Imlie: नहीं मिलेगी आदित्य की डेडबॉडी, आएगा ये इमोशनल ट्रैक

टीवी सीरियल इमली (Imlie) में कहानी एक नयी मोड़ ले रही है. शो में आपने देखा कि सत्यकाम ने आदित्य को गोलियों से छलनी कर दी है. और वह इमली से कहता है कि आदित्य को हमेशा-हमेशा के लिए भूल जाए. इमली के अपकमिंग एपिसोड में इमोशनल ट्रैक आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में ये दिखाया जाएगा कि आदित्य की मौत की खबर सुनकर उसके घरवालों के होश उड़ जाएंगे. उसकी मां पूरी तरह टूट जाएगी. वह इमली के गले लगकर काफी इमोशनल हो जाएगी लेकिन जैसे ही उन्हें एहसास होगा कि वो इमली के गले लगी हैं, तभी वह उससे अलग हो जाएगी.

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तो दूसरी करफ निशांत बताएगा कि पुलिस किसी की डेडबॉडी लेकर आई है.  ये बात सुनने के बाद सब हैरना रह जाएंगे. किसी की भी हिम्मत डेडबॉडी की ओर देखने की नहीं होगी. तभी आदित्य के ताऊ कहेंगे कि ये बॉडी आदित्य की नहीं है.

 

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शो में ये भी दिखया जाएगा की इतना सबकुछ होने के बावजूद इमली हिम्मत नहीं हारेगी. वह आदित्य की मां से वादा करेगी कि वो उनके बेटे को सही-सलामत घर वापस लाएगी.  इमली ये भी कहेगी कि वो अपने बेटे के लिए शगुन की खीर जरूर बना कर रखें. वह जल्द ही आदित्य को वापस लेकर घर आएगी.

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किंजल करेगी राखी दवे के ऑफिस में चोरी! Anupamaa मिलाएगी अनुज कपाड़िया से हाथ

रूपाली गांगुली और सुधांशु पांडे स्टारर सीरियल अनुपमा में इन दिनों महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा का कॉलेज फ्रेंड अनुज कपाड़िया की एंट्री हो चुकी है. इस एंट्री से कहानी में कई दिलचस्प मोड़ आने वाला है. अनुपमा की लाइफ में कई बड़े बदलाव आने वाले हैं. तो आइए बताते हैं शो के नए ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि  काव्या डील फाइनल करने के लिए अनुज कपाड़ियासे मिलने जाती है लेकिन उसकी मुलाकात नहीं हो पाती. घर लौटकर पता चलता है कि वो डील क्रैक नहीं कर पाए हैं. इस वजह से एक नई मुसीबत पैदा हो जाती है. क्योंकि काव्या, राखी दवे को पहले ही चेक दे चुकी है, जो कि अब बाउंस होने वाला है.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि किंजल अपने परिवार को बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाएगी. वह चुपके से चेक राखी के ऑफिस से उठा लेगी. तो ऐसे में राखी शाह परिवार को उसके पैसे लौटाने का एक महीने का टाइम देगी.

 

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तो उधर किंजल शाह हाउस में सबको बताएगी कि उसने हल निकाल लिया है. यह बात सुनकर  सबको राहत मिलेगी. तो दूसरी तरफ देविका अनुपमा को रीयूनियन में चलने के लिए कहेगी. किंजल भी उसे समझाएगी कि  उसे रीयूनियन में जाना चाहिए, जिसके बाद अनुपमा तैयार हो जाएगी.

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शो में ये भी दिखाया जाएगा कि जब अनुपमा रेडी होकर आएगी तो वनराज उसे देखता रह जाएगा. कॉलेज के रीयूनियन पार्टी में अनुपमा और अनुज की मुलाकात होगी. पार्टी में अनुज आगे आकर अनुपमा से हाथ मिलाएगा और उसे बताएगा कि वो ही अनुज कपाड़िया है.

अनुपमा और अनुज कपड़िया को साथ में देखकर वनराज को जबरदस्त झटका लगेगा. वनराज को सच पता चल जाएगा कि अनुपमा और अनुज एक-दूसरे को पहले से जानते हैं.  तो उधर देविका अनुज और अनुपमा को पास लाने का पूरी कोशिश करती दिखाई देगी.

 

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पार्टी में अनुपमा की सैंडल निकल जाएगी तो ऐसे में अनुज  उसे अपने हाथों से सैंडल पहनाएगा. अनुपमा, अनुज को थैक्यू कहेगी. अनुपमा जैसे ही आगे बढ़ेगी वो उसे रोककर कहेगा कि वो उसका क्लासमेट अनुज कपाड़िया है. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुपमा- अनुज के नजदिकियों से वनराज पर क्या असर होगा.

द चिकन स्टोरी- भाग 2: क्या उपहार ने नयना के लिए पिता का अपमान किया?

लेखक- अरशद हाशमी

अभी मेरी सांस में सांस वापस आई भी नहीं थी कि अंदर से अंकलजी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. ‘‘यह राक्षस फिर आ गया इस घर में.’’ अब तो मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई. मु?ो लगा, अंकलजी को शायद पता चल गया. मैं तो उठ कर भागने ही वाला था कि अंदर से एक थैली उड़ती हुई आई और बाहर आंगन में आ कर गिरी. उस में से ढेर सारा प्याज निकल कर चारों तरफ फैल गया.

‘‘तु?ो कितनी बार मना किया है लहसुनप्याज खाने को, सुनता क्यों नहीं,’’ अंकलजी आग्नेय नेत्रों से उपकार को घूरते हुए बोले. अंकलजी को देख कर मु?ो घिग्गी बंध गई, लगा कि आज हम दोनों भस्म हुए ही हुए.

उपकार मुंह नीचे किए चुपचाप बैठा था. मु?ो काटो तो खून नहीं. और अंकलजी बड़बड़ाते हुए घर से बाहर चले गए.

मैं ने तुरंत टेबल के नीचे से डब्बा निकाला और बाहर की तरफ जाने लगा.

‘‘यह डब्बा तो छोड़ता जा, कल ले जाना,’’ उपकार की दबीदबी सी आवाज आई.

‘‘इतना सुनने के बाद तु?ो अभी भी चिकन खाना है,’’ मैं हैरत में डूबा हुआ उपकार को देख रहा था.

जवाब में उपकार ने मेरे हाथ से डब्बा ले लिया. उसी समय अंकलजी वापस आए और मैं उन को नमस्ते कर के घर से निकल गया.

पूरे एक हफ्ते तक मैं ने उपकार के घर की तरफ रुख न किया. पूरे एक साल तक मैं ने चिकन को हाथ भी नहीं लगाया. घर वाले हैरान थे कि मु?ो क्या हो गया. कहां मैं इतने शौक से चिकन खाता था और कहां मैं चिकन की तरफ देखता भी नहीं.

मैं अकसर उपकार को सम?ाता कि एक ब्राह्मण के लिए मांसाहार उचित नहीं है. साथ ही, उस को अपने पिताजी की भावनाओं का सम्मान करते हुए लहसुनप्याज भी नहीं खानी चाहिए. लेकिन, उस पर कोई असर हो तब न. उलटे, उस को तो मेरे घर का चिकन इतना अच्छा लगा कि कभी भी मेरे घर आ जाता और मां से चिकन बनवाने की फरमाइश कर बैठता. छोटी बहन नयना तो चिकन बहुत ही स्वादिष्ठ बनाती थी.

मां कहती थी, ऐसा स्वादिष्ठ चिकन पूरे महल्ले में कोई नहीं बनाता था. पता नहीं मां ऐसा, बस, अपनी बेटी के मोह में कहती थी या सचमुच नयना सब से अच्छा चिकन बनाती थी. हमें तो महल्ले की किसी कन्या के हाथ का बना चिकन खाने का मौका मिला नहीं था, इसलिए नयना का बनाया चिकन ही हमारे लिए सब से अच्छा था.

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यों ही समय कटता चला गया और फिर हमारी ग्रेजुएशन पूरी हो गई. उपकार ने पूरी यूनिवर्सिटी में टौप किया था. मैं भी उस के साथ पढ़पढ़ कर ठीकठाक नंबर से पास हो गया था. उपकार ने तो अपने ही कालेज में एमएससी में ऐडमिशन ले लिया था जबकि मु?ो दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. महीने में एक बार ही मैं घर आ पाता. उपकार मु?ा से मिलने आ जाता और फिर चिकन खा कर ही जाता.

देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. उपकार को अपने ही कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. बधाई देने के लिए मैं उस के घर गया, तो उस ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया. मु?ो लगा जैसे वह मु?ा से कुछ कहना चाह रहा है लेकिन कह नहीं पा रहा था.

‘‘क्या बात है, कुछ कहना चाह रहे हो?’’ मैं ने उस से पूछ ही लिया.

‘‘हां, नहीं… कुछ नहीं.’’ मेरे पूछने पर वह थोड़ा हड़बड़ा गया.

‘‘कालेज में सब ठीक तो है?’’ मु?ो लगा शायद उसे नई नौकरी में एडजस्ट करने में कोई दिक्कत हो रही हो.

‘‘कालेज में तो सब ठीक है, असल में, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं, पर डरता हूं कि पता नहीं तुम क्या सोचो,’’ उस ने थोड़ी हिम्मत जुटाई.

‘‘अरे, तो बोल न. अगर कुछ चाहिए तो बता. बस, मु?ा से चिकन लाने को मत बोलना,’’ मैं बोल कर जोर से हंस दिया.

‘‘मैं चिकन नहीं, चिकन वाली को इस घर में लाना चाहता हूं,’’ उपकार ने धीमी सी आवाज में कहा.

‘‘मतलब?’’ मैं सच में कुछ नहीं सम?ा था.

‘‘मैं नयना से शादी करना चाहता हूं, अगर तुम को कोई आपत्ति न हो.’’ आखिर उस ने हिम्मत कर के बोल ही दिया.

‘‘नयना, अपनी नयना.’’ मु?ो उपकार की बात सुन कर एक ?ाटका सा लगा, लेकिन अगले ही पल मु?ो लगा नयना के लिए उपकार से अच्छा लड़का और कहां मिलेगा.

‘‘हां, हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं,’’ उपकार ने नजरें नीची किए हुए कहा.

‘‘सच कहूं तो मु?ो तो बहुत खुशी होगी अगर नयना को इतना अच्छा घरपरिवार मिल जाए,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के आगे अंकलजी यानी उपकार के पिताजी का चेहरा घूम गया.

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‘‘लेकिन तुम्हारे पिताजी? वे तो लहसुनप्याज को भी घर में नहीं आने देते, भला एक मांसाहारी, गैरब्राह्मण लड़की को अपनी बहू बनाने के लिए कैसे तैयार होंगे,’’ मैं ने अपनी शंका उपकार के सामने रखी.

‘‘उन की चिंता तुम मत करो. उन को मैं किसी तरह मना ही लूंगा. मु?ो पहले तुम्हारी अनुमति की आवश्यकता थी,’’ उपकार ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘मेरी अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है. नयना और तुम दोनों सम?ादार हो. मु?ो पूरा विश्वास है तुम दोनों की आपस में खूब बनेगी,’’ मैं एक बड़े भाई की तरह ज्ञान दे रहा था.

फिर घर आ कर मैं ने पहले मां व पिताजी से नयना और उपकार के बारे में बात की. मां तो बहुत प्रसन्न थीं, पिताजी यद्यपि थोड़े सशंकित थे कि एक कट्टर ब्राह्मण परिवार नयना को कैसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार होगा. लेकिन मैं ने उन को विश्वास दिलाया कि शादी उपकार के पिताजी की सहमति के बाद ही होगी.

फिर एक दिन उपकार ने मौका देख कर अपने पिताजी से नयना के बारे में बात की. जब उस ने बताया कि लड़की ब्राह्मण नहीं है तो वे थोड़े निराश हो गए. जानते तो थे ही कि उपकार जातपांत में विश्वास नहीं रखता, इसलिए उन्होंने भी अपने मन को सम?ा लिया.

लेकिन अगले ही पल उन का सवाल था, ‘‘लड़की मांसाहारी तो नहीं है?’’

अब उपकार ठहरा आज के जमाने का महाराजा हरिश्चंद्र, बता दिया सच. सुनते ही पिताजी हत्थे से उखड़ गए.

‘‘लड़की ब्राह्मण नहीं है, मैं यह तो स्वीकार कर सकता हूं, लेकिन एक मांसाहारी लड़की को मैं अपनी बहू स्वीकार नहीं कर सकता,’’ पिताजी अपने रौद्र रूप में आ गए थे.

‘‘आप एक बार उस से मिल तो लीजिए. वह एक बहुत अच्छी लड़की है,’’ उपकार ने पिताजी को मनाने की कोशिश की.

‘‘चाहे वह कितनी भी अच्छी हो और कितनी भी सुंदर हो, मैं तुम्हें उस से शादी की अनुमति नहीं दे सकता,’’ पिताजी ने उपकार से साफसाफ बोल दिया.

‘‘लेकिन मैं उस के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगा,’’ अब उपकार को भी थोड़ा गुस्सा आने लगा था.

‘‘ठीक है, तो जाओ और कर लो उस से शादी. लेकिन उस से पहले तुम्हें मु?ो और इस घर को त्यागना होगा,’’  उपकार के पिताजी ने हाथ उठा कर उपकार को आगे कुछ भी बोलने से रोक दिया और उठ कर अपने कमरे में चले गए.

यहीं आ कर उपकार अपने को बड़ा असहाय पा रहा था. वह जानता था कि उस के पिताजी ने उस को किस तरह पाला है. मां के देहांत के बाद जब सभी रिश्तेदार उन से दूसरी शादी के लिए कह रहे थे, उन्होंने कहा था कि वे अपना सारा जीवन उपकार के लिए बिता देंगे. उन्होंने कभी भी उपकार को किसी चीज की कमी नहीं होने दी, कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया. लेकिन आज जब उपकार को पसंद की जीवनसाथी का साथ चाहिए था, तो उस के पिताजी किसी भी तरह तैयार नहीं थे.

उपकार ने एकदो बार फिर पिताजी को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.  बड़ी मुश्किल थी. उधर उपकार, इधर नयना – दोनों दुखी और निराश थे.

‘‘यार, कोई रास्ता तो बताओ पिताजी को मनाने का. वे तो मेरी बात सुनने को ही तैयार नहीं हैं,’’ एक दिन उपकार मु?ा से मिला और बोला.

‘‘यार, मैं ने कहीं पढ़ा था अगर लड़की के पिता को मनाना हो तो एक काले कपड़े पर मिट्टी का पुतला रख कर उस पर लाल धागा बांध कर लालमिर्च और नारियल चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है, लेकिन मु?ो यह नहीं पता कि इस से लड़के के पिता भी मानेंगे या नहीं,’’ मैं ने उस को एक टोटके के बारे में बताया.

‘‘यार, तुम को मजाक सू?ा रही है. यहां मैं टैंशन लेले कर गंजा न हो जाऊं,’’ उपकार ने मु?ो घूरते हुए कहा.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा. अब तुम न मानो तो तुम्हारी मरजी,’’ मैं ने सुरेश के मशहूर गोलगप्पे मुंह में डालते हुए कहा

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अधिकारियों के निर्देश पर जश्न व हरन की गुमशुदगी के मामले को गलत नीयत से हुए अपहरण की धारा में दर्ज कर लिया गया. मामले का खुलासा करने के लिए थाना खेड़ी गंडियां इंचार्ज कुलविंदर सिंह के नेतृत्व में थाने के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की टीम गठित कर दी गई.

जिस के बाद पुलिस ने दीदार सिंह के आसपड़ोस के दुकानदारों से पूछताछ तेज कर दी. पड़ोसियों से भी पूछताछ कर ली गई. लेकिन किसी ने भी इस बात की तस्दीक नहीं की कि दोनों बच्चे उन के यहां कोल्डड्रिंक लेने आए थे.

एक बच्चे की मिली लाश

पुलिस ने दीदार सिंह के परिवार की कुंडली भी खंगालनी शुरू कर दी. दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह के3 बच्चे हैं. सब से बड़ी बेटी है गुरमेज कौर जिस की शादी हो चुकी है. छोटा भाई जसंवत सिंह भी शादीशुदा है. जिस घर में दीदार अपनी पत्नी मंजीत कौर व दोनों बेटों हरन व जश्न के साथ रहता है वह उस का पैतृक मकान है.

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दोनों बेटों की शादी के बाद दर्शन सिंह ने मकान 2 हिस्सों में बांट दिया. दोनों भाई अपने परिवारों के साथ अपनेअपने हिस्सों में रहने लगे. दीदार सिंह और जसवंत सिंह दोनों ही पेशे से ड्राइवर थे.

दीदार पटियाला की एक बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर था और ज्यादा समय घर के बाहर ही रहता था. वैसे दोनों भाइयों और उन के परिवार अलग जरूर रहते थे, लेकिन उन के बीच भाईचारे और प्यार की कोई कमी नहीं थी.

पुलिस को दुश्मनी के बिंदु पर जांच करने के बाद कोई सुराग नहीं मिला. जांच चल ही रही थी कि 27 जुलाई, 2019 को भाखड़ा नहर नरवाना ब्रांच में करीब 6-7 साल के एक बच्चे का शव सड़ीगली अवस्था में तैरते हुए पुलिस ने बरामद किया.

पुलिस ने जब आसपास के इलाकों में इस उम्र के लापता बच्चों के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि दीदार सिंह के छोटा बेटा हरनदीप सिंह भी इसी उम्र का था.

थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह ने परिवार वालों को बुलवा कर जब शव की शिनाख्त का प्रयास किया तो उन्होंने शव को पहचानने से ही इनकार कर दिया.

दरअसल शव इतनी बुरी तरह सड़गल गया था कि उस में पहचान करने के लिए कोई चिह्न ही नहीं बचा था. बहरहाल पुलिस ने शव को बिना पहचान के ही डीएनए टेस्ट के लिए उस का सैंपल ले कर मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया.

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दरअसल, दीदार सिंह को यकीन ही नहीं था कि उस के बच्चे की कोई हत्या भी कर सकता है. इसीलिए उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि भाखड़ा नहर के नरवाना इलाके में जो शव बरामद हुआ है वह उन के बेटे का हो सकता है.

इधर खेड़ी प्रभारी कुलविंदर सिंह को लगने लगा कि अगर नहर से एक बच्चे का शव बरामद हो गया है तो निश्चित ही दूसरा शव भी नहर में ही मिलेगा.

लिहाजा उन्होंने उच्चाधिकारियों से अनुमति ले कर तैराक व गोताखोरों को बुला कर भाखड़ा नहर के खेड़ी गंडिया से लगे 5 किलोमीटर इलाके में दूसरे शव की तलाश शुरू कर दी.

आखिरकार 4 अगस्त, 2019 को भाखड़ा नहर से करीब 10 साल के एक और बच्चे  का सड़ागला शव बरामद हुआ. उस की उम्र दीदार सिंह के बडे़ बेटे जशनदीप सिंह जितनी थी. लेकिन इस बार बच्चे के हेयरस्टाइल, काला धागा व कपड़ों को देख कर दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह ने उसकी पहचान अपने बडे़ पोते जश्न के रूप में कर दी.

अब दीदार सिंह की समझ में भी यह बात आ गई थी कि अगर बड़े बेटे का शव नहर में मिला है तो जाहिर है पहले जो शव मिला था वह छोटे बेटे का ही होगा.

आखिरकार 5 अगस्त को दीदार सिंह के परिवार ने दोनों बच्चों की लाश पहचानने व उन के शव अपनी सुपुर्दगी में लेने की काररवाई पूरी कर दी. उसी दिन दोनों बच्चों के शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सवाल था कि दीदार के दोनों बच्चों की मौत नहर में डूबने से हुई थी या उन्हें  किसी ने नहर में ले जा कर धकेल दिया था. दीदार का तो कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था जो ऐसा कर सके. आखिर कौन ऐसा शख्स हो सकता है.

बच्चों का अंतिम संस्कार होने के बाद पुलिस ने दीदार सिंह से एक बार फिर पूछताछ की और उस से ऐसे लोगों के बारे में जानकारी ली जो उस के बच्चों को अपहरण कर हत्या कर सकते थे.

लेकिन दिमाग पर पूरा जोर डालने के बाद भी दीदार सिंह या उन का परिवार किसी ऐसे शख्स के बारे में नहीं बता सका, जिस पर शक किया जा सके.

धीरेधीरे वक्त तेजी से गुजरने लगा. 17 अगस्त, 2019 को पटियाला के एसएसपी विक्रमजीत दुग्गल ने हत्या की आशंका को देखते हुए एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम गठित कर दी, जिस में डीएसपी (घनौर) जसविंदर सिंह टिवाणा, डीएसपी (हैडक्वार्टर) गुरदेव सिंह धालीवाल तथा थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह को शामिल किया गया.

इस बीच अक्तूबर, 2019 को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से साफ हो गया कि बच्चों की मौत डूबने से हुई थी.

इस मामले में दर्ज अपहरण के केस को दोनों बच्चों के शव मिलने के बाद अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया गया था. चूंकि इस मामले में कोई खास जानकारी मिल नहीं रही थी, लिहाजा पुलिस केवल धूल में लट्ठ मारती रही.

वक्त तेजी से गुजरता चला गया. पहले दिन बीते, फिर महीने बीतने लगे. दीदार सिंह थाने से ले कर एसआईटी के अफसरों और उच्चाधिकारियों के सामने अपने बच्चों के कातिलों का सुराग जल्द लगाने के लिए धक्के खाता रहा.

इधर इलाके के विधायक व सांसद भी पुलिस पर दबाव देते रहे. पुलिस अपने काम में कुछ कदम आगे बढ़ती, इस से पहले ही मार्च 2020 में कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लौकडाउन लग गया.

5 महीने तक लौकडाउन लगा रहा, जिस कारण पुलिस की जांच जहां की तहां फाइलों में कैद हो कर रह गई. इस दौरान एक साल का वक्त गुजर चुका था. दिसंबर, 2020 में एसएसपी दुग्गल ने हरन व जश्न की जांच के मामले में गठित हुई एसआईटी के इंचार्ज डीएसपी घनौर जसविंदर सिंह टिवाणा को बुला कर जांच को तेजी से आगे बढ़ाने के निर्देश दिए.

अगले भाग में पढ़ें- घटनास्थल से पलटी हत्याकांड की थ्यौरी

गांव की औरतें: हालात बदले, सोच वही

राज कपूर ने साल 1985 में फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाई थी, जो पहाड़ के गांव पर आधारित थी. इस में हीरोइन मंदाकिनी ने गंगा का किरदार निभाया था. फिल्म का सब से चर्चित सीन वह था, जिस में मंदाकिनी  झरने के नीचे नहाती है. वह एक सफेद रंग की सूती धोती पहने होती है. पानी में भीगने के चलते उस के सुडौल अंग दिखने लगते हैं.

उस दौर में गांव की औरतों का पहनावा तकरीबन वैसा ही होता था. सूती कपड़े की धोती के नीचे ब्लाउज और पेटीकोट पहनने का रिवाज नहीं था. इस की वजह गांव की गरीबी थी, जहां एक कपड़े में ही काम चलाना पड़ता था.

गांव को ले कर तमाम दूसरी फिल्मों में भी ऐसे सीन देखने को मिल सकते हैं. ‘मदर इंडिया’, ‘शोले’, ‘नदिया के पार’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘तीसरी कसम’, ‘लगान’ जैसी तमाम फिल्मों में गांव के सीन दिखते हैं.

इन फिल्मों को देखने के बाद आज के गांव देखेंगे तो लगेगा कि गांव बेहद बदल गए हैं. अब गांव की लड़कियों को जींस, स्कर्ट, टौप में देख सकते हैं.

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फिल्म ‘नदिया के पार’ जैसे सीन अब गांवों में नहीं दिखते हैं. न वैसा पहनावा दिखता है और न ही वैसी बोली. 21वीं सदी के गांव ऊपर से देखने में

बहुत बदले दिखते हैं, विकसित दिखते हैं, पर अब वहां के लोगों की सोच में कट्टरपन आ गया है, जिस की वजह से गांव पहले के मुकाबले आज ज्यादा पिछड़े दिखने लगे हैं.

सोच में बढ़ रहा कट्टरपन

देश के ज्यादातर गांवों में पिछले 20-25 साल के मुकाबले हालात बदले हुए दिख रहे हैं. गांव वालों के पहनने के कपड़े बदल गए हैं. पहले की तरह कच्चे मकान कम दिखते हैं. गांव की गलियों में खड़ंजे लग गए हैं, जिस की वजह से गांव की गलियां पक्की दिखने लगी हैं. गांव की दुकानों में पैकेटबंद सामान मिलने लगे हैं. चाय, छाछ और दूध की जगह कोल्डड्रिंक पीने का चलन बढ़ गया है.

गांव के करीब तक पक्की सड़कें पहुंच गई हैं. शादीब्याह और दूसरे मौकों पर होने वाली रौनक बढ़ गई है. गांव में सरकारी स्कूल हैं, पर उन में पढ़ने वाले बच्चे कम हैं. प्राइवेट स्कूलों का चलन बढ़ गया है.

पर अगर नहीं बदली है तो गांव के रहने वालों की सोच. इस सोच में जाति और धर्म के लैवल पर कट्टरपन और छुआछूत पहले के मुकाबले बढ़ गई है. एकदूसरे के प्रति सहयोग की भावना कम हो गई है.

गांव में चौपालें अब लगती नहीं दिखती हैं. एकएक गांव में कईकई गुट बन गए हैं. नई उम्र के लोग गांव में कम दिखते हैं. गांव की जगह कसबों के बाजारों और शहरों में लोग काम करने चले जाते हैं.

पहले के लोग कम पढ़ेलिखे होते थे, पर सम झदार और सहनशील होते थे. इस वजह से गांव में  झगड़े कम होते थे और जब होते थे तो आपस में मिलबैठ कर लोग सुल झा लेते थे. पंचों का कहना सभी मानते थे. पर अब जब तक कोई मसला थाने और तहसील तक नहीं पहुंचता है, तब तक वह हल नहीं होता है.

इस की वजह से थाने और तहसील की नजर में गांव दुधारू पशु जैसे हो गए हैं. अगर गांव के  झगड़े वहीं निबट जाएं तो पुलिस और वकील पर खर्च होने वाला इन का पैसा भी बचेगा.

गांवदेहात में दलित और ऊंचे तबके के लोगों के बीच आपसी दुश्मनी में दलित ऐक्ट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ गया है. इस से समस्या का समाधान नहीं होता है. पुलिस जांच के नाम पर ज्यादा पैसा मांगती है. कई बार दलित ऐसे  झगड़ों में मोहराभर होते हैं. दलित ऐक्ट लगने से जमानत जल्दी नहीं मिलती. आरोपी को ज्यादा दिन जेल में रहना पड़ता है.

एसपी रैंक के एक अफसर नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘‘गांव के  झगड़ों में औरतें और दलित मोहरा बन कर रह गए हैं. लोग दलित और औरतों को आगे कर के दलित ऐक्ट और बलात्कार के  झूठे मुकदमे लिखा कर अपने विरोधी को परेशान करने लगे हैं.’’

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पहनावा बदला, सोच नहीं

पुराने समय में गांव की ज्यादातर औरतें सूती धोती पहनती थीं. इस के नीचे वह पेटीकोट या ब्लाउज नहीं पहनती थीं. पैरों में चप्पल कम ही होती थीं. उम्र के साथ सफेद होते बाल दिखने लगते थे. साबुन, क्रीम, पाउडर का इस्तेमाल कम होता था. गांव की औरतें बाल नहीं कटाती थीं. वे हाटबाजार में खरीदारी करने नहीं जाती थीं. घर के बाहर कम निकलती थीं, परदा प्रथा ज्यादा थी.

अब हालात में बदलाव दिखता है. औरतें पहले से भी ज्यादा कट्टर हो गई हैं. करवाचौथ की पूजा पहले गांवदेहात में कम होती थी. अब ज्यादा होने लगी है. गांवगांव में देवी की पूजा ज्यादा होने लगी है. प्रवचन और भजन होने लगे हैं. गांव में ऐसे मौकों पर सब से ज्यादा औरतें ही वहां दिखती हैं.

गांव की औरतें पहले खेतों में काम और पशुओं की देखभाल करती थीं, पर अब वे यह नहीं करती हैं. हां, भजन और प्रवचन सुनने में समय जरूर गंवाने लगी हैं. पढ़ीलिखी लड़कियां भी पूजापाठ में लगी रहती हैं. अच्छा दूल्हा मिल जाए, अच्छी शादी हो जाए, इस के लिए सावन के 16 सोमवार का व्रत रखने लगती हैं.

धार्मिक कहानियों में बताया जाता है कि जो लड़की सावन के 16 सोमवार  का व्रत रखेगी, उसे अच्छा दूल्हा यानी वर मिलेगा. पुराणवादियों ने यह सोच इसलिए फैलाई है, ताकि नौजवान पीढ़ी दिमागी तौर से उन की गुलाम बनी रहे.

गांव की लड़कियों के जागरूकता कार्यक्रमों में हिस्सा लेने वाली शालिनी माथुर कहती हैं, ‘‘गांव की लड़कियों की सोच में कट्टरपन आ गया है. वे यह सोचती हैं कि पूजापाठ और धार्मिक कर्मकांड से ही उन का भला होगा. पिछले कुछ सालों में यह सोच तेजी से बढ़ रही है.

‘‘सब से ज्यादा कड़वाहट तो हिंदूमुसलिम को ले कर बढ़ी है. पहले गांव के लोग ईद हो या होलीदीवाली, सब साथ मिल कर मनाते थे, पर अब ये त्योहार भी आपसी दूरियों को कम नहीं कर पा रहे हैं.

‘‘परेशानी की बात यह है कि कट्टरपन का विरोध करने वालों की संख्या में कमी आती जा रही है. लव जिहाद जैसे मसले ये दूरियां और भी ज्यादा बढ़ा रहे हैं. हिंदूमुसलिम लड़केलड़की की दोस्ती को केवल लव जिहाद के रूप में देखना बेहद खतरनाक सोच बन गई है.’’

सेहत पर भारी पुरानी सोच

माहवारी को आज भी गंदगी से जोड़ कर देखा जाता है. आज भी माहवारी होने पर औरतें अछूत सी हो कर रह जाती हैं. उन्हें नहाने तक नहीं दिया जाता है. लोगों से मिलनेजुलने की भी मनाही होती है.

माहवारी के दिनों में औरतों को कहा जाता है कि वे अचार को न छुएं. उन के ऐसा करने से अचार के खराब हो जाने का खतरा हो जाता है. माहवारी में औरतों को खाना बनाने और रसोई में जाने से रोका जाता है.

महिलाओं में माहवारी सुरक्षा को ले कर जागरूकता अभियान में लगी अंजलि श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘गांव में माहवारी को ले कर पुरानी सोच अभी भी कायम है. गांव की 70 फीसदी औरतें माहवारी के दिनों में कपड़ा इस्तेमाल करती हैं. बहुत सारी कोशिशों के बाद भी वे सैनेटरी पैड इस्तेमाल करने को तैयार नहीं हैं.

‘‘बहुत सारे ऐसे घर हैं, जो पक्के बने हैं. जिन की माली हालत अच्छी दिखती है. जिन घरों में पैसों को ले कर कोई परेशानी नहीं है, वहां की औरतें भी सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं.

‘‘पहले की औरतें इसलिए इस्तेमाल नहीं करती थीं, क्योंकि उन्हें जानकारी नहीं होती थी. आज की औरतों को टैलीविजन और दूसरे जरीयों से यह पता तो चल जाता है कि सैनेटरी पैड को इस्तेमाल न करना खराब होता है, इस के बाद भी वे कपड़ा इस्तेमाल करती हैं. इस से उन के अंगों में इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. सफेद पानी की समस्या और खुजली भी होने लगती है.

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‘‘कई बार ऐसी औरतें इंफैक्शन होने के चलते बच्चे पैदा करने लायक नहीं रहती हैं. इस के बाद भी वे अपनी सेहत की चिंता नहीं करती हैं.’’

पढ़ाईलिखाई पर नहीं जोर

पहले गांव के लड़केलड़कियां इसलिए पढ़ते थे कि उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी. पर आज के दौर में सरकारी और निजी दोनों ही किस्म की नौकरियां खत्म सी हो गई हैं. ऐसे में गांव के लड़केलड़कियां पढ़ाई की उम्र में ही मेहनतमजदूरी करने शहर चले जाते हैं, जहां वे घरेलू नौकर के रूप में भी काम करने लगते हैं.

कई बार पूरे के पूरे परिवार अपने गांव से दूर शहर में घरेलू नौकरी करने लगते हैं. लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में तमाम ऐसे अपार्टमैंट्स बने हैं, जहां सैकड़ों की तादाद में औरतें घरेलू काम करती मिल जाती हैं.

वे खाना बनाने और साफसफाई करने के एवज में हर घर से तकरीबन 1,500 रुपए से ले कर 2,500 रुपए तक हर महीना लेती हैं. ऐसे में बहुत सी तो 15,000 से 20,000 रुपए महीना कमा लेती हैं. वे अपनी छोटी उम्र की लड़कियों को भी स्कूल भेजने की जगह पर घरेलू काम पर लगा देती हैं.

35 साल उम्र की शिवानी अपनी  12 साल की बेटी के साथ यही काम करने जाती है. वह कहती है, ‘‘पति अब मजदूरी नहीं कर पाते. डाक्टर ने उन्हें बो झा उठाने के लिए मना किया है. ऐसे में अब हम मांबेटी ही काम कर के घर का खर्च चलाती हैं.’’

थोड़ाबहुत पैसा आने के बाद ये लोग अपने हालात को भूल कर बड़े लोगों की तरह रहने के लिए उन की बराबरी करने लगते हैं. बड़े लोगों की तरह ही पूजापाठ, व्रत, तीजत्योहार मनाने लगते हैं. पैसा बचाने के लिए कम ही कोशिश करते हैं. ज्यादातर मर्द नशे और जुए की लत के शिकार हो जाते हैं. फिर वे अपनी औरतों को पीटने से बाज नहीं आते हैं.

समाजसेवी इंदु सुभाष कहती हैं, ‘‘पढ़ीलिखी होने के बाद भी बहुत सी औरतें पति द्वारा की गई पिटाई को अपनी किस्मत मान कर चुप रहती हैं. उन्हें लगता है कि उन का पति ही उन का देवता है. जो पति कर रहा है, वह उचित ही होता है. कमाई करने के बाद भी ऐसी औरतें मर्द के पैर की जूती बने रहने में ही फख्र महसूस करती हैं, जिस की वजह से घरेलू हिंसा बढ़ती है. इस का बुरा असर बच्चों पर भी पड़ता है.

‘‘पढ़नेलिखने और नए कानूनों के बाद भी इस रूढि़वादी सोच में बदलाव नहीं आ रहा है. देखने में गांव के हालात और औरतों की जिंदगी भले ही बदली दिखती हो, पर सही माने में सोच वही पुरानी और दकियानूसी है.’’

खुशी के आंसू- भाग 1: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

आनंद आजकल छाया के बदले ब्यवहार से बहुत परेशान था. छाया आजकल उस से दूरी बना रही थी, जो आनंद के लिए असह्य हो रहा था. दोनों की प्रगाढ़ता के बारे में स्कूल के सभी लोगों को भी मालूम था. वे दोनों 5 वर्षों से साथ थे. छाया और आनंद एक ही स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे. वहीं जानपहचान हुई और दोनों ने एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था.

दोनों की प्रेमकहानी को छाया के पिता का आशीर्वाद मिल चुका था. वे दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले थे कि छाया के पिता को कैंसर जैसी भंयकर बीमारी से मृत्यु हो गई थी. विवाह एक वर्ष के लिए टल गया था. छाया की छोटी बहन ज्योति थी जो पिता की बीमारी के कारण बीए की परीक्षा नहीं दे पाई थी. छाया उसे आगे पढ़ाना चाहती थी. छाया के कहने पर आनंद उसे पढ़ाने उस के घर जाया करता था.

आजकल वह ज्योति के ब्यवहार में बदलाव देख रहा था. उसे महसूस होने लगा था कि ज्योति उस की तरफ आकर्षित हो रही है. उस ने जब से यह बात छाया को बताई तब से छाया उस से ही दूरी बनाने लगी. अब वह न पहले की तरह आनंद से मिलतीजुलती है और न बात करती है.

आनंद को समझ नहीं आ रहा था आखिर छाया  ने अचानक उस से बातचीत क्यों बंद कर दी. कहीं वह ज्योति की प्यार वाली बात में उस की गलती तो नहीं मान रही. नहींनहीं, वह अच्छी तरह जानती है मैं उस से कितना चाहता हूं. आखिर कुछ तो पता चले उस की बेरुखी का कारण क्या है?

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आज 3 दिन हो गए एक स्कूल में रह कर भी हम न मिल पाए न उस ने मेरी एक भी कौल का जवाब दिया. आनंद छाया की गतिविधियों पर अपनी नज़र  जमाए हुए था. वह स्कूल आया जरूर, पर अंदर दाखिल नहीं हुआ. बस, छाया को स्कूल में दाखिल होते देखता रहा.

छुट्टी के समय छाया जैसे ही गेट से बाहर निकलने वाली थी, आनंद ने अपनी बाइक उस के सामने खड़ी कर दी और बोला, “पीछे बैठो, मैं कोई तमाशा नहीं चाहता.”

छाया ने उस की वाणी में कठोरता महसूस की, वह डर गई. वह चुपचाप बाइक पर बैठ गई. बाइक तेजी से सड़क पर दौड़ने लगी. थोड़ी देर बाल आनंद ने बाइक को एक छोटे से पार्क के पास रोक दिया. पार्क में और भी जोड़े बैठे थे. आनंद ने छाया का हाथ पकड़ा और छाया के साथ एक बैंच पर बैठ गया.

दो पल दोनों खामोश बैठे रहे, फिर आनंद ने कहा,  “छाया,  मैं ने तुम्हें कितनी कौल कीं, तुम ने न फोन उठाया, न मुझे कौल ही किया. आखिर क्या बात है, क्यों मुझ से दूर रह कर मुझे परेशान कर रही हो? मेरी क्या गलती है, मुझे बताओ? मैं ने ऐसा  क्या कर दिया?”

“आनंद, तुम्हारी कोई गलती नहीं है.”

“तब फिर, इस बेरुखी का मतलब?”

“मैं खुद बहुत परेशान हूं,” छाया ने भीगे स्वर में कहा.

“तुम्हारी ऐसी कौन सी परेशानी है जो मुझे पता नहीं? मैं तुम्हारा साथी हूं, सुखदुख का भागीदार हूं. मुझे बताओ, हम मिल कर हर समस्या का हल निकाल लेंगे.”

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छाया एकटक आनंद को देखे जा रही थी.

“ऐसे क्यों देख रही हो, तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है? तुम जानती हो,मैं झूठ नहीं बोलता, बताओ क्या बात है?” आनंद ने कहा,-

Satyakatha: स्पा सेंटर की ‘एक्स्ट्रा सर्विस’- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजेश ने खुश हो कर अपने बटुए से रीटा को उस की एक्स्ट्रा सर्विस के पैसे दिए और नीचे रिसैप्शन पर आ कर पूनम को स्पैशल मसाज के लिए शुक्रिया कहा और दुकान के बाहर से आटो पकड़ा और घर आ गया. राजेश शारीरिक थकावट और दर्द के मारे अगले 2 दिनों तक औफिस नहीं जा पाया.

स्पा सेंटर की अनोखी दुकानें, जिस का बोर्ड देख कर ही लोगों के मन में अनोखे खयाल पैदा हो जाते हैं, आजकल बढ़ते ‘गुलाबी धंधे’ का अड्डा बन रहे हैं. बौडी मसाज के नाम पर लोग आजकल स्पा सेंटरों में जाते हैं और अपने दिलों में दबी इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं.

स्पा सेंटरों में मसाज कराने का मेनू कार्ड बेशक लंबाचौड़ा क्यों न हो, लेकिन लोग कीमत की परवाह किए बगैर स्पा व मसाज सेंटरों में जा कर अपनी पसंद की महिला से मनचाहा मसाज करवाते हैं.

चाहे वह स्वीडिश मसाज हो, डीप टिश्यू मसाज हो, हौट स्टोन मसाज हो या फिर ट्रिगर पौइंट मसाज हो. मसाज कराने के ग्राहक के पास दरजनभर औप्शन होते हैं, जिस में से वह कोई एक चुनता है और उस के दिल में एक ही तरह के मसाज की तमन्ना होती है.

दिल्ली के बड़ेबड़े और हर रिहाइशी इलाकों में स्पा सेंटर खुले हैं. पहाड़गंज, करोलबाग, ग्रीन पार्क, महिपालपुर, द्वारका, रमेश नगर, लाजपत नगर वगैरह जैसे कई इलाकों में स्पा सेंटरों की दुकानों की भरमार है.

पहले के समय देह व्यापार के लिए खास जगह मौजूद होते थे. लेकिन जैसेजैसे प्रशासन का शिकंजा इस तरह के गैरकानूनी धंधों को रोकने के लिए मजबूत हुए हैं, वैसेवैसे देह व्यापार से जुड़े लोगों ने खुद को बनाए रखने के लिए अपना रूप भी बदला है.

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बड़े शहरों में मौजूद रेलवे स्टेशनों के आस पास मौजूद होटल आज कल स्पा सेंटरों में तब्दील होने लगे हैं. यही नहीं बड़ेबड़े होटलों के भीतर भी स्पा सेंटर जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं, जो चौबीसों घंटे काम करती हैं.

इन स्पा सेंटरों में देह व्यापार से जुड़े कई लोग जुड़े हुए होते हैं. स्पा सेंटरों में मौजूद मसाज करने वाले कई ऐसे हैं जिन्हें मसाज करना आता भी नहीं है, बस, वो देह व्यापार के चलते इन स्पा सेंटरों से जुड़ जाते हैं और अपना धंधा चला रहे हैं.

ऐसे सेंटरों से कई विदेशी कालगर्ल्स भी जुड़ी होती हैं. ग्राहकों की मांग पर विशेष रूप से मसाज करने के बहाने उन्हें बुलाया जाता है.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने साल 2018 में दिल्ली पुलिस, श्रम विभाग और सिविक एजेंसियों से उन के इलाके में चलने वाले स्पा सेंटरों की एक सूची मांगी थी. इस में मुख्यरूप से, कितनों के पास लाइसेंस हैं, कितनों के खिलाफ काररवाई हुई, स्पा सेंटरों का निरीक्षण इत्यादि जानकारी देने के लिए कहा गया था. 28 नवंबर, 2018 तक इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई थी.

स्पा सेंटर वाले कहते हैं कि उन के स्पा सेंटर सुरक्षित और सही हैं, रेड पड़ने का कोई चांस ही नहीं है. लेकिन अखबारों में बेहद कम ही ऐसी खबरें देखने को मिलती हैं जिस में स्पा सेंटरों पर काररवाई होती हुई कोई खबर दिखाई देती हो.

इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्पा सेंटरों की हर किसी से सेटिंग हैं और इन सेंटरों में होने वाला ‘गुलाबी धंधा’ धड़ल्ले से चल रहा है.  द्य

दिल्ली सरकार के सख्त कदम

हाल ही में 2 अगस्त को दिल्ली सरकार ने शहर में स्पा और मालिश केंद्रों के संचालन पर नजर रखने और विनियमित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश दिए. जिस में ग्राहकों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य रूप से पुलिस मंजूरी हासिल करना और परिचालन घंटे को सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सीमित करना शामिल है.

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दिल्ली सरकार ने यौन शोषण, तसकरी और क्रौस जेंडर मालिश को रोकने के लिए भी इन दिशानिर्देशों को जारी किया है. इसी के साथ ही दिल्ली सरकार कई गाइडलाइंस जारी कर के इन स्पा सेंटरों पर पैनी नजर गड़ाने का काम कर रही है.

नए दिशानिर्देशों में कई प्रावधानों को शामिल किया गया हैं. जैसे केंद्रों के कमरों में केवल स्वत: बंद होने वाले दरवाजे लगाने होंगे, कोई कुंडी या बोल्ट की अनुमति नहीं होगी. और सभी बाहरी दरवाजे काम के घंटों के दौरान खुले रहने के आदेश दिए हैं.

इसी के साथ ही इन स्पा सेंटरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलगअलग मालिश के कमरे, शौचालय, चेंजिंग रूम और स्नानघर के होने की बातें कही हैं.

अब देखना यह है कि क्या सरकार के इन कठोर दिशानिर्देशों और नियमों का स्पा सेंटरों में चलने वाले देह व्यापार पर कोई असर पड़ता है या नहीं.

अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का- भाग 3: जब प्रभा को अपनी बेटी की असलियत पता चली!

‘‘मां, क्या हुआ, पापा ठीक हैं न?’’ लेकिन जब उसे प्रभा की सिसकियों की आवाज आई तो वह समझ गई कि कुछ बात जरूर है. घबरा कर वह बोली, ‘‘मां, मां, आप रो क्यों रही हैं, कहिए न क्या हुआ?’’ अपने ससुर के बारे में सब जान कर कहने लगी, ‘‘मां, आ…आ…आप घबराइए मत, कुछ नहीं होगा पापा को. मैं कुछ करती हूं.’’ उस ने तुरंत अपनी दोस्त शोना को फोन लगाया और सारी बातों से उसे अवगत कराते हुए कहा कि तुरंत वह पापा को अस्पताल ले कर जाए, जैसे भी हो.

अपर्णा की जिस दोस्त को प्रभा देखना तक नहीं चाहती थी और उसे बंगालनबंगालन कह कर बुलाती थी, आज उसी की बदौलत भरत की जान बच पाई, वरना पता नहीं क्या हो जाता. डाक्टर का कहना था कि मेजर अटैक था. अगर थोड़ी और देर हो जाती मरीज को लाने में, तो वे इन्हें नहीं बचा पाते.

तब तक अपर्णा और मानव आ चुके थे. फिर कुछ देर बाद रंजो भी आ गई. बेटेबहू को देख कर बिलखबिलख कर रो पड़ी प्रभा और कहने लगी, आज अगर शोना न होती, तो शायद तुम्हारे पापा जिंदा न होते.’’

अपर्णा के भी आंसू रुक नहीं रहे थे. उस ने अपनी सास को ढांढ़स बंधाया और अपनी दोस्त को तहेदिल से धन्यवाद दिया कि उस की वजह से उस के ससुर की जान बच पाई. अपनी भाभी को मां के करीब देख कर रंजो भी मगरमच्छ के आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मां, मैं तो मर ही जाती अगर पापा को कुछ हो जाता. कितनी खराब हूं मैं जो आप की कौल नहीं देख पाई. वह तो सुबह आप की मिस्डकौल देख कर वापस आप को फोन लगाया तो पता चला, वरना यहां तो कोई कुछ बताता भी नहीं है.’’ यह कह कर अपर्णा की तरफ घूरने लगी रंजो.

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तभी उस का 7 साल का बेटा बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, आप झूठ क्यों बोल रही हो? नानी, मम्मी झूठ बोल रही हैं. जब आप का फोन आया था, हम टीवी पर ‘बाहुबली’ फिल्म देख रहे थे. मम्मी यह कह कर फोन नहीं उठा रही थीं कि पता नहीं कौन मर गया जो मां इतनी रात को हमें परेशान कर रही हैं. पापा ने कहा भी उठा लो, पर मां ने फोन नहीं उठाया और फिल्म देखती रहीं.’’ यह सुन कर तो सब हैरान हो गए.

सचाई खुलने से रंजो की तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उसे लगा, जैसे उसे करंट लग गया हो. अपने बेटे को एक थप्पड़ लगाते हुए बोली, ‘‘पागल कहीं का, कुछ भी बकवास करता रहता है.’’ फिर हकलाते हुए कहने लगी, ‘‘अरे, वह तो कि…सी और का फोन आ रहा था, मैं ने उस के लिए कहा था,’’ दांत निपोरते हुए आगे बोली, ‘‘देखो न मां, कुछ भी बोलता है, बच्चा है न इसलिए.’’

प्रभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. कहने लगी, ‘‘इस का मतलब तुम उस वक्त जागी हुई थी और तुम्हारा फोन भी तुम्हारे आसपास ही था? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि इतनी रात को तुम्हारी मां किसी कारणवश ही तुम्हें फोन कर रही होगी? अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार और विश्वास का, बेटा. आज मेरा सुहाग उजड़ गया होता, अगर यह शोना न होती. जिस बहू के प्यार को मैं ढकोसला और बनावटी समझती रही, आज पता चल गया कि वह, असल में, प्यार ही था. मैं तो आज भी इस भ्रम में ही जीती रहती अगर तुम्हारा बेटा सचाई न बताता तो.’’

अपने हाथों से सोने का अंडा देने वाली मुरगी निकलते देख कहने लगी रंजो, ‘‘ना, नहीं मां, आप गलत समझ रही हैं.’’

‘‘समझ रही थी, पर अब मेरी आंखों पर से परदा हट चुका है. सही कहते थे तुम्हारे पापा कि तुम मेरी ममता का सिर्फ फायदा उठा रही हो, कोई मोह नहीं है तुम्हारे दिल में मेरे लिए,’’ कह कर प्रभा ने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया और अपर्णा से बोली, ‘‘चलो बहू, देखें तुम्हारे पापा को कुछ चाहिए तो नहीं?’’ रंजो, ‘‘मां, मां’’ कहती रही. पर पलट कर एक बार भी नहीं देखा प्रभा ने, मोह टूट चुका था उस का.

मेरी एक परिचिता के बेटे का विवाह होने वाला था. शादी का जो कार्ड पसंद किया गया, वह काफी महंगा था. उन्होंने ज्यादा कार्ड न छपवा कर एक तरकीब आजमाई, जिस में उन्हें पूरी सफलता मिली. पति व बेटे के बौस और कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण लोगों को तो कार्ड दे दिए, बाकी जिस के घर भी गईं, कार्ड पर उन्हीं के सामने नाम लिखने से पहले बोलतीं, ‘‘बस, क्या बताऊं, कैसे गलती हो गई, कार्ड्स कम हो गए.’’

सुनने वाला फौरन बोलता, ‘‘अरे, हमें कार्ड की जरूरत नहीं, हम आ जाएंगे.’’

परिचिता पूछतीं, ‘‘सच, आप आ जाओगे? फिर आप को कार्ड रहने दूं?’’

सामने वाला कहता है, ‘‘हां, हां, हम ऐसे ही आ जाएंगे.’’

सामने वाला भी अपने को उन का खास समझता कि वे ऐसी बात शेयर कर रही हैं. परिचिता ने सब को एक खाली कार्ड दिखाते हुए निबटा दिया.

मैं उन के साथ 2 घरों में कार्ड देने गई थी, इसलिए इस कलाकारी की प्रत्यक्षदर्शी हूं. खैर, कार्ड मुझे भी नहीं मिला. मैं ने बाद में उन्हें छेड़ा, ‘‘जब सब को दिखा देना, तो आखिर में कार्ड मुझे चाहिए.’’  इस पर

वे खुल कर हंसीं, बोलीं, ‘‘नहीं मिलेगा, बहुत खर्चे हैं शादी के. चलो, कार्ड के तो

पैसे बचाए.’’

मेरी मौसी ने एक दिलचस्प किस्सा बताया. वे रोडवेज की बस से बनारस जा रही थीं. उन की दूसरी तरफ की सीट पर एक बूढ़ी अम्मा आ कर बैठ गईं. कंडक्टर भला आदमी था, उस ने बूढ़ी अम्मा से टिकट के लिए पैसे भी नहीं लिए.

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बस चल पड़ी. थोड़ी देर में कंडक्टर ने देखा कि अम्मा कुछ परेशान सी हैं. उस ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘बेटा, इलाहाबाद आ जाए तो बता देना.’’

कंडक्टर ने हां बोला और चला गया. लेकिन बाद में वह भी भूल गया, तब तक बस इलाहाबाद से आगे निकल गई थी.

कंडक्टर को अच्छा न लगा, उस ने बस वापस मुड़वाई. इलाहाबाद आया तो सोती हुई को जगाते हुए वह बोला, ‘‘अम्मा, इलाहाबाद आ गया.’’

‘‘अच्छा बेटा, चलो, अपनी दवाई खा लेती हूं.’’

‘‘अरे अम्मा, यहां उतरना नहीं है क्या,’’ कंडक्टर बोला.

‘‘मुझे तो बनारस जाना है. बेटी ने कहा था कि इलाहाबाद आने पर दवाई खा लेना,’’ अम्मा बोलीं.

सवारियों का हंसहंस कर बुरा हाल हो गया और कंडक्टर की शक्ल देखने लायक थी.

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