प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का मेन किरदार हलकू नीलगायों द्वारा खेत को चर कर बरबाद कर देने के चलते खेतीकिसानी का काम छोड़ कर मजदूर बन जाने का फैसला ले लेता है. यही हालात एक बार फिर किसानों के सामने आ चुके हैं. दलहनी व तिलहनी फसलों की कौन कहे, अब तो गेहूं और धान के खेतों की भी बाड़बंदी करानी पड़ रही है.
अगर किसी किसान को एक एकड़ खेत की बाड़बंदी करानी पड़ती है, तो इस पर कम से कम 40,000 रुपए से ले कर 50,000 रुपए की लागत आ रही है.
राजस्थान के अकेले टोंक जिले में 80 फीसदी से ज्यादा ऐसे खेतों की बाड़बंदी की गई है, जिन में कोई फसल बोई गई है. इस से आम किसानों पर आई इस नई महामुसीबत का आप अंदाजा लगा सकते हैं, जो पिछले 8-10 सालों से किसानों पर आई हुई है.
जंगल महकमे के एक सर्वे के मुताबिक, अकेले टोंक जिले में 5,000 से ज्यादा नीलगाय हैं. इन्होंने तकरीबन 450 गांवों में किसानों को परेशान कर रखा है. इन में से भी 100 गांव ऐसे हैं, जहां नीलगाय हर साल सब से ज्यादा नुकसान करती हैं.
हर साल नीलगायों से रबी व खरीफ सीजन में सालाना 15 करोड़ रुपए के नुकसान का अंदाजा है. ये 6,000 हैक्टेयर इलाके में फसल प्रभावित करती हैं. हालांकि सालाना नुकसान और प्रभावित क्षेत्र को ले कर विभाग की ओर से कभी पूरी तरह से सर्वे नहीं हुआ है. किसान फसल को बचाने के लिए खेतों की तार की बाड़ और परदे लगाने पर ही लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं, इस के बावजूद राहत नहीं मिल रही है.
माहिर रामराय चौधरी बताते हैं कि एक नीलगाय की औसत उम्र 7 साल होती है. अपनी तेज रफ्तार और कई फुट लंबी छलांग लगाने वाली नीलगाय आसानी से काबू में नहीं आती है. वहीं गांव वालों ने बताया कि खेतों में तारबंदी में करंट छोड़ने के बाद भी यह पशु अपनी पूंछ को तार पर फेर कर खतरा भांपने में सक्षम हैं.
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गांव तामडि़या में कई किसानों ने गेहूं, सौंफ, जीरा, सरसों व दूसरी फसल वाले खेतों में नीलगाय से बचाव के लिए चारों ओर सफेद रंग की पट्टी लगा रखी है. इस के बावजूद फसल का बचाव नहीं हो पाता है. किसानों को रातभर जागना पड़ता है.
किसान रामप्रसाद ने 2 बीघा खेत के चारों ओर तारबंदी कराई है. 6 फुट ऊंचाई तक की जालियां लगाई गई हैं. इस के बावजूद नीलगाय खेतों में घुस ही जाती हैं. तार लगे होने के बाद भी रामप्रसाद को रात में भी रखवाली करनी पड़ती है.
गौरतलब है कि कुछ साल पहले नीलगाय से फसल खराब होती थी तो कीमत लगा कर मुआवजा देने का नियम था. पर कुछ सालों में कोई रकम नहीं मिली है.
मंदसौर के रेवासदेवड़ा, सीतामऊ के ऐरा, मल्हारगढ़ के बूड़ा, टकराव, चिल्लौद पिपलिया, खड़पाल्या, गरोठ के बर्डियापूना, बर्डियाराठौर, बुगलिया, भालोट, साबाखेड़ा समेत कई गांवों के लोग नीलगाय से बहुत ज्यादा परेशान हैं.
गौभक्ति की देन
यह समस्या काफी हद तक वर्तमान शासकों की गौभक्ति की देन है, जिस के चलते गोवंश की खरीदफरोख्त पर सरकारी आदेश द्वारा रोक लगा दी गई है. पहले किसान परिवारों को अनुपयोगी हो गए गौवंश की बिक्री से कुछ आमदनी हो जाती थी, पर यह न हो पाने के चलते उसे अब अपने ही पशुओं के लिए चारापानी का इंतजाम करना भारी पड़ रहा है.
इस की एक वजह यह भी है कि गेहूं व धान की कटाई कंबाइन मशीनों से होने के चलते गेहूं व धान के फसल अवशेषों का ज्यादातर भाग बरबाद हो जाता है और जो बचता भी है, उसे किसान या तो जला देते हैं या फिर उसे रोटावेटर चलवा कर मिट्टी में मिलवा देते हैं. इस से जहां गेहूं व धान की फसल से खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर पशुओं के चारे की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है.
खेती के पूरी तरह से यंत्र आधारित हो जाने के चलते भी गौवंश अनुपयोगी हो गए हैं. पहले खेती की जुताई, बोआई, सिंचाई से ले कर मड़ाई व खाद्यान्न के परिवहन तक में बैलों का इस्तेमाल होता था. किसान परिवारों में गाय द्वारा बछड़े को जन्म दिए जाने को फायदेमंद माना जाता था, पर अब मामला पूरी तरह से उलट चुका है.
किसान परिवारों की गाय अगर बछिया को जन्म देती है, तब तो किसान दूध के लालच में उस का पालनपोषण करता है. अगर गाय बछड़े को जन्म देती है, तो जब तक गाय दूध देती है तब तक तो किसान उसे घर में रखते हैं, पर जैसे ही गाय दूध देना बंद करती है, तो वे बछड़ों को खुला छोड़ देते हैं.
ऐसे ही बछड़े आगे चल कर आवारा पशुओं के ?ांड में शामिल हो कर किसानों की खेती को चरते हैं और फसल को तहसनहस कर रहे होते हैं.
किसान रामदेव गूजर बताते हैं, ‘‘मैं एक किसान हूं और खेती करता हूं. तकरीबन 15-20 साल पहले तक खेती मु?ो और मेरे परिवार को खिलाती थी, मगर आज खेती मु?ो और मेरे परिवार को खा रही है. मैं और मेरा परिवार खेती और पशुपालन के चलते कर्ज और फिर कर्ज के तले दबता जा रहा है, क्योंकि सरकार की नीतियां अब किसानों के खिलाफ बनती जा रही हैं.’’
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नीलगाय की प्रजाति
यह शोध का विषय है कि जिन नीलगायों की बातें हम अपनी पुरानी पीढ़ी से सुनते आए हैं और जिन के बारे में कथाकार प्रेमचंद की कहानियों में पढ़ा है, वे नीलगाय (वनरोज) इतनी बड़ी संख्या में कहां से आ गई हैं? इन की आबादी इस कदर बढ़ गई है कि इन से खेती की हिफाजत कर पाना बेहद मुश्किल काम बन चुका है. बिना सरकारी इजाजत के इन्हें मारना भी जुर्म है. इस के लिए 4 पन्ने का एक लंबा शासनादेश जारी है.
यह जानवर वनरोज हिरन या बकरी की प्रजाति का है, जो आजकल खेती को खूब बरबाद कर रहा है. गांवदेहात की भाषा में इसे नीलगाय या जंगली गाय कहा जाता है.
पिछले तकरीबन 20 सालों से इन की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई है. इन से खेती को बचाना मुश्किल हो गया है. दरअसल, यह जानवर ?ांड में रहता है और रात में अचानक धावा बोल कर फसलों को चरने के साथ ही उसे बरबाद कर देता है. दलहनी फसलों जैसे अरहर, उड़द, मूंग, व मटर वगैरह.
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सरकारी भाषा में इसे वनरोज कहा जाता है और इसे मारने के लिए एसडीएम से इजाजत लेने पड़ती है. मारने के बाद ग्राम प्रधान व कम से कम
5 लोगों के सामने इसे जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाए जाने की व्यवस्था शासनादेश में दी गई है.