आखिर क्यों लड़कियों को ही माना जाता हैं रेप के लिए दोषी?

गरीब कमजोर लड़कियों को, खासतौर पर अगर वे निचले वर्गों से आती हों तो, रेप करने का हक हर ऊंची जाति का मर्द पैदायशी और धर्म की मोहर वाला मानता है. निचले लोग तो होते ही सेवा के लिए हैं और भोग की चीज बनाने में कोई हर्ज नहीं है, यह सोच देश के गांवगांव में भरी है. 2014 में बरेली के पास के एक गांव में दोपहर में 3 मर्दों ने तमंचे के बल पर एक शादीशुदा लड़की का रेप किया. उस की हिम्मत थी कि उस ने पुलिस, मजिस्टे्रट और डाक्टर को पूरी बात बताई और फास्टटै्रक अदालत में मामला गया.

चूंकि फास्टटै्रक कोर्ट भी ऐसे मामले को हलके में ही लेती है, गवाही तक काफी समय बीत गया और जब लड़की से अदालत ने बयान लिया तो वह मुकर गई. जाहिर है इतने दिन काफी थे एक गरीब लड़की के घर वालों को धमकाने में. ये गरीब लड़कियां न सिर्फ कमजोर हैं, उन के घर वालों ने दिमाग में भरा है कि इस तरह के जुल्म सहना तो उन के भाग में लिखा है जो पिछले जन्मों के कर्मों का फल है.

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ऐसा बहुत मामलों में होता है. मुंबई में 2015 में एक साढ़े 3 साल की बच्ची को रेप करने के मामले में एक लड़के को  6 साल जेल में तो रखा गया पर जब गवाही का समय आया तो मातापिता खिलाफ बोलने से मुकर गए. लड़की से पूछताछ वे कराना नहीं चाहते थे क्योंकि वह हादसा भूल सी चुकी थी.

भुवनेश्वर में 2003 में एससीएसटी जाति की एक मजदूरनी को रेप करने के आरोप में एक शख्स पकड़ा गया पर वह 2004 में जमानत पा गया. ट्रायल कोर्ट ने 2012 में उसे अपराधी माना पर गवाही में औरत ने कहा था कि उसे याद नहीं कि इन में से कौन लोग थे जो रात को इस अनाथ लड़की के घर में घुसे थे. उड़ीसा हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया.

18 साल की एक लड़की ने अपने ममेरे भाई के खिलाफ नोएडा में शिकायत दर्ज कराई थी कि उस का कई बार बलात्कार किया गया और धमकी दी गई कि किसी को बताए न. जब उस ने शिकायत की तो उस लड़के को पकड़ा गया और कुछ महीनों में उसे जमानत मिल गई. गवाही में लड़की अपनी शिकायत से मुकर गई और एक गवाह जो उस का दादा ही था, वह भी मुकर गया और अपराधी बच निकला.

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रेप के मामले होते ही इसलिए हैं कि लड़कियों के मन में कूटकूट कर भर दिया गया है कि रेप की दोषी वे खुद हैं और गांवों, कसबों से ले कर शहरों तक यह खेल चलता है. हर लड़की को समझा दिया जाता है कि अगर जेल हो भी गई तो लड़की को तो गंदा मान लिया ही जाएगा, इसलिए पहले शिकायत करने के बाद भी लड़कियों को कहा जाता है कि वे मुकर जाएं कि उन के साथ रेप किया गया था ताकि इज्जत बची रहे.

औरतों और खासतौर पर गरीब और निचली, पिछड़ी जातियों का रेप करना आसान रहता है क्योंकि उन को समझा दिया जाता है कि ऊंचे लोगों को तो खुश करना ही उन का काम है. हमारे देश के चकले और देहव्यापार के केंद्र इन्हीं लड़कियों से भरे हैं. रेप हमेशा होते रहे हैं और होते रहेंगे पर चोरीडकैती भी हमेशा होती रही है और होती रहेगी. पर चोर और डाकू का शिकार अपने को अपराधी नहीं मानता जबकि लड़की रेप के बाद खुद को ही गलत मानती है और यही बड़ी वजह है कि धड़ल्ले से रेप होते हैं. जब तक रेप के आरोपी छूटते रहेंगे तब तक हिम्मत बनी रहेगी, यह पक्का है और अगर शिकार के मुकरने से छूट जाओ तो समझो गंगा नहा कर पाप धो आए. पाप करो, फिर गंगा नहाओ बस.

‘अनुपमा’ को आया गुस्सा, ट्रोलर्स को दिया करारा जवाब

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ की लीड एक्ट्रेस रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह अक्सर शो से जुड़े या निजी जिंदगी की फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने एक ऐसा पोस्ट किया है. जिसे देखकर हरकोई हैरान है. आइए बताते हैं, अनुपमा ने ऐसा क्या शेयर किया है.

अनुपमा को आया गुस्सा

अनुपमा ने काफी गुस्से में सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है. दरअसल इस वीडियो में अनुपमा ने उन ट्रोलर्स को जवाब दिया है, जो बॉडी शेमिंग और एज शेमिंग करते हैं. अनुपमा ने पूरे टशन के साथ इन ट्रोलर्स को करारा जवाब दिया है.

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ट्रोलर्स की लगाई क्लास

अनुपमा का ये रूप देखकर आप हैरान हो जाएंगे. इस वीडियो में एक्ट्रेस एक्शन डांस कर रही हैं और साथ ही कुछ सेंटेंस एक्शन के साथ वीडियो में लिखे नजर आ रहे हैं. वीडियो में लिखा है कि क्या किसी को ऐज शेम करना सही है? नहीं. क्या किसी को बॉडीशेम करना सही है?  नहीं. क्या किसी के साथ नेम-कॉलिंग करना सही है? नहीं.

अनुपमा ने वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, एक बार में एक मिथक का बुलबुला फोड़ना!’ वीडियो सोशल मीडिया पर यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है. यूजर्स ने पूछा है इतने गुस्से में ये बातें कहने की क्या खास वजह है.

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‘अनुपमा’ सीरियल में इन दिनों महाट्विस्ट दिखाया जा रहा है. कॉलेज के रीयूनियन पार्टी में अनुपमा और अनुज की मुलाकात हो गई है. पार्टी में अनुज आगे आकर अनुपमा से हाथ मिलाता है और उसे बताता है कि वह ही अनुज कपाड़िया है. अनुपमा समझती है कि अनुज कपाड़िया बड़ा बिजनेसमैन है. लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि अनुज कपाड़िया उसका क्लासमेट है जो उसको पसंद करता था. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुज के आने से अनुपमा की जिंदगी कैसे बदलती है.

प्रतिबद्धता- भाग 1: क्या था पीयूष की अनजाने में हुई गलती का राज?

Writer- VInita Rahurikar

बारिश शुरू हुई तो उस की पहली फुहार ने पेड़पौधों के पत्तों पर जमी धूल को धो दिया. मिट्टी से सोंधीसोंधी गंध उठने लगी. ठंडी हवा चलने लगी. सारी प्रकृति, जो अब तक गरमी से बेहाल थी बारिश से तृप्त हो जाना चाहती थी. पेड़पौधे ही नहीं, पशुपक्षी भी बारिश का आनंद लेने आ गए. कहीं गड्ढे में जमा पानी में चिडि़यों का झुंड पंख फड़फड़ाता हुआ खेल रहा था, तो कहीं छोटेछोटे बच्चे घरों से कागजों की नावें ला कर उन्हें पानी में तैराते हुए खुद भी भीग रहे थे. छतों पर कुंआरी ननदें और सयानी भाभियां भी भीगने के लोभ से बच न पाईं और बड़ों की आंखें बचा कर फुहारों में अपना आंचल भिगो कर एकदूसरे पर पानी के छींटे उड़ाने लगीं. घरों के बरामदों और गैलरियों में बड़ेबुजुर्गों की कुरसियां लग गईं और वे बैठ कर बारिश का आनंद लेने लगे.

इन सारी खुशियों के बीच खिड़की के कांच से बाहर देखती पलक के चेहरे पर खुशी बिलकुल नहीं थी. उस के चेहरे पर तो उदासी और दुख की घनी बदली छाई हुई थी. वह उदास चेहरा ले कर दुखी मन से बाहर की खुशियों को देख रही थी. सामने चंपा

के पेड़ की पत्तियों से पानी की बूंदें फिसलफिसल कर नीचे गिर रही थीं. पलक निर्विकार भाव से बूंदों का थमथम कर नीचे गिरना देख रही थी.

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पलक के मातापिता बरामदे में खड़े ठंडी हवा का मजा ले रहे थे.

‘‘भई, आज तो पकौड़े खाने का मौसम है. प्याज के बढि़या कुरकुरे पकौड़े और गरमगरम चाय हो जाए,’’ पलक के पिता ने कहा.

‘‘मैं अभी बना कर लाती हूं,’’ कह कर पलक की मां रसोईघर में चली गईं. प्याज काट कर उन्होंने पकौड़े तले और चाय भी बना ली. पकौड़े और चाय टेबल पर रख कर उन्होंने पलक को आवाज लगाई.

‘‘तुम ने पलक से बात की?’’ पलक के पिता आनंदजी ने पूछा.

‘‘अभी नहीं की. सोच रही हूं 1-2 दिन में पूछूंगी,’’ अरुणा ने उत्तर दिया.

‘‘जल्दी बात करो. जब से आई है उदास और बुझीबुझी लग रही है. अच्छा नहीं लग रहा,’’ आनंदजी ने चिंतित स्वर में कहा.

तभी पलक के आने की आहट पा कर दोनों चुप हो गए. साल भर पहले ही तो उन्होंने बड़ी धूमधाम से पलक का विवाह किया था. पलक उन की एकलौती बेटी थी, इसलिए पलक का विवाह कहीं दूर करने का उन का मन नहीं था. वे चाहते थे कि पलक का विवाह इसी शहर में हो और इत्तफाक से पिछले साल उन की इच्छा पूरी हो गई.

पलक के लिए इसी शहर से रिश्ता आया. शादी हुई तो पीयूष के रूप में उन्हें दामाद नहीं बेटा मिल गया. उस के मातापिता भी बहुत सुलझे हुए और सरल स्वभाव के थे. पलक को उन्होंने बहू की तरह नहीं, बल्कि बेटी की तरह रखा. पलक भी अपने घर में बहुत प्रसन्न थी. जब भी मायके आती चहकती रहती. उस की हंसी में उस के मन की खुशी छलकती थी.

लेकिन इस बार बात कुछ अलग ही है. एक तो पलक अचानक ही अकेली चली आई है और जब से आई है, तब से दुखी लग रही है. उन दोनों के सामने वह सामान्य और खुश रहने की भरसक कोशिश करती है, लेकिन मातापिता की अनुभवी नजरों ने ताड़ लिया है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

पहले पलक 2 दिन के लिए भी मायके आती थी, तो पीयूष औफिस से सीधे यहीं आ जाता था और रात का खाना खा कर घर जाता था. दिन में भी कई बार पलक के पास उस का फोन आता था.

लेकिन इस बार 5 दिन हो गए पलक को घर आए, एक बार भी पीयूष उस से मिलने नहीं आया. यहां तक कि उस का फोन भी नहीं आया और पलक ने भी एक बार भी पीयूष को फोन नहीं किया. आनंद और अरुणा की चिंता स्वाभाविक थी. एकलौती बेटी का दुख से मुरझाया चेहरा उन से देखा नहीं जा रहा था.

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पीयूष, उस का पीयूष. कालेज के दिनों में दोस्तों ने एक पार्टी में उसे जबरदस्ती शराब पिला दी तो नशे में चूर हो कर उस ने रात में दोस्त के फार्महाउस पर एक लड़की को अपना एक कण दे दिया. उस का पीयूष पूरा नहीं है, खंडित हो चुका है. पलक को कभी पूरा पीयूष मिला ही नहीं था. उस का एक कण तो उस लड़की ने पहले ही ले लिया था. पलक के सामने सच बोल कर पीयूष ने अपने मन का बोझ हलका कर दिया, लेकिन तब से पलक का मन पीयूष के इस सच के बोझ तले छटपटा रहा है.

पीयूष के इस सच को वह सह नहीं पाई. उस सच ने उसे अचानक ही उस के पास से उठा कर बहुत दूर पटक दिया. पल भर में ही वह इतना पराया लगने लगा, मानो कभी अपना था ही नहीं. दोनों के बीच एक अजनबीपन पसर गया. अजनबी के अजनबीपन को सहना आसान होता है, लेकिन किसी बहुत अपने के अजनबीपन को सहना बहुत मुश्किल होता है. पलक जब अजनबीपन को बरदाश्त नहीं कर पाई तो यहां चली आई.

काश, पीयूष उसे कभी सच बताता ही नहीं. कितना सही कहा है किसी ने, सच अगर कड़वा बहुत है तो मीठे झूठ की छाया में जीना अच्छा लगता है. वह भी पीयूष के झूठ की छाया में सुख से जीवन बिता लेती. कम से कम उस के सच की आंच में जिंदगी यों झुलस तो न जाती.

उधर पीयूष पश्चात्ताप की आग में जल रहा था कि क्यों उस ने अपना यह राज अपने सीने से बाहर निकाला? क्यों नहीं छिपा कर रख पाया? दरअसल पलक का निश्छल प्यार, उस का समर्पण देख कर मन ही मन उसे ग्लानि होती थी. ऐसे में बरसों पहले की गई अपनी गलती को अपने मन में दबाए रखने पर एक अपराधबोध सा सालता रहता था हर समय. इसलिए अपने मन का बोझ उस ने भावुक क्षणों में पलक के सामने रख दिया.

#RIPSidharthShukla: आखिरी बार यूं साथ दिखे थे #sidnaaz, सिद्धार्थ शुक्ला की आंखों में खो गई थीं शहनाज गिल

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लिए 2 सितम्बर यानी कल का दिन बहुत दुखद रहा. सिद्धार्थ शुक्ला की मौत से पूरी इंडस्ट्री में शोक की लहर छाई है. एक्टर की मौत से सेलिब्रिटी से लेकर फैंस तक सदमे में है. इसी बीच खबर आ रही है कि सिद्धार्थ शुक्ला की बेस्ट फ्रेंड और को-केंटेस्टेंट शहनाज गिल गहरे सदमे में है. शहनाज का रो-रो कर बुरा हाल है. वह सिद्धार्थ शुक्ला के बेहद करीब थी. आइए आपको बताते हैं, सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल की दोस्ती के सफर के बारे में.

सिडनाज की दोस्ती की ऐसे हुई शुरूआत

 

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बिग बॉस 13 में सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल ने कंटेस्टेंट के तौर पर हिस्सा लिया था. इस शो में दोनों की दोस्ती ने खूब सुर्खियां बटोरी. दोनों के नोकझोक, मस्ती, एक-दूसरे की खिंचाई करना… बेहद एंटरटेनिंग रहा. फैंस को इनकी जोड़ी काफी पसंद आई, उन्हें प्यार से सिडनाज बुलाते थे. सिडनाज की इसे खट्टे-मिठे दोस्ती को कई बार प्यार का नाम दिया गया था.

बिग बॉस 13 में शहनाज अक्सर कहा करती थीं कि वो प्यार की भूखी हैं और चाहती हैं कि सिद्धार्थ उनके पास रहें. इतना ही नहीं जब सलमान ने खुलकर शहनाज से पूछा था कि क्या वो और सिद्धार्थ गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रेंड हैं तो उन्होंने कहा था, नहीं. लेकिन हम दोनों के बीच कुछ तो है जिस पर सिद्धार्थ ने भी हां कहा था.

 

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कई प्रोजेक्ट पर एक साथ किये काम

बिग हाउस से बाहर आने के बाद भी दोनों की दोस्ती कायम रही. सिडनाज ने कई प्रोजेक्ट पर एक साथ काम किया. दोनों को साथ में टोनी कक्कड़ का गाना ‘शोना-शोना’ में भी देखा गया था. फैंस ने इस गाने को काफी अच्छा रिस्पांस दिया. जब वह शहनाज मुंबई में सेटल होने के लिए गईं तो सिद्धार्थ ने उनकी काफी मदद की थी.

 

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‘सिलसिला सिद्धनाज का’ वूट पर  किया गया रिलीज

हाल ही में ‘सिलसिला सिद्धनाज़ का’ वूट पर दिखाया गया.  इस फिल्म में सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज़ गिल का ‘बिग बॉस के घर का सफर एक अलग अंदाज़ में दर्शकों से सामाने पेश किया गया. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह से प्यार और रोमांस यह दो चीजें हर किसी के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं.

सिद्धार्थ ने ट्विटर पर शहनाज को ट्रोल करने वालों की लगाई थी क्लास

दरअसल शहनाज गिल ने एक डांस वीडियो पोस्ट किया था. इसी बीच एक ट्रोलर ने अपने पेज पर शहनाज का वीडियो पोस्ट कर कैप्शन में लिखा था, ‘सच में शहनाज गिल ने बहुत क्यूट अंदाज में ये वीडियो बनाया है, पर काश ये किसी अच्छे फोन पर शूट किया जाता.’ ये ट्वीट देखते ही सिद्धार्थ शुक्ला भड़क गए और उन्होंने एक ट्वीट करते हुए ट्रोलर की जमकर क्लास लगाई.

सिद्धार्थ ने लिखा,  भाई अब आप एक दोस्त की ऐसे परवाह करते हैं. बहुत ही विनम्रता से आपके संज्ञान में एक बात लाना चाहता हूं,  ये वीडियो मौजूद सबसे अच्छे फोन से शूट किया गया है. ये उनके फैंस के लिए है. अगर आपको पसंद नहीं आया तो अपने पेज पर क्यों पोस्ट किया.

 

आखिरी बार यूं साथ दिखे थे सिडनाज

हाल ही में बिग बॉस ओटीटी में  सिद्धार्थ शुक्ला और  शहनाज गिल गेस्ट के रूप में दिखाई दिए थे. उन दोनों को देख बिग बॉस ओटीटी के सभी कंटेस्टेंट के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी. वूट सिलेक्ट ने अपने ऑफिशल इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया. जिसमें दोनों  ‘तुहाडा कुत्ता टॉमी’ सॉन्ग पर धमाकेदार डांस कर रहे थे.

इसके बाद सिद्धार्थ शुक्ला डांस रियलिटी शो डांस दीवाने 3 में भी दिखाई दिए. जहां उन्होंने  फिल्म दिल तो पागल है के फेमस डायलॉग को फिर से रीक्रिएट किया. कलर्स टीवी ने अपने सोशल मीडिया पर प्रोमो शेयर करते हुए लिखा, जब सिद्धार्थ शुक्ला बने राहुल और माधुरी दीक्षित एक बार फिर बनी पूजा. हमारा दिल तो पागल होना ही था.

 

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भोजपुरी एक्ट्रेस पाखी हेगड़े बाढ़ पीड़ितों के बीच बांटी सामग्री

मूलतः मंगलोर निवासी अभिनेत्री पाखी हेगड़े ने हिंदी सीरियल ‘‘मैं बनूंगी मिस इंडिया’’ से कैरियर की शुरूआत की थी. उसके बाद उन्होने भोजपुरी फिल्में करते हुए भोजपुरी की चर्चित अदाकारा बन गयी.जबकि वह तेलगू व मराठी भाषी फिल्में भी की.पाखी हेगड़े ने अमिताभ बच्चन, जया बच्चन,मनोज तिवारी के साथ भी अभिनय कर चुकी हैं.

पाखी हेगड़े की पिछली भोजपुरी फिल्म‘‘विवाह’’ने बाक्स आफिस पर हंगामा मचाया था.उसके बाद कोरोना महामारी और लाॅक डाउन के चलते फिल्म इंडस्ट्री में काम काज ठप्प सा है. मगर पाखी हेगड़े ने ख्ुाद को घर के अंदर कभी कैद नही किया.कोरोना के समय वह जरुरतमंदों को राषन उपलब्ध कराने का कार्य करती रहीं. और अब जबकि देश के कई हिस्सों में बाढ़ ने तबाही मचा रखी है तो पाखी अपनी तरफ से बाढ़ पीड़ितों की मदद करने में लगी हुई हैं.

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हाल ही संत कबीर के दोहे पर अपने अलबम की षूटिंग के लिए पाखी हेगड़े उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर स्थित धनघटा तहसील क्षेत्र में पहुंची तो वहां के बाढ़ प्रभावित गांवों को देखकर उन्होने सबसे पहले बाढ़ पीड़ितों के बीच राहत सामग्री का वितरण किया. इस मौके पर अभिनेत्री पाखी हेगड़े ने बाढ़ प्रभावित लोगों से मुलाकात की और अपनी संवेदना जाहिर की. और वहां बाढ़ पीड़ितों के दर्द को भी जाना व सुना.

पाखी हेगड़े ने अपनी तरफ से बाढ़ पीड़ितों की मदद करने के साथ ही समाज के दूसरे लोगों से भी बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए निवेदन किया.पाखी ने धनकटा तहसील के करनपुर, कंचनपुर, गायघाट, सियरकला, चकदाहा, भौवापर, सरैया, खडगपुर, दौलतपुर, कुल्हाड़िया आदि गावों में बाढ़ का जायजा लिया और कहा-‘‘भोजपुरी भाषा का सबसे बड़ा हिस्सा पूर्वांचल है, जिसके कई हिस्स्से बाढ़ से ग्रसित हैं. यहाँ की जनता को बड़ी दुविधा से गुजरना पड़ रहा है.

लाखों लोग बेघर हुए. कई लोगों की जान चली गयी.आज बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में लोग खाने को मोहताज हैं. उनके पास पहनने को कपड़ा नहीं है.दवाई नहीं है. लोगों की रात अँधेरे में गुजारने को मजबूर हैं.इस विकट परिस्थिति में सभी को मदद के लिए आगे आना चाहिए.’’

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अभिनेत्री पाखी हेगड़े ने कहा -‘‘मैंने भोजपुरी व हिंदी सहित कई भाषाओं की फिल्मों में अभिनय किया है.इन दिनों मैं संतकबीर के दोहे पर एलबम बना रही हूं. उसी की शूटिंग के लिए आई हूं. यहां आने पर मुझे पता चला कि धनघटा तहसील क्षेत्र में बाढ़ की समस्या ज्यादा गंभीर है और बाढ़ पीड़ित परेशान हैं तो मैंने बाढ़ पीड़ितों से मिलने और उनकी समस्या जानने के साथ ही उनका दर्द बांटने के लिए वह प्रभावित गांव गायघाट दक्षिणी गईं.’’

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

खैर, अगली सुबह शिवेंद्र बेटी की खोज में निकल गए तो उन के व्यवहार के कायल रिश्तेदार भी गुडि़या की तलाश में शिमला के जंगलों की खाक छानते फिरते रहे लेकिन गुडि़या का कहीं पता नहीं चला. रहस्यमय तरीके से गुडि़या को लापता हुए 24 घंटे से ऊपर बीत चुके थे. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

6 जुलाई की सुबह कोई पौने 8 बजे कोटखाई थाना स्थित हलाइला गांव के पास तांदी के जंगल के एक गड्ढे के भीतर एक लड़की की नग्नावस्था में लाश मिली. उस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी.

लाश मिलते ही वन अधिकारी ने इस की सूचना कोटखाई थाने के इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को दे दी थी. सूचना मिलते ही वह एसआई दीपचंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक अली, महिला कांस्टेबल नेहा को साथ ले कर घटनास्थल पहुंच गए थे.

घटनास्थल पहुंच कर उन्होंने मुआयना किया और गुडि़या के पिता शिवेंद्र को भी मौके पर बुलवा लिया था. उन्हें आशंका थी कि यह लाश कहीं 2 दिनों से लापता गुडि़या की तो नहीं है. उन के यहां होने से लाश की शिनाख्त करने में आसानी होगी.

हलाइला गांव के निकट स्थित तांदी के जंगल में लड़की की लाश मिलने की सूचना मिलते ही शिवेंद्र के हाथपांव फूल गए और वह तुरंत मौकाएवारदात पर चल दिए. रास्ते भर वह यही प्रार्थना करते रहे कि बेटी जहां भी हो, सुरक्षित रहे.

खैर, थोड़ी देर बाद बेटे अमन के साथ वह मौके पर पहुंच गए. वहां भारी भीड़ जमा थी और जंगल बीच एक गड्ढे के भीतर लाश के ऊपर सफेद चादर डाल दी गई थी.

चादर से ढकी लाश देख कर शिवेंद्र का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. मानो अभी हलक के रास्ते मुंह के बाहर आ जाएगा.

पिता को एक किनारे खड़ा कर अमन ने हिम्मत जुटा कर लाश के ऊपर से चादर उठाई. चेहरा देखते ही अमन का कलेजा मुंह को आ गया और वह दहाड़ मार कर रोने लगा. पुलिस अधिकारी भी पहुंचे मौके पर अमन को रोता देख इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को समझते देर न लगी कि 2 दिनों से रहस्य बनी लाश की शिनाख्त हो गई है. बेटे को रोता देख कर पिता की आंखें भी नम हो गई थीं. तब तक घटना की सूचना पा कर एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और डीएसपी मनोज जोशी मौके पर पहुंच चुके थे.

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लाश की स्थिति देख कर पुलिस अधिकारियों की रूह कांप गई थी. गुडि़या के शरीर पर कई जगह चोट और वक्षस्थल पर दांत काटने के निशान पाए गए थे. ये देख कर लगता था कातिलों ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं.

घटना चीखचीख कर कह रही थी हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए मासूम गुडि़या को मार डाला था.

खैर, काफी खोजबीन के बाद मौके पर लाश के अलावा कुछ नहीं मिला था. गुडि़या के स्कूल की ड्रेस, जूतेमोजे और स्कूल का बैग नहीं मिला था. हत्यारों ने कहां छिपा रखा था, किसी को कुछ पता नहीं था.

जंगल में आग की तरह गुडि़या की हत्या की खबर शिमला में चारों ओर फैल गई थी. खबर मिलते ही शिवेंद्र की जानपहचान वाले मौके पर पहुंचने लगे थे. ये देख कर पुलिस के पसीने छूटने लगे थे. एसपी नेगी ने जल्द लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम भेजने का आदेश दिया.

आननफानन में इंसपेक्टर राजिंदर सिंह ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय शिमला भेज दी और गुमशुदगी की धारा को धारा 302, 376 आईपीसी एवं पोक्सो एक्ट की धारा 4 में तरमीम कर अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

विद्रोह और जन आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

7 जुलाई की सुबह गुडि़या रेपमर्डर केस ने शिमला की सड़कों पर विद्रोह और जनआंदोलन की जो रफ्तार पकड़ी, उस से पुलिस प्रशासन हिल गया था. शिमला प्रशासन के हाथों से यह मामला निकल कर डीजीपी के दफ्तर तक पहुंच चुका था.

मामले की गंभीरता को समझते हुए डीजीपी ने कड़ा रुख अपनाया और 10 जुलाई को स्पेशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन करने का आदेश दिया. जिस में आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और इंसपेक्टर कोटखाई राजिंदर सिंह शामिल हुए.

अपने मातहतों को कड़े शब्दों में डीजीपी ने कह दिया था कि मासूम बेटी के कातिल हर हाल में सलाखों के पीछे कैद होने चाहिए.

इस बीच गुडि़या के कातिलों को सलाखों तक पहुंचाने के लिए शिमला की जानीमानी एनजीओ मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और उन की सहयोगी तनुजा थाप्टा जन आंदोलन में कूद पड़े थे.

पुलिस की नाकामी की पोल स्थानीय समाचारपत्रों ने खोल कर रख दी थी. पुलिस के ऊपर कातिलों को गिरफ्तार करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री और डीजीपी का भारी दबाव था. वह पलपल जांच की काररवाई की रिपोर्ट तलब करा रहे थे.

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पुलिस की 3 दिनों की कड़ी मेहनत ने अपना रंग दिखाया. शक के आधार पर पुलिस ने 13 जुलाई की शाम को 5 लोगों को धर दबोचा. जिन के नाम सूरज सिंह, राजेंद्र सिंह उर्फ राजू निवासी हलाइला, सुभाष बिष्ट निवासी गढ़वाल, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक निवासी पौड़ी गढ़वाल थे.

एसआईटी ने निर्दोषों को बनाया आरोपी

सभी आरोपी शिमला में ही रह रहे थे और आपस में गहरे दोस्त थे. पुलिस ने उक्त पांचों को फर्द पर नामजद करते हुए रेप और मर्डर केस का आरोपी बना दिया था. पांचों आरोपियों से लगातार 5 दिनों तक थाने में कड़ाई से पूछताछ चलती रही. पुलिस ने सूरज सिंह को गैंगरेप का सरगना मानते हुए उसे खूब प्रताडि़त किया.

पुलिस के बेइंतहा जुल्म से हिरासत में सूरज सिंह ने दम तोड़ दिया था. पुलिस हिरासत में गैंगरेप आरोपी सूरज सिंह की मौत होते ही शिमला की ठंडी वादियों में अचानक ज्वालामुखी फट गया, जिस की तपिश से पुलिस महकमा धूधू कर जलने लगा था. ये 18 जुलाई, 2021 की बात है.

आरोपी सूरज सिंह की मौत के बाद सियासी मामला गरमा गया. कांग्रेस के वीरभद्र सिंह की सरकार के खिलाफ भाजपा ने मोरचा खोल दिया और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने पर अड़ गई.

आखिरकार सरकार को उन के आगे झुकना पड़ा और 19 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई की झोली में आ गिरी.

जांच की कमान सीबीआई के तेजतर्रार एसपी एस.एस. गुरम ने संभाली और उन का साथ दिया था डीएसपी सीमा पाहूजा ने. जांच की कमान संभालते ही एसपी गुरम ने दिल्ली मुख्यालय सीबीआई के दफ्तर में अपने तरीके से 2 अलगअलग मामले दर्ज किए.

पहला मुकदमा गुडि़या रेप और मर्डर केस में आरोपी सूरज सिंह की पुलिस हिरासत में हुई मौत का था. यह मुकदमा संख्या 101/2017 भादंवि की धारा 120बी, 302, 330, 331, 348, 323, 326, 218, 195, 196 और 201 भादंसं के तहत 22 जुलाई 2017 को दर्ज किया गया था. इस मुकदमे के आरोपी बनाए गए थे- आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी, इंसपेक्टर (कोटखाई) राजिंदर सिंह, एएसआई दीप चंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक मोहम्मद और रंजीत.

पुलिस अधिकारियों पर आरोप था कि आरोपी सूरज सिंह को हिरासत में ले कर बेरहमी से पिटाई की गई थी. जिस से हिरासत में उस की मौत हो गई थी.

वहीं आईजी जैदी ने सूरज की मौत पुलिस हिरासत की बजाय आरोपी राजेंद्र सिंह उर्फ राजू के सिर पर मढ़ कर नया बवाल खड़ा कर दिया था. लेकिन जांचपड़ताल में यह बात झूठी साबित हुई थी.

खैर, सीबीआई एसपी एस.एस. गुरम ने हिमाचल पुलिस द्वारा शक के बिना पर आरोपी बनाए गए चारों लोगों राजेंद्र सिंह उर्फ राजू, सुभाष बिष्ट, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक को जमानत पर छोड़ दिया और गुडि़या रेपमर्डर केस की जांच नए सिरे से शुरू कर दी.

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उन्होंने जांच की काररवाई जहां से गुडि़या की लाश पाई गई थी, वहीं से शुरू की. सब से पहले उन्होंने जंगल की भौगोलिक परिस्थितियों को जांचापरखा. फिर उस के आनेजाने वाले रास्ते का अवलोकन किया.

सीबीआई के हाथ लगा चश्मदीद

इधर सीबीआई के द्वारा पकड़े गए चारों आरोपियों को छोड़े जाने पर मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और तनुजा थाप्टा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मिले और सीबीआई के क्रियाकलापों पर नाराजगी जताई.

अगले भाग में पढ़ें- अनिल उर्फ नीलू की हो गई नीयत खराब

विवेक सागर प्रसाद: गांव का खिलाड़ी बना ओलंपिक का हीरो

‘पढ़ोगेलिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगेकूदोगे तो होगे खराब’… इस लोकोक्ति को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के छोटे से गांव चांदौन के खिलाड़ी विवेक सागर प्रसाद ने टोक्यो ओलिंपिक खेलों में अर्जेंटीना के खिलाफ गोल दाग कर सच साबित कर दिया है.

टोक्यो ओलिंपिक में 29 जुलाई, 2021 का दिन विवेक सागर प्रसाद के नाम रहा. अर्जेंटीना से मुकाबले में भारतीय हौकी टीम को हर हाल में जीत की दरकार थी. टोक्यो ओलिंपिक में सुबह 6 बजे से जैसे ही अर्जेंटीना और भारत के बीच मुकाबला शुरू हुआ, भारतीय टीम ने दबदबा बना कर 3 गोल कर दिए. विवेक सागर प्रसाद ने भारतीय टीम की ओर से गोल दाग कर देश की जीत तय कर दी.

5 अगस्त, 2021 को टोक्यो ओलिंपिक में हुए हौकी मैच में भारतीय पुरुष हाकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जरमनी की टीम को 5-4 से मात दे कर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया. जैसे ही भारत को मैडल मिलने का रास्ता साफ हुआ, तो टीम में मध्य प्रदेश से नुमांइदगी कर रहे विवेक सागर प्रसाद का पूरा गांव खुशी से  झूम उठा.

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विवेक के भाई विद्या सागर बताते  हैं कि मैच के आखिरी 6 सैकंड तक पूरा परिवार दिल थाम कर बैठा रहा. जैसे ही मैच खत्म हुआ, पिता रोहित सागर और मां कमला देवी की आंखों से आंसू आ गए. विद्या सागर ने सुबह जीत के बाद विवेक से बात की तो विवेक ने टोक्यो से वीडियो कालिंग कर अपने भाई को मैडल दिखाया.

विवेक सागर के पिता रोहित प्रसाद सरकारी प्राइमरी स्कूल गजपुर में शिक्षक हैं. मां कमला देवी गृहिणी और बड़ा भाई विद्या सागर सौफ्टवेयर इंजीनियर है. इस के अलावा 2 बहनें पूनम और पूजा हैं. पूनम की शादी हो चुकी है और पूजा पढ़ाई कर रही है.

जीत के बाद विवेक सागर प्रसाद के गांव में दीवाली सा माहौल बन गया. गांव के नौजवान, बच्चे, महिलाएंपुरुष हाथ मे तिरंगा ले कर ढोल की थाप के साथ  झूम उठे. घर पर विवेक के पिता रोहित प्रसाद, मां कमला प्रसाद और भाई विद्यासागर भी जम कर नाचे. पूरा गांव उन्हें बधाई देने घर पर आ गया. पिता इतने खुश थे कि गांव में मिठाई बंटवाने के लिए बाहर आ गए.

जिला हौकी संघ के सदस्यों ने भी विजय जुलूस निकाल कर टीम इंडिया की जीत का जश्न मनाया. विवेक के पिता रोहित प्रसाद ने कहा कि आज विवेक ने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन कर दिया है.

इटारसी के और्डिनैंस फैक्टरी निवासी खिलाड़ी सोनू अहिरवार ने पहली बार विवेक को हौकी खेलने के लिए प्रेरित किया था. विवेक की उम्र जब 8 साल की थी, तब सोनू ने उसे हौकी की स्टिक ला कर दी थी.

विवेक सागर प्रसाद के लिए इस मुकाम को पाना आसान नहीं था. विवेक सागर के प्रारंभिक कोच गजेंद्र पटेल ने बताया कि पहले विवेक क्रिकेट खेलता था. उन्होंने क्रिकेट मैदान में उस की फुरती और स्टैमिना देखते हुए हौकी टीम में शामिल कराने का प्रयास किया.

विवेक सागर प्रसाद के पिता रोहित प्रसाद उस के हौकी खेलने के शुरू से ही खिलाफ रहे, लेकिन तकरीबन 10 साल पहले एक मैच में लोगों ने उस के खेल की जम कर तारीफ की और उस मैच में विवेक को 500 रुपए के इनाम के साथ लोगों की वाहवाही मिली, तो उस के बाद पिता रोहित प्रसाद ने फिर कभी विवेक को हौकी खेलने से नहीं रोका.

12 साल की उम्र में विवेक सागर प्रसाद जब अकोला में एक टूर्नामैंट खेल रहे थे, तभी मशहूर हौकी खिलाड़ी अशोक ध्यानचंद की उन नजर पड़ी और उन्होंने विवेक की प्रतिभा को पहचान लिया.

अशोक ध्यानचंद ने विवेक सागर का नामपता लिया और फिर अपने पास अकादमी में बुला लिया. विवेक सागर प्रसाद ने बताया कि कुछ दिनों तक उन्होंने मुझे अपने घर में ही ठहराया था.

विवेक सागर प्रसाद का चयन मध्य प्रदेश हौकी अकादमी में 2012-13 में हुआ था. विवेक के खेल में अशोक ध्यानचंद की कोचिंग से खेल में निखार आया. उन्होंने मध्य प्रदेश हौकी अकादमी में 30 महीने तक कोचिंग ली. वहां से वे आगे की कोचिंग के लिए हौकी अकादमी दिल्ली चले गए.

विवेक सागर प्रसाद भी ऐसे खिलाडि़यों में से एक हैं, जिन्होंने अपने ऊपर आई बाधा को हौसले से पार कर लिया. साल 2015 में प्रैक्टिस के दौरान विवेक की गरदन की हड्डी टूट गई थी. दवाओं की हैवी डोज से उन की आंतों में छेद हो गया था और वे 22 दिनों तक जिंदगी और मौत से जू झते रहे. आखिरकार उन्होंने जिंदगी का मैच जीत लिया. इस के बाद जूनियर हौकी टीम की मलयेशिया में कप्तानी की और ‘मैन औफ द सीरीज’ पर कब्जा जमा लिया.

बातचीत में विवेक सागर प्रसाद बताते हैं कि किस तरह शुरुआती दौर में वे इटारसी के सीनियर प्लेयर को हौकी खेलता देखते थे, तो उन के मन में भी हौकी खेलने का विचार आता था.

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हौकी के प्रति जब विवेक सागर प्रसाद का लगाव बढ़ा, इस के बाद सीनियरों से हौकी स्टिक और दोस्तों से जूते मांग कर मिट्टी वाले ग्राउंड में प्रैक्टिस करने लगे.

भारतीय पुरुष हौकी टीम ने जरमनी को टोक्यो ओलिंपिक खेलों के कांस्य पदक मैच में 5-4 से शिकस्त दे कर  41 साल बाद पदक जीता.

भारत ने इस से पहले साल 1980 में मास्को ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीता था. भारतीय टीम की इस ऐतिहासिक जीत से पूरे देश में खुशी का माहौल है.

विवेक सागर प्रसाद ने ओलिंपिक तक का यह सफर इटारसी के पास के छोटे से गांव चांदौन से शुरू किया. उन्होंने अनेक नैशनल और इंटरनैशनल लैवल की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और लगातार अच्छे प्रदर्शन के बल पर भारतीय टीम में अपना स्थान बनाया.

विवेक सागर प्रसाद के यहां तक पहुंचने की कहानी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है. विवेक सागर प्रसाद का परिवार शीट की छत वाले घर में रहता है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जब उन्हें बतौर एक करोड़ रुपए इनाम देने की घोषणा की, तो इस पर विवेक का कहना है कि वे इस पैसे से अपनी मां के लिए आलीशान मकान बना कर देंगे.

विवेक सागर प्रसाद के पिता बताते हैं कि वे तो विवेक को हमेशा से इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन उसे तो हौकी प्लेयर ही बनना था.

विवेक की मां कमला देवी बताती हैं कि बेटे की पिटाई नहीं हो, इसलिए कई बार उस के पिता से  झूठ बोलना पड़ा. वह घर नहीं आता तो वे कह देतीं कि वह सब्जी लेने गया है, फिर चुपके से बहन पूजा दूसरे दरवाजे से घर में बुला लेती.

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भाई विद्यासागर के मुताबिक, जब दोस्तों ने कहा कि विवेक टैलेंटेड है और खूब आगे जाएगा, तो उन्होंने अपने पापा को हौकी खेलने के लिए मनाया.

गांव की मिट्टी में पलाबढ़ा नौजवान विवेक सागर प्रसाद आज हीरो बन कर उभरा है. विवेक सागर प्रसाद की लगन, मेहनत और जुनून ने यह साबित कर दिया है कि हौसले बुलंद हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है.

मेरी पत्नी को ब्रैस्ट कैंसर है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 32 साल का शादीशुदा मर्द हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. पिछले कुछ समय से मेरी पत्नी बहुत ज्यादा बीमार रहने लगी है. उसे ब्रैस्ट कैंसर है. लेकिन साथ ही उसे शक हो गया है कि उस के मरते ही मैं दूसरी शादी कर लूंगा, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है.

इस डर और शक से वह अपना इलाज भी ढंग से नहीं करा रही है. वह सोचती है कि डाक्टर से मिल कर मैं उसे मारना चाहता हूं. मैं उसे हर तरह से समझा कर हार गया हूं, पर उस का शक का कीड़ा मरने का नाम ही नहीं लेता है. मैं क्या करूं?

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जवाब

यह शक बताता है कि आप की पत्नी आप को बहुत प्यार करती है. मुमकिन  है कि सामने दिख रही मौत का डर  कम करने के लिए वह शक का सहारा ले रही हो.

वैसे, मर्दों और औरतों दोनों की फितरत शक करने की होती ही है. इस समय आप की अहम जिम्मेदारी पत्नी की देखभाल और उसे प्यार देने के अलावा उस के इलाज की भी है. उस से प्यार से पेश आएं और उसे भरोसा दिलाते रहें कि आप उस से बहुत प्यार करते हैं और किसी और से शादी करने की सोच भी नहीं सकते.

उस पर  झल्लाएं नहीं, बल्कि सब्र से काम लें. उस की छोटी से छोटी जरूरत का भी खयाल रखें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में

Family Story in Hindi: फैमिली हमारे लाइफ का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. जो  आपका सपोर्ट सिस्टम भी है. फैमिली बिना स्वार्थ का आपके साथ खड़ी रहती है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं सरस सलिल की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको  कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Best Family Story in Hindi.

  1. अगली बार कब: आखिर क्यों वह अपने पति और बच्चों से परेशान रहती थी?

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उफ, कल फिर शनिवार है, तीनों घर पर होंगे. मेरे दोनों बच्चों सौरभ और सुरभि की भी छुट्टी रहेगी और अमित भी 2 दिन फ्री होते हैं. मैं तो गृहिणी हूं ही. अब 2 दिन बातबात पर चिकचिक होती रहेगी. कभी बच्चों का आपस में झगड़ा होगा, तो कभी अमित बच्चों को किसी न किसी बात पर टोकेंगे. आजकल मुझे हफ्ते के ये दिन सब से लंबे दिन लगने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. मुझे सप्ताहांत का बेसब्री से इंतजार रहता था. हम चारों कभी कहीं घूमने जाते थे, तो कभी घर पर ही लूडो या और कोई खेल खेलते थे. मैं मन ही मन अपने परिवार को हंसतेखेलते देख कर फूली नहीं समाती थी.

2.  वजूद से परिचय: भैरवी के बदले रूप से क्यों हैरान था ऋषभ?

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‘‘मम्मी… मम्मी, भूमि ने मेरी गुडि़या तोड़ दी,’’ मुझे नींद आ गई थी. भैरवी की आवाज से मेरी नींद टूटी तो मैं दौड़ती हुई बच्चों के कमरे में पहुंची. भैरवी जोरजोर से रो रही थी. टूटी हुई गुडि़या एक तरफ पड़ी थी.

मैं भैरवी को गोद में उठा कर चुप कराने लगी तो मुझे देखते ही भूमि चीखने लगी, ‘‘हां, यह बहुत अच्छी है, खूब प्यार कीजिए इस से. मैं ही खराब हूं… मैं ही लड़ाई करती हूं… मैं अब इस के सारे खिलौने तोड़ दूंगी.’’

भूमि और भैरवी मेरी जुड़वां बेटियां हैं. यह इन की रोज की कहानी है. वैसे दोनों में प्यार भी बहुत है. दोनों एकदूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकतीं.

मेरे पति ऋषभ आदर्श बेटे हैं. उन की मां ही उन की सब कुछ हैं. पति और पिता तो वे बाद में हैं. वैसे ऋषभ मुझे और बेटियों को बहुत प्यार करते हैं, परंतु तभी तक जब तक उन की मां प्रसन्न रहें. यदि उन के चेहरे पर एक पल को भी उदासी छा जाए तो ऋषभ क्रोधित हो उठते, तब मेरी और मेरी बेटियों की आफत हो जाती.

3. आखिरी खत- नैना की मां और शीलू का क्या रिश्ता था?

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नैना बहुत खुश थी. उस की खास दोस्त नेहा की शादी जो आने वाली थी. यह शादी उस की दोस्त की ही नहीं थी बल्कि उस की बूआ की बेटी की भी थी. बचपन से ही दोनों के बीच बहनों से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था. पिछले 2 वर्षों में दोस्ती और भी गहरी हो गई थी. दोनों एक ही होस्टल में एक ही कमरे में रह रही थीं अपनी पढ़ाई के लिए. यही कारण था कि नैना कुछ अधिक ही उत्साहित थी शादी में जाने के लिए. वह आज ही जाने की जिद पर अड़ी थी जबकि उस के पिता चाहते थे कि हम सब साथ ही जाएं. उन की भी इकलौती बहन की बेटी की शादी थी. उन का उत्साह भी कुछ कम न था…

4. मेरी खातिर-  माता-पिता के झगड़े से अनिका की जिंदगी पर असर

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‘‘निक्की तुम जानती हो कि कंपनी के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं. मैं छोटेछोटे कामों के लिए बारबार बौस के सामने छुट्टी के लिए मिन्नतें नहीं कर सकता हूं. जरूरी नहीं कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ चलूं. तुम अकेली भी जा सकती हो न. तुम्हें गाड़ी और ड्राइवर दे रखा है… और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

‘‘चाहती? मैं तुम्हारी व्यस्त जिंदगी में से थोड़ा सा समय और तुम्हारे दिल के कोने में अपने लिए थोड़ी सी जगह चाहती हूं.’’

‘‘बस शुरू हो गया तुम्हारा दर्शनशास्त्र… निकिता तुम बात को कहां से कहां ले जाती हो.’’

‘‘अनिकेत, जब तुम्हारे परिवार में कोई प्रसंग होता है तो तुम्हारे पास आसानी से समय निकल जाता है पर जब भी बात मेरे मायके जाने की होती है तो तुम्हारे पास बहाना हाजिर होता है.’’

5. वो कमजोर पल: क्या सीमा ने राज से दूसरी शादी की?

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वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

6. पश्चाताप: आज्ञाकारी पुत्र घाना को किस बात की मिली सजा?

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ट्रेन से उतर कर टैक्सी किया और घर पहुंच गया. महीनों बाद घर वापस आया था. मुझे व्यापार के सिलसिले में अकसर बाहर रहना पड़ता है. मैं लंबी यात्रा के कारण थका हुआ था, इसलिए आदतन सब से पहले नहाधो कर फ्रेश हुआ. तभी  पत्नी आंगन में चायनाश्ता ले आई. चाय पीते हुए मां से बातें कर रहा था. अगर मैं घर से बाहर रहूं और कुछ दिनों बाद वापस आता हूं तो  मां  घर की समस्याएं और गांवघर की दुनियाभर की बातें ले कर बैठ जाती है. यह उस की पुरानी आदत है. इसलिए कुछ उस की बातें सुनता हूं. कुछ बातों पर ध्यान नहीं देता हूं. परंतु इस प्रकार अपने गांवघर के बारे में बहुतकुछ जानकारी मिल जाती है.

7. सच उगल दिया: क्या था शीला का सच

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जब वह बाबा गली से गुजर रहा था, तब रुक्मिणी उसे रोकते हुए बोलीं, ‘‘बाबा, जरा रुकना.’’

‘‘हां, अम्मांजी…’’ बाबा ने रुकते हुए कहा.

‘‘क्या आप हाथ देख कर सबकुछ सहीसही बता सकते हैं?’’ रुक्मिणी ने सवाल पूछा.

बाबा खुश हो कर बोला, ‘‘हां अम्मांजी, मैं तो ज्योतिषी हूं. मैं हाथ देख कर सबकुछ सचसच बता सकता हूं.’’

बाबा को अपने आंगन में बैठा कर रुक्मिणी अंदर चली गईं. तिलकधारी बाबा के गले में रुद्राक्ष की माला थी, बढ़ी हुई दाढ़ी, उंगलियों में न जाने कितने नगीने पहन खे थे. चेहरे पर चमक थी.

रुक्मिणी उस बाबा को देख भीतर ही भीतर खुश हुईं. आखिरकार बाबा बोला, ‘‘लाओ अम्मांजी, अपना हाथ दो.’’

8. परीक्षा: क्यों सुषमा मायके जाना चाहती थी?

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पंकज दफ्तर से देर से निकला और सुस्त कदमों से बाजार से होते हुए घर की ओर चल पड़ा. वह राह में एक दुकान पर रुक कर चाय पीने लगा. चाय पीते हुए उस ने पीछे मुड़ कर ‘भारत रंगालय’ नामक नाट्यशाला की इमारत की ओर देखा. सामने मुख्यद्वार पर एक बैनर लटका था, ‘आज का नाटक-शेरे जंग, निर्देशक-सुधीर कुमार.’

सुधीर पंकज का बचपन का दोस्त था. कालेज के दिनों से ही उसे रंगमंच में बहुत दिलचस्पी थी. वैसे तो वह नौकरी करता था किंतु उस की रंगमंच के प्रति दिलचस्पी जरा भी कम नहीं हुई थी. हमेशा कोई न कोई नाटक करता ही रहता था…

9. घुटन: मैटरनिटी लीव के बाद क्या हुआ शुभि के साथ?

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शुभि ने 5 महीने की अपनी बेटी सिया को गोद में ले कर खूब प्यारदुलार किया. उस के जन्म के बाद आज पहली बार औफिस जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर औफिस तो जाना ही था. 6 महीने से छुट्टी पर ही थी.

मयंक ने शुभि को सिया को दुलारते देखा तो हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मन नहीं हो रहा है सिया को छोड़ कर जाने का.’’

‘‘हां, आई कैन अंडरस्टैंड पर सिया की चिंता मत करो. मम्मीपापा हैं न. रमा बाई भी है. सिया सब के साथ सेफ और खुश रहेगी, डौंट वरी. चलो, अब निकलते हैं.’’

शुभि के सासससुर दिनेश और लता ने भी सिया को निश्चिंत रहने के लिए कहा, ‘‘शुभि, आराम से जाओ. हम हैं न.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

10. औलाद: क्यों कुलसूम अपने बच्चे को खुद से दूर करना चाहती थी?

family story in hindi
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नरगिस की खूबसूरती के चर्चे आम होने लगे. गांवभर की औरतें नरगिस की मां से कहने लगीं कि उस की शादी की फिक्र करो जुबैदा. उम्र भले ही कम सही, लेकिन कुदरत ने इस को खूबसूरती ऐसी दी है कि बड़ेबड़ों का ईमान डोल जाए.

इस पर जुबैदा कहती, “तुम लोग मेरी बेटी की फिक्र में मत मरा करो. मेरे पास दौलत भले ही नहीं है, लेकिन बेटी ऐसी मिली है कि राजेमहाराजे तक आएंगे रिश्ता ले कर मेरे दरवाजे पर.”

एक दिन ऐसा हुआ भी. हवेली से बड़े नवाब के बड़े साहबजादे शाहरुख मिर्जा के लिए नरगिस का रिश्ता आ गया. जुबैदा की खुशी का ठिकाना न रहा.

नरगिस के अब्बा अब इस दुनिया में नहीं थे, इसलिए मंगनी की रस्म भी जुबैदा ने खुद पूरी की और अगले साल बेटी के निकाह का दिन तय कर दिया.

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