यूपी ने कायम की मिसाल, वैक्सिनेशन छह करोड़ पार

यूपी ने कोरोना टीकाकरण में दूसरे प्रदेशों को पीछे छोड़ते हुए अपने  नाम एक नया रिकार्ड हासिल किया है. महाराष्‍ट्र, दिल्‍ली, आंध्र प्रदेश, वेस्‍ट बंगाल समेत दूसरे कई राज्‍यों से आगे निकल 6 करोड़ से अधिक टीकाकरण की डोज दी हैं. यह आंकड़ा देश के दूसरे प्रदेशों से कहीं अधिक है. यूपी टीकाकरण के साथ ही सर्वाधिक जांच करने वाला प्रदेश है. ट्रिपल टी की रणनीति व टीकाकरण से यूपी में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नियंत्रण में हैं. प्रदेश में वृहद टीकाकरण अभियान के तहत ‘सबका साथ, सबका विकास, सबको वैक्सीन, मुफ्त वैक्सीन’ के मूल मंत्र पर टीकाकरण किया जा रहा है.

प्रदेश में वैक्‍सीन की पहली खुराक 5 करोड़ 07 लाख से अधिक और 94 लाख से अधिक वैक्‍सीन की दूसरी डोज दी जा चुकी है. बता दें क‍ि मेगा वैक्सिनेशन में एक दिन में सर्वाधिक टीकाकरण कर यूपी देश के दूसरे प्रदेशों के समक्ष नज़ीर पेश कर चुका है. योगी सरकार ने मेगा वैक्सिनेशन ड्राइव के तहत एक दिन में 20 लाख लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसके सापेक्ष में यूपी ने 29.52 लाख लोगों का टीकाकरण किया था. जो एक दिन में किया गया अब तक का सर्वाधिक टीकाकरण था. एक दिन में अब तक सबसे अधिक वैक्‍सीन की डोज लगाकर योगी सरकार रिकार्ड बना चुकी है.

14 दिनों के अंदर एक करोड़ टीकाकरण कर अपने लक्ष्‍य के करीब पहुंचा यूपी

यूपी में टीकाकरण अभियान को गति देते हुए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में युद्धस्‍तर पर टीकाकरण किया जा रहा है. तीन अगस्‍त को यूपी ने पांच करोड़ टीकाकरण कर एक कीर्तिमान बनाया था वहीं महज 14 दिनों में एक करोड़ टीकाकरण कर यूपी ने छह करोड़ टीकाकरण कर अपने निर्धारित टीकाकरण लक्ष्‍य की ओर तेजी  से आगे बढ़ रहा है. 31 अगस्‍त तक 10 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया है. मिशन जून के तहत प्रदेश सरकार ने एक करोड़ लोगों को वैक्‍सीन की डोज लगाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया था लेकिन प्रदेश में इससे कहीं अधिक एक करोड़ 29 हजार टीके की डोज दी गई.

यूपी ऐसे रहा महाराष्ट्र, दिल्ली और अन्य प्रदेशों से टीकाकरण में अव्वल

25 करोड़ के आबादी वाले उत्तर प्रदेश से देश के दूसरे प्रदेश टीकाकरण में कहीं पीछे हैं.  वेस्ट बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत अन्य प्रदेशों में जहां काम आबादी होने के बावजूद टीकाकरण धीमी गति से चल रहा कहीं यूपी लगातार रिकॉर्ड बना रहा है. वेस्ट बंगाल में अब तक तीन करोड़ 47 लाख, केरल में दो करोड़ 47 लाख,महाराष्ट्र में पांच करोड़ 03 लाख, दिल्ली में एक करोड़ 17  लाख और तमिलनाडु दो करोड़ 72 लाख ही वैक्सिनेशन किया गया है.

सुविधाओं से लैस होगी एटीएस

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में आतंकी गतिविधियों के प्रभावी रोकथाम के लिए बड़ी पहल की है. उन्होंने प्रदेश में पहली बार एक साथ एटीएस की 12 इकाइयों की स्थापना की संस्तुति की है. साथ ही एटीएस को और मजबूत करने के लिए प्रस्ताव मांगा है, आशा है कि जल्द ही एटीएस को और अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया जाएगा और समुचित मानव संसाधन उपलब्ध कराया जाएगा.

प्रदेश के संवेदनशील 10 जिलों मेरठ, अलीगढ़, श्रावस्ती, बहराइच, ग्रेटर नोएडा (जेवर एयरपोर्ट), आजमगढ़ (निकट एयरपोर्ट), कानपुर, सोनभद्र, मीरजापुर और सहारनपुर के देवबंद में एटीएस इकाई/कमाण्डो ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किया जाएगा. इसके लिए संबंधित जिलों में भूमि आवंटित हो गई है और भवनों के निर्माण के लिए कार्यवाही चल रही है. इसके अलावा वाराणसी और झांसी में एटीएस इकाई की स्थापना के लिए जल्द ही भूमि आवंटन होने की संभावना है. शासन के निर्देशानुसार एटीएस को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बहराइच और श्रावस्ती में एटीएस की नई फील्ड यूनिट स्थापित की जा चुकी है और कार्य सुचारु रूप से चल रहा है.

एटीएस आतंकी मंसूबों पर फेर रहा पानी, राष्ट्र द्रोहियों को भेज रहा जेल

एटीएस ने विभिन्न आतंकवादी संगठनों आईएसआईएस, हिजबुल मुजाहिद्दीन, जैश-ए-मोहम्मद, जेएमबी, आईएसआई जासूस, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई), नक्सल, टेरर फंडिंग, एबीटी/बांग्लादेश, बब्बर खालसा, जाली भारतीय मुद्रा आदि से सम्बन्धित 69 आतंकवादियों, विभिन्न अपराधों से संबंधित 216 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. इसके अलावा मूक बधिर छात्रों, कमजोर आय वर्ग के लोगों को धन, नौकरी और शादी का लालच देकर धर्मांतरण कराने वाले सिंडिकेट का भंडाफोड़ करते हुए कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. इसके अलावा 16 जनवरी को एटीएस ने कूट रचित प्रपत्रों के आधार पर भारी मात्रा में फर्जी मोबाईल सिम एक्टीवेट कराने से संबंधित 18 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है, जिसमें तीन चीनी नागरिक भी शामिल हैं. यह मामला आर्थिक घोटाले के साथ-साथ राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से जुड़ा है, जिसकी गहराई से जांच हो रही है.

खतरनाक ऑपरेशन के लिए स्पॉट की पांच टीमें और स्नाईपर्स की चार टोलियां तैयार

प्रदेश में एनएसजी की तरह खतरनाक ऑपरेशन को विशेषज्ञ तरीके से करने के लिए एटीएस के विशेष पुलिस संचालन दल (स्पॉट) का गठन 2017 में किया गया है. स्पॉट कर्मियों ने बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी आदि पुलिस के विशेषज्ञ प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण लिया है. स्पॉट की पांच टीमें तैयार हैं, दो टीमें प्रशिक्षण ले रही हैं और दो अन्य टीमों के लिए कार्यवाही चल रही है. इसके अलावा यूपी पुलिस की पहली स्नाईपर्स टीम की चार टोलियां तैयार की गई हैं, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) ने प्रशिक्षण दिया है. इसके बाद यूपी पुलिस की दक्षता और प्रभावशीलता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.

Satyakatha: 10 साल बाद सर चढ़कर बोला अपराध

सौजन्य- सत्यकथा

पूरे 10 साल बाद संतोष यादव अपने ननिहाल आया था. साल 2021 में मार्च महीने से ही लौकडाउन का दौर चल रहा था.

जून की 10 तरीख थी. उस का ननिहाल रायपुर जिले में खरोरा थानांतर्गत फरहदा गांव में था. गांव में बहुत कुछ बदल गया था. कच्चे मकान पक्के बन चुके थे. सड़कें पहले से अच्छी बन गई थी.

गांव में लोगों को कोरोना का डर तो था, लेकिन उन पर लौकडाउन का कोई खास असर नहीं दिख रहा था. अधिकतर लोगों का आनाजाना पहले की तरह ही बगैर मास्क के सामान्य बना हुआ था.

हां, कुछ लोग मास्क लगा कर, या फिर गमछे, रुमाल आदि से नाकमुंह ढंके हुए थे. इस कारण संतोष को उन्हें पहचानने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी.

वैसे भी संतोष गांव के अधिकतर लोगों को नहीं पहचानता था. गांव वालों के लिए भी वह अधिक पहचाना हुआ व्यक्ति नहीं था.

गांव की एक पतली सड़क पर टहलता हुआ संतोष अपने पूर्व चिरपरिचित स्थान तालाब के पास जा पहुंचा. गांव के एक छोर पर बने बड़े तालाब के निकट सड़क की पुलिया के पास उस के पैर ठिठक गए.

तालाब को दूर तक देखता हुआ बीती यादों में खो गया. अचानक उस की आंखों के सामने खूबसूरत रानी का मुसकराता चेहरा घूम गया. रानी की ठेठ ग्रामीण छवि, दाईं आंख के आगे और गालों पर लटकती लटें, अल्हड़पन की चाल और बातूनी अदाएं बरबस याद हो आ आईं.

तभी उसे किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया. उस का पुराना यार रमेश खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘अरे यार, तू कब आया? पहचाना मुझे, मैं रमेश.’’ वह बोला.

‘‘त..त…त…तुम रमेश…’’ बोलते हुए संतोष ने उस का हाथ पकड़ लिया.

रमेश को देख संतोष बहुत खुश हुआ. खुशी में दोनों गले लग गए. वे 10 साल बाद मिल रहे थे. उसे निहारते हुए संतोष चुटकी ले कर बोला, ‘‘मोटा हो गया है रे तू. तुझे तो तेरी आवाज से ही पहचान पाया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘हां यार, क्या करूं 4 महीने से घर में पड़ेपड़े खाखा कर मोटा हो गया हूं. कहीं आनाजाना नहीं होता. बस, एक बार शाम के वक्त मन बहलाने के लिए तालाब का चक्कर लगा लेता हूं.’’ रमेश बोला.

‘‘आओ न कहीं बैठते हैं.’’ संतोष ने कहा.

‘‘यहां नहीं, चलो न मेरे घर पर ही चलते हैं. शाम ढलने वाली है. आज मेरे घर पर ही खाना खा लेना. वहीं खूब बातें करेंगे. पुरानी यादें भी ताजा करेंगे.

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थोड़ी देर में संतोष अपने लंगोटिया यार रमेश के घर पर था. उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों सालों से मन में दबी अनगिनत यादों के गुबार को निकाल देना चाहते थे बातोंबातों में संतोष ने पूछा, ‘‘यार, रानी कहां होगी, उस का क्या हालचाल है?’’

संतोष के इस सवाल पर रमेश पहले थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कौन रानी? साहूकार की बेटी? उस का पास के ही गांव में ब्याह हो गया है. वह अब 3 बच्चों की मां बन चुकी है.’’

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘लेकिन भाई, क्या तुम मुझे उस से मिलवा सकते हो? वो आज भी मेरे मन में बसी हुई है.’’

‘‘क्या बात करते हो यार, उस की शादी हो गई है, उस का अपना परिवार है, ससुराल में सुखी जीवन गुजार रही है, तुम उसे भूल जाओ.’’ रमेश ने सलाह दी.

‘‘मैं उसे भला कैसे भूल सकता हूं, उस के कारण मैं ने क्या नहीं किया. अब मैं तुम्हें क्या बताऊं?’’

‘‘क्या कह रहे हो, कुछ समझा नहीं,’’ रमेश बोला.

‘‘उस की वजह से जेल चला जाता, किसी तरह किस्मत से बच गया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘क्या कह रहे हो? साफसाफ बताओ, उस ने क्या किया था तुम्हारे साथ?’’ रमेश ने उत्सुकता दिखाई.

‘‘अब मैं और क्या कहूं. रानी ने मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया, बल्कि उस के कारण मेरे हाथों एक अपराध हो गया था.’’ संतोष बोला.

‘‘अपराधऽऽ कैसा अपराध? क्या किया तुम ने? कैसा कांड किया?’’ रमेश उत्सुकता से सवाल पर सवाल पूछता चला गया, लेकिन संतोष निरुत्तर बना रहा.

रमेश ने विस्तार से जानने की जिज्ञासा जताई, ‘‘यार, खुल कर बताओ आखिर बात क्या है?’’ इस का जवाब संतोष ने नहीं दिया. उस ने गोलमोल बातें करते हुए रानी से जुड़ी बातें टाल दीं. कुछ समय बाद संतोष वापस अपने घर लौट आया.

अगले दिन शाम के वक्त तालाब के पास दोनों की फिर मुलाकात हुई. वे पास की पुलिया पर बैठ गए. वहां से तालाब का नजारा काफी दूर तक दिखता था. संतोष और रमेश के बीचें बातों का सिलसिला फिर शुरू हो गया.

संतोष ने कहा, ‘‘यार, 10 साल पहले इसी तालाब के पास झाडि़यों से एक आदमी की लाश बरामद हुई थी. उस का क्या हुआ? उन दिनों मैं यहीं था, लेकिन उसी रोज अपने गांव चला गया था.’’

कुछ सोचता हुआ रमेश बोला, ‘‘हां हां, याद आया, तुम शायद लेखराम सेन की बात कर रहे हो. उस का तो पता ही नहीं चला कि उस के साथ आखिर हुआ क्या था? उस ने आत्महत्या कर ली थी या फिर अधिक शराब पीने के कारण उस की मौत हो गई थी.

‘‘कुछ लोग बताते हैं कि उस ने जहर खाया था और कुछ लोग बताते हैं कि वह तेंदुए का शिकार हो गया था. याद होगा उन दिनों गांव में तेंदुए का आतंक था.’’

रमेश की बातें सुन कर संतोष हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘यार, तुम्हें एक हैरत की बात बताऊं, लेकिन किसी से मत बताना.’’

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‘‘यार दोस्ती में क्या तुम मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं करोगे.’’

‘‘तुम पर तो पूरा भरोसा है, तभी तो मैं ने उस के बारे में पूछा.’’ संतोष बोला.

सहजता दिखाते हुए रमेश भी बोला, ‘‘ठीक है बताओ, तुम क्या बताना चाहते हो?’’

संतोष ने रहस्यमयी मुसकराहट के साथ बताया, ‘‘लेखराम ने न तो खुदकुशी की थी और न ही वह किसी तेंदुए का शिकार हुआ था. उसे तो मैं ने अपनी बेल्ट से गला घोंट कर मार डाला था और यहीं खेत के किनारे की झाडि़यों में फेंक दिया था.’’

‘‘नहींनहीं तुम क्यों मारोगे?’’ रमेश ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘अरे भाई, उस ने मुझे रानी के साथ देख लिया था और धमकी देने लगा था कि वह गांव वालों को बता देगा. बस, इसी बात पर मैं ने उसे मार डाला.’’

‘‘क्या तुम सच कह रहे हो, इस में कुछ झूठ तो नहीं है?’’ रमेश ने सवाल किया.

‘‘मैं झूठ क्यों बोलूंगा? अब इतने साल बाद मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा? अब तो मामला भी खत्म हो गया है.’’

‘‘हां, यह बात तो सही है कि कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. उस समय के पुलिस वाले भी अब नहीं हैं. जांच कौन करेगा?’’

संतोष हत्या की बातें बता कर अपने सिर पर से किसी बोझ के उतरने जैसा बेहद हल्का महसूस कर रहा था, जबकि रमेश उस की रहस्यमयी बातें सुन कर चिंता में पड़ गया था.

अपने दोस्त के आचरण और कृत्य के बारे में जान कर उस का मन बोझिल हो गया था. थोड़ी देर तक संतोष और रमेश के बीच शून्यता जैसी स्थिति बन गई थी. वे एकदूसरे को शांत भाव से देखने लगे. अंत में संतोष फिर मिलने का वादा कर खड़ा हुआ और चला गया. रमेश भी उस के पीछेपीछे होता हुआ अपने घर आ गया.

रमेश घर आ कर सोच में पड़ गया कि वह गांव के जिस व्यक्ति की मौत को आत्महत्या समझ रहा था, वास्तव में उस की हत्या हुई थी. और हत्यारा भी खुद उस के सामने अपना गुनाह कबूल चुका था. उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस अंतरद्वंद्व में पूरी रात करवटें बदलता रहा. किसी तरह से सुबह के करीब 5 बजे उस की आंख लग गई.

रमेश सुबह 8 बजे तक सोता रहा. फटाफट नहानेधोने का काम किया और नाश्ता कर सीधा खरोरा पुलिस थाने जा पहुंचा. उस के साथ यहां तक तो सब कुछ मशीन की तरह होता रहा, किंतु थाने के गेट पर आ कर उस के पैर ठिठक गए.

रमेश वापस लौट आया, लेकिन उस ने निर्णय लिया कि संतोष के अपराध की सूचना वह पुलिस को जरूर देगा. उस के बारे में फोन से बताएगा, जिस से उस का चेहरा किसी के सामने नहीं आएगा.

थाने से कुछ दूर हट कर उस ने पुलिस मुख्यालय को फोन लगा कर कहा, ‘‘मुझे किसी पुलिस अधिकारी से बात करनी है.’’ उधर से कारण पूछने पर बताया कि उसे एक हत्या के आरोपी के खिलाफ जानकारी देनी है. यह कहने पर पर रमेश की बात राजधानी रायपुर के एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल से करवाई गई.

रमेश ने पूरी जानकारी एसपी साहब को दे दी. इस सिलसिले में रमेश ने बताया कि 10 साल पहले गांव के लेखराम सेन की हत्या गला घोंट कर कर दी गई थी. इन दिनों हत्यारा उस के गांव में निश्चिंत हो ठहरा हुआ है.

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तरकेश्वर पटेल ने कहा, ‘‘तुम फोन पर नहीं, सामने आओ. मुझ से मिलो. घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा, बल्कि पुरस्कार भी दिया जाएगा.’’

‘‘सर, मुझे कोई ईनाम नहीं चाहिए. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि हत्यारे को सजा मिले, ताकि उस जैसे अपराधी कभी छिपने की कोशिश न करें. वैसे लोगों का यह घमंड भी टूटना चाहिए कि कानून उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.’’

रमेश की बातें सुन कर एडिशनल एसपी बहुत खुश हुए और उन्होंने एसएसपी अजय यादव से समुचित दिशानिर्देश ले कर लेखराम सेन हत्याकांड की फाइल खुलवाई.

साथ ही एसडीओपी राहुल देव शर्मा और खरोरा थानाप्रभारी तीरथ सिंह ठाकुर को एक पुलिस टीम बनाने के निर्देश दिए.

पुलिस टीम ने संतोष यादव को 24 जून, 2021 को उस के गांव जरौद से हिरासत में ले लिया गया. संतोष पहले तो अचानक हुई गिरफ्तारी से घबराया बाद में उस ने पुलिस के सामने इधरउधर की बातें करते हुए फरहाद गांव में कभी भी जाने तक से इनकार कर दिया.

पुलिस ने जब उस का काला चिट्ठा खोलते हुए उस के ननिहाल में सभी दोस्तों और प्रेमिका के नाम लिए तब वह टूट गया. विवश हो कर उस ने यह स्वीकार कर लिया कि 14 जनवरी, 2011 की रात को उस ने किस तरह से अपने चचेरे भाई लोकेश यादव के साथ मिल कर लेखराम सेन की हत्या कर दी थी.

संतोष यादव ने उस रात की घटना के साथसाथ बारबार अपने ननिहाल और वहां रानी के साथ मौजमस्ती की बातें इस प्रकार बताईं—

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गांव जरौद थाना मंदिर हसौदा निवासी संतोष यादव उर्फ घनश्याम रमेश यादव का बेटा है. करीब 20 साल की उम्र में उस का अपने ननिहाल फरहदा गांव अकसर आनाजाना होता था. वहां हमउम्र युवाओं के साथ उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी.

वहीं उस की जानपहचान 17 साल की रानी से भी हो गई थी. वह रानी को दिल से चाहने लगा था. उसी वजह से वह अपने ननिहाल में हफ्तों तक पड़ा रहता था और इधरउधर मटरगस्ती भी किया करता था. इस मौजमस्ती में उस ने अपने चचेरे भाई लोकेश यादव को भी शामिल कर लिया था.

बात 14 जनवरी, 2011 की है. संतोष रात के 9 बजे के करीब लोकेश के साथ रानी का इंतजार कर रहा था. लोकेश कुछ दिन पहले ही वहां आया था. रमेश ने उसे भी किसी लड़की के साथ संपर्क करवाने का वादा किया था.

उधर रानी अपनी सहेली मधु के साथ घर से शौच के लिए निकली थी. उस ने मधु को फुसलाते हुए तालाब के पास चलने के लिए कहा. मधु के इनकार करने पर उसे अच्छी सहेली होने का हवाला दिया और फिर दोनों तालाब के पास जा पहुंचे.

वहां संतोष पहले से मौजूद था. मधु पहले से 2 लड़कों को देख कर सकपका गई और वहीं सड़क के किनारे बनी पुलिया के पास रुक गई.

रानी तेज कदमों से संतोष के पास चली गई. उसे साथ ले कर मधु के पास आई और उस का परिचय करवाया.

साथ में संतोष के भाई लोकेश का परिचय भी करवाती हुई उस से बोली, ‘‘तुम दोनों यहीं बातें करो.’’

तभी संतोष ने रानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

‘‘बोलो,’’ रानी बोली.

‘‘यहां नहीं उधर चलते हैं.’’ झाडि़यों की ओर इशारा करते हुए संतोष रानी का हाथ खींचने लगा. रानी भी उस का साथ देती हुई साथ चल पड़ी. मधु और लोकेश वहीं रुक गए. झाडि़यों के पास हल्का अंधेरा था. रानी और संतोष उन के पीछे एकदूसरे के प्यार में खो गए.

मधु और लोकेश परिचय के बाद वहीं पुलिया पर बैठ गए. मधु रानी के वापस आने का इंतजार करने लगी.

कुछ समय में मधु को गांव में सैलून की दुकान चलाने वाले लेखराम सेन के गाना गाने की आवाज सुनाई दी. वह घबरा गई. कारण लेखराम उस के पड़ोस में रहता था, उसे अच्छी तरह से पहचानता था.

मधु ने उस से कहा, ‘‘मैं घर जा रही हूं, रानी को बता देना.’’

यह कह कर मधु वहां से चली गई.

लेखराम लोकेश के पास आ कर रुक गया. लड़खड़ाती आवाज में पूछा. ‘‘कौन है भाई? यहां क्या कर रहा है?’’

लोकेश ने कुछ जवाब नहीं दिया. लेखराम ने दोबारा पूछा, ‘‘बोलता क्यों नहीं, तू तो इस गांव का नहीं लगता है.’’

लोकेश अभी कुछ बोलने वाला ही था कि लेखराम की नजर झाडि़यों की ओर घूम गई. वहां से कुछ हलचल दिखी. वह लोकेश से हट कर उस ओर जाने लगा. लेकिन लोकेश ने उधर जाने से रोका, ‘‘बाबूजी, उधर मत जाइए.’’

‘‘क्यों, उधर क्यों नहीं जाऊं? तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ लेखराम बोला.

‘‘बाबूजी, आप अपने घर जाइए न. नशे में हैं, गिरपड़ जाएंगे.’’ लोकेश ने समझाया.

‘‘तू कौन होता है मुझे रोकने वाला. आज का लौंडा है, तुम्हारी इतनी हिम्मत.’’ लेखराम कहता हुआ झाडि़यों के पास चला गया. वहां का दृश्य देख कर चीखता हुआ बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. यहां मौज की जा रही है.’’

लेखराम ने संतोष का हाथ पकड़ कर झाडि़यों में से खींच निकाला. रानी ने अपने कपड़े सहेजते हुए उस की ओर अपनी पीठ कर ली.

‘‘कौन है रे लड़की तू? गांव की इज्जत मिट्टी में मिलाने चली है.’’ लेखराम डांटते हुए बोला. इस बीच संतोष ने उस से हाथ छुटा कर उसे धक्का दिया. लेखराम गिर पड़ा. संतोष ने उसे पीछे से दबोच लिया. उसी समय लोकेश भी वहां पहुंच गया.

‘‘हमारे गांव में यह सब नहीं चलता है. तुम गलत कर रहे हो.’’ लेखराम ने चिल्लाते हुए धमकी दी कि उन्हें गांव में सब के सामने उस की करतूत बताएगा.’’

अब लोकेश ने भी उसे पकड़ लिया. 40 की उम्र का लेखराम जल्द ही असहाय हो गया. तभी उस ने हल्के अंधेरे में लड़की का चेहरा देख लिया. चिल्लाया, ‘‘अरे तू तो साहूकार की बेटी है. चल, मैं तेरे बाप को तुम्हारी करतूत बताता हूं.’’ लेखराम शिकायती लहजे में बोला.

रानी घबरा कर चेहरा हाथों से छिपाती हुई वहां से भाग गई. रानी को जाते देख संतोष और भी तिलमिला गया. उस ने तुरंत अपने पैंट से बेल्ट निकाली और देदनादन लेखराम पर बरसानी शुरू कर दी.

नशे की हालत में लेखराम उठ नहीं पाया. वह एकदम अधमरा हो गया. तब संतोष जाने लगा. इस पर लोकेश ने कहा कि भैया यह तो चोट खाया सांप बन गया है. कभी भी डंस लेगा.

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘ऐसा है क्या, चलो इस का काम ही तमाम कर देते हैं.’’

उस के बाद संतोष ने बेल्ट से ही उस का गला घोंट दिया’’ कुछ समय में ही लेखराम की मौत हो गई.

लेखराम की हत्या से बचने के लिए संतोष और रमेश ने उस की लाश वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में फेंक दी. फिर वे तालाब में नहाधो कर अपने नानी के घर आ गए. वहां से एकदम सवेरेसवेरे दोनों अपने गांव लौट आए.

पुलिस की जांच और उस के पकड़े जाने पर संतोष को काफी हैरत हुई. पुलिस ने 10 साल पुरानी लाश के संबंध में जांच का दोबारा विश्लेषण करने के लिए नई फाइल बनाई. उस में संतोष द्वारा सभी इकरारनामे को दर्ज किया.

साथ में उस के दोस्त रमेश के बयान भी गवाही के तौर शामिल कर लिए गए. पुलिस ने 32 वर्षीय लोकश यादव को भी हिरासत में ले लिया और उस के बयान लिए.

इस आधार पर दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201 और 34 के तहत मामला दर्ज कर आरोप पत्र तैयार कर लिया गया. दोनों को रायपुर की अदालत में पेश करने के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्र के आधार पर और इसमें रानी और मधु के नाम काल्पनिक रखे गए हैं

Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 3

बाद में जब पत्नी ऊषा रानी खर्च में हाथ बंटाने के लिए चश्मे की दुकान में काम करने लगीं. तो धीरेधीरे पैसा जुड़ने लगा. उन के 4 बच्चे थे 3 बेटियां और इकलौता बेटा राज.

कुछ साल की मेहनत के बाद बाल कृष्ण कुंद्रा ने पैसे जोड़जोड़ कर बाद में एक ग्रौसरी की दुकान खोल ली. दुकान ठीक चल गई. जिस के मुनाफे से उन्होंने एक पोस्ट औफिस खरीद लिया. इंग्लैंड में पोस्ट औफिस खरीदा जा सकता है.

बाल कृष्ण एक व्यापार से दूसरे व्यापार में घुसने में ज्यादा देर नहीं लगाते थे. जैसे ही वह देखते कि इस धंधे में गिरावट आने के आसार हैं, वह उस धंधे को बेच दूसरे बिजनैस में चले जाते थे.

इसी बिजनैस सेंस और अपनी मेहनत की बदौलत बाल कृष्ण कुंद्रा कुछ सालों में एक सफल मिडिल क्लास बिजनैसमैन बन कर उभरे. बच्चों के जवानी में कदम रखने तक उन का परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुका था.

लंदन से ही इकौनामिक्स  में ग्रैजुएशन करने के बाद जब राज 18 साल के हुए तब उस के पिता का रेस्तरां का बिजनैस था. पिता ने राज को अल्टीमेटम दे दिया कि या तो वह उन के रेस्तरां को संभाले या वो उन्हें 6 महीने में कुछ कर के दिखाए. राज सारी जिंदगी रेस्तरां में नहीं बिताना चाहता था.

लिहाजा पिता से बिजनैस करने के लिए 2000 यूरो ले कर वह हीरों का कारोबार करने के लिए दुबई चला गया. लेकिन दुबई में बात बनी नहीं. इसी बीच किसी काम से राज को नेपाल जाना पड़ा. वहां घूमते हुए राज को पश्मीना शाल नजर आए. वहां ये शाल बहुत कम कीमत में मिल रहे थे. लेकिन राज को पता था कि इन शालों की कीमत इस से बहुत ज्यादा है.

राज के पास जो रकम बची थी उस से तकरीबन 100 से ऊपर शाल खरीद लिए और लंदन वापस आ गया. लंदन आ कर बड़ेबड़े क्लोथिंग ब्रांड्स के दरवाजे खटखटाने लगा. इन ब्रांड्स को पश्मीना शाल बहुत पसंद आए और देखते ही देखते पश्मीना शाल इंग्लैंड में फैशन ट्रेंड बन गया.

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फिर क्या था नेपाल से सस्ते पश्मीना शाल ला कर लंदन में महंगी कीमत में बेचने का कुंद्रा का बिजनैस ऐसा फलाफूला कि उस साल उस के बिजनैस का टर्नओवर 20 मिलियन यूरो छू गया. वो भी सिर्फ शाल बेच कर.

3-4 साल बाद राज ने शाल का व्यापार छोड़ दिया और वापस दुबई जा कर हीरे की ट्रेडिंग का काम ही करने लगा. पिता की ही तरह राज भी किसी एक धंधे को जीवन भर नहीं करना चाहता था.

जब किसी धंधे में घाटा दिखाई देता तो वह दूसरा मुनाफे का धंधा शुरू कर देता. किस्मत अच्छी थी कि वह जिस कारोबार में हाथ भर डालता, वह चल पड़ता.

बाद में उस ने हीरों के अलावा रियल एस्टेट, स्टील स्क्रैप का भी काम शुरू कर दिया. इन दिनों वह 10 कंपनियों का मालिक था. लंदन में उस ने करीब 100 करोड़ की कीमत का एक पैलेसनुमा मेंशन बनवाया हुआ था.

2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी. इन दोनों की एक बेटी भी हुई. लेकिन मात्र 2 साल बाद 2007 में राज और कविता का तलाक हो गया और कोर्ट ने उन की बेटी की कस्टडी भी कविता को ही दे दी.

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हालांकि राज दुनिया के सामने हमेशा यही कहता रहा कि कविता से उस के तलाक की वजह उस की बहन रीना के पति से उस के अवैध संबध होना था. इसी कारण से उस की बहन ने भी अपने पति को तलाक दिया था.

लेकिन राज की पत्नी कविता ने कई बार मीडिया को बताया कि अभिनेत्री और मौडल शिल्पा शेट्टी के कारण राज कुंद्रा ने उसे तलाक दिया था.

साल 2007 की ही बात है जब शिल्पा शेट्टी के साथ राज कुंद्रा की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. राज के पास करोड़ों की दौलत तो थी लेकिन शोहरत के नाम पर तब तक उसे कोई ज्यादा लोग नहीं जानते थे. लेकिन शिल्पा से मिलने के बाद शोहरत भी उस के करीब आ गई.

शिल्पा और राज की मुलाकात भी कम फिल्मी नहीं है. जैसे इंडिया में लोग ‘बिग बौस’ के दीवाने हैं, वैसे ही इंग्लैंड के लोग इसी शो के संस्करण ‘बिग ब्रदर’ के दीवाने हैं. इसी शो में 2007 में शिल्पा शेट्टी ने शिरकत की थी और इसे जीता भी था.

जिस के बाद शिल्पा इंग्लैंड में खूब लोकप्रिय हो गईं. राज कुंद्रा के घर में भी ‘बिग ब्रदर’ बिना मिस किए देखा जाता था. राज भी देखता था और इंडियन कनेक्शन होने के नाते शिल्पा के लिए वोट भी किया करता था.

संयोग से शिल्पा के यूके में बिजनैस मैनेजर से राज की अच्छीखासी पहचान हो गई थी. शिल्पा शेट्टी के ‘बिग ब्रदर’ जीतने के बाद उन्हें बहुत सी यूके फिल्मों के औफर आ रहे थे. इसी सिलसिले में सलाह लेने के लिए शिल्पा के मैनेजर ने राज को एक दिन फोन किया.

राज ने उन से कहा कि अभी तो शिल्पा लोकप्रिय हैं, लेकिन जब तक फिल्म बन कर रिलीज होगी उन की इंग्लैंड में लोकप्रियता घट चुकी होगी. इसलिए फिल्म बनाने में घाटा होगा. उस से अच्छा है कि उन के नाम से परफ्यूम ब्रैंड लौंच किया जाए.

कुंद्रा ने शिल्पा शेट्टी के नाम से परफ्यूम ब्रांड लौंच करने का औफर भी दिया. जब मैनेजर ने औफर की जानकारी शिल्पा की मां को दी तो उन्होंने राज को बताया कि उन के पास ऐसा औफर पहले ही आ चुका है.

ये सुन कर राज ने उन्हें डबल पेमेंट का औफर दे दिया. राज को पता था कि यह घाटे की डील थी. लेकिन वह शिल्पा के साथ वक्त बिताना चाहता था. करीब आना चाहता था और दोस्ती करना चाहता था.

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इसलिए उस ने एक तरीके से दोगुने पैसे दे कर वक्त खरीद लिया था, दरअसल जब से  राज ने शिल्पा को बिग ब्रदर शो में देखा था तभी से उसे पहली नजर का शिल्पा से प्यार हो गया था.

खैर, राज जिस कारोबार में हाथ डालता था, वो खूब चलता था. शिल्पा के नाम से लौंच हुआ परफ्यूम भी खूब बिका. इंग्लैंड में परफ्यूम मार्केट में नंबर एक पर रहा. शिल्पा  को दोगुने पैसे दे कर की गई डील भी उस के लिए फायदेमंद ही रही.

एक तो परफ्यूम खूब बिका. दूसरा इस दौरान शिल्पा से इतनी घनिष्ठता हो गई कि शिल्पा भी उस के करीब आ गईं और 2009 में दोनों की शादी हो गई.

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बलात्कारी की हार: भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे, कैसा धोखा? अगर मैं ने कोई साधन नहीं अपनाया था, तो तुम तो किसी मैडिकल हौल से कोई टैबलेट ले कर खा लेतीं और यह बच्चे का किस्सा ही खत्म हो जाता,’’ अमित के स्वर में बेरुखी थी.

‘‘पर तुम ऐसा कैसे कर सकते हो, अमित,’’ प्रीति का स्वर अस्फुट हो चला.

‘‘अरे प्रीति, शायद तुम मु?ो सम?ा नहीं. मैं जो तुम को रोज लेने आता था, रोज छोड़ने जाता था, वह सब यों ही नहीं था. और फिर, जवानी में तो यह सब होना आम बात है.’’

‘‘मैं तुम्हारे खाते में 20 हजार रुपए भेज रहा हूं, किसी अच्छे डाक्टर से जा कर बच्चे का एबौर्शन करवा लो और यह ?ां?ाट खत्म करो. खुद भी जियो और मु?ो भी जीने दो,’’ अमित यह कह कर टेबल से उठ गया.

प्रीति को लगा कि उस के जीवन में सुनामी आ गई है. उस की जबान उस के तालू से चिपक गई. आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.  कौफीहाउस में सब की निगाहें प्रीति पर थीं. जब प्रीति को कुछ सम?ा नहीं आया तो वह वहां से उठी और कमरे में जा कर बिस्तर पर गिर गई.

कितने दिन और कितनी रात प्रीति अपने कमरे में बंद रही, रोती रही, कुछ पता नहीं था उसे.

उस के कान में अमित के निर्मम शब्द गूंज रहे थे, ‘‘बच्चे का एबौर्शन करवा लो और ?ां?ाट खत्म करो.’’ नश्तरों की तरह धार थी इन शब्दों में. घायल हो चुकी थी प्रीति.

हर दर्द की एक सीमा होती है और उस के बाद वह दर्द ही खुद दवा बन जाता है. प्रीति के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उस ने भारी मन से ही सही पर, औफिस जाना शुरू किया.

अमित से भी मिलना हुआ. उस ने बच्चे और एबौर्शन के बारे में जानने की कोशिश की पर उस के सामने प्रीति ने कोई कमजोरी नहीं दिखाई बल्कि सामान्य बात करती रही. शायद वह बहुतकुछ सोच चुकी थी.

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समय बीता तो प्रीति के घर वालों ने प्रीति और अमित की शादी के बारे में पूछताछ की. आश्चर्यजनक रूप से हिम्मत दिखाते हुए प्रीति ने अपने घरवालों को सब सच बता दिया. उस की बिन ब्याहे ही गर्भवती होने की खबर सुन घरवाले भी परेशान हो उठे और अगले ही दिन मां और उस की बहन उस के पास आ गईं और उन्होंने भी प्रीति से इस बच्चे को गिरा देने की ही बात कही. पर अब तो प्रीति का नया रूप देखने को मिला.

‘‘मां, इस बच्चे को मैं तब खत्म करती जब इस बच्चे को किसी गलत नीयत के साथ इस दुनिया में लाया गया होता. उस ने मु?ा से शादी का वादा किया, मेरा विश्वास जीता और मु?ा से संबंध बनाया. एक तरह से अमित ने मेरा बलात्कार किया है मां, बलात्कार,’’ प्रीति कहे जा रही थी.

‘‘बलात्कार सिर्फ वह ही नहीं होता जिस में जबरन संबंध बनाया जाए. यह मानसिक भी होता है. मर्दों की लालची आंखें जब किसी औरत के अंगों को टटोलती हैं तो भी वे उन का बलात्कार कर रही होती हैं. मां जो मेरे साथ हुआ उस में मेरी कोई गलती नहीं, मैं ने तो अमित से प्यार किया था. जीना चाहती थी मैं उस के साथ. पर मु?ो क्या पता था कि वह सिर्फ मांस का भूखा एक भेडि़या है जो मु?ो शादी का ?ांसा दे कर मु?ो नोचेगा. तुम बिलकुल मत घबराओ मां, मैं आत्महत्या जैसी कोई चीज नहीं करूंगी और मैं ने तय कर लिया है कि इस बच्चे को भी जन्म दूंगी मैं.’’

‘‘कुछ ज्यादा ही पढ़लिख गई है तू.  अरे लोग थूकेंगे हमारे मुंह पर. एक बिनब्याही मां बनना क्या होता है, जानती है तू? यह समाज हमें जीने नहीं देगा,’’ मां लगभग चीख रही थी.

‘‘कौन सा समाज मां? कैसा समाज, वे महल्ले के 4 लोग, वे कुछ रिश्तेदार जो लगातार हम से जलन रखते हैं. उन से डर कर मैं अपनी जिंदगी को नरक कर दूं, जबकि मैं ने कुछ गलत किया ही नहीं मां. शर्म तो अमित को आनी चाहिए क्योंकि उस ने मेरे साथ संबंध ही नहीं बनाया बल्कि बलात्कार किया है मेरा. अमित को इस की सजा भी भुगतनी होगी.,’’ प्रीति का यह नया रूप था जो एक अग्नि में जल रहा था.

‘‘अरे, उस मर्द जात से कहां तक लड़ेगी तू? और क्या कर लेगी उस का?’’ मां ने तेजी से कहा.

‘‘मां…मां, अपने बच्चे और अपने हक के लिए किसी भी हद तक जाऊंगी और न्याय ले कर रहूंगी,’’ प्रीति ने कहा.

‘‘तो फिर तू ही लड़ अपनी लड़ाई. हम को इन ?ामेलों से अलग ही रख,’’ मां ?ाल्ला उठी.

और इस तरह प्रीति के घरवालों ने उस से मुंह मोड़ लिया. पर सिर्फ घरवालों के साथ न देने से प्रीति टूटी नहीं, बल्कि उन दिनों सोशल मीडिया पर ‘मी टू’ नामक अभियान में अपना उत्पीड़न भी सब के साथ शेयर किया और सब को बताया कि कैसे उस के साथ घात हुआ है.

सब ने उस की कहानी बड़े चाव से सुनी और कुछ लोग उस का साथ देने वाले भी मिले पर सोशल मीडिया पर लाइक और कमैंट चाहे जितने अच्छे मिल जाएं,  वास्तविकता का जीवन तो कुछ और ही होता है.

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वास्तविकता यह भी थी कि प्रीति अब बिलकुल अकेली थी और आगे की लड़ाई लड़ने के लिए वह वकील से मिली.

‘‘हां प्रीति, तुम अमित पर केस तो कर सकती हो पर क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा सुबूत है जिसे हम मजबूती से अदालत में अमित के खिलाफ अपना हथियार बना सकते हैं?’’ प्रीति की वकील मिसेज मेहता ने पूछा.

‘‘जी… वह बस मेरे मोबाइल में कुछ हमारे साथ की फोटोज हैं और व्हाट्सऐप पर की हुई चैटिंग के अलावा और कुछ भी नहीं है,’’ प्रीति ने पेशानी पर बल डालते हुए कहा.

‘‘हां, तो कोई बात नहीं है. वह सब मु?ो दे दो, देखती हूं कि और इस केस में क्याक्या किया जा सकता है,’’ मिसेज मेहता ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

पता नहीं क्यों मिसेज मेहता की बातें घाव पर मलहम की तरह काम कर रही थीं.

अगले दिन जब प्रीति बैंक में पहुंची तो उसे बौस ने अपने केबिन में बुला कर उस के तबादले का पत्र पकड़ा दिया. प्रीति को सम?ाते देर न लगी कि अमित ने अपनी पहुंच का फायदा उठा कर उस का तबादला करा दिया है. सरकारी फरमान पर बहस करने से फायदा नहीं था, इसलिए प्रीति ने चुपचाप उसे स्वीकार कर लिया.

प्रीति घर पहुंच कर अपना सामान पैक ही कर रही थी कि अचानक उसे याद आया कि एक बार अमित ने उस से जिक्र किया था कि उस के मम्मी और पापा बहुत उदार और आदर्शों वाले हैं. प्रीति को घनघोर अंधेरे में कुछ टिमटिमाहट सी दिखाई दी और उस ने अमित के मांपापा से मिल कर सब बात बताने की सोची.

‘‘बेटे प्रीति, हमें तुम से सहानुभूति है पर तुम भी तो बालिग हो. घर से दूर नौकरी करने आई हो, तुम्हें भी तो कुछ सम?ा होनी चाहिए, सहीगलत तो तुम भी सम?ाती हो. इसलिए मैं अमित को दोष नहीं देता,’’ अमित के पिताजी कह रहे थे.

‘‘बुरा मत मानना प्रीति, पर मैं ने ऐसी लड़कियां भी देखी हैं जो पहले तो जवानी का मजा लेने के लिए हमबिस्तर हो जाती हैं और जब देखती हैं कि लड़का अच्छे घर का है तो उस को पैसे उगाहने के लिए ब्लैकमैल करने लगती हैं,’’ अमित के पिताजी कुछ ज्यादा ही प्रैक्टिकल बातें कर रहे थे.

‘‘और फिर अगर तुम्हें हमारा बेटा अच्छा लग गया था और तुम उस के साथ संबंध बनाना चाहती ही थीं तो कम से कम कोई साधन अपनाना चाहिए था और अगर वह भी नहीं हुआ था तो आजकल तो 24 से 72 घंटों बाद भी खाई जा सकने वाली दवाई मौजूद है, उस को ले सकती थीं तुम,’’ अमित की मां की आवाज में एकदम सूखापन था.

‘‘और हम तुम्हारी इतनी मदद कर सकते हैं कि अमित की मां की एक सहेली डाक्टर है. तुम्हें हम वहां ले कर तुम्हारे इस बच्चे को गिरवाने में मदद कर सकते हैं.  अगर तुम अमित जैसे सुदर्शन व्यक्तित्व वाले लड़के से शादी करना चाहती हो तो भूल जाओ, ऐसा नहीं हो सकता,’’ अमित के पिता ने फैसला सुनाते हुए कहा.

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प्रीति को सम?ा आ गया था कि अमित के मां और पिता से मिलने आना उस की गलती है.

प्रीति किसी तीर की तरह निकल आई थी. अपने कमरे पर आ कर बाकी का सामान भी रखने लगी. आखिरी आशा भी टूट चुकी थी और आशा टूटने की आवाज नहीं आती पर दर्द सब से ज्यादा होता है.

अगले दिन ही उस ने आगरा को अलविदा कह दिया था और मन में एक निश्चय लिए उसे लखनऊ की ब्रांच में जौइन करना था. अपनी ड्यूटी संभालने के बाद सब से पहला काम बैंक के जितना नजदीक हो सके, एक कमरा ढूंढ़ना था.

शहरों में एक अकेली लड़की की राह कभी आसान नहीं होती, यह बात प्रीति को तब सम?ा में आई जब उस ने एक मकान की घंटी बजाई और किराए पर एक कमरे की जरूरत की बात बताई.

‘‘जी कमरा तो मिल जाएगा, पर क्या आप शादीशुदा हैं?’’ मकान के मालिक ने पूछा.

‘‘जी नहीं, अभी मैं सिंगल हूं,’’ प्रीति ने नजरें नीची करते हुए कहा.

तलाक के बाद- भाग 3: जब सुमिता को हुआ अपनी गलतियों का एहसास

Writer- Vinita Rahurikar

फिल्म के इंटरवल में कुछ चिरपरिचित आवाजों ने सुमिता का ध्यान आकर्षित किया. देखा तो नीचे दाईं और आनंदी अपने पति और बच्चों के साथ बैठी थी. उस की बेटी रिंकू चहक रही थी. सुमिता को समझते देर नहीं लगी कि आनंदी का पहले से प्रोग्राम बना हुआ होगा, उस ने सुमिता को टालने के लिए ही रिंकू की तबीयत का बहाना बना दिया. आगे की फिल्म देखने का मन नहीं किया उस का, पर खिन्न मन लिए वह बैठी रही.

अगले कई दिन औफिस में भी वह गुमसुम सी रही. उस की और समीर की पुरानी दोस्त और सहकर्मी कोमल कई दिनों से देख रही थी कि सुमिता उदास और बुझीबुझी रहती है. कोमल समीर को बहुत अच्छी तरह जानती है. तलाक के पहले कोमल ने सुमिता को बहुत समझाया था कि वह गलत कर रही है, मगर तब सुमिता को कोमल अपनी दुश्मन और समीर की अंतरंग लगती थी, इसलिए उस ने कोमल की एक नहीं सुनी. समीर से तलाक के बाद फिर कोमल ने भी उस से बात करना लगभग बंद ही कर दिया था, लेकिन आज सुमिता की आंखों में बारबार आंसू आ रहे थे, तो कोमल अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह सुमिता के पास जा कर बैठी और बड़े प्यार से उस से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमिता, बड़ी परेशान नजर आ रही हो.’’

उस के सहानुभूतिपूर्ण स्वर और स्पर्श से सुमिता के मन में जमा गुबार आंसुओं के रूप में बहने लगा. कोमल बिना उस से कुछ कहे ही समझ गई कि उसे अब समीर को छोड़ देने का दुख हो रहा है.

‘‘मैं ने तुम्हें पहले ही समझाया था सुमि कि समीर को छोड़ने की गलती मत कर, लेकिन तुम ने अपनी उन शुभचिंतकों की बातों में आ कर मेरी एक भी नहीं सुनी. तब मैं तुम्हें दुश्मन लगती थी. आज छोड़ गईं न तुम्हारी सारी सहेलियां तुम्हें अकेला?’’ कोमल ने कड़वे स्वर में कहा.

‘‘बस करो कोमल, अब मेरे दुखी मन पर और तीर न चलाओ,’’ सुमिता रोते हुए बोली.

‘‘मैं पहले से ही जानती थी कि वे सब बिना पैसे का तमाशा देखने वालों में से हैं. तुम उन्हें खूब पार्टियां देती थीं, घुमातीफिराती थीं, होटलों में लंच देती थीं, इसलिए सब तुम्हारी हां में हां मिलाती थीं. तब उन्हें तुम से दोस्ती रखने में अपना फायदा नजर आता था. लेकिन आज तुम जैसी अकेली औरत से रिश्ता बढ़ाने में उन्हें डर लगता है कि कहीं तुम मौका देख कर उन के पति को न फंसा लो. बस इसीलिए वे सतर्क हो गईं और तुम से दूर रहने में ही उन्हें समझदारी लगी,’’ कोमल का स्वर अब भी कड़वा था.

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सुमिता अब भी चुपचाप बैठी आंसू बहा रही थी.

‘‘और तुम्हारे बारे में पुरुषों का नजरिया औरतों से बिलकुल अलग है. पुरुष हर समय तुम से झूठी सहानुभूति जता कर तुम पर डोरे डालने की फिराक में रहते हैं. अकेली औरत के लिए इस समाज में अपनी इज्जत बनाए रखना बहुत मुश्किल है. अब तो हर कोई अकेले में तुम्हारे घर आने का मंसूबा बनाता रहता है,’’ कोमल का स्वर सुमिता की हालत देख कर अब कुछ नम्र हुआ.

‘‘मैं सब समझ रही हूं कोमल. मैं खुद परेशान हो गई हूं औफिस के पुरुष सहकर्मियों और पड़ोसियों के व्यवहार से,’’ सुमिता आंसू पोंछ कर बोली.

‘‘तुम ने समीर से सामंजस्य बिठाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. थोड़ा सा भी धीरज नहीं रखा साथ चलने के लिए. अपने अहं पर अड़ी रहीं. समीर को समझाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. तुम ने पतिपत्नी के रिश्ते को मजाक समझा,’’ कोमल ने कठोर स्वर में कहा.

फिर सुमिता के कंधे पर हाथ रख कर अपने नाम के अनुरूप कोमल स्वर में बोली, ‘‘समीर तुझ से सच्चा प्यार करता है, तभी

4 साल से अकेला है. उस ने दूसरा ब्याह नहीं किया. वह आज भी तेरा इंतजार कर रहा है. कल मैं और केशव उस के घर गए थे. देख कर मेरा तो दिल सच में भर आया सुमि. समीर ने डायनिंग टेबल पर अपने साथ एक थाली तेरे लिए भी लगाई थी.

‘‘वह आज भी अपने परिवार के रूप में बस तेरी ही कल्पना करता है और उसे आज भी तेरा इंतजार ही नहीं, बल्कि तेरे आने का विश्वास भी है. इस से पहले कि वह मजबूर हो कर दूसरी शादी कर ले उस से समझौता कर ले, वरना उम्र भर पछताती रहेगी.

‘‘उस के प्यार को देख छोटीमोटी बातों को नजरअंदाज कर दे. हम यही गलती करते हैं कि प्यार को नजरअंदाज कर के छोटीमोटी गलतियों को पकड़ कर बैठ जाते हैं और अपना रिश्ता, अपना घर तोड़ लेते हैं. पर ये नहीं सोचते कि घर के साथसाथ हम स्वयं भी टूट जाते हैं,’’ एक गहरी सांस ले कर कोमल चुप हो गई और सुमिता की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर मुझे माफ करेगा क्या?’’ सुमिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर के प्यार पर शक मत कर सुमि. तू सच बता, समीर के साथ गुजारे हुए 3 सालों में तू ज्यादा खुश थी या उस से अलग होने के बाद के 4 सालों में तू ज्यादा खुश रही है?’’ कोमल ने सुमिता से सवाल पूछा जिस का जवाब उस के चेहरे की मायूसी ने ही दे दिया.

‘‘लौट जा सुमि, लौट जा. इस से पहले कि जिंदगी के सारे रास्ते बंद हो जाएं, अपने घर लौट जा. 4 साल के भयावह अकेलेपन की बहुत सजा भुगत चुके तुम दोनों. समीर के मन में तुझे ले कर कोई गिला नहीं है. तू भी अपने मन में कोई पूर्वाग्रह मत रख और आज ही उस के पास चली जा. उस के घर और मन के दरवाजे आज भी तेरे लिए खुले हैं,’’ कोमल ने कहा.

घर आ कर सुमिता कोमल की बातों पर गौर करती रही. सचमुच अपने अहं के कारण नारी शक्ति और स्वावलंबन के नाम पर इस अलगाव का दर्द भुगतने का कोई अर्थ नहीं है.

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जीवन की सार्थकता रिश्तों को जोड़ने में है तोड़ने में नहीं, तलाक के बाद उसे यह भलीभांति समझ में आ गया है. स्त्री की इज्जत घर और पति की सुरक्षा देने वाली बांहों के घेरे में ही है. फिर अचानक ही सुमि समीर की बांहों में जाने के लिए मचल उठी.

समीर के घर का दरवाजा खुला हुआ था. समीर रात में अचानक ही उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. सुमि बिना कुछ बोले उस के सीने से लग गई. समीर ने उसे कस कर अपने बाहुपाश में बांध लिया. दोनों देर तक आंसू बहाते रहे. मनों का मैल और 4 सालों की दूरियां आंसुओं से धुल गईं.

बहुत देर बाद समीर ने सुमि को अलग करते हुए कहा, ‘‘मेरी तो कल छुट्टी है. पर तुम्हें तो औफिस जाना है न. चलो, अब सो जाओ.’’

‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है समीर,’’ सुमि ने कहा.

‘‘छोड़ दी है? पर क्यों?’’ समीर ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम्हारे ढेर सारे बच्चों की परवरिश करने की खातिर,’’ सुमि ने शर्माते हुए कहा तो समीर हंस पड़ा. फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खोए हुए अपने कमरे की ओर चल पड़े.

Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 2

27 जून, 2021 को परिजनों को जैसे ही पता चला कि सचिन की हत्या उस के कुछ नजदीकी दोस्तों ने कर दी है तो घर में कोहराम मच गया. परिजनों का रोरो कर बुरा हाल  हो गया. सचिन अपने घर का इकलौता चिराग था, जिसे दोस्तों ने ही बुझा दिया था.

पुलिस की कड़ी पूछताछ में सभी आरोपी टूट गए. सभी ने स्वीकार किया कि उन्होंने सचिन का अपहरण कर उस की हत्या कर दी और लाश का अंतिम संस्कार पीपीई किट पहना कर करने के बाद उस की अस्थियां भी यमुना में विसर्जित कर दीं.

28 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

सचिन की मौत की पटकथा एक महीने पहले ही लिख ली गई थी. आरोपियों ने पहले ही तय कर रखा था कि सचिन का अपहरण कर हत्या कर देंगे. उस के बाद 2 करोड़ रुपए की फिरौती उस के पिता से वसूलेंगे.

पुलिस पूछताछ में हत्यारोपियों द्वारा सचिन के अपहरण और हत्या के बाद उस के शव का दाह संस्कार करने की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही खौफनाक थी—

मूलरूप से बरहन कस्बे के गांव रूपधनु निवासी सुरेश चौहान आगरा के दयाल बाग क्षेत्र की जयराम बाग कालोनी में अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन का गांव में ही एस.एस. आइस एंड कोल्ड स्टोरेज है.

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इस के अलावा वह आगरा और हाथरस में जिला पंचायत की ठेकेदारी भी करते हैं. लेखराज चौहान भी उन के गांव का ही है. दोनों ने एक साथ काम शुरू किया. दोनों ठेकेदारी भी साथ करते थे. उन दोनों के बीच पिछले 35 सालों से बिजनैस की साझेदारी चल रही थी. सुरेश चौहान का बेटा सचिन व लेखराज का बेटा हर्ष भी आपस में अच्छे दोस्त थे और एक साथ ही व्यापार व ठेकेदारी करते थे.

दयाल बाग क्षेत्र की कालोनी तुलसी विहार का रहने वाला सुमित असवानी बड़ा कारोबारी है. 2 साल पहले तक वह अपनी पत्नी व 2 बेटों के साथ चीन में रहता था. वहां उस का गारमेंट के आयात और निर्यात का व्यापार था. लेकिन 2019 में चीन में जब कोरोना का कहर शुरू हुआ तो वह परिवार सहित भारत आ गया.

दयालबाग में ही सौ फुटा रोड पर उस ने सीबीजेड नाम से स्नूकर और स्पोर्ट्स क्लब खोला. सुमित महंगी गाड़ी में चलता था. वहीं वह रोजाना दोस्तों के साथ पार्टी भी करता था. उस के क्लब में हर्ष और सचिन भी स्नूकर खेलने आया करते थे. इस दौरान सुमित की भी उन दोनों से गहरी दोस्ती हो गई.

बताया जाता है कि हर्ष चौहान के कहने पर सुमित असवानी ने धीरेधीरे सचिन चौहान को 40 लाख रूपए उधार दे दिए. जब उधारी चुकाने की बारी आई तो सचिन टालमटोल कर देता. जबकि उस के खर्चों में कोई कमी नहीं आ रही थी. कई बार तकादा करने पर भी सचिन ने रुपए नहीं लौटाए. यह बात सुमित असवानी को नागवार गुजरी. तब उस ने मध्यस्थ हर्ष चौहान पर भी पैसे दिलाने का दबाव बनाया, क्योंकि उस ने उसी के कहने पर सचिन को पैसे दिए थे.

हर्ष के कहने पर भी सचिन ने उधारी की रकम नहीं लौटाई. यह बात हर्ष को भी बुरी लगी. इस पर एक दिन सुमित असवानी ने हर्ष से कहा, ‘‘अब जैसा मैं कहूं तुम वैसा करना. इस के बदले में उसे भी एक करोड़ रुपए मिल जाएंगे.’’

रुपयों के लालच में हर्ष चौहान सुमित असवानी की बातों में आ गया.

दोनों ने मिल कर घटना से एक महीने पहले सचिन चौहान के अपहरण की योजना बनाई. फिर योजना के अनुसार, सुमित असवानी ने इस बीच सचिन चौहान से अपने मधुर संबंध बनाए रखे ताकि उसे किसी प्रकार का शक न हो.

इस योजना में सुमित असवानी ने रुपयों का लालच दे कर अपने मामा के बेटे हैप्पी खन्ना को तथा हैप्पी ने अपने दोस्त मनोज बंसल और उस के पड़ोसी रिंकू को भी शामिल कर लिया.

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उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि अपहरण के बाद सचिन की हत्या कर के उस के पिता से जो 2 करोड़ रुपए की फिरौती वसूली जाएगी. उस में से एक करोड़ हर्ष चौहान को, 40 लाख सुमित असवानी को और बाकी पैसे अन्य भागीदारों में बांट दिए जाएंगे.

षडयंत्र के तहत उन्होंने अपनी योजना को अमलीजामा 21 जून को पहनाया. सुमित असवानी ने अपने मोबाइल से उस दिन सचिन चौहान को वाट्सऐप काल की. उस ने सचिन से कहा, ‘‘आज मस्त पार्टी का इंतजाम किया है. रशियन लड़कियां भी बुलाई हैं. बिना किसी को बताए, चुपचाप आ जा.’’

सचिन उस के जाल में फंस गया. घर पर बिना बताए वह पैदल ही निकल आया. वे लोग क्रेटा गाड़ी से उस के घर के पास पहुंच गए और सचिन को कार में बैठा लिया. रिंकू कार चला रहा था. मनोज बंसल उस के बगल में बैठा था. वहीं सुमित और हैप्पी पीछे की सीट पर बैठे थे. सचिन बीच में बैठ गया.

सुमित असवानी व साथी शाम 4 बजे पहले एक शराब की दुकान पर पहुंचे. वहां से उन्होंने शराब खरीदी. इस के बाद सभी दोस्त कार से शाम साढ़े 4 बजे सौ फुटा रोड होते हुए पोइया घाट पहुंचे. हैप्पी के दोस्त की बहन का यहां पर पानी का प्लांट था. इन दिनों वह प्लांट बंद पड़ा था. हैप्पी ने पार्टी के नाम पर प्लांट की चाबी पहले ही ले ली थी.

वहां पहुंच कर सभी पहली मंजिल पर बने कमरे में पहुंचे. शाम 5 बजे शराब पार्टी शुरू हुई. जब सचिन पर नशा चढ़ने लगा, तभी सभी ने सचिन को पकड़ लिया. जब तक वह कुछ समझ पाता, उन्होंने उस के मुंह पर टेप लगा कर चेहरा पौलीथिन से बांध दिया, जिस से सचिन की सांस घुटने लगी. उसी समय सुमित असवानी उस के ऊपर बैठ गया और उस का गला दबा कर हत्या कर दी. इस बीच अन्य साथी उस के हाथपैर पकड़े रहे.

सचिन की हत्या के बाद उस के शव का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया गया. इस के लिए शातिर दिमाग सुमित असवानी ने पीपीई किट में लाश को श्मशान घाट पर ले जाने का आइडिया दिया ताकि पहचान न हो सके और कोई उन के पास भी न आए.

इस के लिए कमला नगर के एक मैडिकल स्टोर से एक पीपीई किट उन्होंने यह कह कर खरीदी कि एक कोरोना मरीज के अंतिम संस्कार के लिए चाहिए. रिंकू शव को बल्केश्वर घाट पर ले जाने के लिए एक मारुति वैन ले आया.

सचिन के शव को पीपीई किट में डालने के बाद वह बल्केश्वर घाट पर रात साढ़े 8 बजे पहुंचे. वहां उन्होंने बल्केश्वर मोक्षधाम समिति की रसीद कटवाई व अंतिम संस्कार का सामान खरीदा. उन्होंने मृतक का नाम रवि वर्मा और पता 12ए, सरयू विहार, कमला नगर लिखाया था.

अगले भाग में पढ़ें- सबूत मिटाने के लिए अंतिम संस्कार भी पीपीई किट में कर दिया

‘चीकू की मम्मी दूर की’ में बॉलीवुड स्टार्स गोविंदा या मिथुन चक्रवर्ती की होगी एंट्री!

स्टार प्लस का नया सीरियल ‘चीकू की मम्मी दूर की’ धमाकेदार शुरुआत हो चुकी है. दर्शकों को इस शो का बेसब्री से इंतजार था. इस शो ने  “आपकी नजरो ने समझा” को रिप्लेस किया है. शो के पहले एपिसोड में मां-बेटी के रिश्ते की खूबसूरत झलक दिखाई गई. शो में मां के किरदार में परिधि शर्मा (Paridhi Sharma) नजर आ रही हैं तो वहीं  वैष्णवी प्रजापति (Vaishnavi Prajapati) उनकी बेटी का किरदार निभा रही हैं.

इसी बीच खबर यह आ रही है कि ‘चीकू की मम्मी दूर की’ में बॉलीवुड एक्टर्स गोविंदा (Govinda) और मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) में कोइ एक कलाकार इस शो में लीड रोल में नजर आएंगे. बताया जा रहा है कि शो के मेकर्स अगले प्रोमों में ‘मिथुन दा’ या गोविंदा को लेने की योजना बना रहे हैं. शो में दोनों एक्टर्स में से किसी एक को देखना काफी दिलचस्प होगा.

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यह सीरियल स्टार जलसा के बंगाली सीरियल मां… तोमय चारा घुम आशेना का हिंदी रीमेक है. शो में मां-बेटी के संबंधो को काफी खूबसूरती से दिखाया जाएगा.  शो के प्रोमो के अनुसार चीकू एक त्योहार के दौरान  अपनी मां से अलग हो जाती है और अन्य बच्चों के साथ झोपड़पट्टी में रहती है.

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आपको बता दें कि चीकू की मां यानी ररिधि शर्मा ने इससे पहले जोधा अकबर, पटियाला बेब्स और कई शो में मुख्य भूमिका में नजर आई थी तो वहीं चीकू यानी वैष्णवी प्रजापति सुपर डांसर शो से फेमस हुई.

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Bigg Boss Ott: अक्षरा सिंह के समर्थन में आए भोजपुरी खलनायक नीरज यादव

मशहूर निर्माता निर्देशक और कार्यक्रम संचालक करण जौहर ओटीटी  प्लेटफार्म पर ‘‘बिग बाॅस ओटीटी’’लेकर आए हैं,जिसका संचालन भी करण जौहर ही कर रहे हैं. इसमें भोजपुरी सुपर स्टार अक्षरा सिंह भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.

‘बिग बाॅस’ के इस नए फॉर्मेट में अभी तक अक्षरा सिंह की परफॉर्मेंस काफी सराहनीय रही है.तो वहीं भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े तथा अक्षरा सिंह के साथ काम कर चुके कई कलाकार इन दिनों ‘बिग बाॅस’के घर केे बाहर से अक्षरा सिंह का हौसला बढ़ाते हुए उनकी जीत की कामना कर रहे हैं.

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ऐसे ही कलाकारों में से एक हैं नीरज यादव. जी हां! भोजपुरी सिनेमा के मशहूर खलनायक और अक्षरा सिंह के साथ काम कर चुके अभिनेता नीरज यादव ने कहा है कि अक्षरा सिंह बिग बॉस जीतकर आएं और भोजपुरी का मान बढ़ाएं.

नीरज ने कहा-‘‘अक्षरा सिंह एक बेहतरीन कलाकार और सहयोगी इंसान हैं. जब हमने अक्षरा सिंह के साथ पहली बार फिल्म‘‘प्रतिघात’’में अभिनय किया था,तब उनके सहयोग की वजह से इस फिल्म में अपनी अभिनय प्रतिभा का अच्छा प्रदर्शन कर पाए थे. अक्षरा सिंह उस वक्त तक स्टार बन चुकी थी,मगर मुझे सेट पर एक भी दिन इस बात का अहसास नही हुआ कि वह बड़ी अदाकारा हैं.मैं तो उनके मिलनसार स्वाभाव का कायल हॅूं.

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हम उनसे यही अपील करेंगे कि आप डट कर मुकाबला करें.कभी कभी होता है कि भोजपुरी बैकग्राउंड से होने की वजह से अन्य लोगों द्वारा लेटडाउन किया जाता है, मगर अक्षरा डाउन न हों.हम उनके लिए खूब वोट करेंगे और दर्शकों से भी अपील करते हैं कि आप भी वोट करें.वैसे इस शो के संचालक/होस्ट करण जौहर एक न्याय प्रिय इंसान हैं.उनके रहते किसी के भी साथ इस शो में अन्याय नहीं हो सकता.’’

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गोरखपुर,उत्तर प्रदेश निवासी के रहने वाले अभिनेता नीरज यादव अब तक दिनेशलाल यादव निरहुआ, रवि किशन, खेसारीलाल यादव जैसे कलाकारों के साथ 45 फिल्में कर चुके हैं.वहीं उनकी अदाकारी के जलवे साउथ इंडस्ट्री में भी खूब देखने को मिलते हैं.वह दक्षिण भारत में इन दिनों फिल्म ‘‘मक्खी’’ फेम अभिनेता सुदीप के साथ काम कर रहे हैं, जिसकी शूटिंग फिलहाल चल रही है.

इस फिल्म की शूटिंग मुंबई और आ्रॅस्ट्रेलिया में भी होनी है. उन्होंने कन्नड़ सुपर स्घ्टार शिवराम के साथ भी फिल्म की है. वहीं अभी हाल ही में शाही कुमार के साथ उनकी फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ है.हिंदी में इस फिल्म का नाम ‘पुलिस फोर्स’है.

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