Crime Story: दौलत की खातिर दांव पर लगी दोस्ती

19मार्च, 2021 की रात 10 बजे शीला देवी अपने देवर आनंद प्रजापति के साथ जनता नगर चौकी पहुंचीं. उस समय इंचार्ज ए.के. सिंह चौकी पर मौजूद थे. उन्होंने शीला देवी को बदहवास देखा, तो पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम घबराई हुई क्यों हो? कोई गंभीर बात है क्या?’’

‘‘हां सर. हमें किसी अनहोनी की आशंका है.’’

‘‘कैसी अनहोनी? साफसाफ पूरी बात बताओ.’’

‘‘सर, दरअसल बात यह है कि रात 8 बजे मेरा बेटा शैलेश, उस का दोस्त अर्श गुप्ता व विनय घर पर नीचे कमरे में शराब पी रहे थे. कुछ देर बाद कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आईं. फिर वे लोग बाइक से कहीं चले गए.

‘‘उन के जाने के बाद मैं कमरे में गई, तो वहां खून से सनी चादर देखी. अनहोनी की आशंका से मैं घबरा गई. मैं ने इस की जानकारी पड़ोस में रहने वाले अपने देवर आनंद को दी, फिर उन के साथ सूचना देने आप के पास आ गई. आप मेरी मदद करें.’’

शीला देवी की बात सुनकर ए.के. सिंह को लगा कि जरूर कोई अनहोनी घटना घटित हुई है. उन्होंने यह सूचना बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को दी फिर 2 सिपाहियों के साथ शीला देवी के बर्रा भाग 8 स्थित मकान पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के चंद मिनट बाद ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह भी आ गए.

हरमीत सिंह ने ए.के. सिंह के साथ कमरे का निरीक्षण किया तो सन्न रह गए. कमरे के फर्श पर खून पड़ा था और पलंग पर बिछी चादर खून से तरबतर थी. कमरे का सामान भी अस्तव्यस्त था. खून की बूंदें कमरे के बाहर गली तक टपकती गई थीं.

निरीक्षण के बाद हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कमरे के अंदर कत्ल जैसी वारदात हुई है या फिर गंभीर रूप से कोई घायल हुआ है. शैलेश और उस का दोस्त या तो लाश को ठिकाने लगाने गए हैं या फिर अस्पताल गए हैं. कहीं भी गए हों, वे लौट कर घर जरूर आएंगे. अत: उन्होंने घर के आसपास पुलिस का पहरा लगा दिया तथा खुद भी निगरानी में लग गए.

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रात लगभग डेढ़ बजे शैलेश और उस का दोस्त अर्श गुप्ता वापस घर आए तो पुिलस ने उन्हें दबोच लिया और थाना बर्रा ले आए. दोनों के हाथ और कपड़ों पर खून लगा था. इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने पूछा, ‘‘तुम दोनों ने किस का कत्ल किया है और लाश कहां है?’’

शैलेश कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपने बचपन के दोस्त विनय प्रभाकर का कत्ल किया है. वह बर्रा भाग दो के मनोहर नगर में रामजानकी मंदिर के पास रहता था. उस की लाश को मैं ने अर्श की मदद से रिंद नदी में फेंक दिया है. पैट्रोल खत्म हो जाने की वजह से हम ने विनय की मोटरसाइकिल खाड़ेपुर-फत्तेपुर मोड़ पर खड़ा कर दी और वापस लौट आए.’’

‘‘तुम ने अपने दोस्त का कत्ल क्यों किया?’’ थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने शैलेश से पूछा.

इस सवाल पर शैलेश काफी देर तक हरमीत सिंह को गुमराह करता रहा. पहले वह बोला, ‘‘साहब, नशे में गलती हो गई. हम ने उस का कत्ल कर दिया.’’

फिर बताया कि उस के मोबाइल फोन में उस की महिला मित्र की कुछ आपत्तिजनक फोटो थीं. उन फोटो को विनय ने धोखे से अपने मोबाइल फोन में ट्रांसफर कर लिया था. वह उन फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल कर रहा था, इसलिए हम ने उसे मार डाला.

लेकिन थानाप्रभारी हरमीत सिंह को उस की इन दोनों बातों पर यकीन नहीं हुआ. सच्चाई उगलवाने के लिए उन्होंने सख्ती की तो दोनों टूट गए.

फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 लाख रुपए की फिरौती मांगने के लिए विनय की हत्या की योजना बनाई थी. कुछ माह पहले संजीत हत्याकांड की तरह शव को ठिकाने लगाने के बाद उसी के मोबाइल फोन से उस के घर वालों को फोन कर फिरौती मांगने की योजना थी. उस ने दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की थी. लेकिन फिरौती मांगने के पहले ही वे पकड़े गए.

शैलेश व अर्श की जामातलाशी में उन के पास से 3 मोबाइल फोन मिले, जिस में एक मृतक विनय का था तथा बाकी 2 शैलेश व अर्श के थे. उन के पास एक पर्स भी बरामद हुआ जिस में मृतक का फोटो, आधार कार्ड तथा कुछ रुपए थे. बरामद पर्स मृतक विनय प्रभाकर का था.

शैलेश व अर्श गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल बांका तथा लाश ठिकाने लगाने में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. बांका उस ने अपने कमरे में छिपा दिया था और पैट्रोल खत्म होने से उस ने मोटरसाइकिल खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ी कर दी थी.

फिरौती और हत्या के इस मामले में थानाप्रभारी हरमीत सिंह कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे. क्योंकि इस के पहले संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस गच्चा खा चुकी थी. अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम भी ले ली थी और उस की हत्या भी कर दी थी.

इस मामले में लापरवाही बरतने में एसपी व डीएसपी सहित 5 पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था. अत: उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.

सूचना पा कर रात 3 बजे एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय थाना बर्रा पहुंच गए. उन्होंने घटना के संबंध में गिरफ्तार किए गए शैलेश व अर्श गुप्ता से विस्तार से पूछताछ की. फिर दोनों को साथ ले कर रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. इस के

बाद कातिलों की निशानदेही पर नदी किनारे पड़ा विनय प्रभाकर का शव बरामद कर लिया.

विनय की हत्या बड़ी निर्दयतापूर्वक की गई थी. उस का गला धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से सांस की नली कट गई थी और उस की मौत हो गई थी. मृतक विनय की उम्र 26 वर्ष के आसपास थी और उस का शरीर हृष्टपुष्ट था.

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20 मार्च की सुबह 5 बजे बर्रा थाने के 2 सिपाही मृतक विनय के घर पहुंचे और उस की हत्या की खबर घर वालों को दी. खबर पाते ही घर व मोहल्ले में सनसनी फैल गई. घर वाले रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. वहां विनय का शव देख कर मां विमला तथा बहन रीता बिलख पड़ीं. पिता रामऔतार प्रभाकर तथा भाई पवन की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली. पुलिस अधिकारियों ने उन्हे धैर्य बंधाया.

पवन ने एसपी दीपक भूकर को बताया कल शाम साढ़े 7 बजे किसी का फोन आने पर उस का भाई विनय यह कह कर अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से घर से निकला था कि अपने दोस्त से मिलने जा रहा है. उस के बाद वह घर नहीं लौटा.

रात भर हम लोग उस के घर वापस आने का इंतजार करते रहे. उस का फोन भी बंद था. सुबह 2 सिपाही घर आए. उन्होंने विनय की हत्या की सूचना दी. तब हम लोग यहां आए. लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि विनय की हत्या किस ने और क्यों की?

‘‘तुम्हारे भाई की हत्या किसी और ने नहीं, उस के बचपन के दोस्त शैलेश प्रजापति व उस के साथी अर्श गुप्ता ने की है. वह तुम लोगों से फिरौती के 10 लाख रुपए वसूलना चाहते थे. लेकिन शैलेश की मां ने ही उस का भांडा फोड़ दिया और दोनों पकड़े गए.’’

यह जानकारी पा कर पवन व उस के घर वाले अवाक रह गए. क्योंकि वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि शैलेश ऐसा विश्वासघात कर सकता है.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह शैलेश के उस कमरे में पहुंचे, जहां विनय का कत्ल किया गया था.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी बेंजाडीन टेस्ट कर साक्ष्य जुटाए.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल बांका भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मृतक के भाई पवन को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 तथा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत शैलेश प्रजापति तथा अर्श गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

उन्हें न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की सनसनीखेज घटना का खुलासा हुआ.

कानपुर शहर का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-बर्रा. इस क्षेत्र के बड़ा होने से इसे कई भागों में बांटा गया है. रामऔतार प्रभाकर अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के भाग 2 में मनोहरनगर में जानकी मंदिर के पास रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे पवन कुमार, विनय कुमार तथा बेटी रीता कुमारी थी. रामऔतार प्रभाकर आर्डिनैंस फैक्ट्री में काम करते थे. किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

फैक्ट्री में रामऔतार प्रभाकर के साथ सोमनाथ प्रजापति काम करते थे. सोमनाथ भी बर्रा भाग 8 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शीला देवी के अलावा एकलौता बेटा शैलेश था. सोमनाथ भी रिटायर हो चुके थे. सोमनाथ बीमार रहते थे. उन्हें सुनाई भी कम देता था और दिखाई भी. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

रामऔतार और सोमनाथ इस के पहले अर्मापुर स्थित फैक्ट्री की कालोनी में रहते थे. 3 साल पहले दोनों ने बर्रा क्षेत्र में जमीन खरीद ली थी और अपनेअपने मकान बना कर रहने लगे थे. मकान बदलने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कमी नहीं आई थी. दोनों परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

रामऔतार का बेटा विनय और सोमनाथ का बेटा शैलेश बचपन के दोस्त थे. दोनों एकदूसरे के घर आतेजाते थे. विनय ने हाईस्कूल पास करने के बाद आईटीआई से मशीनिस्ट का कोर्स किया था. वह नौकरी की तलाश में था. जबकि शैलेश ड्राइवर बन गया था. वह बुकिंग की कार चलाता था.

शैलेश का एक अन्य दोस्त अर्श गुप्ता था. वह फरनीचर कारीगर था और गुजैनी गांव में रहता था. अर्श और शैलेश शराब के शौकीन थे. अकसर दोनों साथ पीते थे और लंबीलंबी डींग हांकते थे. उन दोनों ने विनय को भी शराब पीना सिखा दिया था. अब हर रविवार को शैलेश के घर शराब पार्टी होती थी. तीनों बारीबारी से पार्टी का खर्चा उठाते थे.

एक शाम खानेपीने के दौरान विनय ने शैलेश व अर्श को बताया कि उस की बहन रीता की शादी तय हो गई है. 27 अप्रैल को बारात आएगी. शादी में लगभग 10-12 लाख रुपया खर्च होगा. पिता व भाई ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.

शैलेश व अर्श मामूली कमाने वाले युवक थे. वह शार्टकट से लखपति बनना चाहते थे. इस के लिए शैलेश उरई में पान मसाला का कारोबार करना चाहता था. उरई में वह जगह भी देख आया था. लेकिन कारोबार के लिए उस के पास पैसा नहीं था.

पैसा कहां से और कैसे आए, इस के लिए शैलेश और अर्श ने सिर से सिर जोड़ कर विचारविमर्श किया तो उन्हें विनय याद आया. विनय ने बताया था कि उस के यहां बहन की शादी है और घर वालों ने 10-12 लाख रुपए का इंतजाम किया है.

दौलत की चाहत में शैलेश व अर्श ने दोस्त के साथ छल करने और फिरौती के रूप में 10 लाख रुपया वसूलने की योजना बनाई. संजीत हत्याकांड दोनों के जेहन में था. उसी तर्ज पर उन दोनों ने विनय की हत्या कर के उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई.

योजना के तहत 19 मार्च, 2021 की रात पौने 8 बजे शैलेश ने अर्श के मोबाइल से विनय प्रभाकर के मोबाइल पर काल की और पार्टी के लिए घर बुलाया.

विनय की 5 दिन पहले ही लोहिया फैक्ट्री में नौकरी लगी थी. फैक्ट्री से वह साढ़े 7 बजे घर लौटा था कि 15 मिनट बाद शैलेश का फोन आ गया. पार्टी की बात सुन कर वह शैलेश के घर जाने को राजी हो गया.

रात 8 बजे विनय अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से बर्रा भाग 8 स्थित शैलेश के घर पहुंच गया. उस समय कमरे में शैलेश व अर्श गुप्ता थे और पार्टी का पूरा इंतजाम था. इस के बाद तीनों ने मिल कर खूब शराब पी. विनय जब नशे में हो गया तो योजना के तहत अर्श व शैलेश ने उसे दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे.

विनय ने जब खुद को जाल में फंसा देखा तो वह भी भिड़ गया. कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. इसी बीच शैलेश ने कमरे में छिपा कर रखा बांका निकाला और विनय की गरदन पर वार कर दिया. विनय का गला कट गया और वह फर्श पर गिर पड़ा.

इस के बाद अर्श ने विनय को दबोचा और शैलेश ने उस की गरदन पर 2-3 वार और किए. जिस से विनय की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद उन दोनों ने शव को तोड़मरोड़ कर चादर व कंबल में लपेटा और फिर विनय की मोटरसाइकिल पर रख कर रिंद नदी में फेंक आए. वापस लौटते समय उन की बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया, इसलिए उन्होंने बाइक को खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ा कर दिया. फिर पैदल ही घर आ गए.

घर पर उन के स्वागत के लिए बर्रा पुलिस खड़ी थी, जिस से वे पकड़े गए. दरअसल, शैलेश की मां शीला ने ही कमरे में खून देख कर पुलिस को सूचना दी थी, जिस से पुलिस आ गई थी.

21 मार्च, 2021 को थाना बर्रा पुलिस ने आरोपी शैलेश प्रजापति व अर्श गुप्ता को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी  अनंत है.

यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है

आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में  सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.

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इसलिए इसी रिपोर्ट के माध्यम से आपको सावधान करते हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमारे परिवार में नन्हे बच्चे हैं तो हम जागरूक रहे, हमारी जागरूकता के बगैर बच्चों के साथ यौन शोषण संभव हो सकता है.

और नाबालिग की शादी कर दी!

ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़  के जिला रायगढ़ के थाना  लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे  संवाददाता को  जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया  – बालिका की मां  दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में  रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल  उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम)  को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा. भरोसा कर महिला  ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो  देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी  ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.

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यह सब देख कर बालिका की मां भौचक्र रह गई. सबसे बड़ा अपराध यह की बालिका के  परिवारवालों को कथित विवाह की जानकारी भी नहीं दी गई . और जब महिला ने अपनी बेटी को अपने साथ लेकर अपने घर लैलूंगा जाऊंगी कहा तो उसे झगड़ा कर भगा दिया गया . अंततः महिला ने बेटी का शोषण किये जाने के संबंध में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस के समक्ष यह मामला आया तो जिला रायगढ़ पुलिस ने मामला पंजीबद्ध कर लिया.
जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया आरोपी पिता-पुत्र  आरोपी ईश्वर बारीक पिता चक्रधर बारीक उम्र 50 वर्ष उसके पुत्र गणेश बारीक उम्र 21 साल दोनों निवासी ग्राम कुराई महकुलपारा थाना तलसरा जिला सुन्दरगढ़ ओडिशा को हिरासत में लेकर उनके बयान लिए गए और गंभीर अपराध पाए जाने पर मामला पंजीबद्ध किया गया. प्रकरण में साक्ष्य के आधार पर आरोपियों के विरूद्ध धारा 9, 10 बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम, 4, 8 पास्को एक्ट जोड़ी गई है.

Serial Story: बीवी का आशिक- भाग 2

लेखक- एम. अशफाक

डीआईजी साहब ने उन की बात ध्यान से सुनी, एसपी से सलाह भी ली, उन्हें रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने के लिए कहा, लेकिन बेकार. एसपी साहब टस से मस नहीं हुए.

एसपी ने कहा, ‘‘आप को हत्यारा चाहिए, आप अकबर शाह और तलजा राम को गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दीजिए, हत्यारा स्वयं चल कर आ जाएगा.’’ लेकिन डीआईजी साहब तैयार नहीं हुए.

मैं उन दिनों सिंध क्राइम ब्रांच में एसपी था. मेरे पास ऐसे बहुत से केस आते रहते थे. एक दिन मेरी मेज पर रेलवे एसपी साहब की तफ्तीश की फाइल भी आ पहुंची. डीआईजी ने मुझे उस की तफ्तीश के लिए कहा था. साथ ही अकबर शाह और तलजा राम को मीरपुर खास से दूसरे शहर में तैनात कर दिया, जिस से तफ्तीश में कोई बाधा न पडे़े.

रेलवे के एसपी साहब मेरे सीनियर भी थे और अच्छे दोस्त भी. तफ्तीश में हिचकिचाहट तो हो रही थी लेकिन हुक्म तो हुक्म था, इसलिए मैं ने काम शुरू कर दिया.

सब से पहले मैं एसपी साहब से मिला और उन से तफ्तीश के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि वे दोनों कैसे आदमी हैं. उन दोनों की प्रसिद्धि आप ने भी सुन रखी होगी. अपने अपमान का बदला कैसे लेते हैं, यह भी आप जानते होंगे. उन के लिए हत्या करवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मृतक कोई आम आदमी नहीं, रेलवे का उच्च अधिकारी था. उस की हत्या करने की हिम्मत उन के अलावा किसी में नहीं हो सकती.’’

‘‘यह बात तो ठीक है, लेकिन किसी की इतनी जल्दी हत्या करवाना भी तो संभव नहीं है. पथोरो से गाड़ी रात के 8 बजे चली, शादीपुर स्टेशन वहां से 14 मील दूर है. गाड़ी वहां करीब 9 बजे पहुंची होगी, 4 मिनट वहां ठहरी भी होगी. अकबर और तलजा राम वहां नहीं उतरे, बल्कि हैदराबाद गए थे. उन्होंने 2-4 मिनट में हत्यारा कैसे तलाश कर लिया, जो वहां से गाड़ी में सवार हो कर पथोरो जा पहुंचा.’’

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‘‘यह सब तो ठीक है लेकिन सवाल यह है कि फिर हत्या किस ने की? वह तो पथोरो पहली बार आया था. वह सीधासादा इंसान था. उस का न किसी से लेना था न देना. न झगड़ा न फसाद, उस का अचानक दुश्मन कैसे पैदा हो गया? जाइए इन सूबेदारों के अलावा कोई और हत्यारा ढूंढि़ए.’’

मैं पथोरो जाने के लिए तैयार हुआ, मेरे साथ मेरा अर्दली था. हैदराबाद से पथोरो 105 मील था. मुझे वहां पहुंचने में 5 घंटे लगे. पथोरो स्टेशन दूसरे कस्बों के स्टेशनों जैसा छोटा सा था और वीरान पड़ा था.

वहां पहुंच कर स्टेशन के वेटिंग रूम में अपना सामान रख कर मैं स्टेशन मास्टर से मिला. घटनास्थल का निरीक्षण किया, रेलवे एसपी साहब की रिपोर्ट को दोबारा पढ़ा. अपना काम शुरू करने से पहले मैं ने एसपी साहब की रिपोर्ट में लिखी खास बातों को देखा और उन पर आगे की काररवाई करने का निश्चय किया.

उस दिन जिस ट्रेन में मृतक और सूबेदार यात्रा कर रहे थे, वह जोधपुर से हैदराबाद जा रही थी. मृतक पहले से ही उस में सवार था. पथोरो पहुंच कर जब वह गाड़ी से उतरा, तभी अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार होने लगे. उन्हें फर्स्ट क्लास में सवार होते देख कर मृतक को संदेह हुआ, उस ने टीटी से कह कर उन के टिकट चैक करवाए. उन के टिकट फर्स्ट क्लास के नहीं थे इस पर उस ने उन्हें फर्स्ट क्लास से निकलवा दिया. फिर गाड़ी आगे के लिए रवाना हुई.

उस समय रात के 8 बजे थे. दोनों सूबेदार जब अगले स्टेशन शादीपुर पहुंचे तब रात के 9 बजे थे. उस समय वहां एक माल गाड़ी पथोरो जाने के लिए तैयार हो रही थी. दोनों सूबेदारों के चोरों के साथ संबंध थे. उन्होंने उस रेलवे अफसर को ठिकाने लगाने के लिए वहां एक बदमाश को ढूंढ निकाला. वह हत्या करने के लिए तुरंत तैयार हो गया और उसी माल गाड़ी में बैठ कर पथोरो पहुंच गया.

दोनों सूबेदार हैदराबाद चले गए. उस हत्यारे ने प्लेटफार्म पर सोेते हुए रेलवे अफसर की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी. कहानी अच्छी थी, लेकिन किसी भी तरह मुझे सच नहीं लग रही थी. वे दोनों सूबेदार बदमाश होंगे, हत्या भी करवा सकते थे लेकिन इतनी जल्दी यह काम नहीं हो सकता था. मुझे इस पूरी कहानी पर यकीन नहीं आया.

मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट निकाल कर पढ़ी. उस में लिखा था कि हत्या एक तेज धारदार हथियार से सिर की बाईं ओर वार कर के की गई थी. इस के अलावा पूरे शरीर पर कोई घाव नहीं था. इस से यह पता लगा कि जब मृतक की हत्या हुई तब वह बाईं ओर करवट ले कर सो रहा था.

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मैं ने स्टेशन मास्टर को बुलाया और उस के साथ उस जगह गया, जहां मृतक सोया हुआ था. वहीं खड़ेखड़े मैं ने उस से कुछ प्रश्न किए. उस ने बताया कि गाड़ी जाने के बाद मृतक मेरे कमरे में आया था. वह कुछ देर बैठा, अगले दिन के निरीक्षण के बारे में कुछ निर्देश दिए और वेटिंग रूम चला गया.

स्टेशन मास्टर ने उस से खाने को पूछा तो उस ने कहा कि वह खाना साथ लाया है. मैं ने एएसएम से कहा तो उस ने प्लेट फार्म के अंतिम सिरे पर उस के लिए एक पलंग लगवा दिया ताकि आनेवाली गाडि़यों से उस के आराम में खलल न पडे़. मृतक ने अपना बिस्तर खुद बिछाया और मुंह ढक कर सो गया.

उस के बाद सब लोग वहां से चले आए. बाकी स्टाफ तो अपने क्वार्टरों पर चला गया, लेकिन एएसएम अपने दफ्तर की एक बेंच पर सो गया. स्टेशन मास्टर तो बूढ़ा और वहां नया था, लेकिन एएसएम पुराना था और वहां के सब लोगों को जानता था. मैं ने उसे बुलवा कर उस से पूछा, ‘‘उस रात तुम कहां सोए थे?’’

‘‘जी, मैं स्टेशन मास्टर के दफ्तर के बाहर एक बेंच पर लेटा था.’’

‘‘वैसे तुम हर रात कहां सोते हो?’’

Serial Story: अस्मत का सौदा- भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

जब रात में आहट हुई, तो रणबीर का मन बल्लियों उछल गया. सामने मुमताज खड़ी थी. उसे देख कर रणबीर अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रख सका और जा कर मुमताज से लिपट गया और बेतहाशा चूमने लगा. मुमताज ने कोई विरोध नहीं किया.

कुछ देर बाद रणबीर को अपने से अलग करते हुए मुमताज बोली, ‘‘अब यहीं शुरू रहोगे या अंदर भी चलने दोगे.‘‘

दोनों बेडरूम में आ गए थे. रणबीर पर नशा हावी हो रहा था और अपने सामने एक जवान और खूबसूरत लड़की को देख कर उस से रहा नहीं जा रहा था, पर मुमताज तो कुछ और ही सोच कर आई थी.

‘‘तुम नेताजी से इतना डरते क्यों हो… मैं ने अकसर देखा है कि वे तुम्हें डांटते रहते हैं,‘‘ रणबीर सिंह के बालों में उंगली घुमाते हुए मुमताज ने कहा.

‘‘अरे, वो साला दो कौड़ी का आदमी मुझे क्या डांटेगा… मेरे पास उस की एक दूसरी पार्टी की महिला नेता के साथ सैक्स सीडी भी है, जिसे मैं जब चाहूं तब मीडिया में जा कर सरेआम कर सकता हूं… बस कुछ ऐसे कारण हैं, जिन की वजह से मैं रुका हुआ हूं,‘‘ रणबीर ने बताया.

‘‘तो फिर तुम ऐसे ही डांट कब तक खाते रहोगे और फिर नेताजी की ऐसी कौन सी राज की बात है, जिसे तुम मुझे भी नहीं बता रहे हो…‘‘ मुमताज ने दांव खेला.

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रणबीर ने मुमताज के होंठों को चूमा और बोला, ‘‘मेरी जान, तुम से क्या छिपाना… दरअसल, ये नेता एक नंबर का औरतखोर और भ्रष्ट है. इस ने तुम्हारी बहन रजिया पर भी बुरी नजर डालनी चाही थी, पर मैं ने रजिया को बचा लिया. समय आने पर मैं इस की सब पोलपट्टी खोल दूंगा, तब तक मैं इस के पैसों पर ऐश करना चाहता हूं… और… और इस की एक लड़की भी है, जो विदेश में पढ़ाई कर रही है… बला की खूबसूरत है… मेरा अंतिम लक्ष्य है उसे अपने जाल में फंसा कर उस से शादी करना और इस नेता की जायदाद का वारिस बनना. अगर उस लड़की ने मुझ से शादी करने में जरा भी नानुकुर की, तो उस के जिस्म को रौंद डालूंगा मैं…‘‘ रणबीर ने अपना सारा राज उगल दिया था. अभी वह आगे कुछ और बोलता, इस से पहले एक और जाम मुमताज ने उस के होंठों से लगा दिया, जिसे पीने के बाद रणबीर को तेजी से नींद आ गई. उस के बाद रणबीर कितने घंटे सोया, उसे कुछ पता नहीं चला.

अगले दिन जब रणबीर को होश आया, तब उस का मोबाइल बज रहा था. देखा तो नेताजी का फोन था.

‘‘जी सर,‘‘ हकलाते हुए रणबीर सिंह बोला.

‘‘सर के बच्चे… तुरंत ही मेरे पास आओ… कुछ जरूरी बात करनी है तुम से,‘‘ नेताजी का स्वर कुछ कड़क था.

रणबीर सिंह का सिर बहुत भारी हो रहा था. जैसेतैसे वह नेताजी के पास पंहुचा. नौकरों ने बताया कि वह अपने बेडरूम में आराम कर रहे हैं. बेडरूम के बाहर पहुंच कर रणबीर ने दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘अंदर आ जाओ,‘‘ नेताजी बोले.

बेडरूम का दरवाजा खोल कर जैसे ही रणबीर ने नजर उठाई, तो सामने का नजारा देख कर उस के पैरों तले जमीन ही खिसक गई. सामने नेताजी के बिस्तर पर मुमताज लेटी हुई थी. उस के नंगे बदन पर सिर्फ चादर थी. अभी वह भौंचक्का सा खड़ा ही था कि नेताजी ने उसे बैठने का इशारा किया. रणबीर सोफे पर बैठ गया.

मुमताज अब भी मुसकराए जा रही थी.

नेताजी ने अपने पास रखे हुए रिमोट से दीवार पर लगा हुआ एलईडी टीवी चला दिया. उस टीवी पर कल रात का रणबीर वाला वीडियो चल रहा था, जिस में उस ने नेताजी के बारे में सबकुछ बोला था और नेताजी की लड़की के बारे में भी अपनी मंशा जाहिर की थी.

रणबीर को समझते देर नहीं लगी कि मुमताज ने उस के खिलाफ साजिश रची है. उस ने रणबीर को शराब पिला कर उसी के द्वारा दिलाए मोबाइल से उस का चुपके से वीडियो बनाया और अपने मनचाहे सवालों के जवाब रणबीर के मुंह से उगलवा लिए और अब नेताजी की हमराज बन गई और उन के ही साथ हमबिस्तर भी हो गई है.

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‘‘तो तेरी नजर हमारे पैसे और हमारी लड़की पर है… साल्ले… आस्तीन के सांप,‘‘ नेताजी गुर्रा रहे थे.

उन्होंने मोबाइल पर किसी लल्लन को बुलाया. कुछ ही देर में एक लंबा, तगड़ा सा आदमी अपने गुरगों के साथ आया और नेताजी को प्रणाम कर के खड़ा हो गया.

‘‘इस हराम के पिल्ले को ले जाओ… और शहर के बाहर ले जा कर छोड़ दो… और इतना मारो… इतना मारो कि फिर ये किसी लड़की के साथ गलत काम करने लायक ही न रह जाए.‘‘

कुछ घंटों बाद ही रणबीर का शरीर शहर से बाहर जाती रोड पर लहूलुहान पड़ा था… आतेजाते लोग अपने मोबाइल से उस का वीडियो बना रहे थे.

मुमताज ने भले ही अपने शरीर को इतने दिनों तक शरणार्थी कैंपों में बचा कर रखा, पर भला वह ऐसा कब तक कर पाती, आज भी उस की अस्मत का सौदा एक नेता के हाथों हो ही गया था, पर मुमताज को सुकून इस बात का था कि उस ने रणबीर सिंह से अपनी बहन रजिया का बदला तो ले ही लिया था और न जाने कितनी और रजियाओं की अस्मत लुटने से बचा ली थी.

श्वेता तिवारी-अभिनव कोहली Controversy पर एक्स हसबैंड Raja Chaudhary ने दिया ये बयान  

छोटे परदे की पॉपुलर टीवी एक्ट्रेस Shweta Tiwari (श्वेता तिवारी) इन दिनों ‘खतरों के खिलाड़ी 11’ (Khatron Ke Khiladi 11) में बतौर कंटेस्टेंट हिस्सा ले रही हैं. इस बीच उनके एक्स हसबैंड Raja Chaudhary (राजा चौधरी) ने हाल ही में श्वेता की दूसरी शादी को लेकर एक बयान दिया है. दरअसल श्वेता और अभिनव कोहली की दूसरी शादी टूटने के बाद भी दोनों के बीच की अनबन जब तब सामने आती रहती हैं. इस बीच राजा का ये बयान वायरल हो रहा है.

श्वेता अच्छी पत्नी और अच्छी मां है- राजा

एक इंटरव्यू में राजा चौधरी ने कहा है, ‘श्वेता पर काफी लोग सवाल उठा रहे हैं क्योंकि उनकी दूसरी शादी भी नही चली. खैर ये एक इत्तेफाक है. पैटर्न एक सा है और इसी वजह से लोग उनसे सवाल पूछ रहे हैं. इस बात में कोई भी शक नहीं है कि श्वेता बहुत ही अच्छी मां और पत्नी है. ये उनका बैड लक है कि उनके साथ इतिहास फिर से दोहरा रहा है, लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि वो बुरी इंसान है.’

 

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‘एक पिता अपनी बेटी और बेटे को नुकसान तो नहीं पहुंचाएगा’- राजा

अभिनव कोहली ने हाल ही में आरोप लगाया है कि श्वेता तिवारी उन्हें अपने बेटे से मिलने नहीं देती है. इस मामले पर भी राजा चौधरी ने अपनी चुप्पी तोड़ी है. राजा चौधरी का कहना है, ‘उसे (श्वेता तिवारी) समझना होगा कि कपल के तौर पर भले ही दिक्कतें आई हो लेकिन एक पिता अपनी बेटी और बेटे को नुकसान तो नहीं ही पहुंचाएगा.

 

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श्वेता ने राजा पर लगाया था घरेलू हिंसा का आरोप

महज 19 साल की उम्र में ही ‘कसौटी जिंदगी की’ फेम श्वेता तिवारी ने राजा चौधरी से शादी रचा ली थी. लेकिन शादी के कुछ साल बाद ही श्वेता ने राजा पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया और इसके बाद दोनों साल 2007 में अलग हो गए थे. तलाक के 7 साल बाद श्वेता तिवारी ने अभिनव कोहली (Abhinav Kohli) से शादी रचाई थी. लेकिन ये शादी भी नहीं चली और दो साल पहले ही वो अभिनव से भी अलग हो चुकी है.

 

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बता दें कि हाल ही में श्वेता ने अपनी सोसायटी का एक वीडियो भी शेयर किया था, जिसमें अभिनव अपने और श्वेता के बेटे को जबरदस्ती खींचते हुए नजर आ रहे हैं. ये वीडियो वायरल होने के बादस एकता कपूर समेत कई बड़े सितारे और फैंस श्वेता के सपोर्ट में सामने आए थे और अभिनव को गिऱफ्तार करने की मांग की थी.

आंखें- भाग 2: ट्रायल रूम में ड्रेस बदलती श्वेता की तस्वीरें क्या हो गईं वायरल

‘‘कैसी तबीयत है?’’ प्यार से माथे पर हाथ फिराते हुए प्रशांत ने पूछा.

‘‘आई एम फाइन,’’ मुसकराते हुए श्वेता ने कहा.

‘‘खाना तैयार है.’’

‘‘अच्छा, क्याक्या बनाया है?’’

‘‘जो हमारी होममिनिस्टर को पसंद है.’’

हंसती हुई वह किचन में गई. कैसरोल में उस के पसंदीदा पनीर के परांठे थे और चिकनकरी और मिक्स्ड सब्जी थी. सलाद भी कटा हुआ प्लेट में लगा था.

प्रशांत नए जमाने के उन पतियों जैसे थे, जो पत्नी पर रोब न जमा हर काम में हाथ बंटाते हैं. श्वेता का तनाव काफी कम हो चला था.

अगले दिन सुबह वह किचन में थी कि प्रशांत तैयार हो कर आ गए.

‘‘श्वेता डार्लिंग, मुझे कंपनी के काम से हैदराबाद जाना है. 1 घंटे बाद की फ्लाइट है. शाम को थोड़ा लेट आऊंगा,’’ कहते हुए प्रशांत बाहर निकल गए.

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उन के जाने के बाद उसे मोबाइल फोन का ध्यान आया. वह लपक कर बैडरूम में गई और मोबाइल का स्विच औन किया. चंद क्षणों के बाद कल शाम वाला नंबर फिर स्क्रीन पर उभरा. सुनूं या न सुनूं सोचते हुए उस ने मोबाइल को बजने दिया. थोड़ी देर बाद तो उस ने फोटो निकाल कर देखे पर ड्रैस कौन सी थी स्पष्ट नहीं था. कैबिन भी जानापहचाना नहीं था. ऐसी कैबिन लगभग हर शोरूम में होती है. यह ड्रैस कौन सी है यह समझ में आता तो पता चल जाता कि यह कब और कहां से खरीदी थी. तभी मोबाइल की घंटी फिर से बजी. वही नंबर फिर उभरा. उस ने इस बार मोबाइल औन कर मोबाइल कान से लगा लिया मगर बोली कुछ नहीं.

‘‘हैलो, हैलो,’’ दूसरी तरफ से कोई बोला लेकिन वह खामोश रही.

‘‘जानबूझ कर नहीं बोल रही,’’ किसी ने किसी दूसरे से कहा.

‘‘हम से चालाकी महंगी पड़ेगी. हम ये फोटो इंटरनैट पर जारी कर देंगे,’’ उन में से कोई एक बोला.

श्वेता ने औफ का बटन दबा दिया. थोड़ी देर बाद फिर मोबाइल की घंटी बजी. इस बार स्क्रीन पर वही बात मैसेज के रूप में उभरी, जो फोन पर बोली गई थी. उस ने फिर औफ का बटन दबा दिया. उस के बाद मोबाइल की घंटी कई बार बजी लेकिन उस ने ध्यान नहीं दिया. अब क्या करें? आज काम पर जाएं? मगर काम कैसे हो सकेगा? सोचते हुए उस ने थोड़ी देर बाद कंपनी में फोन कर दिया.

फिर उस ने फोटो के लिफाफे को गौर से देखा, तो जाना कि फोटो मलाड के एक फोटो स्टूडियो में बने थे. स्टूडियो के पते के नीचे 2 फोन नंबर भी थे. अपने मोबाइल से उस ने दोनों नंबर पर फोन किया मगर दोनों के स्विच औफ थे. अब यह देखना था कि मलाड वाला पता भी असली है या नहीं. उस के लिए मलाड जाना पड़ेगा, उस ने सोचा. उस ने फोटो फिर ध्यान से देखे. ड्रैस कौन सी है यही पता चल जाए तब याद आ जाएगा कि ड्रैस कहां से खरीदी थी. फोटो के इनलार्ज प्रिंट द्वारा शायद पता लग सके कि ड्रैस कौन सी है.

उस के घर में नई तकनीक का डिजिटल कैमरा था. उस ने उस से हाथ में पकड़ी ड्रैस का नजदीक से एक फोटो खींचा. अब इस का बड़ा प्रिंट निकलवाना था.

वह कार से मलाड के लिए चल दी. अभी तक उस ने कई थ्रिलर और जासूसी नौवल पढ़े थे. जासूरी फिल्में और सीरियल भी देखे थे. मगर आज एक जासूस बन कर अश्लील फोटो खींचने वाले का पता लगाना था.

पौन घंटे बाद वह मलाड में थी. जैसी उस को उम्मीद थी, लिफाफे पर लिखे पते वाला फोटो स्टूडियो कहीं नहीं था. कूरियर सर्विस से पता करना बेकार था. हजारों लिफाफे रोजाना बुक करने वाले को कहां याद होगा कि यह लिफाफा कौन बुक करवा गया था.

अब क्या करें? सोचती हुई वह वापस अपनी कालोनी में पहुंची और एक परिचित फोटोग्राफर की दुकान में जा कर फोटो का डिजिटल प्रिंट निकालने के लिए कहा.

जब प्रिंट तैयार हो रहा था वह दुकान के सोफे पर बैठ कर दुकान में रखी फ्रेमों में जड़ी तसवीरें देख रही थी. तभी मोबाइल फिर बजा. वही नंबर था. सुनूं या न सुनूं सोचते हुए उस ने रिसीविंग बटन पुश किया तो ‘‘हैलो… हैलो,’’ दूसरी तरफ से आवाज आई पर वह खामोश रही.

‘‘वह चालाकी कर रही है. हम इस के फोटो इंटरनैट पर जारी कर देते हैं और

इस के औफिस में भेज देते हैं, तब इस को पता चलेगा.’’

श्वेता ने आवाजें सुन कर पहचान लिया कि कल वाले ही थे. उस ने फोन काट दिया और सोचने लगी कि इन के पास उस का मोबाइल नंबर तो है ही, यह भी जानते हैं कि कौन है और कहां काम करती है. इस का मतलब यही था कि वे या तो कोई परिचित हैं या किसी ने उस के पीछे लग उस का पता लगाया होगा और बाद में उस को फोटो भेज ब्लैकमेलिंग का इरादा बनाया होगा.

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फोटोग्राफर फोटो का बड़ा प्रिंट निकाल कर लाया तो वह पेमैंट कर प्रिंट ले कर घर चली आई. घर आ कर आंखों पर जोर डाल कर उस ने फोटो देखा तो उसे समझ में आया कि वह फोटो मोंटे कार्लो के स्कर्ट टौप का था. उस की आंखों ने उन्हें पहचान लिया था. फिर वह याद करने लगी कि इन की शौपिंग कहां से की थी. दिमाग पर जोर देतेदेते उसे याद आ ही गया कि बड़ा नाम है उस शोरूम का. हां शायद पारसनाथ है, जो जुहू के पास है. फिर उसे सब याद आ गया.

अब उस शोरूम में जा कर उस के फोटो वगैरह भेजने का काम करने वालों का पता लगाना था. कैसे जाए? अकेली? मगर साथी हो भी तो कौन? कोई भी सहेली आजकल खाली नहीं थी. रिश्तेदार? न बाबा न.

उस ने यही निश्चय किया कि अकेली ही जाएगी. कैसे जाए, इसी तरह? इस से तो अपराधी सावधान हो जाएंगे, तो क्या भेस बदल कर जाए? लेकिन क्या भेस बदले? तभी उसे प्यास लगी. पानी पीते रिमोट दबा उस ने टीवी औन कर दिया. वही घिसापिटा सासबहू का रोनेधोने वाला सीरियल आ रहा था. उस के मन में विचार आया कि अगर वह प्रौढ उम्र की सास के समान बन जाए तो…

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Serial Story: अनजानी डगर से मंजिल- भाग 3

लेखक- संदीप पांडे

अभिजीत को आज तेज जुकाम लग गया था. बड़ी मुश्किल से काम हो पा रहा था. दिन में काम से जल्दी थक कर बैठ गया. लेबर में से एक कड़वा उस के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप बोलो तो इस जुकाम से आप को अभी मुक्ति दिला दूं? बस, आप को मैं जो खिलाऊं उसे हिम्मत कर के खा लेना,’’ तैयार हो रहे खाने में आज मटन पक रहा था. कड़वा दोने में उस के लिए मटन को अलग से पका कर लाया और हाथ में थमा दिया. एक टुकड़ा चबाते ही उस की आह निकल गई. मुंह जैसे जल कर आग बन गया. पानी का लोटा पूरा गटकने के बाद कुछ सांस आई.

‘‘यह क्या बना लाया?’’ अपनी आंखनाक से बहते पानी को पोंछते व हकलाते हुए अभिजीत बोला.

‘‘धीरेधीरे यह पूरा खा जाओ. अभी एक घंटे में जुकाम का नामोनिशान न रहेगा,’’  कड़वा ने अटकते हुए कहा. उसे डर था कहीं साहब के कोप का भाजन न बनना पड़े. पर साहब भी हिम्मत वाले निकले. सिसकियां भरते दोना पूरा खाली कर दिया. और उस का परिणाम भी मिला. पेट, आंख, मुंह में जलन तो थी पर नाक एक घंटे में पूरी साफ हो गई.

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15 दिनों में आधे से ज्यादा काम हंसतेखेलते निबट गया था. दिनभर सब जम के हंसीठिठोली करते, काम निबटाते और शाम को मदिरा के साथ मांसाहार पकाते, खाते और थक के चूर हो कर गहरी नींद का आनंद लेते. ऊंचेनीचे, पथरीले रास्तों पर रोज 10-12 किलोमीटर पैदल चलते शरीर हलका हो गया था. अभिजीत और कुनाल को अपना वजन दोतीन किलो कम हुआ प्रतीत हो रहा था.

एक शाम बसेसर बोला, ‘‘साहब, कल खरगोश पकड़ते हैं. सब मिल कर शिकार करेंगे और शाम को पकाएंगे.’’

सोजी बोला, ‘‘हां साहब, बसेसर का निशाना पक्का है. गुलेल से यह एक बार में ही खरगोश को चित्त कर देता है.’’

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‘‘ठीक है, सुबह 2 घंटे काम निबटा कर हम भी शिकार करना सीखते हैं,’’ कुनाल बोले.

अगली सुबह 11 बजे शिकार की टोली अपने शिकार पर निकल चली. 2 जने टीन बजाते आगे बढ़े. बसेसर को छोड़ बाकी सभी जोर से हल्ला करने लगे. बसेसर एक ऊंची चट्टान पर चढ़ अपनी गुलेल ले कर खड़ा हो गया. 2 खरगोश शोर सुन तेजी से भागे. ‘‘और एकदोतीन और भक्क.’’ बसेसर की गुलेल से गोली की तरह पत्थर एक खरगोश के सिर पर लगा और फिर सब शांत. 10 मिनट में ही एक शिकार हो चुका था. बसेसर के इशारा करते ही एक बार फिर एक दिशा से वातावरण में शोर गूंजने लगा. बसेसर की तेज नजर दूसरे शिकार को ढूंढ़ रही थी. 3 मिनट बाद ही उस की नजर पड़ते ही गुलेल के अचूक निशाने ने दूसरा भी धराशाई कर दिया.

अभिजीत और कुनाल की अचंभित आंखें बसेसर की काबिलीयत की प्रशंसा कर रही थीं. अभिजीत ने खुशी के मारे 20 रुपए का नोट निकाल कर इनाम में दे डाला.

‘‘साहब, हम ने भी तो मेहनत की है,’’ बिदाम ने हंसते हुए ठिठोली की.

‘‘अरे, तू काहे जी खराब करती है,’’ 5 रुपए का नोट उस की तरफ बढ़ाते कुनाल ने भी अपना दिल खोल दिया. इठलातीबलखाती नदी की तरह बिदाम खुशी  झलकाते चरी उठा कर  झरने की तरफ पानी लेने चल दी.

25 दिन बीत गए. अब काम समाप्त होने को था. अभिजीत अब एक सिद्धहस्त की तरह रोज की रीडिंग को मैप पर प्लौट कर देता था. रोज सुबह 5 से शाम के 5 बजे तक की उन की मेहनत का नतीजा था कि एक महीने से पहले ही वह अपना काम पूरा कर पहली कमाई पाने के लिए एक्सईएन औफिस की ओर बढ़ चले थे.

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नक्शे जमा करने के बाद अफसर ने उन के काम की खूब प्रशंसा की और अकाउंटैंट को उन का भुगतान तुरंत करने के निर्देश दिए. कुनाल के नाम का एक लाख रुपए चैक उन को 2 घंटे बाद ही मिल गया. दोनों बेरोजगार अपनी पहली कमाई की इतनी बड़ी राशि देख खुशी की अश्रुधारा को बहने से रोक न पाए. एक महीने के अनुभव ने उन्हें परिपक्वता और आत्मविश्वास से लबरेज कर दिया था.

50 हजार रुपए कमाई पूंजी से अभिजीत ने अब ठेकेदारी शुरू कर दी थी. बराबर की हिस्सेदारी में एक मित्र नवीन के साथ शुरू की गई फर्म अभिनव कंस्ट्रक्शन अब एक ए क्लास कौन्ट्रैक्टर फर्म है जो प्रदेश में काम के साथ देश के अन्य हिस्सों में बड़े ठेके लेने लगी है. इस फर्म में 10 अभियंताओं सहित 50 व्यक्ति मासिक वेतन पाते हैं और साथ ही, हजारों श्रमिक रोजगार. एक समय रोजगार को भटकने वाला इंसान अब खुद रोजगार प्रदान करने वाली फर्म का मालिक बन गया है.

क्षमादान- भाग 2: आखिर मां क्षितिज की पत्नी से क्यों माफी मांगी?

प्राची ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर पसर गई. मन का बोझ कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मन अजीब से अपराधबोध से पीडि़त था. पता नहीं क्षितिज से विवाह का उस का फैसला सही था या गलत? हर ओर से उठते सवालों की बौछार से भयभीत हो कर उस ने आंखें मूंद लीं तो पिछले कुछ समय की यादें उस के मन रूपी सागरतट से टकराने लगी थीं.

‘तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार,’ उस दिन प्राची ने अपने जन्मदिन का केक काट कर मोमबत्तियां बुझाई ही थीं कि पूरा कमरा इस गीत की धुन से गूंज उठा था. क्षितिज ने ऊपर लगा बड़ा सा गुब्बारा फोड़ दिया था. उस में से रंगबिरंगे कागज के फूल उस के ऊपर और पूरे कमरे में बिखर गए थे. उस के सभी सहकर्मियों ने करतल ध्वनि के साथ उसे बधाई दी थी और गीत गाने लगे थे.

जन्मदिन की चहलपहल, धूमधाम के बीच शाम कैसे बीत गई थी पता ही नहीं चला था. अपने सहकर्मियों को उस ने इसी बहाने आमंत्रित कर लिया था. उस की बहन वीणा और निधि तथा भाई राजा और प्रवीण में से कोई एक भी नहीं आया था. प्रवीण तो अपने कार्यालय के काम से सिंगापुर गया हुआ था पर अन्य सभी तो इसी शहर में थे.

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सभी अतिथियों को विदा करने के बाद प्राची निढाल हो कर अपने कक्ष में पड़ी सोच रही थी कि चलो, इसी बहाने सहकर्मियों को घर बुलाने का अवसर तो मिला वरना तो इस आयु में किस का मन होता है जन्मदिन मनाने का. एक और वर्ष जुड़ गया उस की आयु के खाते में. आज पूरे 35 वसंत देख लिए उस ने.

अंधकार में आंखें खोल कर प्राची शून्य में ताक रही थी. अनेक तरह की आकृतियां अंधेरे में आकार ले रही थीं. वे आकृतियां, जिन का कोई अर्थ नहीं था, ठीक उस के जीवन की तरह.

‘प्राची, ओ प्राची,’ तभी मां का स्वर गूंजा था.

‘क्या है, मां?

‘बेटी, सो गई क्या?’

‘नहीं तो, थक गई थी, सो आराम कर रही हूं. मां, राजा, निधि और वीणा में से कोई नहीं आया,’ प्राची ने शिकायत की थी.

‘अरे, हां, मैं तो तुझे बताना ही भूल गई. राजा का फोन आया था, बता रहा था कि अचानक ही उस के दफ्तर का कोई बड़ा अफसर आ गया इसलिए उसे रुकना पड़ गया है. वीणा और निधि को तो तुम जानती ही हो, अपनी गृहस्थी में कुछ इस प्रकार डूबी हैं कि उन्हें दीनदुनिया का होश तक नहीं है,’ मां ने उन सब की ओर से सफाई दी थी.

‘फिर भी थोड़ी देर के लिए तो आ ही सकती थीं.’

‘वीणा तो फोन पर यह कह कर हंस रही थी कि इस बुढ़ापे में दीदी को जन्मदिन मनाने की क्या सूझी?’ यह कह कर मां खिलखिला कर हंसी थीं.

मां की यह हंसी प्राची के कानों में सीसा घोल गई थी. वह रोंआसी हो कर बोली, ‘पहले कहना चाहिए था न मां कि तुम्हारी प्राची को वृद्धावस्था में जन्मदिन मनाने का साहस नहीं करना चाहिए.’

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‘अरे, बेटी, मैं तो यों ही मजाक कर रही थी. तू तो बुरा मान गई. 35 वर्ष की आयु में तो आजकल लोग जीवन शुरू करते हैं,’ मां ने जैसे भूल सुधार की मुद्रा में कहा, ‘इस तरह अंधेरे में क्यों बैठी है. आ चल, उपहार खोलते हैं. देखेंगे किस ने क्या दिया है.’

मां की बच्चों जैसी उत्सुकता देख कर प्राची उठ कर दालान में चली आई. अब मां हर उपहार को खोलतीं, उस के दाम का अनुमान लगातीं और एक ओर सरका देतीं.

‘मां, डब्बे पर देखो, नाम लिखा होगा,’ प्राची बोली थी.

‘मेरा चश्मा दूसरे कमरे में रखा है. ले, तू ही पढ़ ले,’ उन्होंने डब्बा और उस पर लिपटा कागज दोनों प्राची की ओर बढ़ा दिए थे.

‘क्षितिज गोखले,’ प्राची ने नाम पढ़ा और चुप रह गई थी. मां दूसरे उपहारों में व्यस्त थीं. नाम के बाद एक वाक्य और लिखा हुआ था, ‘प्यार के साथ, संसार की सब से सुंदर लड़की के लिए.’ अनजाने ही प्राची का चेहरा शर्म से लाल हो गया था.

‘यह देख, कितना सुंदर बुके है…पर सच कहूं, बुके का पैसा व्यर्थ जाता है. कल तक फूल मुरझा जाएंगे, फिर फेंकने के अलावा क्या होगा इन का?’

‘मां, फूलों की अपनी ही भाषा होती है. कुछ देर के लिए ही सही, अपने सौंदर्य और सुगंध से सब को चमत्कृत करने के साथ ही जीवन की क्षणभंगुरता का उपदेश भी दे ही जाते हैं,’ प्राची मुसकराई थी.

‘तुम्हारे दार्शनिक विचार मेरे पल्ले तो पड़ते नहीं हैं. चलो, आराम करो, मुझे भी बड़ी थकान लग रही है,’ कहती हुई मां उठ खड़ी हुई थीं.

सोने से पहले हर दिन की तरह उस दिन भी अपने पिता नीरज बाबू के लिए दूध ले कर गई थी प्राची.

‘बेटी, बड़ी अच्छी रही तेरे जन्मदिन की पार्टी. बड़ा आनंद आया. हर साल क्यों नहीं मनाती अपना जन्मदिन? इसी बहाने तेरे अपाहिज पिता को भी थोड़ी सी खुशी मिल जाएगी,’ नीरज बाबू भीगे स्वर में बोले थे.

प्राची पिता का हाथ थामे कुछ देर उन के पास बैठी रही थी.

‘कोई अच्छा सा युवक देख कर विवाह कर ले, प्राची. अब तो राजा, प्रवीण, वीणा और निधि सभी सुव्यवस्थित हो गए हैं. रहा हम दोनों का तो किसी तरह संभाल ही लेंगे.’

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‘क्यों उपहास करते हैं पापा. मेरी क्या अब विवाह करने की उम्र है? वैसे भी अब किसी और के सांचे में ढलना मेरे लिए संभव नहीं होगा,’ वह हंस दी थी. नीरज बाबू को रजाई उढ़ा कर और पास की मेज पर पानी रख प्राची अपने कमरे में आई तो आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था.

शायद 5 वर्ष हुए होंगे, जब उस के सहपाठी सौरभ ने उस के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था. बाद में उस के मातापिता घर भी आए थे पर मां ने इस विवाह के प्रस्ताव को नहीं माना था.

‘बेटा समझ कर तुम्हें पाला है. अब तुम प्रेम के चक्कर में पड़ कर विवाह कर लोगी तो इन छोटे बहनभाइयों का क्या होगा?’ मां क्रोधित स्वर में बोली थीं.

सौरभ ने अपने लंबे प्रेमप्रकरण का हवाला दिया तो वह भी अड़ गई थी.

‘मां, मैं ने और सौरभ ने विवाह करने का निर्णय लिया है. आप चिंता न करें. मैं पहले की तरह ही परिवार की सहायता करती रहूंगी,’ प्राची ने दोटूक निर्णय सुनाया था.

‘कहने और करने में बहुत अंतर होता है. विवाह के बाद तो बेटे भी पराए हो जाते हैं, फिर बेटियां तो होती ही हैं पराया धन,’ और इस के बाद तो मां अनशन पर ही बैठ गई थीं. जब 3 दिन तक मां ने पानी की एक बूंद तक गले के नीचे नहीं उतारी तो वह घबरा गई और उस ने सौरभ से कह दिया था कि उन दोनों का विवाह संभव नहीं है.

उस के बाद वह सौरभ से कभी नहीं मिली. सुना है विदेश जा कर वहीं बस गया है वह. इन्हीं खयालों में खोई वह नींद की गोद में समा गई थी.

Serial Story: स्वप्न साकार हुआ- भाग 1

लेखिका-  साधना श्रीवास्तव

रात में रसोई का काम समेट कर आरती सोने के लिए कमरे में आई तो देखा, उस के पति डा. विक्रम गहरी नींद में सो रहे थे. उन के बगल में बेटी तान्या सो रही थी. आरती ने सोने की कोशिश बहुत की लेकिन नींद जैसे आंखों से कोसों दूर थी. फिर पति के चेहरे पर नजर टिकाए आरती उन्हीं के बारे में सोचती रही.

डा. विक्रम सिंह कितने सरल और उदार स्वभाव के हैं. इन के साथ विवाह हुए 6 माह बीत चुके हैं और इन 6 महीनों में वह उन्हें अच्छी तरह पहचान गई है. कितना प्यार और अपनेपन के साथ उसे रखते हैं. उसे तो बस, ऐसा लगता है जैसे एक ही झटके में किसी ने उसे दलदल से निकाल कर किसी महफूज जगह पर ला कर खड़ा कर दिया है.

उस का अतीत क्या है? इस बारे में कुछ भी जानने की डा. विक्रम ने कोई जिज्ञासा जाहिर नहीं की और वह भी अभी कुछ कहां बता पाई है. लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं कि वह उन को धोखे में रखना चाहती है. बस, उन्होंने कभी पूछा नहीं इसलिए उस ने बताया नहीं. लेकिन जिस दिन उन्होंने उस के अतीत के बारे में कुछ जानने की इच्छा जताई तो वह कुछ भी छिपाएगी नहीं, सबकुछ सचसच बता देगी.

इसी के साथ आरती का अतीत एक चलचित्र की तरह उस की बंद आंखों में उभरने लगा. वह कहांकहां छली गई और फिर कैसे भटकतेभटकते वह मुंबई की बार गर्ल से डा. विक्रम सिंह की पत्नी बन अब एक सफल घरेलू औरत का जीवन जी रही है.

आज की आरती अतीत में मुंबई की एक बार गर्ल बबली थी. बार बालाओं के काम पर कानूनन रोक लगते ही बबली ने समझ लिया था कि अब उस का मुंबई में रह कर कोई दूसरा काम कर के अपना पेट भरना संभव नहीं है.

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मुंबई के एक छोर से दूसरे छोर तक, जिधर भी जाएगी, लोगों की पहचान से बाहर न होगी. अत: उस ने मुंबई छोड़ देने का फैसला किया. गुजरात के सूरत जिले में उस की सहेली चंदा रहती थी. उस ने उसी के पास जाने का मन बनाया और एक दिन कुछ जरूरी कपड़े तथा बचा के रखी पूंजी ले कर सूरत के लिए गाड़ी पकड़ ली.

सूरत पहुंचने से पहले ही बबली ने चंदा के यहां जाने का अपना विचार बदल दिया क्योंकि ताड़ से गिर कर वह खजूर पर अटकना नहीं चाहती थी. चंदा भी सूरत में उसी तरह के धंधे से जुड़ी थी.

बबली के लिए सूरत बिलकुल अजनबी व अपरिचित शहर था जहां वह अपने पुराने धंधे को छोड़ कर नया जीवन शुरू करना चाहती थी. इसीलिए शहर के मुख्य बाजार में स्थित होटल में एक कमरा किराए पर लिया और कुछ दिन वहीं रहना ठीक समझा ताकि इस शहर को जानसमझ सके.

बबली को जब कुछ अधिक समझ में नहीं आया तो कुकरी का 3 माह का कोर्स उस ने ज्वाइन कर लिया. इसी दौरान बबली सरकारी अस्पताल से कुछ दूरी पर संभ्रांत कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. कोर्स सीखने के दौरान ही उस ने अपने मन में दृढ़ता से तय कर लिया कि अब एक सभ्य परिवार में कुक का काम करती हुई वह अपना आगे का जीवन ईमानदारी के साथ व्यतीत करेगी.

कुकरी की ट्रेनिंग के बाद बबली को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जल्दी ही उसे एक मनमाफिक विज्ञापन मिल गया और पता पूछती हुई वह सीधे वहां पहुंची. दरवाजे की घंटी बजाई तो घर की मालकिन वसुधा ने द्वार खोला.

बबली ने अत्यंत शालीनता से नमस्कार करते हुए कहा, ‘आंटी, अखबार में आप का विज्ञापन पढ़ कर आई हूं. मेरा नाम बबली है.’

‘ठीक है, अंदर आओ,’ वसुधा ने उसे अंदर बुला कर इधरउधर की बातचीत की और अपने यहां काम पर रख लिया.

अगले दिन से बबली ने काम संभाल लिया. घर में कुल 3 सदस्य थे. घर के मालिक अरविंद सिंह, उन की पत्नी वसुधा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा बेटा राजन.

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बबली के हाथ का बनाया खाना सब को पसंद आता और घर के सदस्य जब तारीफ करते तो उसे लगता कि उस की कुकरी की ट्रेनिंग सार्थक रही. दूसरी तरफ बबली का मन हर समय भयभीत भी रहता कि कहीं किसी हावभाव से उस के नाचनेगाने वाली होने का शक किसी को न हो जाए. यद्यपि इस मामले में वह बहुत सजग रहती फिर भी 5-6 सालों तक उसी वातावरण में रहने से उस का अपने पर से विश्वास उठ सा गया था.

एक दिन शाम के समय परिवार के तीनों सदस्य आपस में बातचीत कर रहे थे. बबली रसोई में खाना बनाने के साथसाथ कोई गीत भी गुनगुना रही थी कि राजन की आवाज कानों में पड़ी, ‘बबलीजी, एक गिलास पानी दे जाना.’

गाने में मगन बबली ने गिलास में पानी भरा और हाथ में लिए ही अटकतीमटकती चाल से राजन के पास पहुंची और उस के होंठों से गिलास लगाती हुई बोली, ‘पीजिए न बाबूजी.’

राजन अवाक् सा बबली को देखता रह गया. वसुधा और अरविंद को भी उस का यह आचरण अच्छा न लगा पर वे चुप रह गए. अचानक बबली जैसे सोते से जागी हो और नजरें नीची कर के झेंपती हुई वहां से हट गई. बाद में उस ने अपनी इस गलती के लिए वसुधा से माफी मांग ली थी.

आगे सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहा. बबली को काम करते हुए लगभग 2 माह बीत चुके थे. एक दिन शाम को वसुधा क्लब जाने के लिए तैयार हो रही थीं कि पति अरविंद भी आफिस से आ गए. वसुधा ने बबली से चाय बनाने को कहा और अरविंद से बोली, ‘मुझे क्लब जाना है और घर में कोई सब्जी नहीं है. तुम ला देना.’

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