Manohar Kahaniya: नशा मुक्ति केंद्र में चढ़ा सेक्स का नशा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कमरे में बैठी प्रिया फोटो एलबम पलट कर उसे बड़े ध्यान से देख रही थीं. एलबम देखतेदेखते उन की नजर एक फोटो पर ठहर गई. वह फैमिली फोटो था, जिस में वह खुद, उन के पति नवीन और इकलौती बेटी निधि थी. निधि का एक हाथ मां के और दूसरा पिता के गले में था.

वह खुल कर मुसकरा रही थी. उसे देख कर प्रिया यादों में कहीं खो सी गईं. उन्हें एहसास ही नहीं हुआ कि उन के पति कब उन के पास आ कर बैठ गए. उन्होंने प्रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘क्या सोच रही हो?’’

‘‘सोच रही हूं कि समय कितना बदल जाता है. कभी कितनी अच्छी थी हमारी बेटी, हमें कितना प्यार करती थी और अब लगता है, न जाने कितनी दूर हो गई.’’ प्रिया ने आंखों में उमड़ आए अपने आंसुओं को पल्लू से साफ करते हुए अफसोसजनक लहजे में कहा तो पति ने उन्हें समझाया, ‘‘यूं परेशान होने से भी बात नहीं बनेगी, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. मुझे पक्का भरोसा है कि वह ठीक हो कर ही जल्द घर आएगी.’’

‘‘आप नहीं जानते, मुझे बेटी की बहुत फिक्र रहती है. जवान लड़की को हम ने घर से बाहर छोड़ा हुआ है. मजबूरी न होती तो मैं ऐसा कभी नहीं करती. कहीं वहां उस के साथ कुछ गलत न हो. एक बार उस ने मुझ से कहा था…’’ प्रिया बोलते हुए रुक गईं तो नवीन ने पूछा, ‘‘क्या कहा था?’’

‘‘वह बता रही थी कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है.’’

‘‘मुझे तो ऐसा नहीं लगता, क्योंकि वहां और भी लड़कियां रहती हैं और फिर वह लोग इतना बड़ा सेंटर बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए ही तो चला रहे हैं. निधि का विश्वास तो मैं कर नहीं सकता, क्योंकि वह नशे के लिए हम से कितना झूठ बोलती रही है, यह तो तुम भी जानती हो.’’ नवीन ने कहा.

‘‘आप की बात भी ठीक है, लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, उस की फिक्र करनी बंद करो, क्या पता निधि वहां से छुटकारा पाने के लिए उल्टीसीधी बातें करती हो,’’ नवीन ने पत्नी को समझाया.

‘‘आप भी सही कहते हैं, हमारा विश्वास तो वह खो चुकी है. अगर वह गलत संगत में न पड़ती, तो ऐसी नौबत ही नहीं आती. हम ने कभी उस के लिए किसी चीज की कमी नहीं छोड़ी, फिर भी हमें बुरे दिन देखने पड़े.’’

‘‘एक बात बताऊं प्रिया,’’ नवीन ने कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘हमारी दी गई आजादी का भी उस ने गलत फायदा उठाया, हमें भी उस पर शुरू से ही नजर रखनी चाहिए थी.’’

‘‘सही कहा आप ने.’’ प्रिया बोली.

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किस की हंसतीखेलती जिंदगी में कब क्या हो जाए, इस को कोई नहीं जानता. प्रिया और नवीन के साथ भी ऐसा हुआ था. निधि उन की इकलौती बेटी थी. वह प्राइवेट नौकरी करते थे और जिंदगी में खुशियां थीं.

यह दंपति उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रहता था. हर मातापिता अपने बच्चों के अच्छे भविष्य की कल्पना करते हैं. प्रिया और नवीन के साथ भी ऐसा ही था. निधि राजधानी के ही एक नामी इंस्टीट्यूट से ग्रैजुएशन कर रही थी.

हमारे सभ्य समाज का यह एक कड़वा सच है कि बड़े शहरों में नशे का कारोबार अपनी जड़ें जमा चुका है. युवा बुरी संगत के चलते इस का शिकार हो जाते हैं. शुरू में वे मजे के लिए नशा करते हैं और बाद में इस के आदी हो जाते हैं.

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निधि भी ऐसी संगत में पड़ कर नशे की लत का शिकार हो चुकी थी. घर से पौकेटमनी के नाम पर पैसे लेना और नशे में उड़ाना, सहेलियों के साथ घूमनाफिरना, बहाने से उन के घर जाना उस की आदत बन चुकी थी.

मातापिता को पता भी नहीं था कि उन की बेटी किस डगर पर चल रही है. संगत और बुरी आदतों का असर इंसान पर वक्त के साथ दिखने लगता है.

निधि की पैसे की डिमांड बढ़ती गई और वह बारबार तरहतरह के बहानों से घर से ज्यादा बाहर जाने लगी तो मातापिता को शक होने लगा. एक दिन प्रिया ने देर रात निधि को उस के कमरे में ड्रग्स लेते पकड़ा तो उन का शक विश्वास में बदल गया.

अगले भाग में पढ़ें- निधि को लग गई ड्रग की लत

छाया : विनोद पुंडीर

गृहप्रवेश- भाग 1: किसने उज्जवल और अमोदिनी के साथ विश्वासघात किया?

पीड़ा और विश्वासघात या तो पराजित कर देते हैं या एक शक्ति प्रदान करते हैं. और वह शक्ति वेदना को प्रेरणा की दृष्टि प्रदान कर देती है. आज सोचती हूं तो लगता है, किन परिस्थितियों में मैं ने अपने स्वप्नों की मृत्यु को होते देखा और फिर अपनी बु झती जीवनज्योति को फूंकफूंक कर कुछ देर और जीवित रखने की चेष्टा करती रही.

मैं बचपन से ही साहसी रही हूं. मेरे मम्मीपापा मेरा विवाह विनय से करना चाहते थे. शुरू में मु झे भी विवाह से कोई आपत्ति नहीं थी. मेरे एमएड पूरा होने के बाद हमारा विवाह होना तय हुआ. सरल स्वभाव का विनय मेरा अच्छा मित्र था. किंतु हमारे मध्य प्रेम जैसा कुछ नहीं था. उस समय मेरा मानना था कि मित्रता, विवाह के पश्चात प्रेम का रूप खुद ही ले लेगी. परंतु तब मैं कहां जानती थी कि प्रेम एक ऐसी वृष्टि का नाम है जो अबाध्य है. जब उज्जवल नाम का एक बादल मेरे तपते जीवन में ठंडक ले कर आया, मैं पिघलती चली गई थी.

मेरा बंजर हृदय उज्जवल के प्रेम की वर्षा में भीग गया और मम्मीपापा के निर्णय के खिलाफ जा कर मैं ने उज्जवल से विवाह कर लिया था. हमारे विवाह के समय तक मेरी नौकरी एडहौक टीचर के रूप में एक प्राइवेट कालेज में लग गई थी. उज्जवल चार्टर्ड अकाउंटैंट था. थोड़े से विरोध के बाद दोनों परिवारों ने हमारा रिश्ता मंजूर कर लिया. हम प्यार में थे, खुश थे.

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परिवर्तन एक दैनिक प्रक्रिया है. हमारा जीवन भी बदला. विवाह के 12 वर्ष सपनों की नदी पर नंगे पैर चलते हुए पार हो गए.

उज्जवल के नाम और काम दोनों में बढ़ोतरी हुई. उस ने अपना कर्मस्थल लखनऊ से बदल कर इंदौर कर लिया. और मैं? मेरे वर्क प्रोफाइल में भी परिवर्तन आया था. पार्टटाइम शिक्षिका के स्थान पर अब मैं फुलटाइम प्रशिक्षक बन गई थी. मैं मां भी बन गई थी.

स्त्री के भीतर एक मां का जन्म कोई सामान्य घटना नहीं होती. एक बालिका जब एक युवती बनती है और जब यही युवती एक प्रेयसी बनती है, तो उस का हृदय अनेक भावनात्मक परिवर्तनों से हो कर गुजरता है. हृदय और शरीर में संघर्ष होता है, और फिर इन की इच्छाओं व संवेदनाओं का परस्पर मिलन हो जाता है.

किंतु जब प्रेयसी मां बनती है तो परिवर्तनों की एक अथवा दो नहीं, बल्कि अनेक स्याह गुफाओं से हो कर आगे बढ़ती है. गर्भावस्था के प्रथम प्रहर में एक प्रेयसी खुद को मां के रूप में स्वीकार ही नहीं कर पाती. फिर शरीर में आ रहे परिवर्तन उसे एक नवजीवन का खुद के भीतर अनुभव प्रदान करते हैं. मातृत्व की यह भावना शब्दों के परे होती है. मात्र शिशु को जन्म दे देने से कोई महिला मां नहीं बन जाती, खुद के भीतर मातृत्व का जन्म होना आवश्यक है.

मेरे बेटे स्नेह का जन्म हुआ और मु झे लगा, मेरी जीवन की बगिया में वसंत खिल रहा हो. किंतु, मैं अपनी बगिया के अंतिम कोने में छिप कर बैठे पत झड़ को देख ही नहीं पाई, और जब देखा, वसंत जा चुका था.

हर घर की एक गंध होती है. किंतु, इसे वह ही पढ़ सकता है जिस ने घर की दीवारों और वस्तुओं से ले कर, रिश्तों को भी सजाने व संवारने में अपना सौरभ बिखेरा हो. इसलिए, अपने घर में उस अनाधिकार प्रवेश करने वाली अजनबी गंध को मैं ने भांप लिया था.

कुछ दिन इसे अपनी भूल सम झ, मैं ने स्वीकार नहीं किया. लेकिन जब यह जिद्दी गंध अपनी उपस्थिति उज्जवल की कमीज पर छोड़ने लगी, तो मैं चुप न रह सकी.

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‘तुम कोई नया परफ्यूम लगा रहे हो?’

‘नहीं तो, क्यों?’

गालों पर शेविंगक्रीम लगी होने के कारण चेहरे के भाव स्पष्ट नहीं थे. अलबता, आंखें कुछ चुगली कर रही थीं. मैं उस की आंखों के संदेश को पढ़ने का प्रयास कर ही रही थी कि उज्जवल अपने गीले चेहरे को मेरे गालों पर मलते हुए बोला, ‘हमारी सांसों में तो आज भी आप महकती हैं. जिस के पास बगीचा हो वह कागज के फूलों में खुशबू क्यों ढूंढ़ेगा?’

मेरा मुखमंडल लज्जा से अरुण हो आया. प्यार से ‘धत’ कह कर मैं ने उसे धकेल दिया और रसोई में नाश्ता बनाने चली गई थी.

भोजपुरी एक्ट्रेस Aamrapali Dubey ने फैंस से पूछा,’बताओ मैं कैसी लग रही हूं’ तो मिला ये जवाब

भोजपुरी एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे (Aamrapali Dubey) एक बार फिर सोशल मीडिया पर एक्टिव हो गई हैं.  वह इन दिनों लगातार फोटोज और वीडियो शेयर कर रही हैं.  एक्ट्रेस के पोस्ट को फैंस खूब पसंद करते हैं. इसी बीच अब आम्रपाली दुबे की एक तस्वीर खूब चर्चा में है.

दरअसल इस फोटो में एक्ट्रेस किसी फिल्म के गेटअप में दिख रही हैं. आम्रपाली दुबे पिंक और ऑरेंज कलर की साड़ी पहने हुए बेहद खूबसूरत लग रही हैं. इस तस्वीर में वह बेहद खूबसूरत दिखाई दे रही हैं. एक्ट्रेस के इस फोटो पर लगातार कमेंट और लाइक्स आ रहे हैं.

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हाल ही में आम्रपाली ने पर लाइव सेशन रखा था. एक्ट्रेश ने इस सेशन में अपनी लाइफ से जुड़ी कई बाते शेयर की थी. उन्होंने बताया था कि वो निरहुआ के साथ ज्यादा फिल्में करना पसंद करती हैं. उन्होंने कहा था कि ‘मेरा मानना है कि दिनेश लाल यादव भोजपुरी के सबसे अच्छे एक्टर हैं. उनके साथ काम करना मुझे अच्छा लगता है.

 

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एक्ट्रेस ने ये भी बताया था कि अब हम दोनों के बीच काफी अच्छी अंडरस्टेंडिंग है. हम दोनों के बीच कंफर्ट जोन ज्यादा है. बता दें कि उन्होंने 2014 में दिनेश लाल यादव के साथ फिल्म ‘निरहुआ हिंदुस्तानी’ से अपने करियर की शुरुआत की थी.

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इमली को हराने के लिए मालिनी करेगी प्रेग्नेंट होने का नाटक! क्या आदित्य फंसेगा चाल में?

स्टार प्लस का सीरियल इमली में इन दिनों हाईवोल्टज ड्रामा चल रहा है. शो की कहानी एक नया मोड़ ले रही है. शो में दिखाया जा रहा है कि इमली मालिनी का पर्दाफाश करने की पूरी कोशिश कर रही है और वह सबूत ढूढने में लग गई है. तो दूसरी तरफ मालिनी खुद को बचाने के लिए एक बड़ी चाल चलने वाली है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आपने देखा कि इमली ने साबित किया कि उसकी साड़ी को जलाने में मालिनी और अनु का ही हाथ था. तो वही त्रिपाठी परिवार को उसकी बात पर यकीन कर रहे हैं. तभी मालिनी एक और नया चाल चलेगी ताकि इमली आदित्य के लाइफ से हमेशा-हमेशा के लिए चली जाए.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि मालिनी खुद को प्रग्नेंट बताएगी. वह कहेगी कि आदित्य के बच्चे की मां बनने वाली हूं. आदित्‍य उसका परिवार फिर से मालिनी के जाल में फंस जाएगा. आदित्‍य दोबारा मालिनी पर भरोसा करने लगेगा.

 

तो उधर इमली उसके झूठ से पर्दा उठाने की कोशिश करेगी. लेकिन आदित्‍य इमली से कहेगा कि वह मालिनी का पीछा छोड़ दे क्‍योंकि वह मां बनने वाली है.

 

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शो में आपने ये भी देखा कि इमली ने मालिनी के खिलाफ पुलिस में कम्‍प्‍लेन दर्ज कराई है. वह उस पर मॉलेश्‍टेशन का आरोप लगाती है. तो अब आदित्य के कहने पर इमली शिकायत वापस ले लेगी. अब ये देखना दिलचस्‍प होगा कि इमली मालिनी की सच्चाई  आदित्य के सामने लाने के लिए क्या कदम उठाती है.

उत्तर प्रदेश में पेप्सिको इण्डिया फूड्स प्लांट्स

मुख्यमंत्री जी ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार की सोच उसकी कार्य पद्धति में दिखाई देती है. सरकार की सकारात्मक सोच से निवेश बढ़ता है. निवेश से रोजगार सृजन होता है, जिससे आत्मनिर्भरता व स्वावलम्बन प्राप्त करने में मदद मिलती है. पेप्सिको द्वारा कोसी कलां में स्थापित इकाई इसी सकारात्मक सोच का परिणाम है. उन्हांेने कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा कल 14 सितम्बर, 2021 को जनपद अलीगढ़ में उत्तर प्रदेश डिफेंस इण्डस्ट्रियल काॅरिडोर के अलीगढ़ नोड का शुभारम्भ किया गया था. इससे 1,250 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्तावों को जमीनी धरातल पर उतारने की कार्यवाही सम्पन्न हुई है. श्रीकृष्ण की पावन भूमि मथुरा के कोसी कलां में 800 करोड़ रुपए से अधिक की इस यूनिट का उद्घाटन सम्पन्न हुआ.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ब्रज भूमि के किसानों की वर्षाें से मांग थी कि उनके क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण की अत्याधुनिक इकाइयां स्थापित हों. प्रदेश सरकार की औद्योगिक नीति के अन्तर्गत पेप्सिको ने कोसी कलां में निवेश किया है. आज पेप्सिको द्वारा स्थापित इकाई का उद्घाटन किया गया है. सरकार व निवेशक जब मिलकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ंेगे, तो इसके सकारात्मक परिणाम इसी रूप में सामने आएंगे. उन्होंने विश्वास जताया कि राज्य सरकार और पेप्सिको की साझेदारी उन्नति, विश्वास तथा स्वावलम्बन की साझेदारी होने के साथ ही, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्पों को आगे बढ़ाने की भी साझेदारी होगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए बनायी गयी नीतियों के तहत निवेशकों द्वारा राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा है. यह निवेश किसानों के जीवन में व्यापक परिवर्तन का आधार बन रहा है. साथ ही, इससे नौजवानों के लिए रोजगार का सृजन हो रहा है. 04 वर्ष पूर्व प्रदेश में आलू उत्पादक किसान संकट में था. ऐसी स्थिति में आलू उत्पादक किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार ने आलू का न्यून्तम समर्थन मूल्य घोषित किया, जिससे किसानों के सामने असहाय जैसी स्थिति पैदा न हो और उन्हें आलू का उचित मूल्य प्राप्त हो सके. पेप्सिको इण्डिया द्वारा स्थापित प्लाण्ट से इस क्षेत्र के किसानों को लाभ मिलेगा.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उन्हें अवगत कराया गया कि कोसी कलां में स्थापित फूड्स प्लाण्ट यूनिट के माध्यम से डेढ़ लाख मीट्रिक टन आलू का प्रति वर्ष प्रसंस्करण किया जाएगा.

पेप्सिको इण्डिया किसान भाइयों के साथ पहले से ही साझेदारी करते हुए उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्रदान करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि कोसी कलां में स्थापित प्लाण्ट खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आलू उत्पादक किसानों की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होगा. इस खाद्य प्रसंस्करण इकाई से किसानों को अपने उत्पादों को बेचने के लिए एक मंच मिला है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक राज्य है. प्रदेश मंे पर्याप्त जल संसाधन एवं उर्वरा भूमि मौजूद है. प्रदेश में किसानों की बड़ी संख्या एवं देश का सबसे बड़ा बाजार है. प्रदेश में 24 करोड़ जनता निवास करती है. साथ ही, यहां पर निवेश के लिए अनुकूल वातावरण भी है. ब्रज क्षेत्र में आगरा एवं अलीगढ़ मण्डलों के 08 जनपदों में बड़े पैमाने पर आलू उत्पादन होता है. इस यूनिट की स्थापना इस क्षेत्र के आलू उत्पादक किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ाने में सहायक होगी.

औद्योगिक विकास मंत्री श्री सतीश महाना ने कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में प्रदेश में औद्योगिक विकास के नये युग की शुरुआत हुई है. सरकार, किसानों और उद्यमियों के बीच विश्वास पैदा हुआ है. प्रदेश सरकार के सहयोग से पेप्सिको द्वारा कोसी कलां में दो वर्ष से भी कम समय में खाद्य प्रंसस्करण इकाई की स्थापना की गयी है. यहां प्रति वर्ष डेढ़ लाख टन आलू का प्रसंस्करण किया जाएगा. प्लाण्ट की स्थापना से 1500 लोगों को प्रत्यक्ष तथा बड़ी संख्या में लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

दुग्ध विकास मंत्री श्री लक्ष्मी नारायण चैधरी ने कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन में जनपद मथुरा में पर्यटन विकास, बिजली, सड़क आदि विभिन्न विकास कार्य सम्पन्न कराये गये हैं. मुख्यमंत्री जी के प्रयास से प्रदेश में पेप्सिको की इकाई स्थापित हुई है. इससे किसानों को लाभ होगा. साथ ही, युवाओं को रोजगार के अवसर भी सुलभ होंगे.

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रेसिडेण्ट पेप्सिको इण्डिया श्री अहमद अलशेख ने कहा कि मुख्यमंत्री जी द्वारा पेप्सिको इण्डिया के कोसी कलां, मथुरा फूड्स प्लाण्ट का उद्घाटन पेप्सिको के लिए गर्व का विषय है. राज्य सरकार के सहयोग से दो वर्ष से भी कम समय में इस प्लाण्ट को स्थापित कर प्रारम्भ कराया जा रहा है. यह पेप्सिको इण्डिया का भारत में स्थापित सबसे बड़ा खाद्य प्रसंस्करण प्लाण्ट है. सीईओ एएमईएसए पेप्सिको श्री यूजीन विलेम्सन ने भी कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित किया. कार्यक्रम के दौरान पेप्सिको द्वारा निर्मित एक लघु फिल्म ‘उन्नति की साझेदारी’ भी प्रदर्शित की गयी.

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री आरकेतिवारी, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त श्री संजीव मित्तल, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एमएसएमई श्री नवनीत सहगल, अपर मुख्य सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास श्री अरविन्द कुमार सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

लॉकडाउन का शिकार

लेखक- प्रो. अलखदेव प्रसाद अचल

सूरज बचपन से ही पढ़नेलिखने में काफी मन लगाता था, पर जिस महल्ले में वह रह रहा था, वहां का माहौल काफी खराब था. ज्यादातर बच्चे स्कूल पढ़ने नहीं जाते थे. जो जाते भी थे वे या तो मिड डे मील के चक्कर में जाते थे या फिर मुफ्त में मिलने वाली स्कूल पोशाक के लालच में.

महल्ले के लोग यही सम झते थे कि पढ़नेलिखने का काम बाबुओं का है. वैसे भी पढ़नेलिखने से कुछ नहीं होता. किस्मत में जो होता है वही होता है. यही सोच उस तबके के लोगों को तरक्की की सीढ़ी पर ऊपर बढ़ने नहीं दे रही थी.

उन लोगों के बीच सूरज हकीकत में सूरज की तरह चमकता दिखाई दे रहा था. वह गांव के लड़कों के साथ खेलकूद करने के बजाय पढ़ाई करता और उस के बाद जो समय बचता, उस में अपने मांबाप के साथ दूसरे जरूरी कामों में लगा रहता था. यह देख कर गांव के बच्चे उस पर तरहतरह की फब्तियां भी कसते रहते थे, पर सूरज इस की परवाह नहीं करता था.

सूरज का बाप रामदहिन जिन मालिकों के यहां मजदूरी करता था, उसे मालिक यही नसीहत देता, ‘तुम बेकार ही अपने बेटे पर पैसे बरबाद कर रहे हो. अगर तुम्हारे साथ वह भी कमाता, तो तुम्हारी आमदनी दोगुनी हो जाती और घर में ज्यादा खुशहाली आ जाती.’

पर रामदहिन अपने मालिक की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं देता था. उसे लगता कि हम लोग तो जिंदगीभर अंगूठाछाप ही रह गए. चलो, जब बेटा अच्छा निकला है, तो उसे पढ़ा ही देते हैं.

पढ़ने के दौरान सूरज को कुछ खास तबके के लड़कों द्वारा छुआछूत की भावना का शिकार भी होना पड़ता था. क्लास में वह जिस बैंच पर बैठता, तो ऊंची जाति के बच्चे उस बैंच से उठ कर दूसरी बैंच पर बैठ जाते या फिर उसे साफसाफ कह देते कि पीछे चले जाओ, इस सीट पर मत बैठना.

सूरज जानता था कि इन लफंगों से  झगड़ा मोल लेना बेकार है. इन्हें तो पढ़ना है नहीं, तो इन से उल झ कर अपना समय क्यों बरबाद किया जाए.

पर हां, गांव में सूरज की पूछ जरूर थी. जब से उस ने हाईस्कूल में दाखिला लिया था, तभी से गांव में ‘कला संगम’ नामक एक संस्था बनाई गई थी, जिस का वह सचिव था. तकरीबन हर तबके के लड़के उस संस्था से जुड़े हुए थे. उसी संस्था के जरीए सूरज कभी नाटक का कार्यक्रम कराता, तो कभी किसी दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रम का.

गांव में चाहे किसी के यहां शादी समारोह हो या फिर श्राद्ध, सूरज अपने साथियों के साथ शुरू से आखिर तक वहां मुस्तैदी से रहता था. इस की वजह से लोग उस की तारीफ करते. शायद इसी वजह से अपने समाज में भी उस की लोकप्रियता बढ़ती चली जा रही थी.

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अब तो देखादेखी और लोग भी अपने बच्चों को सूरज की तरह पढ़ने और नेक काम करने की नसीहत देने लगे थे. सूरज भी गांव में ऐसे लोगों को सम झाता, जो अपने बच्चे को स्कूल न भेज कर काम में लगाए रहते या फिर पढ़ाई की अहमियत को न सम झते हुए उस के प्रति लापरवाह रहते.

इस का नतीजा यह हुआ कि उस के गांव के गरीबगुरबों के बच्चे भी स्कूल जाने लगे. यह बात अलग थी कि सरकारी स्कूल में मास्टरों द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चों का जिस रूप में विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो पाता था.

हाईस्कूल से सूरज को स्कौलरशिप मिलनी शुरू हो गई थी, जिस से कुछ राहत मिल जाती थी, पर हाईस्कूल पास करने के बाद जब कालेज में नामांकन की बारी आई, तो सूरज ने कालेज में नामांकन तो करा लिया, पर कालेजों में पढ़ाई नहीं होती थी, सिर्फ छात्रछात्राओं का नामांकन होता. समय पर रजिस्ट्रेशन होता. समय पर इम्तिहान होते. इसी तरह नतीजे भी आते रहते.

जो पैसे वाले होते, वे आईएससी में नामांकन कराते. निजी शिक्षण संस्थानों में या तो अलगअलग विषयों की ट्यूशन पढ़ते या फिर एकसाथ कोचिंग में पढ़ते, पर जिन की माली हालत सही नहीं थी या कोई सुविधाएं नहीं थीं, वे आर्ट्स ही लेना मुनासिब सम झते थे.

सूरज के पास न तो पैसे थे कि वह 1,000 रुपए महीना दे कर कोचिंग में पढ़ सकता था और न ही किसी शहर में ही रह कर पढ़ सकता था, इसलिए उस ने आर्ट्स लेना ही मुनासिब सम झा. वह घर पर ही पढ़ाई करता रहता. इस की ही बदौलत इंटर में संतोषजनक नतीजा भी आया था उस का.

जैसे ही सूरज ने अपना नामांकन बीए में कराया, वैसे ही उस के पिता ने उस की शादी तय कर दी, जबकि सूरज नहीं चाहता था कि अभी उस की शादी हो. इसलिए उस ने विरोध इस का करते हुए कहा, ‘पिताजी, आप इतनी जल्दी मेरी शादी क्यों करना चाहते हैं?’

पिताजी ने कहा, ‘बेटा, हर मांबाप अपनी जिंदगी में सपने बुनते हैं. तुम्हारी शादी हो जाएगी, तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा?’

सूरज ने कहा, ‘जो भी बिगड़ेगा, उसे भोगना तो मु झे ही पड़ेगा.’

पिता ने कहा, ‘तो क्या इस बुढ़ापे में तुम्हारी बूढ़ी मां चूल्हे पर अपने हाथ जलाती रहे?’

सूरज ने कहा, ‘मां के तो हाथ ही जल रहे हैं पिताजी, मेरी तो जिंदगी ही जल जाएगी. पर चलिए, आप लोगों को इसी में खुशी है, तो मैं कुछ नहीं कहूंगा.’

सूरज की शादी के बाद घर के काम में मांबाप को काफी राहत मिलने लगी, इसीलिए वे दोनों भी काफी खुश रहने लगे. इधर सूरज भी अपनी पत्नी पुष्पा के प्रेमपाश में धीरेधीरे जकड़ता चला गया.

पुष्पा जब भी अपने मायके चली जाती, तो महीने के अंदर ही यह कहते हुए सूरज उसे लेने पहुंच जाता कि मां से ज्यादा काम नहीं होता है.

वैसे तो सूरज हर तरह से प्रगतिशील सोच रखता था, पर वर्तमान सरकार की नाकामियों के खिलाफ कोई बोल देता, तो उसे वह बरदाश्त नहीं करता था. कर्म के साथसाथ वह ऊपर वाले पर भी खूब यकीन रखता था. जब भी लोकसभा या विधानसभा का चुनाव आता, तो सूरज पार्टी का  झंडा उठाए रहता. जब कभी राजनीतिक बातें निकलतीं, तो वह सरकार की खूब तारीफ करता.

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इसी तरह दिन गुजरते चले गए. सूरज बीए हो गया. अब वह घर पर रह कर ही किसी कंपीटिशन इम्तिहान की तैयारी के लिए सोचता, पर मुमकिन होता दिखाई नहीं देता, जबकि उसी दौरान उस ने कंपीटिशन की तैयारी के लिए कई प्रतियोगी पत्रिकाएं भी खरीदी थीं, घर पर रह कर पढ़ाई की थी, पर कामयाबी नहीं मिल सकी थी.

सूरज जानता था कि परिवार के बीच रह कर प्रतियोगिता का इम्तिहान पास करना टेढ़ी खीर जैसा है और शहर में रह कर तैयारी करने के लिए उस के पास पैसे नहीं हैं. इधर बुढ़ापे की वजह से उस के मांबाप भी मेहनतमजदूरी करने से लाचार होते जा रहे थे.

उसी दौरान सूरज 2-2 बेटियों का बाप भी बन चुका था. उन में एक ढाई साल की थी, तो दूसरी 6 महीने की. न चाहते हुए भी 2-2 बच्चियों का पिता बनने पर सूरज इस हकीकत को अच्छी तरह सम झता था कि बिलकुल ही छोटे से घर में पत्नी से दूरियां बना कर रहना मुमकिन नहीं था, जबकि उन दोनों बच्चियों के जन्म पर सूरज के मांबाप की सोच थी कि ऊपर वाला देता है, तो वह पार भी लगाता है.

जबकि सूरज की सोच अपने मांबाप से अलग थी. वह जानता था कि अब कुछ करना होगा वरना या तो हम लोग फटेहाली के कगार पर पहुंच जाएंगे या फिर इतना पढ़लिख कर भी उसे बंधुआ मजदूर बनने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

आश्विन का महीना था. चारों तरफ दुर्गा पूजा की तैयारियां चल रही थीं. जगहजगह रंगारंग कार्यक्रम के आयोजन होने वाले थे. दीवाली भी सिर पर थी. इसी मौके पर बगल के गांव का साथी रोहित छुट्टी पर घर आया था. वह कभी सूरज के साथ ही पढ़ता था, पर घर की माली तंगी की वजह से इंटर पास करने के बाद ही गुजरात चला गया था और प्राइवेट कंपनी में काम करने लगा था.

सूरज ने इस बार साथ चलने को कहा, तो रोहित जब वापस जाने लगा, तो सूरज को भी साथ लेता गया और प्राइवेट कंपनी में काम दिलवा दिया.

सूरज जिस कंपनी में काम करता था, उस में 8 घंटे के बजाय काम तो 12 घंटे करना पड़ता था, पर तनख्वाह 10,000  रुपए महीने ही मिलती थी. इस के अलावा कंपनी की तरफ से ही खानेपीने और रहने का इंतजाम था.

अब सूरज हर महीने सिर्फ घर पर पैसे ही नहीं भेजता था, बल्कि दोनों बच्चियों के नाम से बीमा भी करवा लिया था. फोन पर मांबाप को कह दिया था कि अब उन्हें मेहनतमजदूरी करने की कोई जरूरत नहीं है. आराम से खाइए, पीजिए और मस्त रहिए.

यह सुन कर मांबाप की आंखों में खुशी के आंसू भी छलक पड़े.

इस के साथ ही सूरज अपने मन में तरहतरह के सपने भी बुनने लगा था. उन सपनों में छोटा ही सही, पर अच्छा मकान बनाने, बच्चियों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने और घर में तरहतरह की सुविधाएं शामिल थीं. इन्हीं सपनों के साथ समय अपनी रफ्तार से बढ़ता जा रहा था.

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जब फागुन का महीना आया, वसंत का मदमाता मौसम लोगों के मन को गुदगुदाने लगा, तो पुष्पा को सूरज की कमी खलने लगी. इस दौरान उस की सूरज से बातें हुईं, तो पुष्पा ने पूछा, ‘क्या होली में अकेले ही रहना पड़ेगा?’

सूरज ने कहा, ‘इच्छा तो मेरी भी थी कि घर आऊं, पर लग नहीं रहा है. कंपनी के ऐसे बहुत सारे लोग होली की छुट्टी में अपने घर जा रहे हैं, जो सालभर से घर नहीं गए थे.

‘पुष्पा, अगर होली में नहीं आ पाऊंगा, तो शायद छठ के मौके पर एक हफ्ते के लिए ही सही, पर जरूर आऊंगा.’

लेकिन होली के बाद कोरोना की महामारी की सुगबुगाहट शुरू हो गई. देखते ही देखते सरकार ने स्कूलकालेजों, मौल, सिनेमाघरों, बाजारों को बंद करने का ऐलान कर दिया. लोगों में डर का माहौल काले बादलों की तरह छाने लगा.

फिर एकाएक सरकार ने एक दिन के लौकडाउन का भी ऐलान कर दिया. तब लगा, शायद इस से महामारी से नजात मिल जाएगी, पर दूसरी तरफ अखबारों और टीवी चैनलों में देश के कोनेकोने में कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों की सूचना आने लगी.

फिर क्या था, सरकार ने आम लोगों की सुविधाओं का खयाल रखे बिना  21 दिन के लिए लौकडाउन का ऐलान कर दिया. इस के बाद हवा में खबर भी तैरने लगी कि लौकडाउन का समय बढ़ भी सकता है.

यह देख कर पूरे देश में अफरातफरी मच गई. देश के कोनेकोने में सरकारी और गैरसरकारी कंपनियों को बंद करा दिया गया, पर उस में काम करने वाले मुलाजिम कहां रहेंगे? कैसे रहेंगे? इस बारे में सरकार ने जरा भी नहीं सोचा.

सरकारी व गैरसरकारी कंपनियों के मालिकों ने अपने मुलाजिमों को सुविधाएं मुहैया कराने के मामले में अपने हाथ खड़े कर दिए. शहर में खानेपीने जैसी सारी दुकानें बंद करवा दी गईं. यातायात सुविधाएं एकाएक ठप हो गईं. अब मुलाजिमों के सामने सब से बड़ा संकट खड़ा हो गया कि कहां जाएं, क्योंकि भूखेप्यासे हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल तय करना मौत को न्योता देने से कम नहीं लग रहा था.

सूरज इसी लौकडाउन में बुरी तरह फंस चुका था. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कई सालों से सूरज जिस सरकार की तारीफ करता आ रहा था, अब वही सरकार बुरी लगने लगी थी. वह रहरह कर गालियां भी बकने लगा था. सोच रहा था कि जब खुद की लापरवाही की वजह से इतने दिनों में कुछ नहीं बिगड़ा था, तो 3-4 दिनों में क्या बिगड़ जाता? अगर बिगड़ ही जाता, तो हम जैसे लोगों पर ध्यान देने की जवाबदेही तो उठानी चाहिए थी.

अब तो मोबाइल से घर पर बातें भी हो रही थीं, पर बातों से खुशियां पूरी तरह गायब थीं. जब सूरज ने देख लिया कि किसी भी सूरत में गुजरात में रह पाना मुमकिन नहीं है, तो एक दिन वह पैदल ही घर के लिए चल दिया, जबकि ऐसा भी नहीं था कि रास्ते में पैदल चलने वालों में सूरज सिर्फ अकेला था. उस की तरह सैकड़ोंहजारों लोग सड़कों पर उमड़े दिखाई पड़ रहे थे.

रास्ते में कहीं कोई सुविधा नहीं थी. अगर कहीं होता तो पुलिस वालों के डंडे का शिकार होना पड़ता. न रहने का ठिकाना, न खाने का. दिन में तेज धूप का सामना करना पड़ता, तो रात में  ठंड का.

धीरेधीरे सूरज के शरीर ने जवाब देना शुरू कर दिया. फिर भी दम मारता, पैर घसीटता वह आगे बढ़ता चला जा रहा था. उसी बीच एक रात सूरज पूरी थकावट में सोया था कि उस की जेब से मोबाइल फोन, कुछ नकदी और एटीएम कार्ड गायब हो गए.

अब सूरज के सामने मौत के सिवा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. शरीर पूरी तरह से जवाब दे चुका था. वैसे तो उस समय तक वह कुछ दिनों में सैकड़ों किलोमीटर की दूरियां तय कर चुका था, पर अभी भी कई ज्यादा किलोमीटर की दूरियां तय करना बाकी थी.

चलतेचलते सूरज की तबीयत पूरी तरह खराब हो चुकी थी. वह सर्दी, खांसी, जुकाम का शिकार हो चुका था. इसी बीच पुलिस वालों ने उसे गाड़ी में बैठाया और अस्पताल के जनरल वार्ड में भरती करा दिया.

इधर घर वालों की घबराहट काफी बढ़ती चली जा रही थी. उन की नींद हराम हो चुकी थी. इसी बीच 2 दिनों के बाद घर फोन आया कि कोरोना की चपेट में आने की वजह से सूरज की मौत हो गई है.

यह सुनते ही घर में जोरजोर से छाती पीट कर रोने की चीखें सुनाई पड़ने लगीं. गांव से ले कर ससुराल तक में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि सूरज कोरोना का शिकार हो गया, पर यह किस को पता कि सूरज कोरोना वायरस का नहीं, बल्कि लौकडाउन का शिकार हो गया था.

अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का- भाग 1: जब प्रभा को अपनी बेटी की असलियत पता चली!

‘‘वाह मां, ये झुमके तो बहुत सुंदर हैं, कब खरीदे?’’ रंजो ने अपनी मां प्रभा के कानों में झूलते झुमकों को देख कर कहा.

‘‘पिछले महीने हमारी शादी की सालगिरह थी न, तभी अपर्णा बहू ने मुझे ये झुमके और तुम्हारे पापा को घड़ी दी थी. पता नहीं कब वह यह सब खरीद लाई,’’ प्रभा ने कहा.

अपनी आंखें बड़ी कर रंजो बोली, ‘‘भाभी ने, क्या बात है.’’ फिर आह भरते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे तो कभी इस तरह से कुछ नहीं दिया उन्होंने. हां भई, सासससुर को मक्खन लगाया जा रहा है, लगाओ,’ लगाओ, खूब मक्खन लगाओ.’’ उस का ध्यान उन झुमकों पर ही अटका हुआ था, कहने लगी, ‘‘जिस ने भी दिए हों मां, पर मेरा दिल तो इन झुमकों पर आ गया.’’

‘‘हां, तो ले लो न, बेटा. इस में क्या है,’’ कह कर प्रभा ने वे झुमके उतार कर तुरंत अपनी बेटी रंजो को दे दिए. उस ने एक बार यह नहीं सोचा कि अपर्णा को कैसा लगेगा जब वह जानेगी कि उस के दिए उपहारस्वरूप झुमके उस की सास ने अपनी बेटी को दे दिए.

प्रभा के देने भर की देरी थी कि रंजो ने झट से वे झुमके अपने कानों में डाल लिए, फिर बनावटी मुंह बना कर कहने लगी, ‘‘मन नहीं है तो ले लो मां, नहीं तो फिर मेरे पीठपीछे घर वाले, खासकर पापा, कहेंगे कि जब आती है रंजो, कुछ न कुछ ले कर ही जाती है.’’

‘‘कैसी बातें करती हो बेटा, कोई क्यों कुछ कहेगा. और क्या तुम्हारा हक नहीं है इस घर में? तुम्हें पसंद है तो रख लो न, इस में क्या है. तुम पहनो या मैं पहनूं, बात बराबर है.’’

‘‘सच में मां? ओह मां, आप कितनी अच्छी हो,’’ कह कर रंजो अपनी मां के गले लग गई. हमेशा से तो वह यही करती आई है, जो पसंद आया उसे रख लिया, यह कभी न सोचा कि वह चीज किसी के लिए कितना माने रखती है. कितने प्यार से और किस तरह से पैसे जोड़ कर अपर्णा ने अपनी सास के लिए वे झुमके खरीदे थे, पर प्रभा ने बिना सोचेसमझे उठा कर झुमके अपनी बेटी को दे दिए.

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अरे, वह यह तो कह सकती थी कि ये झुमके तुम्हारी भाभी ने बड़े शौक से मुझे खरीद कर दिए हैं, इसलिए मैं तुम्हें दूसरे बनवा कर दे दूंगी. पर नहीं, कभी उस ने बेटी के आगे बहू की भावना को समझा है, जो अब समझेगी?

‘‘मां, देखो तो मेरे ऊपर ये झुमके कैसे लग रहे हैं, अच्छे लग रहे हैं न, बोलो न मां?’’ आईने में खुद को निहारते हुए रंजो कहने लगी, ‘‘वैसे मां, आप से एक शिकायत है.’’

‘‘अब किस बात की शिकायत है?’’ प्रभा ने पूछा.

‘‘मुझे नहीं, बल्कि आप के जमाई को, कह रहे थे आप ने वादा किया था उन से ब्रेसलेट देने का, जो अब तक नहीं दिया.’’

‘‘ओ, हां, याद आया, पर अभी पैसे की थोड़ी तंगी है, बेटा. तुझे तो पता ही है कि तेरे पापा को कितनी कम पैंशन मिलती है. घर तो अपर्णा बहू और मानव की कमाई से ही चलता है,’’ अपनी मजबूरी बताते हुए प्रभा ने कहा.

‘‘वह सब मुझे नहीं पता है मां, वह आप जानो और आप के जमाई. बीच में मुझे मत घसीटो,’’ झुमके अपने पर्स में सहेजते हुए रंजो ने कहा और चलती बनी.

‘‘बहू के दिए झुमके तुम ने रंजो को दे दिए?’’ हैरत से भरत ने अपनी पत्नी प्रभा से पूछा.

‘‘हां, उसे पसंद आ गए तो दे दिए,’’ बस इतना ही कहा प्रभा ने और वहां से जाने लगी, जानती थी वह कि अब भरत चुप नहीं रहने वाले.

‘‘क्या कहा तुम ने, उसे पसंद आ गए? हमारे घर की ऐसी कौन सी चीज है जो उसे पसंद नहीं आती है, बोलो? जब भी आती है कुछ न कुछ उठा कर ले ही जाती है. जरा भी शर्म नहीं है उसे. उस दिन आई तो बहू का पर्स, जो उस की दोस्त ने उसे दिया था, उठा कर ले गई. कोई कुछ नहीं कहता तो इस का मतलब यह नहीं कि वह अपनी मनमरजी करेगी,’’ गुस्से से आगबबूला होते हुए भरत ने कहा.

तिलमिला उठी प्रभा. अपने पति की बातों पर बोली, ‘‘ऐसा कौन सी जायदाद उठा कर ले गई वह, जो तुम इतना सुना रहे हो? अरे एक जोड़ी झुमके ही तो ले गई है. जाने क्यों रंजो, हमेशा तुम्हारी आंखों में खटकती रहती है?’’

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भरत भी चुप नहीं रहे. कहने लगे, ‘‘किस ने मना किया तुम्हें जायदाद देने से, दे दो न जो देना है, पर किसी का प्यार से दिया हुआ उपहार यों ही किसी और को देना, क्या यह सही है? अगर बहू ऐसा करती तो तुम्हें कैसा लगता? कितने अरमानों से वह तुम्हारे लिए झुमके खरीद कर लाई थी और तुम ने एक मिनट भी नहीं लगाया उसे रंजो को देने में.’’

‘‘किसी को नहीं, बेटी को दिए हैं, समझे, बड़े आए बहू के चमचे, हूं…’’

‘‘अरे, तुम्हारी बेटी तुम्हारी ममता का फायदा उठा रही है और कुछ नहीं. किस बात की कमी है उसे? हमारे बेटेबहू से ज्यादा कमाते हैं वे दोनों पतिपत्नी, फिर भी कभी हुआ उसे कि अपने मांबाप के लिए

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