हरियाणा के सोनीपत जिले का सिसाना गांव दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है. आज भले ही वहां घरघर सरकारी टोंटियां लग चुकी हैं, पर मेरा आंखों देखा पीने के पानी  की समस्या को भयावह कर देने वाला अनुभव रहा है. कुछ साल पहले तक वहां की औरतों और लड़कियों, यहां तक कि मर्दों की भी एक बड़ी समस्या थी, दूर से पीने का पानी ढोना.

एक घड़ा पानी लाने मेंआधा घंटा.  सोचिए कि टंकी भरने में कितने घंटे बरबाद होते होंगे. तब वहां की लड़कियों की शादी ऐसी जगह करने की सोची जाती थी कि वे भविष्य में सिर पर पानी ढोतेढोते बाकी की जिंदगी न गुजार दें. देश में अभी भी हालात नहीं बदले हैं. कितनी हैरत और दुख की बात है कि इस साल 15 अगस्त के मौके पर सरकार द्वारा ‘अमृत महोत्सव’ मनाया गया और देश की ज्यादातर जनता दो घूंट पीने के पानी को तरस रही है.

‘विश्व जल दिवस’ पर द इंस्टीट्यूशन औफ इंजीनियर्स में आयोजित गोष्ठी में निदेशक, भूगर्भ जल विभाग के प्रतीक रंजन चौरसिया ने कहा कि साल 2025 तक लोग जल संकट से जूझ रहे होंगे. पीने के पानी के लिए लोगों को भटकना पड़ेगा.  अभी भी पूरी दुनिया में तकरीबन  15 फीसदी से ज्यादा लोगों को साफ पानी पीने के लिए नहीं मिल पा रहा है. प्रदूषित पानी पीने से हर साल लोगों की मौतें सामने आती हैं.  जिस देश में कभी नदियों का बड़ा नैटवर्क रहा हो, उस देश में जल संकट बड़ी समस्या है. इस के नियंत्रण के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है.  इस गोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफैसर जमाल नुसरत ने कहा कि पानी का संकट नहीं है. समस्या जल प्रबंधन की है.

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