Funny Story 2025 : मेरा एक प्रेरणास्रोत है. आप कहेंगे- सभी के अपने-अपने प्रेरणास्रोत होते हैं, इसमें नयी बात क्या है? आपकी बात सही है, मगर सुनिए तो, मेरा प्रेरणास्रोत एक ईमानदार बंदर है …मर्कट है.
पड़ गए न आश्चर्य में ? दोस्तों ! अब मनुष्य, मानव , महामानव कहां रहे, कहिए क्या मैं गलत कहता हूं.अब तो प्रेरणा लेने का समय उल्लू, मच्छर, चूहे, श्वान इत्यादि से लेने का आ गया है.
जी हां! मेरी बात बड़ी गंभीर है. मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि पशु- पक्षी हमारे बेहतरीन प्रेरणास्रोत हो सकते हैं. और इसमे ईमानदारी का पुट हो जाए तो फिर बात ही क्या ?
तो, आइये आपको अपने प्रेरणास्रोत ईमानदार बंदर जी से मुलाकात करवाऊं…। आइये, मेरे साथ हमारे शहर के अशोक वाटिका में, जहां बंदर जी एक वृक्ष पर बैठे हुए हैं .
दोस्तों..!यह आम का वृक्ष है. देखिए ! ऊपर एक डाल पर, दूर कहीं, एक बंदर बैठा है. मगर बंदर तो बहुतेरे बैठे हैं. पेड़ पर चंहु और बंदर ही बंदर बैठे हैं. देखो ! निराश न हो…। देखो दूर एक मोटा तगड़ा नाटे कद का बंदर बैठा है न ! मैं अभी उसे बुलाता हूं . -“नेताजी…! नेताजी !!”मैंने जोर की आवाज दी .
वृक्ष की ऊंची डाल पर आम्रकुंज में पके आम खाता और नीचे फेंकता एक बंदर मुस्कुराता नीचे उतर आया- “अरे आप हैं, बहुत दिनों बाद दिखे, कहां थे . उसने मुझे आत्मीयता से गले लगाते हुए कहा.
‘ नेताजी .’ मैंने उदिग्नता से कहा- ‘मैं आप से बड़ा प्रेरणास्रोत ढूंढ रहा था .मगर नहीं मिला. अंततः एक दिन आपके बारे में मित्रों को बताया, तो सभी आपसे मिलने को उत्सुक हुए, देखिए इन्हें भी ले आया हूं .’
बंदर के चेहरे पर मुस्कुराहट घनी हो उठी-” मैं नाचीज क्या हूं. यह तो आप की महानता है जो मुझसे इंप्रेस बारंबार होते हो, मैं तो अपने स्वभाव के अनुरूप इस डाल से उस डाल, इस पेड़ से उस पेड़, उछलता गीत गाता रहता हूं भई..!हमारी इतनी प्रशंसा कर जाते हो कि मैं शर्म से पानी-पानी हो जाता हूं .’ बंदर ने सहज भाव से अपना पक्ष रखा .
-“यही तो गुण हैं जो हमें प्रेरित करता है .सच, ईमान से कहता हूं मैं आज जिस मुकाम पर हूं, वह नेता जी आपकी कृपा दृष्टि अर्थात प्रेरणा का प्रताप है .”
बंदर जी मुस्कुराए- “आप मुझे नेताजी ! क्यों कहते हैं.”
‘ देखिए ! यह सम्मानसूचक संबोधन है.हम आप में नेतृत्व का गुण धर्म देखते हैं और इसके पीछे कोई गलत भावना नहीं है.’ मैंने दीर्घ नि:श्वास लेकर कहा-
‘ अच्छा आपके तो बहुतेरे संगी साथी हो गए हैं .नए नए चेहरे, पुराने नहीं दिख रहे हैं’
‘ मैं आपकी तरह मुड़कर नहीं देखता.’ मैंने हंस कर कहा
‘अच्छा इनका परिचय.’ बंदर जी बोले
‘ ओह माफ करिए नेताजी! ये हैं हमारे पूज्यनीय, महाराज राजेंद्र भैय्या अभी हमारी पार्टी के अध्यक्ष हैं और यह हैं भैय्या लखनानंद शहर के पूर्व मेयर. और और पीछे खड़ी है हमारी बहन उमा देवी .आप पार्टी की महिला विंग की अध्यक्ष है, बाकी कार्यकर्ता हैं जिनका परिचय मैंने चिरपरिचित शैली में हंसते-हंसते कहा.
‘ मगर आपने यह तो बताया नहीं अभी किस पार्टी में है ।’ बंदर जी ने सकुचाते आंखों को गोल घुमाते हुए पूछा ।
‘ अरे मैं यह तो बताना भूल ही गया । क्षमा… नेताजी… क्षमा! मैं इन दिनों भगवाधारी पार्टी का वरिष्ठ नेता हूं .’
‘अरे वाह ! क्या गजब ढातें हो… क्या सचमुच में ।’
‘ जी हां नेताजी, आपसे क्या छुपाना . ‘
-‘क्या बात है… अभी प्रदेश में भगवा पार्टी ही सत्तासीन है न ? बंदर जी ने कहा ।
‘ ‘हां नेताजी, उन्हीं की सरकार है . ‘ मैंने सकुचाकर कहा
‘ वाह ! तुम सचमुच मुझसे इंप्रेस हो यह मैं आज मान गया । समय की नजाकत को ताड़ना और निर्णय लेना कोई छोटी मोटी बात नहीं. मनुष्य का भविष्य इसी पर निर्भर करता है. छोटी सी भूल और जीवन अंधकारमय.’ बंदर जी ने उत्साहित भाव से ज्ञान प्रदर्शित किया.
‘ नेताजी ! आपने पीठ ठोंकी है तो मैं आश्वस्त हुआ कि मैंने सही निर्णय लिया है ।’ मैंने साहस कर कहा.
‘ मगर सतर्क भी रहना, ऐसा नहीं की इसी में रम गये ।’
‘अजी नहीं. मैं स्थिति को सूंघने की क्षमता भी रखता हूं. जैसे ही मुझे अहसास होगा पार्टी का समय अंधकारमय है मैं कुद कर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लूंगा .’
‘ ठीक मेरी तरह .’बंदर जी ने हंसकर कहा और उछलकर वृक्ष की एक मजबूत फलदार डाल पर बैठ गया और मीठा आम तोड़ खाने लगा.
‘ लेकिन नेताजी ! मैं कब तक पार्टियां बदलता रहूंगा. कभी आयाराम कभी गयाराम कभी …. आखिर कब तक…।’
बंदर ने पेड़ से मीठे फल तोड़कर मेरी और उछाले मैंने कैच कर दोस्तों को बांटे और स्वयं भी रस लेकर खाने लगा मेरे प्रेरणा पुरुष बंदर जी… ओह नेता जी के श्रीमुख से स्वर गूंजा- ‘जब तक कुर्सी न मिले तब तक.’ मैं मित्रों सहित बंदर को नमन कर लौट पड़ा.