आधुनिकता उम्र की मुहताज नहीं

लेखिका- रेखा व्यास

‘आधुनिकता’ शब्द की हमारे दिमाग में ऐसी छवि बनती है जैसे कोई समसामयिक और नई बात है. ज्यादातर लोग इसे नए जमाने की देन समझते व मानते हैं. संभवतया इस का मुख्य कारण आधुनिकता को बाहरी या परिधान, मेकअप आदि के स्तर तक सीमित कर देना लगता है. विचारों की आधुनिकता को खुलापन या पाश्चात्य जीवनशैली और सोच मान लिया जाता है. दोनों ही रूपों में आधुनिकता निखरती है. अपने असली रूप में यह हमें लाभ पहुंचाती है.

अकसर कोई बुजुर्ग हमें अपने जैसा या अपने से आगे सोचता हुआ मिलता है तो हम ताज्जुब करते हैं. जनरेशन गैप खत्म होता जान पड़ता है. विचारशील लोग इसे शाश्वत सोच का नाम दे देते हैं जो कालजयी तथा लिंगभेद और देशकाल से ऊपर होती है.

19वीं शताब्दी के आखिर में मेवाड़ में गंगा बाई आमेरा ने अपने 8 भाइयों की मृत्यु के बाद स्वयं घरपरिवार का बीड़ा उठाया. शिक्षा ग्रहण की. 1907 में डिलिवरी के 27 दिनों बाद ही देवरानी और उस के कुछ दिनों बाद देवर की मृत्यु हो जाने पर उन के बच्चे को अपनाया, पालापोसा. मेवाड़ में गांधीजी के चलाए स्त्रीशिक्षा आंदोलन में चर्चित रहीं. उस समय हर घर से एक बेटी और एक बहू को पढ़ाने का आंदोलन चला. उन्होंने अपने 2 पोतों की बहुओं को पढ़ाने की अगुआई की. नौकरी लगने पर स्वयं पोते की बहू को नौकरी जौइन कराने ले गईं. प्रपौत्री के जन्म पर उन्होंने शानदार जश्न आयोजित किया, तो लोगों ने हंसी उड़ाई.

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उस समय लड़कियों को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता था. लोग आज भी इस बात की चर्चा करते हुए कहते हैं कि गंगाबाई ने सब को मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा कि लड़का कहां से आता है और लड़की कहां से आती है? प्रकृति ने कोई भेद नहीं किया तो हम क्यों करें? मुझे इस बच्चे के जन्म पर जो खुशी हुई है, मैं उस का आनंद उत्सव मना रही हूं.

आज यह बात भले ही आम लगे पर उस समय बहुत खास थी. ऐसा सोचने और करने वाले लोग न के बराबर थे. स्त्रियां परदे में रहती थीं. उस समय वे बहुओं से कहती थीं, ‘कोई घूंघट नहीं निकालेगा. मेरे सामने पैदा हुई हो, तुम्हीं मुझ से न हंसोबोलो और मन की बात न करो तो यह क्या बात हुई.’ बहुएं घरपरिवार, पड़ोस या गांव की हों, सभी उन्हें प्यार से गंगा बूआजी कहती थीं और उन से सलाहमशवरा कर लिया करती थीं.

हमारा सामाजिक परिवेश बनेबनाए ढर्रे पर चलता है, तो हम भी भेड़चाल में शामिल हो जाते हैं. ऐसा क्यों हो रहा है या यह होना भी चाहिए या नहीं, इस पर सोचने की फुरसत भी हमारे पास नहीं रहती. आज रहनसहन, खानपान चमकदमक के नाम पर जितनी आधुनिकता दिखती है, यदि उस की आधी भी सोच के स्तर पर आती तो जातिबिरादरी, अस्पृश्यता, ऊंचनीच जैसी तमाम नकारात्मक सामाजिकता काफी हद तक दूर हो जाती. लोग इन्हें परंपरा के प्रति आस्था और पूर्वजों की देन (?) मान कर इस तरह की धारणाओं को बदलने की कोशिश भी नहीं करते.

कुछ लोग मिलते हैं तो भी अपवाद के स्तर पर. सुशीला देवी शर्मा 85 साल की हैं, पर शुरू से ही इन की सोच काफी आधुनिक रही. चूंकि बाहरी स्तर पर इन्होंने सादगी ही अपनाई, इसलिए कई बार लोगों की उपेक्षा का शिकार भी रहीं. छोटी उम्र में शादी हो जाने के कारण इन पर घर की जिम्मेदारी आ गई. पति वकालत करना चाहते थे. ऐसे में अपने सिलाईकढ़ाई के हुनर से कमाई कर के पति को इंदौर पढ़ने भेजा. सिलाई कक्षाएं चला कर कमाई बढ़ाई. खुद ने श्रमजीवी कालेज जौइन किया. अपनी कूवत से पढ़लिख कर शिक्षिका बनीं. बच्चे भी खूब पढ़ाए. एक बेटा सर्जन, एक प्रोफैसर और 2 बेटे वकील हैं तो एक बेटी प्रोफैसर और एक डाक्टर है.

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आज से 30-35 वर्ष पहले छोटे शहरों में ब्राह्मण ब्राह्मण में भी आपस में शादी अंतर्जातीय विवाह मानी जाती थी. जो ब्राह्मण गौड़, औदीचय, आमेरा, पुषकरणा आदि जिस जाति का होता था उसी में विवाह करता था. ऐसे में इन के 2 पुत्रों ने ईसाई लड़कियों से विवाह किया तो इन्होंने सहज रूप से उन्हें अपनाया. घर के बेहद सगों ने इन दोनों के बहिष्कार व संपत्ति से वंचित करने की राय दी व दबाव डाला तो इन्होंने उसे खारिज कर दिया. ये तो अपनी लड़कियों को भी संपत्ति में हिस्सा देने की पक्षधर हैं. यह बदलाव एकदम तो नहीं पर धीरेधीरे पुख्ता हो कर आता गया.

इन के पोतेपोती डाक्टर हैं, जज हैं. वे भी इन की सोच व काम के कायल हैं. वे इन पर बहुत गर्व करते हैं. इन के हाथ की बनाई गई पौलिथीन की आसन, पैचवर्क की साडि़यां, परदे, गिलाफ आदि खूब पसंद करते हैं. ‘कूड़ा’ शब्द सुशीलाजी के शब्दकोश में नहीं है. वे कहती हैं, कभी उन्होंने कूड़ाघर का मुंह नहीं देखा. ये इस तरह की नई चीजें बनाबना कर बांटती रहती हैं.

रानी भारद्वाज 62 साल की हो रही हैं. वे दिल्ली में रहती हैं. वे आधुनिकता को खास उम्र और क्षेत्र की बपौती नहीं मानतीं. उन के दोनों बच्चों ने विदेशी जीवनसाथी चुने तो इन्होंने खुशीखुशी उन का साथ दिया. अपने अरमान पूरे करने के नाम पर बच्चों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने वाले मांबाप को ये ठीक पेरैंटिंग न कर सकने का दोषी मानती हैं. उन का कहना है कि बच्चों को लिखापढ़ा दो, सहीगलत समझा दो, आगे उन की मरजी. हमें फिर उन की जिंदगी में दखल और उन से अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.

यही नहीं, ये बच्चोंबहू के साथ ब्यूटीपार्लर, मौल घूमनेफिरने तथा बाहर खानेपीने में भी खूब रुचि लेती हैं. पति गांधीवादी और आर्यसमाजी हैं. वे रात को जल्दी सो जाते हैं. वे इतनी भ्रमणशील और देररात तक चलने वाली जिंदगी पसंद नहीं करते तो ये अपनी ओर से उन पर कोई विचार नहीं थोपतीं. बच्चे छोटे थे, तब ये अकेली ही जा कर सिनेमा देख आती थीं.

ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सोच के सम्मान को महत्त्व देती हैं. ये अपनेआप को या अपने विचारों को किसी पर लादना ठीक नहीं समझतीं. हर उम्र और विचारधारा वाले लोगों से इन की पटरी बैठ जाती है. हाल ही में बेटे द्वारा रशियन मूल की लड़की से शादी करने पर जब बहू ने भारतीय रीतिरिवाज से शादी की इच्छा प्रकट की, तो लड़की वालों की ओर से भी सारा इंतजाम स्वयं कर के उस की इच्छा का सम्मान किया.

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शादी में ये फालतू खर्च पसंद नहीं करती हैं, इसलिए नहीं किया. व्यर्थ रिश्तेदारों को कपड़ेलत्ते, लेनादेना, उपहारबाजी और ऐसी ही रस्मों के बहाने व्यक्ति को कर्जदार बनाने वाली परंपराएं ये पसंद नहीं करतीं. जिस से सचमुच खुशी मिले, वही सामाजिकता इन्हें रास आती है. हां, शादीब्याह में टैंट वाले, फूल वाले और बैरों द्वारा टिप मांगने और उस की राशि बढ़वाने पर ये आसानी से खुलेहाथ से देना पसंद करती हैं.

प्रतिभा रोहतगी का व्यक्तित्व भी बहुआयामी है. वे 74 वर्ष की हैं. 1993 तक राजनीति में सक्रिय  रहीं. वे लेखिका भी हैं. उन की 3 पुस्तकें छपी हैं, ‘किसी से कुछ मत कहना’, ‘प्रतीक’ और ‘कहता चल.’

वे कविताएं भी लिखती हैं. उन का सब से ज्यादा जोर शिक्षा पर है. उन्होंने अपने चारों बच्चों को खूब पढ़ाया. 2 डाक्टर हैं, एक वकील और एक बेटी अमेरिका में बैंककर्मी. पोतेपोती भी अच्छी तरह पढ़लिख रहे हैं. उन के दोनों बेटे दिल्ली में हैं. एक डीएलएफ और दूसरा यमुनापार में. वे फिर भी दरियागंज में किराए के मकान में रहती हैं, उन के अपने मकान का किराया आता है.

वे कहती हैं, ‘‘मैं सब के साथ प्रेम से रहना चाहती हूं. उन की भी खुशी बनी रहे और मेरी भी. मेरे  3-3 घर हैं. जब जहां मन करता है, चली जाती हूं. खास मौके पर पूरे परिवार को कनाट प्लेस या किसी और अच्छी जगह अपनी ओर से पार्टी देती हूं. वे बुलाते हैं तो भी एंजौय करती हूं.’’

राजनीति के बारे में वे कहती हैं, ‘‘मैं ने भाजपा में रह कर व निर्दलीय दोनों स्थितियों में राजनीति को देखा. राजनीति में स्वार्थ और निजी महत्त्वाकांक्षाओं का खेल ज्यादा है. बड़े राजनेता छोटों को अपने मातहत समझ कर खूब कुटवातेपिटवाते हैं. मुझे कुछ करने की इच्छा थी, तो मैं जुड़ी, लेकिन जब लगा कि कुछ करने नहीं दिया जा रहा है, तो क्यों समय बरबाद करती. समाज का भला राजनीति में रहे बगैर भी खूब किया जा सकता है. मैं अब खूब मस्त रहती हूं. जब जितना बन पड़े, कर लेती हूं. घूमनाफिरना, मिलनाजुलना, हंसीमजाक सब मेरे जीवन में खूब है.’’

प्रतिभाजी के अधिवक्ता पुत्र अफसोसपूर्वक कहते हैं, ‘‘सच, हम मम्मी को समझ नहीं पाए. इन्हें हलके में ही लेते रहे. यदि हम ने और पापा ने मम्मी का समय पर ठीक से साथ दिया होता तो स्थितियां आज कुछ और होतीं. मम्मी ने जो कुछ किया, अकेले अपने दम पर किया. वाकई, यह सब कम नहीं है.’’

प्रतिभाजी हर समय को एंजौय करती हैं, कहती हैं, ‘‘छोटीमोटी नोकझोंक के अलावा हम में बड़े डिफरैंस नहीं होते. बाहर रहने के बावजूद हमारे बच्चे नग्नता पसंद नहीं करते. हम ने उन्हें संस्कार और मूल्य दिए हैं. आगे उन की अपनी सोच और समझ. वे क्या चाहते हैं और हम क्या चाहते हैं, यह एकदूसरे को बताए बिना भी हम अच्छी तरह समझते हैं. आज इसी सोचसमझ के अभाव से परिवारों में टूटन और गैप आ रहे हैं.’’

जनरेशन गैप को लोग बहुत बड़ा मुद्दा बना कर पेश करते हैं. इसे पुरातनता और आधुनिकता के बीच न पटने वाली खाई के रूप में भी मानते हैं. यह इतना बड़ा हौआ है नहीं, जितना बड़ा बना दिया जाता है.

94 वर्षीया विद्यावती जैन दिल्ली के दरियागंज में अकेली रहती हैं. 1997 में पति का निधन हुआ और उन्होंने जीवन की गाड़ी को अवसाद की पटरी पर न चढ़ने दिया. उन की 6 बेटियां हैं. वे मुंबई, गाजियाबाद व दिल्ली में रहती हैं. विद्यावतीजी के पास 2 नौकर हैं. फिर भी वे काफी काम खुद करती हैं.

जब मैं ने उन से पूछा कि क्या 6 बेटियां बेटे की उम्मीद में हो गईं? तो वे सहजरूप से कहती हैं, ‘‘बेटे की उम्मीद? यह आप क्या कह रही हैं. मेरी तो छहों बेटियां बेटों से भी ज्यादा हैं. आसपड़ोस में कहीं भी पूछ आओ, कोई भी आप को बता देगा, मैं ने छहों के जन्म पर मिठाइयां बांटी हैं. आज इन बेटियों की बदौलत जाने कितने परिवारों से हमारा संबंध जुड़ गया है. नातेरिश्ते बढ़ गए हैं. 6 दामाद व बच्चे.’’

क्या आप के समय में परिवार नियोजन के साधन थे, इस पर वे कहती हैं, ‘‘आज जितने तो नहीं थे, फिर भी थे. हां, जो थे वे 4-5 साल ही कारगर थे, इसीलिए हमारे 4-6 साल के गैप पर बच्चे हुए.

आप ने बच्चे कैसे पालेपोसे? इस सवाल पर वे बोलीं, ‘‘मैं समय के अनुसार चलने में विश्वास रखती हूं. मैं ने सब को खूब पढ़ायालिखाया. मेरी सब बेटियां अच्छी पढ़ीलिखीं और अच्छे ओहदों पर हैं. यह नहीं कि पढ़ रही हैं तो वे और कुछ काम न करें. हम ने उन्हें गाना, डांस, सिलाईकढ़ाई वगैरह सब सिखाया. इस वजह से हमें उन की ससुरालों में भी बहुत मान मिला. वरना पढ़ाई के नाम पर लड़केलड़कियां समय खूब बरबाद करते हैं और टाइम पर जो सीखना चाहिए वह नहीं सीखते. घर के बाकी लोग थकतेपिसते रहते हैं. ऐसे में बच्चों में संवेदना व समझने की भावना भी नहीं पनपती.’’

आज का आधुनिक खानपान और परिधानशृंगार को देख वे कैसा अनुभव करती हैं? इस पर वे कहती हैं, ‘‘खानपान पहले ज्यादा अच्छा था मौसम व मिजाज के अनुसार. अब तो जंक व बाजारू खानपान बढ़ गया है. ठंडागरम इकट्ठा खाया जाता है. पोषण के बजाय स्वाद पर ज्यादा जोर है. फैशन और दिखावा बढ़ रहा है. बौडी प्रदर्शन हो रहा है भले ही बौडी दिखाने योग्य न हो. हमारे समय में व्यायाम, घुमाईफिराई की वजह से लोगों के शरीर ज्यादा स्वस्थ रहते थे. मनोरोग भी कम थे. अब पैसा तो बढ़ा है पर खुशी कम दिखती है.’’

आप परंपराओं को कितना मानती हैं? इस पर वे बताती हैं, ‘‘जितना जरूरी हो और जो आसानी से निभ जाए. बेटियों की शादी हम ने ऐसी जगह नहीं की जहां परंपराओं के नाम पर लड़की वालों का शोषण हो. वे बलि के बकरे बनाए जाएं. न ही हम ने ये परंपराएं मानीं कि बेटी के घर पानी न पियो, उन के घर खाओ मत. हम तो उन के वहां खातेपीते और रहते हैं. मैं सब बेटियों के पास जाती रहती हूं.

‘‘फालतू ढकोसलों में मेरा विश्वास नहीं. दूसरों के लिए कुछ कर सकूं, तो उस में मुझे जीवन की सार्थकता लगती है. मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूं. अभी भी फोन पर बात, कभीकभी बाहर जाना व घर के काम भी करती हूं. समय बरबाद करना मुझे आज भी पसंद नहीं.’’

लज्जा गोयल मूलतया उत्तर प्रदेश की हैं. अब वे दिल्ली में रहती हैं. ये हर स्थिति से जूझनेनिबटने का माद्दा रखती हैं. इन के पति का मसूरी में मर्डर हो गया था. वे पत्रकार थे. इन्होंने हत्यारे की तफतीश की पूरी कोशिश की. पुलिस, कानून, परिचित आदि सब से संपर्क रखा. ये निसंतान थीं, सो, एक बच्चा गोद लिया. लोग ऐसे बच्चों से सच छिपाते हैं पर इन्होंने तो गोद लेने के बाद कुबूल किया. उसे पढ़ानेलिखाने की कोशिश की. वह ज्यादा पढ़लिख न पाया तो उसे हुनर की ओर प्रेरित किया. इन्होंने बेटे को अपनी पसंद से शादी करने की छूट दे रखी है.

बस, प्यार करो, तो निभाओ, यही इन की अपेक्षा है. इन्होंने कई लड़कियों को बेटी का प्यार दिया. ससुराल वालों ने इन्हें संपत्ति से बेदखल किया तो व्यर्थ कानूनी पचड़ों में पड़ने के बजाय इन्होंने अपने हुनर व आत्मसम्मान पर ध्यान दिया.

चिकित्सा पद्धति पर इन्हें विश्वास है. कमरदर्द की इन्हें शिकायत रहती थी, सो, कमरदर्द का कई जगह से परामर्श कर के इन्होंने औपरेशन कराया. देशीघरेलू दवाओं के फेर में उसे बढ़ने या बिगड़ने न दिया. इन के घर में पति की पुस्तकों का कलैक्शन है. ये पढ़ने के शौकीनों को पुस्तकें पढ़ने व ले जाने देने में सार्थकता समझती हैं. स्वयं भी पढ़ती रहती हैं.

इन्हें नईनई बातें जाननेसमझने का शौक है. प्रसिद्ध जगहों पर भ्रमण करना तथा व्यायाम करने में इन्हें रुचि है. व्यंजन चाव से बनातीं व खिलाती हैं. बिजली, पानी और बैंक जैसे तमाम जरूरतमंद विभागों में आजा कर अपने काम करा लेती हैं.

बात व मुद्दों की तह तक पहुंचने की इन की क्षमता के कारण कोई समस्या इन के सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाती. ये धार्मिक ढकोसलों और कर्मकांडों में विश्वास नहीं रखतीं. पति की बौद्धिकता के कारण इन्होंने राजनीति व लेखन, पठनपाठन में रुचि ली. स्वयं एमए तक पढ़ाई की. संपादन कार्य में पति का सहयोग किया.

ये पढ़ीलिखी बहू चाहती हैं, ताकि आगे की पीढ़ी भी पढ़ीलिखी बने. परदे या दिखावे में इन का विश्वास नहीं. बहू जो चाहे करे, नौकरी करे तो अच्छा है. नौकरी करने से खाली टाइम नहीं रहेगा व दोनों अपना घर ठीक चला सकेंगे. सेवा के लिए बेटेबहू या औलाद होती है, ये ऐसा नहीं मानतीं.

इन्हें रिऐलिटी शो या शोशा बनाने वाली न्यूज अथवा तमाशबीन सीरियलों पर विचारविमर्श करने की आदत है. ये प्रसारण पर कुछ नीति चाहती हैं. घरघर में इस तरह का सांस्कृतिक आक्रमण पसंद नहीं करतीं.

आधुनिकता को खास उम्र से जोड़ना उस के साथ अन्याय करना है. उसे बाहरी रूप में ही माननासमझना एकांगी रूप को देखना है. उसे होहुल्लड़ या पार्टीबाजी में ही जाननाबूझना अपने ही चश्मे से उसे देखना है. आधुनिकता जेहनी और वैचारिक है, जहां मिल जाए वहीं और उसी रूप में स्वागतयोग्य है.

आधुनिक होने से जीवन सहज हो जाता है. व्यक्ति तकनीक व माहौलफ्रैंडली हो कर बेहतर जीवन की ओर बढ़ता है. लोगों को समझनेबूझने, जाननेसमझने की औटोमैटिक क्षमता उस का सब जगह अनुकूलन करती है, घरदफ्तर, बाहरभीतर सब जगह.

दरअसल, ऐसा तथाकथित आधुनिक तो हम में से कोई नहीं होना चाहेगा जो बाहर तो आधुनिक दिखे पर दकियानूस रहे. आधुनिकता को सही रूप में जाननेसमझने के बाद तो उस का मजा ही कुछ और है. जीवन बहती धार है. हम न हों, तो भी हमारे आसपास लोग व माहौल आधुनिक होते ही हैं.

Crime Story: कातिल बहन की आशिकी

इस साल गणतंत्र दिवस की बात है. अन्य शहरों की तरह इस मौके पर उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में भी स्कूल, कालेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान व मुख्य चौराहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था. शहर का ही सराय एसर निवासी श्याम सिंह यादव भी अपने स्कूल में मौजूद था
और बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम को तन्मयता से देख रहा था. श्याम सिंह यादव एक प्राइवेट स्कूल में वैन चालक था. वैन द्वारा सुबह के समय बच्चों को स्कूल लाना फिर छुट्टी होने के बाद उन्हें उन के घर छोड़ना उस का रोजाना का काम था.
स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद श्याम सिंह ने स्कूल के बच्चों को घर छोड़ा, फिर वैन को स्कूल में खड़ा कर के वह दोपहर बाद अपने घर पहुंचा. घर में उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे बड़ी बेटी पूजा तो दिखाई पड़ी, लेकिन छोटी बेटी दीपांशु उर्फ रचना दिखाई नहीं दी. रचना को घर में न देख कर श्याम सिंह ने पूजा से पूछा, ‘‘पूजा, रचना घर में नहीं दिख रही है. कहीं गई है क्या?’’
‘‘पापा, रचना कुछ देर पहले स्कूल से आई थी, फिर सहेली के घर चली गई. थोड़ी देर में आ जाएगी.’’ पूजा ने बताया.

श्याम सिंह ने बेटी की बात पर यकीन कर लिया और चारपाई पर जा कर लेट गया. लगभग एक घंटे बाद उस की नींद टूटी तो उसे फिर बेटी की याद आ गई. उस ने पूजा से पूछा, ‘‘बेटा, रचना आ गई क्या?’’
‘‘नहीं पापा, अभी तक नहीं आई.’’ पूजा ने जवाब दिया.
‘‘कहां चली गई जो अभी नहीं आई.’’ श्याम सिंह ने चिंता जताते हुए कहा.
इस के बाद वह घर से निकला और पासपड़ोस के घरों में रचना के बारे में पूछा. लेकिन रचना का पता नहीं चला. फिर उस ने रचना के साथ पढ़ने वाली लड़कियों से उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि रचना आज स्कूल गई ही नहीं थी.

श्याम सिंह का माथा ठनका. क्योंकि पूजा कह रही थी कि रचना स्कूल से वापस आई थी. श्याम सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगीं. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी अपने बेटे विवेक के साथ कहीं रिश्तेदारी में गई हुई थी. श्याम सिंह ने रचना के गुम होने की जानकारी पत्नी को दी और तुरंत घर वापस आने को कहा.
शाम होतेहोते 17 वर्षीय दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. कई हमदर्द लोग श्याम सिंह के साथ रचना की खोज में जुट गए. जब कोई जवान लड़की घर से गायब हो जाती है तो तमाम लोग तरहतरह की कानाफूसी करने लगते हैं. श्याम सिंह के पड़ोस की महिलाएं भी कानाफूसी करने लगीं.

श्याम सिंह ने लोगों के साथ तमाम संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. इटावा के रेलवे स्टेशन, रोडवेज व प्राइवेट बसअड्डे पर भी रचना को ढूंढा गया. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लगा.
जब रचना का कुछ भी पता नहीं चला, तब श्याम सिंह थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस ने वहां मौजूद ड्यूटी अफसर आर.पी. सिंह को अपनी बेटी दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की जानकारी दी. थानाप्रभारी ने दीपांशु उर्फ रचना की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने इटावा जिले के सभी थानों में रचना के गुम होने की सूचना हुलिया तथा उम्र के साथ प्रसारित करा दी.

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बड़ी बेटी पर हुआ शक

रात 10 बजे तक श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी बेटे के साथ अपने घर पहुंच गई. पतिपत्नी ने सिर से सिर जोड़ कर परामर्श किया तो उन्हें बड़ी बेटी पूजा पर शक हुआ. उन्हें लग रहा था कि रचना के गुम होने का रहस्य पूजा के पेट में छिपा है. इसलिए श्याम सिंह ने पूजा से बड़े प्यार से रचना के बारे में पूछा.
लेकिन जब पूजा ने कुछ नहीं बताया तो श्याम सिंह ने उस की पिटाई की. इस के बाद भी पूजा ने अपनी जुबान नहीं खोली. रात भर श्याम सिंह व सर्वेश कुमारी परेशान होते रहे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रचना कहां गुम हो गई.

अगले दिन 27 जनवरी की सुबह गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ गए तो उन्होंने तालाब के किनारे पानी में एक बोरी पड़ी देखी. बोरी को कुत्ते पानी से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. बोरी को देखने से लग रहा था कि उस में किसी की लाश है.

यह तालाब श्याम सिंह के घर के पिछवाड़े था, इसलिए बहुत जल्द उसे भी तालाब में संदिग्ध बोरी पड़ी होने की जानकारी मिल गई. खबर पाते ही वह तालाब किनारे पहुंच गया. उस ने बोरी पर एक नजर डाली फिर तमाम आशंकाओं के बीच बदहवास हालत में थाना सिविल लाइंस पहुंचा. थानाप्रभारी जे.के. शर्मा को उस ने तालाब किनारे मुंह बंद बोरी पड़ी होने की सूचना दी और आशंका जताई कि उस में कोई लाश हो सकती है.

सूचना मिलने पर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा पुलिस टीम के साथ सराय एसर गांव के उस तालाब के किनारे पहुंचे, जहां संदिग्ध बोरी पड़ी थी. उन्होंने 2 सिपाहियों की मदद से बोरी को तालाब से बाहर निकलवाया. बोरी का मुंह खुलवा कर देखा गया तो उस में एक लड़की की लाश निकली.

लाश बोरी से निकाली गई तो उसे देखते ही श्याम सिंह फफक कर रो पड़ा. लाश उस की 17 वर्षीय बेटी दीपांशी उर्फ रचना की थी. रचना की लाश मिलने की खबर पाते ही उस की मां सर्वेश कुमारी रोतीबिलखती तालाब किनारे पहुंच गई.

इधर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने रचना की लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर में एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी तथा एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पिता श्याम सिंह से इस बारे में पूछताछ की.

श्याम सिंह ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि रचना की हत्या का राज उन की बड़ी बेटी पूजा के पेट में छिपा है जो इस समय घर में मौजूद है. अगर उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

अपनी ही बेटी पर छोटी बेटी की हत्या का आरोप लगाने की बात सुन कर एसएसपी त्रिपाठी भी चौंके. उन्होंने पूछा, ‘‘बड़ी बहन अपनी छोटी बहन की हत्या आखिर क्यों कराएगी?’


‘‘साहब, मेरी बड़ी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं. हो सकता है इस हत्या में पड़ोस का अनिल और उस का दोस्त अवध पाल भी शामिल रहे हों.’’ श्याम सिंह ने बताया.

श्याम सिंह की बातों से एसएसपी को मामला प्रेम प्रसंग का लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि वह डेडबौडी को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आरोपियों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ करें. इस के बाद थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद रचना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

फिर उन्होंने महिला पुलिस के सहयोग से मृतका की बड़ी बहन पूजा यादव को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा आरोपी अनिल व उस के दोस्त अवध पाल को भी सरैया चुंगी के पास से पकड़ लिया गया.

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थाने में एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की मौजूदगी में पुलिस ने सब से पहले श्याम सिंह की बड़ी बेटी पूजा यादव से पूछजाछ शुरू की. शुरू में तो पूजा अपनी बहन की हत्या से इनकार करती रही लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि छोटी बहन रचना से उस का झगड़ा हुआ था. झगडे़ के बाद उस ने कमरा बंद कर फांसी लगा ली थी. इस से वह बुरी तरह डर गई. इसलिए शव को उस ने बोरी में भरा और साइकिल पर लाद कर घर से थोड़ी दूर स्थित तालाब में फेंक आई.

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.
श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.
पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.
‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.
‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’
मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी. घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.
पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’
उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.
पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.
पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.
पूजा और अवध पाल के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूनासूना लगने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में साथ बैठ कर अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. इसी प्यार के चलते दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिले तो फिर तन मिलने में भी देर नहीं लगी.
पूजा और अवध पाल ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का पता किसी को न चले. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पूजा की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना ने पूजा और अवध पाल को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. रास्ते में तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन घर आ कर उस ने पापा और मम्मी के कान भर दिए.
कुछ देर बाद पूजा कालेज से घर आई तो मांबाप की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं. श्याम सिंह ने गुस्से में उस से पूछा, ‘‘रास्ते में किस के साथ हंसीठिठोली कर रही थी? कौन है वह, जो हमारी इज्जत को नीलाम करना चाहता है? सचसच बता वरना…’’

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पिता का गुस्सा देख कर पूजा सहम गई. वह जान गई कि उस के प्यार का भांडा फूट गया है, इसलिए झूठ बोलने से कुछ नहीं होगा. अत: वह सिर झुका कर बोली, ‘‘पापा, वह लड़का है अवध पाल. सरैया चुंगी में रहता है. वह अपने बड़े भाई वीरपाल के साथ डेयरी चलाता है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’
पूजा की बात सुनते ही श्याम सिंह का गुस्सा सीमा लांघ गया. उस ने पूजा की जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी कि आइंदा वह अवध पाल से न मिले. पूजा की मां सर्वेश कुमारी ने भी उसे खूब समझाया. पूजा पर लगाम कसने के लिए सर्वेश ने उस का कालेज जाना बंद करा दिया, साथ ही उस पर निगरानी भी रखने लगी. पूजा पर निगाह रखने के लिए श्याम सिंह और उस की पत्नी ने छोटी बेटी रचना को भी लगा दिया. पूजा जब भी कालेज जाने की बात कहती तो रचना उस के साथ होती और उस की हर गतिविधि पर नजर रखती.
पाबंदी लगी तो पूजा व अवध पाल का मिलनाजुलना बंद हो गया. इस से दोनों परेशान रहने लगे. अवध पाल ने अपनी परेशानी अपने दोस्त अनिल को बताई और इस मामले में मदद मांगी. अनिल रचना का नातेदार था और पास में ही रहता था. वह दोनों के प्यार से वाकिफ था, सो मदद करने को राजी हो गया.
इस के बाद अवध पाल ने अनिल को एक मोबाइल फोन दे कर कहा, ‘‘दोस्त, तुम पूजा के पड़ोसी हो. पूजा तुम्हारे परिवार की है. तुम उस के घर वालों पर नजर रखो और जब भी पूजा घर में अकेली हो तो उसे फोन दे कर मेरी बात करा दिया करना.’’
इस के बाद अनिल पूजा और अवध पाल के प्यार का राजदार बन गया. पूजा जब भी घर में अकेली होती तो अनिल उसे मोबाइल दे कर अवध पाल से बात करा देता. प्यार भरी बातें करने के बाद पूजा अनिल को मोबाइल वापस कर देती. कभीकभी पूजा बहाना कर के अनिल के घर चली जाती और मोबाइल से देर तक प्रेमी अवध पाल से बतिया कर वापस आ जाती.

परंतु पूजा और अवध पाल का मोबाइल पर बतियाना ज्यादा समय तक राज न रह सका. एक रोज रचना ने पूजा को बतियाते सुन लिया. यही नहीं, उस ने अनिल को मोबाइल वापस करते भी देख लिया. इस की जानकारी उस ने मांबाप को दी तो पूजा की पिटाई हुई.
इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. रचना जब भी पूजा को बतियाते हुए देख लेती तो मांबाप को बता देती. फिर उस की पिटाई होती. पूजा अब रचना को अपने प्यार का दुश्मन समझने लगी थी. वह प्रतिशोध की आग में जल रही थी.
24 जनवरी, 2019 को श्याम सिंह की पत्नी बेटे विवेक के साथ किसी काम से चरुआभानी, मैनपुरी रिश्तेदारी में चली गई. इस की जानकारी अनिल को हुई तो वह पूजा और अवध पाल का मिलाप कराने का प्रयास करने लगा, लेकिन रचना की कड़ी निगरानी की वजह से वह मिलाप न करा सका.
गुस्सा बना रचना की मौत की वजह

26 जनवरी, 2019 को गणतंत्र दिवस था. लगभग साढ़े 7 बजे श्याम सिंह यादव अपनी ड्यूटी चला गया. श्याम सिंह के जाने के बाद अनिल पूजा के घर पहुंच गया और उसे मोबाइल दे गया. कुछ देर बाद रचना भी किसी काम से पड़ोसी के घर चली गई. इसी बीच पूजा को मौका मिल गया और वह मोबाइल पर प्रेमी अवध पाल से बतियाने लगी.
पूजा, प्रेमी से रसभरी बातें कर ही रही थी कि रचना आ गई. उस ने मोबाइल पर बहन द्वारा बात करने का विरोध किया और धमकी देते हुए कहा कि आने दो पापा को तुम्हारे प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम रचना नहीं.
रचना की धमकी से पूजा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और दोनों में कहासुनी होने लगी. इसी कहासुनी के बीच रचना ने पूजा के हाथ से मोबाइल छीन कर जमीन पर पटक दिया, जिस से वह टूट गया. इस के अलावा उस ने ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग किया, जिस से पूजा का गुस्सा और बढ़ गया. वह नफरत की आग में जल उठी.
पूजा ने लपक कर रचना के गले में पड़ा स्कार्फ दोनों हाथों से पकड़ा और पूरी ताकत से उसे खींचने लगी. नफरत की आग में जल रही पूजा भूल गई कि जिस का वह गला कस रही है, वह उस की छोटी बहन है. पूजा के हाथ तभी ढीले हुए जब रचना की आंखें फट गईं और वह जमीन पर गिर पड़ी.
पूजा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की छोटी बहन की सांसें थम गई हैं. वह उसे हिलानेडुलाने लगी. नाम ले कर पुकारने लगी, ‘‘उठो रचना, उठो. मुझे माफ कर दो.’’
लेकिन रचना कैसे उठती. उस की तो दम घुटने से मौत हो चुकी थी. पूजा कुछ देर तक लाश के पास बैठी पछताती रही. फिर पकड़े जाने के डर से वह घबरा गई. पुलिस से बचने के लिए उस ने गले में लिपटा स्कार्फ निकाला और बक्से में छिपा दिया. फिर रचना के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और बोरी का मुंह बंद कर दिया.

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घर के पिछवाड़े कुछ ही कदम की दूरी पर तालाब था. घर के कमरे का एक दरवाजा इसी तालाब की ओर खुलता था. पूजा ने दरवाजा खोला, आवाजाही की टोह ली और फिर शव को साइकिल पर लाद कर तालाब किनारे फेंक दिया. फिर दरवाजा बंद कर साइकिल जहां की तहां खड़ी कर दी. टूटे मोबाइल को उस ने कबाड़ में फेंक दिया और घर साफसुथरा कर दिया.
दोपहर बाद जब श्याम सिंह घर आया तो उसे रचना नहीं दिखी. तब उस ने पूजा से पूछा. पूजा ने उसे गुमराह कर दिया. श्याम सिंह देर रात तक रचना की खोज में जुटा रहा. जब वह नहीं मिली तब वह वह थाना सिविल लाइंस चला गया और पुलिस जांच के बाद प्यार में बाधक बनी छोटी बहन की बड़ी बहन द्वारा हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना सामने आई.
पूजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 28 जनवरी, 2019 को उसे इटावा की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. अनिल व अवध पाल के खिलाफ पुलिस को कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिस से उन्हें छोड़ दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंतजार- भाग 1: क्यों सोमा ने अकेलापन का सहारा लिया?

सुबह के 6 बजे थे. रोज की तरह सोमा की आंखें खुल गई थीं.  अपनी बगल में अस्तव्यस्त हौल में लेटे महेंद्र को देख वह शरमा उठी थी. वह उठने के लिए कसमसाई, तो महेंद्र ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था.

‘‘उठने भी दो, काम पर जाने में देर  हो जाएगी.’’

‘‘आज काम से छुट्टी, हम लोग आज अपना हनीमून मनाएंगे.’’

‘‘वाहवाह, क्या कहने?’’

पुरानी कड़वी बातें याद कर के वह गंभीर हो उठी, बोली, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ कि अपुन लोगों को शहर की इस कालोनी में मकान मिल गया है. यहां किसी को किसी की जाति से मतलब नहीं है.’’

‘‘सही कह रही हो. जाने कब समाज से ऊंचनीच का भेदभाव समाप्त होगा? लोगों को क्यों नहीं सम?ा में आता कि सभी इंसान एकसमान हैं.’’ महेंद्र बोला था.

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन अब उठने भी दो.’’

‘‘आज हमारे नए जीवन का पहलापहला दिन है. यह क्षण फिर से तो लौट कर नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारी बांहों में बांहें डाल कर मस्ती करूंगा. इस पल के लिए तुम ने मु?ो बहुत लंबा इंतजार करवाया है. आज ‘जग्गा जासूस’ पिक्चर देखेंगे. बलदेव की चाट खाएंगे. राजाराम की शिकंजी पिएंगे. तुम जहां कहोगी वहां जाऊंगा, जो कहोगी वह करूंगा. आज मैं बहुतबहुत खुश हूं.’’

‘‘ओह हो, केवल बातों से पेट नहीं भरने वाला है. पहले जाओ, दूध और डबल रोटी ले कर आओ.’’

‘‘मेरी रानी, दूध के साथसाथ, आज तो जलेबी और कचौड़ी भी ले कर आऊंगा.’’ यह कह कर वह सामान लेने चला गया.

वह उठ कर रोज की तरह ?ाड़ूबुहारू और बरतन आदि काम निबटाने लगी थी. लेकिन आज उस की आंखों के सामने बीते हुए दिन नाच उठे थे. अभी वह 25 वर्ष की होगी, परंतु अपनी इन आंखों से कितना कुछ देख लिया था.

अम्मा स्कूल में आया थीं. इसलिए उसे मन ही मन टीचर बनाने का सपना देखती रहती थीं. बाबू राजगीरी का काम करते थे. उन्हें पैसा अच्छा मिलता था. लेकिन पीने के शौक के कारण सब बरबाद कर लेते थे. वे 2 दिन काम पर जाते, तीसरे दिन घर पर छुट्टी मनाते. अपनी मित्रमंडली के साथ बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते और लंबीलंबी बातें करते.

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अम्मा जब भी कुछ बोलती तो गालीगलौज और मारपीट की नौबत  आ जाती.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में संभलपुर से थोड़ी दूर एक बस्ती थी जिसे आज की भाषा में चाल कह सकते हैं. लगभग

10-12 घर थे. सब की आपस में रिश्तेदारी थी. बच्चे आपस में किसी के भी घर में खापी लेते और सड़क पर खेल लेते. कोई काका था, कोई दादी तो कोई दीदी. आपस में लड़ाई भी जम कर होती, लेकिन फिर दोस्ती भी हो जाती थी.

वह छुटपन से ही स्कूल जाने से कतराती थी. वह लड़कों के संग गिल्लीडंडा और क्रिकेट खेलती. कभीकभी लंगड़ीटांग भी खेला करती थी.

अम्मा स्कूल से लौट कर आती तो सड़क पर उसे देखते ही चिल्लाती, ‘काहे लली, स्कूल जाने के समय तो तुम्हें बुखार चढ़ा था, अब सब बुखार हवा हो गया. बरतन मांजने को पड़े हैं. चल मेरे लिए चाय बना.

वह जोर से बोलती, ‘आई अम्मा.’ लेकिन अपने खेल में मगन रहती जब तक अम्मा पकड़ कर उसे घर के अंदर न ले जाती. वे उस का कान खींच कर कहतीं, ‘अरी कमबख्त, कभी तो किताब खोल लिया कर.’

अम्मा की डांट का उस पर कुछ असर न होता. इसी तरह खेलतेकूदते वह बड़ी हो रही थी. लेकिन हर साल पास होती हुई वह बीए में पहुंच गई थी. कालेज घर से दूर था, इसलिए बाबू ने उसे साइकिल दिलवा दी थी.

बचपन से ही उसे सजनेसंवरने का बहुत शौक था. अब तो वह जवान हो चुकी थी, इसलिए बनसंवर कर अपनी साइकिल पर हवा से बातें करती हुई कालेज जाती.

वहां उस की मुलाकात नरेन सिंह से हुई. वह उस की सुंदरता पर मरमिटा था. कैफेटेरिया की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उस की बाइक पर बैठ कर वह अपने को महारानी से कम न सम?ाती. 19-20 साल की कच्ची उम्र और इश्क का भूत. पूरे कालेज में उन के इश्क के चर्चे सब की जबान पर चढ़ गए थे. वह उस के संग कभी कंपनीबाग तो कभी मौल तो कभी कालेज के कोने में बैठ कर भविष्य के सपने बुनती.

एक दिन वे दोनों एकदूसरे को गलबहियां डाले हुए पिक्चरहौल से निकल रहे थे, तभी नरेन के चाचा बलवीर सिंह ने उन दोनों को देख लिया था. फिर तो उस दिन घर पर नरेन की शामत आ गई थी.

सोमा की जातिबिरादरी पता करते ही नरेन को उस से हमेशा के लिए दूर रहने की सख्त हिदायत मिल गई थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश जाटबहुल क्षेत्र है. वहां की खाप पंचायतें अपने फैसलों के लिए कुख्यात हैं. जाट लड़का किसी वाल्मीकि समाज की लड़की से प्यार की पेंग बढ़ाए, यह बात उन्हें कतई बरदाश्त नहीं थी.

वे लोग 15-20 गुडों को ले कर लाठीडंडे लहराते हुए आए. और शुरू कर दी गालीगलौज व तोड़फोड़.

वे लोग बाबू को मारने लगे, तो वह अंदर से दौड़ती हुई आई और चीखनेचिल्लाने लगी थी. एक गुंडा उस को देखते ही बोला, ऐसी खूबसूरत मेनका को देख नरेन का कौन कहे, किसी का भी मन मचल उठे.’

बाबू ने उसे धकेल कर अंदर जाने को कह दिया था. पासपड़ोस के लोगों ने किसी तरह उन लोगों को शांत करवाया, नहीं तो निश्चित ही उस दिन खूनखराबा होता.

पंचायत बैठी और फैसला दिया कि महीनेभर के अंदर सोमा की शादी कर दी जाए और 10 हजार रुपए जुर्माना.

उस का कालेज जाना बंद हो गया और आननफानन उस की शादी फजलपुर गांव के सूरज के साथ, जो कि स्कूल में मास्टर था, तय कर दी गई.

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उस के पास अपना पक्का मकान था. थोड़ी सी जमीन थी, जिस में सब्जी पैदा होती थी. अम्माबाबू ने खुशीखुशी यहांवहां से कर्ज ले कर उस की शादी कर दी.

बाइक, फ्रिज, टीवी, कपड़ेलत्ते, बरतनभांडे, दहेज में जाने क्याक्या दिया. आंखों में आंसू ले कर वह सूरज के साथ शादी के बंधन में बंध गई थी.

ससुराल का कच्चा खपरैल वाला घर देख उस के सपनों पर पानी फिर गया था. 10-15 दिन तक सूरज उस के इर्दगिर्द घूमता रहा था. वह दिनभर मोबाइल में वीडियो देखता रहता था. आसपास की औरतों से भौजीभौजी कह कर हंसीठिठोली करता या फिर आलसियों की तरह पड़ा सोता रहता.

रोज रात में दारू चढ़ा कर उस के पास आता. नशा करते देख उसे अपने बाबू याद आते. एक दिन उस ने उस से काम पर जाने को कहा. तो, नशे में उस के मुंह से सच फूट पड़ा. न तो वह बीए पास है और न ही सरकारी स्कूल में मास्टर है. यह सब तो शादी के लिए ?ाठ बोला गया था. वह रो पड़ी थी. फिर उस ने सूरज को सुधारने का प्रयास किया था. वह उसे सम?ाती, तो वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता.

आलसी तो वह हद दर्जे का था. पानमसाला हर समय उस के मुंह में भरा ही रहता.

जुआ खेलना, शराब पीना उस के शौक थे. यहांवहां हाथ मार कर चोरी करता और जुआ खेलता.

उस का भाई भी रात में दारू पी कर आता और गालीगलौज करता.

कुछ पैसे अम्मा ने दिए थे. कुछ उस के अपने थे. वह अपने बक्से में रखे हुए थी. सूरज उन पैसों को चुरा कर ले गया था. एक दिन उस ने अपनी पायल उतार कर साफ करने के लिए रखी थी. वह उस को यहांवहां घंटों ढूंढ़ती रही थी. लेकिन जब पायल हो, तब तो मिले. वह तो उस के जुए की भेंट चढ़ गई थी. यहां तक कि वह उस की शादी की सलमासितारे जड़ी हुई साड़ी ले गया और जुए में हार गया.

अस्तव्यस्त बक्से की हालत देख वह साड़ी के गायब होने के बारे में जान चुकी थी. वह खूब रोई. जा कर अम्माजी से कहा, तो वे बोली थीं, ‘साड़ी ही तो ले गया, तु?ो तो नहीं ले गया. मैं उसे डांट लगाऊंगी.’

उस की शादी को अभी साल भी नहीं पूरा हुआ था, लेकिन उस ने मन ही मन सूरज को छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया था. वह नशे में कई बार उस की पिटाई भी कर के उस के अहं को भी चोट पहुंचा चुका था.

वह बहुत दुखी थी, साथ ही, क्रोधित भी थी. सूरज नशा कर के देररात आया. आज कुछ ज्यादा ही नशे में था. बदबू के भभके से उस का जी मिचला उठा था. फिर उस के शरीर को अपनी संपत्ति सम?ाते हुए अपने पास उसे खींचने लगा. पहले तो उस ने धीरेधीरे मना किया, पर वह जब नहीं माना, तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया. वह संभल नहीं पाया और जमीन पर गिर गया. कोने में रखे संदूक का कोना उस के माथे पर चुभ गया और खून का फौआरा निकल पड़ा.

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फिर तो उस दिन आधीरात को जो हंगामा हुआ कि पौ फटते ही उसे उस के घर के लिए बस में बैठा कर भेज दिया गया.

बाबूअम्मा ने उसे देख अपना सिर पीट लिया था. अम्मा बारबार उसे ससुराल भेजने का जतन करती, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रही.

उसे अब किसी काम की तलाश थी क्योंकि अब वह अम्मा पर बो?ा बन कर घर में नहीं बैठना चाहती थी.

सब उसे सम?ाते, आदमी ने पिटाई की तो क्या हुआ? तुम ने क्यों उस पर हाथ उठाया आदि.

अम्मा ने अमिता बहनजी से उस की नौकरी के लिए कहा तो उन्होंने उसे अपने कारखाने में नौकरी पर रख लिया. अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. वहां शर्ट सिली जाती थी. उसे बटन लगा कर तह करना होता था. इस काम में कई औरतेंआदमी लगे हुए थे.

जीने की राह- भाग 5: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Writer- संध्या 

भैया के फोन का जिक्र सुन कर सोनू मुझ से मेरे परिवार के बारे में पूछने लगी. मैं ने बताया कि अब मांपापा तो हैं नहीं, हम 2 भाई ही हैं. बड़े भैया दिल्ली में हैं. उन का एक बेटा सुमन है. पिछले साल भाभी का देहांत हो गया है. हम दोनों भाइयों में बहुत प्रेम है. सोनू ने कहा, ‘‘बड़े भैया और भतीजा, आप के इतने दुखद समय में आप के पास क्यों नहीं आए?’’ ‘‘दोनों ही आना चाहते थे किंतु बड़े भैया बीमार चल रहे थे, सो मैं ने ही दोनों को आने से मना कर दिया था. वे लोग मुझे अपने पास बुला रहे थे किंतु मैं नहीं गया क्योंकि मुझे दुखी देख कर दोनों बहुत दुखी होते, नीता और रिया पर दोनों जान छिड़कते थे. ‘‘नीता बड़े भैया का पिता समान मान रखती थी. जो बातें भैया को नापसंद हैं वह मजाल है कि कोई कर सके, नीता सख्ती से इस बात की निगरानी रखती थी.

‘‘सुमन और रिया का आपसी प्यार देख लोग उन्हें सगे भाईबहन ही समझ बैठते थे. दोनों के मध्य ढाई साल का ही फर्क था किंतु सुमन अपनी बहन का बहुत खयाल रखता था.’’ नियत समय पर बड़े भैया एवं सुमन आ गए. नीता और रिया के जाने के बाद हमारी पहली मुलाकात थी. वे दोनों मुझ से लिपट कर रोए जा रहे थे. मेरा भी वही हाल था. हम तीनों कुछ भी बोल पाने में असमर्थ थे, आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मैं ने ही पहल करते हुए कहा कि हम लोगों को स्वयं को हर हाल में संभालना होगा. हम तीनों एकदूसरे की हिम्मत बनेंगे एवं विलाप कर एकदूसरे को कमजोर नहीं बनाएंगे. दोनों ने ही सहमति जताते हुए कस कर मुझे जकड़ लिया. भैया सोनू से जल्दी ही मिलना चाहते थे, सो मैं ने सोनू को फोन कर दिया, ‘‘सोनू, शाम को मेरे घर पर चली आना, हो सके तो साड़ी पहन कर आना.’’

सोनू ने कहा, ‘‘मनजी, मैं समय पर पहुंच जाऊंगी.’’

मैं ने फोन काटने से पहले कहा, ‘‘सोनू, डिनर हम साथ ही करेंगे, मेरे घर पर.’’

उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मनजी, पर एक शर्त है, आज आप मेरे हाथ से बने गोभी के परांठे और प्याज का रायता खाएंगे. हां, बनाने में थोड़ी मदद कर दीजिएगा. अरे हां, गोभी है न घर में?’’

‘‘हांहां, गोभी है, प्याज और दही भी है, चलो यही तय रहा,’’ मैं ने सहमति प्रकट करते हुए कहा.

सोनू शाम 7 बजे आ गई. उस ने गुलाबी रंग की साड़ी बड़े सलीके से बांधी हुई थी. मैं ने उस का परिचय बड़े भैया और सुमन से करवाया. मेरे घर पर 2 अजनबियों को देख वह थोड़ा असहज हुई, किंतु उस ने जल्दी ही स्वयं को संभाल लिया तथा बड़ी शिष्टता से दोनों से मिली. वह भी हमारे साथ ड्राइंगरूम में बैठ गई. बड़े भैया ने कहा, ‘‘सुमन बेटा, दिल्ली वाली मिठाइयां एवं नमकीन ले आओ. सोनू बेटा को भी टेस्ट करवाओ.’’ सुमन तुरंत मिठाइयां एवं नमकीन ले आया. मैं दोनों के व्यवहार से बहुत राहत महसूस कर रहा था, क्योंकि दोनों के व्यवहार से साफतौर पर  परिलक्षित था कि दोनों को ही सोनू पसंद आ रही है. इतने में ही उत्तम एवं भाभीजी भी आ पहुंचे. मैं ने ही दोनों को आने के लिए कह दिया था. सोनू को देख भाभीजी बोल पड़ीं, ‘‘साड़ी में कितनी प्यारी लग रही है, मुझे तो एकदम…’’ मेरी तरफ देख उन्होंने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया.

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खाना भाभी एवं सोनू ने मिल कर बनाया, बेहद स्वादिष्ठ था. हमारे साथ बड़े भैया एवं सुमन ने बड़ी रुचि से खाना खाया. बड़े भैया बारबार कहते, ‘‘सही बात है, औरतों के हाथों में जादू होता है, कितने कम समय में इन दोनों ने इतना स्वादिष्ठ खाना तैयार कर दिया.’’ सुमन भी बोला, ‘‘सही बात है छोटे पापा, वहां पर वह कुक खाना बनाता है, इस स्वाद का कहां मुकाबला. बस, पेट भरना होता है, सो खा लेते हैं.’’

सुमन ने एक चम्मच रायता मुंह में डालते हुए स्वादिष्ठ रायते के लिए भाभीजी को थैंक्स कहा.

भाभीजी बोलीं, ‘‘सुमन पुत्तर, यह स्वादिष्ठ रायता सोनू ने बनाया है, उसे ही थैंक्स दें.’’

सुमन ने सोनू को थैंक्स कहा तथा उस ने भी मुसकराते हुए ‘इट्स माई प्लेजर’ कहा.

मैं ने सुबह 7 बजे के लगभग सोनू को फोन कर पूछा, ‘‘तुम फ्री हो तो मैं इसी वक्त तुम से मिलना चाहता हूं?’’

सोनू ने कहा, ‘‘आप तुरंत आ जाइए, दूसरी बातों के बीच कल तो आप से कुछ बात ही न हो सकी.’’

मैं जब पहुंचा, वह 2 प्याली चाय और स्नैक्स के साथ मेरा इंतजार कर रही थी.

मैं ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘सुमन और बड़े भैया तुम्हें कैसे लगे?’’

उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘अच्छे हैं, दोनों ही बहुत अच्छे हैं. उन के व्यवहार में बहुत अपनापन है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘और सुमन?’’

उस ने सहजता से कहा, ‘‘बहुत अच्छा लड़का है, एकदम आप के साथ बेटे जैसा व्यवहार करता है. अच्छा स्मार्ट एवं हैंडसम है, अच्छी पढ़ाई की है उस ने और अच्छी नौकरी भी करता है, किंतु अभी तो हम अपनी बातें करें, कल रात भी हम कुछ भी बात न कर सके.’’

‘‘तुम ने ठीक कहा सोनू, मैं अभी तुम से अपने दिल की ही बात करने आया हूं,’’ मैं ने कहा.

सोनू ने अधीरता से कहा, ‘‘मनजी, कह दीजिए, दिल की बात कहने में ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहिए.’’

सकुचाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सही कहा तुम ने, मैं बिना वक्त बरबाद किए तुम से दिल की बात कह देता हूं. मैं तुम्हारा हाथ सुमन के लिए मांगना चाहता हूं.’’

वह आश्चर्य से व्हाट कह कर खड़ी हो गई. सोनू की भावभंगिमा देख कर एक पल मुझे खुद पर ही खीझ होने लगी कि मैं ने यह अधिकार कैसे प्राप्त कर लिया जो उस के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप कर बैठा. शादी किस से करनी है, कब करनी है, इस संबंध में मैं क्योंकर हस्तक्षेप कर बैठा. मैं ने क्षणभर में ही स्वयं को संयत करते हुए कहा, ‘‘सोनू, बुरा मत मानो, शादी तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है, मैं ने हस्तक्षेप किया इस के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं. तुम्हें यदि सुमन पसंद नहीं है या तुम किसी और को पसंद करतीहो, यह तुम्हारा निजी मामला है. तुम यदि मेरे प्रस्ताव से इनकार करोगी, मैं अन्यथा न लूंगा. वैसे एक बात कहूं, मैं ने तो तुम्हें सारेसारे दिन भी देखा है, कभी ऐसा आभास नहीं हुआ कि तुम्हारा बौयफ्रैंड वगैरह है. खैर, कोई बात नहीं, मुझे साफतौर पर बता देतीं तो ठीक रहता.’’ सोनू धीरेधीरे मेरे नजदीक आई, उस ने आहिस्ताआहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनजी, मुझे लगा आप मुझे प्यार करने लगे हैं, मैं तो आप से प्यार करने लगी हूं तथा आप को जीवनसाथी मान बैठी हूं.’’

सोनू की बातें सुन मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया, स्वयं को संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘सोनू, तुम ने ठीक समझा, प्यार तो मैं बेइंतहा करता हूं, किंतु वैसा नहीं जैसा तुम ने समझा. प्यार तो एक सच्चीसाफ भावना है, उसे सही दिशा, मार्ग देना हमारा काम है. जिस तरह उफनती नदी पर बांध बना कर हम उसे सही मार्ग देते हैं वरना जो जल जीवनरक्षक होता है वही जीवन का नाश कर बैठता है.’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘सोनू, मैं 60 वर्ष का हो रहा हूं. तुम लगभग 22-24 की नवयुवती हो. मेरी रिया भी इसी उम्र की थी. मैं अपनी रिया के लिए मेरी उम्र का दामाद कभी भी पसंद नहीं करता फिर तुम्हारे लिए ऐसा कैसे सोच सकता हूं. ‘‘तुम्हें उस दुर्घटना में मातापिता को खो देने के बाद बहुत तनहा, उदास देखा, तुम्हारी तरह ही मेरी दशा भी थी. नीता और रिया के बिना जीवन निरर्थक मसूस होने लगा, तब मैं ने स्वयं से संकल्प लिया था कि स्वयं के जीवन को भी सार्थक बनाते हुए, उदासीन, तनहा सोनू के जीवन में फिर उल्लास, उमंग भरने का प्रयास कर, उसे सामान्य जीवन हेतु प्रोत्साहित करूंगा. तुम्हारे रूप में मुझे रिया मिल गई, मैं फिर जीवन के प्रति आशान्वित हो उठा.

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‘‘सोनू, मैं इस सोच के एकदम खिलाफ हूं कि एक कमसिन, सुंदर नवयुवती को मजबूरी की हालत में देख पुरुषवर्ग सिर्फ और सिर्फ उसे भोग्या ही समझता है. आएदिन पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर इस तरह के दुष्कर्म पढ़नेसुनने के लिए मिल जाते हैं. मेरा दिल चिल्लाचिल्ला कर कहता है कि मजबूर लड़कियों को बेटी/बहन मान कर स्वीकार कर, मदद क्यों नहीं की जाती.

‘‘मेरा मानना है कि एक व्यक्ति अकेला नहीं होता है. उस के साथ अनेक लोगों का मानसम्मान जुड़ा होता है तथा हमें ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए जिस से कि हम अपनों से नजरें चुराएं.

‘‘तुम्हारे मातापिता की भी तुम से बहुत सी उम्मीदें रही होंगी. वे तुम्हारे लिए जीवनसाथी कभी भी किसी भी सूरत में मुझ जैसा प्रौढ़ तो नहीं चुनते. यदि तुम चुन लेतीं, तब वे भी तुम्हें असहमति में ही समझाते. हां, इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सुमन जैसा दामाद पा कर वे स्वयं को धन्य समझते. सो, तुम्हारा यह कर्तव्य है कि तुम उन की आधीअधूरी उम्मीदों को पूर्ण करो, यह तुम्हारी उन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी.

‘‘ऐसा ही मेरे साथ भी है. मैं अपनी बेटी रिया की उम्र की सोनू से विवाह रचा कर अपने दिल में बसी पत्नी और बेटी से नजरें कैसे मिला पाऊंगा. सोनू, वे दोनों मेरे दिल में बसी हुई हैं, जिन से मैं रोज बातें करता हूं,  हंसता हूं, रोता हूं. और अगर ऐसा कृत्य कर जाऊंगा तब तो दोनों से नजरें ही चुराता रह जाऊंगा.

‘‘सोनू, मैं तुम्हें बताना चाहूंगा कि मैं ने तुम्हें अपनी रिया ही समझा है तथा मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं तुम्हारा कन्यादान करूं. रिया का कन्यादान करने का सुख तो इस जन्म में नहीं मिल सका, किंतु तुम्हारा कन्यादान कर इस सुखानुभूति को पाना चाहता हूं, वैसे तुम्हें मैं बाध्य नहीं कर सकता इस हेतु.

‘‘मैं तुम्हें नीता के बारे में क्या बताऊं, अद्भुत महिला थी मेरी पत्नी नीता. उस के साथ मैं ने भरपूर आनंदमय जीवन जीया है. रूपरंग की तो धनी थी ही, साथ ही व्यवहारकुशल और गुणी भी थी. उस ने मेरे जीवन को इतना संबल दिया है कि उस के सहारे मैं जीवन जी लूंगा. ‘‘मेरा मानना है कि हम अपने, अपनों के आदर्श एवं विचारों को सदैव याद रखें. यह नहीं कि उन के जाते ही हम विपरीत कृत्य कर उन का उपहास उड़ाएं. ‘‘सोनू, एक बात बताना चाहूंगा कि तुम से मिलने के बाद ऐसा एहसास हुआ कि मुझे मेरी रिया मिल गई. मैं तुम्हें बेटा ही कह कर पुकारना चाहता था किंतु तुम ने सोनू पुकारने की इच्छा जाहिर की थी. इस के अलावा जीवन में 2-4 बार तुम्हारी उम्र की युवतियों से झिड़क भी सुन चुका था. उन लोगों का कहना था कि बेटा क्यों पुकारते हैं. हमारा नाम है, हमें हमारे नाम से पुकारिए. क्या अलगअलग उम्र के दोस्त नहीं हो सकते? कई बार इच्छा हुई तुम से कहने की, फिर सोचा सोनू भी पुकारने में बड़ा प्यारा लगता है. सो, क्या हर्ज है.

‘‘ठीक है सोनू, मैं चलता हूं, मेरी सलाह है कि शांत मन से सुमन के संबंध में विचार करो. यह सत्य है कि हम दोनों जीवनसाथी नहीं बन सकते. हां, हम दोस्त तो हैं ही और सदा बने रह सकते हैं. ‘‘सुमन के विषय में तुम्हारी सहमति हो तो तुम मुझे फोन से बता देना. अगर तुम शाम तक फोन नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी असहमति समझ लूंगा.’’ मैं घर लौट आया था, किंतु असमंजस की स्थिति थी मेरी. इसलिए मैं बड़े भैया एवं सुमन से कुछ भी कहने में असमर्थ था. दोनों से बचने के लिए मैं ने स्वयं को अन्य कामों में व्यस्त कर लिया. मेरी गंभीर स्थिति देख दोनों यही समझ रहे थे कि मैं नीता और रिया की कमी महसूस कर रहा हूं, इसलिए दोनों मुझे बहलाने के बहाने ढूंढ़ रहे थे. साढ़े 10 बजे तक ही सोनू का फोन आ गया. मैं ने अधीरता से हैलो कहा. उस ने बहुत आत्मीयता से कहा, ‘‘मैं आप को पापा कह सकती हूं न? आप मेरा कन्यादान करेंगे न?’’

मैं ने भावविह्वल होते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, हां, मैं ही तेरा कन्यादान करूंगा. मैं ही तो तेरा पापा हूं. मैं नहीं तो कौन करेगा यह कार्य.’’ मेरी आंखें खुशी के आंसुओं से छलक उठीं. उस ने कहा, ‘‘आप जैसे सचरित्र से मेरा संबंध बना, मैं बहुत खुश हूं. अब मैं अनाथ नहीं रही.’’ मैं ने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे कारण मैं भी तो बेऔलाद न रहा. बेटा, भैया और सुमन के साथ शाम को तुम्हारे घर पहुंचता हूं, रोके की रस्म कर लेंगे.’’

प्रेम गली अति सांकरी: भाग 5

Writer- जसविंदर शर्मा 

वे तो एक अवांछित मेहमान की तरह हफ्ते में 2-3 बार आते. खाने का समय होता तो खाना खा लेते. ज्यादातर वे संडे को आते या तब आते जब हम बच्चों में से कोई एक घर पर होता. मां से अकेले मिलने वे कभी नहीं आए. अब अजीब सा, नीरस सा रिश्ता बचा रह गया था दोनों के बीच में.

अब वे शराब बहुत पीने लगे थे. उन की मिस्ट्रैस की हमें कोई खबर नहीं थी, न ही कभी वे उस के बारे में बताते और न ही हमें कोई जिज्ञासा थी कुछ जानने की. हम उसे हमारा घर बरबाद करने में सौ फीसदी जिम्मेदार मानते थे. मां की असहनीय उदासी और तिलतिल कर जवानी को गलाने के पीछे पापा की मिस्ट्रैस का ही हाथ था.

बड़ी बहन के अफेयर और घर छोड़ कर जाने के फैसले के बारे में मैं ने मां से जिस दिन बात की उस दिन उन का मौन व्रत था. मां आजकल ध्यान शिविरों, योग कक्षाओं और धर्मगुरुओं के प्रवचनों में बहुत अधिक शिरकत करने लगी थीं.

मैं ने डरतेडरते बात शुरू की, ‘मां, शिखा के बारे में आप को बताना था.’

मां ने मुसकरा कर मुझे इशारे से सबकुछ कहने के लिए कहा. उन के होंठों पर बहुत दिनों बाद मैं ने हलकी मुसकराहट देखी. मैं थोड़ा कांप गई. लगता था कि शिखा की बात उन से छिपी हुई नहीं है.

मेरी बहन ने कहा था कि जो लोग धर्म में बहुत गहरी आस्था रखने लगते हैं और अत्यधिक पूजापाठ करने लगते हैं, उन्हें अपने प्रियजनों की बहुत सारी बातें पहले से ही पता चल जाती हैं. इसीलिए मेरी बहन ने मां से खुद कुछ पूछना या अपने होने वाले पति के बारे में बताना उचित नहीं समझा. उसे डर था कि कहीं मां उस के होने वाले पति के बारे में कोई अप्रिय भविष्यवाणी ही न कर दें तो फिर एक शक का बीज उस के मन में उगने लगेगा.

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मां हम बच्चों की शादी से डरती क्यों थीं. शादी से उन का विश्वास उठ गया था जैसे. आखिरकार ‘शादी’ वह सामाजिक बंधन या करार है जो 2 लोग आपस में मिल कर करते हैं. उन्हें उम्मीद होती है कि उन की शादी हमेशा कायम रहेगी. अकसर ऐसा होता नहीं है. हालात बुरी तरह बिगड़ सकते हैं और बिगड़ते भी हैं. शादियां भ्रष्ट भी

हो जाती हैं. दूसरा आदमी या दूसरी औरत एक अच्छे जोड़े में दरार पैदा कर सकती है.

फिर भी इतिहास गवाह है कि शादी वह नायाब और चिरायु सामाजिक करार है जो हर युग, हर कौम और हर संस्कृति में कारगर व सफल रहा है. विवाह हमारे जीवन को स्थायित्व देता है मगर साथ ही, हम में कुछ लोगों को यह स्थायित्व डराता भी है. अपने जीवनसाथी के सामने शर्तहीन समर्पण हमें डराता है, संशय से भर देता है. हम सोचते हैं कि अगर उस ने हमारी निजता का मान न रखा या हमारी कसौटी पर खरा न उतरा या वह हमारे लिए सुपात्र सिद्ध न हुआ तो फिर हम कहीं के न रहेंगे.

विवाह स्मृतियों का एक पिटारा ही तो है जिस में अगर अच्छी और सुखद यादों के चित्र ज्यादा समेटे हुए हों तो उस विवाह को कामयाब कहा जा सकता है. विवाह पलों में सिमट सकता है, यह और बात है कि किन पलों को भुला दिया जाए और किन लमहों की यादों को करीने व खूबसूरती से संजोया जाए.

अब मैं जान गई हूं कि छोटीछोटी बातों पर शादी में दरारें आती हैं. एक कहावत है कि पत्थर अंतिम चोट से टूटता है मगर पहले की गई चोटें भी बेकार नहीं जातीं. शादी को कायम रखने के लिए उसे किसी भी प्रकार के वैचारिक हमलों से बचाना चाहिए. यह सोच कर शादी नहीं करनी चाहिए कि यह तो करनी ही है क्योंकि सब करते हैं. इसीलिए भी शादी नहीं करनी चाहिए कि बच्चे चाहिए. बच्चे तो गोद भी लिए जा सकते हैं. किसी काल्पनिक सुरक्षा के लिए शादी करना बेकार है क्योंकि कोई ऐसी चीज है ही नहीं.

शादी में 2 अनजान लोग सारी उम्र साथ गुजारने का प्रण लेते हैं और एक धुंधले आकर्षण के साथ सारा जीवन साथ रहने को तैयार हो जाते हैं. कुछ डरपोक लोगों के लिए यह एक खतरनाक खेल है. कुछ अन्य के लिए यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है. एक तर्कहीन यात्रा है. कुछ मान लेते हैं कि शादी एक पागलपन है, हताशा से उपजी विवशता है और अनिश्चितताओं से परिपूर्ण है.

मेरी बहन ने प्रेम कर के बिना किसी औपचारिक रस्म, कसम या शादी के अपने दोस्त के साथ रहने का मन बना लिया था. उसे विश्वास था कि टिकना हुआ तो यह बंधन भी खूब चलेगा वरना मांपापा की शादी में कितनी कसमें, रस्में और रिश्तेदार जुड़े थे, वह तो एक दिन भी ठीक से नहीं निभ पाई. बहन अपनी जगह ठीक थी.

मां बताती थीं कि पहले महीने के बाद से उन का पति उन का नहीं हो पाया. मगर अब समय बदल गया था. ऐसा आज समाज में व्यापक पैमाने पर हो रहा है. वर्जनाएं टूट रही हैं और हमारी नई पीढ़ी नए प्रयोग करने को तत्पर व आमादा है.

पापा अपनी दुनिया में मस्त थे और मां अपने दुख में त्रस्त थीं. ऐसे में हम दोनों बहनें शादी की उम्र से काफी आगे निकल गई थीं. अपनी उम्र के तीसरे दशक में जा कर हर कुंआरी लड़की एक आखिरी जोर लगाती है कि कोई जीवनभर का साथी मिल जाए. उम्र के तीसरे दशक के अंत में और चौथे दशक के शुरू होने तक उस का सौंदर्य अपने उतार पर आने लगता है. बालों में चांदी उतरने लगती है. सोने सी काया निढाल और परेशान सी दिखने लगती है.

मेरी बहन मुझ से कहती, ‘क्या करूं, कितने सालों से हम अपने लिए कोई फैसला लेने से रुके हुए हैं. घर का माहौल तो ठीक होने से रहा. क्यों न अब अपनी जिंदगी किसी रास्ते पर लगाई जाए.’

उस का मानना था कि प्रेम की कोई हद नहीं. प्रेम के समक्ष विवाह का कोई मेल नहीं. जो लोग प्रेम नहीं समझते वे कूपमंडूक हैं. जिंदगी केवल भावनाओं व आवश्यकताओं से ही नहीं चलती. रिश्तों में संवेदना और संजीदगी होनी चाहिए और एकदूसरे के प्रति एक मुकम्मिल प्रतिबद्धता भी. मां का मौन सबकुछ कह गया.

बिना किसी औपचारिक विदाई के मेरी बहन ने अपने होने वाले पति के साथ रहना शुरू कर दिया. मुझे अपने प्यार के बारे में मां को बताना ठीक नहीं लगा. मैं भी उस दिन की राह तकने लगी जब मैं भी पक्के मन से फैसला कर के अपने प्रेमी निकुंभ के साथ उस के फ्लैट में चली जाऊंगी.

प्रेम के मामले में मैं कच्ची थी, नवीना थी, नवस्फुटा थी. मेरे कोमल हृदय की सारी नवीन और उग्र वासनाएं पंख फैला कर उड़ना चाहती थीं मगर मुझे अभी रास्ता मालूम नहीं था.

वह कहता था कि मैं बला की खूबसूरत हूं. ऐसा मुझे कई नौजवान कह चुके थे. मैं सुंदर थी, अच्छी डीलडौल की थी. भरीपूरी छातियां असल में लड़की के गले में लटकता फांसी का फंदा होता है जो उसे उन लड़कों की नजर में चढ़ा देता है जो उसे अपनी रबड़ की गुडि़या बनाना चाहते हैं. लड़की के हुस्न की तारीफ तब तक है जब तक उस में मर्द को अपनी ओर खींचने की कोशिश होती है. एक बार उस की छातियां लटक जाएं या सूख जाएं तो फिर उस से वितृष्णा उपजती है.

कुतूहल और अनभिज्ञतावश जरा दो कदम आगे की ओर अग्रसर होती तो लाज, डर और मां के लिहाज के मारे वापस लौट आती. मैं अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए व्याकुल थी मगर मां को छोड़ कर जाती तो मां की देखभाल कौन करता. वे तो दिनरात मीरा की तरह अपने कथित भगवान की भक्ति में ही खोई रहतीं. बहुत कम बोलतीं. मेरा भाई बहुत पहले ही विदेश चला गया था.

मेरी जिंदगी सरपट भाग रही थी. अब मैं और किसी राजकुमार का इंतजार नहीं कर सकती थी, कोई बड़े खानदान का रईस या फिल्मी हीरो की तरह

बांका सजीला. एक बार जिस के साथ प्यार हो गया अब तो उसी के लिए जीनामरना था.

मेरा हीरो आज के जमाने का बिंदास आशिक था, वह शादी के खिलाफ था. मैं अपने कौमार्य को कब तक बचाती. मेरी उम्र मेरे हाथों से फिसलती जा रही थी. फिर एक दिन मैं उस की रौ में बह ही गई. अपने बैडरूम में ले जा कर उस ने धीरेधीरे अपने और मेरे कपड़े निकाले और बड़ी खूबसूरत व कलात्मक ढंग से मुझे प्यार किया. उस ने कोई घबराहट, हड़बड़ी या जल्दबाजी नहीं दिखाई.

Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

लंबीचौड़ी मारधाड़ और गोलीबारी के बाद प्रेमनाथ, अजीत और अमजद खान जैसे ड्रग स्मगलर हेलीकाप्टर में चढ़ने से पहले ही धर लिए जाते थे. उन के साथ टाम अल्टर या बौब क्रिस्टो, जो मूलत: अंगरेज हैं, को भी दिखा दिया जाता था जिस से सिद्ध हो जाता था कि ड्रग्स तसकरी बगैर विदेशी स्मगलरों के मुमकिन नहीं.

ड्रग्स की तिलिस्मी दुनिया का शिकार बन रहे हैं युवा

पिछले 2 दशक में नशे और खासतौर से ड्रग्स पर जो फिल्में बनीं वे कोई समाधान नहीं देतीं, बल्कि यह बताती हैं कि युवा नशा क्यों करते हैं और नशा होने के बाद कैसा लगता है.

आर्यन खान संभव है यही अनुभव लेने गया हो कि भविष्य में कभी ड्रग एडिक्ट युवा का रोल करना पड़ा तो उस में बिना नशे को समझे वास्तविकता कैसे आएगी.

गोवा नशेडि़यों की जन्नत है, इस हकीकत को साल 2013 में प्रदर्शित फिल्म ‘गो गोवा गान’ में दिखाया गया था. 3 दोस्त एक रेव पार्टी में गोवा जाते हैं और गलत ड्रग्स लेने पर जांबी बन जाते हैं. हालांकि फिल्म का उत्तरार्द्ध पौराणिक किस्से कहानियों और कौमिक्स जैसा था, लेकिन पूर्वार्द्ध में मुद्दे की बात आ गई थी.

प्रियंका चोपड़ा और कंगना रनौत अभिनीत मधुर भंडारकर निर्देशित ‘फैशन’ फिल्म साल 2008 में आई थी, जिस में कस्बाई युवतियों की मानसिकता को खूबी से उकेरा गया था कि वे मुंबई आ कर कैसे ड्रग्स की मायावी और तिलिस्मी दुनिया का शिकार हो जाती हैं.

ये युवतियां कामयाब तो अपनी प्रतिभा के दम पर होती हैं लेकिन ड्रग्स सेवन को फैशन मानते बरबाद हो जाती हैं और फिर कभी मीना कुमारी, नरगिस, हेमामालिनी, श्रीदेवी, रेखा या माधुरी दीक्षित नहीं बन पातीं यानी ड्रग्स का कारोबार कस्बाई प्रतिभाओं को कामयाब होने से रोकने की भी एक साजिश के तौर पर देखा जा सकता है.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि कभी बड़े नामी सितारे ड्रग्स लेते नहीं पकड़े जाते. अपवाद स्वरूप ही संजय दत्त रोशनी में आए थे, वह भी इसलिए कि वह नशे के इतने आदी हो चुके थे कि सुबह उठ कर ब्रश बाद में करते थे, ड्रग्स पहले लेते थे.

2009 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘देव डी’ भी ड्रग्स प्रधान थी, लेकिन यह भी मकसद से भटकी हुई फिल्म थी. धर्मेंद्र के एक बड़े भाई हैं अजीत सिंह देओल, जो फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं. इन्हीं के बेटे हैं अभय देओल. अभय देओल ने ही इस फिल्म में कामचलाऊ एक्टिंग की थी जो नशे में डूबे नाकाम आशिक के किरदार में थे.

फिर इस के 2 साल बाद आई अभिषेक बच्चन अभिनीत ‘दम मारो दम’ फिल्म, जिस में एक भूमिका राजबब्बर और स्मिता पाटिल के अभिनेता बेटे प्रतीक बब्बर की भी थी.

प्रतीक बब्बर रियल लाइफ में भी आला दरजे के नशेड़ी रह चुके हैं, जिन्हें इलाज के लिए कई बार नशा मुक्ति केंद्र में भरती होना पड़ा था. हालांकि एक्टिंग के मामले में वह संजय दत्त पर बनी बायोपिक ‘संजू’ में संजय दत्त का रोल अदा कर रहे रणबीर कपूर के सामने उन्नीस ही रहे थे.

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‘दम मारो दम’ में निर्देशक रोहन सिप्पी ने कोशिश जरूर की थी कि ड्रग्स स्मगलिंग और रैकेट्स का खुलासा करें लेकिन वह भी सिमट कर रह गए थे.

इस फिल्म की शूटिंग भी ड्रग्स का स्वर्ग कहे जाने वाले शहर गोवा में हुई थी. इस से कुछकुछ हकीकत का एहसास तो हुआ था पर यह सब पुरानी हिंदी फिल्मों की कौपी थी, जिन में पुलिस और तस्कर ढाई घंटे तक चोर पुलिस का खेल खेला करते हैं.

इस फिल्म की इकलौती खूबी यह बताना थी कि हरेक किरदार के तार ड्रग माफियाओं से जुड़े हुए दिखाए गए हैं. लेकिन वे ठीक वैसे ही हैं जैसे आर्यन खान के हैं जिस से यह उम्मीद करना बेवकूफी की बात है कि वह सीधा इस धंधे के बौस से ड्रग ले कर आया हो.

2016 में आई ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म अपने शीर्षक के चलते काफी चर्चित रही थी, क्योंकि पंजाब में ड्रग्स की दखल तब तक अहम बहस का विषय बन चुकी थी. ड्रग्स पर बनी यह इकलौती फिल्म थी, जिस में यह बताया गया था कि फैक्ट्रियों में ड्रग्स कैसे बनती हैं.

निर्देशक अभिषेक चौबे यह बताने में भी कामयाब रहे थे कि इस में राजनेता भी लिप्त रहते हैं. शाहिद कपूर, करीना कपूर और आलिया भट्ट जैसे सितारों से सजी यह फिल्म विवादों से भी घिरी थी.

ड्रग्स कितनी आसानी से उपलब्ध हो जाती है और इस के दुष्प्रभाव कैसे होते हैं, यह असरदार तरीके से दिखाना भी फिल्म की खूबी थी.

आर्यन कोई नादान बच्चा नहीं

ड्रग्स अकेले पंजाब या मुंबई में ही नहीं बल्कि पूरे देश में सहजता से मिल जाती हैं जिस के लिए इकलौती खूबी या जरूरत तलब लगना है.

यह तलब जब लगती है तो लोग मल खाने तक को भी तैयार हो जाते हैं, लड़कियां देह व्यापार करने को मजबूर हो जाती हैं, युवा अपनी गैरत और करिअर भूल जाते हैं. इस से ज्यादा ड्रग्स की लत के बारे में ज्यादा कुछ और कहा भी नहीं जा सकता.

इस में भी कोई शक नहीं कि फिल्म इंडस्ट्री के कई कलाकार इस लत के शिकार हैं, जिन के नाम वक्तवक्त पर उजागर होते भी रहे हैं. लेकिन न पकड़े गए फिल्मकारों की लिस्ट उन से कई गुना ज्यादा लंबी है.

आर्यन के बहाने एक बार फिर यह सच उजागर हुआ कि कुछ भी मुमकिन है, क्योंकि एक 24 साल के नौजवान को इतना भोला भी नहीं कहा और माना जा सकता कि वह यह न जानता हो कि ड्रग्स सेहत के लिए तो नुकसानदायक हैं ही, साथ ही इन का सेवन व खरीदफरोख्त यहां तक कि इन्हें अपने पास रखना भी गैरकानूनी है.

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आर्यन से पहले जो फिल्मकार ड्रग्स के मामले में पकड़े गए हैं, उन में छोटे परदे की टुनटुन कही जाने वाली कामेडियन भारती सिंह, सुशांत सिंह की प्रेमिका रही रिया चक्रवर्ती, आज की कामयाब अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और बी ग्रेड की ऐक्ट्रेस रकुलप्रीत सिंह के नाम प्रमुखता से शामिल हैं. फरदीन खान और ममता कुलकर्णी भी इस लिस्ट की शोभा बढ़ा चुके हैं.

आर्यन का क्या होगा, इस पर हर किसी की निगाह है क्योंकि वह कोई आम लड़का नहीं बल्कि शाहरुख खान का बेटा है. अगर उस पर आरोप साबित हुए तो उसे कम से कम एक साल की सजा होनी तय है.

हालफिलहाल तो वह आर्थर रोड नाम की जेल में है जिस में संजय दत्त सहित जुर्म की दुनिया के कई दिग्गजों ने अपने दुर्दिन गुजारे थे.

सच यह भी है कि आर्यन को इतनी शोहरत फिल्मों में काम करने से पहले ही मिल चुकी है कि कोई भी निर्माता उस पर अरबों का दांव खेलने का जोखिम उठा सकता है. एक बहस पेरेंट्स की भूमिका की भी हुई कि क्यों न उन्हें भी बच्चों की ड्रग की लत का जिम्मेदार ठहराया जाए.

आर्यन के गिरफ्तार होते ही शाहरुख खान का एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ था, जिस में अभिनेत्री सिम्मी ग्रेवाल को दिए इंटरव्यू में वह यह कहते नजर आ रहे थे कि वह चाहते हैं कि उन का बेटा भी ड्रग्स ट्राई करे और जब आर्यन ने उन की बात मान ही ली तो एक आम पिता की तरह रोतेझींकते और बेटे के लिए तड़पते नजर आए.

यह सोचना भी बेमानी है कि आर्यन के पकड़े जाने से ड्रग्स की समस्या खत्म हो गई है. उलटे यह गिरफ्तारी और उस के बाद का ड्रामा यह सोचने को जरूर मजबूर करता है कि यह समस्या कितनी विकराल हो गई है.

Manohar Kahaniya: खोखले निकले मोहब्बत के वादे- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

गीता जब उस की फरमाइश पर ऐसी बात बोलती तो मनोरंजन के तनबदन में जैसे आग लग जाती. वैसे भी दुनिया का कोई मर्द सबकुछ बरदाश्त कर सकता है लेकिन अगर कोई उस की मर्दानगी को ले कर सवाल उठाए तो भले ही उस में सच्चाई हो लेकिन इस बात से उस के अहम को चोट लगती है. जब ऐसा होता तो वह भी गीता से कह देता, ‘‘खोट मेरी मर्दानगी में नहीं बल्कि तुम्हारी जमीन ही बंजर है, जिस में फसल पैदा करने की ताकत नहीं है.’’

औरत की कोख पर कोई अंगुली उठाए तो यह बात एक औरत को भी कभी बरदाश्त नहीं होती.

अब अकसर ऐसा होने लगा कि बच्चे की चाहत में मनोरंजन और गीता एकदूसरे में कमियां गिनाने लगे. लेकिन जब बात आती कि चलो किसी डाक्टर को दिखा लें तो दोनों ही एकदूसरे पर तोहमत लगाने लगते कि उस में कोई कमी नहीं है. तुम अपना इलाज कराओ.

हकीकत यह थी कि दोनों ही अहं की लड़ाई लड़ते थे. पता किसी को नहीं था कि बच्चा पैदा न होने की कमी किस में है.

मनोरंजन ने जब बच्चा नहीं होने की बात अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने कहा कि वह गीता को ले कर ओडिशा आ जाए. वहां वह इलाज करा कर सब ठीक कर देंगे.

जब मनोरंजन ने गीता से सब कुछ छोड़ कर उस के साथ ओडिशा चलने की बात कही तो गीता ने साफ इंकार कर दिया कि वह गाजियाबाद को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. इस बात से मनोरंजन गीता से और भी ज्यादा नाराज हो गया. कुछ दिन और बीते तो बच्चे को ले कर बात इतनी बढ़ने लगी कि मुंह बहस के बाद दोनों में मारपीट तक की नौबत आने लगी. इसी परेशानी में मनोरंजन ने शराब भी पीनी शुरू कर दी.

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गीता जब इस पर ऐतराज जताती तो मनोरंजन इस का जिम्मेदार भी उसी को ठहरा देता. इस के बाद फिर दोनों के बीच मारपीट होती. अब ऐसा होने लगा कि शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता कि जब पतिपत्नी के बीच कोई कलह या मारपीट न होती हो.

गीता को अब मनोरंजन से शादी करने का अफसोस होने लगा. कई बार तो उस का मन चाहता कि वह घर छोड़ कर चली जाए.

उधर, मनोरंजन को भी अब गीता से शादी करने का मलाल होने लगा. दोनों ही लड़ाई झगड़े के दौरान अपने इस पछतावे की बात एकदूसरे पर जाहिर भी कर देते. ऐसे में मनोरंजन गीता को ताना देते हुए कह देता कि मैं ही था जो तुझ पर मर मिटा और शादी कर ली, वरना तुझे कोई रखैल बना कर भी नहीं रखेगा.

यह बात गीता को इस तरह चुभ जाती, जिस से उस के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा हो जाता.

आखिर पानी सर से ऊपर गुजर गया. एक दिन दोनों के बीच लड़ाईझगड़ा इस कदर बढ़ा कि उस दिन गीता ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया.  मनोरंजन ने भी उस के इस फैसले का विरोध नहीं किया. अप्रैल, 2011 में गीता ने मनोरंजन का घर छोड़ दिया. चूंकि मनोरंजन से शादी करने का फैसला उस का अपना था और परिवार की हैसियत भी ऐसी नहीं थी कि गीता पति को छोड़ कर फिर से परिवार पर बोझ बन कर उन के साथ रहे.

गीता के पास बैंक में थोडे़बहुत पैसे थे. उस ने प्रह्लादगढ़ी में किराए का एक कमरा ले लिया. रहनेखाने के लिए थोड़ा सामान भी जुटा लिया और एकांत जीवन बसर करने लगी.

थोड़े ही दिन में प्रयास करने पर उसे वसुंधरा में एक नर्सिंगहोम में मेड का काम भी मिल गया, जिस से भरणपोषण की समस्या भी खत्म हो गई. लेकिन एकाएक टूट कर प्यार करने वाले पति से अलग होने की कमी को भुलाए नहीं भूल रही थी.

29 सितंबर, 2012 शनिवार की रात के करीब साढे़ 9 बजे का वक्त था. तत्कालीन इंदिरापुरम थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को सूचना मिली कि एक महिला को सेक्टर 16 में मोटरसाइकिल सवार किसी बदमाश ने सड़क पर जाते हुए गोली मार दी है.

इंदिरापुरम थानाप्रभारी टीम के साथ मौके पर पहुंचे. गोली महिला की पीठ में लगी थी. तत्कालीन एसपी (सिटी) शिवशंकर भी फोरैंसिक टीम को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

घटनास्थल के निरीक्षण के बाद गोली लगने से घायल महिला को तत्काल अस्पताल भिजवाया गया. लेकिन पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि मृतक महिला का नाम गीता यादव (26) है.

जानकारी यह भी मिली कि गीता यादव प्रह्लाद गढ़ी में किराए का कमरा ले कर अपने पति से अलग रहती थी.

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गीता के मायके वालों के बारे में जानकारी मिली तो उस का भाई राजेश और मां शांति देवी इंदिरापुरम थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बेटी की हत्या के पीछे अपने दामाद मनोरंजन का हाथ होने का शक जताया.

पति मनोरंजन के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

इंदिरापुरम पुलिस ने उसी दिन हत्या की धारा 302 में मुकदमा पंजीकृत कर लिया. थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने एसआई धर्मवीर सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. पुलिस टीम ने परिजनों के शक की बुनियाद पर जब सेक्टर 15 में मनोरंजन तिवारी के फ्लैट पर छापा मारा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है.

पता चला कि वह 2 दिन से अपना सामान कमरे से निकाल कर कहीं ले जा रहा था. पुलिस टीम जब अगले दिन मनोरंजन तिवारी की दुकान पर पहुंची तो पता चला कि उस ने किसी को अपनी दुकान सामान समेत बेच दी है.

अगले भाग में पढ़ें-  किसने गीता की हत्या की

GHKKPM के एक पूरा साल होते ही पाखी, विराट, सम्राट और सई ने की जमकर मस्ती, वायरल हुआ ये वीडियो

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी फैंस खूब पसंद करते हैं. शो के कलाकार पाखी, सम्राट, विराट और सई सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहते हैं. ये एक्टर्स अक्सर शो से जुड़े सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करते रहते हैं. अब शो से जुड़ा एक नया वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में शो के एक साल पूरा होने पर लीड कलाकार जमकर मस्ती कर रहे हैं.

दरअसल यह शो 5 अक्टूबर 2020 को स्टर प्लस पर लॉन्च किया गया था. अब इस शो ने एक साल पूरा कर लिया है. इस सीरियल में पाखी का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उनके साथ सम्राट, सई और विराट नजर आ रहे हैं.

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वीडियो में ये चारों एक्टर्स एक-दूसरे के साथ धमाल मचाते हुए नजर आ रहे हैं. वीडियो में आप देख सकते हैं कि विराट फैंस को बता रहा है कि इस शो ने एक साल पूरा कर लिया है. सभी मिलकर अपनी खुशी जाहिर कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- ‘अनुपमा’ का दिल किसने चुरा लिया है! जानिए इस Video में

 

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शो में अब तक आपने देखा कि सई जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है. तो वहीं सई की सर्जरी के लिए एक पेपर पर विराट के साइन की जरूरत है. सम्राट विराट को फोन कर बताता है कि उसकी पत्‍नी सई की हालत नाजुक है. यह सुनते ही विराट के होश उड जाते हैं. वह सारी नाराजगी छोडकर सीधे अस्‍पताल पहुंचता है और पेपर साइन करता है.

 

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तो दूसरी तरफ पत्रलेखा विराट को ये जताने की कोशिश करती है कि उसे उसकी कितनी परवाह है. विराट सई को लेकर काफी परेशान है. वह इमोशनल हो जाता है और पाखी का हाथ पकड़कर कहता है कि अगर वो उसके लिए कुछ करना चाहती है तो बस प्रार्थना करे ताकि सई ठीक हो जाए. तभी सम्राट उन दोनों को एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए देख लेगा. और वह गलतफहमी का शिकार हो जाएगा.

विराट सम्राट को समझाएगा कि वह गलत समझ रहा है और पाखी भी कहेगी कि विराट परेशान था तो उसने संभाला. शो में अब ये देखना होगा कि क्या विराट, सम्राट की गलतफहमी को दूर कर पाएगा.

काव्या के लिए ये काम करता है ‘अनुपमा’ का वनराज, सामने आया फनी Video

सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey),  मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) और रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) स्टारर सीरियल अनुपमा (Anupamaa) के सेट से एक फनी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में सुधांशु पांडे (वनराज) अपनी ऑनस्क्रीन पत्नी काव्या (मदालशा शर्मा) के साथ नजर आ रहे है. इस वीडियो में काव्या वनराज से कह रही है कि वह जोक सुनना चाहती है. ऐसे में वनराज ने काव्या के सामने एक शर्त रखी है. आइए बताते हैं इस वीडियो के बारे में.

दरअसल इस वीडियो में काव्या वनराज से जोक सुनाने की बात कह रही है. वनराज काव्या से कहता है कि वह एक शर्त पर जोक सुनाएगा. काव्या पूछती है, कौन-सी शर्त…  वनराज कहता है कि आज पोछा तुम लगाओगी.  ये शर्त सुनने के बाद काव्या लोटपोट कर हंसने लगती है. और वह आगे कहती है, बहुत सही था एक और जोक, एक और जोक…

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सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) की लेटेस्ट एपिसोड की बात करे तो अनुपमा वनराज को करारा जवाब देती नजर आएगी. अनुपमा वनराज की हर गलत बात का जवाब देगी. वनराज को समझा देगी कि वह अब कभी पीछे नहीं रहेगी. वह उसकी बराबरी में रहेगी.

 

तो वहीं बा अनुपमा को ताना मारती नजर आएंगी. मगर इस बार अनुपमा बा को भी जवाब देगी. तो दूसरी तरफ काव्या अनुपमा को सपोर्ट करेगी. किंजल, मामाजी भी अनुपमा की तारीफ करेंगे और वनराज के खिलाफ खड़े होंगे. वहीं दूसरी ओर अनुज (Anuj Kapadia) बहुत रोएगा और वह तय करेगा कि वो अनुपमा (Anupama) संग पार्टनरशिप खत्म कर देगा. वो नहीं चाहता की अनुपमा कोई मुसीबत झेले.

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जैसे ही अनुज अनुपमा को ऑफिस में देखेगा, वह बहुत खुश होगा. अनुज और अनुपमा साथ मिलकर काम करेंगे. तो दूसरी तरफ वनराज-काव्या अनुज-अनुपमा को लेकर खूब लड़ेंगे. दरअसल काव्या को लगता है कि अनुज से दुश्मनी महंगी पड़ सकती है. इसलिए वह अनुज-अनुपमा को सपोर्ट कर रही है.

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