365 पत्नियों वाला रंगीला राजा भूपिंदर सिंह

राजाओंमहाराजाओं के पराक्रम के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है. लेकिन ऐसे भी तमाम राजामहाराजा हुए हैं, जिन की रंगीनमिजाजी और शौक की चर्चा कर के आज भी लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं.

दरअसल देश की सत्ता जब अंगरेजों के पास आई तो इन राजाओं के पास केवल लगान वसूली का काम रह गया. लगान वसूल कर अंगरेजों का हिस्सा पहुंचा कर बाकी बची रकम से ये केवल अपने शौक पूरे करने के अलावा अय्याशी करते थे.

इन के शौक और अय्याशी भी किसी सनक की ही तरह होती थी. वैसे तो विलासिता पसंद राजाओंमहाराजाओं की हमारे यहां कमी नहीं रही, जो काफी अय्याश भी रहे थे. उन्हीं में एक नाम पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह का भी है.

पटियाला की बात चलते ही तुरंत पटियाला पैग की याद आ जाती है. जंबो पैग यानी पटियाला पैग. जंबो पैग की ही तरह पटियाला के महाराजा का परिवार भी जंबो था. सोच कर आप को हंसी भी आ जाए और कंपा भी दे, इस तरह का परिवार था पटियाला के महाराजा का.

आज एक पत्नी और एक या 2 बच्चों के साथ रहना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में रोज के हिसाब से एक रानी यानी 365 रानियों के साथ जीवन कैसे गुजरेगा, यह सोच कर दिमाग चकरा जाता है. फिर भी रंगीनमिजाज लोगों को एक की अपेक्षा कई पत्नियों को संभाल लेने की कला अच्छी तरह आती है.

पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह को भी यह कला अच्छी तरह आती थी. वह बहुत ही रंगीले इंसान थे. पावर करप्ट वाली अंगरेजों की युक्ति यहां पूरी तरह फिट बैठती थी.

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12 अक्तूबर, 1891 को पैदा हुए भूपिंदर सिंह. सामान्य बच्चा जिस उम्र में गली में मिट्टी में खेलने जाने लगता है, उसी उम्र में भूपिंदर सिंह महाराजा रजिंदर सिंह की मौत के बाद राजा बन गए थे. 9 साल की उम्र में ही पटियाला की बागडोर संभालने वाले राजा भूपिंदर सिंह ने पटियाला पर 38 साल राज किया था.

हालांकि औपचारिक तौर पर राज्य की कमान उन्होंने 18 साल की उम्र में संभाली थी. 28 साल राज करने के बाद 23 मार्च, 1938 को मात्र 47 साल की उम्र में उन का निधन हो गया था.

भारत में उन दिनों तमाम रजवाड़े थे. राजाओं की रंगीनमिजाजी के तमाम किस्से सुनने को मिलते रहते हैं. तमाम राजाओं की रंगीनमिजाजी पर किताब भी लिखी गई है.

भूपिंदर सिंह के दीवान जरमनी दास ने भी ‘महाराजा’ नामक एक किताब लिखी है, जिस में पटियाला के महाराजा की रंगीनमिजाजी का पूरा उल्लेख किया गया है.

उन्होंने महाराजा भूपिंदर सिंह के जीवन पर जो किताब लिखी है, उस पर काफी विवाद रहा है. लेकिन इस बात पर सभी एकमत रहे हैं कि महाराजा भूपिंदर सिंह भव्य और विलासिता भरा जीवन जीते थे.

इस किताब में जिस भवन का उल्लेख है, वह लीलाभवन अपने नाम के अनुसार ही लीला यानी रंगरलियों के लिए प्रसिद्ध था.

ऐसा नियम था कि इस महल में कोई कपड़ा पहन कर नहीं जा सकता था. मतलब वहां लोग बिना कपड़ों के यानी नग्न जाते थे. पटियाला के भूपिंदरनगर से जाने वाली सड़क पर बारहदरी बाग के नजदीक यह महल बना है. कपड़ा उतार कर जिस महल में प्रवेश मिलता हो, उस महल की रंगीनमिजाजी यानी इश्कमिजाजी के बारे में क्या कहा जा सकता है. इस महल में एक खास कमरा था, जिस का नाम प्रेम मंदिर रखा गया था.

प्रेम तो एक इबादत माना जाता है, ऐसे में लीलाभवन में प्रेम मंदिर का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लीलाभवन के इस प्रेम मंदिर की दीवारों पर चारों तरफ ऐसे चित्रों की भरमार थी, जिस में महिलापुरुष कामवासना में लिप्त दिखाई देते थे.

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इस कमरे में महाराजा भूपिंदर सिंह के अलावा किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी. हां, अगर राजा की इच्छा हो तो दूसरे किसी पुरुष को प्रवेश मिल सकता था. पर ज्यादातर राजा ही अय्याशी में रचेबसे रहते थे तो दूसरे को जाने का मौका कहां से मिलता. प्रेम मंदिर के उस कमरे में भोगविलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं.

इस महल में एक ऐसा तालाब था, जिस में एक साथ 150 लोग स्नान कर सकते थे. इसी महल में राजा पार्टियां देते थे, जिस में जानीमानी महिलाओं और कुछ खास लोगों को निमंत्रण मिलता था.

सभी लोग एक साथ तालाब में स्नान करते, तैरते और अय्याशी करते. यहां खुलेआम अय्याशी होती थी. महाराज इस तरह की पार्टियों में सभी के सामने अपनी प्रेमिकाओं से इश्क फरमाते थे.

राजा भूपिंदर सिंह साल में एक बार बिना कपड़ों के सिर्फ हीरों का हार पहन कर हाथी पर सवार हो कर निकलते थे. तब लोग उन की जयजयकार करते थे. लोगों का मानना था कि राजा की ताकत उन्हें बुरी तापती से बचा सकती है.

रंगीनमिजाज महाराजा भूपिंदर सिंह ने वैसे तो 10 शादियां की थीं. लेकिन इन 10 रानियों के अलावा 365 अन्य महिलाएं रानी की हैसियत से महाराज से मिला करती थीं. महाराज ने  इन सभी रानियों के रहने के लिए पटियाला में भव्य महल बनवाए थे, जिन में भोगविलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं.

उस समय लोग स्वास्थ्य के प्रति इतना जागरूक नहीं थे, पर महाराजा भूपिंदर सिंह ने हर रानी के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए राउंड द क्लाक देशीविदेशी विशेषज्ञ चिकित्सक रख रखे थे.

ये चिकित्सक रानियों के रूटीन जांच और सेहत के अन्य मामलों पर ध्यान रखते थे. ये विशेषज्ञ रानियों के स्वास्थ्य पर ही नहीं, उन की हेयर स्टाइल से ले कर नाकनक्श तक आधुनिक और खूबसूरत रहे, इस का भी खयाल रखते थे. इस के लिए महाराजा प्लास्टिक सर्जन की भी मदद लेते थे.

‘महाराजा’ किताब में दी गई जानकारी के अनुसार महाराजा की शादी की हुई 10 रानियों से 88 संतानें हुईं. पर उन में से केवल 53 संतानें ही जीवित रहीं.

365 रानियां हों तो किस के साथ रहना है, यह भी एक बड़ा सवाल है. पर भूपिंदर सिंह ने इस का हल निकाल लिया था. राजा के महल में रात को 365 फानस जलते थे.

इन तमाम फानस पर एकएक रानी का नाम लिखा था. इन में से जो फानस सवेरे सब से पहले बुझ जाता था और उस पर जिस रानी का नाम लिखा होता था, इस का मललब था कि राजा रात उसी रानी के निवास में गुजारेंगे.

उस समय महाराजा भूपिंदर सिंह अय्याशी के लिए ही नहीं, संपत्ति के लिए भी खूब जाने जाते थे. उन के पास ऐसी अनेक चीजें थीं, जिन के कारण वह दुनिया में मशहूर थे. वह अपने खास और अलग अंदाज के लिए जाने जाते थे. वह अपना जीवन भी खास और अलग अंदाज से जीते थे.

वह जिस थाली में खाना खाते थे, उस की कीमत करीब 17 करोड़ थी. उन के सभी बरतनों पर सोने या चांदी की परत चढ़ी हुई थी. राजा का यह डिनर सेट लंदन की कंपनी गोल्डस्मिथ्स एंड सिल्वरस्मिथ्स ने तैयार किया था.

उन के पास दुनिया भर में मशहूर पटियाला हार था, यह हार आभूषण बनाने के लिए विश्वप्रसिद्ध कंपनी कार्टियर ने बनाया था. इस हार में 2900 से अधिक हीरे लगे थे. इस में उस समय का दुनिया के सब से बड़े हीरों में सातवें नंबर का हीरा जड़ा था. इस की कीमत 166 करोड़ थी.

यह हार 1948 में पटियाला के शाही खजाने से चोरी हो गया था. फिर कई सालों बाद अलगअलग हिस्सों में कई स्थानों से बरामद हुआ था. पर इसे गायब करने वाले का पता आज तक नहीं चला है.

उन के पास 44 कारों का पूरा एक काफिला था, जिन में से 20 रोल्स रायस कारें थीं, जिन में से 20 कारें रोज के काम में लगी रहती थीं.

भारत में भूपिंदर सिंह ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन के पास अपना विमान था. 1910 में उन्होंने ब्रिटेन से वह विमान खरीदा था और उस के लिए पटियाला में रनवे भी बनवाया था. उन्होंने विमान खरीदने से पहले चीफ इंजीनियर को स्पौट स्टडी करने के लिए यूरोप भेजा था. उस के बाद विमान खरीदा था.

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यह पटियाला पैग भी भूपिंदर सिंह की ही देन है. आज भी शराब के शौकीन पटियाला पैग लगाने के लिए आतुर होते हैं. इस दुनिया को पटियाला पैग भेंट करने वाले भूपिंदर सिंह अपनी 365 रानियों के साथ किस तरह रहते रहे होंगे, यह आज भी रहस्य है.

Crime Story: पुलिस वाले की खूनी मोहब्बत- भाग 1

इसी 5 जून की बात है. गुजरात के पुलिस इंसपेक्टर अजय देसाई ने अपने साले जयदीप भाई पटेल को मोबाइल पर फोन कर पूछा, ‘‘भैयाजी, स्वीटी आप के पास आई है क्या?’’

जयदीप ने चौंकते हुए कहा, ‘‘नहीं जीजाजी, स्वीटी तो यहां नहीं आई, लेकिन बात क्या है?’’

‘‘दरअसल, स्वीटी रात एक बजे से आज सुबह साढ़े 8 बजे के बीच घर से कहीं चली गई. वह अपना मोबाइल भी घर पर ही छोड़ गई है.’’ अजय ने जयदीप को बताया.

‘‘जीजाजी, आप ने स्वीटी से कुछ कहा तो नहीं या घर में कोई झगड़ा वगैरह तो नहीं हुआ था?’’ जयदीप ने चिंतित स्वर में अजय से पूछा.

‘‘अरे नहीं यार, न तो घर में कोई झगड़ा हुआ और न ही मैं ने उस से कुछ कहा.’’ अजय ने अपने साले के सवालों का जवाब देते हुए कहा, ‘‘वह बिना किसी को बताए पता नहीं कहां चली गई?’’

‘‘जीजाजी, मेरा भांजा अंश कहां है?’’ जयदीप ने अजय से पूछा. अंश स्वीटी का 2 साल का बेटा था.

‘‘यार, वह उसे भी घर पर ही छोड़ गई है. मुझे चिंता हो रही है कि वह अकेली कहां चली गई.’’ अजय ने कहा, ‘‘अंश अपनी मां के बिना रह भी नहीं रहा. वह लगार रो रहा है.’’

जयदीप कुछ समझ नहीं पाया कि उस की बहन स्वीटी अचानक कैसे अपने घर से बिना किसी को बताए कहीं चली गई. उस ने अजय से कहा, ‘‘जीजाजी, आप तो पुलिस में इंसपेक्टर हैं. स्वीटी का पता लगाइए. मैं भी पता करता हूं.’’

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‘‘ठीक है, कुछ पता चले, तो बताना.’’ अजय ने यह कह कर फोन काट दिया.

बहन स्वीटी के अचानक इस तरह गायब होने की बात सुन कर जयदीप परेशान हो गया. उस ने अपने कुछ रिश्तेदारों को फोन कर स्वीटी के बारे में पूछा, लेकिन उस का कहीं से कुछ पता नहीं चला.

अजय देसाई गुजरात के वडोदरा शहर में करजण इलाके की प्रयोशा सोसायटी में रहता था. वह गुजरात पुलिस में इंसपेक्टर था. अजय ने स्वीटी पटेल से 2016 में लव मैरिज की थी. उन की मुलाकात अहमदाबाद के एक स्कूल में 2015 में हुई थी.

उस स्कूल में तब माइंड पौवर नामक एक कार्यक्रम हुआ था. इसी कार्यक्रम में अजय और स्वीटी की मुलाकात हुई. दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. स्वीटी अजय की प्रतिभा पर रीझ गई थी और अजय उस की खूबसूरती पर फिदा हो गया था.

दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं. करीब एक साल तक प्रेम प्रसंग के बाद दोनों ने साथ रहने का फैसला किया और 2016 में एक मंदिर में शादी कर ली.

स्वीटी की इस से पहले एक शादी हो चुकी थी. उस का पहला पति हेतस पांड्या आस्ट्रेलिया में रहता है. बताया जाता है कि हेतस पांड्या भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हार्दिक पांड्या का रिश्ते का भाई है. हेतस पांड्या से शादी के बाद स्वीटी के एक बेटा रिदम हुआ. अब 17 साल का हो चुका रिदम भी अपने पिता के साथ आस्ट्रेलिया में रहता है.

पुलिस इंसपेक्टर अजय देसाई से दूसरी शादी के बाद स्वीटी के एक बेटा हुआ. उस का नाम अंश रखा गया. जयदीप को यही पता था कि स्वीटी दूसरी शादी के बाद अपने पति अजय और 2 साल के बेटे अंश के साथ खुश है.

भाई पहुंच गया थाने

अब अचानक स्वीटी के गायब होने की सूचना से वह बेचैन हो गया. वह तुरंत तो वडोदरा नहीं पहुंच पा रहा था. इसलिए फोन पर ही अजय से संपर्क में रह कर अपनी बहन के बारे में पूछता रहा, लेकिन हर बार उसे निराशाजनक जवाब मिला.

जयदीप समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ऐसी क्या बात हुई, जो उस की बहन अचानक किसी को बताए बिना घर से चली गई?

स्वीटी पढ़ीलिखी 37 साल की मौडर्न महिला थी. जयदीप की नजर में ऐसी कोई भी बात नहीं आई थी कि वह अपने पति पुलिस इंसपेक्टर पति से किसी तरह से परेशान या नाखुश है. वह अपने छोटे से परिवार में खूब मौज में थी.

फिर अचानक 2 साल के बेटे को घर पर अकेला छोड़ कर क्यों और कहां चली गई? अपना मोबाइल भी साथ नहीं ले जाने से उस से संपर्क भी नहीं हो रहा था.

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जयदीप स्वीटी के इस तरह गायब होने का रहस्य समझ नहीं पा रहा था. उस ने मोबाइल पर ही अपने रिश्तेदारों और जानकारों से अजय और स्वीटी के रिश्तों के बारे में पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई बात पता नहीं चली,

जिस से स्वीटी के गायब होने का कारण समझ आता.

अजय से जब भी जयदीप ने बात की, तो वह यही कहता रहा कि हम खोजबीन कर रहे हैं, लेकिन अभी स्वीटी का कुछ पता नहीं चला है. जयदीप ने अपने जीजा को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही तो अजय ने परिवार की बदनामी की बात कहते हुए कुछ दिन रुकने को कहा.

5-6 दिन तक स्वीटी का कुछ पता नहीं चलने पर आखिर जयदीप वडोदरा आ कर अपने जीजा अजय देसाई से मिला और स्वीटी के गायब होने के बारे में सारी बातें पूछीं. अजय ने उसे बताया कि 4 जून की रात एक बजे वह स्वीटी के साथ अपने घर में सोया था.

अगले दिन 5 जून को सुबह करीब साढ़े 8 बजे उठा तो स्वीटी नहीं मिली. उस का मोबाइल भी कमरे में ही था और अंश भी बैड पर सो रहा था. पूरे घर में तलाश करने पर भी स्वीटी नहीं मिली तो आसपास उस की तलाश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

जयदीप ने अपने जीजा से बातोंबातों में कुरेदकुरेद कर यह पता लगाने की कोशिश की कि उन के बीच कोई झगड़ा तो नहीं हुआ था या कोई और बात नहीं थी, लेकिन ऐसी कोई बात पता नहीं चली. अंश के बारे में अजय ने बताया कि उसे रिश्तेदार के पास भेज दिया है.

आखिर थकहार कर जयदीप ने 11 जून को वडोदरा के करजण पुलिस थाने में स्वीटी के लापता होने की सूचना दर्ज करा दी. अजय पहले करजण पुलिस थाने में ही तैनात था. बाद में उस का ट्रांसफर वडोदरा जिले के स्पेशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) शाखा में हो गया था.

स्वीटी के लापता होने की सूचना दर्ज होने पर पुलिस उस की तलाश में जुट गई. एक पुलिस इंसपेक्टर की पत्नी के गायब होने का मामला होने के कारण पुलिस ने कई दिनों तक आसपास के जंगलों, नदीनालों और झीलों में स्वीटी की तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

ड्रोन से जंगलों में की खोजबीन

पुलिस ने विभिन्न अस्पतालों में जा कर 17 लावारिस लाशों का मुआयना किया. आसपास के पुलिस थानों के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से भी लावारिस शव मिलने की सूचनाएं जुटाईं, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

एकएक दिन गुजरता जा रहा था. पुलिस अजय के बयानों पर भरोसा करते हुए हरसंभव स्थानों पर स्वीटी की तलाश करती रही. डौग स्क्वायड और ड्रोन के जरिए भी आसपास के जंगलों में तलाश की गई. रेलवे लाइनों के नजदीक भी काफी खोजबीन की गई.

कोई सुराग नहीं मिलने पर करीब एक महीने बाद पुलिस ने अखबारों में स्वीटी के लापता होने के इश्तिहार छपवाए, लेकिन इस का भी कोई फायदा नहीं हुआ. पुलिस को कहीं से कोई सूचना नहीं मिली.

स्वीटी को लापता हुए एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका था. एसओजी के पुलिस इंसपेक्टर की गायब पत्नी का पता नहीं लग पाने पर पूरे गुजरात में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. लोग पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने लगे थे.

पुलिस अधिकारियों के लिए भी स्वीटी के गायब होने का रहस्य लगातार उलझता जा रहा था. अधिकारी रोजाना मीटिंग कर स्वीटी का पता लगाने के लिए अलगअलग एंगल से जांच शुरू करते, लेकिन उस का कोई नतीजा नहीं निकल रहा था.

इस बीच, पुलिस के अधिकारी बीसियों बार इंसपेक्टर अजय देसाई से भी पूछताछ कर चुके थे. उस के फ्लैट पर जा कर भी कई बार जांचपड़ताल की जा चुकी थी. सैकड़ों सीसीटीवी कैमरों की जांच और स्वीटी के मोबाइल से भी पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगा था.

आसपास के लोगों से भी कई बार पूछताछ हो चुकी थी. पुलिस के अधिकारी समझ नहीं पा रहे थे कि स्वीटी को आसमान खा गया या जमीन निगल गई, जो उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा.

अगले भाग में पढ़ें- लव अफेयर्स एंगल पर भी की जांच

रिश्ता दिल से

क्या प्यार की कोई सही उम्र होती है? क्या प्यार के लिए कोई छोटा और कोई बूढ़ा होता है? जी नहीं, प्यार की कोई उम्र, कोई सीमा नहीं होती. प्रसिद्ध लेखिका मारिया एजवर्थ ने कहा था कि इंसानी दिल किसी भी उम्र में उस दिल के आगे खुलता है जो बदले में अपने दिल का रास्ता खोल दे. तकरीबन 2 शतक पूर्व कही गई उन की बात आज भी सटीक साबित होती है. शायद इसी बात की मार्मिकता को समझते हुए गजल सम्राट जगजीत सिंह ने फिल्म ‘प्रेम गीत’ (1981) के एक गीत ‘होठों से छू लो तुम…’ की कुछ पंक्तियों में कहा है, ‘न उम्र की सीमा हो… न जन्मों का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’ चार दशक पहले लिखा यह गीत आज भी प्रासांगिक है. तब प्यार की जो नई परिभाषा कल्पना में पिरो कर शब्दों से सजाई गई थी, आज वह समाज की हकीकत बन गई है.

मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना कहती हैं, ‘‘हम उम्र के हर पड़ाव में भावनात्मक रूप से जुड़ने की क्षमता को महसूस करते हैं और चाहते हैं कि कोई हो जो हमारा ध्यान करे, हमारी इज्जत करे, हम से प्यार करे.’’

बौलीवुड की फिल्मों का तो यह औलटाइम फेवरेट विषय रहा है. असंख्य फिल्में व गीत प्रेम की मधुरता, प्रेमी से विरह और प्यार में जीनेमरने की स्थितियों को गुनगुनाते सुने व देखे जाते रहे हैं. एक आम आदमी के जीवन में प्यार कभी उस के जीवन की मजबूत कड़ी बनता है, तो कभी मृगतृष्णा की भांति जीवनभर छलावा देता है. ढाई अक्षर के इस शब्द में जीवन की संपूर्णता है.

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जवानी दीवानी

हमारे समाज में जवानी को बहुत महत्त्व दिया जाता है. कुछ इस तरह का माहौल बना रहता है कि यदि जवानी बीत गई तो जीवन ही समाप्त समझो. जीवन की ऊर्जा, उस की क्षमता और उस का उत्साह, सबकुछ जवानी अपने साथ ले जाती है. शायद इसीलिए जवानी जाने के बाद भी अकसर लोग जवान बने रहना चाहते हैं. लेकिन बढ़ती उम्र इतनी बुरी भी नहीं और इस का सब से बड़ा कारण है कि उम्र के साथ हमारे पास अनुभवों का खजाना बढ़ता जाता है जिस से हमारी जिंदगी पहले के मुकाबले और रंगीन व रोचक हो जाती है.

यह जरूरी नहीं कि प्यार पाने के लिए आप जवान ही हों. प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है. यह तो वह अनुभूति है जो जिसे छू जाए वही इस का सुख, इस का नशा जानता है. कितनी बार हम यह सोचते हैं कि अब हम प्यार के लिए बूढ़े हो चुके हैं खासकर कि महिलाएं. महिलाएं अकसर रोमांस या नए रिश्ते खोजने में डरती हैं और सोचती हैं कि अब हमारी उम्र निकल चुकी है, अब हमें कौन मिलेगा. लेकिन जरूरी नहीं कि प्यार जवानी में ही मिले.

एक उम्र गुजार देने के बाद जो प्यार मिलता है वह छोटी उम्र के प्यार से बेहतर होता है. आप सोचेंगे कैसे? वह ऐसे कि जब हम जवान होते हैं या कम उम्र होते हैं तो हमारे पास केवल उतनी ही उम्र का तजरबा होता है. जबकि उम्र बढ़ने के साथसाथ हमारे अनुभव बढ़ते हैं, हमारी गलतियां बढ़ती हैं और उन गलतियों से हमारी सीखें भी बढ़ती हैं. इसलिए बड़ी उम्र का प्यार वह गलतियां नहीं करने देता जो छोटी उम्र वाले आशिक अकसर कर बैठते हैं. उम्र गुजार देने के बाद हम अपनी गलतियों से शिक्षा ले आगे की राह सुगम बनाने लगते हैं. हमें पता चल जाता है कि हमें क्या चाहिए और क्या नहीं.

मर्दों को अकसर आत्मविश्वासी औरतें बहुत भाती हैं जिन्हें यह पता हो कि उन्हें खुद से और सामने वाले से क्या चाहिए. इसलिए आजकल ऐसे कई उदाहरण हैं जिन में आशिकों की उम्र में अंतर तो होता है लेकिन साथियों में बड़ी उम्र की औरत होती है और कम उम्र का मर्द. आजकल आप कई ऐसे जोड़े देखेंगे जिन में अधिक उम्र की महिलाओं के साथ कम उम्र के मर्द दिखाई देते हैं.

साइकोलौजिस्ट डा. पल्लवी जोशी कहती हैं, ‘‘प्यार के लिए आपसी सामंजस्य, समझदारी, समर्पण व सम्मान की जरूरत है न कि उम्र की.’’  डा. जोशी के अनुसार ऐसे रिलेशनशिप (जो बड़ी उम्र में बनते हैं) कोई नई बात नहीं है. लेकिन अब जो बदलाव आ रहे हैं उन में यह देखने को मिल रहा है कि महिलाएं ऐसे रिश्तों में ज्यादा खुल कर सामने आ रही हैं.

दिल तो बच्चा है जी

दिल की मासूमियत कभी खत्म नहीं होती. फिर चाहे आप 15 के हों, 30 के, या फिर 55 के ही क्यों न हों. दिल तो हमेशा बच्चा होता है और वह उसी तरह बचपना कर के जिंदगी का आनंद लेता रहता है. दिल कभी भी यह नहीं सोचता कि आप की उम्र क्या है या जिस से आप की आंखें चार होने वाली हैं उस की उम्र और उस का मजहब क्या है. यह सब से अच्छा होता है. सब से खूबसूरत और जिंदादिल होता है. दिल हमेशा जवां होता है, जिसे अपने सब से करीब पाता है, बस, वह उसी का होने को बेताब हो जाता है.

मशहूर सिंगर मैडोना ने 61 वर्ष की उम्र में अपने से 36 वर्ष छोटे लड़के विलियम से प्यार किया. हालांकि, विलियम के मातापिता तक उम्र में मैडोना से छोटे हैं पर वे इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके हैं और कहते हैं कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती.

मिसेज इंडिया फेम रह चुकीं मीनाक्षी माथुर का कहना है, ‘‘हमारा समाज काफी बदल रहा है. समाज की तरफ से कई ऐसे आयामों को स्वीकृति मिल रही है जो पहले नहीं थी, जैसे बड़ी उम्र का प्यार या लिव इन रिलेशनशिप. लेकिन अब भी हमारे समाज में उतनी मैच्योरिटी नहीं आई है जितनी कि पाश्चात्य समाज में है. पश्चिम के लोग यह जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं. पहले किसी को पसंद करना, फिर उस के साथ रह कर यह देखना कि निबाह हो सकता है या नहीं और फिर शादी का निर्णय लेना. ये सभी परिपक्व सोच की निशानियां हैं.’’

मैच्योर लव

एक सफल रिश्ते के लिए किसी एक का मैच्योर होना महत्त्व रखता है, रूप से नहीं, दिमाग से ताकि रिश्ता संपूर्ण समझदारी व धैर्य से निभाया जा सके. एक मैच्योर साथी धैर्य से रिश्ते की कमजोरियों पर गौर करता है. ठंडे दिमाग से अपनी व अपने प्रियतम की खामियों को दूर करने की पहल करता है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि रूप, यौवन एक वक्त के बाद ढल ही जाता है, फिर चाहे वह स्त्री का हो या पुरुष का. तब ताउम्र जो आप के साथ रहता है वह है आप का प्यार, आपसी सामंजस्य, विश्वास, एकदूसरे की परवा व समझदारी. इन की नींव पर खड़ा रिश्ता जिंदगी के आखिरी पड़ाव में आप का हाथ थामे रखता है चूंकि उस की बुनियाद उम्र नहीं, आप का सच्चा प्यार होता है.

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समाजशास्त्री टेसू खेवानी कहती हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों एकदूसरे की तरफ अट्रैक्ट होते ही हैं. जीवन में यदि कोई ऐसा आप को मिलता है जिस से मिलने के बाद आप खुद को पूरा समझने लगते हैं, आप का माइंडसैट, नेचर, बिहेवियर, खूबियां व खामियां सब वह अच्छे से समझता है या कहें कि आप को लगता है कि उस के साथ सब मैच करता है तो आप को बेझिझक आगे बढ़ना चाहिए.

जब प्यार मिलता है तो वह उम्र की सीमाएं नहीं नापता. वह तो बस एक तूफान की तरह आता है और अपने उफान में हमें डुबो लेता है. ऐसे में हमें सच्चे प्यार का आनंद लेना चाहिए. उस का सुख उठाना चाहिए और यह शुक्र मनाना चाहिए कि हमारे साथ यह इस समय हो रहा है. प्यार में पड़ कर भले ही हम 50 के हों किंतु हमें अनुभूति 19 की भी हो सकती है, 25 की भी हो सकती है और 38 की भी.

देशी भी पीछे नहीं

प्यार वह एहसास है जो उम्र को बखूबी हरा सकता है. इस का एक बेहद खूबसूरत उदाहरण है झाबुआ जिले के परगट गांव में रहने वाले बादू सिंह और भूरी की प्रेम कहानी. भूरी का पति शराब पी कर उस से अकसर मारपीट किया करता था जबकि बादू सिंह की पत्नी का देहांत हो चुका था और वह एकाकी जीवन जी रहा था. दोनों मजदूरी करने गुजरात गए और वहीं इन की मुलाकात हुई. मिलने पर इन्हें लगा कि हम दोनों एकदूसरे के लिए सही हैं. बस, यहीं से प्यार की कोंपलें फूटने लगीं.

लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट यह रहा कि ये दोनों ही 70 पार की उम्र के हैं. जिस उम्र में हमारा समाज अपने बुजुर्गों को हाथ में माला फेरने और भगवान में मन लगा कर अपनी उम्र पूरी होने की नसीहत देता है, उस उम्र में इन दोनों ने बेखौफ हो कर प्यार किया और समाज की परवा न करते हुए आगे बढ़ चले. दिल के हाथों मजबूर हो कर अपने प्यार को पाने के लिए इन दोनों ने लिवइन में रहना शुरू कर दिया. भूरी कोई आधुनिका नहीं, किसी पौइंट को प्रूव करने के लिए नहीं, किसी संस्था की सदस्य नहीं बल्कि केवल अपने दिल की सुनते हुए ऐसा कर गुजरी.

समाजशास्त्री टेसू खेवानी कहती हैं कि जब हम अपने किसी निर्णय पर अडिग होते हैं तो समाज भी उसे स्वीकार कर ही लेता है. हमारे अपने आत्मविश्वास को देखते हुए जब हमारी अंतरात्मा हमारा साथ देती है तो बाहरी समाज भी खूबसूरती से उसे अपना लेता है. इसलिए जरूरी है कि हम जो निर्णय लें उस पर पूरा विश्वास रखें और डटे रहें.

मनोवैज्ञानिक आधार पर रोमांटिक रिलेशनशिप

मनोवैज्ञानिक आधार पर देखा जाए तो एक सुदृढ़ रिश्ते, जिस में एक अच्छा रोमांटिक रिलेशनशिप भी आता है, का असर हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा पड़ता है. और इस कारणवश यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि एक सफल रोमांटिक रिश्ता किन कारणों से बन सकता है. बढ़ती उम्र की आबादी के लिए यह जान लेना स्वास्थ्यवर्धक रहेगा.

जब हम जवान होते हैं तो अपने रिश्ते की नकारात्मकता पर कम ध्यान देते हैं. इस कारण कई बार हम गलत रिश्ते भी बना बैठते हैं. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ हम यह समझने लगते हैं कि हमें एक रिश्ते से क्या चाहिए और क्या नहीं. रिश्ते बनाने में भले ही हम अपनी गति धीमी कर लें लेकिन गलती करने से बचना चाहते हैं. संभवतया इसीलिए औरतें रिश्तों में आगे बढ़ने से कतराती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अब समय बीत चुका है, अब उन्हें उन का साथी नहीं मिलेगा, और वे रोमांटिक रिश्ता ढूंढ़ने में घबराने लगती हैं. लेकिन, साथ ही एक सचाई यह भी है कि बढ़ती उम्र की औरत अपने साथी में कमी न ढूंढ़ कर, उसे ‘जैसा है वैसा ही’ स्वीकार सकती है जबकि एक जवान स्त्री अपने साथी को अपनी तरह बनाने की कोशिश करती रहती है.

58 साल की बेथनी को जब उन का मनपसंद साथी मिला तो दोनों ने एकसाथ रहने का निर्णय किया. न्यूयौर्क में स्थित हडसन रिवर के पास जब उन्होंने अपने घर में एकसाथ रहना शुरू किया तो बेथनी ने अपने अंदर जवानी के दिनों के मुकाबले एक भारी बदलाव महसूस किया. वे कहती हैं, ‘अब तक की सारी जिंदगी में जब भी किसी पुरुष ने मुझ से भिन्न कोई कार्य किया तो मैं ने उसे अपने सांचे में ढालना चाहा. लेकिन, अब एक उम्र निकल जाने के बाद मुझ में यह बदलाव आया है कि अपने से भिन्न तरीके पर मेरी प्रतिक्रिया होती है. अच्छा, यह ऐसे भी हो सकता है, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. यह तरीका बेहतर है क्योंकि इस में तनाव नहीं.’ बेथनी कहती हैं कि जिंदगी छोटी है और मौत एक दिन जरूर आएगी, और प्यार सच है. इसलिए हम वर्तमान के एकएक पल का लुत्फ उठाना चाहते हैं.

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बहुत हैं उदाहरण

सैलिब्रिटीज की बात करें तो बढ़ती उम्र में प्यार तलाशने वालों की कमी नहीं है. जहां उर्मिला मातोंडकर, प्रीति जिंटा ने 40 पार करने पर शादियां कीं, संजय दत्त ने 48 साल की उम्र में तीसरी शादी की जो उन का सच्चा प्यार साबित हुई. वहीं, सुहासिनी मुले जैसी खूबसूरत अभिनेत्री ने 60 पार करने के बाद और कबीर बेदी ने 70 पार करने के बाद शादियां कीं. नीना गुप्ता जैसी प्रखर स्वभाव की महिला को अपना सच्चा प्यार 43 वर्ष की आयु में मिला. जब वे एक प्लेन में यात्रा कर रही थीं तब उन की मुलाकात पेशे से चार्टर्ड अकाउंटैंट विवेक मेहरा से हुई. 6 साल लिवइन रिलेशनशिप में रहने के बाद उन्हें विश्वास हो गया कि यही उन का सच्चा साथी है और 49 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने दिल की आवाज को सुना और विवाह कर लिया.

राजनीति के क्षेत्र में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन ने 54 साल की उम्र में एक बार फिर अपने दिल की राह पकड़ी. भारत में भी ऐसा एक किस्सा कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का मिलता है जिन्होंने 67 वर्ष की आयु में प्यार की डगर चुनी और अमृता राय से विवाह किया.

हालांकि, ऐसे किस्से कई बार इंटरनैट पर काफी ट्रोल होते हैं. बढ़ती उम्र में प्यार का हाथ थामने वालों को समाज में बहिष्कार और मखौल का पात्र बनना पड़ता है. किंतु जब प्यार किया तो डरना क्या? प्यार का साथ जिस उम्र में भी मिले, बिना संकोच करें बढ़ा हुआ हाथ थाम लेना चाहिए.

Satyakatha: मियां-बीवी और वो- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

विवाह के बाद मानो देवेंद्र सोनी का असली रूप धीरेधीरे सामने आता चला गया. देवेंद्र चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की तैयारी कर रहा था, मगर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था. इधर उस की आकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. अपनी ऊंची उड़ान के कारण ऐसीऐसी बातें कहता और नित्य नईनई लड़कियों से दोस्ती की बातें दीप्ति को बताता.

शुरू में तो वह नजरअंदाज करती रही, परंतु पैसों की कमी होने के बावजूद वह हमेशा अच्छेअच्छे कपड़े पहनता और नईनई लड़कियों से संबंध बनाता रहता था.

यह बात जब दीप्ति को पता चलने लगी तो दोनों में अकसर विवाद गहराने लगा. इस बीच दोनों की एक बेटी सोनिया का जन्म हुआ, जो लगभग 7 साल की हो गई थी. और बिलासपुर के एक अच्छे कौन्वेंट स्कूल में पढ़ रही थी.

रात के लगभग साढ़े 11 बज रहे थे. जिला चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के अपने कक्ष में थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास बैठे अपने स्टाफ से कुछ चर्चा कर रहे थे कि उसी समय घबराए हुए 2 लोग भीतर आए.

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एक के चेहरे पर मानो हवाइयां उड़ रही थीं. उन्हें इस हालत में देख अविनाश कुमार को यह समझते देर नहीं लगी कि कोई बड़ी घटना घटित हो गई है. उन्होंने कहा, ‘‘हांहां बताओ, क्या बात है, क्यों इतना घबराए हुए हो?’’

दोनों व्यक्तियों, जिन की उम्र लगभग 30-35 वर्ष के लपेटे में थी, में से एक ने खड़ेखड़े ही लगभग कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘सर, मैं देवेंद्र सोनी 2-3 जिलों में कई प्रतिष्ठित लोगों के लिए अकाउंटेंट का काम करता हूं. मैं अपनी पत्नी दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर जा रहा था कि कुछ लोगों ने हम से लूटपाट की और मेरी पत्नी को…’’ ऐसा कह कर वह इधरउधर देखने लगा.

‘‘क्यों, क्या हो गया आप की पत्नी को… विस्तार से बताओ. आओ, पहले आराम से कुरसी पर बैठ जाओ.’’ अविनाश कुमार श्रीवास ने  उठ कर दोनों को अपने सामने कुरसी पर बैठाया और पानी मंगा कर के पिलाते हुए कहा.

देवेंद्र सोनी की आंखों में आंसू आ गए थे, वह बहुत घबरा रहा था. उस ने पानी पिया और धीरेधीरे बोला, ‘‘सर, मैं अपनी पत्नी दीप्ति सोनी के साथ कोरबा से बिलासपुर अपने घर जा रहा था कि खिसोरा के पास वन बैरियर के निकट जब वह लघुशंका के लिए गाड़ी से नीचे उतरा तो थोड़ी देर बाद 2 लोगों ने मेरी पत्नी और मुझे घेर लिया.

‘‘वे लोग पिस्टल लिए हुए थे. पत्नी दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के उसे मार कर  रुपए और लैपटौप, मोबाइल छीन कर भाग गए हैं. घटना के बाद मैं ने अपने दोस्त सौरभ गोयल, जोकि पास ही बलौदा नगर में रहता है, को फोन कर के बुला लिया. फिर दोस्त के साथ मैं थाने आया हूं.’’

अविनाश कुमार श्रीवास ने लूट और हत्या की इस घटना को सुन कर थानाप्रभारी ने तुरंत हैडकांस्टेबल नरेंद्र रात्रे व एक अन्य सिपाही को घटनास्थल पर रवाना किया और एसपी पारुल माथुर को सारी घटना की जानकारी देने के बाद वह खुद देवेंद्र सोनी और सौरभ को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाना पंतोरा से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर वन विभाग का एक बैरियर है. यहां से एक रास्ता सीधा बलौदा होते हुए बिलासपुर की ओर जाता है. एक रास्ता एक दूसरे गांव की ओर. यहीं चौराहे पर देवेंद्र सोनी की काली  मारुति ब्रेजा कार पुलिस को खड़ी मिली, जिस की पिछली सीट पर दीप्ति का मृत शरीर पड़ा हुआ था.

इसी समय थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास भी घटनास्थल पर

पहुंच गए थे. हैडकांस्टेबल नरेंद्र

रात्रे ने उन्हें बताया, ‘‘सर, जब हम यहां पहुंचे तो मृतक महिला का शरीर गर्म था, यहां पास में एक सिम मिला है.’’

अविनाश कुमार श्रीवास ने सिम अपने पास सुरक्षित रख लिया. पुलिस को एक अहम सुराग मिल चुका था.

पुलिस दल ने प्राथमिक जांच करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए बलोदा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भिजवा दिया. इस समय तक देवेंद्र की हालत बहुत खराब हो चली थी, वह मानो टूट सा गया था.

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दीप्ति सोनी हत्याकांड की खबर जब दूसरे दिन 15 जून, 2021 को क्षेत्र में फैली तो चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस केस की जांच के लिए एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

टीम में पंतोरा थाने के प्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास, बलौदा थाने के नगर निरीक्षक व्यास नारायण भारद्वाज के अलावा आसपास के अन्य थानों के प्रभारी भी सहयोग के लिए जांच दल में शामिल कर लिए गए थे.

सभी पहलुओं पर जांच करने के बाद कई  पेचीदा तथ्य सामने आते चले गए. सब से महत्त्वपूर्ण था दीप्ति सोनी के पिता कृष्ण कुमार सोनी का बयान. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह वर्तमान में बिलासपुर के निवासी हैं और कोरबा जिले के भारत अल्युमिनियम कंपनी में कार्यरत थे. दीप्ति उन की दूसरे नंबर की बेटी थी, जिस का प्रेम विवाह देवेंद्र सोनी से हुआ था.

उन्होंने कहा कि विवाह के बाद देवेंद्र दीप्ति को अकसर प्रताडि़त किया करता था और मायके के लोगों से भी मिलने नहीं देता था. उस ने साफसाफ यह लकीर खींच दी थी कि अपने मायके वालों से उसे कोई संबंध नहीं रखना है.

दीप्ति ने उस के इस अत्याचार को भी एक तरह से स्वीकार कर लिया था और लंबे समय से मायके वालों से कोई संबंध नहीं रख रही थी. यहां तक कि अपनी बड़ी बहन सीमा और जीजा राजेश से भी कभी भी बात नहीं करती थी. क्योंकि देवेंद्र इस से नाराज हो जाता और उस ने बंदिशें लगा रखी थीं.

उन्होंने अपने बयान में यह शक जाहिर किया कि हो सकता है देवेंद्र का दीप्ति की हत्या में हाथ हो. कृष्ण कुमार सोनी ने जांच अधिकारियों से आग्रह किया कि मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और आरोपियों को किसी भी हालत में न छोड़ा जाए.

इस महत्त्वपूर्ण बयान के बाद पुलिस की निगाह में देवेंद्र सोनी संदिग्ध के रूप में सामने आ गया. पुलिस ने इस दृष्टिकोण से जांचपड़ताल शुरू की. साथ ही देवेंद्र के दिए गए बयान की सूक्ष्म पड़ताल की गई.

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सजा- भाग 2: तरन्नुम ने असगर को क्यों सजा दी?

‘‘वह तो शादी से पहले 50 फीसदी लड़कियां खास होने का दावा करती हैं पर असलीयत में वे भी आम ही होती हैं. है न, जब तक तरन्नुम को शादी में दिलचस्पी नहीं थी, मुहब्बत में यकीन नहीं था, वह खास लगती थी. पर तुम्हें चाह कर उस ने जता दिया है कि उस के खयाल भी आम औरतों की तरह घर, खाविंद, बच्चों पर ही खत्म होते हैं. मैं तो उस के ख्वाबों को पूरा करने में उस की मदद कर रहा हूं,’’ शकील ने तफसील से बताते हुए कहा.

और यों दोस्त की शादी में शरीक होने वाला असगर अपनी शादी कर बैठा. तरन्नुम को दिल्ली ले जाने की बात से शकील कन्नी काट रहा था. अपना मकान किराए पर दिया है, किसी के घर में पेइंगगेस्ट की तरह रहता हूं. वे शादीशुदा को नहीं रखेंगे. इंतजाम कर के जल्दी ही बुला लेने का वादा कर के असगर दिल्ली वापस चला आया.

तरन्नुम ने जब घर का पता मांगा तो असगर बोला, ‘‘घर तो अब बदलना ही है. दफ्तर के पते पर चिट्ठी लिखना,’’ और वादे और तसल्लियों की डोर थमा कर असगर दिल्ली चला आया.

7-8 महीने खतों के सहारे ही बीत गए. घर मिलने की बात अब खटाई में पड़ गई. किराएदार घर खाली नहीं कर रहा था इसलिए मुकदमा दायर किया है. असगर की इस बात से तरन्नुम बुझ गई, मुकदमों का क्या है, अब्बा भी कहते हैं वे तो सालोंसाल ही खिंच जाते हैं, फिर क्या जिन के अपने घर नहीं होते वह भी तो कहीं रहते ही हैं. शादी के बाद भी तो अब्बू, अम्मी के ही घर रह रहे हैं, ससुराल नहीं गई, इसी को ले कर लोग सौ तरह की बातें ही तो बनाते हैं.

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असगर यों अचानक तरन्नुम को अपने दफ्तर में खड़ा देख कर हैरान हो गया, ‘‘आप यहां? यों अचानक,’’ असगर हकलाता हुआ बोला.

तरन्नुम शरारत से हंस दी, ‘‘जी हां, मैं यों अचानक किसी ख्वाब की तरह,’’ तरन्नुम ने चहकते से अंदाज में कहा, ‘‘है न, यकीन नहीं हो रहा,’’ फिर हाथ आगे बढ़ा कर बोली, ‘‘हैलो, कैसे हो?’’ असगर ने गरमजोशी से फैलाए हाथ को अनदेखा कर के सिगरेट सुलगाई और एक गहरा कश लिया.

तरन्नुम को लगा जैसे किसी ने उसे जोर से तमाचा मारा हो. वह लड़खड़ाती सी कुरसी पकड़ कर बैठ गई. मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘हमें आया देख कर आप खुश नहीं हुए, क्यों, क्या बात है?’’

असगर ने अपने को संभालने की कोशिश की, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम्हें यों अचानक आया देख कर मैं घबरा गया था,’’ असगर ने घंटी बजा कर चपरासी से चाय लाने को कहा.

‘‘हमारा आना आप के लिए खुशी की बात न हो कर घबराने की बात होगी, ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ तरन्नुम की आंखें नम हो रही थीं.

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तब तक चपरासी चाय रख कर चला गया था. असगर ने चाय में चीनी डाल कर प्याला तरन्नुम की तरफ बढ़ाया. तरन्नुम जैसे एकएक घूंट के साथ आंसू पी रही थी.

असगर ने एकदो फाइलें खोलीं. कुछ पढ़ा, कुछ देखा और बंद कीं. अब उस ने तरन्नुम की तरफ देखा, ‘‘क्या कार्यक्रम है?’’

‘‘मेरा कार्यक्रम तो फेल हो गया,’’ तरन्नुम लजाती सी बोली, ‘‘मैं ने सोचा था पहुंच कर आप को हैरान कर दूंगी. फिर अपना घर देखूंगी. हमेशा ही मेरे दिमाग में एक धुंधला सा नक्शा था अपने घर का, जहां आप एक खास तरीके से रहते होंगे. उस कमरे की किताबें, तसवीरें सभी कुछ मुझे लगता है मेरी पहचानी सी होंगी लेकिन यहां तो अब आप ही जब अजनबी लग रहे हैं तब वे सब…’’

असगर के चेहरे पर एक रंग आया और गया. फिर वह बोला, ‘‘यही परेशानी है तुम औरतों के साथ. हमेशा शायरी में जीना चाहती हो. शायरी और जिंदगी 2 चीजें हैं. शायरी ठीक वैसी ही है जैसे मुहब्बत की इब्तदा.’’

‘‘और मुहब्बत की मौत शादी,’’ असगर की तरफ गहरी आंखों से देखते हुए तरन्नुम बोली.

‘‘मुझे पता है तुम ने बहुत से इनाम जीते हैं वादविवाद में, लेकिन मैं अपनी हार कबूल करता हूं. मैं बहस नहीं करना चाहता,’’ असगर ने उठते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा सामान कहां है?’’

‘‘बाहर टैक्सी में,’’ तरन्नुम ने बताया.

‘‘टैक्सी खड़ी कर के यहां इतनी देर से बैठी हो?’’

‘‘और क्या करती? पता नहीं था कि आप यहां मिलोगे भी या नहीं. फिर सामान भी भारी था,’’?तरन्नुम ने खुलासा किया.

जाहिर था असगर उस की किसी भी बात से खुश नहीं था.

जब टैक्सी में बैठे तो असगर ने टैक्सी चालक को किसी होटल में चलने को कहा, ‘‘पर मैं तो आप का घर देखना…’’

कोरोना लव- भाग 2: शादी के बाद अमन और रचना के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

अमन की बातें सुन कर रचना दंग रह गई कि कैसा इंसान है यह? जरा भी हमदर्द नहीं है? क्या सोचता है? क्या वह घर में आराम करती रहती है? रचना खामोश ही रही.

अमन फिर बोल पड़ा, ‘‘हां, बोलो न, क्या मुश्किल है, बताओ मुझे? जब मन आए काम करो, जब मन आए आराम कर लो. इतना अच्छा तो है, फिर भी नाकमुंह चढ़ाए रहती हो. सच में, तुम औरतों को तो समझना ही मुश्किल है.’’

अब रचना का पारा और चढ़ गया. अभी वह कुछ बोलती ही कि उस की दोस्त मानसी का फोन आ गया.

‘‘हैलो मानसी, बता, कैसा चल रहा है तेरा? बच्चेवच्चे सब ठीक तो हैं न?’’ लेकिन मानसी बताने लगी कि बहुत मुश्किल हो रही है, घर, बच्चे और औफिस का काम संभालना. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा है.

‘‘ज्यादा चिंता मत कर. चलने दे जैसा चल रहा है. क्या कर सकती है तू. लेकिन बच्चे और अपनी सेहत का ध्यान रख, वह जरूरी है अभी.’’

थोड़ी देर और मानसी से बात कर रचना ने फोन रख दिया. फिर किचन का सारा काम समेट कर अपनी टेबल पर जा कर बैठ गई.

उस दिन जब उस ने मानसी से अपनी समस्या बताई थी कि घर में वह औफिस की तरह काम नहीं कर पा रही है और ऊपर से बौस का प्रैशर बना रहता है हरदम, तब मानसी ने ही उसे सुझाया था कि बैडरूम या डाइनिंग टेबल पर बैठ कर काम करने के बजाय वह अपने घर के किसी कोने को औफिस जैसा बना ले और वहीं बैठ कर काम करे तो सही रहेगा. जब ब्रेक लेने का मन हो तो अपनी सोसाइटी का एक चक्कर लगा आए या पार्क में कुछ देर बैठ जाए. इस से  अच्छा लगेगा क्योंकि वह भी ऐसा ही करती है.

‘‘अरे वाह, क्या आइडिया दिया तू ने मानसी. मैं ऐसा ही करूंगी,’’ कहते हुए चहक पड़ी थी रचना. लेकिन मानसी की स्थिति जान कर दुख भी हुआ.

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मानसी बताने लगी कि उस के 2 बच्चे हैं, ऊपर से बूढ़े सासससुर, घर के काम के साथसाथ उन का भी बराबर ध्यान रखना होता है और औफिस का काम भी करना पड़ता है. पति हैं कि जहां हैं वहीं फंस चुके हैं, आ नहीं सकते. तो उस पर ही घरबाहर सारे कामों की जिम्मेदारी पड़ गई है. उस पर भी कोई तय शिफ्ट नहीं है कि उसे कितने घंटे काम करना पड़ता है. बताने लगी कि कल रात वह 3 बजे सोई, क्योंकि 2 बजे रात तक तो व्हाट्सऐप पर ग्रुप डिस्कशन ही चलता रहा कि कैसे अगर वर्क फ्रौम होम लंबा चला तो, सब को इस की ऐसी प्रैक्टिस करवाई जाए कि सब इस में ढल जाएं.

उस की बातें सुन कर रचना का तो दिमाग ही घूम गया. जानती है वह कि उस के बच्चे कितने शैतान हैं और सासससुर ओल्ड. कैसे बेचारी सब का ध्यान रख पाती होगी? सोच कर ही उसे मानसी पर दया आ गई. लेकिन, इस लौकडाउन में वह उस की कोई मदद भी तो नहीं कर सकती थी. सो, फोन पर ही उसे ढाढ़स बंधाती रहती थी.

‘सच में, कैसी स्थिति हो गई है देश की? न तो हम किसी से मिल सकते हैं,  न किसी को अपने घर बुला सकते हैं और न ही किसी के घर जा सकते हैं. आज इंसान, इंसान से भागने लगा है. लोग एकदूसरे को शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं. क्या हो रहा है यह और कब तक चलेगा ऐसा? सरकार कहती रही कि अच्छे दिन आएंगे. क्या ये हैं अच्छे दिन? किसी ने सोचा था कभी कि ऐसे दिन भी आएंगे?’ अपने मन में यह सब सोच कर रचना दुखी हो गई.

रचना ने अपने घर के ही एक कोने में जहां से हवा अच्छी आती थी, टेबल लगा कर औफिस जैसा बना लिया और काम करने लगी. चारा भी क्या था? वैसे, अच्छा आइडिया दिया था मानसी ने उसे. थैंक यू बोला उस ने उसे फोन कर के.

काम करतेकरते जब रचना का मन उकता जाता, तो ब्रेक लेने के लिए थोड़ाबहुत इधरउधर चक्कर लगा आती. नहीं तो अपने घर की छत पर ही कुछ देर टहल लेती. और फिर अपने लिए चाय  बना कर काम करने बैठ जाती. अब रचना का माइंड सैट होने लगा था. लेकिन बौस का दबाव तो था ही, जिस से मन चिड़चिड़ा जाता कभीकभी कि एक तो इस लौकडाउन में भी काम करो और ऊपर से इन्हें कुछ समझ नहीं आता. सबकुछ परफैक्ट और सही समय पर ही चाहिए. यह क्या बात हुई? बारबार फोन कर के चैक करते हैं कि कर्मचारी अपने काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं. कहीं वे अपने घर पर आराम तो नहीं फरमा रहे हैं.

उस दिन बौस से बातें करते हुए रचना को एहसास हुआ कि कोई उसे देख रहा है. ऐसा होता है न? कई बार तो भरी बस या ट्रेन के कोच में भी ऐसी फीलिंग आती है कि कोई हम पर नजरें गड़ाए हुए है.  अकसर हमारा यह एहसास सच साबित होता है. अब ऐसा क्यों होता है, यह तो नहीं पता लेकिन सामने वाली खिड़की पर बैठा वह शख्स लगातार रचना को देखे ही जा रहा था.

जैसे ही रचना की नजर उस पर पड़ी, वह इधरउधर देखने लगा. लेकिन, फिर वही. रचना उसे नहीं जानती. आज पहली बार देख रही है. शायद, अभी वह नया यहां रहने आया होगा, नहीं तो वह उसे जरूर जानती होती. लेकिन वह उसे क्यों देखे जा रहा है? क्या वह इतनी सुंदर है और यंग है? वह बंदा भी कुछ कम स्मार्ट नहीं था. तभी तो रचना की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी. लेकिन, फिर यह सोच कर नजरें फेर लीं उस ने कि वह क्या सोचेगा.

एक दिन फिर दोनों की नजरें आपस में टकरा गईं, तो आगे बढ़ कर रचना ने ही उसे ‘हाय’ कहा. इस से उस बंदे को बात आगे बढ़ाने का ग्रीन सिग्नल मिल गया. अब रोज दोनों की खिड़की से ही ‘हायहैलो’ के साथसाथ थोड़ीबहुत बातें होने लगीं. दोनों कभी देश में बढ़ रहे कोरोना वायरस के बारे में बातें करते, कभी लौकडाउन को ले कर उन की बातें होतीं, तो कभी अपने वर्क फ्रौम होम को ले कर बातें करते. और इस तरह से उन के बीच बातों का सिलसिला चल पड़ता, तो रुकता ही नहीं.

‘‘वैसे, सच कहूं तो औफिस जैसी फीलिंग नहीं आती घर से काम करने में, है न?’’ रचना के पूछने पर वह बंदा कहने लगा, ‘‘हां, सही बात है, लेकिन किया भी क्या जा सकता है?’’

‘‘सही बोल रहे हैं आप, किया भी क्या जा सकता है. लेकिन पता नहीं, यह लौकडाउन कब खत्म होगा. कहीं लंबा चला तो क्या होगा?’’ रचना की बातों पर हंसते हुए वह कहने लगा कि भविष्य में क्या होगा, कौन जानता है? ‘‘वैसे जो हो रहा है सही ही है, जैसे हमारा मिलना’’ जब उस ने मुसकराते हुए यह कहा, तो रचना शरमा कर अपने बाल कान के पीछे करने लगी.

रचना के पूछने पर उस ने अपना नाम शिखर बताया और यह भी कि वह यहां एक कंपनी में काम करता है. अपना नाम बताते हुए रचना कहने लगी कि उस का औफिस उसी तरफ है.

काम के साथसाथ अब दोनों में पर्सनल बातें भी होने लगीं.

शिखर ने बताया कि पहले वह मुंबई में रहता था, मगर अभी कुछ महीने पहले ही तबादला हो कर दिल्ली शिफ्ट हुआ है.

ये घर बहुत हसीन है- भाग 5: उस फोन कॉल ने आन्या के मन को क्यों अशांत कर दिया

लेखक- मधु शर्मा कटिहा

‘‘साहब कितने खुश हैं आप के साथ. यहां आ गए तो… दुखी हो जाएंगे. मेम साब आप चलिए न नीचे… मैं नहीं करूंगी आज यहां की सफाई,’’ वान्या का हाथ पकड़ खींचते हुए प्रेमा कातर स्वर में बोली.

‘‘नहीं जाऊंगी मैं यहां से… बताओ मुझे कि यहां आ कर क्यों दुखी हो जाएंगे साहब.’’

‘‘सुरभि मेम साब ने मुझे आप को बताने से मना किया था, लेकिन अब आप ही मेरी मालकिन हो. जैसा आप कहोगी मैं करूंगी. ऐसा करते हैं इस छोटे कमरे से निकल कर बाहर वाले बड़े कमरे में चलते हैं.’’

बड़े कमरे में आ कर वान्या पलंग पर बैठ गई. प्रेमा ने दरवाजे को चिटकनी लगा

कर बंद कर दिया और वान्या के पास आ कर धीमी आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘मेम साब, यह कमरा आर्यन साहब के बड़े भाई का है. उन दोनों की उम्र में 3 साल का फर्क था, लेकिन प्यार वे पिता की तरह करते थे आर्यन साहब को. आप को पता होगा कि साहब के मांपिताजी को गुजरे कई साल हो चुके हैं. बड़े भाई ने अपने पिता का धंधा अच्छी तरह संभाल लिया था.

‘‘एक बार जब बड़े साहब काम के सिलसिले में देश से बाहर गए तो वहां अंग्रेज लड़की से प्यार कर बैठे. शादी भी कर ली थी दोनों ने. अंग्रेज मैडम डाक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थी, इसलिए साहब के साथ यहां नहीं आई थीं. साहब वहां आतेजाते रहते थे. एक साल बाद उन का बेटा भी हो गया. बड़े साहब बच्चे को यहां ले आए थे. यह बात आज से कोई ढाईतीन साल पहले की है. उस टाइम आर्यन साहब पढ़ाई कर रहे थे और मुंबई में रह रहे थे. जब पिछले साल अंग्रेज मैडम की पढ़ाई पूरी हुई तो बड़े साहब उन को हमेशा के लिए लाने विदेश गए थे. वहां… बहुत बुरा हुआ मेम साब.’’ प्रेमा अपने सूट के दुपट्टे से आंसू पोंछ रही थी. वान्या  की प्रश्नभरी आंखें प्रेमा की ओर देख रही थी.

‘‘मेम साब, बर्फ पर मौजमस्ती करते हुए अचानक साहब तेजी से फिसल गए और वे लड़खड़ा कर गिरे तो अंग्रेज मैडम भी गिरी, क्योंकि दोनों एकदूसरे का हाथ पकडे़ थे. लुढ़कतेलुढ़कते दोनों नीचे तक आ गए और जब तक लोग अस्पताल ले जाते, बहुत देर हो चुकी थी. साथसाथ हाथ पकड़े हुए चले गए दोनों इस दुनिया से. उन का बेटा कृष अब सुरभि दीदी के पास रहता है.’’

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वान्या दिल थाम कर सब सुन रही थी. रुंधे गले से प्रेमा का बोलना जारी था. ‘‘मेम साब, इस दुर्घटना के बाद जब सुरभि दीदी यहां आईं थीं तो कृष आर्यन साहब को देख कर लिपट गया और पापा, पापा कह कर बुलाने लगा, क्योंकि बड़े साहब और छोटे साहब की शक्ल बहुत मिलती थी. ये देखो…’’ प्रेमा ने प्यानों पर ढका कपड़ा उठा दिया. प्यानों की सतह पर एक पोस्टर के आकार वाली फोटो चिपकी थी, जिस में आर्यन और बड़ा भाई एकदूसरे के गले में हाथ डाले हंसते हुए दिख रहे थे. दोनों का चेहरा एकदूसरे से इतना मिल रहा था कि किसी को भी जुड़वां होने का भ्रम हो जाए.

‘‘मेम साब, अभी आप कह रही थीं न कि मोबाइल के टाइम में भी ऐसे फोटो? ये बड़े साहब ने पोस्टर बनवाने के लिए रखे हुए थे. बहुत शौक था बड़ेबड़े फोटो से उन्हें घर सजाने का.’’ प्रेमा आज जैसे एकएक बात बता देना चाहती थी वान्या को.

‘‘ओह, अच्छा एक बात बताओ, कृष ने आर्यन से अपनी मम्मी के बारे में कुछ नहीं पूछा?’’ वान्या व्यथित हो कर बोली.

‘‘नहीं, अपनी मां के साथ तो वह तब तक ही रहा जब 2 महीने का था. बताया था न मैं ने कि बड़े साहब ले आए थे उस को यहां. कभीकभी साहब के साथ जाता था तभी मिलता था उन से. वैसे भी वे 6 महीने की ट्रेनिंग पर थीं और कहती थीं कि अभी बच्चा मुझे मम्मी न कहे सब के सामने. कृष कोई दीदीवीदी समझता होगा शायद उन को.’’

वान्या सब सुन कर गहरी सोच में डूब

गई. कुछ देर तक शांत रहने के बाद प्रेमा फिर बोली, ‘‘मेम साब, जब आप का रिश्ता पक्का नहीं हुआ था और साहब आप से मिल कर

आए थे तो आप की फोटो साहब ने मुझे और मेरे पति को दिखाई थी. हमें उन्होंने आप के बारे में बताते हुए कहा था कि इन का चेहरा जितना भोलाभाला लग रहा है, बातों से भी उतनी मासूम हैं. वैसे स्कूल में टीचर हैं, समझदार हैं, मेरे पास रुपएपैसे की तो कोई कमी नहीं है. मुझे जरूरत है तो उस की जो मेरा साथ दे, मेरे अकेलेपन को दूर कर दे, जिस के सामने अपना दर्द बयां कर सकूं. मैं ने इन को तुम्हारी मेम साब बनाने का फैसला कर लिया है…’’

वान्या प्रेमा के शब्दों में अभी भी खोई हुई थी. प्रेमा ने कहा, ‘‘मेम साब अब नीचे चलते हैं’’ कहते ही वह गुमसुम सी सीढि़यां उतरने लगी.

प्रेमा के वापस चले जाने के बाद वह आर्यन के साथ लंच कर आराम करने बैडरूम

में आ गई. वान्या को प्यार से अपनी ओर खींचते हुए आर्यन बोला, ‘‘रात में बहुत नींद आ रही थी, अब नहीं सोने दूंगा.’’

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‘‘लेकिन एक शर्त है मेरी,’’ वान्या आर्यन के सीने पर सिर रख कर बोली.

‘‘कहो न, कोई भी शर्त मानूंगा तुम्हारी,’’ वान्या के चेहरे से अपना चेहरा सटा आर्यन बोल सका.

‘‘कोरोना के हालात ठीक होने के बाद हम दीदी के पास चलेंगे और अपने बेटे कृष को हमेशा के लिए अपने साथ ले आएंगे.’’

आर्यन की सांस जैसे वहीं थम गई. ‘‘प्रेमा ने बताया न,’’ भर्राए गले से वह इतना ही बोल सका.

वान्या मुसकरा कर ‘हां’ में सिर हिला दिया.

आर्यन ने वान्या को अपने सीने से लगाए खामोश हो कर भी बहुत कुछ कह रहा था. वान्या को प्रेम में डूबे युगल की मूर्ति आज बेहद खूबसूरत लग रही थी. मन ?ही मन वह कह उठी, ‘बेकार नहीं, मनहूस नहीं… ये घर  बहुत हसीन है.

भोजपुरी स्‍टार पवन सिंह का फिल्‍म ‘एक दूजे के लिए 2’ का धमाकेदार ट्रेलर हुआ वायरल

इन दिनों यूट्यूब पर अपने गानों को लेकर वर्ल्‍ड वाइड धमाल मचाने वाले पावर स्‍टार पवन सिंह के लंदन वाले फिल्‍म का ट्रेलर आउट हो गया है, जो अब वायरल होने लगा है. इस फिल्‍म का नाम ‘एक दूजे के लिए 2’ है, जिसकी शूटिंग लंदन में की गई है.

इस फिल्‍म में पवन सिंह के साथ दो खूबसूरत अदाकारा सहर अफसा और मधु शर्मा नजर आ रही हैं. यशी फिल्‍म्स की यह एक और शानदार प्रस्‍तुति है. इसके निर्माता अभय सिन्‍हा, प्रशांत जम्‍मूवाला और समीर अफताब हैं. फिल्‍म का ट्रेलर इंटर 10 रंगीला के यूट्यूब चैनल से रिलीज हुआ है.

फिल्‍म के ट्रेलर के अनुसार, ‘एक दूजे के लिए 2’ की कहानी सामाजिक संस्‍कारों और आधुनिकता के बीच सामंजस्‍य बिठाने वाली है. इसमें पवन सिंह को प्‍यार तो सहर अफसा से होता है, लेकिन परिवार के तथाकथित शान की वजह से शादी मधु शर्मा से होती है.

ऐसे में एक साथ कई जिंदगियां बर्बाद होती है. सपने टूटते हैं. निर्देशक पराग पाटिल ने इस कहानी को इंटरनेशनली फिल्‍माया है. आखिर ऐसी घटनाओं से सामाजिक जड़ता को तोड़ने के लिए सीख लेनी चाहिए, फिल्‍म के जरिये पराग पाटिल कुछ यही कहना चाहते हैं. वैसे फिल्‍म की कहानी जहां भोजपुरी टच में ही, वहीं लोकेशन इसे इंटरनेशनल स्‍तर का बनाती है. फिल्‍म के गाने भी बेहतरीन हैं.

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आपको बता दें कि फिल्‍म ‘एक दूजे के लिए 2’ का को-प्रोड्यूसर जबावा इंटरटेंमेंट – मडाज मूवीज है. यूके टीम प्रोड्यूसर विपुल शर्मा हैं. फिल्‍म में पवन सिंह, सहर अफशा व मधु शर्मा के साथ मशहूर अभिनेत्री माया यादव और दीपक सिन्‍हा भी मुख्‍य भूमिका में हैं. डीओपी मुकेश शर्मा, म्‍यूजिक छोटे बाबा, सिंगर पवन सिंह, तृप्ति शाक्‍या व प्रियंका सिंह और लिरिक्‍स प्रकाश बारूद व रितेश सिंह का है. पीआरओ रंजन सिन्हा (RANJAN SINHA) हैं. कोरियोग्राफर संजय कोर्वे और संजीव कुमार शर्मा हैं. स्‍टोरी – डायलॉग्‍स राकेश त्रिपाठी हैं. स्‍क्रीनप्‍ले पराग पाटिल और राकेश त्रिपाठी का है.

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Bigg Boss Ott : Shamita Shetty ने अक्षरा सिंंह को बताया गंवार, एक्ट्रेस ने लगाई लताड़

भोजपुरी स्टार अक्षरा सिंह बिग बॉस ओटीटी’  से लास्ट संडे को एलिमिनेट हो गई. मिलिंद गाबा और अक्षरा एक साथ घर से बेघर हुए. घर से बाहर आने के बाद भोजपुरी एक्ट्रेस बिग बॉस कंटेस्टेंट के बारे में खुलकर बात कर रही हैं. अब उन्होंने शमिता शेट्टी को लेकर कुछ बातें बताई हैं. आइए बताते हैं क्या कहा एक्ट्रेस ने.

एक इंटरव्यू के अनुसार अक्षरा ने कहा है कि घर में पहले हफ्ते में शमिता जी ने मुझसे बात ही नहीं की. जब भी बात हुई एक ही बात बोलती थी ये तो गंवार  है. एक्ट्रेस ने ये भी कहा, अगर मैंने हिंदी में बात कर ली तो  मैं गंवार हो गई. शमिता ने मुझे हमेशा दबा रखा.

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अक्षरा सिंह ने आगे कहा कि शमिता मेरे ऊपर बहुत भड़कती थी. मैंने शमिता जी को कुछ दिन तक सहन किया लेकिन जब हद से ज्यादा हो गया तब मैं उन्हें वापस जवाब देने लगी.

 

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बिग बॉस ओटीटी के घर में अक्षरा सिंह और शमिता शेट्टी के बीच कई झगड़े हो चुके हैं. अक्षरा ने शमिता की ऐज-शमिंग की थी. उन्होंने कहा था कि वह उनकी मां बनने के लिए काफी बूढ़ी है.

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