काव्या ने इशारों-इशारों में उड़ाया ‘अनुपमा’ का मजाक, वायरल हुआ वीडियो

टीवी शो अनुपमा (Anupamaa) के एक्टर्स सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. वे अपने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ से जुड़े पलों को फैंस के साथ शेयर करते रहते हैं. फैंस को भी इनके पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है.

‘अनुपमा’ के सेट से अक्सर कोई तस्वीर या वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती है. हाल ही में अनुपमा यानी रूपाली गागुली ने इंस्टाग्राम पर एक दिलचस्प वीडियो शेयर किया था. इस वीडियो में रूपाली गांगुली अपनी पसंद और नापसंद के बारे में बता रही हैं.

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एक्ट्रेस का ये वीडियो जमकर वायरल हुआ और फैंस ने इसे खूब पसंद किया. दरअसल एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर चल रहे एक ट्रेंड को फॉलो किया हैं.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि रूपाली गांगुली हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट कर रही है कि उनकी तरह लोग भी पेट्स को खरीदे नहीं बल्कि गोद लें. तो अब वहीं काव्या यानी मदालसा शर्मा, रूपाली गांगुली की कॉपी करती दिखाई दीं.

 

जी हां, काव्या ने एक सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है, इस वीडियो को देखने के बाद आपको भी लगेगा कि वह इशारों-इशारों में रूपाली गांगुली का मजाक उड़ा रही हैं.

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हाल ही में खबर आई थी कि रूपाली गांगुली और सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) के बीच कोल्ड वॉर चल रही है. इतना ही नहीं ये भी बताया जा रहा था कि मदालसा शर्मा और रूपाली गांगुली के बीच भी कुछ अनबन चल रही है.

शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है.  काव्या जल्द ही कोई नया प्लान करने वाली है जिससे अनुपमा घरवालों से दूर हो जाएगी.

रामगढ़ताल बाढ़ के पानी के साथ ही लोगों को बीमारियों से भी बचाया जाएगा : मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश के 50 हजार राजस्व ग्रामों में इस वर्ष दिसंबर तक जल जीवन मिशन के तहत हर घर नल परियोजना से शुद्ध पानी मिलेगा. बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में कार्य जारी है. शुद्ध पेयजल की उपलब्धता से इंसेफेलाइटिस समेत प्रदूषित पानी से होने वाली कई बीमारियों से भी निजात मिलेगी.

सीएम योगी सोमवार को गोरखपुर स्थित राप्ती नदी के मलौनी बांध स्थित तरकुलानी रेगुलेटर के समीप बाढ़ के पानी से निजात दिलाने के लिए निर्मित पंपिंग स्टेशन के लोकार्पण के बाद ग्राम बेलवार में जनसभा को संबोधित कर रहे थे.

अक्टूबर में पीएम मोदी करेंगे खाद कारखाने और एम्स का उद्घाटन

जनसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 1990 में बंद गोरखपुर का खाद कारखाना बनकर लगभग तैयार है. अक्टूबर में इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों कराया जाएगा. इस अवसर पर उन्होंने अक्टूबर में विश्व स्तरीय चिकित्सा सुविधाओं वाले एम्स के पीएम मोदी के हाथों उद्घाटन किए जाने की जानकारी भी दी.

मुंबई को भी मात देगा रामगढ़

गोरखपुर में विकास के नए प्रतिमानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जो रामगढ़ताल कभी अपराधियों का अड्डा होता था, अब पर्यटन केंद्र बन चुका है. अपनी सुंदरता में यह मुम्बई को भी फेल कर देगा.

विकास भी होगा, विनाशकारी तत्वों पर सख्त कार्रवाई भी

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार अपराधियों व उपद्रवियों की संपत्ति कब्जे में लेकर उसे गरीबों में बांट रही है. सरकार का बुजडोजर अपराधियों की छाती को रौंद रहा है. उदबोधन के दौरान ही माफिया के खिलाफ जारी कार्रवाई पर उनके सवाल पर जनता ने पुरजोर समर्थन किया. इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार में विकास भी होगा और विनाशकारी तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी.

कोरोनाकाल में भी विकास पर आंच नहीं आने दी : योगी

सीएम योगी ने कहा कि पिछला डेढ़ साल पूरी दुनिया के लिए बहुत खराब रहा. विश्व में न जाने कितने लोग कोरोना की चपेट में आए. हमनें कोरोना से जीवन के साथ जीविका को भी बचाया. कोरोनाकाल में भी विकास पर, नौजवानों के भविष्य पर आंच नहीं आने दी. सीएम ने कोरोना से अपने प्रियजनों को खोने वालों के प्रति संवेदना जताते हुए कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में देश सुरक्षित स्थिति में है. उन्होंने कहा कि 33 करोड़ की आबादी वाले विकसित देश अमेरिका में उससे चार गुना आबादी वाले भारत की तुलना में दोगुनी मौतें हुईं. सीएम ने कहा कि जीवन के साथ जीविका की रक्षा के लिए हमें जागरूकता के साथ आगे बढ़ना है. कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने गोरखपुर ग्रामीण व चौरीचौरा विधानसभा क्षेत्र के लिए 212 करोड़ रुपये की कई विकास परियोजनाओं का भी लोकार्पण किया. इसमें 10 सड़कें, दो उपरगामी सेतु व विद्यालय निर्माण के कार्य शामिल हैं.

उन्होंने तरकुलानी पंपिंग स्टेशन समेत सिंचाई विभाग की मंडल में 10 परियोजनाओं का लोकार्पण करते हुए कहा कि, तरकुलानी रेगुलेटर पर निर्मित पंपिंग स्टेशन की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए कहा कि 2009 में जब से यह क्षेत्र गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में आया तब से यहां पंपिंग स्टेशन की मांग की जा रही थी. यह पचास हजार परिवारों, दो लाख की आबादी के लिए जरूरी था ताकि बाढ़ के साथ ही लोगों को बीमारी से भी बचाया जा सके. यह पंपिंग स्टेशन आज से प्रारंभ हो गया है. सीएम ने इसकी क्षमता का जिक्र करते हुए बताया कि रामगढ़ताल में जितना पानी है, यह पंपिंग स्टेशन उसे एक घण्टे में उड़ेलकर फेंक देगा. उन्होंने कहा कि यह होता है कार्य. जब केंद्र व राज्य में डबल इंजन की सरकार होती है तो वह कई गुना स्पीड से काम करती है और लोगों के जीवन मे खुशहाली लाती है.

खेती के साथ बीमारी से बचाव का माध्यम बनेगी यह परियोजना

मुख्यमंत्री ने कहा कि तरकुलानी रेगुलेटर पर पंपिंग स्टेशन की यह परियोजना क्षेत्र में खेती बचाने के साथ ही बीमारी से बचाव का भी माध्यम बनेगी. उन्होंने कहा कि खोराबार ब्लॉक इंसेफेलाइटिस से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल रहा है. पंपिंग स्टेशन न होने से यहां जलजमाव से बीमारियां होती थीं. तरकुलानी का यह पंपिंग स्टेशन जलजमाव की समस्या का समाधान करेगा.

यूपी की दशा व दिशा बदलने में जुटे हैं योगी : गजेंद्र शेखावत

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की दशा व दिशा बदलने में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि बाढ़ राहत, जल संरक्षण, पेयजल, सिंचाई आदि के क्षेत्र में यूपी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है. केंद्र के बाद यूपी देश का पहला ऐसा राज्य है जहां एकीकृत जलशक्ति मंत्रालय का गठन है. श्री शेखावत ने कहा कि पीएम मोदी के विजन व सीएम योगी की देखरेख में यूपी के बाँदा, चित्रकूट, महोबा आदि क्षेत्रों में हर घर नल से जल पहुंचाने का कार्य तीव्र गति से हो रहा है. दो साल में प्रदेश के हर घर में शुद्ध पेयजल मिलने लगेगा. उन्होंने कहा कि उनके मंत्रालय की तरफ से सर्वाधिक 10400 करोड़ रुपये का बजट यूपी को दिया गया है, और जरूरत होगी तो उसे भी दिया जाएगा. केंद्रीय जलशक्ति मंत्री ने बताया कि यूपी में सरयू, बाणगंगा, मध्यगंगा परियोजना तीन चार माह में पूरी हो जाएंगी. इन परियोजनाओं से इस प्रदेश में 22 लाख हेक्टेयर नई सिंचित भूमि उपलब्ध होगी.

बाढ़ राहत में यूपी ने पेश की मिसाल

केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि बाढ़ राहत के कार्यों में स्थायित्व देकर उत्तर प्रदेश ने पूरे देश मे मिसाल कायम किया है. यह अन्य राज्यो के लिए प्रेरणास्रोत है. तरकुलानी रेगुलेटर पर बने पंपिंग स्टेशन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि योगी जी ने इसके जरिये एक नई तकनीकी दी है. इस अनूठी परियोजना को देख उनका भरोसा जगा है कि इसे अपनाकर अन्य प्रदेश भी बाढ़ के पानी से खुद को प्रभावित होने से बचा सकते हैं.

पूरे प्रदेश को बाढ़ से बचाया है सीएम योगी ने: डॉ महेंद्र सिंह

जनसभा में अपनी बात रखते हुए प्रदेश के जलशक्ति मंत्री डॉ महेंद्र सिंह ने कहा कि सीएम योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश तेजी से बदल रहा है. उन्होंने इस राज्य का मान, सम्मान व स्वाभिमान वापस कराया है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे प्रदेश को बाढ़ से बचाया है. पहले बाढ़ से बचाव के कार्यों के लिए पैसा अप्रैल, मई में जारी होता था और काम जून में शुरू होता था. तब तक बाढ़ आ जाती थी और पैसा भी उसी में बह जाता था. अब योगी जी जनवरी में ही पैसा दे देते हैं और बाढ़ आने से काफी पहले काम पूरा हो जाता है. डॉ सिंह ने कहा कि वर्ष 2016 में यूपी में 543771 हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित हुई थी, योगी जी के कुशल मार्गदर्शन में हुए कार्यों से 2020-21 तक यह घटकर 6886 हेक्टेयर रह गई है. सीएम योगी की देखरेख में बाढ़ बचाव की 170 परियोजनाओं का लोकार्पण व 246 परियोजनाओं का शिलान्यास किया गया है. चार सालों में 25 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा मिली है. ऐसा अन्य किसी भी राज्य में नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि आज यूपी देश की हर योजना में नम्बर वन है और योगी जी के नेतृत्व में इसे पूरे देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाया जा रहा है.

मजाक: अच्छन मियां की अकड़

लेखक-  मौहम्मद आसिफ

अच्छन मियां कठोर दिल के मालिक थे. लंबाचौड़ा कद, आवाज में कड़कपन, रोबदार चेहरा, बड़ीबड़ी मूंछें और सांवला रंग. अपने फायदे के लिए दुनिया के नियमों को ताक पर रखना और दूसरों को रोब दिखा कर अपने बनाए नियमों पर चलाना उन की फितरत थी.

आज अच्छन मियां सवेरे साढ़े 4 बजे नहाधो कर, 5 बजे वाली एकलौती ट्रेन पकड़ने के लिए निकले थे. सफेदी की चमकार लिए पैंटशर्ट, चमड़े के चमचमाते काले जूते पहन कर, लाल और हरी धारियों वाला सफेद अंगोछा अकड़ के साथ कंधे पर डाल कर, मूंछों को ताव देते हुए रिकशा की तलाश करने लगे.

रेलवे स्टेशन 2 किलोमीटर दूर था. स्टेशन के रास्ते की सड़क के गड्ढे सरकार की बदहाली की पोल खोल रहे थे. अच्छन मियां को ट्रेन से ढाई घंटे का सफर तय कर के दूसरे शहर भतीजे की शादी में जाना था.

अच्छन मियां ने छांट कर सब से अच्छे कपड़े सूटकेस में रखे हुए थे. कसबे की बिजली गुल थी. अंधेरे के चलते थोड़ी दूर का रास्ता भी दिखाई नही दे रहा था.

खैर, अच्छन मियां को रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए एक रिकशा दिखाई दिया. उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘ओ रिकशा वाले, स्टेशन चलोगे क्या?’’

रिकशा वाला बोला, ‘‘जी बाबूजी…’’

‘‘कितने पैसे लोगे?’’ अच्छन मियां ने पूछा.

‘‘बाबूजी, 20 रुपए…’’ रिकशा वाले ने जवाब दिया.

‘‘अबे, 20 रुपए का काम नहीं है, मगर हम तु झे 20 रुपए देंगे. सही से चलाना. जल्दी से गाड़ी पकड़वा दे.  15 मिनट बचे हैं बस.

अगर गाड़ी छूट गई तो और कोई गाड़ी नहीं है और बस वालों की भी हड़ताल है आज.’’

‘‘जी बाबूजी,’’ रिकशा वाले का जवाब आया.

‘‘जी बाबूजी के बच्चे… जल्दी दौड़ा रिकशा…’’ अच्छन मियां रिकशा में बैठते हुए गुर्राए.

रिकशा स्टेशन की तरफ चल दिया. अंधेरे के चलते स्पीड ब्रेकर और गड्ढे साफ नजर नहीं आ रहे थे. अच्छन मियां ने अपनी जेब में रखी टौर्च निकाली और सोचा कि जला लें… गड्ढे, स्पीड ब्रेकर दिख जाएंगे.

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मगर नाम के उलट अच्छन मियां का कठोर स्वभाव आड़े आ गया. अचानक वे सोचने लगे, ‘हम क्यों जलाएं अपनी टौर्च, यह तो रिकशा वाले का काम है, उस को टौर्च रखनी चाहिए. हमें कौन से गड्ढे देखने हैं, जिसे देखने चाहिए वह खुद देखेगा और गड्ढे नहीं दिखाई दे रहे तो न दें.

‘जैसे भी करेगा, अपनेआप चलाएगा रिकशा, सही से. उस का काम है सहीसलामत हमें स्टेशन तक पहुंचाना. आखिर 20 रुपए किस बात के लेगा…’ यह सोच कर अच्छन मियां ने टौर्च वापस जेब में रख ली.

अभी अच्छन मियां के अशांत मन में विचारों की उधेड़बुन चल ही रही थी कि एक बड़े से गड्ढे में रिकशा का पहिया गया और वह पलट गया.

अच्छन मियां अपनी अकड़ के साथ मुंह के बल जमीन पर आ गिरे. सूटकेस गिर कर खुल गया और कपड़े बिखर गए. वहां पानी भी जमा था. अच्छन मियां समेत सबकुछ नीचे जमीन पर गीली मिट्टी में पड़ा था. अगर कुछ ऊपर था तो वह था अच्छन मियां का एक चमकदार जूता, जो रिकशा के पायदान में अटका रह गया था और रिकशा पलटने के चलते सब से ऊपर जा टंगा था. अब बस यह जूता ही शादी में जाने लायक रह गया था.

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तेरा मेरा साथ: भाग 3

‘‘आप… आप क्यों ?ाड़ू लगा रहे हैं…’’ पाखी बोल ही रही थी कि अरुण बोल पड़ा, ‘‘अरे, वह अचानक लौकडाउन हो गया न, इसलिए कोई कामवाली काम करने नहीं आएगी. अब तो अपना हाथ जगन्नाथ,’’ इतना कहने के साथ ही अरुण के चेहरे पर सहज मुसकान आ गई. कितना बदल गया है इन सालों में सबकुछ.

जिस अरुण को औफिस के कामों, मम्मीजी को पूजापाठ और पापाजी को अखबार से फुरसत नहीं मिलती थी, आज वक्त ने सबकुछ सिखा दिया था. पाखी के लिए समय काटना मुश्किल हो रहा था.

मम्मीजी ने शुरूशुरू में पाखी के चौके में घुसने पर नाकभौं सिकोड़ी. पर अरुण के सख्त चेहरे और हालात के आगे वे ढीली पड़ गईं.

शुरूशुरू में रिश्तेदारों के फोन आते रहते और घर बैठेबैठे आग में घी डालने का काम करते रहते, पर जैसेजैसे लौकडाउन की समयसीमा खिसकती रही, उन के फोन आने बंद हो गए.

पाखी ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली

पाखी ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह इस घर से कभी गई भी थी. पापा की नीबू वाली चाय, मम्मीजी की बिना चीनी वाली चाय और अरुण की चीनी कम ज्यादा दूध वाली चाय… आज भी उसे याद थी.

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पर, इन बीते सालों में एकएक कर के बहुत बड़ा बदलाव आया था. जो पाखी अकेले दिनभर घर के कामों में जू?ाती रहती थी, आज हर आदमी उस की मदद के लिए तैयार था.

मम्मीजी सब्जी काट कर दे देतीं, तो अरुण धुले कपड़ों को फैलाने व तह लगाने में उस की मदद कर देता. बच्चे दिनभर बाबा और दादी की रट लगाए रहते. अरुण को लगा मानो उस के घर की खुशियां वापस लौट आई हों.

लौकडाउन की तारीख बारबार बढ़ रही थी. सब बहुत परेशान थे, पर अरुण और पाखी के सूखते रिश्ते को मानो नई जिंदगी मिल गई थी. सब लोग ड्राइंगरूम में समाचार देख रहे थे… ‘कोरोना की व्यापकता को देखते हुए पूरे देश को कई जोन में बांट दिया गया है. लौकडाउन में कुछ छूट दी जाएगी. कल से कुछ जरूरी दुकानें और प्रतिष्ठान कुछ नियमों के साथ खुलेंगे. पर अभी भी सावधानी बरतने की जरूरत है.’

‘‘मां, हमलोगों का शहर किस जोन में आएगा?’’ चीकू ने पूछा, तो पाखी ने बताया, ‘‘ग्रीन.’’

‘‘मां, तो क्या अब हम वापस अपने घर जाएंगे. अब हम पापा के साथ नहीं रहेंगे?’’ चीकू की बात सुन कर सब सकते में आ गए. किसी के पास कोई जवाब नहीं था.

पाखी ने धीरेधीरे अपना सामान समेटना शुरू किया. पता नहीं क्यों उस का मन आज भारी हो रहा था. पर किस हक से वह यहां रुक सकती है. न जाने कितने सवाल उस के मन में घूम रहे थे. बच्चे उदास मन से गाड़ी में जा कर बैठ गए.

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अरुण को सम?ा नहीं आ रहा था कि वह पाखी से क्या कहे. इन बीते दिनों में दोनों ने एकदूसरे को जितना करीब से सम?ा था, उतना तो पहले भी नहीं जानते थे. पाखी के कान भी न जाने क्या सुनने को उतावले से थे. एक बार, बस, एक बार तो कह कर देखो.

अरुण की आंखों से आंसू बह रहे थे

अरुण के शब्द लड़खड़ा रहे थे, ‘‘पाखी… पाखी, क्या ऐसा नहीं हो सकता, तुम हमेशा के लिए यहीं रुक जाओ?’’

अरुण की आंखों से आंसू बह रहे थे, पछतावे के आंसू, उम्मीद के आंसू. पाखी, बस, यही तो सुनना चाहती थी. कितने साल लगा दिए अरुण ने यह कहने के लिए.

पाखी की आंखों से भी आंसू बह रहे थे. उस ने अपने आंसुओं को आंचल में समेटा, ‘‘अरुण, बहुत देर हो रही है मु?ो… मु?ो अब जाने दीजिए हमेशा के लिए लौट आने के लिए.’’

दोनों की आंखें आंसुओं से भरी थीं. ये आंसू खुशी के थे. कोरोना ने न जाने कितनों की गोद उजाड़ी, कितनों का सुहाग छीना, पर आज किसी के घर की खुशियों की वजह भी कोरोना ही बना था.

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जितिन प्रसाद: माहिर या मौकापरस्त

लेखक- राधेश्याम त्रिपाठी

शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश  के जितिन प्रसाद का कांग्रेस छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना यकीनन कांग्रेस के लिए एक  झटका है. इस बात में कोई दोराय नहीं है, लेकिन यह प्रचारित करना कि कांग्रेस में उन की अनदेखी हो रही थी, सम झ से परे है.

जितिन प्रसाद कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे शाहजहांपुर के जितेंद्र प्रसाद उर्फ ‘बाबा साहब’ के बेटे और ज्योति प्रसाद जैसी शख्सीयत के पोते हैं.

जितिन प्रसाद साल 2004 में शाहजहांपुर क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीते थे और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह  के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में उन्हें इस्पात मंत्री का कार्यभार भी सौंपा गया था.  साल 2009 में लखीमपुर की धौरहरा लोकसभा सीट से जितिन प्रसाद को उम्मीदवार बनाया गया था और उन्होंने फिर से जीत दर्ज की थी. तब उन्हें पैट्रोलियम व प्राकृतिक गैस, सड़क परिवहन और राजमार्ग व मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री बनाया गया था.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जितिन प्रसाद धौरहरा क्षेत्र से हार गए थे. लिहाजा, साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने लखीमपुर के मोहम्मदी विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनना चाहा था, लेकिन बरबर नगर पंचायत के चेयरमैन संजय शर्मा को यहां से उम्मीदवार बनाया जा चुका था.

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संजय शर्मा मोहम्मदी क्षेत्र के कांग्रेस विधायक और नगर पंचायत बरबर के चेयरमैन रहते आए राम भजन शर्मा के बेटे थे.

संजय शर्मा की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद ही जितिन प्रसाद ने बगावत का  झंडा उठाया था और भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के लिए काफिले समेत लखनऊशाहजहांपुर मार्ग पर महोली तक पहुंच भी गए थे, पर कहा जाता है कि महोली पहुंचते ही प्रियंका गांधी वाड्रा ने उन से फोन पर बात की और वे वापस लौट आए थे.

वापसी पर जितिन प्रसाद को उन के गृह जनपद या यों कहें ‘बाबा साहब’ के गढ़ जनपद शाहजहांपुर के निकट तिलहर विधानसभा से कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित किया गया था.

गृह जनपद और प्रभावशाली नेतृत्व के वजूद के साथ 2-2 बार केंद्र में मंत्रिमंडल में सम्मिलित रहने वाले जितिन प्रसाद विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हारे थे.

इस हार को वैसे तो भाजपा की लहर में डूबने की हालत मानी जाती है, लेकिन जितिन प्रसाद जैसे नेता के लिए अपने गढ़ में ही बुरी तरह हारना बहुत ही शर्मनाक बात कही जा सकती है.

साल 2019 में भी जितिन प्रसाद को लोकसभा धौरहरा से उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन उस में भी उन का स्थान सम्मानजनक तक नहीं रहा था.

कुछ भी हो, जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ने व भाजपा में सम्मिलित होने को कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता, लेकिन जिस तौरतरीके के लिए कांग्रेस की लानतमलामत की जा रही है, वह कांग्रेस पर लागू नहीं होता.

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साल 2004 में शाहजहांपुर से व साल 2009 में धौरहरा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर जीतना जितिन प्रसाद का कोई करिश्मा भी नहीं माना जा सकता. करिश्मा तो तब माना जाता, जब वे साल 2017 में अपने गृह जनपद के तिलहर विधानसभा क्षेत्र से ही विधायक बन कर दिखाते.

साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जितिन प्रसाद को धौरहरा से उम्मीदवार बनाया गया था और उन का हार जाना कोई अप्रत्याशित नहीं माना जा सकता, लेकिन तिलहर विधानसभा चुनाव में हार जाना जितिन प्रसाद की कदकाठी के मुताबिक नहीं था. साल 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव या 2017 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस भी हारी थी, कांग्रेस की  झोली में तब क्या था?

युवा जितिन प्रसाद जैसा ‘महान’ नेता, जो 2 बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहा हो, अपने गढ़ तिलहर से हार कर निचली पायदान पर पहुंचा हो, उसे कांग्रेस दे ही क्या सकती थी?

भले ही कांग्रेस की गलतियां रही होंगी, लेकिन कांग्रेस कर भी क्या सकती थी, उस इनसान के लिए, जिस के सिर पर 2004 व 2009 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दे कर मंत्री पद का ताज रखा गया और वह मोहम्मदी क्षेत्र से विधानसभा टिकट संजय शर्मा को मिल जाने के गम में कांग्रेस छोड़ कर साल 2017 में ही भाजपा में जाने के लिए धूमधाम से घोषणा कर के पलायन कर रहा था.

निश्चित ब्राह्मण होने के नाते जितिन प्रसाद को पार्टी में अहम जगह दी जा सकती थी, लेकिन प्रमोद तिवारी वगैरह जैसे कई ब्राह्मण नेताओं ने भले ही केंद्र में मंत्रिमंडल में जगह न पाई हो, लेकिन उन की हालत व जन महत्त्व तो इसी से साबित होता है कि वे लगातार 7 बार अपने क्षेत्र से विधायक चुने जाते रहे और खुद राज्यसभा सदस्य बन जाने के बाद जब साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 7 विधायक ही जीत सके थे, तब भी प्रमोद तिवारी की बेटी मोना उस चुनाव में विधायक बन कर विधानसभा में नेता कांग्रेस हैं.

भले ही अजय कुमार लल्लू को विधानसभा में कांग्रेस के नेता पद से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त कर दिया हो, यह पार्टीगत नीति और सोच रही हो, लेकिन 2 बार कांग्रेस सांसद रह कर केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाने के बाद भी विधानसभा चुनाव हार जाने वाले नेता जितिन प्रसाद को क्या अहमियत दी जा सकती थी, सम झ से परे है. उन्हें ब्राह्मणों को प्रदेश में एकत्र करने, संगठित करने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन क्या हो सका है अभी तक वे क्या कर सके?

यह तय है कि 2 बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहने वाला आदमी बड़ा नेता होना चाहिए, बड़ी जिम्मेदारी मिलनी चाहिए, लेकिन कौन सी सीट पर विधानसभा में कौन सी जिम्मेदारी दे दी जाती, विधानपरिषद या राज्यसभा में किस क्षेत्र से भेजा जा सकता था और कांग्रेस की औकात भी थी भेजने की? और यह औकात तो तब बनती, जब ऐसे लोग अपनेअपने गृह क्षेत्र तक से विधानसभा चुनाव जीतने की हैसियत में होते.

कांग्रेस की वर्तमान हालत न तो सोनिया गांधी की वजह से है और न ही इस के लिए राहुल गांधी जिम्मेदार हैं. आखिर एक आदमी कितने दिनों तक अकेले रेत में खड़ी नाव पर सवार ‘जोर लगा कर हईशा’ भी नहीं कह सकते, चिल्लाना नहीं चाहते, तो न तो नाव रेत से निकलेगी और न ही नदी के उस पार जा पाएगी. एक अकेला कब तक मुरदा लाशों को ढो कर उन के सिर पर ताज पहनाने का काम करता रह सकता है. यही वजह है कि राहुल गांधी अपने साथियों से हताशनिराश हो कर नाव की पतवार संभालने की इच्छा ही नहीं रख पा रहे हैं.

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‘राहुल सक्रिय नहीं हैं’ का जुमला उछालने वाले कितने सक्रिय हैं, यह उन्हें खुद सोचना चाहिए और नाव की सवारी कर रहे ‘जोर लगा कर हईशा’ तक न कर पाने वाले स्वार्थ के लिए उस दल को छोड़ कर भागे, जिस ने उन को राजनीति में आने के साथ ही 2 बार सांसद ही नहीं, बल्कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का सुख दिया, केवल मोहम्मदी  विधानसभा क्षेत्र से किसी दूसरे को उम्मीदवार बना देने के चलते जिस ने अपना काफिला भाजपा की ओर बढ़ा दिया और तिलहर से टिकट दिए जाने के बावजूद बुरी तरह से हारा.

अच्छा है कि अब जितिन प्रसाद भाजपा में करिश्मा दिखाएं, लेकिन जलती आग तापने वाले अपनी भी गतिविधियों का आकलन करते तो अच्छा होता.

Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज इलाके में कुछ ही समय में आधा दर्जन ऐसी घटनाएं घटीं, जिन से करीबी रिश्तों में बढ़ रहे अपराध का पता चलता है.

वैसे, यह बात केवल एक जगह की नहीं है. समाज में हर जगह एक सा हाल है. अपराध की घटनाओं की पड़ताल करने पर यह सच उजागर हो जाता है.

प्रेमी संग मंगेतर की हत्या

शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशा के साथ तय हुई थी. निशा लखनऊ पीजीआई अस्पताल के पास ही एकता नगर में रहती थी. वह अपने 2 भाइयों में सब से छोटी और लाड़ली भी थी.

शहाबुद्दीन भी अपने घर में सब से छोटा था. वह बंथरा में रहता था. दोनों के घर के बीच 35 किलोमीटर की दूरी थी. शहाबुद्दीन ट्रासपोर्ट नगर में दुकान पर नौकरी करता था, जो दोनों के घरों के बीच थी.

हसमतुल निशा ने अपने घर वालों के कहने पर शहाबुद्दीन के साथ शादी के लिए हामी तो भर दी थी, पर वह अपने प्रेमी शाने अली को भूलने के लिए भी तैयार नहीं थी. ऐसे में जैसेजैसे शहाबुद्दीन के साथ शादी का दिन करीब आ रहा था, दोनों के बीच तनाव बढ़ रहा था.

हसमतुल निशा को लगता था कि वह शादी का दिखावा ही करेगी. बाकी वह मन से अपने प्रेमी शाने अली के साथ रहना चाहती थी.

शहाबुद्दीन के साथ हसमतुल निशा की सगाई होने के बाद उन दोनों के बीच बातचीत होने लगी. शहाबुद्दीन अकसर उसे फोन करने लगा और मिलने के लिए भी दबाव बनाने लगा.

यह बात हसमतुल निशा को अच्छी नहीं लग रही थी. शाने अली भी चाहता था कि हसमतुल निशा अपने होने वाले पति शहाबुद्दीन से मिलने न जाए. जब भी उसे यह पता चलता था कि दोनों की फोन पर बातचीत होती है और वह आपस में मिलते भी हैं, इस बात को ले कर हसमतुल निशा और शाने अली के बीच  झगड़ा होता था.

उन दोनों के बीच लड़ाई झगड़े के बाद यह तय हुआ कि अब शहाबुद्दीन को रास्ते से हटाना ही होगा.

शहाबुद्दीन को अपनी होने वाली पत्नी और उस के प्रेमी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह उन दोनों को आपस में रिश्तेदार सम झता था और उन पर भरोसा भी करता था.

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अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशा को शादी के पहले वह अच्छी तरह से जाननेसम झने के लिए करीब आने की कोशिश कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि उस की यह कोशिश उसे मौत की तरफ ले जा सकती थी.

शहाबुद्दीन अपनी होने वाली पत्नी के साथ संबंधों को मधुर बनाने का काम कर रहा था, पर प्रेमी के मायाजाल में फंसी हसमतुल निशा खुद को उस से दूर करना चाहती थी. परिवार के दबाव में वह खुल कर बोल नहीं पा रही थी.

हसमतुल निशा ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर योजना बनाई. हसमतुल निशा चाहती थी कि शाने अली उस के मंगेतर शहाबुद्दीन को रास्ते से हटा दे. योजना को सही आकार देने के लिए शाने अली ने अपने जन्मदिन पर  11 मार्च, 2021 को शहाबुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया.

गुरुवार की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे शाने अली और उस के दोस्त बाराबंकी निवासी अरकान, मोहनलालगंज निवासी संजू गौतम, अमन कश्यप और पीजीआई निवासी समीर मोहम्मद बाबूखेड़ा में जमा हुए. जैसे ही शहाबुद्दीन वहां पहुंचा, शाने अली और उन के दोस्तों ने उस पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

कई वार होने के बाद भी शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और अपनी जान बचाने के लिए वह हमलावरों से भिड़ गया.

शाने अली और उस के हमलावर दोस्तों को जब लगा कि शहाबुद्दीन बच निकलेगा तो उन लोगों ने कुत्ते को बांधी जाने वाली जंजीर से शहाबुद्दीन का गला घोंट दिया, जिस से वह अपना बचाव नहीं कर पाया और मर गया.

बाद में हसमतुल निशा ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर मंगेतर शहाबुद्दीन की हत्या कर दी.

चौथे पति का बेरहमी से कत्ल

लखनऊ के नगराम थाने के महगुआ गांव की रहने वाली ज्ञानवती ने अवधेश के साथ चौथी शादी की थी.

ज्ञानवती की पहली शादी 20 साल की उम्र में नगराम के रहने वाले दिलीप से हुई थी. शादी के कुछ दिन बाद ही उन दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई.

दिलीप को केवल ज्ञानवती की याद तब ही आती थी, जब उसे उस का जिस्म चाहिए होता था. पतिपत्नी के रिश्ते में जिस्मानी संबंधों के साथ जिम्मेदारी भरा अहसास भी होता है. ज्ञानवती को कभी यह नहीं लगा कि दिलीप उस के साथ ऐसे संबंधों को निभा पाएगा.

अच्छी बात यह थी कि ज्ञानवती के समाज में तलाक लेने में कोई दिक्कत नहीं आती थी. पंचायत के फैसलों पर ही तलाक हो जाता था. शादी के कुछ साल बाद ज्ञानवती और दिलीप अलग हो गए.

ज्ञानवती की दूसरी शादी चौराहपुर के श्यामलाल के साथ हुई. श्यामलाल से उस के एक बच्चा भी हो गया, जिस का नाम सूरज रखा गया था.

सूरज के आने के बाद भी ज्ञानवती की जिंदगी में बहुत दिनों तक उजाला नहीं रह सका. जिस तरह से दिलीप के साथ ज्ञानवती का मनमुटाव शुरू हुआ था, उसी तरह से श्यामलाल के साथ भी होने लगा.

मनमुटाव  झगड़े में बदला और ज्ञानवती ने अलग रहने का फैसला कर लिया. श्यामलाल ने भी कह दिया कि बेटा सूरज उस के साथ ही रहेगा.

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इस के बाद भी ज्ञानवती ने अपना फैसला नहीं बदला. अब वह फिर से अपनी शादीशुदा जिंदगी बसाने के लिए कोशिश करने लगी.

इस बार ज्ञानवती ने सुखलाल खेड़ा नवी नगर निवासी सुनील रावत के साथ तीसरी शादी कर ली.

ज्ञानवती ने अब सोच लिया था कि सुनील ही उस की जिंदगी को सुखमय बनाएगा. पहले की दोनों शादियों के मुकाबले ज्ञानवती की तीसरी शादी उसे अच्छी लग रही थी.

सुनील का स्वभाव भी बहुत अच्छा था. ज्ञानवती के साथ उस का समय अच्छा गुजर रहा था. दोनों के 2 बच्चे राम और नरेश पैदा हुए. बच्चों के होने के बाद सुनील और ज्ञानवती के बीच संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रहे थे. अब दोनों के बीच टकराव होने लगा था.

ज्ञानवती ने  झुकना नहीं सीखा था और सुनील से अलग रास्ता उस ने बना लिया. अब उस ने मंहगुआ गांव के रहने वाले अवधेश से अपनी चौथी शादी कर ली. 14 साल में चौथी शादी करने के बाद भी ज्ञानवती को संतोष नहीं हो रहा था.

ज्ञानवती का स्वभाव विद्रोही होने लगता था. अवधेश जब भी नशा कर के आता था. इस वजह से ज्ञानवती की उस से लड़ाई होने लगती थी. ज्ञानवती और अवधेश के बीच संबंध एक साल के अंदर फिर से हाशिए पर पहुंच गए थे.

पहले 3 पतियों को छोड़ कर शादी करने वाली ज्ञानवती ने चौथे पति को रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या ही कर दी.

ज्ञानवती ने पुलिस को बताया, ‘‘अवधेश मेरे चौथे पति थे. मैं ने सोचा था कि चौथी शादी के बाद मैं सुकून और शांति के साथ रह सकूंगी. अवधेश ने भी मु झ से यही वादा किया था.

‘‘पर शादी के कुछ ही दिनों के बाद हमारे बीच लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया. तब मैं इस रिश्ते से भी छुटकारा पाने की सोचने लगी. 24 मई को इच्छाखेड़ा में मेरे रिश्तेदार के यहां शादी थी. वहीं मेरे दोनों लड़के गए थे. घर में मैं और अवधेश ही थे.

‘‘अवधेश कहीं गए थे. वहां से नशा कर के जब वे वापस घर आए तो पीने के लिए पानी मांगा. मु झे लगा कि यही सही मौका है. मैं ने सिंघाड़ा बोने में काम आने वाली कीटनाशक दवा पानी में मिला दी. इस के बाद मु झे डर लगने लगा कि वे यहीं मर जाएंगे तो मैं फंस जाऊंगी.

‘‘इस के बाद डंडे से सिर पर वार  कर दिया और लकड़ी की 2 फट्टी गले के दोनों तरफ रख कर दबा दिया.  जब वे बेहोश हो गए, तो खींच कर चारपाई से नीचे गिरा दिया.

‘‘ब्लेड से शरीर के कई हिस्सों हाथ और सीने पर पचासों निशान बना दिए. आंख की पलक भी काट दी और पूरे शरीर पर मिट्टी लगा दी, जिस से यह लगे कि कहीं और से मारपीट कर के यहां डाल दिया गया है.’’

प्रेमी से कराई अपने घर चोरी

रसूलपुर आशिक अली थाना गोसाईंगंज जिला लखनऊ के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमारी का पुरवा मलौली थाना गोसाईंगंज के रहने वाले विनय यादव के साथ प्रेम हो गया. विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था. दोनों के बीच जातपांत की गहरी खाई थी.

दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू अपनी दोस्ती को छोड़ना नहीं चाहते थे. लेकिन परेशानी यह थी कि उन को साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था.

अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक तालमेल बना हुआ था. दोनों ही अपने विचारों का आदानप्रदान कर लेते थे. दोनों ने सोचा था कि विनय नौकरी करेगा, तो फिर वे दोनों शहर में अपना अलग घर ले कर रहेंगे.

कोरोना काल में लौकडाउन के चलते जिस तरह से कामधंधों पर रोक लगी, उस से विनय और खुशबू जैसे नौजवानों के सामने भी अपने भविष्य को ले कर सवालिया निशान लगा दिया. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए. यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा, तो सबकुछ वापस पटरी पर आ जाएगा. इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा.

मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा, तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया. ऐसे में खुशबू ने योजना बनाई कि विनय उस के घर में रखे रुपए चोरी कर ले.

खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर नहीं हुआ.

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इधर विनय ने अपने साथी अपने ही गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में जोड़ लिया. खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसे नींद की 8 गोली दी और कहा कि  4-4 गोली काढ़े में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना, जिस से वे रातभर आराम से सोते रहेंगे.

खुशबू ने 28 मई की रात ऐसा ही किया. जब मांबाप दोनों गहरी नींद में सो गए, तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख रुपए के जेवर चोरी कर लिए.

खुशबू के पिता मनोज कुमार ने थाना गोसाईंगंज में चोरी का मुकदमा लिखाया. पुलिस ने खुशबू, विनय और उस के दोस्तों को जेल भेज दिया.

अशिक्षा और गरीबी

निगोहां गांव के रहने वाले राधेश्याम  के बेटे संदीप की दिमागी हालत खराब हो गई थी. तंग आ कर राधेश्याम ने उसे घर के पास के बिजली के खंभे से जंजीर से जकड़ कर बांध दिया.

जब यह बात समाजसेवियों को पता चली, तो उन्होंने विरोध किया और तब निगोहां इंस्पैक्टर नंदकिशोर ने जंजीर में जकड़े संदीप को खुलवा कर चचेरे भाई संजय को देखभाल के लिए सौंप दिया.

मोहनलालगंज थाना क्षेत्र में ही एक बेटे ने 3 बिस्वा जमीन के लिए अपनी मां की हत्या कर दी और लाश को मोहनलालगंज तहसील के पीछे फेंक दिया. ऐसी घटनाओं के पीछे मूल वजह अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी है.

पुलिस अफसर पूर्णेंदु सिंह कहते हैं, ‘‘गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी के साथसाथ लोगों में सहनशीलता और संस्कार खत्म हो गए हैं. इस की वजह से बेटा अपनी बूढ़ी मां की हत्या कर दे रहा है.

‘‘हत्याओं के पीछे निजी संबंधों का हाथ सब से ज्यादा पाया जा रहा है. चाहे वह करीबी संबंधी हो या करीबी दोस्त हो. पैसों का लालच इस कदर है कि लोग अपराध में हिस्सा ले लेते हैं. उस समय वे उस के अंजाम की बात भी नहीं सोचते हैं.’’

नशे और संगत का असर

लंबे समय से पत्रकारिता और समाजसेवा में लगे अखिलेश द्विवेदी कहते हैं, ‘‘बड़ी घटनाएं तो प्रकाश में आ जाती हैं, पर छोटीछोटी घटनाओं पर चर्चा कम होती है. अगर सभी आपराधिक घटनाओं को मिला कर देखें, तो पता चलता है कि अपराध करने वाले नशे का शिकार होते हैं, जिस की वजह से वे सहीगलत का फैसला नहीं कर पाते हैं और आपराधिक घटनाओं में शामिल हो जाते हैं.

‘‘वे एक बार छोटे अपराध करते हैं, फिर बड़ेबड़े अपराध करने से भी पीछे नहीं हटते. नौजवान तबका ऐसे लोगों के निशाने पर होता है, जो अपने गलत कामों के लिए उस का इस्तेमाल करने की कोशिश में रहते हैं.’’

इस सिलसिले में पत्रकार अनुपम मिश्र कहते हैं, ‘‘नौजवान तबके में संबंधों के प्रति सहनशीलता खत्म हो रही है. इस वजह से वे अपराध करने के पहले किसी भी तरह से सोचविचार नहीं कर रहे. सब से खतरनाक बात यह है कि महिलाएं भी अपराध करने से पीछे नहीं रह रही हैं. ये घटनाएं समाज के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं.

‘‘अब समाज को इस से बचने का उपाय देखना होगा. कानून की भूमिका भी अहम है. अपराधों में जल्दी सुनवाई और सजा का मिलना शुरू हो जाए, तो अपराध करने से लोग डरेंगे. साथ ही साथ समाज में इस के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी होगी.’’

क्या चिराग पासवान का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया है?

महाभारत में क्या हुआ था. कौरवों और पांडवों को पहले आपस में लड़वा दिया और फिर सब को मरवा दिया, कुरु वंश को ही समाप्त करा दिया. यह बात दूसरी है कि आज जब तर्क और तथ्य सब को उपलब्ध हैं, अधिकतर हिंदू महाभारत को विशेष धर्मयुद्ध सम झते हैं जिस में कृष्ण ने हिचकिचाते अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ा कर परस्पर विरोधी बातें कहते हुए उसे रणक्षेत्र में लड़ने को अंतत: राजी कर ही लिया.

2019 के संसदीय चुनावों में ऐसा सा महाभारत भारतीय जनता पार्टी ने अपनी ही सहयोगी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के साथ रचा जब लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को नीतीश कुमार के उम्मीदवारों के सामने खड़ा करवा कर नीतीश कुमार को कमजोर कर दिया और नीतीश कुमार अब भारतीय जनता पार्टी के मोहताज हैं.

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22 जून को चिराग पासवान ने यह माना कि 2019 में उन्होंने जो भी किया वह भाजपा की रजामंदी से किया था. चिराग पासवान को यह रहस्य खोलना पड़ा क्योंकि जैसे पांडवों को हिमालय पर जा कर आत्महत्या करनी पड़ी थी, वैसे ही चिराग पासवान को करनी पड़ रही है क्योंकि उन के सांसद और विधायक छोड़ कर जा रहे हैं पर विपक्ष में नहीं, भारतीय जनता पार्टी या जनता दल (यू) में. चिराग को अनाथ कर के बड़ी चालबाजी से भारतीय जनता पार्टी ने दलित आंदोलन को बिहार में भी कुचल दिया और काफी बड़ी संख्या में होते हुए, वंचित होते हुए भी दलितों को अब किसी ऊंची जाति की जीहुजूरी में फिर से लगना पड़ेगा.

बातें बनाने में तेज और लच्छेदार लुभावने वादों के बलबूतों पर भाजपाई जैसे लोग सदियों से इस देश में राज करते आए हैं. राजनीतिक शासन किसी के हाथ में हो सामाजिक शासन हमेशा इन्हीं के हाथों में रहा है और जन्म से ले कर मृत्यु तक दलितों की तो छोडि़ए, शूद्रों, वैश्यों और क्षत्रियों तक की लगाम इन्हीं लोगों के पास रही. आज थोड़ाबहुत पढ़लिख कर इन्हें गरूर होने लगा था कि हम भी कुछ हैं पर पहले रामविलास पासवान को दलबदलू नंबर एक बना डाला गया और अब उन के पुत्र चिराग पासवान को दलबदल की आग में स्वाहा कर दिया गया है.

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चिराग पासवान अब चाहे जो भी कहते रहें, उन का राजनीतिक कैरियर समाप्त ही है. कोई करिश्मा ही उन का उद्धार कर सकता है.

अटूट बंधन- भाग 1: प्रकाश ने कैसी लड़की का हाथ थामा

बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. आधे घंटे से लगातार हो रही थी. 1 घंटा पहले जब वे दोनों रैस्टोरैंट में आए थे, तब तो मौसम बिलकुल साफ था. फिर यह अचानक बिन मौसम की बरसात कैसी? खैर, यह इस शहर के लिए कोई नई बात तो नहीं थी परंतु फिर भी आज की बारिश में कुछ ऐसी बात थी, जो उन दोनों के बोझिल मन को भिगो रही थी. दोनों के हलक तक कुछ शब्द आते, लेकिन होंठों तक आने का साहस न जुटा पा रहे थे.

घंटे भर से एकाध आवश्यक संवाद के अलावा और कोई बात संभव नहीं हो पाई थी. कौफी पहले ही खत्म हो चुकी थी. वेटर प्याले और दूसरे बरतन ले जा चुका था. परंतु उन्होंने अभी तक बिल नहीं मंगवाया था. मौन इतना गहरा था कि दोनों सहमे हुए स्कूली बच्चों की तरह उसे तोड़ने से डर रहे थे. प्रकाश त्रिशा के बुझे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करता पर अगले ही पल सहम कर अपनी पलकें झुका लेता. कितनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें थीं त्रिशा की. त्रिशा कुछ कहे न कहे, उस की आंखें सब कह देती थीं.

इतनी उदासी आज से पहले प्रकाश ने इन आंखों में कभी नहीं देखी थी. ‘क्या सचमुच मैं ने इतनी बड़ी गलती कर दी, पर इस में आखिर गलत क्या है?’ प्रकाश का मन इस उधेड़बुन में लगा हुआ था. ‘होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है…’ दोनों की पसंदीदा यह गजल धीमी आवाज में चल रही थी. कोई दिन होता तो दोनों इस के साथसाथ गुनगुनाना शुरू कर देते पर आज…

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आखिरकार त्रिशा ने ही बात शुरू करनी चाही. उस के होंठ कुछ फड़फड़ाए, ‘‘तुम…’’ ‘‘तुम कुछ पूछना चाहती हो?’’ प्रकाश ने पूछ ही लिया.

‘‘हां, कल तुम्हारा टैक्स्ट मैसेज पढ़ कर मैं बहुत हैरान हुई.’’ ‘‘जानता हूं पर इस में हैरानी की क्या बात है?’’

‘‘पर सबकुछ जानते हुए भी तुम यह सब कैसे सोच सकते हो, प्रकाश?’’ इस बार त्रिशा की आवाज पहले से ज्यादा ऊंची थी. प्रकाश बिना कुछ जवाब दिए फर्श की तरफ देखने लगा.

‘‘देखो, मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए. क्या है यह सब?’’ त्रिशा ने उखड़ी हुई आवाज से पूछा. ‘‘जो मैं महसूस करने लगा हूं और जो मेरे दिल में है, उसे मैं ने जाहिर कर दिया और कुछ नहीं. अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मुझे माफ कर दो, लेकिन मैं ने जो कहा है उस पर गौर करो.’’ प्रकाश रुकरुक कर बोल रहा था, लेकिन वह यह भी जानता था कि त्रिशा अपने फैसले पर अटल रहने वाली लड़की है.

पिछले 3 वर्षों से जानता है उसे वह, फिर भी न जाने कैसे साहस कर बैठा. पर शायद प्रकाश उस का मन बदल पाए. त्रिशा अचानक खड़ी हो गई. ‘‘हमें चलना चाहिए. तुम बिल मंगवा लो.’’

बिल अदा कर के प्रकाश ने त्रिशा का हाथ पकड़ा और दोनों बाहर चले आए. बारिश धीमी हो चुकी थी. बूंदाबांदी भर हो रही थी. प्रकाश बड़ी सावधानी से त्रिशा को कीचड़ से बचाते हुए गाड़ी तक ले आया.

त्रिशा और प्रकाश पिछले 3 वर्ष से बेंगलरु की एक प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में कार्य करते थे. त्रिशा की आंखों की रोशनी बचपन से ही जाती रही थी. अब वह बिलकुल नहीं देख सकती थी. यही वजह थी कि उसे पढ़नेलिखने व नौकरी हासिल करने में हमेशा बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. पर यहां प्रकाश और दूसरे कई सहकर्मियों व दोस्तों को पा कर वह खुद को पूरा महसूस करने लगी थी.

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वह तो भूल ही गई थी कि उस में कोई कमी है. वैसे भी उस को देख कर कोई यह अनुमान ही नहीं लगा सकता था कि वह देख नहीं सकती. उस का व्यक्तित्व जितना आकर्षक था, स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. वह बेहद हंसमुख और मिलनसार लड़की थी. वह मूलतया दिल्ली की रहने वाली थी. बेंगलुरु में वह एक वर्किंग वुमेन होस्टल में रह रही थी. प्रकाश अपने 2 दोस्तों के साथ शेयरिंग वाले किराए के फ्लैट में रहता था. प्रकाश का फ्लैट त्रिशा के होस्टल से आधे किलोमीटर की दूरी पर ही था.

रोजाना त्रिशा जब होस्टल लौटती तो प्रकाश कुछ न कुछ ऐसी हंसीमजाक की बात कर देता, जिस कारण त्रिशा होस्टल आ कर भी उस बात को याद करकर के देर तक हंसती रहती. परंतु आज जब प्रकाश उसे होस्टल छोड़ने आया तो दोनों में से किसी ने भी कोई बात नहीं की. होस्टल आते ही त्रिशा चुपचाप उतर गई. उस का सिर दर्द से फटा जा रहा था. तबीयत कुछ ठीक नहीं मालूम होती थी.

डिनर के वक्त उस की सहेलियों ने महसूस किया कि आज वह कुछ अनमनी सी है. सो, डिनर के बाद उस की रूममेट और सब से अच्छी सहेली शालिनी ने पूछा, ‘‘क्या बात है त्रिशा, आज तुम्हें आने में देरी क्यों हो गई? सब ठीक तो है न.’’ ‘‘हां, बिलकुल ठीक है. बस, आज औफिस में काम कुछ ज्यादा था,’’ त्रिशा ने जवाब तो दिया पर आज उस के बात करने में रोज जैसी आत्मीयता नहीं थी.

टीवी शो ‘आनंदी गांव की लाडली’ में नजर आएंगी ‘चंद्रकांता’ एक्ट्रेस ऋतु श्री, देखें Photos

‘‘डीडी किसान’’ पर पांच जुलाई से हर सोमवार से शुक्रवार रात आठ बजे प्रसारित हो रहे 52 एपीसोड के सीरियल ‘आनंदी गांव की लाड़ली’ की कहानी बिहार के समस्तीपुर के गांव रोहुआ वारिसनगर की एक सत्य कहानी पर आधारित है, जिसकी नायिका ऋतु श्री हैं.

इसे महज संयोग कहा जाए या कुछ और मगर ऋतु श्री की निजी जिंदगी कहानी भी छोटे शहर से महानगरी मुंबई पहुंचने और फिर अपने मेहनत के बलबूते पर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने की है.

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RITU-

सीरियल ‘‘आनंदी गांव की लाड़ली’’की चर्चा करते हुए ऋतु श्री कहती हैं-‘‘यह छोटे शहर की लड़की के लिए बड़े सपने लेकर आयी है. यह मेरी जिंदगी के काफी करीब है. मैं झारखंड के छोटे से शहर रामगढ़ की रहने वाली हॅूं,जबकि मैने फैशन डिजाइनर का कोर्स जयपुर से किया और वहां से इंटर्नशिप करने के लिए मेरी किस्मत मुझे मुम्बई मं एकता कपूर के प्रोडक्षन हाउस ‘बालाजी टेलीफिल्मस’ तक पहुंचा दिया.

इंटर्नशिप के दौरान ही मुझे ‘बालाजी टेलीफिल्म’की सीरियल ‘चंद्रकांता’ में काम करने का मौका मिल गया और उसके साथ ही फिल्म और सीरियल से मेरा नाता जुड़ गया. ’’

RITU-SHREE

ऋतु आगे बताती हैं- ‘‘सीरियल ‘चंद्रकांता’ में मेरे काम को काफी सराहा गया. इसके बाद मुझे सीरियल ‘कुंडली भाग्य’, ‘सीआईडी’ के अलावा बड़े बजट की फिल्म ‘कुली नम्बर-1’ और ‘फौजी कॉलिंग’ फिल्म में काम करने का मौका मिला.इसके बाद तो किस्मत चल निकली.इस समय मेरे कई सीरियल प्रसारित होने वाले हैं, जिनमे डीडी किसान पर पांच जुलाई से ‘आनंदी गांव की लाडली’ का प्रसारण शुरू हुआ है.

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यह सीरियल बिहार के एक गांव की आनंदी की कहानी है, जो अपने संघर्ष से गांव की अन्य औरतों की किस्मत बदल देती है. उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है. ऋतु कहती हैं-‘‘52 एपिसोड वाले इस सीरियल के अलावा दो एक और प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं. इसके अलावा कुछ फिल्मों के लिए भी बातचीत चल रही है.फिल्मों में कैरियर बनाने में मेरे माता पिता का अमूल्य सहयोग रहा.मेरा मानना है कि अगर परिवार का साथ मिले तो लड़कियां भी लड़को से कम नही है.’’

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