 अगस्त, 2000 को एक सूचना के आधार पर उन्होंने शामली के जंगलों में खड़े एक ट्रक को अपने कब्जे में लिया.

इस ट्रक में सवार 2 लोगों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की तरफ से भी फायरिंग शुरू हो गई. फलस्वरूप दोनों बदमाश मारे गए. बाद में जिन की पहचान पंजाब के सुखबीर शेरी ओर दिल्ली के नरेंद्र नांगल के रूप में हुई.

पता चला कि ये दोनों आतंकवादी थे और दिल्ली में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान विस्फोट करना चाहते थे. ये दोनों 5 लोगों की हत्या में वांछित थे. जिस ट्रक में दोनों बैठे थे उसे उन्होंने सहारनपुर से लूटा था और ट्रक में 50 लाख  रुपए की सिगरेट भरी थी. पुलिस को उन के कब्जे से हथियार व गोलाबारूद भी मिला.

आशुतोष पांडेय द्वारा छेड़े गए मिशन के तहत बदमाश पकड़े भी जा रहे थे और मारे भी जा रहे थे. लेकिन पांडेय जानते थे कि मुजफ्फरनगर इलाके में अपराध की मूल जड़ गन्ना है. क्योंकि गन्ना बढ़ने के साथ उस की बिक्री से किसानों व क्रेशर मालिकों के पास पैसा आने लगता है.

बदमाश उसी पैसे को लूटने या फिरौती में लेने के लिए अपहरण की वारदातों को अंजाम देते हैं. कुल मिला कर इलाके के अपराधियों के लिए गन्ने की फसल मुनाफे का धंधा बन गई थी. आशुतोष पांडेय चाहते थे कि किसी भी तरह मुनाफे के इस धंधे को घाटे में बदल दिया जाए.

आशुतोष ने अब अपना सारा ध्यान अपहरण करने वाले गिरोह और बदमाशों पर केंद्रित कर दिया. उन्होंने पिछले 2-3 सालों में हुए अपहरणों की पुरानी वारदातों की 1-1 पुरानी फाइल को देखना शुरू किया.

अपहरण के इन मामलों में जो भी लोग संदिग्ध थे, जिन लोगों ने अपहर्त्ताओं को पनाह दी थी अथवा बिचौलिए का काम किया था, उन्होंने ऐसे तमाम लोगों की धरपकड़ शुरू करवा दी. रोज ऐसे 30-40 लोग पकड़े जाने लगे.

इस से अपराधियों के शरणदाता अचानक बदमाशों से कन्नी काटने लगे. जिस का नतीजा यह निकला कि मुजफ्फरनगर में अचानक साल 2000 में फिरौती के लिए अपहरण की वारदातों में भारी कमी आ गई.

लेकिन इस के बावजूद कुछ मुसलिम गैंग अभी तक अपहरण की वारदात छोड़ने को तैयार नहीं थे.

दिसंबर 2000 में चरथावल कस्बे के दुधाली गांव में बदमाशों ने भट्ठा मालिक जितेंद्र सिंह का अपहरण कर लिया और परिवार से मोटी फिरौती मांगी. शिकायत कप्तान आशुतोष पांडेय तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत मुखबिरों के नेटवर्क को सक्रिय किया. पता चला कि जितेंद्र सिंह का अपहरण शकील, अकरम और दिलशाद नाम के अपराधियों ने किया है. यह भी पता चल गया कि बदमाशों ने जितेंद्र सिंह को दुधाहेड़ी के जंगलों में रखा हुआ है.

उन्होंने खुद इस मामले की कमान संभाली और पूरे जंगल की घेराबंदी कर दी. दिनभर पुलिस और बदमाशों की मुठभेड़ चलती रही, जिस के फलस्वरूप शाम होतेहोते तीनों बदमाश मुठभेड़ में धराशाई हो गए और जितेंद्र सिंह को सकुशल मुक्त करा लिया गया.

1999 से ले कर साल 2000 तक मुजफ्फरनगर जिले में कई ऐसे अपहरण हुए, जिस में आशुतोष पांडेय की अगुवाई में पुलिस ने न सिर्फ अपहृत व्यक्ति को सकुशल मुक्त कराया. बल्कि अपहर्त्ताओं को या तो गिरफ्तार किया या फिर मुठभेड़ में धराशाई कर दिया. पांडेय ने ऐसे सभी मामलों में अपहर्त्ताओं को अपने खेतों, ट्यूबवैल और घरों में शरण देने वाले किसानों और उन के परिवार की महिलाओं तक को आरोपी बना कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

परिणाम यह निकला कि लोग अपराधियों को शरण देने से बचने लगे. कल तक अपहरण को मुनाफे का धंधा मानने वाले अपराधियों को अब वही धंधा घाटे का लगने लगा. यही वजह रही कि साल 2001 में मुजफ्फरनगर जिले में फिरौती के लिए अपहरण की एक भी वारदात नहीं हुई.

इस बीच जिले के सभी 28 थानों पर पांडेय की इतनी मजबूत पकड़ कायम हो चुकी थी कि अगर वहां कोई मामूली सी भी गड़बड़ या घटना होती तो इस की सूचना उन तक पहुंच जाती थी.

लोगों से मिली सूचनाओं के बूते पर उन्होंने जिले के करीब 525 ऐसे लोगों की सूची बनाई थी, जो या तो सफेदपोश थे या फिर किसी पंचायत अथवा राजनीतिक दल से जुड़े थे. इन सभी लोगों पर आशुतोष पांडेय ने अपनी टीम के लोगों को नजर रखने के लिए छोड़ा हुआ था.

ऐसे लोगों की अपराध में जरा सी भी भूमिका सामने आने पर आशुतोष पांडेय मीडिया के माध्यम से जनता के बीच उन के चरित्र का खुलासा करके उन्हें जेल भेजते थे. इसलिए तमाम सफेदपोश लोग भी आशुतोष पांडेय के खौफ से डरने लगे थे.

सफेदपोश अपराधियों के खिलाफ की गई काररवाई में सब से चर्चित और उल्लेखनीय मामला समाजवादी पार्टी से विधान परिषद सदस्य कादिर राणा के भतीजे शाहनवाज राणा की गिरफ्तारी का था.

शाहनवाज राणा की शहर में तूती बोलती थी. किसी के साथ भी मारपीट कर देना किसी की गाड़ी को अपनी गाड़ी से टक्कर मार देना शाहनवाज राणा का शगल था. पुलिस और स्थानीय प्रशासन पर प्रभाव रखने और धमक दिखाने के लिए शाहनवाज राणा ने एक अखबार भी निकाल रखा था. शाहनवाज राणा पर कोई हाथ नहीं डाल पाता था. शाहनवाज राणा पहले हत्या के एक मामले में गिरफ्तार हो चुका था लेकिन सबूत न होने की वजह से बाद में अदालत से रिहा हो गया था. इस से मुजफ्फरनगर में शाहनवाज की गुंडागर्दी और भी बढ़ गई थी. लेकिन आशुतोष पांडेय ने शाहनवाज को भी नहीं छोड़ा.

दरअसल, मुजफ्फरनगर के रमन स्टील के मालिक रमन कुमार ने आशुतोष पांडेय को फोन कर के बताया कि शाहनवाज राणा और उस के साथी उस की फैक्ट्री से लोहे के कबाड़ का ट्रक लूट रहे हैं.

सूचना मिलते ही आशुतोष पांडेय अपने स्पैशल दस्ते के साथ मौके पर पहुंचे और शाहनवाज राणा व उस के साथियों को पकड़ कर थाने ले आए.

शाहनवाज राजनीतिक पकड़ वाला व्यक्ति था. चाचा कादिर राणा प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी का एमएलसी था. थाने पर एक खास समुदाय के समर्थकों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई.

आशुतोष पांडेय पर शाहनवाज को छोड़ने के लिए उच्चाधिकारियों से ले कर विपक्षी पार्टी के नेताओं का दबाव बढ़ने लगा.

लेकिन आशुतोष पांडेय उसूलों के पक्के थे. उन्होंने शाहनवाज को खुद मौके पर जा कर पकड़ा था. लिहाजा छोड़ने का सवाल ही नहीं था.

अगर दबाव में आ कर वह शाहनवाज को छोड़ देते तो न सिर्फ ढाई साल में की गई उन की मेहनत पर पानी फिर जाता बल्कि शाहनवाज राणा के हौसले और ज्यादा बुलंद हो जाते.

आशुतोष पांडेय ने तबादले और दंड की परवाह किए बिना शाहनवाज राणा के खिलाफ मामला दर्ज करवाया और उसे साथियों के साथ जेल भिजवा दिया.

मुजफ्फरनगर जिले में यह मामला एक आईपीएस अफसर के ईमानदार फैसले की नजीर बन गया और लोगों ने आशुतोष पांडेय की हिम्मत का लोहा मान लिया.

यही कारण रहा कि मुजफ्फरनगर में अपनी तैनाती के दौरान इकहरे शरीर के मालिक आशुतोष पांडेय हमेशा लौह पुलिस अफसर बन कर खड़े रहे.

मुजफ्फरनगर में ढाई साल के लंबे कार्यकाल के बाद आशुतोष पांडेय की नियुक्ति अलगअलग जगहों पर रही. हर जगह उन्होंने जो काम किए, वह सब से हट कर थे. पांडेय 2005 में वाराणसी और साल 2012 में लखनऊ के एसएसपी डीआईजी रहे.

सभी जगह आशुतोष पांडेय का नाम सुनते ही गैरकानूनी काम करने वाले लोग डरते थे. 2008 में आशुतोष पांडेय को प्रोन्नत कर उन्हें डीआईजी का पद सौंपा गया. इस के बाद उन्हें 18 मई, 2012 में प्रमोशन देते हुए आईजी बना दिया गया.

कानुपर के अलावा उन की नियुक्ति आगरा जोन में भी रही और 1 जनवरी, 2017 को वह यूपी के एडीजी बना दिए गए. अपहरण मामलों को सुलझाने के विशेषज्ञ, मुजफ्फरनगर में 100 से ज्यादा अपराधियों के एनकाउंटर में 30 एनकांउटर में खुद मोर्चा संभालने और कानपुर में बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में अहम रोल निभाने वाले आशुतोष पांडेय को राष्ट्रपति मैडल मिल चुका है.

Crime Story- प्यार की कच्ची डोर: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

जिम ट्रेनर जिया ने सोचा भी नहीं होगा कि जिस कसरती जवान से वह इश्क लड़ा रही है, जिस के साथ नया संसार बसाने के सपने देख रही है, वह 5 राज्यों का वांटेड और 5 लाख का ईनामी बदमाश है. जब यह बात उसे पता चली तब बहुत देर हो चुकी थी और उस के भी…

इसी साल जनवरी में सीनियर आईपीएस अधिकारी हवासिंह घुमरिया ने जब जयपुर रेंज आईजी का पदभार संभाला, तो उन के सामने पपला को पकड़ने की सब से बड़ी चुनौती थी. विक्रम गुर्जर उर्फ पपला कुख्यात बदमाश था, जिस पर पुलिस की ओर से 5 लाख रुपए का इनाम घोषित था.

करीब डेढ़ साल पहले 6 सितंबर, 2019 को अलवर जिले के बहरोड़ पुलिस थाने पर दिनदहाड़े एके 47 से अंधाधुंध फायरिंग कर हथियारबंद बदमाश उसे छुड़ा ले गए थे. तब से वह फरार था. इस से पहले 2017 में वह हरियाणा पुलिस की हिरासत से भाग गया था. इसलिए राजस्थान और हरियाणा पुलिस उस की तलाश कर रही थी, लेकिन उस का कुछ पता नहीं था.

आईजी घुमरिया ने बहरोड़ थाने से पपला की फाइल मंगवा कर उसे कई बार पढ़ा. उन्होंने पपला के बहरोड़ थाने से फरार होने के बाद पकड़े गए उस के गिरोह के साथियों की फाइलें भी पढ़ी. हरियाणा से भी मंगा कर पपला के अपराधों की कुंडलियां खंगाली गईं.

तमाम फाइलों को पढ़ने के बाद आईजी घुमरिया को पक्का विश्वास हो गया कि पपला की पहलवानी का शौक ही उसे पकड़वा सकता है. आईजी का मानना था कि पपला पहलवानी करता है. इसलिए किसी अखाड़े या जिम में जरूर जाता होगा.

इस आधार पर पुलिस ने राजस्थान के अलावा हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में तमाम अखाड़े और जिम में पपला की तलाश की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. अलबत्ता यह जरूर पता चला कि पपला प्रेम प्यार के मामले में कमजोर है. वह कोई न कोई गर्लफ्रैंड जरूर रखता है.

अब पुलिस के पास 2 क्लू थे. एक तो पपला का पहलवानी का शौक और दूसरा उस की इश्कबाजी. इस बीच, जनवरी के तीसरे सप्ताह में आईजी घुमरिया को महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में रहने वाली युवती जिया उससहर सिगलीगर के बारे में कुछ सुराग मिले. पता चला कि जिया जिम भी चलाती है और पपला की गर्लफ्रैंड हो सकती है.

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जिम और गर्लफ्रैंड, इन 2 सुरागों पर आईजी घुमरिया को उम्मीद की किरण नजर आई. उन्होंने चुनिंदा पुलिस अफसरों की स्पैशल 26 टीम बना कर पपला को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी. एडिशनल एसपी सिद्धांत शर्मा के नेतृत्व में बनाई इस टीम में अलवर और भिवाड़ी पुलिस जिलों के अफसरों और कमांडो को भी शामिल किया गया.

स्पैशल 26 टीम के कुछ पुलिस अफसरों और कमांडो को कोल्हापुर भेजा गया. उन्होंने जिया और उस के जिम का पता लगाया. पुलिस टीम ने कई दिनों की जांचपड़ताल के बाद यह पता लगा लिया कि जिया वाकई पपला की गर्लफ्रैंड है. पपला उसी के साथ कोल्हापुर में रह रहा है.

यकीन हो जाने के बाद आईजी घुमरिया ने स्पैशल 26 टीम के बाकी पुलिस अफसरों और सशस्त्र कमांडो को भी कोल्हापुर भेज दिया. यह टीम अलगअलग हिस्सों में बंट गई. टीम के कुछ सदस्य जिया के जिम वाले मकान की कालोनी में किराएदार बन कर कमरा तलाशने लगे. कुछ सदस्य हैल्थवर्कर बन गए और कोरोना की जांच के बहाने आसपास के मकानों की रैकी करने लगे.

टीम के कुछ सदस्यों ने जिम जौइन करने के बहाने जिया के जिम में अलगअलग समय पर जा कर पूरी टोह ली. जिया जिस मकान में जिम चलाती थी, वह 3 मंजिला था.

3-4 दिन की रैकी और तमाम रूप बदलने के बाद 25 जनवरी को यह निश्चित हो गया कि पपला इसी मकान में रहता है. पपला कोई छोटामोटा अपराधी नहीं था. उस के पास अत्याधुनिक हथियार होने की पूरी संभावना थी. पुलिस टीम ने जिया के मकान और आसपास के इलाकों का वीडियो और फोटो बना कर आईजी घुमरिया को जयपुर भेजे.

आईजी ने स्पैशल 26 टीम के अफसरों से सारे हालात पर चर्चा करने के बाद नीमराना के एडिशनल एसपी राजेंद्र सिंह सिसोदिया को भी कोल्हापुर भेज दिया. औपरेशन पपला की तारीख तय हुई 27 जनवरी.

27 जनवरी की आधी रात के करीब स्पैशल 26 टीम ने सादा कपड़ों में जिया के मकान को घेर लिया. एक साथ 25-30 हथियारबंद लोगों को देख कर आसपास रहने वाले लोगों ने उन्हें डकैत समझ लिया और पथराव करना शुरू कर दिया.

हालात बिगड़ सकते थे और डेढ़ साल से आंखों में धूल झोंक रहा पपला फिर भाग सकता था. इसलिए टीम के एडिशनल एसपी सिद्धांत शर्मा ने जयपुर मोबाइल काल कर आईजी घुमरिया को सारी बात बताई. आईजी ने तुरंत कोल्हापुर एसपी से बात की.

कोल्हापुर पुलिस ने मौके पर पहुंच कर कालोनी के लोगों को समझाया, तब तक स्पैशल 26 टीम के कुछ जवान जिया के मकान में तीसरी मंजिल तक पहुंच चुके थे.

हलचल सुन कर एक कमरे में सो रहा पपला जाग गया. हथियारबंद जवानों को देख वह समझ गया कि पुलिस वाले हैं. खुद को पुलिस से घिरा देख कर पपला ने अपनी गर्लफ्रैंड जिया को ही बचाव का हथियार बना लिया. उस ने जिया की गरदन पर चाकू लगा कर पुलिस वालों से कहा, ‘पीछे हट जाओ और मुझे जाने दो, नहीं तो इस लड़की की गरदन उड़ा दूंगा.’

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पहले से ही हर हालात का आंकलन कर पहुंची पुलिस की स्पैशल 26 टीम को इस पर कोई हैरानी नहीं हुई. पपला की धमकी पर पुलिस टीम ने पीछे हटने के बजाय उस पर चारों तरफ से शिकंजा बना लिया.

आखिर पुलिस से बचने के लिए वह जिया को छोड़ कर तीसरी मंजिल से नीचे कूद गया. नीचे और आसपास पहले ही पुलिस टीम के कमांडो पोजीशन लिए खड़े थे. उन्होंने पपला को दबोच लिया और उसे चारों तरफ से घेर कर स्टेनगन तान दी. इस बीच पुलिस ने जिया को अपनी हिरासत में ले लिया था.

तीसरी मंजिल से कूदने से पपला के बाएं पैर के घुटने की हड्डी टूट गई. वह जमीन से उठ नहीं सका, तो पुलिस टीम ने उसे सहारा दे कर खड़ा किया और कपड़ों की तलाशी ली. उस के पास कोई हथियार नहीं मिला.

मकान के अंदर पहुंची पुलिस टीम ने सभी कमरों की तलाशी ली. तलाशी में कोई हथियार तो नहीं मिला, लेकिन पपला का फरजी आधार कार्ड जरूर मिला. इस में उस का नाम उदल सिंह और पता कोल्हापुर दर्ज था.

पैर में फ्रैक्चर होने से पपला चलफिर नहीं सकता था. इसलिए पुलिस टीम ने 28 जनवरी को सब से पहले उस की मरहमपट्टी कराई. बहरोड़ पुलिस पपला से पहले धोखा खा चुकी थी. इसलिए उसे और उस की गर्लफ्रैंड जिया को राजस्थान लाने के लिए पुलिस की अलगअलग टीमें बनाई गईं ताकि उस के साथियों को यह पता न चल सके कि कौन सी टीम उसे ले कर कहां पहुंचेगी.

एक टीम हवाईजहाज से दिल्ली के लिए उड़ी और दूसरी टीम जयपुर के लिए. पपला जयपुर पहुंचा और जिया दिल्ली. 29 जनवरी को पुलिस ने जिया और व्हीलचेयर पर पपला को बहरोड़ की अदालत में पेश किया. अदालत ने पपला को शिनाख्तगी के लिए 2 दिन की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया, जबकि जिया को 7 दिन के पुलिस रिमांड पर भेजा गया.

थाने से छुड़ा लिया था पपला को

पपला को जेल भेजने से पहले नीमराना थाने में आईजी हवासिंह घुमरिया, भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी, अलवर एसपी तेजस्विनी गौतम, स्पैशल औपरेशन ग्रुप के एडिशनल एसपी सिद्धांत शर्मा और नीमराना के एडिशनल एसपी राजेंद्र सिंह सिसोदिया ने पपला और जिया से अलगअलग पूछताछ की.

पुलिस की पूछताछ और जांचपड़ताल में पपला के दुर्दांत अपराधी बनने और महाराष्ट्र के कोल्हापुर पहुंच कर प्यार का चक्कर चलाने की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस से पहले पपला के बहरोड़ थाने से फरार होने की कहानी जान लीजिए.

5 सितंबर, 2019 की रात भिवाड़ी जिले की बहरोड़ थाना पुलिस ने पपला को दिल्लीजयपुर हाइवे पर एक कार में 32 लाख रुपए ले कर जाते हुए पकड़ा था. पुलिस ने पपला से 32 लाख रुपए के बारे में पूछताछ की, तो उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

उस समय तक बहरोड़ के तत्कालीन थानाप्रभारी सुगनसिंह को पपला के आपराधिक बैकग्राउंड का पता नहीं था. वह उसे कोई व्यापारी या छोटामोटा प्रौपर्टी डीलर समझ रहे थे.

पपला ने खुद के पकड़े जाने की सूचना मोबाइल से अपने साथियों को दे दी थी. पपला के पकड़े जाने पर कुछ लोगों ने पुलिस से लेदे कर उसे छोड़ने के लिए भी बात की थी, लेकिन बात नहीं बनी. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर हवालात में बंद कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- पपला का खौफ खत्म करने के लिए जुलूस निकाला

Crime Story- प्यार की कच्ची डोर: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कहा जाता है कि पपला अपने साथी जसराम पटेल की हत्या का बदला लेने के लिए बहरोड़ आया था. वह बहरोड़ में विक्रम उर्फ लादेन को मारना चाहता था. इस से पहले उस ने किसी बड़े व्यापारी से रंगदारी वसूली थी. उस के पास रंगदारी के वही 32 लाख रुपए थे. पकड़े जाने पर उस ने पुलिस से कहा था कि वह जमीन का सौदा करने आया था, लेकिन सौदा नहीं बना.

पपला के पकड़े जाने के कुछ घंटों बाद ही 6 सितंबर को सुबह करीब 9 बजे 3 गाडि़यों में भर कर आए उस के साथियों ने बहरोड़ पुलिस थाने पर नक्सलियों की तरह दिनदहाड़े धावा बोल दिया. ये लोग एके 47 और एके 56 से करीब 50 राउंड गोलियां बरसा कर पपला को लौकअप से निकाल ले गए. बदमाशों की गोलियों से थानाप्रभारी के कमरे के गेट और थाने की दीवारों पर गोलियों के निशान बन गए थे, जो एक खतरनाक हमले की गवाही दे रहे थे.

जब पपला को उस के साथी थाने से छुड़ा ले गए, तब पुलिस को पता चला कि वह हरियाणा का दुर्दांत अपराधी विक्रम गुर्जर उर्फ पपला था. राजस्थान में इस तरह का यह पहला मामला था.

पुलिस थाने पर हमले की घटना ने राजस्थान सरकार को हिला दिया. इस से पुलिस की बदनामी भी हुई. पपला की फरारी पर अधिकारियों ने इसे पुलिस की लापरवाही मानते हुए कई पुलिस अफसरों पर काररवाई की. 2 पुलिस वालों को बर्खास्त किया गया. डीएसपी और थानाप्रभारी सहित 5 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया. कुछ के तबादले और 69 पुलिस वाले लाइन हाजिर किए गए.

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पुलिस ने पपला को तलाश करने के लिए पहले तो जोरशोर से कई दिनों तक अभियान चलाया. जगहजगह छापे मार कर पूरे देश की खाक छान ली, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

पपला को अकेली राजस्थान की पुलिस ही तलाश नहीं कर रही थी, बल्कि हरियाणा पुलिस भी उस पर आंखें गड़ाए हुए थी. लेकिन सफलता दोनों राज्यों की पुलिस को नहीं मिल रही थी.

धीरेधीरे पुलिस के अभियान भी ठंडे पड़ गए. पपला के न पकड़े जाने से यह बात भी उठने लगी कि उसे राजनीतिक या जातिगत संरक्षण मिला हुआ है. इसीलिए पुलिस जानबूझ कर उसे नहीं पकड़ रही है. एक बार हरियाणा की पूर्व सरकार के एक मंत्री के बेटे की पपला से बातचीत का औडियो भी वायरल हुआ था.

हालांकि बहरोड़ पुलिस ने पपला को थाने से छुड़ा ले जाने और संरक्षण देने के मामले में 17 महीने के दौरान 30 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार भी किया. इन में अधिकांश लोग राजस्थान के अलवर और झुंझुनूं जिले के अलावा हरियाणा के महेंद्रगढ़, नारनौल और रेवाड़ी के रहने वाले थे.

पपला का खौफ खत्म करने के लिए जुलूस

राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप और अलवर पुलिस ने 22 सितंबर, 2019 को पपला के गिरोह के 16 बदमाशों का बहरोड़ में केवल अंडरवियर और बनियान में सड़कों पर पैदल जुलूस निकाला था. पुलिस ने यह काम आमजन के मन से ऐसे बदमाशों का खौफ खत्म करने के लिए किया था. पहली बार राजस्थान में बदमाशों का इस तरह निकाला गया जुलूस चर्चा का विषय बन गया था.

पपला के 30 से ज्यादा साथी पकड़े गए और इन में से आधे से ज्यादा बदमाशों का बनियान अंडरवियर में जुलूस निकाला गया. इस के बावजूद पुलिस उन से यह नहीं उगलवा सकी कि पपला का पताठिकाना अब कहां है? कौन लोग उसे पैसा पहुंचा रहे हैं और कौन उसे शरण दे रहे हैं?

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राजस्थान पुलिस पर पपला की फरारी से लगा काला दाग अब उस के फिर पकड़े जाने से हालांकि मिट गया है, लेकिन 2 बार गच्चा दे कर भाग चुके पपला को ले कर पुलिस की चिंताएं अभी कम नहीं हुई हैं. इस का कारण यह है कि उस की मदद करने वाले उस के साथी अभी खुले घूम रहे हैं.

विक्रम गुर्जर उर्फ पपला हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के खैरोली गांव के रहने वाले मनोहरलाल के 2 बेटों में बड़ा है. उस ने 12वीं पास करने के बाद फौज में जाने का मन बना लिया था. इसी दौरान उसे पहलवानी का शौक लग गया. वह अपने गांव के ही शक्ति सिंह के पास पहलवानी सीखने लगा. शक्ति सिंह को वह गुरु मानता था.

खैरोली गांव के ही रहने वाले संदीप फौजी का पास के गांव की एक युवती से प्रेम प्रसंग चल रहा था. गांव के लोग इस से नाखुश थे. पंचायत ने फैसला किया कि संदीप फौजी उस युवती से नहीं मिलेगा. इस के बाद भी संदीप नहीं माना, तो शक्ति सिंह और पपला ने उसे पीट दिया. संदीप ने इसे अपना अपमान माना.

उस ने हरियाणा के चीकू बदमाश को सुपारी दे कर 4 फरवरी, 2014 को शक्ति सिंह की हत्या करवा दी. अपने गुरु शक्ति सिंह की हत्या का बदला लेने के लिए विक्रम गुर्जर उर्फ पपला अपराध की दुनिया में कूद गया.

पपला हरियाणा के कुख्यात बदमाश कुलदीप उर्फ डाक्टर के गिरोह में शामिल हो गया. पपला ने बंदूक थाम कर एक साल में ही अपने गुरु की हत्या का बदला ले लिया. जनवरी, 2015 में उस ने संदीप फौजी की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने संदीप की मां विमला, मामा महेश और नाना श्रीराम को भी मौत के घाट उतार दिया.

4 लोगों की हत्या के बाद पपला अपराध की दलदल में धंसता चला गया. पपला के खिलाफ हत्या, लूट और रंगदारी के करीब 2 दरजन से ज्यादा मामले दर्ज हुए. उस का दक्षिणी हरियाणा के जिलों खासकर रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, नारनौल व धारूहेड़ा के अलावा राजस्थान के राठ और शेखावटी इलाके में आतंक था.

हरियाणा के अलावा वह राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश पुलिस का भी वांटेड रहा. हरियाणा की नारनौल पुलिस ने उसे 2016 में पकड़ा था. इस के कुछ समय बाद 2017 में महेंद्रगढ़ की अदालत में उस के गिरोह के बदमाश पुलिस पर फायरिंग कर उसे छुड़ा ले गए थे. इस मामले में हरियाणा पुलिस के एक एसआई सहित 7 पुलिस वाले घायल हुए थे.

हरियाणा पुलिस ने पपला पर 2 लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था. पुलिस की हिरासत से पपला को छुड़ा ले जाने में उस का छोटा भाई मिंटू भी आरोपी था. वह जेल में 20 साल की सजा भुगत रहा है.

अब जिया की कहानी. जिया आयुर्वेद डाक्टर बनने की पढ़ाई कर रही थी. वह अभी दूसरे वर्ष की छात्रा थी. तलाकशुदा जिया के पिता डाक्टर हैं. जिया को पपला ने अपना नाम मानसिंह और काम व्यापार बता रखा था.

महाराष्ट्र के सतारा जिले की रहने वाली 26 साल की जिया कोल्हापुर में 3 मंजिला मकान में जिम भी चलाती थी. वह फिजिकल ट्रेनर है. पपला ने अपने पहलवानी के शौक के कारण जिम जौइन किया था. वहां मासूम और फूल सी नाजुक जिया को देख कर वह उस पर लट्टू हो गया. जिया के तलाकशुदा होने का पता चलने पर पपला ने उस से नजदीकियां बढ़ाई. जिया भी कसरती बदन वाले पपला के प्यार में उलझ गई.

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पपला ने जिया की जिम वाली बिल्डिंग में ही 4500 रुपए में किराए पर कमरा ले लिया. फिर दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे. पकड़े जाने से 2 दिन पहले ही पपला ने जिया के पिता से भी मुलाकात की थी. पपला जिया से शादी कर कोल्हापुर में बसना चाहता था, लेकिन उन के प्यार की कहानी 2 महीने से कम समय में ही खत्म हो गई.

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

पपला ने जिया से मुलाकात से पहले कोल्हापुर में ही एक मराठी महिला को अपने प्यार के जाल में फंसाया था. अकेली रहने वाली उस महिला का 4 साल का एक बेटा है. उस महिला के साथ भी वह कुछ दिन लिवइन रिलेशनशिप में रहा.

उस महिला से प्यार की पींगें आगे बढ़तीं, उस से पहले ही पपला की जिया से मुलाकात हो गई और उस का जिया पर दिल आ गया. पपला कोल्हापुर में 3-4 महीने से रह रहा था. इस दौरान उस ने कई ठिकाने भी बदले थे.

पपला के पकड़े जाने के बाद जिया पुलिस से उस की असलियत के बारे में पूछती रही. राजस्थान पुलिस की स्पैशल 26 टीम जब पपला और जिया को कोल्हापुर से राजस्थान ले जाने के लिए पुणे एयरपोर्ट पहुंची, तो आमनासामना होने पर जिया ने पपला से पूछा, ‘आखिर तुम हो कौन?’

तब पपला ने जवाब दिया, ‘मैं विक्रम गुर्जर उर्फ पपला हूं. राजस्थान और हरियाणा पुलिस ने मुझ पर 5 लाख रुपए का इनाम रखा हुआ है. यूपी और दिल्ली की पुलिस भी मुझे तलाश कर रही है.’

पपला की असलियत जान कर जिया फूटफूट कर रोने लगी.

जेल में पपला की शिनाख्तगी होने के बाद पुलिस ने उसे अदालत से रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान पुलिस पूछताछ में सामने आया कि पपला बहरोड़ थाने से फरार होने के बाद करीब 2 महीने तक अलवर जिले के तिजारा, दिल्ली और हरियाणा के पलवल शहर में रहा. इस के बाद उस ने एनसीआर और उत्तर प्रदेश में अपना समय बिताया.

इस दौरान उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया. घर वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों से वह सीधे तौर पर संपर्क में नहीं रहा. उस के फरार होने के करीब 6 महीने बाद कोरोना के कारण लौकडाउन लग गया. इस दौरान पुलिस भी ठंडी पड़ गई. बाद में जब अनलौक होना शुरू हुआ, तो पुलिस ने डाक्टर और हैल्थ वर्कर बन कर भी कई राज्यों में पपला की तलाश की.

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पुलिस ने पपला की तलाश में राजस्थान के अलावा हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, बेंगलुरु, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब आदि 14 राज्यों की धूल छानी थी.

पपला के काली भक्त होने का पता चलने पर पुलिस पश्चिम बंगाल भी गई थी. महाकालेश्वर और शिरडी सहित देश के बड़े धार्मिक स्थलों पर भी उस की तलाश की गई थी. नवंबर 2019 में भी पुलिस टीम कोल्हापुर गई थी.

जांच में यह भी पता चला कि पपला को पुलिस के छापे की जानकारी पहले मिल जाती थी. गहराई में जाने पर पता चला कि पपला को पकड़ने वाले एडिशनल एसपी सिद्धांत शर्मा का पहले गनमैन रहा सुधीर कुमार पुलिस की प्लानिंग की जानकारी पपला के साथियों तक पहुंचाता था.

पुलिस वाला ही खबरी था पपला का

सिद्धांत शर्मा 2017 में भिवाड़ी के डीएसपी थे, तब सुधीर कुमार उन का गनमैन था. बाद में सिद्धांत शर्मा का तबादला नीमराना डीएसपी के पद पर हो गया, तो सुधीर भी उन के साथ गनमैन के रूप में नीमराना आ गया. पपला की फरारी के दौरान सिद्धांत नीमराना में ही तैनात थे. बहरोड़ और नीमराना में केवल 20 किलोमीटर की दूरी है.

पपला को पकड़ने की सारी योजनाएं नीमराना थाने में ही बनती थी. इसलिए गनमैन सुधीर को सारी बातें पता चल जाती थीं. पुलिस की योजनाएं लीक होने से पपला पुलिस से और दूर हो जाता था. बाद में सिद्धांत शर्मा एडिशनल एसपी बन कर एसओजी में चले गए. इस दौरान सुधीर नीमराना थाने की क्यूआरटी की गाड़ी का ड्राइवर था.

पपला की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद ही भेद खुलने पर 29 जनवरी को भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी ने सुधीर को निलंबित कर दिया.

पपला से पूछताछ में पुलिस को उस के कुछ साथियों और हथियारों के बारे में पता चला है. पुलिस उन की तलाश कर रही है. रिमांड अवधि पूरी होने पर जिया को अदालत ने 4 फरवरी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया.

पपला को भी अदालत ने 13 दिन का रिमांड पूरा होने पर जेल भेज दिया. जेल से अलवर जिले की मुंडावर थाना पुलिस उसे प्रोडक्शन वारंट पर ले गई.

अपने साथियों द्वारा एके 47 और एके 56 जैसे अत्याधुनिक हथियारों से अंधाधुंध फायरिंग के बाद बहरोड़ थाने से भागा पपला अब बैसाखियों के सहारे चल रहा है. वह जिस बहरोड़ शहर से भागा था, उसी शहर की जेल में पहुंच गया. पुलिस को उस की सुरक्षा की ज्यादा चिंता है.

अभी उस के कई विश्वसनीय साथी फरार हैं. इस के अलावा हरियाणा का चीकू गैंग भी उस की जान का दुश्मन बना हुआ है. इसलिए पुलिस ड्रोन से पपला पर नजर रखे हुए है.

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पुलिस की तमाम चौकसी के बावजूद पपला के भागने का खतरा अभी मंडरा रहा है. 15 फरवरी को उसे बहरोड़ से अलवर जिले की किशनगढ़बास जेल में शिफ्ट किया जा रहा था, तभी 6 संदिग्ध कारें पुलिस के काफिले में घुस गईं. बाद में पुलिस ने इन कारों को पकड़ लिया.

इन में बहरोड़ थाने के हिस्ट्रीशीटर बचिया यादव सहित 24 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि इन लोगों का पपला से कोई संबंध तो नहीं है. 2 बार पहले फरार हो चुके पपला के फिर भागने की आशंका और उस पर दुश्मन गिरोह के मंडराते खतरे को देखते हुए अब उसे अजमेर की हाई सिक्योरिटी जेल में शिफ्ट कर दिया गया है.

पपला के घपले ने जिया को तोड़ दिया है. वह उबर नहीं पा रही है. तलाकशुदा जिया को दूसरी बार प्यार मिला, तो वह खुशियों का संसार बसाने के सपने देखने लगी थी. पपला के धोखे ने उस की दुनिया उजाड़ दी.

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