लेखक- धीरज कुमार

बिहार सरकार ने घोषणा कर दी है कि साल 2021 के अप्रैल महीने में पंचायत चुनाव होंगे. हालांकि अभी तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि अप्रैलमई तक चुनाव करा लिए जाएंगे.

पंचायत चुनाव का बिगुल बजते ही गांवगांव में चुनाव की सरगर्मी तेज होने लगी है. लोग अपनेअपने कुनबे में चर्चा करने लगे हैं. साथ ही, कहींकहीं तो लोग जातीय बैठकें, सम्मेलन करना भी शुरू कर चुके हैं.

चुनाव आयोग ने घोषणा कर रखी है कि बिहार में पंचायत चुनाव ईवीएम मशीन से ही होंगे. सरकार ने इलैक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन खरीदने के लिए 122 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं. ऐसा लग रहा था कि ईवीएम खरीद से संबंधित मामला कोर्ट में जाने के चलते इस बार भी सरकार बैलेट पेपर पर ही चुनाव कराएगी, लेकिन सरकार ने 90,000 इलैक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन खरीदने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है.

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बिहार में पंचायती राज व्यवस्था में तकरीबन 6 पदों के लिए चुनाव किए जाने हैं. इन में जिला परिषद अध्यक्ष, पंचायत समिति प्रमुख, मुखिया, वार्ड सदस्य, पंच, सरपंच आदि पद शामिल हैं. इन जीते हुए प्रतिनिधियों में से जिला परिषद उपाध्यक्ष, उपमुखिया, पंचायत समिति उपप्रमुख आदि का चयन चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है.

राज्य चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार पंचायत चुनाव में लगभग 10 लाख लोग अपना हाथ आजमाएंगे. इन में तकरीबन 5 लाख लोग नए उम्मीदवार खड़े होने की उम्मीद है.

बिहार की 8,387 ग्राम पंचायतों में चुनाव किए जाने हैं, इसलिए पूरे राज्य में तकरीबन 8,387 पद पर मुखिया, पंच, सरपंच वगैरह उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा.

तकरीबन 1,14,667 वार्ड सदस्यों का चयन किया जाएगा. पंचायत समिति सदस्यों के 11,491 पदों पर चुनाव किए जाएंगे, जबकि जिला परिषद सदस्यों के 1,161 पद के लिए चुनाव किए जाने हैं.

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बिहार में अभी पंचायत चुनाव में दूसरे राज्यों की तरह राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करती हैं. अभी तक चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार दलरहित और पार्टीरहित ही होते हैं.

वैसे देखा जाए तो काम तो कार्यरत सरकार के अधीन ही करना पड़ता है. कार्यरत सरकार ही उन के लिए योजनाएं वगैरह बनाती है, इसीलिए इस चुनाव में स्थानीयता का असर ज्यादा रहता है.

बिहार सरकार ने पंचायती राज में चुने हुए उम्मीदवारों का वेतन पहले से ही तय कर रखा है, जिस में जिला परिषद प्रमुख को 12,000 रुपए दिए जाते हैं, वहीं जिला परिषद उपाध्यक्ष और पंचायत समिति सदस्य को 10,000 रुपए मिलते हैं. पंचायत समिति उपाध्यक्ष को 5,000 रुपए दिए जाते हैं.

मुखिया, सरपंच, जिला परिषद सदस्यों को 2,500 रुपए मासिक वेतन के रूप में मिलते हैं. उपमुखिया और उपसरपंच को 1,200 रुपए दिए जाते हैं.
पंचायत समिति सदस्य को 1,000 रुपए तय किए गए हैं. वार्ड सदस्य और पंच को 500-500 रुपए हर महीने दिए जाते हैं.

बिहार के रोहतास जिले के डेहरी ब्लौक की पहलेजा पंचायत के वर्तमान मुखिया प्रमोद कुमार सिंह का कहना है, ‘‘सरकार ने भले ही पंचायत प्रतिनिधियों का वेतन तय कर दिया है, लेकिन वह उन्हें समय से वेतन नहीं देती है. अभी भी मुखिया और वार्ड का पैसा तकरीबन डेढ़ साल से बकाया है.

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‘‘दरअसल, मुखिया को जो अनुदान अपने क्षेत्र में काम कराने के लिए मिलता है, उस का 80 फीसदी वार्ड सदस्यों के खाते में ट्रांसफर करना होता है यानी पंचायत के 80 फीसदी काम वार्ड सदस्यों द्वारा किए जाते हैं. मुखिया बची हुई 20 फीसदी राशि का उपयोग अपने लैवल से काम कराने के लिए करता है.
‘‘वार्ड सदस्य जो काम करते हैं, उस के लिए मुखिया भी जिम्मेदार होता है. काम गलत होने या भ्रष्टाचार के दोषी पाए जाने पर सरकार वार्ड सदस्य के साथसाथ मुखिया को भी दोषी ठहराती है और मुखिया को भी जेल जाना पड़ सकता है, भले ही उस काम को मुखिया ने नहीं करवाया हो.

‘‘इस तरह देखा जाए तो वार्ड सदस्यों का कार्य विस्तार तो किया गया है, पर मुखिया के अधिकारों को सीमित करने का काम किया गया है.’’ हालांकि इस चुनावी मौसम में गली, नुक्कड़, सड़कें, बाजार आदि में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि इस बार किस जाति के वोट कितने हैं और इस बार कौनकौन लोग खड़े होने के लिए तैयारी कर रहे हैं. इस बार कौनकौन से नए चेहरे शामिल होने वाले हैं वगैरह.

कुछ लोगों ने तो बैनर, पोस्टर, होर्डिंग लगवाने भी शुरू कर दिए हैं. कुछ तो कई महीने पहले से ही बैनरहोर्डिंग से त्योहारों में शुभकामनाएं देने लगे थे, फिर भले ही वे बैनर में अपना नाम भावी उम्मीदवार के रूप में लिखते थे.

कुछ लोग समाज की कमियां गिना कर खुद को खास साबित करना चाह रहे हैं. अभी कुछ लोग चुपकेचुपके एकदूसरे की जातिकुनबे का भी विश्लेषण कर रहे हैं. इस के साथ ही पुराने उम्मीदवारों के कामकाज की समीक्षा गांवसमाज में होने लगी है.

कुछ लोगों का मानना है कि कुछ उम्मीदवारों ने तो अच्छा काम किया है. इस चुनाव में उन को दोबारा आने का मौका दिया जा सकता है. पर वे लोग
जो 5 साल मिलने के बाद भी अपना काम ठीकठाक नहीं कर पाए, अपने गांवसमाज के लिए अच्छा काम नहीं कर पाए, आम लोगों को बरगलाते रहे और नेता बन कर सरकारी पैसा हड़पते रहे, वैसे लोगों का पत्ता साफ करने के लिए कुछ लोगों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है.

रोहतास जिले के डेहरी ब्लौक के अर्जुन महतो सब्जी विक्रेता हैं. उन का कहना है, ‘‘गली, नाली, सड़कें, जल, नल योजना में प्रतिनिधियों द्वारा जो काम किया गया है, उस की क्वालिटी कितनी है और कैसी है, किसी से छिपी नहीं है. आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां नल लगे ही नहीं, जबकि कुछ ऐसे भी गांव हैं, जहां नल तो लगे, पर कुछ दिन में ही नल गायब हो गए.

‘‘अभी तक सरकार की घरघर स्वच्छ जल पहुंचाने की योजना अधूरी ही रह गई है. कहींकहीं जलनल योजना हाथी के दांत की तरह दिखावे की चीज बन गई है.’’
सरकार ने घोषणा कर रखी है कि जिन के पास चरित्र प्रमाणपत्र रहेगा, वही चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे, इसलिए जिस तरह से एसपी दफ्तर में चरित्र प्रमाणपत्र बनवाने की भीड़ उमड़ रही है, लोगों ने कयास लगाना शुरू कर दिया है कि इस बार पंचायत चुनाव में नए लोगों की ऐंट्री काफी होगी. पुराने लोग तो जोरआजमाइश करेंगे ही, नए लोगों ने भी अपनी घुसपैठ के लिए कोशिश जारी कर दी है.

कल तक पंचायत चुनाव में ऊंचे तबके के लोगों का बोलबाला ज्यादा रहता था. निचले तबके के लोग चुनाव में खड़े होने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. लेकिन सरकार ने पिछले चुनाव में खड़े होने के लिए पिछड़ी जाति के 26 फीसदी और एसटीएससी के 16 फीसदी लोगों के लिए आरक्षण लागू किया था.

इस बार भी पुरानी आरक्षण व्यवस्था पर ही चुनाव होंगे, इसलिए सामान्य जातियों के साथसाथ पिछड़ी जाति और एसटीएससी के लोग चुनाव में खड़े होने लगे हैं.

इस के साथ ही बिहार सरकार ने पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण तय किया है, जिस के चलते महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है. लेकिन आज भी महिलाएं नाममात्र की उम्मीदवार होती हैं. उन की आड़ में उन के पति या बेटे ही काम करते हैं.

उम्मीदवारों का अपनी जातजमात में आनाजाना, उठनाबैठना, बढ़चढ़ कर बातें करना शुरू हो गया है. उन्होंने अपने क्षेत्र में घूमनाफिरना शुरू कर दिया है. लोगों के घर शादीब्याह, जलसे वगैरह में जाना शुरू कर दिया है. लोगों में अपनी बात रखनी शुरू कर दी है, ताकि आने वाले चुनाव में उन्हें नेता बनने का मौका मिल सके.

औरंगाबाद के बारुण के रहने वाले 75 साल के रामबालक सिंह मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘चुनाव आते ही उम्मीदवार बड़ेबुजुर्गों को दंडवत प्रणाम करना शुरू कर देते हैं. वे अपनी जातजमात में बैठकें कर आने वाले चुनाव में उम्मीदवार बनने की सहमति और समर्थन हासिल करना चाहते हैं. चूंकि यह लोकल चुनाव होता है, इसलिए लोकल लैवल पर जातजमात के वोट और उन का साथ मिलना जीत की उम्मीद को बढ़ा देता है.’’

निचले तबके से ताल्लुक रखने वाले 65 साल के मोहन प्रसाद रोहतास जिले के डेहरी औन सोन में रहते हैं. एक समय था, जब उन्होंने अपने गांव में मुखिया उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की कोशिश की थी.

उन का कहना है, ‘‘एक समय था, जब बिहार में निचले तबके के लोग कभी उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने से डरते थे, लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री रहने के दौरान पिछड़ी जाति और निचले तबके के लोगों में आत्मविश्वास जगा और वे राजनीति में शिरकत करने लगे. आज इस बात को नीतीश कुमार भी स्वीकार करते हैं, तभी उन्होंने बिहार में आरक्षण भी लागू किया.

‘‘आज भी पिछड़ी जाति और निचले तबके में शिक्षा की कमी है, इसलिए वे अपने हक से अनजान हैं. आज भी इस तबके में जागरूकता की कमी है, जिस के कारण वे राजनीति से अपनेआप को दूर रखते हैं, जबकि ऊंची जाति के लोग आज भी हर क्षेत्र में आगे हैं.

‘‘दूसरी बात यह कि निचले तबके में गरीबी इतनी है कि वे राजनीति के बारे में सोच ही नहीं पाते हैं. गरीब बेचारा गरीबी से त्रस्त और रोटी के लिए दिनरात परेशान रहता है, तो भला वह राजनीति कहां से करेगा.’’

सब से बड़ी बात यह है कि चुनाव में वही लोग खड़ा होने की कोशिश कर रहे हैं, जो समाज के दबंग हैं, ऊंची जाति के लोग हैं, अपराधी सोच के हैं. समाज के पढ़ेलिखे और सम झदार लोग अपनेआप को राजनीति से दूर रख रहे हैं. यही वजह है कि समाज में बदलाव नहीं हो पा रहा है.

आज भी भ्रष्टाचार व अपराध हद पर है, इसलिए जरूरी है कि जो लोग समाज को नई दिशा दे सकते हैं, समाज में बदलाव ला सकते हैं, वैसे लोगों को राजनीति में जरूर शिरकत करनी चाहिए, तभी समाज की तसवीर बदल सकती है, वरना सिर्फ जातपांत की राजनीति की बात करने से कोई फायदा नहीं.

समाज को विकसित करने के लिए इस से ऊपर उठ कर विकास की बात करनी होगी, तभी समाज का भला होगा.

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