‘‘नीलू भाई को बहुत चाहती है मां. उस से अच्छी लड़की हमारे लिए कोई हो ही नहीं सकती…अनाथ बच्ची को अपना बना लो, मां. बस, तुम्हारी ही बन कर जीएगी वह. हमारे घर को नीलू ही चाहिए.’’
आंखें खुली रह गई थीं मां की और मेरी भी. हमारे घर का वह कोना जिसे हम ने इतनी मेहनत से सुंदर, आकर्षक बनाया वहां नीलू को मैं ने किस रूप में सोचा था? मैं ने तो उसे सोम के लिए सोचा था न.
नीलू को इतना भी अनाथ मत समझना…मैं हूं उस का. मेरा उस का खून का रिश्ता नहीं, फिर भी ऐसा कुछ है जो मुझे उस से बांधता है. वह मेरे भाई से प्रेम करती है, जिस नाते एक सम्मानजनक डोर से वह मुझे भी बांधती है.
‘‘तुम्हें कैसे पता चला? मुझे तो कभी पता नहीं चला.’’
‘‘बस, चल गया था पता एक दिन…और उसी दिन मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर यह जिम्मेदारी ले ली थी कि उसे इस घर में जरूर लाऊंगा.’’
‘‘कभी अपने मुंह से कुछ कहा था उस से तुम दोनों ने?’’ बारीबारी से मां ने हम दोनों का मुंह देखा.
मैं सकते में था और सोम निशब्द.
‘‘नीलू का ब्याह तो हो भी गया,’’ रो पड़ी थीं मां हमें सुनातेसुनाते, ‘‘उस की बूआ ने कोई रिश्ता देख रखा था. 4 दिन हो गए. सादे से समारोह में वह अपने ससुराल चली गई.’’
हजारों धमाके जैसे एकसाथ मेरे कानों में बजे और खो गए. पीछे रह गई विचित्र सी सांयसांय, जिस में मेरा क्याक्या खो गया समझ नहीं पा रहा हूं. पहली बार पता चला कोई मुझ से प्रेम करती थी और खो भी गई. मैं तो उसे सोम के लिए इस घर में लाने का सपना देखता रहा था, एक तरह से मेरा वह सपना भी कहीं खो गया.
‘‘अरे, अगर कुछ पता चल ही गया था तो कभी मुझ से कहा क्यों नहीं तुम ने,’’ मां बोलीं, ‘‘सोम, तुम ने मुझे कभी बताया क्यों नहीं था. पगले, वह गरीब क्या करती? कैसे अपनी जबान खोलती?’’
प्रकृति को कोई कैसे अपनी मुट्ठी में ले सकता है भला? वक्त को कोई कैसे बांध सकता है? रेत की तरह सब सरक गया हाथ से और हम वक्त का ही इंतजार करते रह गए.
सोम अपना सिर दोनों हाथों से छिपा चीखचीख कर रोने लगा. बाबूजी भी तब तक ऊपर चले आए. सारी कथा सुन, सिर पीट कर रह गए.
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वह रात और उस के बाद की बहुत सी रातें ऐसी बीतीं हमारे घर में, जब कोई एक पल को भी सो नहीं पाया. मांबाबूजी अपने अनुभव को कोसते कि क्यों वे नीलू के मन को समझ नहीं पाए. मैं भी अपने ही मापदंड दोहरादोहरा कर देखता, आखिर मैं ने सोम को क्यों और किसकिस कोण से सही नहीं नापा. सब उलटा हो गया, जिसे अब कभी सीधा नहीं किया जा सकता था.
सोम एक सुबह उठा और सहसा कहने लगा, ‘‘भाई, खड़े सामान की तरह क्यों न अब खड़े भावों को भी मन से निकाल दें. जिस तरह नया सामान ला कर पुराने को विदा किया था उसी तरह पुराने मोह का रूप बदल क्यों न नए मोह को पाल लिया जाए. नीलू मेरे मन से जाती नहीं, भाभी मान जिस पर ममता लुटाता रहा, क्यों न उसे बहन मान नाता जोड़ लूं…मैं उस से मिलने उस के ससुराल जाना चाहता हूं.’’
‘‘अब क्यों उसे पीछे देखने को मजबूर करते हो सोम, जाने दो उसे…जो बीत गई सो बात गई. पता नहीं अब तक कितनी मेहनत की होगी उस ने खुद को नई परिस्थिति में ढालने के लिए. कैसेकैसे भंवर आए होंगे, जिन से स्वयं को उबारा होगा. अपने मन की शांति के लिए उसे तो अशांत मत करो. अब जाने दो उसे.’’
मन भर आया था मेरा. अगर नीलू मुझ से प्रेम करती थी तो क्या यह मेरा भी कर्तव्य नहीं बन जाता कि उस के सुख की चाह करूं. वह सब कभी न होने दूं. जो उस के सुख में बाधा डाले.
रो पड़ा सोम मेरे कंधे से लग कर. खुशनसीब है सोम, जो रो तो सकता है. मैं किस के पास जा कर रोऊं और कैसे बताऊं किसी को कि मैं ने क्या नहीं पाया, ऐसा क्या था जो बिना पाए ही खो दिया.
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‘‘सिर्फ एक बार उस से मिलना चाहता हूं भाई,’’ रुंधा स्वर था सोम का.
‘‘नहीं सोम, अब जाने दो उसे.
शाम कालिज से वापस आया तो खटखट की आवाज से पूरा घर गूंज रहा था. लपक कर पीछे बरामदे में गया. लकड़ी का बुरादा उड़उड़ कर इधरउधर फैल गया था. सोम का खाली दिमाग लकड़ी के बेकार पड़े टुकड़ों में उलझा पड़ा था. मुझे देख लापरवाही से बोला, ‘‘भाई, कुछ खिला दे. सुबह से भूखा हूं.’’
‘‘अरे, 5 घंटे कालिज में माथापच्ची कर के मैं आया हूं और पानी तक पूछना तो दूर खाना भी मुझ से ही मांग रहा है, बेशर्म.’’
‘‘भाई, शर्मबेशर्म तो तुम जानो, मुझे तो बस, यह कर लेने दो, बाबूजी का फोन आया है कि सुबह 10 बजे चल पड़ेंगे दोनों. शाम 4 बजे तक सारी कायापलट न हुई तो हमारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’
अपनी मस्ती में था सोम. लकड़ी के छोटेछोटे रैक बना रहा था. उम्मीद थी, रात तक पेंट आदि कर के तैयार कर देगा.
लकड़ी के एक टुकड़े पर आरी चलाते हुए सोम बोला, ‘‘भाई, मांबाप ने इंजीनियर बनाया है. नौकरी तो मिली नहीं. ऐसे में मिस्त्री बन जाना भी क्या बुरा है… कुछ तो कर रहा हूं न, नहीं तो खाली दिमाग शैतान का घर.’’
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मुझे उस पल सोम पर बहुत प्यार आया. सोम को नीलू से गहरा जुड़ाव है, बातबेबात वह नीलू को भी याद कर लेता.
नीलू बाबूजी के स्वर्गवासी दोस्त की बेटी है, जो अपने चाचा के पास रहती है. उस की मां नहीं थीं, जिस वजह से वह अनाथ बच्ची पूरी तरह चाचीचाचा पर आश्रित है. बी.ए. पास कर चुकी है, अब आगे बी.एड. करना चाहती है. पर जानता हूं ऐसा होगा नहीं, उसे कौन बी.एड. कराएगा. चाचा का अपना परिवार है. 4 जमातें पढ़ा दीं अनाथ बच्ची को, यही क्या कम है. बहुत प्यारी बच्ची है नीलू. सोम बहुत पसंद करता है उसे. क्या बुरा है अगर वह हमारे ही घर आ जाए. बचपन से देखता आ रहा हूं उसे. वह आती है तो घर में ठंडी हवा चलने लगती है.
‘‘कड़क चाय और डबलरोटी खाखा कर मेरा तो पेट ही जल गया है,’’ सोम बोला, ‘‘इस बार सोच रहा हूं कि मां से कहूंगा, कोई पक्का इंतजाम कर के घर जाएं. तुम्हारी शादी हो जाए तो कम से कम डबल रोटी से तो बच जाएंगे.’’
सोम बड़बड़ाता जा रहा था और खातेखाते सभी रैक गहरे नीले रंग में रंगता भी जा रहा था.
‘‘यह देखो, यह नीले रंग के छोटेछोटे रैक अचार की डब्बियां, नमक, मिर्च और मसाले रखने के काम आएंगे. पता है न नीला रंग कितना ठंडा होता है, सासबहू दोनों का पारा नीचा रहेगा तो घर में शांति भी रहेगी.’’
सोम मुझे साफसाफ अपने मनोभाव समझा रहा था. क्या करूं मैं? कितनी जगह आवेदन दिया है, बीसियों जगह साक्षात्कार भी दे रखा है. सोचता हूं जैसे ही सोम को नौकरी मिल जाएगी, नीलू को बस, 5 कपड़ों में ले आएंगे. एक बार नीलू आ जाए तो वास्तव में हमारा जीवन चलने लगेगा. मांबाबूजी को भी नीलू बहुत पसंद है.
दूसरी शाम तक हमारा घर काफी हलकाफुलका हो गया था. रसोई तो बिलकुल नई लग रही थी. मांबाबूजी आए तो हम गौर से उन का चेहरा पढ़ते रहे. सफर की थकावट थी सो उस रात तो हम दोनों ने नमकीन चावल बना कर दही के साथ परोस दिए. मां रसोई में गईं ही नहीं, जो कोई विस्फोट होता. सुबह मां का स्वर घर में गूंजा, ‘‘अरे, यह क्या, नए बरतन?’’
‘‘अरे, आओ न मां, ऊपर चलो, देखो, हम ने तुम्हारे आराम के लिए कितनी सुंदर जगह बनाई है.’’
आधे घंटे में ही हमारी हफ्ते भर की मेहनत मां ने देख ली. पहले जरा सी नाराज हुईं फिर हंस दीं.
‘‘चलो, कबाड़ से जान छूटी. पुराना सामान किसी काम भी तो नहीं आता था. अच्छा, अब अपनी मेहनत का इनाम भी ले लो. तुम दोनों के लिए मैं लड़कियां देख आई हूं. बरसात से पहले सोचती हूं तुम दोनों की शादी हो जाए.’’
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‘‘दोनों के लिए, क्या मतलब? क्या थोक में शादी करने वाली हो?’’ सोम ने झट से बात काट दी. कम से कम नौकरी तो मिल जाए मां, क्या बेकार लड़का ब्याह देंगी आप?’’
चौंक उठा मैं. जानता हूं, सोम नीलू से कितना जुड़ा है. मां इस सत्य पर आंख क्यों मूंदे हैं. क्या उन की नजरों से बेटे का मोह छिपा है? क्या मां की अनुभवी आंखों ने सोम की नजरों को नहीं पढ़ा?
‘‘मेरी छोड़ो, तुम भाई की शादी करो. कहीं जाती हो तो खाने की समस्या हो जाती है. कम से कम वह तो होगी न जो खाना बना कर खिलाएगी. डबलरोटी खाखा कर मेरा पेट दुखने लगता है. और सवाल रहा लड़की का, तो वह मैं पसंद कर चुका हूं…मुझे भी पसंद है और भाई को भी. हमें और कुछ नहीं चाहिए. बस, जाएंगे और हाथ पकड़ कर ले आएंगे.’’
अवाक् रह गया मैं. मेरे लिए किसे पसंद कर रखा है सोम ने? ऐसी कौन है जिसे मैं भी पसंद करता हूं. दूरदूर तक नजर दौड़ा आया मैं, कहीं कोई नजर नहीं आई. स्वभाव से संकोची हूं मैं, सोम की तरह इतना बेबाक कभी नहीं रहा जो झट से मन की बात कह दूं. क्षण भर को तो मेरे लिए जैसे सारा संसार ही मानो गौण हो गया. सोम ने जो नाम लिया उसे सुन कर ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही निकाल ली हो.
भले अभी साल 2020 जैसी स्थितियां न पैदा हुई हों, सड़कों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों में भले अभी पिछले साल जैसी अफरा तफरी न दिख रही हो. लेकिन प्रवासी मजदूरों को न सिर्फ लाॅकडाउन की दोबारा से लगने की शंका ने परेशान कर रखा है बल्कि मुंबई और दिल्ली से देश के दूसरे हिस्सों की तरफ जाने वाली ट्रेनों में देखें तो तमाम कोविड प्रोटोकाॅल को तोड़ते हुए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. पिछले एक हफ्ते के अंदर गुड़गांव, दिल्ली, गाजियाबाद से ही करीब 20 हजार से ज्यादा मजदूर फिर से लाॅकडाउन लग जाने की आशंका के चलते अपने गांवों की तरफ कूच कर गये हैं. मुंबई, पुणे, लुधियाना और भोपाल से भी बड़े पैमाने पर मजदूरों का फिर से पलायन शुरु हो गया है. माना जा रहा है कि अभी तक यानी 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच मंुबई से बाहर करीब 3200 लोग गये हैं, जो कोरोना के पहले से सामान्य दिनों से कम, लेकिन कोरोना के बाद के दिनों से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ पता चल रहा है कि मुंबई से पलायन शुरु हो गया है. सूरत, बड़ौदा और अहमदाबाद में आशंकाएं इससे कहीं ज्यादा गहरी हैं.
सवाल है जब पिछले साल का बेहद हृदयविदारक अनुभव सरकार के पास है तो फिर उस रोशनी में कोई सबक क्यों सीख रही? इस बार भी वैसी ही स्थितियां क्यों बनायी जा रही हैं? क्यों आगे आकर प्रधानमंत्री स्पष्टता के साथ यह नहीं कह रहे कि लाॅकडाउन नहीं लगेगा, चाहे प्रतिबंध और कितने ही कड़े क्यों न करने पड़ंे? लोगों को लगता है कि अब लाॅकडाउन लगना मुश्किल है, लेकिन जब महाराष्ट्र और दिल्ली के खुद मुख्यमंत्री कह रहे हों कि स्थितियां बिगड़ी तो इसके अलावा और कोई चारा नहीं हैं, तो फिर लोगों में दहशत क्यों न पैदा हो? जिस तरह पिछले साल लाॅकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा हुई थी, उसको देखते हुए क्यों न प्रवासी मजदूर डरें ?
पिछले साल इन दिनों लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर तपती धूप व गर्मी में भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गांवों की तरफ भागे जा रहे थे, इनके हृदयविदारक पलायन की ये तस्वीरें अभी भी जहन से निकली नहीं हैं. पिछले साल मजदूरों ने लाॅकडाउन में क्या क्या नहीं झेला. ट्रेन की पटरियों में ही थककर सो जाने की निराशा से लेकर गाजर मूली की तरह कट जाने की हृदयविदारक हादसों का वह हिस्सा बनीं. हालांकि लग रहा था जिस तरह उन्होंने यह सब भुगता है, शायद कई सालों तक वापस शहर न आएं, लेकिन मजदूरों के पास इस तरह की सुविधा नहीं होती. यही वजह है कि दिसम्बर 2020 व जनवरी 2021 में शहरों में एक बार फिर से प्रवासी मजदूर लौटने लगे या इसके लिए विवश हो गये. लेकिन इतना जल्दी उन्हें अपना फैसला गलत लगने लगा है. एक बार फिर से वे पलायन के लिए विवश हो रहे हैं.
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प्रवासी मजदूरों के इस पलायन को हर हाल में रोकना होगा. अगर हम ऐसा नहीं कर पाये किसी भी वजह से तो चकनाचूर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सालों के लिए मुश्किल हो जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार लगातार छह सप्ताह से कोविड-19 संक्रमण व मौतों में ग्लोबल वृद्धि हो रही है, पिछले 11 दिनों में पहले के मुकाबले 11 से 12 फीसदी मौतों में इजाफा हुआ है. नये कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र नहीं बचा, जो इसकी चपेट में न आ गया हो. पहली लहर में जो कई देश इससे आंशिक रूप से बचे हुए थे, अब वहां भी इसका प्रकोप जबरदस्त रूप से बढ़ गया है, मसलन थाईलैंड और न्यूजीलैंड. भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग 13 लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं.
जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है. कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है. साथ ही हिंदुस्तान में कई प्रांतों दुर्भाग्य से जो कि गैर भाजपा शासित हैं, वैक्सीन किल्लत झेल रहे हैं. हालांकि सरकार इस बात को मानने को तैयार नहीं. लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे तक सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनके यहां महज दो दिन के लिए वैक्सीन बची है और नया कोटा 15 के बाद जारी होगा.
हालांकि सरकार ने इस बीच न सिर्फ कोरोना वैक्सीनों के फिलहाल निर्यात पर रोक लगा दी है बल्कि कई ऐसी दूसरी सहायक दवाईयों पर भी निर्यात पर प्रतिबंध लग रहा है, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे कोरोना से इलाज में सहायक हैं. हालांकि भारत में टीकाकरण शुरुआत के पहले 85 दिनों में 10 करोड़ लोगों को कोविड-19 के टीके लगाये गये हैं. लेकिन अभी भी 80 फीसदी भारतीयों को टीके की जद में लाने के लिए अगले साल जुलाई, अगस्त तक यह कवायद बिना रोक टोक के जारी रखनी पड़ेगी. हालांकि हमारे यहां कोरोना वैक्सीनों को लेकर चिंता की बात यह भी है कि टीकाकरण के बाद भी लोग न केवल संक्रमित हुए हैं बल्कि मर भी रहे हैं.
31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चैथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं. बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कर्फ्यू सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कॉलेजों को बंद करना आदि शामिल हैं. लेकिन खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर््यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कफर््यू’ का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है).
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महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य का स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के लिए दो या तीन सप्ताह का ‘पूर्ण लॉकडाउन’ बहुत आवश्यक है. जबकि डब्लूएचओ की प्रवक्ता डा. मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 के नये वैरिएंटस और देशों व लोगों के लॉकडाउन से जल्द निकल आने की वजह से संक्रमण दर में वृद्धि हो रही है. दरअसल, नाईट कफर््यू व लॉकडाउन का भय ही प्रवासी मजदूरों को फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है. नया कोरोनावायरस महामारी को बेहतर स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और मंत्रियों से लेकर आम नागरिक तक कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन करने से ही नियंत्रित किया जा सकता है.
लेकिन सरकारें लोगों के मूवमेंट पर पाबंदी लगाकर इसे रोकना चाहती हैं, जोकि संभव नहीं है जैसा कि पिछले साल के असफल अनुभव से जाहिर है. अतार्किक पाबंदियों से कोविड तो नियंत्रित होता नहीं है, उल्टे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर गरीब व मध्यवर्ग के लिए. लॉकडाउन के पाखंड तो प्रवासी मजदूरों के लिए जुल्म हैं, क्रूर हैं. कार्यस्थलों के बंद हो जाने से गरीब प्रवासी मजदूरों का शहरों में रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है, खासकर इसलिए कि उनकी आय के स्रोत बंद हो जाते हैं और जिन ढाबों पर वह भोजन करते हैं उनके बंद होने से वह दाल-रोटी के लिए भी तरसने लगते हैं.
सौजन्य- मनोहर कहानियां
‘‘खबर एकदम पक्की है न.’’ एएसआई अशोक ने फोन डिसकनेक्ट करने से पहले अपनी
तसल्ली के लिए उस शख्स से एक बार फिर सवाल किया, जिस से वह फोन पर करीब पौने घंटे से बात कर रहे थे.
‘‘जनाब एकदम सोलह आने पक्की खबर है… आज तक कभी ऐसा हुआ है क्या कि मेरी कोई खबर झूठी निकली हो.’’ दूसरी तरह से सवाल के बदले मिले इस जवाब के बाद अशोक ने ‘‘चल ठीक है… जरूरत पड़ी तो तुझ से फिर बात करूंगा.’’ कहते हुए फोन डिसकनेक्ट कर दिया.
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एसटीएफ दस्ते में तैनात सहायक सबइंसपेक्टर अशोक कुमार की अपने सब से खास मुखबिर से एक खास खबर मिली थी. वह कुरसी से खड़े हुए और कमरे से बाहर निकल गए.
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की स्पैशल टास्क फोर्स यूनिट में तैनात एएसआई अशोक कुमार दिल्ली पुलिस में अकेले ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन का बंगलादेशी अपराधियों को पकड़ने का अनोखा रिकौर्ड है. बंगलादेशी अपराधियों के खिलाफ अशोक कुमार का मुखबिर व सूचना तंत्र देश में ही नहीं, बल्कि बंगलादेश तक में फैला है.
बंगलादेश तक फैले मुखबिरों का नेटवर्क अशोक को फोन या वाट्सऐप से जानकारी दे कर बताता है कि किस बंगलादेशी अपराधी ने किस वारदात को अंजाम दिया है.
अशोक कुमार को जो सूचना मिली थी, वह बंगलादेश में उन के एक भरोसेमंद मुखबिर से मिली थी. सूचना यह थी कि बंगलादेश का एक अपराधी, जिस का नाम मासूम है, को हत्या के एक मामले में बंगलादेश की अदालत से फांसी की सजा मिली थी, लेकिन वह भारत भाग आया था.
भारत में वह सरवर नाम से पहचान बना कर रहता है. मुखबिर से यह भी पता चला कि सरवर तभी से लापता है, जब से मासूम ने अपनी पहचान सरवर के रूप में बनाई है. मासूम ने जब से खुद को सरवर की पहचान दी है, तब से वह सरवर नाम के व्यक्ति की पत्नी के साथ रहता है.
यह भी पता चला कि सरवर बेंगलुरु में रहता है, लेकिन वह अकसर दिल्ली आता रहता है. दिल्ली में उस के कई रिश्तेदार व दोस्त हैं.
एएसआई अशोक ने अपने एसीपी पंकज सिंह को मुखबिर की सूचना से अवगत करा दिया. पंकज सिंह को अशोक के सूचना तंत्र पर पूरा भरोसा था. इसलिए उन्होंने एएसआई अशोक कुमार की मदद के लिए इंसपेक्टर दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में एसआई राजीव बामल, विजय हुड्डा, विजय कुमार, वीर सिंह, कांस्टेबल पयार सिंह सोनू और अजीत की टीम गठित कर दी.
चूंकि मामला विदेश से भागे एक अपराधी को पकड़ने से जुड़ा था, इसलिए एसीपी पंकज सिंह ने अपने डीसीपी भीष्म सिंह के अलावा दूसरे उच्चाधिकारियों को भी इस मामले की जानकारी दे दी. क्योंकि वे बखूबी जानते थे कि मामले की जांच आगे बढ़ाने पर उच्चाधिकारियों की मदद के बिना सफलता नहीं मिलेगी.
जिस तरह अशोक का मुखबिर नेटवर्क अलग किस्म का है, उसी तरह उन सूचनाओं को वैरीफाई करने का भी उन के पास अपना नेटवर्क है. मासूम उर्फ सरवर के बारे में अशोक को पहली सूचना अक्तूबर, 2020 में मिली थी.
मासूम के बारे में मिली सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए पूरे 2 महीने का समय लगा. जिस से साबित हो गया कि वह सरवर नहीं, बंगलादेशी अपराधी मासूम है.
अशोक कुमार की टीम को बेंगलुरु के अलावा पश्चिम बंगाल व दिल्ली में कई बंगलादेशी बस्तियों के धक्के खाने पड़े. संयोग से पुलिस टीम ने सरवर का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया गया तो 4 दिसंबर, 2020 को पता चला कि सरवर उर्फ मासूम 5 दिसंबर को खानपुर टी पौइंट पर आने वाला है.
एएसआई अशोक कुमार ने सरवर की तलाश के लिए गठित की गई टीम के साथ इलाके की घेराबंदी कर ली. पुलिस टीम के साथ एक ऐसा बंगलादेशी युवक भी था, जो मासूम उर्फ सरवर को पहचानता था. सरवर जैसे ही बताए गए स्थान पर पहुंचा, पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में उस के कब्जे से एक देसी कट्टा और 2 जिंदा कारतूस बरामद हुए.
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पुलिस टीम मासूम उर्फ सरवर को क्राइम ब्रांच के दफ्तर ले आई. पूछताछ में पहले तो सरवर यही बताता रहा कि पुलिस को गलतफहमी हो गई है वह मासूम नहीं बल्कि सरवर है. लेकिन एएसआई अशोक पहले ही इतने साक्ष्य एकत्र कर चुके थे कि सरवर झुठला नहीं सका कि वह सरवर नहीं मासूम है.
पुलिस ने थोड़ी सख्ती इस्तेमाल की तो वह टेपरिकौर्डर की तरह बजता चला गया कि उस ने कैसे एक दूसरे आदमी की पहचान हासिल कर खुद को मासूम से सरवर बना लिया था. यह बात चौंकाने वाली थी.
पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ भादंसं की धारा 25 आर्म्स ऐक्ट और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया.
सरवर उर्फ मासूम से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—
मूलरूप से बंगलादेश के जिला बगीरहाट, तहसील खुलना, गांव बहल का रहने वाला मासूम (40) बंगलादेश के उन लाखों लोगों में से एक है, जिन के भरणपोषण का असली सहारा या तो कूड़ा कबाड़ बीन कर उस से मिलने वाली मामूली रकम होती है. ऐसे लोग चोरी, छीनाझपटी और उठाईगिरी कर के अपना पेट पालते हैं.
मेहनतमजूदरी करने वाले मातापिता के अलावा परिवार में 3 बड़े भाई व एक बहन में सब से छोटा मासूम गुरबत भरी जिंदगी के कारण पढ़लिख नहीं सका. बचपन से ही बुरी संगत और आवारा लड़कों की सोहबत के कारण वह उठाईगिरी करने लगा. धीरेधीरे छीनाझपटी के साथ अपराध करने की उस की प्रवृत्ति संगीन होती गई. जेल जाना और जमानत पर छूटने के बाद फिर से अपराध करना उस की फितरत बन चुकी थी.
मासूम ने किया अपहरण और कत्ल
साल 2005 में मासूम ने एक ऐसे अपराध को अंजाम दिया, जिस ने उस की जिंदगी पर मौत की लकीर खींच दी. उस ने अपने साथी बच्चू, मोनीर, गफ्फार व जाकिर के साथ मिल कर बांग्लादेश के मध्य नलबुनिया बाजार में मोबाइल विक्रेता जहीदुल इसलाम का अपहरण कर लिया.
लूटपाट के लिए अपहरण करने के बाद उस ने साथियों के साथ जहीदुल इसलाम की गला रेत कर हत्या कर दी. शृंखला थाने की पुलिस ने घटना के अगले दिन नलबुनिया इलाके के खाली मैदान से जहीदुल का शव बरामद किया.
चश्मदीदों से पूछताछ व सर्विलांस के आधार पर पुलिस ने 2 दिन के भीतर ही मासूम समेत सभी पांचों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया. सब पर मुकदमा चला. चूंकि पुलिस को मासूम के कब्जे से मृतक जहीदुल का मोबाइल फोन मिला था, इसलिए 2013 में बंगलादेश की संबंधित कोर्ट ने मासूम को दोषी करार दे कर फांसी की सजा सुना दी, जबकि बाकी 4 आरोपितों को कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.
लेकिन इस से पहले ही केस के ट्रायल के दौरान सन 2010 में मासूम को अदालत से जमानत मिल गई थी और वह देश छोड़ कर फरार हो गया था. अदालत से सजा मिलने के बाद जब मासूम अदालत में हाजिर नहीं हुआ तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर उस की गिरफ्तारी पर एक लाख का ईनाम घोषित कर दिया.
इधर जमानत पर बाहर आने के बाद मासूम सरवर नाम के एक व्यक्ति के संपर्क में आया. मासूम जानता था कि उस के गुनाहों की फेहरिस्त काफी बड़ी हो चुकी है और जहीदुल इस्लाम केस में पुलिस को उस के खिलाफ ठोस सबूत मिले हैं. लिहाजा उस ने कानून से बचने के लिए देश को अलविदा कह कर दूसरे देश भाग जाने की योजना बना ली.
अपनी इसी मंशा को अंजाम देने के लिए मासूम ने सरवर से मुलाकात की. सरवर से उस की मुलाकात कुछ साल पहले बशीरहाट जेल में हुई थी, जहां वह किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर गया था.
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सरवर मूलरूप से रहने वाला तो बंगलादेश का ही था, लेकिन वह ज्यादातर भारत में रहता था. जहां उस ने अवैध रूप से रहते हुए न सिर्फ वहां की नागरिकता के सारे दस्तावेज तैयार करा लिए थे, बल्कि वहां अपना परिवार भी बना लिया था.
सरवर नाम के लिए तो भारत और बंगलादेश के बीच कारोबार के बहाने आनेजाने का काम करता था, लेकिन असल में सरवर का असली काम था नकली दस्तावेज तैयार कर के बंगलादेशी लोगों का अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कराना.
मासूम ने जमानत मिलने के बाद सरवर से संपर्क साधा और उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर भारत में घुसपैठ करवा कर वहां शरण देने के लिए मदद मांगी. सरवर दोस्ती की खातिर इनकार नहीं कर सका.
सरवर ने 50 हजार रुपए में मासूम से सौदा तय किया कि वह इस के बदले न सिर्फ उसे बंगलादेश से भारत पहुंचा देगा. बल्कि उसे वहां रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना भी उपलब्ध करा देगा.
अगले भाग में पढ़ें- मासूम बन गया सरवर
सौजन्य- मनोहर कहानियां
सरवर के लिए बंगलादेशी लोगों को सीमा पार करवा कर भारत लाना मामूली सा काम था. 2011 के शुरुआत में सरवर मासूम के साथ सीमा पार कर के भारत आ गया.
सरवर उन दिनों बेंगलुरु में अपने परिवार के साथ रहता था, जहां उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था. इसी गोदाम में उस की पत्नी नजमा व 2 बेटियां साथ रहती थीं.
सरवर ने मासूम को इसी गोदाम पर अपने परिवार के साथ रखवा लिया और उसे कबाड़ का गोदाम संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी. कुछ समय भारत में रहने के बाद सरवर फिर से वापस बंगलादेश गया था.
बताते हैं कि वह बंगलादेश से भारत तो लौट आया था, लेकिन उस के बाद आज तक अपने परिवार से नहीं मिल पाया. कई महीने बीत गए लेकिन सरवर अपने परिवार के पास वापस नहीं लौटा तो परिवार को चिंता होने लगी.
सरवर की पत्नी नजमा ने बंगलादेश में फोन कर के सरवर के मातापिता से बात की. उन्होंने बताया कि सरवर तो भारत चला गया. जब उन्हें नजमा से यह पता चला कि सरवर भारत में अपनी पत्नी और बच्चों के पास नहीं पहुंचा है तो उन्होंने मई 2011 में बंगलादेश में सरवर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.
सरवर का परिवार बना मासूम का
इधर, बेंगलुरु में सरवर की पत्नी नजमा और दोनों बेटियां कायनात (22) और सिमरन (16) पूरी तरह मासूम पर निर्भर हो गईं. हालांकि सरवर ने 2 साल पहले ही बेटी कायनात की शादी बेंगलुरु में कबाड़ का काम करने वाले एक युवक यूनुस से कर दी थी.
मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा और छोटी बेटी सिमरन के गुजारे और खाने के खर्चे तो उठाने शुरू कर दिए, लेकिन अब उस के दिमाग में कुछ दूसरी ही खिचड़ी पकने लगी थी. वह सरवर के परिवार को पालने की कीमत वसूलना चाहता था.
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मासूम ने सरवर की पत्नी नजमा को धीरेधीरे विश्वास में ले कर उस से आंतरिक संबंध बना लिए. कुछ ही दिन में मासूम का नजमा से पत्नी जैसा रिश्ता कायम हो गया. वैसे नजमा के लिए सरवर हो या मासूम, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उसे लगता था कि मर्दों का उस की जिंदगी में आनाजाना उस की नियति बन चुकी है.
असल में सरवर से भी उस की दूसरी शादी थी. नजमा के पहले पति असलम की मौत हो चुकी थी. कायनात उस के पहले पति असलम से पैदा हुई बेटी थी. असलम की मौत के बाद जब नजमा बेटी को गोद में लिए आश्रय और पेट पालने के लिए इधरउधर भटक रही थी, तभी वह सरवर के संपर्क में आई थी. सरवर ने उसे आसरा भी दिया और नजमा को उस की बेटी के साथ अपना कर अपनी छत्रछाया भी दी.
सरवर अकसर हिंदुस्तान और बंगलादेश के बीच आवागमन करता रहता था. बेंगलुरु में उस ने कबाड़ का गोदाम बना रखा था, इसी में उस ने अपने रहने का ठिकाना भी बना लिया था. सरवर के अचानक लापता हो जाने के बाद मासूम ने कबाड़ के इस गोदाम को संभालने और सरवर की बीवी और बेटी को पालने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया था.
इधर सरवर की छोटी बेटी भी धीरेधीरे जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. शराब के नशे का आदी मासूम जब सिमरन को देखता तो उस का मन सिमरन का गदराता हुआ जिस्म पाने के लिए मचल उठता.
एक दिन उसे मौका मिल गया. नजमा लोगों के घरों में काम करती थी. एक रात वह अपने किसी मालिक के घर पर होने वाले शादी समारोह के लिए घर से बाहर थी कि उसी रात मासूम ने शराब के नशे में सिमरन को अपने बिस्तर पर खींच कर हवस का शिकार बना डाला.
अगली सुबह सिमरन ने अपनी मां को जब यह बात बताई तो उस ने मासूम के साथ खूब झगड़ा किया. 1-2 दिन दोनों के बीच बातचीत भी नहीं हुई. लेकिन उस के बाद सब कुछ सामान्य हो गया.
यह बात सिमरन भी जानती थी और नजमा भी कि मासूम ही अब उन का सहारा है. इसीलिए उस के हौसले बुलंद हो गए. इस घटना के बाद वह जब भी उस का मन करता और मौका मिलता, सिमरन को अपनी हवस का शिकार बना लेता.
इधर मासूम को अब लगने लगा था कि अगर बंगलादेश में पुलिस को उस के भारत में होने या भारत की पुलिस को उस के बंगलादेश का सजायाफ्ता अपराधी होने की बात पता चल गई तो उस के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है. इसलिए सितंबर, 2013 के बाद मासूम ने अपनी पहचान मिटा कर सरवर के रूप में अपनी नई पहचान बनाने का फैसला कर लिया.
अपने इरादों को पूरा करने के लिए मासूम नजमा व सिमरन को ले कर दिल्ली आ गया और यहां ई ब्लौक सीमापुरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. दरअसल, नजमा से उसे पता चला था कि कुछ समय सरवर भी यहां रहा था. इसी इलाके में सरवर ने अपनी आईडी बनवाई हुई थी. उस का आधार कार्ड भी यहीं बना था.
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कुछ समय यहां रहने के बाद मासूम ने दलालों से संपर्क साध कर ऐसी सेटिंग बनाई कि उस ने रिकौर्ड में सरवर की आईडी पर अपना फोटो चढ़वा लिया. अब वह कानून की नजर में पूरी तरह से सरवर बन गया था. बाद में इसी आईडी के आधार पर उस ने बैंक में खाता भी खुलवा लिया और ड्राइविंग लाइसैंस भी हासिल कर लिया.
मासूम बन गया सरवर
मासूम ने धीरेधीरे सरवर की पहचान से जुड़े हर दस्तावेज को खत्म कर उन सभी में खुद को सरवर के रूप में अंकित करा दिया. अब वह पूरी तरह बेखौफ हो गया.
6 माह के भीतर ये सब करने के बाद पूरी तरह सरवर बन चुका मासूम नजमा व सिमरन को ले कर फिर से बेंगलुरु लौट गया. इस बार उस ने बेंगलुरु के हिंबकुडी को अपना नया ठिकाना बनाया.
अब उस ने दिल्ली से बनवाए गए अपने ड्राइविंग लाइसैंस के आधार पर टैक्सी चलाने का नया काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस ने यहां भी अपनी पहचान सरवर के रूप में स्थापित कर ली.
मासूम था तो असल में अपराधी प्रवृत्ति का ही. लिहाजा उस के दिमाग में फिर से अपराध करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने बंगलादेशी लोगों के बीच अपनी अच्छीखासी पैठ बना ली थी. टैक्सी चलाने के नाम पर वह कुछ अपराधियों के साथ मिल कर छीनाझपटी और ठगी करने लगा.
पुलिस से बचने के लिए उस ने एक शानदार रास्ता भी बना लिया था. वह बेंगलुरु में क्राइम ब्रांच के साथसाथ शहर के चर्चित पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी भी करने लगा. जिस वजह से पुलिस महकमे में उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई.
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एक तरह से मासूम ने सरवर बन कर अपना पूरा साम्राज्य स्थापित कर लिया था. अपराध की दुनिया से होने वाली काली कमाई से उस ने कई गाडि़यां खरीद लीं, जिन्हें वह दूसरे लोगों को किराए पर दे कर टैक्सी के रूप में चलवाता था.
इतना ही नहीं, उसी इलाके में उस ने अब फिर से कबाड़ का काम भी शुरू कर दिया. इस के लिए जमीन खरीद कर गोदाम बना लिया था. पुलिस से बने संबंधों के चलते वह लूट व चोरी का माल भी खरीदने लगा.
अगले भाग में पढ़ें- कसने लगा शिकंजा
सौजन्य- मनोहर कहानियां
बड़े स्तर पर पुलिस के लिए मुखबिरी करने के कारण सरवर उर्फ मासूम के कुछ दुश्मन भी बन गए थे. ज्यादातर दुश्मन वे बंगलादेशी थे, जो भारत में अवैध रूप से रह कर अपराध करते थे और उन का बंगलादेश में लगातार आनाजाना होता था.
ऐसे ही कुछ लोगों ने कथित सरवर से दुश्मनी के कारण जब उस की जन्मकुंडली निकाली तो उन्हेें पता चला कि असली सरवर तो सालों से लापता है, उस की जगह मासूम ने ले ली है. बात जब फूटी तो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के एएसआई अशोक कुमार तक जा पहुंची.
एक मुखबिर ने इस सूचना को और पुख्ता करने के बाद वाट्सऐप कर के एएसआई अशोक को बताया. इस के बाद एएसआई अशोक ने जाल बिछाना शुरू किया और दिसंबर महीने में कथित सरवर उर्फ मासूम दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के हत्थे चढ़ गया.
एएसआई अशोक ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के निर्वाचन कार्यालय से संपर्क कर वे दस्तावेज भी हासिल कर लिए, जिन में सरवर के रूप में असली सरवर तथा नए सरवर दोनों की फोटो लगी थी.
नए सरवर के ड्राइविंग लाइसैंस का रिकौर्ड व अन्य दस्तावेज हासिल करने के बाद अशोक ने दिल्ली से ले कर बेंगलुरु व कोलकाता में उन तमाम लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिन के नंबरों पर कथित सरवर की अकसर बातचीत होती थी.
ऐसे ही लोगों से पूछताछ करतेकरते अशोक इस नतीजे पर पहुंच गए कि जो शख्स सरवर बन कर भारत में रह रहा है, वह असल में बंगलादेश में फांसी की सजा मिलने के बाद फरार हुआ अपराधी मासूम है.
इस के बाद अशोक ने बंगलादेश में अपने मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर यह भी पता कर लिया कि मासूम के परिवार वालों को भी यह बात पता थी कि वह भारत में छिप कर रह रहा है. वह अपने परिवार वालों से अलगअलग फोन से संपर्क कर बातचीत करता था.
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इतना ही नहीं अशोक ने बंगलादेश के बगीरहाट जिले में शृंखला थाने का नंबर हासिल कर वहां के थानाप्रभारी से वाट्सऐप के जरिए अपना परिचय दे कर बात की और उन से मासूम की पूरी क्रिमिनल हिस्ट्री का रिकौर्ड वाट्सऐप के जरिए मंगवा लिया. साथ ही वे दस्तारवेज भी जिन में उस घटना का जिक्र था, जिस में मासूम को फांसी की सजा मिली थी.
फरार होने के बाद उस पर पुलिस के ईनाम का नोटिस भी अशोक के पास आ गया, तब जा कर उन्होंने मासूम को दबोचने की रणनीति पर काम किया.
कसने लगा शिकंजा
सरवर उर्फ मासूम के इर्दगिर्द घेरा कसते हुए एएसआई अशोक को पता चला था कि सरवर की पत्नी नजमा की एक बहन खातून दिल्ली के खानपुर इलाके में रहती है. अशोक ने खातून को विश्वास में ले कर सरवर के राज उगलवाए.
पता चला कि बेंगलुरु का रहने वाला सरवर उर्फ मासूम का दोस्त अल्लासमीन है जो इन दिनों दिल्ली के खानपुर में रहता है. मासूम उर्फ सरवर उस से अकसर मिलने आता रहता है. बस इसी माध्यम से अशोक ने सरवर को दबोचने का प्लान बनाया और 5 दिसंबर, 2020 को जब वह अल्लासमीन से मिलने आया तो पुलिस के हत्थे चढ़ गया.
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हालांकि पुलिस ने मासूम को गिरफ्तार करने के बाद उस से सरवर को ले कर कड़ी पूडताछ की. लेकिन मासूम ने सरवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी.
शक है कि मासूम ने सरवर की हत्या कर दी होगी. उस के बाद वह सरवर की पत्नी के साथ रहने लगा और अपना नाम उसी के नाम पर सरवर भी रख लिया. इस बात की आशंका इसलिए भी है कि उसे शायद पता था कि सरवर कभी लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए उस ने अपनी पहचान सरवर के रूप में गढ़ ली थी.
पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि सरवर उर्फ मासूम से नजमा ने एक और बेटी को जन्म दिया, जिस की उम्र इस वक्त 8 साल है. दूसरी तरफ नजमा की मंझली बेटी सिमरन मासूम के लगातार शारीरिक शोषण से तंग आ कर अपनी बड़ी बहन के पति यूनुस की तरफ आकर्षित हो गई थी और एक साल पहले अपने बहनोई के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी.
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने मासूम उर्फ सरवर को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया और उस की गिरफ्तारी की सूचना बंगलादेश दूतावास के माध्यम से बंगलादेश की पुलिस को दे दी.
—कथा आरोपी के बयान और पुलिस की जांच पर आधारित
मुझे नाकारा और बेकार पड़ी चीजों से चिढ़ होती है. जो हमारे किसी काम नहीं आता फिर भी हम उसे इस उम्मीद पर संभाले रहते हैं कि एक दिन शायद वह काम आए. और जिस दिन उस के इस्तेमाल का दिन आता है, पता चलता है कि उस से भी कहीं अच्छा सामान हमारे पास है. बेकार पड़ा सामान सिर्फ जगह घेरता है, दिमाग पर बोझ बनता है बस.
अलमारी साफ करते हुए बड़बड़ा रहा था सोम, ‘यह देखो पुराना ट्रांजिस्टर, यह रुकी हुई घड़ी. बिखरा सामान और उस पर कांच का भी टूट कर बिखर जाना…’ विचित्र सा माहौल बनता जा रहा था. सोम के मन में क्या है, यह मैं समझ नहीं पा रहा था.
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मैं सोम से क्या कहूं, जो मेरे बारबार पूछने पर भी नहीं बता रहा कि आखिर वजह क्या है.
‘‘क्या रुक गया है तुम्हारा, जरा मुझे समझाओ न?’’
सोम जवाब न दे कर सामान को पैर से एक तरफ धकेल परे करने लगा.
‘‘इस सामान में किताबें भी हैं, पैर क्यों लगा रहे हो.’’
सोम एक तरफ जा बैठा. मुझे ऐसा भी लगा कि उसे शर्म आ रही है. संस्कारों और ऊंचे विचारों का धनी है सोम, जो व्यवहार वह कर रहा है उसे उस के व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं माना जा सकता क्योंकि वह ऐसा है ही नहीं.
‘‘कल किस से मिल कर आया है, जो ऐसी अनापशनाप बातें कर रहा है?’’
सोम ने जो बताया उसे सुन कर मुझे धक्का भी लगा और बुरा भी. किसी तांत्रिक से मिल कर आया था सोम और उसी ने समझाया था कि घर का सारा खड़ा सामान घर के बाहर फेंक दो.
‘‘खड़े सामान से तुम्हारा क्या मतलब है?’’
‘‘खड़े सामान से हमारा मतलब वह सामान है जो चल नहीं रहा, बेकार पड़ा सामान, जो हमारे काम में नहीं आ रहा वह सामान…’’
‘‘तब तो सारा घर ही खाली करने वाला होगा. घर का सारा सामान एकसाथ तो काम नहीं न आ जाता, कोई सामान आज काम आ रहा है तो कोई कल. किताबों को पैरों से धकेल कर बाहर फेंक रहे हो. ट्रांजिस्टर में सैल डालोगे तो बजेगा ही… क्या तुम ने पूरी तरह समझा कि वह तांत्रिक किस सामान की बात कर रहा था?’’
‘‘हमारे घर का वास्तु भी ठीक नहीं है,’’ सोम बोला, ‘‘घर का नकशा भी गलत है. यही विकार हैं जिन की वजह से मुझे नौकरी नहीं मिल रही, मेरा जीवन ठहर गया है भाई.’’
सोम ने असहाय नजरों से मुझे देखा. विचित्र सी बेचैनी थी सोम के चेहरे पर.
‘‘अब क्या घर को तोड़ कर फिर से बनाना होगा? नौकरी तो पहले से नहीं है… लाखों का जुगाड़ कहां से होगा? किस घरतोड़ू तांत्रिक से मिल कर आए हो, जिस ने यह समझा दिया कि घर भी तोड़ दो और घर का सारा सामान भी बाहर फेंक दो.’’
हंसी आने लगी थी मुझे.
मां और बाबूजी कुछ दिन से घर पर नहीं हैं. सोम उन का ज्यादा लाड़ला है. शायद उदास हो गया हो, इसलिए बारबार जीवन ठहर जाने का गिला कर रहा है. मैं क्या करूं, समझ नहीं पा रहा था.
‘‘तुम्हें नीलू से मिले कितने दिन हो गए हैं? जरा फोन करना उसे, बुलाना तो, अभी तुम्हारा जीवन चलने लगेगा,’’ इतना कह मैं ने मोबाइल उठा कर सोम की तरफ उछाल दिया.
‘‘वह भी यहां नहीं है, अपनी बूआ के घर गई है.’’
मुझे सोम का बुझा सा स्वर लगा. कहीं यही कारण तो नहीं है सोम की उदासी का. क्या हो गया है मेरे भाई को? क्या करूं जो इसे लगे कि जीवन चलने लगा है.
सुबहसुबह मैं छत पर टहलने गया. बरसाती में सामान के ढेर पर नजर पड़ी. सहसा मेरी समझ में आ गया कि खड़ा सामान किसे कहते हैं. भाग कर नीचे गया और सोम को बुला लाया.
‘‘यह देख, हमारे बचपन की साइकिलें, जिन्हें जंग लगी है, कभी किसी काम में नहीं आने वालीं, सड़े हुए लोहे के पलंग और स्टूल, पुराना गैस का चूल्हा, यह पुराना टीवी, पुराना टूटा टेपरिकार्डर और यह साइकिल में हवा भरने वाला पंप…इसे कहते हैं खड़ा सामान, जो न आज काम आएगा न कल. छत का इतना सुंदर कोना हम ने बरबाद कर रखा है.’’
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आंखें फैल गईं सोम की. मां और बाबूजी घर पर नहीं थे सो बिना रोकटोक हम ने घर का सारा कबाड़ बेच दिया. सामान उठा तो छत का वह कोना खाली हो गया जिसे हम साफसुथरा कर अपने लिए छोटी सी आरामगाह बना सकते थे.
नीचे रसोई में भी हम ने पूरी खोज- खबर ली. ऊपर वाली शैल्फ पर जला हुआ पुराना गीजर पड़ा था. बिजली का कितना सामान जमा पड़ा था, जिस का उपयोग अब कभी होने वाला नहीं था. पुरानी ट्यूबें, पुराने हीटर, पुरानी इस्तरी.
हम ने हर जगह से खड़ा सामान निकाला तो 4 दिन में घर का नकशा बदल गया. छत को साफ कर गंदी पड़ी दीवारों पर सोम ने आसमानी पेंट पोत दिया. प्लास्टिक की 4 कुरसियां ला कर रखीं, बीच में गोल मेज सजा दी. छत से सुंदर छोटा सा फानूस लटका दिया. जो खुला भाग किसी की नजर में आ सके वहां परदा लगा दिया, जिसे जरूरत पड़ने पर समेटा भी जा सके और फैलाया भी.
‘‘एक हवादार कमरे का काम दे रहा है यह कोना. गरमी के मौसम में जब उमस बढ़ने लगेगी तो यहां कितना आराम मिला करेगा न,’’ उमंग से भर कर सोम ने कहा, ‘‘और बरसात में जब बारिश देखने का मन हो तो चुपचाप इसी कुरसी पर पसर जाओ…छत की छत, कमरे का कमरा…’’
सोम की बातों को बीच में काटते हुए मैं बोल पड़ा, ‘‘और जब नीलू साथ होगी तब और भी मजा आएगा. उस से पकौड़े बनवा कर खाने का मजा ही कुछ और होगा.’’
मैं ने नीलू का नाम लिया इस पर सोम ने गरदन हिला दी.
‘‘सच कह रहे हो भाई, नीचे जा कर देखो, रसोई भी हलकीफुलकी हो गई है… देख लेना, जब मां आएंगी तब उन्हें भी खुलाखुला लगेगा…और अगर मां ने कबाड़ के बारे में पूछा तो क्या कहेंगे?’’
‘‘उस सामान में ऐसा तो कोई सामान नहीं था जिस से मां का काम रुकेगा. कुछ काम का होता तब तो मां को याद आएगा न?’’
मेरे शब्दों ने सोम को जरा सा आश्वासन क्या दिया कि वह चहक कर बोला, ‘‘भाई क्यों न रसोई के पुराने बरतन भी बदल लें. वही प्लेटें, वही गिलास, देखदेख कर मन भर गया है. मेहमान आएं तो एक ही रंग के बरतन मां ढूंढ़ती रह जाती हैं.’’
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सोम की उदासी 2 दिन से कहीं खो सी गई थी. सारे पुराने बरतन थैले में डाल हम बरतनों की दुकान पर ले गए. बेच कर, थोड़े से रुपए मिले. उस में और रुपए डाल कर एक ही डिजाइन की कटोरियां, डोंगे और प्लेटें ला कर रसोई में सजा दीं.
हैरान थे हम दोनों भाई कि जितने रुपए हम एक पिक्चर देखने में फूंक देते हैं उस से बस, दोगुने ही रुपए लगे थे और रसोई चमचमा उठी थी.
‘अनुपमा’ फेम एक्ट्रेस मदालसा शर्मा यानी काव्या (Kavya) इन दिनों सुर्खियों में छायी हुई हैं. वह अक्सर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं.
तो अब उन्होंने समंदर किनारे की एक बहुत प्यारी तस्वीर शेयर की है. यह तस्वीर उन्होंने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है. इस तस्वीर में मदालसा बीच किनारे बैठी हैं और वाइट कलर की ड्रेस में कातिलाना पोज दे रही हैं. फैन्स भी इस तस्वीर में मदालसा की खूबसूरती देख दिल दे बैठे हैं. किसी ने मदालसा को सबसे बेस्ट बताया तो किसी ने कहा कि उनके जैसा कोई है.
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मदालसा एक्टिंग के साथ-साथ कमाल की डांस भी करती हैं. कभी मदालसा अपनी मां शीला शर्मा (Sheela Sharma) के साथ डांस वीडियो पोस्ट करती हैं तो कभी को-स्टार्स के साथ.
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र्क फ्रंट की बात करे तो मदालसा ने 2009 में साउथ की फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत की थी. साउथ में उन्होंने तेवलुगु, कन्नड़, तमिल, जर्मन और पंजाबी भाषा की फिल्मों में भी काम किया. साल 2020 में ‘अनुपमां’ के जरिए मदालसा शर्मा ने टीवी की दुनिया में कदम रखा और काव्या के किरदार से सुर्खियों में हैं.