उत्तर प्रदेश: अगड़ों को मलाई एससीबीसी को पसंद नहीं आई

75 जिलों के तकरीबन 12 करोड़ वोटरों का फैसला भाजपा के खिलाफ गया है. जो एससीबीसी तबका भाजपा के साथ था, वह अब उस से छिटक गया है. इस की वजह यह थी कि भाजपा ने उस से वोट तो लिए, पर सत्ता में भागीदारी नहीं दी. इस के बाद पंचायत चुनाव में वह भाजपा से दूर हो गया.

सरकार के तमाम दावों के बाद भी थाने और तहसील में रिश्वतखोरी कम होने के बजाय बढ़ गई है. रिश्वत का रेट भी दोगुना हो गया है. योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से अपने खिलाफ बोलने वालों को निशाने पर लेना शुरू किया, उस से उन के खिलाफ एक चिनगारी सुलग रही थी. पंचायत चुनाव के फैसले ने चिनगारी को हवा देने का काम किया है.

उत्तर प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने धर्म के नाम पर एससी (शैड्यूल कास्ट) और बीसी (अदर बैकवर्ड कास्ट) को साथ तो लिया, पर जब सत्ता में भागीदारी देने का समय आया, तो मलाई सवर्णों के नाम कर दी.

भाजपा को यह पता था कि इस से एससीबीसी नाराज हो सकते हैं. बीसी जाति के केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया.

मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद के दूसरे पद अगड़ों को दिए गए. इन में मुख्यमंत्री का पद ठाकुर जाति के योगी आदित्यनाथ को और उपमुख्यमंत्री का दूसरा पद ब्राह्मण जाति के डाक्टर दिनेश शर्मा को दे दिया गया.

भाजपा को यह लग रहा था कि एक मुख्यमंत्री और 2 उपमुख्यमंत्री बना कर जातीय समीकरण को ठीक कर लिया गया है. जैसेजैसे सत्ता पर अगड़ों की पकड़ मजबूत होती गई, एससीबीसी को अपनी अनदेखी महसूस होने लगी. ऐसे में एससीबीसी जातियां अलगथलग पड़ने लगीं.

उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा के चुनाव होंगे. इस के पहले साल 2021 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए. इन चुनावों में जिला पंचायत सदस्य के 3,050 पदों के लिए चुनाव हुए.

पंचायत चुनावों में पहली बार इन पदों को राजनीतिक दलों के बैनर के साथ लड़ा गया. इसे सब से मजबूती से भारतीय जनता पार्टी ने ही लड़ा. मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को पंचायत चुनावों का प्रभारी बनाया गया. बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया गया.

भाजपा को गांवों में समर्थन कम मिलता रहा है. ऐसे में उस की योजना यह थी कि पंचायत चुनाव के बहाने वह गांवगांव में अपना जनाधार मजबूत कर लेगी. भाजपा के विपक्षी दलों सपा और बसपा ने पंचायत चुनाव में कोई मेहनत नहीं की. अखिलेश यादव ने तो ट्विटर पर पंचायत चुनाव को ले कर लिखा भी. मायावती ने ट्विटर पर भी इन चुनावों और अपनी पार्टी को ले कर कोई खास प्रचार  नहीं किया.

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पंचायत चुनावों में अलग हो गए एससीबीसी

पंचायत चुनावों के जब नतीजे सामने आए, तो भाजपा को सब से ज्यादा निराशा ही हाथ लगी. भाजपा की मेहनत और उम्मीद से बहुत खराब नतीजे सामने आए. 3,050 पदों के जब नतीजे सामने आए, तो भाजपा को 764 जगहों पर जीत मिली. उस के मुकाबले समाजवादी पार्टी को 762 जगहों पर जीत मिली और उस की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल को 68 पद मिले.

अगर समाजवादी पार्टी और लोकदल की सीटें मिला दी जाएं, तो 830 सीटें हो जाती हैं, जो भाजपा की 764 सीटों में से 66 सीटें ज्यादा हैं.

इस तरह से भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में करारी मात मिली है. इस के अलावा बसपा को 381, कांग्रेस को 76, आम आदमी पार्टी को 64 और निर्दलीयों को 935 पद मिले. अब यही सदस्य मिल कर जिला पंचायत अध्यक्ष को चुनेंगे.

राजनीतिक समीक्षक, पत्रकार विमल पाठक कहते हैं, ‘गांवों में भाजपा को अगड़ी जातियों का समर्थन तो मिला, लेकिन एससीबीसी जातियों ने भाजपा का साथ नहीं दिया. इस वजह से भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा.

‘लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा ने धर्म के हथियार का प्रयोग किया था. पंचायत चुनाव में धर्म की जगह जाति हावी हो गई. भाजपा के लिए यह खतरे की घंटी है.

‘अगर जाति के आधार पर ही साल 2022 के विधानसभा चुनावों में वोट पड़े, तो भाजपा के लिए चुनाव जीतना भारी पड़ जाएगा. भाजपा के अंदर अलगअलग स्तर पर जातीयता को ले कर जिस तरह का विभाजन दिख रहा है, उस से विधानसभा चुनाव में जीत की राह मुश्किल दिख रही है.’

नहीं चली धर्म की राजनीति

भाजपा के लिए सब से डराने वाली बात यह है कि धर्म का कार्ड पंचायत चुनाव में नहीं चला. उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के साथ ही साथ पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव भी थे. वहां भी भाजपा के धर्म का कार्ड नहीं चला.

पंचायत चुनावों में भाजपा को अपनी हार का सब से ज्यादा मलाल अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी और मथुरा की हार को ले कर है. यहां से भाजपा को सब से ज्यादा उम्मीद थी.

वाराणसी में जिला पंचायत की  40 सीटें हैं. इन में से केवल 8 सीटें ही भाजपा को मिली हैं. यहां समाजवादी पार्टी को 15 और बसपा को 5 सीटें मिलीं. अपना दल ‘एस’ को 3, आम आदमी पार्टी और सुहेलदेव समाज पार्टी को एकएक सीट मिली. 3 सीटें निर्दलीय के खाते में गईं.

वाराणसी में अपना दल और सुहेलदेव समाज पार्टी भाजपा की सहयोगी पार्टी रही हैं. इस के बाद भी यह पंचायत चुनाव अलगअलग हो कर लड़े थे. असल में साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को जब दरकिनार करना शुरू किया, तो सहयोगी दल अलगअलग हो गए.

अगर भाजपा को अपना दल और सुहेलदेव समाज पार्टी के पिछड़ा और दलित तबके का साथ मिलता, तो भाजपा के खाते में 11 सीटों से ज्यादा मिल जातीं और सपा को बढ़त नहीं मिलती.

मथुरा में भाजपा को बहुजन समाज पार्टी और लोकदल ने कड़ी टक्कर दी. मथुरा में बसपा को 12, लोकदल को  9 और भाजपा को 8 सीटें मिलीं.

अयोध्या में भाजपा को सपा ने कड़ी टक्कर दी. 40 सीटों में से 24 सीटों पर सपा ने जीत हासिल की और भाजपा के खाते में केवल 6 सीटें ही गईं.

साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में महज 8 महीने ही रह गए हैं. ऐसे में धार्मिक शहरों में भाजपा की हार से यह साफ लग रहा है कि धर्म का अस्त्र अगर चुनाव में नहीं चला, तो भाजपा को हार का सामना करना पड़ेगा.

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वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र प्रताप सिंह का कहना है, ‘भारतीय जनता पार्टी ने केवल धर्म के एजेंडे को ही आगे रख कर काम किया. ऐसे में रोजगार, विकास की बातें बेमानी हो गई थीं.

‘भारतीय जनता पार्टी को यह लग रहा था कि वह केवल बूथ प्रबंधन के सहारे ही यह चुनाव जीत जाएगी. पंचायत चुनाव में मतदाताओं ने भाजपा को यह बता दिया है कि वोट लेने के लिए जनता के काम भी करने पड़ते हैं.’

कृषि कानून का असर

पंचायत चुनाव पर किसान आंदोलन का भी असर देखने को मिला. कृषि कानूनों के खिलाफ जब किसानों ने आंदोलन शुरू किया, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने इस में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुत समर्थन मिला था. किसान आंदोलन का जिस तरह से भाजपा ने दमन किया और किसानों पर तरहतरह के लांछन लगाए, उस से किसान तबका बहुत नाराज था.

भाजपा को लग रहा था कि अगर पंचायत चुनावों में उस को जीत मिल गई, तो वह विधानसभा चुनाव के प्रचार में कह सकती है कि कृषि कानूनों को किसानों ने स्वीकार कर जीत दिला दी है. नोटबंदी और जीएसटी के बाद चुनाव जीतने पर वह ऐसे ही तर्क देती रही है. नोटबंदी, जीएसटी और तालाबंदी के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव नतीजों पर ऐसे ही तर्क दिए गए थे.

पंचायत चुनावों में कृषि कानून भी एक मुद्दा बना. किसानों ने भाजपा के खिलाफ इस कारण भी वोट किए. इस का सब से ज्यादा असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर पड़ा. जहां साल 2014 से  ले कर 2019 के सभी चुनावों में भाजपा को सब से ज्यादा वोट मिले थे.

भाजपा ने अखिलेश सरकार के समय नोएडा, मुजफ्फरनगर और कैराना को हिंदूमुसिलम के नाम पर भड़काया गया. इस का यह असर पड़ा कि भाजपा को सब से ज्यादा वोट मिले थे.

साल 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी, तो सहारनपुर में दलित और सवर्णों के बीच जातीय हिंसा हुई. इस हिंसा में योगी सरकार का रुख दलितों को पसंद नहीं आया. यहीं से दलित भाजपा में खुद को बेहतर हालत में नहीं पा रहा था. धीरेधीरे पिछड़ी जातियां भी ऐसे ही अनुभव करने लगी थीं.

पंचायत चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को सब से ज्यादा नुकसान हुआ. जनता ने समाजवादी पार्टी, लोकदल, बसपा ही नहीं, बल्कि भीम आर्मी तक को वोट दिया.

मेरठ, सहारनपुर, शामली, बागपत, आगरा और अलीगढ़ जैसे जिलों में लोकदल और समाजवादी गठबंधन को सब से ज्यादा वोट मिले. भाजपा समर्थित उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा.

भाजपा ने किसान आंदोलन के समय किसानों की जिस तरह से अनदेखी की, वह पंचायत चुनावों पर भारी पड़ी. भाजपा को अभी भी कृषि कानूनों को वापस लेने पर विचार करना चाहिए. किसानों ने जाति और धर्म से ऊपर उठ कर पंचायत चुनावों में वोट दिया है. पंचायत चुनावों में मिली जीत के बाद किसान आंदोलन और मजबूत होगा.

 सरकार के लिए खतरे की घंटी

पंचायत चुनाव के फैसले उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए खतरे की घंटी हैं. पंचायत चुनावों में हार के बाद भाजपा के अंदर बगावत के सुर सुनाई देने लगे हैं. कई विधायक और सांसद कोरोना संक्रमण के बहाने सरकार पर शब्दबाण चलाने लगे हैं. समस्या यह है कि अगड़ी जातियों में ब्राह्मण भी उन के खिलाफ दबी जबान से बोलने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में भी 2 गुट बन गए हैं. विरोध करने वाले गुट के लोग ‘औफ द रिकौर्ड’ बात कर के अपनी भड़ास निकालते हैं. यही भड़ास हवा के रूप में आगे बढ़ती है और सरकार की छवि को खराब करती है.

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सरकार पार्टी के नेताओं से ज्यादा ब्यूरोक्रेसी पर निर्भर है. ब्यूरोक्रेसी के फरमान जनता पर भारी पड़ते हैं. कोरोना काल में यह देखने को मिला. अफसर योगी को यह सम?ाते रहे कि गांवगांव आप की छवि निखर रही है. पंचायत चुनावों में बड़ी सफलता के बाद विधानसभा चुनाव में आप को कोई चुनौती देने वाला नहीं होगा. कोरोना काल में चुनाव कराने का फैसला योगी सरकार पर भारी पड़ा. जब अस्पताल नहीं मिल रहे, औक्सीजन नहीं मिल रही, श्मशान घाट में जगह नहीं मिल रही, तो लोगों ने सरकार के खिलाफ वोट देने का फैसला किया.

चुनाव नतीजे आने के बाद भी परिणामों को भाजपा के पक्ष में दिखाने का काम अफसरों ने करना शुरू कर दिया है. मुख्य मुकाबला अभी बाकी है. जिला पंचायत सदस्य तो जीत गए, पर विपक्ष के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष पद जीतना आसान नहीं होगा. अफसर अब यह कोशिश करेंगे कि जिला पंचायत सदस्यों को भाजपा के पक्ष में किया जाए. समाजवादी पार्टी के विधायक अंबरीष सिंह पुष्कर कहते हैं, ‘बहुत से जिलों में प्रशासन ने जीत गए उम्मीदवारों को जीत के प्रमाणपत्र देने में गड़बड़ी करने की कोशिश की थी. मोहनलालगंज में जब हम ने धरना देने का काम किया, तब प्रशासन ने प्रमाणपत्र दिए. ऐसे में इस बात की संभावना प्रबल है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में खरीदफरोख्त हो.’

कोरोनल डिप्रेशन का बढ़ता खतरा

लेखक- धीरज कुमार   

जिस तरह से अपने देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर बढ़ रही है और पूरे देश में संक्रमित लोगों की तादाद रोजाना बढ़ती जा रही है, उस से डाक्टरों के साथसाथ आम लोग भी कोरोना वायरस के बदले हुए स्ट्रेन के चलते चिंतित और परेशान हैं. हर किसी के मन में यह लग रहा है कि कहीं वह कोरोना वायरस से ग्रसित न हो जाए.

कुछ पढ़ेलिखे और समझदार लोग मास्क लगा रहे हैं और दूरी का पालन कर रहे हैं, वहीं कुछ बेपरवाह लोग मौजमस्ती में हाटबाजार और सड़कों पर घूमते नजर आ रहे हैं. कुछ सम झदार लोग वायरस से बचाव के लिए काफी एहतियात बरत रहे हैं, ठंडी चीजों से परहेज कर रहे हैं, गरम पानी पी रहे हैं व भीड़भाड़ से अपनेआप को दूर रख रहे हैं.

कुछ लोग टीका लगवाने की भी कोशिश कर रहे हैं, ताकि इस बीमारी के जोखिम से बचा जा सके, वहीं कुछ लोग कोरोना वायरस के चलते जितने ज्यादा चिंतित हो गए हैं कि एक तरह से डिप्रैशन का शिकार हो गए हैं.

वैसे तो लोग बारबार हाथ धो रहे हैं, तरहतरह के सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहां तक तो ठीक है, लेकिन कुछ लोग बारबार अपनी सांसें चैक कर के देख रहे हैं. कुछ लोग टैलीविजन और दूसरे मीडिया में खबरें देख कर जिनजिन लक्षणों के बारे में बताया जा रहा है, उन्हें खुद में ढूंढ़ कर अपनेआप को शक के घेरे में डाल रहे हैं. ऐसा करना सही नहीं है.

शक की इसी बीमारी को कोरोनल डिप्रैशन का नाम दिया जा रहा है. आज इस तरह के डिप्रैशन से सैकड़ों लोग पीडि़त हो चुके हैं. कई लोगों को इस डिप्रैशन की वजह से नींद नहीं आ रही है. कई लोग बारबार नींद खुलने की शिकायतें भी कर रहे हैं. मन में घुसे इस डर की वजह से सिरदर्द और चिंता होना लाजिमी है.

संजीव कुमार रोहतास, बिहार में एक कालेज में पढ़ाते हैं. उन्होंने बताया, ‘‘कई बार बुरे सपनों के चलते मेरी नींद टूट जा रही है. ऐसा लग रहा है कि मुझे कोरोना हो चुका है. खुद के तापमान को बारबार नापने की कोशिश करता हूं. अपनी सांसें रोक कर चैक कर रहा हूं.

‘‘कभी गुड़, तो कभी गोल मिर्च (गोलकी मसाला) खा कर अपनेआप को टैस्ट करने की कोशिश कर रहा हूं कि कहीं खाने का स्वाद तो नहीं चला गया है? कहीं मेरी सांसें तो नहीं अटक रही हैं? सीने में दर्द तो नहीं हो रहा है? ऐसा मन में डर के चलते हो रहा है.

‘‘पर, जब मैं डाक्टर के पास गया, तो उन्होंने मु झे पूरी तरह से ठीक बताया और जरूरत पड़ने पर नींद की गोली खाने को दे दी. अब मैं इस वहम से छुटकारा पा गया हूं.’’

वहीं डेहरी ओन सोन की रहने वाली मंजू देवी का कहना है, ‘‘घर पर कोई आ रहा है, तो मु झे इस बात का डर रहता है कि कहीं उन से मैं भी कोविड 19 से ग्रस्त न हो जाऊं. मैं काफी डरी हुई हूं. ऐसे माहौल में मैं क्या करूं, सम झ में नहीं आ रहा है. दिनरात चिंता के चलते सिर में दर्द और नींद नहीं आने की बीमारी हो गई है.

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‘‘कभीकभी तो शक के चलते जब तक खुद को साफसुथरा नहीं कर लेती हूं, तब तक अपने बच्चों के पास भी  नहीं जा पाती हूं. कभी बीच में उठ कर अपने बच्चों को चैक करती हूं, तो कभी खुद को.’’

इस तरह की बेवजह की चिंता और घबराहट बढ़ने की अहम वजह है कि टैलीविजन और दूसरे मीडिया में यह दिखाया जा रहा है कि श्मशान घाटों पर अनेक लाशें रोजाना जल रही हैं. वहां लंबीलंबी कतारें लगी हुई हैं. अस्पताल के बाहर उन के परिवार वालों को चीखतेचिल्लाते हुए दिखाया जा रहा है. देशभर में औक्सीजन सिलैंडर की काफी कमी हो गई है. उन के लिए जगहजगह मारामारी हो रही है.

इस तरह की खबरें सभी चैनलों पर कमोबेश दिखाई जा रही हैं. यह सब आम लोगों में डर पैदा कर रहा है. इस तरह की खबरों से लोगों में घबराहट बढ़ रही है और इस घबराहट से उन में डिप्रैशन बढ़ रहा है.

कुछ लोगों को तो यह लग रहा है कि इस महामारी के बाद वे अपनेआप को बचा पाएंगे या नहीं?

इतना ही नहीं, कुछ लोग मोबाइल पर और मीडिया में देख रहे वीडियो को एकदूसरे को भेज रहे हैं, जिस से डर का माहौल बनता जा रहा है. ऐसे में सम झ में नहीं आ रहा है कि कुछ लोग अपने परिवार वालों को जागरूक कर रहे हैं या उन्हें डरा रहे हैं? हालांकि यह डर लाजिमी है, लेकिन कुछ लोगों में डर इतना बढ़ गया है कि उन में डिप्रैशन बढ़ता ही जा रहा है.

सासाराम के अर्ष मल्टीस्पैशलिटी नर्सिंगहोम के डायरैक्टर डाक्टर आलोक तिवारी का कहना है, ‘‘कोरोना की वजह से लोगों में घबराहट ज्यादा बढ़ गई है. कोरोना से पीडि़त की मौत कोरोना वायरस से कम, बल्कि घबराहट के चलते हार्टअटैक से ज्यादा हो रही है. कुछ लोग एहतियात के तौर पर पहले से ही काढ़ा पी रहे हैं, अपने ऊपर तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसी चीजें लिवर के लिए नुकसान देने वाली हो सकती हैं.

‘‘सरकार द्वारा जारी कोरोना गाइडलाइन का पालन करें. पर इस के लिए दहशत में पड़ने की जरूरत नहीं है. अगर किसी आदमी में कोरोना के लक्षण जैसे सर्दी, खांसी, बुखार, पेट खराब, शरीर में दर्द, आंखों का लाल हो जाना, थकावट जैसे लक्षण पाए जाते हैं, तो तुरंत अस्पताल में इस की जांच कराएं.

‘‘अगर जांच के बाद यह पता चलता है कि किसी को कोरोना हो गया है, तो घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि डाक्टर के निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें.

‘‘वैसे, घर पर ही शरीर के तापमान को माप कर पता किया जा सकता है  कि बुखार है या नहीं. घर पर ही औक्सीमीटर से औक्सीजन लैवल को जांच सकते हैं. अगर औक्सीजन लैवल 94 से नीचे आ रहा है तो अस्पताल में जाने की जरूरत है, वरना घर पर भी इलाज किया जा सकता है.’’

घबराने से काम नहीं चलेगा. घर पर रह कर डाक्टर के निर्देशों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए. पौष्टिक आहार, जैसे फलसब्जियां वगैरह का सेवन करें. सांस लेने की कसरत करनी चाहिए. साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए. सब से जरूरी बात है कि खुद को घर के दूसरे लोगों से अलग कमरे में कर लेना चाहिए, ताकि घर के बाकी लोग कोरोना वायरस की चपेट में न आने पाएं.

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सोशल मीडिया पर डाले गए तरहतरह के काढ़ा वगैरह के सेवन के बारे में भरम फैलाया जा रहा है. उस के बहुत ज्यादा सेवन से बचना चाहिए. बेवजह की चिंता भी नहीं करनी चाहिए. सब से जरूरी है कि भरम फैलाती खबरों से दूर रहना चाहिए.

अपने आसपास क्या हो रहा है, इस पर नजर जरूर रखनी चाहिए. घर की छत पर या अपने गार्डन में कसरत  करनी चाहिए. खुद को अफवाहों से दूर रख कर कोरोनल डिप्रैशन से बचा जा सकता है.

Serial Story: अनजानी डगर से मंजिल- भाग 1

लेखक- संदीप पांडे

पलक  झपकते ही 4 साल बीत गए थे. इंजीनियरिंग की पढ़ाई अच्छे नंबरों से पास कर ली थी. बेफिक्र सा कालेज युग समाप्त हो कर अब रोजगार की चिंता में करवटें ले रहा था.

अभिजीत का अब आगे पढ़ने का मन कतई न था. ठीकठाक सी नौकरी लग जाए, तो घर से रुपएपैसे की निर्भरता से मुक्ति पा जाने का एकमात्र खयाल जेहन में मौजूद था. 90 के दशक का शुरुआती वर्ष देश के साथ उस के जीवन में विकास की बेचैन अंगड़ाई में खोया मचल रहा था. अखबार में वैकेंसी तलाशते, जानकारों से संपर्क बढ़ाते, कहीं भी उल्लास की कमी नहीं थी. शायद अपनी काबिलीयत पर पूरा भरोसा था, इसलिए बीसियों जौब इंटरव्यू या फौर्म भरने के बावजूद 6 महीने बाद भी उस के चेहरे व व्यवहार में किसी तरह अवसाद की लेशमात्र भी  झलक न थी. पिता के उच्च पदस्थ सरकारी नौकर होने से जेब खाली होने का अनुभव कोसों दूर था.

एक दिन पटरी पर चाय की चुस्की लेते अपने से 2 वर्ष पूर्व डिग्री प्राप्त कर चुके कुनाल से मुलाकात हो गई. कालेज में सभी जूनियर उन से खौफ खाते थे पर अब आवाज में उन के काफी नरमी के साथ व्यवहार में ‘2 वर्ष से बेरोजगार’ का बोर्ड साफतौर पर दृष्टिगोचर था.

‘‘क्या विचार कर रहे हो बौस?’’

‘‘यार, कोई पक्की नौकरी तो जम नहीं रही है, सोच रहा हूं, कुछ सर्वे के काम कर लूं. तुम तकनीकी रूप से दक्ष हो. अपन मिल कर यह काम कर लेंगे.’’

‘‘खाली बैठे हैं बौस, तब तक इस का अनुभव कर लेते हैं.’’

‘‘ठीक है, कल ही डूंगरपुर के लिए निकलते हैं. वहां अपने सीनियर एक्सईएन हैं. मु झे पता चला है, वहां यह काम मिल सकता है.’’

‘‘कल क्या, अभी चलो. और कुछ नहीं हुआ तो आसपास घूम आएंगे.’’

‘‘नहीं, कल शाम को निकलते हैं, आज मुझे कुछ काम है. तुम अपना सामान महीनेभर रुकने के हिसाब से बांध लेना.’’

‘‘एक महीना? अच्छा, काम मिल गया तो वहीं रुक कर शुरू हो जाएंगे, बढि़या.’’

अभिजीत अगली रात कुनाल के साथ बस का सफर करते उन के 2 साल बेरोजगारी के दुखड़े सुनता नए अनजाने मुकाम की ओर बढ़ चला था. 2 घंटे लगातार किस्सा सुनते कब नींद ने अपनी आगोश में भर लिया, पता ही न चला. सुबह पहले बस रुकते ही आंख खुली तो अपनेआप को एक छोटे से बसस्टैंड में पा कर अफसोस की लहर उठी. कुनाल के संग फिर एक छोटी सी धर्मशाला में ठिकाना पा कर कुछ परेशान सा हो उठा.

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‘‘यह कहां ले आए बौस?’’

उत्तर मे कुनाल मुसकरा भर दिए. ‘‘बस, नहाधो कर तैयार हो जाते हैं. फिर यहां से चल देंगे. 9 बजे औफिस पहुंचने से पहले पोहेकचौरी का भरपेट नाश्ता कर लेंगे.’’

सफर की थकान को कुछ देर विश्राम कर दूर करने का विचार आने से पूर्व ही जैसे किसी ने लात मार कर दूर भगा दिया.

ठीक 9 बजे वे एक्सईएन औफिस में प्रवेश कर चुके थे. एक घंटे इंतजार के बाद मुलाकात का अवसर आया. मूकदर्शक की भांति वह कुनाल की कारगुजारियों और वार्त्तालाप को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा था. अफसर के कुछ तकनीकी सवाल पर कुनाल जब अटकने लगे तो अभिजीत के  िझ झकते हुए जवाब ने एक्सईएन के चेहरे पर मुसकराहट ला दी. उन को एक लाख रुपए का काम एक महीने में कर के देने का और्डर मिल चुका था. डरमिश्रित खुशी के साथ दोनों बाहर आ कर चाय पीने लगे.

‘‘क्यों न हम अभी मौके पर जा कर काम शुरू कर दें,’’ कुनाल ने धीरे से पूछा.

‘‘बौस, पर करेंगे कैसे? कालेज में प्रैक्टिकल की क्लास भी आधे मन से  की थी.’’

‘‘चलते हैं, एक बार कोशिश तो कर के देखते हैं. और रहनेखाने का जुगाड़ भी जमा आते हैं,’’ कुनाल ने सम झाते हुए कहा.

औफिस से मिले इंस्टूमैंट्स और धर्मशाला से अपना सामान लाद कर एक लोकल बस में सवार हो कर नई कार्य मंजिल की ओर बढ़ चले. एक छोटे से गांव में उन को सामान सहित उतार कर बस आगे बढ़ गई. रास्ते में कुनाल ने पास बैठे यात्री से देशी भाषा में बात कर गांव के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी प्राप्त कर ली थी. अभिजीत को चाय की दुकान पर सामान की निगरानी के लिए बिठा कर कुनाल चल दिए. 2 घंटे इंतजार के बाद जब तक कुनाल लौटे तब तक वह 3 चाय और 2 बिस्कुट के पैकेट अपने उदर में उतार चुका था.

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‘‘चलो, आज रात रहने का इंतजाम हो गया है. ठाकुर साहब के रावणे में आज की रात ठहरेंगे. कल सुबह फिर काम की जगह का निरीक्षण करने चलेंगे,’’ कुनाल चहकते हुए बोले.

थकेहारे अभिजीत को लेटते ही गहरी नींद आ गई. गांव में खुले आसमान के नीचे सोने का उस का यह पहला अनुभव था. पौ फटते ही आंख खुली तो चहचहाती चिडि़यों और रंभाती गायों की सुकूनभरी आवाज के बीच जगना पहले कभी नसीब नहीं हुआ था. वह अपने को काफी तरोताजा महसूस कर पा रहा था. अपनी इस खुशगवारी को आत्मसात कर ही रहा था कि कुनाल स्नान कर तौलिए में लिपटे सामने से चले आ रहे थे.

‘‘हैंडपंप के गरम पानी से तुम भी फटाफट नहा लो. साइट को सूरज तेज होने से पहले ही देख आते हैं. मैं ने यहां के एक जानकार को अपने साथ काम करने के लिए राजी कर लिया है. घंटेभर में वह यहां से अपने को पूरा एरिया दिखाने ले चलेगा और दोचार लेबर भी जरूरत के हिसाब से मंगा देगा.’’

यश कुमार और निधि झा की फिल्म ‘थोड़ा गुस्सा-थोड़ा प्यार’ का ट्रेलर हुआ वायरल, देखें Video

इन दिनों भोजपुरी सिनेमा भी बदलाव के दौर से गुजर रहा है. कुछ फिल्मकार अब भोजपुरी सिनेमा में कथा प्रधान फिल्मों के निर्माण पर जोर देने लगे हैं. ऐसी ही एक कहानी प्रधान हास्य फिल्म ‘‘थोड़ा गुस्सा- थोड़ा प्यार’’ का ट्रेलर वायरल हो चुका है, जिसमें यश कुमार और लूलिया गर्ल निधि झा की मुख्य भूमिका है. इन दोनों के बीच की नोकझोंक खूब गुदगुदाने वाली है. मकान मालिक और एक बैचलर महिला किराएदार के रिश्ते के इर्द गिर्द बुनी गयी इस फिल्म की कहानी में मकान मालिक रास बिहारी(यश कुमार) अपने घर में राधिका तिवारी( निधि झा) को किराए पर रखते हैं.

इस ट्रेलर में यश कुमार और निधि झा की केमेस्ट्री बेहद मनोरंजक नजर आ रही है. इस कॉमेडी फिल्म का ट्रेलर देखकर लोग खुद को हंसने से नहीं रोक पा रहे हैं.फिल्म के ट्रेलर में अपने फन के माहिर मशहूर कॉमेडियन रोहित सिंह मटरू ने भी खूब मनोरंजन किया है. फिल्म के गीत-संगीत भी लाजवाब हैं. यश कुमार की दूसारी फिल्मों की ही तरह यह फिल्म भी बेहद पारिवारिक है. इस फिल्म को समस्त परिवार के साथ देखा जा सकेगा.

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ज्ञातब्य है कि भोजुपरी फिल्म उद्योग में यश कुमार एक मात्र ऐसे कलाकार हैं, जिनकी हर फिल्म में विविधता होती है. वह सदैव कंटेंट प्रधान फिल्में बनाने को ही प्राथमिकता देते हैं.

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फिल्म ‘‘थोड़ा गुस्सा-थोड़ा प्यार’’ के निर्देशक सुजीत वर्मा कहते हैं-‘‘यह एक अलग तरह की हास्य फिल्म है, जो कि दर्शकों को गुदगुदाते हुए उनके चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान लाएगी.’’ ‘‘यश कुमार एंटरटेनमेंट’’ प्रस्तुत फिल्म ‘थोड़ा गुस्सा थोड़ा प्यार‘ के निर्माता यश कुमार एंटरटेनमेंट, निर्देशक सुजीत वर्मा, कहानी व पटकथा लेखक एस के चैहान, संवाद लेखक एस के चैहान व संदीप कुशवाहा, संगीतकार मुन्ना दुबे, गीतकार राजेश मिश्रा, कैमरामैन जहांगीर,एक्शन हीरा यादव, नृत्य निर्देशक प्रवीण सेलर व महेश आचार्या, कला निर्देशक अंजनी तिवारी तथा कार्यकारी निर्माता मोनू उपाध्याय हैं.

फिल्म में यश कुमार, निधी झा, महेश आचार्य, राधे कुमार, मटरू, पुष्पा वर्मा, श्रद्धा नवल, बबीता ठाकुर, काजल सिंह, मनोज मोहनी, श्रवण तिवारी, और विशेष भूमिका में अंजना सिंह हैं.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: रणवीर हो जाएगा किडनैप, क्या कार्तिक भरेगा सीरत की मांग?

स्टार प्लस का सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai)  में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो के बीते एपिसोड में आपने देखा कि  सीरत और रणवीर के प्री-वेडिंग फंक्शन भी शुरू हो चुके हैं और जल्द ही दोनों शादी भी करने वाले हैं. तो अब शो के नए एपिसोड में नया ट्विस्ट आने वाला है. तो आइए बताते हैं शो के आगे की कहानी.

शो के लेटेस्ट ट्रैक में दिखाया जा रहा है कि रणवीर के पिता नरेन्द्र चौहान की एंट्री हो चुकी है. तो वहीं शो में ये भी दिखाया गया कि दो साल बाद रणवीर (Karan Kundrra) और नरेन्द्र चौहान का आमना-सामना होता है.

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रणवीर के पिता नरेन्द्र चौहान सीरत को उसके साथ देखकर नरेन्द्र चौहान आग बबूला हो जाएंगे. तो उधऱ रणवीर और नरेन्द्र चौहान के बीच हुई बातचीत को सुनकर कार्तिक और उसके परिवार को धक्का लगेगा. और ऐसे में कार्तिक फैसला लेगा कि वह रणवीर के घरवालों को इस शादी के लिए मनाकर ही रहेगा.

 

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सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कार्तिक नरेन्द्र चौहान को समझाएगा कि रणवीर (karan kundra) और सीरत एक साथ खुश रहेंगे. नरेन्द्र चौहान  कार्तिक की बातों को नजरअंदाज करेगा और कहेगा कि सीरत उसके घर की नौकरानी बनने लायक भी नहीं है.

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रणवीर के पिता कार्तिक इस शादी को रुकवाने के लिए हर कोशिश करेगा. इतना ही नहीं, वह शादी से पहले  रणवीर को किडनैप करवा लेगा. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि सीरत की शादी इस बार भी रुक जाएगी या कार्तिक कोई बड़ा फैसला लेगा.

Imlie की खुशी के लिए मालिनी करेगी दूसरी शादी? पढ़ें खबर

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ (Imlie) में इन दिनों खूब धमाल हो रहा है. शो के बीते एपिसोड में दिखाया गया कि मालिनी आदित्य और इमली का सच जान चुकी है. और उसने ठान लिया है कि वह इमली का हक उससे नहीं छिनेगी. तो वहीं सीरियल (Serial) के अपकमिंग एपिसोड में नए ट्विस्ट एंड टर्न आने वाला है. तो आइए बताते हैं शो के आगे की कहानी.

शो के लेटेस्ट ट्रैक के अनुसार इमली ने भी फैसला लिया है कि जब तक मालिनी और कुणाल की शादी नहीं हो जाती है, वो किसी को भी अपनी शादी का सच नहीं बताएगी. इमली की बातों को सुनकर आदित्य गुस्सा करता है लेकिन वो हालात के सामने मजबूर है.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप ये देखेंगे कि मालिनी अपने ही झूठ में उलझ जाएगी. वह आदित्य से कहगी कि घरवालों को सच बता दे. तो वहीं आदित्य मालिनी से कहेगा कि इमली तब तक अपना हक नहीं चाहती है जब तुम्हारी और कुणाल की शादी ना हो जाए. आदित्य की बातों को सुनने के बाद मालिनी शॉक्ड हो जाएगी.

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एक तरफ मालिनी इमली के पास जाएगी और उससे कहेगी कि वो घरवालों को बता दें कि वो ही इस खानदान की असली बहू है. तो दूसरी तरफ इमली पुरानी बातों को ही कहेगी तो मालिनी वहां से चली जाएगी.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या मालिनी इमली की खुशी के लिए कुणाल से शादी करती है या नहीं.

देसी मेम- भाग 3: क्या राकेश ने अपने मम्मी-पापा की मर्जी से शादी की?

लेखक- शांता शास्त्री

मेरे दिमाग में अचानक लाल बत्ती जल उठी. यानी जो कुछ हो रहा था वह केवल एक संयोग नहीं था…दिल ने कहा, ‘अरे, यार राकेश, तुम नौजवान हो, सुंदर हो, अमेरिका में तुम्हारी नौकरी है. तुम से अधिक सुयोग्य वर और कौन हो सकता है? लड़कियों का तांता लगना तो स्वाभाविक है.’

मैं चौंक उठा. तो मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है. पता लगाना है कि इस में कौनकौन शामिल हैं. मगर कैसे? हां, आइडिया. मैं ने मधु को अकेले में बुलाया और उसे उस की पसंद की अंगरेजी मूवी दिखाने का वचन दिया. उसे कुछ कैसेट खरीदने के लिए पैसे भी दिए तब कहीं मुश्किल से राज खुला.

‘‘भैया, जिस दिन सुसन के बारे में तुम्हारा पत्र आया था उस दिन से ही घर में हलचल मची हुई है. दोस्तों, नातेरिश्तेदारों में यह खबर फैला दी गई है कि तुम भारत आ रहे हो और शायद शादी कर के ही वापस जाओगे.’’

तो यह बात है. सब ने मिल कर मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा और सब अपना- अपना किरदार बखूबी निभा रहे हैं. तो अब आप लोग भी देख लीजिए कि मैं अकेले अभिमन्यु की तरह कैसे आप के चक्रव्यूह को भेदता हूं,’’ मन ही मन मैं ने भीष्म प्रतिज्ञा ली और अगले ही क्षण से उस पर अमल भी करने लगा.

मधु और चांदनी ने मिल कर घर का नक्शा ठीक किया. मम्मी और मामीजी ने मिल कर तरहतरह के पकवान बनाए. मेहमानों की अगवानी के लिए मैं भी शानदार सूट पहन कर अभीअभी आए अमेरिकन छैले की तरह तैयार हो गया.

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दोनों बहनों ने मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाया, ‘‘वाह, क्या बात है भैया, बहुत स्मार्ट लग रहे हो. असली बात का असर है, गुड लक. अमेरिका जाने से पहले लगता है आप का घर बस जाएगा.’’

बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. दोनों बहनें बाहर की ओर भागीं. जाने से पहले उन्होंने मुझ से वादा किया कि यह बात मैं किसी को न बताऊं कि उन्होंने मुझे सबकुछ बता दिया है.

खैर, अतिथियों का आगमन हुआ. मम्मी और पापा को तो आना ही था पर साथ में एक बेटा और एक बेटी नहीं थे जैसा कि अब तक होता आया है. बल्कि इस बार 2 लड़कियां थीं. भई वाह, मजा आ गया. जुड़वां आनंद, एक टिकिट से सिनेमा के दो शो. मैं ने स्वयं अपनी पीठ थपथपाई. सब ने एकदूसरे का अभिवादन हाथ मिला कर किया. मगर बुजुर्ग औरतों ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया. मैं खड़ाखड़ा सोचने लगा कि आज की युवा पीढ़ी अगर एक कदम आगे बढ़ना चाहे तो ये बडे़बूढे़ लोग, खासकर दकियानूसी औरतें, उन्हें दस कदम पीछे धकेल देती हैं. देश के प्रगतिशील समर्थकों का वश चलता तो वे इन सब को किसी ओल्ड होम में रख कर बाहर से ताला लगा देते.

‘‘आप किन विचारों में खो गए?’’ कोयल सी मीठी आवाज से मैं चौंक उठा.

‘‘लगता है 2 बिजलियों की चमक को देख कर शाक्ड हो गए,’’ दूसरी बिजली हंसी की आवाज में चिहुंकी.

‘‘यू आर राइट. आई वाज लिटिल शाक्ड,’’ मैं ने अब पूरी तरह अमेरिकन स्टाइल में पेश आने का निश्चय कर लिया था. तपाक से एक के बाद एक दोनों से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया. दोनों हाथों से दोनों के हाथ थामे मैं मकान के अंदर इस अंदाज में आया जैसे किसी फाइव स्टार होटल में घुस रहा हूं. ड्राइंगरूम में आते ही थोड़ा झुक कर उन्हें बैठाया. मैं ने देखा कि शिल्पा शेट्टी और मल्लिका शेरावत के अंदाज में एक ने जगहजगह से फटी हुई, सौरी फाड़ी गई जींस और गहरी कटाई वाला टौप पहन रखा था तो दूसरी, सी थ्रू टाइट्स पहने हुई थी. ऐसे में जवान मनचले तो क्या बूढे़ भी फिसल जाएं. हां, दोनों की आंखों के लैंसों का रंग अलगअलग था. इन रंगों के कारण ही मुझे पता चला कि दोनों ने आंखों में लैंस लगा रखे थे.

अगले 3-4 घंटे किस तरह बीत गए कुछ पता ही न चला. हम ने धरती और आकाश के बीच हर उस चीज पर चर्चा की जो अमेरिका से जुड़ी हुई है. जैसे वहां के क्लब, पब, डांसेस, संस्कृति, खान- पान, पहनावा, आजादी, वैभव संपन्नता आदि.

अगले दिन ही मेहमाननवाजी के बाद हम सब मामा के यहां से वापस आ गए.  पर मेरे अमेरिका जाने से पहले तक मेरे घर में यह कार्यक्रम जारी रहा था. मैं ने भी अपना किरदार खूब निभाया. कभी किसी को क्लब, डिस्को, पिकनिक आदि ले जाता तो कभी किसी से हाथ मिला कर हंसहंस कर बातें करता, तो कभी किसी की कमर में हाथ डाल कर नाचता.

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अब तक सब लोग अपनेअपने तरीके से मेरी हां का इंतजार कर रहे थे. उस दिन खाने की मेज पर बात छिड़ ही गई. पापा नाश्ता कर के अपने काम पर जा चुके थे. मम्मी ने पूछ ही लिया, ‘‘देखनादिखाना तो बहुत हो चुका. अब तक तू ने बताया नहीं कि तेरा निश्चय क्या है. तुझे कौन सी लड़की पसंद आई?’’

मैं भी सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘मम्मी, यह आप ने ठीक नहीं किया. मैं ने पहले ही पापा और आप को चिट्ठी लिख दी थी कि मेरे विचार क्या हैं.’’

‘‘तू भी अजीब बात करता है. एक से एक सुंदर पढ़ीलिखी और आधुनिक लड़कियों से मिल चुका है फिर भी अपना ही आलाप लिए बैठा है. भला ये किस बात में कम हैं तेरी अमेरिका की उन लटकझटक वाली छोकरियों से?’’ मां गुस्से से बोलीं.

संकरा- भाग 2: जब सूरज के सामने आया सच

यह सच जान कर आदित्य को अपने पिता पर गुस्सा आ रहा था. तभी उस ने फैसला लिया कि अब वह इस खानदान की छाया में नहीं रहेगा. वह अपने दादा ठाकुर रणवीर सिंह से मिल कर हकीकत जानना चाहता था. दादाजी अपने कमरे में बैठे थे. आदित्य को बेवक्त अपने सामने पा कर वे चौंक पड़े और बोले, ‘‘अरे आदित्य, इस समय यहां… अभी पिछले हफ्ते ही तो तू गया था?’’

‘‘हां दादाजी, बात ही ऐसी हो गई है.’’ ‘‘अच्छा… हाथमुंह धो लो. भोजन के बाद आराम से बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं दादाजी, अब मैं इस हवेली में पानी की एक बूंद भी नहीं पी सकता.’’ यह सुन कर दादाजी हैरान रह गए, फिर उन्होंने प्यार से कहा, ‘‘यह तुझे क्या हो गया है? तुम से किसी ने कुछ कह दिया क्या?’’

‘‘दादाजी, आप ही कहिए कि किसी की इज्जत से खेल कर, उसे टूटे खिलौने की तरह भुला देने की बेशर्मी हम ठाकुर कब तक करते रहेंगे?’’ दादाजी आपे से बाहर हो गए और बोले, ‘‘तुम्हें अपने दादा से ऐसा सवाल करते हुए शर्म नहीं आती? अपनी किताबी भावनाओं में बह कर तुम भूल गए हो कि क्या कह रहे हो…

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‘‘पिछले साल भी तारा सिंह की शादी तुम ने इसलिए रुकवा दी, क्योंकि उस के एक दलित लड़की से संबंध थे. अपने पिता से भी इन्हीं आदर्शों की वजह से तुम झगड़ कर आए हो. ‘‘मैं पूछता हूं कि आएदिन तुम जो अपने खानदान की इज्जत उछालते हो, उस से कौन से तमगे मिल गए तुम्हें?’’

‘‘तमगेतोहफे ही आदर्शों की कीमत नहीं हैं दादाजी. तारा सिंह ने तो अदालत के फैसले पर उस पीडि़त लड़की को अपना लिया था. लेकिन आप के सपूत ठाकुर राजेश्वर सिंह जब हरचरण की जोरू के साथ अपना मुंह काला करते हैं, तब कोई अदालत, कोई पंचायत कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि बात को वहीं दफन कर उस पर राख डाल दी जाती है.’’ यह सुन कर ठाकुर साहब के सीने में बिजली सी कौंध गई. वे अपना हाथ सीने पर रख कर कुछ पल शांत रहे, फिर भारी मन से पूछा, ‘‘यह तुम से किस ने कहा?’’

‘‘दादाजी, ऊंचनीच के इस ढकोसले को मैं विज्ञान के सहारे झूठा साबित करना चाहता था. मैं जानता था कि इस से बहुत बड़ा तूफान उठ सकता है, इसलिए मैं ने आप से और पिताजी से यह बात छिपाई थी, पर मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस तूफान की शुरुआत सीधे मुझ से ही होगी… मैं ने खुद अपने और सूरज के डीएनए की जांच की है.’’ ‘‘बरसों से जिस घाव को मैं ने सीने में छिपाए रखा, आज तुम ने उसे फिर कुरेदा… तुम्हारा विज्ञान सच जरूर बोलता है, लेकिन अधूरा…

‘‘तुम ने यह तो जान लिया कि सूरज और तुम्हारी रगों में एक ही खून दौड़ रहा है. अच्छा होता, अगर विज्ञान तुम्हें यह भी बताता कि इस में तेरे पिता का कोई दोष नहीं. ‘‘अरे, उस बेचारे को तो इस की खबर भी नहीं है. मुझे भी नहीं होती, अगर वह दस्तावेज मेरे हाथ न लगता… बेटा, इस बात को समझने के लिए तुम्हें शुरू से जानना होगा.’’

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‘‘दादाजी, आप क्या कह रहे हैं? मुझे किस बात को जानना होगा?’’ दादाजी ने उस का हाथ पकड़ा और उसे तहखाने वाले कमरे में ले गए. उस कमरे में पुराने बुजुर्गों की तसवीरों के अलावा सभी चीजें ऐतिहासिक जान पड़ती थीं.

एक तसवीर के सामने रुक कर दादाजी आदित्य से कहने लगे, ‘‘यह मेरे परदादा शमशेर सिंह हैं, जिन के एक लड़का भानुप्रताप था और जिस का ब्याह हो चुका था. एक लड़की रति थी, जो मंगली होने की वजह से ब्याह को तरसती थी…’’ आदित्य ने देखा कि शमशेर सिंह की तसवीर के पास ही 2 तसवीरें लगी हुई थीं, जो भानुप्रताप और उन की पत्नी की थीं. बाद में एक और सुंदर लड़की की तसवीर थी, जो रति थी.

‘‘मेरे परदादा अपनी जवानी में दूसरे जमींदारों की तरह ऐयाश ठाकुर थे. उन्होंने कभी अपनी हवस की भूख एक दलित लड़की की इज्जत लूट कर शांत की थी. ‘‘सालों बाद उसी का बदला दलित बिरादरी वाले कुछ लुटेरे मौका पा कर रति की इज्जत लूट कर लेना चाह रहे थे. तब ‘उस ने’ अपनी जान पर खेल कर रति की इज्जत बचाई थी.’’

कहते हुए दादाजी ने पास रखे भारी संदूक से एक डायरी निकाली, जो काफी पुरानी होने की वजह से पीली पड़ चुकी थी. ‘‘रति और भानुप्रताप की इज्जत किस ने बचाई, मुझे इस दस्तावेज से मालूम हुआ.

आसरा- भाग 3: नासमझ जया को करन से प्यार करने का क्या सिला मिला

लेखक- मीनू सिंह

किशन और आशा बेटी को ले कर एक तो वैसे ही परेशान थे, दूसरे जया के गायब होने की बात फैलने के साथ ही रिश्तेदारों और परिचितों द्वारा प्रश्न दर प्रश्न की जाने वाली पूछताछ उन्हें मानसिक तौर पर व्यथित कर रही थी. मिलनेजुलने वाले की बातों और परामर्शों से परेशान हो कर किशन और आशा ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था.

उधर जया मातापिता पर गुजर रही कयामत से बेखबर नैनीताल की वादियों का आनंद उठा रही थी. करन के प्यार का नशा उस पर इस तरह से चढ़ा हुआ था कि उसे अपने भविष्य के बारे में सोचने का भी  होश नहीं था. उसे यह भी चिंता नहीं थी कि जब उस के घर से लाए पैसे खत्म हो जाएंगे, तब क्या होगा? और यह सब उस की उस नासमझ उम्र का तकाजा था जिस में भावनाएं, कल्पनाएं तथा आकर्षण तो होता है, लेकिन गंभीरता या परिपक्वता नहीं होती.

किशन की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने काररवाई शुरू की तो शीघ्र ही जया की गुमशुदगी का रहस्य खुल कर सामने आ गया. पुलिस द्वारा जया की फोटो दिखा कर की गई पूछताछ के दौरान पता चला कि वह लड़की नैनीताल जाने वाली बस में चढ़ते देखी गई थी. बताने वाले दुकानदार ने पुलिस को यह जानकारी भी दी कि उस के साथ एक लड़का भी था, इतना पता चलते ही पुलिस उसी दिन नैनीताल के लिए रवाना हो गई. नैनीताल पहुंचने के बाद पुलिस ने जया की खोज गेस्टहाउसों से ही शुरू की, क्योंकि दिनरात के अनुभवों के आधार पर पुलिस वालों का नजरिया था कि घर से भागे किशोरवय प्रेमीप्रेमिका पैसा कम होने की वजह से होटल के बजाय छोटेमोटे गेस्टहाउसों को ही अपना ठिकाना बनाते हैं. पुलिस का अनुमान ठीक निकला. एक गेस्टहाउस के केयरटेकर ने पुलिस वालों को बताया कि कम उम्र का एक प्रेमीयुगल 4 दिन पहले उस के यहां आ कर ठहरा था. पुलिस ने एंट्री रजिस्टर में उन का नाम और पता देखा, तो दोनों ही गलत दर्ज थे.

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इस बीच पुलिस द्वारा गेस्टहाउस में की जाने वाली जांचपड़ताल का पता सब को चल चुका था. पुलिस का नाम सुनते ही करन के होश उड़ गए. उस ने बचे हुए पैसे अपनी जेब में डाले और जया से बोला, ‘‘तुम डरना नहीं जया. मैं 10-15 मिनट में लौट आऊंगा.’’

जया ने करन को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन वह एक झटके से कमरे के बाहर हो गया. पुलिस जब तक जया के कमरे पर पहुंची, तब तक करन उस की पहुंच से बाहर निकल चुका था. मजबूरी में पुलिस जया को ले कर लौट आई.

जया के बरामद होने की सूचना पुलिस ने उस के घर भेज दी थी. किशन को जब इस बात का पता चला कि जया किसी लड़के के साथ भागी थी तो अपनी बेटी की इस करतूत से उन का सिर हमेशा के लिए झुक गया था. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह लोगों का सामना कैसे कर पाएंगे. जया ने उन्हें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था. किशन में अब इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि वह पुलिस थाने जा कर जया को ले आते. वह यह भी जानते थे कि जया के मिलने की खबर पाते ही रिश्तेदारों और परिचितों का जो तूफान उठेगा, वह उस का सामना नहीं कर पाएंगे.

जया की बरामदगी के बाद पुलिस द्वारा किशन को लगातार संदेश दिया जा रहा था कि वह अपनी बेटी को ले जाएं. जब पुलिस का दबाव बढ़ा तो किशन आपा खो बैठे और थाने जा कर पुलिस वालों से दोटूक कह दिया कि वह बेटी से अपने सारे संबंध खत्म कर चुके हैं. अब उस से उन का कोई रिश्ता नहीं है. वह अपनी रिपोर्ट भी वापस लेने को तैयार हैं.

एक झटके में बेटी से सारे नाते तोड़ कर किशन वहां से चले गए. तब मजबूरी में पुलिस ने जया को हवालात से निकाल कर नारीनिकेतन भेज दिया. जब जया ने वहां लाने की वजह जाननी चाही, तो एक पुलिसकर्मी ने व्यंग्य करते हुए उसे बताया, ‘घर से भागी थी, अपने यार के साथ, अब नतीजा भुगत. तेरे घर वाले तुझे ले जाने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने तुझ से रिश्ता खत्म कर लिया है. अब नारीनिकेतन तेरा ‘आसरा’ है.’

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अतीत की लडि़यां बिखरीं तो जया यथार्थ में लौटी. अब उस की जिंदगी का सच यही था जो उस के सामने था. उस ने रोरो कर सूज चुकी आंखों से खिड़की के पार देखना चाहा तो उसे दूरदूर तक फैले अंधेरे के अलावा कुछ नजर नहीं आया. धूप का वह टुकड़ा भी न जाने कब, कहां विलीन हो गया था. जया के मन में, जीवन में और बाहर चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. इस अंधेरे में अकेले भटकतेभटकते उस का मन घबराया तो उसे मां का आंचल याद आया. वह बचपन में अकसर अंधेरे से डर कर मां के आंचल में जा छिपती थी, लेकिन अब वहां न तो मां थी और न मां का आंचल ही था.

जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर जया को अपनों की अहमियत का पता चला. उसे इस बात का एहसास भी अब हुआ कि मांबाप बच्चों की भलाई और उन के सुरक्षित भविष्य के लिए ही उन पर पाबंदियां लगाते हैं. मातापिता के सख्ती बरतने के पीछे भी उन का प्यार और बच्चों के प्रति लगाव ही होता है. उसे इस बात का बेहद पछतावा था कि उस ने समय रहते मम्मी और पापा की भावनाओं की कद्र की होती तो उस का उज्ज्वल भविष्य नारीनिकेतन के उस गंदे से कमरे में दम न तोड़ रहा होता और जिस करन के प्यार के खुमार में उस ने अपनों को ठुकराया, वही करन उसे बीच मझधार में छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस ने एक बार भी पलट कर यह देखने की कोशिश नहीं की कि जया पर क्या बीत रही होगी. करन की याद आते ही जया का मन वितृष्णा से भर उठा. उसे अपने आप पर ग्लानि भी हुई कि एक ऐसे कृतघ्न के चक्कर में पड़ कर उस ने अपनी जिंदगी तो बर्बाद की ही, अपने परिवार वालों का सम्मान भी धूल में मिला दिया.

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अपनी भूल पर पछताती जया न जाने कब तक रोती रही. जब बैठेबैठे वह थक गई तो सीलन भरे नंगे फर्श पर ही लेट गई. आंखों से आंसू बहतेबहते कब नींद ने उसे अपने आगोश में समेट लिया, जया को पता ही न चला. अपनी बदरंग जिंदगी बिताने के लिए उसे आखिर एक ‘आसरा’ मिल ही गया था. नारीनिकेतन के सीलन भरे अंधेरे कमरे का वह कोना, जहां जिंदगी से थकीहारी जया नंगे फर्श पर बेसुध सो रही थी.

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