Writer- Rita Kashyap

कविता को अपनी खूबसूरती का, उसे देख कर मर्दों के आहें भरने का, कुछ पल उस के साथ बिताने की चाहत का अंदाजा था तभी तो उस ने जब जो चाहा, वह पाया. आउट औफ टर्न प्रोमोशन, आउट आफ टर्न मकान और स्वच्छंद जीवन.  अगर कभी कोई उपहासपरिहास में मर्यादा की सीमाएं लांघ भी जाए तो भी कविता ने बुरा नहीं माना लेकिन कौन सी बात कविता को बुरी लग जाए और पुरुष सहकर्मी की शिकायत ऊपर तक पहुंच जाए, अनुमान लगाना कठिन था. परिणामस्वरूप कविता का तबादला दूसरी जगह कर दिया जाता. दफ्तर भी कविता की शिकायतें सुनसुन कर और तबादले करकर के परेशान हो गया था.

महेश पुरी के विभाग में कविता का तबादला शायद दफ्तर की सोचीसमझी नीति के तहत हुआ था. इधर पिछले कुछ वर्षों से कविता की शिकायतें बढ़ती जा रही थीं. दफ्तर के उच्च अधिकारियों के लिए वह एक सिरदर्द बनती जा रही थी. उधर, पूरे दफ्तर में महेश पुरी की सज्जनता और शराफत से सभी परिचित थे. कविता को उन के विभाग में भेज कर दफ्तर ने सोचा होगा कि कुछ दिन बिना किसी झंझट के बीत जाएंगे.  कविता भी इस विभाग में पहले से कहीं अधिक खुश थी. कविता की दृष्टि से देखा जाए तो इस के कई कारण थे. पहला, यहां कोई दूसरी महिला कर्मचारी नहीं थी. महिला सहकर्मी कविता को अच्छी नहीं लगती क्योंकि उस का रोकनाटोकना, समझाना या उस के व्यवहार को देख कर हैरान होना या बातें बनाना कविता को बिलकुल पसंद नहीं आता था. दूसरा मुख्य कारण था, इस ब्रांच के अधिकांश पुरुष कर्मचारी कुंआरे थे. उन के साथ उठनेबैठने, घूमनेफिरने, कैंटीन में जाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि उन्हें न अपनी बीवियों का डर होता और न ही शाम को घर भागने की जल्दी. अत: दोनों ओर से स्वच्छंदतापूर्ण व्यवहार का आदानप्रदान होता. यही कारण था कि कुछ ही दिनों में कविता जानपहचान की इतनी मंजिलें तय कर गई जो दूसरे विभागों में वह आज तक नहीं कर पाई थी.

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