शिवानी वर्मा आगरा के सब से पुराने और मशहूर आगरा कालेज से बीएससी कर रही थी. पिता रविंद्र वर्मा फार्मासिस्ट थे और मां ऊषा घर संभालती थीं. उस के 2 भाई थे सचिन और शिवम. रविंद्र वर्मा का थाना सदर की ओम एन्क्लेव कालोनी में काफी अच्छा मकान था.

कुल मिला कर उन का छोटा और खुशहाल परिवार था. रविंद्र वर्मा शिवानी को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, ताकि उसे अच्छी नौकरी मिल सके. शिवानी भी मन लगा कर पढ़ रही थी. अचानक उस के साथ कुछ ऐसा घटा कि रविंद्र के सारे सपने धरे के धरे रह गए.

आगरा कालेज से ही शाहगंज के शंकरगढ़ का रहने वाला गौरव बीए कर रहा था. कालेज में कभी मुलाकात होने से शिवानी की गौरव से दोस्ती हो गई. कालेज में दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती थीं.

गौरव गरीब घर का जरूर था, लेकिन पढ़ने में ठीकठाक था. उस के पिता रामस्नेही घर के बाहर फल का ठेला लगाते थे. उस के घर एक भैंस भी थी, जिस की देखभाल उस की मां करती थीं. भैंस के दूध से भी कुछ कमाई हो जाती थी. गौरव का एक भाई और 2 बहनें थीं.

शिवानी और गौरव जब भी मिलते, देर तक बातचीत करते थे. गौरव अपना कैरियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था. लेकिन लगातार मिलने से उन के बीच प्यार की कोपलें फूटने लगीं. उन्हें महसूस होने लगा कि वे एकदूसरे को चाहने लगे हैं, वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

लेकिन गौरव के दिल में एक बात खटकती थी कि वह दूसरी जाति का है. जब शिवानी को उस की हकीकत पता चलेगी तो कहीं वह मुंह न मोड़ ले. इस की एक वजह यह थी कि उस की जाति शिवानी की जाति से निम्न थी.

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