लेखक- रोहित और शाहनवाज

पंजाब राज्य के होशियारपुर नगरनिगम क्षेत्र में घोषित हुए रिजल्ट कई सवालों के साथ उभरे हैं. इस शहर में नगरनिगम की कुल 50 सीटें हैं और उन में से 41 सीटें कांग्रेस के हिस्से जाना इसीलिए भी हैरान करता है, क्योंकि इस इलाके में मिडिल क्लास कारोबारी तबका, जो पहले भारतीय जनता पार्टी के साथ था, ने पाला बदला है.

कांग्रेस की टिकट से जीते वार्ड नंबर 40 के पार्षद अनमोल जैन का औफिस सराजा चौक पर बना था. इस के आसपास कोतवाली बाजार, सर्राफा बाजार, कपड़ा बाजार, शीशमहल बाजार थे. इन बाजारों की दुकानों के बाहर कांग्रेस और भाजपा के  झंडे साफ देखे जा सकते थे यानी होशियारपुर में जिस इलाके को दोनों पार्टियां अपने कंट्रोल में रखना चाह रही थीं, वह यही कारोबारी का इलाका था.

दिलचस्प यह था कि इन बाजारों के ज्यादातर दुकानदार जैन समुदाय से थे और यह समुदाय नगरनिगम के पिछले चुनावों में लगातार भाजपा को अपना मत देता आ रहा था.

ऐसे ही एक कपड़ा कारोबारी मानिक जैन ने वहां के कारोबारियों के कांग्रेस की तरफ शिफ्ट होने की वजह बताई. उन का मानना था कि पंजाब के लोकल कारोबारियों की रीढ़ किसान समाज ही है, जो उन्हें मजबूत करता है.

मानिक जैन कहते हैं, ‘इस बार यहां के कारोबारी साइलैंट वोटर थे, जो भाजपा के समर्थक भी थे. उन्होंने सामने से उम्मीदवार को ‘हां’ तो कह दिया, लेकिन बैकडोर से कांग्रेस को ही वोट दिया.’

मानिक जैन ने आगे बताया, ‘हमारी यह मार्केट 2 वजह से चलती है, एक एनआरआई और दूसरा किसान. एनआरआई अब यहां आ नहीं रहे हैं और किसान फिलहाल यहां हैं नहीं. हम कारोबारियों का मूल जुड़ाव किसानों के साथ है.

‘होशियारपुर शहर के बाहरी इलाके खेती कर रहे किसानों के ही हैं और यहां का कारोबारी यह बात नहीं भूल सकता कि यही किसान हमारे मूल ग्राहक भी हैं. इस समय कृषि कानूनों की वजह से किसान शहरों की तरफ खरीदारी करने कम आ रहे हैं, जिस के चलते होशियारपुर का बाजार मंदा पड़ा हुआ है.

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‘किसान निराशा में डूबे हैं. उन के शादीब्याह और किसी दूसरी तरह के फंक्शन में होने वाले खर्चे बंद हो गए हैं. इस से जो दुकान पहले 60 फीसदी चलती थी, वह अब 30-35 फीसदी पर आ गई है.

‘हमारे लिए ग्राहक ही सबकुछ हैं. अगर वे इस समय तकलीफ में हैं, तो  उन का समर्थन करना हमारा भी फर्ज बनता है.’

मानिक जैन दबी जबान से कहते हैं कि वे खुद भाजपा के कट्टर समर्थक हैं. उन्होंने अपनी दुकान के बाहर भाजपा का  झंडा दिखाते हुए हमें इस का इशारा किया. लेकिन जिस तरह की आर्थिक नीतियां भाजपा बना रही है, उस से उन का नुकसान हो रहा है.

जब एक और कारोबारी अमित जैन से पूछा गया कि क्या सिर्फ कृषि कानून के चलते ही उन्होंने भाजपा से दूरी बनाई है, तो वे जवाब देते हुए बोले, ‘बात सिर्फ कृषि की नहीं है. भाजपा मुद्दों को ले कर बात नहीं कर रही है. भाजपा ने वोट सिर्फ अपने नाम पर मांगे, काम पर नहीं. वे लोग ‘मोदीजीमोदीजी’ करते रहे. मोदीजी क्या यहां नगरनिगम के पार्षद बनेंगे? अभी इस समय महंगाई का हाल देख लो. पैट्रोलडीजल के दाम ऐसे बढ़ रहे हैं कि हमारा गाड़ी से चलना मुश्किल हो रहा है.

‘भाजपा तो बस अब ‘पिछली सरकार, पिछली सरकार’ की रट लगा कर घूमती है. अरे भई, जब शासन तुम्हारे हाथ में है तो तुम अपना बताओ न. महंगाई के लिहाज से देखा जाए तो पिछली सरकार तो इस से बेहतर थी. कम से कम इतनी महंगाई तो नहीं थी.’

कुछ कारोबारियों का कहना था कि सरकार के खिलाफ जो भी बोल रहा है, सरकार उसे देश के खिलाफ बता रही है. यही हाल आजकल किसानों के साथ हो रहा है.

कपड़े की दुकान चला रहे अंकित जैन ने बताया, ‘पहले से बढ़ती महंगाई में अब कपड़े पर भी 10 फीसदी रेट बढ़ा दिया गया है. ऐसे में ग्राहक कम आते हैं और महंगा सामान खरीदने से बचते हैं, जिस से दुकानदारी पर भारी असर पड़ रहा है. यहां भाजपा का गढ़ था, लेकिन लौकडाउन के समय जब लोगों को राशन पहुंचाने की बात थी तो भाजपा के लोग अपने लोगों को ही राशन बांटने में बिजी थे और आम लोगों को राशन नहीं मिल पा रहा था.’

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अंकित जैन ने अकाली दल के हारने की वजह बताते हुए कहा, ‘यहां अकाली दल वैसे भी खास मजबूत नहीं था. वह ज्यादातर गांवदेहात के इलाकों में मजबूत था, लेकिन रही बात अकाली दल की एक भी सीट न आने की तो गेहूं के साथ घुन पिसता ही है और अकाली दल  सिर्फ भाजपा के साथ होने का किया भोग रहा है.’

पार्षद अनमोल जैन ने मीडिया वालों के सवालों का कोई खास जवाब नहीं दिया और कहा, ‘अभी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से यह हिदायत मिली है कि जब तक शपथ नहीं ले लेते, तब  तक मीडिया में किसी तरह की कोई बात  न रखें.’

अनमोल जैन फिलहाल वहीं सर्राफा बाजार में एक गहनों की दुकान के मालिक हैं और इस बदले समीकरण के लिए किसान आंदोलन के असर को खास वजह मानते हैं. उन की सोच है कि कृषि कानूनों के चलते किसान अब शादी जैसे फंक्शन में दुकानों से खुल कर सामान लेने से कतरा रहे हैं, जिस का असर कारोबारियों पर बहुत बुरा पड़ रहा है.

महंगाई मार गई

गरीब को तो लगातार बढ़ती महंगाई मार रही है. जालंधर शहर में चाय की टपरी चलाने वाले 52 साल के मोहन बिहार से हैं. वे पिछले 22 सालों से अपने परिवार के साथ जालंधर शहर की मिट्ठू बस्ती में रहते हैं, जो एक स्लम एरिया है. इस आंदोलन से उन के चाय वगैरह के धंधे पर  बुरा असर पड़ा है.

मोहन ने दुखी मन से कहा, ‘किसान आंदोलन के चलते हमारा धंधा बुरी तरह से पिट रहा है. आजकल शहरों में भीड़ ज्यादा नहीं हो रही है. गांवदेहात के लोग शहरों में बहुत कम आ रहे हैं. मैं रोडवेज बसों में चने बेचने का काम भी करता हूं, लेकिन आजकल कमाई बिलकुल भी नहीं हो रही है.

‘मैं रोज चना, प्याज, टमाटर, मसाला, नीबू चाट बनाने का सामान खरीदता हूं. लेकिन, इस हिसाब से कमाई बिलकुल भी नहीं हो रही है. मेरा तकरीबन 700-800 रुपए का सामान ही बिक पाता है, जिस में से 150 रुपए तो ठेकेदार को देने ही पड़ते हैं, चाहे सामान बेचो या न बेचो, सिर्फ 250-300 रुपए की कमाई हो पाती है.

‘इस बार की केंद्र सरकार सब से खराब है. हर समय महंगाई रहती है.  अब देखो प्याज की कीमत आजकल  50 रुपए प्रति किलो चल रही है.

‘मैं अपने परिवार के साथ किराए पर रहता हूं. मिट्ठू बस्ती  झुग्गी इलाका है. वहां भी किराया 3-4 हजार रुपए हर महीने है. हम गरीब लोग तो बढ़ती महंगाई में मारे जाते हैं.’

‘जिस ठेकेदार के नीचे मैं काम करता हूं, वह अब 11-12 साल के बच्चों को नेपाल से काम करने के लिए यहां उठा लाया है. वह बच्चे भी हमारी तरह चलती बस में सामान बेचने के लिए चढ़तेउतरते हैं. कोई मास्क बेचता है, कोई पानी की बोतल, तो कोई मूंगफली और समोसा. वे बच्चे चरसगांजा पीते हैं. यह उन के लिए बहुत खतरनाक बात है.’

गरीबों को ही खत्म करेंगे

पंजाब में हाल ही में हुए निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए गुस्सा साफतौर पर देखा जा सकता है.

मोगा में 63 साल के ओम प्रकाश और उन के 30 साल के बेटे धनपत राय की मिट्टी के बरतनों  की दुकान है. यह दुकान मोगा के मेन मार्केट रोड पर आते हुए वार्ड नंबर 20-21 में पड़ती है, जो मेन रोड से काफी अंदर की तरफ है.

ओम प्रकाश ने इस गली की खासीयत के तौर पर बताया कि इस गली की शुरुआत में फिल्म कलाकार सोनू सूद का घर है.

वैसे तो ओम प्रकाश और उन का परिवार उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, लेकिन लंबे समय से वे मोगा में ही रहते हैं और अब पंजाब के स्थानीय निवासी हो चुके हैं. उन की दुकान पर मिट्टी से बने बरतन, चूल्हा, घड़े और सजावट का दूसरा सामान बिकता है.

जब ओम प्रकाश के बेटे धनपत राय से पूछा गया कि यहां पर भाजपा का इतना बुरा हाल क्यों हुआ है, तो उन्होंने बताया, ‘यह तो नगरनिगम के चुनाव थे. यहां जो उम्मीदवार खड़े होते हैं, वे इन्हीं गलीमहल्लों के होते हैं. निगम के चुनाव में लोग पार्टी चाहे कैसी भी हो, कई बार उम्मीदवार के चालचलन, बातबरताव और उठनेबैठने के चलते ही जिता देते हैं. लेकिन भाजपा का अगर यह हाल हुआ है तो कुछ तो बात रही ही होगी.

‘मसला यह है कि जनता अभी भाजपा के फैसलों से परेशान है. नरेंद्र मोदी जो भी फैसले कर रहे हैं, वे बिना सोचेसम झे कर रहे हैं.

‘जिस इनसान के पास खाने के लिए पैसा नहीं है, वह क्या करेगा? एक दिहाड़ी मजदूर, जो यहां 200-300 रुपए रोजाना कमा रहा था, उस के लिए अब इतना कमाना भी बहुत मुश्किल हो गया है. ऊपर से जो पिछले साल लौकडाउन लगा, उस ने देश की कमर तोड़ दी. मेरे सामने तो एक भी ऐसा मामला नहीं है, जहां केंद्र सरकार ने गरीब को कोई फायदा पहुंचाया हो. यही वजह भी है कि भाजपा से लोग नाराज हैं.’

ओम प्रकाश के 2 बेटे हैं, जिन में से छोटे बेटे धनपत ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई और कंप्यूटर में डिप्लोमा किया हुआ है, इस के बावजूद वह बेरोजगार है.

इस बारे में धनपत ने बताया, ‘सरकार ने रोजगार के कोई मौके नहीं पैदा किए हैं. यह बात नहीं है कि योजनाएं नहीं हैं, लेकिन उन योजनाओं का असर जमीन पर होता हुआ दिखाई नहीं देता. बाजार में कुछ कामधंधा ही नहीं होगा, तो मेरे जैसे नौजवान आखिर करेंगे ही क्या?

‘मैं ने डिगरी ले ली, डिप्लोमा भी लिया हुआ है, फिर भी पापा के साथ दुकान पर बैठने को मजबूर हूं. मेरी उम्र 30 साल है और ऐसा नहीं है कि मैं नौकरी नहीं करना चाहता, लेकिन नौकरी मिल ही नहीं रही. जहां बात बनती है, वहां तनख्वाह 5-6 हजार रुपए महीना है. क्या उस से गुजारा हो सकता है?’

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यह बोल कर धनपत कुछ देर लिए शांत हो गए, फिर एकाएक जोश में बोले, ‘चुनाव के समय नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हर साल 2 करोड़ नौकरियां देंगे, लेकिन कहां है काम? हम तो अच्छे दिनों का सपना देख रहे थे, लेकिन हमें क्या पता था कि घर बैठने की नौबत आ जाएगी.’

इस बीच धनपत एनएसएसओ की राष्ट्रीय बेरोजगारी की उस रिपोर्ट को याद करने की कोशिश करने लगे, जो साल 2019 में ‘बिजनैस स्टैंडर्ड’ अखबार में छपी थी.

वे कहते हैं, ‘अच्छे दिनों की सरकार से हम ने क्या पाया है, कोई नहीं जानता. सब हवाहवाई चल रहा है. अभी पीछे एक आंकड़ा आया था, जिस में भारत 45 साल की सब से ज्यादा बेरोजगारी  झेल रहा है. इस में कोई दोराय नहीं कि लौकडाउन के बाद यह आंकड़ा और भी बढ़ गया होगा.’

इतने में धनपत के पिता ओम प्रकाश ने अंदर दुकान की ओर जा कर वहां रखे मटकों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मार्केट ठप है. हम ने यह दुकान खोली, ताकि जिंदगी पटरी पर आ सके, लेकिन हाल यह है कि सुबह  7 बजे से रात के 10 बजे तक दुकान में बैठने के बावजूद हमारी कमाई 500 रुपए तक की भी नहीं है. कभीकभी तो गल्ला खाली भी देखना पड़ जाता है.’

धनपत ने बताया कि उन की यह दुकान साल 2016 तक परचून की दुकान हुआ करती थी, लेकिन उन्होंने इसे बाद में मिट्टी के बरतन व सामान बेचने वाली दुकान में बदल लिया और अपना जातिगत पेशा करना ही ज्यादा बेहतर सम झा.

ओम प्रकाश ने बताया, ‘महंगाई बहुत है. घर के खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं. पहले यह था कि घर का एक आदमी कमाता था और जैसेतैसे काम चल जाता था. लेकिन अब तो सारे भी कमा लें, फिर भी भुखमरी बनी रहती है.

‘हर चीज महंगी हो रही है. पैट्रोल 100 रुपए पार कर गया है, सिलैंडर का रेट बढ़ गया है, सब्सिडी खत्म हो गई है. आम लोगों के लिए अब कुछ भी सस्ता नहीं रहा है.

‘नरेंद्र मोदी अच्छे दिनों की बात कर रहे थे… देखो, अच्छे दिन आ गए हैं. देश ‘खुशहाल’ बन गया है. मोदी गरीबी खत्म करने के लिए आए थे और अब लग रहा है कि वे चुनचुन कर गरीबों को खत्म कर के ही गरीबी दूर करेंगे.’

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