मेरा कुसूर क्या है: भाग 1

लेखक- एस भाग्यम शर्मा

मेरा नाम आकांक्षा है. अब बड़ी होने के बाद अकसर सोचती हूं कि मेरा यह नाम क्यों पड़ा.

सभी कहते थे कि तुम्हारा नाम बहुत प्यारा है. मम्मी कहती थीं, ‘मैं ने तो पंडितजी से पूछा था. उन्होंने कहा था कि इस का नाम आकांक्षा रखना ताकि इस लड़की की सारी इच्छाएं पूरी हों.’

सारी इच्छाएं तो जाने दें, यहां तो जरूरी इच्छाएं भी पूरी नहीं हुईं. आप सोच रहे होंगे कि यह मैं कैसी पहेली बु झा रही हूं.  मगर यह पहेली नहीं, मेरी जिंदगी का सत्य है.

मेरे मम्मीपापा पढ़ेलिखे और नौकरी करने वाले थे. मेरी मां एमए पास थीं. उन्होंने मुझे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया. आजकल तो गलीगली में इंग्लिश मीडियम के स्कूल हैं. उस समय तो एक ही स्कूल था. जानेमाने स्कूल में मेरा दाखिला करवाया था. मम्मीपापा दोनों ही बड़े खुले विचारों व आधुनिक सोच वाले थे.

मैं पढ़ने में तेज और औलराउंडर थी. पढ़ने के साथ ऐक्ंिटग व संगीत में भी मैं माहिर थी. मम्मी को गाने का बहुत शौक था, इसलिए उन्होंने स्कूल के बाद गायन क्लास में भी ऐडमिशन दिलवाया.

पापा मेरी किसी भी बात को मना नहीं करते थे. उन से मैं ने बहुतकुछ सीखा. तब स्कूल के सभी प्रोग्राम्स में मैं भाग लेती थी. क्या नाटक, क्या वादविवाद प्रतियोगिता और क्या गानाबजाना, सभी में मैं ने पुरस्कार प्राप्त किए थे. मैं टीचर्स की फेवरेट स्टूडैंट्स में से थी.

स्कूल के बाद मैं कालेज में आई. मैं ने नाटकों और लगभग सभी ऐक्टिविटीज में भाग लिया. कालेज के शिक्षकों ने भी मु झे बहुत प्रोत्साहित किया.

मेरी मम्मी आकाशवाणी में प्रोग्राम देती थीं. मैं भी उन के साथ बच्चों के प्रोग्राम में भाग लेती थी. बड़ी होने पर वहां पर मु झे दूसरे प्रोग्राम में लेने लगे. मैं कंपेयरिंग करने लगी.

थोड़े दिनों बाद तो जयपुर शहर में दूरदर्शन भी खुल गया था. मु झे वहां भी जाने का अवसर प्राप्त हुआ. आकाशवाणी में न्यूजरीडर और ड्रामा विभाग में मेरा सलैक्शन हो गया था.

मैं ने पढ़ाई के साथसाथ दूरदर्शन में न्यूजरीडर और ड्रामा आर्टिस्ट के लिए इंटरव्यू दिया. दोनों ही में मेरा सलैक्शन हो गया. मम्मीपापा बड़े खुश हुए. मैं तो खुश  थी ही क्योंकि मेरी मनोकामनाएं जो पूरी हो गई थीं.

सब ठीकठाक चल रहा था. मम्मी को मेरी शादी की चिंता होने लगी. इसी समय मेरे पापा का ऐक्सिडैंट हो गया. उन को आंखों से कम दिखाई देने लगा. जब मोतियाबिंद का औपरेशन कराया तो वह बिगड़ गया. पापा डिप्रैशन में आ गए थे. सो, उन का बाहर आनाजाना कम हो गया.

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अब तो मम्मी को मेरी बहुत चिंता सताने लगी कि बेटी की शादी कैसे होगी? जैसे ही मेरे एमए प्रीवियस का रिजल्ट आया और मैं अच्छे नंबरों से पास हो गई तो अब मेरी मम्मी ज्यादा ही शोर मचाने लगीं, ‘अभी से देखना शुरू करेंगे, तभी लड़का मिलेगा. ढूंढ़ने में भी 2 साल लगेंगे,’ ऐसा वे हरेक से कहती रहतीं.

पता नहीं पापा के डिप्रैशन से उन्हें भी डिप्रैशन हो गया, जिसे मैं पहचान नहीं पाई. मु झ में कोई कमी तो थी नहीं. शक्लसूरत भी मेरी अच्छी थी. पढ़ाई के साथ लगभग हर ऐक्टिविटी में भी आगे थी ही, इस के अलावा मम्मी ने मु झे घर के कामों में भी निपुण बना दिया था.

ननिहाल वालों ने एक लड़का बताया जो लैक्चरार था. पर उन की फैमिली बहुत बैकवर्ड थी. पापा उसे बड़े परेशान हो कर देखने गए. उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आया.

मम्मी को यह बात अच्छी नहीं लगी. वे कहने लगीं, ‘शादी के बाद सब ठीक  हो जाएगा. कालेज में लैक्चरार है और  क्या चाहिए?’

वे कई दिनों तक नाराज रहीं.

पापा बोले, ‘लड़का इंग्लिश मीडियम का पढ़ा हुआ नहीं है, छोटीछोटी जगहों पर उस की पोस्ंिटग होगी. बेटी आकांक्षा को तकलीफ होगी.’

खैर, मेरे तक तो बात पहुंची नहीं, वहीं समाप्त हो गई. अब किसी ने मम्मी को बता दिया एक लड़का सरकारी कालेज में लैक्चरार है. पापामम्मी दोनों देखने गए. लड़का सचमुच अच्छा था, देखने में भी और योग्यता में भी, पर वे लोग बहुत ही पारंपरिक, अंधविश्वासी और पूजापाठ करने वाले थे. मेरे पापा तो आर्यसमाजी थे. उन को ये सब बातें पसंद नहीं आईं. पर मेरी मम्मी तो पीछे ही पड़ गईं. लड़का पढ़ालिखा है, बाहर जा कर तेज हो जाएगा. उदाहरण दे कर सम झाने लगीं.

पापा बोले, ‘ठीक है, शादी कर लेते हैं पर लड़की को एमए पास कर लेने दो.’

लड़के के पापा अड़ गए, ‘नहीं, एक महीने के अंदर ही शादी होगी. नहीं तो यह शादी नहीं होगी?’

पापा तो हरगिज तैयार नहीं थे. उन को लगा दाल में कुछ काला है, पर मम्मी तो पीछे पड़ गईं, ‘लड़के वाले हैं, उन की बात तो माननी ही पड़ेगी. वे कह रहे हैं कि हम उसे पढ़ने के लिए नहीं रोकेंगे, फिर क्या बात है.’

मु झे भी लड़का पसंद तो आया था पर घरपरिवार से मैं संतुष्ट नहीं थी. मम्मी ने अपने पीहर वालों को भी इस बारे में बताया. मामाजी और नानीजी भी आ गए.

लड़का देख कर मामाजी ने कहा, ‘यह तो हीरा है. ऐसे लड़के को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए.’

पापा बोले, ‘देखिए, वे लोग कर्मकांडी लोग हैं. हमारी बिटिया आकांक्षा आधुनिक विचारों की है. कर्मकांड और अंधविश्वास उसे पसंद नहीं.’

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मम्मी बोलीं, ‘अरे लड़का नामी कालेज में पढ़ा हुआ है. अभी तो मांबाप के कहे पर है पर वह बाद में अंधविश्वास, कर्मकांड में विश्वास नहीं करेगा. आप भी तो गांव के थे, अब कैसे बदल गए?’

मेरे घर में सभी खुले विचारों के थे, ‘आप की बहन के घर में तो ऐसा ही वातावरण था. पर सब बच्चे पढ़लिख कर बड़ीबड़ी पोस्टों पर आ गए और सब बदल गए. राजीव भी बदल जाएगा.’

मामा और नानी के बहुत कहने के बाद पापा ने परेशान हो कर ‘हां’ कह दिया. पर उन्होंने कहा कि एक महीने में मैं तैयारी नहीं कर सकता?

‘अजी हम लोग हैं न. हम कर लेंगे.’

पापा को मजबूरी में मानना पड़ा. शादी की तारीख तय कर दी गई. तैयारियां शुरू हो गईं. मैं बात को ठीक से सम झ नहीं पाई, क्योंकि मैं तब सिर्फ 20 साल की थी. मु झे सोचनेसम झने का समय ही नहीं दिया गया.

एक दिन जब सगाई की अंगूठी के लिए हम बाजार गए तो वे लोग भी आए. जब मेरी बात राजीव से हुई तब मैं सम झ चुकी थी कि घर के सभी लोगों की सोच एकजैसी है और सब के सब अंधविश्वासी व रूढि़वादी हैं. तब तक पापा भी सम झ चुके थे.

वहां से वापस आ कर जब मैं ने शादी के लिए मना किया तो सारे रिश्तेदार, जो घर पर आ चुके थे, ने कहा, ‘इस में तो बचपना है. कार्ड छप चुका है, खानेपीने का ऐडवांस दे चुके हैं. अब कुछ नहीं हो सकता. हमारी बदनामी होगी. यह शादी तो करनी होगी.’

मेरे मन में तो आया कि मैं भाग जाऊं. पर पापा के बारे में सोच कर ऐसा न कर सकी.

2-3 दिनों बाद पता चला कि होने वाले ससुरजी का व्यवहार भी बड़ा अजीब है. पापा से कुछ बात हुई थी और तब वे खासा परेशान हुए थे.

घर के बुजुर्गों ने पापा को सम झा दिया, ‘शादी में ऐसी बातें होती रहती हैं, उस पर ध्यान मत दो.’

मेरा मन बहुत ही आहत हुआ. मैं तो रोने लगी.

‘तू हम से ज्यादा सम झती है क्या? समय आने पर सब ठीक हो जाएगा,’ मामानाना कहने लगे.

मम्मी को अपने पीहर वालों पर बहुत भरोसा था. उन्हें लगा कि वे कह रहे हैं तो सब ठीक ही हो जाएगा.

शादी हो गई. शादी भी लड़के वालों ने अपने घर से नहीं की, एक धर्मशाला से की.

पापा बोले, ‘इस में भी कोई राज है जो वे लोग कुछ छिपा रहे हैं. वरना अपनी बहू का गृहप्रवेश अपने घर में करते हैं, धर्मशाला में नहीं.’

‘आकांक्षा, तुम घूंघट करोगी,’ यह हिदायत पहले ही दिन मैं सुन चुकी थी.

जयपुर शहर की बात है. गलती से भी थोड़ा सिर दिखता, तो ससुरजी देवर से कहते, ‘जा पंकज,  भाभी का घूंघट खींच ले.’

मु झे बहुत बुरा लगता पर मैं खून के घूंट पी कर रह जाती.

एक दिन तो मु झ से रहा नहीं गया, ‘पापाजी, आप तो अंडरवियर पहन कर बहूबेटियों के सामने घूमते हो, मेरे सिर ने ऐसा क्या कर दिया, जो उसे ढंकने की जरूरत है?’

ससुरजी ने इसे अपनी इंसल्ट तो मानी पर मु झे घूंघट पर छूट नहीं दी.

फिर नागपंचमी आई. तब मु झ से पारंपरिक ड्रैस लहंगा पहना कर सिर में बोड़ला लगा कर घूंघट में जहां पर सांपों के बिल थे वहां जा कर पूजा करने और बिल में दूध डालने को कहा गया. इसे मु झे सहन करना बहुत मुश्किल हो रहा था.

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उसी समय इस तमाशे को देखने के लिए मेरे साथ पढ़ने वाली एक सहेली वहां आई. वहां सब औरतें कह रही थीं कि नई बहू है. बहुत सुंदर है. इंग्लिश स्कूल में पढ़ी हुई है. इंग्लिश में एमए कर रही है.

उस लड़की ने उत्सुकतावश मेरा घूंघट हटा कर मु झे देखा, तो हैरान रह गई, ‘अरे आकांक्षा, तेरी शादी कब हुई? तू ने हमें क्यों नहीं बुलाया? तू ने तो बताया भी नहीं? तुम तो कहती थीं  कि तुम्हारी फैमिली बहुत आधुनिक सोच वाली है और पापा दकियानूसी सोच वाले लोगों से शादी नहीं करेंगे? मगर तू यहां कैसे फंस गई? ये लोग तो बहुत ही अंधविश्वासी हैं?’

उस का इतना कहना था कि मेरा रोना फूट पड़ा. मैं ने उसे बड़ी मुश्किल से रोका. वह सहेली मेरे साथ ही मेरी ससुराल भी आ गई. जब उस ने घर की हालत देखी तो बोली, ‘आकांक्षा, तू तो सचमुच में फंस गई?’

उस का इतना कहना था कि मु झे बहुत तेज रोना आया. दूसरे दिन जब मैं अपने पीहर आई तो बुरी तरह रोई.

मम्मी कहने लगीं, ‘बेटी, सहन करो, थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

मैं ने कहा, ‘मु झे छत पर जाने नहीं देते. सब लोग कपड़े छत पर सुखाते हैं और मु झ से कहते हैं कि अपने देवर को दे दो वह सुखा देगा. मम्मी बताओ अंडरगारमैंट्स अपने जवान देवर को कैसे दूं फैलाने के लिए?’’

मेरे सासससुर कहते हैं कि अब तेरा घर यही है. अब तू पीहर नहीं जाएगी. बहुत रह लिया पीहर में.

मेरी मम्मी सुन कर बहुत रोईं.

मेरे मम्मीपापा मु झे जान से भी ज्यादा चाहते थे. पापा तो मु झे आकांक्षा भी नहीं बुलाते आकांक्षाजी कहते थे. उन्होंने हमेशा मु झे प्रेम, प्यार और इज्जत से रखा.

जब मैं पीहर आती तो मेरे ससुरजी मेरे पर्स की तलाशी लेते और कहते कि हमारे घर से क्या ले जा रही हो? उन के घर में कुछ भी नहीं था जो मैं साथ ले जाती. और ले भी क्यों जाती क्योंकि पीहर में कोई कमी नहीं थी.

एक दिन तो मु झे बहुत तेज गुस्सा आया. जैसे ही उन्होंने कहा कि पर्स दो तो मैं ने कह दिया, ‘पापाजी, आप तो बहू से घूंघट करवाते हो. फिर आप कैसे बहू के पर्स को खोल कर देख सकते हो? हमें अपने पर्स में सैनिटरी पैड्स भी रखना पड़ता है… हम आप को दिखाएं?’

सास अनपढ़ थीं. उन को कुछ सम झ में नहीं आता. वह भी ससुर से उलटा चुगली करती थीं. ससुरजी हमेशा लड़ने को तैयार रहते थे.

इस बीच ऐसा हुआ कि मेरे दूर के मामाजी, जो जयपुर में ही रहते थे, मेरे ससुरजी उन के औफिस में पहुंच गए.

उन से बोले, ‘आप की भांजी देवरों के अंडरवियर नहीं धोती.’

मामाजी भौचक्के रह गए.

मामाजी ने सिर्फ इतना कहा, ‘साहब, छोटी बात को बड़ा मत कीजिए. अभी तो  वह 20 साल की ही है. घर में लाड़प्यार  से पलीबढ़ी बच्ची है. धीरेधीरे सब ठीक  हो जाएगा.’

शाम को मामाजी घर आए. उन्होंने पूछा, ‘बिटिया आकांक्षा कैसी है?’

‘बहुत बढि़या,’ मम्मी बोलीं.

पापा से पूछा. उन का भी यही जवाब था.

तब वे बोले, ‘मेरी तो कुछ सम झ में नहीं आ रहा. मैं तो जब आप से पूछता हूं कि आकांक्षा कैसी है, सब बढि़या कहते हो. आज आकांक्षा के ससुरजी मेरे औफिस आए. वे जो भी कह रहे थे, बहुत हास्यास्पद था. आप क्यों छिपा रहे हो?’

अब फटने की बारी पापा की थी, ‘मैं ने तो पहले ही कहा था ये लोग बेकार आदमी हैं. आप की बहन मानी नहीं और अपनी जिद पर अड़ी रही. आज मेरी लड़की तकलीफ में है. अब हम क्या कर सकते हैं?’

खुले रैस्तराओं का समय

कोरोना के दिनों में वैसे तो रैस्तरां बंद ही रहे पर कईर् देशों में उन्हें खुले में चलाने की इजाजत दी गई और यह प्रयोग सफल रहा क्योंकि खुले में मेजें दूरदूर लगीं और वायरस के हवा से एकदूसरे तक पहुंचने के अवसर काफी कम हो गए. दुनियाभर के बहुत से देश अब गरमी हो या सर्दीईटिंग आउट को ही फैशन बना देना चाह रहे हैं ताकि लोगों को एयरकंडीशंड इलाकों के दमघोटू माहौल से बचाया जा सके.

शहरों में जगह की किल्लत है पर इतनी भी नहीं कि बाहर पटरियों पर हलका सा शेड और हवा का इंतजाम कर बैठने की जगह न बनाई जा सके. घरों में एयरकंडीशनर होने के बावजूद लोग आज भी बाग या नदी के किनारे बैठ कर सुस्ताना चाहते हैं. एयरकंडीशंड रैस्तराओं ने असल में लोगों को बिगाड़ दिया है. बंद जगह में शोर मचाने की छूट भी मिलने लगी और बहुत सी अनचाही हरकतें भी होने लगीं.

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अब जैसेजैसे भारत में लौकडाउन डरतेडरते अनलौक किया जा रहा हैखुले में रैस्तरां का प्रयोग ज्यादा किया जाना चाहिए ताकि युवाओं को ठंडक और गरमी सहने की आदत पड़नी शुरू हो जाए. आजकल कम अमीर देशों में मांबापों की चिंता बिजली के बिलों की ही होती है क्योंकि युवा हीटर और एयरकंडीशनर दोनों साथ चलाने लगें तो भी आश्चर्य की बात न होगी. घर में सुरक्षित टैंपरेचर में रहने की आदत उन्हें निकम्मा बना रही है. वैसेयही युवा ग्लोबल वार्मिंग पर बड़ेबड़े भाषण देते हैं और एनर्जी को बचाने का उपदेश देते हैं.

खुले रैस्तराओं में वर्गभेद व जातिभेद भी कम हो जाता है. एयरकंडीशंड रैस्तराओं ने हाल के सालों में इंटीरियर डैकोरेशन पर बेहद औब्सीन पैसा खर्च करना शुरू किया है. और यदि सब को बैठना बाहर तंबू के नीचे ही है  तो बहुत सा पैसा बचेगा. बाहर का वातावरण युवाओं को असलियत के ज्यादा  पास रखेगा. जो काम असल में छिप कर होने चाहिए वे फिर इन रैस्तराओं में तो नहीं हो पाएंगे. अगर शहर खाने को बाहर ही कंपलसरी कर दें तो बहुत भला होगा. खर्च भी कम होगा और भेदभाव भी कम.

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भारत-जापान दोस्ती की मिसाल

अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी दौरे पर आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “रुद्राक्ष” अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सम्मेलन केंद्र का उद्घाटन करेंगे. उनके साथ जापान के प्रतिनिधि भी रहेंगे. रुद्राक्ष को जापानी शैली में सजाया जा रहा है. जैपनीज़ फूलों की सुगंध रुद्राक्ष में  फ़ैलेगी. रुद्राक्ष कन्वेंसन सेंटर परिसर में प्रधानमंत्री रुद्राक्ष के पौधे को भी लगाएंगे. कार्यक्रम के दौरान रुद्रक्ष कन्वेंसन सेण्टर में इन्डोजापन कला और संस्कृति की झलक भी दिखेगी. रुद्राक्ष कन्वेंसशन सेण्टर पर बने 3 मिनट के ऑडियो विज़ुअल को भी “रुद्राक्ष ” में प्रधानमंत्री मेहमानों के साथ देखने की संभवना है . प्रधानमंत्री  का  यहां करीब 500 लोगों से संवाद करना भी प्रस्तावित है . संभावना है कि वीडियो फ़िल्म के माध्यम से जापान के प्रधानमंत्री देंगे शुभकामनाएं.  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बदलते बनारस की तस्वीर दुनिया देखेगी.

सर्व विद्या की राजधानी काशी में धर्म ,अध्यात्म ,कला, संस्कृति और विज्ञान पर  चर्चा होती है, तो इसका सन्देश पूरी दुनिया में  जाता है.

बनारस में संगीत के सुर,लय और ताल की  त्रिवेणी अविरल बहती रहती है. 2015 में वाराणसी को यूनेस्को के ‘सिटीज ऑफ म्यूजिक’ से नवाजा गया था.  शिल्पियों की थाती वाले शहर बनारस ने दुनिया को कला की प्राचीन नमूनों से परिचित कराया है, जिसका कायल पूरा विश्व है.

दुनिया के सबसे प्राचीन और जीवंत शहर काशी को जापान ने भारत से दोस्ती का एक ऐसा नायाब तोहफ़ा रुद्राक्ष के रूप में दिया है ,जहां  आप बड़े म्यूजिक कंसर्न , कांफ्रेंस,नाटक और प्रदर्शनियां  जैसे कार्यक्रम दुनिया के बेहतरीन उपकरणों और सुविधाओं के साथ कर सकेंगे. कन्वेंशन सेंटर की नींव  2015 में उस समय पड़ गई थी, जब जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे  को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी लेकर आए थे.

शिवलिंग की आकृति वाला वाराणसी कन्वेंशन सेण्टर जिसका नाम शहर के मिज़ाज के अनुरूप रुद्राक्ष है. इसमें स्टील के एक सौ आठ रुद्राक्ष के दाने भी लगाए  गए है. जितना खूबसूरत ये देखने में  लग रहा है ,उतनी ही इसकी खूबियां भी है.

सिगरा में ,तीन एकड़ (13196 sq mt ) में ,186 करोड़ की लागत से बने  रुद्राक्ष में 120 गाड़ियों की पार्किंग  बेसमेंट में हो सकती है. ग्राउंड फ्लोर ,और प्रथम तल ,को लेकर हाल होगा जिसमे वियतनाम से मंगाई गई कुर्सियों पर 1200 लोग एक साथ बैठ सकते है. दिव्यांगों के लिए भी दोनों दरवाजो के पास 6 -6 व्हील चेयर का इंतज़ाम है. इसके अलावा शैचालय भी दिव्यांगों फ्रेंडली बनाए गए है.  हाल में बैठने की छमता पार्टीशन से कम या ज़्यादा भी किया जा सकता है. इसके अलावा आधुनिक ग्रीन रूम भी बनाया गया है. 150 लोगों की छमता वाला  दो कॉन्फ्रेंस हाल या गैलरी  भी है. जो दुनिया के आधुनिकतम उपकरणों से सुसज्जित  है. इस  हॉल को भी जरूरत के मुताबिक घटाया और  बढ़ाया जा सकता है.

रुद्राक्ष  को जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी ने फंडिंग  किया है. डिजाइन  जापान की कंपनी ओरिएण्टल कंसल्टेंट ग्लोबल ने  किया है. और निर्माण का काम भी जापान की फुजिता कॉरपोरेशन नाम की कंपनी ने किया है.

रुद्राक्ष में छोटा जैपनीज़ गार्डन बनाया गया है.  110 किलोवाट की ऊर्जा के लिए सोलर प्लांट लगा है.  वीआईपी रूप और उनके आने-जाने  का रास्ता भी अलग से है .

रुद्राक्ष को वातानुकूलित रखने के लिए इटली के उपकरण लगे है.दीवारों पर लगे ईंट भी ताप को रोकते और कॉन्क्रीट के साथ फ्लाई ऐश का भी इस्तेमाल किया गया  है. निर्माण और उपयोग की चीजों को देखते हुए ,ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट ( GRIHA ) की और से रुद्राक्ष को  ग्रेडिंग तीन मिली है. रुद्राक्ष में कैमरा समेत सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम है.   आग से भी सुरक्षा के उपकरणों पर भी विशेष ध्यान दिया गया है.

रुद्राक्ष  को जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी ने फण्ड किया है. डिजाइन  जापान की कंपनी ओरिएण्टल कंसल्टेंट ग्लोबल ने ही किया है, और निर्माण का काम भी जापान की फुजिता कॉरपोरेशन नाम की कंपनी ने  किया है. इसका निर्माण  10 जुलाई 2018 को शुरू हुआ था . अब  भारत जापान की दोस्ती का प्रतीक रुद्राक्ष बन कर तैयार हो गया है.

विकास तभी सार्थक जब सभी लोग सुरक्षित रहें: योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विकास की योजनाएं तभी सार्थक हैं जब सभी लोग सुरक्षित रहें. सरकार प्रदेश की 24 करोड़ जनता की सुरक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित है. प्रदेश की सुरक्षा में सेंध लगाने वालों को किसी भी सूरत में छूट नहीं दी जा सकती, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी ही होगी.

सीएम योगी मंगलवार को गोरखपुर में नगर निगम की 94 करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली 370 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास कर रहे थे. गोरखपुर क्लब में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि हम सभी को विकास के साथ ही सुरक्षा के प्रति लगातार सजग रहना होगा. सुरक्षा के प्रति थोड़ी सी सजगता से कई लोगों का जीवन सुरक्षित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ह्यूमन इंटेलिजेंस यानी लोगों की सजगता से मिली जानकारी पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दो साजिशों को बेपर्दा किया गया है.  मूक बधिर बच्चों के जेहादी धर्मांतरण से राष्ट्र की सुरक्षा में सेंध लगाने का षडयंत्र किया जा रहा था. इसमें पकड़े गए लोगों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने लखनऊ में पकड़े गए दो संदिग्धों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान परस्त आतंकियों के साथ मिलकर आजादी के जश्न में खलल डालने की साजिश रची जा रही थी. ह्यूमन इंटेलिजेंस यानी लोगों की सजगता से मिली सूचना पर सुरक्षा एजेंसियों ने इन्हें बेपर्दा कर दिया. बारूद का जखीरा, बम व अत्याधुनिक हथियार मिले. समय रहते ऐसे लोगों को मुंहतोड़ जवाब दिया गया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज में क्या हो रहा है, जनता की सजगता से इसे जाना जा सकता है और जानकारी पर समय रहते राष्ट्र विरोधी तत्वों के मंसूबों को ध्वस्त किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जनता से निरन्तर संवाद बनाए रखने में पार्षदों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है.

विकास की योजना गरीब का हक : मुख्यमंत्री योगी

मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास की योजना हर गरीब का हक है. अच्छा जनप्रतिनिधि चुने जाने पर विकास की योजनाएं हर गरीब तक पहुंचती हैं. उन्होंने कहा कि सरकार पहले भी थी, पैसा पहले भी था लेकिन तब अराजकता होती थी, पैसों का बंदरबांट होता था. आज सिस्टम वही है बस चेहरे बदल गए हैं तो आमजन को योजनाओं का लाभ मिल रहा है. हर व्यक्ति तक सड़क, पेयजल, बिजली की सुविधा है. गरीब को पीएम आवास योजना से मकान मिल रहा है. यह सारे काम पहले भी हो सकते थे लेकिन अपने पूर्वजों के नाम योजनाओं के नामकरण में जुटे लोगों को गरीबों की चिंता नहीं थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों को आवास योजना की सौगात दी है. गोरखपुर में 25 हजार गरीबों को पीएम आवास मिला है. जो स्ट्रीट वेंडर पहले कुछ लोगों के लिए शोषण करने का जरिया थे, आज स्वनिधि योजना से आत्मनिर्भर होकर तरक्की की राह पकड़ रहे हैं.

यूपी से गायब होता दिखाई दे रहा कोरोना : सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गंदगी दूर कर और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के साथ बिना भेदभाव सबको स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ दिलाकर हमनें इंसेफेलाइटिस को दूर किया है. कोविड प्रोटोकाल के अनुपालन और सबको त्वरित स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराते हुए कोरोना पर भी काबू पाया है. अब तो उत्तर प्रदेश से कोरोना गायब होता दिखाई दे रहा है. मुख्यमंत्री ने कोविड के सेकेंड वेव में निगरानी समितियों व पार्षदों की भूमिका की प्रशंसा की.  उन्होंने पार्षदों को प्रेरित करते हुए कहा कि बेहतर कार्य पद्धति ही आपकी पहचान बनेगी, आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनेगी इसलिए बेहतर कार्य निरन्तर होने चाहिए. जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए अहर्निश प्रयास करना होगा.

कार्यक्रम में महापौर सीताराम जायसवाल, नगर विधायक डॉ राधामोहन दास अग्रवाल, गोरखपुर ग्रामीण के विधायक बिपिन सिंह, सहजनवा के विधायक शीतल पांडेय, राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष श्रीमती अंजू चौधरी आदि की प्रमुख मौजूदगी रही.

370 परियोजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण

इसके साथ ही सीएम योगी ने मंगलवार की शाम शहर को 93.89 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की सौगात दी. गोरखपुर क्लब में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने 370 परियोजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया. इनमें 150 परियोजनाओं का शिलान्यास और 220 परियोजनाओं का लोकार्पण हुआ. मुख्यमंत्री ने नगर निगम परिसर में प्राइवेट, पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) माडल से संचालित होने वाले म्यूजिकल फाउंटेन और फूड पार्क का भी लोकार्पण किया. सीएम शाम चार बजे मुख्यमंत्री गोरखपुर क्लब पहुंचे. स्वागत महापौर सीताराम जायसवाल ने किया. सभी परियोजनाएं 14वें व 15वें वित्त आयोग, अवस्थापना विकास निधि, अमृत योजना, सीवरेज एवं जल निकासी योजना और स्वच्छ भारत मिशन से है. मुख्यमंत्री ने वार्ड नंबर पांच में एक करोड़ 12 लाख 77 हजार रुपये से बनी डामर सड़क का भी लोकार्पण किया. चार करोड़ 11 लाख 67 हजार रुपये से लालडिग्गी पार्क में हुए जीर्णोद्धार कार्य का लोकार्पण कर मुख्यमंत्री ने पार्क को नागरिकों को सौंपा.

मिलेगा शुद्ध पानी

8.81 करोड़ रुपये की लागत से 13 गहरे नलकूप और आठ मिनी नलकूप का भी मुख्यमंत्री ने शिलान्यास किया. इन नलकूप से हजारों नागरिकों को शुद्ध पानी मिलेगा.

यहां लगेंगे गहरे नलकूप

भैरोपुर ओवरहेड टैंक परिसर में, बशारतपुर निकट एल्यूमीनियम फैक्ट्री रोड सुडिय़ा कुआं, राजेंद्र नगर पश्चिमी, राजेंद्र नगर पूर्वी, लच्छीपुर शिव मंदिर के पीछे मलिन बस्ती, पूर्व महापौर डा. सत्या पांडेय के घर के पास, ट्रांसपोर्टनगर स्थित गालन टोला मोहल्ला, धर्मशाला पुलिस लाइन बाउंड्री के अंदर, रुस्तमपुर, अलीनगर, सिविल लाइन द्वितीय पड़हा में रियाज हास्पिटल के बगल में, गोरखनाथ मंदिर परिसर में संस्कृत पीठ के पास और सिविल लाइन चौराहा के पास कार्य कराया जाएगा.

यहां लगेंगे मिनी नलकूप

जटेपुर उत्तरी काली मंदिर के पास, अंधियारीबाग रामलीला मैदान मलिन बस्ती, नरसिंहपुर, पार्षद जितेंद्र सैनी के आवास के पीछे, कृष्णा नगर, माधोपुर, रामप्रीत चौराहा काली मंदिर के पास और चक्सा हुसैन में.

आदित्य की मां Imlie को घर में रहने की देगी इजाजत, रखेगी ये दो शर्त

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ में इन दिनों दर्शकों का एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि आदित्य और इमली के रिश्ते के बारे में घरवालों को पता चल गया. त्रिपाठी परिवार ये बात जानकर सदमे में है कि इमली उनके खानदान की बहू है. शो के अपकमिंग एपिसोड में जबरदस्त ड्रामा होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि आदित्य इमली को अपने घर में बहू का दर्जा दिलाने के लिए सबसे बहस करता हुआ नजर आएगा. इतना ही नहीं,  आदित्य कहेगा कि इमली सभी के साथ खाने की टेबल पर बैठेगी.

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तो वहीं इमली को देखकर अपर्णा भड़क जाएगी और वह वहां से चली जाएगी. उसके साथ-साथ सभी लोग बिना खाना खाए उठ जाएंगे. तो इधर आदित्य अपनी मां को समझाने की कोशिश करेगा कि इमली और उसकी शादी हो चुकी है.

 

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ऐसे में आदित्य और अपर्णा के बीच खूब बहस होगी. आदित्य घरवालों के सामने इमली से कहेगा कि अब तुम मेरे कमरे में रहोगी. तो वहीं इमली कमरे में जाने से मना कर देगी.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप ये भी देखेंगे कि अपर्णा इमली के सामने शर्त रखेगी. वह कहेगी कि अगर वो मंगलसूत्र और सिंदूर की निशानी हटा दे और वह नौकरानी की तरह रहे. तो वह इमली को पहले जैसा प्यार देगी. अब शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या इमली और आदित्य इस शर्त को मानेंगे?

पाकिस्तानी मॉडल नायाब नदीम की संदिग्ध हालत में मौत, घर में बिना कपड़ो के मिली Dead Body

पाकिस्तानी मॉडल नायब नदीम की संदिग्ध हालत में मौत हो गई है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक किसी शख्स ने नायाब नदीम की हत्या की है. ये भी बताया जा रहा है कि शाम से उनके घर के बाहर कोई अंजान शख्स चक्कर लगा रहा था.

खबरों के अनुसार नायाब घर में अकेली रहती थी. 11 जुलाई को उनके भाई मुहम्मद अली ने नायाब के घर पहुंचे तो उनकी लाश घर के फर्श पर पड़ी थी. मुहम्मद अली ने इस खबर की सूचना पुलिस को दी.

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रिपोर्ट के अनुसार अली ने ये भी बताया कि नायाब उनके साथ दोपहर में आइसक्रीम खाने गुलबर्ग गई थी. और आइसक्रीम खाने के बाद उन्होंने नायाब को घर वापस छोड़ दिया था. तो वहीं अली ने शाम में नायाब को फोन किया. पर नायाब ने फोन नहीं उठाया. जिसके बाद वो फिर से उनसे मिलने नायाब के घर पहुंच गए. जहां नायाब की लाश मिली.

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उन्होंने ये भी बताया कि, जब वो घर पहुंचे तो बाथरूम की खिड़की टूटी हुई थी. उसे अंदाजा लगाया जा रहा है कि हत्या वहीं से घर में घुसा होगा. पुलिस क कहना है कि फिलहाल इस मामले में कई पहलुओं से जांच की जा रही हैं.

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फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया

इस टीवी एक्टर ने मोनालिसा को ‘I love You’ कहते हुए जबरदस्ती लगाया गले तो मिला ऐसा जवाब

भोजपुरी इंडस्ट्री की मशहूर एक्ट्रेस मोनालिसा (Monalisa) इन दिनों  सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह अक्सर अपनी नयी फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती है. फैंस को भी एक्ट्रेस के पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है.

हाल ही में मोनालिसा ने फैंस के साथ एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह टीवी एक्टर कुणाल वर्मा (Kunal Verma)  के साथ दिखाई दे रही हैं. इस वीडियो में कुणाल वर्मा मोनालिसा को आई लव यू (I Love You) कहते  हुए नजर आ रहे हैं.

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इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि मोनालिसा ने कुणाल का जवाब देते हुए कहा है कि कभी अपनी शक्ल देखी है. इसके बाद कुणाल फनी अंदाज में मोनालिसा को रिप्लाई देते हुए गले लगाया है.

 

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सोशल मीडिया पर यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है. फैंस इस वीडियो को देखने के बाद  तरह-तरह के कमेंट्स कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा है, बेस्टफ्रेंड हैं दोनों, कुछ भी कर सकते हैं तो वहीं कई यूजर ने फनी इमोजी का रिएक्शन दिया है.

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तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं: भाग 1

सरकारी नौकरियों में लंबे समय तक एकसाथ काम करते और सरकारी घरों में साथ रहते कुछ सहकर्मियों से पारिवारिक रिश्तों से भी ज्यादा गहरे रिश्ते बन जाते हैं, मगर रिटायरमैंट के बाद अपने शहरोंगांवों में वापसी व दूसरे कारणों के चलते मिलनाजुलना कम हो जाता है. फिर भी मिलने की इच्छा तो बनी ही रहती है. उस दिन जैसे ही मेरे एक ऐसे ही सहकर्मी मित्र का उन के पास जल्द पहुंचने का फोन आया तो मैं अपने को रोक नहीं सका.

मित्र स्टेशन पर ही मिल गए. मगर जब उन्होंने औटो वाले को अपना पता बताने की जगह एक गेस्टहाउस का पता बताया तो मैं ने आश्चर्य से उन की ओर देखा. वे मुझे इस विषय पर बात न करने का इशारा कर के दूसरी बातें करने लगे.

गेस्टहाउस पहुंच कर खाने वगैरह से फारिग होने के बाद वे बोले, ‘‘मेरे घर की जगह यहां गेस्टहाउस में रहने की कहानी जानने की तुम्हें उत्सुकता होगी. इस कहानी को सुनाने के लिए और इस का हल करने में तुम्हारी मदद व सुझाव के लिए ही तुम्हें बुलाया है, इसलिए तुम्हें तो यह बतानी ही है.’’ कुछ रुक कर उन्होंने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘मित्र, महिलाओं की तरह उन की बीमारियां भी रहस्यपूर्ण होती हैं. हर महिला के जीवन में उम्र के पड़ाव में मीनोपौज यानी प्राकृतिक अंदरूनी शारीरिक बदलाव होता है, जो डाक्टरों के अनुसार भी कोई बीमारी तो नहीं होती, मगर इस का मनोवैज्ञानिक प्रभाव हर महिला पर अलगअलग तरह से होता है. कुछ महिलाएं इस में मनोरोगों से ग्रस्त हो जाती हैं.

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‘‘इसी कारण मेरी पत्नी भी मानसिक अवसाद की शिकार हो गई, तो मेरा जीवन कई कठिनाइयों से भर गया. घरपरिवार की देखभाल में तो उन की दिलचस्पी पहले ही कम थी, अब इस स्थिति में तो उन की देखभाल में मुझे और मेरी दोनों नवयुवा बेटियों को लगे रहना पड़ने लगा जिस का असर बेटियों की पढ़ाई और मेरे सर्विस कैरियर पर पड़ रहा था.

‘‘पत्नी की देखभाल के लिए विभाग में अपने अहम पद की जिम्मेदारी के तनाव से फ्री होने के लिए जब मैं ने विभागाध्यक्ष से मेरी पोस्ंिटग किसी बेहद सामान्य कार्यवाही वाली शाखा में करने की गुजारिश की, तो उन्होंने नियुक्ति ऐसे पद पर कर दी जो सरकारी सुविधाओं को भोगते हुए नाममात्र का काम करने के लिए सृजित की गई लगती थी.’’

‘‘काम के नाम पर यहां 4-6 माह में किसी खास मुकदमे के बारे में सरकार द्वारा कार्यवाही की प्रगति की जानकारी चाहने पर केस के संबंधित पैनल वकीलों से सूचना हासिल कर भिजवा देना होता था.

‘‘मगर मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. मेरे इस पद पर जौइन करने के 3 हफ्ते बाद ही उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से विभिन्न न्यायालयों में सेवा से जुड़े 10 वर्ष से ज्यादा की अवधि से लंबित मामलों में कार्यवाही की जानकारी मांग ली. मैं ने सही स्थिति जानने के लिए वकीलों से मिलना शुरू किया. विभाग में ऐसे मामले बड़ी तादाद में थे, इसलिए वकील भी कई थे.

‘‘इसी सिलसिले में 3-4 दिनों में कई वकीलों से मिलने के बाद में एक महिला पैनल वकील के दफ्तर में पहुंचा. उन पर नजर डालते ही लगा कि उन्होंने अपने को एक वरिष्ठ और व्यस्त वकील दिखाने के लिए नीली किनारी की मामूली सफेद साड़ी पहन रखी है और बिना किसी साजसज्जा के गंभीरता का मुखौटा लगा रखा है. और 2-3 फाइलों के साथ कानून की कुछ मोटी किताबें सामने रख कर बैठी हुई हैं. मेरे आने का मकसद जानते ही उन्होंने एक वरिष्ठ वकील की तरह बड़े रोब से कहा, ‘देखिए, आप के विभाग के कितने केस किसकिस न्यायाधीश की बैंच में पैडिंग हैं और इस लंबे अरसे में उन में क्या कार्यवाही हुई है, इस की जानकारी आप के विभाग को होनी चाहिए. मैं वकील हूं, आप के विभाग की बाबू नहीं, जो सूचना तैयार कर के दूं.’

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‘‘इस प्रसंग में वकील साहिबा के साथ अपने पूर्व अधिकारियों के व्यवहार को जानते व समझते हुए भी मैं ने उन से पूरे सम्मान के साथ कहा, ‘वकील साहिबा, माफ करें, इन मुकदमों में सरकार आप को एक तय मानदेय दे कर आप की सेवाएं प्राप्त करती है, तो आप से उन में हुई कार्यवाही कर सूचना प्राप्त करने का हक भी रखती है. वैसे, हैडऔफिस का पत्र आप को मिल गया होगा. मामला माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा मांगी गई सूचना का है. यह जिम्मेदारीभरा काम समय पर और व्यवस्था से हो जाए, इसलिए मैं आप लोगों से संपर्क कर रहा हूं, आगे आप की मरजी.’

‘‘मेरी बात सुन कर वकील साहिबा थोड़ी देर चुप रहीं, मानो कोई कानूनी नुस्खा सोच रही हों. फिर बड़े सधे लहजे में बोलीं, ‘देखिए, ज्यादातर केसेज को मेरे सीनियर सर ही देखते थे. उन का हाल  में बार कोटे से न्यायिक सेवा में चयन हो जाने से वे यहां है नहीं, इसलिए मैं फिलहाल आप की कोई मदद नहीं कर सकती.’

‘ठीक है मैडम, मैं चलता हूं और आप का यही जवाब राज्य सरकार को भिजवा दिया जाएगा.’ कह कर मैं चलने के लिए उठ खड़ा हुआ तो वकील साहिबा को कुछ डर सा लगा. सो, वे समझौते जैसे स्वर में बोलीं, ‘आप बैठिए तो, चलिए मैं आप से ही पूछती हूं कि यह काम 3 दिनों में कैसे किया जा सकता है?’

‘‘अब मेरी बारी थी, इसलिए मैं ने उन्हीं के लहजे में जवाब दिया, ‘देखिए, यह न तो मेरा औफिस है, न यहां मेरा स्टाफ काम करता है. ऐसे में मैं क्या कह सकता हूं.’ यह कह कर मैं वैसे ही खड़ा रहा तो अब तक वकील साहिबा शायद कुछ समझौता कर के हल निकालने जैसे मूड में आ गई थीं. वे बोलीं, ‘देखिए, सूचना सुप्रीम कोर्ट को भेजी जानी है, इसलिए सूचना ठोस व सही तो होनी ही चाहिए, और अपनी स्थिति मैं बता चुकी हूं, इसलिए आप कड़वाहट भूल कर कोई रास्ता बताइए.’

‘‘वकील साहिबा के यह कहने पर भी मैं पहले की तरह खड़ा ही रहा. तो वकील साहिबा कुछ ज्यादा सौफ्ट होते हुए बोलीं, ‘देखिए, कभीकभी बातचीत में अचानक कुछ कड़वाहट आ जाती है. आप उम्र में मेरे से बड़े हैं. मेरे फादर जैसे हैं, इसलिए आप ही कुछ रास्ता बताइए ना.’

‘‘देखिए, यह कोई इतना बड़ा काम नहीं है. आप अपने मुंशी से कहिए. वह हमारे विभाग के मामलों की सूची बना कर रिपोर्ट बना देगा.’

‘‘देखिए, आप मेरे फादर जैसे हैं, आप को अनुभव होगा कि मुंशी इस बेगार जैसे काम में कितनी दिलचस्पी लेगा, वैसे भी आजकल उस के भाव बढ़े हुए हैं. सीनियर सर के जाने के बाद कईर् वकील लोग उस को बुलावा भेज चुके हैं,’ कह कर उन्होंने मेरी ओर थोड़ी बेबसी से देखा. मुझे उन का दूसरी बार फादर जैसा कहना अखर चुका था. सो, मैं ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘मैडम वकील साहिबा, बेशक आप अभी युवा ही है और सुंदर भी हैं ही, मगर मेरी व आप की उम्र में 4-5 साल से ज्यादा फर्क नहीं होगा. आप व्यावसायिक व्यस्तता के कारण अपने ऊपर ठीक से ध्यान नहीं दे पाती हैं, नहीं तो आप…

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‘‘महिला का सब से कमजोर पक्ष उस को सुंदर कहा जाना होता है. इसलिए वे मेरी बात काट कर बोलीं, ‘आप कैसे कह रहे हैं कि मेरी व आप की उम्र में सिर्फ 4-5 साल का फर्क है और आप मुझे सुंदर कह कर यों ही क्यों चिढ़ा रहे हैं.’ उन्होंने एक मुसकान के साथ कहा तो मैं ने सहजता से जवाब दिया, ‘वकील साहिबा, मैं आप की तारीफ में ही सही, मगर झूठ क्यों बोलूंगा? और रही बात आप की उम्र की, तो धौलपुर कालेज में आप मेरी पत्नी से एक साल ही जूनियर थीं बीएससी में. उन्होंने आप को बाजार वगैरह में कई बार आमनासामना होने पर पहचान कर मुझे बतलाया था. मगर आप की तरफ से कोई उत्सुकता नहीं होने पर उन्होंने भी परिचय को पुनर्जीवित करने की कोशिश नहीं की.’

‘‘अब तक वकील साहिबा अपने युवा और सुंदर होने का एहसास कराए जाने से काफी खुश हो चुकी थीं. इसलिए बोलीं, ‘अच्छा ठीक है, मगर अब आप बैठ तो जाइए, मैं चाय बना कर लाती हूं, फिर आप ही कुछ बताएं,’ कह कर वे कुरसी के पीछे का दरवाजा खोल कर अंदर चली गईं.

‘‘थोड़ी देर में वे एक ट्रे में 2 कप चाय और नाश्ता ले कर लौटीं और बोलीं, ‘आप अकेले बोर हो रहे होंगे. मगर क्या करूं, मैं तो अकेली रहती हूं, अकेली जान के लिए कौन नौकरचाकर रखे.’ उन की बात सुन कर एकदफा तो लगा कि कह दूं कि सरकारी विभागों के सेवा संबंधी मुदकमों के सहारे वकालत में इतनी आमदनी भी नहीं होती? मगर जनवरी की रात को 9 बजे के समय और गरम चाय ने रोक दिया.

‘‘चाय पीने के बाद तय हुआ कि मैं अपने कार्यालय में संबंधित शाखा के बाबूजी को उन के मुंशी की मदद करने को कह दूंगा और दोनों मिल कर सूची बना लेंगे. फिर उन की फाइलों में अंतिम तारीख को हुई कार्यवाही की फोटोकौपी करवा कर वे सूचना भिजवा देंगी.

‘‘सूचना भिजवा दी गई और कुछ दिन गुजर गए मगर कोई काम नहीं होने की वजह से मैं उन से मिला नहीं. तब उस दिन दोपहर में औफिस में उन का फोन आया. फोन पर उन्होंने मुझे शाम को उन के औफिस में आ कर मिलने की अपील की.

‘‘शाम को मैं उन के औफिस में पहुंचा तो एकाएक तो मैं उन्हें पहचान ही नहीं पाया. आज तो वे 3-4 दिनों पहले की प्रौढ़ावस्था की दहलीज पर खड़ी वरिष्ठ गंभीर वकील लग ही नहीं रही थीं. उन्होंने शायद शाम को ही शैंपू किया होगा जिस से उन के बाल चमक रहे थे, हलका मेकअप किया हुआ था और एक बेहद सुंदर रंगीन साड़ी बड़ी नफासत से पहन रखी थी जिस का आंचल वे बारबार संवार लेती थीं.

‘‘मुझे देखते ही उन के मुंह पर मुसकान फैल गई तो पता नहीं कैसे मेरे मुंह से निकल गया, ‘क्या बात है मैडम, आज तो आप,’ मगर कहतेकहते मैं रुक गया तो वे बोलीं, ‘आप रुक क्यों गए, बोलिए, पूरी बात तो बोलिए.’ अब मैं ने पूरी बात बोलना जरूरी समझते हुए बोल दिया, ‘ऐसा लगता है कि आप या तो किसी समारोह में जाने के लिए तैयार हुई हैं, या कोई विशेष व्यक्ति आने वाला है.’ मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर एक मुसकान उभरी, फिर थोड़ा अटकती हुई सी बोलीं, ‘आप के दोनों अंदाजे गलत हैं, इसलिए आप अपनी बात पूरी करिए.’ तो मैं ने कहा, ‘आज आप और दिनों से अलग ही दिख रही हैं.’

‘‘और दिनों से अलग से क्या मतलब है आप का,’ उन्होंने कुछ शरारत जैसे अंदाज में कहा तो मैं ने भी कह दिया, ‘आज आप पहले दिन से ज्यादा सुंदर लग रही हैं.’

‘‘मेरी बात सुन कर वे नवयुवती की तरह मुसकान के साथ बोलीं, ‘आप यों ही झूठी तारीफ कर के मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’ तो मैं ने हिम्मत कर के बोल दिया, ‘मैं झूठ क्यों बोलूंगा? वैसे, यह काम तो वकीलों का होता है. पर हकीकत में आज आप एक गंभीर वकील नहीं, किसी कालेज की सुंदर युवा लैक्चरर लग रही हैं?’ यह सुन कर वे बेहद शरमा कर बोली थीं, ‘अच्छा, बहुत हो गई मेरी खूबसूरती की तारीफ, आप थोड़ी देर अकेले बैठिए, मैं चाय बना कर लाती हूं. चाय पी कर कुछ केसेज के बारे में बात करेंगे.’

सोनिया पांडे: लड़के से बना लड़की, तब मिली पहचान

काफी जद्दोजहद के बाद अब मैं असली जिंदगी जी रही हूं और जिंदगी के मजे ले रही हूं. इस के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा. संघर्ष भी किसी और से नहीं, बल्कि अपने परिवार से और समाज से, तब कहीं जा कर मैं अपनी असली पहचान बना पाई हूं. जिसे अब मेरा परिवार और समाज भी स्वीकार करने लगा है.

मैं कौन हूं, क्या हूं और मेरे परिवार में कौनकौन हैं, इस के बारे में मैं बताए देती हूं. इस की शुरुआत मैं अपने घर से ही करती हूं.

दरअसल, मेरे पिता ख्यालीराम पांडेय मूलरूप से उत्तराखंड के शहर अल्मोड़ा के रहने वाले थे. वह 1960 में उत्तर प्रदेश के शहर बरेली आ गए.

वह पूर्वोत्तर रेलवे में इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे. बरेली की इज्जतनगर रेलवे की वर्कशाप में वह काम करते थे. परिवार में मेरी मां निर्मला और एक बड़ा भाई था. मेरा परिवार बरेली आ गया. बरेली में ही मेरा जन्म हुआ. मातापिता ने मेरा नाम राजेश रखा. मेरे बाद मेरी 2 छोटी बहनें हुईं.

मैं कहने को तो लड़का थी, लेकिन मेरी आत्मा, मेरी भावना मुझे लड़की होने का एहसास कराती थी. जब मैं 5 साल की थी, तभी से मुझे लड़कियों की तरह रहना पसंद था, लड़कों की तरह नहीं.

पापा मार्केट से मेरे लिए लड़कों वाली कोई ड्रेस ले कर आते तो मैं लड़कियों की डे्रस पहनने की जिद करती थी. मैं लड़कियों के कपड़े पहनना पसंद करती थी. कभी मां या बड़ी बहनें मुझे फ्रौक पहना देती थीं तो उन को उस फ्रौक को उतारना मुश्किल हो जाता था, मैं उन से बच के घर से बाहर भाग जाती थी.

तब शायद मुझे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि मेरी यह इच्छा आगे चल कर मजाक का सबब भी बनेगी. जैसेजैसे मेरी उम्र बढ़ती गई, मेरे अंदर की जो लड़की थी, उस की इच्छाएं भी जवान होती गईं.

जब मैं 14 साल की थी तो किशोरावस्था में कदम रखते ही मेरे चेहरे पर हलकेहलके बाल आने लगे. चेहरे पर ये बाल मुझे किसी अभिशाप की तरह लगने लगे थे. आईने में चेहरा देखती तो बहुत गुस्सा आता था. मेरे पड़ोस में ही मेरे एक भाई जैसे रहते थे. मैं ने उन से इन बालों को हटाने के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हेयर रिमूवर क्रीम लगाओ.

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तब से मैं ने चेहरे पर हेयर रिमूवर क्रीम लगानी शुरू कर दी. मैं खुद ही हमेशा से एक लड़की की तरह दिखना चाहती थी. उम्र का बहुत ही मुश्किल दौर था, जहां एक तरफ मेरी उम्र के लड़के लड़कियों की ओर आकर्षित होते थे, वहीं मैं लड़कियों के बजाय लड़कों की तरफ आकर्षित होती थी.

समझ नहीं आता था कि ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा है, पर मैं ने अपनी भावनाओं को किसी को नहीं बताया. वह इसलिए कि मुझे पता था कि लोग मेरा मजाक बनाएंगे.

मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता था. एक अजीब सी घुटन होती थी. लड़कों से दोस्ती करने का मन होता था. मैं चाहती थी कि स्कूल में लड़कियों के साथ बैठ कर ही लड़कों को निहारूं, उन से बातें करूं, पर कुछ कह पाने की हिम्मत नहीं होती थी. कुछ कहती भी तो मेरी भावनाओं को समझने के बजाय मेरे ऊपर हंसते.

भावनाएं जाहिर न करने की वजह से घर वालों ने एक लड़की से उस की शादी भी कर दी. इस के बाद स्त्री बन कर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए राजेश उर्फ सोनिया पांडेय ने काफी संघर्ष किया.

स्कूल में मिला नया साथी

जब मैं सातवीं क्लास में थी, तभी मेरी दोस्ती योगेश भारती नाम के सहपाठी से हुई. प्यार से लोग उसे बिरजू भी कहते थे. जब बिरजू एडमीशन के बाद क्लास में आने लगा तो उसे देख कर लगा कि बिरजू और मेरी भावनाएं एक जैसी ही हैं. वह भी बिलकुल लड़की जैसा था. हम दोनों घंटों तक अकेले बातें करते, एक साथ स्कूल आते, एक साथ लंच करते. मानो जैसे हमें हमारी खुद की दुनिया मिल गई थी. हम दोनों बहुत खुश रहते थे. इसे ले कर हमारे सहपाठी हमारा मजाक भी बनाते थे. लेकिन जैसे हम दोनों को इस की परवाह ही नहीं थी.

मैं और बिरजू नौंवी क्लास तक साथ पढ़े. उस के बाद मेरा स्कूल बदल गया. मेरा दूसरे स्कूल में एडमीशन हो गया. जिंदगी फिर वैसी हो गई. नए स्कूल के माहौल में खुद को एडजस्ट कर पाना मुश्किल लगता था. इंटरमीडिएट तक मैं ने अपना स्कूली जीवन व्यतीत किया. फिर मैं ने बरेली कालेज में बीए में एडमीशन ले लिया.

कालेज में आई तो लड़कियां मुझे प्रपोज करने लगीं, कई ने तो मुझे प्रेम पत्र भी दिए. मैं ने सब को यही कह कर टाल दिया कि हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं. और उन को क्या बोलती. यह तो कह नहीं सकती थी कि मैं अंदर से एक लड़की हूं.

वैसे भी जिस लड़के को मैं पसंद करती थी, उस से अब तक अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई, करती भी तो वह शायद मेरे ऊपर हंसता, पूरी क्लास को  बताता, सब मेरे ऊपर हंसते. मैं कभी खुद से खुद को मिला नहीं पा रही थी.

मेरे दिमाग में हर पल यही बात घूमती रहती थी कि मैं लड़का क्यों हूं. भगवान ने मुझे इतनी बड़ी सजा क्यों दी. इसी घुटन के साथ मैं कब जवान हो गई, पता ही नहीं चला.

फिर मेरी मुलाकात समाज में कुछ ऐसे लड़कों से हुई जो बिलकुल मेरे जैसी भावना रखने वाले थे. इस से लगने लगा कि चलो इस समाज में मैं ही अकेली ऐसी नहीं हूं, मेरे जैसे दुनिया में और लोग भी हैं.

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जब और बड़ी हुई तो परिवार की जिम्मेदारियों का एहसास हुआ. मेरा परिवार बड़ा था. कमाने वालों में केवल मेरे पिता थे. मेरा बड़ा भाई बिलकुल गैरजिम्मेदार था. इसलिए मैं ने घरघर जा कर ट््यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. बस जिंदगी यूं ही कट रही थी.

कंधों पर आई जिम्मेदारी

अचानक 2002 में मेरे पिता की मृत्यु हो गई. पिता की मृत्यु होने के कारण मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो मेरी मां ने मुझे नौकरी करने को कहा तो मैं ने घर का जिम्मेदार बेटा होने का फर्ज निभाया. 2003 में मुझे इज्जतनगर रेलवे की वर्कशाप में ही तकनीकी विभाग में नौकरी मिल गई. उस समय मैं बीए की पढ़ाई कर रही थी और कत्थक नृत्य का प्रशिक्षण ले रही थी.

मेरा सपना था कि मैं कत्थक नृत्य में एमए करूं और उस के बाद उसी में अपना करियर बनाऊं. लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. मुझे रेलवे के कारखाने में नौकरी मिली, जहां मुझे एक आदमी की भांति ताकत का काम करना पड़ता था.

बड़ेबड़े इंजनों के नट कसना होता था. पर शरीर इन सब को सहन नहीं कर पाता था. सब मजाक बनाते कि देखो कैसा नाजुक लड़का है. मैं उन को कैसे बताती कि मैं तन से न सही लेकिन मन से लड़की हूं, इसलिए शरीर भी वैसा ही ढल गया.

मैं अकेले में बैठ कर खूब रोती थी कि मेरे साथ ये अन्याय क्यों हुआ. कभी मन करता कि मैं नौकरी छोड़ कर कहीं दूर भाग जाऊं, पर घर की जिम्मेदारी पर नजर डालती तो लगता पापा जो मेरे ऊपर जिम्मेदारी छोड़ गए हैं, उसे पूरा करना मेरा फर्ज है.

जैसेतैसे नौकरी करने लगी. पुरुषों से बात करने का मेरा मन नहीं होता था और स्त्रियों से मैं उतनी बात कर नहीं सकती थी क्योंकि उन की नजरों में भी तो मैं एक पुरुष ही थी.

मेरे बड़े भाई का भी विवाह हो चुका था. नौकरी मिलने के बाद मैं ने बड़े भाई को रहने के लिए घर बनवा कर दिया. दोनों छोटी बहनों का विवाह किया. मेरे अंदर की जो लड़की थी, वह अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी. समाज में मर्द बनने का नाटक करतेकरते मुझे खुद से चिढ़ सी होने लगी थी.

वर्ष 2009 में बड़े भाई की अचानक मृत्यु हो गई. वह अपने पीछे पत्नी और 8 साल की बेटी छोड़ गए थे. उन दोनों की जिम्मेदारी भी मेरे कंधों पर आ गई. मेरे अंदर की लड़की पलपल अपनी खुशियों को मन में मार रही थी.

सोचती थी कि काश मेरा एक भाई और होता, जिस के ऊपर सारी जिम्मेदारियां डाल कर मैं कहीं अपनी दुनिया में भाग जाऊं, जहां खुल कर अपनी जिंदगी जी सकूं. अब मेरे अलावा घर में कोई लड़का नहीं था तो मां का, बहनों का और समाज का मुझ पर विवाह करने का दबाव बनाया जाने लगा. घर के लोगों को उम्मीद  थी कि मैं अपने वंश को आगे बढ़ाऊं.

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घर वालों ने कराया विवाह

मेरे अंदर तब इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं खुल कर बता पाऊं कि मैं किसी लड़की के साथ विवाह कर के खुश नहीं रह पाऊंगी. न ही मैं विवाह कर के किसी लड़की की जिंदगी खराब करना चाहती थी. इसी बीच मेरा एक बौयफ्रैंड भी बना, पर समाज के डर से उस ने भी किसी लड़की से विवाह कर लिया.

2-3 सालों तक मैं अपने विवाह का मामला किसी तरह टालती रही. मैं अपने परिवार को अपने बारे में चाह कर भी बता नहीं पा रही थी. तब मैं ने सोचा कि मैं ने अपने परिवार के लिए जहां इतनी कुर्बानियां दी हैं, तो एक कुरबानी और दे देती हूं. शायद मेरा भी वंश बढ़ जाए और साथ ही साथ मैं अपने अंदर की लड़की को भी जीवित रख सकूंगी.

परिवार और समाज को खुश करने के लिए मेरा भी सन 2012 में विवाह हो गया. मैं अंदर से रो रही थी और बाहर से खुश होने का नाटक कर रही थी. रत्ती भर खुशी नहीं थी मुझे अपने विवाह की. सुहागरात के समय भी मैं ने बहुत कोशिश की, लेकिन मुझे अपनी पत्नी के लिए कोई फीलिंग ही नहीं जगी. काली रात की तरह थी वह रात मेरे लिए, कुछ भी नहीं कर सकी.

हमारे संबंध नहीं बन सके. मैं समझ गई कि मैं किसी भी लड़की से संबंध नहीं बना सकती. जब तक मनमस्तिष्क में लड़की के लिए उत्तेजना या कामेच्छा पैदा नहीं होगी, कैसे कोई शारीरिक संबंध बना सकता है. मैं शारीरिक रूप से बिलकुल स्वस्थ थी. ऐसी कोई कमी नहीं थी, जिस से मैं अपने आप को नपुंसक समझती. क्योंकि जब मैं अपने पुरुष साथी के साथ शारीरिक संबंध बनाती तो मेरे शरीर के हर अंग में उत्तेजना होती थी.

मैं उस रात बहुत रोई कि मैं ने यह क्या गलती कर दी, मेरी वजह से एक अंजान बेकसूर युवती की जिंदगी खराब हो गई थी. मेरी वजह से वह समाज की दिखावटी खुशियों की बलि चढ़ गई थी. मुझे खुद पर शर्म आने लगी.

तभी मैं ने फैसला किया कि मैं उस की जिंदगी में खुशियां लाऊंगी. क्योंकि उसे भी खुश रहने का, अपनी जिंदगी खुल कर जीने का हक था. कुछ महीने बीत जाने पर मैं ने धीरेधीरे उसे अपने बारे में बताना शुरू किया. हम अच्छे दोस्त बन गए. मैं ने उसे पूरी तरह से अपनी भावनाओं को खुल कर बताया.

वह बहुत समझदार थी. मैं ने जब उसे बताया कि मैं अपने बारे में सब उस के परिवार को बताने जा रही हूं तो वह डर गई कि उस के परिवार को बहुत ठेस पहुंचेगी और गुस्से में आ कर उस के परिवार वाले उस पर पुलिस केस न कर दें. उस ने मुझे विश्वास दिलाया कि हम दोनों ऐसे ही पूरी जिंदगी काट लेंगे.

उसे भी समाज का डर सता रहा था कि लोग उस के परिवार के बारे में क्याक्या बातें करेंगे. लेकिन मुझे लगने लगा था कि मैं ने अब अगर अंदर से खुद को मजबूत नहीं किया तो उस की और मेरी जिंदगी घुटघुट कर कटेगी या तो वह आत्महत्या कर लेगी या मैं.

मैं ने पत्नी के घर वालों को अपनी सच्चाई बताई तो पहले तो उन्हें बहुत गुस्सा आया, बाद में उन्हें यह जान कर सही लगा कि मैं ने उन से झूठ तो नहीं बोला, ईमानदारी से उन की बेटी की खुशियां चाहती हूं.

2014 में आपसी सहमति से मेरा पत्नी से तलाक हो गया. तलाक के पहले मेरी पत्नी के घर वालों ने मुझ से 8 लाख रुपए लिए, जिस से वे अपनी बेटी का विवाह कहीं और कर सकें. मैं ने वह रकम खुशीखुशी उन्हें दे दी, क्योंकि गलती तो मैं ने ही की थी, उस गलती के लिए यह बहुत छोटी रकम थी. अब मैं फिर से आजाद थी, लेकिन इस के बाद तो मेरी जिंदगी और भी खराब हो गई. लोगों की नजरों में मेरी इमेज खराब हो गई थी. मेरी बहनों ने मुझ से बात करनी तक बंद कर दी. एक मेरी मां थी, जिन्होंने मुझे समझा.

मैं ने सोचा कि अभी तक 32 साल मैं ने परिवार और समाज को खुश करने के लिए निकाल दिए, उस के बाद भी मुझे कुछ हासिल नहीं हुआ. बस फैसला कर लिया कि अब खुद के बारे में सोचना है. नौकरी से मैं ने लंबी छुट्टी ले ली.

मैं पूरी तरह से लड़की बनना चाहती थी, लेकिन लड़की बनने से पहले मैं तीर्थस्थल गया में पिताजी का श्राद्ध करने गई. क्योंकि लड़की बनने के बाद मैं श्राद्ध कर नहीं सकती थी.

उस के बाद मैं ने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया कि कोई डाक्टर मुझे लड़की का रूप दे सकता है कि नहीं. सर्च करने पर पता चला कि दिल्ली में बहुत से डाक्टर हैं, जो हारमोंस और सर्जरी के जरिए एक लड़के को लड़की जैसा शरीर दे देते हैं.

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औपरेशन के बाद बनी स्त्री

काफी डाक्टरों के बारे में जानने के बाद मुझे दिल्ली में पीतमपुरा के एक हौस्पिटल में कार्यरत डा. नरेंद्र कौशिक सही लगे. मैं डा. कौशिक से मिली और पूरी बात बताई. उन्होंने मुझ से बात कर के जाना कि मैं इस इलाज के लिए किस हद तक तैयार हूं.

मुझ से बात कर के जब वह संतुष्ट हुए, तब उन्होंने मेरा इलाज शुरू किया. यह सन 2016 की बात है. मैं ने हारमोंस की गोलियां और इंजेक्शन लेने शुरू कर दिए. लगभग 2 साल तक हारमोंस लेने के बाद मेरे शरीर में काफी बदलाव आ गए. इस पर दिसंबर 2017 में मेरी सैक्स चेंज की सर्जरी हुई.

डा. कौशिक के अलावा 2 और डाक्टर औपरेशन के समय मौजूद रहे. सर्जरी करने में लगभग 8 घंटे का समय लगा. इस पूरे इलाज का कुल खर्च करीब 7 लाख रुपए आया था. इलाज के बाद मैं पूरी तरह से लड़की बन गई थी. इस के बाद तो जैसे मेरी खुशियों को पंख लग गए. दूसरा जन्म हुआ था यह मेरा सोनिया पांडेय के रूप में. राजेश पांडेय नाम के लड़के की पहचान हटा कर मैं सोनिया पांडेय नाम की पहचान से जिंदगी जीने के लिए आगे बढ़ने को तैयार थी.

बहुत खुश हूं जो खुद को पा लिया मैं ने. आत्मा और शरीर एक हो चुके थे मेरे. समय के साथसाथ समाज का नजरिया बदला और मुझे समाज से प्यार और इज्जत भी मिलने लगी है. नए मित्र बन गए हैं, जो हर कदम पर मेरे साथ खड़े हैं. लोगों से मिल कर बताती हूं कि खुद को पहचानना सीखो. यह जिंदगी मिली है तो इसे खुल के जियो और जीने दो.

अब एक नई जंग मेरा इंतजार कर रही थी. मैं खुद को पाने की लड़ाई में खुद से, परिवार से और समाज से तो लड़ चुकी थी, अब लड़ाई थी अपनी कानूनी पहचान पाने की क्योंकि मेरे आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड और सर्विस रिकौर्ड में मेरा नाम राजेश पांडेय ही था.

2018 में मैं ने रेलवे के प्रशासनिक अधिकारियों को अपने जेंडर में परिवर्तन करने के लिए एप्लीकेशन दी तो उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि रेलवे में ऐसा कोई नियम नहीं है, जिस के तहत रिकौर्ड में लिंग परिवर्तन कराया जा सके. इस के बाद मैं ने पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर हैडक्वार्टर में 80 पेज की एक फाइल बना कर भेजी, जिस में उन्हें बताया गया कि भारत में कोई भी नागरिक स्वेच्छा से अपना लिंग चुनने के लिए स्वतंत्र है.

मैं औफिस के चक्कर लगाती रही, क्योंकि मुझे जवाब चाहिए था रेलवे के अधिकारियों से. अगर रेलवे बोर्ड मेरे आवेदन को निरस्त कर देता तो मैं अपनी पहचान पाने के लिए हाईकोर्ट भी जाने को तैयार थी.

बाद में इज्जतनगर के मुख्य कारखाना प्रबंधक एवं मुख्य कार्मिक अधिकारी ने मेरे मामले में दिलचस्पी ली. जिस में मेरे सीडब्ल्यूएम राजेश कुमार अवस्थी की मुख्य भूमिका रही.

तब कहीं जा कर सितंबर, 2019 में रेलवे ने मेरा मैडिकल कराया. मार्च 2020 में रिकौर्ड में मेरा नाम और लिंग बदल कर नाम सोनिया पांडेय कर दिया. अब मैं बहुत खुश हूं. मेरी अपनी आगे की जिंदगी में ईमानदारी और सम्मान से जीने की जंग जारी है.

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