‘दिस इज टू मच’ ये शब्द शूल की तरह मेरे हृदय को भेद रहे हैं. मानो मेरे कानों में कोई पिघला शीशा उड़ेल रहा हो. मेरा घर भी अखबारों की सुर्खियां बनेगा, यह तो मैं ने स्वप्न में भी न सोचा  था. हमारे हंसतेखेलते घर को न जाने किस की हाय लग गई. हम 4 जनों का छोटा सा खुशहाल परिवार - बेटा बीटैक थर्ड ईयर का छात्र और बेटी बीटैक फर्स्ट ईयर की. कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए जब सभी कालेजों और स्कूलों से विद्यार्थियों को घर वापस भेजा जाने लगा और मेरा भी विद्यालय बंद हो गया तो मैं प्रसन्न हो गई कि बरसों बाद अपने बच्चों के साथ मुझे समय बिताने का मौका मिलेगा.

कानपुर आईआईटी में पढ़ने वाला मेरा बेटा और बीबीडी इंजीनियरिंग कालेज लखनऊ में पढ़ने वाली मेरी बेटी जब घर आए तो मेरा घर गुलजार हो गया.

बच्चे घर पर नहीं थे, तो नरेंद्र अपनी पुलिस की ड्यूटी निभाने में व्यस्त रहते थे और मैं कोश्चन पेपर बनाने, वर्कशीट बनाने और पढ़नेलिखने में. बस, यही व्यस्त दिनचर्या रह गई थी हमारी.

जब बच्चे घर आए तो उन से बातें करते, मिलजुल कर घर के काम करते, और साथ बैठ कर टीवी देखते तथा मजे करते  दिन कैसे बीत जाता, पता ही नहीं चलता.  पर मेरी यह खुशी ज्यादा दिन न टिक पाई.

सौरभ और सुरभि ने कुछ दिनों तो मेरे साथ खुशीखुशी समय बिताया, फिर बोर होने लगे, बातों का खजाना खाली हो गया और घर का काम बोझ लगने लगा, उमंग और उल्लास का स्रोत सूखने लगा. दोनों अपनेअपने कमरों में अपनेअपने मोबाइल व लैपटौप के साथ अपनी ही दुनिया में मग्न रहते.

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