आने वाले समय में शायद हमारे देश में एक कहावत प्रचलित हो जाएगी-” नरेंद्र मोदी के आंसू…”

बीते दिनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉक्टरों से संवाद कर रहे थे इसी दरमियान एक बार पुनः आंसू बहाने लगे . मोदी के साथ विसंगति यह है कि अपने आप को चट्टान की तरह कठोर भी साबित करना चाहते हैं और खुद को 56 इंच का सीने वाला बताने में गर्व महसूस करते थे और आजकल उन्होंने आंसू बहा कर संवेदना का चोला पहन कर देश की जनता को यह बताने का प्रयास किया है कि वे बहुत ही नरम हृदय के स्वामी है.

कोरोना कोविड-19 के इस संक्रमण काल में देश के प्रधानमंत्री को मजबूती के साथ खड़े होने की आवश्यकता है जैसे देश के हालात बन गए हैं उसके लिए एक मजबूत और विवेकशील नेतृत्व की आवश्यकता है.

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मगर, दो नावों की सवारी से मोदी अपनी छवि जो देश के जनमानस पर गढ़ना चाहते हैं, उसमें स्वयं ही अपनी भद पिटवा कर देशभर में कौतुक और हास्य का विषय बन गए हैं.

प्रधानमंत्री कैसा हो?

सीधी सी बात है कि हर आदमी, देश का हर एक नागरिक चाहता है कि उसका नेतृत्व करने वाला प्रधानमंत्री विवेकशील और संवेदनशील हो. वह आम जनता के दुख, दर्द समस्या को महसूस करें और उसे दूर करने का ईमानदारी से प्रयास करें.

मगर आज कोरोना वायरस के इस समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री की गतिविधि और व्यवहार से आम जनता संतुष्ट नजर नहीं आती. जिस तरीके से देश में ऑक्सीजन की कमी हुई क्या वह जायज है ? जिस तरीके से हॉस्पिटलों में लोगों के लिए बेड और चिकित्सा की व्यवस्था नहीं थी क्या वह जायज है? जिस तरीके से डॉक्टरों, प्रशासन का व्यवहार आम जनता के साथ देखा गया क्या वह जायज है? ऐसे ही कुछ और भी महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन्हें देखकर के आम जनमानस में यह धारणा बनी है कि हमारे देश के नेतृत्व था प्रधानमंत्री आज पूरी तरीके से असफल हो गए हैं. दुनिया के लगभग 40 से ज्यादा देशों ने हमें ऑक्सीजन भेजा, हमें मदद की, छोटे-छोटे देशों ने आगे आकर मदद का आह्वान किया और बिना मांगे चिकित्सा रसद भेजी इन सब बातों से यह संदेश गया कि हमारा देश और हमारा नेतृत्व कितना कमजोर है. आज हमें हाथ पसारना पड़ रहा है हम विश्व गुरु बनने की दौड़ में है हम बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, हमारे प्रधानमंत्री इतना ऊंचा ऊंचा हांकते हैं कि लोग उनके मुरीद हो गए, लेकिन जमीनी हकीकत को देख कर के मानो धरती का सीना है फट गया.

अगर मोदी एक प्रधानमंत्री और मुखिया होने के नाते अपने आप को असहाय बताएंगे आंसू बहाने लगेंगे तो देश की जनता का क्या होगा… हमें अखिर कैसा प्रधानमंत्री चाहिए? 56 इंच के सीने के झूठे वादे के साथ चुनाव के दंगल में आप ने बाजी मार ली. मगर हकीकत यह है कि आप एक बहुत ही कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में याद किए जाएंगे एक सीधा सा उदाहरण यह है कि संकट आने पर अगर घर का मुखिया आंसू बहाने लगेगा तो घर के दूसरे सदस्यों पर क्या बीतेगी. शायद इसीलिए कहा जाता है कहावत है कि घर के मुखिया को मजबूत होना चाहिए उसे आंसू नहीं बहाना चाहिए . मगर यह एक छोटी सी बात प्रधानमंत्री जी को शायद पता नहीं है.क्योंकि आप के आंसू आपकी कमजोरी भारत देश के इस परिवार को कमजोर बनाने वाली है.

आंसू, प्रधानमंत्री और प्रोटोकॉल!

शायद आने वाले समय में इतिहास में नरेंद्र दामोदरदास मोदी को एक आंसू बहाने वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाएगा. शायद ही देश में कोई ऐसा प्रधानमंत्री हुआ हो जो इस तरह बात बेबात आंसू बहाने लगा हो. अभी तक जाने कितनी बार में अपने आंसू देश की जनता को दिखा चुके हैं और अब शायद आगे इस पर शोध भी होने लगेगा.

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एक महत्वपूर्ण तथ्य हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक बैठक में अभी हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रोटोकॉल बताया गया था. याद दिला कर कहा गया था कि प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए! तो क्या देश के प्रधानमंत्री के लिए प्रोटोकॉल का कोई नियम नहीं है, उन्हें भी तो स्वप्रेरणा से इस बात को महसूस करना चाहिए कि वह इस महान देश के एक प्रधानमंत्री हैं और उनका भी कुछ धर्म है, एक प्रोटोकॉल है. छोटी-छोटी बात पर उन्हें आंसू नहीं बहाना चाहिए इसका गलत संदेश देश की जनता में जाता है.

मगर, नरेंद्र दामोदरदास मोदी बारंबार अपने आप जनता की सपोर्ट प्राप्त करने के लिए देश की जनता की संवेदना और प्यार पाने के लिए आंसू बहाने लगते हैं.

जिस तरह एक अभिनेता का व्यवहार होता है आंसू बहाने के दृश्य को जीवंत बना करके तालियां बटोर लेता है, अपने आप को एक अच्छा महान अभिनेता सिद्ध करना चाहता है वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी भी बड़ी ही चतुराई के साथ देश की जनता को भ्रमित करना चाहते हैं यही कारण है कि उनके आंसुओं को मगरमच्छ के आंसू जैसा बता करके उनका देश भर में खूब मजाक उड़ा है.

बंदर और मगरमच्छ की कहानी को याद किया है – शायद आपको भी मगरमच्छ और बंदर कहानी याद होगी. मगरमच्छ की पत्नी बंदर का मीठा कलेजा खाना चाहती है क्योंकि जिस पेड़ पर बंदर रहता है और जामुन खाता है तो उसका हृदय कितना मीठा होगा ? और पत्नी के दबाव दबाव में बंदर का कलेजा लेकर मगरमच्छ जब पानी में आगे बढ़ता है और बंदर चतुराई के साथ कहता है मेरा हृदय तो जामुन के पेड़ पर‌ ही रह गया. मगरमच्छ बंदर को वापिस पेड़ पर छोड़ देता है तो बंदर कहता है कि अरे मूर्ख तेरी मेरी दोस्ती आज से खत्म….!

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अब सवाल लाख टके का यह है कि देश की जनता को क्या कोरोंना संक्रमण काल की पीड़ा, त्रासदी से सबक सीखा है या फिर आंसुओं में बह जाती है.

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