लखीमपुर खीरी सब से ज्यादा गन्ने की पैदावार करता है. इस वजह से ही इसे ‘चीनी का कटोरा’ कहा जाता है. कृषि कानूनों के खिलाफ यहां के किसानों ने जब आवाज बुलंद की, तो उन्हें ‘खालिस्तानी’ कहा जाने लगा.
तराई के इस इलाके ने ही भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में 32 सीटें और लोकसभा चुनाव में 3 सीटें जितवाई थीं. अब भाजपा सिखों को ‘खालिस्तानी’ कह कर दरकिनार करने की कोशिश कर रही है.
केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को कुचलने के लिए हर तरह के छल और बल का प्रयोग केंद्र की भाजपा सरकार और उस की ‘ट्रोल आर्मी’ ने किया. आंदोलन में हिंसा भड़क जाए, इस का इंतजाम भी अराजक लोगों ने किया.
26 जनवरी, 2021 को लालकिले पर इस की बानगी मिल चुकी थी. इस वजह से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत को दो कदम पीछे खींचने पड़े.
किसी भी आंदोलन को लंबा चलाने के लिए कई बार ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं. आंदोलन में हिंसा का सहारा ले कर सत्ता पक्ष पूरे किसान आंदोलन को खत्म कर सकता था. ऐसे में राकेश टिकैत ने दो कदम पीछे खींच कर गेंद उत्तर प्रदेश सरकार के पाले में डाल दी है.
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भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के लखनऊ जिला महामंत्री दिलराज सिंह कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर सही से इंसाफ नहीं किया, तो यही मुद्दा चुनाव में उस की हार का जिम्मेदार होगा. हम ने सरकार के आश्वासन पर किसानों को इंसाफ दिलाने के लिए बात की है. हमारे लोग लगातार किसानों के संपर्क में हैं. अगर सरकार ने कोई वादाखिलाफी की और सही इंसाफ नहीं किया, तो हम चुप नहीं बैठेंगे.’’
बक्शी का तालाब, लखनऊ के रहने वाले सरदार गुरुमीत सिंह कहते हैं, ‘‘हम किसान जब उत्तर प्रदेश के तराई इलाके में आए थे, तब वहां जंगल था. रातदिन जंगली जानवरों का खतरा रहता था. जिन जंगलों में लोग जाने से डरते थे, हम ने वहां खेती शुरू की और अपनी मेहनत से जंगली जमीन को उपजाऊ बनाया. हमारी मेहनत ने उस जंगली जमीन को ‘चीनी के कटोरे’ में बदल दिया.
‘‘हमारे लिए खेती ही सबकुछ है, इसलिए खेती को बचाने के लिए हम सालभर से सड़कों पर हैं. सरकार के हर जुल्म और इलजाम को सिरआंखों पर रखते हुए शांतिपूर्वक अपनी बात कह रहे हैं. हमें केंद्र के ये काले कानून स्वीकार नहीं हैं.’’
कैसे भरी कड़वाहट
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर बसी तराई बैल्ट में पंजाब से आए किसानों ने खेती की तसवीर बदल दी. इस का असर उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों में भी देखा जा सकता है.
पंजाब से आए किसानों ने ‘ऊसर’ और ‘बंजर’ जमीन को खेती के लायक बना कर अपने फार्महाउस बनाए.
पंजाब से आए इन किसानों की तादाद केवल 4 फीसदी ही है. इस के बाद भी उन्होंने अपनी मेहनत से खेतीकिसानी को पूरी तरह से बदल दिया है. पूरे देश के किसान साल में धान की केवल एक फसल ही ले पाते हैं. पंजाब से आए ये किसान अपने खेतों में धान की 2 फसलें लेते हैं.
नेपाल सीमा से लगा उत्तर प्रदेश का जिला लखीमपुर खीरी 7,680 स्क्वायर किलोमीटर इलाके में फैला है. लखीमपुर और खीरी 2 नगरों पर इस का नाम रखा गया है. नेपाल सीमा के साथसाथ यह पीलीभीत, बहराइच, सीतापुर, शाहजहांपुर और हरदोई जिलों से सटा हुआ है.
लखीमपुर की खुशहाली का असर इन जिलों में भी देखा जा सकता है. यहां भी पंजाब से आए किसानों ने अपनेअपने फार्म बना कर खेती की दशा को सुधार दिया है.
खीरी ‘खर’ नाम के जंगली पेड़ों से घिरा था. इस वजह से ही इस इलाके का नाम खीरी पड़ा. यहां का कुछ हिस्सा दलदली जमीन वाला है. किसानों ने इस दलदली जमीन को खेती के लायक बनाया.
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अनदेखी का शिकार
लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बहराइच, सीतापुर, शाहजहांपुर और हरदोई में किसान जागरूक हैं. इस वजह से यहां के किसान केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे हैं.
यहां के किसानों ने पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सब से ज्यादा सीटों से चुनाव जितवाया था. साल 2017 के विधानसभा चुनावों में इस इलाके की 36 विधानसभा सीटों में से 32 सीटों पर भाजपा का कब्जा हुआ था. साल 2019 में 3 लोकसभा सीटें खीरी, धौरहरा और सीतापुर भाजपा के खाते में गई थीं.
यहां का 4 फीसदी सिख तबका भाजपा के पक्ष में था. वह भले ही तादाद में कम हो, पर उस का असर ज्यादा है. ऐसे में तराई के इस इलाके में सिख वोट जीत में बहुत माने रखते हैं. किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते सिख तबका भाजपा के लिए विलेन हो गया. उस पर ‘खालिस्तान’ समर्थक होने के आरोप लगे.
इस की सब से बड़ी वजह यह है कि यहां के लोगों की नजरों में सिखों की खुशहाली खटकती है. वे उन पर दबंगई करने के बहाने तलाश करते रहते हैं. किसान आंदोलन के दौरान यह मौका उन्हें मिल गया और वे यहां के किसानों को निशाने पर लेने लगे.
10 महीने से यहां के किसान ऐसी हालत में पिस रहे हैं. दिल्ली से खीरी तक हर घटना में सिख किसानों को बदनाम करने का काम किया गया. आखिरकार 3 अक्तूबर, 2021 की काली घटना भी घट गई, जिस में 4 किसानों की गाड़ी से कुचल कर हत्या कर दी गई.
मंत्री की धमकी से भड़की आग
लखीमपुर में हुए किसानों के हत्याकांड की बुनियाद पहले पड़ चुकी थी. 25 सितंबर, 2021 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को गदनिया और महंगापुर में आंदोलन कर रहे किसानों ने काले ?ांडे दिखाए थे.
महंगापुर के रहने वाले किसान अमनीत सिंह और उस के 2 साथियों के खिलाफ मुकदमा कायम करा दिया गया.
इसी मामले में दूसरा मुकदमा गदनिया में महेंद्र सिंह समेत 40-45 अज्ञात लोगों के खिलाफ कायम हुआ था.
अमनीत सिंह पर यह आरोप था कि उस ने काले ?ांडे दिखाने का वीडियो वायरल किया. पुलिस ने इन लोगों पर इस बात का मुकदमा भी दर्ज किया कि ?ांडा दिखाने वालों ने ‘कोविड 19’ के प्रोटोकाल को भी नहीं माना था.
अजय मिश्रा ‘टेनी’ के खिलाफ किसानों का गुस्सा यहीं से पनपने लगा था. वहीं पर किसानों ने यह रणनीति बनाई कि अब उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को भी काले ?ांडे दिखाए जाएंगे.
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ दबंग सांसद माने जाते हैं. लखीमपुर के तिनकुनिया इलाके में
साल 2000 में प्रभात गुप्ता की हत्या के मामले में उन का नाम सामने आया था. लखीमपुर की सत्र अदालत ने सुबूत की कमी में साल 2004 में उन्हें बरी कर दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में यह मामला 17 साल से लंबित है.
अजय मिश्रा ‘टेनी’ को किसानों का इस तरह से ?ांडा दिखाना अच्छा नहीं लगा था. ?ांडा दिखाने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने इस घटना का जिक्र करते हुए मंच से किसानों को धमकी दी थी.
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इस का वीडियो वायरल हो गया. इस में मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने कहा था, ‘‘किसानों के अगुआ यानी संयुक्त किसान मोरचा के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना नहीं कर पा रहे हैं. आंदोलन को 10 महीने हो गए हैं.’’
काले ?ांडे दिखाने वालों के लिए आगे अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने कहा, ‘‘अगर हम गाड़ी से उतर जाते, तो उन्हें भागने का रास्ता नहीं मिलता. कृषि कानून को ले कर केवल 10-15 लोग शोर मचा रहे हैं. यदि कानून इतना गलत है, तो अब तक पूरे देश में आंदोलन फैल जाना चाहिए था.’’
अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने धमकी भरे लहजे में कहा, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो सामना करो, वरना हम सुधार देंगे.
2 मिनट लगेंगे. विधायकसांसद बनने से पहले से लोग मेरे विषय में जानते होंगे कि मैं चुनौती से भागता नहीं हूं. मैं अपनी पर उतर आया, तो लखीमपुर ही नहीं, बल्कि पलिया तक जगह नहीं मिलेगी.’’
केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बाद अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बरताव में ही नहीं उन के पूरे खेमे के बरताव में बदलाव आ गया, जिस की वजह से जनप्रतिनिधि होने के बाद भी वे अपने इलाके की जनता से अच्छा बरताव नहीं कर सके.
वैसे, अजय मिश्रा ‘टेनी’ ऐसे आरोपों को गलत बताते हैं. वे अपने ‘धमकी’ वाले वीडियों को भी पुराना बताते हैं.
दिखाने थे काले झंडे
3 अक्तूबर, 2021 को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का लखीमपुर खीरी में सरकारी कार्यक्रम था. इसी दिन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और खीरी के सांसद अजय मिश्रा ‘टेनी’ के गांव में ‘दंगल’ का कार्यक्रम भी था.
केशव प्रसाद मौर्य को यहां भी मुख्य अतिथि के रूप में जाना था. किसानों ने सब से पहले इंटर कालेज के मैदान पर बने हैलीपैड पर अपने ट्रैक्टर खड़े कर दिए, जिस से वहां हैलीकौप्टर न उतर सके.
इस बात की सूचना लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य को मिली, तो उन्होंने कार्यक्रम में फेरबदल किया और सड़क मार्ग से लखीमपुर पहुंच कर शिलान्यास व लोकार्पण कार्यक्रम में हिस्सा लिया. इस के बाद उन्हें अजय मिश्रा के गांव बनवीरपुर जाना था.
उपमुख्यमंत्री को लेने के लिए अजय मिश्रा ‘टेनी’ के समर्थक 4 गाडि़यों में गांव से निकले. बताया जाता है कि एक गाड़ी में मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा ‘मोनू’ भी थे. किसानों का जब इस बात की खबर लगी, तो वे हजारों की संख्या में निघासन तहसील के तिकुनिया कसबे में जमा हो गए.
मंत्री समर्थकों का काफिला 3 अक्तूबर, 2021 की दोपहर को तकरीबन साढ़े 3 बजे जब गुरुनानक तिराहे पर पहुंचा, तो वहां भीड़ ने उसे रोक लिया. पुलिस के कुछ सिपाही काफिला निकालने की कोशिश कर रहे थे. किसान लाठीडंडों से गाडि़यों को रोक रहे थे. जब गाडि़यां नहीं रुकीं तो पथराव कर दिया. इस के बाद जाम खुल गया और किसान आगे बढ़ने लगे.
रौंदे गए किसान
इस बात की जानकारी जब मंत्री खेमे के लोगों को लगी, तो उन के अंदर भी गुस्सा भर गया. किसानों की भीड़ सड़क पर चल रही थी. इतने में सड़क पर तेजी से 3-4 गाडि़यां निकलीं. इन में सब से आगे काले रंग की ‘थार’ तेज रफ्तार से किसानों को रौंदती हुई आगे निकल गई.
इस घटना का पूरा वीडियो है, जिस में यह साफतौर पर दिख रहा है कि जानबू?ा कर किसानों पर गाड़ी चढ़ाई गई है. इस में 4 किसानों की मौत हो गई.
इन किसानों में चौखड़ा फार्म म?ागई पलियाकलां के 18 साल के लवप्रीत सिंह, धौरहरा के रहने वाले 55 साल के नक्षत्र सिंह, नानपारा बहराइच के
40 साल के गुरुविंदर सिंह और बंजारन टांडा नानपारा बहराइच के 36 साल के दलजीत सिंह शामिल थे. तमाम दूसरे किसान भी गंभीर रूप से घायल हो गए.
इस बात की सूचना मिलते ही वहां पर तोड़फोड़ और मारपीट शुरू हो गई. इस के बाद भीड़ ने निघासन के रहने वाले 30 साल के पत्रकार रमन कश्यप, लखीमपुर के रहने वाले 27 साल के शुभम मिश्रा, फरधान के रहने वाले 26 साल के हरिओम मिश्रा और सिंगाही कला के रहने वाले 30 साल के श्याम सुंदर निषाद की हत्या कर दी. ये मारे गए लोग अजय मिश्रा के ड्राइवर और समर्थक थे.
इस घटना के बाद पूरे देश में इस का विरोध शुरू हो गया. विपक्षी नेताओं ने लखीमपुर पहुंच कर किसानों की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया.
उत्तर प्रदेश सरकार पूरे मामले को कंट्रोल करने में लग गई. लखीमपुर में इंटरनैट की सेवाएं बंद कर दी गईं. केंद्र और प्रदेश की पुलिस यहां लग गईं. लखीमपुर से लगी हर जिले की सीमाएं सील कर दी गईं. नेताओं को लखीमपुर जाने से रोक दिया गया.
भारतीय किसान यूनियन के नेता और किसान आंदोलन के अगुआ राकेश टिकैत को यह लगा कि उत्तर प्रदेश सरकार आंदोलन में हिंसा का बहाना बना कर आंदोलन को कुचल सकती है. ऐसे में उन्होंने किसानों के लिए इंसाफ की मांग करते हुए पूरे मामले की जांच और किसानों की मदद की मांग की.
उत्तर प्रदेश सरकार ने मरने वालों के परिवार को 45 लाख रुपए नकद और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया. पूरा मामला अब जांच एजेंसियों, पुलिस और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है.
अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे आशीष मिश्रा ‘मोनू’ सहित अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 219/2021 धारा 147, 148, 149, 279, 338, 304 ए, 302, 120 बी आईपीसी के तहत थाना तिकुनिया, जिला खीरी में दर्ज कर लिया.
विपक्षी नेताओं का दबाव
भाजपा और उस के पक्ष में काम करने वाली ‘ट्रोल आर्मी’ ने लखीमपुर हादसे के पीछे सब से पहले ‘खालिस्तान’ का नाम लिया, पर बात नहीं बनी. भाजपा को यह पता था कि किसानों को कार के नीचे रौंदने की घटना का चुनावी नुकसान केवल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ही नहीं होगा, बल्कि पंजाब विधानसभा चुनाव में भी इस का नतीजा भुगतना पड़ेगा.
यहां भाजपा की केंद्र और प्रदेश सरकार अलगअलग तरह से काम कर रही थी. प्रदेश सरकार ने मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था, जिस से किसानों के गुस्से को शांत किया जा सके.
अजय मिश्रा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के बाद अजय मिश्रा ‘टेनी’ पर कार्यवाही करने को दरकिनार किया गया. सूत्र बताते हैं कि केंद्रीय हाईकमान ने अजय मिश्रा को ले कर उत्तर प्रदेश सरकार से नरमी बरतने को कहा. इस के बाद अजय मिश्रा उत्तर प्रदेश सरकार की बैठक में शामिल हुए.
विपक्षी नेता प्रियंका गांधी को
57 घंटे उत्तर प्रदेश सरकार ने सीतापुर में पीएसी के गैस्ट हाउस को अस्थायी जेल बना कर बंद कर रखा था. राहुल गांधी के आने के बाद उन्हें छोड़ा गया. इस के बाद वे दोनों मरने वाले किसानों के परिवारों से मिले और उन्हें मदद का भरोसा दिलाया.
कांग्रेस के पंजाब से मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह ‘चन्नी’ और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी लखीमपुर गए और मरने वालों को 50-50 लाख रुपए नकद का मुआवजा देने की घोषणा की.
कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, बसपा नेता सतीश मिश्रा और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह सहित बहुत सारे नेताओं ने लखीमपुर का दौरा किया.
लखीमपुर में किसानों के साथ जो हादसा हुआ है, वह भले ही ऊपर से शांत दिख रहा हो, पर अंदर ही अंदर गुस्से और विरोध की आग धधक रही है. उत्तर प्रदेश के साथसाथ पंजाब विधानसभा चुनाव में इस का असर देखने को मिलेगा.