दफ्तर से छुट्टी होते ही अमित बाहर निकला. पर उसे घर जाने की जल्दी नहीं थी, क्योंकि घर का कसैला स्वाद हमेशा उस के मन को बेमजा करता रहता था.

अमित की घरेलू जिंदगी सुखद नहीं थी. बीवी बातबात पर लड़ती रहती थी. उसे लगता था कि जैसे वह लड़ने का बहाना ढूंढ़ती रहती है, इसीलिए वह देर रात को घर पहुंचता, जैसेतैसे खाना खाता और किसी अनजान की तरह अपने बिस्तर पर जा कर सो जाता.

वैसे, अमित की बीवी देखने में बेहद मासूम लगती थी और उस की इसी मासूमियत पर रीझ कर उस ने शादी के लिए हामी भरी थी. पर उसे क्या पता था कि उस की जबान की धार कैंची से भी ज्यादा तेज होगी.

केवल जबान की बात होती तो वह जैसेतैसे निभा भी लेता, पर वह शक्की भी थी. उस की इन्हीं दोनों आदतों से तंग हो कर अमित अब ज्यादा से ज्यादा समय घर से दूर रहना चाहता था.

सड़क पर चलते हुए अमित सोच रहा था, ‘आज तो यहां कोई भी दोस्त नहीं मिला, यह शाम कैसे कटेगी? अकेले घूमने से तो अकेलापन और भी बढ़ जाता है.’

धीरेधीरे चलता हुआ अमित चौराहे के एक ओर बने बैंच पर बैठ गया और हाथ में पकड़े अखबार को उलटपलट कर देखने लगा, तभी उस के कानों में आवाज आई. ‘‘गजरा लोगे बाबूजी. केवल 10 रुपए का एक है.’’

अमित ने बगैर देखे ही इनकार में सिर हिलाया. पर उसे लगा कि गजरे वाली हटी नहीं है.

अमित ने मुंह फेर कर देखा. एक लड़की हाथ में 8-10 गजरे लिए खड़ी थी और तरस भरे लहजे में गजरा खरीदने के लिए कह रही थी.

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