Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: पाखी को छोड़कर सई के साथ रोमांटिक डांस करेगा विराट, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin)  में कहानी एक नया मोड़ ले रही है. सीरियल में इन दिनों लव ट्रैंगल का ट्रैक चल रहा है. विराट, सई से अपना प्यार जताने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है तो वहीं पाखी विराट को पाने के लिए हर कोशिश कर रही है. आइए बताते हैं शो के लेटेस्ट एपिसोड के बारे में.

शो में आपने देखा कि पाखी किसी भी हालत में विराट का पीछा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है तो वहीं विराट, सई को खोना नहीं चाहता. ऐसे में सई और पाखी में विराट को लेकर कैटफाइट जारी है. वो दोनों एक-दूसरे को निचा दिखाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.

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सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ में दिखाया जा रहा है कि पाखी अपनी मां के बर्थडे पार्टी में सई को छोड़कर पूरे परिवार को इनवाइट की है. जैसे ही ये बात विराट को पता चला तो वह पाखी को खूब सुनाता है.

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इतना ही नहीं विराट ने ये भी कहा कि अगर सई बर्थडे पार्टी में नहीं गयी तो वह भी नहीं जाएगा. ऐसे में पाखी ने सई को पार्टी में आने के लिए इनवाइट किया.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप ये भी देखेंगे कि विराट और सई पूरे परिवार के सामने रोमांटिक डांस करते नजर आएंगे.

पार्टी में सई और विराट को एक साथ देखकर पाखी का गुस्सा सातवें आसमान पर होगा. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि पाखी, सई और विराट को अलग करने के लिए अब क्या करेगी.

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हरिराम- भाग 2: शशांक को किसने सही राह दिखाई

शशांक ने अनुमान लगाया कि हरिराम की उम्र करीब 50-55 की होगी. हट्टाकट्टा शरीर पर साफ कुरता- पायजामा, ठीक से संवारे गए सफेद बाल, दाढ़ीमूंछ साफ, करीब 5 फुट 8 इंच ऊंचाई लिए हरिराम आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक लग रहा था. कमरे में जा कर शशांक ने लखनऊ पहुंचने पर सरिता को फोन किया.

रात को खाना खातेखाते शशांक ने हरिराम से उस के बारे में पूछा. ‘‘साहब, मेरे पिता इस अतिथिगृह में थे. मैं बचपन से उन की सहायता करता था. बीच में 10 साल के लिए मुंबई गया था, एक कारखाने में काम करने. पिता की अचानक मृत्यु हो गई. मां अकेली थीं, इसलिए मुंबई छोड़ कर लखनऊ आना पड़ा. पिछले 10 साल से इसी अतिथिगृह में आप सब की सेवा कर रहा हूं.’’

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‘‘तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं?’’ ‘‘बस, मैं अकेला हूं,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चला गया. शायद वह इस बारे में बात नहीं करना चाहता था.

दूसरे दिन शशांक प्रोेजेक्ट आफिस गया तो उसे चारों ओर से अपनी कंपनी की आलोचना ही सुनने को मिली. उत्तर प्रदेश विद्युत निगम के अधिकारियों ने एक ही बात की रट लगाई कि पैसा वापस करो और दफा हो जाओ यहां से. उस की कंपनी के ज्यादातर कर्मचारी नदारद थे.

लज्जित शशांक गुस्से से भरा शाम को अतिथिगृह वापस लौटा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि स्थिति से कैसे निबटा जाए. उसे कुछ समय के लिए सब से विरक्ति सी हुई. उस का मन किया कि कंपनी को त्यागपत्र भेज कर, दूर पहाड़ों में चला जाए. खाना खा कर वह टहलने के लिए निकल पड़ा. 1 घंटे के बाद वापस आ कर सोने की तैयारी करने लगा. एकाएक उसे खयाल आया कि उस का पर्स जिस में करीब 5 हजार रुपए थे, गायब है. उस ने अपनी पैंट की जेब, बाथरूम आदि में ढूंढ़ा पर पर्स नहीं मिला.

उस ने सोचा कि कहीं यह करामात हरिराम ने तो नहीं कर दिखाई. शशांक ने हरिराम को बुला कर बहुत डांटा, धमकाया और पर्स वापस करने के लिए कहा.

हरिराम चुपचाप खड़ा रहा. उस की आंखों में आंसू आ गए. वह कुछ नहीं बोला. ‘‘मैं तुम्हें सुबह तक का समय देता हूं. यदि तुम ने मेरा पर्स वापस नहीं किया तो मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा.’’

शशांक रात को अपने कमरे में बैठा काफी देर तक सोचता रहा कि इस नई समस्या से कैसे निबटा जाए. सोने के लिए लेटा तो उसे तकिया टेढ़ामेढ़ा लगा. तकिया उठाया तो उस के नीचे पर्र्स था. शशांक को याद आया कि उस ने इस डर से पर्स तकिए के नीचे छिपा दिया था कि कहीं हरिराम उसे चुरा न ले. शशांक को खुद पर शर्म महसूस हुई. वह हरिराम के कमरे में गया और उसे अपने कमरे में बुला कर लाया. शशांक ने हरिराम को बताया कि वह किस परेशानी में यहां आया था. किस तरह वह क्षेत्रवाद, भाषावाद का शिकार हो रहा है. इसी परेशानी में उस से यह अपराध हो गया, जिस के लिए वह शर्मिंदा है.

‘‘साहब, यह बडे़ दुख की बात है कि हम पहले हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बंगाली, मराठी आदि हैं और बाद में भारतीय. इस सोच ने हमारे देश की प्रगति में बहुत बड़ी बाधा डाली हुई है.’’ शशांक को किसी हिंदू से बाबरी मसजिद के बारे में यह विचार सुन कर आश्चर्य हुआ. उसे लगा कि उस के सामने एक सच्चा भारतीय खड़ा है.

‘‘पर क्या किया जा सकता है, हरिराम?’’ उस के मुंह से निकला. ‘‘क्या आप कर्म पर विश्वास करते हैं?’’

‘‘हां, बिलकुल.’’ ‘‘आप यह क्यों नहीं सोचते कि इस लखनऊ वाले प्रोजेक्ट ने आप को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने का अवसर दिया है? उत्तर प्रदेश विद्युत निगम के अधिकारी हमारी कंपनी के शत्रु नहीं हैं. आप को उन की समस्याओं का समाधान करना चाहिए.’’

‘‘हरिराम, तुम ठीक कहते हो. अब रात बहुत हो गई है, थोड़ा सो लेते हैं.’’ अगले दिन शशांक ने अपनी कंपनी के कर्मचारियों से मिल कर भविष्य की कार्यप्रणाली तय की. इस के बाद उस ने उत्तर प्रदेश विद्युत निगम के अध्यक्ष से मिल कर 3 महीने का समय मांग लिया और उन्हें यह आश्वासन भी दिया कि वह लखनऊ से बाहर नहीं जाएगा.

शशांक सुबह नाश्ते के बाद प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए रवाना हो जाता था और रात को काफी देर के बाद वापस आता था. इस से कंपनी के कर्मचारियों में नई जान आ गई. एक दिन शशांक रात को आया तो अतिथिगृह में ताला लगा था. वह पास के बगीचे में टहलने के लिए चला गया. वहीं उसे हरिराम अकेले एक बैंच पर सिर झुकाए बैठा मिल गया.

‘‘हरिराम, तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ हरिराम ने उसे देखा और फिर यह कहते हुए कि आओ, शशांक बाबू, बैठो, उस ने शशांक का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा दिया.

शशांक ने हरिराम के मुंह से शराब की गंध महसूस की. ‘‘जानते हो यह कौन है?’’ हरिराम ने शशांक को एक तसवीर दिखाते हुए कहा.

शशांक ने देखा, तसवीर में एक महिला, 4-5 साल के बच्चे के साथ थी. ‘‘यह सीता है, मेरी पत्नी और यह रमेश है, मेरा बेटा. मैं मुंबई में काम करता था. अपनी सीता पर शक करता था. रोज उसे पीटता था. वह बेचारी कब तक जुल्म सहती. एक दिन मुझे छोड़ कर बेटे के साथ कहीं चली गई,’’ कह कर हरिराम ने सिर झुका लिया.

‘‘तुम ने उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की?’’ ‘‘बहुत ढूंढ़ा, बहुत खोजा पर कहीं पता नहीं चला. आज आप की मेमसाहब का फोन आया था. परिवार के बिना जिंदगी गुजारना बहुत कठिन है साहब. इस का दर्द मैं जानता हूं,’’ कह कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

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दूसरे दिन सुबह नाश्ते के समय हरिराम ने संकोच के साथ कहा, ‘‘साहब, कल नशे में कुछ गुस्ताखी हो गई हो तो माफ कीजिएगा.’’

दिन भर शशांक, हरिराम और अपनी जिंदगी के बारे में सोचता रहा. उस का और सरिता का कालिज का 3 साल तक प्यार, एक परिवार का सपना, विवाह, उस का काम में व्यस्त होना, कंपनी में प्रमोशन के लिए भागदौड़, सरिता की शिकायतें, अहं का टकराव फिर लड़ाई, उस का तंग आ कर सरिता पर हाथ उठाना, सरिता की आत्महत्या की धमकी, हमेशा एक तनाव भरी जिंदगी जीना. ‘नहीं, हमारी पे्रम कहानी का यह अंत नहीं होना चाहिए,’ शशांक के अंतर्मन से यह आवाज निकली और शाम को उस ने सरिता को फोन किया.

‘‘हेलो,’’ फोन सरिता ने उठाया था. ‘‘हेलो, क्या कर रही हो?’’ शशांक ने नम्र स्वर में पूछा.

‘‘यों ही बैठी हूं.’’ ‘‘सरिता, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. मैं यहां लखनऊ में तुम्हारे बिना बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं.’’

एक क्षण को सरिता के मन में आया कि बोले वंदना को बुला लो, पर दूसरे क्षण उस का अपनेआप पर नियंत्रण न रहा और वह फूटफूट कर रो पड़ी. शशांक की आंखों में भी आंसू आ गए.

‘‘सरु, क्या तुम यहां आ सकती हो?’’ ‘‘मैं कल ही पहुंच रही हूं, शशांक,’’ सरिता ने रोतेरोते कहा.

शशांक दूसरे दिन शाम को कमरे में दाखिल हुआ तो सरिता उस का इंतजार कर रही थी. ‘‘शशांक, मुझे माफ कर दो.’’

शशांक ने सरिता को गले से लगा लिया. ‘‘गलती मेरी ज्यादा है. मैं काम के जनून में तुम्हें नजरअंदाज करने लगा था. मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया है न सरू ?’’

रात को खाना खाने के बाद हरिराम ने सरिता से कहा, ‘‘मेमसाहब, आप के आने से साहब बहुत खुश हैं. इन्होंने आज 2 रोटियां ज्यादा खाई हैं,’’ फिर उस ने शशांक से कहा, ‘‘साहब, कल छुट्टी है. आप मेमसाहब को बड़ा इमामबाड़ा, बारादरी, गोमती नदी का किनारा आदि जगह घुमा कर लाइए. हां, शाम को अमीनाबाद से इन के लिए चिकन की साड़ी खरीदना मत भूलिएगा.’’

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पुनर्मरण- भाग 2: शुचि खुद को क्यों अपराधी समझती थी?

बचपन से ही मैं दबंग स्वभाव की थी. मम्मी और पापा दोनों ही नौकरी में थे. घर पर मैं और मुझ से छोटा भाई बस, हम दोनों ही रहते. मां ने यही सिखाया था कि कभी अन्याय न करना और न सहना. हमेशा सच का साथ देना. मेरा पूरा परिवार खुले विचारों का था. मेरी परवरिश इस तरह के माहौल में हुई तो जाहिर है मैं रूढि़यों को न मानने वाली और हमेशा सही का साथ देने वाली बन गई.

बी. एड. में मैं ने प्रवेश लिया था. पहला साल था कि विभु के घर से विवाह के लिए रिश्ता आ गया. मैं शादी से कतरा रही थी पर मां ने समझाया, ‘शुचि, विभु प्रवक्ता है. यानी एक पढ़ालिखा इनसान. तेरा भी पढ़ाई में रुझान ज्यादा है. शादी कर ले, वह तुझे अच्छी तरह समझेगा और जितना पढ़ना चाहेगी पढ़ाएगा भी.’

शादी के बाद जब मैं विभु के घर पहुंची तो यह देख कर आश्चर्य में पड़ गई कि विभु बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के थे. विभु ने शादी की रात में ही मुझ से कह दिया था, ‘शुचि, मैं पूजापाठ करता हूं, पर तुम से इतना वादा करता हूं कि तुम्हें यह सब करने के लिए मैं कभी बाध्य नहीं करूंगा. हां, जहां जरूरत होगी वहां साथ जरूर रखूंगा.’

उन दिनों मेरी बी. एड. की परीक्षा चल रही थी, नवरात्र का समय था. सुबह विभु उठ कर शंख, घंटी से पूजा करते. मेरी आदत सुबहसुबह उठ कर पढ़ने की थी. इस शोर से मैं पढ़ नहीं पाती. आखिर मैं ने विभु से कह दिया. उस दिन से विभु मौन पूजा करने लगे. बल्कि मां को भी सुबह जोर से मंत्रोच्चारण करने को मना कर दिया.

हमारा जीवन एक खुशहाल जीवन कहा जा सकता है. शादी के शुरुआती दिनों में हम जहां भी घूमने जाते वहां के मंदिरों में जरूर जाते. मैं तटस्थ ही रहती थी, कभी भी विभु को इस के लिए मना नहीं करती. आखिर अपनीअपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का सभी को हक है. जब मैं अपना खाली समय पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताती तो विभु भी नहीं बोलते. हमारे प्यार के बीच एक आपसी समझौता हम दोनों ने कर रखा था.

4 वर्ष बाद त्रिशंक पैदा हुआ. बी.एड. के बाद मैं नौकरी करने लगी थी. त्रिशंक दादी के पास रहता और उस का बचपन दादी की परी, बेताल और धार्मिक किस्सेकहानियों में बीता. इसी कारण वह बचपन से धर्म के मामले में संकीर्ण हो गया.

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आदित्य के समय तक मैं ने नौकरी छोड़ दी. अपना पूरा समय मैं बच्चों और परिवार में बिताती. बच्चे पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे. एक ने कंप्यूटर विज्ञान में इंजीनियरिंग की, दूसरा अमेरिकन बैंक में लग गया. दोनों ही विदेश चले गए. बड़े ने मेरी देखी हुई लड़की से शादी की परंतु छोटे ने विदेश मेें अपनी एक सहकर्मी के साथ विवाह कर लिया. उस के विवाह में हम सब गए थे. मांजी खूब बड़बड़ाई थीं पर विभु नाराज नहीं हुए थे.

विभु का रिटायरमेंट करीब था. मेरे पास भी समय था. बच्चों के बाहर बसने से मेरे लिए कुछ करने को रह ही नहीं गया था, सो मैं समाजसेवा से जुड़ गई.

एक दिन बैठेबैठे यों ही विभु के मुंह से निकल गया, ‘शुचि, हमारी सारी जिम्मेदारियां पूरी हो गई हैं. चलो, तीर्थ कर आएं.’

मैं हंस दी तो वह भी हंस दिए. बोले, ‘मैं जानता हूं शुचि, तुम पूजापाठ में विश्वास नहीं रखती हो. पर मैं मजबूर हूं. बचपन से ही मां ने मेरे अंदर यह भावना बिठा दी है कि भगवान ही सबकुछ है. जो कुछ भी करो उसे सपर्पित कर के करो. बस, मैं यही कर रहा हूं.’

मैं ने अनायास ही पूछ लिया, ‘आप ने ईश्वर देखा है क्या?’

‘नहीं, पर मैं मानता हूं कि यह धरती, आकाश, परिंदे और वृक्षों को बनाने वाला ईश्वर है.’

विभु थोड़ी देर शांत बैठे रहे, फिर बाहर टहलने चले गए. उन के ध्यान और योग को मैं अच्छा मानती थी. इन दोनों चीजों से व्यक्ति का मस्तिष्क और शरीर दोनों ही स्वस्थ होते हैं.

जुलाई का महीना था. अपने तय कार्यक्रम के अनुसार हम हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक नजारों को देखते धार्मिक स्थानों पर घूमते हुए कटरा पहुंचे थे ताकि वैष्णोदेवी का स्थान देख कर दर्शन कर सकें. कई दिनों की लगातार थकावट से बदन का पोरपोर दुख रहा था. विभु को तभी सांस की तकलीफ होने लगी थी. बाणगंगा पर ही मैं ने जिद कर के उन के लिए घोड़ा करवा दिया ताकि उन की सांस की तकलीफ और न बढ़े.

घोड़े पर बैठ कर जब हम चले तो मुझे डर भी लग रहा था. यह घोड़े अजीब होते हैं. कितनी भी जगह हो पर चलेंगे एकदम किनारे. गजब की सधी हुई चाल होती है इन की. नीचे झांको तो कलेजा मुंह को आ जाए, गहरीगहरी खाइयां.

सवारी की वजह से हम जल्दी ही मंदिर देख कर नीचे वापस आ गए. हमारी इस यात्रा में पटना का एक परिवार भी शामिल हो गया. मेरा थकावट से बुरा हाल था. रात हो गई थी. लौटतेलौटते भूख भी लग रही थी और विश्राम करने की इच्छा भी हो रही थी.

पटना वालों ने बताया कि नीचे बाणगंगा के पास लंगर चलता है, चल कर वहीं भोजन करते हैं. घोड़े वाले ने कहा कि भोजन कर के चले चलिए तो रात में ही होटल पहुंच जाएंगे. फिर वहां आराम करिएगा.

लंगर में लोग खाने के लिए लाइन लगाए खड़े थे. सब तरफ हलवा बांटा जा रहा था. मैं ने गौर किया कि थालियां ठीक से धुली नहीं थीं फिर भी उन में खाना परोस दिया जा रहा था. थालियां ऐसे बांटी जा रही थीं मानो हाथ नहीं मशीन हो. मैं विभु के साथ हाथमुंह धो कर बैठ गई.

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‘चलो, दर्शन हो गए, अब घर चल कर एक हवन करा लेंगे.’

मैं होंठ दबा कर हंसी तो विभु ने मुंह दूसरी तरफ फेर लिया. हवन का आशय मेरी समझ से दूसरा था. पिताजी ने ही एक बार समझाया था कि हवन के धुएं से पूरा घर साफ हो जाता है. कीड़े-मकोड़े मर जाते हैं.

भोजन की लाइन में बैठ विभु उस समय काफी तरोताजा लग रहे थे. चारों तरफ गहमागहमी थी. लंगर की यह विशेषता मुझे अच्छी लगती है, जहां एक ही कतार में सेठ भी खाते हैं और उन के मातहत भी. यहां कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है.

अचानक मुझे जोर की उबकाई आई. मैं उठ कर बाहर भागी. शायद कुछ न खाने की वजह से पेट में गैस बन गई थी. मैं मुंह धो कर हटी ही थी कि एक जोर का धमाका हुआ और  सारा वातावरण धुएं और धूल से भर गया. लोग जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगे, एकदूसरे पर गिरने लगे. विभु का ध्यान आते ही मैं पागलों की तरह उधर भागी पर वहां धुएं की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. 10 मिनट भी न गुजरे होंगे कि एक और जोरदार धमाका हुआ. आतंकवादियों ने कहीं से गोले फेंके थे. मेरे पेट में जोर की ऐंठन हुई और लाख न चाहने के बावजूद मैं अचेत हो कर वहीं गिर पड़ी.

मुझे जब होश आया, भगदड़ कुछ थम गई थी. मैं जमीन पर एक तरफ पड़ी थी. प्रेस वाले और पुलिस वाले वहां मौजूद थे. मैं ने हिम्मत कर के उठने की कोशिश की. मैं जानना चाहती थी कि विभु कहां हैं. पर किस से पूछती, हर कोई अपने साथ वाले के लिए बेचैन था. लोग आपस में बात कर रहे थे कि आतंकवादियों ने कहीं से बम फेंका है जिस में लगभग 7 लोगों की जान चली गई है. कई गंभीर अवस्था में घायल पड़े हैं जिन्हें कटरा अस्पताल ले जाया जा रहा है.

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

राजस्थान के अलवर जिले के भिवाड़ी शहर के थाना यूआईटी के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को 15 फरवरी, 2021 की सुबह फोन पर सूचना मिली कि सेक्टर  4 व 5 के बीच सड़क पर एक व्यक्ति का शव पड़ा है. सूचना पा कर थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

मौके पर उन्हें वास्तव में एक युवक का शव पड़ा मिला. उन्होंने जब शव की जांच की तो उस के दोनों पैरों के अंगूठों से चमड़ी उधड़ी हुई दिखी. प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा था मानो मृतक की हत्या कहीं और कर के शव यहां ला कर डाला गया हो.

पुलिस ने इस नजर से भी जांच की कि मृतक कहीं दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया. मगर मौकाएवारदात और शव को देखने से ऐसा नहीं लग रहा था. शव पर और किसी जगह चोट या रगड़ के निशान या खून निकला हुआ नहीं था. मामला सीधे हत्या का लग रहा था. मामला संदिग्ध लगा तो थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी के संज्ञान में मामला आया तो उन्होंने एएसपी अरुण मच्या को घटनास्थल पर जा कर मामला देखने के निर्देश दिए. एएसपी अरुण मच्या और फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल टीम को भी वहां बुला कर साक्ष्य इकट्ठा करवाए. पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. शव की शिनाख्त नहीं हुई थी. लेकिन जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती. तब तक पुलिस हाथ पर हाथ धर कर बैठने वाली नहीं थी. पुलिस ने अज्ञात शव मिलने का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस को सुलझाने के लिए एएसपी अरुण मच्या के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. इस टीम में यूआईटी थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार के साथ फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, एसआई अखिलेश, हैडकांस्टेबल मुकेश कुमार, राकेश कुमार, मोहनलाल, कर्मवीर, रामप्रकाश, राजेंद्र, संतराम, सुरेश, ओमप्रकाश व ऊषा को शामिल किया गया.

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मृतक की हुई शिनाख्त

इस पुलिस टीम ने मृतक के फोटो एवं पैंफ्लेट बना कर भिवाड़ी में सार्वजनिक स्थानों पर लगवा कर लोगों से शव की शिनाख्त की अपील की. साथ ही पुलिस टीम ने 2 दिन में लगभग 800 घरों में संपर्क कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की. वहीं पुलिस टीम ने सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले.

सीसीटीवी फुटेज में एक बाइक पर एक युवक और महिला किसी व्यक्ति को बीच में बैठा कर ले जाते दिखे. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त कर ली. मृतक का नाम कमल सिंह उर्फ कमल कुमार था. मृतक कमल निवासी उमराया, छाता, जिला मथुरा का रहने वाला था और इन दिनों भिवाड़ी की प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में रह रहा था.

पुलिस ने मृतक कमल के घर जा कर पूछताछ की तो मृतक की बीवी जमना देवी अपने पति की हत्या की बात सुन कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे ढांढस बंधाया और पूछताछ की. जमना देवी ने बताया कि उस का पति कमल एटीएम से रुपए निकलवाने गया था. जबकि मृतक के बड़े भाई भीम सिंह ने पुलिस को बताया कि 14 फरवरी, 2021 की रात कमल सिंह की पत्नी जमना देवी उन के घर आई थी. वह उस से बाइक की चाबी यह कह कर मांग कर लाई थी कि कमल को बल्लभगढ़ जाना है.

भीम सिंह ने तब बाइक की चाबी जमना को दे दी थी. पुलिस को लगा कि मृतक की बीवी गुमराह कर रही है. तब पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ करने के साथ ही सीसीटीवी फुटेज जमना देवी को दिखाई. सीसीटीवी फुटेज में बाइक पर बैठी महिला के कपड़े एवं जमना के पहने कपड़े एक ही थे.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि कमल की हत्या में उस की पत्नी जमना का हाथ है. तब पुलिस ने जमना से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जमना टूट गई. उस ने कबूल कर लिया कि अपने प्रेमी और भतीजे मदनमोहन के साथ मिल कर पति की हत्या की थी.

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तब पुलिस ने मृतक कमल सिंह की बुआ के पोते 19 वर्षीय मदनमोहन को फरीदाबाद, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने मदनमोहन को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर साइबर सेल एक्सपर्ट की मदद से धर दबोचा था.

पुलिस गिरफ्त में आते ही मदनमोहन समझ गया कि उस का भांडा फूट गया है. इसलिए उस ने भी कमल सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. इस तरह 19 फरवरी, 2021 को पुलिस ने हत्या के इस मामले से परदा हटा दिया. मदनमोहन को यूआईटी थाना पुलिस थाने ले आई.

अगले भाग में पढ़ें-  मदन ने जमना से किया प्यार का इजहार

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजीनामे में आ रही अड़चनों के बीच कुछ समय पहले अनुज ने डा. सुदीप को धमकी भी दी थी. इस पर डाक्टर ने अपने परिचित कुछ अधिकारियों और कानूनविदों से सलाहमशविरा भी किया था. इस में डाक्टर ने खुद पर और परिवार पर खतरे की आशंका जताई थी.

चूंकि यह कानूनी मामला था, इसलिए सभी ने उन्हें विवाद नहीं बढ़ाने और समझाइश से मामला शांत करने को कहा था. शायद इसीलिए डा. सुदीप ने अनुज के धमकी देने की लिखित शिकायत पुलिस में नहीं की थी. लगातार दबाव बनाने के बावजूद डाक्टर से पैसा नहीं मिलने के कारण वह अपनी बहन और भांजे के जलने के दृश्य याद कर बौखला जाता था. इसी बौखलाहट में उस ने बदला लेने के लिए डा. सुदीप और उस की पत्नी डा. सीमा की हत्या कर दी.

अब आप को डेढ़ साल पहले की उस खौफनाक मंजर की कहानी बताते हैं, जिस में दीपा और उस के 6 साल के बेटे शौर्य की मौत हो गई थी.

वह 7 नवंबर, 2019 का दिन था. भरतपुर शहर में जयपुर-आगरा हाईवे पर पौश कालोनी सूर्या सिटी में उस दिन शाम करीब 4 बजे डा. सीमा गुप्ता अपनी सास सुरेखा के साथ अपने पति डा. सुदीप की प्रेमिका दीपा के मकान पर पहुंची.

घर में दीपा और उस का बेटा शौर्य था. उन की दीपा से कहासुनी हुई. इस दौरान अचानक आवेश में आई डा. सीमा ने स्प्रिट की बोतल फरनीचर पर उड़ेल कर आग लगा दी. इस के बाद घर के बाहर की कुंडी लगा कर वह चली गई.

स्प्रिट ने तुरंत भयावह रूप दिखाया. पूरा मकान आग की लपटों से घिर गया. चारों तरफ आग से घिरी दीपा ने अपना और मासूम बेटे का जीवन बचाने के लिए पहले डा. सुदीप का फोन किया. सुदीप ने तुरंत पहुंचने की बात कही. इस बीच, दीपा ने अपने छोटे भाई अनुज से भी जान बचाने की गुहार की. अनुज भरतपुर शहर में ही नीम दा गेट इलाके में रहता था.

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दीपा की गुहार सुन कर अनुज बाइक ले कर तुरंत उस के मकान पर पहुंचा. वह बिना आवताव देखे मकान के बाहर लगी कुंडी खोल कर तेज लपटों के बीच अंदर घुस गया.

इतनी हिम्मत करने के बावजूद वह जान बचाने के लिए चीखतेचिल्लाते इधरउधर छिपते फिर रही बहन और भांजे को नहीं बचा सका. उस ने दोनों को जिंदा जलता देखा. चारों तरफ आग की लपटों से घिरने के कारण अनुज भी गंभीर रूप से झुलस गया था. बड़ी मुश्किल से वह बाहर निकल सका. बाद में उसे जयपुर ले जा कर अस्पताल में भरती कराया गया. कुछ दिनों बाद वह ठीक हो गया.

यह बताना भी जरूरी है कि डा. सीमा ने दीपा और उस के बेटे को क्यों जलाया?

यह कहानी सन 2017 में शुरू हुई थी. दीपा गुर्जर ने भरतपुर में श्रीराम गुप्ता मेमोरियल अस्पताल में बतौर रिसैप्शनिस्ट नौकरी शुरू की थी. यह अस्पताल प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. सीमा गुप्ता का था. डा. सीमा के पति डा. सुदीप भरतपुर के सरकारी अस्पताल आरबीएम में फिजिशियन थे. सरकारी ड्यूटी के बाद डा. सुदीप भी पत्नी के अस्पताल में कुछ समय बैठ जाते थे. वैसे भी उन्होंने अस्पताल के ऊपरी हिस्से में ही आवास बना रखा था.

दीपा का विवाह उत्तर प्रदेश के जगनेर गांव में हुआ था, लेकिन पारिवारिक विवाद के कारण उस का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा. उस के एक बेटा हुआ, जिस का नाम शौर्य रखा गया. बाद में वह ससुराल से अलग हो कर भरतपुर में अपने पीहर आ कर रहने लगी. बेटा शौर्य उसी के साथ रहता था. पति से उस का तलाक का केस चल रहा था.

अस्पताल में नौकरी करने के दौरान दीपा का डा. सीमा के पति डा. सुदीप से प्रेम प्रसंग शुरू हो गया. दीपा अकेली थी. डा. सुदीप का प्यार मिला, तो वह उन की बांहों में चली गई. पुरानी कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. डा. सुदीप और दीपा के मामले में भी यही हुआ.

अस्पताल में दोनों के प्यार के चर्चे होने लगे. डा. सीमा को भी पता चल गया. वह बहुत गुस्सा हुई. उस ने दीपा को नौकरी से निकाल दिया और हिदायत दी कि फिर कभी उन के पति डा. सुदीप से नहीं मिलना.

दीपा क्या करती, उसे नदी का किनारा मिल रहा था, वह भी छूट गया था. वह अपने पीहर में रह कर नए सिरे से जीवन शुरू करने की सोचने लगी.

उधर, दीपा को नौकरी से निकाले जाने से डा. सुदीप बेचैन हो गया. आग दोनों तरफ लगी हुई थी. आग के शोले भड़कने लगे, तो दोनों चोरीछिपे मिलने लगे. दोनों इस बात की सावधानी रखते थे कि डा. सीमा को इस बात का पता न चले. यह सिलसिला कई महीने तक चलता रहा.

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इस बीच, डा. सुदीप ने सूर्या सिटी का अपना मकान दीपा को रहने के लिए दे दिया. दीपा इस मकान में अपने बेटे शौर्य के साथ रहने लगी. यह मकान डा. सुदीप और उस की पत्नी ने कुछ साल पहले खरीदा था. मकान खाली पड़ा था. डा. सीमा को अपने कामकाज से इतनी फुरसत नहीं थी कि वह कभी जा कर अपने मकान को देखे.

इसी का फायदा उठा कर डा. सुदीप ने पत्नी डा. सीमा से कह दिया कि उस ने यह मकान किराए पर दे दिया है. इस मकान में दीपा और डा. सुदीप मिलनेजुलने लगे. डा. सुदीप ही उस का सारा खर्च उठाता था. दीपा के बेटे शौर्य की पढ़ाई का खर्च भी उठाता था. शौर्य भरतपुर के नामी और महंगे स्कूल में पढ़ता था.

दीपा और डा. सुदीप के फिर से पनपे प्रेम संबंधों की जानकारी डा. सीमा को उस समय हुई, जब शहर में आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर खुलने के निमंत्रण पत्र बंटे. इस निमंत्रण पत्र में डा. सुदीप का नाम भी था. सूर्या सिटी में डा. सुदीप के मकान में दीपा ने पहली नवंबर 2019 को यह स्पा सेंटर खोला.

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उलटी गंगा- भाग 1: आखिर योगेश किस बात से डर रहा था

‘‘देशमें लाखों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. किसान आत्महत्या कर रहे हैं, देश बदहाली की ओर जा रहा है और यहां लोग फालतू की बातों में समय बरबाद कर रहे हैं. अरे, मैं पूछता हूं और कोई काम नहीं बचा है क्या इन औरतों के पास, जो मीटू मीटू का नारा लगाए जा रही हैं.

मैं पूछता हूं कि जिस समय इन का शोषण हुआ, तब क्यों नहीं आवाज उठाई, जो अब चिल्ला रही हैं? झूठा प्रचार कर रही हैं, षड्यंत्र रच रहीं पुरुषों के खिलाफ और कुछ नहीं या फिर हो सकता है फेम में रहने के लिए ये मीटू अभियान से जुड़ गई हों. बंद करो टीवी, कुछ नहीं रखा है इन सब में,’’  झल्लाते हुए योगेश ने खुद ही टीवी औफ कर दिया और फिर रिमोट को एक तरफ फेंकते हुए औफिस जाने के लिए तैयार होने लगा.

‘‘अच्छा, ये औरतें बकवास कर रही हैं और तुम सारे मर्द दूध के धुले हो, क्यों?’’ रोटी को तवे पर पटकती हुई नीलिमा कहने लगी, ‘‘हूं, स्वाभाविक भी है जिस समाज में महिला की चुप्पी को उस की शालीनता और गरिमामय व्यक्तित्व का मूलाधार माना जाता रहा हो, वहां शोषण के विरुद्ध उस की आवाज झूठी ही मानी जाएगी?’’ नीलिमा तलखी से बोली.

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‘‘मैं ऐसा नहीं कर रहा हूं, पर अब

10-20 या 30 साल पुरानी बातों को कुरेदने का क्या मतलब है बताओ? जब उन के साथ ऐसा कुछ हुआ था तब क्यों नहीं आवाज उठाई थी

जो अब चिल्ला रही हैं, मैं यह कह रहा हूं,’’ शर्ट का बटन लगाते हुए योगेश बोला.

योगेश की बातों पर नीलिमा को हैरानी भी हुई और गुस्सा भी आया. बोली, ‘‘तुम्हें यह चीखनाचिल्लाना लगता है पर मुझे तो इस में एकदम सचाई नजर आ रही है योगेश. दरअसल, गलती सिर्फ मर्दों की ही नहीं, समाज की भी है, जहां प्रताडि़त होने के बाद भी लड़कियों को ही चुप रहने को कहा जाता है.

‘‘अगर औफिस में लड़कियां शोषण के प्रति आवाज उठाती हैं, तो नौकरी चली जाती है और घरेलू महिला ऐसा करे, इतनी उस की हिम्मत कहां. समाज में औरतों को बचपन से ही यह शिक्षा दी जाती है कि वे शर्म का चोला पहन कर रखें. मगर मर्दों के लिए खुली छूट क्यों? महिलाएं क्या पहनें क्या नहीं, यह उन की अपनी मरजी होनी चाहिए न कि दूसरों की. फिर वैसे भी शर्महया देखने वालों की आंखों में होती है योगेश, कपड़ों या आचरण में नही. लेकिन लद गया अब वह जमाना.

‘‘सच कहूं, तो मुझे बड़ी खुशी हो रही है यह देख कर कि भारत के इतिहास में शायद यह पहला अवसर है जब पुरुष भयभीत दिखाई दे रहे हैं कि कहीं उन के वर्षों पूर्व किए गए गुनाह का पिटारा न खुल जाए,’’ गर्व से सिर ऊंचा कर नीलिमा बोली, ‘‘बहुत दे चुकी सीता अग्नि परीक्षा. अब राम की बारी है, क्योंकि स्त्री सिर्फ देह नहीं है, बल्कि उस में सांस और स्पंदन भी है और यह बात अब पुरुष को समझनी पड़ेगी कि औरत का भी अपना वजूद है. वह सिर्फ सहती नहीं, सोचती भी है.’’

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नीलिमा की लंबीचौड़ी बातें सुन योगेश का दिमाग भन्ना गया. अत:

झल्लाते हुए बोला, ‘‘बस हो गया… अब क्या भाषण ही देती रहोगी या खाना भी मिलेगा? वैसे भी आज मुझे देर हो गई है.’’

खाने की प्लेट योगेश के सामने रखती हुई नीलिमा बोली, ‘‘वैसे तुम क्यों इतना बौखला रहे हो? कहीं तुम ने भी तो किसी के साथ… डर तो नहीं रहे हो कि कहीं तुम्हारा भी कोई पुराना पाप न खुल जाए?’’

यह सुनते ही रोटी का कौर योगेश के गले में ही अटक गया. फिर किसी तरह हलक से रोटी को नीचे उतारते हुए बोला, ‘‘प… प… पागलों सी बातें क्यों कर रही हो तुम? मुझे क्यों बिना वजह इन सब में घसीट रही हो? करे कोई और भरे कोई…? मुझे तो बख्श दो और दुनिया जानती है कि मैं कैसा इंसान हूं. सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है मुझे.’’

‘‘हूं, और दुनिया उन्हें भी जानती है जिन का पिटारा खुला… पता चले कि जनाब ने भी कभी किसी लड़की के साथ… मैं सिर्फ कह रही हूं,’’ खाने का डब्बा योगेश के सामने रखते हुए नीलिमा बोली.

नीलिका की बातों से योगेश तमतमा उठा. मन तो किया उस का कि खाने का डब्बा उठा कर फेंक दे और कहे कि हां, दुनिया के सारे मर्द खराब हैं. सिर्फ औरतें ही पावन पवित्र हैं. मगर उस की इतनी हिम्मत कहां, जो नीलिमा के सामने औरतों के खिलाफ कुछ बोले, क्योंकि आखिर वह महिलाओं की हमदर्द जो ठहरी. किसी शोषित महिला के बारे में कुछ सुना नहीं कि सखियों सहित मोरचा ले कर निकल पड़ती है.

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‘‘क्या अब अपने पति पर भी तुम्हें भरोसा नहीं रह गया और क्या मैं तुम्हें इतना गिरा हुआ इंसान लगता हूं जो ऐसी बातें बोल रही हो?’’

नीलिमा को लगा कि कहीं योगेश उस की बातों को दिल से न लगा बैठे, इसलिए खुद को शांत कर बोली, ‘‘अरे, मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी और क्या मैं तुम्हें नहीं जानती… चलो अब निकलो औफिस के लिए वरना कहोगे मैं ने ही देर करवा दी.’’

‘‘हूं, वैसे भी आज मेरी जरूरी मीटिंग है,’’ योगेश ने मुसकराते हुए कहा और फिर हमेशा की तरह बाय कह कर औफिस निकल गया. लेकिन उस के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. डर तो उसे सताने ही लगा था अपने भविष्य को ले कर. सोच कर ही सिहर उठता कि अगर मीटू की चपेट में वह भी आ गया, तो क्या होगा. नीलिमा तो एक पल भी उसे बरदाश्त नहीं करेगी. और तो और उसे सजा दिलवाने में भी पीछे नहीं रहेगी. अपने बच्चों की नजरों में भी उस की छवि धूमिल पड़ जाएगी सो अलग. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. समाज में बनीबनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

मीटिंग में भी योगेश बस यही सब सोचता रहा. औफिस के किसी काम में आज उसे मजा नहीं आ रहा था और न ही किसी स्टाफ को वह कुछ काम करने को कह रहा था वरना तो किसी को ठीक से सांस तक नहीं लेने देता. सब के सिर पर सवार रहता.

‘‘क्या बात है यार, आज बौस बड़े चुपचुप लग रहे हैं? न चीखना, न चिल्लाना, बस चुपचाप जा कर कैबिन में बैठ गए. गुडमौर्निंग बोला तो कोई जवाब भी नहीं दिया. कहीं इन पर भी किसी देवी ने मीटू का केस तो नहीं कर दिया?’’ ठहाके लगाते हुए संदीप ने कहा तो उस की बात पर औरों को भी हंसी आ गई.

‘‘सही कह रहा हूं यार वरना तो आते ही हमें घूरने लगते थे, मगर आज नजरें नीची किए किसी गहरी चिंता में डूबे हैं. क्या बात हो सकती है?’’ संदीप फिर बोला.

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‘‘हां यार, मुझे तो लगा था डांटने के लिए बुलाया है, पर कहने लगे कि उन्होंने मेरी छुट्टी मंजूर कर दी है,’’ नमन ने कहा, तो वहां बैठे सभी हैरान रह गए. क्योंकि मजाल थी जो किसी को वह बिना नाक रगड़ाए छुट्टी दे दे.

‘‘खैर, जाने दो न हमें क्या. हो गई होगी पत्नी से लड़ाई और क्या,’’ कह कर सभी अपनेअपने काम में लग गए.

भरे मन से जैसे ही योगेश घर पहुंचा, देखा नीलिमा किसी से फोन पर बातें कर रही

थी. जोरजोर से कह रही थी, ‘‘एकदम नहीं छूटना चाहिए वह इंसान. समझता क्या है? भेडि़या कहीं का. बड़ा संस्कारी बना फिरता था, पर चलन तो देखो. नातीपोता वाला हो कर ऐसे कुकर्म और वह भी अपनी बेटी समान लड़की से?’’

‘‘क्या हुआ?’’ धीरे से योगेश ने पूछा,

‘‘आ गए तुम? अभी मैं तुम्हें ही फोन

लगाने वाली थी. पता है, वे अमनजी अरे हमारे  पड़ोसी… उन पर किसी लड़की ने हैरेसमैंट का केस किया है. देखो, कितने संस्कारी बने फिरते थे.

‘‘मैं तो कहती हूं ऐसे इंसान का मुंह काला कर चौराहे पर खड़ा कर हजार जूते मारने चाहिए. पता है तुम्हें, उस की पत्नी तो यह बोलबोल कर चिल्लाए जा रही थी कि वह लड़की झूठी है.

बारिश में इश्क की खुमारी!

मानसून के मदमाते मौसम में तो उन का प्यार सावन के झड़ी बन कर एकदूसरे पर बरस जाता है. कल की ही बात है. दोनों सुबह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुके थे. रीना साड़ी पहने हुई थी जबकि रंजन ने फॉर्मल पैंटशर्ट. इसी बीच बारिश ने अपना रंग दिखा दिया. पहले रिमझिम, उस के बाद तेज बरसात. रीना अपनी बालकनी में जा कर आसमान से बरसते पानी का लुत्फ़ लेने लगी. थोड़ी देर में वह भूल गई कि उसे ऑफिस जाना है. बेखयाली में वह थोड़ा सा भीग गई.

रंजन अपने ड्राइंगरूम में बैठा उस का भीगना देख रहा था. बेटी बैडरूम में सो रही थी. रीना का भीगना रंजन में इश्क का बवंडर उठा गया. वह चुपके से रीना के पास गया और उसे अपने आगोश में ले लिया. फिर क्या था, बारिश ने दो जवां दिलों में ऐसी आग लगाई की उन्होंने ऑफिस की सिरदर्दी भूल कर प्यार करने का भरपूर मजा लिया.

गलती उन दोनों की नहीं थी, कसूर तो उस सावन का था जिस ने पतिपत्नी को रोमांटिक होने का मौका दिया. रंजन और रीना ने उस मौके पर शानदार चौका मारा.

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साहिल और प्रियंका तो मानसून में प्यार करने के लिए ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी ले कर शार्ट ट्रिप पर कहीं निकल जाते हैं. अपनी गाड़ी से लौंग ड्राइव पर पार्टनर के साथ जाना उन्हें बेहद पसंद है. ऐसे में भरी बरसात में किसी सुनसान जगह पर कुछ देर कार में ही प्यार करना उन की रूटीन की जिंदगी में रस भर देता है.

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पिछली बारिश के दौरान तो साहिल और प्रियंका ने उत्तराखंड की हरीभरी वादियों में वॉटरप्रूफ टेंट के अंदर खुले आसमां के नीचे एकदूसरे में खोने का भरपूर मजा लिया था जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे.

मनोज और माही के लिए तो मॉनसून में सब से बेहतरीन आइडिया पार्टनर संग बारिश में भीगते हुए प्यार करना होता है. वे एक मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट्स में टॉप फ्लोर पर रहते हैं. वहां उन के अलावा कोई तीसरा झांक भी नहीं सकता है. ऐसे में वे खुले आसमान के नीचे बारिश में भीगते हुए सेक्स का मजा लेते हैं.

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कहने का मतलब है कि दो जवां लोगों में सावन की झड़ी ऐसी आग लगा देती है कि वे ऐसे खूबसूरत पलों का भरपूर मजा लेने से नहीं चूकते हैं. और अगर यह भीगना रात का हो और रेडियो पर गाना ‘भीगीभीगी रातों में, ऐसी बरसातों में…’ बज रहा हो तो प्यार का ज्वार अपनी हद पर होगा, लिख लीजिए.

भोजपुरी एक्टर यश कुमार ने अपनी बेटी अदिति के जन्मदिन पर गया दिल छू लेने वाला गाना, देखें Video

भोजपुरी सिनेमा में अलग अंदाज और फन को लेकर माहिर एक्शन प्रधान फिल्मों के अभिनेता यश कुमार ने हाल ही में अपनी बेटी अदिति के लिए उसके जन्मदिन पर एक दिल छू लेने वाला गाना ‘तुझे मेरी उम्र लग जाये‘ गया है, जो अब वायरल होने लगा है.इस गाने को लोग खूब पसंद भी कर रहे हैं और यूटयूब पर कमेंट के माध्यम से गाने की तारीफ के साथ उनकी बिटिया को बधाई भी दे रहे हैं.

यश कुमार के प्रशंसक कह रहे हैं कि यह गाना बेहद प्यारा है. इससे हर पिता खुद रिलेट कर पाएगा और चाहेगा कि उनकी बेटी को भी अपने पापा की उम्र लग जाए.

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गाना ‘तुझे मेरी उम्र लग जाये’ को यश कुमार ने अपनी बेटी अदिति के छठे जन्मदिन पर बनाया और रिलीज किया है. इस गाने केा यश कुमार ने अपने होम प्रोडक्शन के यूट्यूब चैनल ‘यश कुमार एंटरटेनमेंट’ से रिलीज किया है.इस गाने को यश कुमार ने स्वयं अपनी ही आवाज में रिकॉर्ड किया है. इस गाने की चर्चा करते हुए यश कुमार कहते है-‘‘मेरी बेटी मेरे लिए दुनिया है. उसके आने के बाद मेरी जिंदगी व कैरियर में बहुत कुछ बदल गया. आज वह मेरे लिए सब कुछ है.इसलिए मैं एक पिता होने के नाते यह चाहता हूं कि मेरी बेटी चिरायु हो और जिंदगी का हर लम्हा वह हंसी खुशी गुजारे.’’

यश कुमार ने आगे कहा -‘‘यह गाना मेरे लिए महज गाना नहीं है,बल्कि यह गाना मेरी अपनी बेटी के प्रति मेरे दिल की भावनाएं हैं.जिसे लोग पसंद कर रहे हैं.मैं चाहूंगा कि पिता पुत्री की यह भावना आम जनमानस तक जाए और बेटियों को जो लोग अभी भी बोझ समझ रहे हैं, वह समझें कि बेटियां कभी बोझ नहीं होती. आप उन्हें स्पेस दें और बेटों से कम ना आंके. मेरा यह गाना एक संदेश देता है, इसलिए इसे आप भी देखे सुने और लोगों के बीच शेयर भी करें.’’

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यश कुमार का गाना ‘तुझे मेरी उम्र लग जाये‘ के संगीतकार साजन मिश्रा व गीतकार राजेश मिश्रा हैं.

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