टीवी एक्ट्रेस Kishwer Merchant का बड़ा खुलासा, कहा ‘मुझे हीरो के साथ सोने के लिए कहा गया था’

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कई एक्ट्रेस ने कास्टिंग काउच का शिकार होने का खुलासा किया है. उन्हें काम करने के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा. तो अब पौपुलर टीवी एक्ट्रेस किश्वर मर्चेंट ने खुलासा किया है कि उन्हें भी एक बार कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा था. आइए आपको बताते हैं, क्या है पूरा मामला.

रिपोर्ट्स के अनुसार, किश्वर मर्चेंट ने कास्टिंग काउच के बारे में कहा कि ये मेरे साथ उस वक्त हुआ जब मैं एक मीटिंग के लिए गई लेकिन ये एक ही बार हुआ. मेरी मम्मी उस वक्त मेरे साथ थीं. मुझसे कहा गया था कि मुझे उस हीरो के साथ सोना होगा. मैंने विनम्रता से ऑफर को ठुकरा दिया और हम चले गए. मैं ये नहीं कहूंगी कि ये बहुत होता है या ये एक सामान्य बात है.

 

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खबरों के अनुसार एक्ट्रेस ने आगे कहा कि  इंडस्ट्री बदनाम है लेकिन हर इंडस्ट्री में ये चीज होती है. उन्होंने कहा कि जिस हीरो के साथ उन्हें सोने के लिए बोला गया था वो बड़ा हीरो था और प्रोड्यूसर भी बड़ा था. दोनों का इंडस्ट्री में बड़ा नाम है.

 

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आपको बता दें कि किश्वर मर्चेंट इन दिनों अपनी प्रेग्नेंसी को एन्जॉय कर रही हैं. वह अक्सर अपने बेबी बंप को फ्लॉन्ट करते हुए तस्वीरें शेयर करती रहती हैं. उनके पति सुयश राय इसे लेकर काफी एक्साइटेड हैं.

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Serial Story: मासूम कातिल- भाग 1

लेखक- गजाला जलील

मकतूल एक दौलतमंद और रसूख वाला आदमी था जबकि कातिल 2 औरतें थीं. मां सुहाना और बेटी अदीना. सुहाना की उम्र करीब 38 साल थी और अदीना की 19 साल. वह बेहद हसीन व शोख लड़की थी. उस के चेहरे पर गजब की मासूमियत थी.

सुहाना भी खूबसूरत औरत थी, लेकिन उस के चेहरे पर उदासी और आंखों में समंदर की गहराई थी. दोनों मांबेटी कोर्ट में मुसकराती हुई आती थीं और बड़े फख्र से कहती थीं कि उन्होंने इमरान हसन को कत्ल किया है. अदीना कहती थी, ‘‘मैं ने एक ठोस डंडे से उस की पिंडलियों पर वार किए थे. वह नीचे गिर पड़ा.’’

सुहाना कहती थी, ‘‘जब वह नीचे गिरा तो मैं ने उसी ठोस डंडे से उस के सीने पर मारना शुरू किया, इस से उस की पसलियां टूटने की आवाज आने लगी. फिर मैं ने अपनी अंगुलियों के नाखून उस की दोनों आंखों में उतार दिए.’’

मांबेटी दोनों बड़े फख्र से ये कारनामा सुनाती थीं और मैं भी उन के गुरूर को सही समझता था. लाश बुरी हालत में मिली थी. डंडे से उस का सिर फोड़ दिया गया था. मैं जानता था, मासूम चेहरे वाली इन मांबेटी को कड़ी सजा मिलेगी. पर उन के चेहरे पर डर या वहशत नहीं थी. वे दोनों बड़े सुकून और इत्मीनान से बैठी रहती थीं. इस के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी थी. मैं आप को वही कहानी सुनाऊंगा, जो मुझे सुहाना ने कोर्ट के अंदर सुनाई थी.

आप यह सोच कर सुहाना की कहानी सुनें कि आप ही उस का इंसाफ करने वाले जज हैं. सुहाना ने मुझे बताया, ‘‘मेरी मां का नाम नसीम था. हमारा घर पुराना पर अच्छा था. घर में हम 3 लोग थे. मैं मेरी मां और मेरे अब्बू. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. हमारे रिश्तेदार और अब्बू के दोस्त आते रहते थे. अब्बू काफी मिलनसार थे.

बदनसीबी कहिए या कुछ और, अब्बू बीमार पड़ गए. 3 दिन अस्पताल में भरती रहे और चौथे दिन चल बसे. हम लोगों की दुनिया अंधेरी हो गई. कुछ दिनों तक दोस्तों व रिश्तेदारों ने साथ निभाया, लेकिन फिर सब अपनीअपनी राह लग गए. अब मैं बची थी और मेरी मजबूर मां. न कोई मददगार न सिर पर हाथ रखने वाला.

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उस वक्त मैं बीए के पहले साल में थी, पर अब पढ़ाई जारी रखने जैसे हालात नहीं बचे थे. पड़ोसी भी शुरू में मोहब्बत से पेश आए लेकिन धीरेधीरे सब ने निगाहें फेर लीं. गनीमत यही थी कि हमारा घर अपना था. सिर छिपाने को आसरा था हमारे पास, पर खाने के लाले पड़ने लगे थे.

अम्मा ने घरों में काम करने की बात की, पर मुझ से यह बरदाश्त नहीं हुआ. मैं ने अम्मा को बहुत समझाया और खुद नौकरी करने की बात की. मैं इंग्लिश मीडियम से पढ़ी थी, मेरी अंगरेजी और मैथ्स बहुत अच्छा था. बहुत कोशिश करने पर मुझे एक औफिस में जौब मिल गई. वेतन ज्यादा तो नहीं था, पर गुजारा किया जा सकता था.

शुरू में लोगों ने बातें बनाईं कि खूबसूरती के चलते यह नौकरी मिली है. अम्मा बहुत डरती, घबराती, लोगों की बातों से दहशत खाती. मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘अम्मा, लोग सिर्फ बातें बनाते हैं. वे हमें खिलाने नहीं आएंगे. हमें अपना बोझ खुद उठाना है. लोगों को भौंकने दें.’’

अम्मा को बात समझ में आ गई. फिर भी उन्होंने नसीहत दी, ‘‘बेटी, दुनिया बहुत बुरी है. तुम बहुत मासूम और नासमझ हो. फूंकफूंक कर कदम रखना, हर मोड़ पर इज्जत के लुटेरे बैठे हैं.’’

मैं ने उन्हें दिलासा दी, ‘‘अम्मी, आप फिक्र न करें, मैं अपना भलाबुरा खूब समझती हूं. जिस फर्म में मैं काम करती हूं, वहां भेड़िए नहीं, बहुत नेक और भले लोग हैं.’’

एकाउंटेंट अली रजा बूढ़े आदमी थे. बहुत ही सीधे व मोहब्बत करने वाले. मुझे नौकरी दिलाने में भी उन्होंने मेरी मदद की थी और पहले दिन से ही मुझे गाइड करना और सिखाना भी शुरू कर दिया था. वैसे मैं काफी जहीन थी. जल्द ही सारा काम बहुत अच्छे से करने लगी.

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औफिस में सभी लोग अली रजा साहब की बहुत इज्जत करते थे. हां, फर्म के बौस इमरान हसन से मेरी अब तक मुलाकात नहीं हुई थी. सुना था, बहुत रिजर्व रहते हैं. काम से काम रखने वाले व्यक्ति हैं.

फर्म के लोग मालिक इमरान हसन से खुश थे. सब उन की तारीफ करते थे. मुझे वहां काम करते एक महीना हो गया था. पहली तनख्वाह मिली तो अम्मा बड़ी खुश हुईं. तनख्वाह इतनी थी कि हम मांबेटी का गुजारा आसानी से हो जाता और थोड़ा बचा भी सकते थे. फर्म में 4-5 लड़कियां और भी थीं. उन से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. बौस पिछले दरवाजे से आतेजाते थे, इसलिए उन से मेरा कभी आमनासामना नहीं हुआ.

एक दिन एक कलीग रशना की सालगिरह थी. उस ने बड़े प्यार से मुझे अपने घर आने की दावत दी. इस प्रोग्राम में बौस समेत औफिस के सभी लोग जाने वाले थे. मुझे भी वादा करना पड़ा. अम्मा से इजाजत  लेने में मुश्किल हुई, क्योंकि वह मेरे अकेले जाने से परेशान थीं. रशना के यहां पहुंचने पर मेरा शानदार वेलकम हुआ. वहां बहुत धूमधाम थी. केक काटा गया. पार्टी भी बढि़या थी.

मैं अपनी प्लेट ले कर एक कोने में खड़ी थी. उसी वक्त एक गंभीर नशीली आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘आप कैसी हैं मिस सुहाना?’’

मैं ने सिर उठा कर सामने देखा. एक बेहद हैंडसम यूनानी हुस्न का शाहकार सामने खड़ा था. शानदार पर्सनैलिटी, तीखे नैननक्श, ऊंची नाक, नशीली आंखें. मैं बस देखती रह गई. मेरी आवाज नहीं निकल सकी. रशना ने कहा, ‘‘सुहाना, बौस तुम से कुछ पूछ रहे हैं.’’

मैं जैसे होश में आ गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं ठीक हूं सर.’’

‘‘हमारी फर्म में कोई परेशानी तो नहीं है?’’

‘‘नहीं सर, कोई प्रौब्लम नहीं है. सब ठीक है.’’

मैं बौस को देख कर हैरान रह गई. कितने खूबसूरत, कितने शानदार पर उतने ही मिलनसार और विनम्र. अभी खाना चल ही रहा था कि बादल घिरने लगे. जब मैं घर जाने के लिए खड़ी हुई तो अच्छीखासी बारिश होने लगी. रशना भी सोच में पड़ गई. जब हम बाहर निकले तो बौस इमरान साहब कहने लगे, ‘‘सुहाना, अभी टैक्सी मिलना मुश्किल है. तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें तुम्हारे घर ड्रौप कर दूंगा.’’

रशना ने फोर्स कर के मुझे उन की कार में बिठा दिया.

मैं सकुचाते हुए बैठ गई. मैं जिंदगी में इतने खूबसूरत मर्द के साथ पहली बार बैठी थी. मेरा दिल अजीब से अंदाज से धड़क रहा था. मैं ने कहा, ‘‘सर, आप ने मेरे लिए बेवजह तकलीफ उठाई. आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

इमरान साहब हंस पड़े, फिर कहा, ‘‘नहीं भई, हम इतने अच्छे इंसान नहीं हैं. अगर तुम भीग जाती तो बीमार पड़ जातीं. 2-3 दिन हमारे औफिस को इतनी अच्छी वर्कर से महरूम रहना पड़ता और फिर ये मेरा फर्ज भी तो है.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप बेहद शरीफ इंसान हैं, बहुत नेक और बहुत खयाल रखने वाले.’’

उन्होंने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप को मुझ पर यकीन है तो मेरी एक बात मानेंगी?’’

‘‘जी कहिए, आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘सामने एक अच्छा रेस्टोरेंट है, वहां एक कप कौफी पी जाए.’’

मैं सोच में पड़ गई, ‘‘मैं कभी ऐसे होटल में नहीं गई. मुझे वहां के तौरतरीके नहीं आते. मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ मैं ने कहा.

इमरान साहब बोले, ‘‘कोई बात नहीं, हालात सब सिखा देते हैं. आप की इस बात ने मेरी नजरों में आप की इज्जत और भी बढ़ा दी. क्योंकि आप ने मुझ से अपनी हालत छिपाई नहीं, यह अच्छी बात है.’’

उन्होंने कार रेस्टोरेंट के सामने रोक दी. हम अंदर गए, बहुत शानदार हौल था. वहां का माहौल खुशनुमा था. मैं इस से पहले कभी किसी होटल में नहीं गई थी. इमरान साहब ने कौफी का और्डर दिया, फिर मेरे काम की, मेरे मिजाज की तारीफ करते रहे. फिर कहने लगे, ‘‘अच्छा ये बताइए, आप मेरे बारे में क्या सोचती हैं?’’

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मैं ने कहा, ‘‘आप ने पार्टी में मुझे मेरा नाम ले कर पुकारा था, आप तो मुझ से मिले भी नहीं थे?’’

‘‘आप के सवाल में बड़ी मासूमियत है. आप मेरे औफिस में काम करती हैं और एक अच्छा बौस होने के नाते मुझे अपने साथियों के बारे में पूरी जानकारी रखना चाहिए. मैं तो यह भी जानता हूं कि आप औफिस की दूसरी लड़कियों से अलग हैं. अपने काम से काम रखने वाली.’’

मैं हैरान रह गई. हम कौफी पी कर बाहर आ गए. वह कहने लगे, ‘‘बहुत शुक्रिया, आप ने अपना समझ कर मुझ पर यकीन किया. आज तो आप से ज्यादा बातें न हो सकीं. खैर, अगली मुलाकात में बातें होंगी.’’

मैं देर होने से अम्मा के लिए परेशान थी. मैं ने सोच लिया था कि उन्हें इमरान साहब के बारे में कुछ नहीं बताऊंगी वरना उन की नींद उड़ जाएगी. मेरा घर आ गया. मैं ने गली के बाहर ही गाड़ी रुकवाते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे यहीं उतार दें.’’

‘‘मैं आप की मजबूरी समझता हूं. मैं तो चाहता था कि आप को आप के दरवाजे पर ही उतारूं.’’

Father’s Day Special- कीमत संस्कारों की: भाग 3

दिनरात की चिंता तथा काम की अधिकता के चलते एक दिन दीनप्रभु अचानक ही अपने रेस्टोरेंट में काम करते हुए गिर पड़े. अस्पताल पहुंचे और जांच हुई तो पता चला कि वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगी हो चुके हैं. हैरीसन और पौलीन उन्हें देखने तो पहुंचे मगर बजाय इस के कि दोनों उन का मनोबल बढ़ाते, वे खुद उन्हीं को दोषी ठहराने लगे. दोनों ही कहने लगे कि अपना ध्यान नहीं रखते हैं. इतना सारा काम फैला रखा है, कौन इस को संभालेगा? अपनी औलाद के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उन का मन पहले से और भी दुखी हो गया. इस के अलावा उन के वे भाई जिन के बारे में उन्होंने सोचा था कि साथ रहेंगे तो मुसीबत में काम आएंगे, जब उन्होंने सुना तो कोई भी तत्काल देखने नहीं आया. हां, सब ने केवल एक बार फोन कर के अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी.

अस्पताल में 2 दिन तक रहने के बाद जब वह घर आए तो डाक्टरों ने उन्हें पूरी तरह से आराम करने की हिदायत दी थी और समय पर दवा लेने तथा हर रोज अपना ब्लड प्रेशर व ब्लड ग्लूकोज को जांचते रहने को कहा था. लेकिन घर पर अकेले पडे़पड़े तो वह अपने को और भी बीमार महसूस कर रहे थे. बच्चों से जब कभी सुबह या शाम उन का सामना हो जाता तो वह केवल ‘हाय डैड’ कह कर अपना फर्ज पूरा कर लेते थे. पत्नी हर दिन उन के पलंग के पास पानी का जग भर कर रख जाती थी पर किसी दिन छुट्टी कर के पति के साथ बैठने का खयाल उस के मन में नहीं आया.

काम करते समय अचानक गिर जाने के कारण उन की कोई हड्डी तो नहीं टूटी थी मगर उठने और बैठने में कमर में उन्हें बेहद तकलीफ होती थी. तकलीफ इतनी ज्यादा थी कि किसी के सहारे से ही वह उठ और बैठ सकते थे. आज जब उन्होंने देखा कि उन का अपना बेटा हैरीसन घर में है तो यह सोच कर आवाज दे दी थी कि उस से पानी ले कर दवा भी खा लेंगे और बाकी का पानी भर कर वह उन के पास भी रख देगा. लेकिन आ कर उस ने जो कुछ कहा उसे सुन कर उन के दिल को भारी धक्का लगा था, साथ ही उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन की अहमियत, आजाद खयाल में पलने वाले उन के बच्चों की व्यक्तिगत इच्छाओं के सामने बहुत हलकी है जिन्हें पूरा सुख देने के लिए उन्होंने अपनी हड्डीपसली एक कर दी थी.

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सोचते हुए दीनप्रभु को काफी देर हो गई थी. अतीत के विचारोें से हट कर एक बार पूरे घर का जायजा लिया. अपना ही घर देख कर आज उन्हें लगा कि विक्टोरियन हाउस उन की दशा को देख कर भांयभांय कर रहा है. घर में सुख और संपदा की हर वस्तु मौजूद थी मगर यह कैसी मजबूरी उन के सामने थी कि दूसरों के हित के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वाले दीनप्रभु को आज एक गिलास पानी देने वाला कोई नहीं था.

काफी सोचविचार के बाद दीनप्रभु ने फैसला लिया कि अब समय आ गया है कि वह सब से खुल कर बात करें यदि बच्चों की मनोधारणा उन के हित में निकली तो ठीक है अन्यथा वह अपना सामान समेट कर भारत वापस चले जाएंगे और कहीं एकांत में शांति से रहते हुए समाजसेवा कर अपना बाकी का जीवन गुजार देंगे.

शाम हुई. सब लोग घर मेें आ गए. रोज की तरह सब लोग एक साथ खाने की मेज पर बैठे तो सब के साथ खाना खाते हुए दीनप्रभु ने अपनी बात शुरू की और बोले, ‘‘बच्चो, मैं बहुत दिनों से तुम लोगों से कुछ कहना चाह रहा था पर परिस्थितियां अनुकूल नहीं दिखती थीं. आज मुझे लगा कि मैं अपनी बात कह ही दूं.’’

‘‘मैं जब अमेरिका आया था तो अपने साथ बहुत सी जिम्मेदारियां ले कर आया था, जिन्हें पूरा करना मेरा कर्तव्य था और मैं ने वह सब कर भी लिया. यहां रहते हुए मैं ने तुम को सभी तरह की सुविधा और सुखी जीवन देने की पूरी कोशिश की. अमेरिका के सब से अच्छे कालिजों में तुम्हें शिक्षा दिलवाई. तुम लोगों के लिए रेस्टोरेंट और गैस स्टेशन खोल रखे हैं. अब यह तुम्हारी मरजी है कि तुम इन को संभाल कर रखो या फिर नष्ट कर दो.

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‘‘मुझे तुम से क्या चाहिए, केवल एक जोड़ा कुरतापाजामा और दो समय की दालरोटी. तुम पर अपना बोझ डालना नहीं चाहता हूं, फिर भी तुम मेरी अपनी संतान हो इसलिए तुम से मैं पूछना चाहता हूं कि मैं ने तुम्हारे लिए इतना सबकुछ किया है बदले में तुम मेरे व्यक्तिगत जीवन के लिए क्या करना चाहते हो?’’

दीनप्रभु की बातें सुन कर उन का बेटा हैरीसन गंभीर हो कर बोला, ‘‘डैड, मैं आप के लिए अमेरिका का सब से आलीशान और महंगा नर्सिंग होम तलाश करूंगा.’’

‘‘और मैं आप से कम से कम 15 दिन में एक बार मिलने जरूर ही आया करूंगी,’’ पौलीन ने बड़े गर्व से कहा.

अपने बच्चों की बातों को सुन कर दीनप्रभु कुछ भी नहीं बोल सके क्योंकि वह जीवन के इस तथ्य को अच्छी तरह समझ चुके थे कि विदेश में आ कर अपनी सुखसुविधा के लिए वह जो कुछ चाहते थे वह तो उन्हें मिल चुका था लेकिन इसे पाने के लिए उन्हें अपने उन भारतीय संस्कारों की कुरबानी भी देनी पड़ी, जिस के तहत एक भाई अपनी बहन के लिए, मां अपने बच्चों और परिवार के लिए, बेटा अपने पिता के लिए और पत्नी अपने पति के लिए जीती है. उन के द्वारा बसाई हुई सुख की नगरी में आज खुद उन का वजन कितना हलका हो चुका है, सोच कर वे उफ् भी नहीं कर सके.

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कोरोना से हुआ इस भोजपुरी एक्टर की मां का निधन, मुंबई में हुआ अंतिम संस्कार

कोविड महामारी की दूसरी लहर में बहुत से लोगों को अपनी जिंदगी को गंवानी पड़ी है. करीबन एक लाख से अधिक लोगों ने अपने प्रियजन खोए हैं. सिर्फ आम इंसान ही नही बल्कि कई राजनीतिक व कई फिल्मी हस्तियां संक्रमित हो गईं,कईयों ने अपने प्रियजनों को भी महामारी से खो दिया. भोजपुरी अभिनेता तथा एनसीपी, मुंबई, महाराष्ट्र के महासचिव सुदीप पांडे ने भी कोरोना के ही चलते अपनी मां को खो दिया.

सुदीप पांडे की मां चंदा पांडे की 76 वर्ष की आयु में 21 मई 2021 को एमजीएम अस्पताल, नई मुंबई में मृत्यु हो गई. इससे पहले उनके पिता उपेंद्र नाथ पांडे की 80 वर्ष की आयु में 14 अप्रैल 2021 को नवी मुंबई में ही मृत्यु हो गई थी. दोनों मृत्यु के कुछ दिनों पहले से नवी मुंबई के अस्पताल में भर्ती थे.

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उनका अंतिम संस्कार नवी मुंबई में किया गया और सुदीप पांडे की बहन निशि चौबे, उनके पति बिनोद चौबे, अन्य दोस्त और परिवार के सदस्य अंतिम संस्कार के लिए सुदीप पांडेय के निवास स्थान पर पहुंचे और शेष वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भी जुड़े.

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सुदीप पांडे ने कहा, ‘‘मेरे माता-पिता का प्यार मेरे लिए अनमोल है.उन्हें खोने के बाद मैं उन्हें ज्यादा याद करता हूं. वह जहां भी हैं, हमेशा मेरे दिल में रहेंगे. इतने कम समय में माता-पिता दोनों को खोना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, हम भाग्य नहीं बदल सकते हैं, लेकिन कम से कम मैं संतुष्ट हूं कि एमजीएम अस्पताल ने मेरी मां के जीवन को बचाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की और इसके लिए हमारा पूरा परिवार एमजीएम अस्पताल के डीन जी एस नरशेट्टी और उनकी मेडिकल टीम का आभारी है.’’

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इस अवसर पर सुदीप पांडे और बिनोद चौबे ने गरीबों को खाना बांटा. इसके बारे में पूछे जाने पर उन्होंने समझाया ‘‘मेरेमाता-पिता हमेशा जरूरतमंदों की मदद करना पसंद करते थे और इसीलिए यह हमारे परिवार में एक संस्कृति बन गई है.’’

बीमारी की मार: रेहड़ी पटरी वालों की जिंदगी बेकार

लेखक- हेमंत कुमार

किसी भी शहर को शहर कहलाने का काम वहां की तंग गलियों में लगने वाले बाजार और गले से चीखचीख कर आवाज लगाते हुए फेरी वाले ही करते हैं. ऐसा शोरगुल, ऐसी भीड़भाड़ किसी बड़े शहर में ही देखने को मिलती है. ये ऐसे कारोबारी होते हैं, जो बिलकुल न के बराबर की कीमत पर ग्राहकों को घर के दरवाजे पर सुविधाएं मुहैया कराते हैं.

बीते साल कोरोना के चलते लगे लौकडाउन में सब से ज्यादा नुकसान अगर किसी को पहुंचा है, तो वे हैं यही रोज कमानेखाने वाले रेहड़ीपटरी और फेरी लगाने वाले छोटे गरीब कारोबारी.

नैशनल एसोसिएशन औफ स्ट्रीट वैंडर्स औफ इंडिया  के मुताबिक देखा जाए, तो देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में  ऐसे कारोबारियों का योगदान काफी ज्यादा रहता है. दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में इन का योगदान 1,590 करोड़ रुपए सालाना तक पहुंच जाता है.

चूंकि इन लोगों का सारा कारोबार खुले आसमान के नीचे भीड़भाड़ वाली जगहों पर ही होता है, तो जाहिर सी बात है कि महामारी के फैलने का जोखिम सब से ज्यादा इन ही लोगों से था और ऐसे ही आसार इस साल फिर से बनते नजर आ रहे हैं. मतलब, इन की जिंदगी से एक बार फिर खिलवाड़ होने वाला है.

इन फेरी, रेहड़ी और पटरी वालों की निजी जिंदगी पर नजर डालें, तो हम यह जान पाएंगे कि आखिर किस तरह लौकडाउन के चलते इन की निजी जिंदगी में भी लौक लग जाता है.

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दिल्ली में पटरी लगाने वाले रंजीत से बातचीत करने से मालूम पड़ता है कि इन की जिंदगी लौकडाउन से किस तरह बरबाद हुई. पेश हैं, रंजीत के साथ हुई बातचीत के खास अंश :

मूल रूप से आप कहां के रहने वाले हैं और दिल्ली में कब से रह रहे हैं?

मैं मूल रूप से झारखंड राज्य के साहिबगंज जिले का रहने वाला हूं और जाति से कुम्हार हूं. गांव के सारे लड़कों की तरह मैं भी जवानी में दिल्लीमुंबई भटका और आखिर में यहां दिल्ली में ही पटरी लगाने का काम करने लगा.

मैं 20 साल पहले ही दिल्ली आया था और तब से यहीं हूं. पहले जिम्मेदारियां कम थीं और भविष्य का कोई प्लान न था, पर बाद में सांसारिक जाल में फंस कर यहां रहना अब मेरी मजबूरी बन चुकी है.

आप की जीविका का साधन क्या है और बीते साल लौकडाउन से आप को किनकिन समस्याओं का सामना करना पड़ा? इस बार हालात कैसे हैं?

मैं पेशे से एक पटरी वाला हूं और दिल्ली में सदर बाजार, त्रिलोकपुरी और आजादपुर जैसी जगहों पर बाजार लगाता हूं. बाजार में  रेहड़ीपटरी वालों को पहले से ही कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ता ही है.

हमें ठेकेदारों को शांतिपूर्ण तरीके से बाजार लगाने के बदले 400-500 रुपए रोजाना देने पड़ते हैं. अगर हम ये पैसे न दें तो अगली बार से हमारी जगह पर किसी दूसरे को बैठा दिया जाता है.

उस इलाके के थानेदार की मिलीभगत होने के चलते हमारी सुनवाई करने वाला कोई नहीं होता, ऊपर से लौकडाउन के लग जाने से हमारी आजीविका पूरी तरह से बरबाद हो गई है. अपनी जगह बनाए रखने के लिए हमें पहले ही कई लोगों को अपनी दिनभर की कमाई का कुछ हिस्सा देना पड़ता है.

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आप किस तरह की चीजें बेचते हैं और दिन में तकरीबन कितने पैसे कमा लेते हैं?

मैं मौसम और मांग के हिसाब से कपड़े बेचता हूं. अगर काम ठीकठाक हुआ, तो मेरी रोजाना की आमदनी  800-1000 रुपए तक पहुंच जाती है, पर मंदी के दौरान लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो जाता है, ऊपर से नगरपालिका के अफसर कभी भी आ कर सारा माल ट्रकों में भर कर ले जाते हैं. और तो और विरोध करने पर हिंसक कार्यवाही भी करते हैं.

लौकडाउन लग जाने से हालात बद से बदतर होने के कगार पर पहुंच गए थे. मेरे साथी पटरी वाले जैसेतैसे अपने गांव पहुंच गए. मैं ने भी कोशिश की, पर उस समय ट्रेनों की टिकट मिलना बहुत मुश्किल था और ट्रेन के अलावा किसी और साधन का खर्च उठा पाना मेरे बस में नहीं था.

कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत से काम पर क्या असर पड़ रहा है?

अभी तो हम पहली वाली लहर से ही आगे नहीं निकल सके थे कि यहां इस साल भी कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक दे दी है. बाजारों में खरीदारी करने वाले भी कोई बड़े लोग नहीं होते हैं, बल्कि वे भी हमारी तरह आम परिवारों से ही आते हैं.

अब थोड़ाबहुत काम होना शुरू ही हुआ था कि लोग दोबारा लौकडाउन के डर से अपने घरगांवों को जा रहे हैं. ऐसे में हमारे पास भी घर लौट जाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता, पर हमारे घर लौट जाने से भी हमारी चिंता खत्म नहीं होती.

हमारे बच्चों की पढ़ाईलिखाई, मकान का किराया, बाकी लोगों से लिए हुए कुछ उधार, इन सब उल?ानों की खातिर हमें कहीं और जा कर भी चैन नहीं है.

इस समय आप को सरकार से क्या उम्मीदें हैं?

सरकार से यही उम्मीद है कि वह इस बार के लौकडाउन से पहले अतिरिक्त ट्रेनें चलवा कर हमें अपने गांव पहुंचाने में मदद करे. प्राइवेट बस व ट्रकों से हजारों रुपए की टिकट खरीद कर जाने के हमारे हालात नहीं हैं.

यहां से गए तो हमारे बच्चों की पढ़ाईलिखाई छूट जाएगी, पर यहां रहे भी तो बच्चों की स्कूल की फीस कहां से  देंगे. जब रोजगार ही नहीं रहेगा, तो हम करेंगे क्या…

क्या पिछले साल आप को सरकार से कोई मदद मिली थी?

पिछले साल सरकार से कुछ  योजनाएं जैसे पीएम स्वनिधि योजना से 10,000 रुपए का कर्ज देने की योजना लागू तो हुई थी, पर सिर्फ उन के लिए, जो सरकारी कागजों पर असल माने में रेहड़ीपटरी वाले हैं, लेकिन हम जैसे कई लोगों के पास कोई सुबूत नहीं कि  हम रेहड़ीपटरी लगाते हैं. इस वजह से  हमें उस योजना का कोई फायदा न  मिल सका.

ऐसे ही कई छोटेमोटे कारोबारी हैं, जो फैक्टरियों, बाजारों, रेलवे स्टेशनों पर कुली और ट्रांसपोर्ट सैक्टर में बो?ा ढोने का काम करने के लिए अपने गांवों से बहुत ही कम उम्र में निकल आते हैं, उन्हें बड़े शहरों में मुसीबत के समय सब से ज्यादा मार झेलनी पड़ती है.

गांव से शहर आ कर काम करने का सीधासादा यही मतलब है कि इन के गांवों में किसी भी तरह के रोजगार का मौका नहीं होता है और न ही ये इतने पढ़ेलिखे होते हैं कि कोई अच्छी नौकरी कर सकें, जिस वजह से गांव में मजदूरी करने से अच्छा इन्हें शहर आ कर मजदूरी करने में फायदा दिखता है.

चूंकि शहर में रोजगार के मौके, दिहाड़ी और मजदूरी की गुंजाइश ज्यादा है, तो शहर आना ही इन के लिए एकमात्र रास्ता रह जाता है. पर ऐसे मजदूरों की मजदूरी ले लेना और मुसीबत के समय भूल जाना हमारे समाज की कड़वी सचाई है.

मजदूरों के बिना कलकारखानों की कल्पना नहीं की जा सकती है. ऐसे में सरकार द्वारा इन का शोषण किया जाना बेहद भेदभाव वाला काम है.

जहां आईपीएल में मैच न खेलने वाले क्रिकेटरों को भी कई करोड़ रुपए दिए जाते हैं, नेताओं के बिजली बिल, पानी बिल, टैलीफोन बिल, बंगले के किराए, निजी सिक्योरिटी, सरकारी नौकरचाकर व दूसरी सुविधाओं पर सरकार सालाना 3 करोड़ से साढ़े  3 करोड़ रुपए का बोझ उठा सकती है, तो क्या ऐसे मजदूरों को इन के गांव भेजने के लिए कुछ दिनों के लिए अतिरिक्त ट्रेनें व बस सेवा मुफ्त में  या कम किराए पर मुहैया नहीं  करवा सकती?

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कितने ही लोगों को लौकडाउन में बच्चों की पढ़ाईलिखाई छुड़ानी पड़ी. क्या ऐसे समय में पैसों की कमी में बच्चों की पढ़ाईलिखाई न छूटे, इस बारे में सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा सकती?

अगर बाजारों की भीड़ में कोरोना फैलता है, तो क्या किसी चुनावी रैली में लोगों की भीड़ कोरोना नहीं फैलाती? क्या सरकारी मदद को आसान शर्तों पर इन्हें मुहैया नहीं कराया जा सकता?

दिल्ली में रेहड़ी, पटरी व फेरी वालों की तादाद 3,00,000 के आसपास है, पर सरकारी कागजों पर सिर्फ 1,25,000 लोग ही कानूनी तौर पर रेहड़ीपटरी लगाते हैं. ऐसे में हमारी तरह बचे 1,75,000 नामालूम रेहड़ीपटरी वाले किस से मदद की आस रखें? चूंकि इन के पास गरीब होने का कोई सरकारी सुबूत नहीं है, सो इन पर ध्यान देने वाला भी कोई नहीं है.

रेहड़ीपटरी, फेरी लगाने वाले, छोटे कारखानों में मजदूरी करने वाले ज्यादातर कारोबारी बिहार, ?ारखंड और बंगलादेश के बहुत ही पिछड़े इलाकों से ताल्लुक रखते हैं और जवान होतेहोते बड़े शहरों में रोजगार की तलाश में आ जाते हैं.

देखा जाए तो बिहार से मजदूरों का रोजगार की तलाश में बड़े शहरों में आने का एक अच्छाखासा इतिहास रहा है, जिस की एक वजह बिहार में गैरकृषि क्षेत्र में रोजगार के मौके न के बराबर होना है.

आईएचडी के एक सर्वे के मुताबिक, बिहार के गोपालगंज और मधुबनी जिलों से मजदूरों का बड़े शहरों में जाना ज्यादा देखने को मिलता है. कुम्हार, ग्वाला और शूद्र जाति से होने के चलते इन के पारंपरिक आजीविका के स्रोत पूरी तरह से बरबाद हो चुके हैं.

रंजीत कुम्हार जाति का है, जिस का काम मिट्टी के बरतन बनाना और बाजार में बेचने का होता था, पर औद्योगीकरण की मार के चलते कुम्हार जाति के बारे में अब सिर्फ किताबों में पढ़ने को मिलता है.

इतना ही नहीं, बाकी लोगों के साथ इसती तरह की आम समस्याएं हैं, जिस वजह से इन्हें शहर की ओर जाना पड़ता है. शुरुआत में इन की मंशा सिर्फ बड़े शहरों में जा कर पैसा कमाने की होती है, लेकिन तमाम जिम्मेदारियां, बीवीबच्चे और घरसंसार के जाल में फंस कर इन्हें अपनी जिंदगी इन्हीं बड़े शहरों में गुजारनी पड़ती है, जिस का एहसास इन्हें लौकडाउन जैसे हालात में देखने को मिलता है.

Kundali Bhagya की प्रीता ने शॉवर में दिखाया कातिलाना अंदाज, देखें Hot Photos

टीवी सीरियल कुंडली भाग्य एक्ट्रेस श्रद्धा आर्या (Shraddha Arya)  इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने शॉवर में फोटोशूट शेयर किया है, जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

जी हां, एक्ट्रेस इन तस्वीरों में अपनी कातिलाना अंदाज दिखाती नजर आ रही है. दरअसल कुंडली भाग्य की टीम  की टीम इस समय गोवा में शूटिंग कर रही हैं. ऐसे में श्रद्धा आर्या (प्रीता) अक्सर शूटिंग से समय निकालकर मस्ती करती नजर आ जाती हैं.

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श्रद्धा आर्या के इस शॉवर फोटोशूट ने फैंस का दिल जीत लिया है. बता दें कि गोवा में लॉकडाउन होने की वजह से श्रद्धा आर्या इन दिनों वहीं फंस गई हैं.

 

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तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि शॉवर लेते समय श्रद्धा आर्या छोटी बच्ची की तरह मस्ती करती दिखाई दे रही हैं. श्रद्धा आर्या बिना मेकअप के पोज दे रही हैं. श्रद्धा आर्या का नो मेकअप लुक भी काफी शानदार दिखाई दे रही है.

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एक्ट्रेस के बोल्ड तस्वीर को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं. श्रद्धा बिकिनी अवतार में कमाल लग रही है. इस तस्वीर में श्रद्धा आर्या शॉवर लेती दिखाई दे रही हैं.

सई करवाएगी देवयानी के पागलपन का इलाज, आएगा धमाकेदार ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो के बीते एपिसोड में आपने देखा कि विराट, सई को हर तरह से सपोर्ट कर रहा है. भवानी चाहकर भी सई को नहीं रोक पा रही है. तो वहीं अब चौहान हाउस में देवयानी की बेटी हरिणी आई है. शो के नए एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. तो आइए बताते हैं शो के लेटेस्ट ट्रैक के बारे में.

शो की कहानी में दिखाया जा रहा है कि सई और विराट देवयानी की बेटी हरिणी का बर्थडे प्लान करते हैं. इसलिए हरिणी को चौहान हाउस में वापस लाने के लिए जुट जाते हैं. तो वहीं भवानी पता लगाने की कोशिश करती है कि आखिर सई और विराट किस चिज की तैयारी कर रहे हैं.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि सई और विराट, हारिणी को चौहान हाउस ले आएंगे. और सब मिलकर हारिणी का बर्थडे  मनाएंगे. तो इसी दौरान हरिणी भवानी को नानी कहकर बुलाएगी. ‘नानी’ सुनकर भवानी इमोशनल हो जाएगी.

 

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तो हरिणी के आने के बाद सई, भवानी को धमकी देगी कि अगर उसने हरिणी को कुछ कहने की कोशिश की तो वो भवानी की पोल खोल देगी. ये बात सुनते ही भवानी की बोलती बंद हो जाती है. तो इसी बीच सई को पता चलेगा कि भवानी, देवयानी को गलत दवा दे रही थी. अब अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि सई का अगला कदम क्या होगा.

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जनप्रतिनिधि लें गांव के अस्पताल गोद

लखनऊ . कोविड के संक्रमण से ठीक हुए लोगों की सेहत को लेकर भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिक्रमंद हैं. करीब तीन हफ्ते पहले ही उन्होंने हर जिला हॉस्पिटल में पोस्ट कोविड केयर सेंटर बनाने के निर्देश दिए थे. इसी क्रम में अपने बस्ती दौरे के दौरान उन्होंने सभी जिलों में सौ बेड का पोस्ट कोविड वॉर्ड शुरू करने का निर्देश दिया.

बस्ती मंडल की समीक्षा बैठक के दौरान सीएम ने कहा कि प्रदेश के सभी जिलो में 01 जून से 18 से 44 वर्ष आयु के लोगों को कोविड-19 का टीका लगाया जाएगा . 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के अभिभावको, न्यायिक अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों तथा मीडिया के प्रतिनिधियों को टीका लगाने के लिए अलग से काउंटर खोले जायेंगे. उन्होने जनप्रतिनिधियों से कहा कि वे एक-एक सीएचसी/पीएचसी गोद लें और वहां नियमित रूप से विजिट करें. अधिकारियों को निर्देश दिया कि टीकाकरण, सैनिटाइजेशन तथा फागिंग की सूचना जनप्रतिनिधियों को भी उपलब्ध कराएं जिससे वे इसका सत्यापन कर सके.

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि   कि प्रत्येक जिले में स्वच्छता, सैनिटाइजेशन एवं फागिंग, निगरानी समिति द्वारा स्क्रीनिंग एंव दवा किट वितरण, कोविड कमांड एवं कंट्रोल सेंटर द्वारा फील्ड में किए जा रहे कार्य का सत्यापन तथा कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए अस्पतालों की तैयारी को  प्राथमिकता दें.

मुख्यमंत्री ने कहा कि बरसात को देखते हुए इंसेफेलाइटिस डेंगू, चिकुनगुनियां आदि बीमारियों से सुरक्षा के लिए भी समुचित प्रबन्ध किए जाएं. इसके लिए हर गांव एवं वार्ड में दिन में सैनिटाइजेशन तथा रात में फागिंग किया जाय.

मच्छरों के लार्वा को खत्म करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाए. उन्होंने ग्रामीणों को खुले में शौच न करने तथा शौचालय का उपयोग करने को लेकर जागरूकता बढाने पर जोर दिया.

उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर को रोकने में सभी ने अच्छा कार्य किया है, लेकिन तब भी हमें सर्तक रहना होगा. यह एक महामारी है इसलिए सामान्य बीमारी से इसकी तुलना करना उचित नहीं है.

प्रदेश के सभी जिलों को आक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर जिले में प्लांट स्वीकृत किया गया है, उस पर काम भी चल रहा है. उन्होने निर्देश दिया कि प्रत्येक आक्सीजन प्लांट के लिए एक नोडल अधिकारी नामित करें, जो कार्यदायी संस्था से समन्वय स्थापित करके इसको शीघ्र स्थापित कराए . सरकार ब्लैक फंगस से निपटने के लिए विशेष प्रयास कर रही है.

उन्होंने कहा कि सीएचसी/पीएचसी पर अभी ओपीडी शुरू नही की जाएगी, लेकिन जिला अस्पताल में नानकोविड अस्पताल संचालित करके गंभीर रोगों के मरीजो का इलाज किया जायेगा .

अन्य लोग टेली कन्सल्टेन्सी के माध्यम से डाक्टरों से परामर्श कर सकते हैं . साथ ही महिला एवं बच्चों के लिए अलग से अस्पताल संचालित किए जाने पर उन्होंने जोर दिया . सभी सीएचसी/पीएचसी में साफ-सफाई, रंगाई-पोताई अगले एक सप्ताह में कराने और सभी उपकरण एंव मशीन सही कराने के निर्देश दिए . उन्होंने जिले के अस्पतालों में जिलाधिकारी तथा मेडिकल कालेज में वहां के प्रधानाचार्य, पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति के संबंध में कार्रवाई शुरू करने को कहा .

पैरामेडिकल स्टाफ, नर्स को मेडिकल कालेज से सम्पर्क करके टेनिंग दिलाए जाने की बात भी कही. उन्होंने वेंटीलेटर संचालित करने के लिए आईटीआई के छात्रों को ट्रेंड करने के निर्देश दिए.

जिले में कोई भूखा न रहे लिहाजा कम्युनिटी किचन का संचालन हो जिससे अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजन, मजदूर, स्ट्रीट वेंडर, पल्लेदार एवं फुटपाथ पर रह कर गुजारा करने वालों को दो वक्त का शुद्ध ताजा भोजन मिल सके.

उन्होने कोरोना कर्फ्यू के नियमों का कड़ाई से पालन कराने को कहा. साथ ही कंटेनमेंट जोन में कड़ाई बरते जाने को लेकर निर्देश दिए . उन्होंने कहा कि उद्योग, कृषि, सब्जी मण्डी खोलने की अनुमति दी गयी है, लेकिन वहां बेवजह की भीड़ एकत्र न होने दें. शादी-विवाह में 25 से अधिक लोगों को जाने की अनुमति न दें और इसका कड़ाई से पालन भी कराएं. जून माह में फ्री खाद्यान्न वितरित किया जाएगा. ऐसी व्यवस्था बनाये की पात्र व्यक्तियों को खाद्यान्न मिल सके .

फ्री टीकाकरण महाअभियान: चलेगा शहरों से लेकर गांवों तक

लखनऊ. कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फ्री टीकाकरण को लेकर एक जून से होने वाले महाअभियान का प्लान तैयार कर लिया गया है. शहर से लेकर गांवों तक होने वाले टीकाकरण के लिए कम आबादी वाले हर जिले में कम से कम रोजाना एक हजार लोगों का टीकाकरण होगा. ऐसे ही अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में एक से दो अतिरिक्त कार्य स्थल पर कोविड वैक्सीनेशन सेंटर (सीवीसी) स्थापित किए जाएंगे. विभिन्न सरकारी कार्यों में फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीकाकरण में प्राथमिकता दी जाएगी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्व के सबसे बड़े निशुल्क टीकाकरण अभियान को और तेज गति से चलाने के निर्देश दिए हैं. कोविड वैक्सीनेशन संक्रमण से बचाव का सुरक्षा कवर है. देश में सबसे ज्यादा प्रदेश में 18 से 44 आयु वर्ग के युवाओं ने टीका लगवाया है. सीएम के निर्देश पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने फ्री टीकाकरण महाअभियान को लेकर शासनादेश जारी कर दिया है. एक जून से होने वाले टीकाकरण के लिए हर जिले में 18 से 44 आयु वर्ग के लिए रोजाना चार कार्य स्थल पर सीवीसी का आयोजन किया जाएगा. इसमें जिले स्तर पर न्यायालय के लिए, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग कार्यालय में अधिकारियों और मीडिया प्रतिनिधियों के लिए और सरकारी कार्य स्थल के लिए दो सत्र स्थापित किए जाएंगे.

अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में एक से दो अतिरिक्त कार्य स्थल पर सीवीसी लगाए जाएंगे. आवश्यकतानुसार कार्य स्थल पर सीवीसी का स्थान परिवर्तित करते हुए राष्ट्रीयकृत बैंक कर्मी, परिवहन कर्मचारी, रेलवे और अन्य राजकीय कार्यालयों में भी टीकाकरण किया जाएगा. इसके अलावा एक सरकारी कार्य स्थल पर राजकीय और परिषदीय शिक्षकों को वरीयता दी जाएगी. इसके अलावा हर जिले में रोजाना दो अभिभावक स्पेशल सीवीसी स्थापित किए जाएंगे, जिसमें 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के माता-पिता का टीकाकरण किया जाएगा.

सीएमओ को पहले दी जाएगी सूची, फिर होगा टीकाकरण

सूचना विभाग या मीडिया कर्मियों का टीकाकरण होने के बाद इसे सरकारी कर्मचारियों के कार्य स्थल में परिवर्तित कर दिया जाएगा और सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों का टीकाकरण किया जाएगा.

जिले स्तर पर रोजाना लगने वाले टीके की सूची न्यायालयों में जिला जज के कार्यालय से, मीडिया कर्मियों की सूची जिला सूचना अधिकारी से, शिक्षकों की सूची डीआईओएस या बीएसए से और अन्य सरकारी कर्मियों की सूची डीएम कार्यालय से पूर्व से बनाकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी को दिया जाएगा और उसी के अनुसार टीकाकरण कराया जाएगा. इन सभी कार्य स्थल पर सीवीसी में 45 और उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों के लिए भी स्लाट रखे जाएंगे.

12 वर्ष से कम बच्चों के अभिभावकों को देना होगा प्रमाण पत्र

हर जिले में रोजाना दो अभिभावक स्पेशल सीवीसी लगाए जाएंगे, जिसमें 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के माता-पिता का टीकाकरण होगा. इसके लिए उन्हें पंजीकरण और टीकाकरण के समय अपने बच्चे की उम्र 12 वर्ष से कम होने का प्रमाण (आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य) पत्र देना होगा. अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में एक अतिरिक्त अभिभावक स्पेशल सीवीसी लगाया जाएगा.

नगरों और गांवों पर भी फोकस

हर जिले में रोजाना तीन नगरीय क्षेत्रों में सीवीसी स्थापित किए जाएंगे. अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में आवश्यकतानुसार अतिरिक्त नगरीय स्पेशल सीवीसी लगाया जाएगा. नगरीय क्षेत्र के पास टीकाकरण के लिए हर जिले में रोजाना एक सीवीसी लगाया जाएगा. ऐसे ही हर जिले में रोजाना ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दो सीवीसी स्थापित किए जाएंगे. अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में आवश्यकता के अनुसार अतिरिक्त सीवीसी स्थापित किए जाएंगे.

Best of Crime Stories: शादी जो बनी बर्बादी- भाग 2

इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी के घटनास्थल पर पहुंचने से पहले मृतका के घर वाले वहां पहुंच चुके थे. उसी दौरान प्रैस फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीम भी वहां पहुंच गई. इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी ने प्रतीक्षा के घर वालों को सांत्वना दी कि हो सकता है प्रतीक्षा की सांसें चल रही हों. फिर वह प्रतीक्षा को अपनी कार में डाल कर नजदीक के डा. वोडे अस्पताल ले गए, पर डाक्टरों की टीम ने जांच के बाद प्रतीक्षा को मृत घोषित कर दिया.

दिनदहाड़े घटी इस घटना की खबर थोड़ी ही देर में सारे शहर में फैल गई. पूरे शहर में सनसनी सी फैल गई. घटना की जानकारी पा कर अमरावती शहर के पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय मांडलिक, डीसीपी शशिकांत सातव घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण कर थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

मृतका के घर वालों से बातचीत करने के बाद थानाप्रभारी ने इस हत्याकांड की जांच इंसपेक्टर दुर्गेश तिवारी को सौंप दी. उन्होंने सब से पहले प्रतीक्षा की सहेली का बयान दर्ज किया. क्योंकि वह उस समय प्रतीक्षा के साथ ही थी. सहेली श्रेया ने अपनी आंखों देखा हाल पुलिस को लिखवा दिया. उधर प्रतीक्षा के घर वालों ने पुलिस को बताया कि उन की बेटी की हत्या राहुल भड़ ने की है.

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मां ने बताया हमलावर का नाम

प्रतीक्षा की मां मंगला ने पुलिस को बताया कि राहुल से प्रतीक्षा एकतरफा प्यार करता था. वह कई सालों से प्रतीक्षा के पीछे पड़ा था. वह उस से प्यार करने का दम भरता था और उसे अपनी पत्नी बताता था. अकसर वह उसे छेड़ता, परेशान करता और तरहतरह की धमकियां दिया करता था, जिस से प्रतीक्षा का कहीं अकेले आनाजाना मुश्किल हो गया था.

इस बात की शिकायत उन्होंने फ्रेजरपुरा गाडगेनगर और राजापेठ पुलिस थानों में भी की थी. लेकिन पुलिस ने उस के खिलाफ कोई कठोर काररवाई नहीं की, जिस से उस की हिम्मत बढ़ गई. यह उसी का नतीजा है.

लोगों को जब यह जानकारी मिली तो वे आक्रोशित हो कर सैकड़ों की संख्या में इकट्ठा हो कर थाना राजापेठ के सामने पहुंच गए और प्रतीक्षा के हत्यारे को अतिशीघ्र गिरफ्तार करने की मांग करने लगे.

मामले को तूल पकड़ते देख डीसीपी ने तफ्तीश का दायित्व खुद संभाला. उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि हत्यारे राहुल को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस के बाद डीसीपी ने कई टीमें गठित कीं. पुलिस टीमें राहुल भड़ के सभी ठिकानों पर दबिश के लिए निकल गईं. पुलिस ने उस के दोस्तों, नातेरिश्तेदारों से पूछताछ की.

राहुल का जब पता नहीं चला तो उस के फोन की लोकेशन को ट्रेस किया जाने लगा. मोबाइल की लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम ने उसे यवतमाल के मूर्तिजापुर रेलवे स्टेशन के पास से रात करीब 2 बजे गिरफ्तार कर लिया. जिस समय पुलिस टीम ने राहुल भड़ को गिरफ्तार किया था, उस समय उस की स्थिति काफी खराब थी. पुलिस उपचार के लिए उसे डाक्टर के पास ले गई.

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जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि राहुल ने कोई विषैली चीज खा ली है. यदि समय रहते उसे इलाज न मिला होता तो उस की जान जा सकती थी. बहरहाल राहुल भड़ की हालत सामान्य होने के बाद पुलिस उसे थाने ले आई.

पुलिस ने उस से प्रतीक्षा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया कि प्रतीक्षा की हत्या उस ने मजबूरी में की थी. यदि वह उस की बात मान लेती तो यह करने की नौबत नहीं आती. पूछताछ के बाद उस की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कम उम्र में ही हो गया था दोनों को प्यार

26 वर्षीय राहुल भड़ अमरावती के गांव हंतोड़ा का रहने वाला था. उस के पिता बबनराव भड़ का गांव में ही एक छोटा सा कारोबार था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अकोला की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. राहुल परिवार में सब से छोटा था. घर वालों के लाड़प्यार में वह जिद्दी हो गया था.

लेकिन वह तेजतर्रार और महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह पढ़ाई में होशियार था. सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ले कर वह नौकरी करने के बजाय किसी ऐसे काम की तलाश में था, जिस में मोटी कमाई हो. वह नागपुर जा कर ठेकेदारी करने लगा था. परिवार में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन प्रतीक्षा को देखने के बाद वह उस का दीवाना हो गया था.

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छावड़ा प्लांट अमरावती शहर की रहने वाली प्रतीक्षा के पिता मुरलीधर मेहत्रे धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. परिवार में उन की पत्नी मंगला मेहत्रे के अलावा 2 बेटियां थीं. पिता की तरह दोनों बेटियां भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. सभी साईंबाबा के भक्त थे. गुरुवार को सभी साईंबाबा के मंदिर जरूर जाते थे. प्रतीक्षा पढ़ाई में भी होशियार थी. पहली कक्षा से ले कर एमएससी तक उस ने अच्छे अंकों से पास की थी. वह टीचर बनना चाहती थी. लेकिन उस का यह सपना अधूरा ही रह गया. उस का सपना पूरा होने से पहले ही उस पर राहुल भड़ की काली नजर पड़ गई.

सन 2010 में राहुल ने प्रतीक्षा को उस समय देखा था, जब वह अपने मामा राऊत के घर एक दावत में आया था. उस समय प्रतीक्षा सिर्फ 14 साल की थी. उस समय वह हाईस्कूल की परीक्षा पास कर चुकी थी. राहुल भड़ के मामा राऊत और प्रतीक्षा का परिवार एक ही सोसायटी में आमनेसामने रहता था.

हालांकि उस समय दोनों ही नादान और कमउम्र थे. लेकिन प्रतीक्षा का खूबसूरत चेहरा राहुल की निगाहों में समा गया था और प्रतीक्षा के करीब आने के लिए वह अकसर अपने मामा के यहां आनेजाने लगा था. जिस का उसे पूरापूरा फायदा भी मिला. धीरेधीरे वह प्रतीक्षा के करीब आ गया.

दोनों में जब अच्छी जानपहचान हो गई तो वे मिलनेजुलने लगे. दोनों के बीच जब घनिष्ठता बढ़ी तो समय निकाल कर इधरउधर घूमने भी लगे. राहुल प्रतीक्षा पर दिल खोल कर खर्च भी करने लगा था, जिस का नतीजा यह रहा कि प्रतीक्षा की राहुल के प्रति सहानुभूति बढ़ गई.

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