लेखक-  मौहम्मद आसिफ

अच्छन मियां कठोर दिल के मालिक थे. लंबाचौड़ा कद, आवाज में कड़कपन, रोबदार चेहरा, बड़ीबड़ी मूंछें और सांवला रंग. अपने फायदे के लिए दुनिया के नियमों को ताक पर रखना और दूसरों को रोब दिखा कर अपने बनाए नियमों पर चलाना उन की फितरत थी.

आज अच्छन मियां सवेरे साढ़े 4 बजे नहाधो कर, 5 बजे वाली एकलौती ट्रेन पकड़ने के लिए निकले थे. सफेदी की चमकार लिए पैंटशर्ट, चमड़े के चमचमाते काले जूते पहन कर, लाल और हरी धारियों वाला सफेद अंगोछा अकड़ के साथ कंधे पर डाल कर, मूंछों को ताव देते हुए रिकशा की तलाश करने लगे.

रेलवे स्टेशन 2 किलोमीटर दूर था. स्टेशन के रास्ते की सड़क के गड्ढे सरकार की बदहाली की पोल खोल रहे थे. अच्छन मियां को ट्रेन से ढाई घंटे का सफर तय कर के दूसरे शहर भतीजे की शादी में जाना था.

अच्छन मियां ने छांट कर सब से अच्छे कपड़े सूटकेस में रखे हुए थे. कसबे की बिजली गुल थी. अंधेरे के चलते थोड़ी दूर का रास्ता भी दिखाई नही दे रहा था.

खैर, अच्छन मियां को रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए एक रिकशा दिखाई दिया. उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘ओ रिकशा वाले, स्टेशन चलोगे क्या?’’

रिकशा वाला बोला, ‘‘जी बाबूजी...’’

‘‘कितने पैसे लोगे?’’ अच्छन मियां ने पूछा.

‘‘बाबूजी, 20 रुपए...’’ रिकशा वाले ने जवाब दिया.

‘‘अबे, 20 रुपए का काम नहीं है, मगर हम तु झे 20 रुपए देंगे. सही से चलाना. जल्दी से गाड़ी पकड़वा दे.  15 मिनट बचे हैं बस.

अगर गाड़ी छूट गई तो और कोई गाड़ी नहीं है और बस वालों की भी हड़ताल है आज.’’

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