राहुल वैद्य और दिशा परमार की शादी की तैयारियां हुई शुरू, Video वायरल

बिग बॉस फेम राहुल वैद्य इन दिनों अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छाये हुए हैं. वह जल्द ही  दिशा परमार संग शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर ये खुशखबरी फैंस के साथ शेयर की. राहुल और दिशा 16 जुलाई को सात फेरे लेंगे.

बताया जा रहा है कि इस शादी में दोनों परिवार के सदस्य और कुछ करीबी दोस्त शामिल होंगे. राहुल वैद्य और दिशा की शादी की तैयारियां जोरों-शोरों के साथ चल रही है. दरअसल हाल ही में राहुल ने प्री-वेडिंग फन टाइम की एक झलक दिखाई है.

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राहुल वैद्य ने अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक बूमरैंग वीडियो शेयर किया है. इसमें उनके परिवार और दोस्तों को एक साथ डांस करते हुए देखा जा सकता है. राहुल ने पोस्ट को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा  आखिरकार यह हो रहा है!

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उन्होंने एक दूसरा वीडियो शेयर किया, जिसमें लिखा था #THEDISHULWEDDING. फैंस को राहुल और दिशा की शादी का बेसब्री से इंतजार है.

एक इंटरव्यू के अनुसार राहुल ने कहा था कि दिशा और वह दोनों हमेशा से ही घनिष्ठ संबंध के पक्ष में रहे हैं. राहुल ने ये भी कहा कि दिशा और मैं हमेशा एक करीबी शादी के पक्ष में रहे हैं. हम चाहते हैं कि हमारे प्रियजन इस दिन शामिल हों और हमें आशीर्वाद दें.

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टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में आए दिन नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे कहानी एक नया मोड़ ले रही है. कहानी के नए एंगल में सई घरवालों का दिल जीतने में कामयाब हो रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड में दर्शकों को एंटरटेनमेंट का हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिलने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ में अब तक आपने देखा कि सई कॉलेज फंक्शन में अपने दोस्त आजिंक्य के साथ धमाकेदार डांस करती हुई दिखाई दे रही है. तो वहीं उधर विराट ऑडियंस में बैठा सई के साथ डांस करने की इमेजिन कर रहा है.

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शो में ये भी दिखाया गया सई को ट्रॉफी मिलती है. इस दौरान वह सबके सामने भवानी से माफी मांगती है. वह ये भी कहती है कि भवानी के हाथों से अपनी जीत की ट्रॉफी लेना चाहती है. ये बात सुनकर भवानी खूब खुश होती है.

 

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि विराट कहेगा कि वो उसका पति है और वो अपनी पत्नी का ख्याल रख सकता है. ऐसे में सई विराट से कहेगी कि उसे किसी की जरूरत नहीं है. सई की बातें सुनकर विराट को काफी गुस्सा आएगा.

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विराट ये भी कहेगा कि सई और आजिंक्य की दोस्ती से उसे दिक्कत है. ऐसे में सई को अपनी दोस्ती तोड़नी होगी. विराट का ये बदला अंदाज देखकर भवानी भी हैरान रह जाएगी. तो उधर पाखी सई और विराट की जासूसी करेगी. और वह चोरी-छिपे देख लेगी कि सई और विराट के प्यार पढ रहा है. ये सब देखकर उसका गुस्सा सातवें आसामान पर होगा.

अंधविश्वास: दहशत की देन कोरोना माता

लेखक- शाहिद नकवी

जानकारी के मुताबिक, शुकुलपुर जूही गांव में कोरोना वायरस से 3 लोगों की मौत हो गई थी. इस के बाद वहां के लोगों में दहशत फैल गई.

इस पर गांव के लोकेश श्रीवास्तव ने 7 जून, 2021 को कोरोना माता का मंदिर बनवाने का फैसला किया. इस के लिए उन्होंने और्डर पर मूर्ति बनवाई और उसे गांव के एक चबूतरे के पास नीम के पेड़ के बगल में ही रखवा दिया.

इस के बाद कोरोना माता मंदिर में  2 समय होने वाली पूजा में भक्तों की भीड़ लगने लगी.

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वहां लिखा था कि कृपया दर्शन से पहले मास्क लगाएं, हाथ धोएं, दूर से दर्शन करें. इतना ही नहीं, एक तरफ लिखा गया कि कृपया सैल्फी लेते समय मूर्ति को न छुएं, तो दूसरी तरफ लिखा था कि कृपया पीले रंग के ही फूल, फल, कपड़े, मिठाई, घंटा वगैरह चढ़ाएं. मंदिर पर दर्शन करने आ रहे लोग ‘कोरोना माई की जय’ बोल रहे थे.

जब इस मंदिर की जानकारी प्रशासन को हुई, तो उस के हाथपैर फूल गए. मामला अंधविश्वास से जुड़ा होने के चलते पुलिस ने इसे गिराने का फैसला किया. वह जेसीबी ले कर गांव पहुंची और कोरोना माता की मूर्ति व मंदिर समेत बोर्ड को भी जमींदोज कर दिया. प्रशासन ने सारा मलबा गांव से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर फिंकवा दिया.

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हैरानी की बात तो यह है कि अंधविश्वास के चलते तैयार किए गए इस मंदिर में दूरदराज के लोग भी पहुंच रहे थे. वे डाक्टरों से ज्यादा ऐसे मंदिर और कोरोना माता पर यकीन कर रहे थे, जो उन का कभी भला नहीं करेंगे.

इस तरह के अंधविश्वास नए नहीं हैं. भारत में जब भी कोई महामारी फैली है, लोगों ने उस महामारी के नाम पर देवीदेवता बना दिए. छोटी माता, बड़ी माता बीमारियों को देख कर ही बनाई गई थीं.

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर लोग पढ़ेलिखे नहीं हैं और सुनीसुनाई बातों पर बड़ी जल्दी यकीन कर लेते हैं. कहीं गणेश के दूध पीने की अफवाह फैल जाती है, तो लोग दूध खरीद कर उसे मूर्तियों पर बहा देते हैं, तो कहीं पीरफकीरों के मजार पर लोग बिना सोचेसमझे चढ़ावा चढ़ा देते हैं, ताकि वे बीमारियों से बच सकें. लोगों की यह सोच गलत है.

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Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

पूजा अस्के अपने घर के रोजमर्रा के काम कर रही थी, तभी किसी ने दरवाजे पर घंटी बजाई. ‘कौन आ गया’ कहते हुए वह दरवाजे

की ओर बढ़ी. जैसे ही उस ने फ्लैट का दरवाजा खोला तो सामने खड़े 2 युवकों को देख कर उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी. क्योंकि दोनों युवक उस के देवर थे. पूजा दरवाजा बंद कर दोनों को अंदर कमरे में ले आई. दोनों युवकों में से एक का नाम राहुल अस्के था, जो उस का सगा देवर था जबकि दूसरे का नाम नवीन अस्के था. नवीन राहुल की मौसी का बेटा था. अकसर दोनों कहीं भी साथ ही आतेजाते थे.

जबलपुर के धार मोहल्ले का रहने वाला राहुल अस्के प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर था. जबकि उस का बड़ा भाई जितेंद्र अस्के मध्य प्रदेश पुलिस की एक बटालियन में कंपनी कमांडर था. पूजा जितेंद्र अस्के की ही दूसरी पत्नी थी. जितेंद्र पूजा के साथ इंदौर की मल्हारगंज इलाके में स्थित कमला नेहरू कालोनी के रामदुलारी अपार्टमेंट में रहता था. दोनों अपनी भाभी से मिलने आए थे. पूजा उन्हें कमरे में बिठा कर किचन में चली गई. वह थोड़ी देर में दोनों देवरों और अपने लिए ट्रे में 3 प्याली चाय और नमकीन ले कर लौटी.

तीनों साथ बैठ कर नमकीन के साथ चाय की चुस्की ले रहे थे. चाय खत्म हुई तो पूजा राहुल की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कैसे हो देवरजी.’’

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‘‘ठीक हूं भाभी. आप बताओ, कैसी हो?’’

‘‘एकदम चकाचक, फर्स्टक्लास हूं.’’ चहक कर पूजा बोली, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं? उन की तबीयत कैसी है? घर पर सब खैरियत तो हैं न?’’

‘‘हां…हां, सब ठीक हैं भाभी, और मम्मीपापा भी एकदम ठीकठाक हैं.’’

‘‘और आप..?’’ पूजा ने पूछा.

‘‘एकदम चंगा, शेर की माफिक…’’

राहुल ने इस अंदाज में जवाब दिया था कि सभी अपनी हंसी नहीं रोक पाए और ठहाका लगाने लगे.

कई महीने बाद राहुल अपनी भाभी पूजा से मिलने आया था तो पूजा भी उन के स्वागत में कसर नहीं छोड़ रही

थी. दिल खोल कर उन के आवभगत में लगी रही.

बीचबीच में देवर और भाभी के बीच हंसीमजाक भी होता रहा. 4-5 घंटे का समय कैसे बीत गया, किसी को पता ही नहीं चला. यह बात 24 अप्रैल, 2021 की दोपहर की है.

बात उसी दिन शाम 7 बजे की है. पूजा की पड़ोसन सीमा उस से मिलने उस के कमरे पर पहुंची तो देखा दरवाजे के दोनों पट आपस में भिड़े हुए हैं.

पूजा इतनी देर तक अपना दरवाजा कभी बंद कर के नहीं रखती थी. यह देख कर सीमा को थोड़ा अजीब लगा. फिर बाहर दरवाजे से उस ने कई बार पूजा को आवाज लगाई लेकिन भीतर से कोई हरकत नहीं हुई तो उसे और भी अजीब लगा. सीमा ने दरवाजे को हलका सा धक्का दिया तो किवाड़ अंदर की ओर खुल गए. फिर आवाज लगाती हुई वह उस के कमरे में पहुंच गई, जहां बिस्तर पर पूजा सोती हुई नजर आ रही थी.

सीमा ने फिर से उसे आवाज लगाई लेकिन पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे कुछ शक हुआ. उस ने उसे हिलाडुला कर देखा तो शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वह बिस्तर पर अचेत पड़ी थी और उस का शरीर गरम था. यह देख कर सीमा बुरी तरह घबरा गई और वहां से अपने कमरे में वापस लौट आई.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पूजा के घर पर उस के अलावा कोई नहीं था. उस का पति जितेंद्र अस्के जबलपुर स्थित अपने घर गया था.

सीमा ने पूजा के बेहोश होने की जानकारी उस के पति जितेंद्र अस्के को फोन पर दे दी थी. इस के बाद सीमा ने आसपास के फ्लैटों में रहने वाले अपने जानकारों को पूजा के बेहोश होने की जानकारी दे दी. लोगों ने पूजा की हालत देखते हुए फोन कर सरकारी एंबलेंस बुला कर पूजा को अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने पूजा को मृत घोषित कर दिया.

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उधर पत्नी की बेहोशी की जानकारी पा कर जितेंद्र अस्के घबरा गया और उसी समय प्राइवेट साधन से जबलपुर से इंदौर चल दिया. सुबह होतेहोते वह इंदौर पहुंच गया था.

जैसे ही अस्पताल में उसे पत्नी की मौत की जानकारी मिली तो वह वहां बिलख कर रोने लगा. लोगों ने किसी तरह उसे सांत्वना दे कर चुप कराया तो उस ने पूजा की मौत की सूचना अपनी ससुराल वालों को दी तो सुन कर जैसे उन के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई.

पूजा की मौत पर सहसा उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कल तक तो वह अच्छीभली थी, अचानक उस की मौत कैसे हो सकती है. जरूर दाल में कुछ काला है.

पूजा की छोटी बहन दुर्गा को भी बहन की मौत पर शक हो रहा था. वह घर वालों को साथ ले कर अस्पताल पहुंची, जहां पूजा की बौडी पड़ी थी. बहन की अचानक मौत पर  दुर्गा अपने जीजा जितेंद्र अस्के से भिड़ गई.

वह यह कतई मानने को तैयार नहीं थी कि उस की बहन की मौत अचानक हो सकती है. क्योंकि वह बेहद जिंदादिल इंसान थी. वह भलीचंगी थी. उस की कोख में 8 माह का बच्चा पल रहा था. बच्चे को ले कर वह बेहद संजीदा थी. इस मौत को वह चीखचीख कर हत्या बता रही थी.

अस्पताल में हंगामा खड़ा होता देख प्रशासन ने पुलिस को सूचित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर थोड़ी देर बाद वहां मल्हारगंज थाने की पुलिस आ गई थी. अस्पताल उसी थानाक्षेत्र में आता था. पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले ली. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पूजा के गले पर कुछ निशान नजर आए. इस से पुलिस को भी मामला संदिग्ध लगा तो पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई. रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या किए जाने का उल्लेख किया गया था. यानी मृतका की बहन दुर्गा का शक सच था. पूजा की हत्या की गई थी.

पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी की हत्या का आरोप जिस व्यक्ति पर लगाया जा रहा था वह उस का पति जितेंद्र अस्के था. जितेंद्र अस्के कोई मामूली व्यक्ति नहीं था. वह मध्य प्रदेश पुलिस की 34वीं बटालियन का कंपनी कमांडर था. एक पुलिस अफसर पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप मढ़ा जा रहा था. फिर क्या था, शक के आधार पर 26 अप्रैल, 2021 को मल्हारगंज के थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर ने पूछताछ के लिए जितेंद्र अस्के को थाने बुला लिया.

उसी समय पूजा की बहन दुर्गा भी थाने पहुंची. उस ने थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर को बताया कि घटना से एक दिन पहले शाम 7 से 8 बजे के बीच में फोन पर उस की पूजा से बात हुई थी. तब पूजा ने बताया था कि जितेंद्र उस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. चरित्र पर लांछन लगा कर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

और तो और जीजा ने अपनी पहली शादी के बारे में दीदी से छिपाया था, उन्हें सच्चाई नहीं बताई थी कि वह पहले से शादीशुदा हैं और 2 बच्चों के पिता भी. दुर्गा के बयान ने थाने में सनसनी फैला दी थी. उस के बयान में कितनी सच्चाई थी, यह जांच का विषय था.

फिलहाल, दुर्गा के बयान ने पूजा हत्याकांड से रहस्य का परदा उठा दिया था. पूजा की हत्या निश्चित ही 2 औरतों के बीच की जंग की उपज थी. दोनों औरतों की लड़ाई ने पूजा को मौत के मुंह में ढकेला था.

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पुलिस हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए जितेंद्र से पूछताछ कर रही थी. कंपनी कमांडर जितेंद्र ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा कि जिस दिन घटना घटी थी उस दिन वह जबलपुर स्थित अपने गांव आया था. पत्नी की हत्या किस ने की, उसे नहीं पता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जितेंद्र को इस हिदायत के साथ छोड़ दिया कि वह शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाए और कहीं जाने से पहले इस की सूचना थाने को देनी होगी.

जितेंद्र को छोड़ने के बाद थानाप्रभारी प्रीतम ठाकुर ने उस की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उस के पीछे पुलिस लगा दी. दुर्गा की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया और जांच की काररवाई शुरू कर दी.

इंसपेक्टर प्रीतम सिंह ठाकुर हत्या की जांच करने के लिए अपनी टीम के साथ जितेंद्र के आवास रामदुलारी अपार्टमेंट पहुंचे. पुलिस ने कमरे की गहराई से छानबीन की.

छानबीन के दौरान पुलिस को कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लगा, जिस से वह हत्यारों तक पहुंचती किंतु पड़ोसियों से की गई पूछताछ से इतना जरूर पता चल गया था कि घटना वाले दिन पूजा से मिलने उस के 2 देवर यहां आए थे. कुछ घंटों बाद वे उस के घर से चले गए थे.

देवरों के जाने के बाद से पूजा के कमरे का दरवाजा लगातार बंद आ रहा था. इस का मतलब पूजा की हत्या उस के देवरों ने मिल कर की थी. हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए वे मौके से फरार हो गए. अब तो उन दोनों के गिरफ्तार होने के बाद ही सच का पता चल सकता था.

इस के बाद पुलिस ने अपने मुखबिर तंत्र से पता लगा लिया कि कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के की 2 शादियां हुई थीं. पूजा आस्के उस की दूसरी पत्नी थी और उस ने प्रेम विवाह किया था. धोखे में रखने की वजह से दूसरी पत्नी ने पति जितेंद्र की नाक में दम कर दिया था और पहली पत्नी को छोड़ने के लिए उस पर निरंतर दबाव बनाए हुए थी.

बहरहाल, थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने घटना की सारी सच्चाई एसपी (वेस्ट) महेशचंद जैन और एएसपी (वेस्ट) प्रशांत चौबे को दी तो एसपी महेशचंद ने एएसपी के नेतृत्व में आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एक टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर को भी शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने जबलपुर के धार से पूजा के दोनों देवरों राहुल अस्के और नवीन अस्के को हिरासत में ले लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की तो राहुल अस्के ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. हत्या करने में नवीन ने बराबर का सहयोग किया था. उस ने बताया कि हत्या की साजिश बड़े भैया जितेंद्र अस्के के सामने रची गई थी.

अगले भाग में पढ़ें- पूजा के घरवाले उससे खुश क्यों नहीं थे?

साहब- भाग 2: आखिर शादी के बाद दिपाली अपने पति को साहब जी क्यों कहती थी

महरू ने प्रस्ताव रखा कि वह झाड़ूपोंछा करने के साथसाथ खाना भी बना दिया करेगी, ताकि रमेश को अच्छा भोजन मिल सके.

रमेश ने पूछा, ‘‘भोजन बनेगा तो बरतन भी साफ करने होंगे. उन का अलग से कितना देना होगा?’’

हो सकता है, उसे बुरा लगा हो. कुछ पल तक वह कुछ नहीं बोली. शायद यह सोच रही हो कि इतने अपनेपन के बाद भी पैसों की बात कर रहे हैं.

रमेश ने सुधार कर अपनी बात कही, ‘‘पैसों की जरूरत तो सब को होती है. दुनिया का हर काम पैसे से होता है. फिर तुम्हारी अपनी जरूरतें, तुम्हारी बेटी की पढ़ाईलिखाई. इन सब के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ेगी ही. मैं मुफ्त में कोई काम कराऊं, यह मुझे खुद भी अच्छा नहीं लगेगा.’’

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‘‘जो आप को देना हो, दे देना.’’

‘‘फिर भी कितना…? मुझे साफसाफ पता रहे ताकि मैं अपना बजट उस हिसाब से बना सकूं.’’

रमेश की बजट वाली बात सुन कर महरू ने कहा, ‘‘साहब, ऐसा करते हैं कि एक की जगह 3 लोगों का खाना बना लेंगे. समय और पैसे की भी बचत होगी. मैं अपने और बेटी के लिए खाना यहीं से ले जाऊंगी.’’

रमेश ने कहा, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो.’’

इस के बाद जिस दिन महरू न आ पाती, उस की बेटी आ जाती. वह खाना बना कर रमेश को खिलाती और साफसफाई कर के अपने और मां के लिए भोजन ले जाती. रमेश को मांबेटी से लगाव सा हो गया था.

एक दिन महरू की बेटी आई. उस का चेहरा कुछ पीला सा दिख रहा था.

रमेश ने पूछा, ‘‘आज क्या हो गया मां को?’’

‘‘बाहर गई हैं. नानी बीमार हैं.’’

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद रमेश ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘दीपाली.’’

दीपाली धीरेधीरे झाड़ूपोंछा करने लगी. बीचबीच में उस के कराहने की आवाज से रमेश चौंक गए.

‘‘क्या बात है? क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं साहब,’’ दीपाली कराहते हुए बोली.

थोड़ी देर में आह के साथ दीपाली के गिरने की आवाज आई. रमेश भाग कर रसोईघर में गए. दीपाली जमीन पर पड़ी थी. वे घबरा गए. उन्होंने उस के माथे पर हाथ रखा. माथा गरम था. वे समझ गए कि इसे तेज बुखार है.

रमेश ने उसे अपने हाथों से उठा कर अपने ही बिस्तर पर लिटा कर अपनी चादर ओढ़ा दी. तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने आ कर दीपाली को एक इंजैक्शन लगाया और कुछ दवाएं दीं.

रमेश के पास डबल बैड का एक ही बैडरूम था. दीपाली तेज बुखार में पड़ी हुई थी. वे दिनभर उस के पास बैठे रहे. उस के माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखते रहे. उस के लिए दलिया बनाया. उस के चेहरे को देखते रहे.

रमेश के मन में मोहमाया के फल खिलने लगे. सालों से बंद दिल के दरवाजे खुलने लगे. रेगिस्तान में बारिश होने लगी. जब उस के प्रति उन का लगाव जयादा होने लगा तो वे वहां से हट गए. लेकिन उस की चिंता उन्हें फिर खींच कर उस के पास ले आती.

रमेश ने अपनेआप को संभाला और डबल बैड के दूसरी ओर चादर ओढ़ कर खुद भी सो गए.

दीपाली तेज बुखार में तपती ‘मांमां’ बड़बड़ाने लगी. उस की आवाज से रमेश की नींद खुल गई. वे उस के पास पहुंचे और उस के माथे पर हाथ रख कर उसे बच्चे की तरह सहलाने लगे.

तभी दीपाली का चेहरा रमेश के सीने में जा धंसा. उस का एक पैर उन के पैर पर था. वह ऐसे निश्चिंत थी, मानो मां से लिपट कर सो रही हो.

रमेश की हालत कुछ खराब थी. आखिर उन की इतनी उम्र भी नहीं हुई थी कि 16 साल की लड़की उन की देह में दौड़ते खून का दौरा न बढ़ाए.

रमेश के शरीर में हवस की चींटियां रेंगने लगीं. अच्छी तो वह उन्हें पहले भी लगती थी, लेकिन प्यार की नजर से कभी नहीं देखा था. लेकिन आज जब इस तनहाई में एक कमरे में एक बिस्तर पर एक 16 साल की सुंदरी रमेश से लिपट कर सो रही थी, तो मन में बुरे विचार आना लाजिमी था.

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रमेश उसे लिपटाए नींद की गोद में समा गए. सुबह जब उन की नींद खुली तो दीपाली बिस्तर पर नहीं थी. रमेश ने आवाज दी तो वह हाथ में झाड़ू लिए सामने आ गई.

‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘झाड़ू लगा रही हूं.’’

‘‘तुम्हें आराम की जरूरत है.’’

‘‘मैं अब ठीक हूं.’’

रमेश ने उसे पास बुला कर उस के माथे पर हाथ रखा. बुखार उतर चुका था.

‘‘अभी 2 दिन की दवा लेनी और बाकी है. अगर दवा पूरी नहीं ली, तो बुखार फिर से आ सकता है.’’

‘‘जी,’’ कह कर दीपाली काम में लग गई.

कभी ऐसा होता है कि मरीज पहली खुराक में ही ठीक हो जाता है, फिर इस में स्नेह भी काम करता है.

‘‘साहब, खाना लगा दिया है,’’ जब दीपाली ने यह कहा तो रमेश खाने की टेबल पर पहुंच गए. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारी मां तो है नहीं. तुम भी यहीं खाना खा लो.’’

‘‘मैं बाद में खा लूंगी,’’ दीपाली ने शरमाते हुए कहा.

‘‘क्यों… कल तो मुझ से लिपटी थी. अब साथ में खाना खाने में शर्म आ रही है…’’

परख- भाग 1: प्यार व जनून के बीच थी मुग्धा

मुग्धा कैंटीन में कोल्डड्रिंक और सैंडविच लेने के लिए लाइन में खड़ी थी कि अचानक कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर यह चौंक कर पलटी तो पीछे प्रसाद खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘तुम?’’ मुग्धा के मुख से अनायास ही निकला.

‘‘हां मैं, तुम्हारा प्रसाद. पर तुम यहां क्या कर रही हो?’’ प्रसाद ने मुसकराते हुए प्रश्न किया.

‘‘जोर से भूख लगी थी, सोचा एक सैंडविच ले कर कैब में बैठ कर खाऊंगी,’’ मुग्धा हिचकिचाते हुए बोली.

‘‘चलो, मेरे साथ, कहीं बैठ कर चैन से कुछ खाएंगे,’’ प्रसाद ने बड़े अपनेपन से उस का हाथ पकड़ कर खींचा.

‘‘नहीं, मेरी कैब चली जाएगी. फिर कभी,’’ मुग्धा ने पीछा छुड़ाना चाहा.

‘‘कैब चली भी गई तो क्या? मैं छोड़ दूंगा तुम्हें,’’ प्रसाद हंसा.

‘‘नहीं, आज नहीं. मैं जरा जल्दी में हूं. मां के साथ जरूरी काम से जाना है,’’ मुग्धा अपनी बारी आने पर सैंडविच और कोल्डड्रिंक लेते हुए बोली. उसे अचानक ही कुछ याद आ गया था.

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‘‘क्या समझूं मैं? अभी तक नाराज हो?’’ प्रसाद ने उलाहना दिया.

‘‘नाराज? इतने लंबे अंतराल के बाद तुम्हें देख कर कैसा लग रहा है, कह नहीं सकती मैं. वैसे हमारी भावनाएं भी सदा एकजैसी कहां रहती हैं. वे भी तो परिवर्तित होती रहती हैं. ठीक है, फिर मिलेंगे. पर इतने समय बाद तुम से मिल कर अच्छा लगा,’’ मुग्धा पार्किंग में खड़ी कैब की तरफ भागी.

कैब में वह आंखें मूंदे स्तब्ध बैठी रही. समझ में नहीं आया कि यह सच था या सपना. 3 वर्ष बाद प्रसाद कहां से अचानक प्रकट हो गया और ऐसा व्यवहार कर रहा था मानो कुछ हुआ ही नहीं. हर एक घटना उस की आंखों के सामने जीवंत हो उठी थी. कितना जीजान से उस ने प्रसाद को चाहा था. उस का पूरा जीवन प्रसादमय हो गया था. उस के जीवन पर मानो प्रसाद का ही अधिकार हो गया था. कोई भी काम करने से पहले उस की अनुमति जरूरी थी. घरबाहर सभी मानते थे कि वे दोनों एकदूजे के लिए ही बने थे.

उस ने भी प्रसाद के साथ अपने भावी जीवन की मोहक छवि बना रखी थी. पर एक दिन अचानक उस के सपनों का महल भरभरा कर गिर गया था. उस के कालेज के दिनों का मित्र शुभम उसे एक पार्टी में मिल गया था. दोनों पुरानी बातों को याद कर के आनंदविभोर हुए जा रहे थे. तभी प्रसाद वहां आ पहुंचा था. उस की भावभंगिमा से उस की अप्रसन्नता साफ झलक रही थी. उस की नाराजगी देख कर शुभम भी परेशान हो गया था.

‘‘प्रसाद, यह शुभम है, कालेज में हम दोनों साथ पढ़ते थे,’’ हड़बड़ाहट में उस के मुंह से निकला था.

‘‘वह तो मैं देखते ही समझ गया था. बड़ी पुरानी घनिष्ठता लगती है,’’ प्रसाद व्यंग्य से बोला था. बात बढ़ते देख कर शुभम ने विदा ली थी पर प्रसाद का क्रोध शांत नहीं हुआ था. ‘‘तुम्हें शुभम से इस तरह पेश नहीं आना चाहिए था. वह न जाने क्या सोचता होगा,’’ मुग्धा ने अपनी अप्रसन्नता प्रकट की थी.

‘‘ओह, उस की बड़ी चिंता है तुम्हें. पर तुम्हारा मंगेतर क्या सोचेगा, इस की चिंता न के बराबर है तुम्हें?’’

‘‘माफ करना अभी मंगनी हुई नहीं है हमारी. और यह भी मत भूलो कि भविष्य में होने वाली हमारी मंगनी टूट भी सकती है.’’

‘‘मंगनी तोड़ने की धमकी देती हो? तुम क्या तोड़ोगी मंगनी, मैं ही तोड़ देता हूं,’’ प्रसाद ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया था.

क्रोध और अपमान से मुग्धा की आंखें छलछला आई थीं. ‘‘मैं भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकती हूं, पर मैं व्यर्थ ही कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती.’’ मुग्धा पार्टी छोड़ कर चली गई थी.

कुछ दिनों तक दोनों में तनातनी चली थी.दोनों एकदूसरे को देखते ही मुंह फेर लेते. मुग्धा प्रतीक्षा करती रही कि कभी तो प्रसाद उस से क्षमा मांग कर उसे मना लेगा

पर वह दिन कभी नहीं आया. फिर अचानक ही प्रसाद गायब हो गया. मुग्धा ने उसे ढूंढ़ने में दिनरात एक कर दिए पर कुछ पता नहीं चला. दोनों के सांझा मित्र उसे दिलासा देते कि स्वयं ही लौट आएगा. पर मुग्धा को भला कहां चैन था.

धीरेधीरे मुग्धा सब समझ गई थी. प्रसाद केवल प्यार का दिखावा करता था. सच तो यह था कि प्रसाद के लिए अपने अहं के आगे किसी की भावना का कोई महत्त्व था ही नहीं. पर धीरेधीरे परतें खुलने लगी थीं. वह अपनी नौकरी छोड़ गया था. सुना है अपने किसी मित्र के साथ मिल कर उस ने कंपनी बना ली थी. लंबे समय तक वह विक्षिप्त सी रही थी. उसे न खानेपीने का होश था न ही पहननेओढ़ने का. यंत्रवत वह औफिस जाती और लौट कर अपनी ही दुनिया में खो जाती. उस के परिवार ने संभाल लिया था उसे.

‘कब तक उस का नाम ले कर रोती रहेगी बेटे? जीवन के संघर्ष के लिए स्वयं को तैयार कर. यहां कोई किसी का नहीं होता. सभी संबंध स्वार्थ पर आधारित हैं,’ उस की मां चंदा गहरी सांस ले कर बोली थीं.

‘मैं तो कहता हूं कि अच्छा ही हुआ जो वह स्वयं ही भाग गया वरना तेरा जीवन दुखमय बना देता,’ पापा अपने चिरपरिचित अंदाज में बोले थे.

‘जी पापा.’ वह केवल स्वीकृति में सिर हिलाने के अतिरिक्त कुछ नहीं बोल पाई थी.

‘तो ठीक है. तुम ने अपने मन की कर के देख ली. एक बार हमारी बात मान कर तो देख लो. तुम्हारे सपनों का राजकुमार ला कर सामने खड़ा कर देंगे.’

‘उस की आवश्यकता नहीं है, पापा. मुझे शादी की कोई जल्दी भी नहीं है. कोई अपनी पसंद का मिल गया तो ठीक है वरना मैं जैसी हूं, ठीक हूं.’

‘सुना तुम ने? यह है इस का इरादा. अरे, समझाओ इसे. हम सदा नहीं बैठे रहेंगे,’ उस की मां चंदा बदहवास सी बोलीं.

‘मां, इतना परेशान होने की आवश्यकता नहीं है. मेरे घर आते ही आप दोनों एक ही राग ले कर बैठ जाते हो. मैं तो सोचती हूं, कहीं और जा कर रहने लगूं.’

‘बस, यही कमी रह गई है. रिश्तेदारी में सब मजाक उड़ाते हैं पर तुम इस की चिंता क्यों करने लगीं,’ मां रो पड़ी थीं.

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‘मां, क्यों बात का बतंगड़ बनाती हो. जीवन में समस्याएं आती रहती हैं. समय आने पर उन का हल भी निकल आता है,’ मुग्धा ने धीरज बंधाया.

पता नहीं हमारी समस्या का हल कब निकलेगा. मुझे तो लगता है तुम्हें उच्चशिक्षा दिला कर ही हम ने गलती की है. तुम्हारी बड़ी बहनों रिंकी और विभा के विवाह इतनी सरलता से हो गए पर तुम्हारे लिए हमें नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. विभा कल ही आई थी, तुम औफिस में थीं, इसलिए मुझ से ही बात कर के चली गई. उस का देवर परख इंगलैंड से लौट आया है. अर्थशास्त्र में पीएचडी कर के किसी बैंक में बड़ा अफसर बन गया है. तुम्हारे बारे में पूछताछ कर रहा था. तुम कहो तो बात चलाएं.’

Satyakatha- सूदखोरों के जाल में फंसा डॉक्टर: भाग 2

आशीष नेमा अपने साथियों भागचंद यादव, राहुल जैन, धर्मेंद्र जाट, सुनील जाट, अजय जाट के साथ मिल कर सूदखोरी का काम करता था. स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी जरूरतमंद इन के चंगुल में फंस जाता, उसे ये सूदखोर दिन दूना रात चौगुना ब्याज लगा कर तबाह कर देते. पैसे न देने पर घर में घुस कर परिवार की महिलाओं की बेइज्जती करते और जान से मारने की धमकी देते.

नरसिंहपुर और आसपास के इलाके के न जाने कितने लोग इन के कर्ज में दब कर बरबाद हो चुके थे. इन सूदखोरों के पास कर्ज देने का कोई वैधानिक लाइसैंस नहीं था. ये तो केवल अपने रसूख और दबंगई के चलते यह धंधा कर रहे थे.

इन सब बातों से अंजान डा. सिद्धार्थ अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इन सूदखोरों से कर्ज लेने लगे. वे मानते थे कि बैंक से सस्ता लोन मिला है चुक जाएगा. लेकिन वे भूल कर बैठे कि वे उन ठगों के गिरोह की  गिरफ्त में आ गए हैं, जहां कितने ही हाथपैर मारो, दलदल में फंसते जाना है.

सूदखोरों को तो एक दुधारू गाय हाथ आ गई थी. सूदखोरों ने शुरुआत में उन्हें डेढ़दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्जा दिया, बाद में यह ब्याज चक्रवृद्धि की तर्ज पर लगने लगा. एक समय ऐसा आया, जब डा. सिद्धार्थ से सूदखोर 120 फीसद तक ब्याज वसूलने लगे. कुछ अवसरों पर तो पैनल्टी की राशि 1 लाख रुपए प्रतिदिन तक हो गई थी.

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सिद्धार्थ को सूदखोरों के चंगुल से बचाने के लिए पूरा परिवार मजबूती के साथ खड़ा तो हुआ लेकिन भ्रष्ट सिस्टम के आगे उन की एक न चली.

एक संभ्रांत परिवार का चिराग डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में ऐसे फंसे कि उन के पास दुनिया छोड़ने का ही इकलौता विकल्प रह गया था. अपनी धनदौलत, मानसम्मान, जीवन सब कुछ गंवाने के बाद भी वह सूदखोरों के कर्जे तले दबते रहे. खास बात यह है कि बरबादी के इस चक्रव्यूह की रचना आशीष नेमा नाम के उस शख्स ने की थी, जिस ने डा. सिद्धार्थ से अपनी जानपहचान को दोस्ती का रूप दिया, फिर उन्हें लुटवाने के लिए घाघ, माफिया सूदखोरों के पास ले गया.

कोतवाली थाना पुलिस द्वारा इस मामले की विवेचना में यह बात सामने आई कि नरसिंहपुर शहर में लगभग 20 सूदखोरों से संबंध रखने वाला मास्टरमाइंड गुलाब चौराहा निवासी आशीष नेमा था.

डा. सिद्धार्थ को सूदखोरों से मिलवाने का काम आशीष नेमा ने किया था. इस के पहले आशीष ने सिद्धार्थ से जानपहचान बढ़ा कर दोस्ती की. दोस्ती के चलते आशीष ने डा. सिद्धार्थ का दिल जीत लिया था.

दरअसल आशीष को यह बात पता थी कि डा. सिद्धार्थ को पैसों की जरूरत है. इसी बात का फायदा उठा कर उस ने पहले छोटीमोटी रकम दे कर सिद्धार्थ का विश्वास हासिल कर लिया. छोटीमोटी मदद के बाद आशीष और सौरभ रिछारिया ने शहर के नामीगिरामी सूदखोरों से मोटी रकम ब्याज पर उठवा दी.

आशीष और सौरभ रिछारिया ने कर्जा तो दिला दिया, लेकिन ये सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. अकसर दोनों सिद्धार्थ से ब्लैंक चैक साइन करवा के रख लेते थे और फिर उन के खिलाफ चैक बाउंस का मामला दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से अनापशनाप तरीके से वसूली करने लगे.

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डा. सिद्धार्थ ने सेकेंडहैंड कारों को बेचने के लिए महिंद्रा फस्ट चौइस नाम से एक एजेंसी की शुरुआत की. इस के लिए उन्होंने 50 लाख रुपए का कर्जा आशीष के माध्यम से दूसरे सूदखोरों से लिया. इस सूदखोरी से मिलने वाली ब्याज की रकम में आशीष नेमा भी पार्टनर रहता. डा. सिद्धार्थ पर जब कर्जा बढ़ता गया तो आशीष नेमा भी अपने असली रंग में आ गया.

डा. सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर आशीष ब्याज पर ब्याज वसूलने का काम करने लगा. डा. सिद्धार्थ अपने क्लीनिक से होने वाली सारी आमदनी इन्ही सूदखोरों को देते रहे, मगर उन का कर्जा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि सूदखोरों ने ब्याज की दर 20 से ले कर 120 फीसद तक कर दी थी. उन की एजेंसी की सभी कारें भी सूदखोरों ने हथिया लीं.

पुलिस घटना के सभी पहलुओं की जांच में लगी थी. पुलिस ने जब अपने थाने के रिकौर्ड की पड़ताल की तो एक अहम जानकारी हाथ लगी. करीब 3 साल पहले डा. तिगनाथ फैमिली द्वारा नरसिंहपुर के कुछ सूदखोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी.

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6 मई, 2018 को तिगनाथ परिवार के सभी सदस्यों ने तत्कालीन एसपी को एक लिखित शिकायत दे कर बताया था कि नगर के कुछ सूदखोरों ने उन के घर में घुस कर गालीगलौज कर जान से मारने की धमकी दी थी. सबूत के तौर पर तिगनाथ फैमिली ने अपने घर पर लगे सीसीटीवी फुटेज, काल रिकौर्डिंग भी पुलिस को उपलब्ध कराई थी.

इस मामले में 7 मई, 2018 को डा. सिद्धार्थ के अलावा उन के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां और पत्नी ने जबलपुर में तत्कालीन आईजी से मुलाकात कर उन्हें भी सूदखोरों की प्रताड़ना के सबूत दिए थे.

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दिलीप कुमार के निधन पर रवि किशन ने जताया गहरा शोक, कहा ‘उनका जाना मेरे लिए व्‍यक्तिगत क्षति’

भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के निधन पर अभिनेता व सांसद रवि किशन ने गहरा शोक व्‍यक्‍त किया. उन्‍होंने दिलीप कुमार के निधन को व्‍यक्तिगत क्षति बताया और कहा कि मुझे नहीं लगता है कि दिलीप साहब जैसा कोई कलाकार हिंदी सिनेमा में हिंदुस्‍तान में जन्‍म लेगा. हम सब लोग उनके मुरीद थे. आज एक संस्‍था का अंत हो गया. सिनेमा का एक युग खत्‍म हो गया.

वहीं, दिलीप कुमार के निधन को पवन सिंह, खेसारीलाल यादव और अक्षरा सिंह ने भी हिंदी सिनेमा को अपूरणीय क्षति बताया और कहा कि ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व शोकाकुल परिजनों को यह अथाह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें.

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इससे पहले रवि किशन ने दिलीप कुमार को याद करते हुए कहा कि मैं भाग्‍यशाली रहा कि उन्‍होंने मेरे साथ आखिरी समय में एक फिल्‍म प्रोड्यूस की थी. इस दौरान मुझे उनके साथ बहुत ज्‍यादा वक्‍त बिताने का सौभाग्‍य मिला, जिसकी ढ़ेर सारी यादें रही.

उन्‍होंने जिस फिल्‍म को प्रोड्यूस किया, उसका नाम ‘अब तो बनजा सजनवां हमार’ था. वे हमारी आउटडोर शूटिंग पर भी आये. रवि किशन ने कहा कि बहुत कम लोगों को पता होगा कि मैं और मेरा परिवार उनके बहुत करीब था.

उन्‍होंने कहा कि मैं बहुत भाग्‍यशाली रहा कि मैं अक्‍सर उनके घर आया जा करता था. बहुत सारी चीजें उन्‍होंने सिनेमा व एक्टिंग की बारिकियों को लेकर मुझे डिस्‍कस करते थे. यहां तक कि परिवार को लेकर कैसे एक कलाकार को परिवार को पत्‍नी को बच्‍चों को लेकर चलना चाहिए.

कैसे आप बतौर अभिनेता समाज को भी उदाहरण दे सकते हैं, ऐसी बहुत सी बातें होती थी. उन्‍होंने कहा कि आज सायरा जी आज बहुत दुखी होंगी, मैं ये  समझ सकता हूं, क्‍योंकि उन्‍होंने दिलीप साहब का बच्‍चों की तरह ख्‍याल रखा. मैं समझ रहा हूं कि उनकी एक उम्र हो गई थी, लेकिन एक बड़े कलाकार का जाना तो खलता है.

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वहीं, खेसारीलाल यादव ने कहा कि आज का दिन बेहद दुखद है, जिनको देखकर हमने अभिनय सीखा, वो अब नहीं है. उनकी कृति हमेशा हम सबों को प्रेरणा देगी. दिलीप कुमार को पूरा हिंदुस्‍तान भूल नहीं पायेगा. पवन सिंह ने कहा कि भारतीय सिनेमा जगत के पुरोधा, अभिनय सम्राट, असंख्य कलाकारों के प्रेरणास्रोत श्री दिलीप कुमार जी का निधन फिल्म जगत की अपूरणीय क्षति है. अक्षरा ने कहा – आज हिंदुस्तानी सिनेमा का एक युग चला गया. दिलीप कुमार साहब का जाना एक अनंतकाल तक के लिए ऐसा खाली स्थान है जो कभी न भरा जा सकेगा. देश और सिनेमा आपका सदैव ऋणी रहेगा.

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