तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं: भाग 1

सरकारी नौकरियों में लंबे समय तक एकसाथ काम करते और सरकारी घरों में साथ रहते कुछ सहकर्मियों से पारिवारिक रिश्तों से भी ज्यादा गहरे रिश्ते बन जाते हैं, मगर रिटायरमैंट के बाद अपने शहरोंगांवों में वापसी व दूसरे कारणों के चलते मिलनाजुलना कम हो जाता है. फिर भी मिलने की इच्छा तो बनी ही रहती है. उस दिन जैसे ही मेरे एक ऐसे ही सहकर्मी मित्र का उन के पास जल्द पहुंचने का फोन आया तो मैं अपने को रोक नहीं सका.

मित्र स्टेशन पर ही मिल गए. मगर जब उन्होंने औटो वाले को अपना पता बताने की जगह एक गेस्टहाउस का पता बताया तो मैं ने आश्चर्य से उन की ओर देखा. वे मुझे इस विषय पर बात न करने का इशारा कर के दूसरी बातें करने लगे.

गेस्टहाउस पहुंच कर खाने वगैरह से फारिग होने के बाद वे बोले, ‘‘मेरे घर की जगह यहां गेस्टहाउस में रहने की कहानी जानने की तुम्हें उत्सुकता होगी. इस कहानी को सुनाने के लिए और इस का हल करने में तुम्हारी मदद व सुझाव के लिए ही तुम्हें बुलाया है, इसलिए तुम्हें तो यह बतानी ही है.’’ कुछ रुक कर उन्होंने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘मित्र, महिलाओं की तरह उन की बीमारियां भी रहस्यपूर्ण होती हैं. हर महिला के जीवन में उम्र के पड़ाव में मीनोपौज यानी प्राकृतिक अंदरूनी शारीरिक बदलाव होता है, जो डाक्टरों के अनुसार भी कोई बीमारी तो नहीं होती, मगर इस का मनोवैज्ञानिक प्रभाव हर महिला पर अलगअलग तरह से होता है. कुछ महिलाएं इस में मनोरोगों से ग्रस्त हो जाती हैं.

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‘‘इसी कारण मेरी पत्नी भी मानसिक अवसाद की शिकार हो गई, तो मेरा जीवन कई कठिनाइयों से भर गया. घरपरिवार की देखभाल में तो उन की दिलचस्पी पहले ही कम थी, अब इस स्थिति में तो उन की देखभाल में मुझे और मेरी दोनों नवयुवा बेटियों को लगे रहना पड़ने लगा जिस का असर बेटियों की पढ़ाई और मेरे सर्विस कैरियर पर पड़ रहा था.

‘‘पत्नी की देखभाल के लिए विभाग में अपने अहम पद की जिम्मेदारी के तनाव से फ्री होने के लिए जब मैं ने विभागाध्यक्ष से मेरी पोस्ंिटग किसी बेहद सामान्य कार्यवाही वाली शाखा में करने की गुजारिश की, तो उन्होंने नियुक्ति ऐसे पद पर कर दी जो सरकारी सुविधाओं को भोगते हुए नाममात्र का काम करने के लिए सृजित की गई लगती थी.’’

‘‘काम के नाम पर यहां 4-6 माह में किसी खास मुकदमे के बारे में सरकार द्वारा कार्यवाही की प्रगति की जानकारी चाहने पर केस के संबंधित पैनल वकीलों से सूचना हासिल कर भिजवा देना होता था.

‘‘मगर मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. मेरे इस पद पर जौइन करने के 3 हफ्ते बाद ही उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से विभिन्न न्यायालयों में सेवा से जुड़े 10 वर्ष से ज्यादा की अवधि से लंबित मामलों में कार्यवाही की जानकारी मांग ली. मैं ने सही स्थिति जानने के लिए वकीलों से मिलना शुरू किया. विभाग में ऐसे मामले बड़ी तादाद में थे, इसलिए वकील भी कई थे.

‘‘इसी सिलसिले में 3-4 दिनों में कई वकीलों से मिलने के बाद में एक महिला पैनल वकील के दफ्तर में पहुंचा. उन पर नजर डालते ही लगा कि उन्होंने अपने को एक वरिष्ठ और व्यस्त वकील दिखाने के लिए नीली किनारी की मामूली सफेद साड़ी पहन रखी है और बिना किसी साजसज्जा के गंभीरता का मुखौटा लगा रखा है. और 2-3 फाइलों के साथ कानून की कुछ मोटी किताबें सामने रख कर बैठी हुई हैं. मेरे आने का मकसद जानते ही उन्होंने एक वरिष्ठ वकील की तरह बड़े रोब से कहा, ‘देखिए, आप के विभाग के कितने केस किसकिस न्यायाधीश की बैंच में पैडिंग हैं और इस लंबे अरसे में उन में क्या कार्यवाही हुई है, इस की जानकारी आप के विभाग को होनी चाहिए. मैं वकील हूं, आप के विभाग की बाबू नहीं, जो सूचना तैयार कर के दूं.’

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‘‘इस प्रसंग में वकील साहिबा के साथ अपने पूर्व अधिकारियों के व्यवहार को जानते व समझते हुए भी मैं ने उन से पूरे सम्मान के साथ कहा, ‘वकील साहिबा, माफ करें, इन मुकदमों में सरकार आप को एक तय मानदेय दे कर आप की सेवाएं प्राप्त करती है, तो आप से उन में हुई कार्यवाही कर सूचना प्राप्त करने का हक भी रखती है. वैसे, हैडऔफिस का पत्र आप को मिल गया होगा. मामला माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा मांगी गई सूचना का है. यह जिम्मेदारीभरा काम समय पर और व्यवस्था से हो जाए, इसलिए मैं आप लोगों से संपर्क कर रहा हूं, आगे आप की मरजी.’

‘‘मेरी बात सुन कर वकील साहिबा थोड़ी देर चुप रहीं, मानो कोई कानूनी नुस्खा सोच रही हों. फिर बड़े सधे लहजे में बोलीं, ‘देखिए, ज्यादातर केसेज को मेरे सीनियर सर ही देखते थे. उन का हाल  में बार कोटे से न्यायिक सेवा में चयन हो जाने से वे यहां है नहीं, इसलिए मैं फिलहाल आप की कोई मदद नहीं कर सकती.’

‘ठीक है मैडम, मैं चलता हूं और आप का यही जवाब राज्य सरकार को भिजवा दिया जाएगा.’ कह कर मैं चलने के लिए उठ खड़ा हुआ तो वकील साहिबा को कुछ डर सा लगा. सो, वे समझौते जैसे स्वर में बोलीं, ‘आप बैठिए तो, चलिए मैं आप से ही पूछती हूं कि यह काम 3 दिनों में कैसे किया जा सकता है?’

‘‘अब मेरी बारी थी, इसलिए मैं ने उन्हीं के लहजे में जवाब दिया, ‘देखिए, यह न तो मेरा औफिस है, न यहां मेरा स्टाफ काम करता है. ऐसे में मैं क्या कह सकता हूं.’ यह कह कर मैं वैसे ही खड़ा रहा तो अब तक वकील साहिबा शायद कुछ समझौता कर के हल निकालने जैसे मूड में आ गई थीं. वे बोलीं, ‘देखिए, सूचना सुप्रीम कोर्ट को भेजी जानी है, इसलिए सूचना ठोस व सही तो होनी ही चाहिए, और अपनी स्थिति मैं बता चुकी हूं, इसलिए आप कड़वाहट भूल कर कोई रास्ता बताइए.’

‘‘वकील साहिबा के यह कहने पर भी मैं पहले की तरह खड़ा ही रहा. तो वकील साहिबा कुछ ज्यादा सौफ्ट होते हुए बोलीं, ‘देखिए, कभीकभी बातचीत में अचानक कुछ कड़वाहट आ जाती है. आप उम्र में मेरे से बड़े हैं. मेरे फादर जैसे हैं, इसलिए आप ही कुछ रास्ता बताइए ना.’

‘‘देखिए, यह कोई इतना बड़ा काम नहीं है. आप अपने मुंशी से कहिए. वह हमारे विभाग के मामलों की सूची बना कर रिपोर्ट बना देगा.’

‘‘देखिए, आप मेरे फादर जैसे हैं, आप को अनुभव होगा कि मुंशी इस बेगार जैसे काम में कितनी दिलचस्पी लेगा, वैसे भी आजकल उस के भाव बढ़े हुए हैं. सीनियर सर के जाने के बाद कईर् वकील लोग उस को बुलावा भेज चुके हैं,’ कह कर उन्होंने मेरी ओर थोड़ी बेबसी से देखा. मुझे उन का दूसरी बार फादर जैसा कहना अखर चुका था. सो, मैं ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘मैडम वकील साहिबा, बेशक आप अभी युवा ही है और सुंदर भी हैं ही, मगर मेरी व आप की उम्र में 4-5 साल से ज्यादा फर्क नहीं होगा. आप व्यावसायिक व्यस्तता के कारण अपने ऊपर ठीक से ध्यान नहीं दे पाती हैं, नहीं तो आप…

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‘‘महिला का सब से कमजोर पक्ष उस को सुंदर कहा जाना होता है. इसलिए वे मेरी बात काट कर बोलीं, ‘आप कैसे कह रहे हैं कि मेरी व आप की उम्र में सिर्फ 4-5 साल का फर्क है और आप मुझे सुंदर कह कर यों ही क्यों चिढ़ा रहे हैं.’ उन्होंने एक मुसकान के साथ कहा तो मैं ने सहजता से जवाब दिया, ‘वकील साहिबा, मैं आप की तारीफ में ही सही, मगर झूठ क्यों बोलूंगा? और रही बात आप की उम्र की, तो धौलपुर कालेज में आप मेरी पत्नी से एक साल ही जूनियर थीं बीएससी में. उन्होंने आप को बाजार वगैरह में कई बार आमनासामना होने पर पहचान कर मुझे बतलाया था. मगर आप की तरफ से कोई उत्सुकता नहीं होने पर उन्होंने भी परिचय को पुनर्जीवित करने की कोशिश नहीं की.’

‘‘अब तक वकील साहिबा अपने युवा और सुंदर होने का एहसास कराए जाने से काफी खुश हो चुकी थीं. इसलिए बोलीं, ‘अच्छा ठीक है, मगर अब आप बैठ तो जाइए, मैं चाय बना कर लाती हूं, फिर आप ही कुछ बताएं,’ कह कर वे कुरसी के पीछे का दरवाजा खोल कर अंदर चली गईं.

‘‘थोड़ी देर में वे एक ट्रे में 2 कप चाय और नाश्ता ले कर लौटीं और बोलीं, ‘आप अकेले बोर हो रहे होंगे. मगर क्या करूं, मैं तो अकेली रहती हूं, अकेली जान के लिए कौन नौकरचाकर रखे.’ उन की बात सुन कर एकदफा तो लगा कि कह दूं कि सरकारी विभागों के सेवा संबंधी मुदकमों के सहारे वकालत में इतनी आमदनी भी नहीं होती? मगर जनवरी की रात को 9 बजे के समय और गरम चाय ने रोक दिया.

‘‘चाय पीने के बाद तय हुआ कि मैं अपने कार्यालय में संबंधित शाखा के बाबूजी को उन के मुंशी की मदद करने को कह दूंगा और दोनों मिल कर सूची बना लेंगे. फिर उन की फाइलों में अंतिम तारीख को हुई कार्यवाही की फोटोकौपी करवा कर वे सूचना भिजवा देंगी.

‘‘सूचना भिजवा दी गई और कुछ दिन गुजर गए मगर कोई काम नहीं होने की वजह से मैं उन से मिला नहीं. तब उस दिन दोपहर में औफिस में उन का फोन आया. फोन पर उन्होंने मुझे शाम को उन के औफिस में आ कर मिलने की अपील की.

‘‘शाम को मैं उन के औफिस में पहुंचा तो एकाएक तो मैं उन्हें पहचान ही नहीं पाया. आज तो वे 3-4 दिनों पहले की प्रौढ़ावस्था की दहलीज पर खड़ी वरिष्ठ गंभीर वकील लग ही नहीं रही थीं. उन्होंने शायद शाम को ही शैंपू किया होगा जिस से उन के बाल चमक रहे थे, हलका मेकअप किया हुआ था और एक बेहद सुंदर रंगीन साड़ी बड़ी नफासत से पहन रखी थी जिस का आंचल वे बारबार संवार लेती थीं.

‘‘मुझे देखते ही उन के मुंह पर मुसकान फैल गई तो पता नहीं कैसे मेरे मुंह से निकल गया, ‘क्या बात है मैडम, आज तो आप,’ मगर कहतेकहते मैं रुक गया तो वे बोलीं, ‘आप रुक क्यों गए, बोलिए, पूरी बात तो बोलिए.’ अब मैं ने पूरी बात बोलना जरूरी समझते हुए बोल दिया, ‘ऐसा लगता है कि आप या तो किसी समारोह में जाने के लिए तैयार हुई हैं, या कोई विशेष व्यक्ति आने वाला है.’ मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर एक मुसकान उभरी, फिर थोड़ा अटकती हुई सी बोलीं, ‘आप के दोनों अंदाजे गलत हैं, इसलिए आप अपनी बात पूरी करिए.’ तो मैं ने कहा, ‘आज आप और दिनों से अलग ही दिख रही हैं.’

‘‘और दिनों से अलग से क्या मतलब है आप का,’ उन्होंने कुछ शरारत जैसे अंदाज में कहा तो मैं ने भी कह दिया, ‘आज आप पहले दिन से ज्यादा सुंदर लग रही हैं.’

‘‘मेरी बात सुन कर वे नवयुवती की तरह मुसकान के साथ बोलीं, ‘आप यों ही झूठी तारीफ कर के मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’ तो मैं ने हिम्मत कर के बोल दिया, ‘मैं झूठ क्यों बोलूंगा? वैसे, यह काम तो वकीलों का होता है. पर हकीकत में आज आप एक गंभीर वकील नहीं, किसी कालेज की सुंदर युवा लैक्चरर लग रही हैं?’ यह सुन कर वे बेहद शरमा कर बोली थीं, ‘अच्छा, बहुत हो गई मेरी खूबसूरती की तारीफ, आप थोड़ी देर अकेले बैठिए, मैं चाय बना कर लाती हूं. चाय पी कर कुछ केसेज के बारे में बात करेंगे.’

सोनिया पांडे: लड़के से बना लड़की, तब मिली पहचान

काफी जद्दोजहद के बाद अब मैं असली जिंदगी जी रही हूं और जिंदगी के मजे ले रही हूं. इस के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा. संघर्ष भी किसी और से नहीं, बल्कि अपने परिवार से और समाज से, तब कहीं जा कर मैं अपनी असली पहचान बना पाई हूं. जिसे अब मेरा परिवार और समाज भी स्वीकार करने लगा है.

मैं कौन हूं, क्या हूं और मेरे परिवार में कौनकौन हैं, इस के बारे में मैं बताए देती हूं. इस की शुरुआत मैं अपने घर से ही करती हूं.

दरअसल, मेरे पिता ख्यालीराम पांडेय मूलरूप से उत्तराखंड के शहर अल्मोड़ा के रहने वाले थे. वह 1960 में उत्तर प्रदेश के शहर बरेली आ गए.

वह पूर्वोत्तर रेलवे में इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे. बरेली की इज्जतनगर रेलवे की वर्कशाप में वह काम करते थे. परिवार में मेरी मां निर्मला और एक बड़ा भाई था. मेरा परिवार बरेली आ गया. बरेली में ही मेरा जन्म हुआ. मातापिता ने मेरा नाम राजेश रखा. मेरे बाद मेरी 2 छोटी बहनें हुईं.

मैं कहने को तो लड़का थी, लेकिन मेरी आत्मा, मेरी भावना मुझे लड़की होने का एहसास कराती थी. जब मैं 5 साल की थी, तभी से मुझे लड़कियों की तरह रहना पसंद था, लड़कों की तरह नहीं.

पापा मार्केट से मेरे लिए लड़कों वाली कोई ड्रेस ले कर आते तो मैं लड़कियों की डे्रस पहनने की जिद करती थी. मैं लड़कियों के कपड़े पहनना पसंद करती थी. कभी मां या बड़ी बहनें मुझे फ्रौक पहना देती थीं तो उन को उस फ्रौक को उतारना मुश्किल हो जाता था, मैं उन से बच के घर से बाहर भाग जाती थी.

तब शायद मुझे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि मेरी यह इच्छा आगे चल कर मजाक का सबब भी बनेगी. जैसेजैसे मेरी उम्र बढ़ती गई, मेरे अंदर की जो लड़की थी, उस की इच्छाएं भी जवान होती गईं.

जब मैं 14 साल की थी तो किशोरावस्था में कदम रखते ही मेरे चेहरे पर हलकेहलके बाल आने लगे. चेहरे पर ये बाल मुझे किसी अभिशाप की तरह लगने लगे थे. आईने में चेहरा देखती तो बहुत गुस्सा आता था. मेरे पड़ोस में ही मेरे एक भाई जैसे रहते थे. मैं ने उन से इन बालों को हटाने के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हेयर रिमूवर क्रीम लगाओ.

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तब से मैं ने चेहरे पर हेयर रिमूवर क्रीम लगानी शुरू कर दी. मैं खुद ही हमेशा से एक लड़की की तरह दिखना चाहती थी. उम्र का बहुत ही मुश्किल दौर था, जहां एक तरफ मेरी उम्र के लड़के लड़कियों की ओर आकर्षित होते थे, वहीं मैं लड़कियों के बजाय लड़कों की तरफ आकर्षित होती थी.

समझ नहीं आता था कि ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा है, पर मैं ने अपनी भावनाओं को किसी को नहीं बताया. वह इसलिए कि मुझे पता था कि लोग मेरा मजाक बनाएंगे.

मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता था. एक अजीब सी घुटन होती थी. लड़कों से दोस्ती करने का मन होता था. मैं चाहती थी कि स्कूल में लड़कियों के साथ बैठ कर ही लड़कों को निहारूं, उन से बातें करूं, पर कुछ कह पाने की हिम्मत नहीं होती थी. कुछ कहती भी तो मेरी भावनाओं को समझने के बजाय मेरे ऊपर हंसते.

भावनाएं जाहिर न करने की वजह से घर वालों ने एक लड़की से उस की शादी भी कर दी. इस के बाद स्त्री बन कर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए राजेश उर्फ सोनिया पांडेय ने काफी संघर्ष किया.

स्कूल में मिला नया साथी

जब मैं सातवीं क्लास में थी, तभी मेरी दोस्ती योगेश भारती नाम के सहपाठी से हुई. प्यार से लोग उसे बिरजू भी कहते थे. जब बिरजू एडमीशन के बाद क्लास में आने लगा तो उसे देख कर लगा कि बिरजू और मेरी भावनाएं एक जैसी ही हैं. वह भी बिलकुल लड़की जैसा था. हम दोनों घंटों तक अकेले बातें करते, एक साथ स्कूल आते, एक साथ लंच करते. मानो जैसे हमें हमारी खुद की दुनिया मिल गई थी. हम दोनों बहुत खुश रहते थे. इसे ले कर हमारे सहपाठी हमारा मजाक भी बनाते थे. लेकिन जैसे हम दोनों को इस की परवाह ही नहीं थी.

मैं और बिरजू नौंवी क्लास तक साथ पढ़े. उस के बाद मेरा स्कूल बदल गया. मेरा दूसरे स्कूल में एडमीशन हो गया. जिंदगी फिर वैसी हो गई. नए स्कूल के माहौल में खुद को एडजस्ट कर पाना मुश्किल लगता था. इंटरमीडिएट तक मैं ने अपना स्कूली जीवन व्यतीत किया. फिर मैं ने बरेली कालेज में बीए में एडमीशन ले लिया.

कालेज में आई तो लड़कियां मुझे प्रपोज करने लगीं, कई ने तो मुझे प्रेम पत्र भी दिए. मैं ने सब को यही कह कर टाल दिया कि हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं. और उन को क्या बोलती. यह तो कह नहीं सकती थी कि मैं अंदर से एक लड़की हूं.

वैसे भी जिस लड़के को मैं पसंद करती थी, उस से अब तक अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई, करती भी तो वह शायद मेरे ऊपर हंसता, पूरी क्लास को  बताता, सब मेरे ऊपर हंसते. मैं कभी खुद से खुद को मिला नहीं पा रही थी.

मेरे दिमाग में हर पल यही बात घूमती रहती थी कि मैं लड़का क्यों हूं. भगवान ने मुझे इतनी बड़ी सजा क्यों दी. इसी घुटन के साथ मैं कब जवान हो गई, पता ही नहीं चला.

फिर मेरी मुलाकात समाज में कुछ ऐसे लड़कों से हुई जो बिलकुल मेरे जैसी भावना रखने वाले थे. इस से लगने लगा कि चलो इस समाज में मैं ही अकेली ऐसी नहीं हूं, मेरे जैसे दुनिया में और लोग भी हैं.

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जब और बड़ी हुई तो परिवार की जिम्मेदारियों का एहसास हुआ. मेरा परिवार बड़ा था. कमाने वालों में केवल मेरे पिता थे. मेरा बड़ा भाई बिलकुल गैरजिम्मेदार था. इसलिए मैं ने घरघर जा कर ट््यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. बस जिंदगी यूं ही कट रही थी.

कंधों पर आई जिम्मेदारी

अचानक 2002 में मेरे पिता की मृत्यु हो गई. पिता की मृत्यु होने के कारण मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो मेरी मां ने मुझे नौकरी करने को कहा तो मैं ने घर का जिम्मेदार बेटा होने का फर्ज निभाया. 2003 में मुझे इज्जतनगर रेलवे की वर्कशाप में ही तकनीकी विभाग में नौकरी मिल गई. उस समय मैं बीए की पढ़ाई कर रही थी और कत्थक नृत्य का प्रशिक्षण ले रही थी.

मेरा सपना था कि मैं कत्थक नृत्य में एमए करूं और उस के बाद उसी में अपना करियर बनाऊं. लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. मुझे रेलवे के कारखाने में नौकरी मिली, जहां मुझे एक आदमी की भांति ताकत का काम करना पड़ता था.

बड़ेबड़े इंजनों के नट कसना होता था. पर शरीर इन सब को सहन नहीं कर पाता था. सब मजाक बनाते कि देखो कैसा नाजुक लड़का है. मैं उन को कैसे बताती कि मैं तन से न सही लेकिन मन से लड़की हूं, इसलिए शरीर भी वैसा ही ढल गया.

मैं अकेले में बैठ कर खूब रोती थी कि मेरे साथ ये अन्याय क्यों हुआ. कभी मन करता कि मैं नौकरी छोड़ कर कहीं दूर भाग जाऊं, पर घर की जिम्मेदारी पर नजर डालती तो लगता पापा जो मेरे ऊपर जिम्मेदारी छोड़ गए हैं, उसे पूरा करना मेरा फर्ज है.

जैसेतैसे नौकरी करने लगी. पुरुषों से बात करने का मेरा मन नहीं होता था और स्त्रियों से मैं उतनी बात कर नहीं सकती थी क्योंकि उन की नजरों में भी तो मैं एक पुरुष ही थी.

मेरे बड़े भाई का भी विवाह हो चुका था. नौकरी मिलने के बाद मैं ने बड़े भाई को रहने के लिए घर बनवा कर दिया. दोनों छोटी बहनों का विवाह किया. मेरे अंदर की जो लड़की थी, वह अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी. समाज में मर्द बनने का नाटक करतेकरते मुझे खुद से चिढ़ सी होने लगी थी.

वर्ष 2009 में बड़े भाई की अचानक मृत्यु हो गई. वह अपने पीछे पत्नी और 8 साल की बेटी छोड़ गए थे. उन दोनों की जिम्मेदारी भी मेरे कंधों पर आ गई. मेरे अंदर की लड़की पलपल अपनी खुशियों को मन में मार रही थी.

सोचती थी कि काश मेरा एक भाई और होता, जिस के ऊपर सारी जिम्मेदारियां डाल कर मैं कहीं अपनी दुनिया में भाग जाऊं, जहां खुल कर अपनी जिंदगी जी सकूं. अब मेरे अलावा घर में कोई लड़का नहीं था तो मां का, बहनों का और समाज का मुझ पर विवाह करने का दबाव बनाया जाने लगा. घर के लोगों को उम्मीद  थी कि मैं अपने वंश को आगे बढ़ाऊं.

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घर वालों ने कराया विवाह

मेरे अंदर तब इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं खुल कर बता पाऊं कि मैं किसी लड़की के साथ विवाह कर के खुश नहीं रह पाऊंगी. न ही मैं विवाह कर के किसी लड़की की जिंदगी खराब करना चाहती थी. इसी बीच मेरा एक बौयफ्रैंड भी बना, पर समाज के डर से उस ने भी किसी लड़की से विवाह कर लिया.

2-3 सालों तक मैं अपने विवाह का मामला किसी तरह टालती रही. मैं अपने परिवार को अपने बारे में चाह कर भी बता नहीं पा रही थी. तब मैं ने सोचा कि मैं ने अपने परिवार के लिए जहां इतनी कुर्बानियां दी हैं, तो एक कुरबानी और दे देती हूं. शायद मेरा भी वंश बढ़ जाए और साथ ही साथ मैं अपने अंदर की लड़की को भी जीवित रख सकूंगी.

परिवार और समाज को खुश करने के लिए मेरा भी सन 2012 में विवाह हो गया. मैं अंदर से रो रही थी और बाहर से खुश होने का नाटक कर रही थी. रत्ती भर खुशी नहीं थी मुझे अपने विवाह की. सुहागरात के समय भी मैं ने बहुत कोशिश की, लेकिन मुझे अपनी पत्नी के लिए कोई फीलिंग ही नहीं जगी. काली रात की तरह थी वह रात मेरे लिए, कुछ भी नहीं कर सकी.

हमारे संबंध नहीं बन सके. मैं समझ गई कि मैं किसी भी लड़की से संबंध नहीं बना सकती. जब तक मनमस्तिष्क में लड़की के लिए उत्तेजना या कामेच्छा पैदा नहीं होगी, कैसे कोई शारीरिक संबंध बना सकता है. मैं शारीरिक रूप से बिलकुल स्वस्थ थी. ऐसी कोई कमी नहीं थी, जिस से मैं अपने आप को नपुंसक समझती. क्योंकि जब मैं अपने पुरुष साथी के साथ शारीरिक संबंध बनाती तो मेरे शरीर के हर अंग में उत्तेजना होती थी.

मैं उस रात बहुत रोई कि मैं ने यह क्या गलती कर दी, मेरी वजह से एक अंजान बेकसूर युवती की जिंदगी खराब हो गई थी. मेरी वजह से वह समाज की दिखावटी खुशियों की बलि चढ़ गई थी. मुझे खुद पर शर्म आने लगी.

तभी मैं ने फैसला किया कि मैं उस की जिंदगी में खुशियां लाऊंगी. क्योंकि उसे भी खुश रहने का, अपनी जिंदगी खुल कर जीने का हक था. कुछ महीने बीत जाने पर मैं ने धीरेधीरे उसे अपने बारे में बताना शुरू किया. हम अच्छे दोस्त बन गए. मैं ने उसे पूरी तरह से अपनी भावनाओं को खुल कर बताया.

वह बहुत समझदार थी. मैं ने जब उसे बताया कि मैं अपने बारे में सब उस के परिवार को बताने जा रही हूं तो वह डर गई कि उस के परिवार को बहुत ठेस पहुंचेगी और गुस्से में आ कर उस के परिवार वाले उस पर पुलिस केस न कर दें. उस ने मुझे विश्वास दिलाया कि हम दोनों ऐसे ही पूरी जिंदगी काट लेंगे.

उसे भी समाज का डर सता रहा था कि लोग उस के परिवार के बारे में क्याक्या बातें करेंगे. लेकिन मुझे लगने लगा था कि मैं ने अब अगर अंदर से खुद को मजबूत नहीं किया तो उस की और मेरी जिंदगी घुटघुट कर कटेगी या तो वह आत्महत्या कर लेगी या मैं.

मैं ने पत्नी के घर वालों को अपनी सच्चाई बताई तो पहले तो उन्हें बहुत गुस्सा आया, बाद में उन्हें यह जान कर सही लगा कि मैं ने उन से झूठ तो नहीं बोला, ईमानदारी से उन की बेटी की खुशियां चाहती हूं.

2014 में आपसी सहमति से मेरा पत्नी से तलाक हो गया. तलाक के पहले मेरी पत्नी के घर वालों ने मुझ से 8 लाख रुपए लिए, जिस से वे अपनी बेटी का विवाह कहीं और कर सकें. मैं ने वह रकम खुशीखुशी उन्हें दे दी, क्योंकि गलती तो मैं ने ही की थी, उस गलती के लिए यह बहुत छोटी रकम थी. अब मैं फिर से आजाद थी, लेकिन इस के बाद तो मेरी जिंदगी और भी खराब हो गई. लोगों की नजरों में मेरी इमेज खराब हो गई थी. मेरी बहनों ने मुझ से बात करनी तक बंद कर दी. एक मेरी मां थी, जिन्होंने मुझे समझा.

मैं ने सोचा कि अभी तक 32 साल मैं ने परिवार और समाज को खुश करने के लिए निकाल दिए, उस के बाद भी मुझे कुछ हासिल नहीं हुआ. बस फैसला कर लिया कि अब खुद के बारे में सोचना है. नौकरी से मैं ने लंबी छुट्टी ले ली.

मैं पूरी तरह से लड़की बनना चाहती थी, लेकिन लड़की बनने से पहले मैं तीर्थस्थल गया में पिताजी का श्राद्ध करने गई. क्योंकि लड़की बनने के बाद मैं श्राद्ध कर नहीं सकती थी.

उस के बाद मैं ने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया कि कोई डाक्टर मुझे लड़की का रूप दे सकता है कि नहीं. सर्च करने पर पता चला कि दिल्ली में बहुत से डाक्टर हैं, जो हारमोंस और सर्जरी के जरिए एक लड़के को लड़की जैसा शरीर दे देते हैं.

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औपरेशन के बाद बनी स्त्री

काफी डाक्टरों के बारे में जानने के बाद मुझे दिल्ली में पीतमपुरा के एक हौस्पिटल में कार्यरत डा. नरेंद्र कौशिक सही लगे. मैं डा. कौशिक से मिली और पूरी बात बताई. उन्होंने मुझ से बात कर के जाना कि मैं इस इलाज के लिए किस हद तक तैयार हूं.

मुझ से बात कर के जब वह संतुष्ट हुए, तब उन्होंने मेरा इलाज शुरू किया. यह सन 2016 की बात है. मैं ने हारमोंस की गोलियां और इंजेक्शन लेने शुरू कर दिए. लगभग 2 साल तक हारमोंस लेने के बाद मेरे शरीर में काफी बदलाव आ गए. इस पर दिसंबर 2017 में मेरी सैक्स चेंज की सर्जरी हुई.

डा. कौशिक के अलावा 2 और डाक्टर औपरेशन के समय मौजूद रहे. सर्जरी करने में लगभग 8 घंटे का समय लगा. इस पूरे इलाज का कुल खर्च करीब 7 लाख रुपए आया था. इलाज के बाद मैं पूरी तरह से लड़की बन गई थी. इस के बाद तो जैसे मेरी खुशियों को पंख लग गए. दूसरा जन्म हुआ था यह मेरा सोनिया पांडेय के रूप में. राजेश पांडेय नाम के लड़के की पहचान हटा कर मैं सोनिया पांडेय नाम की पहचान से जिंदगी जीने के लिए आगे बढ़ने को तैयार थी.

बहुत खुश हूं जो खुद को पा लिया मैं ने. आत्मा और शरीर एक हो चुके थे मेरे. समय के साथसाथ समाज का नजरिया बदला और मुझे समाज से प्यार और इज्जत भी मिलने लगी है. नए मित्र बन गए हैं, जो हर कदम पर मेरे साथ खड़े हैं. लोगों से मिल कर बताती हूं कि खुद को पहचानना सीखो. यह जिंदगी मिली है तो इसे खुल के जियो और जीने दो.

अब एक नई जंग मेरा इंतजार कर रही थी. मैं खुद को पाने की लड़ाई में खुद से, परिवार से और समाज से तो लड़ चुकी थी, अब लड़ाई थी अपनी कानूनी पहचान पाने की क्योंकि मेरे आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड और सर्विस रिकौर्ड में मेरा नाम राजेश पांडेय ही था.

2018 में मैं ने रेलवे के प्रशासनिक अधिकारियों को अपने जेंडर में परिवर्तन करने के लिए एप्लीकेशन दी तो उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि रेलवे में ऐसा कोई नियम नहीं है, जिस के तहत रिकौर्ड में लिंग परिवर्तन कराया जा सके. इस के बाद मैं ने पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर हैडक्वार्टर में 80 पेज की एक फाइल बना कर भेजी, जिस में उन्हें बताया गया कि भारत में कोई भी नागरिक स्वेच्छा से अपना लिंग चुनने के लिए स्वतंत्र है.

मैं औफिस के चक्कर लगाती रही, क्योंकि मुझे जवाब चाहिए था रेलवे के अधिकारियों से. अगर रेलवे बोर्ड मेरे आवेदन को निरस्त कर देता तो मैं अपनी पहचान पाने के लिए हाईकोर्ट भी जाने को तैयार थी.

बाद में इज्जतनगर के मुख्य कारखाना प्रबंधक एवं मुख्य कार्मिक अधिकारी ने मेरे मामले में दिलचस्पी ली. जिस में मेरे सीडब्ल्यूएम राजेश कुमार अवस्थी की मुख्य भूमिका रही.

तब कहीं जा कर सितंबर, 2019 में रेलवे ने मेरा मैडिकल कराया. मार्च 2020 में रिकौर्ड में मेरा नाम और लिंग बदल कर नाम सोनिया पांडेय कर दिया. अब मैं बहुत खुश हूं. मेरी अपनी आगे की जिंदगी में ईमानदारी और सम्मान से जीने की जंग जारी है.

Manohar Kahaniya- पाक का नया पैंतरा: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

2और 3 जून, 2021 की दरम्यानी रात की बात है. उस रात ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी. कृष्ण पक्ष होने के कारण घनी अंधियारी रात थी. चारों तरफ घुप अंधेरा था. ऐसे घने अंधेरे में हाथ से हाथ नजर नहीं आ रहा था. उस पर मौसम ने सितम ढहा रखा था. रुकरुक कर तेज आंधी चल रही थी और बीचबीच में बारिश भी  हो रही थी. आंधी से बौर्डर पर रेत के टीले  उड़ रहे थे. उड़ती रेत में कुछ नजर नहीं आ  रहा था.

ऐसे घटाघोप अंधेरे में राजस्थान में बीकानेर श्रीगंगानगर से लगती पाकिस्तान की सीमा पर बीएसएफ के जवान गश्त कर रहे थे. बौर्डर पर तारबंदी है. रात के कोई ढाई बजे के आसपास बीकानेर से सटी सीमा पर बंदली पोस्ट का बीएसएफ जवान बीरबल राम चौकन्नी नजरों से गश्त कर रहा था.

इसी दौरान बौर्डर पर लगी फ्लड लाइटों की रोशनी में उसे तारबंदी पर कुछ हलचल होती नजर आई. रेतीले धोरों के बारबार उड़ने से यह पता नहीं चल पा रहा था कि वे कौन लोग हैं और क्या कर रहे हैं?

उस ने दूरबीन से नजरें गड़ाईं तो उसे 2-3 मानव आकृतियां नजर आईं. इन के चेहरे नजर नहीं आ रहे थे. ये लोग तारबंदी के बीच से एक पाइप भारतीय सीमा में खींच रहे थे. बीएसएफ जवान और उन इंसानों के बीच कोई 300 मीटर का फासला था.

उन लोगों की हरकत देख कर बीरबल राम ने उन्हें ललकारा नहीं, बल्कि दबेपांव आगे बढ़ा. उस ने देखा कि पाइप भारतीय सीमा में खींचने के बाद वे लोग उस में से कोई चीज निकाल रहे थे. यह देखते ही बीरबल ने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी.

गोलियों की आवाज होते ही बौर्डर पर सुरक्षा चौकियों में हलचल मच गई. सभी अलर्ट हो गए. कुछ ही मिनटों में बीएसएफ के जवान और अधिकारी वहां पहुंच गए. उन्होंने बीरबल से सारा माजरा पूछा.

इस के बाद अधिकारी उस जगह पहुंचे, जहां पाइप खींचा गया था. करीब 10 फुट लंबे उस पीवीसी पाइप में कपड़े की माला के रूप में 54 पैकेट बंधे हुए थे. इन पैकेटों को चैक किया गया, तो हेरोइन निकली. हेरोइन के ये पैकेट पाकिस्तान से पीवीसी पाइप के जरिए भारतीय सीमा में पहुंचाए गए थे.

यह हेरोइन लेने के लिए भारतीय सीमा में 2-3 तसकर पहुंचे थे. वे फायरिंग होने पर हेरोइन को मौके पर ही छोड़ कर अंधेरे में भाग निकले थे. जवानों को मौके के आसपास 2 जोड़ी जूते भी मिले.

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हेरोइन की तसकरी की बात सामने आने पर बीएसएफ ने रात में ही आसपास के इलाकों में सर्च अभियान चलाया, लेकिन खराब मौसम होने के कारण दृश्यता बहुत कम थी. इस कारण फरार हुए तसकरों का कुछ पता नहीं चला.

बौर्डर पर हेरोइन तसकरी का पता चलने पर अगले दिन 3 जून को बीएसएफ के डीआईजी पुष्पेंद्र सिंह राठौड़, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जौइंट डायरेक्टर उगमदान चारण और एसपी प्रीति चंद्रा सहित दूसरे अफसर मौके पर पहुंच गए.

जांचपड़ताल शुरू हो गई. अधिकारियों ने बरामद हुई हेरोइन का वजन कराया. वह 56 किलो 600 ग्राम निकली. इस हेरोइन की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब 283 करोड़ रुपए आंकी गई. यह बीकानेर में पाक सीमा पर अब तक पकड़ी गई नशे की सब से बड़ी खेप थी. यह हेरोइन अफगानिस्तान की बनी हुई थी.

2 तसकर चढ़े हत्थे

जांचपड़ताल के लिए बीएसएफ के डीआईजी पुष्पेंद्र सिंह अफसरों व जवानों के साथ बंदली सीमा चौकी पर पहुंचे. उन्होंने तारबंदी के पास जा कर उस जगह का मुआयना किया, जहां पाइप तारों के बीच से निकाला गया था और बाद में उस पाइप के अंदर भर कर हेरोइन भारतीय सीमा में भेजी गई.

अफसरों ने वहां तसकरों के पैरों के निशान के सहारे खोजबीन शुरू की तो सामने ही पाकिस्तानी वाच टावर पर खड़ा जवान बीएसएफ की ओर से हमले की आशंका में कांपने लगा. वह डर कर मदद के लिए चिल्लाने लगा. कुछ ही देर में वहां पाकिस्तानी रेंजर्स आ गए. पूछताछ में उन्होंने तसकरी की जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया.

बीएसएफ के अधिकारी अपने ठिकाने पर लौट आए. सब से पहले उन तसकरों की तलाश जरूरी थी, जो मौके से भाग गए थे. इस के लिए बीएसएफ ने सुबह से ही सर्च अभियान शुरू कर दिया. अभियान के दौरान देर रात को कालूवाला के एक खेत में छिपे 2 संदिग्ध युवकों को पकड़ा गया. इन दोनों को पुलिस अपने साथ ले गई.

4 जून को दोनों युवकों से पुलिस, बीएसएफ और गुप्तचर एजेंसियों ने साझा पूछताछ की. इस में पता चला कि दोनों युवक अपने साथियों के साथ पाक से भेजी गई हेरोइन लेने बौर्डर पर आए थे, लेकिन बीएसएफ की ओर से फायरिंग होने पर ये भाग निकले थे और खेतों में छिप गए थे.

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इन युवकों के नाम हरमेश और रूपा थे. इन में 18 साल का हरमेश पंजाब के फाजिल्का और 30 साल का रूपा पंजाब के फिरोजपुर शहर का रहने वाला था. इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में इन्हें नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के हवाले कर दिया गया.

दोनों तसकरों से साझा पूछताछ में पता चला कि पंजाब से कुल 4 लोग कैंपर गाड़ी से बीकानेर के खाजूवाला में भारतपाक बौर्डर पर हेरोइन की डिलीवरी लेने पहुंचे थे. पंजाब का कुख्यात हेरोइन तसकर काला सिंह के साथ बौस इन को ले कर आया था.

बंदली पोस्ट से करीब 2 किलोमीटर दूर बौस ने काला सिंह, रूपा और हरमेश को गाड़ी से उतार दिया था. बौस वहीं रुक गया था. उस ने तीनों को बौर्डर पर पिन पौइंट समझा कर कहा था कि तारबंदी के पास जा कर पत्थर फेंकना. उधर से पाइप में माल आएगा. वहां से माल पाइप से निकाल कर ले आना. काला सिंह पहले रैकी कर चुका था. उसे इस इलाके के चप्पेचप्पे की जानकारी थी. इसलिए रूपा और हरमेश को कोई चिंता नहीं थी.

माला के रूप में मिले पैकेट

गाड़ी से उतारने के बाद बौस वाट्सऐप कालिंग के जरिए काला सिंह, रूपा और हरमेश से जुड़ गया. वाट्सऐप कालिंग से बताई गई लोकेशन के आधार पर वे बौर्डर पर पिन पौइंट पर पहुंच गए और बौर्डर पर पत्थर फेंका.

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Social Story in Hindi: व्रत उपवास- भाग 3: नारायणी के व्रत से घर के सदस्य क्यों घबराते थे?

अभी करवाचौथ बीते 4 दिन भी नहीं हुए थे कि अष्टमी आ पहुंची. इसी- लिए नारायणी को छोड़ कर सब कांप रहे थे. और जैसे ही नारायणी ने चेतावनी दी कि कोई खटपट न करे तो शत्रु दल में भगदड़ मच गई. तनाव के कुछ तार बाकी थे, वे सब एकसाथ झनझना उठे. जैसे ही देवीलाल ने कहा कि खटपट वह शुरू कर रही है तो रोनापीटना शुरू हो गया.

एक दिन पहले ही नारायणी सब बच्चों से पूछ रही थी कि अष्टमी के दिन क्या बनाएं. बच्चों ने बड़े चाव से अपनी- अपनी पसंद बताई थी. काफी तैयारी भी हो चुकी थी. बच्चे बेसब्री से अष्टमी की प्रतीक्षा कर रहे थे. मन ही मन कह भी रहे थे कि चाहे कुछ भी हो वे मां को प्रसन्न रखेंगे.

पर ऐसा न पिछले कई वर्षों से हुआ था और न इस साल होने के आसार दिखाई दे रहे थे. नारायणी तो आंसू टपका कर बिस्तर पर जा गिरी और घर का भार आ पड़ा निर्मला के नन्हेनन्हे नाजुक कंधों पर. उस ने जैसेतैसे चाय बनाई, नाश्ता बनाया और सब को खिलाया. पर उस के गले से कुछ न उतरा.

देवीलाल ने गला खंखारते हुए पूछा, ‘‘बाजार से कुछ लाना है?’’

नारायणी चुप रही.

‘‘अरे, बाजार से कुछ लाना है?’’

नारायणी फिर भी चुप रही.

निर्मला ने मां के पास जा कर कंधा हिलाते हुए कहा, ‘‘अम्मां, बाबूजी बाजार जा रहे हैं, कुछ मंगाना है क्या?’’

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‘‘भाड़ में जाओ सब.’’

‘‘वह तो चले जाएंगे, पर अभी कुछ लाना हो तो बताओ,’’ देवीलाल ने कहा.

‘‘थोड़े मखाने ले आना. खरबूजे के बीज और एक नारियल. खोया मिले तो ले आना. जो सब्जी समझ में आए, ले लेना पर मटर लाना मत भूलना. आज आलूमटर की कचौडि़यां बनाऊंगी. सोनू का बड़ा मन था. मूंगदाल की पीठी ले आना, हलवा बनाना है. दहीबड़े खाने हों तो उड़द की दाल की पीठी और दही ले आना,’’ नारायणी एक सांस में बोल गई.

देवीलाल ने गहरी सांस भर कर कहा, ‘‘एकसाथ इतना सामान कैसे लाऊंगा?’’

‘‘सोनू को साथ ले जाओ.’’

‘‘चल बेटा, सोनू चल. बरतन और थैला उठा ले. पूछ ले अम्मां से घीतेल तो है न? कहीं ऐन मौके पर उस के लिए भी भागना पड़े.’’

‘‘अरे, अभी तो लाए थे करवाचौथ के दिन. सब का सब रखा है. खर्च ही कहां हुआ?’’

करवाचौथ के नाम से फिर एक बार दहशत छा गई. इस से पहले कि कुछ गड़बड़ हो, देवीलाल बाहर सड़क पर आ गए और सोनू की प्रतीक्षा करने लगे.

कुछ देर तक तो शांतिअशांति के उतारचढ़ाव में दिन निकला. पर जहां नारायणी जैसी धार्मिक तथा कट्टर व्रत वाली औरत हो, वहां तूफान न आए यह असंभव था. वह बारीबारी से देवीलाल और बच्चों को आड़े हाथों लेती रही. कभी इसे झिड़कती तो कभी उसे डांटती. देवीलाल को तो एक क्षण चैन नहीं लेने दिया.

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बोली, ‘‘मेरी मां तो सीधी थी, एकदम गऊ. आज उसी की शिक्षा है कि मैं भी इतनी सीधी हूं. मुंह से एक शब्द नहीं निकलता. दूसरी औरतों को देखो, कितनी तेजतर्रार हैं. सारे महल्ले का मुंह बंद कर देती हैं, बस, एक बार बोलना शुरू कर दें.’’

देवीलाल ने बच्चों की ओर देखा. वे मुसकराने का असफल प्रयत्न कर रहे थे. ठंडी सांस भर कर देवीलाल ने कहा, ‘‘सो तो है. तुम्हारे जैसी सीधी तो अंगरेजी कुत्ते की पूंछ भी नहीं होती.’’

नारायणी पहले तो समझी कि उस की प्रशंसा हो रही है, पर जब उस की समझ में आया तो चिढ़ कर बोली, ‘‘तुम मेरी मां की हंसी तो नहीं उड़ा रहे?’’

‘‘तुम्हारी मां तो गऊ थीं. कोई उन की हंसी उड़ाएगा. मैं तो बैल की सोच रहा था.’’

नारायणी ने आंखें तरेर कर कहा, ‘‘क्या कुछ मजाक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं तो,’’ देवीलाल ने बात बदल कर कहा, ‘‘बेटी निर्मला, खाली हो तो एक प्याला चाय ही बना दे.’’

कुछ देर शांति रही, पर कब तक? फिर वही शाम और पूजा की तैयारी. फिर वही चांद की प्रतीक्षा. लो कल सप्तमी के दिन तो ऐसी फुरती से निकल आया कि पूछो मत और आज अष्टमी है तो ऐसा गायब जैसे गधे के सिर से सींग. सारा परिवार पागलों की तरह चांद की तलाश में ऊपरनीचे, अंदरबाहर घूम रहा था.

9 बज गए. पिछली बार की तरह फिर एक बार खतरे की घंटी बजी. पर वह चांद न था, केवल उस की परछाईं थी.

‘‘अरे, जा न,’’ नारायणी ने सोनू को डांटा, ‘‘जाता है कि नहीं.’’

‘‘अभी तो देख कर आ कर बैठा हूं,’’ सोनू ने झल्ला कर कहा, ‘‘अब नहीं जाता.’’

‘‘जा, गोलू, तू ही जा. यह तो मेरी जान ले कर छोड़ेगा. मरा, न जाने किस घड़ी में पैदा हुआ था,’’ नारायणी ने कोसा.

‘‘अम्मां, मैं नहीं जाता. मेरी टांगें तो टूट गई हैं ऊपरनीचे होते,’’ गोलू ने घुटने दबाते हुए कहा, ‘‘सोनू को कहो. यह बीच सीढ़ी से ही लौट आता है.’’

‘‘सत्यानास,’’ नारायणी एकदम आपा खो बैठी, ‘‘एक तो तुम्हारे लिए भूखप्यास से तड़प रही हूं और तुम लोगों से इतना सा भी नहीं होता.’’

‘‘छोड़ो, अम्मां,’’ सोनू ने हलके से कहा, ‘‘जा कर पिताजी की चांद देख लो. असली चांद से ज्यादा चमकती है.’’

नारायणी ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मर जाओ एकएक कर के. मजाल है कि तुम्हारा मुंह भी देखूं.’’

देवीलाल ने कहा, ‘‘क्या कह रही हो, नारायणी? बच्चों के लिए व्रत रख रही हो और उन्हें ही कोस रही हो? ऐसा व्रत रखने का क्या लाभ है?’’

‘‘करम फूट गए जो ऐसी औलाद पैदा हुई. इस से तो बिना संतान ही भली थी,’’ नारायणी ने क्रोध में कहा. वह तनाव के अंतिम क्षणों में पहुंच गई थी.

इतने में ‘चांद निकल आया’ का शोर आने लगा. नारायणी ने फिर से अपनी गोटे वाली साड़ी को ठीक किया और सजीसजाई पूजा की थाली को ले कर छत की भीड़ में गुम हो गई. सोचती जा रही थी कि बाईं आंख फड़क रही है, कहीं फिर कुछ बदशगुनी न हो जाए.

जब खाना खाने बैठे तो किसी की इच्छा खाना खाने की न हुई. सब थोड़ा- बहुत खापी कर उठ गए. इस तरह मंगल कामना करते हुए बच्चों के लिए अष्टमी का व्रत पूरा हुआ.

दूसरे दिन पड़ोस वाली शीला ने पूछा, ‘‘अरे, नारायणी चाची, कल श्याम चाचा के यहां खाने पर क्यों नहीं आईं?’’

‘‘खाने पर,’’ नारायणी ने पूछा, ‘‘कैसा खाना था श्याम के यहां?’’

‘‘अरे, क्या तुम्हें निमंत्रण नहीं मिला? उन के बेटे की सगाई थी न.’’

‘‘पता नहीं,’’ नारायणी ने मुरझा कर कहा.

सहसा शीला को याद आया, ‘‘पर वैसे भी तुम कहां आतीं. कल तो तुम ने अहोई अष्टमी का व्रत रखा होगा. सच, बड़ा कठिन है. मैं तो एक बार भी व्रत नहीं रख पाई. मुझे तो चक्कर आने लगते हैं.’’

नारायणी ने कहा, ‘‘अगर निमंत्रण आया होता तो मैं अवश्य आती.’’

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‘‘क्यों, क्या व्रत नहीं रखतीं?’’

‘‘व्रत?’’ नारायणी ने क्रोध में कहा, ‘‘ऐसे नासपीटे बच्चों के लिए व्रत रखना तो महान अपराध है.’’

शीला अवाक् हो कर नारायणी का मुंह देख रही थी. उस ने कभी उसे इतना उत्तेजित नहीं देखा था.

सहज हो कर नारायणी ने पूछा, ‘‘क्याक्या बना था दावत में?’’

Satyakatha: शादी से 6 दिन पहले मंगेतर ने दिया खूनी तोहफा

जतिन अपनी मोटरसाइकिल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के डिलारी- मुरादाबाद मार्ग पर सरपट दौड़ाए जा रहा था. उस पर बैठी टीना जतिन की कमर को कस कर पकड़े हुए थी. इसी बीच उसे एक झटका लगा और हल्की सी चीख निकल गई.

‘‘ठीक से चलाओ, मुझे गिरा दोगे क्या?’’ टीना बोली.

‘‘अरे, तुम्हें कैसे गिरा दूंगा, तुम तो मेरी जान हो.’’ कहते हुए जतिन ने मोटरसाइकिल रोक दी.

‘‘अब मोटरसाइकिल क्यों रोक दी. तुम्हें पता नहीं कितनी खरीदारी करनी है और अंधेरा होने से पहले घर भी लौटना है.’’ टीना ने कहा.

‘‘हांहां, सब पता है, लेकिन उधर देखो पुलिस ने अचानक बेरियर गिराकर रास्ता बंद कर दिया. मैं तो तेजी से निकलना चाहता था, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या? तुम्हें तो बस बहाना चाहिए.’’ टीना अब थोड़ा नाराज हो गई थी. जतिन उस की मुंडी को रास्ता बंद बैरियर की ओर घुमाते हुए बोला, ‘‘ ठीक से देखो न उधर!’’

‘‘तो अब क्या करें?’’ टीना ने सवाल किया.

‘‘करना क्या है, वापस सुरजन नगर चलते हैं. वहीं कुछ देर समय गुजारेंगे.’’

‘‘ और शौपिंग?’’

‘‘अब मुझे क्या पता था कि मुरादाबाद में भी लौकडाउन लगा होगा.’’ जतिन ने सफाई दी.

‘‘तो फिर वहीं से कुछ सामान खरीद लेते हैं.’’

‘‘हांहां, यही ठीक रहेगा. मुझे ध्यान आया मुरादाबाद का लौकडाउन वीकेंड का है, सोमवार को खुल जाएगा.’’

‘‘तो फिर मुरादाबाद सोमवार को चलते हैं. अभी तो हमारी शादी में 6 दिन बचे हैं.’’ टीना बोली.

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए जतिन ने सुरजन नगर के लिए मोटरसाइकल

घुमा ली.

‘‘अच्छी तरह बैठ जाओ, वहां का रास्ता ठीक नहीं है.’’ जतिन के कहने पर टीना ने पहले की तरह उस की कमर को कस कर पकड़ लिया. थोड़ी देर में दोनों सुरजन नगर मार्ग पर आ गए थे.

एक जगह पर रुकते हुए जतिन बोला, ‘‘चलो कुछ देर थोड़ी मौजमस्ती भी हो जाए. अभी तो साढ़े 11 ही बजे हैं. एक बजे तक पूरी दुकानें भी खुल जाएंगी’’

‘‘कहां चलेंगे, बैठने की यहां कोई एकांत जगह तुम्हें मालूम है?’’ टीना बोली.

‘‘है न, पास में ही मेरे एक दोस्त का मकान है. वह इन दिनों अपनी फैमिली के साथ दिल्ली में है. वहां उस का नौकर होगा. वही मकान का केयरटेकर है, मुझे अच्छी तरह जानतापहचानता है.’’ जतिन को बताया.

‘‘ठीक है,’’  कहते हुए टीना ने सर हिला दिया.

कुछ मिनटों में ही जतिन और टीना एक मकान के सजेसजाए ड्राइंगरूम में थे. टीना ने फ्रेश होने की इच्छा जताई. जतिन ने बाथरूम की ओर इशारा किया और नौकर से कुछ नाश्ते का इंतजाम करने के लिए पैसे दिए.

टीना बाथरूम से निकलते ही बोली ‘‘मेरे बैग में छोटा तौलिया होगा, निकालना. और पानी की बोतल भी देना…’’

‘‘यह लो तौलिया और पानी की बोतल.’’

‘‘यहां कौनकौन रहता है?’’

‘‘छोड़ो न, यहां जो भी रहता हो, हमें क्या? हमें तो केवल डेढ़दो घंटे बिताने हैं.’’ जतिन बोला.

‘‘फिर भी, तुम तो यहां पहले भी आए होगे?’’ टीना ने सवाल किया.

‘‘तुम्हारी यही आदत मुझे कभीकभी अच्छी नहीं लगती है.’’ जतिन ने शिकायत की.

‘‘मेरी कौन सी आदत खराब है और कौन सी अच्छी, यह तो तुम्हारी सोच पर निर्भर करता है.’’

‘‘अरे छोड़ो भी, क्यों नराज होती हो. मैं ने तुम्हारे लिए यहां का फेवरेट नाश्ता मंगवाया है. खाओगी तो सालोंसाल तक याद रखोगी.’’

‘‘इस का मतलब है तुम यहां हमेशा आते रहे हो!’’ टीना बोली.

‘‘हमेशा आते रहने से तुम्हारा क्या मतलब है, तुम मुझ पर शक कर

रही हो.’’

‘‘मैं ने तो शक की बात नहीं कही. सिर्फ पूछा कि यहां कौनकौन रहता है?’’

‘‘ यह मेरे दोस्त का मकान है. वह अपनी फैमिली के साथ रहता है, इस से अधिक मैं नहीं जानता.’’ जतिन ने बताया.

‘‘… लेकिन बाथरूम में केवल लेडीज अंडरगारमेंट पड़े हैं. वे भी गीले…’’ टीना बोली.

‘‘तो इस में क्या हो गया…किसी ने तुम से पहले बाथरूम यूज किया होगा. यहां की देखभाल नौकर के जिम्मे है. हो सकता है उस की बीवी आई हो, उस के परिवार का कोई सदस्य आया हो…’’

‘‘और…और कमोड में तैरते कंडोम के बारे में तुम क्या कहोगे?’’ टीना अब तीखेपन से बोली.

‘‘क…क…कंडोम! मैं कुछ नहीं जानता?’’ हकबकाता हुआ जतिन बोला.

‘‘…और यह भी सुनो, गीला अंडरगर्मेंट ठीक वैसा ही महंगा वाला ब्रांडेड है, जैसा तुम ने एक सप्ताह पहले मुझे गिफ्ट में दिया था.’’ टीना अब और तल्ख हो गई थी.

‘‘देखो, तुम मुझ पर बेवजह शक कर रही हो, मैं यहां थोड़ा खुशनुमा पल गुजारने के लिए तुम्हें ले कर आया हूं, और तुम हो कि बेकार की बातों में उलझती जा रही हो.’’

जतिन ने सफाई दी और टीना को समझाने की कोशिश की. लेकिन टीना का चेहरा तमतमाया हुआ देख उस ने अपनी आवाज में नरमी बनाए रखी.

‘‘मैं बेकार की बातें कर रही हूं? मैं तो दावे के साथ कह सकती हूं कि तुम यहां कल भी आए थे…और तुम्हारे साथ वह चुडैल भी थी… तुम्हारे चेहरे का उड़ा रंग ही सब बता रहा है.’’ टीना ने अब जतिन पर सीधे आरोप ही लगा दिया था.

‘‘देखो, बहुत हो गया. तुम्हारा कहना एकदम गलत है…और तुम किस की बात कर रही हो?’’

‘‘अरे वही, जिस के बारे में तुम पहले भी बता चुके हो कि वह तुम्हें फोन पर तंग करती रहती है.’’

‘‘टीना, तुम बेकार की बातें कर रही हो, उस से तो मेरा कब का छुटकारा मिल गया. मेरे दिल में तुम्हारे अलावा और कोई नहीं है,’’ जतिन बोला.टीना और जतिन के बीच नोकझोंक बढ़ती ही जा रही थी. दरअसल टीना जतिन को अपना सर्वस्व न्यौछावर कर चुकी थी. इसलिए वह कतई नहीं चाहती थी कि जतिन का किसी और के साथ कोई संबंध बना रहे. इस वजह से वह हमेशा जतिन को शक की निगाह से देखती थी.

‘‘तुम तो हमारे घरवालों के दबाव में आ कर मुझ से शादी कर रहे हो, सच तो यह है कि तुम मुझ से पीछा छुड़ाना चाहते हो.’’ टीना गुस्से में बोली.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है, टीना.’’ जतिन ने समझाने की कोशिश की.

‘‘ कुछ भी कहो, तुम अपने अपमान का बदला लेना चाहते हो. जबकि मैं अपना सब कुछ लुटा चुकी हूं.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम से मेरा मन भर गया है.’’ जतिन बोला.

‘‘और क्या? सच कड़वा लग रहा है न?’’

‘‘तो तुम कौन सी दूध की धुली हो!’’ अब जतिन भी हमलावर अंदाज में बोला.

‘‘क्या कहा तुम ने? मुझ पर आरोप लगाया.’’ टीना गुस्साई.

‘‘सही तो कहा है मैं ने. तुम्हारा ठाकुरद्वारा में एक लड़के के साथ चक्कर नहीं चल रहा है? तुम ने भी तो पंचायत के दबाव में मुझ से शादी करना स्वीकारा है. मेरी लाइफ खराब करने पर तुली हो.’’ जतिन का इतना कहना था कि टीना और भी भड़क कर आगबबूला हो गई.

गुस्से में लाल टीना ने जतिन को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. वह बोली, ‘‘मेरे ऊपर इल्जाम लगाने से पहले तू अपने गिरेहबान में झांक कर देख. तूने मेरा सब कुछ तो ले लिया. एक समय में तेरी खातिर मैं ने अपना घरपरिवार तक छोड़ दिया था. अब मेरे ऊपर ही झूठा इल्जाम लगा रहा है.’’

टीना का थप्पड़ खा कर जतिन तिलमिला गया. उसे नहीं पता था कि छोटीछोटी बातों की उस की नोकझोंक यह रूप ले लेगी. बात यहीं तक खत्म नहीं हुई और बढ़ती चली गई.

उधर शाम को टीना के घरवाले उस के जतिन के साथ लौटने का इंतजार कर रहे थे. टीना की मां सोमवती ने जतिन के पसंद के कई पकवान बनाए थे. शाम के साढ़े 4 बज गए थे, दोनों नहीं लौटे.

तब टीना के घर वालों को उन की चिंता होने लगी. वे इस बात को ले कर चिंतित हो गए कि  शहर में अकसर 6 बजे के बाद लगने वाले कोरोना कर्फ्यू की वजह से वे कहीं फंस सकते हैं.

टीना के पिता मदनपाल सिंह यही सोच कर उन के बारे में मालूम करने के लिए मोटरसाइकिल से निकल पड़े. यह बात 14 जून, 2021 की है.

वह जब मुरादाबाद के थाना ठाकुरद्वारा के अंतर्गत डिलारी-सुरजन नगर मार्ग पर थोड़ी दूर ही बढ़े होंगे कि उन्होंने सड़क के किनारे कुछ लोगों की भीड़ देखी. जिज्ञासावश वह भी उस के पास पहुंच गए. सड़क किनारे गड्ढे में झाडि़यों के बीच एक लाश पड़ी थी, कुछ पुलिसकर्मी उस के इर्दगिर्द मुआयना कर रहे थे.

सड़क पर खड़े लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. उन्हीं में से किसी ने बताया कि लाश यहां दिन में 3 बजे से ही पड़ी है. पुलिस तो अब आई है. उन्हीं लोगों से मालूम हुआ कि लाश किसी युवती की है.

उस समय तक लाश को एक सफेद कपड़े से ढंक दिया गया था, पुलिस वाले उसे एंबुलेंस में ले जाने की तैयारी कर रहे थे. जहां पर लाश गिरी थी वह जगह भीड़भाड़ वाली जगह से करीब 400 मीटर दूर थी.

वहां दिन में ही सन्नाटा रहता था. सड़क थोड़ी मुड़ी होने के कारण वह जगह दूर से छिपी हुई नजर आती थी. वह इलाका पीपलसाना गांव में आता है.

सुरजन नगर पुलिस थाने में इस की सूचना स्थानीय लोगों से मिली थी. गड्ढे में लाश के होने की सूचना देने वाले ने ही बताया था कि युवती की लाश वहां किस स्थिति में पड़ी थी. उस ने क्या पहन रखे थे. दिखने में कैसी लग रही थी. आदिआदि.

इस तरह की कई बातें सुन कर मदनपाल सिंह आशंकित हो गए. वह तुरंत पुलिस वालों के पास जा पहुंचे. उन्होंने लाश का चेहरा दिखाने का अनुरोध किया. जांच कर रहे सुरजन नगर के थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह भी घटनास्थल पर मौजूद थे. मदनपाल सिंह ने उन से ही आग्रह किया था.

थानाप्रभारी ने उन का परिचय पूछा फिर कांस्टेबल को लाश का चेहरा दिखाने को कहा. हालांकि तबतक

लाश का बारीकी से निरीक्षण किया जा चुका था.

उस समय तक मौजूद लोगों में से किसी ने उस की पहचान नहीं की थी. लेकिन जैसे ही मदनपाल ने लाश का चेहरा देखा वह ‘टीना…’ कह कर तेज आवाज में चीख पड़े अगले पल धड़ाम से वहीं गिर गए. उन्हें पुलिसकर्मियों ने सहारा दे कर उठाया. वह बेहोश हो गए थे.

जांच टीम को लाश के बारे में उन के सवाल का जवाब मिल गया था. बेहोश मदनपाल के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर होश में लाया गया, उन्हें पानी पिलाया गया. कुछ देर में वह सामान्य हुए. पुलिस को उन्होंने धीमी आवाज में बताया कि लाश उन की बेटी टीना की है. उस की 20 जून को शादी होने वाली थी.

पुलिस को उन्होंने बताया कि वह सुबह 11 बजे अपने मंगेतर के साथ शैपिंग करने के लिए निकली थी, लेकिन वह कहां है पता नहीं?

फफकफफक कर रोते हुए उन्होंने पुलिस को शादी के कार्ड भी दिखाए, जिस पर टीना सिंह और जतिन सिंह नाम के साथ दोनों के स्थायी निवास का पता भी लिखा था.

थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने सीओ अनूप सिंह को भी इस की सूचना दे दी थी, वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी शव का निरीक्षण कर बताया कि निश्चित तौर पर लड़की को मार कर यहां फेंका गया है, जिसे सड़क दुर्घटना बनाने की कोशिश की गई है. सूचना पा कर मदन पाल की पत्नी सोमवती भी वहां पहुंच गई.

सोमवती भी बेटी की मौत पर दहाड़े मारमार कर रोने लगी. थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह व सीओ अनूप सिंह ने मृतक टीना के पिता मदनपाल सिंह और मां  सोमवती को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया.

मदन पाल तो पहले ही टीना के बारे में बहुत कुछ बता चुके थे. सोमवती ने पुलिस को टीना के घर से बाहर जाने के बारे में जानकारी दी.

सोमवती ने बताया कि 14 जून की सुबह टीना के मंगेतर जतिन का फोन आया था. उस ने कहा था कि मैं आ रहा हूं. टीना की शादी के लिए लहंगासूट और अपने लिए शेरवानी खरीदनी है.

उस ने यह भी बताया था कि इस के लिए वह मुरादाबाद के टाउन हाल से कपड़े खरीदेगा और टीना को साथ ले जाएगा. अपने बताए समय पर वह टीना को पूर्वाह्न 11 बजे घर से ले कर गया था. उस के बाद अब मुझे अपनी बेटी को इस हाल में देखना पड़ रहा है.

पुलिस ने सोमवती और मदन पाल सिंह के बयानों के आधार प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार कर ली. उस के बाद सोमवती से जतिन का फोन नंबर ले कर उस पर बात करने के लिए काल की. लेकिन फोन बंद मिला.

टीना का फोन भी गायब था. पुलिस ने टीना का शव मुरादाबाद पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. घटना की सूचना पा कर मुरादाबाद के एसपी (देहात) विद्यासागर मिश्रा भी थाना ठाकुरद्वारा पहुंच गए थे.

पूरा मामला समझने के बाद इस घटना से मुरादाबाद के एसएसपी प्रभाकर चौधरी को अवगत करा दिया. उन्होंने भी ठाकुरद्वारा पुलिस को निर्देश दिए कि टीना का हत्यारा चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, उस को तुरंत हिरासत में लिया जाए.

इस निर्देश के बाद सीओ अनूप सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस जांच टीम का गठन किया गया. उस में थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह, एसआई पंकज कुमार, कांस्टेबल संजीव धामा, मनोज कुमार, कृष्णपाल, शुभम तोमर, विनीत कुमार आदि थे.

सब से पहले 15 जून को टीम ने जतिन के कालागढ़ स्थित घर सी-293 नई कालोनी नूनगढ़ चौराहा पर छापा मारा. वह घर पर नहीं मिला. घर पर उस के पिता राजेंद्र सिंह मिले. थानाप्रभारी ने उन्हें हिदायत दी कि जैसे ही जतिन के बारे में उन्हें पता चले तो वह थाने में सूचना दे दें.

पुलिस वहां से निराश लौट रही थी, तभी मुरादाबाद के सर्विलांस सेल ने थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह को अभियुक्त जतिन के फोन की लोकेशन मिलने की सूचना दी. उस के फोन की लोकेशन सुरजन नगर और स्यौहारा के बीच की मिल रही थी.

इस सूचना पर पुलिस टीम ने तुरंत उसी तरफ अपनी गाड़ी बढ़ा दी. रास्ते में पुल के पास जतिन मोटरसाइकिल सहित गिरफ्तार कर लिया गया उस के पास से एक मोबाइल भी बरामद किया गया. पुलिस अभियुक्त जतिन को ठाकुरद्वारा थाना ले आई.

वहां एसपी (देहात) विद्या सागर मिश्रा व सीओ अनूप सिंह ने पूछताछ की. पूछताछ में जतिन ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी मंगेतर टीना की हत्या की है.

हत्या की वजह पूछने पर जतिन ने उस से हुई 3 साल पहले की मुलाकात, प्यार और तकरार की सारी बातें सिलसिलेवार ढंग से बताईं.

उस ने बताया कि उस की टीना से मुलाकात 3 साल पहले चाची के घर पर हुई थी. उस की चाची गांव लालपुर पीपलसाना में रहती है, जहां उस का अकसर आनाजाना होता था. वहीं टीना से दोस्ती हुई.

फिर दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों ने जीनेमरने की कसमें खाईं. उस ने बताया कि वह टीना से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा था. टीना भी उसे बहुत चाहती थी.

अपने अफेयर के बारे में बताते हुए जतिन ने बताया कि उस का टीना के घर वालों से 6 महीने पहले विवाद हो गया था. दरअसल वह नहीं चाहते थे कि टीना उस से मिले.

जतिन ने इस बारे में 6 महीने पहले की घटना बताई. उस ने बताया कि करीब 6 माह पहले जनवरी 2021 में वह टीना को ले कर कालागढ़ स्थित अपने घर ले आया था. 4 दिनों तक टीना वहां ठहरी थी. इस का उस के घर वालों ने विरोध जताते हुए उस के खिलाफ थाना ठाकुरद्वारा में लड़की भगाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

उस के बाद टीना को अपने साथ गांव लालपुर पीपलसाना ले आए थे. टीना के पिता मदन पाल सिंह ने थाना ठाकुरद्वारा में जो रिपोर्ट लिखाई थी, उस में कहा था कि मैं टीना से शादी नहीं करना चाहता. जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी.

उसी शिकायत के आधार पर टीना भी मुझे बारबार फोन पर धमकी दे रही थी कि अगर मैं ने  उस से शादी नहीं की तो वह मुझे जेल भिजवा देगी. उस के बाद से पुलिस मुझे आए दिन परेशान करने लगी.

उस घटना के 3 माह बाद पंचायत बैठी. टीना ने अपने परिवार वालों से साफसाफ कह दिया था कि उस की शादी होगी तो सिर्फ जतिन से क्योंकि वह जनित को अपना सब कुछ सौंप चुकी है.

पंचायत में दोनों पक्षों के बीच बात चली, सभी पंचों ने एकमत हो कर फैसला सुनाया कि जब इतना सब कुछ हो चुका है तो क्यों न टीना व जतिन की शादी कर दी जाए.  इस फैसले को दोनों पक्षों ने मान लिया.

इस फैसले के बाद टीना के मातापिता ने शादी की तैयारी शुरू कर दी थी. कार्ड छप गए थे. सीमित संख्या में लोग अमंत्रित किए जा रहे थे. सवा महीने पहले टीना के पिता कालागढ़ में जतिन के घर जा कर लगुन का सामान दे आए थे.

गरम सूट, सोने की चेन, अंगूठी कपड़े, शादी के कार्ड, मिठाई, फल वगैरह ले कर गए थे. वहां पर उन की बहुत आवभगत हुई थी. लगुन देने के बाद वह अपने गांव लौट कर शादी की बाकी तैयारी में जुट गए थे.

घर में शादी का सारा सामान आ चुका था. दहेज का सारा सामान टीना के पिता ने खरीद लिया था. अब, बस शादी के 6 दिन रह गए थे.

14 जून, 2021 की सुबह टीना के मोबाइल नंबर पर जतिन का फोन आया था. टीना बहुत खुश थी. जतिन फोन पर बोला, ‘‘तुम्हारे पापा ने लगन में मुझे जो सूट दिया है, वह गरम है और गरमी का मौसम है. आजकल शेरवानी का रिवाज है. मैं तुम्हें भी कपड़े दिलवाना चाहता हूं. बस, 2 ही जगह हैं काशीपुर या मुरादाबाद. मुरादाबाद के टाउनहाल बाजार में शादी का सारा समान कपड़े शेरवानी, जूते, चप्पल सभी मिल जाते हैं. वहीं से सब खरीद लाते हैं. इस के साथ कुछ मौजमस्ती भी करेंगे. कुछ खाएंगे, एंजौय करेंगे. फिर शाम को घर आ जाएंगे.’’

जतिन ने पुलिस को बताया कि टीना से फोन पर बात करने के बाद 14 जून को वह समय पर टीना के घर ठीक 11 बजे पहुंच गया था. वहां होने वाली सास ने खूब खातिरदारी की थी.

सोमवती ने बहुत प्यार से खाना खिलाया था. होने वाले दामाद के व्यवहार से खुश थी. टीना भी अपना मनपसंद जीवनसाथी पा कर बेहद संतुष्ट और खुश थी. टीना और जतिन के मोटरसाइकिल से मुरादाबाद के लिए निकलते समय सोमवती ने बायबाय कर विदाई की थी.

यहां तक सब कुछ सामान्य प्लान के मुताबिक चल रहा था. टीना और जतिन के बीच मामला तब बिगड़ गया जब वे मुरादाबाद जाने के बजाय एक मकान में कुछ समय गुजारने के लिए ठहरे.

उन के बीच बातोंबातों में बहस छिड़ गई जिस ने हिंसा का रूप ले लिया. टीना के हाथों थप्पड़ खा कर जतिन काफी असहज हो गया था. गुस्से में उस ने भी टीना के मुंह पर 2 थप्पड़ जड़ दिए. उन के बीच हाथापाई बढ़ गई.

जतिन उस पर किसी दूसरी लड़की के साथ संबंध बनाने के आरोप में गुस्से में पागल हो गया था. उस ने टीना की गरदन उस के स्टौल से ही घोंट दी. फिर मोटरसाइकिल पर ही अपने पीछे उसे स्टोल से बांध लिया. थोड़ी दूर जा कर सुनसान जगह पर उसे गड्ढे में धकेल कर फरार हो गया.

सुरजन नगर से स्योहारा की तरफ भागने के दौरान वह 15 जून को पकड़ा गया. पुलिस को उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल स्टोल व उस में बंधा टीना का मोबाइल पास के तालाब से बरामद कर लिया था.

बाद में विवेचनाधिकारी सत्येंद्र सिंह ने भादंवि की धारा 302 के तहत जतिन को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया. वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

   (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 7: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

मौयरा अगले दिन किनारों पर से फटी काली हाटपैंट, कसा हुआ ब्लाउज और 10 इंच लंबा आगे बांधने वाला कार्डिगन पहन कर और छोटेछोटे बौबकट केशों में बिलकुल स्कूल गर्ल बन कर नासेर की दुकान में अकेली चली गई.

नासेर को चिडि़या अच्छी लगी. उस ने दाना फेंकने में देर नहीं लगाई. बताया कि वह दुकान के ऊपर अकेला रहता है. मौयरा ने कहा, ‘‘हो सकता है तुम अकेले हो पर अकसर तुम्हारी जात के लड़के 30 से पहले ही ब्याह जाते हैं.’’

‘‘ब्याह तो हुआ था. मगर मेरी बीवी मुझ से बहुत बड़ी है. मेरे भाई की बेवा थी वह.

3 बच्चे थे पर लड़का नहीं था. लड़के के बिना उस के आदमी की सारी जायदाद उस के भतीजे ले जाते, इसलिए उस ने मुझ से शादी कर ली.’’

‘‘लड़का हो गया तुम से उसे?’’

‘‘हां हुआ, मगर मैं कमाई करने इधर आ गया. 7-8 साल से मुल्क नहीं गया. तुम क्या इधर ही रहती हो?’’

‘‘हां, यहीं पास में. 4-5 मील दूर. तरहतरह की चीजें खानेपीने का शौक है, इसलिए इधर चली आई. तुम क्या पाकिस्तान से हो?’’

‘‘अरे नहीं, हम तो तुम्हारे पड़ोसी हैं. टर्की से आया हूं. वह तो यूरोप का ही हिस्सा है. देखो न, मेरा रंग भी कितना गोरा है.’’

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मौयरा ने कबाब बनवाया.

फिर मौयरा से बोला, ‘‘यहीं बैठ कर खाओ न. मैं ने भी सुबह से दाना पेट में नहीं डाला. तुम्हारी कंपनी में मुझे भी भूख लग गई है.’’

नासेर बड़ा स्मार्ट और हंसमुख आदमी लगा मौयरा को, मगर एकएक कर के जो तथ्य सामने आ रहे थे, उसे कटघरे में धकेलते जा रहे थे.

‘‘नहीं, अभी पैक करा दो. फिर किसी दिन फुरसत में आ जाऊंगी. आज तो मेरा टैनिस कोर्ट में सेशन बुक किया हुआ है. बेकार में नुकसान हो जाएगा किराए का.’’

‘‘टैनिस तो मैं भी खेलता हूं. चलो अगली बार संगसंग बुक करवाएंगे. कल आओगी?’’

‘‘कह नहीं सकती पर मिलूंगी, तुम मुझे अच्छे लगे.’’

डेविड क्रिस्टी ने दुकान के बाहर एक सिपाही एंडी को ट्रैफिक वार्डन बना कर तैनात कर दिया. लोगों की गाडि़यों की अवैध पार्किंग पर नजर रखता. वह वहीं घूमता और नासेर की दुकान पर भी नजर रखता.

उस दिन तो नहीं मगर 2-4 दिन बाद नासेर बाहर निकला. वार्डन ने अपनी कार से उस का पीछा किया. नासेर एक मसजिद में गया, जहां लंबी स्कर्ट और पूरी बांह का ब्लाउज पहने एक प्रौढ़ सी खूबसूरत औरत 3 बच्चों को ले कर खड़ी थी. 2 बड़ी बेटियां और 1 बेटा, जो करीब 5 साल का था. बेटा नासेर को देख कर डैडडैड कहता हुआ आया और उंगली पकड़ कर मसजिद में दाखिल हो गया. स्कर्ट वाली औरत ने सिर पर रेशमी रूमाल बांधा हुआ था. वह बेटियों के साथ दूसरे दरवाजे से अंदर गई. नासेर उस बच्चे को देख कर एकदम खिल उठा.

यानी नासेर ने मौयरा को जो कहानी सुनाई थी वह झूठी थी. नासेर की बीवी वहीं पर थी.

क्रिस्टी ने इस औरत पर भी जाल बिछा दिया. टै्रफिक वार्डन बने हुए अपने सहायक से कहा कि वह नासेर को छोड़ कर इस स्त्री का पीछा करे.

2 घंटे बाद नासेर अपनी दुकान में चला गया. मसजिद के बाहर कई औरतें उस की बीवी से बातें करती रहीं. जब वह वहां से चली, सिपाही ने लगातार उस पर निगरानी रखी. अंत में उस ने उसे घर की चाबी निकाल कर ताला खोलते हुए और अंदर जाते हुए देखा. उस ने पता अपनी डायरी में लिख लिया और घर का एक फोटो भी कैमरे में कैद कर लिया.

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उस दिन शुक्रवार था. शनिवार और इतवार को दफ्तर की छुट्टी थी. सोमवार को सुबह 7 बजे से एंडी की ड्यूटी नासेर के तथाकथित घर के बाहर लगा दी गई. वह एक वीडियो कैमरा ले कर अपनी कार में बैठा सारी गतिविधियां रिकार्ड करता रहा. 8 बजे नासेर की पत्नी अपने तीनों बच्चों को ले कर स्कूल की ओर रवाना हुई. स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. यही कोई 15 मिनट की चहलकदमी पर. एंडी अपना फासला रखते हुए धीमी रफ्तार से पीछेपीछे रेंगता हुआ स्कूल का नामपता भी दर्ज कर लाया.

बच्चों को भेज कर नासेर की बस से कहीं जाने लगी. एंडी ने पीछा किया. 2-3 मील दूर पर एक दुकान थी, जिस में मिठाइयां, स्वीट, अखबार आदि के साथसाथ ब्रैड, दूध, सब्जी, फल भी रखे थे. दुकान पहले से खुली हुई थी. मतलब उस का मालिक कोई और था. नासेर की पत्नी ने अंदर जा कर कार्यभार संभाल लिया और वहां से एक और औरत, जो काफी कम उम्र की और स्मार्ट थी बाहर आई और एक छोटी कार से कहीं चली गई.

शाम को 3 बजे वह लड़की दुकान में वापस आ गई और नासेर की पत्नी वापस अपने बच्चों को स्कूल से ले कर अपने घर चली गई.

एंडी ने यह सारी रिपोर्ट मौयरा और डेविड को दे दी. मौयरा की बातों से जाहिर था कि नासेर इस शादी की कतई इज्जत नहीं करता था. फिर भी वह उसी घर में रहता था और वहीं रात को सोता था. हो सकता है कि उस की बीवी को उस की तफरीहों का पता ही न हो. बेईमान पुरुष जरा ज्यादा ही शरीफ बने रहते हैं अपनी बीवियों के साथ. क्रिस्टी को संभलसंभल कर अगला कदम रखना होगा. मौयरा को वह इस खेल में झोंक नहीं सकता था. वह एक इज्जतदार स्त्री थी. कई सालों से एक ही बौयफैंरड से निभा रही थी. वह भी इसे पूरे मन से चाहता था, मगर उस की कमर्शियल पायलट की जिंदगी शादी, गृहस्थी के हिसाब से ठीक नहीं बैठती थी, इसलिए वे दोनों शादी नहीं कर रहे थे.

एक दिन मौयरा फिर उड़ती चिडि़या की तरह कबाब की दुकान में जा बैठी. नासेर खिल उठा. मौयरा ने जरा ज्यादा भाव दिया, तो नासेर सीधा मतलब पर आ गया.

‘‘तू आ न आज शाम को. हम इकट्ठे घूमेंगेफिरेंगे.’’

‘‘नहीं, शाम को बड़ा मुश्किल होता है. मेरी मां रहती है साथ में.’’

‘‘तो फिर अभी चल ऊपर मेरे फ्लैट में. वहां आराम से बैठते हैं. आई विल गिव यू ए गुड टाइम.’’

‘‘थैंक यू, मगर मैं तो तुम्हें ज्यादा जानती नहीं, फिर कभी मिलेंगे. हो सका तो वीकएंड में आऊंगी.’’

‘‘वीकएंड में ठीक नहीं रहेगा. काम बहुत बढ़ जाता है. मुझे फुरसत नहीं मिलती.’’

‘‘कोई बात नहीं अगले हफ्ते देखूंगी, बाय.’’

नासेर की दाल नहीं गल रही थी.

क्रिस्टी ने स्कूल के हेडमास्टर को अपने विश्वास में लपेटा. बिना उसे कुछ बताए उस ने नासेर के बच्चों का हवाला लिया. बड़ी लड़की 10 साल की होने जा रही थी. उस से छोटी 7 साल की थी और सब से छोटा लड़का 5 साल पूरे कर चुका था, अभी कुछ ही दिन पहले मां का नाम साफिया था मगर लड़के का नाम अब्दुल नहीं था. उसे सब शकूर अली नासेर बुलाते थे.

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डेविड क्रिस्टी ने बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट निकलवाया. वह मोरक्को का पैदा हुआ बच्चा था और उस की जन्म की तारीख में भी फर्क था.

फिर से चक्का जाम हो गया यानी इस पहेली के कई दरवाजे अभी भी बंद थे. डेविड और मौयरा दोनों बौखला गए. अब किस आधार पर जा कर नासेर को पकड़ें? कहीं भी नासेर की तसवीर में फैमी फिट नहीं हो रही थी.

कहां थी जैनेट के घर में रहने वाली फैमी और उस का बच्चा? हो सकता है वे दोनों कहीं और रहते हों. बेकार ही वह इस परिवार को दोषी समझ बैठा है.

अगले दिन सुबह वह अपने औफिस में मौयरा के आने का इंतजार कर रहा था. नीचे से उस को खबर आई कि एक औरत मिलने आई है. डेविड ने उसे वहीं अपने औफिस में बुला लिया. आगंतुक एक ईरानी औरत थी. उस ने सिर में रूमाल बांधा हुआ था और टखनों तक लंबा कोट पहना था. डेविड देर तक उस से बातें करता रहा.

उस के जाने के बाद मौयरा आई तो डेविड खिड़की से बाहर खोयाखोया सा आसमान को ताक रहा था.

‘‘तुम्हारा चेहरा तो बेहद उतरा हुआ है डेविड, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ भी नहीं हुआ मगर मौयरा जब भी मैं यह केस बंद करना चाहता हूं, कुछ ऐसा हो जाता है कि मुझे अपना फैसला रद्द कर देना पड़ता है.’’

मौयरा ने पूछा, ‘‘यह औरत कौन थी?’’

‘‘यह एक ईरानी औरत है बर्ग हीथ से आई थी.’’

‘‘क्या चाहती थी?’’

‘‘फिर बताऊंगा, वह इत्तफाक से यहां आ पहुंची. हां, यह पता लगा है कि नासेर का बेटा मोरक्को में पैदा हुआ.’’

‘‘तो फिर अब्दुल कहां गया?’’

‘‘यही तो गड़बड़ है. अब किस बिना पर नासेर को दोषी मान लें?’’

‘‘छोड़ो मत उसे, वह बेहद गंदा आदमी है. एकदम घटिया. मैं अब अकेली उस के यहां नहीं जाऊंगी. वह तो सीधा गुड टाइम की बात करने लगता है.’’

‘‘हां, वह खतरनाक हो सकता है पर अब क्या करें कि उसे पकड़ कर इलजाम लगाया जा सके?’’

‘‘मेरी मानो तो लारेन को ले आना चाहिए. देखें कैसा रिएक्शन रहता है उस का.’’

‘‘चलो यह भी कर के देख लें.’’

अगले दिन डेविड फिर नासेर की दुकान में गया. नासेर हंसहंस कर उस से बातें करने लगा.

‘‘क्या बताया तुम ने कि टर्की से आए हो?’’

‘‘नहीं टर्की से तो मेरी बीवी है. मैं तो सच पूछो तो मोरक्को का रहने वाला हूं, वहां मेरे खानदान का बड़ा बिजनेस है.’’

‘‘मोरक्को के तो कई लोगों को मैं जानता हूं. एक बीवी की फ्रैंड थी फैमी फहमीदा सादी. वह भी मोरक्को से आई थी. तुम जानते हो उसे?’’

यह सुन कर नासेर का रंग उड़ गया. वह अटक कर बोला, ‘‘नहीं, मैं इस नाम की किसी और को नहीं जानता.’’

इस के बाद उस का बातचीत का रुख बदल गया. वह धंधे की परेशानियों का रोना रोने लगा.

क्रिस्टी का शक और पक्का हो गया मगर ऊपर से उस ने कुछ जाहिर नहीं किया.

इस के बाद क्रिस्टी लारेन से मिला. लारेन को पुलिस के काम के लिए छुट्टी दिला दी और वह उसे ले कर नासेर की दुकान में गया. खुद कुछ देर के लिए बाहर ही खड़ा रहा और अकेली लारेन अंदर गई. लारेन को देख कर नासेर के चेहरे पर की हवाइयां उड़ने लगीं. उस ने झूठा स्वांग रचा कि उसे दमा का रोग है और अटैक आ गया है, इसलिए वह दुकान बंद कर के बाहर खुली हवा में जाना चाहता है.

वह जोरजोर से खांसने लगा. काउंटर के नीचे झुक कर उस ने कबाब के ग्रिल का बटन बंद कर दिया और रुकरुक कर घुटती सी आवाज में गालियां बकने लगा.

‘‘ये कम्बख्त चूल्हा और यह गोश्त का धुआं मेरी जान ले लेगा. जाओ, प्लीज बाहर निकलो, मुझे जाना है.’’

लारेन बाहर चली गई तो उस ने झटपट दुकान का शटर गिरा दिया और ऊपर फ्लैट में चला गया.

इधर मौयरा बाल मनोविज्ञान का परीक्षण करने वाली टीचर बन कर शकूर अली नासेर के हेडमास्टर से मिली और उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि शकूर से अकेले में बात करेगी. एक अन्य डिनर लेडी शकूर को लाने की जिम्मेदारी बनी. शायद इतना छोटा बच्चा अजनबी स्त्री से ठीक तरह बात न करता.

मौयरा ने ढेर सारे कंस्ट्रक्शन गेम टेबल पर रख दिए और शकूर से उन्हें बनाने को कहा. बच्चा ही तो था झट बहल गया.

फिर उस की बनाई चीजें की खूब तारीफ की और अनेक मिलेजुले छोटेमोटे सामान मेज पर बिखेर दिए.

‘‘शकूर, तुम्हें जोड़े मिलाने पड़ेंगे यानी क्या चीज किस के साथ जोड़ी जाती है. जैसे, ताले के साथ चाबी, जूते के साथ मोजा वगैरह.’’

शकूर जब खूब मगन हो गया तब उस ने धीमे से फैमी का फोटो मेज पर रख दिया.

जैसे ही उस ने उसे देखा वह सकपका गया और फिर रोआंसा हो गया. उस ने फोटो उठा लिया और उसे निहारता रहा.

‘‘तुम जानते हो यह कौन है?’’

‘‘आंटी.’’

‘‘तुम्हें प्यार करती है?’’

‘‘बहुत, हम घूमने जाते थे. वह मुझे बाहर ले जाती थी.’’

‘‘कहां?’’

‘‘कभी चिडि़याघर तो कभी पार्क में.’’

‘‘अब भी जाते हो?’’

‘‘अब नहीं आती.’’

यह बात कह कर शकूर रोने लगा.

अगले दिन हेडमास्टर ने साफिया को स्कूल के बाद आधा घंटा रुकने को कहा. बताया कि तुम्हारा बेटा बहुत मेधावी है.

भोजपुरी Singer अक्षरा सिंह का हिंदी गाना ‘मेरी वफा’ ओटीटी प्लेटफार्म पर हुआ रिलीज

दिग्गज फिल्म निर्माता हैदर काजमी के ओटीटी प्लेटफॉर्म मस्तानी पर सुपर हॉट गर्ल अक्षरा सिंह का गाना ‘मेरी वफा’ रिलीज होते ही वायरल भी हो गया. यूं तो अक्षरा के गानों की धूम यूट्यब पर खूब है, लेकिन अब उनके गाने ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘मस्तानी’पर भी धमाल मचाने लगी है.‘मेरी वफा’ अक्षरा का हिंदी गाना है, जिसे अक्षरा ने अपनी बेहद सुरीली आवाज दी है.

यह मूलतः सैड सौंग है, लेकिन बहुत शानदार है.यह कहा जा सकता है कि अक्षरा सिंह के गाए हिंदी गानों में यह सबसे अलग और मजेदार है.

 

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ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘मस्तानी’’ पर पहली बार अपने हिंदी गाने के आने पर अक्षरा सिंह अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा-‘‘मुझे अच्छा लगा रहा है कि हैदर काजमी जैसे दिग्गज व संजीदा फिल्ममेकर के ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘मस्तानी’पर मेरे गाने को जगह मिली है.यह ओटीटी प्लेटफॉर्म सार्थक सिनेमा और गानों को बेहतर मंच देता है.इसलिए यह मेरे लिए सम्घ्मान की बात है कि यहां मेरी कला को एकअलग पहचान मिलेगी.यह गाना बेहद अच्घ्छा है.आप जरूर सुनिए.इस गीत को फंणींद्र राव ने लिखा है,संगीत आशीष वर्मा ने दिया है.’’

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ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘‘मस्तानी’’ पर इस गाने से पहले वेब सीरीज ‘‘द रेड लैंड’’रिलीज हो चुकी है, जिसमें पूर्वांचल में जातिवाद की लड़ाई के खूनी अंजाम को दिखाया गया था,जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया और अब यह मिस्ट्री थ्रिलर.खुद हैदर काजमी भी अपने ओटीटी प्लेटफार्म ‘मस्तानी’को लेकर कह चुके हैं यह सार्थक और प्रगतिशील सिनेमा के लिए एक बेहतर मंच बनेगी.यहां लोग पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्में वेब सीरीज व अन्य मनोरंजक चीजें देख पाएंगे. इस प्लेटफार्म पर हैदर काजमी के निर्देशन में बनी फिल्में रिलीज होंगी ही,साथ-साथ दुनिया भर में बनी अच्छी और सार्थक फिल्में इस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दर्शकों को देखने को मिलेगा,जिसका मनोरंजन के साथ सामाजिक सरोकार होगा.

Aly Goni ने गुस्से में आकर Twitter से लिया ब्रेक, जानें वजह

बिग बॉस 14 फेम अली गोनी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं.  वह अक्सर अपनी फेैमिली और फ्रेंड्स के साथ  फोटोज और वीडियोज शेयर करते रहते हैं. वह इन दिनों काफी गुस्से में नजर आ रहे हैं. उन्होंने ट्विटर छोड़ने का फैसला लिया है. दरअसल एक्टर की बहन इल्हाम गोनी को लेकर यूजर्स गंदे-गंदे कमेंट्स कर रहे थे. ऐसे में अली गोनी ने ट्विटर छोड़ने का ऐलान किया है.

हाल ही में अली गोनी ने ट्वीट कर लिखा कि ‘कुछ एकाउंट्स ने मेरी बहन को गाली देते हुए और नेगेटिव बातें कहते हुए देखा. मैं चीजों को नजरअंदाज करता था लेकिन यह एक ऐसी चीज है जिसे मैं नजरअंदाज नहीं कर सकता.

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उन्होंने आगे ये भी लिखा कि मेरे परिवार को यहां घसीटने की हिम्मत मत करो. मैं अभी बहुत गुस्से में हूं और अपना अकाउंट डिलीट कर रहा हूं. अली ने  कहा कि ‘  मैं कुछ समय के लिए ट्विटर से ब्रेक ले रहा हूं.अपने लोगों को ढेर सारा प्यार.

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अली गोनी की गर्लफ्रेंड जैस्मिन भसीन ने एक्टर का सपोर्ट करते हुए ट्विटर पर लिखा कि मैं न तो किसी को दोष दे रही हूं और न ही किसी को गलत समझ रही हूं. बस आप सभी से रिक्वेस्ट है कि पॉजिटिव और शांत रहें. जब हम भद्दी बातों का जवाब नहीं देते हैं, तो खुद खत्म हो जाती हैं. अगर तुम मुझसे प्यार करते हो तो तुम प्यार फैलाओगे, सिर्फ प्यार…

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