Manohar Kahaniya: 10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अगले दिन सुबह ही रवि शकुंतला को ले कर दिल्ली में अपने घर समालखा चला गया. इस दौरान कमल ने शकुंतला को अपनी साजिश समझा दी.

जिस के तहत 22 मार्च की दोपहर में शकुंतला अपनी सास से जिद कर के रवि को अपनी बहन के घर जाने के लिए साथ ले गई. कमलेश का घर करीब 3 किलोमीटर दूर था.

घर से निकल कर जैसे ही रवि शकुंतला को ले कर मेनरोड पर किसी सवारी को बुलाने के लिए आगे बढ़ा तो वहां उस से पहले

ही सामने अपनी सफेद सैंट्रो कार का बोनट खोल कर कमल अपने ड्राइवर गणेश के साथ खड़ा मिला.

उस ने रवि और शकुंतला को देख कर चौंकने का अभिनय करते हुए कहा कि वह किसी काम से समालखा आया था, लेकिन गाड़ी बंद हो गई जो उसी वक्त ही ठीक हुई थी.

कमल ने साजिश के तहत जिद कर के रवि और शकुंतला को गाड़ी में बैठा लिया और बोला कि वह उन्हें कमलेश के घर छोड़ता हुआ निकल जाएगा.

संकोचवश रवि कुछ नहीं बोला. दरअसल, कमल सोचीसमझी साजिश के तहत वहां बोनट खोल कर उन्हीं दोनों के आने का इंतजार कर रहा था.

इस के बाद कमल ने गाड़ी में रवि को अपनी बातों के जाल में फंसा कर शकुंतला को कमलेश के घर के पास छोड़ने के लिए मना लिया. कमल ने रवि से कहा कि वह उस के साथ समालखा में एक परिचित के घर चले, जहां से कुछ पैसे लेने हैं. रवि इनकार नहीं कर सका.

कमलेश के घर से कुछ दूर शकुंतला को छोड़ कर वे गाड़ी को आगे बढ़ा ले गए. गणेश गाड़ी चला रहा था. कमल व रवि पीछे बैठे थे.

कुछ दूर जाने के बाद प्यास का बहाना कर के कमल ने डिक्की से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकलवा कर एक खुद पी, दूसरी रवि को पिलाई. लेकिन कोल्डड्रिंक पीते ही रवि का सिर चकराने लगा था और उस पर बेहोशी छा गई.

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थोड़ी ही देर में रवि पूरी तरह बेहोश हो गया. कमल ने गाड़ी में बेहोश पडे़ रवि की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रवि के मोबाइल फोन को बंद कर दिया और रास्ते में फोन की बैटरी, सिमकार्ड व दूसरे हिस्से तोड़ कर फेंक दिए.

ड्राइवर गणेश कमल के आदेश पर गाड़ी अलवर ले आया. वहां पहुंच कर कमल ने बिल्डिंग मटीरियल के अपने गोदाम में पड़ी रोड़ी हटाई और रवि के शव को 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में दबा दिया और उस पर फिर से रोड़ी डाल दी. कमल वारदात वाले दिन अपना मोबाइल दिल्ली नहीं ले गया था.

इधर, रवि के घर नहीं पहुंचने पर शकुंतला ने उस के परिवार वालों को वही कहानी सुना दी, जो कमल ने उसे पढ़ाई थी. पुलिस को पूछताछ में न तो शकुंतला ने और न ही उस के किसी ससुराल वालों ने ये बात बताई थी कि शकुंतला के पास मोबाइल फोन भी है.

शकुंतला ने पुलिस को बताया कि शादी से पहले उस के पास एक फोन था, लेकिन वह उसे जब दोबारा आई तो अपने भाई को दे आई थी.

इसलिए शुरू से ही पुलिस ने इस केस में शकुंतला के मोबाइल फोन की भी काल डिटेल्स निकालने की जरूरत महसूस नहीं की.

मृतक रवि के मोबाइल की जो काल डिटेल्स पुलिस ने निकलवाई, उस में भी कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला था. इसलिए भी पुलिस ने मोबाइल डिटेल्स की थ्यौरी पर ज्यादा काम नहीं किया.

लेकिन जब कमल से पूछताछ हुई तो खुलासा हुआ कि साजिश के तौर पर शकुंतला अपना मोबाइल फोन छिपा कर साथ लाई थी, लेकिन उसे साइलेंट कर के उस ने पर्स में छिपा कर रखा था ताकि जरूरत पड़ने पर कमल से बात हो सके.

22 मार्च, 2011 की दोपहर को शकुंतला कमल के ड्राइवर के मोबाइल से आए एक मैसेज के बाद ही वह घर से पति रवि को ले कर निकली थी, जिस में उस ने बताया था कि वह सड़क पर उन का इंतजार कर रहा है.

शकुंतला जब तक अपनी ससुराल में रही, उस ने किसी को भी यह पता नहीं चलने दिया कि वह मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही है. इस दौरान वह न सिर्फ छिपछिप कर कमल से बातें करती रही, बल्कि उसे वहां होने वाली हर गतिविधि की जानकारी दे कर उस से लाश ठिकाने लगा देने की जानकारी भी लेती रही.

क्राइम ब्रांच ने जब जयभगवान के शक के आधार पर कमल सिंगला को नोटिस दे कर पूछताछ के लिए बुलाया तो उसे पकड़े जाने का डर सताने लगा. लिहाजा उस ने पूछताछ के लिए जाने से पहले एक दिन औनेपौने दाम में खाली प्लौट में पड़ी रोड़ी को बेच कर ड्राइवर गणेश के साथ उस के नीचे पड़ी जमीन की खुदाई की.

वहां कई फुट की खुदाई के बाद उसे रवि का शव मिल गया. 5 महीने में शव हड्डियों का ढांचा बन चुका था. कमल ने हड्डियों के ढांचे को गड्ढे से निकाल कर प्लास्टिक की बोरी में भरा. अस्थिपंजर बटोरना बेहद मुश्किल था. लेकिन उस ने सावधानी से अस्थियों को बटोर कर हड्डियों से भरी बोरी को अपने एक ट्रक में रखवाया और उस की छत पर खुद बैठ गया.

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अलवर से रेवाड़ी के रास्ते में 70 किलोमीटर के रास्ते पर एकएक हड्डी को बोरी से निकाल कर जंगल की तरफ फेंकता चला गया. रवि की हड्डियों को ठिकाने लगाने के बाद कमल ने अपने ड्राइवर गणेश को 70 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि अब वह अपने गांव चला जाए और कभी वापस न आए. क्योंकि हो सकता है पुलिस उसे पकड़ ले. डर कर गणेश अपने गांव चला गया.

इस दौरान शकुंतला भी अलवर में आ चुकी थी. कुछ दिन तक तो कमल उस से छिपछिप कर ही मिलता रहा. लेकिन बाद में उस ने उस के परिवार से हमदर्दी का दिखावा कर के कहा कि उस का एक ड्राइवर है, जो कुंआरा है. वह शकुंतला की शादी उस के साथ करवा देगा.

कमल ने बेहद शातिराना ढंग से अपने ड्राइवर बबली के साथ शकुंतला की शादी का ढोंग रचा और उस के बाद टपूकड़ा में ही एक दूसरे इलाके में मकान ले कर दे दिया. लेकिन वहां बबली की जगह वह खुद शकुंतला के साथ पति की तरह रहता था.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि कमल और शकुंतला का एक बच्चा भी हो चुका है. हालांकि समाज के सामने कमल शकुंतला को बबली की ही बीवी बताता था.

जब कमल का ब्रेन मैपिंग टेस्ट हुआ और उस से शकुंतला के साथ उस के संबंधों को ले कर सवालजवाब हुए तो पुलिस को पहली बार उन के नाजायज संबंधों पर शक हुआ था. इसी टेस्ट की रिपोर्ट के बाद से वह पुलिस की नजर में चढ़ गया था.

ब्रेन मैपिंग टेस्ट के बाद से ही शकुंतला और कमल पकड़े जाने के डर से फरार हो गए, जिस से पुलिस का शक यकीन में बदल गया. वे किसी भी स्थान पर कुछ दिन से ज्यादा नहीं रुकते थे. महीनों से कमल व शकुंतला लगातार अपने फोन नंबर बदल रहे थे.

क्राइम ब्रांच ने कड़ी मशक्कत के बाद कमल के खाली प्लौट की खुदाई करवा कर उस की रीढ़, कूल्हे और कमर के हिस्से की हड्डियां और पसलियों के 25 टुकड़े बरामद कर लिए. जिन का टेस्ट कराया गया तो वे उस के पिता के डीएनए से मैच कर गईं.

क्राइम ब्रांच ने इस मामले में अपहरण की धारा 364 के साथ हत्या की धारा 302, सबूत नष्ट करने की धारा 201 व साजिश रचने की धारा 120बी जोड़ कर कमल व गणेश को जेल भेज दिया.

इधर शंकुतला ने अपनी गिरफ्तारी पर कोर्ट से स्टे ले लिया. लेकिन जब अदालत में रवि के अपहरण व हत्या के मामले में शकुंतला के शामिल होने के साक्ष्य पेश किए तो अदालत ने उस का स्टे खारिज कर गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए.

शकुंतला को जब इस की भनक लगी तो एक बार फिर उस ने दिल्ली पुलिस के साथ लुकाछिपी का खेल शुरू कर दिया. पुलिस छापे मारती रही, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगी तो दिल्ली पुलिस आयुक्त ने उस की गिरफ्तारी पर भी 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

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ईनाम घोषित होने के बाद क्राइम ब्रांच की कई टीमें महीनों से शकुंतला की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी थीं. 17 जुलाई को क्राइम ब्रांच के स्पैशल औपरेशन स्क्वायड-2 में तैनात एएसआई प्रदीप गोदारा को अपने एक मुखबिर से शकुंतला के अलवर में ही एक स्थान पर छिपे होने की जानकारी मिली. प्रदीप गोदारा ने अपने इंसपेक्टर राजीव रंजन को सारी बात बताई.

राजीव रंजन ने जब इस बारे में अपने एसीपी डा. विकास शौकंद को बताया तो उन्होंने राजीव रंजन और प्रदीप गोदारा के साथ एएसआई कुलभूषण, नरेश, कांस्टेबल राजेंद्र आर्य, दिनेश, हिमांशु, विनोद महिला कांस्टेबल ममता को अलवर रवाना कर दिया.

संयोग से बताए गए स्थान पर शकुंतला मिल गई और पुलिस उसे गिरफ्तार कर दिल्ली ले आई. अदालत में पेश कर उसे 2 दिन के लिए पुलिस रिमांड में जब पूछताछ की गई तो उस ने भी रवि के अपहरण व हत्याकांड की वही कहानी सुनाई, जो कमल पहले ही बता चुका था.

शकुंतला की गिरफ्तारी के बाद 10 साल पहले हुए रवि कुमार हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया.

(कथा पुलिस की जांच, रवि के परिजनों से बातचीत और आरोपियों से पूछताछ पर आधारित)

ऐंटी सेक्स बेड: मैदान से पहले बिस्तर का खेल

कोरोना महामारी के चंगुल में फंसी दुनिया के लिए राहत की बात यह है कि 23 जुलाई, 2021 से जापान के टोक्यो शहर में ओलिंपिक खेलों का महामेला शुरू हो गया है. वहां के खेलगांव में कोरोना का कहर न दिखे, इस के लिए खेल प्रशासन ने बहुत ज्यादा कड़े नियम बनाए हैं. उन में सोशल डिस्टैंसिंग यानी सामाजिक दूरी का पालन कराना बहुत बड़ी चुनौती है.

चूंकि सोशल मीडिया का जमाना है, सो जापान से आने वाली ओलिंपिक खेलों से जुड़ी खबरों का यहां से वहां तैरना लाजिमी है. ऐसे में वहां इस्तेमाल होने वाले ‘ऐंटी सैक्स बैड’ का मामला काफी ज्यादा वायरल हो गया है.

क्या बला है ‘ऐंटी सैक्स बैड’

खेल आयोजकों की कोशिश है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलगांव कोविड-19 की आफत से बचा रहे, इस के लिए उन्होंने वहां तथाकथित ‘ऐंटी सैक्स बैड’ लगाने का फैसला किया. ऐसे बैड यानी पलंग कार्डबोर्ड से बनाए जाते हैं जिन्हें ऐसे डिजाइन किया गया है कि एक ही इंसान उस पर सो सकता है. अगर एक से ज्यादा लोगों ने बैड पर चढ़ने की कोशिश की या फिर ज्यादा जोर भी लगाया तो वह टूट सकता है.

जापान वालों की यह ‘पलंगतोड़ तरकीब’ दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आई थी जब ऐथलीट पौल चेलिमो ने 17 जुलाई, 2021 को ‘ऐंटी सैक्स बैड’ को ले कर एक ट्वीट किया था, जिस के बाद से यह मामला इंटरनैट पर छा गया था.

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पौल चेलिमो ने बैड के फोटो शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा था, ‘‘टोक्यो ओलिंपिक खेलगांव में लगाए जाने वाले बैड कार्डबोर्ड से बने होंगे, जिन का मकसद ऐथलीटों के बीच इंटिमेसी (सैक्स करने) को रोकना है. यह बिस्तर एक इंसान का वजन उठाने के लायक होगा.’’

बाद में पौल चैलिमो ने इस मुद्दे पर कई मजाकिया ट्वीट किए. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘‘लगता है कि अब मु झे जमीन पर सोना सीखना होगा क्योंकि अगर बैड टूट गया और मु झे जमीन पर सोना नहीं आता होगा तो भैया मैं तो गया.’’

सोशल मीडिया के यूजर

इस मामले पर एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, ‘‘यह बेहद बचकाना है. वे (ऐथलीट) एडल्ट हैं और अपने फैसले खुद ले सकते हैं और अगर आप को वायरस का इतना ही खतरा था व सोशल डिस्टैंसिंग से इतना ही लगाव था तो यह ओलिंपिक कराना ही नहीं चाहिए था.’’

एक यूजर तो चार कदम आगे निकला. उस ने लिखा, ‘‘‘ऐंटी सैक्स बैड’ बना लिए, लेकिन फ्लोर और बाथरूम का क्या?’’

इस यूजर की बात में दम था कि अगर कोई खेलगांव में सैक्स करेगा तो वह बिस्तर के भरोसे थोड़े ही रहेगा. मजबूत जमीन किस दिन काम आएगी… या फिर बाथरूम.

गौरतलब है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलों के आयोजकों ने कंडोम की 4 कंपनियों के साथ करार भी किया है. करार के मुताबिक, ये कंपनियां ऐथलीटों को 1 लाख 60 हजार कंडोम बांटेंगी. पर आयोजकों के मुताबिक, ये कंडोम खेलगांव में इस्तेमाल करने के लिए नहीं हैं बल्कि ऐथलीट इन्हें अपने घर ले जा कर लोगों को सैक्स से जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरूक कर सकते हैं.

इस पूरे मसले पर कुछ ऐथलीटों ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा था कि ये बैड तो उन का खुद का वजन नहीं  झेल पाएंगे. कई खिलाड़ी ऐसा भी कह रहे हैं कि जब ऐसे ही बैड देने थे तो 1 लाख 60 हजार कंडोम क्यों बांटे?

मामला ज्यादा उछलता देख कर खेल आयोजकों ने ‘ऐंटी सैक्स बैड’ को ले कर बयान दिया कि ये बैड काफी मजबूत हैं और इन को ले कर जो बातें फैलाई गई थीं वे सभी अफवाहें थीं.

आयरलैंड के जिमनास्ट रिस मैकलेगन ने खुद नकली बैड की रिपोर्ट को खारिज किया. एक वीडियो में उन्होंने पलंग के ऊपर छलांग लगा कर इस बात को साबित किया और ट्विटर पर पोस्ट किए गए अपने वीडियो में कहा ‘‘ये पलंग ‘ऐंटी सैक्स’ कहे जा रहे थे. ये कार्डबोर्ड से बनाए गए हैं. हां, ये खास तरह की मूवमैंट रोकने के लिए हैं. यह फेक… फेक न्यूज है.’’

इस ट्वीट से ओलिंपिक आयोजकों ने राहत की सांस ली और उन के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ने भी इस  झूठी खबर से परदा हटाने के लिए रिस मैकलेगन का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा कि ये पलंग टिकाऊ और मजबूत हैं.

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अब यह खबर ज्यादा मजबूत है या ये तथाकथित ‘ऐंटी सैक्स बैड’, इस का फैसला तो वे ऐथलीट ही करेंगे जो इन पर सोएंगे. पर लगता है कि इस बार ओलिंपिक खेलों में मैदान पर खेल रिकौर्ड टूटने के साथसाथ पलंग टूटने के रिकौर्ड भी बन सकते हैं.

कुछ भी कहें, इस खबर से भारत के ‘पलंगतोड़ पान’ बनाने वाले बहुत खुश हो रहे होंगे. क्यों भैयाजी?

इन की सुन लीजिए

जहां तक ओलिंपिक खेलों में सैक्स का मुद्दा है, तो साल 2016 में हुए रियो ओलिंपिक खेलों के दौरान साढ़े 4 लाख कंडोम खेलगांव में बांटे गए थे. मतलब साफ है कि खिलाड़ी सैक्स से जुड़ी किसी बीमारी के शिकार न हों, इसलिए वे इस प्रोटैक्शन का इस्तेमाल करें.

फिलहाल ‘ऐंटी सैक्स बैड’ पर मचे बवाल पर पूर्व जरमन ऐथलीट सुसेन टाइडटके ने कहा कि ओलिंपिक खेलगांव में सैक्सुअल गतिविधियां न हों, ऐसा नहीं हो सकता है.

उन्होंने जरमन अखबार ‘बाइल्ड’ के साथ बातचीत में कहा, ‘‘मु झे इस बैन को सुन कर हंसी आ रही है. ऐसे बैन कभी काम नहीं करते हैं. सैक्स हमेशा से ही ओलिंपिक खेलगांव में मुद्दा रहा है. ऐथलीट ओलिंपिक में अपने पीक पर होते हैं. वे इन नामचीन खेलों की तैयारियों के लिए काफी कड़ी मेहनत करते हैं, ऐसे में कंपीटिशन के बाद एनर्जी रिलीज करनी होती है. ओलिंपिक के दौरान कौफी पार्टी चलती रहती है और फिर शराब भी इन पार्टियों में सर्व हो जाती है.’’

इस के अलावा ब्रिटेन के पूर्व टेबल टैनिस स्टार मैथ्यू सईद ने भी माना कि ओलिंपिक खेलगांव में सैक्सुअल गतिविधियां होती हैं.

मैथ्यू सईद ने ‘द टाइम्स’ में लिखे एक लेख में कहा था कि वे खास आकर्षक नहीं हैं लेकिन इस के बावजूद वे साल 1992 में बार्सिलोना में हुए ओलिंपिक खेलों के दौरान काफी सैक्सुअल गतिविधियों में शामिल रहे थे.

उन्होंने लिखा, ‘‘मु झ से अकसर पूछा जाता है कि क्या ओलिंपिक खेलगांव, जहां दुनिया के अव्वल ऐथलीट कुछ हफ्तों के लिए पहुंचते हैं, में काफी खुलापन होता है? मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि यह काफी हद तक सही है. मैं ने साल 1992 में हुए ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया था और उस दौरान मैं ने काफीकुछ ऐसा देखा, जिस की उम्मीद नहीं थी.’’

उन्होंने आगे कहा कि वे उस समय 21 साल के थे और उन की तरह कई लोग थे जो ओलिंपिक वर्जिन थे. उन सब में से कई लोगों के लिए ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने के साथ ही ओलिंपिक खेलगांव के ग्लैमर वर्ल्ड की चकाचौंध से भी रूबरू होने का मौका था.’’

Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

11जून, 2021 की शाम करीब सवा 6 बजे गाजियाबाद के लोनी में बलराम नगर के डी- ब्लौक में रहने वाला रवि ढाका अपनी दुकान से घर लौटा. उस ने गली में मकान के आगे अपनी बाइक खड़ी की. उस ने बाइक की चाबी निकाली. और चाबी के छल्ले में अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली डाल कर छल्ला घुमाते हुए अपने घर के मेन गेट से अंदर आगे बढा. उस ने महसूस किया कि घर एकदम शांत और सुनसान पड़ा था.

वैसे अकसर जब वह इसी समय पर घर वापस आया करता था तो उस के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका टीवी पर तेज आवाज में न्यूज देखते हुए मिला करते थे. टीवी की आवाज मेन गेट तक सुनाई देती थी. लेकिन उस दिन न तो कोई टीवी की आवाज आ रही थी और न ही उस के मातापिता के बात करने की कोई गूंज सुनाई दे रही थी.

इन सब चीजों के बारे में अपने मन में सवाल उठाते हुए, वह बेफिक्र अंदाज में ग्राउंड फ्लोर पर उस कमरे की ओर आगे बढ़ा, जहां उस के मातापिता रहते थे. कमरे में घुसने से पहले ही उसे टीवी का रिमोट दरवाजे के बाहर नीचे जमीन पर टूटा पड़ा मिला. जिस की बैटरियां वहीं पड़ी थीं.

यह देख कर रवि ने सोचा कि शायद मम्मी पापा के बीच कुछ नोकझोंक हुई है. तभी तो इतना सन्नाटा पसरा हुआ है. उस ने वह रिमोट और बैटरियां उठाईं और उस रिमोट में बैटरियां सेट करते हुए कमरे की दहलीज पर ही पहुंचा था कि तभी उस की नजर कमरे में पहुंची. और उस कमरे का दृश्य देख कर वह सन्न रह गया.

कमरे का सारा सामान अस्तव्यस्त था. कमरे की अलमारी खुली हुई थी और उस के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका पलंग और जमीन के सहारे पड़े थे.

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‘बाबा’ कहते हुए उस की चीख निकली. अपने पिता को इस हालत में देख कर रवि इतनी जोर से चिल्लाया कि गली के अन्य लोगों तक उस की आवाज पहुंच गई. जिस से कुछ ही देर में उस के घर के बाहर कई लोग पहुंच गए.

रवि को मां दिखाई नहीं दे रही थीं, इसलिए वह बिना देरी के ग्राउंड फ्लोर से निकल कर कमरे से सटी सीढि़यों से भागता हुआ पहली मंजिल पर मौजूद कमरे में पहुंचा. वहां उस की मां संतोष देवी की लाश बिस्तर पर पड़ी मिली.

उन के गले में फोन चार्जर का तार लपेटा हुआ था. मां की लाश देख रवि एकदम से हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसुओं की धार बहनी शुरू हो गई.

रोतेबिलखते हुए उस ने मां के गले में लिपटे हुए चार्जर के तार को निकाला. इस के बाद वह रोता हुआ सीढि़यां उतर कर घर के बाहर निकल गया. घर के मेन गेट पर लोगों की भीड़ रवि की चीख सुन कर पहले से ही जमा थी.

रवि को इस हाल में देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘रवि क्या हुआ जो तुम रो रहे हो?’’

रवि के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मोहल्ले के लोगों के सवालों का जवाब देते हुए वह रोते हुए बोला, ‘‘मेरे मांबाबा को किसी ने मार दिया. घर का सामान सारा बिखरा पड़ा है. ये कैसे हो गया.’’

यह सुनते ही कुछ लोग रवि के घर में उत्सुकतावश घुसे कि आखिर यह कैसे हो गया. घर में उन्होंने भी जब सुरेंद्र सिंह और उन की पत्नी को मृत अवस्था में देखा तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. फिर उन्हीं में से एक व्यक्ति ने इस की सूचना लोनी बौर्डर थाने में फोन कर के दे दी.

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सूचना पा कर थोड़ी देर में थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई.

मौकाएवारदात को पुलिस ने बारीकी से परखा. ग्राउंड फ्लोर पर रवि ढाका के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका की लाश थी और पहली मंजिल पर उस की मां संतोष देवी की लाश पड़ी थी. दोनों ही कमरों में घर का सामान बिखरा हुआ था. दोनों ही कमरों की अलमारियों के दरवाजे खुले थे. देख कर लग रहा था कि हत्याएं लूट के मकसद से की गई हैं.

थानाप्रभारी ने इस बारे में रवि व अन्य लोगों से पूछताछ की. इस के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

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मिसफिट पर्सन- भाग 2: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

‘‘क्यों, क्या शादीशुदा लाइन नहीं मारते?’’

‘‘मारते हैं लेकिन उन का स्टाइल जरा पोलाइट होता है जबकि कुंआरे सीधी बात करते हैं.’’

‘‘आप को बड़ा तजरबा है इस लाइन का.’’

‘‘आखिर शादीशुदा हूं. तुम से सीनियर भी हूं,’’ बड़ी अदा के साथ मिसेज बख्शी ने कहा.

दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘आजकल बख्शी साहब की नई सहेली कौन है?’’

‘‘कोई मिस बिजलानी है.’’

‘‘और आप का सहेला कौन है?’’

‘‘यह पता लगाना बख्शी साहब का काम है,’’ इस पर भी जोरदार ठहाका लगा.

‘‘और तेरा अपना क्या हाल है?’’

‘‘आजकल तो अकेली हूं. पहले वाले की शादी हो गई. दूसरे को कोई और मिल गई है. तीसरा अभी कोई मिला नहीं,’’ बड़ी मासूमियत के साथ ज्योत्सना ने कहा.

‘‘इस नए कस्टम अधिकारी के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘हैंडसम है, बौडी भी कड़क है. बात बन जाए तो चलेगा.’’

‘‘ट्राई कर के देख. वैसे अगर मैरिड हुआ तो?’’

‘‘तब भी चलेगा. शादीशुदा को ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ती.’’

फिर इस तरह के भद्दे मजाक होते रहे. ज्योत्सना अपने केबिन में चली गई. मिसेज बख्शी ने अपने फिक्स्ड अफसर को फोन कर दिया. मालखाने में जमा माल थोड़ी खानापूर्ति और थोड़ा आयात कर जमा करवाने के बाद छोड़ दिया गया.

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मिसेज बख्शी कीमती इलैक्ट्रौनिक उपकरणों का कारोबार करती थीं. वे विदेशों से पुरजे आयात कर, उन को एसेंबल करतीं और उपकरण तैयार कर अपने ब्रैंड नेम से बेचती थीं.

उपकरणों का सीधा आयात भी होता था मगर उस में एक तो समय लगता था दूसरे, पूरा एक कंटेनर या कई कंटेनर मंगवाने पड़ते थे. जमा खर्च भी होता था. पूंजी भी फंसानी पड़ती थी.

दूसरा तरीका डेली पैसेंजर के किसी एक व्यक्ति को या दोचार व्यक्तियों को एक समूह में दुबई, बैंकौक, सिंगापुर, टोकियो, मारीशस या अन्य स्थलों पर भेज कर 3-4 बड़ीबड़ी अटैचियों में ऐसा सामान मंगवा लिया जाता था.

रेलवे की तरह कई एअरलाइनें भी अब मासिक पास बनाती थीं. अकसर विदेश जाने वाले पैसेंजर ऐसे मासिक पास बनवा लेते थे. ज्योत्सना भी ऐसी ही पैसेंजर थी. वह महीने में कई दफा दुबई, सिंगापुर, बैंकौक चली जाती थी. सामान ले आती थी. पहले से अधिकारियों के साथ सैटिंग होने से माल सुविधापूर्वक एअरपोर्ट से बाहर निकल आता था. कभीकभी नरोत्तम जैसा अफसर होने से कोई पंगा पड़ जाता जिस से उस के एंप्लायर निबट लेते थे.

नरोत्तम घर पहुंचा. उस को देख उस की पत्नी रमा ने मुंह बिचकाया. फिर फ्रिज से पानी की बोतल निकाल उस के सामने रख दी. मतलब साफ था, खुद ही पानी गिलास में डाल कर पी लो.

नरोत्तम अपनी पत्नी के इस रूखे व्यवहार का कारण समझता था. वह घर में भी मिसफिट था. उस की पत्नी के मातापिता ने उस से अपनी बेटी का विवाह यह सोच कर किया था कि लड़का ‘कस्टम’ जैसे मलाईदार महकमे में है, लड़की राज करेगी. मगर बाद में पता चला कि लड़का सूफी या संन्यासी किस्म का था.

रिश्वत लेनादेना पाप समझता है, तो उन के अरमान बुझ गए. बढ़े वेतनों के कारण अब नौकरीपेशाओं का जीवनस्तर भी काफी ऊंचा हो गया था. घर में वैसे कोई कमी न थी. पतिपत्नी 2 ही लोग थे. विवाह हुए चंद महीने हुए थे. मगर ऊपर की कमाई का अपना मजा था. कस्टम अधिकारी की पत्नी और वह भी तनख्वाह में गुजारा करना पड़े. कैसा आदमी या पति पल्ले पड़ गया था. कस्टम जैसे महकमे में ऐसा बंदा कैसे प्रवेश पा गया था?

‘‘आज मल्होत्रा साहब शिफौन की साड़ी का पूरा सैट लाए हैं. हर महीने बंधेबंधाए लिफाफे भी पहुंच जाते हैं,’’ चाय का कप सैंटर टेबल पर रखते हुए रमा ने कहा.

रमा का यह रोज का ही आलाप था. मतलब साफ था कि उसे भी अन्य के समान रिश्वतखोर बन रिश्वत लेनी चाहिए.

ज्योत्सना अनेक बार कस्टम अधिकारी नरोत्तम के समक्ष आई. कई बार घोषित किया सामान सही निकला. कई बार सही नहीं निकला. पहले पकड़ा गया सामान मालखाने से किस तरह छूटता था, इस की कोई खबर नरोत्तम को नहीं हुई.

एक दिन नरोत्तम अपनी पत्नी को सैरसपाटे के लिए ले गया. वे एक रेस्तरां पहुंचे जहां बार भी था और डांसफ्लोर भी. पत्नी के लिए ठंडे का और अपने लिए हलके डिं्रक का और्डर दे बैठ गया.

सामने डांसफ्लोर पर अनेक जोड़े नाच रहे थे. थोड़ी देर बाद डांस का दौर समाप्त हुआ. एक जोड़ा समीप की मेज पर बैठने लगा. तभी नरोत्तम की नजर लड़की पर पड़ी. वह चौंक पड़ा. वह ज्योत्सना थी. ज्योत्सना ने भी उसे देख लिया. वह लपकती हुई उस की तरफ आई.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’

उस के इस बेबाक व्यवहार पर नरोत्तम सकपका गया. उस को हाथ मिलाना पड़ा.

‘‘साथ में कौन है?’’ नरोत्तम की पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए ज्योत्सना ने कहा.

‘‘मेरी वाइफ है.’’

‘‘वैरी गुड मैच इनडीड,’’ शरारत भरे स्वर में ज्योत्सना ने कहा.

नरोत्तम इस व्यवहार का अपनी पत्नी को क्या मतलब समझाता. वह समझ गया कि ज्योत्सना खामखां उस के समक्ष आई थी. उस का मकसद उस की पत्नी को भरमाना था.

‘‘एंजौय हैंडसम, फिर मिलेंगे,’’ शोखी से मुसकराती वह अपनी मेज की तरफ बढ़ गई.

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वेटर और्डर लेने आ गया. पत्नी गहरी नजरों से पति की तरफ देख रही थी. किसी तरह खाना खाया. ज्योत्सना चहकचहक कर अपने साथी के साथ खापी रही थी.

घर आते ही, जैसे कि नरोत्तम को आशा थी, रमा उस पर बरस पड़ी.

‘‘सामने बड़े सीधेसादे बनते हो. घर से बाहर हैंडसम बन चक्कर चलाते हो.’’

‘‘मेरा उस लड़की से चक्कर तो क्या परिचय भी नहीं है,’’ अपनी सफाई देते हुए नरोत्तम ने कहा.

‘‘चक्कर नहीं है, परिचय भी नहीं है, पर मिलने का ढंग तो ऐसा था मानो बरसों से जानते हो. एकांत स्थान होता तो शायद वह आप से लिपट कर चूमने लगती,’’ पत्नी ने हाथ नचा कर कहा.

तुम्हारे हिस्से में- भाग 2: पत्नी के प्यार में क्या मां को भूल गया हर्ष?

लेखक- महावीर राजी 

फिर हर्ष पेट में आया. तबीयत ढीली रहने लगी. डाक्टरों के पास जाने की औकात कहां? देशी टोटकों को देह पर सहेजा. देखतेदेखते 9वां महीना आ गया. फूले पेट के भीतर हर्ष की कलाबाजियों से मरणासन्न रमा वेदना को दांत पर दांत जमा कर बर्दाश्त करने की नाकाम कोशिश करती रही, तभी डाक्टर ने ऐलान किया, ‘केस सीरियस हो गया है और जच्चा या बच्चा दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है.’

रमा की आंखों के आगे अंधेरा छा गया, पर दूसरे ही पल उस ने दृढ़ता के साथ डाक्टर से कहा, ‘सिर्फ और सिर्फ बच्चे को बचा लेना हुजूर. रमेसर की गोद में हमारे प्यार की निशानी तो रह जाएगी जो इस सतरंगी दुनिया को देख सकेगी.’

डाक्टर ने हर्ष को जीवनदान दे दिया. रमा कोमा में चली गई. कोमा की यह स्थिति 15 दिनों तक बनी रही. डाक्टरों ने उस की जिंदगी की उम्मीद छोड़ दी थी. पर मौत के संग लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार रमा बच ही गई.

हर्ष पढ़नेलिखने में औसत था. पढ़ने से जी चुराता. स्कूल के नाम पर घर से निकल जाता और स्कूल न जा कर आवारा लड़कों के संग इधरउधर मटरगश्ती करता रहता. राजमार्ग के पास वाली पुलिया पर बैठ कर आतीजाती लड़कियों को छेड़ा करता. इन सब बातों को ले कर रमेसर अकसर उस की पिटाई कर देता.

‘तेरे भले के लिए ही कह रहे हैं रे,’ रमा उसे प्यार से समझाती, ‘पढ़लिख लेगा तो इज्जत की दो रोटियां मिलने लगेंगी, नहीं तो अभावों और जलालत की जिंदगी ही जीनी पड़ेगी.’

किसी तरह मैट्रिक पास हो गया तो रमा ने उसे कोलकाता भेज देने का निश्चय कर लिया. पुराने आवारा दोस्तों का साथ छूटेगा, तभी पढ़ाई के प्रति गंभीर हो सकेगा.

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‘पर वहां का खर्च क्या आसमान से आएगा?’ रमेसर ने शंका जाहिर की तो रमा के चेहरे पर आत्मविश्वास की पुखराजी धूप खिल आई, ‘आसमान से कभी कोई चीज आई है जो अब आएगी? खर्चा हम पूरा करेंगे. आधा पेट खा कर रह लेंगे. जरूरतों में और कटौती कर लेंगे. चाहे जैसे भी हो, हर्ष को पढ़ाना ही होगा. उस की जिंदगी संवारनी होगी.’

रमा की जीवटता देख कर रमेसर चुप हो गया. हर्ष को कोलकाता भेज दिया गया. एक सस्ते से पीजी होम में रहने का इंतजाम हुआ. नए दोस्तों की संगत रंग लाने लगी. रमा पैसे लगातार भेजती रही. इन पैसों का जुगाड़ किन मुसीबतों से गुजर कर हो रहा है, हर्ष को कोई मतलब नहीं था. पहले इंटर, फिर बीए और फिर एमबीए. एकएक सीढि़यां तय करता हुआ हर्ष अपनी मंजिल तक पहुंच ही गया.

एमबीए की डिगरी का झोली में आ जाना टर्निंग पौइंट साबित हुआ हर्ष के लिए. पहले ही प्रयास में एक बड़ी स्टील कंपनी में जौब मिल गया. फिर सुंदर और पढ़ीलिखी संजना से ब्याह हो गया. कोलकाता में पोस्ंिटग और अलीपुर में कंपनी के आवासीय कौंप्लैक्स में शानदार फ्लैट. अरसे से दानेदाने को मुहताज किसी वंचित को जैसे अथाह संपदा के ढेर पर ही बैठा दिया गया हो. एकबारगी ढेर सारी सुविधाएं, ढेर सारा वैभव. सबकुछ छोटे से आयताकार क्रैडिट कार्ड में कैद.

उस स्टील कंपनी में जौब लगे 3 साल हो गए. जौब लगते ही हर्ष ने कहा था, ‘नई जगह है मम्मी, सैट होने में हमें वक्त लगेगा. सैट होते ही तुम्हें यहां अपने पास बुला लेंगे. इस जगह को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे.’

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सुन कर अच्छा लगा. रफूगीरी का काम करतेकरते तन और मन पर इतने सारे रफू चस्पां हो गए हैं कि घिन्न आने लगी है इन से. अब वह भी सामान्य जिंदगी जीना चाहती है, जिस दिन भी हर्ष कहेगा, चल देगी. यहां कौन सी संपत्ति पड़ी है? सारी गृहस्थी एक छोटी सी गठरी में ही समा जाएगी.

लेकिन 3 साल गुजर गए. इसी बीच हर्ष कई बार आया यहां. 2 दिनों के प्रवास के डेढ़ दिन ससुराल में बीतते. फिर बिना कुछ कहे लौट जाता. ‘मम्मी, इस बार तुम्हें भी साथ चलना है,’ इस एक पंक्ति को सुनने के लिए तड़प कर रह जाती रमा.

‘तो क्या अपने साथ ले चलने के लिए हर्ष के आगे हाथ जोड़ते हुए, गिड़गिड़ाते हुए विनती करनी होगी? मां की तनहाइयों और मुसीबतों का एहसास खुद ही नहीं होना चाहिए उसे? न, वह ऐसा नहीं कर सकती. उस के जमीर को ऐसा कतई मंजूर नहीं होगा. सिर्फ एक बार, कम से कम एक बार तो हर्ष को मनुहार करनी ही होगी. अगर वह ऐसा नहीं कर सकता तो न करे. वह भी कहीं जाने के लिए मरी नहीं जा रही.’

Bigg Boss Ott: अक्षरा सिंह ने उड़ाया शमिता शेट्टी का मजाक, कहा ‘मां की उम्र की है और तमीज नहीं है’

बिग बॉस ओटीटी (Bigg Boss Ott)  में कंटेस्टेंट के बीच खूब हंगामा देखने को मिल रहा है. शो को दो हफ्ते पूरे होने वाला है. कंटेस्टेंट के बीच हर छोटी-सी छोटी बात पर जमकर बहस हो रही है. खासकर शामिता शेट्टी और अक्षरा सिंह के बीच लड़ाई बढ़ती जा रही है.

शो में पहले दिन से ही दोनों के बीच खटास पैदा हो गई थी. उस दिन से लेकर आज दोनों में खूब लड़ाइयां होती है. शो में दिखाया गया कि अक्षरा सिंह (Akshara Singh) ने शमिता शेट्टी की उम्र का मजाक उड़ाया. फिर से उन्होंने शामिता को उम्र को लेकर कमेंट किया है.

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दरअसल घर की कैप्टन शमिता शेट्टी हैं. ऐसे में कीचन की ड्यूटी को लेकर दोनों में लड़ाई हुई. अक्षरा किचन में खाना बना रही थीं और उन्होंने शमिता से पूछा कि नमक कहां पर है.

 

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शमिता ने अक्षरा से बदतमीजी की. इसके बाद दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो गई. दोनों की लड़ाई देखकर सारे घरवाले एक ही जगह पर इकट्ठा हो गए. इस दौरान प्रतीक सेहजपाल ने अक्षरा सिंह का साथ दिया. तो वहीं राकेश बापस शमिता शेट्टी के कनेक्शन वहां पर आए और उन्होंने मामले को सुलझाने कोशिश की. शमिता ने कहा कि अक्षरा लोगों से सिम्पेथी गेन करना चाहती है.

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इसी बीच अक्षरा सिंह ने उनकी उम्र का फिर से मजाक बनाया. उन्होंने कहा कि मां की उम्र की है और इतनी तमीज नहीं है किसी से कैसे बात करना है. इस हफ्ते उर्फी जावेद घर से बेघर हुए. उर्फी ने जीशान खान और दिव्या अग्रवाल को खूब खरी-खोटी सुनाई है. इस हफ्ते ये देखना दिलचस्प होगाल कि बिग बॉस हाउस से कौन-कौन बाहर जाएगा?

 

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टोक्यो ओलिंपिक: खेल को अर्श और फर्श पर ले जाने वाले 2 खिलाड़ी

इस बार के ओलिंपिक खेलों में 2 ऐसी बातें या घटनाएं देखने को मिलीं, जिन में पहली घटना में एक खिलाड़ी ने वह कारनामा किया कि उस की दुनिया जहान में खूब वाहवाही हुई, जबकि दूसरी घटना में एक खिलाड़ी ने अपनी करतूत से खेल को ही शर्मसार कर दिया.

पहला मामला ऊंची कूद यानी हाई जंप से जुड़ा है. दरअसल, 30 साल के मुताज बरशीम और 29 साल के गियानमार्को टेंबरी ने हाई जंप के फाइनल में 2.37 मीटर जंप के साथ मुकाबला खत्म किया था. वे दोनों खिलाड़ी 3-3 बार 2.39 मीटर जंप की कोशिश में नाकाम रहे थे.

इस टाई पर ओलिंपिक रैफरी ने दोनों को ‘जंप औफ’ रूल के बारे में बताया और कहा कि इस ‘जंप औफ’ में जो जीतेगा, गोल्ड मैडल उस का होगा.

रैफरी के प्रस्ताव के बाद मुताज बरशीम ने उन से पूछा कि अगर आगे मुकाबला न हो तो क्या उन दोनों को गोल्ड मिल सकता है?

इस पर रैफरी ने हामी भरी, तो यह सुनते ही मुताज बरशीम तुरंत गियानमार्को टेंबरी के पास गए और हाथ मिला कर गोल्ड मैडल की जीत का गोल्डन हैंडशेक किया.

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इतना सुनते ही खुशी के मारे गियानमार्को टेंबरी ने मुताज बरशीम को गले से लगा लिया और तकरीबन उन पर कूद पड़े. इस के बाद उन दोनों ने पूरे मैदान का चक्कर लगाया.

यह वाकई एक ऐतिहासिक पल था जब ओलिंपिक हाई जंप में इन 2 दोस्तों ने मैच टाईब्रेकर में ले जाने के बजाय गोल्ड मैडल साझा करने का सुनहरा रास्ता चुना.

गौरतलब है कि मुताज बरशीम और गियानमार्को टेंबरी दोनों अच्छे दोस्त हैं. मुताज बरशीम ने लंदन और रियो ओलिंपिक में सिल्वर मैडल जीता था.  इस के अलावा वे साल 2017 और साल 2019 में 2 वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब भी हासिल कर चुके हैं.

इटली के गियानमार्को टेंबरी के पैर में साल 2016 के रियो ओलिंपिक से पहले चोट लग गई थी. चोट के बाद वे खेलों में अच्छी वापसी चाहते थे और उन्हें अब गोल्ड मैडल मिल गया है. भावुक गियानमार्को टेंबरी ने बताया कि उन्होंने इस पल का कई बार सपना देखा, जो अब पूरा हुआ है.

खेल भावना की इस शानदार मिसाल के बाद उस मामले पर गौर करते हैं, जिस ने टोक्यो ओलिंपिक का मजा किरकिरा कर दिया.

हुआ यों कि मैराथन के दौरान अपने साथ दौड़ रहे धावकों से आगे निकलने के लिए एथलीट मोरहाद अमदौनी ने तमाम एथलीटों के लिए रखी पानी की बोतलों को गिरा दिया. उन की यह करतूत वहां मौजूद कैमरे में कैद हो गई.

टोक्यो में भीषण गरमी के बावजूद एथलीटों को किसी भी तरह की छूट नहीं दी गई थी, लेकिन उन के लिए आयोजकों ने ट्रैक के किनारे मेज पर पानी की बोतलें रखी थीं, ताकि एथलीट दौड़ते हुए ही पानी की बोतल उठा सकें और पिए या फिर सिर पर उड़ेल लें, ताकि प्यास और गरमी से बचे रहें.

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लेकिन मोरहाद अमदौनी ने पानी की बोतल उठाने की जगह बाकी बोतलों को भी जानबूझ कर गिरा दिया. शायद उस की मंशा थी कि कुछ खिलाड़ी गिरी बोतलों में उलझ कर पीछे रह जाएं. ऐसा कितना हुआ यह तो पता नहीं, पर सोशल मीडिया पर यह वीडियो सामने आने के बाद इस खिलाड़ी की खूब किरकिरी हुई.

एक शख्स ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘टोक्यो ओलिंपिक में सब से घटिया करतूत करने वाले इस फ्रांसीसी खिलाड़ी धावक मोरहाद अमदौनी को गोल्ड मैडल मिलना चाहिए, जिन्होंने जानबूझ कर अपने साथियों का पानी गिरा दिया.’

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वैसे, फ्रांसीसी खिलाड़ी अमदौनी की इस घटिया हरकत से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वे खुद 2 घंटे, 14 मिनट और 33 सैकंड में रेस पूरी करने के बाद 17वें नंबर पर रहे, जबकि उन के पीछे नीदरलैंड्स के आब्दी नगेई थे, जिन्होंने 2 घंटे, 9 मिनट और 58 सैकंड के साथ अपनी रेस पूरी की और  सिल्वर मैडल पर अपना कब्जा जमाया.

केन्या के एलियुड किपचोगे ने 2 घंटे, 8 मिनट और 38 सैकंड के समय में ओलिंपिक पुरुष मैराथन का खिताब अपने पास ही बरकरार रखा.

Raksha Bandhan Special: भाई-बहन का रिश्ता बनाता है मायका, इसलिए समझें रिश्तों की अहमियत!

पता चला कि राजीव को कैंसर है. फिर देखते ही देखते 8 महीनों में उस की मृत्यु हो गई. यों अचानक अपनी गृहस्थी पर गिरे पहाड़ को अकेली शर्मिला कैसे उठा पाती? उस के दोनों भाइयों ने उसे संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि एक भाई के एक मित्र ने शर्मिला की नन्ही बच्ची सहित उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

शर्मिला की मां उस की डोलती नैया को संभालने का श्रेय उस के भाइयों को देते नहीं थकती हैं, ‘‘अगर मैं अकेली होती तो रोधो कर अपनी और शर्मिला की जिंदगी बिताने पर मजबूर होती, पर इस के भाइयों ने इस का जीवन संवार दिया.’’

सोचिए, यदि शर्मिला का कोई भाईबहन न होता सिर्फ मातापिता होते, फिर चाहे घर में सब सुखसुविधाएं होतीं, किंतु क्या वे हंसीसुखी अपना शेष जीवन व्यतीत कर पाते? नहीं. एक पीड़ा सालती रहती, एक कमी खलती रहती. केवल भौतिक सुविधाओं से ही जीवन संपूर्ण नहीं होता, उसे पूरा करते हैं रिश्ते.

सूनेसूने मायके का दर्द: सावित्री जैन रोज की तरह शाम को पार्क में बैठी थीं कि रमा भी सैर करने आ गईं. अपने व्हाट्सऐप पर आए एक चुटकुले को सभी को सुनाते हुए वे मजाक करने लगीं, ‘‘कब जा रही हैं सब अपनेअपने मायके?’’

सभी खिलखिलाने लगीं पर सावित्री मायूसी भरे सुर में बोलीं, ‘‘काहे का मायका? जब तक मातापिता थे, तब तक मायका भी था. कोई भाई भाभी होते तो आज भी एक ठौरठिकाना रहता मायके का.’’

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वाकई, एकलौती संतान का मायका भी तभी तक होता है जब तक मातापिता इस दुनिया में होते हैं. उन के बाद कोई दूसरा घर नहीं होता मायके के नाम पर.

भाईभाभी से झगड़ा:

‘‘सावित्रीजी, आप को इस बात का अफसोस है कि आप के पास भाईभाभी नहीं हैं और मुझे देखो मैं ने अनर्गल बातों में आ कर अपने भैयाभाभी से झगड़ा मोल ले लिया. मायका होते हुए भी मैं ने उस के दरवाजे अपने लिए स्वयं बंद कर लिए,’’ श्रेया ने भी अपना दुख बांटते हुए कहा.

ठीक ही तो है. यदि झगड़ा हो तो रिश्ते बोझ बन जाते हैं और हम उन्हें बस ढोते रह जाते हैं. उन की मिठास तो खत्म हो गई होती है. जहां दो बरतन होते हैं, वहां उन का टकराना स्वाभाविक है, परंतु इन बातों का कितना असर रिश्तों पर पड़ने देना चाहिए, इस बात का निर्णय आप स्वयं करें.

भाईबहन का साथ:

भाई बहन का रिश्ता अनमोल होता है. दोनों एकदूसरे को भावनात्मक संबल देते हैं, दुनिया के सामने एकदूसरे का साथ देते हैं. खुद भले ही एकदूसरे की कमियां निकाल कर चिढ़ाते रहें लेकिन किसी और के बीच में बोलते ही फौरन तरफदारी पर उतर आते हैं. कभी एकदूसरे को मझधार में नहीं छोड़ते हैं. भाईबहन के झगड़े भी प्यार के झगड़े होते हैं, अधिकार की भावना के साथ होते हैं. जिस घरपरिवार में भाईबहन होते हैं, वहां त्योहार मनते रहते हैं, फिर चाहे होली हो, रक्षाबंधन या फिर ईद.

मां के बाद भाभी:

शादी के 25 वर्षों बाद भी जब मंजू अपने मायके से लौटती हैं तो एक नई स्फूर्ति के साथ. वे कहती हैं, ‘‘मेरे दोनों भैयाभाभी मुझे पलकों पर बैठाते हैं. उन्हें देख कर मैं अपने बेटे को भी यही संस्कार देती हूं कि सारी उम्र बहन का यों ही सत्कार करना. आखिर, बेटियों का मायका भैयाभाभी से ही होता है न कि लेनदेन, उपहारों से. पैसे की कमी किसे है, पर प्यार हर कोई चाहता है.’’

दूसरी तरफ मंजू की बड़ी भाभी कुसुम कहती हैं, ‘‘शादी के बाद जब मैं विदा हुई तो मेरी मां ने मुझे यह बहुत अच्छी सीख दी थी कि शादीशुदा ननदें अपने मायके के बचपन की यादों को समेटने आती हैं. जिस घरआंगन में पलीबढ़ीं, वहां से कुछ लेने नहीं आती हैं, अपितु अपना बचपन दोहराने आती हैं. कितना अच्छा लगता है जब भाईबहन संग बैठ कर बचपन की यादों पर खिलखिलाते हैं.’’

मातापिता के अकेलेपन की चिंता:

नौकरीपेशा सीमा की बेटी विश्वविद्यालय की पढ़ाई हेतु दूसरे शहर चली गई. सीमा कई दिनों तक अकेलेपन के कारण अवसाद में घिरी रहीं. वे कहती हैं, ‘‘काश, मेरे एक बच्चा और होता तो यों अचानक मैं अकेली न हो जाती. पहले एक संतान जाती, फिर मैं अपने को धीरेधीरे स्थिति अनुसार ढाल लेती. दूसरे के जाने पर मुझे इतनी पीड़ा नहीं होती. एकसाथ मेरा घर खाली नहीं हो जाता.’’

एकलौती बेटी को शादी के बाद अपने मातापिता की चिंता रहना स्वाभाविक है. जहां भाई मातापिता के साथ रहता हो, वहां इस चिंता का लेशमात्र भी बहन को नहीं छू सकता. वैसे आज के जमाने में नौकरी के कारण कम ही लड़के अपने मातापिता के साथ रह पाते हैं. किंतु अगर भाई दूर रहता है, तो भी जरूरत पर पहुंचेगा अवश्य. बहन भी पहुंचेगी परंतु मानसिक स्तर पर थोड़ी फ्री रहेगी और अपनी गृहस्थी देखते हुए आ पाएगी.

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पति या ससुराल में विवाद:

सोनम की शादी के कुछ माह बाद ही पतिपत्नी में सासससुर को ले कर झगड़े शुरू हो गए. सोनम नौकरीपेशा थी और घर की पूरी जिम्मेदारी भी संभालना उसे कठिन लग रहा था. किंतु ससुराल का वातावरण ऐसा था कि गिरीश उस की जरा भी सहायता करता तो मातापिता के ताने सुनता. इसी डर से वह सोनम की कोई मदद नहीं करता.

मायके आते ही भाई ने सोनम की हंसी के पीछे छिपी परेशानी भांप ली. बहुत सोचविचार कर उस ने गिरीश से बात करने का निर्णय किया. दोनों घर से बाहर मिले, दिल की बातें कहीं और एक सार्थक निर्णय पर पहुंच गए. जरा सी हिम्मत दिखा कर गिरीश ने मातापिता को समझा दिया कि नौकरीपेशा बहू से पुरातन समय की अपेक्षाएं रखना अन्याय है. उस की मदद करने से घर का काम भी आसानी से होता रहेगा और माहौल भी सकारात्मक रहेगा.

पुणे विश्वविद्यालय के एक कालेज की निदेशक डा. सारिका शर्मा कहती हैं, ‘‘मुझे विश्वास है कि यदि जीवन में किसी उलझन का सामना करना पड़ा तो मेरा भाई वह पहला इंसान होगा जिसे मैं अपनी परेशानी बताऊंगी. वैसे तो मायके में मांबाप भी हैं, लेकिन उन की उम्र में उन्हें परेशान करना ठीक नहीं. फिर उन की पीढ़ी आज की समस्याएं नहीं समझ सकती. भाई या भाभी आसानी से मेरी बात समझते हैं.’’

भाईभाभी से कैसे निभा कर रखें:

भाईबहन का रिश्ता अनमोल होता है. उसे निभाने का प्रयास सारी उम्र किया जाना चाहिए. भाभी के आने के बाद स्थिति थोड़ी बदल जाती है. मगर दोनों चाहें तो इस रिश्ते में कभी खटास न आए.

सारिका कितनी अच्छी सीख देती हैं, ‘‘भाईभाभी चाहे छोटे हों, उन्हें प्यार देने व इज्जत देने से ही रिश्ते की प्रगाढ़ता बनी रहती है नाकि पिछले जमाने की ननदों वाले नखरे दिखाने से. मैं साल भर अपनी भाभी की पसंद की छोटीबड़ी चीजें जमा करती हूं और मिलने पर उन्हें प्रेम से देती हूं. मायके में तनावमुक्त माहौल बनाए रखना एक बेटी की भी जिम्मेदारी है. मायके जाने पर मिलजुल कर घर के काम करने से मेहमानों का आना भाभी को अखरता नहीं और प्यार भी बना रहता है.’’

ये आसान सी बातें इस रिश्ते की प्रगाढ़ता बनाए रखेंगी:

– भैयाभाभी या अपनी मां और भाभी के बीच में न बोलिए. पतिपत्नी और सासबहू का रिश्ता घरेलू होता है और शादी के बाद बहन दूसरे घर की हो जाती है. उन्हें आपस में तालमेल बैठाने दें. हो सकता है जो बात आप को अखर रही हो, वह उन्हें इतनी न अखर रही हो.

– यदि मायके में कोई छोटामोटा झगड़ा या मनमुटाव हो गया है तब भी जब तक आप से बीचबचाव करने को न कहा जाए, आप बीच में न बोलें. आप का रिश्ता अपनी जगह है, आप उसे ही बनाए रखें.

– यदि आप को बीच में बोलना ही पड़े तो मधुरता से कहें. जब आप की राय मांगी जाए या फिर कोई रिश्ता टूटने के कगार पर हो, तो शांति व धैर्य के सथ जो गलत लगे उसे समझाएं.

– आप का अपने मायके की घरेलू बातों से बाहर रहना ही उचित है. किस ने चाय बनाई, किस ने गीले कपड़े सुखाए, ऐसी छोटीछोटी बातों में अपनी राय देने से ही अनर्गल खटपट होने की शुरुआत हो जाती है.

– जब तक आप से किसी सिलसिले में राय न मांगी जाए, न दें. उन्हें कहां खर्चना है, कहां घूमने जाना है, ऐसे निर्णय उन्हें स्वयं लेने दें.

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– न अपनी मां से भाभी की और न ही भाभी से मां की चुगली सुनें. साफ कह दें कि मेरे लिए दोनों रिश्ते अनमोल हैं. मैं बीच में नहीं बोल सकती. यह आप दोनों सासबहू आपस में निबटा लें.

– आप चाहे छोटी बहन हों या बड़ी, भतीजोंभतीजियों हेतु उपहार अवश्य ले जाएं. जरूरी नहीं कि महंगे उपहार ही ले जाएं. अपनी सामर्थ्यनुसार उन के लिए कुछ उपयोगी वस्तु या कुछ ऐसा जो उन की उम्र के बच्चों को भाए, ले जाएं.

Anupamaa: काव्या को मिला बेस्ट खलनायिका का अवार्ड, सोशल मीडिया पर खुशी की जाहिर

मदालशा शर्मा, सुधांशु पांडेय और रूपाली गांगुली स्टारर सीरियल   ‘अनुपमा’ (Anupamaa)  टीआरपी चार्ट में टॉप पर कब्जा जमाए हुए है. इस शो का हर कैरेक्टर पॉपुलर है. शो का हर कालाकर को दर्शक खूब पसंद करते हैं. इस शो में अनुपमा के साथ-साथ लोग काव्या के भी किरदार को पसंद करते हैं. इसी बीच काव्या यानी मदालशा शर्मा को  को एक अवॉर्ड से नवाजा गया है. आइए बताते हैं काव्या को किस अवॉर्ड से नवाजा गया है.

हाल ही में मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) ने इंस्टाग्राम पर फोटो शेयर की है. इस फोटो में आप देख सकते हैं कि एक्ट्रेस एक अवॉर्ड पकड़े हुए दिखाई दे रही हैं.

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काव्या यानी मदालसा  शर्मा ने  फोटो को शेयर करते हुए बताया है कि उन्हें बेस्ट खलनायिका का खिताब मिला है. यह अवॉर्ड इंटरनेशनल आइकॉनिक अवॉर्ड्स द्वारा दिया गया है.

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‘अनुपमा’ में मदालशा शर्मा निगेटिव रोल में नजर आ रही हैं. वह काव्या का किरदार निभा रही हैं. शो में दिखाया जा रहा है कि काव्या को फिर से उसी कंपनी से जॉब का ऑफर आया है. ढोलकियी ने किंजल की जगह काव्या को ऑफर किया है. काव्या काफी खुश है और उसने जॉब एक्सेप्ट कर लिया है.

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काव्या पूरे परिवार को बताएगी कि ढोलकिया ने किंजल को नौकरी से हटा दिया है और उसकी जगह पर उसे हायर किया है. तो उधर किंजल को ये डर सताएगा कि कहीं ढोलकिया काव्या को सारी बात ना बता दें. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुपमा  ढोलकिया को कैसे सबक सीखाती है.

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