‘‘ बचपन में मुझे फिल्म इंडस्ट्री से नफरत थी…’’ – जीवा

सत्तर और अस्सी के दशक के मशहूर खलनायक रंजीत ने छह सौ से भी अधिक फिल्मों में खलनायकी के अपने ऐसे खंूखार अंदाज विखेरे,जिन्हे आज तक कोई अन्य कलाकार नही विखेर पाया.अब उन्ही के बेटे जीवा ने भी बौलीवुड में कदम रख दिया है.जीवा की पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’16 दिसंबर को ‘डिज़्नी प्लस हाॅटस्टार’ पर स्ट्ीम होने वाली है.शशांक खेतान निर्देशित इस फिल्म में जीवा के साथ विक्की कौशल, किआरा अडवाणी,भूमि पेडणेकर,रेणुका शहाणे व अमेय वाघ जैसे कलाकार हैं.मजेदार बात यह है कि एक वक्त वह था जब अभिनेता रंजीत के बंगले में जीवा अपने दो दोस्तों टाइगर श्राफ व रिंजिंग के साथ मार्शल आर्ट सीखा करते थे.तभी अनुमान लग गया था कि यह तीनों बौलीवुड से जुड़ेंगे.टाइगर श्राफ ने 2014 में फिल्म ‘हीरोपंती’ से बौलीवुड में कदम रखा और एक्शन स्टार के रूप में उनकी पहचान बन चुकी है.रिन्जिंग डेंजोगपा भी ‘स्क्वाड’ से बौलीवुड मे कदम रख चुके हैं और अब ख्ुाद जीवा ने ‘गोविंदा नाम मेरा’ से बौलीवुड में कदम रखा है.

प्रस्तुत है जीवा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

सवाल –  आप अभिनेता रंजीत के बेटे हैं.आपके  साथ मार्शल आर्ट सीखने वाले आपके दोनोे खास दोस्त काफी पहले ही अभिनय जगत से जुड़ चुके हैं,तो फिर आपने इतनी देर से बौलीवुड मे कदम क्यो रखा?

जवाब – यह सच है कि टाइगर श्राफ व रिंजिंग मेेरे खास दोस्त हैं.हम तीनों कभी एक साथ मार्शल आर्ट की ट्ेनिंग भी लिया करते थे. मगर यह ट्ेनिंग लेते वक्त हम तीनों मे से किसी के भी मन में बौलीवुड से जुड़ने की इच्छा नही थी.हम तीनों तो स्पोर्टस के शौकीन रहे हैं.हमने मार्शल आर्ट की ट्ेनिंग भी स्पोटर्् समझ कर ही ली थी.

सवाल – आप लोग किस तरह के स्पोर्ट्स खेलते थे?

जवाब – मैने राज्य स्तर पर बैंडमिंटन खेला है.मेरे बहुत खास दोस्त टाइगर श्राफ बहुत बढ़िया फुटबालर था.बास्केटबाल भी बहुत अच्छा खेलता था.वह मुझे फुटबाल व बास्केट बाल सिखाता था और मैं उसे बैडमिंटन व मोटर स्पोर्ट्स सिखाता था.कार रेसिंग करना सिखाता था.स्पोर्टस में हम दोनों एक दूसरे को ‘पुष’ किया करते थे.हम दोनों पढ़ाई से ज्यादा स्पोटर््स में ध्यान दिया करते थे.

सवाल – स्पोर्ट्स से भी पैसा शोहरत बटोरी जा सकती है.तो फिर आपने स्पोर्ट्स को अलविदा कह कर फिल्मो में अभिनय करने का निर्णय क्या सोचकर लिया?

जवाब – सच कहें तो उन दिनों स्पोटर््स में कैरियर बनाना आसान नहीं था.उन दिनों क्रिकेट ही लोकप्रिय था.हम जिस स्पोटर््स के खेलते थे,उसे ज्यादा लोकप्रियता हासिल नही थी.इसके अलावा माना कि बचपन में मुझे फिल्म इंडस्ट्ी से नफरत थी.क्यांेकि मैं बचपन से देखता आ रहा था कि मेरे पिता जी फिल्मों में मार खा रहे हैं.मैने फिल्में देखनी बंद कर दी थी.उसके बाद 15-16 साल की उम्र से मैने पुनः फिल्में देखनी षुरू की.तब मुझे ‘ओंकारा’, ‘मकबूल’, ‘वास्तव’,‘कई पो चे’ जैसी फिल्में काफी पसंद आयीं.‘कई पो चे’ की कहानी तो मुझे काफी पसंद आयी और इस फिल्म को देखकर मेरे अंदर फिल्म इंडस्ट्ी से जुड़ने की बात आयी.सच कहॅूं तो ‘कई पो चे’ देखने के बाद मुझे लगा कि अब अच्छी कहानियों पर काम हो रहा है,जिससे मेरे अंदर धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्ी के प्रति पैशंन बढ़ता गया.इसके अलावा मुझे समझ में आया कि फिल्मों में काम करने वाला कलाकार कैमरे के सामने एकदम अलग इंसान होता है और कैमरे के सामने से हटने पर वह इंसान अलग होता है.यह बात मुझे बहुत ही ज्यादा फैशिनेटिंग लगी.फिल्मों मंे अभिनय करने पर किसी को पता नहीं होता कि जीवा कौन है? तो स्पोटर््स खेलते हुए भी फिल्म का कीड़ा लग गया था.

सवाल – आप भी टाइगर श्राफ पहले भी बौलीवुड से जुड़ सकते थे?

जवाब -जब मैं और टाइगर श्राफ एक साथ मार्शल आर्ट सीख रहे थे,उस वक्त हम दोनो का अप्रोच अलग था.मुझे कैमरे के पीछे क्या होता है,वह सीखने का शौक था.मुझे बिजनेस का भी शौक है.मैं अपना  स्टार्ट अप शुरू करना चाह रहा था.मैं अभिनय को कैरियर बनाने की दिशा मंे सोचने की बजाय इस बात को सीख रहा था कि फिल्म का व्यवसाय है क्या? यहां फिल्में कैसे बनती हैं.क्या अप्रोच होती है? किसी फिल्म में फलां हीरो या फलां हीरोईन को क्यों लेते हैं,यह समझने पर ध्यान दे रहा था.तो मैने टाइगर श्राफ के साथ अभिनय की तरफ कदम नही बढ़ाए थे.जबकि उसका फोकश अभिनेता बनना ही था.

सवाल – तो फिर अभिनय की तरफ मुड़ना कैसे हुआ?

जवाब – जब मैने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया,तब मेरा पहला निर्णय यह था कि मैं अपने पिता से मदद नही लॅूंगा.इसलिए मैने अपने माता पिता को भनक लगे बिना अपने तरीके से तैयारी करनी षुरू की.सबसे पहले मैने खुद ही परखना शुरू किया कि क्या मैं कर पाउंगा? इसलिए मैने कुछ वर्ष पहले औडीशन देना शुरू किया था.मैं चाहता था कि मैं अंदर से श्योर हो जाउं कि मैं कर पाउंगा या नहीं…मैं जो कदम उठाने जा रहा था,जिस दिशा में आगे बढ़ना चाहता था,उसके बारे में जानकारी भी लेना चाहता था.वर्किंग मैथड को समझना था.देखिए,संघर्ष का अपना अलग मजा होता है.औडीशन देते हुए मैंने काफी रिजेक्शन सहे.औडीशन के वक्त किसी को पता नहीं चल रहा था कि मैं कौन हॅूं.औडीशन करते हुए मैं सीख रहा था कि मैं क्या गलत कर रहा हॅंू और उसे किस तरह से सुधारना है.फिर मुझे एक्टिंग वर्कशाॅप करने का भी मौका मिला.वर्कशाॅप की वजह से मैने कुछ लघु फिल्मों में भी अभिनय कर लिया.मैने इंटरनेशनल स्टूडियो की एक फिल्म के लिए औडीशन दिया था,वह कुछ वजहो ंसे आगे नहीं बढ़ी.मगर उसी स्टूडियो के लिए मैने ख्ुाद एक लघु फिल्म का निर्माण कर डाला.इस तरह फिल्म निर्माण का अनुभव हासिल हुआ.तो मैने कैमरे के पीछे जमीनी काम करने में काफी समय बिताया और बहुत कुछ सीखा.इसके अलावा मैने अपने पिता जी को अक्सर देखा करता था कि वह अपने किरदार के लिए किस तरह से तैयारी करते हैं.तो जाने अनजाने वह सब मैं सीख ही रहा था.औडीशन देते हुए मेरे अंदर का आत्म विश्वास जागा.आज कल तो सोशल मीडिया पर सभी लोकप्रिय कास्टिंग डायरेक्टरों के बारे में पता चलता रहता है कि वह किस तरह के किरदार के लिए कलाकार ढूंढ रहे हैं,कहंा औडीशन हो रहे है.तो मैं भी औडीशन देने पहुॅच जाता था.

सवाल – बतौर अभिनेता पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ से जुड़ने का अवसर कैसे मिला?

जवाब – तकदीर ने मुझसे इस फिल्म में अभिनय करवा लिया.हकीकत में मुझे लिखने का भी शौक रहा है.मैने दो कहानियां लिखी हैं,जिन पर मैं चाहता हॅंू कि फिल्म बने.इसीलिए मैं शशंाक खेतान से मिला.षंषंाक खेतान ने मुझसे कहा कि वह हमारी कहानियों पर काम करेंगे,पर पहले मैं औडीशन दे दॅूं.तो उनके कहने पर मैने काॅस्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा के यहां जाकर औडीशन दिया. मुझे दो तीन बार औडीशन देना पडा और फिर एक दिन मुझे पता चला कि मुझे फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ में अभिनय करने के लिए चुन लिया गया है.फिल्म की स्क्रिप्ट भी मजेदार थी.स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मुझे हंसी आ रही थी.फिर शशंाक खेतान के निर्देषन में काम करना था,तो मना नही कर पाया.मेरी समझ से कोई पागल ही इस फिल्म के करने से मना करता.

सवाल – फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ मंे आपका अपना किरदार क्या है?

जवाब – मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहॅूंगा कि मैने अपनी जिंदगी मंे नहीं सोचा था कि इस तरह के बेहतरीन किरदार के साथ मेरे कैरियर की शुरूआत होगी.मुझे तो यकीन भी नहीं था कि मैं इस किरदार को निभा पाउंगा.पर निर्देशक शशांक खेतान ने मुझ पर विश्वास किया और मुझसे काम करवा लिया.सोलह दिसंबर को जब आप फिल्म देखेंगंे,तो आपकी समझ में आएगा कि मेरा किरदार क्या है.अभी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा.

सवाल – आपके पिता रंजीत को कब पता चला कि आप भी बौलीवुड से जुड़ चुके हैं?

जवाब – फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ की षूटिंग षुरू करने से पहले मेरी मम्मी का जन्मदिन था.उस दिन मैने जन्मदिन उपहार के रूप में यह खबर अपने पिता के समाने अपनी मां को दी थी.मगर मेरी मां या पिता जी या बहन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया.मैं काम करता रहा.जब फिल्म का ट्ेलर रिलीज हुआ,तब पहली बार मेरे पिता जी को यकीन हुआ कि मैं अभिनेता बन गया हॅूं.

सवाल – आपने भी कुछ कहानियंा लिखी हैं.ऐसे में किरदारों को समझने की अलग ताकत अपने आप विकसित हो जाती है.इसकी वजह से भी आपके लिए अभिनय करना आसान हो हुआ होगा?

जवाब – आपने एक दम सही कहा.मैंने तीन कहानियां लिखी हैं.यह तीनों एकदम अलग जाॅनर की कहानियंा हंै.कहानियंा लिखते हुए मुझमे किरदार की बैकस्टोरी विकसित करने की कला आ गयी.तो इस किरदार को निभाते हुए मैने किरदार की बैक स्टोरी को समझा, जिससे किरदार में ढलने में मुझे आसानी हुई.

सवाल – लिखने का शौक कब पैदा हुआ?

जवाब – मुझे बचपन से ही लिखने व स्केच बनाने का शौक रहा है.मुझे गाड़ियों /कार का भी शौक है,तो मैं गाड़ियों की स्केच बनाता था.मुझे टेकनोलाॅजी का भी शौक है,तो मैं गाड़ियो के कम्पोनेंट डिजाइन करता था.मेरे कमरे मे भी आपको इस तरह की किताबें बहुत मिल जाएंगी.मुझे पढ़ने का भी बेहद शौक है.फिर जब मेरी रूचि फिल्मों में बढ़ी,तो कहानी लिखने की गति भी बढ़ गयी.मैं हर फिल्म देखते समय उसकी तकनीक व उसके बिजनेस अस्पेक्ट पर ध्यान देता रहता हॅूं.

सच कहॅू तो मैं बचपन मंे पत्र और कविताएं बहुत लिखता था.मेरे खास दोस्त अभिनेता डैनी के बेटे रेंजिल हैं.वह बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे,तो हम उन्हे पत्र लिखा करते थे.फिर मंैं,टाइगर श्राफ व रेंजिल ने कए साथ मार्षल आर्ट की ट्ेनिंग भी ली. उस वक्त हम तीनों मार्षल आर्ट अपने लिए सीख रहे थे.उस वक्त इसे सीखने के पीछे हम तीनो का मकसद फिल्मों से जुड़ना नहीं था.हमारे लिए मार्षल आर्ट सीखना मतलब एक्सरसाइज करना था.

सवाल – शौक?

जवाब – मुझे बिजनेस का शौक है.मैं अपने तीन स्टार्ट अप विकसित कर रहा हॅूं.सब कुछ ठीक ठाक रहा,तो 2023 में घोषणा करुंगा.

डाक्यूमेंट्री फिल्म- ‘‘नाम था कन्हैयालाल: एक सरहानीय प्रयास…’’

निर्माताः ‘कन्हैयालाल प्रोडक्शन’ के बैनर तले हेमा सिंह

निर्देषकः पवन कुमार और मुकेश सिंह

अवधिः एक घंटा 13 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: एम एक्स प्लेअर

अमूमन हर फिल्म कलाकार बातचीत के दौरान दावा करता है कि वह उन फिल्मों का हिस्सा बनने का प्रयास करते हैं,जिन फिल्मों में उनके अभिनय को देखकर हर आम इंसान व भावी पीढ़ी उन्हें उनके इस दुनिया को अलविदा कहने के बाद भी याद रखें. लेकिन कलाकार की यह सोच मृगमरीचिका व छलावा के अलावा कुछ नही है. इस बात को समझने के लिए हर इंसान को  ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘एम एक्स प्लेअर ’पर स्ट्रीम  हो रही अभिनेता स्व. कन्हैलाल पर बनायी गयी डाक्यूमेंट्ी फिल्म ‘‘नाम था कन्हैयालाल’’ एक बार जरुर देखनी चाहिए.

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मदर इंडिया’’ में दुष्ट साहूकार सुखीलाला,जो विधवा औरत पर बुरी नजर रखता है, का किरदार निभाकर अपने अभिनय से पूरे विश्व को हिलाकर रख देने वाले अभिनेता स्व. कन्हैयालाल को नई पीढ़ी के कलाकार व आज की पीढ़ी तक नहीं जानती.इस फिल्म में नरगिस,सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार,राज कुमार,कुमकुम, मुकरी जैसे कलाकारों ने भी अभिनय किया था. ज्ञातब्य है कि उस वक्त फिल्म ‘मदर इंडिया’ महज एक वोट के चलते आॅस्कर अवार्ड पाने से वंचित रह गयी थी.यह एक सुखद बात है कि अब कन्हैयालाल पर उनकी बेटी हेमा सिंह ने डाक्यूमेंट्ी  फिल्म ‘‘नाम था कन्हैयालाल’ का निर्माण किया है.

कहानीः

वाराणसी में दस दिसंबर 1910 को जन्में कन्हैयालाल के पिता भैरोदत्त चैबे ‘सनातन धर्म नाटक समाज’ के मालिक थे. और वह कई षहरों व गांवो में घूम घूमकर नाटक किया करते थे. कन्हैयालाल अपने पिता के  साथ जाते थे और स्टेज के पीछे  के कामो में हाथ बंटाया करते थे.सोलह साल की उम्र में कन्हैयालाल ने नाटक व गीत लिखने शुरू किए. पिता की मौत के बाद भाईयों ने कुछ समय तक नाटक कंपनी को चलाने का प्रयास किया. इस बीच बड़े भाई  संकटाप्रसाद चतुर्वेदी का विवाह हो गया था.एक दिन घर में किसी को बिना बताए संकटाप्रसाद मंुबई पहुॅच गए. उनकी तलाश कर उन्हें वापस वाराणसी ले जाने के लिए कन्हैयालाल को भेजा गया.

पर मुंबई  पहुॅचकर जब कन्हैयालाल ने अपने भाई को फिल्मों में अभिनय करते पाया,तो वह भी मुंबई  में रूक गए. उनके भाई संकटा प्रसाद ने मूक फिल्मों में बतौर अभिनेता अपनी एक जगह बना ली थी. कन्हैयालाल ने पहले कुछ फिल्मों के गीत व कुछ नाटक लिखे.उनका मकसद लेखक व निर्देशक बनना था. स्व लिखित नाटक ‘‘ 15 अगस्त’’ का मंचन भी किया. 1939 में फिल्म ‘एक ही रास्ता’ के सेट पर एक कलाकार के न पहुॅचने पर कन्हैयालाल ने बांके का किरदार निभाया. इसके बाद उनकी अभिनय की दुकान चल पड़ी. 1940 में महबूब खान ने अपनी फिल्म ‘‘औरत’’ में साहूकार सुखीलाला का किरदार निभाने का अवसर दिया. महबूब खान, कन्हैयालाल के अभिनय से इस कदर प्रभावित हुए कि जब  17 साल बाद जब महबूब खान ने ‘औरत’ का ही रीमेक फिल्म ‘मदर ंइडिया’ बनायी,तो सुखीलाला के किरदार के लिए उन्होेने कन्हैयालाल को ही याद किया. एक बार महबूब खान ने स्वयं बताया था कि लेखक वजाहत मिर्जा ने ही सलाह दी थी कि सुखीलाला के किरदार के लिए कन्हैयालाल को बुलाया जाए. 1939 से अभिनय में व्यस्त हो गए कन्हैयालाल अपनी जड़ों से जुड़े रहे. इसी कारण उन्होेने अपनी बुआ के कहने वाराणसी जाकर जावंती देवी से विवाह रचाया. कन्हैयालाल ने भूक (1947),बहन, गंगा जमुना, राधिका,लाल हवेली, सौतेला भाई, गृहस्थी, गोपी, उपकार, अपना देश, जनता हवलदार, दुश्मन, बंधन, भरोसा, हम पांच, तीन बहूरानियां, गांव हमारा देश तुम्हारा, दादी मां, गृहस्ती, हत्यारा, पलकों की छांव में, हीरा, दोस्त, धरती कहे पुकार के सहित कुल 115 फिल्मों में अभिनय किया.फिल्म ‘साधना’ के संवाद व गीत लिखे थे. 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘हथकड़ी’’ उनके कैरियर की अंतिम फिल्म थी.

कन्हैयालाल भले ही फिल्मोें में अभिनय कर रहे थे,पर वह पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे. वह अपने बड़े बेटे को सबसे अधिक चाहते थे. बेटे के असामायिक मौत के बाद वह टूट गए थे. अंततः 14 अगस्त 1882 को 72 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.

समीक्षाः

1982 में कन्हैयालाल के इंतकाल के बाद फिल्म इंडस्ट्री ने पूरी तरह से उन्हे भुला दिया.कम से कम मैने अपनी 40 वर्ष की फिल्म पत्रकारिता के दौरान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े किसी भी फिल्मी हस्ती के मंुह से कन्हैयालाल का नाम नहीं सुना. यह एक सुखद बात है कि कन्हैयालाल की मौत के 40 वर्ष बाद उनकी बेटी हेमा सिंह ने उन्ही के नाम प्रोडक्शन हाउस का नाम ‘कन्हैयालाल प्रोडक्शन’ रखकर अपने पिता पर यह डाक्यूमेंट्ी फिल्म बनायी है. इस डाक्यूमेंट्ी फिल्म में अमिताभ बच्चन,सलीम खान,जावेद अख्तर,बीरबल,अनुपम खेर,बोमन इरानी,गोविंदा,पंकज त्रिपाठी,पेंटल सहित लगभग बीस फिल्मी हस्तियों ने कन्हैयालाल पर बात की है.

मगर  इनमें से किसी ने भी कन्हैयालाल के अभिनय पक्ष या इंसान के तौर पर कुछ खास नही कहा.कुछ लोगों ने बेवजह एक वोट से फिल्म ‘मदर इंडिया’ के  आॅस्कर अवार्ड से वंचित हो जाने को ही तूल दिया.इस डाक्यूमेंट्ी में आम इंसान ही नही नई पीढ़ी के कुछ कलाकार यह कहते नजर आते हैं कि वह कन्हैयालाल को नही जानते.कन्हैयालाल ने 115 में से लगभग हर फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया था.मगर इस डाक्यूमेंट्ी में ‘मदर इंडिया’ के अलावा अन्य फिल्मों का जिक्र नही है.जबकि मैंने कहीं पढ़ा था कि खुद कन्हैयालाल ने एक पत्रकार को बताया था कि उन्हे 1972 में प्रदर्शित जेमिनी की फिल्म ‘‘गृहस्थी’’ में उनके द्वारा निभाए गए स्टेशन मास्टर के किरदार को काफी सराहना मिली थी और इस फिल्म से उन्हे काफी संतुष्टि मिली थी.फिल्म ‘औरत’ में दुष्ट साहूकार का किरदार निभाने के बाद फिल्म ‘‘बहन’’ में अच्छे स्वभाव वाले जेब कतरे का किरदार निभाया था.

इतना ही नहीं कन्हैयालाल के अभिनय से उस वक्त के कई कलाकार ठर्राटे थे.इतना ही नही कुछ फिल्मी हस्तियों ने कन्हैयालाल की शराब की आदत को लेकर काफी कुछ कहा है,जिसे इस फिल्म से हटाया जा सकता था.शराब तो लगभग हर इंसान की कमजोरी सी बन गयी है.किसी ने यह जिक्र नहीं किया कि कन्हैयालाल किन परिस्थितियों में शराब का सेवन किया करते थे.काश,लोगो ने उनका चरित्र हनन करने की बनिस्बत उनकी अभिनय प्रतिभा व उनके व्यवहार को लेकर कुछ बताया होता,तो अच्छा होता. इतना ही नही इस डाक्यूमेंट्ी में कन्हैयालाल ने जीवित रहते हुए जो इंटरव्यू पत्र पत्रिकाओं को दिए थे,उनका भी कहंी कोई जिक्र नहीं है.जबकि ऐसे इंटरव्यू की तलाश कर उन्हें इस डाक्यूमेंट्ी का हिस्सा बनाया जाना चाहिए था.

कुछ कमियों के बावजूद हेमा सिंह के इस कदम को सुखद ही कहा जाएगा कि उन्होने चालिस वर्ष बाद ही सही पर अपने पिता स्व. कन्हैयालाल को लेकर इस डाक्यूमेंट्ी फिल्म को लेकर आयी है.फिल्म मेें हेमा सिंह और उनकी बेटी प्रियंका सिंह के अलावा कन्हैयालाल की वाराणसी मे रह रही रिष्तेदार रेखा त्रिपाठी ने कन्हैयालाल के जीवन पर कुछ अच्छी रोषनी डाली है.यह डाक्यूमेंट्ी होेते हुए भी मनोरंजक है.सूत्रधार के रूप में कृप कपूर सूरी ने बेहतरीन काम किया है.

मैं आधी रात को भी वर्कआउट करती हूं: रिचा दीक्षित

आप भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कैसे पहुंचीं? मैं जब पहली बार मुंबई आई, तो मैं ने कई जगहों पर औडिशन दिया था. वहीं से मुझे एक भोजपुरी फिल्म में काम करने का औफर मिला, जिस का नाम ‘नचनिया’ था.

पहले मैं भोजपुरी इंडस्ट्री में जाने से हिचक रही थी, लेकिन मराठी फिल्मों के डायरैक्टर समीर ने मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे भोजपुरी फिल्में करने के लिए बढ़ावा दिया. उन्होंने कहा कि भोजपुरी सिनेमा के दर्शक अपने कलाकारों को न केवल इज्जत देते हैं, बल्कि प्यार भी करते हैं.

आप के भोजपुरिया फैंस ने आप को ‘हौटगर्ल’ का खिताब दे रखा  है. इस से आप को कितनी खुशी  होती है?

इस से बड़ी कामयाबी किसी हीरोइन के लिए क्या हो सकती है. हर कलाकार की इच्छा होती है कि उस के फैंस उसे प्यार करें. अगर मेरे चाहने वाले मुझे ‘हौटगर्ल’ के खिताब से नवाज रहे हैं, तो यह उन का प्यार ही है.

आप प्रवेशलाल यादव के साथ पहले भी काम कर चुकी हैं. उन के साथ लगातार काम करने की कोई खास वजह

सच कहूं तो प्रवेशलाल यादव बहुत ही अच्छे कलाकार हैं और उस से अच्छे इनसान भी हैं. इस के साथ ही वे मेरे अच्छे दोस्त भी हैं. कोई कलाकार अगर अच्छा दोस्त है, तो उस के साथ काम करने में मजा आता ही है.

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आप को प्रवेशलाल यादव की कौन सी बात सब से खास लगती है?

वे बड़े ही क्रिएटिव इनसान हैं. इस के साथ ही वे बड़े शांत स्वभाव के भी हैं. उन के साथ रह कर बहुतकुछ सीखा जा सकता है.

‘प्रीतम प्यारे’ एक पति की  2 पत्नियों वाली फिल्म है. इस में  किस तरह की नोकझोंक दिखने वाली है?

आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस पति की 2 पत्नियां होंगी, उस पर क्या बीतती होगी. इस फिल्म में भी यही दिखाने की कोशिश की गई है. ऐसी फिल्में भोजपुरी में बहुत ही कम बनती हैं. साथ ही, इस फिल्म में कौमेडी के साथसाथ रोमांस का भी तड़का है.

क्या आप मानती हैं कि पहले के बजाय भोजपुरी सिनेमा का प्रमोशन इन दिनों बढ़ा है?

बिलकुल बढ़ा है. आज भोजपुरी फिल्में बिहार, उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के कई शहरों में भी रिलीज हो रही हैं. इस के अलावा यूट्यूब पर एकएक फिल्म के करोड़ों दर्शक हैं. यह सिर्फ और सिर्फ भोजपुरी सिनेमा के प्रमोशन से ही मुमकिन हुआ है.

आप अकसर अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वर्कआउट करते हुए वीडियो और फोटो डालती रहती हैं. क्या वर्कआउट आप की जिंदगी का नियमित हिस्सा है?

वर्कआउट मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है. मैं जब भी शूटिंग से छूटती हूं, चाहे रात के 12 बज रहे हों, वर्कआउट जरूर करती हूं. मुझे बिना वर्कआउट के नींद ही नहीं आती है. मेरे स्लिम होने का राज भी वर्कआउट में ही छिपा है.

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आप की यामिनी सिंह के साथ कैसी जमती है?

यामिनी सिंह के साथ यह मेरी पहली फिल्म है. लेकिन मुझे ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है कि मैं उन के साथ पहली बार फिल्म कर रही हूं. मुझे लगता है कि मैं और यामिनी सिंह मेले में बिछड़ गई थीं और एक बार फिर से मिल गई हैं.

यामिनी सिंह बहुत ही अच्छी दोस्त होने के साथसाथ अच्छी इनसान भी हैं.

हंसाना सबसे मुश्किल काम: धामा वर्मा

भोजपुरी, हिंदी और बंगला फिल्मों के कलाकार धामा वर्मा ने कई सुपरहिट फिल्में दी हैं. वे बेहद मंजे हुए कलाकारों में गिने जाते हैं. फिल्मों में उन की संवाद अदायगी और ऐक्टिंग बेहद पसंद की जाती है. ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ के दौरान उन से हुई एक मुलाकात में उन के फिल्मी सफर पर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप ने अपने सफर की शुरुआत हिंदी फिल्मों से की थी, फिर भोजपुरी फिल्मों की तरफ रुझान कैसे हुआ?

मैं ने गौतम घोष के डायरैक्शन में बनी फिल्म ‘पतंग’ से अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत की थी. उस फिल्म में मेरे साथ शबाना आजमी, ओम पुरी, मोहन अगाशे और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे दिग्गज कलाकारों की पूरी टीम थी.

इस के बाद मुझे लगा कि हिंदी फिल्मों के साथसाथ भोजपुरी सिनेमा में भी अपना हाथ आजमाना चाहिए, क्योंकि भोजपुरी का दर्शक वर्ग बहुत बड़ा है. कई फिल्मों में दमदार रोल कर के मैं दर्शकों के दिलों में आसानी से जगह बनाने में कामयाब रहा.

भोजपुरी सिनेमा को दिलाई पहचान: बृजेश त्रिपाठी

आप ने हिंदी और भोजपुरी फिल्मों के साथसाथ बंगला फिल्मों में भी काम किया है. बंगला भाषा की कोई यादगार फिल्म?

मैं ने गौतम घोष के डायरैक्शन में बनी बंगला फिल्म ‘शून्य’ में काम किया था. यह फिल्म माओवादियों की बैकग्राउंड पर बनी थी.

आप फिल्मों के अलावा टैलीविजन पर भी काफी सक्रिय रहते हैं. आप ने अभी तक किनकिन धारावाहिकों में काम किया है?

मैं ने ‘क्या दिल में है’, ‘अर्जुन पंडित’, ‘जीजी मां’, ‘दीया और बाती हम’, ‘लाल इश्क’, ‘क्राइम पैट्रोल’, ‘सावधान इंडिया’ और ‘विधान’ जैसे धारावाहिकों में काम किया है. भोजपुरी के एक धारावाहिक ‘घरआंगन’ में भी अहम रोल निभाया है. इस के अलावा वैब सीरीज ‘किराएदार’ व ‘बैडगर्ल’ में भी काम कर चुका हूं.

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आप ने अमिताभ बच्चन के साथ भी काम किया है. उन से क्या सीखने को मिला?

मुझे भोजपुरी फिल्म ‘गंगा’ में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का मौका मिला था. वे फिल्म सैट पर सहज रहते हैं और साथी कलाकारों का हर समय हौसला बढ़ाते हैं.

भोजपुरी सिनेमा में कई अच्छे कौमेडियनों की बाढ़ आ गई है. ऐसे में कितना कंपीटिशन बढ़ा है?

यह भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए अच्छा संकेत है कि अच्छे कौमेडी कलाकार आ रहे हैं. इस से भोजपुरी फिल्मों का दायरा बढ़ेगा.

एक कलाकार के लिए हंसाना सब से मुश्किल विधा मानी जाती है? ऐसा क्यों है?

ऐक्टिंग की सब से मुश्किल विधा है लोगों को हंसाना. इस में कलाकार अपनी पूरी कला लगा देता है. रुलाने के लिए किसी को मार कर रुलाया जा सकता है, गरीबी दिखा कर रुलाया जा सकता है, लेकिन हंसाने के लिए अंदर से फीलिंग लानी पड़ती है, जो मुश्किल काम है.

भोजपुरी के सब से ज्यादा दर्शक बिहार में ही हैं. क्या वजह है कि वहां फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है?

बिहार सरकार अपने प्रदेश में फिल्मों को बढ़ावा देने के प्रति उदासीन है. अगर वह प्रदेश में शूटिंग को बढ़ावा देती है, तो वहां रोजगार की उम्मीद बढ़ेगी.

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मैंने शो के लिए बुनियादी फिटनेस प्रशिक्षण लिया: सोनाली सेहगल

सोनाली सेहगल फिलहाल विक्रम भट्ट के आगामी वेब शो, ‘अनामिका’ की शूटिंग कर रही हैं, जिसमें सनी लियोन भी हैं. सोनाली श्रृंखला में एक प्रशिक्षित हत्यारे की भूमिका निभाती हैं. यह शो अभिनेत्री के लिए खास है क्योंकि यह पहला प्रोजेक्ट है जहां वह एक्शन सीक्वेंस करती हुई नजर आएंगी.

भूमिका के लिए अपनी तैयारी और नई तकनीकों के बारे में बात करते हुए, सोनाली कहती है, “मैं एक प्रशिक्षित हत्यारे रिया की भूमिका निभा रही हू. वह बेहद तेज और बुद्धिमान है. शो में बहुत सारे रनिंग, फाइट और शूटिंग सीक्वेंस हैं. इसलिए मैंने बंदूक चलाने का प्रशिक्षण लिया जहां मैंने सीखा कि बंदूक कैसे पकड़नी है और इसका उपयोग कैसे करना है. मैंने शो के लिए बुनियादी फिटनेस प्रशिक्षण लिया. इसके अलावा, संयोग से मैं शो से पहले दक्षिण की यात्रा कर रही थी और एक मार्शल आर्ट फॉर्म सीखना चाहती थी इसलिए मैंने कलारीपयट्टू सीखा. यह निश्चित रूप से शूटिंग के दौरान काम आया क्योंकि किसी भी मार्शल आर्ट फॉर्म में आपको सही मुद्रा और सही बॉडी लैंग्वेज मिलती है.”

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एक्शन सीन के बारे में अधिक बात करते हुए, वह कहती हैं, फाइट सीन के लिए, हमारे पास सेट पर प्रशिक्षक थे और किसी भी सीन से पहले, सभी के साथ रिहर्सल होती थी. सनी और मैंने इसे बार-बार दोहराया. प्रशिक्षण पूर्ण पेशेवर मार्गदर्शक और पर्यवेक्षण के तहत हुआ. चूंकि मैं अपने ट्रेनर सौरव राठौर के साथ MMA और कैलिसथनिक्स भी करती हूं, जिसमें ढेर सारे जंप, बॉडी रोल और बॉडी ट्रेनिंग शामिल है, जो कि मेरे हिस्से की शूटिंग के दौरान काम आया. ”

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अभिनेत्री को अपने साइज जीरो होने का विश्वास नहीं होता, वह फिट रहना पसंद करती है. लॉकडाउन के दौरान भी, मैंने यह सुनिश्चित किया कि मैं काम करूं और फिट रहूं. लेकिन मैं ऐसी कोई व्यक्ति नहीं हूं, जो एक बॉडी टाइप होने के बारे में बहुत सख्त है. क्योंकि मेरे लिए, सभी आकार सुंदर हैं. मैंने अपना वजन बढ़ा लिया क्योंकि मैं सब कुछ खाती हुं, लेकिन मैं कसरत भी करती हूं. इस भूमिका के लिए मुझे पतला दिखना था क्योंकि एक हत्यारे के रूप में आप भारी नहीं हो सकते. मुझे दुबला और फुर्तीला होना पड़ा, सोनाली कहती है.

तानों के डर से मांबाप अपने बच्चों को घर से निकाल देते हैं: नाज जोशी

कुछ लोग अपने अधूरेपन को ले कर जिंदगीभर खुद को कोसते रहते हैं, जबकि कुछ उस अधूरेपन से बाहर निकल कर एक नई दुनिया और नई सोच बना लेने के साथसाथ अपने प्रति लोगों के नजरिए को भी बदलने की ताकत रखते हैं. पर ऐसा करने के लिए उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन वे इस से घबराते नहीं हैं, बल्कि समाज, परिवार और धर्म के आगे एक मिसाल खड़ी कर देते हैं.

ऐसी ही कई चुनौतियों से गुजर कर 3 बार मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी विजेता बनी नाज जोशी भारत की पहली ट्रांससैक्सुअल इंटरनैशनल ब्यूटी क्वीन, ट्रांस राइट्स ऐक्टिविस्ट, मोटीवेशनल स्पीकर और एक ड्रैस डिजाइनर हैं.

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दिल्ली की रहने वाली नाज जोशी ‘क्वीन यूनिवर्स 2021 सीजन 3′ के लिए बैंकौक जाने वाली हैं, जिस में दुनियाभर की सभी उम्र और बौडी शेप की महिलाएं भाग लेंगी. इस प्रतियोगिता में खूबसूरती को ज्यादा अहमियत न देने के साथसाथ प्रतियोगी के अपने परिवार और समाज के प्रति योगदान को भी अहमियत दी जाएगी.

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हंसमुख और बेबाक नाज जोशी से उन की जिंदगी के बारे में लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप को ब्यूटी क्वीन बनने की प्रेरणा कहां से मिली?

जब मैं ने सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय को ताज पहनते देखा, तो मुझे भी ताज पहनने का शौक हुआ. मजे की बात यह है कि मैं ने कभी ट्रांसजैंडर के साथ कौंपीटिशन नहीं किया है, बल्कि मैं ने नौर्मल लड़कियों के साथ प्रतियोगिता की है और आज तक 7 इंटरनैशनल क्राउन जीत चुकी हूं.

इस से मुझे बहुत प्रेरणा मिली, कौंफिडैंस मिला और सामाजिक काम करने की इच्छा पैदा हुई. मैं ट्रांसजैंडर समाज की सेहत, उन की समस्याओं के हल और पढ़ाईलिखाई को ले कर काम करना चाहती हूं. अभी मेरा मकसद नई लड़कियों को ऐक्टिंग के क्षेत्र में सही राह दिखाना भी है, क्योंकि ऐक्टिंग की दुनिया में कास्टिंग काउच बहुत ज्यादा है और लड़कियां उन की शिकार बनती हैं.

ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती हैं, जहां लोग खुद को कास्टिंग डायरैक्टर कहते हैं, लेकिन लड़कियों के उन से मिलने पर वे उन के खाने या ड्रिंक में कुछ मिला देते हैं और उन का शोषण करते हैं. इस के अलावा मैं किसी लड़की के ब्यूटी कांटैस्ट जीतने के बाद उसे इंडस्ट्री में जाने की पूरी गाइडैंस देती हूं.

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आप ट्रांसजैंडर कैसे बनीं? इस मुकाम तक पहुंचने के लिए आप के सामने किस तरह की चुनौतियां आई थीं?

मैं एक मुसलिम मां और पंजाबी पिता के घर में जन्मी हूं. जब मैं 7 साल की थी तो मेरे परिवार ने मुझे मुंबई किसी दूर के रिश्तेदार के यहां भेज दिया था, ताकि उन्हें किसी तरह के ताने न सुनने पड़े.

मैं ने मुंबई में बहुत जिस्मानी जुल्म सहा है. जहां मैं काम करती थी, वहां भी लोगों ने बहुत सताया, इसलिए मैं आज लड़कियों को प्रोटैक्शन देती हूं.

अपना सैक्स बदलने के लिए मुझे सर्जरी से गुजरना पड़ा. मेरे हिसाब से अगर हमारे देश की लड़कियां मजबूत नहीं होंगी, तो ट्रांसजैंडर का मजबूत होना मुमकिन नहीं. दरअसल, ट्रांसजैंडर पहले इनसान हैं और बाद में उन का जैंडर आता है.

मैं ट्रांसजैंडर के हकों के लिए समयसमय पर वर्कशौप करती हूं, जिन में उन की सेहत से जुड़ी जानकारियां, सेफ सैक्स वगैरह होता है, जिस से उन की जिंदगी खतरे में न पड़े.

इस के अलावा मैं दुनिया की पहली ऐसी महिला हूं, जो लड़कियों के लिए इंटरनैशनल शो करने बैंकौक जा रही हूं, जिस में सभी वर्ग और उम्र की महिलाएं भाग ले सकेंगी.

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आप ट्रांसजैंडर समाज के साथ लोगों के गलत बरताव की क्या वजह मानती हैं और इस के लिए किसे जिम्मेदार ठहराती हैं?

इस की जिम्मेदारी मांबाप की है, क्योंकि वे ऐसे बच्चे को ताने के डर से स्वीकार नहीं करते हैं और घर में छिपा कर या कहीं बाहर भेज देते हैं. अगर ऐसे बच्चों को स्कूल में ताने सुनने पड़ते हैं, तो उस का समाधान मांबाप स्कूल में जा कर बातचीत द्वारा निकाल सकते हैं. उत्तरपूर्वी भारत की एक ट्रांसजैंडर लड़की अब डाक्टर बन चुकी है. उसे इसलिए ज्यादा समस्या नहीं आई, क्योंकि वहां पर और थाईलैंड जैसी जगहों पर लड़के भी लड़कियों जैसे ही दिखते हैं, इसलिए सब से घुलनामिलना आसान होता है.

इस के अलावा आज 100 से भी ज्यादा ट्रांसजैंडर लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं, जिन में कलाकार, समाजसेवी और मोटिवेशनल स्पीकर शामिल हैं.

दरअसल, मातापिता अगर ट्रांसजैंडर बच्चे के साथ ‘पिलर’ बन कर खड़े होते हैं, तो वे भी बहुतकुछ कर सकते हैं. किन्नर 2 तरह के होते हैं, कुछ जन्म से तो कुछ बाद में अपना सैक्स चेंज कराते हैं. यह कोई बीमारी नहीं होती. मांबाप के स्वीकारने से सड़कों पर किन्नरों का भीख मांगना, अनजान लोगों से सड़क पर सैक्स करना कम होगा. मातापिता केवल बच्चे को अपना लें, बस यही काफी होगा.

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आप के इस सफर में मांबाप का रोल कैसा रहा है?

मेरे परिवार में मां से ज्यादा पिता और बहन का सहयोग रहा है. भाई और मां भी केयरिंग हैं. जब मुझे कोरोना हुआ था, तो उन्होंने मेरा बहुत ध्यान रखा था.

सैक्स चेंज की भावना आप के मन में कैसे आई और इस के बाद क्याक्या एहतियात बरतने की जरूरत होती है?

बचपन में 3 साल की उम्र से ही ऐसी भावना रही है, क्योंकि स्कूल में मुझे डौल बनाया गया था और मुझे आसपास की लड़कियों के साथ उठनाबैठना अच्छा लगता था. इस के अलावा बचपन में मुझे किसी ने गाना गाने को कहा और मैं ने ‘लैला ओ लैला…’ गाया.

दरअसल, मुझे ग्लैमर और ऐक्टिंग छोटी उम्र से पसंद था, जिस में जीनत अमान, परवीन बौबी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित वगैरह हीरोइनों को फिल्मों में देखना अच्छा लगता था. जब बड़ी हुई तो लगा कि मैं भी इन की तरह परदे पर चूड़ियां पहन कर डांस करूं. घर पर भी मैं ऐसा ही गाना चला कर डांस किया करती थी.

बड़ी होने पर फिल्म हीरोइन साधना के मशहूर ‘साधना कट’ बाल रखे, जिस पर मांबाप ने एतराज किया और लड़कों की तरह चलनेफिरने की हिदायत दी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, क्योंकि मैं अंदर से लड़की थी.

फिर पिता ने मुंबई भेजा. वहां मैं ने काम के साथ पढ़ाई की और दिल्ली आ गई. इस के बाद सैक्स चेंज कराया और सब ठीक हो गया.

सैक्स चेंज के दौरान 2 साल तक हार्मोन लेना पड़ा, क्योंकि हार्मोन पूरे शरीर को बदल देता है. इस का असर किडनी, लिवर वगैरह पर पड़ता है. हर महीने शरीर और हार्मोन का टैस्ट कराना पड़ता है. कई बार सैक्स चेंज के दौरान मौत भी हो जाती है, इसलिए डाक्टर की सलाह के मुताबिक ही सैक्स चेंज के लिए जाएं और उन के हिसाब से दवाएं लें.

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आप कितनी फैशनेबल हैं? आप की आगे की क्या योजनाएं हैं?

मैं एक ड्रैस डिजाइनर हूं और अपनी ड्रैस खुद डिजाइन करती हूं. मैं सलवारकमीज पहनती हूं और शो के हिसाब से गाउन या शौर्ट ड्रैस पहनती हूं.

मुझे बहुत दुख होता है, जब मैं सुनती हूं कि किसी लड़की का उस की ड्रैस की वजह से रेप हुआ है. कोई भी ड्रैस एक पहनावा है और उसे कोई भी लड़की अपने हिसाब से पहन सकती है. गलत सोच वाले मर्दों और लड़कों को बचपन से लड़कियों की इज्जत करना सीखने की जरूरत है.

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मैं ने अपनी प्रतियोगिता में मार्शल आर्ट्स का भी एक कोर्स रखने के बारे में सोचा है, ताकि वे अपना बचाव खुद कर सकें. आगे मैं एक एनजीओ खोल कर उस में भी मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग और लड़कियों को ग्रूमिंग कर आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा रखती हूं.

आप लोगों को क्या मैसेज देना चाहती हैं?

मेरा सभी परिवारों, समाज और महिलाओं से कहना चाहती हूं कि ट्रांसजैंडर को अपनाएं, उन्हें पढ़ाएं. वे भी सब के साथ मिल कर अच्छा काम कर सकती हैं. अभी ‘मेक इन इंडिया’ के स्लोगन से भी ज्यादा ‘एमपावर इंडिया’ का स्लोगन होना चाहिए, क्योंकि महिलाओं के पढ़ने और आत्मनिर्भर होने से पूरा देश आगे बढ़ेगा.

गोविंदा की बेटी टीना आहूजा ने कहा, अभी की डिमांड एक्शन और रियलिटी है!

अभिनय की दुनिया में एक और स्टारपुत्री का सफलता के साथ पदार्पण हो गया. नामचीन कलाकार गोविंदा की क्रेजी बेटी व नई अदाकारा टीना आहूजा का मानना है कि ऐक्शन, हौरर व अन्य के दौर आजा सकते हैं लेकिन मनोरंजन सदाबहार है, इसे हमेशा पसंद किया जाता रहेगा.

पंजाबी फिल्म ‘सैकंडहैंड हसबैंड’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री टीना आहूजा मुंबई से हैं. वे नामचीन कलाकार गोविंदा की बेटी हैं. टीना ने फैशन डिजाइनिंग में स्नातक किया है और अभिनय की बारीकियों को सीखने के लिए फिल्म इंस्टिट्यूट औफ लंदन से कोर्स किया है. उन के अभिनय से सजी एक शौर्ट फिल्म ‘ड्राइविंग मी क्रेजी’ जी5 पर रिलीज हो चुकी है. इस फिल्म में उन के अभिनय को सराहा जा रहा है. टीना अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश हैं. उन से बातचीत करना मजेदार रहा. यहां पेश हैं उन से हुई बातचीत के अंश :

‘ड्राइविंग मी क्रेजी’ की सफलता से आप कैसा महसूस कर रही हैं?

फिल्म ‘ड्राइविंग मी क्रेजी’ में मेरी भूमिका एक यंग गर्ल की है, जो संपन्न परिवार से है और एक ऐप में खुद को एनरोल कर समय बिताती है. ऐप के जरिए वह किसी से मिलती है, फिर क्याक्या होता है, इस बारे में कहानी कही गई है. मु झे बहुत अच्छा लगा कि मेरा काम दर्शकों को पसंद आ रहा है. किसी फिल्म के लिए जब आप मेहनत करते हैं और वह फिल्म अच्छी बनती है, तो महसूस होता है कि मेहनत साकार हो गई है.

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यह फिल्म औनलाइन डेटिंग पर बनी है, आप इसे पार्टनर की खोज के लिए कितना अच्छा मानती हैं और क्या आप ने कभी औनलाइन डेटिंग की है?

मैंने डेटिंग के लिए कभी ऐप का प्रयोग नहीं किया है. मैंने देखा है कि ऐसी बहुत सी ऐप्स हैं जिन में यूथ प्यार की खोज में खुद को एनरोल करते हैं और शादी तक पहुंच जाते हैं. कुछ यूथ का अनुभव अच्छा रहता है, तो कुछ का खराब. मु झे लगता है कि आप कितने लकी हैं, उस पर यह आधारित है, जिस से आप को एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाए.

क्या अपनी भूमिका से आप खुद को रिलेट कर पाती हैं?

कुछ चीजों से मैं खुद को रिलेट कर सकती हूं, कुछ से नहीं, क्योंकि मैं ने डेटिंग ऐप कभी यूज नहीं किया है और न ही इस ऐप को यूज करने का मु झ में कौन्फिडैंस है. किसी भी अनजान व्यक्ति से मिल कर बातचीत करना मु झ से नहीं हो सकता.

अपने पिता गोविंदा की कौन सी सीख आप अपने जीवन में उतारती हैं और वे कैसे पिता हैं?

वे एक स्वीट और सपोर्टिव पिता हैं. उन्होंने हमेशा सिखाया है कि जो भी काम करो, मेहनत, ईमानदारी, लगन और दिल से करो. इस से काम करने में भी मजा आता है. मुझे उन की यह बात बहुत अच्छी लगी और इसे मैं ने अपने जीवन की सीख माना है.

किसी भी फिल्म को करने से पहले क्या आप पिता से चर्चा करती हैं?

चर्चा मैं अवश्य करती हूं. वे मेरी राय जानने की कोशिश करते हैं. अगर मुझे अच्छा लगता है, तो ही मैं उसे करती हूं, क्योंकि ऐसा करने पर फिल्म सफल हो या न हो, कुछ फर्क नहीं पड़ता क्योंकि यह आप की चौइस है.

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क्या कभी गोविंदा के अभिनय हुनर से आप की तुलना की गई?

ऐसा सामना मु झे कभी नहीं करना पड़ा, क्योंकि दर्शकों ने मेरे काम की तुलना पिता के काम से कभी नहीं की. सब ने मेरे काम की तारीफें की हैं. इस के अलावा, मैं अपने पिता के साथ उन का काम करती हूं. अगर कोई कुछ कहे, तो मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता.

क्या बचपन से आप ने अभिनय के बारे में सोचा है?

मुझे पहले फैशन इंडस्ट्री में जाना था, लेकिन पिता को फैशन का क्षेत्र पसंद नहीं था. उन्हें मेरा डिजाइनर बनना पसंद नहीं था. उसे छोड़ कर मैं अभिनय की तरफ मुड़ी और इस का प्रशिक्षण लेने लंदन गई.

आप एक अभिनेत्री के अलावा फैशन की जानकारी भी रखती हैं. ऐसे में फिल्मों में आप जो कपड़े पहनती हैं, क्या उनकी डिजाइनिंग आप ही करती हैं?

फिल्म में पहनने वाले मेरे कपड़ों की डिजाइनिंग मैं नहीं करती, पर पिता के फिल्मों और स्पैशल अपीयरैंसेस की स्टाइलिंग मैं करती हूं. एक विज्ञापन में भी मैं ने स्टाइलिंग की है, जिसे लोगों ने काफी सराहा है.

आप का ड्रीम क्या है?

मेरा ड्रीम खुद को आगे अच्छी ऐक्टिंग के लिए तैयार करना है.

पिता की कौनकौन सी फिल्में आप को बहुत अधिक पसंद हैं?

मुझे पिता की सभी फिल्में पसंद हैं. उन्होंने हर तरह की फिल्में कीं और सफल रहे. उन की फिल्में ‘स्वर्ग’, ‘दूल्हे राजा,’ ‘भागमभाग,’ ‘किलबिल’ आदि सभी अच्छी लगती हैं. मैं अपने पिता की सब से बड़ी फैन हूं. मेरे पिता एक बढि़या डांसर भी रहे हैं. मैंने भी डांस सीखा है, पर अभी किसी को पता नहीं है. मैं किसी फिल्म या म्यूजिक वीडियो के द्वारा अपने इस हुनर को दर्शकों तक लाना चाहती हूं. मेरे घरवाले कहते हैं कि मैं अपने पिता की तरह डांस करती हूं.

फिल्मों की कहानियों में आजकल मनोरंजन से अधिक रिऐलिटी है, इस बारे में आप की सोच क्या है?

मेरे हिसाब से हर चीज का एक वक्त होता है और हर चीज की एक मांग होती है. अभी की डिमांड ऐक्शन और रिऐलिटी है, लेकिन मनोरंजन हर युग में सब को पसंद आता है. वह खत्म नहीं होना चाहिए, क्योंकि आज लोगों में तनाव और डिप्रैशन बहुत है. मनोरंजन ही उन्हें अच्छा महसूस करवाता है. कलाकार को समय के हिसाब से चलना जरूरी है, लेकिन सब में खुशियां बांटने की कोशिश हमेशा करनी चाहिए. मु झे मनोरंजक फिल्में, खासकर, रोमांटिक और रोमांटिक कौमेडी फिल्में ज्यादा पसंद हैं.

अभिनय के अलावा क्या करती हैं?

मैं ऐक्टिंग के अलावा पिता के साथ काम करती हूं. उन का व्यवसाय भी संभालती हूं. इस के अलावा, मेरा खुद का फूड का एक ब्रैंड हैल्दी क्रश है, जिस के लिए भी काम करती हूं. अगर मौका मिला तो मैं फिल्म प्रोड्यूस करना पसंद करूंगी. मु झे फैशन और स्टाइल भी बहुत पसंद हैं.

क्या किसी डिजाइनर को आप फौलो करती हैं?

मुझे कई डिजाइनर्स के काम पसंद हैं. मुझे डिजाइनर सब्यसाची, अकी नरूला, मनीष अरोड़ा, ऋतु कुमार, अनीता डोंगरे आदि सभी के स्टाइलसैंस बहुत अच्छे लगते हैं.

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पिता की किस फिल्म का आप रीमेक देखना चाहती हैं?

मैं पिता की किसी भी फिल्म का रीमेक नहीं देखना चाहती, क्योंकि जो ओरिजिनल फिल्म है, उसे ही दर्शकों ने पसंद किया है. उससे छेड़खानी मुझे अच्छी नहीं लगती.

सपना चौधरी ने हरियाणवी गानों को घरघर पहुंचाया- शिवा दहिया

कुछ साल पहले एक हरियाणवी गाने ‘हट जा ताऊ पाछे न…’ ने शादियों के डीजे पर धूम मचा दी थी. लोगों को बेशक इस गाने के बोल समझ नहीं आते थे, पर दिल्ली में भी इस गाने को खूब पसंद किया गया था. फिर आया सपना चौधरी का ठुमके वाला डांस और गाना ‘तेरी आंख्या का यो काजल…’ जो इतना ज्यादा सुपरहिट हुआ कि डीजे पर इस का बजना तकरीबन लाजिमी हो गया. इस के बाद धीरेधीरे और भी कई हरियाणवी गीतों ने खूब धूम मचाई और देखते ही देखते बहुत से गायकगायिका देशभर में फेमस हो गए.

इन्हीं गायकों में एक नाम है शिवा दहिया का जिन का गाया गाना ‘गुंडा’ बहुत चर्चा में रहा है. उन से उन की निजी जिंदगी और हरियाणवी गानों पर लंबी बातचीत की गई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं?

मेरा पूरा नाम शिवाजीत यादव है और मैं रेवाड़ी के गंगायचा अहीर, बीकानेर गांव का रहने वाला हूं. मेरे दादाजी का नाम डाक्टर महेंद्र कुमार है जो एक डाक्टर हैं और गांव के सरपंच भी रह चुके हैं. मेरी दादीजी का नाम बिमला देवी है. मेरे पिताजी का नाम योगेश कुमार है जो एक बिजनेसमैन हैं और मेरी माताजी का नाम उर्मिला देवी है.

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हालांकि मेरे परिवार में कोई भी पेशे से म्यूजिक से ताल्लुक नहीं रखता है, पर मेरा म्यूजिक में बचपन से ही मन रहा है. मुझे म्यूजिक की प्रोफैशनल दुनिया में आए 4 से 5 साल हो चुके हैं.

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आप ने सिंगर बनने की कैसे सोची? क्या आप ने कहीं से गायन और संगीत की शिक्षा भी ली है?

मैं बचपन से ही संगीत में लगन रखता था. कुछ साल पहले हमारे रेवाड़ी में एक लाइव शो था, जहां पर हरियाणा के तकरीबन सभी कलाकार आए हुए थे, लेकिन उन में रेवाड़ी से कोई नहीं था, तभी मैं ने सोचा कि रेवाड़ी से भी कोई होना चाहिए जो हमारे हरियाणा को अपने काम से आगे ले जाए. वहां से ही मैं ने सिंगर बनने की सोची थी.

मैंने संगीत की शिक्षा बस कलाकारों को देखसुन कर ली है, बाकी मैंने और कहीं जा कर इस की शिक्षा नहीं ली है. मैं यह भी कहना चाहता हूं कि मुझे इस लाइन में लाने में फौजी करमवीर का सब से बड़ा योगदान रहा है.

एक समय था जब दिल्ली, हरियाणा, पंजाब में शादी या किसी भी प्रोग्राम में हिंदी या पंजाबी फिल्मों के गाने डीजे पर ज्यादा बजते थे. अब हरियाणवी गानों का काफी बोलबाला है. आप इस की क्या खास वजह मानते हैं?

शुरुआती समय में हरियाणा में हरियाणवी रागिनी का दौर था. उस समय डीजे पर केवल हिंदी और पंजाबी गानों का चलन था, फिर हरियाणा के कलाकारों ने इस चीज को समझा और उसी तरह से उन्होंने गाने बनाने शुरू किए.

इस में सब से बड़ा शुरुआती योगदान मैं फौजी करमवीर, केडी, राजू पंजाबी, विकास कुमार, विजय वर्मा, निप्पू नेपेवाला, सुरेंद्र रोमियो व अजय हूडा जैसे लोगों का मानता हूं.

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सपना चौधरी के डांस और गानों ने हरियाणवी गानों को घरघर पहुंचाने में काफी बड़ा रोल निभाया है. क्या आप इस बात से सहमत हैं?

बिलकुल, इस बात में कोई शक नहीं है कि सपना चौधरी ने इस में काफी बड़ा रोल निभाया है, लेकिन सब से बड़ा रोल उन का है जिन के लिखे और गाए गानों पर वे अपने डांस की पेशकश देती हैं.

आप के अब तक कितने गाने आए हैं और उन में से आप का सब से पसंदीदा गाना कौन सा है?

मेरे अभी तक 7 से 8 गाने आ चुके हैं. उन में से मेरा पसंदीदा गाना ‘गुंडा’ है, जिसे परवीन पुनिया पनिहार ने लिखा है.

हरियाणवी गानों में बहुत बार खूनखराबे जैसे शब्द जैसे गुंडा, गोली, बंदूक वगैरह भी खूब आते हैं. क्या इस तरह के शब्दों से नौजवानों और बच्चों पर बुरा असर नहीं पड़ता है?

सब से पहले मैं बताना चाहूंगा कि हर चीज के 2 पहलू होते हैं. ऐसे शब्द केवल लोगों के मनोरंजन के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. असली कलाकार वही होता है जो अपनी कला से लोगों का मनोरंजन करे. कुछ लोग होते हैं, जो इन को गलत तरीके से सोचते हैं, बाकी मेरा मानना है कि इन का नौजवानों और बच्चों पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है.

आजकल गाने का वीडियो बनाने में खूब तामझाम जैसे खूबसूरत लड़कियां, बड़ी गाड़ियां, अच्छी लोकेशन का इस्तेमाल किया जाता है. उन पर कितना खर्चा होता है या कहें कि एक गाना शूट करने में कितना पैसा लगता है ?

यह बहुत ही अच्छा सवाल है, क्योंकि ज्यादातर लोग इस बारे में जानना चाहते हैं. मैं आप को बताना चाहूंगा कि सबकुछ क्वालिटी पर निर्भर करता है, फिर भी एक से 2 लाख रुपए के बीच में एक बहुत ही अच्छा गाना तैयार हो जाता है.

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आप का नया गाना कौन सा आने वाला है?

मेरे 2 नए गाने ‘जेल 3’ व ‘काले करम’ बहुत ही जल्द आने वाले हैं.

हरियाणवी का कौन सा गायक आप को पसंद है?

वैसे तो बहुत से गायक हैं, लेकिन उन में से मुझे केडी यानी कुलबीर दनोदा सब से ज्यादा पसंद हैं.

आगे बढ़ने के लिए अलग काम करने की आदत डालनी होगी- निशा दुबे

भोजपुरी हीरोइन निशा दुबे भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी ऐक्टिंग के साथसाथ कातिल अदाओं और अपने हौट ऐंड बोल्ड लुक के जरीए दर्शकों के दिलों पर राज करती हैं. भोजपुरी गायन से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली निशा दुबे आज भोजपुरी सिनेमा की सनसनी बनी हुई हैं. जहां एक ओर उन की सभी फिल्में हिट रहती हैं, वहीं दूसरी ओर उन के गाए गाने रिलीज होते ही सोशल मीडिया और इंटरनैट पर जम कर वायरल होते रहते हैं.

निशा दुबे आज के दौर में फिल्मकारों की पहली पसंद में शामिल हैं. उन से हुई एक मुलाकात में उन के फिल्मी कैरियर को ले कर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं उसी के खास अंश :

अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं?

भोजपुरी सिनेमा में आने की वजह मेरे परिवार में घटी एक घटना थी. यह दुखद घटना तब घटी, जब मैं 15-16 साल की रही होगी. तभी मेरे पिताजी का ऐक्सीडैंट हो गया और वे लकवे के शिकार हो गए. उस समय मैं 10वीं की स्टूडैंट थी.

पिताजी के साथ हुए इस हादसे ने मेरे पूरे परिवार को तोड़ कर रख दिया था. जब परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया तो 16 साल की उम्र में मैं ने नाचने और गाने का फैसला लिया.

मेरे हुनर को लोगों ने बहुत प्यार दिया. ऐसे संघर्षों की बदौलत आज मुझे भोजपुरी सिनेमा में एक मुकाम हासिल हुआ है.

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आप का शुरुआती संघर्ष कैसा रहा? आप ने अपने कैरियर की शुरुआत भोजपुरी गीतों के गायन के साथ की थी, तो देखते ही देखते आप भोजपुरी सिने जगत की सनसनी कैसे बन गईं?

सच कहूं, तो मेरे कैरियर के शुरुआती दौर में संघर्ष ही संघर्ष रहा. जहां एक ओर पिताजी के साथ हुए हादसे के चलते मुझे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी, वहीं दूसरी ओर छोटी सी उम्र में मेरे डांस और गाने के चलते परिवार को बहुत ताने सुनने पड़े, लेकिन मैं ने इन सब को नजरअंदाज कर अपने कैरियर में आगे बढ़ने का फैसला ले लिया था.

लोगों ने मेरे गाए गानों और वीडियो अलबम को इतना पसंद किया कि मेरे पास एकएक कर कई फिल्मों में काम करने के औफर आ गए, जिस के बाद मैं ने भोजपुरी फिल्मों में काम करने की  दिशा में कदम आगे बढ़ाया और मुझे फिल्मों में कामयाबी मिलती गई.

आज मेरी झोली में दर्जनों कामयाब फिल्में हैं. जहां तक भोजपुरी सिने जगत में मेरे सनसनी बनने का सवाल है, तो यह मेरे गाने, ऐक्टिंग और ग्लैमरस लुक के चलते ही मुमकिन हो पाया है.

क्या आप ने कभी सोचा था कि भोजपुरी बैल्ट में लोगों के दिलों पर राज करेंगी?

मैंने तो भोजपुरी बैल्ट में राज करने का सपना कभी देखा ही नहीं था. मैं चाहती थी कि पढ़लिख कर प्रशासनिक सेवा में जाऊं, लेकिन पढ़ाई बीच में छूट जाने के चलते मेरी यह हसरत अधूरी ही रह गई. ऐसे में मुझे लगता है कि शायद भोजपुरी सिनेमा में मुझे नौकरी से ज्यादा प्यार मिला है, जिस की बदौलत मैं लोगों के दिलों पर राज करती हूं, जो शायद नौकरी में रहते हुए मुझे हासिल नहीं हो पाता.

एक समय में आप की और अरविंद अकेला कल्लू की जोड़ी खूब हिट हुआ करती थी. फिर अचानक क्या हुआ कि यह चर्चित जोड़ी एकसाथ दिखना बंद हो गई ?

देखिए, अगर आप को जिंदगी में आगे बढ़ना है, तो ढर्रे से उतर कर अलग काम करने की आदत डालनी होगी. यही मैं ने भी किया, क्योंकि मैं ने अरविंदजी के साथ अलबम और फिल्मों में बहुत काम किया.

इस दौरान मुझे लगा कि एक ही कलाकार के साथ काम करने से दर्शकों में ऊब  हो सकती है, क्योंकि दर्शक फिल्म और सिनेमा में हर बार कुछ नया देखना चाहता है, इसीलिए मैं ने धीरेधीरे अरविंदजी के साथ काम करना बंद कर दिया. इस चर्चित जोड़ी के एकसाथ न दिखने की महज यही एक वजह है.

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क्या आप की कंटैंट आधारित फिल्मों में काम करने की हसरत पूरी हो पाई है?

सच कहूं, तो मुझे आज तक कोई ऐसा रोल मिला ही नहीं, जिस में मैं खुद की ऐक्टिंग से संतुष्ट हो पाई हूं, क्योंकि अभी तक भोजपुरी में मिलतेजुलते विषय पर ही फिल्में बनती रही हैं.

मैं चाहती हूं कि भोजपुरी में भी ऐसे विषयों पर फिल्में बनें, जिन में हीरोइनों का रोल भी चैलेंजिंग हो और दूसरी भाषाओं की तरह इन्हें भी मल्टीप्लैक्स में देखा जाए.

आप की ऐसी कौन सी फिल्में हैं, जो कोरोना के चलते रिलीज नहीं हो पाईं?

मेरी 3 फिल्में कोरोना के चलते फ्लोर पर ही अटकी हुई हैं, जो जल्द ही पूरी होने वाली हैं. इन फिल्मों में से 2 फिल्में ‘बनारसी पहलवान’ और ‘तकरार’ पूरी हो चुकी हैं.

जब देश में कोरोना के केस तेजी से बढ़ रहे हैं, ऐसे में फिल्मों की शूटिंग में सुरक्षा के क्या उपाय अपनाए जा रहे हैं?

कोरोना के चलते फिल्मों की शूटिंग के दौरान हम खासा सतर्क हैं. हम लोग क्रू मैंबर के साथ ही पूरी टीम की जांच के बाद सैट पर आते हैं और यहां भी सुरक्षा के उपायों का पूरा खयाल रखा जाता है.

सोशल मीडिया के फौलोअर्स और यूट्यूब पर व्युअर्स के आधार पर आप खुद को कहां पाती हैं?

मैं खुशनसीब हूं कि सोशल मीडिया पर खूब पौपुलर हूं. इस प्लेटफार्म पर मेरे चाहने वालों की तादाद कई लाख में है. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मुझे फौलो करने वालों की तादाद को अगर जोड़ लिया जाए, तो यह तकरीबन 10 लाख है.

भोजपुरी सिनेमा पर पहले यह आरोप लगता था कि यहां फूहड़ता ज्यादा परोसी जाती है और कंटैंट बेस्ड सिनेमा कम बनता है. पर अब इस के उलट हो रहा है. बौलीवुड में फूहड़ता  का बोलबाला बढ़ा है. इसे आप भोजपुरी सिनेमा के नजरिए से कैसे देखती हैं?

आप ने बहुत अच्छी बात कही है. भोजपुरी सिनेमा नाहक ही बदनाम है, जबकि दूसरी भाषाओं में बन रही फिल्मों में फूहड़ता ज्यादा है और रहीसही कसर वैब सीरीज बनाने वालों ने पूरी कर दी है, जो सैंसर के दायरे में न आने से फूहड़ता की हद पार कर रहे हैं.

अगर मैं कहूं कि भोजपुरी सिनेमा में फूहड़ता है ही नहीं, तो गलत नहीं होगा, क्योंकि भोजपुरी अलबम की फूहड़ता के चलते सिनेमा को भी उसी से जोड़ कर देखा जाता है, जबकि ऐसा नहीं है.

रही बात भोजपुरी सिनेमा में कंटैंट आधारित फिल्मों के बनने की, तो अब इस की भी शुरुआत हो चुकी है और इस दौरान कई ऐसी फिल्में आ रही हैं, जिन्हें देखने के बाद आप का नजरिया बदल जाएगा.

भोजपुरी सिनेमा में हर साल सैकड़ों फिल्में बनती हैं, लेकिन लाइमलाइट में कुछ गिनीचुनी फिल्में ही शामिल हो पाती हैं. इस की क्या वजह हो सकती है?

इस की महज एक ही वजह है, उस फिल्म का विषय, क्योंकि फिल्म के विषय में जितनी जान होगी, वह उतना ही लाइमलाइट में शामिल हो पाएगी.

जब आप ज्यादा बिजी होती हैं, तो क्या अपनी ड्रैसिंग सैंस और मेकअप पर ध्यान दे पाती हैं?

मैं तो बिलकुल ध्यान नहीं देती हूं, क्योंकि अपने घर पर एकदम नौर्मल रहती हूं और मु?ो इस दौरान मेकअप की जरूरत ही नहीं महसूस होती है.

जब मैं खाली रहती हूं और फिल्मों की शूटिंग पर नहीं होती हूं, तो मैं अपने आडियोवीडियो गानों पर काम करती हूं.

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अपने अब तक के कैरियर में आप भोजपुरी इंडस्ट्री में सब से बड़ा बदलाव क्या पाती हैं?

आज के भोजपुरी सिनेमा में बहुत बड़ा बदलाव आ चुका है. आज फिल्में ज्यादा बन रही हैं. सच कहा जाए, तो इस की होड़ सी मची हुई है.

‘‘सोशल मीडिया की वजह से नकारात्कमता फैल गई है.’’ -रजित कपूर

1992 में श्याम बेनेगल के निर्देशन में फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ से फिल्मों में कदम रखने वाले रजित कपूर पिछले चालिस वर्षों से थिएटर से जुड़े हुए हैं. उन्होने टीवी पर भी काफी काम किया है. 1996 में फिल्म ‘‘द मेकिंग औफ महात्मा’’ के लिए उन्हे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया. 27 वर्षों से फिल्मों में काम करते आ रहे हैं. फिल्म ‘राजी’ से उन्हे एक नई पहचान मिली. अब वह नमन नितिन मुकेश निर्देशित फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि आठ नवंबर को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

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हाल ही में उनसे एक्सक्लूसिब बातचीत हुई….

आप खुद अपने 27 साल के कैरियर कों किस जगह देख रहे हैं?

– पता नहीं.यह ऊपर वाले की मेहरबानी है. इन 27 सालों में इतने अच्छे अच्छे किरदार निभाने का मौका मिला है. इसी तरह आगे भी अच्छे किरदार निभाने का मौका मिलता रहे, यही इच्छा है.

आपके कैरियर में कौन-कौन से टर्निंग प्वाइंट्स रहे?

– सबसे पहला टर्निंग प्वाइंट फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ रही. क्योंकि वह मेरी पहली फिल्म थी. इसमें मुझे श्याम बेनेगल के निर्देशन में काम करने का असवर मिला था. उसके बाद ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’ के लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. यह भी मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था. व्यावसायिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए, तो फिल्म ‘‘गुलाम’’ थी, यह भी व्यावासयिक दृष्टिकोण से मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था. शायद कुछ हद तक इसके बीच में औफर इतने ज्यादा खराब थे कि मैंने काम करना छोड़ दिया था. इसलिए फिल्म ‘‘राजी’’ के बाद फिर से वापस दर्शकों की निगाहों में बस जाना भी एक टर्निंग प्वाइंट हो सकता है. क्योंकि ‘राजी’और ‘उरी’ दोनों लगभग एक साथ आई थीं.  तो कई लोगों को लगा कि मैं बीच में गायब क्यों हो गया था. मैंने कहा कि अच्छे किरदार कहां थे? जब अच्छे किरदार ही नहीं थे, तो मैं उन्हें कैसे निभाता.

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मैंने सुना है कि आप पहले ‘‘राजी’’ करना ही नहीं चाह रहे थे..

– नही.. ऐसी बात नहीं है कि मैं करना नहीं चाह रहा था. शुरूआत में उन्हे जो तारीखें चाहिए थीं, वह मेरे पास नही थी. पर बाद में उनकी शूटिंग की तारीखें बदलीं, तो मैने कर लिया. शायद जो होना होता है, वह होता ही है. शायद ‘राजी’ का हिस्सा बनना मेरे लिए तय था.

अभी आपने कहा कि बीच में आपको काम नहीं मिल रहा था?

– ऐसा नहीं है कि काम नहीं मिल रहा था, काम तो थे, लेकिन वह दिलचस्प नहीं थे.

जिस तरह के किरदार या जिस तरह की फिल्मों से आप जुड़ना चाह रहे थे, वह नहीं मिल रहे थे, यदि ऐसा है. तो क्या उस समय सिनेमा में कुछ गड़बड़ी थी?

– शायद लोग लेखनी पर, स्क्रीनप्ले पर काम नहीं कर रहे कर रहे थे. बहुत ही वाहियात चीजें लिखकर आती थीं. लोग ऐसी चीजें लिखकर मेरे पास आ रहे थे, जिनमें मुझे दिलचस्पी नहीं थी. पर मुझे लगता है कि अब लोग लेखक व लेखकी की लेखनी की कद्र करने लगे हैं.

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यह बदलाव कैसे आया, क्या अब फिल्मकार लेखक को अच्छे पैसे देते हैं?

– पता नहीं. मगर अब फिल्मकार लेखक को इज्जत तो देने लगे हैं. और अब लेखक को पैसे भी मिलने लगे हैं. अब फिल्में भी पैसा कमाने लगी हैं. अगर आप उसकी कद्र करोगे, आप उसके कद्र के पैसे भी दोगे, तो फायदा आपको होगा. यह तो होना ही था. अब क्यों यह चीज हुई? जब एक बार खाई में गिरते हैं, तो उसके बाद आप फिर से उठना चाहेंगें ही.

सिनेमा काफी बदल गया. मल्टीप्लेक्स का जाल फल गया. स्टूडियो सिस्टम हो गया. क्या इससे वास्तव में सिनेमा बदला है या सिर्फ बातें हो रही?

– बदलाव इस मायने में है कि प्लेटफौर्म बढ़ गए हैं. पहले सिर्फ सिनेमा व टीवी था. अब यूट्यूब है. वेब सीरीज है. कंप्यूटर है. नेटफ्क्लिस, अमेजौन, आल्ट बालाजी सहित कई ओटीटी प्लेटफार्म हैं.अब तो लोग फोन से भी फिल्में बनाकर दे रहे हैं. यह जो फैलाव हुआ है, उसके चलते अब ज्यादा लोग इसमें जुड़ रहे है. इससे कलाकार ही नही लेखक व निर्देशक सहित हर तरह के लोगों को काम मिल रहा है. अब तकनीक के कारण तकनीशियन को भी फायदा हो रहा है.

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फिल्म‘‘बायपास रोड’’ क्या है. आप इसमें क्या कर रहे हैं?

– यह एक रोमांचक फिल्म है. पिछले चार-पांच वर्षों से शायद मैं स्पेशल अपियरेंस ही करता आ रहा हूं. पर इस फिल्म में मेरा स्पेशल अपियरेंस नहीं है. इसमें मेरा बाकायदा एक लबा किरदार है. मैंने विक्रम के पिता प्रताप का किरदार निभाया है. एक पिता जो अपने बेटे के साथ जुड़ा हुआ है.

आपको नहीं लगता फिल्म में बहुत लंबे समय से पारिवारिक रिश्ते गायब हो गए हैं?

– यह दौर दौर की बात है. जहां से हमने शुरुआत की थी. 1960 में तो संयुक्त परिवार हुआ करते थे. अब एकाकी परिवार हो गए हैं. अब तलाक सबसे ज्यादा हो रहे हैं. तो इसका प्रतिबिंब सिनेमा में नजर आ रहा है. जातीय जिंदगी में जो हो रहा है, उसका कहीं ना कहीं असर सिनेमा पर पड़ता ही है. निजी जिंदगी में लोगों में रिश्तो की अहमियत कम हो गई है. तो वही चीज पर्दे पर दिखना ही दिखना है. अब आप मोबाइल से सिर्फ संदेष भेजते हैं. अब आप शायद लोगों से जाकर मिलते भी नहीं हैं. रिश्तेदारों से या दोस्तों से अब ‘हेलो गुड मैर्निंग’ या‘ हैप्पी दिवाली’ व्हाट्सएप पर ही हो जाती है.

आप मानते है कि बदलते जमाने के चलते परिवार के साथ साथ सारे रिश्ते खत्म हो गए हैं?

– तेजी से हो रहे हैं. जो दिखता है, उसका असर तो होगा ही. लोग गांव छोड़कर शहर में आ रहे हैं. तो शहर फैलने लगे. पहले गांव ही थे. शहर तो थे नहीं. तो बदलाव तो होना ही है.

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रिश्तो में जो दरारे आ रही हैं. इसमें सोशल मीडिया की कितनी भूमिका है?

– यह एक अलग ही पहलू है. मेरे हिसाब से सोशल मीडिया की वजह से नकारात्कमता फैल गई है. कोई कुछ भी बकवास कर रहा है. किसी की भी आलोचना कर रहा है. किसी को भी नंगा करने का उसे हक मिल गया है. आपके पास ‘फ्रीडम औफ स्पीच’ है, आपके पास जुबान है. लेकिन बोलने से पहले सोचना जरूरी है. पर हमने समझना व सोचना छोड़ दिया है. शायद हम भूल गए कि हम जो कह रहे हैं, उसका प्रभाव क्या है? किस पर और कितना है?

आप कुछ सोशल मीडिया पर कितना रहना पसंद करते हैं?

– बिल्कुल नहीं…

आप थिएटर से भी जु़डे रहे हैं. भारत में हिंदी थिएटर को अच्छे साधन क्यों नहीं मिल पाते? दूसरी ओर पारसी थियेटर की परंपरा भी खत्म हो रही है. ऐसा क्यों हुआ?

– पहले पारसी थियेटर को आर्थिक मदद मिलती थी. हिंदी थिएटर को आर्थिक मदद कभी नहीं मिली. हर चीज को सरकार की मदद पर नही चलाया जा सकता. प्राइवेट इंडस्ट्री का जो कमर्शियल सेटअप है, उसे आगे आकर हिंदी थिएटर की मदद करनी चाहिए. अब तो हिंदी में बोलना भी कम हो गया है.

गुजराती और मराठी थिएटर तो काफी आगे बढ़ रहे हैं?

– जी हां. क्योंकि उनके पास सपोर्ट है. गुजराती थिएटर सपोर्ट करने के लिए प्रोड्यूसर हैं. वह अपने गुजराती नाटक सिर्फ भारत में ही नहीं अमरीका व कनाडा तक लेकर जाते हैं. इसलिए वह आज भी जिंदा है. मगर हिंदी थिएटर के पास कोई सपोर्ट नही है. इसके लिए आम लोग ही जिम्मेदार हैं. लोग हिंदी थिएटर देखने के लिए आते ही नहीं है. जब हिंदी नाटक ज्यादा लोग देखने जाएंगे, तो ज्यादा नाटकों का निर्माण होगा. मैं सिर्फ किसी एक इंसान को दोश नही दे रहा, बल्कि थिएटर को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सामूहिक है.

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आप टीवी से भी जुड़े रहे हैं. आज टीवी के जो हालात हैं, उसे किस तरह से देखते हैं?

– कहानी व पटकथा लेखन पर जब काम नहीं होगा, तो कचरा ही निकलेगा. सोच छोटी रहेगी. अक्ल छोटी रहेगी. सोच नजरिया सब छोटा रहेगा. तो टीवी को लेकर क्या बात करूं. इसे इससे जुड़े लोगो ने ही कमतर बना डाला.

अब आप किस तरह से आगे जाना चाह रहे हैं?

– सच कहूं तो मैंने सोचा नहीं है. पर चिंता इस बात की है कि हम अगली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं? हो सकता है कि अगले कुछ वर्ष में आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहूं. फिलहाल इसी दिशा में मेरा ध्यान है.

कोई नया नाटक कर रहे हैं?

– नया नहीं. मगर दो तीन नाटक चल रहे हैं. जिन्हें लेकर हम घूम रहे हैं. हम अपने नाटक को लेकर औस्ट्रेलिया भी जा रहे हैं. एक हिंदी नाटक नाटक ‘मौसमी नारंगी’ है. जबकि दूसरा अंग्रेजी नाटक ‘एल एन ग्री’ का हिंदी में एक अनुवाद हुआ था. फिर एक नाटक ‘फ्यू गुड मैन’ है. तीन चार नए नाटक है. अगले 2 माह मेरा समय इन्ही नाटको के साथ गुजरेगा.

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