एक लड़कालड़की का रिश्ता पक्का हो रहा था. लड़के के पिता ने कहा कि हमें तो लड़की 2 कपड़ों में ही चाहिए. लड़की वालों ने इसे सच मान लिया और लड़की शादी के मंडप में टू पीस बिकिनी में आ गई.

बिकिनी का इतिहास इस चुटकुले की तरह कतई हंसीमजाक वाला नहीं रहा है. भले ही इस से औरत के उभार और दूसरे नाजुक अंगों को ढका भर जाता है और आज समुद्र किनारे, फैशन शो, स्विमिंग पूल और फिल्मों में औरतें व लड़कियां इसे बेझिझक पहने अपनी देह दिखती नजर आ जाती हैं, पर इसे बनाने वाले को अंदाजा नहीं था कि वह नाममात्र के कपड़े से महिलाओं के बदन को जो मामूली आड़ दे रहा है, वह पूरी दुनिया में एटम बम के धमाके सा असर दिखाएगा.

5 जुलाई, 1946. यही वह दिन था जब पहली बार यह पोशाक दुनिया के सामने आई थी. फ्रैंच आटोमोबाइल इंजीनियर और कपड़ों के डिजाइनर लुईस रियर्ड ने पहली बार बिकिनी को बनाया था, जिस से 5 जुलाई, 1946 को मिशेलिन बर्नार्डिनी नाम की एक हिम्मती मौडल ने पहन कर सार्वजनिक किया था. तब से आज तक हर साल 5 जुलाई को 'बिकिनी दिवस' के तौर पर मनाया जाता है.

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बिकिनी का नाम बिकिनी अटोल नाम की एक जगह से लिया गया था. यह वह जगह थी, जहां पर एटोमिक बम की टैस्टिंग हो रही थी. वैसे, बिकिनी का आना भी दुनिया पर कोई एटम बम गिरने से कम नहीं था और बाद में फिल्मों में तो इस का बेहिसाब इस्तेमाल किया गया, मतलब धमाके पर धमाके हुए.

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