मेरे घरवाले जल्दी से जल्दी शादी कराना चाहते हैं लेकिन मैं पढ़ाई करना चाहता हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 21 साल का एक कुंआरा नौजवान हूं. मुझे अपना कैरियर बनाना है और मेरे घर वाले हैं कि जल्दी से जल्दी मेरी शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा लेना चाहते हैं.  इतना ही नहीं, वे ‘लड़की कौन ढूंढ़े’ की तर्ज पर मेरी शादी मेरी भाभी की छोटी बहन से करा देना चाहते हैं. इस बात से मैं अपनी पढ़ाई और आगे नौकरी पर ध्यान नहीं दे पा रहा हूं. मैं क्या करूं?

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जवाब

पहले आप कैरियर पर ध्यान दें, लेकिन यह भी खयाल रखें कि पत्नी अच्छी मिले तो वह कैरियर में अड़ंगा नहीं बनती. भाभी की बहन से शादी करना हर्ज की बात नहीं, बशर्ते वह आप को पसंद हो. आज नहीं तो कल शादी तो करनी ही है, पर इस के लिए अपने कैरियर की बलि न चढ़ाएं. अच्छा होगा कि यह बात घर वालों को समझाएं और उन से कुछ दिनों की मोहलत ले लें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Manohar Kahaniya: पत्नी की मौत की सुपारी- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उस दिन मई 2021 की 18 तारीख थी. रात के 8 बज रहे थे. बिधनू थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह इलाके में गश्त पर निकलने वाले थे, तभी उन के मोबाइल फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो फोनकर्ता ने चौंकाने वाली सूचना दी. उस ने बताया कि करसुई पुल के पास जो हनुमान मंदिर है, वहां एक महिला की लाश पड़ी है. उस की हत्या गोली मार कर की गई है.

चूंकि मामला महिला की हत्या का था, अत: थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने गश्त पर जाने के बजाय उस जगह जाना जरूरी समझा जहां महिला की लाश पड़े होने की उन्हें सूचना मिली थी. इस से पहले उन्होंने घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

फिर पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. थाना बिधनू से करसुई नहर पुल की दूरी करीब 3 किलोमीटर थी. इसलिए पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

घटनास्थल पर उस समय कुछ लोग खड़े थे. उन्होंने महिला की लाश का मुआयना किया. मृतक महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी. गोली मार कर उस की हत्या की गई थी. पीठ पर 2 तथा सीने पर एक गोली दागी गई थी.

महिला जींस व कमीज पहने थी. उस की मांग में सिंदूर तथा पैरों में बिछिया थे. स्पष्ट था कि वह विवाहित थी. शव के पास ही सड़क किनारे उस की स्कूटी लुड़की पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी78 जीएफ 3398 था. वहीं पर मृतका का पर्स व मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद सिंह तथा डीएसपी विकास पांडेय घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

वहां मौजूद एक युवक ने पुलिस को बताया कि वह मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने आया था. तभी उसे फायर की आवाज सुनाई दी. वह वहां पहुंचा तो महिला मृत पड़ी थी. उस ने 2 हत्यारों को मोटरसाइकिल से भागते हुए देखा था. दोनों हेलमेट लगाए थे. उस ने ही पुलिस को सूचना दी थी.

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अब तक महिला के शव को अनेक लोग देख चुके थे, लेकिन कोई उसे पहचान न सका था. तब पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. महिला की स्कूटी भी थाने भिजवा दी.

घटनास्थल से मृत महिला का पर्स व मोबाइल फोन बरामद हुआ था. इस मोबाइल फोन को थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने खंगाला तो उस में उस के पिता का फोन नंबर सेव था. थानाप्रभारी ने उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह नंबर बिरला नगर ग्वालियर के रहने वाले अनिल कुमार शर्मा का है. उन्होंने अनिल से पूछा कि जिस मोबाइल नंबर से वह बात कर रहे हैं, वह किस का है?

‘‘यह नंबर मेरी बेटी आरती शर्मा का है. लेकिन आप कौन है? मेरी बेटी का मोबाइल फोन आप के पास कैसे आया?’’ अनिल शर्मा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘देखो शर्माजी, मैं कानपुर नगर के थाना बिधनू से इंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह बोल रहा हूं. एक महिला के शव के पास से मुझे यह मोबाइल फोन मिला था. आप जल्दी से थाना बिधनू आ जाइए. तब शव की शिनाख्त भी हो सकेगी.’’

19 मई की सुबह 8 बजे अनिल कुमार शर्मा अपने साढू मनोज के साथ थाना विधनू पहुंच गए. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह उन्हें पोस्टमार्टम हाउस ले गए. यहां महिला की लाश देख कर अनिल शर्मा फफक कर रो पड़े. उन्होंने बताया कि लाश उन की बेटी आरती की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा को धैर्य बंधाया और फिर पूछताछ की. अनिल कुमार ने बताया कि उन्होंने कई साल पहले आरती की शादी हमीरपुर जिले के भरुआ सुमेरपुर कस्बा निवासी श्यामशरण शर्मा के साथ की थी.

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लेकिन दामाद और बेटी में पटरी नहीं खाती थी सो दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. श्यामशरण को शक था कि आरती का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. इसी को ले कर वह आरती को प्रताडि़त करता था.

अनिल शर्मा ने नामजद लिखाई रिपोर्ट

अनबन होने पर आरती मायके में रहने लगी थी. दिसंबर 2020 में दोनों के बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. लेकिन असफल रहा. समझौते के दौरान ही दोनों झगड़ा करने लगे थे. उसी समय गुस्से में श्यामशरण ने आरती का सिर फोड़ दिया था. लोकलाज के कारण हम ने दामाद के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई थी.

इस झगड़े के बाद आरती कानपुर के नौबस्ता थाना अंतर्गत सागरपुरी, गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगी थी. जिस मकान में वह रहती थी, उसी में उस ने एक आइसक्रीम फैक्ट्री शुरू कर दी थी. शादियों के सीजन में आइसक्रीम की डिमांड खूब हो रही थी.

आरती पति से अलग जरूर रहती थी, लेकिन पति श्यामशरण उस पर निगरानी रखता था. फोन पर वह उसे धमकाता भी था. अनिल ने आरोप लगाया कि उस की बेटी आरती की हत्या उस के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण ने की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा की तरफ से भादंवि धारा 302 आईपीसी के तहत श्यामशरण शर्मा व रामशरण के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और जांच में जुट गए.

इधर महिला उद्यमी आरती हत्याकांड की खबर अखबारों में छपी तो आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी भानु भास्कर ने मामले को गंभीरता से लिया और घटनास्थल का निरीक्षण कर मृतका के पिता अनिल शर्मा से पारिवारिक जानकारी हासिल की.

इस के बाद उन्होंने एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद की देखरेख में पुलिस टीम गठित कर दी. केस का खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए का पुरस्कार भी घोषित कर दिया.

गठित पुलिस टीम ने 3 बिंदुओं पर जांच शुरू की. पहली अवैध संबंधों की, दूसरी पति से अनबन तथा तीसरी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा.

टीम ने सब से पहले आरती शर्मा के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण को भरुआ सुमेरपुर कस्बा में स्थित उन के घर से उठाया फिर दोनों को बिधनू थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन दोनों ने जुबान नहीं खोली.

पुलिस टीम ने आरती शर्मा के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में एक ऐसा वीडियो मिला, जिस में वह दोस्तों के साथ ड्रिंक कर रही थी और अश्लील हंसीमजाक कर रही थी.

टीम को समझते देर नहीं लगी कि आरती रंगीनमिजाज महिला थी. इसी मोबाइल में एक ऐसा नंबर भी था, जिस पर आरती की घटना से पहले बात हुई थी. इस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि यह नंबर प्रतापगढ़ के भौलपुर गांव निवासी जितेंद्र का है.

पुलिस टीम ने जितेंद्र को उस के गांव से हिरासत में ले लिया और बिधनू थाने लाई. यहां उस से कड़ाई से पूछताछ हुई तो उस ने बताया कि उस का मोबाइल खो गया था. किसी ने गलत इस्तेमाल किया है. पुलिस को भी लगा कि जितेंद्र निर्दोष है, अत: उसे थाने से जाने दिया.

पुलिस टीम को पक्का यकीन था कि आरती की हत्या का रहस्य उस के पति के पेट में ही छिपा है. अत: टीम ने श्यामशरण शर्मा से कड़ाई से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से श्यामशरण टूट गया. उस ने बताया कि आरती की हत्या उस ने शूटरों से कराई थी. मौत का सौदा उस ने 3 लाख 20 हजार रुपए में किया था, जिस में से 1 लाख 40 हजार शूटरों के खाते में ट्रांसफर कर दिए थे.

श्यामशरण ने शूटरों के नाम शाहरुख खान निवासी इमलिया बाड़ा कस्बा भरुआ सुमेरपुर तथा नईम उर्फ भोलू निवासी ईदगाह कस्बा भरुआ सुमेरपुर जिला हमीरपुर बताया.

20 मई, 2021 को पुलिस टीम ने भरुआ सुमेरपुर थाना पुलिस की मदद से शाहरुख खान के घर पर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की पत्नी रूबी, मां परवीन खातून तथा बहन रुखसार को हिरासत में ले लिया.

आरोपियों के घरवालों से की पूछताछ

इस के बाद पुलिस ने ईदगाह निवासी नईम उर्फ भोलू के घर छापा मारा. वह भी घर से फरार था. पुलिस ने भोलू की मां शमीम, बहन रोजी तथा एक अन्य को हिरासत में ले लिया.

सभी को थाना बिधनू लाया गया. दबाव बना कर पुलिस अधिकारियों के समक्ष उन से पूछताछ की गई और शाहरुख तथा नईम के ठिकानों की जानकारी जुटाई गई. पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

23 मई को थानाप्रभारी वी.पी. सिंह को खबरी के जरिए पता चला कि शाहरुख खान अपनी पत्नी रूबी से मिलने घर आया है. इस पर उन्होंने दबिश दे कर शाहरुख को उस के घर से दबोच लिया और थाने ले आए. इस के बाद उन्होंने उसे बिधनू पुलिस को सौंप दिया.

अगले भाग में पढ़ें- आरती दोस्तों के साथ करती थी मौजमस्ती

अपने हिस्से की जिंदगी- भाग 1: क्यों कनु मोबाइल फोन से चिढ़ती थी?

Writer- Er. Asha Sharma

पहलीडेट का पहला तोहफा. खोलते हुए कनु के हाथ कांप रहे थे. पता नहीं क्या होगा… हालांकि निमेश के साथ इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए कनु का दिल बिलकुल भी गवाही नहीं दे रहा था, मगर कहते हैं न कि कभीकभी आप की अच्छाई ही आप की दुश्मन बन जाती है. कनु के साथ भी यही हुआ था. उस ने अपनी छोटी सी जिंदगी में इतने दुख देख लिए थे कि अब वह हमेशा इसी कोशिश में रहती कि कम से कम वह किसी के दुखी होने का कारण न बने. इसीलिए न चाहते हुए भी वह आज की इस डेट का प्रस्ताव ठुकरा नहीं सकी.

निमेश उस का सहकर्मी, उस का दोस्त, उस का मैंटर, उस का लोकल गार्जियन, सभी कुछ तो था. ऐसा भी नहीं था कि कनु उस के भीतर चल रहे झंझावात से अनजान थी. अनजान बनने का नाटक जरूर कर रही थी. कितने बहाने बनाए थे उस ने जब कल औफिस में निमेश ने उसे आज शाम के लिए इनवाइट किया था.

‘यह निमेश भी न बिलकुल जासूस सा दिमाग रखता है… पता नहीं इसे कैसे पता चल गया कि आज मेरा जन्मदिन है. मना करने पर भी कहां मानता है यह लड़का…’ कनु सोचतेसोचते गिफ्ट रैप के आखिरी फोल्ड पर पहुंच चुकी थी.

बेहद खूबसूरती से पैक किए गए लेटैस्ट मौडल के मोबाइल को देखते ही कनु के होंठों पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई. वह पहले से ही जानती थी कि इस में ऐसा ही कुछ होगा, क्योंकि उस के ओल्ड मौडल मोबाइल हैंडसैट को ले कर औफिस में अकसर ही निमेश ‘ओल्ड लेडी औफ न्यू जैनरेशन’ कह कर उस का मजाक उड़ाता था.

कनु कैसे बताती निमेश को कि यह छोटा सा मोबाइल ही उस की जिंदगी में इतना बड़ा तूफान ले कर आया था कि उस का परिवार तिनकातिनका बिखर गया था. उसे आज भी याद है लगभग 10 साल पहले का वह काला दिन जब पापा से लड़ाई होने के बाद गुस्से में आ कर उस की मां ने अपनेआप को आग के हवाले कर दिया था. मां की दर्दनाक और कातर चीखें आज भी उस की रातों की नींदें उड़ा देती हैं. मां शायद मरना नहीं चाहती थीं, मगर पापा पर मानसिक दबाव डालने के लिए उन्होंने यह जानलेवा दांव खेला था. उन्हें यकीन था कि पापा उन्हें रोक लेंगे, मगर पापा तो गुस्से में आ कर पहले ही घर से बाहर निकल चुके थे. उन्होंने देखा ही नहीं था कि मां कौन सा खतरनाक कदम उठा रही हैं.

मां को लपटों में घिरा देख कर वही दौड़ कर पापा को बुलाने गई थी. मगर पापा उसे आसपास नजर नहीं आए तो पड़ोस वाले अनिल अंकल ने पापा को मोबाइल पर फोन कर के हादसे की सूचना दी थी. आननफानन में मां को हौस्पिटल ले जाया गया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मोबाइल ने उस की मां को हमेशा के लिए उस से छीन लिया था.

कनु के पापा को शुरू से ही नईनई तकनीक इस्तेमाल करने का शौक था. उन दिनों मोबाइल लौंच हुए ही थे. पापा भी अपनी आदत के अनुसार नया हैंडसैट ले कर आए थे. घंटों बीएसएनएल की लाइन में खड़े हो कर उन्होंने सिम ली थी. उन दिनों मोबाइल में अधिक फीचर नहीं हुआ करते थे. बस कौल और मैसेज ही कर पाते थे. हां, मोबाइल पर कुछ गेम्स भी खेले जाते थे.

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पापा के मोबाइल पर जब भी कोई फनी या फिर रोमांटिक मैसेज आता था तो पापा उसे पढ़ कर मां को सुनाते थे. मां जोक सुन कर तो खूब हंसा करती थीं, मगर रोमांटिक शायरी सुनते ही जैसे किसी सोच में पड़ जाती थीं. वे पापा से पूछती थीं कि इस तरह के रोमांटिक मैसेज उन्हें कौन भेजता है… पापा भेजने वाले का नाम बता तो देते थे, मगर फिर भी मां को यकीन नहींहोता था.

धीरेधीरे मां को यह शक होने लगा था कि पापा के दूसरी महिलाओं से संबंध हैं और वे ही उन्हें इस तरह के रोमांटिक मैसेज भेजती हैं. वे पापा से छिप कर अकसर उन का मोबाइल चैक करती थीं. पापा को उन की यह आदत अच्छी नहीं लगी या फिर शायद पापा के मन में ही कोई चोर था, उन्होंने अपने मोबाइल में सिक्युरिटी लौक लगा दिया.

मां दिमागीरूप से परेशान रहने लगी थीं. हालत यह हो गई थी कि जब भी पापा के मोबाइल में मैसेज अलर्ट बजता मां दौड़ कर देखने जातीं कि किस का मैसेज है और क्या लिखा है… मगर लौक होने की वजह से देख नहीं पाती थीं. वे पापा से मोबाइल चैक करवाने की जिद करतीं तो पापा का ईगो हर्ट होता और वे मां पर चिल्लाने लगते. बस यही कारण था दोनों के बीच लड़ाई होने का.

यह लड़ाई कभीकभी तो इतनी बढ़ जाती थी कि पापा मां पर हाथ भी उठा देते थे. जब कभी पापा अपना मोबाइल मां को पकड़ा देते और उन्हें किसी महिला का कोई मैसेज उस में दिखाई नहीं देता तो मां को लगता था कि पापा ने सारे मैसेज डिलीट कर दिए हैं.

पापा का ध्यान मोबाइल से हटाने के लिए मां उन पर मानसिक दबाव बनाने लगी थीं. कभी सिरदर्द का बहाना तो कभी पेटदर्द का बहाना करतीं… कभी कनु और उस के बड़े भाई सोनू को बिना वजह ही पीटने लगतीं… कभी कनु की दादी को समय पर खाना नहीं देतीं… कभी पापा को आत्महत्या करने और जेल भिजवाने की धमकियां देतीं… और एक दिन धमकी को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने खुद पर तेल छिड़क कर आग लगा ली. उन का यह नासमझी में उठाया गया कदम कनु और सोनू के लिए जिंदगी भर का नासूर बन गया.

मां के जाते ही गृहस्थी का सारा बोझ कनु की बूढ़ी दादी के कमजोर कंधों पर आ गया.

उस समय कनु की उम्र 10 साल और सोनू की 13 साल थी. साल बीततेबीतते कनु के पापा किसी दलाल की मार्फत एक अनजान महिला से शादी कर के उसे अपने घर ले आए. वह महिला कुछ महीने तो उन के साथ रही, मगर बूढ़ी सास और बच्चों की जिम्मेदारी ज्यादा नहीं उठा सकी और एक दिन चुपचाप बिना किसी को बताए घर छोड़ कर चली गई.

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कुछ साल अकेले रहने के बाद कनु के पापा फिर से अपने लिए एक पत्नी ढूंढ़ लाए. इस बार महिला उन के औफिस की ही विधवा चपरासिन थी. नई मां ने सास और बच्चों के साथ रहने से इनकार कर दिया तो कनु के पापा वहीं उसी शहर में अलग किराए का मकान ले कर रहने लगे. गृहस्थी फिर से कनु की दादी संभालने लगी थीं. कुछ साल तो घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई का खर्चा कनु के पापा देते रहे, मगर फिर धीरेधीरे वह भी बंदकर दिया.

अब सोनू 18 साल का हो चुका था. उस ने ड्राइविंग सीखी और टैक्सी चलाने लगा.

इस एक्टर ने Pawan Singh को कहा था ‘बुजुर्ग’, पढ़ें खबर

भोजपुरी इंडस्ट्री के मशहूर एक्टर खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav)  सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. वह अपने बेबाक अंदाज के कारण सुर्खियों में छाये रहते हैं. इस खबर में एक्टर से जुड़े एक ऐसा किस्सा बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर हर कोई हैरान रह गया था.

रिपोर्ट के अनुसार खेसारी लाल यादव ने पवन सिंह (Pawan Singh) को ‘बुजुर्ग’ कह दिया था. खेसारी के इस कमेंट से हरकोई हैरान रह गया था. जी हां, बात ही बातों में खेसारी लाल यादव ने पवन सिंह को ‘बुजूर्ग’ कह दिया था.

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इसके बाद फैंस ने सोशल मीडिया पर काफी नाराजगी जताई थी. यूजर्स ने उन्हें ट्रोल भी किया था. खेसारी लाल यादव ने इस कमेंट पर सफाई देते हुए कहा था कि हमारे यहां खुद से बड़े लोगों को बुजूर्ग ही कहकर बुलाया जाता है. उन्होंने पवन सिंह को अपना सबसे अच्छा दोस्त बताया था.

 

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रिपोर्ट के अनुसार खेसारी ने कहा था कि मैं इंडस्ट्री में पवन सिंह के काफी क्लोज हूं. मैं उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानता हूं. इंडस्ट्री में इस तरह का रिश्ता उनके अलावा मेरा किसी के साथ नहीं है.

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वर्कफ्रंट की बात करें  तो खेसारी लाल यादव जल्द ही ‘आशिकी’, ‘डोली साजा के रखना’, ‘सबका बाप अंगूठा छप’ और ‘विधाता’ जैसी कई भोजपुरी फिल्मों में दिखाई देंगे.

Bigg Boss 15: करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश के बीच बढ़ी नजदीकियां, देखें Video

बिग बॉस 15 (Bigg Boss 15) की चर्चित जोड़ी करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. शो में इन दोनों की केमिस्ट्री काफी दिलचस्प नजर आ रही है. शो से जुड़ा एक वीडियो सामने आया है. जिसमें तेजस्वी करण से कुछ ऐसा कहते नजर आ रही है. जिससे करण शरमाकर हंसते हुए दिखाई दे रहे हैं.

दरअसल बिग बॉस से जुड़ा एक वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में तेजस्वी करण से कहते हुए नजर आ रही है कि उन्हें करण की जरूरत है. इसके बाद दोनों शरमाकर हंसने लग जाते हैं. इस वीडियो में दोनों की केमिस्ट्री को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं. बिग बॉस हाउस के हर सीजन में जोड़ियां बनती है. इस सीजन में भी कई कंटेस्टेंट की जोड़ियां बनते हुए दिखाई दे रही हैं.

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हाल ही में शो में दिखाया गया था कि करण कुंद्रा निशांत भट्ट से कहते हुए नजर आ रहे थे कि जब भी मैं अपने बारे में सोचता हूं मुझे कुछ नहीं समझ आता. मुझे लग रहा है कि बिग बॉस 15 के बाद मुझे कोई काम नहीं मिलेगा.

 

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दरअसल करण प्रतीक सेहजपाल के साथ हुए झगड़े की वजह से परेशान थे. ऐसे में उन्हें लग रहा है कि उनकी इमेज काफी निगेटिव हो चुकी है. उन्होंने ये भी कहा कि इस हादसे ने मेरी इमेज को बर्बाद कर दिया है. मैं ये भूल गया था कि मैं कौन हूं और यहां तक पहुंचने के लिए मैंने क्या क्या नहीं किया.

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ऐसे में निशांत भट्ट करण कुंद्रा को समझाते नजर आए. निशांत ने कहा कि तुमको आंख बंद करके किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए. बिग बॉस हाउस में गेम कभी भी पलट सकता है. इस दौरान करण काफी इमोशनल नजर आए.

 

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सरकारी नौकरी किसान की जान से ज्यादा कीमती है?

मोदी सरकार का एक छिपा काम किसी तरह देश में फिर से पूरी तरह पौराणिक ऊंचनीच वाले समाज को बनाना है जिस में पैदा होते ही तय हो जाए कि कौन क्या बनेगा. रामायण और महाभारत में  2 राजसी घरों का ?ागड़ा ही सब से बड़ी बात है और पैदा होने के हक को देने या न देने पर इन पूजे जाने वाले भारीभरकम किताबों से निकलने वालों को पूजा भी जाता है और उन्हीं की तर्ज पर पैदा होने को ही जिंदगी की जड़ माना जाता है.

हमारे संविधान ने चाहे सभी अमीरों और गरीबों के बच्चों को बराबर का माना हो पर असलियत यही है कि रोजाना ऊंचे घरों में पैदा हुए लोगों की ही गारंटी है. अंबेडकर और मंडल की वजह से शैड्यूल कास्टों और बैकवर्डों को जगह मिलने लगी पर यह बात समाज के कर्ताधर्ताओं को पसंद नहीं आई और उन्होंने रामायण और महाभारत के पन्नों से कुछ पात्रों को निकाल कर जनता को ऐसा बहकाया है कि आज सादे घर में पैदा हुआ सिर्फ मजदूर बन कर रह गया है. उसे ज्यादा से ज्यादा कुछ मिल सकता है तो वह ऊंचे घरों में पैदा हुए लोगों के घरों और धंधों में छोटे कामकरना या उन की सुरक्षा करने का. पुलिस और सेना में खूब भरतियां हुई हैं पर अफसरी गिनेचुनों को मिली है. आम घरों के पैदा हुए तो सलूट ही मारते हैं चाहे उन्हें चुप करने के लिए अफसरी का बिल्ला लगाने को दे दिया गया हो.

देश में बढ़ती बेरोजगारी एक पूरी साजिश है. सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन हो गया है इसलिए सरकार ने सरकारी कारखाने धड़ाधड़ बेचने शुरू कर दिए ताकि सादे घरों में पैदा हुए लोगों को ऊंची सरकारी नौकरियां देनी ही न पड़ें. पुलिस और सेना के अलावा कहीं और थोक में भरतियां हो ही नहीं रहीं. आधुनिक टैक्नोलौजी ने निजी कंपनियों को वह रास्ता दिखा दिया जिस में सादे घरों के लोगों का काम मशीनें कर सकती हैं और उन मशीनों को ऊंचे घरों में पैदा हुए एयरकंडीशंड कमरों में बंद दफ्तरों से चला सकते हैं.

आज हालात ये हो गए हैं कि किसानों की मौतों का मुआवजा एक अदद सरकारी नौकरी रह गई है. करनाल और लखीमपुर खीरी में राकेश टिकैत जैसे जु?ारू नेता ने भी एकएक सरकारी नौकरी का वादा पा कर मौतों का सम?ौता कर लिया. बेकारी इतनी बढ़ा दी गई है कि एक सरकारी नौकरी किसान की जान से ज्यादा कीमती हो गई है.

नौकरियों को खत्म करने में नोटबंदी, जीएसटी, कृषि कानूनों, नागरिक कानूनों को जबरन साजिश के तौर पर लाया गया है. सरकार को पहले से पता था कि इन का क्या नुकसान होगा. इन से छोटे घरों से पनपते छोटेछोटे व्यापारी मारे जाएंगे यह एहसास सरकार को था और छोटे धंधे और छोटे व्यापार जो छोटे घरों के मेहनती युवा करने लगे थे, भारीभरकम टैक्सों, नियमों, नोटों की किल्लतों, बैंक अकाउंट रखने की जरूरत जिसे खोलना आसान नहीं है, एक पूरी साजिश की तरह थोपा गया है, ताकि देश की 80 फीसदी जनता गुलाम बन कर रह जाए. उन्हें बहलाने के लिए रामायण और महाभारत, जिसे पहले टीवी पर चला कर घरघर पहुंचा दिया गया था, से लिए पात्रों को दे दिया गया कि इन्हें बचाओ चाहे खुद मर जाओ.

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आज देश बुरी तरह कराह रहा है पर हर गरीब इसे अपने पिछले जन्मों का फल मानता है क्योंकि गीता में यही कृष्ण कह गए हैं. हर गरीब शंबूक, केवट या शबरी की तरह है, इस से ज्यादा नहीं. बेरोजगार हैं तो क्या हुआ, देश के धर्म का डंका तो बज रहा है न.

लखीमपुर खीरी कांड: कड़वाहट से भर गया ‘चीनी का कटोरा’

लखीमपुर खीरी सब से ज्यादा गन्ने की पैदावार करता है. इस वजह से ही इसे ‘चीनी का कटोरा’ कहा जाता है. कृषि कानूनों के खिलाफ यहां के किसानों ने जब आवाज बुलंद की, तो उन्हें ‘खालिस्तानी’ कहा जाने लगा.

तराई के इस इलाके ने ही भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में 32 सीटें और लोकसभा चुनाव में 3 सीटें जितवाई थीं. अब भाजपा सिखों को ‘खालिस्तानी’ कह कर दरकिनार करने की कोशिश कर रही है.

केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को कुचलने के लिए हर तरह के छल और बल का प्रयोग केंद्र की भाजपा सरकार और उस की ‘ट्रोल आर्मी’ ने किया. आंदोलन में हिंसा भड़क जाए, इस का इंतजाम भी अराजक लोगों ने किया.

26 जनवरी, 2021 को लालकिले पर इस की बानगी मिल चुकी थी. इस वजह से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत को दो कदम पीछे खींचने पड़े.

किसी भी आंदोलन को लंबा चलाने के लिए कई बार ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं. आंदोलन में हिंसा का सहारा ले कर सत्ता पक्ष पूरे किसान आंदोलन को खत्म कर सकता था. ऐसे में राकेश टिकैत ने दो कदम पीछे खींच कर गेंद उत्तर प्रदेश सरकार के पाले में डाल दी है.

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भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के लखनऊ जिला महामंत्री दिलराज सिंह कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर सही से इंसाफ नहीं किया, तो यही मुद्दा चुनाव में उस की हार का जिम्मेदार होगा. हम ने सरकार के आश्वासन पर किसानों को इंसाफ दिलाने के लिए बात की है. हमारे लोग लगातार किसानों के संपर्क में हैं. अगर सरकार ने कोई वादाखिलाफी की और सही इंसाफ नहीं किया, तो हम चुप नहीं बैठेंगे.’’

बक्शी का तालाब, लखनऊ के रहने वाले सरदार गुरुमीत सिंह कहते हैं, ‘‘हम किसान जब उत्तर प्रदेश के तराई इलाके में आए थे, तब वहां जंगल था. रातदिन जंगली जानवरों का खतरा रहता था. जिन जंगलों में लोग जाने से डरते थे, हम ने वहां खेती शुरू की और अपनी मेहनत से जंगली जमीन को उपजाऊ बनाया. हमारी मेहनत ने उस जंगली जमीन को ‘चीनी के कटोरे’ में बदल दिया.

‘‘हमारे लिए खेती ही सबकुछ है, इसलिए खेती को बचाने के लिए हम सालभर से सड़कों पर हैं. सरकार के हर जुल्म और इलजाम को सिरआंखों पर रखते हुए शांतिपूर्वक अपनी बात कह रहे हैं. हमें केंद्र के ये काले कानून स्वीकार नहीं हैं.’’

कैसे भरी कड़वाहट

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर बसी तराई बैल्ट में पंजाब से आए किसानों ने खेती की तसवीर बदल दी. इस का असर उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों में भी देखा जा सकता है.

पंजाब से आए किसानों ने ‘ऊसर’ और ‘बंजर’ जमीन को खेती के लायक बना कर अपने फार्महाउस बनाए.

पंजाब से आए इन किसानों की तादाद केवल 4 फीसदी ही है. इस के बाद भी उन्होंने अपनी मेहनत से खेतीकिसानी को पूरी तरह से बदल दिया है. पूरे देश के किसान साल में धान की केवल एक फसल ही ले पाते हैं. पंजाब से आए ये किसान अपने खेतों में धान की 2 फसलें लेते हैं.

नेपाल सीमा से लगा उत्तर प्रदेश का जिला लखीमपुर खीरी 7,680 स्क्वायर किलोमीटर इलाके में फैला है. लखीमपुर और खीरी 2 नगरों पर इस का नाम रखा गया है. नेपाल सीमा के साथसाथ यह पीलीभीत, बहराइच, सीतापुर, शाहजहांपुर और हरदोई जिलों से सटा हुआ है.

लखीमपुर की खुशहाली का असर इन जिलों में भी देखा जा सकता है. यहां भी पंजाब से आए किसानों ने अपनेअपने फार्म बना कर खेती की दशा को सुधार दिया है.

खीरी ‘खर’ नाम के जंगली पेड़ों से घिरा था. इस वजह से ही इस इलाके का नाम खीरी पड़ा. यहां का कुछ हिस्सा दलदली जमीन वाला है. किसानों ने इस दलदली जमीन को खेती के लायक बनाया.

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अनदेखी का शिकार

लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बहराइच, सीतापुर, शाहजहांपुर और हरदोई में किसान जागरूक हैं. इस वजह से यहां के किसान केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे हैं.

यहां के किसानों ने पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सब से ज्यादा सीटों से चुनाव जितवाया था. साल 2017 के विधानसभा चुनावों में इस इलाके की 36 विधानसभा सीटों में से 32 सीटों पर भाजपा का कब्जा हुआ था. साल 2019 में 3 लोकसभा सीटें खीरी, धौरहरा और सीतापुर भाजपा के खाते में गई थीं.

यहां का 4 फीसदी सिख तबका भाजपा के पक्ष में था. वह भले ही तादाद में कम हो, पर उस का असर ज्यादा है. ऐसे में तराई के इस इलाके में सिख वोट जीत में बहुत माने रखते हैं. किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते सिख तबका भाजपा के लिए विलेन हो गया. उस पर ‘खालिस्तान’ समर्थक होने के आरोप लगे.

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि यहां के लोगों की नजरों में सिखों की खुशहाली खटकती है. वे उन पर दबंगई करने के बहाने तलाश करते रहते हैं. किसान आंदोलन के दौरान यह मौका उन्हें मिल गया और वे यहां के किसानों को निशाने पर लेने लगे.

10 महीने से यहां के किसान ऐसी हालत में पिस रहे हैं. दिल्ली से खीरी तक हर घटना में सिख किसानों को बदनाम करने का काम किया गया. आखिरकार 3 अक्तूबर, 2021 की काली घटना भी घट गई, जिस में 4 किसानों की गाड़ी से कुचल कर हत्या कर दी गई.

मंत्री की धमकी से भड़की आग

लखीमपुर में हुए किसानों के हत्याकांड की बुनियाद पहले पड़ चुकी थी. 25 सितंबर, 2021 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को गदनिया और महंगापुर में आंदोलन कर रहे किसानों ने काले ?ांडे दिखाए थे.

महंगापुर के रहने वाले किसान अमनीत सिंह और उस के 2 साथियों के खिलाफ मुकदमा कायम करा दिया गया.

इसी मामले में दूसरा मुकदमा गदनिया में महेंद्र सिंह समेत 40-45 अज्ञात लोगों के खिलाफ कायम हुआ था.

अमनीत सिंह पर यह आरोप था कि उस ने काले ?ांडे दिखाने का वीडियो वायरल किया. पुलिस ने इन लोगों पर इस बात का मुकदमा भी दर्ज किया कि ?ांडा दिखाने वालों ने ‘कोविड 19’ के प्रोटोकाल को भी नहीं माना था.

अजय मिश्रा ‘टेनी’ के खिलाफ किसानों का गुस्सा यहीं से पनपने लगा था. वहीं पर किसानों ने यह रणनीति बनाई कि अब उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को भी काले ?ांडे दिखाए जाएंगे.

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ दबंग सांसद माने जाते हैं. लखीमपुर के तिनकुनिया इलाके में

साल 2000 में प्रभात गुप्ता की हत्या के मामले में उन का नाम सामने आया था. लखीमपुर की सत्र अदालत ने सुबूत की कमी में साल 2004 में उन्हें बरी कर दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में यह मामला 17 साल से लंबित है.

अजय मिश्रा ‘टेनी’ को किसानों का इस तरह से ?ांडा दिखाना अच्छा नहीं लगा था. ?ांडा दिखाने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने इस घटना का जिक्र करते हुए मंच से किसानों को धमकी दी थी.

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इस का वीडियो वायरल हो गया. इस में मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने कहा था, ‘‘किसानों के अगुआ यानी संयुक्त किसान मोरचा के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना नहीं कर पा रहे हैं. आंदोलन को 10 महीने हो गए हैं.’’

काले ?ांडे दिखाने वालों के लिए आगे अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने कहा, ‘‘अगर हम गाड़ी से उतर जाते, तो उन्हें भागने का रास्ता नहीं मिलता. कृषि कानून को ले कर केवल 10-15 लोग शोर मचा रहे हैं. यदि कानून इतना गलत है, तो अब तक पूरे देश में आंदोलन फैल जाना चाहिए था.’’

अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने धमकी भरे लहजे में कहा, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो सामना करो, वरना हम सुधार देंगे.

2 मिनट लगेंगे. विधायकसांसद बनने से पहले से लोग मेरे विषय में जानते होंगे कि मैं चुनौती से भागता नहीं हूं. मैं अपनी पर उतर आया, तो लखीमपुर ही नहीं, बल्कि पलिया तक जगह नहीं मिलेगी.’’

केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बाद अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बरताव में ही नहीं उन के पूरे खेमे के बरताव में बदलाव आ गया, जिस की वजह से जनप्रतिनिधि होने के बाद भी वे अपने इलाके की जनता से अच्छा बरताव नहीं कर सके.

वैसे, अजय मिश्रा ‘टेनी’ ऐसे आरोपों को गलत बताते हैं. वे अपने ‘धमकी’ वाले वीडियों को भी पुराना बताते हैं.

दिखाने थे काले झंडे

3 अक्तूबर, 2021 को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का लखीमपुर खीरी में सरकारी कार्यक्रम था. इसी दिन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और खीरी के सांसद अजय मिश्रा ‘टेनी’ के गांव में ‘दंगल’ का कार्यक्रम भी था.

केशव प्रसाद मौर्य को यहां भी मुख्य अतिथि के रूप में जाना था. किसानों ने सब से पहले इंटर कालेज के मैदान पर बने हैलीपैड पर अपने ट्रैक्टर खड़े कर दिए, जिस से वहां हैलीकौप्टर न उतर सके.

इस बात की सूचना लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य को मिली, तो उन्होंने कार्यक्रम में फेरबदल किया और सड़क मार्ग से लखीमपुर पहुंच कर शिलान्यास व लोकार्पण कार्यक्रम में हिस्सा लिया. इस के बाद उन्हें अजय मिश्रा के गांव बनवीरपुर जाना था.

उपमुख्यमंत्री को लेने के लिए अजय मिश्रा ‘टेनी’ के समर्थक 4 गाडि़यों में गांव से निकले. बताया जाता है कि एक गाड़ी में मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा ‘मोनू’ भी थे. किसानों का जब इस बात की खबर लगी, तो वे हजारों की संख्या में निघासन तहसील के तिकुनिया कसबे में जमा हो गए.

मंत्री समर्थकों का काफिला  3 अक्तूबर, 2021 की दोपहर को तकरीबन साढ़े 3 बजे जब गुरुनानक तिराहे पर पहुंचा, तो वहां भीड़ ने उसे रोक लिया. पुलिस के कुछ सिपाही काफिला निकालने की कोशिश कर रहे थे. किसान लाठीडंडों से गाडि़यों को रोक रहे थे. जब गाडि़यां नहीं रुकीं तो पथराव कर दिया. इस के बाद जाम खुल गया और किसान आगे बढ़ने लगे.

रौंदे गए किसान

इस बात की जानकारी जब मंत्री खेमे के लोगों को लगी, तो उन के अंदर भी गुस्सा भर गया. किसानों की भीड़ सड़क पर चल रही थी. इतने में सड़क पर तेजी से 3-4 गाडि़यां निकलीं. इन में सब से आगे काले रंग की ‘थार’ तेज रफ्तार से किसानों को रौंदती हुई आगे निकल गई.

इस घटना का पूरा वीडियो है, जिस में यह साफतौर पर दिख रहा है कि जानबू?ा कर किसानों पर गाड़ी चढ़ाई गई है. इस में 4 किसानों की मौत हो गई.

इन किसानों में चौखड़ा फार्म म?ागई पलियाकलां के 18 साल के लवप्रीत सिंह, धौरहरा के रहने वाले 55 साल के नक्षत्र सिंह, नानपारा बहराइच के

40 साल के गुरुविंदर सिंह और बंजारन टांडा नानपारा बहराइच के 36 साल के दलजीत सिंह शामिल थे. तमाम दूसरे किसान भी गंभीर रूप से घायल हो गए.

इस बात की सूचना मिलते ही वहां पर तोड़फोड़ और मारपीट शुरू हो गई. इस के बाद भीड़ ने निघासन के रहने वाले 30 साल के पत्रकार रमन कश्यप, लखीमपुर के रहने वाले 27 साल के शुभम मिश्रा, फरधान के रहने वाले 26 साल के हरिओम मिश्रा और सिंगाही कला के रहने वाले 30 साल के श्याम सुंदर निषाद की हत्या कर दी. ये मारे गए लोग अजय मिश्रा के ड्राइवर और समर्थक थे.

इस घटना के बाद पूरे देश में इस का विरोध शुरू हो गया. विपक्षी नेताओं ने लखीमपुर पहुंच कर किसानों की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया.

उत्तर प्रदेश सरकार पूरे मामले को कंट्रोल करने में लग गई. लखीमपुर में इंटरनैट की सेवाएं बंद कर दी गईं. केंद्र और प्रदेश की पुलिस यहां लग गईं. लखीमपुर से लगी हर जिले की सीमाएं सील कर दी गईं. नेताओं को लखीमपुर जाने से रोक दिया गया.

भारतीय किसान यूनियन के नेता और किसान आंदोलन के अगुआ राकेश टिकैत को यह लगा कि उत्तर प्रदेश सरकार आंदोलन में हिंसा का बहाना बना कर आंदोलन को कुचल सकती है. ऐसे में उन्होंने किसानों के लिए इंसाफ की मांग करते हुए पूरे मामले की जांच और किसानों की मदद की मांग की.

उत्तर प्रदेश सरकार ने मरने वालों के परिवार को 45 लाख रुपए नकद और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया. पूरा मामला अब जांच एजेंसियों, पुलिस और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है.

अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे आशीष मिश्रा ‘मोनू’ सहित अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 219/2021 धारा 147, 148, 149, 279, 338, 304 ए, 302, 120 बी आईपीसी के तहत थाना तिकुनिया, जिला खीरी में दर्ज कर लिया.

विपक्षी नेताओं का दबाव

भाजपा और उस के पक्ष में काम करने वाली ‘ट्रोल आर्मी’ ने लखीमपुर हादसे के पीछे सब से पहले ‘खालिस्तान’ का नाम लिया, पर बात नहीं बनी. भाजपा को यह पता था कि किसानों को कार के नीचे रौंदने की घटना का चुनावी नुकसान केवल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ही नहीं होगा, बल्कि पंजाब विधानसभा चुनाव में भी इस का नतीजा भुगतना पड़ेगा.

यहां भाजपा की केंद्र और प्रदेश सरकार अलगअलग तरह से काम कर रही थी. प्रदेश सरकार ने मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था, जिस से किसानों के गुस्से को शांत किया जा सके.

अजय मिश्रा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के बाद अजय मिश्रा ‘टेनी’ पर कार्यवाही करने को दरकिनार किया गया. सूत्र बताते हैं कि केंद्रीय हाईकमान ने अजय मिश्रा को ले कर उत्तर प्रदेश सरकार से नरमी बरतने को कहा. इस के बाद अजय मिश्रा उत्तर प्रदेश सरकार की बैठक में शामिल हुए.

विपक्षी नेता प्रियंका गांधी को

57 घंटे उत्तर प्रदेश सरकार ने सीतापुर में पीएसी के गैस्ट हाउस को अस्थायी जेल बना कर बंद कर रखा था. राहुल गांधी के आने के बाद उन्हें छोड़ा गया. इस के बाद वे दोनों मरने वाले किसानों के परिवारों से मिले और उन्हें मदद का भरोसा दिलाया.

कांग्रेस के पंजाब से मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह ‘चन्नी’ और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी लखीमपुर गए और मरने वालों को 50-50 लाख रुपए नकद का मुआवजा देने की घोषणा की.

कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, बसपा नेता सतीश मिश्रा और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह सहित बहुत सारे नेताओं ने लखीमपुर का दौरा किया.

लखीमपुर में किसानों के साथ जो हादसा हुआ है, वह भले ही ऊपर से शांत दिख रहा हो, पर अंदर ही अंदर गुस्से और विरोध की आग धधक रही है. उत्तर प्रदेश के साथसाथ पंजाब विधानसभा चुनाव में इस का असर देखने को मिलेगा.

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