चक्रव्यूह: भाग 2

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‘‘शुक्रिया, आंटीजी…’’

‘‘यह तो हमारा फर्ज है बेटाजी,’’ श्रीमती साहनी उठ खड़ी हुईं.

उन के जाने के बाद सायरा ने राहत की सांस ली. हालांकि सरवर के जरिए अम्मी को उस की खैरखबर भिजवाने की जिम्मेदारी और सरवर के साथ वीडियो कानफें्रसिंग करवाने की बात कर के आंटी ने उसे बहुत राहत दी थी मगर उन का यह कहना ‘हमारे यहां तो कसूरवार को भी तंग नहीं करते तो बेकसूर को क्यों परेशान करेंगे’ या ‘यह तो हमारा फर्ज है’ उसे खुद और अपने मुल्क पर कटाक्ष लगा. वह कहना चाहती थी कि आप लोगों की अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने और एहसान चढ़ाने की आदत से चिढ़ कर ही तो लोग आप को मजा चखाने की सोचते हैं.

सायरा को लंदन स्कूल औफ इकनोमिक्स के वे दिन याद आ गए जब पढ़ाई के दबाव के बावजूद वह और मंसूर एकदूसरे के साथ वहां के धुंधले सर्द दिनों में इश्क की गरमाहट में रंगीन सपने देखते थे. सुनने वालों को तो यकीन नहीं होता था लेकिन पहली नजर में ही एकदूसरे पर मर मिटने वाले मंसूर और सायरा को एकदूसरे के बारे में सिवा नाम के और कुछ मालूम नहीं था.

अंतिम वर्ष में एक रोज जिक्र छिड़ने पर कि नौकरी की तलाश के लिए कौन क्या कर रहा है, सायरा ने मुंह बिचका कर कहा था, ‘नौकरी की तलाश और वह भी यहां? यहां रह कर पढ़ाई कर ली वही बहुत है.’

‘तुम ने तो मेरे खयालात को जबान दे दी, सायरा,’ मंसूर फड़क कर बोला, ‘मैं भी डिगरी मिलते ही अपने वतन लौट जाऊंगा.’

‘वहां जा कर करोगे क्या?’

‘सब से पहले तो सायरा से शादी, फिर हनीमून और उस के बाद रोजीरोटी का जुगाड़,’ मंसूर सायरा की ओर मुड़ा, ‘क्यों सायरा, ठीक है न?’

‘ठीक कैसे हो सकता है यार?’ हरभजन ने बात काटी, ‘वतन लौट कर सायरा से शादी कैसे करेगा?’

‘क्यों नहीं कर सकता? मेरे घर वाले शियासुन्नी मजहब में यकीन नहीं करते और वैसे भी हम दोनों पठान यानी खान हैं.’

‘लेकिन हो तो हिंदुस्तानी- पाकिस्तानी. दोनों मुल्कों के बाशिंदों को नागरिकता या लंबा वीसा आसानी से नहीं मिलता,’ हरभजन ने कहा.

सायरा और मंसूर ने चौंक कर एकदूसरे को देखा.

‘क्या कह रहा है हरभजन? सायरा भी पंजाब से है…’

‘बंटवारे के बाद पंजाब के 2 हिस्से हो गए जिन में से एक में तुम रहते हो और एक में सायरा यानी अलगअलग मुल्कों में.’

‘क्या यह ठीक कह रहा है सायरा?’ मंसूर की आवाज कांप गई.

‘हां, मैं पंजाब यानी लाहौर से हूं.’

‘और मैं लुधियाना से,’ मंसूर ने भर्राए स्वर में कहा, ‘माना कि हम से गलती हुई है, हम ने एकदूसरे को अपने शहर या मुल्क के बारे में नहीं बताया लेकिन अगर बता भी देते तो फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि फिदा तो हम एकदूसरे पर नाम जानने से पहले ही हो चुके थे.’

‘जो हो गया सो हो गया लेकिन अब क्या करोगे?’ दिव्या ने पूछा.

‘मरेंगे और क्या?’ मंसूर बोला.

‘मरना तो हर हाल ही में है क्योंकि अलग हो कर तो जी नहीं सकते सो बेहतर है इकट्ठे मर जाएं,’ सायरा बोली.

‘बुजदिली और जज्बातों की बातें करने के बजाय अक्ल से काम लो,’ अब तक चुप बैठा राजीव बोला, ‘तुम यहां रहते हुए आसानी से शादी कर सकते हो.’

‘शादी के बाद मैं इसे लुधियाना ले कर जा सकता हूं?’ मंसूर ने उतावली से पूछा.

‘शायद.’

‘तब तो बात नहीं बनी. मैं अपना देश नहीं छोड़ सकता.’

‘मैं भी नहीं,’ सायरा बोली.

‘न मुल्क छोड़ सकते हो न एकदूसरे को और मरना भी एकसाथ चाहते हो तो वह तो यहीं मुमकिन होगा इसलिए जब यहीं मरना है तो क्यों नहीं शादी कर के एकसाथ जीने के बाद मरते,’ हरभजन ने सलाह दी.

‘हालात को देखते हुए यह सही सुझाव है,’ राजीव बोला.

‘घर वालों को बता देते हैं कि परीक्षा के बाद यहां आ कर हमारी शादी करवा दें,’ मंसूर ने कहा.

‘मेरी अम्मी तो आजकल यहीं हैं, अब्बू भी अगले महीने आ जाएंगे,’ सायरा बोली, ‘तब मैं उन से बात करूंगी. तुम्हें अगर अपने घर वालों को बुलाना है तो अभी बात करनी होगी.’

‘ठीक है, आज ही तफसील से सब लिख कर ईमेल कर देता हूं.’

‘तुम भी सायरा आज ही अपनी अम्मी से बात करो, उन लोगों की रजामंदी मिलनी इतनी आसान नहीं है,’ राजीव ने कहा.

राजीव का कहना ठीक था. दोनों के घर वालों ने सुनते ही कहा कि यह शादी नहीं सियासी खुदकुशी है. खतरा रिश्तेदारों से नहीं मुल्क के आम लोगों से था, दोनों मुल्कों में तनातनी तो चलती रहती थी और दोनों मुल्कों के अवाम खुनस में उन्हें नुकसान पहुंचा सकते थे.

सायरा की अम्मी ने तो साफ कहा कि शादी के बाद हरेक लड़की को दूसरे घर का रहनसहन और तौरतरीके अपनाने पड़ते हैं लेकिन सायरा को तो दूसरे मुल्क और पूरी कौम की तहजीब अपनानी पड़ेगी.

‘तुम्हारी इस हरकत से हमारी शहर में जो इज्जत और साख है वह मिट्टी में मिल जाएगी. लोग हमें शक की निगाहों से देखने लगेंगे और इस का असर कारोबार पर भी पड़ेगा,’ मंसूर के अब्बा बशीर खान का कहना था.

घर वालों ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था लेकिन एकदूसरे से अलग होना भी मंजूर नहीं था इसलिए दोनों ने घर वालों को यह कह कर मना लिया कि वे शादी के बाद लंदन में ही रहेंगे और उन लोगों को सिवा उन के नाम के किसी और को कुछ बताने की जरूरत नहीं है. उन की जिद के आगे घर वाले भी बेदिली से मान गए. वैसे दोनों ही पंजाबी बोलते थे और तौरतरीके भी एक से थे. शादी हंसीखुशी से हो गई.

कुछ रोज मजे में गुजरे लेकिन दोनों को ही लंदन पसंद नहीं था. दोस्तों का कहना था कि दुबई या सिंगापुर चले जाओ लेकिन मंसूर लुधियाना में अपने पुश्तैनी कारोबार को बढ़ाना चाहता था. भारतीय उच्चायोग से संपर्क करने पर पता चला कि उस की ब्याहता की हैसियत से सायरा अपने पाकिस्तानी पासपोर्ट पर उस के साथ भारत जा सकती थी. सायरा को भी एतराज नहीं था, वह खुश थी कि समझौता एक्सप्रेस से लाहौर जा सकती थी, अपने घर वालों को भी बुला सकती थी लेकिन बशीर खान को एतराज था. उन का कहना था कि सायरा की असलियत छिपाना आसान नहीं था और पंजाब में उस की जान को खतरा हो सकता था.

उन्होंने मंसूर को सलाह दी कि वह पंजाब के बजाय पहले किसी और शहर में नौकरी कर के तजरबा हासिल करे और फिर वहीं अपना व्यापार जमा ले. बशीर खान ने एक दोस्त के रसूक से मंसूर को पुणे में एक अच्छी नौकरी दिलवा दी. काम और जगह दोनों ही मंसूर को पसंद थे, दोस्त भी बन गए थे लेकिन उसे हमेशा अपने घर का सुख और बचपन के दोस्त याद आते थे और वह बड़ी हसरत से सोचता था कि कब दोनों मुल्कों के बीच हालात सुधरेंगे और वह सायरा को ले कर अपनों के बीच जा सकेगा.

सब की सलाह पर सायरा ने नौकरी नहीं की थी. हालांकि पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन घर बैठ कर तालीम को जाया करना उसे अच्छा नहीं लगता था और वैसे भी घर में उस का दम घुटता था. अच्छी सहेलियां जरूर बनी थीं पर कब तक आप किसी से फोन पर बात कर सकती थीं या उन के घर जा सकती थीं.

मंसूर के प्यार में कोई कमी नहीं थी, फिर भी पुणे आने के बाद सायरा को एक अजीब से अजनबीपन का एहसास होने लगा था लेकिन उसे इस बात का कतई गिला नहीं था कि उस ने क्यों मंसूर से प्यार किया या क्यों सब को छोड़ कर उस के साथ चली आई, लेकिन आज के हादसे के बाद उसे लगने लगा था कि जैसे वह अनजान लोगों के चक्रव्यूह में फंस गई है.

 भूपेश बघेल सरकार से नाराज किसान!

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की कांग्रेस  सरकार से धान खरीदी के वादाखिलाफी को लेकर किसानों का आक्रोश अपने चरम पर है. हालात इतने विषम है कि धान खरीदी के मसले पर भूपेश सरकार पूर्णता विफल हो चुकी है. और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित उनका मंत्रिमंडल गांधीजी के बंदरों की तरह आंख बंद करके  मौन बैठा है.

यह बंदर कुछ कहना नहीं चाहते और ज्यादा ही पूछो तो धान के मसले पर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं.मगर जमीनी हकीकत कुछ और है हमारे संवाददाता ने जांजगीर, बिलासपुर, बेमेतरा और रायपुर के कुछ धान मंडियों का निरीक्षण किया और पाया कि किसानों में 25 सौ रुपए क्विंटल धान खरीदी एलान के बाद जैसी विसंगतियां पैदा की गई हैं भूपेश सरकार के खिलाफ किसानों में भयंकर आक्रोश दिखाई दे रहा है.

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दरअसल, इस मसले पर भूपेश और कांग्रेस दोनों बुरी तरह घिरते चले जा रहे हैं.किसानों से वादे तो कर दिया गए मगर जब निभाने का वक्त आया है तो पैसे नहीं होने के कारण छत्तीसगढ़ की आर्थिक हालात बदतर होने के कारण सरकार के पसीने निकल रहे हैं. भूपेश सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से धान के मसले पर “डंडा” चलने लगा है.

गौरतलब है कि डॉ. रमन सिंह सरकार एक-एक दाना धान खरीदने की बात करती थी और खरीदने का प्रयास भी करती थी किसानों के साथ सद व्यवहार के साथ सम्मान के साथ धान खरीदी होती थी मगर अब ऐसा नहीं है. पटवारी के पास चक्कर लगाओ, और तहसील में चक्कर लगाओ, धान समितियों में चक्कर लगाओ. इन सब से किसान बेहद परेशान और  आक्रोश में है.

चीफ सेक्रेटरी उतरे मैदान में

धान खरीदी की हालात इतने बदतर और पतले हैं कि छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव आरपी मंडल को धान खरीदी की शुरुआत के साथ ही धान समितियों पर ग्राउंड पर पहुंचना पड़ा.धान खरीदी केंद्रों का औचक निरीक्षण करने गरियाबंद जिले के झाखरपारा खरीदी केंद्र पहुंचे चीफ सेक्रेटरी आर पी मंडल अव्यवस्थाओं को देखकर कलेक्टर समेत तमाम अधिकारियों पर जमकर फट पड़े. उन्होंने गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए सख्त लहजे में पूछा कि क्या धान खरीदी का क ख ग नहीं जानते हो? मंडल ने खरीदी केंद्र में लापरवाही देखकर चेतावनी भरे अंदाज में दो टूक कहा कि यह बहुत बुरी बात है, यदि धान खरीदी की प्रक्रिया में चूक हुई, तो यह अच्छा नहीं होगा.

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दरअसल चीफ सेक्रेटरी आर पी मंडल, फूड सेक्रेटरी डाक्टर कमलप्रीत सिंह और मार्कफेड की एम डी शम्मी आबिदी के साथ धान खरीदी की समीक्षा करने प्रदेश व्यापी दौरे कर रहे हैं. धान खरीदी में आ रही गड़बड़ियों की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने व्यक्तिगत तौर पर चीफ सेक्रेटरी को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह प्रदेश का दौरा कर मैदानी हालात से रूबरू हों.

आर पी मंडल ने जिला खाद्य अधिकारी एच आर डडसेना को यह तक कह दिया कि क्या इस गलती के लिए मैं अभी सस्पेंड कर दूं? चीफ सेक्रेटरी ने तमाम खामियों को तुरंत दुरूस्त करने के निर्देश दिए. इस दौरान उन्होंने धान बेचने आए किसानों से भी चर्चा की. चीफ सेक्रेटरी ने किसानों को आश्वस्त किया है कि 15 फरवरी तक होने वाली धान खरीदी में पंजीकृत किसानों से प्रति एकड़ 15 क्विंटल धान लिया जाएगा. पहले व्यवस्था दुरूस्त किया जाएगा, इसके बाद लिमिट बढ़ा दिया जाएगा. कुल जमा यह की किसानों के साथ भूपेश सरकार ने जो अति हो रही है उसे किसान बेहद दुखी एवं नाराज हैं वही मुख्य सचिव आरपी मंडल छत्तीसगढ़ की जड़ों से जुड़े हैं मगर आर्थिक हालात बदतर होने के कारण वह भी स्थिति को संभालते संभालते किसानों के दुख दर्द को दूर नहीं कर पा रहे.

किसान कर रहे चक्का जाम!

धान खऱीदी को लेकर किसानों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है.  छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के लोरमी में किसानों ने धान खरीदी की   नित्य “नई नई नीति” के खिलाफ जोरदार  प्रदर्शन किया . वहीं मंगलवार  को फास्टरपुर थाना क्षेत्र के सबसे बड़े धान खरीदी केंद्र में किसानों का गुस्सा फट पड़ा और सैकड़ों किसान कवर्धा-मुंगेली मुख्यमार्ग पर पिछले दो घण्टे से चक्काजाम कर जमकर प्रदर्शन किया.

किसानों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए भूपेश सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की. किसानों का आरोप है कि सिंगापुर उपार्जन केंद्र में एक दिन में 1900 बोरी से ज्यादा धान की खरीदी एक दिन में नहीं की जा रही है. जबकि इस केंद्र में 1200 किसान पंजीकृत हैं. ऐसे में ढाई माह के भीतर सभी किसानों की धान की खरीदी हो पाना संभव नहीं है. किसानों का यह भी आरोप है कि कई नए किसानों का पंजीयन आवेदन देने के बाद भी नहीं किया गया है और अधिकतर किसानों के पंजीकृत रकबे में भी कटौती की गई है, जिसके चलते वो लोग वास्तविक रकबे के हिसाब से धान नहीं बेच पा रहे हैं.

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किसानों के  नाराजगी और चक्काजाम की ख़बर मिलते ही प्रशासन में हड़कंप मचा गया. मौके पर पहुंचे अधिकारियों के द्वारा लगातार किसानों को समझाइश दी गई लेकिन आक्रोशित किसान अपनी मांगों पर अड़े रहे. किसानों ने अफसरों को दो टूक शब्दों में कहा दिया  कि उनकी मांगो को अनसुना किये जाने पर  समिति केंद्र में धान खरीदी बन्द कर दी जाएगी.

समिति के प्रबंधक भी उखड़ गए!

सरकार धान खरीदी समितियों के प्रबंधक एवं कंप्यूटर ऑपरेटरों के ऊपर भी बिजली गिरा रही है. जांजगीर, कोरबा, रायगढ़ आदि जिलों में तो प्रबंधक और कंप्यूटर ऑपरेटरों के ट्रांसफर कर दिया गया.किसी को यहां बैठा दिया गया,किसी को वहां.सीधे-सीधे इसका मतलब यह है कि भूपेश सरकार और प्रशासन समितियों पर अंकुश रखना चाहता है.मगर इससे यह सवाल पैदा हो गया कि क्या प्रबंधक और कंप्यूटर ऑपरेटर के स्थानांतरण के पीछे का सच क्या है इसके पहले कभी भी ऐसे स्थानातरण किसी ने नहीं किए थे.कलेक्टर और एसपी सीधे धान खरीदी केंद्रों पर निगाह रखे हुए हैं मानो यहां बहुत बड़े अपराध होने की स्थिति बनी हुई हो. निकालने की

धान खरीदी को लेकर सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है. किसानों की नाराजगी और आक्रोश के बीच समिति प्रबंधकों और कर्मचारियों ने धान खरीदी कार्य से प्रथक करने की मांग की है. उनकी यह नाराजगी सरकार के द्वारा मिल रहे मौखिक आदेशों को लेकर है.

उपपंजीयक सहकारी समिति संस्थाएं को जिला सहकारी कर्मचारी संघ रायगढ़ के अध्यक्ष और सचिव ने पत्र लिख लिखा है. उन्होंने पत्र में सभी 79 सहकारी समिति के प्रबंधकों को धान खऱीदी से अलग करने कहा है. उन्होंने अपनी मांग के पीछे वजह बताई है कि धान खरीदी को लेकर उन्हें लिखित की बजाय मौखिक आदेश दिये जा रहे हैं. जिसकी वजह से धान बेचने आने वाले किसानों और उनके बीच असंतोष की स्थिति बन रही है. पत्र में कहा गया है कि किसान संगठनों द्वारा एकजुट होकर समिति प्रबंधकों के ऊपर दबाव बनाया जा रहा है.

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उन्होंने मांग की है कि धान खरीदी समिति कर्मचारियों को अलग करके उनकी जगह नोडल अधिकारियों और अन्य विभागीय कर्मचारियों को जवाबदेही देते हुए उनसे खरीदी का कार्य करवाया जाए. उन्होंने कहा है कि  उनके द्वारा धान खरीदी का कार्य नहीं किये जाएगा.

निर्भया कांड के दोषी ने कोर्ट में कहा, “दिल्ली गैंस चैंबर फिर मुझे मौत की सजा क्यों”?

दिल्ली की आबो हवा किस तरह प्रदूषित हो रही है ये किसी से भी छिपा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि आप लोग जनता को मौत के मुंह में ढकेलते जा रहे हैं. अक्टूबर महीने से शुरू हुआ प्रदूषण नवंबर आखिरी तक चला. इस मामले को निपटाने के लिए जहां सभी सरकारों को एकजुट होकर समस्या का निदान करना चाहिए तो सियासतदान राजनीति करने में जुटे हुए हैं. खैर इन सब के अलावा एक मौत की सजा पाए हुए बलात्कार के आरोपी ने ऐसा बयान दिया है जिसने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए.

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड में मौत की सजा पाए चार दोषियों में से एक अक्षय कुमार सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में मामले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए कहा कि दिल्ली गैस चैंबर है, ऐसे मैं मौत की साज देने की क्या जरूरत है. वकील ए.पी.सिंह के माध्यम से दायर समीक्षा याचिका में अक्षय ने कहा, “दिल्ली-एनसीआर में पानी और हवा को लेकर जो कुछ हो रहा है, उससे हर कोई वाकिफ है. जीवन छोटा होता जा रहा है, फिर मृत्युदंड क्यों?”

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सुप्रीम कोर्ट 9 जुलाई 2018 को ही अन्य तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका को रद्द कर चुका है. उस समय अक्षय ने याचिका दायर नहीं की थी. वकील सिंह ने अपने मुवक्किल की ओर से मंगलवार को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की. याचिका में अक्षय ने निवेदन करते हुए दावा किया कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता बिगड़ गई है, और राजधानी शहर सचमुच गैस चैंबर बन गया है. यहां तक कि शहर में पानी भी जहर से भरा है.

गौरतलब है कि 16 दिसंबर, 2012 की रात दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में छह लोगों ने निर्भया (23) के साथ मिलकर दुष्कर्म किया था. सामूहिक दुष्कर्म इतना वीभत्स था कि इससे देशभर में आक्रोश पैदा हो गया था और सरकार ने दुष्कर्म संबंधी कानून और सख्त किए थे.

छह दुष्कर्म दोषियों में से एक नाबालिग था, जिसे बाल सुधार गृह में भेज दिया गया और बाद में रिहा कर दिया गया. एक दोषी ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी. शीर्ष अदालत ने मुकेश (30), पवन गुप्ता (23) और विनय शर्मा (24) की पुनर्विचार याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मृत्युदंड की समीक्षा के लिए अभियुक्तों द्वारा कोई आधार स्थापित नहीं किया गया है.

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Bigg Boss 13: कैप्टेंसी टास्क के चलते घर में हुआ हंगामा, असीम के खिलाफ हुए ये सेलेब्स

बिग बौस का लास्ट एपिसोड हर रोज की तरह काफी हंगामों भरा रहा. बीते एपिसोड में बिग बौस ने सभी घरवालों को कैप्टेंसी टास्क दिया जिसका नाम था बीबी पोस्ट औफिस. इस टास्क में कुछ कंटेंस्टेंस के घर से चिट्ठियां आईं थी और चिट्ठी आई है गाना बजते ही सभी घरवालों को इस कंटेस्टेंट के पोस्ट बौक्स का पास जाकर वो चिट्ठी लेनी है पर उस चिट्ठी के साथ कुछ खाली कागज़ भी आए. उसके बाद जिस भी सदस्य के पास उस कंटेस्टेंट के घर से आई चिट्ठी होगी वो उसका फैसला होगा कि उस कंटेस्टेंट को वापस देनी है या फिर वहीं मौजूद एक मशीन के जरिए फाड़ देनी है.

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विकास गुप्ता ने फाड़ी रश्मि की चिट्ठी…

इसी के चलते अगर वे कंटेस्टेंट इस सदस्य को चिट्ठी वापस कर देता है तो वो कैप्टन बनने का एक मौका छोड़ देगा पर अगर वे कंटेस्टेंट चिट्ठी फाड़ देता है तो वे कैप्टन बन सकता है. इसी दौरान रश्मि देसाई की चिट्ठी हिंदुस्तानी भाऊ को मिली और उन्होनें ये फैसला किया कि वे रश्मि को चिट्ठी देंगे पढ़ने के लिए पर जैसे ही भाऊ रश्मि को चिट्ठी दे रहे थे इतने में विकास गुप्ता ने उनके हाथ से चिट्ठी छीन कर फाड़ डाली जिस पर रश्मि को काफी बुरा लगा.

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असीम ने तोड़ा माहिरा का दिल…

इस दौरान जब असीम  के घर की चिट्ठी माहिरा शर्मा को मिली तो उन्होनें भी असीम  को चिट्ठी पढ़ने के लिए दे दी पर जब माहिरा की चिट्ठी असीम को मिली को उन्होनें चिट्ठी को फाड़ दिया और कहा कि वे यहां इमोशनली खेलने नहीं आए हैं और वे कैप्टन भी बनना चाहते इसलिए वे माहिरा को चिट्ठी नहीं दे रहे. इस बात पर माहिरा काफी रोईं और उदास दिखाई दीं.

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असीम  के इस रवय्ये को देख कर फैंस को माहिरा शर्मा के लिए काफी बुरा लगा और बिग बौस के फैंस ने इसी मुद्दे पर ट्वीटर के जरिए ट्वीट्स भी किए. जिसमें से कुछ ट्वीट्स हैं-

असीम और शेफाली के बीच होने वाली है भयंकर लड़ाई…

अब देखने वाली बात ये होगी की इस कैप्टेंसी टास्क में और कितने कंटेस्टेंटस् के दिल टूटेंगे और सबसे बड़ी बात जो शो के मेकर्स ने आज के एपिसोड के प्रोमो के जरिए हमें बताई है कि आज के एपिसोड में असीम रियाज और शेफाली जरीवाला के बीच जमकर लड़ाई होने वाली है.

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वरुण धवन के इन 4 स्टाइलिश लुक्स को जरूर करें फौलो

अपनी चौकलेटी इमेज के कारण लड़कियों के दिल में राज करने वाले वरुण धवन का फैशन सेन्स भी काफी पसंद किया जाता है. बात उनकी बौडी की करें या उनके हेयर स्टाइल की, फैंस उनकी सभी चीजों को फौलो करते हैं. फिल्म “स्टूटेंड औफ दी ईयर” से बौलीवुड में एंट्री  करने वाले वरुण ने बेहद कम समय में ही बौलीवुड में अपनी धमाकेदार पकड़  बना ली जिसके चलते उनकी फैंस फौलोविंग काफी ज्यादा हैं. वरुण के कूल लुक्स और स्टाइलिश अंदाज सभी का दिल जीत लेते हैं इसलिए आज हम लेकर आए हैं उनके कुछ खास स्टाइल जिसे आप अपने कौलेज, औफिस और पार्टीज में ट्राई कर सकते हैं.

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1.शर्ट विद कालर कवर

अगर आप कौलेज में कूल दिखना चाहते हैं तो वरुण के इस स्टाइल को जरुर ट्राई करें. इस में एक सोलिड कलर की शर्ट के साथ आप टाई या बंडाना कुछ इस तरह ट्राई कर सकते हैं. साथ में ओवल शेप का सनग्लास इस लुक में और चार चांद लगा रहा है. वही वरुण की हेयर स्टाइल भी इस लुक के साथ परफेक्ट है.

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2.वरुण का शादी-संगीत लुक

शादी का सीजन चल रहा हैं, ऐसे में लोग अपनी ड्रेसिंग सेंस के लेकर काफी सोच विचार करता रहते हैं. शादी पार्टी के लिए वरुण का ये वाइट शेरवानी लुक अच्छा है. कान में इयर रिंग और ब्लैक शूज इस लुक को और भी कौम्प्लिमेंट दे रहा है. इस लुक को आप शादी के किसी भी फंक्शन पर ट्राई कर सकते हैं.

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3.चेक ओवर कोट जैकेट

आज कल चेक शर्ट, पेंट और जैकेट का काफी ट्रेंड है. यदि आप फैशन को फौलो करते हैं तो सोलिड कलर टी-शर्ट के साथ चेक ओवर कोट जैकेट जरुर ट्राई करें. इससे आप और भी ज्यादा अपीलिंग लगेंगे. साथ ही वरुण की तरह स्नीकर शूज इस लुक को और कौम्प्लिमेंट दे रहा हैं.

4.सिंपल एंड सोबर लुक

इस लुक को आप कैजुअली कही भी ट्राई कर सकते हैं. इस लुक में वरुण ने लाइट हुडी के साथ क्रीम कलर का ट्राउजर पहना है, जो काफी स्टाइलिश लग रहा है. साथ में उनका बूट इस लुक को और भी कौम्प्लिमेंट दे रहा है.

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जाति की राजनीति में किस को फायदा

इस देश में शादीब्याह में जिस तरह जाति का बोलबाला है वैसा ही राजनीति में भी है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ मिल यादवोंपिछड़ों को दलितों के साथ जोड़ने की कोशिश की थी पर चल नहीं पाई. दूल्हे को शायद दुलहन पसंद नहीं आई और वह भाजपा के घर जा कर बैठ गया. अब दोनों समधी तूतू मैंमैं कर रहे हैं कि तुम ने अपनी संतान को काबू में नहीं रखा.

इस की एक बड़ी वजह यह रही कि दोनों समधियों ने शादी तय कर के मेहनत नहीं की कि दूल्हेदुलहन को समझाना और पटाना भी जरूरी है. दूसरी तरफ गली के दूसरी ओर रह रही भाजपा ने अपनी संतान को दूल्हे के घर के आगे जमा दिया और आतेजाते उस के आगे फूल बरसाने का इंतजाम कर दिया, रोज प्रेम पत्र लिखे जाने लगे, बड़ेबड़े वायदे करे जाने लगे कि चांदतारे तोड़ कर कदमों में बिछा दिए जाएंगे. वे दोनों समधी अपने घर को तो लीपनेपोतने में लगे थे और होने वाले दूल्हेदुलहन पर उन का खयाल ही न था कि ये तो हमारे बच्चे हैं, कहना क्यों नहीं मानेंगे?

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अब दूल्हा भाग गया तो दोष एकदूसरे पर मढ़ा जा रहा है. यह सांप के गुजर जाने पर लकीर पीटना है. मायावती बेवकूफी के बाद महाबेवकूफी कर रही हैं. यह हो सकता है कि पिछड़ों ने दलितों को वोट देने की जगह भाजपा को वोट दे दिया जो पिछड़ों को दलितों पर हावी बने रहने का संदेश दे रही थी.

इस देश की राजनीति में जाति अहम है और रहेगी. यह कहना कि अचानक देशभक्ति का उबाल उबलने लगा, गलत है. जाति के कारण हमारे घरों, पड़ोसियों, दफ्तरों, स्कूलों में हर समय लकीरें खिंचती रहती हैं. देश का जर्राजर्रा अलगअलग है. ब्राह्मण व बनियों में भी ऊंचनीच है. कुंडलियों को देख कर जो शादियां होती हैं उन में न जाने कौन सी जाति और गोत्र टपकने लगते हैं.

जाति का कहर इतना है कि पड़ोसिनें एकदूसरे से मेलजोल करने से पहले 10 बार सोचती हैं. प्रेम करने से पहले अगर साथी का इतिहास न खंगाला गया हो तो आधे प्रेम प्रसंग अपनेआप समाप्त हो जाते हैं. अगर जाति की दीवारें युवकयुवती लांघ लें तो घर वाले विरोध में खड़े हो जाते हैं. घरघर में फैला यह महारोग है जिस का महागठबंधन एक छोटा सा इलाज था पर यह नहीं चल पाया. इसका मतलब यह नहीं कि उसे छोड़ दिया जाए.

देश को जाति की दलदल से निकालने के लिए जरूरी है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपना अहंकार छोड़ें और पिछड़े और दलित अपनी हीनभावना को. अखिलेश यादव और मायावती ने प्रयोग किया था जो अभी निशाने पर नहीं बैठा पर उन्होंने बहुत देर से और आधाअधूरा कदम उठाया. इस के विपरीत जाति को हवा देते हुए भाजपा पिछले 100 सालों से इसे हिंदू धर्म की मूल भावना मान कर अपना ही नहीं रही, हर वर्ग को सहर्ष अपनाने को तैयार भी कर पा रही है.

अखिलेश यादव और मायावती ने एक सही कदम उठाया था पर दोनों के सलाहकार और आसपास के नेता यह बदलाव लाने को तैयार नहीं हैं.

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भीड़ को नहीं है किसी का डर

मामला परशुराम के पिता का पुत्रों को मां का वध करने का हो, अहिल्या का इंद्र के धोखे के कारण अपने पति को छलने का या शंबूक नाम के एक शूद्र द्वारा तपस्या करने पर राम के हाथों वध करने का, हमारे धर्म ग्रंथों में तुरंत न्याय को सही माना गया है और उस पर धार्मिक मुहर लगाई गई है. यह मुहर इतनी गहरी स्याही लिए है कि आज भी मौबलिंचिंग की शक्ल में दिखती है. असम में तिनसुकिया जिले में भीड़ ने पीटपीट कर एक पति व उस की मां को मार डाला, क्योंकि शक था कि उस ने अपनी 2 साल की बीवी और 2 महीने की बेटी को मार डाला.

मजे की बात तो यह है कि जब पड़ोसी और मृतक बीवी के घर वाले मांबेटे की छड़ों से पिटाई कर रहे थे, लोग वीडियो बना कर इस पुण्य काम में अपना साथ दे रहे थे.

देशभर में इस तरह भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेने और भीड़ में खड़े लोगों का वीडियो बनाना अब और ज्यादा बढ़ रहा है, क्योंकि शासन उस तुरंत न्याय पर नाकभौं नहीं चढ़ाता. गौरक्षकों की भीड़ों की तो सरकारी तंत्र खास मेहमानी करते हैं. उन्हें लोग समाज और धर्म का रक्षक मानते हैं.

तुरंत न्याय कहनेसुनने में अच्छा लगता है पर यह असल में अहंकारी और ताकतवर लोगों का औरतों, कमजोरों और गरीबों पर अपना शासन चलाने का सब से अच्छा और आसान तरीका है. यह पूरा संदेश देता है कि दबंगों की भीड़ देश के कानूनों और पुलिस से ऊपर है और खुद फैसले कर सकती है. यह घरघर में दहशत फैलाने का काम करता है और इसी दहशत के बल पर औरतों, गरीबों, पिछड़ों और दलितों पर सदियों राज किया गया है और आज फिर चालू हो गया है.

जब नई पत्नी की मृत्यु पर शक की निगाह पति पर जाने का कानून बना हुआ है तो भीड़ का कोई काम नहीं था कि वह तिनसुकिया में जवान औरत की लाश एक टैंक से मिलने पर उस के पति व उस की मां को मारना शुरू कर दे. यह हक किसी को नहीं. पड़ोसी इस मांबेटे के साथ क्यों नहीं आए, यह सवाल है.

लगता है हमारा समाज अब सहीगलत की सोच और समझ खो बैठा है. यहां किसी लड़केलड़की को साथ देख कर पीटने और लड़के के सामने ही लड़की का बलात्कार करने और उसी समय उस का वीडियो बनाने का हक मिल गया है.

यहां अब कानून पुलिस और अदालतों के हाथों से फिसल कर समाज में अंगोछा डाले लोगों के हाथों में पहुंच गया है, जो अपनी मनमानी कर सकते हैं. पिछले 100-150 साल के समाज सुधार और कानून के सहारे समाज चलाने की सही समझ का अंतिम संस्कार जगहजगह भीड़भड़क्के में किया जाने लगा है. यह उलटा पड़ेगा पर किसे चिंता है आज. आज तो पुण्य कमा लो.

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सतर्क रहना युवती का पहला काम

शराब बलात्कारों का दरवाजा खोलती है, क्योंकि शराब के नशे में न तो लड़कियों को सुध रहती है कि उन के साथ क्या हो रहा है न बलात्कारियों को. देशी एयरलाइनों में काम करने वाली एअरहोस्टेसें अपनेआप में खासी मजबूत होती हैं और यात्रियों से डील करतेकरते उन्हें दिलफेंक लोगों को झिड़कना आता है. उन की ट्रेनिंग ऐसी होती है कि वे छुईमुई नहीं होतीं और उन के मसल्स मजबूत होते हैं.

ऐसे में कोई एअरहोस्टेस पुलिस में शिकायत करे कि उस के साथ बलात्कार हुआ तो यह काफी जोरजबरदस्ती और शराब के साथ नशीली दवा के कारण ही हुआ होगा. हैदराबाद में रहने वाली इस युवती की शिकायत है कि वह कुछ ड्रिंक्स लेने अपने सहयोगी के साथ गई थी और फिर उस के साथ उस के घर चली गई. वहां सहयोगी और 2 अन्य ने उसे बेहोश कर के उस के साथ बलात्कार किया.

इस दौरान उस का मंगेतर और पिता लगातार फोन से संपर्क करने की कोशिश करते रहे और जब सुबह उस के होश आने पर उस ने फोन उठाया और पिता व मंगेतर से बात की तो पुलिस कंप्लेंट फाइल की.

बलात्कार के बारे में अकसर यह कह दिया जाता है कि उस में लड़की की सहमति होगी जो बाद में मुकर गई पर इस पर प्रतिप्रश्न यही है कि यदि उस ने पहले सहमति से अपने सुख के लिए संबंध बनाया तो वह आगे भी संबंध बनाएगी न कि शिकायतें करेगी. वह शिकायत तो तभी करेगी जब उस से जबरदस्ती करी जाए.

यह कुछ ऐसा ही है कि यदि दोनों में से एक दोस्त दूसरे की लंबे दिनों तक आर्थिक सहायता करता रहे पर एक दिन जब वह मना कर दे तो क्या सहायता मांगने वाले के पास देने वाले का पर्स चोरी करने का अधिकार है? हां, शराब के नशे में दोस्त दोस्त का पर्स साफ कर जाए तो संभव है पर यह भी अपराध ही है. पैसे का अपराध छोटा है, शारीरिक अपराध बड़ा है. एक घूंसा मारने पर लोग बदले में दूसरे पर गोली तक चला देते हैं. यह अपने अधिकारों का इस्तेमाल है.

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अपने बारे में सतर्क रहना हर युवती का पहला काम है. यदि उसे किसी से सैक्स संबंध बनाने पर एतराज नहीं है तो उसे खुली छूट है कि वह रात उस के घर जाए, उस के साथ नशा करे. पर यदि किसी कारण उसे किसी युवक दोस्त के साथ रहना पड़े तो शराब का रिस्क तो वह ले ही नहीं सकती. अपनी सुरक्षा पहले अपने हाथ में है. छुईमुई न बनें, पर बेमतलब रिस्क भी न लें. रात अंधेरे में आदमी भी जेब में पर्स और मोबाइल लिए चलने में घबराते हैं, यह न भूलें.

नमामि: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- नमामि: भाग 1

लेखिका- मधुलता पारे

अगले दिन डोरबैल बजी. कल्पना मन ही मन बड़ी खुश हुई कि रामवती ने वक्त की कीमत तो सम झी, पर जब दरवाजा खोला तो रामवती की जगह एक दुबलीपतली सांवले रंग की चमकदार आंखों वाली लड़की खड़ी थी. सलोना, पर आकर्षक चेहरा. बाल खूबसूरती से बंधे हुए.

‘‘आंटीजी, मु झे मम्मी ने काम करने के लिए भेजा है. शाम को तो मम्मी ही आएंगी.’’

‘‘तुम रामवती की बेटी नमामि हो? वह क्यों नहीं आई?’’ कल्पना को अपना सवाल ही बेतुका लगा, पर जबान थी कि फिसल गई.

नमामि का जवाब भी वही था, ‘‘मम्मी सोनू का डब्बा बना रही हैं.’’

नमामि बड़े सलीके से सधे हुए हाथों से काम करती जा रही थी. सुबह के

9 बजे तक उस ने काम पूरा कर लिया था. इस के बाद वह चली गई.

कल्पना तो कुछ ही देर में उस की कायल हो गई. उस की एक चिंता दूर हो गई कि उसे काम नहीं करना पड़ेगा. आराम से औफिस जा सकेगी. सोनू ने नमामि को चुन कर कोई भूल नहीं की.

कल्पना समय से औफिस के लिए निकल गई. नमामि का शांत और आकर्षक चेहरा उस के जेहन में रहरह कर आ रहा था. बस में बैठने के बाद भी वह उसी चेहरे में खोई थी कि अचानक कल्पना की सोच में कुछ दृश्य आने लगे.

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ब्याह कर आई कल्पना बहुत से नातेरिश्तेदारों के बीच बैठी थी. अचानक बड़ी दीदी की आवाज ने चुप्पी तोड़ी, ‘राजेश के लिए तो बहुत सी गोरी लड़कियों के रिश्ते आए थे, पर बाबूजी को तो कल्पना ही पसंद आई. सांवली है, पर क्या किया जा सकता है.’

बड़ी दीदी के शब्दों से कल्पना निराशा से भर गई थी. बाद में भी बड़ी दीदी उसे अकसर ताने मारती रहती थीं, पर बाबूजी, मांजी और राजेश ने उस के रंग को ले कर कभी कोई सवाल नहीं किया था, बल्कि मांजी का साथ ही हमेशा उस की ढाल बना रहा था. बरसों बीते गए. कल्पना अपनी गृहस्थी में रम गई है.

श्रेया के जन्म के बाद नौकरी व घर में तालमेल बनाए रखने में कल्पना के अनुशासित स्वभाव की बड़ी अहमियत रही. अब कल्पना की जिंदगी भी

2 शहरों के बीच कभी इधर तो कभी उधर डोल रही थी.

अचानक मांजी की तबीयत खराब होने के चलते कल्पना को छुट्टी लेनी पड़ी. 15 दिनों के बाद जब कल्पना वापस आई तो सब से पहले रामवती याद आई. पड़ोसन से पूछा तो पता चला कि रामवती ने आजकल काम करना छोड़ दिया है. नमामि के बारे में भी उसे कोई जानकारी नहीं थी.

थकहार कर कल्पना ने खुद ही काम करने की ठानी. 2 घंटे में काम खत्म करने के बाद हाथ में चाय का कप ले कर बैठी तो सारी परेशानियां जैसे धुआंधुआं हो गईं. उस ने तय किया कि अब महरी के  झमेले में नहीं पड़ेगी. काम ही कितना है, खुद ही निबटा लेगी.

‘‘कल्पतरू मैडम हैं क्या?’’ दरवाजे पर किसी की आवाज आई. जा कर देखा तो मिताली थी. उस के औफिस की साथी, जो उस के ही महल्ले में 10-12 घर छोड़ कर रहती थी.

‘‘अभी 2 घंटे पहले ही आई हूं. लो, चाय पी लो,’’ कहते हुए कल्पना मिताली के लिए किचन से चाय बना कर ले आई. दोनों बातों में खो गईं.

मिताली के जाने के बाद कल्पना के दिमाग में फिर पुराने दिनों की रेल चलने लगी. पापा ने कितने चाव से कल्पतरू नाम रखा था, पर वह कल्पतरू से कब कल्पना बन गई, उसे पता ही नहीं चला. कल्पतरू नाम केवल स्कूलकालेज और औफिस के रजिस्टर तक ही सीमित रहा. ससुराल में भी सब उसे कल्पना ही बुलाते हैं.

अचानक बड़ी दीदी उस के खयालों में खड़ी हो गईं, जो शुरुआत में तो उस की नौकरी के भी खिलाफ थीं, पर बाबूजी के सामने उन्हें चुप रहना पड़ा था. धीरेधीरे कल्पना के बरताव से उन की सोच बदलती गई. नौकरी के साथ घर को भी उस ने इतनी अच्छी तरह संभाल लिया था कि नौकरीपेशा औरतों को ले कर सब लोगों में जो शंका थी, वह दूर हो गई, खासकर दीदी में भी उस ने यह बदलाव महसूस किया.

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पापा अकसर कहते थे, ‘बिटिया ने तो सब की सोच का कायाकल्प कर के अपना नाम सच साबित कर दिया.’

एक दिन कल्पना औफिस से लौट रही थी कि रास्ते में रामवती मिल गई.

‘‘कैसी हो रामवती? नमामि कैसी है?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘क्या बताऊं… उस लड़की ने तो मेरी नाक कटवा दी.’’

कल्पना ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा, तो वह रास्ते में ही शुरू हो गई,

‘‘बीबीजी, अब वह कह रही है कि शादी नहीं करेगी और अगर जबरदस्ती की तो कुछ खा कर मर जाएगी.’’

‘‘पर, सोनू से तो उस की सगाई हो गई है न और वह तो तुम्हारे घर में ही रहता है.’’

‘‘अब नहीं रहता. जिस दिन उसे पता चला कि नमामि उस से प्यार नहीं करती, वह उसी दिन अपने घर चला गया.’’

कल्पना अपने ही सवाल में उल झते हुए घर पहुंच गई.

एक रविवार को कल्पना जाड़े की धूप का मजा ले रही थी. इस बार राजेश आ गए थे. कुछ सामान लाने वे बाजार गए थे. अचानक उस की नजर रास्ते से गुजरती रामवती की दूसरी बेटी शिवानी पर पड़ी. कभीकभी नमामि के साथ वह भी उस का हाथ बंटाने आ जाती थी. इसी वजह से कल्पना उसे जानती थी.

कल्पना ने हाथ के इशारे से शिवानी को बुलाया और बिना कोई भूमिका बांधे सीधा सवाल कर दिया, ‘‘नमामि क्यों सोनू से शादी नहीं करना चाहती?’’

‘‘आंटीजी, एक दिन सोनू ने उस के चेहरे की ओर देखते हुए कहा था कि मैं ही हूं, जो तुम जैसी काली लड़की से शादी के लिए तैयार हो गया हूं. मेरे लिए तो एक से बढ़ कर एक लड़कियों की लाइन लगी थी?’’

शिवानी के जाने के बाद कल्पना ने अपने खराब नल की शिकायत हार्डवेयर दुकान वाले गज्जू भैया से की और शाम तक किसी प्लंबर को भेजने के लिए कहा.

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शाम को घर की डोरबैल बजी. देखा तो बाहर 2 लड़के खड़े थे.

‘‘हमें गज्जू भैया ने भेजा है,’’ उन में से एक छोटा लग रहा था, ने कहा, ‘‘आप का नल ठीक करना है?’’

अनजान लोगों को देख कल्पना के मन में शक हुआ.

‘‘मैं जरा पता कर के बताती हूं,’’ इतना कह कर कल्पना ने हाईवेयर की दुकान में फोन लगाया. वहां से दुकान के मालिक ने बताया कि उस ने ही उन्हें भेजा है. वे दोनों भाई उसी की दुकान में काम करते हैं.

कल्पना ने उन्हें अंदर बुलाया. एक थोड़ा चंचल था, साथ ही बातों में

भी तेज था. दूसरा थोड़ा गंभीर लग रहा था. गोराचिट्टा, सुंदर और नीली आंखों वाला.

‘‘कहां तक पढ़े हो?’’ कल्पना ने यों ही पूछा.

‘‘हम ने तो अपने पिताजी से यह काम सीखा है. घर में थोड़ी मदद हो जाए इसलिए करते हैं. बड़ा वाला

5 साल से काम कर रहा है. उस की शादी भी हो गई?है.’’

थोड़ी देर में उस ने नल बदल दिया. सामान की परची दिखा कर पैसे ले लिए. बात आईगई हो गई.

एक दिन कल्पना औफिस से आ कर बैठी ही थी कि रामवती आ गई. वह बड़ी खुश दिख रही थी.

‘‘अरे रामवती, बड़ी खुश दिख रही हो, क्या बात है? नमामि कैसी है?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘अरे बीबीजी, मैं ने तो पिछले महीने उस का ब्याह कर दिया है.’’

‘‘कहां और किस से?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘अरे बीबीजी, आप के यहां नल ठीक कर आया था न, वही मेरा दामाद मनोज. नमामि का दूल्हा.’’

‘‘पर, तुम्हें कैसे पता कि वह मेरे घर आया था?’’

‘‘अरे बीबीजी, उस ने बताया था. आप के महल्ले में ही तो दुकान है उस की. हम लोग अकसर आप की बात करते रहते हैं.

‘‘पर, इतनी जल्दी तुम्हें इतना सुंदर लड़का कैसे मिल गया?’’

उसे तो नमामि ने ही पसंद किया. सोनू को जवाब जो देना था,’’ रामवती ने कहा.

रामवती की बातें सुन कर कल्पना को आज शांति का अहसास हुआ. उस सांवले रंग की दुबलीपतली लड़की ने पूरे समाज को जवाब दे दिया था.

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समर्पण: भाग 1

उन की बातों से आहत आलोक यह तय नहीं कर पा रहा था कि उम्र के इस पड़ाव पर वह अपने अंतर्मन की आवाज सुने या अपनी परिस्थितियों से समझौता कर मंत्रीजी का साथ दे.

अचानक रात के 2 बजे टेलीफोन की घंटी बजी तो रीता ने आलोक की तरफ देखा. वह उस समय गहरी नींद में था. वैसे भी आलोक मंत्री दीनानाथ के साथ 4 दिन के टूर के बाद रात के 11 बजे घर लौटा था. 1 महीने बाद इलेक्शन था, उस का मंत्रीजी के साथ काफी व्यस्त कार्यक्रम था.

कोई चारा न देख कर रीता ने अनमने मन से फोन उठाया. जब तक वह कुछ कह पाती, उधर से मंत्रीजी की पत्नी का घबराया स्वर सुनाई दिया, ‘‘आलोक, मंत्रीजी की तबीयत ठीक नहीं है. शायद हार्टअटैक पड़ा है. जल्दी किसी डाक्टर को ले कर पहुंचो.’’

‘‘जी मैम, वह तो सो रहे हैं.’’

‘‘अरे, सो रहा है तो उसे जगाओ न, प्लीज. और हां, जल्दी से वह किसी डाक्टर को ले कर यहां पहुंचे.’’

‘‘अभी जगाती हूं,’’ कह कर रीता ने फोन रख दिया.

आलोक को जगा कर रीता ने वस्तुस्थिति बताई तो उस ने झटपट शहर के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ डा. नीरज सक्सेना को फोन मिलाया पर वह नहीं मिले, वह दिल्ली गए हुए थे.

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उन के बाद डा. सीताराम का शहर में नाम था. आलोक ने उन्हें फोन मिलाया. वह मिल गए तो उन्हें मंत्रीजी की सारी स्थिति बताते हुए उन से जल्द से जल्द वहां पहुंचने का आग्रह किया.

जब आलोक मंत्रीजी के घर पहुंचा तो उसी समय डा. सीताराम भी अपनी गाड़ी से उतर रहे थे. उन्हें देखते ही मंत्रीजी की पत्नी बोलीं, ‘‘अरे, आलोक, इन्हें क्यों बुला लाए, इन्हें कुछ आता भी है…इन के इलाज से मुन्ने का साधारण बुखार भी महीने भर में छूटा था.’’

यह सुन कर डा. सीताराम भौचक्के से रह गए, पर आलोक ने गिड़गिड़ा कर कहा, ‘‘मैम, इन को चैक कर लेने दीजिए.’’

‘‘अरे, यह क्या चैक करेंगे. हमारे साहब की सिफारिश पर ही इन्हें डाक्टरी में दाखिला मिला था. वरना इन की औकात ही क्या थी?’’

‘‘डाक्टर साहब सर के परिचितों में से हैं. कम से कम इन्हें मंत्रीजी का प्राथमिक उपचार तो कर लेने दें. उस के बाद आप जहां चाहेंगी उन्हें ले जाएंगे. ऐसी स्थिति में कई बार थोड़ी सी देर भी जानलेवा सिद्ध हो जाती है,’’ आलोक गिड़गिड़ा उठा था.

‘‘ठीक है, आ जाओ,’’ मंत्री की पत्नी ने ऐसे कहा जैसे वह डाक्टर पर एहसान कर रही हैं.

डा. सीताराम निरपेक्ष भाव से मंत्रीजी को चैक करने लगे पर ऐसे समय में मंत्रीजी की पत्नी का यह व्यवहार आलोक की समझ से परे था. यह सच है कि डा. सीताराम हृदयरोग विशेषज्ञ नहीं हैं पर हर रोग पर उन की अच्छी पकड़ है. पिछले वर्ष ही उन्होंने अपना 10 बेड का एक नर्सिंग होम भी खोला है. वैसे भी एक डाक्टर, चाहे वह स्पेशलिस्ट हो या न हो, किसी भी बीमारी में शुरुआती उपचार दे कर मरीज की जान पर आए खतरे को टाल तो सकता ही है.

डा. सीताराम ने मंत्रीजी का चैकअप कर तुरंत इंजेक्शन लगाया तथा कुछ आवश्यक दवाएं लिख कर मंत्रीजी को अपने नर्सिंग होम में भरती करने की सलाह दी. भरती होते ही उन का इलाज शुरू हो गया, उन्हें सीवियर अटैक आया था.

इसी बीच आलोक ने दिल्ली फोन कर दिया और वहां से विशेषज्ञ डाक्टरों की एक टीम चल दी पर जब तक वह टीम पहुंची, डा. सीताराम के इलाज से मंत्रीजी की हालत काफी स्थिर हो चुकी थी. दिल्ली से आए डाक्टरों ने उन की सारी रिपोर्ट देखी तथा हो रहे इलाज पर अपनी संतुष्टि जताई.

उधर मंत्रीजी बीमारी के चलते अपनी इलेक्शन रैली न कर पाने के कारण बेहद परेशान थे. डाक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी और उन से यह भी कह दिया कि आप के लिए इस समय स्वस्थ होना जरूरी है. मंत्रीजी के लिए स्वास्थ्य के साथसाथ चुनाव जीतना भी जरूरी था. वैसे भी चुनाव से पहले के कुछ दिन नेता के लिए जनममरण की तरह महत्त्वपूर्ण होते हैं.

आखिर अस्पताल से ही मंत्रीजी ने सारी व्यवस्था संभालने की सोची. उन्होंने अपने भाषण की संक्षिप्त सीडी तैयार करवाई तथा आयोजित सभा में उस को दिखाने की व्यवस्था करवाई, इस के साथ ही सभा की जिम्मेदारी उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को सौंपी.

चुनाव में इस बात का काफी जोरशोर से प्रचार किया गया कि जनता की दुखतकलीफों के कारण उन्हें इतना दुख पहुंचा है कि हार्टअटैक आ गया जिस की वजह से वह आप के सामने नहीं आ पा रहे हैं पर आप सब से वादा है कि ठीक होते ही वह फिर आप की सेवा में हाजिर होंगे तथा आप के हर दुखदर्द को दूर करने में एड़ीचोटी की ताकत लगा देंगे.

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चुनाव प्रचार के साथसाथ मंत्रीजी की कंडीशन स्टेबल होते ही उन के टेस्ट होने शुरू हो गए. डाक्टर की सलाह के अनुसार उन्होंने स्टे्रस टेस्ट करवाया. इस की रिपोर्ट आने पर चिंता और बढ़ गई. अब ऐंजियोग्राफी करवाई गई तो पता चला कि उन की 3 धमनियों में से एक 95 प्रतिशत, दूसरी 80 प्रतिशत तथा तीसरी 65 प्रतिशत अवरुद्ध है अत: बाई- पास करवाना होगा.

इस बीच चुनाव परिणाम भी आ गया. इस बार वह रिकार्ड मतों से जीते थे. उन की पार्टी भी दोतिहाई बहुमत की ओर बढ़ रही थी. उन का मंत्री पद पक्का हो गया था. एक फ्रंट तो उन्होंने जीत लिया था, अब दूसरे फ्रंट पर ध्यान देने की सोचने लगे.

डा. सीताराम उन्हें बधाई देने आए तथा स्वास्थ्य की ओर पूरा ध्यान देने के लिए कहते हुए आपरेशन के लिए चेन्नई के अपोलो अस्पताल का नाम लिया था.

‘‘यार, मुझे क्यों मरवाना चाहते हो. पता है, यह इंडिया है, यहां तुम्हारे जैसे ही डाक्टर भरे पड़े हैं. अगर मरीज बच गया तो उस की किस्मत… आखिर आरक्षण की बैसाखी थामे कोई कैसे योग्य डाक्टर या सर्जन बन सकता है.’’

‘‘मंत्रीजी, आप जिस दिन बीमार पड़े थे, उस दिन जब आप के पी.ए. के कहने पर मैं आप के इलाज के लिए घर पहुंचा था तब भाभीजी ने भी मुझे बहुत बुराभला कहा था पर उस समय मुझे बुरा नहीं लगा, क्योंकि मुझे लगा कि वह आप को ले कर परेशान हैं किंतु आप के द्वारा भी वही आरोप. जबकि आप जानते हैं कि आरक्षण की वजह से मुझे मेडिकल में प्रवेश अवश्य मिला था पर मुझे गोल्डमेडल अपनी योग्यता के कारण मिला है. यहां तक कि मेरा नर्सिंग होम आरक्षण के कारण नहीं वरन मेरी अपनी योग्यता की वजह से चल रहा है. सरकारी नौकरी में भले कोई आरक्षण के बल पर ऊंचा उठ जाए पर प्राइवेट में अपनी योग्यता के आधार पर ही उसे शोहरत मिल पाती है. और तो और आप को भले ही आरक्षण के कारण मंत्रिमंडल में जगह मिली हो, पर क्या आप में वह योग्यता नहीं है जो एक मंत्री में होनी चाहिए?’’ आखिर डा. सीताराम बोल ही उठे, उन के चेहरे पर तनाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था.

‘‘तुम तो बुरा मान गए बंधु. मेरी बात और है, मुझे तो सिर्फ बोलना पड़ता है, बोलने से किसी को नुकसान नहीं होता. पर यहां भावनाओं में बहने के बजाय वस्तुस्थिति को समझो. अमेरिका में कोई अच्छा अस्पताल हो तो बताओ. तुम्हें भी अपना पारिवारिक डाक्टर बना कर ले जाऊंगा.’’

‘‘मंत्रीजी, आप इलाज के लिए अमेरिका जा सकते हैं, पर दूसरे सब तो नहीं जा सकते. अगर आरक्षण आप की नजर में इतना ही खराब है तो इसे बंद क्यों नहीं करा देते,’’ स्वभाव के विपरीत डा. सीताराम आज चुप न रह सके.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

एक साल पूरा होने से चार दिन पहले ही इस TV एक्ट्रेस ने तोड़ी अपनी शादी, पढ़ें खबर

‘मकड़ी’, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ और ‘ताश्कंद फाइल्स’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता बसु प्रसाद ने अपने पति रोहित मित्तल से शादी की पहली सालगिरह मनाने से चार दिन पहले ही सोशल मीडिया से अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर जाकर अपने पति रोहित मित्तल से अलगाव की खबर से सभी को चौंका दिया. ज्ञातब्य है कि रोहित मित्तल और श्वेता बसु प्रसाद 13 दिसंबर 2018 को ग्रैंड हयात होटल, पुणे में शादी के बंधन में बंधे थे.

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दोनो ने बंगाली रीति रिवाज से विवाह किया था. अभिनेत्री ने बाद में अपने पति के साथ सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा कीं थी. इतना ही नही अप्रैल माह में एक खास मुलाकात के दौरान श्वेता बसु प्रसाद ने हमसे अपने पति रोहित मित्तल की जमकर तारीफें की थी. लेकिन शादी की सालगिरह का जश्न मनाने की बजाय चार दिन पहले नौ दिसंबर को इंस्टाग्राम पर जाकर श्वेता बसु ने पति रोहित मित्तल से अलग होने की बात लिख डाली.

इंस्टाग्राम से दी खबर…

 

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इंस्टाग्राम पर श्वेता बसु प्रसाद ने लिखा है- “हाय, सभी लोग, रोहित मित्तल और मैंने आपसी सहमति से हमारी शादी को समाप्त करने का फैसला लिया है. कई महीनों के चिंतन के बाद, हम इस फैसले पर कुछ माह पहले पहुंचे कि एक-दूसरे के सर्वोत्तम हित में हमें अलग हो जाना चाहिए. हर किताब को कवर से कवर तक पढ़ना जरुरी नही है. इसका मतलब यह नहीं है कि किताब खराब है, या कोई भी नहीं पढ़ सकता है, कुछ चीजें सिर्फ सबसे अच्छी हैं. रोहित को अपूरणीय यादों और हमेशा मुझे प्रेरणा देने के लिए धन्यवाद. आगे एक महान जीवन है, हमेशा के लिए.’’

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अपनी इस पोस्ट में श्वेता बसु प्रसाद ने अपने पति रोहित मित्तल के खिलाफ किसी तरह की कडवाहट वाले शब्द कहने की बजाय रोहित मित्तल को प्रेरित करने के लिए धन्यवाद अदा करने के साथ ही उनके आगे महान जीवन की कामना भी की है.

फिल्म ‘‘मकड़ी’’ से बाल कलाकार के रूप में अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अदाकारा श्वेता बसु प्रसाद बाद में कई टीवी सीरियल व फिल्मों में नजर आयीं. अप्रैल 2019 में पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘ताश्कंद फाइल्स’’ में उन्हे पत्रकार के किरदार में काफी पसंद किया गया था.

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