Imlie की मांग में सिंदूर देखकर मालिनी पूछेगी कई सवाल, तो आदित्य का होगा बुरा हाल

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ में इन दिनों कहानी का ट्रैक आदित्य, इमली और मालिनी के इर्द-गिर्द घुम रही है. शो के लेटेस्ट एपिसोड में धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. जी हां, जैसा कि शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि आदित्य मालिनी को इग्नोर कर रहा है. और वह इस समय सिर्फ और सिर्फ इमली के बारे में सोच रहा है. तो चलिए बताते है शो के अपकमिंग एपिसोड में क्या होने वाला है.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि पंडित भविष्यवाणी करता है कि आदित्य की दो शादियां होंगी. ये सुनकर मालिनी काफी परेशान हो जाती है. दरअसल मालिनी के मन में कई तरह के सवाल आते है कि आखिर आदित्य उससे बात क्यों नहीं करना चाहता है?  और उसकी मां आदित्य के खिलाफ मालिनी को खूब भड़काती है.

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और वह इमली की बेइज्जती करती है तो वहीं आदित्य इमली को मालिनी के घर पर नहीं रहने देता है और उसके साथ वहां से चल जाता है.

आदित्य और इमली, मालिनी के घर से निकल जाते हैं. आदित्य रास्ते में अपने दिल की बात  इमली को बताता है.  आदित्य कहता  है कि वह उससे बहुत प्यार करता है, इमली उस पर भरोसा कर सकती है.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि आदित्य, इमली की मांग में सिंदूर भरेगा. जब मालिनी इमली की भरी हुई मांग देखेगी तो कई सवाल पूछेगी. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या आदित्य और इमली की रिश्ते का पर्दाफाश मालिनी के सामने होता है या नहीं.

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फसल बर्बाद करते आवारा जानवर

प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का मेन किरदार हलकू नीलगायों द्वारा खेत को चर कर बरबाद कर देने के चलते खेतीकिसानी का काम छोड़ कर मजदूर बन जाने का फैसला ले लेता है. यही हालात एक बार फिर किसानों के सामने आ चुके हैं. दलहनी व तिलहनी फसलों की कौन कहे, अब तो गेहूं और धान के खेतों की भी बाड़बंदी करानी पड़ रही है.

अगर किसी किसान को एक एकड़ खेत की बाड़बंदी करानी पड़ती है, तो इस पर कम से कम 40,000 रुपए से ले कर 50,000 रुपए की लागत आ रही है.

राजस्थान के अकेले टोंक जिले में  80 फीसदी से ज्यादा ऐसे खेतों की बाड़बंदी की गई है, जिन में कोई फसल बोई गई है. इस से आम किसानों पर आई इस नई महामुसीबत का आप अंदाजा लगा सकते हैं, जो पिछले 8-10 सालों से किसानों पर आई हुई है.

जंगल महकमे के एक सर्वे के मुताबिक, अकेले टोंक जिले में 5,000 से ज्यादा नीलगाय हैं. इन्होंने तकरीबन 450 गांवों में किसानों को परेशान कर रखा है. इन में से भी 100 गांव ऐसे हैं, जहां नीलगाय हर साल सब से ज्यादा नुकसान करती हैं.

हर साल नीलगायों से रबी व खरीफ सीजन में सालाना 15 करोड़ रुपए के नुकसान का अंदाजा है. ये 6,000 हैक्टेयर इलाके में फसल प्रभावित करती हैं. हालांकि सालाना नुकसान और प्रभावित क्षेत्र को ले कर विभाग की ओर से कभी पूरी तरह से सर्वे नहीं हुआ है. किसान फसल को बचाने के लिए खेतों की तार की बाड़ और परदे लगाने पर ही लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, इस के बावजूद राहत नहीं मिल रही है.

माहिर रामराय चौधरी बताते हैं कि एक नीलगाय की औसत उम्र 7 साल होती है. अपनी तेज रफ्तार और कई फुट लंबी छलांग लगाने वाली नीलगाय आसानी से काबू में नहीं आती है. वहीं गांव वालों ने बताया कि खेतों में तारबंदी में करंट छोड़ने के बाद भी यह पशु अपनी पूंछ को तार पर फेर कर खतरा भांपने में सक्षम हैं.

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गांव तामडि़या में कई किसानों ने गेहूं, सौंफ, जीरा, सरसों व दूसरी फसल वाले खेतों में नीलगाय से बचाव के लिए चारों ओर सफेद रंग की पट्टी लगा रखी है. इस के बावजूद फसल का बचाव नहीं हो पाता है. किसानों को रातभर जागना पड़ता है.

किसान रामप्रसाद ने 2 बीघा खेत के चारों ओर तारबंदी कराई है. 6 फुट ऊंचाई तक की जालियां लगाई गई हैं. इस के बावजूद नीलगाय खेतों में घुस ही जाती हैं. तार लगे होने के बाद भी रामप्रसाद को रात में भी रखवाली करनी पड़ती है.

गौरतलब है कि कुछ साल पहले नीलगाय से फसल खराब होती थी तो कीमत लगा कर मुआवजा देने का नियम था. पर कुछ सालों में कोई रकम नहीं मिली है.

मंदसौर के रेवासदेवड़ा, सीतामऊ के ऐरा, मल्हारगढ़ के बूड़ा, टकराव, चिल्लौद पिपलिया, खड़पाल्या, गरोठ के बर्डियापूना, बर्डियाराठौर, बुगलिया, भालोट, साबाखेड़ा समेत कई गांवों के लोग नीलगाय से बहुत ज्यादा परेशान हैं.

गौभक्ति की देन

यह समस्या काफी हद तक वर्तमान शासकों की गौभक्ति की देन है, जिस के चलते गोवंश की खरीदफरोख्त पर सरकारी आदेश द्वारा रोक लगा दी गई है. पहले किसान परिवारों को अनुपयोगी हो गए गौवंश की बिक्री से कुछ आमदनी हो जाती थी, पर यह न हो पाने के चलते उसे अब अपने ही पशुओं के लिए चारापानी का इंतजाम करना भारी पड़ रहा है.

इस की एक वजह यह भी है कि गेहूं व धान की कटाई कंबाइन मशीनों से होने के चलते गेहूं व धान के फसल अवशेषों का ज्यादातर भाग बरबाद हो जाता है और जो बचता भी है, उसे किसान या तो जला देते हैं या फिर उसे रोटावेटर चलवा कर मिट्टी में मिलवा देते हैं. इस से जहां गेहूं व धान की फसल से खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर पशुओं के चारे की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है.

खेती के पूरी तरह से यंत्र आधारित हो जाने के चलते भी गौवंश अनुपयोगी हो गए हैं. पहले खेती की जुताई, बोआई, सिंचाई से ले कर मड़ाई व खाद्यान्न के परिवहन तक में बैलों का इस्तेमाल होता था. किसान परिवारों में गाय द्वारा बछड़े को जन्म दिए जाने को फायदेमंद माना जाता था, पर अब मामला पूरी तरह से उलट चुका है.

किसान परिवारों की गाय अगर बछिया को जन्म देती है, तब तो किसान दूध के लालच में उस का पालनपोषण करता है. अगर गाय बछड़े को जन्म देती है, तो जब तक गाय दूध देती है तब तक तो किसान उसे घर में रखते हैं, पर जैसे ही गाय दूध देना बंद करती है, तो वे बछड़ों को खुला छोड़ देते हैं.

ऐसे ही बछड़े आगे चल कर आवारा पशुओं के ?ांड में शामिल हो कर किसानों की खेती को चरते हैं और फसल को तहसनहस कर रहे होते हैं.

किसान रामदेव गूजर बताते हैं, ‘‘मैं एक किसान हूं और खेती करता हूं. तकरीबन 15-20 साल पहले तक खेती मु?ो और मेरे परिवार को खिलाती थी, मगर आज खेती मु?ो और मेरे परिवार को खा रही है. मैं और मेरा परिवार खेती और पशुपालन के चलते कर्ज और फिर कर्ज के तले दबता जा रहा है, क्योंकि सरकार की नीतियां अब किसानों के खिलाफ बनती जा रही हैं.’’

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नीलगाय की प्रजाति

यह शोध का विषय है कि जिन नीलगायों की बातें हम अपनी पुरानी पीढ़ी से सुनते आए हैं और जिन के बारे में कथाकार प्रेमचंद की कहानियों में पढ़ा है, वे नीलगाय (वनरोज) इतनी बड़ी संख्या में कहां से आ गई हैं? इन की आबादी इस कदर बढ़ गई है कि इन से खेती की हिफाजत कर पाना बेहद मुश्किल काम बन चुका है. बिना सरकारी इजाजत के इन्हें मारना भी जुर्म है. इस के लिए 4 पन्ने का एक लंबा शासनादेश जारी है.

यह जानवर वनरोज हिरन या बकरी की प्रजाति का है, जो आजकल खेती को खूब बरबाद कर रहा है. गांवदेहात की भाषा में इसे नीलगाय या जंगली गाय कहा जाता है.

पिछले तकरीबन 20 सालों से इन की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई है. इन से खेती को बचाना मुश्किल हो गया है. दरअसल, यह जानवर ?ांड में रहता है और रात में अचानक धावा बोल कर फसलों को चरने के साथ ही उसे बरबाद कर देता है. दलहनी फसलों जैसे अरहर, उड़द, मूंग, व मटर वगैरह.

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सरकारी भाषा में इसे वनरोज कहा जाता है और इसे मारने के लिए एसडीएम से इजाजत लेने पड़ती है. मारने के बाद ग्राम प्रधान व कम से कम

5 लोगों के सामने इसे जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाए जाने की व्यवस्था शासनादेश में दी गई है.

ठोकर: क्या इश्क में अंधी लाली खुद को संभाल पाई

सतपाल गहरी नींद में सोया हुआ था. उस की पत्नी उर्मिला ने उसे जगाने की कोशिश की. वह इतनी ऊंची आवाज में बोली थी कि साथ में सोया उस का 5 साला बेटा जंबू भी जाग गया था. वह डरी निगाहों से मां को देखने लगा था. ‘‘क्या हो गया? रात को तो चैन से सोने दिया करो. क्यों जगाया मुझे?’’ सतपाल उखड़ी आवाज में उर्मिला पर बरस पड़ा.

‘‘बाहर गेट पर कोई खड़ा है. जोरजोर से डोर बैल बजा रहा है. पता नहीं, इतनी रात को कौन आ गया है? मुझे तो डर लग रहा है,’’ उर्मिला ने घबराई आवाज में बताया. ‘‘अरे, इस में डरने की क्या बात है? गेट खोल कर देख लो. तुम सतपाल की घरवाली हो. हमारे नाम से तो बड़ेबड़े भूतप्रेत भाग जाते हैं.’’

‘‘तुम ही जा कर देखो. मुझे तो डर लग रहा है. पता नहीं, कोई चोरडाकू न आ गया हो. तुम भी हाथ में तलवार ले कर जाना,’’ उर्मिला ने सहमी आवाज में सलाह दी. सतपाल ने चारपाई छोड़ दी. उस ने एक डंडा उठाया. गेट के करीब पहुंच कर उस ने गेट के ऊपर से झांक कर देखा, तो कांप उठा. बाहर उस की छोटी बहन खड़ी सिसक रही थी.

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सतपाल ने हैरानी भरे लहजे में पूछा, ‘‘अरे लाली, तू? घर में तो सब ठीक है न?’’

लाली कुछ नहीं बोल पाई. बस, गहरीगहरी हिचकियां ले कर रोने लगी. सतपाल ने देखा कि लाली के चेहरे पर मारपीट के निशान थे. सिर के बाल बिखरे हुए थे.

सतपाल लाली को बैडरूम में ले आया. वह बारबार लाली से पूछने की कोशिश कर रहा था कि ऐसा क्या हुआ कि उसे आधी रात को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा? उर्मिला ने बुरा सा मुंह बनाया और पैर पटकते हुए दूसरे कमरे में चली गई. उसे लाली के प्रति जरा भी हमदर्दी नहीं थी.

लाली की शादी आज से 10 साल पहले इसी शहर में हुई थी. तब उस के मम्मीपापा जिंदा थे. लाली का पति दुकानदार था. काम अच्छा चल रहा था. घर में लाली की सास थी, 2 ननदें भी थीं. उन की शादी हो चुकी थी. लाली के पति अजय ने उसे पहली रात को साफसाफ शब्दों में समझा दिया था कि उस की मां बीमार रहती हैं. उन के प्रति बरती गई लापरवाही को वह सहन नहीं करेगा.

लाली ने पति के सामने तो हामी भर दी थी, मगर अमल में नहीं लाई. कुछ दिनों बाद अजय ने सतपाल के सामने शिकायत की.

जब सतपाल ने लाली से बात की, तो वह बुरी तरह भड़क उठी. उस ने तो अजय की शिकायत को पूरी तरह नकार दिया. उलटे अजय पर ही नामर्दी का आरोप लगा दिया.

अजय ने अपने ऊपर नामर्द होने का आरोप सुना, तो वह सतपाल के साथ डाक्टर के पास पहुंचा. अपनी डाक्टरी जांच करा कर रिपोर्ट उस के सामने रखी, तो सतपाल को लाली पर बेहद गुस्सा आया. उस ने डांटडपट कर लाली को ससुराल भेज दिया. लाली ससुराल तो आ गई, मगर उस ने पति और सास की अनदेखी जारी रखी. उस ने अपनी जिम्मेदारियों को महसूस नहीं किया. अपने दोस्तों के साथ मोबाइल पर बातें करना जारी रखा.

आखिरकार जब अजय को दुकान बंद कर के अपनी मां की देखभाल के लिए घर पर रहने को मजबूर होना पड़ा, तब उस ने अपनी आंखों से देखा कि लाली कितनी देर तक मोबाइल फोन पर न जाने किसकिस से बातें करती थी. एक दिन अजय ने लाली से पूछ ही लिया कि वह इतनी देर से किस से बातें कर रही थी?

पहले तो लाली कुछ भी बताने को तैयार नहीं हुई, पर जब अजय गुस्से से भर उठा, तो लाली ने अपने भाई सतपाल का नाम ले लिया. उस समय तो अजय खामोश हो गया, क्योंकि उसे मां को अस्पताल ले जाना था. जब वह टैक्सी से अस्पताल की तरफ जा रहा था, तब उस ने सतपाल से पूछा, तो उस ने इनकार कर दिया कि उस के पास लाली का कोई फोन नहीं आया था.

अजय 2 घंटे बाद वापस घर में आया, तो लाली को मोबाइल फोन पर खिलखिला कर बातें करते देख बुरी तरह सुलग उठा था. उस ने तेजी से लपक कर लाली के हाथ से मोबाइल छीन कर 4-5 घूंसे जमा दिए. लाली चीखतीचिल्लाती पासपड़ोस की औरतों को अपनी मदद के लिए बुलाने को घर से बाहर निकल आई.

अजय ने उसी नंबर पर फोन मिलाया, जिस पर लाली बात कर रही थी. दूसरी तरफ से किसी अनजान मर्द की आवाज उभरी. अजय की आवाज सुनते ही दूसरी तरफ से कनैक्शन कट गया.

अजय ने दोबारा नंबर मिला कर पूछने की कोशिश की, तो दूसरी तरफ से मोबाइल स्विच औफ हो गया. अजय ने लाली से पूछा, तो उस ने भी सही जवाब नहीं दिया.

अजय का गुस्से से भरा चेहरा भयानक होने लगा. उस के जबड़े भिंचने लगे. वह ऐसी आशिकमिजाजी कतई सहन नहीं करेगा. लाली घबरा उठी. उसे लगा कि अगर वह अजय के सामने रही और किसी दोस्त का फोन आ गया, तो यकीनन उस की खैरियत नहीं. उस ने उसी समय जरूरी सामान से अपना बैग भरा और अपने मायके आ गई.

लाली ने घर आ कर अजय और उस की मां पर तरहतरह के आरोप लगा कर ससुराल जाने से मना कर दिया. कई महीनों तक वह अपने मायके में ही रही. अजय भी उसे लेने नहीं आया. इसी तनातनी में एक साल गुजर गया. आखिरकार अजय ही लाली को लेने आया. उस ने शर्त रखी कि लाली को मन लगा कर घर का काम करना होगा. वह पराए मर्दों से मोबाइल फोन पर बेवजह बातें नहीं करेगी.

सतपाल ने बहुत समझाया, मगर लाली नहीं मानी. लाली का तलाक हो गया. सतपाल ने उस के लिए 2 लड़के देखे, मगर वे उसे पसंद नहीं आए.

दरअसल, लाली ने शराब का एक ठेकेदार पसंद कर रखा था. उस का शहर की 4-5 दुकानों में हिस्सा था. वह शहर का बदनाम अपराधी था, मगर लाली को पसंद था. काफी अरसे से लाली का उस ठेकेदार जोरावर से इश्क चल रहा था. जोरावर सतपाल को भी पसंद नहीं था, मगर इश्क में अंधी लाली की जिद के सामने वह मजबूर था. उस की शादी जोरावर से करा दी गई.

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जोरावर शराब के कारोबार में केवल 10 पैसे का हिस्सेदार था, बाकी 90 पैसे दूसरे हिस्सेदारों के थे. उस की कमाई लाखों में नहीं हजारों रुपए में थी. वह जुआ खेलने और शराब पीने का शौकीन था. वह लाली को खुला खर्चा नहीं दे पाता था. अब तो लाली को पेट भरने के भी लाले पड़ गए. उस ने जोरावर से अपने खर्च की मांग रखी, तो उस ने जिस्म

बेच कर पैसा कमाने का रास्ता दिखाया. लाली ने मना किया, तो जोरावर ने घर में ही शराब बेचने का रास्ता सुझा दिया. अब लाली करती भी क्या. अपना मायका भी उस ने गंवा लिया था. जाती भी कहां? उस ने शराब बेचने का धंधा शुरू कर दिया. उस का जवान गदराया बदन देख कर मनचले शराब खरीदने लाली के पास आने लगे. उस का कारोबार अच्छा चल निकला.

जोरावर को लगा कि लाली खूब माल कमा रही है, तो उस ने अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया. लाली ने पैसा देने से इनकार कर दिया. उस रात दोनों में झगड़ा हुआ. लाली जमा किए तमाम रुपए एक पुराने बैग में भर कर घर से भाग निकली. जोरावर ने देख लिया था. वह भी पीछेपीछे तलवार हाथ में लिए भागा. वह किसी भी सूरत में लाली से रुपए लेना चाहता था.

जोरावर नशे में था. उस के हाथों में तलवार चमक रही थी. वह उस की हत्या कर के भी सारा रुपया हासिल करना चाहता था. लाली बदहवास सी भागती हुई सड़क पर आ गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो जोरावर तलवार लिए उस की तरफ भाग रहा था. उस ने बचतेबचाते सड़क पार कर ली.

लेकिन जब जोरावर सड़क पार करने लगा, तो वह किसी बड़ी गाड़ी की चपेट में आ गया और मारा गया. रात के 3 बज रहे थे. किसी ने भी जोरावर की लाश की तरफ ध्यान तक नहीं दिया.

सतपाल के यहां आ कर लाली ने रोतेसिसकते अपनी दुखभरी दास्तान सुनाई, तो सतपाल की भी आंखें भर आईं. मगर उसी पल उस ने अपनी बहन की गलतियां गिनाईं, जिन की वजह से उस की यह हालत हुई थी. ‘‘हां भैया, अजय का कोई कुसूर नहीं है. मैं ने ही अपनी गलतियों की सजा पाई है. अजय ने तो हर बार मुझे समझाने, सही रास्ते पर लाने की कोशिश की थी, इसलिए अब भी मैं अजय के पास ही जाना चाहती हूं,’’ लाली ने इच्छा जाहिर की.

‘‘अब तुझे वह किसी भी हालत में नहीं अपनाएगा. उस ने तो दूसरी शादी भी कर ली होगी,’’ सतपाल ने अंदाजा लगाया. ‘‘बेशक, उस ने शादी कर ली हो. उस के घर में नौकरानी बन कर रह लूंगी. मुझे अजय के घर जाना है, वरना मैं खुदकुशी कर लूंगी,’’ लाली ने अपना फैसला सुना दिया.

सतपाल बोला, ‘‘ठीक है लाली, पहले तू 4-5 दिन यहीं आराम कर.’’ एक हफ्ते बाद सतपाल ने लाली

को मोटरसाइकिल पर बैठाया और दोनों अजय के घर की तरफ चल दिए. अजय घर पर अकेला ही सुबह का नाश्ता तैयार कर रहा था. सुबहसवेरे लाली को अपने भाई सतपाल के साथ आया देख वह बुरी तरह भड़क उठा.

दोनों को धक्के मार कर घर से बाहर निकालते हुए अजय ने कहा, ‘‘अब तुम लोग मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने आए हो. चले जाओ यहां से. अब तो मेरी मां भी मर चुकी है. मेरी पत्नी तो बहुत पहले मर चुकी थी. अब मेरा कोई नहीं है.’’

सतपाल ने लाली को घर चलने को कहा, तो वह वहीं पर रहने के लिए अड़ गई. सतपाल अकेला ही घर चला गया. लाली सारा दिन भूखीप्यासी वहीं पर खड़ी रही. रात को अजय वापस आया. लाली को खड़ा देख वह बेरुखी से बोला, ‘‘अब यहां खड़े रहने का कोई फायदा नहीं है.’’

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‘‘अजय, मैं ने तो अपनी गलतियों को पहचाना है और मैं तुम्हारी सेवा करने का मौका एक और चाहती हूं.’’ मगर अजय ने उस की तरफ ध्यान नहीं दिया और घर का दरवाजा बंद कर लिया. अगली सुबह अजय ने दरवाजा खोला, तो लाली को बाहर बीमार हालत में देख चौंक उठा. वह बुरी तरह कांप रही थी. वह उसे तुरंत डाक्टर के पास ले गया. बीमार लाली को देख कर अजय को लगा कि ठोकर खा कर लाली सुधर गई है, इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया.

उड़ान: क्या था जाहिदा का फैसला

आज फिर जाहिदा को देखने आया लड़का शकील मुंह बना कर बाहर निकल गया. उस के साथ आए उस के मांबाप ने घर लौट कर लड़की पसंद नहीं आने का जवाब भिजवा दिया.

पिछले तकरीबन 5-6 सालों से यही सिलसिला चल रहा था. इस बीच 17 लड़के वालों ने जाहिदा पर ‘नापसंद’ की मुहर लगा दी थी.

लेकिन आज तो जाहिदा का सब्र जवाब दे गया. लड़के वालों के घर से बाहर निकलते ही वह भाग कर अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी कई घंटों तक रोती रही.

जाहिदा की बेवा मां शरीफन उस के लिए काबिल दूल्हा ढूंढ़ढूंढ़ कर थक गई थीं. जो भी लड़का आता जाहिदा का सांवला रंग देख कर उलटे पैर लौट जाता. नौबत यहां तक आ गई थी कि 10वीं जमात फेल और आटोरिकशा चलाने वाले लड़कों तक ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया था.

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साइकिल रिपेयर करने की दुकान से परिवार पालने वाले जाहिदा के अब्बा नासिर खां की मौत के बाद बेवा हुई शरीफन ने बामुश्किल अपनी 3 बेटियों को पालपोस कर बड़ा किया था. उन्होंने सिलाईकढ़ाई कर के जैसेतैसे 2 बेटियों अंजुम और जरीना की शादी भी की लेकिन सब से बड़ी बेटी जाहिदा का रिश्ता तय करने में उन्हें बहुत मुश्किलें आ रही थीं. उस का सांवला रंग हमेशा रिश्ता होने में आड़े आ जाता था.

हर बार नापसंद किए जाने के बाद जाहिदा को गहरा सदमा लगता और वह घंटों तक रोती रहती.

जाहिदा बचपन से ही पढ़नेलिखने में काफी होशियार थी. उस ने 10वीं जमात से ले कर बीएससी तक का इम्तिहान फर्स्ट डिविजन में पास किया था. उस की अम्मी शरीफन मामूली पढ़ीलिखी घरेलू औरत थीं. लेकिन वक्त की ठोकरों ने उन्हें मजबूत बना दिया था. गुजरे सालों में जाहिदा के रिश्ते में आ रही दिक्कतों की वजह से वे हमेशा फिक्र में डूबी रहती थीं.

कमरे से बेटी जाहिदा की सिसकियों की आ रही आवाज सुन कर शरीफन उस की फूटी किस्मत को कोस रही थीं.

तभी थोड़ी देर बाद अचानक कमरे से जाहिरा की आवाज सुनाई दी, ‘‘अम्मी, इधर आओ. मुझे आप से कुछ बात करनी है.’’

कमरे में झाड़ू लगाती अम्मी ने पूछा, ‘‘अरी बेटी, क्या बात है? थोड़ा रुक, मैं झाड़ू लगा कर आती हूं तेरे पास.’’

बहुत देर तक अम्मी को आते नहीं देख जाहिदा कमरे से धीरेधीरे चल कर उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. बड़ी देर तक रोते रहने से उस की आंखें सूजी हुई थीं.

जाहिदा कहने लगी, ‘‘अम्मी, मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं तब तक शादी नहीं करूंगी जब तक मैं कोई बड़ा मुकाम हासिल न कर लूं.

‘‘मैं समाज को कुछ बन कर दिखाना चाहती हूं ताकि दकियानूसी सोच में जकड़ी इस कौम को पता चले कि तन की खूबसूरती के सामने काबिलीयत और मन की खूबसूरती में क्या फर्क है…’’

जाहिदा बोले जा रही थी, ‘‘अम्मी, लोग किसी इनसान के सांवले रंग पर उस को बेइज्जत क्यों करते हैं? क्या गोरा रंग होने से ही लड़की में सभी खूबियां आ जाती हैं?’’

फिर आखिर में जाहिरा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘सुनो अम्मी, अब आप मेरे लिए रिश्ते देखना बंद कर दें. अब मेरी जिंदगी का एक ही मकसद है कि मुझे सरकारी अफसर बन कर दिखाना है. इस की तैयारी के लिए मुझे दिल्ली पढ़ाई करने जाना पड़ेगा.’’

अपने सामने खड़ी बेटी के इस फैसले से परेशान शरीफन ने कहा, ‘‘लेकिन बेटी, तू सोच तो सही कि आखिर मैं इतनी महंगी पढ़ाई के लिए इतने सारे पैसे कहां से लाऊंगी?’’

10-15 दिन तो पैसों के जुगाड़ की उधेड़बुन में गुजर गए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. एक दिन अचानक जयपुर सचिवालय में सैक्शन अफसर के पद पर काम कर रहे शरीफन के छोटे भाई शहजाद अली मिलने आए.

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शरीफन ने भाई को जाहिदा के फैसले के बारे में बताते हुए उन से मदद करने की गुजारिश की.

भानजी के बुलंद इरादों और लगन की बातें सुन कर शहजाद ने बहन से फौरन कहा, ‘‘आप बिलकुल बेफिक्र हो जाओ. जाहिदा बेटी की पढ़ाई की जिम्मेदारी अब उस के मामा की है. मैं सब संभाल लूंगा. देखना हमारा बेटी हमारे खानदान का नाम रोशन करेगी.’’

इस बीच 5 साल गुजर गए. एक दिन दोपहर बाद शरीफन के घर के सामने लालबत्ती लगी 2 कारों के साथ पुलिस और कई सरकारी जीपें आ कर रुकीं. पहली कार से एक गोराचिट्टा नौजवान उतर कर आगे आया और उस ने झुक कर शरीफन के पैर छू कर नमस्कार किया. तभी पिछली कार से उतर कर जाहिदा ने शरीफन को गले लगा लिया.

जाहिदा बोली, ‘‘अम्मी देखो, आप की बेटी एसडीएम बन गई है. मैं ने अपना मुकाम हासिल कर लिया है. लेकिन अभी मेरी उड़ान बाकी हैं.

‘‘अम्मी, ये हैं आप के दामाद सुरेश. ये यहां के जिला समाज कल्याण अधिकारी हैं,’’ जाहिदा ने पास खड़े अपने पति सुरेश का परिचय कराते हुए कहा.

थोड़ी देर रुक कर जाहिदा ने कहा, ‘‘अम्मी, अभी हमें पास के गांव में दौरे पर जाना है. इजाजत दें. बाद में वक्त निकाल कर मिलने आएंगे.’’

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शरीफन दूर जाती गाडि़यों के काफिले को बड़ी देर तक खड़ी देखती रहीं. अपनी बेटी की कामयाबी देख उन की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े.

Litti Chokha Trailer: ‘लिट्टी चोखा’ में भूत बनकर एंटरटेन करेंगे Khesari Lal Yadav, देखें Video

भोजपुरी सिनेमा के मशहूर एक्टर खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav) और काजल राघवनी (Kajal Raghwani) की नयी फिल्म ‘लिट्टी चोखा’ का ट्रेलर यूट्यूब पर लांच कर दिया गया है. इस फिल्म के ट्रेलर को दर्शकों को काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है.

बता दें कि यूट्यूब पर इस ट्रेलर को अब तक 3,258,866 व्यूज मिल चुके हैं. फैंस को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार था.

‘बाबा मोशन पिक्चर प्रा.लि.’ के बैनर तले फिल्म ‘लिट्टी चोखा‘ में मुख्य भूमिका में खेसारीलाल यादव, काजल राघवानी, मनोज सिंह टाइगर, पदम सिंह, प्रगति भट्ट, प्रीति सिंह, श्रुति राव, उत्कर्ष, यादवेन्द्र यादव, देव सिंह, करण पांडे, प्रकाश जैश हैं. फिल्म की सह निर्माता अनीता शर्मा और पदम सिंह हैं. फिल्म के संगीतकार ओम झा हैं.

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इस फिल्म का निर्देशन पराग पाटिल ने किया है जबकि इसका निर्माण प्रदीप के शर्मा द्वारा किया गया है. इस ट्रेलर में खेसारी और काजल की रोमांटिक केमिस्ट्री काफी अच्छी लग रही है.

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Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah की ‘बबीता जी’ ने बयां की दर्दभरी दास्तान, कहा ‘कोचिंग टीचर ने मेरे साथ की गंदी हरकत’

टीवी का मशहूर कॉमेडी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की बबीता जी यानी मुनमुन दत्ता इन दिनों सुर्खियों में छायी हैं. और वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. आए दिन वह अपने लाइफ से जुड़े पलों को फैंस के साथ शेयर करती हैं.

तो अब मुनमुन दत्ता ने खुद के साथ हुई घटना के बारे में खुलकर बताया है जिससे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. रिपोर्ट्स के अनुसार मुनमुन दत्ता ने बताया कि यौन शोषण के बारे में लिखते समय मेरी आंखों में आंसू आ जाते है. जब मैं एक छोटी बच्ची थी, मैं अपने पड़ोस के एक अंकल से बहुत डरती थी. मुझे उनकी आंखों से बहुत डर लगता था. वो अंकल हमेशा मौके की तलाश में रहते थे.

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खबरों के अनुसार मुनमुन दत्ता ने ये भी कहा कि  ये बात मैं किसी से नहीं कह पाई. मेरे कजिन्स की निगाहें मुझ पर रहती थीं. जबकि वो खुद लड़कियों के पिता थे.

उन्होंने ये भी बताया कि एक आदमी ने मुझे उस समय देखा था जब मैं पैदा हुई थी और उसी आदमी ने 13 साल की उम्र में मुझे गलत तरीके से छूने की कोशिश की थी. मेरे कोचिंग टीचर ने मेरी पैंट में हाथ डाल दिया था और मैंने उस टीचर को राखी बांधी थी.

 

खबर ये भी आ रही है कि मुनमुन दत्ता ने कहा है कि मेरे साथ इस तरह की अनेक घटनाएं हुई हैं क्योंकि उस समय मैं बहुत छोटी थी. पता नहीं माता पिता ये बात क्यों नहीं समझ पाते हैं कि उनके बच्चों के साथ क्या हो रहा है. उन्होंने आगे कहा कि आज मैं गर्व के साथ ये कह सकती हूं कि मैं एक महिला हूं.

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Imlie: क्या आदित्य और मालिनी की शादी टूट जाएगी, आएगा नया ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ में लव ट्रैंगल का ट्रैक चल रहा है इससे कहानी में नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का  फुल डोज  मिल रहा है. शो में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि आदित्य खोया-खोया सा रहता है और मालिनी ये बात नहीं समझ पा रही है कि आखिर आदित्य को हुआ क्या है.

आदित्य चाहकर भी अपने मन की बात भी मालिनी से शेयर नहीं कर पा रहा है, वहीं आदित्य के इस बिहेव से  मालिनी परेशान नजर आ रही है. सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि मालिनी अपने रिश्ते को लेकर कमरे में आदित्य से बात करती है, वह कहती है कि अब आदित्य ने उससे अच्छे से बात करना बंद कर दिया है.

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वह कहती है न ही आदित्य मालिनी को फोन करता है और न ही उस पर ध्यान देता है. मालिनी ये भी कहती है कि वो आदित्य को बहुत मिस करती है. ये बात सुनकर आदित्य इमोशनल हो जाता है, और मालिनी उसके करीब आने की कोशिश करती है, तभी वहां इमली आ जाती है.

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मालिनी, इमली को देखकर नाराज होती है और कहती है कि किसी भी पति-पत्नी के कमरे में आने से पहले नॉक कर लिया करो. इतना ही नहीं, मालिनी उसे फटकार भी लगाती है.

सीरियल के पिछले एपिसोड में आपने देखा कि होली के दिन आदित्य, इमली को अपने घर ले आता है. उसे देखकर घरवाले बहुत खुश होते है. लेकिन मालिनी की मां अनु, इमली को खूब खरी-खोटी सुनाती है. अनु को लगता है कि आदित्य मालिनी को धोखा दे रहा है.

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कोरोना: तंत्र मंत्र और हवन का ढोंग

सच तो यह है कि भारत भूमि की हवा कुछ ऐसी है कि यहां हर चीज में ढोंग शुरू हो जाता है. कोरोना कोविड 19 की दूसरी लहर के साथ राजधानी रायपुर में  हो रहा तंत्र मंत्र पूजन हवन यह बताता है कि जब राजधानी का यह हालो- हवाल है तो गांव कस्बे में कैसे अशिक्षा और अंधविश्वास की चपेट में लोगों को ठगा जा रहा है.

कोरोना कोविड-19 की हवा क्या चली अंधविश्वास की लहर दौड़ पड़ी है. जो बताती है कि किस तरह हमारे यहां आज भी अनपढ़ तो अनपढ़ पढ़े लिखे लोग भी तंत्र मंत्र हवन, पूजा के फंदे में फंसे हुए हैं.

दरअसल, अंधविश्वास के इस मनोविज्ञान को हम बहुत समझदारी और होशियारी से ही जान समझ सकते हैं. अन्यथा इनका संजाल कुछ ऐसा है कि कोई बच नहीं सकता.

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यही कारण है कि जब कोरोना कोविड-19 की दूसरी लहर उठी है तो मानो हवन पूजा तंत्र मंत्र करने वालों की दुकानदारी अपने सबाब पर  है. क्योंकि हमारे यहां शिक्षित वर्ग  भी अंधविश्वास के फेर में फंस  रूपए पैसे खूब लूटाता है. इसी का लाभ उठाते हुए गेरुआ वस्त्र धारी और काले वस्त्र धारी तंत्र और मंत्र की झूठी कहानियां गढ़ कर लोगों के जेब खाली कर रहे हैं.

विगत दिनों छत्तीसगढ़ के रायपुर में संपूर्ण विश्व से कोरोना महामारी का नाश करने के लिए एक बड़े धार्मिक संगठन परिवार के सदस्यों ने  अपने-अपने घर में यज्ञ करके आहुति दी.महामृत्युजंय मंत्र और सूर्य मंत्र के उच्चारण से आहुति देकर सभी जाति, धर्म, पंथ के लोगों के लिए प्रार्थना की. पीले कपड़े पहनने वाला यह धार्मिक परिवार कहता है कि विश्वव्यापी हवन, यज्ञ अभियान के तहत छत्तीसगढ़ के 30 हजार से अधिक परिवारों में हवन का आयोजन किया गया. अंधविश्वास यह की इसके परिणाम स्वरूप कोरोना कोविड-19 काबू में आ जाएगा. कुल मिलाकर  कोरोना काबू में आए या ना आए मगर धार्मिक दुकान चलाने वालों का धंधा आज भी बड़ा चोखा चल रहा है.

मंत्र तंत्र का चोखा धंधा

केंद्र सरकार, राज्य सरकार और प्रशासनिक अमला कोरोना संक्रमण से लड़ने की बहुतेरी कोशिशें कर रही हैं. फिर भी  दोबारा कोरोना वायरस बड़ी तेजी से फैल रहा है. इसलिए अब धार्मिक गतिविधियां की भी मानो बाढ़ आ गई है . पंडे पुजारी कहते है कि  हमारे मंत्र हवन से प्रदेशवासियों को कोरोना से राहत मिलेगी.

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स्वामी राघेश्वरा नंद के मुताबिक कोरोना के लिए हम लगातार हवन कर रहे है. पुराणों के अनुसार भी किसी गंभीर बीमारी में जाप करना लाभदायक  है. इसलिए हमने तय किया कि जाप किया जाए. जाप में महामृत्युंजय मंत्र, मूल रामायण का पाठ, बगलामुखी का मंत्र और नवग्रहों के मंत्र का जाप किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि भगवान शिव के मंत्रों का उच्चारण कर हवन किया जाता है. 9 पंडितों ने मिलकर प्रतिदिन 11 हजार जाप करने का लक्ष्य रखा है. इस जप का समापन रामनवमी के दिन किया जाएगा. इससे पहले भी रायपुर में कोरोना भगाने के लिए हवन और पूजा अर्चना किया जा चुका है.

छत्तीसगढ़ में यह रिपोर्ट लिखते वक्त कोरोना के 5 हजार 250 नए कोरोना पॉजिटिव मरीज़ सामने आए हैं. इस संक्रमण से 32 लोगों की मौत हुई है. हालांकि 2 हजार 918 मरीज़ स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज किए गए हैं. रायपुर में 1 हजार 213 कोरोना मरीज मिले थे और 14 लोगों की जान गई है.  दरअसल,कुछ लोगों  को अपने धंधे से मतलब है और यह धंधा ऐसा है जो पुरातन काल से चला रहा है और हमारे यहां वोटों की राजनीति के कारण कोई इन पर अंकुश लगाने वाला भी नहीं है. ऐसे में आज जबकि सारी दुनिया कोरोना से त्रस्त है कथित  साधु संत को मौका मिल गया है जमकर रुपए बनाने का.

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देश में जरूरत है डाक्टरों की!

नतीजा यह हुआ कि उस की पत्नी भी नौसिखिया नीमहकीम के हाथों मारी गई और बच्चा भी. अगर कहीं यह काम करने वाला राजेंद्र शुक्ला की जगह रहमान होता तो अब तक उत्तर प्रदेश में कोहराम मच चुका होता पर अब यह कोने में रह जाने वाली खबर बन कर रह गई. एक औरत मर गई, एक बच्चा मर गया, एक मर्द बरसों अकेला रह जाएगा. राजेंद्र शुक्ला 10-20 दिन जेल में रह कर बाहर आ जाएगा क्योंकि वह देशभक्तों में से है, टुकड़ेटुकड़े गैंग का या खालिस्तानीपाकिस्तानी नहीं.

देश को असल में जरूरत है डाक्टरों की, अस्पतालों की, नर्सिंगहोमों की पर बन रहे हैं भगवा पंडितपुजारी, मंदिर और आश्रम. गांवगांव का दौरा कर लो. सब से बड़ी चीज जो बनी दिखेगी वह अस्पताल तो नहीं होगा, मंदिर होगा. स्कूल जरूर होंगे क्योंकि आजादी के बाद सरकारों ने चप्पेचप्पे पर स्कूल खोले मगर उन में घुस गए ऐसे टीचर जो पाठ पढ़ाते हैं कि भजन करो, योग करो, ठीक रहोगे. यह गलती थी. पढ़ाना था रोजमर्रा की तकनीक, हिसाब रखना, लिखना, सेहत का ध्यान रखना, अपने हकों के बारे में कैसे जागें बताना, यह सब न कर के पहले ही प्रार्थना में कह दिया जाता है कि हमें तो पूजापाठ पर भरोसा है.

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बच्चों को शुरू से नीमहकीमों के पैरों में बैठने की आदत डाल दी जाती है चाहे ये नीमहकीम राजनीति के हों या सेहत और इलाज के. जो मैडिकल कालेज खुल रहे हैं उन में भी मंदिर बन रहे हैं. मैडिकल के छात्रों को भी सिखा दिया जाता है कि मरीज को कह दो कि दवा तो ले पर दुआ भी करे यानी अगर गलत दवा दी, कुछ नहीं हुआ या खराब हुआ तो चूक दुआ में थी. डाक्टर साफ बच गया. कौन डाक्टर ऐसे शौर्टकट नहीं अपनाएगा.

और ऊपर से अगर सफेद कोट पहन लिया जाए तो किसी को भी डाक्टर मान लिया जाता है जैसे हर भगवा कपड़े वाले को शांत, ईमानदार, भगवान का पक्का एजेंट मान लिया जाता है. सफेद कोट वाले भी और भगवा कुरते वाले भी पैसा पूरा लेते हैं पर करते न के बराबर हैं. इस राजाराम और उस की बीवी पूनम के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. वे सफेद कोट के झांसे में आ गए और शायद और कहां जाते. शायद वही सब से पास एकलौता अस्पताल या नर्सिंगहोम था. मंदिर थोड़े ही जाना था जो हर नुक्कड़ पर मिल जाएंगे.

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यह अभी जनता की समझ में नहीं आएगा कि मंदिरोंमसजिदों की जरूरत नहीं, अस्पतालों की जरूरत है. कोविड-19 ने बता दिया है कि सेहत कितनी जरूरी है. कब कैसी बीमारियां आ सकती हैं जो मंदिरों के दरवाजे भी बंद करवा सकती हैं, पता नहीं. सरकार तो चेतेगी नहीं. उस का तो लक्ष्य ही दूसरा है. यह काम तो जनता को खुद करना होगा. सरपंच, मेयर का काम अपने इलाकों में अस्पताल बनवाने के लिए चंदा जमा करना होना चाहिए. यह सब से ज्यादा जरूरी है.

जातजमात की बैठकें- नेता बनने की जोर आजमाइश

लेखक- धीरज कुमार

बिहार सरकार ने घोषणा कर दी है कि साल 2021 के अप्रैल महीने में पंचायत चुनाव होंगे. हालांकि अभी तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि अप्रैलमई तक चुनाव करा लिए जाएंगे.

पंचायत चुनाव का बिगुल बजते ही गांवगांव में चुनाव की सरगर्मी तेज होने लगी है. लोग अपनेअपने कुनबे में चर्चा करने लगे हैं. साथ ही, कहींकहीं तो लोग जातीय बैठकें, सम्मेलन करना भी शुरू कर चुके हैं.

चुनाव आयोग ने घोषणा कर रखी है कि बिहार में पंचायत चुनाव ईवीएम मशीन से ही होंगे. सरकार ने इलैक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन खरीदने के लिए 122 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं. ऐसा लग रहा था कि ईवीएम खरीद से संबंधित मामला कोर्ट में जाने के चलते इस बार भी सरकार बैलेट पेपर पर ही चुनाव कराएगी, लेकिन सरकार ने 90,000 इलैक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन खरीदने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है.

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बिहार में पंचायती राज व्यवस्था में तकरीबन 6 पदों के लिए चुनाव किए जाने हैं. इन में जिला परिषद अध्यक्ष, पंचायत समिति प्रमुख, मुखिया, वार्ड सदस्य, पंच, सरपंच आदि पद शामिल हैं. इन जीते हुए प्रतिनिधियों में से जिला परिषद उपाध्यक्ष, उपमुखिया, पंचायत समिति उपप्रमुख आदि का चयन चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है.

राज्य चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार पंचायत चुनाव में लगभग 10 लाख लोग अपना हाथ आजमाएंगे. इन में तकरीबन 5 लाख लोग नए उम्मीदवार खड़े होने की उम्मीद है.

बिहार की 8,387 ग्राम पंचायतों में चुनाव किए जाने हैं, इसलिए पूरे राज्य में तकरीबन 8,387 पद पर मुखिया, पंच, सरपंच वगैरह उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा.

तकरीबन 1,14,667 वार्ड सदस्यों का चयन किया जाएगा. पंचायत समिति सदस्यों के 11,491 पदों पर चुनाव किए जाएंगे, जबकि जिला परिषद सदस्यों के 1,161 पद के लिए चुनाव किए जाने हैं.

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बिहार में अभी पंचायत चुनाव में दूसरे राज्यों की तरह राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करती हैं. अभी तक चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार दलरहित और पार्टीरहित ही होते हैं.

वैसे देखा जाए तो काम तो कार्यरत सरकार के अधीन ही करना पड़ता है. कार्यरत सरकार ही उन के लिए योजनाएं वगैरह बनाती है, इसीलिए इस चुनाव में स्थानीयता का असर ज्यादा रहता है.

बिहार सरकार ने पंचायती राज में चुने हुए उम्मीदवारों का वेतन पहले से ही तय कर रखा है, जिस में जिला परिषद प्रमुख को 12,000 रुपए दिए जाते हैं, वहीं जिला परिषद उपाध्यक्ष और पंचायत समिति सदस्य को 10,000 रुपए मिलते हैं. पंचायत समिति उपाध्यक्ष को 5,000 रुपए दिए जाते हैं.

मुखिया, सरपंच, जिला परिषद सदस्यों को 2,500 रुपए मासिक वेतन के रूप में मिलते हैं. उपमुखिया और उपसरपंच को 1,200 रुपए दिए जाते हैं.
पंचायत समिति सदस्य को 1,000 रुपए तय किए गए हैं. वार्ड सदस्य और पंच को 500-500 रुपए हर महीने दिए जाते हैं.

बिहार के रोहतास जिले के डेहरी ब्लौक की पहलेजा पंचायत के वर्तमान मुखिया प्रमोद कुमार सिंह का कहना है, ‘‘सरकार ने भले ही पंचायत प्रतिनिधियों का वेतन तय कर दिया है, लेकिन वह उन्हें समय से वेतन नहीं देती है. अभी भी मुखिया और वार्ड का पैसा तकरीबन डेढ़ साल से बकाया है.

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‘‘दरअसल, मुखिया को जो अनुदान अपने क्षेत्र में काम कराने के लिए मिलता है, उस का 80 फीसदी वार्ड सदस्यों के खाते में ट्रांसफर करना होता है यानी पंचायत के 80 फीसदी काम वार्ड सदस्यों द्वारा किए जाते हैं. मुखिया बची हुई 20 फीसदी राशि का उपयोग अपने लैवल से काम कराने के लिए करता है.
‘‘वार्ड सदस्य जो काम करते हैं, उस के लिए मुखिया भी जिम्मेदार होता है. काम गलत होने या भ्रष्टाचार के दोषी पाए जाने पर सरकार वार्ड सदस्य के साथसाथ मुखिया को भी दोषी ठहराती है और मुखिया को भी जेल जाना पड़ सकता है, भले ही उस काम को मुखिया ने नहीं करवाया हो.

‘‘इस तरह देखा जाए तो वार्ड सदस्यों का कार्य विस्तार तो किया गया है, पर मुखिया के अधिकारों को सीमित करने का काम किया गया है.’’ हालांकि इस चुनावी मौसम में गली, नुक्कड़, सड़कें, बाजार आदि में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि इस बार किस जाति के वोट कितने हैं और इस बार कौनकौन लोग खड़े होने के लिए तैयारी कर रहे हैं. इस बार कौनकौन से नए चेहरे शामिल होने वाले हैं वगैरह.

कुछ लोगों ने तो बैनर, पोस्टर, होर्डिंग लगवाने भी शुरू कर दिए हैं. कुछ तो कई महीने पहले से ही बैनरहोर्डिंग से त्योहारों में शुभकामनाएं देने लगे थे, फिर भले ही वे बैनर में अपना नाम भावी उम्मीदवार के रूप में लिखते थे.

कुछ लोग समाज की कमियां गिना कर खुद को खास साबित करना चाह रहे हैं. अभी कुछ लोग चुपकेचुपके एकदूसरे की जातिकुनबे का भी विश्लेषण कर रहे हैं. इस के साथ ही पुराने उम्मीदवारों के कामकाज की समीक्षा गांवसमाज में होने लगी है.

कुछ लोगों का मानना है कि कुछ उम्मीदवारों ने तो अच्छा काम किया है. इस चुनाव में उन को दोबारा आने का मौका दिया जा सकता है. पर वे लोग
जो 5 साल मिलने के बाद भी अपना काम ठीकठाक नहीं कर पाए, अपने गांवसमाज के लिए अच्छा काम नहीं कर पाए, आम लोगों को बरगलाते रहे और नेता बन कर सरकारी पैसा हड़पते रहे, वैसे लोगों का पत्ता साफ करने के लिए कुछ लोगों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है.

रोहतास जिले के डेहरी ब्लौक के अर्जुन महतो सब्जी विक्रेता हैं. उन का कहना है, ‘‘गली, नाली, सड़कें, जल, नल योजना में प्रतिनिधियों द्वारा जो काम किया गया है, उस की क्वालिटी कितनी है और कैसी है, किसी से छिपी नहीं है. आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां नल लगे ही नहीं, जबकि कुछ ऐसे भी गांव हैं, जहां नल तो लगे, पर कुछ दिन में ही नल गायब हो गए.

‘‘अभी तक सरकार की घरघर स्वच्छ जल पहुंचाने की योजना अधूरी ही रह गई है. कहींकहीं जलनल योजना हाथी के दांत की तरह दिखावे की चीज बन गई है.’’
सरकार ने घोषणा कर रखी है कि जिन के पास चरित्र प्रमाणपत्र रहेगा, वही चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे, इसलिए जिस तरह से एसपी दफ्तर में चरित्र प्रमाणपत्र बनवाने की भीड़ उमड़ रही है, लोगों ने कयास लगाना शुरू कर दिया है कि इस बार पंचायत चुनाव में नए लोगों की ऐंट्री काफी होगी. पुराने लोग तो जोरआजमाइश करेंगे ही, नए लोगों ने भी अपनी घुसपैठ के लिए कोशिश जारी कर दी है.

कल तक पंचायत चुनाव में ऊंचे तबके के लोगों का बोलबाला ज्यादा रहता था. निचले तबके के लोग चुनाव में खड़े होने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. लेकिन सरकार ने पिछले चुनाव में खड़े होने के लिए पिछड़ी जाति के 26 फीसदी और एसटीएससी के 16 फीसदी लोगों के लिए आरक्षण लागू किया था.

इस बार भी पुरानी आरक्षण व्यवस्था पर ही चुनाव होंगे, इसलिए सामान्य जातियों के साथसाथ पिछड़ी जाति और एसटीएससी के लोग चुनाव में खड़े होने लगे हैं.

इस के साथ ही बिहार सरकार ने पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण तय किया है, जिस के चलते महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है. लेकिन आज भी महिलाएं नाममात्र की उम्मीदवार होती हैं. उन की आड़ में उन के पति या बेटे ही काम करते हैं.

उम्मीदवारों का अपनी जातजमात में आनाजाना, उठनाबैठना, बढ़चढ़ कर बातें करना शुरू हो गया है. उन्होंने अपने क्षेत्र में घूमनाफिरना शुरू कर दिया है. लोगों के घर शादीब्याह, जलसे वगैरह में जाना शुरू कर दिया है. लोगों में अपनी बात रखनी शुरू कर दी है, ताकि आने वाले चुनाव में उन्हें नेता बनने का मौका मिल सके.

औरंगाबाद के बारुण के रहने वाले 75 साल के रामबालक सिंह मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘चुनाव आते ही उम्मीदवार बड़ेबुजुर्गों को दंडवत प्रणाम करना शुरू कर देते हैं. वे अपनी जातजमात में बैठकें कर आने वाले चुनाव में उम्मीदवार बनने की सहमति और समर्थन हासिल करना चाहते हैं. चूंकि यह लोकल चुनाव होता है, इसलिए लोकल लैवल पर जातजमात के वोट और उन का साथ मिलना जीत की उम्मीद को बढ़ा देता है.’’

निचले तबके से ताल्लुक रखने वाले 65 साल के मोहन प्रसाद रोहतास जिले के डेहरी औन सोन में रहते हैं. एक समय था, जब उन्होंने अपने गांव में मुखिया उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की कोशिश की थी.

उन का कहना है, ‘‘एक समय था, जब बिहार में निचले तबके के लोग कभी उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने से डरते थे, लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री रहने के दौरान पिछड़ी जाति और निचले तबके के लोगों में आत्मविश्वास जगा और वे राजनीति में शिरकत करने लगे. आज इस बात को नीतीश कुमार भी स्वीकार करते हैं, तभी उन्होंने बिहार में आरक्षण भी लागू किया.

‘‘आज भी पिछड़ी जाति और निचले तबके में शिक्षा की कमी है, इसलिए वे अपने हक से अनजान हैं. आज भी इस तबके में जागरूकता की कमी है, जिस के कारण वे राजनीति से अपनेआप को दूर रखते हैं, जबकि ऊंची जाति के लोग आज भी हर क्षेत्र में आगे हैं.

‘‘दूसरी बात यह कि निचले तबके में गरीबी इतनी है कि वे राजनीति के बारे में सोच ही नहीं पाते हैं. गरीब बेचारा गरीबी से त्रस्त और रोटी के लिए दिनरात परेशान रहता है, तो भला वह राजनीति कहां से करेगा.’’

सब से बड़ी बात यह है कि चुनाव में वही लोग खड़ा होने की कोशिश कर रहे हैं, जो समाज के दबंग हैं, ऊंची जाति के लोग हैं, अपराधी सोच के हैं. समाज के पढ़ेलिखे और सम झदार लोग अपनेआप को राजनीति से दूर रख रहे हैं. यही वजह है कि समाज में बदलाव नहीं हो पा रहा है.

आज भी भ्रष्टाचार व अपराध हद पर है, इसलिए जरूरी है कि जो लोग समाज को नई दिशा दे सकते हैं, समाज में बदलाव ला सकते हैं, वैसे लोगों को राजनीति में जरूर शिरकत करनी चाहिए, तभी समाज की तसवीर बदल सकती है, वरना सिर्फ जातपांत की राजनीति की बात करने से कोई फायदा नहीं.

समाज को विकसित करने के लिए इस से ऊपर उठ कर विकास की बात करनी होगी, तभी समाज का भला होगा.

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